Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रज्ञापनापद]
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विवेचन–अप्कायिक जीवों की प्रज्ञापना- प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. २६ से २८ तक) में अप्कायिक जीवों के दो मुख्य प्रकार तथा उनके भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा की गई है। तेजस्कायिक जीवों की प्रज्ञापना
२९. से किं तं तेउक्काइया ? तेउक्काइया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा—सुहुमतेउक्काइया य बादरतेउक्काइया य । [२९ प्र.] वे (पूर्वोक्त) तेजस्कायिक जीव किस प्रकार के हैं ?
[२९ उ.] तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार -सूक्ष्म तेजस्कायिक और बादर तेजस्कायिक ।
३०. से किं तं सुहुमतेउक्काइया ? सुहुमतेउक्काइया दुविहा पन्नत्ता। तं जहा—पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य से तं सुहुमतेउक्काइया। [३० प्र.] सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव किस प्रकार के हैं ?
[३० उ.] सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार - पर्याप्तक और अपर्याप्तक। यह हुआ पूर्वोक्त सूक्ष्म तेजस्कायिक का वर्णन।
३१. [१] से किं तं बादरतेउक्काइया ?
बादरतेउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता। तं जहा—इंगाले जाला मुम्मुरे अच्ची अलाए सुद्धागणी उक्का विज्जू असणी णिग्याए संघरिससमुट्ठिए सूरकंतमणिणिस्सिए, जे यावऽण्णे तहप्पगारा ।
[३१-१ प्र.] वे (पूर्वोक्त) बादर तेजस्कायिक किस प्रकार के हैं ?
[३१-१ उ.] बादर तेजस्कायिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-अंगार, ज्वाला, (जाज्वल्यमान खैर आदि की ज्वाला अथवा अग्नि से सम्बद्ध दीपक की लौ), मुर्मुर (राख में मिले हुए अग्निकण या भोभर), अर्चि (अग्नि के गोले की अग्नि), उल्का , विद्युत (आकाशीय विद्युत), अशनि (आकाश से गिरने वाले अग्निकण), निर्घात (वैक्रिय सम्बन्धित अशनिपात या विद्युत्पात), संघर्षसमुत्थित (अरणि आदि की लकड़ी की रगड़ से पैदा होने वाली अग्नि), और सूर्यकान्तमणि-निःसृत (सूर्य की प्रखर किरणों के सम्पर्क में सूर्यकान्तमणि से उत्पन्न होने वाली अग्नि)। इसी प्रकार की अन्य जो भी (अग्नियाँ) हैं (उन्हें बादर तेजस्कायिकों के रूप में समझना चाहिए।)
[२] ते समासतो दुविहा पन्नता। तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य ।
[३१-२] ये (उपर्युक्त बादर तेजस्कायिक) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार - पर्याप्तक और अपर्याप्तक।
[३] तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता।