Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ सू० ३८ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम्
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विष्टानां वा निमन्त्रयताम् अनिमन्त्रयतां वा अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा लाभे सति न प्रतिगृह्णीयात् इति ब्रवीमि ॥ सू० ३८ ।। तृतीयोद्देशः समाप्तः ।
टीका-अथ चक्रवर्तिभृतिकुलेषु साधुसाध्वीनां भिक्षाग्रहणनिषेधमाह - ' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स पूर्वोक्तो भिक्षुः साधुर्वा मिक्षुको साध्वी वा 'से जाई पुण कुलाई जाणिज्जा' अथ यानि पुनः कुलानि वक्ष्यमणरूपाणि जानीयात् - भवगच्छेत् तथाहि 'तं जहा खत्तियाण वा राईण वा कुराईण वा' तानि यथा क्षत्रियाणां वा चक्रवर्ति वासुदेवबलदेवमृntatar कुलानि राज्ञां वा-क्षत्रियभिन्नानां वा नृपतीनां कुलानि, कुराज्ञां वा प्रत्यन्तवर्तिनृपतीनाम् एकदेशरूपप्रान्तवर्तिराज्ञां कुलानि 'रायपेसियाण वा' राजप्रेष्याणां वा दण्डपाशिकप्रभृतीनां कुलानि 'रायवसहियाण वा' राजवंश स्थितानां वा राजप्तम्बन्धिनां राज्ञो - मातुलभागिनेयप्रभृतीनां कुलानि यदि साधुर्जानीयात् तर्हि एतेषां कुलेषु जनानां यातायाताधिक्येन ईयसमितिपालना संभवेन संयमविराधनासंभवात् भिक्षार्थं न प्रविशेदित्यर्थः,
टीकार्य - अब चक्रवर्ती सार्वभौम राजा वगैरह के घर में साधु और साध्वी को भिक्षा नहीं लेनी चाहिये यह बतलाते हैं-' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' से वह पूर्वोक्त भाव साधु और भाव साध्वी, 'से जाई पुण कुलाई जाणिज्जा' वह यदि जिन कुलों को वक्ष्यमाण रीति से जानले कि 'तं जहा' जैसे की 'ख यावा राइण वा कुराइण वा, रायपेसियाण वा रायवंसट्ठियाण वा' - वे कुल चाहे क्षत्रियों चक्रवर्ति वासुदेव बलदेव वगैरह का हा अथवा उक्त क्षत्रियों चक्रवर्तवासुदेव बलदेव वगैरह से भिन्न राजाओं का हो या कुराजाओं माने प्रान्त एक देशीय छोटे छोटे राजाओं का कुल हो, या राज प्रेष्यों-दण्ड पाशिक वगैरह का कुल हो, अथवा राजवंश स्थितो -राजसम्बन्धियों राजा के मातुल 'मामा' भाञ्जा वगैरह का कुल हो, इस सभी क्षत्रियादि कुलों को जानकर भिक्षा लेने के लिये इन कुलों में नहीं जाय क्योंकि इन कुलों में जाने से मनुष्यों के
હવે ચક્રવતિ સા`ભૌમ રાજા વિગેરેના ઘરમાંથી સાધુ કે સાધ્વીએ ભિક્ષા લેવાને નિષેધ કરતાં સૂત્રકાર કહે છે.
टीअर्थ - ' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा ते पूर्वास्त साधु साध्वी 'से जाईपुण कुलाई आणिज्जा' ने मुझे मेवी रीते लगी से 'तं जहां' प्रेम 'खत्तियाण वा' क्षत्रियो यवर्तिना होय अथवा साधारण क्षत्रियोना होय 'राईण वा' राजमोना होय तथा 'कुराईण वा ' रालय अर्थात् नाना नाना रामसोना मुल होय अथवा 'रायपेसियाण वा' राप्रेव्यौंड
पाश विगेरेना डुण होय अथवा 'रायवसद्वियाण वा' राजयोना संभ ंधियो भेटले રાજાના મામા કે ભાણેજ વિગેરેના કુળ હાય આ સઘળા ક્ષત્રિયાદિ કુળને જાણીને
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪