Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 621
________________ प्रमेन्द्रका टीका श०२६ उ. १ सू०४ तैरयिकाणां आयुकर्मबन्धनिरूपणम् ६०७ तृतीय एव भङ्गो ज्ञातव्यः युक्तिश्च पूर्ववदेव उदाहर्तव्या अन्यत्र पदेषु च चत्वारो मङ्गा एवोदाहरणीया । 'ते उक्काइय वाउक्काइयाणं सव्वश्थ वि पढमतइया भंगा तेजस्कायिक वायुकायिकजीवानां सर्वत्रापि एकादशस्वपि पदेषु प्रथमतृतीयमङ्गौ, अवघ्नात् बध्नाति भन्त्स्यति, अवध्नात् न बध्नाति मन्त्स्यतोस्याकारको परिपठनयो, तर उद्वृत्तानामनन्तरं मनुष्यगतिषु तेषामनुस्वच्या सिद्धिगमनाभावेन द्वितीयचतुर्थभङ्गयोरभावात् मनुष्येषु अनुत्पशिचैतेषाम् 'सतममहि नेरइया, तेज वाऊ अनंतरुव्वा । न य पावे मणुस्सं, तदेवासंखेज्जाउया सब्वे' सप्तममहीनारका स्तेजोवायशेऽनन्तरोदवृत्ताः । मानुष्यं न च प्राप्नुवन्ति तथैवासंख्यातायुषः एक तृतीय भांग ही पूर्वोक्त कथन के अनुसार कहना चाहिये, इनको सिवाय बाकी के पदों में चार-चार भंग कहना चाहिये । 'काइवाकाइया णं सव्वत्थ वि पढमतझ्या भंगा' तेजस्कायिक एवं वायुकायिक जीवों के सर्वत्र पदों में प्रथम और तृतीय भंग कहना चाहिये क्योंकी तेजस्काधिक एवं वायुकाधिक जीव जब अपनी-२ पर्याय से पर्यायान्तरित होते हैं तो मनुष्यगति में इनका जन्म नहीं होता है, और मनुष्यगति के सिवाय किसी और गति से सिद्ध गति में गमन होता नहीं है इसलिये यहां द्वितीय और चतुर्थ भंग नहीं होते हैं। से ही कहा है- 'सन्तमही नेरइया तेऊबाऊ अनंतरुव्वट्टा | नय पावे मणुस्सं, तहेव असंखाउया सव्वे' सप्तम नरक से निकला हुआ जीव तेजस्कायिक जीव और वायुकायिक जीव ये सब अनन्तर भव में मनुष्य गति को प्राप्त नहीं करते हैं, तथा असंख्यात वर्ष की आयुवाले भोगभूमि के जीव भी मनुष्यगतिको नहीं पाते हैं। એક ત્રીજો ભગજ પૂક્ત કથન પ્રમાણે સમજવા. આના સિવાય બાકીના સઘળા પદમાં ચાર-ચાર ભગે કહેવા જોઈ એ. 'ते उक्काइवा उक्काइयाणं सव्वत्थ वि पढमतइया भंगा' ते स्थायि भने વાયુકાયિક જીવ જ્યારે પાતપાતાના પર્યાયથી પર્યાયાન્તરવાળા થાય છે, તે તે અવસ્થામાં-મનુષ્ય ગતિમાં તેમના જન્મ થતા નથી, અને મનુષ્ય ગતિ શિવાય બીજી કઈ ગતિથી સિદ્ધિ ગતિમાં ગમન થઈ શકતું નથી. તેથી सहियां जीले भने योथो लौंग थते। नथी. शोधु छे - ' म्रत्तमहि नेरइया तेउ वाउ अंतरुव्वट्टा नय० पावे मणुस्सं तद्देवासंखेज्जाउया सव्वे' સાતમા નરકથી નીકળતા તેજસ્કાયિક જીવ અને વાયુકાયિક જીવ એ બધા પછીના ભવમાં મનુષ્યગતિને પ્રાપ્ત કરતા નથી. તથા અસખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા ભાગભૂમીના જીવે પણ મનુષ્યગતિ પામતા નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

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