Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ १०१ प्रथम प्रशापनाबारनिरूपणम् २६५ संयतः खलु भदन्त ! कतिविधः, प्रज्ञप्त इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहे पन्नत्ते' द्विविधा प्राप्तः 'तं जहा' तद्यथा 'छउपत्थेय केवलीय' छद्मस्थश्च केवळीच । अथ सामायिकसंयतादीनां स्वरूपं गाथामिराद-'सामाइयमि' इत्यादि, 'सामाइयंमि उ कए समायिके तु कृते' सामा. यिके एव कृते प्रतिपन्ने न तु छेदोपस्थापनीयादौ प्रतिपन्ने, सामायिकस्य चारित्र विशेषस्य स्वीकरणानन्तरम्-'चाउज्जामं अणुतरं धम्म' चातुर्याममनुत्तरं धर्मम्चतुहाव्रतरूपम् अनुत्तरं धर्मम्-श्ररणधर्ममित्यर्थः, ननु महाव्रतस्य पश्चविधत्वात् चातुर्याममिति कथनं कथं संगच्छते इति चेदत्रोच्यते अजितनाथादारभ्य पार्व. नाथपर्यन्तं चातुर्यामस्यैव धर्मस्य निर्वाचनात् प्रथमान्तिमयो स्तीर्थकरयोः शासने
'अहक्खायसंजए पुच्छा' हे भदन्त ! यथाख्यात संयत कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! दुबिहे पन्नत्ते' हे गौतम ! यथाख्यातसंयत दो प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे-'छ उमस्थे य केवलीय छद्मस्थ और केवली। इन सामा. यिक संयत आदिकों का स्वरूप जो गाथाओं द्वारा प्रकट किया गया है वह इस प्रकार से है-'सामाइयंमि उ कए' इत्यादि ।
सामायिक स्वीकार करने के बाद के चार महावतरूप प्रधान धर्म का अर्थात् श्रमणधर्म का मन वचन काय से पालन करता है वह सामायिक संयत है यहां पर ऐसी आशंका हो सकती है कि महाव्रतरूप धर्म तो पांच प्रकार का कहा गया है-फिर यहां चातुर्शम धर्म का कथन कैसे संगतमानाजा सकता है ? तो इसका समाधान ऐसा है कि अजितनाथ से लेकर पार्श्वनाथ तक के बावीस तीर्थंकरों के तीर्थकाल
'अहक्खायसंजमे पुच्छा' मापन यथाज्यात सयत 2 रना Bा ? म॥ प्रश्न उत्तरभ प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा! दुविहे पन्नत्ते'
गौतम ! यथायात सयत मे ५४२ना हा छ. 'तजहा' ते मा प्रभारी छ. 'छउमत्थे य केवली य' छA२५ गते पक्षी । सामायि सय विगैरे २१३५ २ था। वारा मतावे छे, ते ॥ २॥ प्रमाणे छे-'सामाइयं मि उकए' त्यहि
સામાયિકનો રવીકાર કર્યા પછી ચાર મહાવ્રત રૂપ પ્રધાન-મુખ્ય ધર્મનું અર્થાત્ શ્રમણ ધર્મનું મન, વચન અને કાયથી જે પાલન કરે છે. તે સામાયિક સંયત છે. અહિયાં એવી શંકા થાય છે કે-મહાવ્રતરૂપ ધમ તે પાંચ પ્રકારનો કહેલ છે, તો પછી અહિયાં ચાતુર્યામ ધર્મનું કથન કેવી રીતે સંગત-યુક્ત માની શકાય ? આ શંકાનું સમાધાન એવું છે કે-અજીતનાથથી
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬