Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
[ प्रज्ञापना सूत्र
[१५ उ.] असंसारसमापन्नजीव - प्रज्ञापना दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार—१— अनन्तरसिद्ध - असंसार - समापन्नजीव - प्रज्ञापना और २ – परम्परासिद्ध- असंसार - समापन्नजीव - प्रज्ञापना ।
१६. से किं तं अणंतरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ?
अणंतरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा पन्नरसविहा पन्नत्ता । तं जहा — तित्थसिद्धा १ अतित्थसिद्धा २ तित्थगरसिद्ध ३ अतित्थगरसिद्धा ४ सयंबुद्धसिद्धा ५ पत्तेयबुद्धसिद्धा ६ बुद्धबोहियसिद्धा ७ इत्थीलिंगसिद्धा ८ पुरिसलिंगसिद्धा ९ नपुंसकलिंगसिद्धा १० सलिंगसिद्धा ११ अण्णलिंगसिद्धा १२ गिहिलिंगसिद्धा १३ एगसिद्धा १४ अणेगसिद्धा १५ । से त्तं अणंतरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ।
३६
[१६ प्र.] वह अनन्तरसिद्ध - असंसारसमापन्नजीव - प्रज्ञापना क्या है ?
(१६ उ.) अनन्तरसिद्ध-असंसारसमापन्नजीव- प्रज्ञापना पन्द्रह प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है— (१) तीर्थसिद्ध, (२) अतीर्थसिद्ध, (३) तीर्थंकरसिद्ध, (४) अतीर्थंकरसिद्ध, (५) स्वयंबुद्धसिद्ध, (६) प्रत्येकबुद्धसिद्ध, (७) बुद्धबोधितसिद्ध, (८) स्त्रीलिंगसिद्ध, (९) पुरुषलिंगसिद्ध, (१०) नपुंसकलिंगसिद्ध, (११) स्वलिंगसिद्ध, (१२) अन्यलिंगसिद्ध, (१३) गृहस्थलिंगसिद्ध, (१४) एकसिद्ध और (१५) अनेकसिद्ध । यह है — अनन्तरसिद्ध - असंसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना (प्ररूपणा ) ।
१७. से किं तं परंपरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ?
परंपरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा— अपढमसमयसिद्धा दुसमयसिद्धा तिसमयसिद्धा चउसमयसिद्ध जाव संखेज्जसमयसिद्धा असंखेज्जसमयसिद्धा अणंतसमयसिद्धा । से त्तं परंपरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा । से त्तं
असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ।
[१७ प्र.] वह (पूर्वोक्त) परम्परासिद्ध- असंसारसमापन - जीव - प्रज्ञापना क्या है ?
[१७ उ.] परम्परासिद्ध-असंसारसमापन्न - जीव- प्रज्ञापना अनेक प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है— अप्रथमसमयसिद्ध, द्विसमयसिद्ध, त्रिसमयसिद्ध, चतुःसमयसिद्ध, यावत् —— संख्यातसमय-सिद्ध, असंख्यात समयसिद्ध और अनन्तसमयसिद्ध । यह हुई— परम्परसिद्ध - असंसार समापन्न - जीव- प्रज्ञापना ।
इस प्रकार वह (पूर्वोक्त) असंसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना (प्ररूपणा) पूर्ण हुई ।
विवेचन—असंसार- समापन्न - जीवप्रज्ञापना : स्वरूप और भेद - प्रभेद - प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. १५ से १७ तक) में असंसार - समापन्नजीवों की प्रज्ञापना का प्रकारात्मक स्वरूप तथा उसके भेदप्रभेदों की प्ररूपणा की गई है।
असंसारसमापन्नजीवों का स्वरूप- असंसार का अर्थ है— जहाँ जन्ममरणरूप चातुर्गतिक