Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१०८]
बुद्धबोधित
त छद्मस्थ- क्षीणकषाय- वीतराग - चारित्रार्थ ।
[ प्रज्ञापना सूत्र
यह बुद्धबोधित - छद्मस्थ - क्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्यों और साथ ही छद्मस्थक्षीणकषायवीतरागचारित्रार्यों का वर्णन सम्पूर्ण हुआ।
१३०. से किं तं केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ?
केवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तं जहा – सजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अजोगिकेवलिखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य ।
[१३० प्र.] केवलि - क्षीणकषायवीतराग-चारित्रार्य कौन हैं ?
[१३० उ. ] केवलि - क्षीणकषायवीतराग चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं— सयोगिकेवलिक्षीणकषायवीतराग - चारित्रार्य और अयोगिकेवलि-क्षीणकषायवीतराग चारित्रार्य ।
[ १३१ प्र.] से किं तं सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ?
सजोगि वलिखीणक सायवीय रागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तं जहापढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयसजोगिके वलिखाणक सायवीयरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य । से त्तं सजोगिकवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ।
[१३१ प्र.] सयोगिकेवलिक्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्य किस प्रकार के कहे हैं ?
[१३१ उ.] सयोगिकेवलिक्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं — प्रथमसमयसयोगिकेवलिक्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्य और अप्रथमसमय-सयोगिकेवलिक्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्य; अथवा चरमसमय-सयोगिकेवलि - क्षीणकषावीतरागचारित्रार्य और अचरमसमय-सयोगिकेवलि-क्षीणकषायवीतरागचारित्रार्य । यह सयोगिकेवलिक्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्यों का निरूपण हुआ ।
१३२. से किं तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ?
अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पन्नत्ता । तं जहा — पढमसमयअजोगिके वलिखीणक सायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयअजोगिके वलिखीणक सायवीयरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयअजोगिके वलिखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमयअजोगिके वलिखीणक सायवीयरागचरित्तारिया य से त्तं अजोगि के वलिखीणक सायवीयरागचरित्तारिया । से त्तं केवलिखीणक सायवीयरागचरित्तारिया । से त्तं खीणकसायवीतरागचरित्तारिया । से त्तं वीतरागचरित्तारिया ।
[१३२ प्र.] अयोगिकेवलि-क्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य कैसे होते हैं ?
[१३२ उ.] अयोगिकेवलि-क्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं— प्रथम - समयअयोगिकेवलि - क्षीणकषाय वीतरागचारित्रार्य और अप्रथमसमय - अयोगिकेवलि - क्षीणकषाय
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