Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र अपर्याप्तक । इन पर्याप्तक और अपर्याप्तक द्वीन्द्रियों के सात लाख जाति-कुलकोटि-योनि-प्रमुख होते हैं, ऐसा कहा गया है। यह हुई द्वीन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना।
विवेचन द्वीन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना—प्रस्तुत सूत्र (सू. ५६) में द्वीन्द्रिय जीवों की विविध जातियों के नामों का उल्लेख है तथा उनके दो प्रकारों एवं उनकी जीवयोनियों की संख्या का निरूपण किया गया है।
कुछ शब्दों के विशेष अर्थ—'पुलाकिमिया'-पुलाकृमिक एक प्रकार के कृमि होते हैं, जो मलद्वार (गुदाद्वार) में उत्पन्न होते हैं। कुच्छिकिमिया-कुक्षिकृमिक एक प्रकार के कृमि, जो उदरप्रदेश में उत्पन्न होते हैं। संखणगा-शंखनक-छोटे शंख, शंखनी। चंदणा-चन्दनक-अक्ष। गंडूयलगा-गिंडोला। संवुक्का-शम्बूक-घोंघा। घुल्ला-घोंघरी। खुल्ला-समुद्री शंख के आकार के छोटे शंख। सिप्पसंपुटाशुक्तिसंपुट-संपुटाकार सीप। जलोया-जौंक। ___सव्वेते सम्मुच्छिमा—इसी प्रकार के मृतकलेवर में पैदा होने वाले कृमि, कीट आदि सब द्वीन्द्रिय
और सम्मूच्छिम समझने चाहिए। क्योंकि सभी अशुचिस्थानों में पैदा होने वाले कीड़े सम्मूच्छिम ही होते हैं, गर्भज नहीं और तत्त्वार्थसूत्र के 'नारक-सम्मूछिमो नपुंसकानि' इस सूत्रानुसार सभी सम्मूछिम जीव नपुंसक ही होते हैं ____ जाति, कुलकोटि एवं योनि शब्द की व्याख्या—पूर्वाचार्यों ने इनका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है-जातिपद से तिर्यञ्चगति समझनी चाहिए। उसके कुल हैं-कृमि, कीट, वृश्चिक आदि। ये कुल योनि-प्रमुख होते हैं, अर्थात्-एक ही योनि में अनेक कुल होते हैं। जैसे-एक ही छगण (गोबर या कंडे) की योनि में कृमिकुल, कीटकुल और वृश्चिककुल आदि होते हैं। इसी प्रकार एक ही योनि में अवान्तर जातिभेद होने से अनेक जातिकुल के योनिप्रवाह होते हैं। द्वीन्द्रियों के सात लाख जातिकुलकोटिरूप योनियां हैं। त्रीन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना
५७. [१] से किं तं तेंदियसंसारसमावण्णजीव पण्णवणा ? तेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा अणेगविहा पन्नत्ता। तं जहा-ओवइया रोहिणीया कुंथू पिपीलिया उइंसगा उद्देहिया उक्कलिया उप्पाया उक्कडा उप्पडा तणाहारा कट्ठाहारा मालुया पत्ताहारा तणविंटिया पत्तविंटिया पुष्फविंटिया फलविंटिया बीयविंटिया तेदुरणमिंज्जिया तउसमिंजिया कप्पासट्ठिसमिंजिया हिल्लिया झिल्लिया झिंगिरा किंगिरिडा' पाहुया सुभगा सोवच्छिया सुयविंटा इंदिकाइया इंदगोवया उरुहुँचगा
१. (क) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक ४१, (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी टीका भा. १, पृ. ३४८-३४९ २. (क) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक ४१ (ख) तत्त्वार्थसूत्र अ. २. सू, ५० ३. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ४१ ४. तंबूरुणुमज्जिया, तिंबुरणमज्जिया, तेबुरणमिंजिया। ५. झिंगिरिडा बाहुया।
६. उरुतुंभुगा, तुरुतुंबगा।