Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रज्ञापनापद]
[८९
(बतक), लावक, कपोत, कपिंजल, पारावत (कबूतर), चिटक, चास, कुक्कुट (मुर्गे), शुक (सुग्गेतोते), बी (मोर विशेष), मदनशलाका (मैना), कोकिल (कोयल),सेह और वरिल्लक आदि। यह है (उक्त) रोमपक्षियों (का वर्णन)।
८९. से किं तं समुग्गपक्खी ?
समुग्गपक्खी एगागारा पण्णत्ता। ते णं णत्थि इहं, बाहिरएसु दीव-समुद्दएसु भवंति। से तं समुग्गपक्खी।
[८९ प्र.] वे (पूर्वोक्त) समुद्गपक्षी कौन-से हैं ?
[८९ उ.] समुद्गपक्षी एक ही आकार-प्रकार के कहे गए हैं। वे यहां (मनुष्यक्षेत्र में) नहीं होते। वे (मनुष्यक्षेत्र से)बाहर के द्वीप-समुद्री में होते हैं। यह समुद्गपक्षियों की प्ररूपणा हुई।
९०. से किं तं विततपक्खी ?
विततपक्खी एगागारा पण्णत्ता। ते णं नत्थि इहं, बाहिरएसु दीव-समुद्दएस भवंति। से तं विततपक्खी।
[९०प्र.] वे (पूर्वोक्त) विततपक्षी कैसे हैं ?
[९०-उ.] विततपक्षी एक ही आकार-प्रकार के होते हैं। वे यहाँ (मनुष्यक्षेत्र में) नहीं होते, (मनुष्यक्षेत्र से)बाहर के द्वीप-समुद्रों में होते हैं। यह विततपक्षियों की प्ररूपणा हुई।
९१. [१] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता। तं जहा—समुच्छिमा य गब्भववंतिया य । __ [९१-१] ये (पूर्वोक्त चारों प्रकार के खेचरपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार सम्मूछिम और गर्भज। "
[२] तत्थ णं जे ते सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा। [९१-२] इनमें से जो सम्मूच्छिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं। [३] तत्थ णं जे ते गब्भवतिया ते णं तिविहा पण्णत्ता। तं जहा—इत्थी १ पुरिसा २ नपुंसगा
[९१-३] इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं। जैसे कि—(१) स्त्री, (२) पुरुष और (३) नपुंसक।
[४] एएसि णं एवमाइयाणं खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं बारस जातीकुलकोडीजोणिप्पमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खातं।
सत्तट्ठ जातिकुलकोडिलक्ख नव अद्धतेरसाइं च। दस दस य होंति णवगा तह बारस चेव बोद्धव्वा॥ १११॥ से त्तं खहयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। सेत्तं पंचेंदियतिरिक्खजोणिया। सेत्तं तिरिक्खजोणिया।