Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय बहुवक्तव्यतापद]
[२१७ [२१६-२] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम और उत्तर में है और (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिण दिशा में हैं।
[३] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा सक्करप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेन्जगुणा।
[२१६-३] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं और (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं।
[४] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वालुयप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा।
[२१६-४] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम वालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं (और उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं।
[५] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पंकप्पभापुढविनेरइया पुरथिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा।
.[२१६-५] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे अल्प पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में हैं (और उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं। ___[६] दिसाणुवातेणं सव्वत्थोवा धूमप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा। ___ [२१६-६] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम और उत्तर में हैं, एवं (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं।
[७] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा तमप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा।
__ [२१६-७] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम तमःप्रभावपृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में हैं और (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं।
[८] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा अहेसत्तमापुढविनेरझ्या पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेजगुणा। ___ [२१६-८] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े अधःसप्तमा (तमस्तमःप्रभा) पृथ्वी के नैरयिक जीव पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में हैं और (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं।
२१७.[१] दहिणिल्लेहितो अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया पुरथिमपच्चत्थिम-उत्तरेणं असंखेज्जगुणा, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा।
[२१७-१] दक्षिणदिशा के अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से छठी तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर में असंख्यातगुणे हैं, और (उनसे भी) असंख्यातगुणे दक्षिणदिशा में हैं।