Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे भवेत । पुनः प्रश्न यति जइ सलेस्से होजना से णं भंते ! करसु लेस्सासु होज्जा' यदि स्नातकः सलेश्यो भवेत् स खलु भदन्त ! कतिषु लेश्यासु भवेत् भगानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगाए परमसुक्कलेस्साए होज्ना' एकस्यां परमशुक्ल लेश्यायां भवेत् शुक्लध्यानतृतीयभेदावसरे या लेश्या सा परमशुक्ललेश्या अन्यसमयेतु शुक्लैव सापि इतरजीवशुक्ललेश्यापेक्षया स्नातकस्य परमशुक्ला इति ।मु०९॥
___विंशतितम परिणामद्वारमाह-'पुलाएणं भंते' इत्यादि,
मूलम्-पुलाए णं भंते ! किं वड्डमाणपरिणामे होज्जा हीयमाणपरिणामे होज्जा अववियपरिणामे होज्जा ? गोयमा ! बमाणपरिणामे वा होज्जा हीयमाणपरिणामे वा होज्जा अवट्रियपरिणामे वा होज्जा। एवं जाव कसायकुसीले। णियंठे थे पुच्छा गोयमा वडमाणपरिणामे होज्जा णो हीयमाणपरिणामे होज्जा अवट्ठियपरिणामे वा होज्जा एवं सिणाए वि। पुलाए होज्जा' हे गौतम ! वह स्नातक लेश्यावाला भी होता है और चिनालेश्या का भी होता है। 'जह सलेस्से होज्जा से णं भंते ! कासु लेसासु होज्जा' हे भदन्त ! यदि वह सलेश्य होता है तो किस लेश्यावाला होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! एगाए परम सुकलेस्साए होज्जा' हे गौतम ! वह एक परम शुक्ललेश्यावाला होता है शुक्लध्यान के तृतीय भेद के समय जो लेश्या होती है वह परमशुक्ललेश्या कहलाती है। इसके सिवाय अन्य समय में शुक्ललेझ्या ही होती है। परन्तु वह भी अन्य जीवों की शुक्ललेश्या की अपेक्षा स्नातक के परमशुक्ल कही गई है॥सू०९॥
लेण्याद्वार का कथन समाप्त मन वेश्या विनना ५५५ डाय छे. 'जइ सलेस्से होजा से णं भंते ! कइसु लेस्सासु होज्जा' पन्ने ते वेश्या सहित हाय छे, तो वेश्यावाणा डाय छे? उत्तरमा प्रभुश्री छ -'गोयमा ! एगाए परमसुक्कलेस्साए होज्जा' હે ગૌતમ ! તે એક પરમ શુકલ લેશ્યાવાળા હોય છે. શુકલધ્યાનના ત્રીજા ભેદના સમયે જે વેશ્યા હોય છે, તે પરમ શુકલેશ્યા કહેવાય છે તે સિવાય અન્ય સમયમાં શુકલ લેસ્પા જ હોય છે, પરંતુ તે પણ અન્ય જીની લેશ્યાની અપેક્ષાએ સ્નાતકને પરમ શુકલ લેફ્સા કહી છે. એ રીતે આ લેશ્યા દ્વારનું કથન કરેલ છે. સૂ૦ લા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૬