Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रज्ञापनापद]
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[५४-२] तृणमूल, कन्दमूल और वंशीमूल, ये और इसी प्रकार के दूसरे संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त जीव वाले समझने चाहिए। सिंघाड़े का गुच्छा अनेक जीव वाला होता है, यह जानना चाहिए और इसके पत्ते प्रत्येक जीव वाले होते हैं। इसके फल में दो-दो जीव कहे गए हैं ॥ ५५॥ [३] जस्स मूलस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसए ।
अणंतजीवे उ से मूले, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥५६॥ जस्स कंदस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसए । अणंतजीवे उ से कंदे, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ५७॥ जस्स खंधस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे उ से खंधे, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ५८॥ जीसे तयाए भग्गए समो भंगो पदीसए । अणंतजीवा तया सा उ, जा यावऽण्णा तहाविहा ॥ ५९॥ जस्स सालस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे उ से साले, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ६०॥ जस्स पवालस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे पवाले से, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ६१॥ जस्स पत्तस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे उ से पत्ते, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ६२॥ जस्स पुप्फस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई । अणंतजीवे उ से पुप्फे, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ६३॥ जस्स फलस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसती । अणंतजीवे फले से उ, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ६४॥ जस्स बीयस्स भग्गस्स समो भंगो पदीसई ।
अणंतजीवे उ से बीए, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥६५॥ [५४-३] जिस मूल को भंग करने (तोड़ने) पर समान (चक्राकार) दिखाई दे, वह मूल अनन्त जीव वाला है । इसी प्रकार के दूसरे जितने भी मूल हों, उन्हें भी अनन्तजीव समझना चाहिए ॥ ५६॥ जिस टूटे या तोड़े हुए कन्द का भंग समान दिखाई दे, वह कन्द अनन्तजीव वाला है। इसी प्रकार के दूसरे जितने भी कन्द हों, उन्हें अनन्तजीव समझना चाहिए ॥ ५७॥ जिस टूटे हुए स्कन्ध का भंग समान दिखाई दे, वह स्कन्ध (भी) अनन्तजीव वाला है। इसी प्रकार के दूसरे स्कन्धों को (भी अनन्तजीव समझना चाहिए) ॥ ५८॥ जिस छाल (त्वचा) के टूटने पर उसका भंग सम दिखाई दे, वह छाल भी अनन्तजीव वाली है। इसी प्रकार की अन्य छाल भी (अनन्तजीव वाली समझनी चाहिए) ॥ ५९॥ जिस टूटी हुई