Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 645
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.२६ उ.३ १०१ परम्परोपपन्नकनारकाणांबन्धस्वरूपम् ६३१ तीनां या यस्य कर्मणो वक्तव्यता 'सा तस्स अहीणमतिरित्ता नेय ब्या' सा वक्त व्यता तस्य अहीनातिरिक्ता-अयूनानतिरिक्ता नेतव्या वक्तव्येत्यर्थः कियत्पर्यन्तं वक्तव्यता तबाह-'जाव' इत्यादि, 'जाव वेमाणिया अनागारोवउत्ता' यावद्वैमानिका अनाकारोपयुक्ताः अनाकारोपयुक्तवैमानिकान्तदण्डकेषु वक्तव्येति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति हे भदन्त ! परम्परोपपन्नकनैररिकादीनां पापकर्मादिबन्धविषये यत् देवानुप्रियेण कथितं तत्सर्वम् एवमेवेति कथयित्वा गौतमो भगवन्तं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यि स्वा संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरतीति ॥मृ० १॥ षड्विंशति बन्धिशतके तृतीयो देशकः समाप्तः ॥२६-३। कर्म की प्रकृतियों में से जिस के जैसी कर्म की वक्ततव्यता प्रथम लद्देशक में कही गई हैं उसे वैसी ही उस कर्म की वक्तव्यता कहनी चाहिये । और यह वक्तव्यता यावत् अनाकार उपयोगवाले वैमानिक तक कहनी चाहिये, 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! परम्परो. पपन्नक नैरयिक आदि कों के पापकर्म आदि के पन्ध के विषय में जो आप देवानुप्रिय ने कहा है वह सच सर्वथा सत्य ही है २ । इस प्रकार कह कर गौतमस्वामी ने प्रभुश्री को वन्दना की और उन्हें नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार कर फिर वे संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये।१ ॥ तृतीय उद्देशक समाप्त ॥२६-३ ॥ वत्तव्वया' २०१४ ४ प्रतियोगी ने २ भनु उथन ४ छ, तर ते કર્મ સંબંધી કહેવું જોઈએ. અને આ કથન યાવત્ અનાકાર ઉપગવાળા વૈમાનિ સુધી કહેવું જોઈએ. તેમ સમજવું. _ 'सेव भते ! सेव भंते ! त्ति' लान् ५२२५२१५५न्न नैयि વિગેરેના પાપકર્મ આદિના બંધના સંબંમાં આપી દેવાનુપ્રિયે જે કહ્યું છે. તે તમામ કથન સર્વથા સત્ય છે, આપ દેવાનુપ્રિયનું કથન સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વંદના કરી તેઓને નમસ્કાર કર્યા વંદના નમસકાર કરીને તે પછી તેઓ તપ અને સંયમથી પોતાના આત્માને ભવિત કરતા થકા પોતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયા. સૂ ના ત્રીજે ઉદેશે સમાપ્ત ર૬-૩ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

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