Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 643
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ. ३ सू०१ परम्परोपपन्नकनारकाणां बन्धस्वरूपम् ६२९ टीका- ' परंपरोववन्नए णं भंते ! नेरइए' परम्परोपपन्नकः परम्परया द्वितीयादि समयरूपया उपपन्नः - उत्पन्नः यस्योत्पत्तौ द्वयादि समया जाताः स एतादृशः खलु भदन्त ! नैरयिकः 'पावं कम्मं कि बंधी पुच्छा' पापं कर्म-अशु भफलकं कर्म किम् अनात् बध्नाति भन्त्स्यतीत्यादिरूपचतुर्भङ्गकः पृच्छया संगृहीतः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! ' अश्येगइए पढम बितिया' अस्त्येककः प्रथमद्वितीयौ हे भदन्त ! कश्चिदेकः परम्परोपपन्नको नैरfor: पापं कर्म अतीतकाले अवघ्नात् वर्त्तमानकाले बध्नाति, अनागतका ले C 'परंपरोवन्नए णं भंते! नेरइए पावे कम्मं किं बंधी पुच्छा' इत्यादि टीकार्थ - हे भदन्त ! जिस नारक जीव को उत्पन्न हुए इयादि - दो आदि समय हो गये हैं ऐसा वह 'पर' परोववन्नए नेरइए' परम्परोपपन्नक नैरयिक 'पावं कम्मं किं बंधी - पुच्छा' क्या पूर्वकाल में पापकर्म का बन्धक हुआ है ? वर्तमान में वह पापकर्म का बन्धक होता है क्या भविष्यत् में वह पापकर्म का बन्धक होगा क्या ? इत्यादि रूप से यहां चार भंगो को ग्रहण कर के प्रश्न के रूप में कथन करना चाहिये, उत्तर में प्रभुश्री कहते है - 'गोयमा ! अत्थेगइए० पदमबितिया' हे गौतम! कोई एक परम्परोपपन्नक नैरधिक ऐसा होता है ? कि जिस के द्वारा पूर्वकाल में भी पापकर्म का अशुभ फलवाले कर्म का बन्ध किया गया होता है, वर्तमान में भी वह उसका बन्ध करता है और भविष्यत् काल में भी वह उसका बम्ध करनेवाला होगा तथा कोई एक परम्परोपपन्नक नैरयिक ऐसा होता है कि जिस के द्वारा ટીકા — હે ભગવન્ જે નારક જીવની ઉત્પત્તી એ વિગેરે સમયે માં होय छे, व ते 'पर' परो ववन्नए नेरइए' परम्परापपन्ना नैरयि 'पावकम्म किं बधी पुच्छा' भूत मां पाप मनोधा थयो छे ? वर्तमान आणभां તે પાપ કર્મને બંધ કરવાવાળો હાય છે ? ભવિષ્યમાં તે પાપકમ ને ખાંધશે ? ઈત્યાદિ રૂપથી આ વિષયમાં ચાર ભંગાત્મક પ્રશ્ન ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને उरेस छे, या प्रश्नना उत्तरमा अलुश्री गौतमस्वामीने डे - 'गोयमा ! अस्थेगइए पढमबितिया' हे गौतम! अधो परम्परापन्न नेरि એવા હાય છે કે જેના દ્વારા ભૂતકાળમાં પણ પાપકમ ને-અશુભકમ ના અધ કરાયા હાય છે. વર્તમાન કાળમાં પણ તે તેના ખધ કરે છે. અને ભવિષ્યકાળમાં પણ તે તેના બંધ કરવાવાળા થશે, તથા કાઇ એક પરમ્પરાપ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

Loading...

Page Navigation
1 ... 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698