Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रज्ञापनापद]
७१ ___इन (साधारण और प्रत्येक वनस्पति-विशेष) के विषय में विशेष जानने के लिए इन (आगे कही जाने वाली) गाथाओं का अनुसरण करना चाहिए। वे इस प्रकार हैं
[गाथार्थ-] १. कन्द (सूरण आदि कन्द), २. कन्दमूल और ३. वृक्षमूल (ये साधारण वनस्पतिविशेष हैं।) ४. गुच्छ, ५. गुल्म, ६. वल्ली और ७. वेणु (बांस) और ८. तृण (अर्जुन आदि हरी घास), ९. पद्म, १०. उत्पल, ११. शृंगाटक (सिंघाड़ा), १२. हढ (जलज वनस्पति), १३. शैवाल, १४. कृष्णक, १५. पनक, १६. अवक, १७. कच्छ, १८. भाणी और १९. कन्दक्य (नामक साधारण वनस्पति) ॥१०८।।
इन उपर्युक्त उन्नीस प्रकार की वनस्पतियों की त्वचा, छल्ली (छाल), प्रवाल (कोंपल), पत्र, पुष्प, फल, मूल, अग्र और मध्य और बीज (इन) में से किसी की योनि कुछ और किसी की कुछ कही गई है ॥१०९॥ यह हुआ साधारणशरीर वनस्पतिकायिक का स्वरूप। (इसके साथ ही) उस (पूर्वोक्त) बादर वनसपतिकायिक का वक्तव्य पूर्ण हुआ। (साथ ही) वह (पूर्वोक्त) वनस्पतिकायिकों का वर्णन भी समाप्त हुआ, और इस प्रकार उन एकेन्द्रियसंसारसमापन्न जीवों की प्ररूपणा पूर्ण हुई।
विवेचन–समस्त वनस्पतिकायिकों की प्रज्ञापना—प्रस्तुत इक्कीस सूत्रों (सू. ३५ से ५५ तक) में वनस्पतिकायिक जीवों के भेद-प्रभेदों तथा प्रत्येक शरीर बादरवनस्पतिकायिकों के वृक्ष, गुच्छ आदि सविवरण बारह भेदों तथा साधारणशरीर बादरवनस्पतिकायिकों की विस्तृत प्ररूपणा की गई है।
क्रम सर्वप्रथम वनस्पतिकाय के सूक्ष्म और बादर ये दो भेद, तदनन्तर सूक्ष्म के पर्याप्त और अपर्याप्त, ये दो प्रकार, फिर बादर के दो भेद-प्रत्येक शरीर और साधारणशरीर, तत्पश्चात् प्रत्येकशरीर के वृक्ष, गुच्छ आदि १२ भेद, क्रमशः प्रत्येक पद के अन्तर्गत विविध वनस्पतियों के नामों का उल्लेख, तदनन्तर साधारणवनस्पतिकायिकों के अन्तर्गत अनेक नामों का उल्लेख तथा लक्षण एवं अन्त में उनके पर्याप्तक-अपर्याप्तक भेदों का वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
वृक्षादि बारह भेदों की व्याख्या – वृक्ष- जिनके आश्रित मूल, पत्ते, फूल, फल, शाखाप्रशाखा, स्कन्ध, त्वचा, आदि अनेक हों, ऐसे आम, नीम, जामुन आदि वृक्ष कहलाते हैं। वृक्ष दो प्रकार के होते हैं -एकास्थिक (जिसके फल में एक ही बीज या गुठली हो) और बहुबीजक (जिसके फल में अनेक बीज हों)। आम, नीम आदि वृक्ष एकास्थिक के उदाहरण हैं तथा बिजौरा, वट, दाड़िम, उदुम्बर आदि बहुबीजक वृक्ष हैं। ये दोनों प्रकार के वृक्ष तो प्रत्येकशरीरी होते हैं, लेकिन इन दोनों प्रकार के वृक्षों के मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा और प्रवाल असंख्यात जीवों वाले तथा पत्ते प्रत्येक जीव वाले और पुष्प अनेक जीवों वाले होते हैं । गुच्छ-वर्तमान युग की भाषा में इसका अर्थ है-पौधा। इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं-वृन्ताकी (बैंगन), तुलसी, मातुलिंगी आदि पौधे । गुल्म-विशेषतः फूलों के पौधों को गुल्म कहते हैं। जैसे-चम्पा, जाई, जूही, कुन्द, मोगरा, मल्लिका आदि पुष्पों के पौधे। लता-ऐसी बेलें जो प्रायः वृक्षों पर चढ़ जाती हैं, वे लताएँ होती हैं। जैसे चम्पकलता, नागलता, अशोकलता १. पष्णवणासुत्तं (मूलपाठ) भाग-१, पृ. १६ से २७ तक