Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रज्ञापनापद]
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के बिना स्वतः) उत्पन्न होते हैं। इन सम्मूछिम मनुष्यों की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र की होती है। ये असंज्ञी मिथ्यादृष्टि एवं सभी पर्याप्तियों से अपर्याप्त होते हैं। ये अन्तर्मुहूर्त की आयु भोग कर मर जाते हैं। यह सम्मूछिम मनुष्यों की प्ररूपणा हुई।
९४. से किं तं गब्भवतंतियमणुस्सा ?
गब्भवक्कंतियमणुस्सा तिविहा पण्णत्ता। तं जहा–कम्मभूमगा १ अकम्मभूमगा २ अंतरदीवगा ३।
[९४ प्र.] गर्भज मनुष्य किस प्रकार के होते हैं?
[९४ उ.] गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार—१. कर्मभूमिक, २. अकर्मभूमिक और ३. अन्तरद्वीपक।
९५. से किं तं अंतरदीवगा ?
अंतरदीवया अट्ठावीसतिविहा पण्णत्ता। तं जहा—एगोरुया १ आभासिया २ वेसाणिया ३ णंगोलिया ४ हयकण्णा ५ गयकण्णा ६ गोकण्णा ७ सक्कुलिकण्णा ८ आयंसमुहा ९ मेंढमुहा १० अयोमुहा ११ गोमुहा १२ आसमुहा १३ हत्थिमुहा १४ सीहमुहा १५ वग्घमुहा १६ आसकण्णा १७ सीहकण्णा १८ अकण्णा १९ कण्णपाउरण्णा २० उक्कामुहा २१ मेहमुहा २२ विज्जुमुहा २३ विजुदंता २४ घणदंता २५ लट्ठ दंता २६ गूढ दंता २७ सुद्धदंता २८। से तं अंतरदीवगा।
[९५ प्र.] अन्तरद्वीपक किस प्रकार के होते हैं ?
[९५ उ.] अन्तरद्वीपक अट्टाईस प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार—(१) एकोरुक, (२) आभासिक, (३) वैषाणिक, (४) नांगोलिक, (५) हयकर्ण, (६) गजकर्ण, (७) गोकर्ण, (८) शष्कुलिकर्ण, (९) आदर्शमुख, (१०) मेण्ढमुख, (११) अयोमुख, (१२) गोमुख, (१३) अश्वमुख, (१४) हस्तिमुख, (१५) सिंहमुख, (१६) व्याघ्रमुख, (१७) अश्वकर्ण, (१८) सिंह कर्ण (हरिकर्ण),(१९) अकर्ण, (२०) कर्णप्रावरण, (२१) उल्कामुख, (२२) मेघमुख, (२३) विद्युन्मुख, (२४) विद्युद्दन्त, (२५) घनदन्त, (२६) लष्टदन्त, (२७) गूढदन्त और (२८) शुद्धदन्त । यह अंतरद्वीपकों की प्ररूपणा हुई।
९६. से किं तं अकम्मभूमगा?
अकम्मभूमगा तीसतिविहा पन्नत्ता। तं जहा-पंचहिं हेमवएहिं पंचहि हिरण्णवएहिं पंचहिं हरिवासेहिं पंचहिं रम्मगवासेहिं पंचहिं देवकुरूहिं पंचहिं उत्तरकुरूहिं। से तं अकम्मभूमगा।
[९६ प्र.] अकर्मभूमक मनुष्य कौन-से हैं ? . [९६ उ.] अकर्मभूमक मनुष्य तीस प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार—पांच हैमवत क्षेत्रों में, पांच हैरण्यवत क्षेत्रों में, पांच हरिवर्ष क्षेत्रों में, पांच रम्यकवर्ष क्षेत्रों में, पांच देवकुरुक्षेत्रों में और पांच