Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०५ द्वादशं कालद्वारनिरूपणम् ११७ इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जमण संतिभावं पडुच्च णो सुसमसुपमापडिमागे होज्जा' जन्म सद्भावं प्रतीत्य-जन्मसद्भावमपेक्ष्येत्यर्थः नो सुषमासुषमा पति. भागे भवेत् 'जहेव पुलाए जाव समसुसमापलिभागे होज्जा' यथैव पुलाको यावत् दुष्षमसुषमापतिभागे भवेत् अत्र यावत्पदेन-नो सुषमाप्रतिभागे भवेत्-नो सुषमदुष्षमाप्रतिभागे भवेनदनयोः संग्रहो भवतीति । 'साहरणं पडुच्च अन्नयरे पलिभागे होज्जा' संहरणं प्रतीत्य अन्यतरस्मिन् प्रतिभागे भवेत् संहरणापेक्षया तु. एषु यस्मिन् कस्मिंश्चिदेकस्मिन् काले भवेदित्यर्थः । 'जहा बउसे एवं पडिसेवणा कुसीले वि' यथा बकुशः एवं प्रतिसेवनाकुशीलोऽपि । प्रतिसेवना कुशीलोऽपि सुषमदुष्षमा के सामन काल में होता है ? अथवा दुष्पमसुषमा के समान काल में होता है इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! जम्म णं संतिभावं पडुच्च णो सुसमसुसमा पडिभागे होज्जा' हे गौतम ! जन्म
और सद्भाव की अपेक्षा करके वह बकुश सुषमसुषमा के समान काल में उत्पन्न नहीं होता है और न पाया जाता है 'जहेव पुलाए जाव दुस्समतुसमा पलिभागे होज्जा' इत्यादि समस्त कथन पुलाक के कथन जैसा ही जानना चाहिये । 'जाव दुस्समसुसमा पलिभागे होज्जा' यावत् वह दुषमसुषमा के समान काल में होता है। यहां यावत्पद से 'नो सुषमा प्रतिभागे भवेत् नो सुषमदुरुषमाप्रतिभागे भवेत्' इन दो पदों का संग्रह हुआ है। 'साहरणं पडुच्च अन्नयरे पलिमागे होज्जा' संहरण की अपेक्षा वह किसी भी काल में हो सकता है। 'जहा बउसे एवं पडिसेवणा कुसीले वि' जैसा कथन बकुश के सम्ध સુષમાના સમાન કાળમાં હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गायमा ! जम्मणं संतिभावं पडुच्च णों सुसमसुसमापडिभागे होज्जा' गीतम! જન્મ અને સદ્ભાવની અપેક્ષાથી તે બકુશ સુષમ સુષમાના સમાન કાળમાં 6पन्न यता नथी. भन त प्रमाणे डरता ५ नथी. 'जहेव पुलाए जाव दुरसमसुसमापलिभागे होज्जा' विगेरे सघणु थन माना ४थन प्रभारी र समान. 'जाव दुस्समसुसमा पडिभागे होज्जा' यापत्त षभ सुषमाना समान मा डाय छे. महीयां यात्५४थी नों सुषमा प्रतिभागे भवेत् नो सुषमदुष्षमाप्रतिभागे भवेत्' मा मे पहानी सड थये। छे. 'साहरणं पडुच्च अन्नयरे पलिभागे होज्जा' ७२६४नी अपेक्षाथी ते ५५ सप छे. 'जहा बउसे एवं पडिसेवणाकुसीले वि' मना मारे
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬