Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 636
________________ ६२२ मगवतीस्त्रे मोहलक्षणपापकर्मणोऽबन्धकत्वस्याभावादिति । 'जहा पावे एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ' यथा पापकर्मणा साद्ध दण्डको भणितः, तत्र च मङ्गो प्रथमद्वितीयौ पतिपादितौ तथैव ज्ञानावरणीयेन सममपि दण्डको वक्तव्यः, अनन्तरोपपन्नको नैरयिकः खलु भदन्त ! ज्ञानावरणीयं कर्म किम् अबध्नात् बध्नाति भन्स्यति इत्यादि चतुर्भङ्गकः प्रश्नः अस्त्येककोऽबध्नात् वध्नाति भन्स्यति, अबध्नात, वक्तव्य हैं। क्यों की इन में मोहरूप पापकर्म की अबन्धकता का अभाव है। 'जहा पावे एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ 'जिस प्रकार से पापकर्म के सम्बन्ध में दण्डक कहा गया है उसी प्रकार से ज्ञानावरणीय कर्म के सम्बन्ध में भी दण्डक कहना चाहिये अर्थात् पापकर्म के साथ प्रथम द्वितीय ये दो भंग कहे गये हैं सों यहां पर ज्ञानावरणीय कर्म के बन्ध के सम्बन्ध में भी ये ही दो भंग वक्तव्य हुए हैं, तथाच- जप गौतमस्वामीने प्रभुश्री से ऐसा प्रश्न किया कि 'हे भदन्त ! नैरयिकने जो कि अनन्तरोपपन्नक है पूर्वकाल में क्या ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध किया है, क्या वह उसका बन्ध वर्तमान काल में करता है ? और क्या वह उसका बन्ध भविष्यत् काल में भी करेगा ?१ अथवा क्या उसने पूर्वकाल में उसका बन्ध किया है ? वर्तमान में भी क्या वह उसका पन्ध करता है ? भविष्यत् काल में वह क्या उसका बन्ध नहीं करेगा १२ अथवा पूर्वकाल में क्या उस ने उसका बन्ध किया है वर्तमान में वह क्या उसका बन्ध नहीं करता है ? भविष्यत् काल में वह क्या उसका बन्ध करेगा ? ३ अथवाપહેલે અને બીજે એ બે ભંગ જ કહેવા જોઈએ. કેમ કે-તેઓને મોહરૂપ पा५ भना समयाना मला डाय छ, 'जहा पावे एवं नाणावरणि ज्जेणवि दंडओ' २ प्रमाणे ५।५ मा सil Bा छ, से પ્રમાણે જ્ઞાનાવરણીય કર્મના સંબંધમાં પણ દંડકે કહેવા જોઈએ. અર્થાત પાપકર્મની સાથે પહેલે અને બીજો આ બે દંડક કહ્યા છે. તે અહિયાં જ્ઞાના વરણીય કર્મના બંધના સંબંધમાં પણ આ બેજ દંડકે કહેવાના છે. અર્થાત ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એ પ્રશ્ન પૂછ કે હે ભગવાન નરયિકો કે જે ભવાન્તરે ૫૫નક છે. તેમણે ભૂતકાળમાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનકાળમાં તે તેનો બંધ કરે છે? અને ભવિષ્યકાળમાં પણ તે તેને બંધ કરશે ? અથવા ભૂતકાળમાં તેને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનકાળમાં તેને બંધ કરે છે? અને ભવિષ્યકાળમાં તેને બંધ નહીં કરે? અથવા–ભૂતકાળમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

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