Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 635
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.२ सू०१ चतुर्विशति जीवस्थाननिरूपणम् ६२१ सम्यग्मिथ्यात्वमनःपर्यवज्ञान केवलज्ञान विभङ्गज्ञान नोसंज्ञोपयुक्तावेदकाकषायि मनोयोगवाग्योगायोगिन इति, एतानि एकादशपदानि न भण्यन्ते अनन्तरोपपन्नकत्वेनापर्याप्तकलात् । 'वाणमंतरजोइलियवेमाणियाणं जहा नेरइयाणं तद्देष ते तिनि न भण्णंति' वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकाना मित्येषां त्रयाणाम् , यथा नैरयिकाणां तथैव तानि त्रीणि सम्यग्मिथ्यात्व-मनोयोग-वचोयोगात्मकानि पदानि न भण्यन्ते, एतेषामेतदभावादिति । 'सव्वेसिं जाणि सेणाणि ठाणाणि सवस्य पढमबितिया भंगा' सर्वेषां जीवानां यानि विशेषाणि स्थानानि सर्वत्र पदेषु प्रथमद्वितीयौ मङ्गो अबध्नात् बध्नाति भन्स्यति१, अवधनात् बध्नाति न भन्स्यतीत्याकारको वक्तव्याविति । 'एगिदियाणं सव्वत्थ पढमवितिया भंगा' एकेन्द्रियाणां पृथिवीकायिकादीनां सर्वत्र पदेषु प्रथमद्वितीयौ भङ्गो ज्ञातव्यौ मनुष्यों के अलेश्यत्व, सम्पमिथ्यात्व, मनापर्ययज्ञान, केवलज्ञान विभंगज्ञान, नोसंज्ञोपयोग, अवेदक, अकषायित्व, मनोयोग, वचनयोग, और अयोगित्व ये ११ स्थान नहीं कहना चाहिये, क्योंकि ये ११ स्थान अनन्तरोपपन्नक मनुष्यों को अपर्याप्त होने के कारण नहीं होते हैं। 'चाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरहवाणं तदेव ते तिन्नि न भण्गंति' नैरथिको के जैले वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और बैमानिक इन को सम्यकमिथ्यात्व मनोयोग और वचनयोग ये तीन स्थान नहीं कहना चाहिये, क्योंकि इन को इनका अभाव होता है। 'सम्बेसि जाणि सेलाणि ठाणाणि सव्वस्थ पढम वितिया भंगा' पाकी के समस्त जीवों के अपशिष्ट और समस्त स्थानों में प्रथम और द्वितीथ ये दो भंग ही कहना चाहिये, 'एगिदियाणं सव्यस्थ पढम वितिया भंगा' एकेन्द्रियों के समस्त पदों में प्रथम और द्वितीय भंग વિર્ભાગજ્ઞાન, સંજ્ઞોપગ, અદક અકષાયિત્વ, મગ, વચનગ અને અગિપણ આ ૧૧ અગિયાર સ્થાને કહેવા જોઈએ કારણ કે-અનન્ત૫૫નક भनुष्याने अपर्याप्त पाना २ तेता नथी. 'वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरइयाणं तहेव ते तिन्नि न भण्णंति' नैयिान थन प्रमाणे पान०यન્તર, તિષ્ક અને વૈમાનિકને સમ્પમિથ્યાત્વ, મગ અને વચનગ આ स्थान। अवानानथी ।२५ ते स्थानानी तेमन समाप डाय छे 'सम्बेसि जाणि सेसा णि ठाणाणि सव्वस्थपढम वितिया भंगा' मीना सा पाने બાકીના તમામ સ્થાનમાં પહેલે અને બીજે આ બે સંગ્રેજ કહેવા જઈએ. 'एगिदियाणं सब्वत्थ पढमबितिया भंगा' सन्द्रियाणामाने सणा मां શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

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