Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
-
४७८
मगवतीसरे _ 'मोसाणुबंधी' मृषानुबन्धि मृषा असत्यम् यत् पिशुनाऽसत्याऽसत्याऽसदभूतादिमिर्वचनभेदैरनुबध्नाति तन्मृषानुबन्धि द्वितीयं रौद्रध्यानम् २ । 'तेयाणुबंधी' स्तेयानुबंधि, स्तेनस्य-चौरस्य यत् कर्म तत् स्तेयम् तीव्र क्रोधाद्याकुलतया तदनुबन्धयुक्तं स्तेयानुबन्धि, नृतीय रौद्रध्यानम् ३, 'सारक्खणाणुबंधी' संरक्षणानुबन्धि संरक्षण-सर्वोपायैरात्मनः परित्राणम् तस्मिन् विषयसाधनस्य धनस्य अनुबन्धो यत्र भवति तत् संरक्षणानुबन्धि चतुर्थ रौद्रध्यानम् ४ । जीवे रौद्रध्यानमस्ति नवेति ज्ञानाय रौद्रध्यानस्य लक्षणं विवर्णयन्नाह-'रोदस्स णं' इत्यादि, 'रोदसणं माणस्स' रौद्रस्य खलु ध्यानस्य चत्वारि लक्खणा पन्नत्ता' चत्वारि-चतु: प्रकारकाणि लक्षणानि प्रज्ञप्तानि तदेवाह-'तं जहा' इत्यादिना 'तं जहा' तद्यथा'ओसन्नदोसे' ओसन्नदोषः 'ओसन्न' इति बाहुल्येनानुपरतत्वेन दोषः हिंसाझठ असत्य आदि बोलने का ही चिन्तन निरन्तर रहता है ऐसा ध्यान यह रौद्रध्यान का द्वितीय भेद है। 'तेयाणुबंधी' जिस ध्यान में चोरी करने के ही सम्बन्ध का निरन्तर चिन्तन चलता रहता है वह ध्यान स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान है यह रौद्रध्यान का तुतीय भेद है। 'सारक्ख. णाशुबंधी' संरक्षणानुबंधी रौद्रध्यान वह है कि जिसमें विषयों के साधन भूत धन के संरक्षण का निरन्तर चिन्तन रहता हो। जीव में रोद्रध्यान है अथवा नहीं है इस बात को जानने के ये चार लक्षण हैं-यही पात 'रोहस्सणं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता' इस सूत्रधारा सूत्रकार ने प्रकट की है-'तं जहा' वे लक्षण इस प्रकार से हैं-'ओसन्नदोसे' हिंसा अनुन अदत्तादान संरक्षण इनमें से कोई एक दोष का होना इसका नाम ओसन्नदोष है तात्पर्य इसका यही है कि जिसमें इन दोषों में જે ધ્યાનમાં જુહુ બેસવાનું જ હમેશાં ચિન્તન-વિચારી રહ્યા કરે છે. એવા २ ध्यान ध्यानना भी ले छे. २ 'वेयाणुबंधी' २ ध्यानमा यारी કરવાના સંબંધમાં જ કાયમ ચિત્વન રહ્યા કરે તે દયાન તેયાનુબંધી રૌદ્ર ध्यान उपाय छे. मा रौद्रध्यानना श्रीले छ. ३ 'सारक्खणाणबंधी' સંરક્ષણાનુબંધી રૌદ્રધ્યાન એ છે કે-જેમાં વિયેના સાધનભૂત ધનના સંર. ક્ષણનું નિરતર ચિંતવન રહ્યા કરે છે. ૪ જીવમાં ૌિદ્રધ્યાન છે? કે નથી ?
विषयने समरपान मा या सक्ष। छे. मे पात 'रोदस्त णं झाणस्स पसारि लक्खणा पन्नत्ता' मा सूत्रद्वारा सूत्रधारे प्रगट ३ छ. 'त जहा' तयार क्षमा प्रमाणे छ -'ओसमदोसे' हिंसा , सत्ताहान, સંરક્ષણઆ પૈકી કેઈપણ એક દેષનું હોવું તેનું નામ સન્ન દેશ છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-જેમાં આ દેશે પૈકી કઈ એક દોષ હોય
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬