Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
ममेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सूot० विशतितम परिमाणद्वारम् २०१ कर्मपकृतीरुदीरयम् आयुष्कवेदनीवर्जिताः षट्कर्मप्रकृतीरुदीरयनीति मानः । 'कसायकुसीले पुच्छा' कषायकुशीलः खल भदन्त ! कति कर्मपकतीरुदीरयनीति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सत्तविह उदीरए वा-अट्टविह उदीरए वा छब्धिह उदीरए वा पंचविह उदीरए वा' सप्तविध फर्मप्रकृतेरुदीरको वा अष्टविधप्रकृतेरुहीरको वा ट्विधर्मपतेरुदीरको वा पश्यविधकर्मपकृतेरुदीरको वा भवति, तत्र 'सत उदीरेमाणे आउयवज्माओ सक्त कम्मपगडीओ उदीरेई' सप्तकर्मप्रकुनीरुदीरयन् कषायकुशीलः आयुष्कपर्जिता' सप्तकर्मपकृतीरुदीरयति, 'अट्ट उदीरेमाणे पडिपुनाओ अट्ट कम्मपगडीओ उदो' कर्म प्रकृतियों काउदीरक होता है। और जब यह छह कर्मपतियों का उदीरक होता है तब यह आयु और वेदनीय कर्म प्रकृतियों को छोड़कर शेष ज्ञानावरण, दर्शनावरण मोहनीय, नाम, गोत्र और अन्न. राय इन ६ कर्मप्रकृतियों का उदीरक होता है। 'कसायकुतीले पुछा' हे भदन्त ! कषायकुशील कितनी कमप्रकृतियों की उदीरणा करताहै ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयना ! सत्तविह उदरिए वा, अ. बिह उदीरए वा, छवियह उदीरए वा, पंचविह उदीरए वा' हे गौतम ! कषायकुशील सात प्रकार की कर्म प्रकृतियों का आठ प्रकार की कर्म कर्मप्रकृतियों का छह प्रकार की कर्मप्रकृतियों का अथवा पांच प्रकार की कर्म प्रकृतियों का उदीरक होता है। 'मत्त उदीरेमाणे आउघबज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ उदेरेइ' जब यह मात कर्म प्रकृतियों का उदीरक होता है तब यह आयुकर्म को छोड कर सातकर्म प्रकृतियों કરે છે, ત્યારે તે પૂરેપૂરી આઠે કર્મ પ્રકૃતિની ઉદીરણા કરે છે. અને જ્યારે છ કમ પ્રકૃતિની ઉદીરણા કરે છે, ત્યારે તે આયુ અને વેદનીય કમ પ્રકૃતિને છેડીને બાકીની જ્ઞાનાવરણ, દર્શનાવરણ, મેહનીય, નામ, मात्र, मने मत२.५ २५! ७ 3 प्रतियनी हीर! ४२२. 'कसायकुसीले पुच्छा' मा पाय शीत टमी ४ प्रतियोनी ही२६॥ ४२१ मा प्रश्न उत्तर प्रभुश्री ३ छ है-'गोयमा ! सत्तविह उदीरए वा अतृविह उदीरए वा, छव्विह उदीरए वा, पंचविह उदीरप वा' हे गौतम ! षाय अशी સાત પ્રકારની કમ પ્રકૃતિની ઉદી કરે છે કે આઠ પ્રકારની કર્મ પ્રકતિની ઉદીરણું કરે છે, અથવા છ પ્રકારની કર્મ પ્રકૃતિની કે પાંચ अरनी ४ प्रतियोनी ही२५ ४२ छे. 'सत्त उदीरेमाणे आउयवजाथो सत्त कम्मपगडीओ उदीरेइ' या ते सात प्रतियोनी ही२५। रे, ત્યારે તે આયુકર્મને છેડીને સાત કમ પ્રકૃતિની ઉદીરણું કરે છે “ગર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬