Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०१ प्रथम प्रशानाद्वारनिरूपणम् २६३ छेदोपस्थापनीयसंयतः खलु भदन्त ! कतिविधः प्राप्त इति पृच्छा प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुविहे पन्नते' द्विविधो द्विमकारकः प्रज्ञप्तः, छेदोषस्थापनीयसंयतः । 'तं जहा' तद्यथा-'सातियारे य निरतियारे य' सातिचारश्च निरतिचारश्च, सातिचारस्य यत आरोप्यते तव सानि. चारमेव छेदोपस्थापनीयम् तद्योगात् साधुरपि सातिचार एज एवं निरतिचारसले. दोपस्थापनीययोगान्निरतिचारः, पार्श्वनाथतीर्थात् निष्क्रम्य महावीरतीर्थे महा. वतारोपणम् छेदोपस्थापनीयसाधुश्च प्रथमचरमतीर्थयोरेव भवतीति । 'परिहार. विसुद्धियसंजए पुच्छा' परिहारविशुद्धिकसंयतश्च खलु भदन्त ! कतिविधः ____ 'छेदोवट्ठावणियसंजएणं पुच्छा' हे भदन्त ! छेदोपस्थापनीयसंयत के कितने प्रकार कहे गये हैं ! उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! दुविहे पन्नत्ते' हे गौतम ! छेदोपस्थापनीय संयत के दो प्रकार कहेगये हैं'तं जहा' जैसे-सातिचार और निरतिचार । अतिचार युक्त साधु की दीक्षा पर्याय छेदकर फिर से महावतों का जो आरोप प्रदान उसमें किया जाता है यह सातिचार छेदोपस्थापनीय संयत है प्रथम दीक्षित साधु को तथा पार्श्वनाथ के तीर्थ से महावीर के तीर्थ में प्रवेश करने वाले साधु के लिये फिर से जो महावतों का प्रदान करना होता है यह निरतिचार छेदोपस्थापनीय संयत है। छेदोपस्थापनीय साधु प्रथम तीर्थकर और अन्तिम तीर्थकर के तीर्थ में ही होता है। ____ 'परिहारविसुद्धियसंजए पुच्छ।' हे भदन्त ! परिहार विशुद्धिक संयत कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं
___ 'छेदोवद्ववणियसंजए णं पुच्छा' 3 लावन् पस्थानीय संयतीना Tea महा द्या छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छे ,-'गोयमा ! दविहे पन्नत्ते' है गौतम! होपस्थापनीय सयतन में प्रार छ, 'त जहा' ते मा प्रमाणे छ. सातियार सने नितियार अतियावा साधुनी દીક્ષા પર્યાયને છેદીને ફરીથી તેઓમાં મહાવ્રતનું જે આરોપણ કરવામાં આવે છે તે સાતિચાર દેપસ્થાપનીય સંયત કહેવાય છે. તથા પહેલા દીક્ષિત થયેલા સાધુને તથા પાર્શ્વનાથના તીર્થમાંથી મહાવીર સ્વામીના તીર્થમાં પ્રવેશ કરવાવાળા સાધુ માટે ફરીથી જે મહાવ્રતાનું પ્રદાન કરવામાં આવે છે, તે નિરતિચાર દેપસ્થાપનીય સંયત કહેવાય છે. છેદેપસ્થાપનીય સાધુ પહેલા તીર્થકર અને છેલ્લા તીર્થકરના તીર્થમા જ હોય છે.
'परिहारविसुद्धियसंजए पुच्छा' 3 मापन्न परिका२विशुद्धि मयत seal मन छ ? ! प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री छे है-'गोयमा ! दुविहे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧