Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 655
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.६ सू०१ अनन्तराहारकना पापकर्मबन्धः ६४१ हारकः उत्पत्तिप्रथमसमयाहारक इत्यर्थः एतादृशः खलु भदन्त ! नैरयिकः 'पावं कम्मं किं बंधी पुच्छा' पापं कर्म किमबध्नात् बध्नाति भन्स्यतीत्याकारक चतुभंङ्गका प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते, उत्तरमाह-एवं' इत्यादि, 'एवं जहेब अणंतरोकबन्नएहि उद्देस भो तहेव निरवसेसं' एवं यथैव अनन्तरोपपत्रकरुद्देशः कथित स्तथैव अयमपि अनन्तराहारकाख्यः षष्ठोद्देशको निरवशेषः समग्रोऽपि भणितव्यः। आहारस्य प्रथमसमये वर्तमानोऽनन्तराहारक इति कथ्यते हे गौतम ! कश्चिदेकोऽनन्तराहारको नारक इति कथ्यते हे गौतम ! कश्चिदेकोऽनन्तराहारको नारकः पूर्वकाले पापं कर्म अबध्नात्, बध्नाति वर्तमानकाले, भन्स्यति चानागतअनन्तराहारक है, अर्थात् उत्पत्ति के प्रथम समय में आहार करने वाला ऐसा वह नारक पहिले भूनकाल में क्या पापकर्म का बन्ध करनेवाला हुआ है, तथा वर्तमान काल में भी क्या वह पापकर्म का बन्ध करता है ? और भविष्यत् काल में भी क्या वह पापकर्म का बन्ध करनेवाला होगा? इत्यादि रूप से यहां गौतमस्वामीने जब चार भंगो वाला प्रश्न प्रभुश्री से पूछा तो प्रभुश्रीने उनसे कहा-'एवं जहेव अणंतरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेस' हे गौतम! जिस रीति से अनन्तरोपपत्रक नैरयिकों के सम्बन्ध में उद्देशक कहा गया है उसी रीति से यह अनन्तराहारक नाम का षष्ठ उद्देशक भी सम्पूर्ण रूप से कहना चाहिये, आहार के प्रथम समय में वर्तमान अनन्तराहारक कहलाता है सो हे गौतम! कोई एक अनन्तराहारक नरयिक ऐसा होता है जो पूर्व काल में पापकर्म का बन्ध कर चुका होता है, तथा ઉત્પત્તિનાપ્રથમ સમયમાં આહારકરવાવાળા એવા તે નારકોએ પહેલાં ભૂતકાળમાં પાપકમનો બંધ કરેલું હોય છે ? તથા વર્તમાન કાળમાં પણ તે પાપ કર્મને બંધ કરે છે ? અને ભવિષ્યમાં તે પાપ કર્મને બંધ કરશે? ઈત્યાદિ પ્રકારથી ગૌતમસ્વામીએ આ વિષયમાં ચાર ભંગાત્મક પ્રશ્ન પ્રભુશ્રીને પહેલ છે. या प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्रीले गौतमस्वामीन धुंछे है--'एवं जडेव अणंतरोववन्नएहि उसो तहेव निरवसेस' गौतम २ प्रमाणे मनतरो५. પનક નૈરયિકના સંબંધમાં ઉદ્દેશે કહેલ છે, એજ પ્રમાણે આ અનન્તરાહારક નામને છટ્ટો ઉદ્દેશ સંપૂર્ણ રીતે કહેવું જોઈએ. આહારના પહેલા સમયમાં રહેવાવાળે અનન્તરાહારક કહેવાય છે, તે હે ગૌતમ! કોઈ એક અનંતરાહારક નરયિક એ હોય છે કે-- ભૂતકાળમાં પાપ કર્મને બંધ કરી ચુકેલ હોય છે. તથા વર્તમાન શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

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