Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 582
________________ ५६९ मगवतीस्त्रे शानावरणीयकर्मणो वक्तव्यतेति भावः। एतद्वयतिरिक्तं सर्वमपि पापकर्म बन्धपकरणोदीरितमेवेहापि ज्ञातव्यम् । परन्तु पापकर्मवन्धमकहणापेक्षया पदैलक्षण्यं तदिइ दर्शयन्नाह-'नवरं' इत्यादिना 'नवरं जीवपदे मणुस्सपदे य सकसाइंमि जाव लोभसाइंमि य पढनवितिया भंगा' नवरं जीवपदे मनुष्यपदे च सकपापिनि यावत् लोभषायिनि च प्रथमद्वितीयमङ्गो, अयमाशयः पापकर्मदण्डके जीवपदे मनुष्यपदे च यत् सकषायिपदं यावत् लोभकषायिपदं च, तत्र सूक्ष्मसंपरायस्य मोहलक्षणपापकर्म मोऽबन्धकत्वेन प्रथमद्वितीयत्तीयचतुर्थरूपाश्चत्वारोऽपि भङ्गाः कथिताः, अत्र ज्ञानावरणीयकर्मदण्ड के तु आधौ पथमवाले जीव की अपेक्षा से कहा गया है। इसके अतिरिक्त और भी जो वक्तव्यता इस ज्ञानावरणीयकर्म के पन्ध करने के विषय में है यह सब पापकर्म बन्ध प्रकरण में कही गई वक्तव्यता के जैसी ही है। परन्तु उस वक्तव्यता में और इस वक्तव्यता में यदि कोई अन्तर है तो वह 'नवरं जीवपदे मनुस्सपदे य सकसाइंमि जाव लोभकसाइमि य पढमवितिया भंगा' इस पाठ द्वारा प्रकट किया जा रहा है-इसके द्वारा यह समझाया गया है कि जीवपद में और मनुष्य पद में सकषायी यावत् लोभकषायी को आश्रित करके प्रथम और द्वितीय ऐसे दो भंग कहना चाहिये । तात्पर्य इस कथन का ऐसा है पापकर्म के दण्डक में जीवपद और मनुष्य पद में सकाषायी पद और लोभ कषायोपद में सूक्ष्मसंपराय के मोहरूप पापकर्म की अबन्धकता से प्रथम छिनीय तृतीय और चतुर्थ ये चारों ही भंग कहे गये हैं। परन्तु यह। ज्ञानावरणीय कर्मदण्डक में तो आदि બીજુ જે કઈ કથન આ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના બંધ કરવાના સંબંધમાં કહેલ છે, તે તમામ કથન પાપ કર્મના પ્રકરણમાં કહેલ કથન પ્રમાણે સમજવું તે यनमा अने थनमा ने is ३२३२ छ. तो a 'नवर जीवपदे मणुस्सपदे य सकसाइंमि जाव लोभसाइंमि य पढमबितिया भंगा' मा ५४ द्वारा પ્રગટ કરવામાં આવેલ છે. આ કથનથી એ સમજાવ્યું છે કે-જીવપદમાં અને મનુષ્યપદમાં સકષાયી–માવત ભકષાયવાળા જીવને આશ્રય કરીને પહેલે અને બીજો એવા બે અંગે કહેવા જોઈએ. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે પાપ કર્મના દંડકમાં જીવ પદ અને મનુષ્ય પદમાં સકષાયી પદથી લઈને લોભકષાયી પદ સુધી સૂમસં૫રાયના મોહ રૂપ પાપ કર્મના અબમ્પકપણાથી પહેલે બીજો ત્રીજો અને ચે એ ચાર ભાગ કહ્યા છે, પરંતુ અહિયાં આ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના દંડકમાં તે પહેલાના બે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧

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