Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
तइयं बहुवत्तव्वयपयं ( अप्पाबहुत्तपयं) तृतीय बहुवक्तव्यतापद (अल्पबहुत्वपद)
द्वारसंग्रह-गाथाएँ
दिशादि २७ द्वारों के नाम २१२. दिसि १ गति २ इंदिय ३ काए ४ जोगे ५ वेदे ६ कसाय ७ लेस्सा य ८।
सम्मत्त ९ णाण १० दंसण ११ संजय १२ उवओग १३ आहारे १४॥ १८०॥ भासग१५ परित्त १६ पज्जत्त १७ सुहुम १८ सण्णी१९भवऽथिए २०-२१चरिमे २२॥
जीवे य २३ खेत्त २४ बंधे २५ पोग्गल २६ महदंडए २७ चेव॥ १८१॥ [२१२ गाथार्थ-] १. दिक् (दिशा), २. गति, ३. इन्द्रिय, ४. काय, ५. योग, ६. वेद, ७. कषाय, ८. लेश्या, ९. सम्यक्त्व, १०. ज्ञान, ११. दर्शन, १२. संयत, १३. उपयोग, १४. आहार, १५. भाषक, १६. परीत, १७. पर्याप्त, १८. सूक्ष्म, १९. संज्ञी, २०. भव, २१. अस्तिक, २२. चरम, २३. जीव, २४. क्षेत्र, २५. बन्ध, २६. पुद्गल और २७. महादण्डक; (तृतीय पद में ये २७ द्वार हैं, जिनके माध्यम से पृथ्वीकाय आदि जीवों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की जाएगी) ॥ १८१-१८२ ॥ प्रथम दिशाद्वार : दिशा की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व
२१३. दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा जीवा पच्चत्थिमेणं, पुरथिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया।
[२१३] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े जीव पश्चिमदिशा में हैं, (उनसे) विशेषाधिक पूर्वदिशा में हैं, (उनसे) विशेषाधिक दक्षिणदिशा में हैं, (और उनसे) विशेषाधिक (जीव) उत्तरदिशा में है।
२१४. [१] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा पुढविकाइया दाहिणेणं, उत्तरेणं विसेसाहिया, पुरथिमेणं विसेसाहिया, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया।
[२१४-१] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव दक्षिणदिशा में हैं, (उनसे) उत्तर में विशेषाधिक हैं, (उनसे) पूर्वदिशा में विशेषाधिक हैं, (उनसे भी) पश्चिम में (पृथ्वीकायिक) विशेषाधिक हैं।
[२] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा आउक्काइया पच्चत्थिमेणं, पुरथिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया।
[२१४-२] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े अप्कायिक जीव पश्चिम में हैं, उनसे विशेषाधिक पूर्व में हैं, (उनसे) विशेषाधिक दक्षिण में है और (उनसे भी) विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं।