Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 649
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.४ सू०१ अनन्तरावगाढना पापकर्मबन्धः ६३५ अनन्तरावगाढो नारका पापं कर्म अवध्नात् बध्नाति भन्स्यति, अबध्नात् बध्नाति न भन्स्यतित्येवं क्रमेणानन्तरावगाढनारकविषये प्रथम द्वितीयमङ्गो ज्ञातव्यो, एतदेव दर्शयति-'एवं जहेव' इत्यादिना, ‘एवं जहेब अणंतरोववन्नएहि नवदंडसहिभो उद्देस भो भणिो ' एवं यथैव येनैव प्रकारेण अनन्तरोपपत्रके नारकैः पापकर्मादि नवदण्ड कसहितः उद्देशको द्वितीयो भणितः 'तहेव अणंतरो. वगाढएहि वि अहीणमतिरित्तो भाणियन्यो' तथैव-तेनैवरूपेण अनन्तराव गावैरपि अहीनातिरिक्तः-अन्यूनानतिरिक्तः उद्देशको भणितव्या, 'नेरइयाए जाव वेमाणिर' नैरयिकादिको यावद्वैमानिकः, अनन्तरावगाढनारकादारभ्य अनन्तराव. नैरयिक ऐसा होता है जो पहिले भूतकाल में पापकर्म का बन्ध कर चुका होता है वर्तमान में भी यह पापकर्म का पन्ध करता है और भविष्यत् काल में भी वह उसका बन्ध करनेवाला होता है, तथा कोई एक अनन्तरावगाढ नैरथिक ऐसा होता है जो भूतकाल में पापकर्म का बन्ध कर चुका होता है, वर्तमान में भी वह उसका बन्ध करता है पर भविष्यत् काल में वह उसका बन्ध करने वाला नहीं होता है। इस प्रकार ये दो ही भंग यहां होते हैं, यही बात 'एवं जहेव अणंतरोववन्नएहिं नवदण्डगसहिभो उद्देसो भणिो ' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की जा रही है कि जिस प्रकार से नारकों के साथ-अनन्तरोपपन्न क नारकों के साथ पापकर्मादि नौदण्डक सहित द्वितीय उद्देशक कहा गया है उसी प्रकार से 'अणंतरोवगाढएहि धि अहीणमतिरित्तो भाणियव्यो नेरइयादीए जाय वेमाणिए' अनन्तरावगाह એક અનંતરાવગાઢ નિરયિક એ હોય છે કે-જે પહેલાં ભૂતકાળમાં પાપકર્મને બંધ કરી ચુકેલે હોય છે. વર્તમાન કાળમાં પણ તે પાપ કર્મને બંધ કરે છે. અને ભવિષ્ય કાળમાં પણ તે તેને બંધ કરવાવાળે હોય છે. તથા કઈ એક અનન્તરાવગાઢ નૈરયિક એ હોય છે કે-જે ભૂતકાળમાં પાપકર્મને બંધ કરી ચૂકેલ હોય છે. વર્તમાન કાળમાં પણ તે તેને બંધ કરે છે. પરંતુ ભવિષ્ય કાળમાં તે તેને બંધ કરવાવાળો હેતે નથી मा शतना म. मे ४ मडिया डाय छे. मे 'एवौं जहेव अर्णत्तरो. ववन्नएहि दंडगलहिओ उद्देसो भणि ओं' मा सूत्र प्रगट ४२वामां आवछ કે-જે પ્રમાણે નારકની સાથે-અનન્તરે૫૫નક નારકની સાથે પાપકર્મ वगेरेना न ४४ सहित भी देश घो छ. मे ११ प्रमाणे 'अणंतरोब. गाढरहिं वि अहीण नतिरित्तो भागियम्यो नेरहवाही र जाव वेनाणिर' मनता શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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