Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०११ ध्यानस्वरूपनिरूपणम् ५३ स्रोऽनुप्रेक्षा भावनाः प्रज्ञप्ताः अनु-धर्मध्यानस्य पश्चात् प्रेक्षगानि पालोचनानि इति अनुक्षाः भावना इत्यर्थः, ततश्च चतस्रो वक्ष्यमाणरूपाः 'तं जहा' ताया'एगत्ताणुप्पेहा' एकत्वानुपेक्षा-आत्मना एकत्वानुप्रेक्षणमेकत्व भावनेत्यर्थः, 'अणि. चाणुप्पेहा' अनित्यानुप्रेक्षा-अनित्यभावनेत्यर्थः कायादीनामनित्यता चिन्तनम् । 'असरणाणुप्पेहा' अशरणानुमेक्षा-अशरणत्वपर्यालोचनं 'न कोपि ममशरणम्' इत्यादिरूपमित्यर्थः 'संसाराणुप्पेहा संसारानुभेक्षा चातुर्गतिकसंसारस्य परिभाणादि चिन्तनमित्यर्थः, सेयं चतुर्विधा अनुप्रेक्षा भवतीति । चतुर्थ शुक्लध्याचं निरूपयितुमाह-'मुक्के झाणे' इत्यादि. 'सुक्के झाणे चउबिहे चउप्पडोयारे देना यह धर्मकथा है । 'धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहामओ पन्नताओ' धर्मध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं कही गई हैं जो-तं जहा' इस प्रकार से हैं-धर्मध्यान के बाद में जिनका पर्यालोचन होता है उनका नाम अनुप्रेक्षा है। बारबार धर्मध्यान का चितवन करना यही इसका भाव है इनमें पहली अनुप्रेक्षा है 'एगत्ताणुप्पेहा' आस्मा का एकत्व रूप से चितवन करना उसका नाम एकत्वानुप्रेक्षा है 'अणिच्चाणुप्पेहा' शरीरादिकों की अनित्यता का चितवन करना इसका नाम अनित्यानुप्रेक्षा है। 'असरणाणुप्पेहा' संसार में मेरी रक्षा करने वाला कोई नहीं है में अशरण हूं-इत्यादि रूप से विचार करना अशरणानुप्रेक्षा है। 'संसाराणुप्पेहा' चतुर्गतिरूप संसार में परिभ्रमण करने का वारं. वार विचार करना यह संसरानुप्रेक्षा है. ___अब चौथे शुक्लध्यान की प्ररूपणा इस प्रकार से है-'सुक्के झाणे चउब्धिहे च उप्पडोयारे पण्णत्ते' शुक्लध्यान चार प्रकार का और धमध्याननी या२ अनुप्रेक्षा ४ छ. 'त जहा' ते मा प्रभारी छ.-धर्मધ્યાન પછી જેનું પર્યાયલોચન થાય છે, તેનું નામ અનુપ્રેક્ષા છે. વારંવાર ધર્મધ્યાનનું ચિંત્વન કરવું એજ તેને ભાવાર્થ છે. તેમાં પહેલી અનુપ્રેક્ષા या प्रमाणे छे.-'एगत्ताणुप्पेहा' मात्भानु १३५२ यिवन छ, तन नाम मेवानुप्रेक्षा छे. 'अणिच्चाणुप्पेहा' शरी२ विगेरेना अनित्यानु शिवन ४२७ तनुं नाम भनित्यानुप्रेक्षा छ. 'असरणाणुप्पेहा' गतमा भारी રક્ષા કરવાવાળું કેઈ નથી. હું અશરણું છું વિગેરે પ્રકારથી વિચાર કરે ते अशानुप्रेक्षा छ. 'संसाराणुप्पेहा' यतुगत ३५ संसारमा परिश्रम કરવાને વારંવાર વિચાર કરે તે સંસારાનુપ્રેક્ષા છે.
वे यथा शुसध्यान नि३५ ४२वामा माछ-'सुक्के झाणे चविहे चउप्पड़ोयारे पण्णत्ते' शुतध्यान यार Rनु मन यार सक्षम भतार
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬