Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
द्वौ भङ्गौ ज्ञातव्यौ, यतो नीललेश्य नारकाणामुपशमश्रेणिक्षपकश्रेणी न भवत इति । एवं क्रमेण सर्वत्र अग्रे आलापकप्रकारः स्वयमूहनीयः । 'काउलेस्सेचि ' कापोतिक लेयोऽपि सलेश्यनारकवदेव कापोतिक लेश्यनारकोऽपि भङ्गद्वयविशिष्ट ज्ञातव्यः । ' एवं कण्हपक्खिए' एवं सलेइयनारकवदेव कृष्णपाक्षिकोऽपि ज्ञातव्य इति । 'सुकपक्खिए' शुक्लपाक्षिकः सलेश्यनारकवदेव शुक्लपाक्षिकोऽपि आयभङ्गद्वयविशिष्टो ज्ञातव्य इति । 'सम्मदिट्ठी' सम्यग्दृष्टिः सलेश्वनारकव देव सम्यग्दृष्टिरपि प्राथमिकमङ्गद्वयविशिष्टो ज्ञातव्य इति । 'मिच्छादिट्ठी' मिथ्या दृष्टिरपि प्राथमिकभङ्गद्वयविशिष्टोऽवगन्तव्य इति । ' सम्मामिच्छादिडी' सम्यग्मिथ्यादृष्टिः सलेश्यनारकवदेव भङ्गद्वय विशिष्टो ज्ञातव्य इति । 'गाणी' हैं। इन दो भंगो के होने का कारण यही है कि नीललेश्यावाले नारकों के उपशमता और क्षपकता नहीं होती हैं । इसी प्रकार से सर्वत्र आगे भी आलापक प्रकार अपने आप बना लेना चाहिये, इसी प्रकार से 'काउलेस्से वि' कापोतिक लेइयावाले नारक के भी ये आदि के ही दो भंग होते हैं अन्त के दो भंग नहीं होते हैं । 'एवं कण्हपखिए' सलेश्यनारक के जैसे ही कृष्णपाक्षिक नारक जीव भी आदि के दो ही भंग वाले होते हैं - अन्त के दो भगवाले नहीं होते हैं । 'सुक्कपक्खिए' तथा सलेश्य नारक के जैसे ही शुक्लपाक्षिक नारक भी आदि के दो भंगो वाले ही होते हैं-अन्त के दो भंग वाले नहीं होते हैं। इनके अन्त के भंग नहीं होने का कारण ऊपर प्रकट कर दिया गया है । 'सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी णाणी, आभिणिबोहिय नीललेश्य: नारकोऽबध्नांत् बध्नाति न भन्त्स्यति२' से प्रमाणे मडियां આ એ જ ભગા થાય છે. આ બે ભંગા થવાનુ કારણ એ છે કેનીલેશ્યાવાળા નારકેાને ઉપશમશ્રેણી અને ક્ષપકશ્રેણી આ એ શ્રેણીયા હાતી નથી. એજ રીતે મધે જ આગળ પણ આલાપના પ્રકાર સ્વયં બનાવી सेवा. या प्रभावना याताया- 'काउलेस्से वि' आयोतिः श्यावाजा नार જીવને પણ આદિના એ જ ભગા હોય છે. છેલ્લા છે ભંગા હાતા નથી. 'एव' कण्हपक्खिर' श्यावाजा नार भवना उथन प्रभा द्रुष्णुपाक्षि नार જીવને પણ આદિના એટલે કે પહેલા અને બીજો એ એ જ ભગા હાય છે, तेभने छेदला मे लगो होता नथी. 'सुक्कपक्खिए' दोश्यावाणा नारउनी भ શુકલપાક્ષિક નારક જીવને પણ અાદિના એટલે કે પહેલે અને બીજો એ એ જ ભગા ડાય છે. તેઓને છેલ્લા બે ભ`ગે! હાતા નથી. તેઓને છેલ્લા એ लगो न डे!वानुं डार पर मता है 'सम्मदिट्टी मिच्छादिट्ठी सम्मा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬