Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र
जो सूत्तमहिज्नंतो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं । अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति णायव्वो ४॥ १२४॥ एगपएऽणेगाई पदाइं जो पसरई उ सम्मत्तं । उदए व्व तेल्लबिंदू सो बीयरुइ त्ति णायव्यो ५॥ १२५॥ सो होइ अहिगमरुई सुयणाणं जस्स अथओ दिटुं। एक्कारस अंगाई पइण्णगं दिट्ठिवाओ य ६॥ १२६॥ दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा। सव्वाहिं णयविहीहिं वित्थाररुइ त्ति णायव्वो ७॥ १२७॥ दसंण-णाण-चरित्ते तव-विणए सव्वसमिइ-गुत्तीसु। जो किरियाभावरुई सो खलु किरियारुई णाम ८॥ १२८॥ अणभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होई णायव्वो। अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ९॥ १२९॥ जो अस्थिकायधम्मं सुयधम्मं खलु चरित्तधम्मं च। सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइ त्ति नायव्वो १०॥ १३०॥ परमत्थरीथवो वा सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वा वि।
वावण्ण-कुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा॥ १३१॥ निस्संकिय १ निक्कं खिय २ निव्वितिगिच्छा ३ अमूढदिट्ठी ४ य।
अववूह ५ थिरीकरणे ६ वच्छल्ल ७ पभावणे ८ अट्ठ॥ १३२॥ से तं सरागदसणारिया। [११० प्र.] सरागदर्शनार्य किस प्रकार के होते हैं ? [११० उ.] सरागदर्शनार्य दस प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं
[गाथाओं का अर्थ—] १. निसर्गरुचि, २. उपदेशरुचि, ३. आज्ञारुचि, ४. सूत्ररुचि, और ५. बीजरुचि, ६. अभिगमरुचि, ७. विस्ताररुचि, ८. क्रियारुचि, ९. संक्षेपरुचि और १०. धर्मरुचि॥ ११९ ॥ ____१. जो व्यक्ति (परोपदेश के बिना) स्वमति (जातिस्मरणादि) से जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रवः और संवर आदि तत्त्वों को भूतार्थ (तथ्य) रूप से जान कर उन पर रुचि श्रद्धा करता है, वह निसर्ग(रुचि-सराग-दर्शनार्य) है ॥ १२० ॥ जो व्यक्ति तीर्थंकर भगवान् द्वारा उपदिष्ट भावों (पदार्थों) पर स्वयमेव (परोपदेश के बिना) चार प्रकार से (द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से) श्रद्धान करता है, तथा (ऐसा विश्वास करता है कि जीवादि तत्त्वों का स्वरूप जैसा तीर्थंकर भगवान् ने कहा है,) वह वैसा ही है, अन्यथा नहीं, उसे निसर्गरुचि जानना चाहिए ॥ १२१ ॥