Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापना सूत्र
परिणत भी एवं स्निग्धस्पर्श - परिणत भी तथा रूक्षस्पर्श - परिणत भी होते हैं । सस्थान से ( वे) परिमण्डलसंस्थान - परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान - परिणत भी, त्र्यस्त्रसंस्थान - परिणत भी तथा आयतसंस्थानपरिणत भी होते हैं ॥ २३ ॥
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[२] जे फासतो मउयफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुभगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससँठाणपरिणता वि, चउरंससंठाणपरिणता वि आययसंठाणपरिणता वि २३ ।
[१२-२] जो स्पर्श से मृदु (कोमल) - स्पर्श - परिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण- परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण - परिणत भी, पीतवर्ण - परिणत भी, तथा शुक्लवर्ण - परिणत भी होते हैं। (वे) गन्ध से सुगन्धपरिणत भी और दुर्गन्धपरिणत भी । रस से (वे) तिक्तरस परिणत भी होते हैं, कटुरस - परिणत भी काषायरस - परिणत भी, अम्लरस - परिणत भी और मधुररस - परिणत भी होते हैं। स्पर्श से (वे) गुरुस्पर्श - परिणत भी होते हैं लघुस्पर्श- परिणत भी, शीतस्पर्श परिणत भी, उष्णस्पर्शपरिणत भी, स्निग्धस्पर्श - परिणत भी और रूक्षस्पर्श - परिणत भी होते हैं । संस्थान से परिमण्डलसंस्थानपरिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान - परिणत भी, त्र्यस्त्रसंस्थान - परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान - परिणत, भी होते हैं तथा आयतसंस्थान - परिणत भी ॥ २३ ॥
[३] जे फासतो गरुयफासपरिणता ते वण्णतो कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुभिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, रसओ तित्तरसपरिणता वि कडुयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि क्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठापरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि, चउरंससंठाणपरिणता वि आययसंठाणपरिणता वि २३ ।
[१२-३] जो स्पर्श से गुरुस्पर्श-परिणत होते हैं वे वर्ण से कृष्णवर्ण- परिणत भी होते हैं, नीलवर्णपरिणत भी, रक्तवर्ण - परिणत भी, पीतवर्ण परिणत भी और शुक्लवर्ण - परिणत भी होते हैं । गन्ध से सुगन्धपरिणत भी और दुर्गन्धपरिणत भी । रस से (वे ) तिक्तरस - परिणत भी होते हैं, कटुरस - परिणत भी कषायरस - परिणत भी, अम्लरस - परिणत भी और मधुररस परिणत भी होते हैं । स्पर्श से (वे) कर्कशस्पर्शपरिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श- परिणत भी शीतस्पर्श - परिणत भी उष्णस्पर्श परिणत भी, स्निग्धस्पर्शपरिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श- परिणत भी । संस्थान की अपेक्षा से (वे) परिमण्डलसंस्थान - परिणत