Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०४ अष्टम तीर्थद्वारनिरूपणम् ९१ श्राविकानां समुदायात्मक स्तस्मिन् सति तदस्तित्वदायां भवेत् जायेत-अथवा अतीर्थ-पूर्वोक्तसद्भावाकालेवा भवेत-जायेतेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'तित्थे होज्ना नो अतित्थे होज्जा' तीर्थे-तीर्थ सद्भावे एव भवेत्-पुलाको जायेत नो अतीर्थ-तीर्थस्यासद्भावकाले नो भवेदिति। 'एवं बउसेवि' एवं बकुशे ऽपि एवं पुलाकादेव वकुशोऽपि तीर्थसद्भावे एव भवेत् नतु तीर्थस्यासद्भावे भवेदिति भावः। एवं पडि सेवणा कुसीलेवि' एवम्पुलाकरदेव प्रतिसेवना कुशीलोऽपि साधु स्तीर्थसद्भावे भवेदिति भावः । 'कसाय कुसीले पुच्छा' कषायकुशीलः खलु भदन ! कि तीर्थे-संधे सति भवेत् अतीर्थसंधाभाव काले वा भवेदिति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिन्थे वा होज्जा अतित्थे वा होज्जा' तीर्थ-संधे सति वा भवेत् साधु साध्वी श्रावक श्राविका इनका समुदायरूप संध होता है । इस संघ का नाम ही तीर्थ है । इस तीर्थ की अस्तित्व दशा में पुलाक साधु अथवा इम तीर्थ के अभाव में पुलाक माधु होता है ? हमके उत्तर में प्रभुश्री कहते है-'गोयमा ! तित्थे होज्जा, नो अतित्थे होज्जा' हे गौतम! पुलाक साधु तीर्थ के सद्भाव में ही होता है अतीर्थ के सदभाव काल में नहीं होता है एवं बउसे वि' इसी प्रकार से 'बकुश साधु भी तीर्थ के सदभाव में ही होता है तीर्थ के असाव में नहीं होता है। 'एवं पडिसेवणा कुसीले वि' इसी प्रकार से प्रतिसेवना कुशील भी चतुर्विध संघ रूप तीर्थ के मद्भाव काल में ही होता है। उसके असावकाल में नहीं होता है। ___ 'कसायकुसीले पुच्छा' हे भदन्त ! कषाय कुशील साधु क्या तीर्थ के सदूभावकाल में होता है अथवा असद्भावकाल में होता है ? इसके આ સંઘનું નામ જ તીર્થ છે. આ તીર્થની અસ્તિત્વ દશામાં પુલાક સાધુ હોય છે અથવા તે તીર્થના અભાવમાં પુલાક સાધુ હોય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री जोतभस्वामी ४ छ है-'गोचमा! तित्थे होजा, नो अतित्थे होज्जा' हे गौतम ! पुसा साधु तीथना सभामा डाय छ. तीन मनावमा डाता नथी. “एवं बउसे वि' मे प्रमाण यश साधु ५५ तीथना सह. लाभ डाय छे. तीथना मनामा डता थी. 'एवं पडिसेवणा कुसीले વિ' એજ પ્રમાણે પ્રતિસેવન કુશીલ સાધુ પણ ચતુર્વિધ સંઘ રૂપ તીર્થના विधमानयामा डाय छे. तेना विद्यमानामा साता नथी. 'कसायकसीले पुच्छा' सावन उपाय शील साधु तीना सलामो राय छ ? 3 मस. लापमा डाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री ४ छ-'गोंयमा ! तित्थे वा होज्जा, अतित्थे वा होजा' के गीतम! ते तीन समापमा ५ डाय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬