Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापना सूत्र
[३१-३] उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे (पूर्ववत्) असम्प्राप्त (अपने योग्य पर्याप्तियों को पूर्णतया अप्राप्त) हैं।
[४] तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा एएसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेण रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साई। पज्जत्तगणिस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंतिजत्थ एगो तत्थ णियमा असंखेज्जा। से तं. बादरतेउक्काइया। से तं तेउक्काइया।
[३१-४] उनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण गन्ध रस और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों (सहस्रशः) भेद होते हैं। उनके संख्यात लाख योनि-प्रमख हैं। पर्याप्तक (तेजस्कायिकों) के आश्रय से अपर्याप्त (तेजस्कायिक) उत्पन्न होते हैं। जहाँ एक पर्याप्तक होता है, वहाँ नियम से असंख्यात अपर्याप्तक (उत्पन्न होते हैं।) .. यह हुई बादर तेजस्कायिक जीवों की प्ररूपणा। (साथ ही) तेजस्कायिक जीवों की भी प्ररूपणा पूर्ण हुई।
विवेचन तेजस्कायिक जीवों की प्रज्ञापना–प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. २९ से ३१ तक) में तेजस्कायिक जीवों के मुख्य दो प्रकार तथा उनके भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा की गई है।
वायुकायिक जीवों की प्रज्ञापना
३२. से किं तं वाउक्काइया ? वाउक्काइया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-सुहमवाउक्काइया य बादरवाउक्काइया य । [३२ प्र.] वायुकायिक जीव किस प्रकार के हैं ?
[३२ उ.] वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं —सूक्ष्म वायुकायिक और बादर वायुकायिक।
३३. से किं तं सुहमवाउक्काइया ?
सुहुमवाउक्काइया दुविहा पनत्ता। तं जहा–पज्जत्तगसुहुमवाउक्काइया य अपज्जत्तगसुहुमवाउक्काइया य। से तं सुहुमवाउक्काइया।
[३३ प्र.] वे (पूर्वोक्त) सूक्ष्म वायुकायिक कैसे हैं ?
[३३ उ.] सूक्ष्म वायुकायिक जीव दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार -पर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक और अपर्याप्तक सूक्ष्म वायुकायिक।
यह हुआ, वह (पूर्वोक्त) सूक्ष्म वायुकायिकों का वर्णन । ३४. [१] से किं तं बादरवाउक्काइया ? बादरवाउक्काइया अणेगविहा पण्णत्ता। तं जहा–पाईणवाए पडीणवाए दाहिणवाए उदीण