Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 634
________________ ६२० मगवतीस्त्रे द्वितीयावेव भङ्गौ ज्ञातव्याविति पापकर्मावन्धकत्वस्य तेषु अमावादिति भावः। 'बेइंदिय तेइंदियचउरिदियाणं पथजोगो न भन्नई' द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रिय जीवानां वाग्योगो न भण्यते एतेषां वचोयोगस्यामावादिति । 'पंचिंदियतिरिक्ख. जोणियाणं पि सम्मामिच्छत्तं ओहिनाणं विभंगनाणं मणोजोगो वयजोगो, एयाणि पंच पदानि ण भण्णंति' पश्चन्द्रियतिर्यग्मोनिकानामपि सम्यग्मिथ्यात्वमौधिकज्ञान विभङ्गज्ञानं मनोयोगो वाग्योगः, एतानि पञ्च पदानि न भण्यन्ते, पञ्चन्द्रिय. तिर्यग्योनिकानामेतत्पश्चपदाभावादिति । 'मणुस्साणं अलेस्स सम्मामिच्छत्तमणपज्जयनाण केवलनाण विमंगनाण नोसानोवउत्त अवेदग अकसाइमनोजोगवयजोग अजोगी एयाणि एकारसपदाणि न मण्णंति' सामान्यतो ममुष्पाणामलेग्य स्थिति में होते हैं। क्योंकि यहां पर भी पापक्रम की अबन्धकता का अभाव है। 'बेइंदिय तेइंदिर, चरिदियाणं वयजोगो न भम्मई दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय चौइन्द्रिय इन जीवों के वचनयोग वक्तब्ध नहीं है क्योंकी इन में इसका अभाव रहता है। 'पचिदिपतिरिक्खजोणि याणं पि सम्मामिच्छत्त ओहिनाणं, विभंगनाणं, मणोजोगो वयजोगो एयाणि पंच पयाणि न भण्णंति' पञ्चन्द्रिय तियश्चयोनिकों में भी सम्पग्मिथ्यात्व, अवधिज्ञान, विभंगज्ञान मनोयोग और बचमयोग ये पांच पद वक्तव्य नहीं हैं क्योंकी अपर्याप्तावस्था में यहां ये नहीं होते हैं 'मणुस्साणं अलेस्स सम्मामिच्छत्त मणपज्जवनाण केरलनाण विभंगनाण नो सन्नोव उत्त अवेदन अक्साइ मनो. योग वयजोग अजोगी एयाणि एक्कारसपयाणि न मण्णंति' કુમારમાં પહેલે અને બીજે એ બે જ અંગે અનંતરોપયનક અવસ્થામાં હૈય છે. કેમ કે આ અવસ્થામાં પણ પાપકર્મને અબંધકપણાને અભાવ છે. इंदिय, तेइंदिय चरिंदियाणं वयजोगो न भन्नइ' मेन्द्रिय, धन्द्रिय અને ચાર ઈન્દ્રિયવાળા જેને વચગ હોતો નથી. કેમકે તેમાં વચનને અભાવ હોય છે. 'पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पि सम्मामिच्छत्त ओहिनाणं, विभंगनाणं, मण. जोगो, वयजोंगो, एयाणि पंच पयाणि न भंण्णंति' पयन्द्रिय तिय ययानिवा એમાં પણ સમ્યમિથ્યાત્વ, અવધિજ્ઞાન, વિર્ભાગજ્ઞાન, મગ અને વચન ગમાં આ પાંચ પદે કહેવના નથી. કારણ કે–અપર્યાપ્ત અવસ્થામાં અહિયાં તે समता नथी. 'मणुस्साणं अलेक्स सम्मामिच्छत्तमणपज्जवनाण केवलनाण विभंगनाण नोसन्नोवउत्ते अवेदग, अकसाइ, मनोजोग, वइजोग अजोगि एयाणि एकारसपदाणि न भण्णति' भनु यावा तश्य, सम्याउमथ्याल, मन:५य ज्ञान, ज्ञान, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

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