Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१५८]
[प्रज्ञापना सूत्र
(उपद्रवरहित), शिव (मंगल) मय किंकरदेवों के दण्डों से उपरक्षित हैं। (गोबर आदि से) लीपने और (चूने आदि से) पोतने के कारण (वे भवन) प्रशस्त रहते हैं। (उन भवनों पर) गोशीर्षचन्दन और सरस रक्तचन्दन से (लिप्त) पांचों अंगुलियों (वाले हाथ) से छापे लगे होते हैं। (यथास्थान) चन्दन के कलश (मांगल्यघट) रखे होते हैं। उनके तोरण और प्रतिद्वारदेश के भाग चन्दन के घड़ों से सुशोभित (सुकृत) होते हैं। (वे भवन) ऊपर से नीचे तक लटकती हुई लम्बी विपुल एवं गोलाकार पुष्पमालाओं के कलाप से युक्त होते हैं; तथा पंचरंगे ताजे सरस सुगन्धित पुष्पों के उपचार से भी युक्त होते हैं। वे काले अगर, श्रेष्ठ चीड़ा, लोबान तथा धूप की महकती हुई सुगन्ध से रमणीय, उत्तम सुगन्धित होने से गंधवट्टी के समान लगते हैं। वे अप्सरागण के संघों से व्याप्त. दिव्य वाद्यों के शब्दों से भलीभांति शब्दायमान, सर्वरत्नमय, स्वच्छ, चिकने (स्निग्ध), कोमल, घिसे हुए, पौंछे हुए रज से रहित, निर्मल, निष्पंक, आवरणरहित कान्ति (छाया) वाले, प्रभायुक्त, श्रीसम्पन्न, किरणों से युक्त, उद्योतयुक्त (शीतल प्रकाश से युक्त), प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप (अतिरमणीय) एवं सुरूप होते हैं। इन (पूर्वोक्त विशेषताओं से युक्त भवनों) में पर्याप्त और अपर्याप्त भवनवासी देवों के स्थान कहे गए हैं।
(वे) उपपात की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं; समुद्धात की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं, और स्वस्थान की अपेक्षा से (भी) लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। वहाँ बहुत-से भवनवासी देव निवास करते हैं। वे इस प्रकार हैं -
- [गाथार्थ—] १-असुरकुमार, २-नागकुमार, ३-सुप(व)र्णकुमार, ४-विद्युत्कुमार, ५-अग्निकुमार, ६-द्वीपकुमार, ७-उदधिकुमार, ८-दिशाकुमार, ९-पवनकुमार और १०-स्तनितकुमार; इन नामों वाले दस प्रकार के ये भवनवासी देव हैं ॥ १३७॥
इनके मुकुट या आभूषणों में अंकित चिह्न क्रमशः इस प्रकार हैं – (१) चूडामणि, (२) नाग का फन, (३) गरुड़, (४) वज्र, (५) पूर्णकलश चिह्न से अंकित मुकुट, (६) सिंह, (७) मकर (मगरमच्छ), (८) हस्ती का चिह्न, (९) श्रेष्ठ अश्व और (१०) वर्द्धमानक (शरावसम्पुट —सकोरा), इनसे युक्त विचित्र चिह्नों वाले, सुरूप, महर्द्धिक (महती ऋद्धि वाले) महाद्युति (कान्ति) वाले, महान् बलशाली, महायशस्वी, महान् अनुभाग (अनुभाव—प्रभाव या शापानुग्रहसामर्थ्य) वाले, महान् (अतीव) सुख वाले, हार से सुशोभित वक्षस्थल वाले, कड़ों श्रौर बाजूबन्दों से स्तम्भित भुजा वाले, कपोलों को चिकने बनाने वाले अंगद, कुण्डल तथा कर्णपीठ के धारक, हाथों में विचित्र (नानारूप) आभूषण वाले, विचित्र पुष्पमाला और मस्तक पर मुकुट धारण किये हुए, कल्याणकारी उत्तम वस्त्र पहने हुए, कल्याणकारी श्रेष्ठमाला और अनुलेपन के धारक, देदीप्यमान शरीर वाले, लम्बी वनमाला के धारक तथा दिव्य वर्ण से, दिव्य गन्ध से, दिव्य स्पर्श से, दिव्य संहनन से, दिव्य संस्थान (आकृति) से, दिव्य ऋद्धि से, दिव्य धुति (कान्ति) से, दिव्य प्रभा से, दिव्य छाया (शोभा) से, दिव्य अर्चि (ज्योति) से, दिव्य तेज से एवं दिव्य लेश्या से दसों दिशाओं को प्रकाशित करते हुए, सुशोभित करते हुए वे (भवनवासी देव) वहां