Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 521
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.९ सू०१ भवसिद्धिकनैरयिकोत्पत्तिनि० ५०७ त्येति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'से जहा. नामए पवए पवमाणे' स यथानामकः कश्चित् प्लवक:-प्लवनकर्ता पुरुषः प्लवमानः-उत्प्लुतिं कुर्वन् एकस्मात् देशाद् देशान्तरमवाप्य विहरति तथा भवसिद्धिकनैरयिका अपि भवन्तीति ‘अवसेस ते चेव जाव वेमाणिया' अवशेष तदेव यावद्वैमानिकाः, अत्र यावत्पदेन 'अज्झासाणनिम्नत्तिए' इत्याधष्टमोद्देशक प्रकरणस्य संग्रहो भवति । एतस्य प्रकरणस्य व्याख्यानं यथा अष्टमोद्देशके कृतं तथैव निरशेषमिहापि सर्व ज्ञातव्यम् । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति, हे भदन्त ! भवसिद्धि कनैरयिकाणा मुत्पादादिविषये यदु दूसरे भव में जाते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! से जहा नामए पवए पवमाणे' जैसे हे गौतम! कोई प्लवक पुरुष कूदता कूदता एक देश से-एक स्थान से दूसरे देश में-स्थान में पहुंच जाता है । उसी प्रकार से भवसिद्धिक नैरपिक भी एक भव से दूसरे भव में उत्पन्न हो जाते हैं । 'अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिए' बाकी का और सब कथन यावत् वैमानिक तक पूर्वोक्त आठवां उद्देशक के कथन जैसा ही जान लेना चाहिये-यहां यावत्पद से पूर्वोक्त अष्टम उद्देशक के प्रकरण का 'अज्झवसागनिवत्तिए' इत्यादि समस्त पाठ ग्रहण हुआ है, इस प्रकरण का व्याख्यान जिस प्रकार से अष्टम उद्देशक में किया गया है वैसा ही यहां पर भी वैमानिकपर्यन्त समझना चाहिये। 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! जैसा आपने यह भवसिद्धिक नैरयिकों के उत्पाद आदि के विषय में कथन किया है वह सब आस १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ -'गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे' रेभ3-3 गौतम! नारे। ५३५ ते ४ मे स्थानथा બીજે સ્થાને એટલે કે-એક દેશથી બીજા દેશમાં પહોંચી જાય છે, એજ પ્રમાણે ભવસિદ્ધિક નૈયિક પણ એક લવથી બીજા ભવમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય छ. 'अवसेस त चेव जाव वेमाणिए' मानु श्री सघ ४थन यावत વિમાનિક સુધી પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે સમજી લેવું જોઈએ. અહિયાં યાવત્ પદથી पडसा उस माम! शान मा ४२मा त 'अज्झवसाणनिवत्तिए' ઈત્યાદિ સઘળે પાઠ ગ્રહણ કરેલ છે. આ પ્રકરણનું વ્યાખ્યાન આઠમા ઉદેશામાં કરવામાં આવ્યું છે. એ જ પ્રમાણે અહિયાં પણ સમજી લેવું. 'सेव भंते ! सेव भंते ! चि' भगवन् ।५ हेवानुप्रिये मा लq. સિદ્ધિક નૈરયિકના ઉત્પાદ વિગેરેના સંબંધમાં કથન કરેલ છે, તે તમામ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬

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