Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 623
________________ - - प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.१ सू०४ नैरयिकाणां आयुकर्मबन्धनिरूपणम् ६०९ जाने आभिनियोधिकज्ञाने श्रुतज्ञाने तृतीयो भङ्गः, विकलेन्द्रियाणां सम्यक्त्वे ज्ञाने आमिनिबोधिकज्ञाने श्रुतज्ञाने च तृतीयो भङ्ग एव भवति यतः सम्यक्त्वादीनि तेषां सासादनभावेन अपर्याप्तकावस्थायामेव भवति तेषु चापगतेषु आयुषो बन्धो भवति इत्यतः पूर्वभवे विकलेन्द्रिया आयुष्ककर्माणि अवघ्नन् , सम्यक्त्वाधव. स्थायां च न वनन्ति, सदनन्तरं च मन्त्स्यतोति तृतीयो भङ्गोऽत्र घटते इति । 'पचिदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिए पढमतइया भंगा' पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो. निकानां कृष्णपाक्षिकपदे प्रथमतृतीयौ मङ्गो, कृष्णपाक्षिको हि आयुर्वद्ध्वा अध. या तदबन्धकोऽनन्तरमेव भवति, तस्य सिद्धिगमनायोग्यत्वादिति । 'सम्मामिच्छत्ते तइयचउत्था भंगा' सम्यग्मिध्यात्वपदे पजेन्द्रियतिरथा तृतीयचतुर्थभङ्गो ज्ञान में, श्रुतज्ञान में तृतीय भंग ही होता है ! क्योंकी सम्यक्त्वादिक एनमें सासादन भाव से अपर्याप्त अवस्था में ही होते हैं। और इन के अपगत हो जाने पर इन्हें आयुका बन्ध हो जाता है। इसलिये विकलेन्द्रिय जीव पूर्वभव में आयुकर्म का बन्ध बर चुके होते है और सम्यक्त्व आदि अवस्था में वे उसका बन्ध नहीं करते हैं, बाद में इन के छूट जाने पर वे उसके बन्ध करने वाले हो जाते हैं। इस प्रकार की विवक्षा से यहां तृतीय भंग ही घट जाता है। 'पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिए पढमतझ्या भंगा' पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों के कृष्णपाक्षिक पद में प्रथम तृतीय ये दो भंग होते हैं। क्योंकी कृष्णपाक्षिक पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च आयुकर्म को बांधे या न बांधे फिर भी वह कृष्णपाक्षिक अवस्था में सिद्धि गमन के अयोग्य रहता है, 'सम्मामिच्छत्ते तइयच उत्था भंगा' ભંગ હોય છે. આ કથન પ્રમાણે કહેલ છે કેમ કે-તેમાં સમત્વ વિગેરે સાસાદના ભાવથી અપર્યાપ્ત અવસ્થામાં હોય છે. અને તે અપગત થયા પછી તેઓને આયુનો બંધ થઈ જાય છે. તેથી વિકસેન્દ્રિય જીવ પૂર્વભવમાં આયુકમને બંધ કરી ચૂકેલ હોય છે. અને સમ્યક્ત્વ વિગેરે અવસ્થામાં તેઓ તેને બંધ કરતા નથી. બાદમાં તેના ટિ જવા પછી તેઓ તેને બંધ કરવાવાળા થઈ જાય છે. આ રીતની વિવિલાથી અહિયાં ત્રીજો ભંગ ઘટી જાય છે. 'चिदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हपक्खिए पढमतइया भंगा' पयेन्द्रिय તિર્યંન્ચ એનિકોને કૃષ્ણપાક્ષિક ૫દમાં પહેલો અને ત્રીજો એ બે ભંગ હોય છે. કેમ કે--કૃષ્ણ પાક્ષિક પંચેન્દ્રિયતિય આયુકર્મને બાંધે કે ન બાંધે तोप ते सिद्धि मनमा अयाय २७ छे. 'सम्मामिच्छत्ते तइयच उत्था શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

Loading...

Page Navigation
1 ... 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698