Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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________________ 240 भगवतीसूत्रे खेज्जेसु भागेसु होज्जा' लोकस्यासंख्येयेषु भागेषु भवेत्-अथवा 'सबलोए होज्जा' सर्वलो के भवेत् इति प्रश्ना, भगवानाह-गोरमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो संखेज्जइ भागे होज्जा' नो लोकाकाशस्य संख्याते भागे भवेत् पुलाकोऽपि तु 'असंखेज्जहभागे होज्जा' लोकाकाशस्यासंख्यातमागे भवेत् पुलाकशरीरस्य लोकासंख्येयभागमानावगाहित्वात् / ‘णो संखेज्जेसु भागेम होज्जा' नो संख्यालेषु भागेषु भवेत् ‘णो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा' नो लोका काशस्यासंख्यानेषु भागेषु भवेत् पुलाका, 'जो सालोए होना' नो सर्वलो के व्याप्तो भवेत् पुलाक इति / एवं जाब णियठे' एवं पुलाकव देव यावत् निर्ग्रन्थः, अत्र यावत्पदेन बकुशपतिसेवनाकुशीलकवायकुशीलना संग्रहो भवति तथा च में रहता है / अथवा 'असंखेज्जेसु भागेसु मोजजा असंख्यात भागों में रहता है ? अथवा 'सबलोए होज्जा' समस्त लोक में रहता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! णो संखेजह भागे होऊजा' हे गौतम पुलाक लोक के संख्यातवें भाग में नहीं रहता है 'असंखेज्जइ भागे होज्जा किन्तु लोक के असंख्यातवें भाग में रहता है। इसी प्रकार वह 'णो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा णे असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा' लोक के संख्यात भागों में भी नहीं रहता है और न लोक के असंख्यात भागों में भी रहता है तथा 'णा सव्वलोए होजा' संपूर्णलोक में भी नहीं होता है। पुलाक लेोकाकाश के असंख्यातवें भाग में रहता है ऐसा जो कहा है वह पुलाक के शरीर को लेकर कहा गया है। क्योंकि पुलाक का शरीर लोकालाश के असंख्यातवें भाग मात्र में अपनाही होता है / 'एवं जाब णियंठे' इसी प्रकार का कथन बकुश अथवा 'असंखेज्जेसु भागेसु होजा' असण्यात मागीमा यथा 'सव्वलोए होज्जा' स भा 2 छ 1 मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ :'गोयमा! णो संखेज्जइभागे होजा' गौतम! yas ना समयातमा लामा रहेता नथी. 'असंखेज्जभागे होज्जा' परतुना मध्यातमा लामा 29 छ. मेगा रीते ‘णो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, णो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा' साना सयातभा मागाभा 54 २हता नथी. मन माना અસંખ્યાતમા ભાગોમાં પણ રહેતા નથી. પુલાક કાકાશના અસંખ્યાતમા ભાગમાં રહે છે. એવું જે કહેલ છે. તે મુલાકના શરીરને લઈને કહેલ છે. કેમકે પુલાકનું શરીર લોકાકાશના અસંખ્યાતમા ભાગ માત્રમાં અવગાહનાवाडाय छे 'एव जाव णियंठे' से प्रमाणेनु' ४५न मश, प्रतिसेवन! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : 16