Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ २०१० विंशतितम परिमाणद्वारम् १९३ कर्मप्रकृतीनां बंधको वा भवति बकुशः, 'अविबंधए वा' अष्टविध कर्मप्रकृतीनां पन्धको वा भवति । 'सतवमाणे आउयवजाओ सत्तकम्मपगडीमो बंबई सासकर्मपकृतीवघ्नन् आयुष्कवर्जिताः सप्तकर्मपकृती बध्नाति वकुशः, 'अट्ट बंधमाणे पडिपुत्राओ अट्ट कम्मपगडीओ बंधइ' अष्टकर्मप्रकृती बनिन् परिपूर्माः सर्वा अष्ट. कर्मप्रकृतीबध्नाति बकुशः, त्रिभागावशेषायुपो हि जीवा आयुषो बन्धनं कुर्वन्तीति त्रिभागद्वये आयुषो बन्धनं कुर्वन्तीति कृत्वा बकुशः सप्तानामष्टानां वा कर्मणां बन्धको भवतीति । 'एवं पडि सेवणाकुसीलेषि' एवम्-बकुशवदेव प्रतिसेवना. कुशीलोऽपि सप्तानामष्टानां वा कर्मप्रकृतीनां बन्धको भातीति । 'कसायकुसीले. कहते हैं-'गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अविहबंधए वा' हे गौतम ! वकुश के सात प्रकृतियों का अथवा आठ कर्मप्रकृतियों का बन्ध होना है। 'सत्त बंधमाणे आउयवजाभो सत्तकम्पपगडीओ बंधई' जब उसके सात कर्मप्रकृतियों का पन्ध होता है, तब वह आयु कर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का बन्ध करता है । 'अद्वयनमाणे पडि. पुषाओ अट्टकम्मपगडीओ बंधह' और जब उसके आठकर्म प्रकृतियों का बन्ध होता है-तब वह सम्पूर्ण आठ कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है । जीवों को अगले भवकी आयु का बन्ध वर्तमानकाल आयु के विभाग में होता है। यदि त्रिभाग में आयु का बन्ध न हो तो अव. शिष्ट तृतीय भाग में जब दो भाग समाप्त हो जाते हैं तब आयु का बन्ध होता है किन्तु आदि के दो भागों में आयु का बन्ध नहीं होता है, इसी विचार को लेकर बकुश सात अथवा आठ कर्म प्रकृतियों का बन्धक कहा गया है । 'एवं पडिसे वणाकुसीले वि' इसी प्रकार मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा! सत्तविहबंधए वा अदविह बंधए वा' है गीतम! अशने सात में प्रकृतियाना अथ। भाभप्र. तियाना हाय छे. 'सत्त बंधमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मपगडीओ बंधा'
જ્યારે તેને સાત કર્મ પ્રકૃતીને બંધ થાય છે, ત્યારે તે આયુકમને છોડીને मीनी सात प्रतिमा म ४२ छ ‘अट्ठ बंधमाणे पडिपुन्नाओ अट सम्म पगडीओ बंधइ' भने न्यारे तन माह में प्रतियोनी मय थाय छे, त्यारे તે સંપૂર્ણ આઠ કર્મ પ્રકૃતિને બંધ કરે છે. જીવને આયુનો બંધ ત્રણ ભાગોમાં હોય છે. જે ત્રણ ભાગમાં આયુને બંધ ન હોય તે બાકીના ત્રીજા ભાગના બે ભાગ જ્યારે સમાપ્ત થઈ જાય છે, ત્યારે આયુને બંધ થતું નથી. આજ વિચારને લઈને બકુશને સાત અથવા આઠ કર્મ પ્રકૃતિને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧