Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मगवतीस्त्रे समानधर्मत्यादिति । 'जीवेणं भंते ! वेयणिज्न कम्मं किं बंधी पुच्छा' जीवा खलु भदन्त ! वेदनीयं कर्म किम् अवघ्नात् बध्नाति भन्स्यति १, अबध्नात् वघ्नाति न मन्त्स्थतिर, अबध्नात् न बध्नाति मन्त्स्यति३, अबध्नात् न बध्नाति न भन्तस्यतीति ४ चतुर्भङ्गकः प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि ज्ञानावरणीय दण्डक के जैसा ही दर्शनावरणीय कर्म का दण्डक भी सम्पूर्ण कहना चाहिए। क्योंकि इन दोनो कर्मों में समान धर्मता है।
'जीवेणं भंते ! वेयणिज्ज कम्मं कि बंधी पुच्छा हे भदन्त !' जीवने क्या वेदनीय कर्म भूतकाल में बांधा है ? वर्तमान में वह उसे बांधता है क्या ? भविष्यत् में वह उसे बांधेगा क्या ? अथवा-जीवने भूतकाल में क्या वेदनीय कर्म का बंध किया है ? वर्तमान में वह उसका बंध करता है क्या ? और क्या वह भविष्य काल में उसका बन्ध नहीं करेगा? अथवा-भूतकाल में वह उसका बन्ध कर चुका है क्या ? वर्तमान में वह उसका बन्ध नहीं करता है क्या ? भविष्यत् में वह उसका बंध करेगा क्या? अथवा-भूतकाल में ही क्या उसने उसका बन्ध किया है ? वर्तमान में वह उसका बन्ध नहीं करता है ? और भविष्यत् काल में भी वह क्या उसका बन्ध नहीं करेगा ? इस प्रकार से यह-अषधात् चनाति भन्स्यति १ अबध्नात् न बध्नाति भन्स्यति २ अबध्नात् न पध्नाति भन्स्यति ३ अबध्नात् न बध्नाति न भन्स्यति' वेदनीय कर्म के बन्ध के विषय में इन चार भंगो को लेकर गौतमस्वामीने જ્ઞાનાવરણીય દંડકના કથન પ્રમાણે દર્શનાવરણીય કર્મને દંડક પણ કહે २४. म मा मानना भीमा साम्य छे.
__'जीवे णं भंते ! वेयणिज्जं कम किं बंधी पुच्छा' लगवन्त मा જીવે વેદનીય કમને બંધ કર્યો છે? વર્તમાન કાળમાં તે તેને બંધ કરે છે? ભવિષ્ય કાળમાં તે તેને બંધ કરશે? અથવા જીવે ભૂતકાળમાં વેદનીય કમને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનમાં તે તેને બંધ કરે છે? અને ભવિષ્યમાં તે વેદનીય કર્મને બંધ નહીં કરે ? અથવા ભૂતકાળમાં તે વેદનીય કમને બંધ કરી ચૂક્યું છે? વર્તમાનમાં તે તેને બંધ નથી કરતે ? અને ભવિ. ધ્યમાં તે તેને બંધ કરશે? અથવા ભૂતકાળમાં જ તેણે વેદનીય કર્મને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનમાં તે તેને બંધ નથી કરતે ? અને ભવિષ્ય કાળમાં परत ते मध नही २१ मारीत मा ‘अबध्नात, बध्नाति, भन्स्यति' 'अबध्नात् बध्नाति न भन्स्यति २' अवघ्नात् , न बध्नाति भन्स्यति३ अबध्नात् नबनाति न मन्त्स्यति ४ वहनीय मनामधन समयमा माया लगाने
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬