Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रज्ञापनापद ]
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तथा मूली ( चूलिक), कोंकणक, मेद (मेव), पल्हव, मालव, गग्गर, (मग्गर), आभाषिक, णक्क (कणवीर), चीना ल्हासिक (लासा के ), खस, खासिक ( खास जातीय), नेडूर (नेदूर), मंढ (मीढ), डोम्बिलक, लओस, बकुश, कैकय, अरबाक ( अक्खाग), हूण, रोसक ( रूसवासी या रोमक), मरुक, रुत (भ्रमररुत) और विलात (चिलात) देशवासी इत्यादि । यह म्लेच्छों का ( वर्णन हुआ)।
९९. से किं तं आरिया ?
आरिया दुविहा पण्णता । तं जहा — इड्डिपत्तारिया य अणिड्डिपत्तारिया य ।
[९९ प्र.] आर्य कौन-से हैं ?
[९९ उ.] आर्य दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार — ऋद्विप्राप्त आर्य और ऋद्धि- अप्राप्त आर्य । १००. से किं तं इड्डिपत्तारिया ?
इढिपत्तारिया छव्विहा पण्णत्ता । तं जहा — अरहंता १ चक्कवट्टी २ बलदेवा ३ वासुदेवा ४ चारणा ५ विज्जाहरा ६ । से त्तं इड्डिपत्तारिया ।
[१०० प्र.] ऋद्धिप्राप्त आर्य कौन-कौन-से हैं ?
[१०० उ. ] ऋद्धिप्राप्त आर्य छह प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं- १. अर्हन्त ( तीर्थंकर), २. चक्रवर्ती, ३. बलदेव, ४. वासुदेव, ५. चारण और ६. विद्याधर । यह हुई ऋद्धिप्राप्त आर्यों की प्ररूपणा । १०१. से किं तं अणिड्ढिपत्तारिया ?
अणिड्डपत्तारिया णवविहा पण्णत्ता । तं जहा - खेत्तारिया १ जातिआरिया २ कुलारिया ३ कम्मारिया ४ सिप्पारिया ५ भासारिया ६ णाणारिया ७ दंसणारिया ८ चरित्तारिया ९ ।
[१०१ प्र.] ऋद्धि - अप्राप्त आर्य किस प्रकार के हैं ?
[१०१ उ.] ऋद्धि- अप्राप्त आर्य नौ प्रकार के कहे कए हैं। वे इस प्रकार हैं – (१) क्षेत्रार्य, (२) जात्यार्य, (३) कुलार्य, (४) कर्मार्य, (५) शिल्पार्य, (६) भाषार्य, (७) ज्ञानार्य, (८) दर्शनार्य और (९) चारित्रार्य ।
१०२. से किं तं खेत्तारिया ?
खेत्तारिया अद्धछव्वीसतिविहा पण्णत्ता । तं जहा—
रायगह मगह १, चंपा अंगा २, तह तामलित्ति' वंगा य ३ । कंचनपुरं कलिंगा ४, वाणारसि चेव कासी य५ ॥ ११२ ॥
साएय कोसला ६, गयपुरं च कुरु ७, सोरियं कुसट्टा य ८ । कंपिल्लं पंचाला ९, अहिछत्ता जंगला चेव १० ॥ ११३॥
१. 'तामलित्ती' शब्द के संस्कृत में दो रूपान्तर होते हैं— तामलिप्ती और ताम्रलिप्ती । प्रज्ञापना मलय, वृत्ति, तथा प्रवचनसारोद्धार में प्रथम रूपान्तर माना गया है, जब कि भगवती आदि की टीकाओं में 'ताम्रलिप्ती' शब्द को ही प्रचलित माना है। जो हो, वर्तमान में यह 'तामलूक' नाम से पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध है । – सं.