Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१४० ]
[ प्रज्ञापना सूत्र
एत्थ णं बादरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता ।
उववाएणं सव्वलोए, समुग्धाएणं सव्वलोए, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ।
[१६० प्र.] भगवन् ! बादर वनस्पतिकायिक- पर्याप्तक जीवों के स्थान कहाँ (-कहाँ) कहे गए
हैं ?
[ १६० उ. ] गौतम ! १ – स्वस्थान की अपेक्षा से—सात घनोदधियों में और सात घनोदधिवलयों में (हैं)।
२ – अधोलोक में — पातालों में, भवनों में और भवनों के प्रस्तटों (पाथड़ों) में ( हैं ) ।
३ – ऊर्ध्वलोक में-कल्पों में विमानों में, आवलिकाबद्ध विमानों में और विमानों के प्रस्तटों (पाथड़ों) (वे हैं)।
४ – तिर्यग्लोक में – कुओं में, तालाबों में, नदियों में, हृदों में, वापियों (चौरस बावड़ियों) में, पुष्करणियों में, दीर्घिकाओं में, गुंजालिकाओं (वक्र - टेढ़ीमेढ़ी बावड़ियों) में, सरोवरों में, पंक्तिबद्धसरोवरों में, सर-सर पंक्तियों में, बिलों (स्वाभाविकरूप से बनी हुई कुइयों) में, पंक्तिबद्ध बिलों में, उर्झरों (पर्वतीयजल के अस्थायी प्रवाहों) में, निर्झरों (झरनों) में, तलैया में, पोखरों में, क्षेत्रों (खेतों या क्यारियों) में, द्वीपों में, समुद्रों में और सभी जलाशयों में तथा जल के स्थानों में; इन (सभी स्थलों) में बादर वेंनस्पतिकायिक-पर्याप्तक जीवों के स्थान कहे गए हैं।
उपपात की अपेक्षा से (ये) सर्वलोक में हैं, समुद्घात की अपेक्षा से सर्वलोक में हैं और स्वस्थांन की अपेक्षा से (ये) लोक के असंख्यातवें भाग में हैं ।
१६१. कहि णं भांते ! बादरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जत्थेव बादरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठणा तत्थेव बादरवणस्सइकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ।
उववाएणं सव्वलोए, समुग्धाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । [१६१ प्र.] भगवन् ! बादर वनस्पतिकायिक- अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ (-कहाँ) कहे गए हैं? [१६१ उ.] गौतम ! जहाँ बादर वनस्पतिकायिक-पर्याप्तकों के स्थान हैं, वहीं बादरवनस्पतिकायिक-अपर्याप्तकों के स्थान कहे गए हैं—
उपपात की अपेक्षा से — (वे) सर्वलोक में हैं, समुद्घात की अपेक्षा से (भी) सर्वलोक में हैं; (किन्तु) स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं ।
१६२. कहिं णं भंते ! सुहुमवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाण य ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सुहुमवणस्सइकाइया जे य पज्जत्तगा जे ये अपज्जत्तगा ते सव्वे एगविहा अविसेसा अणाणत्ता सव्वलोयपरियावण्णगा पण्णत्ता समणाउसो !