Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रज्ञापनापद ]
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भी होते हैं, वृत्तसंस्थान - परिणत भी, त्र्यस्त्रसंस्थान - परिणत तथा, चतुरस्रसंस्थान - परिणत, भी एवं आयतसंस्थान - परिणत भी होते हैं ॥ २३ ॥
[४] जे फासतो लहुयफासपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि णिद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंसठाणपरिणता वि, चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २३ ।
[१२-४] जो स्पर्श की अपेक्षा से लघु ( हलके) स्पर्श से परिणत होते हैं, वे वर्ण की अपेक्षा से कृष्णवर्ण- परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण - परिणत भी, रक्तवर्ण- परिणत भी, पीतवर्ण परिणत भी एवं शुक्लवर्ण - परिणत भी होते हैं । गन्ध की अपेक्षा से (वे) सुगन्ध - परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध-परिणत भी। रस की अपेक्षा से (वे) तिक्तरस परिणत भी होते हैं, कटुरस - परिणत भी कषायरस, परिणत भी, अम्लरस - परिणत भी और मधुररस - परिणत भी होते हैं । स्पर्श की अपेक्षा से (वे) कर्कशस्पर्श - परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श - परिणत भी, उष्णस्पर्श - परिणत भी, स्निग्धस्पर्श - परिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श - परिणत भी । संस्थान की अपेक्षा से (वे) परिमण्डलसंस्थान - परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, त्र्यस्त्रसंस्थान - परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान - परिणत भी होते हैं एवं आयतसंस्थानपरिणत भी ॥ २३ ॥
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[५] जे फासतो सीयफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहिंयवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि, चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २३ ।
[१२-५] जो स्पर्श की अपेक्षा से शीतस्पर्शपरिणत होते हैं, वे वर्ण की अपेक्षा से कृष्णवर्णपरिणत भी होते हैं, नीलवर्ण - परिणत भी, रक्तवर्ण - परिणत भी, पीतवर्ण - परिणत भी, शुक्लवर्ण - परिणत भी होते हैं। गन्ध की अपेक्षा से (वे) सुगन्ध - परिणत भी होते हैं, और दुर्गन्ध - परिणत भी । रस की अपेक्षा से (वे) तिक्तरस - परिणत भी होते हैं, कटुरस - परिणत भी, कषायरसपरिणत भी, अम्लरसपरिणत भी तथा मधुररस - परिणत भी होते हैं । स्पर्श की अपेक्षा से (वे) कर्कशस्पर्श- परिणत भी होते