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ਇਸ ਆਰਗ ਕਰ दिनदन पनिाथ टाळो
आशीर्वाददाता कच्छचांगड देशोद्वारका प.पू. आ. देव कलापूर्ण सूरीश्वरजी महाराज साहेब
प.पू. गुरुदेवश्री सा. दिनकरश्रीजी म.सा.
संकलनका पादरा- पचू सा दिनमणिश्रीजी म.सा.
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श्री प्राचीन चैत्यवंदन स्तुति, स्तवन पर्वतिथि ढालो
88885653933
83809383338
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रसथाळ
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श्री शत्रुजय तीर्थपति श्री आदिनाथ परमात्मने नमः
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Informa...
सौजन्य श्रीमती कलाबेन मनुभाई शा. । वडिल भगिनी कुसुमबेन अमृतलाल श सौ. आशाबेन बाबुलाल शा. बा. ब्र. लताबेन बुधालाल शा./ सौ. भारतीबेन वस्तुपालभाई शा.. स्व. बुद्धिबेन, बुधालाल, सौ. सुधाबेन तेजपालभाई शा. मंछाराम सह परिवार सौ. शोभाबेन कुमारपालभाई शा. दहीसर (वेस्ट) मुंबई, बरोडा, कोल्हापर
परम विदुषि सा. दिनमणि श्रीनी म.सा. ना ४७ वर्षना सुदीर्घ संयम पर्याय निमित्त
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"॥ श्री शत्रुजय महातीर्थाय नमः ॥ ॥ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ॥ T
॥श्री अनंत लब्धि निधानाय श्री गौतमस्वामीने नमः ॥ ॥ श्री पद्म-जीत-हीर-कनक देवेन्द्र-कंचन-कलापूर्ण-कलाप्रभ सू. सद्गुरुभ्यो नमः ॥
श्री चैत्यवंदन, स्तुति, स्तवन, पर्वतिथि ढाळ
रसथाळ)
: शुभाषिष दाता : प.पू. अध्यात्मयोगी श्री. वि. आ.दे. श्री कलापूर्ण सू० म.सा. प.पू. मधुरभाषी श्री. वि. आ. दे. श्री कलाप्रभ सू० म.सा.
: संपादिका : परम विदुषी० सा० दिनमणि श्रीजी म० सा०
: शुभ आलंबन : पू० सा० श्री० दिनमणिश्रीजी म० सा० ना ४७ वर्षना
. सुदीर्घ संयम पर्याय निमित्ते :
.श्रीमान श० श्री महाल-भायखला मुम्बइ
.: प्रकाशक : श्रीमान शेठ श्री धनेशभाई पुखराजजी सांकरीया (वांकली-राज०)
हाल-भायखला मुम्बइ
न
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आवृति: ४थी नकल : 1000
विक्रम संवत 2057 अषाड सुद-5, सोमवार, ता. 25-6-2001
प्राप्तिस्थान
:
धनेशभाई पी० जैन
पुखराजजी वर्धीचंदजी सांकरीया,
बी- 905, शत्रुंजय दर्शन, लवलेन भायखला,
मुंबई - 400027
फोन नं. 022-37 19 210 (R)
022-20 12 862 (0)
मूल्य : 140
मुद्रक : नीलम प्रीन्टरी
६७, कन्याशाला, शोपिंग सेन्टर,
पालीताणा -- 364270 फोन : 42040
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प्रस्तावना
अक्षरोथी उकेलाय नहिं, शब्दोथी समजाय नहिं
बुद्धिथी पमाय नहिं एबुं गूढतम तत्त्व जो कोई होय तो ते भक्ति तत्त्व छ। बहु कठीन छे भक्ति मार्ग- एने उकेलवा समजवाके तेनी सफर करवी सहेली नथी। लोकोनी लोकमान्यता के आम जनता भले आ भक्तिमार्गने सरल मार्ग मानती होय। अने तेने माटे ज्ञान मार्ग झंझेट भर्यो लागे छे, ध्यान मार्गने एकलवायो गणे के तपमार्गने शुष्क पानखरीयो पंथ कहे पण चिंतकोनी दृष्टिए भक्तिमार्गने ते सर्वाधिक कठीन मार्ग कहे छे। कारण ज्ञान मार्गमां बुद्धि प्रयोग छे जे बहु सरल छे, ध्यानमार्गमां मननो निरोध छे जे प्रयत्नथी साध्य छे। तप ने करनारा लाखोनी संख्यामां आजना कलियुगमां पण जोवा मले छे। आहारने छोडवू पण सरल छे भक्तिमार्गमां........पण भक्तिमार्गमां तो हृदयनी जरूर पडे छे।
कारण.........भक्तिमार्ग ए आंतरिक संवेदन-भीतरी वेदननो मार्ग छे।
कमल जेवा कोमळ हृदयने भकितमा जोडवू ओतप्रोत करवू ए आ विषम संसारमा कठिनतम कार्य छे "ज्ञान हृदय विहोणुं होई शके, ध्यान हृदय विहोणुं होई शके, तप पण हृदय विहोणुं थई शके पण भक्ति हृदय विहोणी थई ज न शके। अने आईं भक्ति सभर हृदय बधा पासे होय ज तेवू पण नथी। हृदय होय तेमां हार्दिकताभाव जगाववो-लाववो सरल नथी।
वरसाद एकनो एक पण झीलनार पर घणो आधार । स्तुति-स्तवन एकना एक, पण एना गानार पर आधार नानुं सरखं पद-स्तुति के स्तवन ज्यारे सुर तालने झलक साथे सुमधुर कंठे गवाय छे त्यारे तेमांथी प्रगट थती अनेक शक्तिओनुं संचार थतो गानारने अनुभवाय छेसांभळनार पण झुमी उठे छे माटे ज परमात्मानी भक्ति साथे स्तुति
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स्तवनादि द्वारा संगीतनुं संयोजन करवामां आव्यं छे हा संगीतमां मस्ती अने मस्तीमां भक्ति जमाववानी शक्ति भारोभार रहेली छे । - भक्तिमार्ग ए साचो जीवननो- कार्डियोग्राम छे। जेमां विरोध वगरनो बधानो निरोध थई जाय छे। ___ भक्तिमार्ग ए प्रसन्नतानो मार्ग छे आवी भक्तिनुं माध्यम छे शब्दो, ज्यारे तेमां भाव मले छे त्यारे तेमांथी स्तुति-स्तवन-सज्झायादिनो जन्म थाय छे।
-आवा भाववाही प्राचीन स्तुति-स्तवनो-सज्झायादिनो विविध संग्रह करीने 'भक्तिनो रसथाळ' प्रस्तुत पुस्तकमां प्रकाशित करवामां आव्युं छे। अने ते सरल एवी हिन्दी भाषामां देश-विदेश दक्षिणतमिलनाडु, कर्णाटक आंध्र वि० महाराष्ट्र-राजस्थान वि० प्रदेशोमां विचरता जणायुं के श्री राजस्थानी समाजमां राजस्थानी वर्गने (बाल
आबाल वृद्धने) भक्तिमार्गमा जोडवो होय, परमकृपालु परमात्मा साथे मिलन कराववो होय तो हिन्दी पुस्तकोनी आवश्यकता विशेष प्रमाणमां छे मांग विशेष छ। ए हेतुने लक्ष्यमां राखीने आ पुस्तक--आ रसथाळनुं प्रकाशन करवामां आव्युं छे। आशा छे भक्तिमार्गना चाहकोने विशेष उपयोगी बनशे ज।
परमकृपालु परमात्मानी आज्ञा विरुद्ध भक्तिमार्गना आशय विरुद्ध कई पण लखायुं होय तो ते बदल हार्दिक मिच्छामिदुक्कडं याचुं ।
आ रसथाळ प्रकाशनमां नामि - अनामि अनेक पुण्यशाली आत्माओना सहयोग दानथी तेम ज साधु साध्वीजी भगवंतोना अभ्यासार्थे विविध संघोनी संस्थाओए पोताना अमुल्य ज्ञान खातामांथी श्रुतभक्ति अर्थे दानना सुंदर प्रवाहनां सहयोगथी संपन्न बन्यो छे।
तो चालो भक्तियोगने साधी ल्यो । भवोभवना पापतिमिरने हरी ल्यो। गुरूकृपाकांक्षिणी सा० दिनमणीश्रीजी
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संयममूर्ति परम पूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय कनक सूरीश्वरजी म.सा. जन्म : सं. १९३९, पलांस्वा, कच्छ वागड दीक्षा : सं. १९६२, भीमासर, कच्छ वागड पंन्यास पद: सं. १९७६, पालीताणा तीर्थ उपाध्याय पद : सं. १९८५, भोयणी तीर्थ आचार्य पद : सं. १९८९, अमदावाद स्वर्गवास : सं. २०११, भचाउ, कच्छ वागड
प.पू. संयममूर्ति १००४ आचार्यदेवश्री देवेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. स्वर्गवास : सं. २०२९, चैत्र सुद १४, अधोई, कच्छ वागड
त्यागमूर्ति श्री कंचन विजयजी म.सा. जन्म : सं. १९३९, कारतक सुद १४, फलोंधी दीक्षा : सं. १९९४, वैशाख सुद १३, कच्छ भूज स्वर्गवास : सं. २०२८, कारतक वद २, कच्छ भचाउ
सौजन्य (१) सौ. मणीबेन प्रेमजीभाई मेघजीभाई गींदरा परिवार
गाम कच्छ भरुडिया हाल थाणा - मुंबई
(२) सौ. पार्वतीबेन हरखचंदभाई वाघजी गींदरा परिवार
गाम कच्छ ॐ
(३) सौ. अमृतबेन वेलजीभाई नरशी शा परिवार
गाम कच्छ आधोई हाल थाणा वेस्ट मुंबई - नागरिक स्टोर
परम विदुषी सा. दिनामणि श्रीजी म.सा.ना ४७ वर्ष सुदीर्घ संयामा पर्याय निमिले
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प्रकाशकनी कलमे
आ एक अलौकिक खजानो छ। प्राचीन महापुरुषोना मुखकमलमांथी नीकळेला अंतरना भाववाही शब्दो थी गुंथायेला, इहभव-परभवना अमुलख भाथा तुल्य नाना विध प्राचीन स्तुति-स्तवनचैत्यवंदनादिथी संग्रहायेलो रसथाळ छे। जेना आस्वादे मोहनीयादि आठे कर्मोना चुरा थई जाय छे । आत्माने सुरक्षित बनावी दे छे। तेवा आ रसथाळना सुप्रेरीका..........
जे वागड समुदायनी उज्वल परंपराने चलावनारा कच्छ वागड - भरुडीयानगरना प्रांगणे संयमरुपी कमल विकस्वर थतां बन्या परम ज्योतिर्विद पूज्य । दादाश्री पद्म विजयजी म० सा० ते नी पाट परंपरा ए जेमनुं संसारमाथी मन फरी गयुं ने कर्मरुपी मल्लने जय करनारा मनफरा नगरना प्रशांत संयममूर्ति पूज्य दादाश्री जीतविजयजी म० सा० तपधर्मना हीरने उजाळनारा एवा दादाश्री पूज्य हीर विजयजी म०सा० सुवर्णनी कान्ति समान सच्चारित्र चुडामणी दादा गुरुदेवश्री पू० कनक सूरी म० सा० ओसवाळ अने गुर्जरनी भोळी भद्रिक प्रजामां सम्यग् धर्मनुं बीज रोपनारा परम क्रियारुचि पू० दादाश्री देवेन्द्र सूरि म० सा० अकिंचनत्वना आदर्श समान संयम निष्ठ पूज्य गुरुदेवश्री कंचन वि० म० सा०, आजीवन समर्पित सहुमां प्रिय बनेला पूज्य उपा० प्रिती वि० म० सा०, कर्म विपाकने सरलभावे प्रसन्नवदने झीलनारा पू० दर्शन वि० म० सा० अने आवी उज्वलाती उज्वल परंपराना वाहक पुण्य पुरुष जैन जगतना खूणे-खूणे, हैये-हैये, दिले दिले वसी गयेला, अजोड भक्तिरसना प्रणेता, जंगमतीर्थ स्वरूप अध्यात्मयोगी पूज्यपाद सद्गुरुदेवश्री श्री वि० आ० भ० कलापूर्ण सूरीश्वरजी म० साना आज्ञानुवर्तीनी ५००-५०० साध्वीजी वृंदना मूलाधार स्वरूप, परमवात्सल्यजननी, महाप्रवर्तीनी श्री आणंद माणेक्यरत्न चतुर-निर्मळ निर्जराश्रीजी म० सा० तथा वडिल भगीनी अने गुरुदेवश्री प० पू०
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दिनकरश्रीजी म० सा० ना सुशिष्या परम श्रद्धया परम विदुषि
सा० श्री दिनमणिश्रीजी म० सा० ना ४७ वर्षना सुदिर्घ पर्यायने अनुलक्षीने, तेओश्रीना हैयामां एक मात्र भावना..............
देव-देवेन्द्रो, राज-राजेश्वरो, योगीश्वरोथी पूजित-वंदित-आराधित आ सिद्धाचल महातीर्थ, परम पवित्र पूज्यपाद गुरुवर्यश्रीना पुनित सांनिध्यमां ३०-३० श्रमण भगवंतो ४३० श्रमणी भगवंतोनुं विशाल परिवारने १६०० आराधको साथे संवत २०५६ ना आ चातुर्मासना सुवर्ण संभारणा रुपे, तेम परोपकारनी भावनाथी आम जनताने पण पूज्यपादश्रीना चींधेला प्रियाति प्रियतम भक्तिमार्गमां सहुकोईने जोडवानी तमन्ना ते माटे अमारा राजस्थानी समाजनी वारंवार हिन्दी पुस्तकनी मांग वधता अमारी मांगने नजर सामे राखी अमने प्रभुभक्तिमय बनाववा आ पुस्तक- संपादन के जेमां विविध प्राचिन स्तुति-चैत्यवंदन- स्तवनादिनो संग्रह हिन्दी भाषामां करी अमारा पर अमाप उपकार कर्यो छे ए उपकारनी भावनाना प्रतिकरूपे अमारा परिवारने आ पुस्तक मां यत्किंचित श्रुतभक्तिनो लाभ मल्यो छे ते बदल धन्यता अनुभवीए छीए ।
तेम आ पुस्तकनुं सुंदर रीते प्रीन्टींग करनार 'नीलम प्रीन्टरी' ना पण अमो आभारी छीए।
आशा छे जे आ पुस्तकना माध्यमथी भक्ति करशे ते अवश्यमेव मुक्ति मंझीलने समीप पहोंचशे।
तो चालो............. मिले मन भीतर भगवाननी शोधमां........... डूबकी लगावीए........... रसथाळमां.
धनेशभाई पी० जैन राजस्थान वांकली गाम भायखला
मुंबई-400 027
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मध्यात्मयोगी पूज्य आचार्य श्री विजय कलापूर्ण सूरीश्वरजी म. सा.
जन्म: वि.सं. १९८० वै. सू. २ फलोदी, राजस्थान,
वडी दीक्षा: वि. सं. २०११ वै. सु. राधनपुर, उ. गुजरात.
आचार्य-पद: वि. सं. २०२९ मा.सु.३ भद्रेश्वर तीर्थ, कच्छ,
दीक्षा: वि. सं. २०१० वै. सु. १० | फलोदी, राजस्थान.
पन्यास-पद: वि.सं. २०२७ म. सु.१३ फलोदी, राजस्थान,
सौजन्य मातुश्री पुखइवेन शीवजीभाइ करमासीभाइ सत्रा हस्ते सौ मणीवन ढुंगरशीभाइ सत्रा
कच्छ वागड अरुडीया हाल घाटकोपर, मुंबई-८६
सारा चिषि सो. दिनणि श्रीजी म.सा. ना ४० वर्षना सुदीच संबग बर्याय निमित
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पू. आ. दे. कलापूर्ण सू. म. सा. गुणगान
भारतनी आभव्य भूमि परं, दिव्य विभूति नाम धरा, अपूर्व साधना त्याग तपस्यां, अध्यात्मयोगि कल्याण करा, सिद्धि पथना साधक गुरूवर, मिथ्यात्वने नित्यहरा, कलापूर्ण सूरी गुरूवर चरणे, श्री संघ वंदन भावभरा ।।१।। जिन शासनना साम्राज्यमां, चमका एक सितारा, कलापूर्ण सूरी गुरुराजने, वंदन कोटि हमारा, ।।२।। समदर्शी शीतल सदा, जिसकी अद्भुत चाल, ऐसे सद्गुरू कीजीए, जो पलमे करे निहाल ।।३।। जिनशासन के ओ ज्योतिर्धर, शासन के शणगार अध्यात्मयोगी आप गुरूवर, वंदन वार हजार, सर्व कला से पूर्ण गुरूवर, क्या गाए गुणगान, सर्वजीवो के हो हितचिंतक, जिनशासन की शान, ||४|| पावनकारी नाम छे जेनु, कलापूर्ण सूरिराज अगणित छे गुणवान गुरूवर, जिनशासन शिरताज ।।५।। सरल ह्रदयने सादु जीवन, करूणानी छे मुर्ति, समता रसना सागर ए छे, संयममां छे स्फूर्ति, ।।६।। सौम्य वदनने प्रसन्न मुद्रा, वहाल भरी छे वाणी, जेनुं दर्शन श्रवण करीने, धन्य बने भवि प्राणी, ||७|| लगनी एक ज छे जीवनमां, परमातम मिलननी, जीव बधा छे प्यारा जेने, तेना हित करणनी, ।।८।।
पू. आ. दे. कलापूर्ण सू. म. सा. गीत
___(राग-जहां डाल डाल पर) - गाम गाममां जेना नामे वागे विजय नगारां, आ छे गुरूदेव अमारा, पल पल जेना दिलमां वहेती, भक्ति रसनी धारा, कलापूर्ण सूरीधर प्यारा; (२)।।१।। बीज रोपायुं राजस्थाने, फूल विकस्युं कच्छमां, सुगंध प्रसरी सारा विश्वे, रविशा सोळे गच्छमां (२)।।२।। पाबुदान कुल पंकज दिनकर, खमा देवी दुलारा; ।। कलापूर्ण०।।२।। मारवाड मेवाड मालवा, सोरठ ने गुजराते, विचरी भव्यो तार्या अगणित, दइ उपदेश दिन राते. (२) शासन सेवा सारू सारी, धरती पर | फरनारा; ||कलापूर्ण०||३|| घोर अंधारू भौतिकतानु, व्याप्युं छे कलिकाले, प्रकाश तेमां करता, सम्यग्दर्शन केरी मशाले ।।२।। दशे दिशाए उमंगे जेना, लोक लगावे नारा, ।।कलापूर्ण।।४।। शाल भाल सुनिर्मल लोचन, सुप्रसन्न मुख मुद्रा, नहि म्लानि नहि ग्लानि क्यारे, नहि आळस नहिं तन्द्रा-२ प्रतिपल परमातम भजनारा, दुनियाथी जे रहे न्यारा, ।। कलापूर्ण०||५|| अध्यात्मयोगी प्रशान्तमूर्ति, अद्भूत किया स्फुर्ति, आत्मानुभूति विरल विभूति, विश्व विस्तृत कीर्ति-२ कहेतां | पार न आवे जेना, गुण छे अपरंपारा;|| कलापूर्ण०।६।। बालक बोले बल संयमनुं, आपो भव दुःख कापो, कला मुनि जीवननी शीखवी, मुक्ति महेले स्थापो, ह्रदयधारा ओगुरू प्यारा करूणाना छो क्यारा; ।। कलापूर्ण०।७।।
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ॐ ह्रीं श्री शQजय महातीर्थाय नमः श्री वीर-दान-प्रेम-रामचंद्र सूरी सद्गुरुभ्यो नमः
मारा संसारी पक्षे पू. पिताश्रीजी हाल प. पू. आ. दे. तपस्वीरत्न चंद्रोदय सरी म. सा. जीवन झलक
विश्वभरमां भारतनुं स्थान अनेक रीते अजोड ने बेनमुन आजे पण छे। भारतना कण कणमां प्राचिनता धार्मिकता आर्यसंस्कृतिना संस्कारोथी व्यापक छ ज पण विशेष तेनी व्यापक भूमि तरीके ख्याति मेळवेली होय तो ते राजस्थान मरुधर भूमि तरीके मारवाडनी याद सहज स्मृति पटमां आवीजाय ज्यां अनेक नर रत्नो, सत्वशाली-शूरवीरो थया छे तेवा राजस्थान- जवाइबांध स्टेशन पर- खीवान्दि गाम जे क्षमानंदि पण कहेवाय छ। ते नगरमां पोरवाल वंशीय बे भाई शोभाजी ने वाघाजी तेमां शोभाजीना पांच पुत्रोमांथी पांचमां पुत्र भेरोजीने ३ सुपुत्रो दलिचंदजी, जेठमलजी, गुलाबचंजी तेमां बीजा पुत्र जेठमलजीना कुलने ज नहिं पण जिनशासनने शोभावनारा जीवमात्रने शीतलता ज शीतलता आपवानो निर्धार जाणे गर्भमांथी ज करीने आ पृथ्वीतल पर धर्मपरायण सरलस्वभावी सुश्राविका गुलाबबेननी रत्नकुक्षीए वि० सं० १६७२ आसो सु० १४, २१-१०-१६१५ गुरुवारना शुभ चोघडिये एक शासन रत्न सुपुत्र चंदनमलजी ए जन्म लीधो। गुण तेवो नाम अने नाम तेवा गुण प्रमाणे स्वभावमा प्रेमनी सुवासने मैत्रीनी शीतलता आपवानी कळा जन्मथी ज हस्तगत् जाणे बनी होय तेम चंदनमलजी नाम सार्थक बन्यु।
भविष्यमां वैरागी बननार आत्मानो बाल्यकाळ पण अन्यथी जुदो तरी आवतो होय छे.-पुत्रना लक्षण पारणा मांथी ज परखाई जतां होय छे तेम चंदनमलजी माटे जणायुं ।
चंदनमलजीनो सामान्य व्यवहारिक ज्ञान ४ धोरण१ धर्म
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मा. श्री चन्द्रोदय सूरीश्वरजी म. सा. (रवीवादी रत्न) हा
जन्म: सं. १९७२ आसो सुद १४ दिनांक २१-१०-१९१५
-: दीक्षा :वि. सं. २०११ जेठ सुद ५ दिनांक २६-५-१९५५
-: गणिपद :वि.सं. २०४२ कारतक वद १० दिनांक २७-११-१९८६
-: पन्यासपद :वि.सं. २०४४ फागुन वद ३
दिनांक ६-३-१९८८
-: आचार्यपद :वि.सं. २०४६ वैशारव सुद६
दिनांक १९-५-१९९१
प. पू. आ. श्री कनकशेरखर सूरीश्वरजी म. सा.
-: जन्म :(वि.सं. १९९७ फागुन सुद ७ दिनांक ५-३-१९४१
-: दिक्षा :वि. सं. २०११ जेठ सुद ५
दिनांक २६-५-१९५५ -: गणि व पन्यासपद :वि. सं. २०४६ वैशाख सुद १२
दिनांक ६-५-१९९०
-: आचार्यपद :वि.सं. २०५० महा सुद८ दिनांक १९-२-१९९६
पवी शांतिलाल मनाजी शोभावत सौ. जीवीबाई शांतिलालजी शोभावत के
पनिमित्त से... शोभावत परिवार - खिवान्दि: वि.सं. २०५७ शोभावत ईन्डस्ट्रीझ, २२१, कृष्ण चोक, मुलनी जेठा मार्केट, मुंबई-४००००२.
फोन :- २०७९८८८, २०७९८८९ परम् विदषि सा. दिनमणि श्रीजी म. सा. नां ४७ वर्षना सुदीर्घ संयम पर्याय निमित्ते
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प्रत्येनी लागणी दिन-प्रतिदिन वृद्धि पामती जती हती। पण माता-पितानो प्रेम पुत्रने संसारमां चोंटाडी राखवानो होय तेम चंदनमलजीनी भवितव्यता पण कंईक एवी के १४ वर्षनी वये सं. १६८६ वै. सु. ६ना सांडेरावना वतनी उमेदमलजीना सुपुत्री जतनाबेन साथे लग्नग्रंथीथी जोडाया ___चंदनमलजी-जतनाबेननी रत्नकुक्षीए ३ पुत्री पर थयेल एक रुडोरुपाळो कुन्दन-सुवर्ण सम पुत्ररत्ननी प्राप्ति थता तेनुं नाम कुन्दनमलजी राख्युं । शान्ति-वसंति सुंदरी (डाही) पुत्रीना नाम रखाया। ___ इ. सं. १६४० मां रेल्वे आवी ते पहेला दादा भेरोजी साथे जेठमलजी, चंदनमलजी अमदावाद सुधी चालीने आव्यां पछी मुंबई ट्रेनमां आव्या। पिताश्रीए नलबजारमां सोना चांदिनी दुकान करी अने चंदनमलजी मित्र संगाथे कोल्हापुर लक्ष्मीपुरीमा दादा मुनिसुव्रत स्वामिनी प्रतिष्ठा प्रसंगे प. पू. आ.दे. प्रेम सू. म. सा. ने ते समये प. पू. पन्यासजी रामविजयजी गणिनी शुभ निश्रामां आव्या। ते समये तेमनी वैराग्य सभर जिनवाणी, श्रवण करतां करतां संयमनी भावनानुं बीज रोपायुं ।
त्यारबाद उत्तरोत्तर संयमनी भावनाने पुष्ट बनाववा जेम सूर्योदय थतां ज सूर्यमुखी पुष्प खीलवा लागे तेम पूज्यश्रीना दर्शन अने जिनवाणी श्रवणथी अंतरात्मामां रोपायेलुं संयम भावनारुपी बीजनां अंकुरा फुलवा फालवा लाग्या।
त्यारबाद गुरु महाराज पासे ज्यारे पोताना मनना मनोरथो जणाव्या त्यारे गुरुमहाराजे पुछताछ करता संसार मंडायेलो छे जाणी कर्वा केम पाछळ परिवारनी शुं व्यवस्था विचारी छे ? तारे एकलाए संयमरुपी मोदकनो स्वाद माणवो छे? सारामां सारी मीठाई जेम बालकने-- परिवारने अपाय तो शुं तारे ते स्वाद नथी चखाडवो ? बस, गुरु महाराजना आटला वचनामृतो काफी बनी गया। संसारना मोहमायानां झेरनुं वमन करीने संयमना अमृतपान पीवानां पोताना शमणां तो तीव्रतम बन्यां पण साथे-साथे संपूर्ण परिवारने ते अमृतपान कराववाना
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कोड जाग्यां। संपूर्ण परिवारने संयम रंगथी रंगी देवाना वैराग्यजळथी सिंचन करवाना उत्तम मनोरथ साथे सं० १६६६मा वर्षीतप चालु कोने परिवारने साथे लई पालीताणा जवा माटे तेम योग्य साध्वीजी म० पासे धर्मपलि, पुत्रीओने अभ्यासादिमां जोडवानी भावनाथी चंदनमलजीए छ विगय नो त्याग कर्यो। आवा उत्तम मनोरथ ज्यां होय त्यां सफलतामले ज तेम वैराग्य जळनुं सतत सिंचन थाय ने झंखना विकस्वर बने तेवा सुयोग्य साध्वीजी म० पासे अभ्यासादि माटे धर्मपनि पुत्रीओने गोठवी शांतिथी विधिपूर्वकनी नवाणुं यात्रा पोते करी ।
त्यारबाद सं० १६६६ पाटण अष्टापदजीनी धर्मशालामां प. पू. आ.दे. अमृत सू. म.नी निश्रामा पोते तेमज धर्मपनि तथा पुत्रीओने पू. आ. साध्वीजी म. नी निश्रामा रहेता -- वैराग्यभावना सुदृढ बनी हती। _सं. २००० राजनगर-अमदावादना ज्ञानमंदिरमा प. पू. आ.दे. प्रेम सू. म. सा. प. पू. राम वि. म. सा. पू. भानु वि. म. सा. आदिना चातुर्मास हतो ते समये चंदनमलजी कानुशीनी पोळमां सु. श्रा. केशवलाल मनसुखलालना मकानमा पोते चातु० रह्यां अने पतिना पंथे चालनारा एवा धर्मपनि तथा पुत्रीओ वैराग्यवासित बनी गया जाणी प. पू. प्रेम सू. म. सा. ने तेमाटे सुयोग्य स्थान बताववानी विनंती करता साध्वीजी समुदायतुं संयम साधनाने सुयोग्य संचालन ज्या थतुं हतुं ते एक वागड समुदाय छे तेम जणावतां ते समये पालडीमां बकुभाई शेठ जुना बंगले प. पू. चतुरश्रीजी म. सा., प. पू. निर्मळाश्रीजी म., प. पू. निर्जराश्रीजी म. आदिनी सुविहित निश्रामा पोताना धर्मपलि जतनाबेन अने बन्ने पुत्रीओ शांति-वसंतीने अभ्यासार्थे तेम संयमनी तालिम माटे राख्या हता। ते समये जतनाबेनने दिवसो जई रह्या हता पण एटला सुयोग्यने सरल आत्मा के गुरु. म.ना हृदय कमलमां वसी गया। त्यारे जतनाबेन कहे के मारी बन्ने बाळकीओने तो आप दीक्षा आपी द्यो । पण मने जे सन्तान जन्मे ते ८ वर्षनो थाय पछी तेने लई आपणी पासे आQ तो मने दीक्षा आपशो ने? ते समये पू. गुरुणीजी म० कहे अमो तो अत्यारे पण तैयार ज छीए। केवी योग्य पात्रता?
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सतत पवित्र एवा वैराग्यजळथी निर्मल बनेला-संयमना खोळामां अलंकृत थवानी तीव्र भावना गुलाब पुष्पनी सुवासनी जेम चोमेर प्रसरतां स्वजनो सजाग बनी गया। ते समये बाल दिक्षानो विरोध तेथी बन्ने बेनडीओनी संयमनी वात जाणी विरोधनो वावाझोडो वींझायो ने संयमना पथ पर संचरवा सज्ज बनेली बन्ने भगिनी बेलडीनी वैराग्यनी ए इमारत धराशयी थई गई। कागर्नु बेसवु ने डाळनुं पडवू नी जेम आ तरफ वैराग्यभावनामां म्हालतां मातुश्री जतनाबेन एक सुंदरी नामनी बाळकीनो जन्म आपी २ वर्षनी टुंकी मुदतमां कर्मराजानो भोग बनी वैराग्यनी ज्वलंत ज्योत साथे आ पृथ्वीतलपरथी विदाय लई लीधी। तेथी घरनो हवे बधो भार मोटी पुत्री शांति पर आवी पड्यो। बस, संसारना अमन-चमनने सखीओना सथवारे अटवाई गयेली, शांतिनी वैराग्यनी गांठ ढीली पडवा मांडी, ने एक दिवस पिता चंदनमलजीने साफ सुणावी दीधुं मारे हवे कोई संयमनी भावना रही नथी। आ वात सांभळता पिता चंदनमलजी पर तो व्रजनो घा जाणे थयो जेटलुं दुःख धर्मपत्नीनां मृत्युथी न थयुं तेटलुं दुःख आ वचन सुणता थयुं। छता पोतानी जातने मोहमायाना वींझाता पवनमां अडीखम राखी पुत्र कुंदनमलजी ने पुत्री वसंति-सुंदरीना लालन पालन साथे तेमना वैराग्यने सुरक्षित राखवा माता पितानी बन्नेनी जवाबदारी तमामे तमाम जाते वहन करवा संयम अंगीकार न करूं त्यां सुधी ठाम चौविहार एकासणा करवानो अभिग्रह साथे भगीरथ पुरुषार्थ आदर्यो। गमे तेवा कपरा समयमांथी पसार थवा छतां एक पण धर्मानुष्ठान चुकता नहि। ज्यारे मोटी पुत्री संसारना संगे सोळ शणगार सजी जवा सज्ज बनी त्यारे पुत्र अने पुत्रीओ साथे चंदनमलजी उपाश्रयमां आवी ६४ प्रहरी पौषध स्वीकारी लीधुं केवी संयमनी सतत भूख । ___“श्रेयांसि बहु विघ्नानि": सारा कार्योमा घणां विघ्नो आवे तेम अनेक विनोना वमळोमांथी पसार थतां थतां ज्यारे जीवननी सार्थकतानी छडी पोकाराई-शमणा साकार थवानी घडी आवी पहोंचता हर्षनी नदीओनां नीर नयणोमां उभराई गया।
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बीजी पुत्री तेनी संयमनी भावना मक्कम रहेवाथी तेनी दिक्षा पुनः कोई न अटकावे ते माटे कच्छ - वागडमां सांतलपुर मुकामे जईने ते वखते त्यां बिराजमान कच्छ - वागड देशोद्धारक साक्षात् संयममूर्ति पू. आ. दे. श्री कनकसू. म. सा. ना वरदहस्ते वि. सं. २००५ का. व. १३ ना शुभ दिने १४ वर्षनी बालवयमां वसंतीने दिक्षा अपावी, परम तपस्वीनी सा. श्री निर्मलाश्रीजी म० ना शिष्या सुसाध्वी श्री दिनकर श्रीजी तरीके जाहेर कराया पू. गुरुणीजी म. नी उत्तम केळवणी- सुसंकारना सिंचन - परमकृपालु परमात्मानो अनुग्रह - अने गुरु कृपाबळथी सुंदरतम संयमनी साधना साथे आजीवन गुरुचरणोपासिका बनीने जीवन आज पर्यंत समर्पण कर्तुं ते आज पण समर्पणभाव गुरुसेवा एक आदर्शरुप बन्युं छे । बनी रह्युं छे । शतः शतः वंदन हो तेमना विनयादि गुणोने....
बाकी रहेला बन्ने संतानो सुंदरी अने कुन्दनना वैराग्यने सुदृढ बनाववा सं. २००५नुं चातुर्मास प. पू. आ. गु. दे. श्री रामचंद्र सू. म. सा.नी निश्रामां सुरत कर्तुं । सुंदरी जे मात्र ४ वर्षनी तेने व्हेन साध्वीजी म.ना सतत समागममां राखी । आ प्रसंगे वागड समुदायना साध्वीजी गणना प्रवर्तिनी सा. श्री चतुरश्रीजी म. सा., सरलस्वभावी पू. सा. श्री निर्मला श्रीजी म. पू. निर्जराश्रीजी म. अने व्हेन सा. श्री. दिनकर श्री म. आदिनो तो जेटलो उपकार मानीए तेटलो ओछो पडे तेम छे । आ ४ वर्षनी सुंदरीने मातृपितृ भ्रातृ वि. नो तमाम प्रकारना प्रेमनो धोध वरसाववा साथे परम कृपालुं परमात्मा साथे प्रीती, ममता अने गुरु माता साथै संयमनी तीव्रतम भावना प्रगटाववी कंई सहेली वात न हती । असाधारण उपकार बुद्धि विना संसाररुपी कादवमांथी कोण उगारे ? आवी संयमनी उच्चकोटीनी तालीम सुसंस्कारोना परिणामे सं. २०११ राधनपुर मुकामे पूज्य कनक सू. म. सा. ना वरदहस्ते जे उपधाननी माल पहेरावानो दिवस सुंदरी माटे हतो ते ज शुभ दिन माग. सु. ६ प्रवज्या अंगीकार दिन बनी गयो ने सा. श्री बेन म. सा. ना शिष्या सा. दिनमणिश्रीजी म. सा. तरीके जीवन समर्पित कर्तुं ।
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__हवे दिकरीओनी जवाबदारीमांथी मुक्त बनेला पिताश्री चंदनमलजी पोताना पुत्र कुंदलमलजी साथे सर्प जेम कांचळी सहेलाईथी उतारी नांखे तेम पिता-पुत्रे पाछळ कई वंशवेलो न रहे ते रीते रागनो स्वांग उतारी वैराग्य ना वाघा पहेरवाना थनगनाट साथे पांच जिनालयोथी देदीप्यमान नयनरम्य खिवान्दि नगरे अट्ठाई महोत्सव वर्षीदान वरघोडो स्वामी वत्सल आदि उचित सुकृत कार्य करी कलकत्ता मुकामे जई परम शासन प्रभावक लाडीला गुरुदेवश्री पू. आ. दे रामचंद्र सू. म. सा. ना वरद हस्ते जेठ सु. ५ सं. २०११ ना शुभदिने पिता पुत्र संयमि बन्या अने सु. श्रा. गुलाबबेनना नंदन मटीने सूरि रामना लाडिला अणगार पू. चंपक वि. म. अने जतनाबेनना नंदन मटीने अनेकना बन्या पू. कनकध्वज वि. म. अने झंपलावी दीधुं साधनाना महायज्ञमां.....
साधनाना महायज्ञमां नानी-नानी पण महान विविध गुणोनी झलक
॥ दीक्षाना दिवसथी ज शरीरनी आळपंपाळने छोडी आत्मानां भूगर्भमां जई बहिर्मुखताना द्वार बंध करी अंतर्मुखतानां द्वार उघाडी प्रमादने लुलो बनावी अप्रमत्त दशाना गगनमा विहरवानो प्रारंभ करी स्वाध्यायना यज्ञ साथे त्यागनी सेज पाथरी, वैराग्यनुं ओशीकुं बनावी निरतिचार संयमजीवननी सरितामां डुबकी लगावी दीधी छे जेने.....
चाहे पर्वना दिवसो होय के चाहे तिथिना, के चाहे सामान्य दिवस पण केम न होय पण आ पू. चंपक वि.ना शरीर पर तो तप त्यागनां अलंकारो अलंकृत थयेला ज होय जेने...... __ स्वास्थ्य चाहे अनुकूल होय के प्रतिकूल पण आधाकर्मी गोचरी तो न ज आववी जोईए। तेनी सतत आज दिन पर्यंत काळजी राखी छ। जेने शरीरने चानो थोडो डोझ आपवो पडे पण जो ते आधाकर्मीथी आवी छे पोताना माटे एम जाण थाय के तेनो तुरत ज त्याग। ते न ज वापरे जे....
F आवश्यक क्रिया-मुद्रामां केवी तन्मयता ज्यां प्रमादनो तंबु डेरो नांखी ज न शके तेवी जीवनमां अप्रमत्तता आज पण ८६ वर्षनी
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जैफ वये प्रतिक्रमण कार्योत्सगादि उभा करवानो ज आग्रह ओवी सतत जाग्रत दशा छ। जेनी..... .
जिनाज्ञा प्रत्येनी वफादारी अद्भुत कोटीनी अने लाडिला गुरु म. प्रत्येनो अहोभाव समर्पणभाव अजब-गजबनो रह्यो छे जेने.........
है जिनाज्ञा अने गुर्वाज्ञाथी पोतानुं संयम जीवन तो नंदनवन बनावी दीधुं साथे साथे पनोता पुत्र जे कुंदनमांथी पू० कनकध्वज म० बन्या तेने पण जिनाज्ञा गुर्वाज्ञा गुरुकृपा वैयावच्चादि उत्तम गुणोथी तरबतर करी दिधो छे जेने.......
म बे साल पूर्वे ज नादुरस्त तबीयतमां पण देहनी क्षीण ताने जोया विना चोथ भक्तथी वर्षीतप अनेक त्याग साथे पूर्ण कर्यो छे
जेने...
# आवा अनेकानेक गुण गणना भंडार
पूज्य पिताश्रीजी म. ना चरणोमां
कोटी कोटी नमन हो मारा अने मारा परिवारना.... उत्तरोत्तर संयम जीवनमा जेम जेम पात्रता योग्यतानी वृद्धि थती गई तेम तेम गणि, पन्यासने आचार्य पदथी विभूषित बनी शासन प्रभावनार्थे ___बंगाल, राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र मां सारं एबुं विचरण
कर्यु।
४६ वर्षना संयम पर्यायमां चातुर्मास क्षेत्रो नी झांखी............ प्रथम चातु० -- कलकता,
राजगृही, जबलपुर, राजनगर, पीडवाडा, शीवगंज, मंडवारीया, खंभात, पालीताणा, पुना, महेसाणा, आमोद, आंकलाव, पाटण, सावरकुंडला, जामनगर, दहेज, तेमज मुंबईमां माटुंगा, लालबाग, दादर, वालकेश्वर, शांताक्रुझ, वडाला, घाटकोपर, श्रीपालनगर, बोरीवल्ली,
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चंदनबाला, भारतनगर, मलाड, तारदेव, नवजीवन सोसायटी वि-विक्षेत्र मां सुंदर शासन प्रभावना युक्त चातु० संपन्न बन्या छे बनी रह्या छे ।
आवा गुण - गण प्रतिभा संपन्न......
प. पू. आचार्य देवेश श्री. वि चंद्रोदय सूरिश्वरजी म० सा० सरलस्वभावी प० पू० आचार्य देवेश श्री० वि० कनकशेखर सू० म० सा० ना चरणकजमां....
सुपुत्री सौ. शांताबेन चंदुलालजी पुनमचंदजी जोधाजी शा० (शीवगंज -- राज० ) हाल चेन्नई
दोहित्र : जगदीश कुमार चंदुलालजी शा० सौ० मीनाबेन जगदीश कुमार शा०
किरणकुमार चंदुलालजी शा० सौ० पुष्पाबेन किरणकुमार शा० शशीकांतभाई चंदुलालजी शा० सौ० कल्पनाबेन शशीकांत शा० दोहीत्री : चंद्राबेन मदनलालजी शा० ( कोशेलाव- राज०) हाल तारदेव (मुंबई)
सौ. मंजुलाबेन ताराचंदजी शा० (शीवगंज - राज०) हाल - चेन्नई सौ० रमीलाबेन घेवरचंदजी शा० ( तखतगढ - राज० ) हाल न्यु बेम्बे वासी
पौत्र : अभिषेक, रीतेश, बबलु, गुड्ड पौत्री : श्वेता, मनीला, सहपरिवारनी
शतश: वंदना....वंदना....वंदना....
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रेश्मवाला बिल्डींग रावन्या स्ट्रिट, सेकन्ड फलोर, चेन्नाई मद्रास तामिलनाडु
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हृदय उदगार हे नाथ ! अनादिकालथी अनंत भवोमां रखडी रखडी आपने शरणे आवी छु । आपनी कृपाथी मने मनुष्य जन्म अने रत्नत्रयीनी सुन्दर आराधना मली छे। हवे मारी एक ज इच्छा छे, समाधि मरणनी। मारा मृत्यु वखते हुँ पूर्ण समाधि भावमां होउं, गुरु खोळे मारु मस्तक होय। ते मने निर्यामणा करावता होय, में सर्व परभावनो त्याग कर्यो होय, चतुर्विध संघनी हाजरीमां नवकार मंत्रनी धून चालु होय। मारु चित्त ए परमतत्त्वना ध्यानमां परोवायेलुं होय, बस आ रीते समाधि भावमां देह छोडी भवांतरमा महाविदेह क्षेत्रमा ज्यां श्री सीमंधर स्वामी विचरता होय तेनी निकटमां धर्मी माता-पिताने त्या मारो जन्म थाय, जन्मतां ज नवकार मंत्र संभलावे तेवी माता मले, त्रण वरसनी उमरे मने सीमंधरस्वामी दादानी देशना सांभलवा लई जाय, चार वर्षनी वये अग्यार अंग शास्त्रोनो अभ्यास करी पूर्ण वैराग्यमय जीवन जीवी आठ वरसनी उंमर थतां श्री सीमंधर स्वामिनी हस्ते दीक्षा अपावे तेवा माता-पिता मलजो, निरतिचार पणे शुद्ध चारित्र पाळी सवि जीव करु शासनरसीनी उत्कृष्ट कोटीनी भावना जागता नव वरसनी उमरे कैवलज्ञान पामुं। भव्य जीवोने बोध दईने संसारथी तारनारी बर्नु. हुं पोते अनादिकालथी अनंता जीवोने त्रास-दुःख अने मरण आपवामां निमित्त बनी रही छु। तेमांथी छुटी सर्वेने सुख-शान्ति आपनारी बनुं अने मारो मोक्ष थाय ए द्वारा मारा निमित्ते एक जीव पण निगोदमांथी छुटो थाय एवी भावना थाय छे। हे नाथ! आपे मने निगोदमांथी काढी, त्यारनुं मारा माथे जे ऋण छे ते हुं अदा नथी करी शकी एवी पापी अधमभाव अने विषय-वासनामां गलाइब हं डुबेली छं। एमांथी सौने छोडाववा माटे आपनो दृढ संकल्प हतो ने! तो मारो आ भव आपनो संकल्प पूरो करनारो बनी रहो।
. हे नाथ! हे नाथ! हे नाथ! हे गुरुदेव! आप ज्यां हो त्यांथी एवी कृपा वरसावो के आपनी सहायथी आ भवमां पण
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सीमंधरस्वामीना दर्शन करुं। एमनी मधुरी देशना सांभखें, भाव चारित्र प्राप्त करुं, प्रभु मारा मस्तके हाथ मूके बस.....तो तो मारा आनंदनी कोई अवधि नहि रहे, पछी तो मोक्ष नक्की थवानो थवानो ने थवानो ज।
प्रभुजी मांगु तमारी पास, मारी पूरण करजो आश, मांगी मांगीने मांगु छु प्रभु एटलुं, मने आवतो भव एवो मलजो। देव गुरु-धर्म पासे नम्र अरजी आ सुवर्ण संयम शताब्दिनां अवसरे एवी याचना करती चरण सेविकानी आशा हे परमात्मा ? हे....सुरीदेव.....हे... गुरुदेव...पूरी करजो आ भवसमुद्रथी जहाज कीनारे लावजो. एवी प्रार्थना हृदयमां धारी. भव समुद्र पार उतारजो शिवपुरीमा स्थान आ अज्ञानीने मळे।
बस ए ज भवदीया सा० दिनमणिश्रीजी
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प० पू० अमारा तारणहारा गुरुदेवश्रीजी दिनमणि श्रीजी म० सा० ना सुदीर्घ ४७ वर्षना : सुवर्ण संयम पर्यायनां उपलक्षमां भावभरी शुभेच्छाओ
हे गुरुमैया! आपश्रीजीमां अनेकानेक गुणो छ। तेमाथी एक बे गुणने पण अंकित करवानी अमारी शी मति ? शी शक्ति ? सूर्यना प्रकाश सामे दीपकनी शी ताकत ? छता पण गांडी घेली भाषामां बाळक बोले तो माताने मन केटलुं प्यारुं लागे? छे तेम अमे अज्ञानी गमे तेवा वाक्य प्रयोगथी गुरु गुण करीए तो पण गु० म० क्षति नहि गणे।
पू० गुरुदेवश्री मारवाड भूमिनां वतनी होवा छता मातपिताए बाल्यवयथी सुसंस्कारोनु सिंचन कर्यु। जे मातपिताना रगेरगमां संयमनी भावना व्यापी गयेली तेथी ज मात्र ४ वर्षनी नानी वये अमारा गु० म० ने गु० म० पासे मुकी गया जेने हजुं शुं खावू ? पीयूँ के केम बोलवू ? के चालवू ते पण न आवडे तो पण पिताश्रीए गु० म० ने कह्युं के मारी सुंदरी रडे तो भले रडे पण गमे ते रीते तेने संयमना सुसंस्कार आपी जल्दीथी दिक्षा माटे तैयार करो. तेथी ज साडा नव वर्षनी नानी वयमां, मातुश्रीनी छत्रछाया तो दोढ वर्षनी वये गुमावी छतां अति संयमना चोळ मजीठ रंगे रंगायेला पिताश्रीए पोताने जल्दी संयम लेवाय ते माटे प्रथम मोटी बहेन वासंतीने दिक्षा आपी जे अमारा शिरछत्र दादी गु० दे० दिनकर श्री जी म० सा० बन्या। पछी अमारा गु० म० ने पू० आ० दे० श्री कनक सु० म० सा० नां वरद हस्ते सं० २०११ मागशर सुद छट्ठनां राधनपुरमां दिक्षा आपी सुंदरीमाथी बन्या पू० सा० दिनमणि श्रीजी म० सा० बाळपणथी ज अतिचकोर तीव्र मतिज्ञाननो क्षयोपशम १ कलाकमां ५० गाथातो रमत रमतमां करी ले तेथी-ज सात वर्षनी वये छ कर्मग्रंथ सुधी अभ्यास पण थई गयो। अने. कंठ पण सुमधुर संगीतमां बहु रस तेथी स्तवन सज्झायो वि० ५० थी १०० गाथावाळी पण एवां सुंदर बोले के
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प्रतिक्रमणमां बहेनो झुमी उठे केवी गजब संगीत कला? आ रीते अमारा गु० म० पोताना गु० म० ने प्यारा बन्या तेम चतुर्विघसंघमां प्यारा व्हाला बनी गया। नानी वयमां ज चकोरता कुशाग्रता जोई व्याख्यानादिनी जवाबदारी साथे गुरुब्हेनोनी दीक्षा वडिदिक्षा योगोद्वहन वि० नी जवाबदारी गु० म० सोंपता तुरत गुर्वाज्ञाने तहत्ति करता विनय भक्ति वैयावच्च गुण तो एवो के शास्त्राभ्यासमां समयनो अभाव होवा छता पण जाणे औत्पातिकीने वैनयिकी बुद्धि जाणे प्राप्त न थई होय तेम तेवी बुद्धि साथे अनुभवज्ञान सुंदरकक्षानुं के गमे तेवी जवाबदारीओनी वच्चे गमे तेवी परिस्थितिमां तेनो उकेल सरलताथी लावी दे। संघोमां विखवाद घर्षणोने मिटावी दे। तेम वाणीमां मधुराश साथे अद्भुत शक्ति ? तेम ज्यां जे संधमां जे जे क्षेत्रोमां जेम कै साधारण देवद्रव्यादिमां तोटो होय तो तेनी वृद्धि करावी तेने सद्धर बनावरावी दे। तेओश्री पासे घडतर एवी कक्षानुं के बाल-युवानवृद्धना हैये पण तेओ वसी जाय, तेओश्री जीनी साधना आराधनाक्रिया पण एवी चुस्त के ते जोईने मस्तक झुकी जाय। तेथी ज नानी वयमां अमारा जेवा अज्ञान अबुझोने बुझवी। वैराग्यनी सुदृढ तालीम आपी अनेक शिष्या प्रशिष्यानां गुरुणीजी बनी अमारा पर अमाप करुणा वात्सल्यता वरसावी रह्या छ। पोतानी शारिरीक शक्ति तप त्यागनी न होवा छता उपवास-आयंबिल वि० करवानी उत्कट भावनामां ज सदा रमता होय। अमे कहीए आज उपवास केम? कर्यो ? आपश्रीने सारू नथी सांझे कांई वापर्यु नथी तो कहे हुं तो एम जाणुं साधु जीवनमां रोज न वपराय। अने अमने पण तप-त्यागज्ञान-ध्यानमां सतत सहायक बनता रहे। तेम अमारामां गुणो लेश पण जोवा न मले तो पण दरेकमांथी गुणो शोधी तेनी अनुओदना पुनः पुनः करता रहे। ___ अने छेल्ले परोपकार गुणना शु? वर्णन करीए ? दिवस रात केम करी परोपकार करी सहायक बनवू । ते ज एकमात्र भावनामां रमता अमारा गुरूदेवश्री आ गुणने अनुलक्षी चतुर्विघसंघना हित माटे तेमने
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एक मात्र प्रभु भक्तिनां माध्यम थी आराधनानां मार्गे जोडवानी हितबुद्धिथी त्रण पुस्तक श्री श्रुतराज रसथाळ,-रसाधिराज, अने रसधार, नुं अथाग परिश्रम लई पूर्वाचार्य रचित श्री चैत्यवंदन-स्तुति-स्तवन-सज्झाय पर्वतिथि ढाळ-पर्युषण-नवपदजी प्रतिक्रमण-नवस्मरण ज्योतिष आदि अनेक विविध विषयो- हिन्दी लीपीमां संकलन करी उपकार गुणने विकस्वर बनाववानो। __ नम्र प्रयास पू० गुरुवर्यादिनी कृपाथी प्राप्त कर्यो छे तेओ श्री एवा अनेक गुण गरिमांथी युक्त अमारा पू० गुरुदेवश्री दीर्घ सुदीर्घ संयमपर्याय युक्त दीर्घायुस्वान् बनो. तेओश्रीना वरदहस्ते अनेक शासन प्रभावनावाळा कार्यो थता रहो. अने आप जेवी आचार संपन्नतानी ज्योत अम अंतरमां प्रगटे अने आपणा सहुना शिरछत्र सूरिदेव तिर्थंकरसम पू० अध्यात्मयोगि आ० दे० कलापूर्ण सू० म० सानी अने आपनी निश्रामां संयमनी साधना हरभवमां करी आपश्री अने आपनी कृपाथी अमे महाविदेह क्षेत्रमा त्रिलोकपति दादा श्री सिमंधर स्वामीनी सानिध्यमां निरतिचार संयमनुं पालन करी कैवल्य प्राप्त करी शिवसुंदरीने शिघ्रातिशीघ्र वरीये एवी आजनी-आपनी सुवर्ण संयम शताब्दिनां आरे उभेला आप गुरुदेवश्री पासे आपनी ज
शिष्या प्रशिष्याओनी अंतर भावना शुभेच्छा
ली० आपनी ज शिष्या प्रशिष्याओ
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पू. सा. श्री दिनमणिश्रीजी म. सा. नी सत्प्रेरणाथी
प. पू. साधु-साध्वीजी भ. ना अभ्यासार्थे ज्ञानखातामांथी अनूपम सहयोग द्वारा महान श्रूतभक्तिमा लाभ लेनार धन्य संस्थापको... धन्य... धन्य... श्रुतभक्ति दाताओ
* श्री सिध्धाचल महातीर्थे प.पू. अध्यात्मयोगी आ.दे. श्री वि.कलापूर्ण सूरि.म.सा.प.
पू. आ. दे. श्री वि. कलाप्रभ सूरि. म. सा. आदि ३० साधु वृंद तथा ४३० साध्वीजी वृंद अने १६०० आराधकोना संवत् २०५६चातुर्मास आराधनानी स्मृति निमित्ते
मातुश्री खीमइबेन लखधीर शीवजी गडा जैन धर्मशाला, पालीताणा. श्री कच्छ वागड वीशा ओसवाल श्वे. मू.पू. जैन संघ समिति ट्रस्ट, पालीताणा. श्री कच्छ वागड सात चोवीशी जैन समाज शा. वेलजी दामजी भणशाली संचालित सातचोवीशी जैन धर्मशाला, पालीताणा.
श्री पुरुषादानीय पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ देवकीनंदन ट्रस्ट
देवकीनंदन सोसा. अमदावाद-१३. * श्री आदिनाथ जैन श्वेतांबर टेम्पल ट्रस्ट, ३०, गांधी रोड, चेन्नइ-६६.
श्री ऋषभदेवजी महाराज जैन धर्म टेम्पल एन्ड ज्ञाति ट्रस्ट, (श्री मुनिसुव्रत स्वामि जैन मंदिर) टेंभीनाका-थाणा (वेस्ट) मुंबइ.
* श्री शांतिनाथ श्वे. मू. पू. शाहुपुरी जैन संघनी श्राविका बहेनो तरफथी कोल्हापुर. * श्रीचंद्रप्रभस्वामिश्वे.मू.पू.श्रीराजस्थानी जैन संघ-ट्रस्टी मंडल,बेलगाम(कर्णाटक)
श्री सुविधिनाथ जैन मंदिर श्वे. मू. पू. श्री राजस्थानी पोरवाल जैन आराधना भुवन ट्रस्ट, गोकुलनगर, भीवंडी (मुंबई). श्री चिंतामणीपार्श्वनाथश्वे.मू.पू.हालारी जैनसंघट्रस्ट,गोपालनगर,भीवंडी (मुंबई). श्री सुमतिनाथ मंदिर श्वे. मू. पू. श्री राजस्थानी जैन संघ ट्रस्ट, मीरज. श्री सिध्धाचल महातीर्थ सं. २०१७ शा रतनचंदजी लंबाजी परिवार आयोजित नवाणुं यात्रा स्मृति निमित्ते भीवंडी (मुंबई). गाम गडा राजस्थान.
* श्री सिध्धाचल तिर्थयात्रा निमित्त सं. २०५७ का.सु. १७ थाणा मित्र मंडळ
* श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट आदिनाथ सोसायटी, पुना.
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श्रुतज्ञान विशिष्ट सहयोगिदाताश्रीओ
筑 सौ. कमलाबेन कुंदनमलजी केशरीचंदजी (के. सी. जैन खिवान्दि राजस्थान, हाल लंडन )
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शाह नेमचंदभाई प्रागजीभाई महेता सौ. मंछीबेन नेमचंदभाई सुपुत्रो सुरेशभाई, अशोकभाई, वसंतभाई, भूपेन्द्रभाई, नवीनभाई, चंदुभाई, अश्विनभाई, पुत्रवधूओ. शील्पाबेन, वर्षाबेन, भावनाबेन, नीताबेन, सविताबेन, अल्पाबेन, छायाबेन, महेता परिवार हाल माधापर कच्छ भूज
मातुश्री सुंदरबेन शान्तिलालजी सूरजमलजी संघवी सुपुत्रो : सुरेशभाई, भरतभाई, पुत्रवधू पुष्पाबेन, संगीताबेन, पौत्र :- अमित कुमार, अमर कुमार निंबजिया परिवार हाल कोल्हापुर महाराष्ट्र.
स्व. शा. हिंमतमलजी ओटमलजी स्वर्ग दिन ता० १५-११२००१ सिद्धगिरि क्षेत्र पालीताणा : मातुश्री रतनबेन सुपुत्रो :
रमेश कुमार, राजुभाई, पुत्रवधू : सौ. मंजुलाबेन, रमीलाबेन, पौत्र : भावेशकुमार, अक्षतकुमार तखतगढ़, राजस्थान हाल परेल मुंबई ।
शाह लालजीभाई करशनभाई राघवजी भाई कारीया पुत्रवधू : सौ. झवेरबेन कान्तिभाईना प्रथम उपधान तप निमित्ते कच्छ भच्चाउ हाल थाणा मुंबई |
सौ. मोहिनीबेन जशराजजी रिखवीचंदजी संघवी तखतगढ (राज.) हाल बेलगाम कर्णाटक
सौ. चंपाबेन प्रकाशचंदजी फुटरमलजी मुठलीया, सुपुत्र : धीरजभाई, पुत्रवधू मनीषाबेन राणी राजस्थान हाल थाणा मुंबई
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सौ. कंचनबेन सोहनलालजी जशराजजी शोभावत परिवार खिवान्दि हाल दादर मुंबई सौ. भमीबेन रूपशीभाई सत्रा परिवार कच्छ वागड, सुवई हाल थाणा मुंबई सिद्धगिरि नव्वाणुं यात्रा संयोजक शाह कान्तिलालजी तोगाणी परिवार गुडा राजस्थान हाल भिवंडी। पू. अमीरसाश्री. जी. म. सा. पू. आ. दे. प्रेमसूरी म. सा. समुदाय भक्तिविहार पालीताणा श्रीमति चंदनबेन मगनलालभाई भावना ट्रान्सपोर्ट मानकुवा : हाल कच्छ भूज स्व. मातुश्री जीतुबेन बाबुलालभाई गांधी सुपुत्रो विनोदकुमार दिनेशकुमार अने कीर्तिकुमार गांधी परिवार भीमासर, कच्छ, वागड हाल सुरत शाह उमेदमलजी कस्तुरचंदजी, विसलपुर राजस्थान, हाल बेंग्लोर। पूत्रवधू सौ. विमळाबेन महावीर कुमार छाजेडना उपधान तपनिमित्ते मातुश्री पानीबेन तेजराजजी छाजेड, हाल सांगली महाराष्ट्र सौ. भीक्खीबेन देवीचंदजी प्रतापचंदजी नाणावटी गाम खिवान्दि राजस्थान हाल लुणावा भुवन पालीताणा। सुपुत्र हिरेनकुमार डुंगरशीभाई नानजीभाई गडाना दिक्षानिमित्ते कच्छ वागड घाणीथर हाल अंधेरी (वेस्ट) मुम्बइ सौ० चंचलबेन उगरचंदभाई पोपटभाई गढेचाना प्रथम उपधान तप निमित्ते कच्छ फतेगढ हाल अमदावाद । बडे पुखराजजी जेठमलजी सुकनराजजी शाह चेन्नई मद्रास
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ॐ
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म
# मंछाबेन ताराचंदजी सेसमलजी शाह सुपुत्र-अमृतभाई शाह
राज० खिवान्दी हाल मझगांव मुम्बइ शा. भंवरलालजी भुरमलजी नजराणां कंपाउन्ड भिवंडी सौ. भारतीबेन किर्तिपालभाइ कान्तिलाल शाह सुपुत्र नीरजभाइ पुत्रवधू सजनीबेन पौत्र ध्येनकुमार सुपुत्री सौ. मोनाबेन केतनभाइ दोइत्री नैशी ६ शारद पारीतोष सो. देवकीनंदन अमदावाद ज्ञानभक्ति निमित्ते श्रीमती सरलाबेन महेन्द्रभाइ मणीलाल सुतरिया परिवार सुपुत्रो संजयभाइ धर्मेन्द्रभाइ केतनभाइ पुत्रवधू श्रेणाबेन श्रेयसीबेन सुजाताबेन पौत्र, पौत्री पंक्ति, हिलोनी, नैमि, शैनल विशीन (मयुर कोलोनी, मीठाखळी नवरंगपुरा, अमदावाद ज्ञानभक्ति निमित्ते स्व. चंद्रेशभाइ रिटाबेन जिनल यश चार जणणा ता. २६-१२००१ भुकंप अकस्मात श्रेयार्थे हस्ते शिवलाल नेमीदास कच्छ मांडवी सा. दिव्यदर्शनाश्रीजीना शिष्या सा. दृढप्रतिज्ञाश्रीजीनी प्रेरणाथी श्री रत्नगिरी सुमतिनाथ श्वे. मू. पू. जैनसंघ पू. साधु-साध्वीजी म.सा.ना अभ्यास माटे ज्ञान खातामांथी महान लाभ लीधो.
शा. मिश्रीमलजी बक्षीरामजी-ढेलरीया थाणा मुंबई __शा. भिकमचंदजी बक्षीरामजी-ढेलरीया थाणा मुंबई
शा. प्रविणभाई कपूरचंदजी राठोड थाणा मुंबई शा. नारंगीबेन चंदनमलजी शीवगंज शा. अर्जुनभाई नरसींगजी कटारीया-खिवान्दी
शा. दाकुबेन वजींगजी खिवान्दी चेन्नइ # शा. मदनलालजी हीराचंदजी मुथा भिवंडी
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श्रुतज्ञान सौजन्यप्रेमी श्रीमान् दाताश्री
शा. वेलजीभाई वणवीरभाई चरला शा. विनोदभाई शामजीभाई गडा शा. भीमशीभाई भारमलभाई गींदरा शा. शामजीभाई पचाणभाई सतरा
शा. मणीभाई पचाणभाई सतरा शा. कान्तिभाई शिवजीभाई गाला
शा. जयंतिभाई उमरशीभाई मोता
शा. कान्तिभाई भाणजीभाई सावला शा. अमितभाई भोजराज भाई बुरीचा सौ. झवेरबेन हंसराजभाई बुरीचा सौ. गुणवंतिबेन वाडीलाल शाह शा. अशोकभाई सांकरचंदभाई शा. बीपिनभाई हरीलालभाई शा. बाबुभाई खेतशीभाई महेता
शा. प्रवीणभाई सुमतीलाल डेप्युटी
शा. धीरजलाल करशनभाई संघवी
शा. पुनमचंदभाई मोहनलाल
शा. मांगीलालजी वीरचंदजी जीवावत सौ. चंद्रबालाबहेन भुपेन्द्रकुमार शेठ
शा. डुंगरशीभाई नारणभाई गडा शा. प्रवीणभाई चुनीलाल संघवी स्व. चंचळबेन मावजीभाईना श्रेयार्थे हस्ते मातुश्री गुलाबबेन रामचंदभाई गांधी सौ. पुष्पाबेन किर्तीकुमार शाह
शा. रवीलालभाई लवजीभाई पारेख
शा. देवीबेन मिश्रीमलजी
शा. चंपालालजी मोहनलालजी
सौ. विमलाबेन सुखराजजी गेनमलजी
कच्छ आधोई गोरेगाम मुम्बइ आधोई कच्छ वागड इर्ला मुंबई भरुडीया कच्छ वागडथाणा मुंबई
""
""
मस्जीदबंदर मुम्बइ थाणा मुम्बइ
कच्छ वागड मनफरा मुम्बइ
मुम्बइ
मुम्बइ
मुम्बइ
11
2
""
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कच्छ भुजपर
कच्छ मुंद्रा
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कच्छ
अमदावाद
अंजार
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पाटण
अंजार
कोलाव
खिवान्दि
खिवान्दि
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"1
अमदावाद
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"
""
अमदावाद
राजस्थान आहोर अमदावाद
""
"1
अमदावाद
कच्छ सामखीयारी मलाड मुम्बइ रापर कच्छ वागड वलसाड
धरमशीभाईपुंज कच्छ वागडभीमासर .
कच्छ घागड आडेसर भूज
बेंग्लोर
"
"
चेन्नई
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स्व, शाह चंदुलालजी पुनमचंदजी जोधा
श्री शान्ताबेन चंदुलालजी शीवगंज = राजस्थान हाल चेन्नई
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-मुम्बई
शा. कान्तिलाल वजेराजजी
बेंग्लोर सौ. गुणवंतिबेन ताराचंदजी
बेंग्लोर शा. गणेशमलजी चुनिलाल चौहाण सौ. शान्ताबेन मोहनलालजी रिकबाजी
मुम्बई स्व. वसुमतिबेन भीकमचंदजी
भांडुप मुम्बई शा. गणेशमलजी पन्नाजी परिवार हस्ते अमृतलाल " कराड महा. श्रीमति जडावीबेन चीमनलाल हस्ते पारस मलजी शा. " मुम्बई शा. सेवंतीभाइ चतुरदास
बेलगांम कर्णाटक पू. निमलदर्शनाश्रीजीनां योगाद्वहन निमित्ते हस्ते हसमुखभाई भावनगर स्व सुरजबेन देवजीभाई महेता कच्छ वागड मच्चाउ ता. २६-१-२००१ भुकंप अकस्मात स्मरणार्थे हस्ते सुपुत्र महेन्द्र भारती सौ. पूर्णिमाबेन रोहितकुमार उषा टोकिझ कोल्हापुर सौ. भारतीबेन भोगीलाल धुडालाल शाह शा. चंदनमलजी युवराजजी संघवी सा. वस्तुपालभाई केशवलाल
संगमनेर शा. किर्तीकुमार प्रागजीभाई शेठ
कच्छ मानकुंवा दादर मुम्बई शा. राजेशभाई शान्तिलाल
डोंबीवल्ली शा. शांतिलाल दलीचंद कुबडीया ।
कच्छ आधोइ मलाड सौ. वीरबाळाबेन चीमनलाल शाह
पंचरत्न मुंबई सौ. विजयाबेन रूपशीभाई शाह छेडा
कच्छ भच्चाउ सौ. वक्ताबेन ओटरमलजी गुंगलिया
राजस्थान सादडी थाणा मुम्बइ श्रीमति वजुबेन रूपचंदजी शा. के. के. संघवी पद यात्रिक संघ
आहोर शा. भंवरलालजी छोगमलजी नवलखा
थाणा मुम्बइ सौ. शान्ताबेन खेराजमाई तपस्वी सौ. सावीत्रीबेन कान्तिलालजी
राजस्थान पोमावा मुम्बइ सौ. लीलाबेन जावंतराजजी राठोड
वाली मुम्बइ कु. धैर्या. सौ. पुष्पा. कनैयालालजी सौ. सुंदरबेन साकरचंदजी पूना महाराष्ट्र
मुम्बई
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चेन्नई
सौ. सुशीलाबेन धर्मीचंदजी शा. मातुश्री जोरावरबेन विजयवाडा आन्ध्रप्रदेश श्री गजराबेन घेवरचंदजी
सांडुर कर्णाटक श्री कमलचंदजी महेता
राजस्थान आहोर चेन्नई शा. देवीचंदजी जवानमलजी सांकरीया राजस्थान सुमेरपुर चेन्नई शा. छोगालालजी असलाजी ह० पुखराजजी सौ. मगीबेन तेजराजजी जैन
राजस्थान विशलपुर श्री. कमलाबेन गुलाबचंदजी शा० निमाणी फलोदी चेन्नई शा. पुखराजजी अशोककुमारजी गुलेच्छा फलोदी सौ. गुणसुंदरीबेन रतनचंदजी कोचर पू. सा. कल्याणधर्माश्रीजी सा. काव्यदर्शीताश्रीजी बुद्धि सागर म. समुदायअमदावाद शा. इन्द्रमलजी पुखराजजी दांतेवाडीया सिकन्दराबाद सौ. नांजुबेन पुखराजजी भंडारी
राज. शरत भीवंडी सौ. चंद्राबेन भंवरलालजी
राज. राणी भीवंडी स्व. शान्ताबेन बाबुलालजी संघवी हस्ते सुपुत्र इन्द्रमलजी " राज. गुडा भीवंडी सौ. भागुबेन पुनमचंदजी संघवी
" राज. गुडा भीवंडी सौ. लीलाबेन चंपालालजी संघवी
" राज. गुडा भीवंडी स्व. गजराबेन शेषमलजी ह० केशरीमलजी राज. विसलपुर भीवंडी सौ. वसुमतीबेन रसीकमाई डो. जोगाणी धानेरा भीवंडी सौ. सुंदरबन भेरुलाल सोनीगरा
राज. सांडेरावकोलीवाडा मुम्बइ शा. इन्दरमलजी जेठमलजी संघवी
तखतगढ चेम्बुर मुंबई शा. भस्वरलालजी तेजराजजी जैन
तेनाली चेन्नइ श्री भिकखुभाइ चौकशी देवकीनंदन
अमदावाद सौ. प्रेमीलाबेन जयंतिलाल शाह कैलाश स्मृति श्री सुभाषभाइ कस्तूरचंद खंडोर
कच्छ चिरई हैद्राबाद
अमदावाद
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भुलो भले बीजुं बधु मा-बापने भूलशो नहीं
httSC
ORTHORORA
स्व. शेठ श्री पुरवराजजी वरदीचंदजी सांकरीया
बांकली निवासी
मातुश्री वधुबेन पुरवराजजी बांकली निवासी
सुपुत्रो स्व. मदनलाल पुखराजजी धनेशकुमार पुखराजजी सुमनकुमार पुखराजजी रविन्द्रकुमार पुखराजजी
पुत्रवधू निर्मलाबेन, निहारीकाबेन, कलाबेन, वीणाबेन
पौत्र विनेश, जिनेश, जश, दर्शन, गप्पी
सुपुत्री-जमाइ जयश्री चेतनकुमार, मीनळ नीतेशजी
पौत्री
जया, पुनम, अनुश्री, एवं स्व. श्रीमान शेठश्री पुखराजजी वरदीचंदजी सांकरिया परिवार
गांव बांकली, राजस्थान
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105
( रसथाळनी वानगी विषयानुक्रम
चैत्यवंदनो (166) 1 बीजतिथिना
1|8 सिद्धगिरिनां 2 सीमंधर स्वामीना 29 पार्थजिननां 3 ज्ञानपंचमीना
6 | 10 महावीर जिननां 4 अष्टमीना
911 पर्युषणनां 5 एकादशीनां
12 12 सिद्धचक्रजीनां 6 नेमिनाथनां
16 | 13 शांतिनाथना 7 रोहिणीनां
18 | 14 आदि विविध चैत्यवंदनो 50 - श्री विविध थोय जोडलाओ (180) स्तुति चतुष्क 15 सिमंधर जिननी 64 | 24 श्री रोहीणीनी 16 बीजनी
68 |25 विविध थोयो 107 17 श्री शत्रुजयनी 70/26 श्री पार्थनाथना 18 श्री ऋषभजिननी 78 | 27 श्री महावीर स्वामीनी 125 19 श्री अजितनाथथी धर्मनाथ 28 श्री पर्युषणनी
सुधीनी ज्ञानपंचमीनी 82 | 29 श्री सिद्धचक्रनी 20 श्री शांतिनाथनी 93 | 30 श्री नवकारमंत्रनी 147 21 मल्लिनाथ नमिनाथनी 98/31 श्री गौतमप्रभातीया 22 श्री मौन एकादशीनी ___100/ 32 श्री विविध प्रभु प्रार्थना 149 23 श्री नेमिनाथनी 100] , .
श्री विशाल स्तवन विभाग (500) प्राय 33 श्री सीमंधर जिननां 151 | 37 पुंडरिक स्वामिनां 34 श्री शत्रुजयनां . 160/ 38 श्री रायण पगलानां 199 35 श्री शत्रुजय सलोको 194 | 39 दीक्षा लइने प्रभुना विहार- 200 36 तलाटी ------ 198|40 अखात्रीजनां
116
133
140
148
199
201
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294
251
2551
357
41 श्री शत्रुजय तीर्थ उद्धार 203 | 56 श्री विमलनाथ जिनना 282 42 श्री आदिजिननां 211 | 57 श्री अनंतनाथ जिनना 284 43 श्री शत्रुजय विनती 227 58 श्री धर्मनाथ जिनना 288 44 श्री अष्टापदनुं 229 59 श्री शांतिनाथ जिनना 45 श्री अजित जिनना 231 | 60 श्री कुंथुनाथ जिनना 307 46 श्री संभवनाथ जिनना 237/61 श्री अरनाथ जिनना . 310 47 श्री अभीनंदन जिननां 241 62 श्री मल्लिनाथ जिनना 313 48 श्री सुमतीनाथ जिनना 247 | 63 श्री मुनिसुव्रत जिनना 319 49 श्री पद्मप्रभ जिनना 64 श्री नमिनाथ जिनना 324 50 श्री सुपार्थ जिनना | 65 श्री नेमिनाथ जिनना 327 51 श्री चंद्रप्रभ जिनना 25766 श्री नेमिनाथ विवाहलो 346 52 श्री सुविधिनाथ जिनना 26367 श्री पार्थनाथजिन दशभव 53 श्री शीतलनाथ जिनना 267| स्तवन 54 श्री श्रेयांस जिनना 272 | 68 श्री महावीर जिनना। 388 55 श्री वासुपूज्य जिनना 277| 69 श्री सामान्य जिनना
श्री पर्वतिथि पर्युषणा एवं नवपदजी ढाळो तथा सज्झायो 70 बीज तिथिनी ढाल-2 427| 80 श्री पार्थनाथ जिन 8 ढाळ 451 71 श्री सीमंधर जिन ढाळो-7 428 / 81 श्री मौन एकादशीनें 5 72 श्री ज्ञानपंचमीनु स्तवन 430/ ढाळ
455 73 श्री ज्ञानपंचमीनी ढाल-6 431| 82 एकादशी तपनी आराधना 74 श्री ज्ञानपंचमीनी ढाळ-6 434 |
विधि 75 श्री ज्ञानपंचमीनी ढाल-5 438 / 83 एकादशी स्तवन 458 76 श्री ज्ञानपंचमीनू ढाळ-6 443
| 84 मौन एकादशी दोढसो 77 श्री अष्टमीनी ढाल-4 447
कल्याणक ढाळ-12 459 78 अष्टमीनी ढाल-
2 449/85 मौन एकादशीनी ढाळ-4 463 79 आठमनी ढाळ-
2 449/86 श्री रोहीणीतपनी ढाळ-4 465
416
458
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489
489
507
507
87 श्री रोहीणीतपनी ढाळ-6 468 / 91 नरक दुःख वर्णन गर्भितश्री 88 दश पच्चक्खाणनी ढाल-3 471 आदिनाथ जिन विनती 481 89 श्री छ आवश्यकनी ढाळ-6 473 |92 श्री नारकीनी ढाळ-6 482 90 षट्पर्वी महात्म्यनी स्तवन |93 श्री नारकीनी सात ढाळ 485 ढाळ-9
476/
श्री पर्युषण पर्व ढालो तथा सज्झायो 94 पर्व पर्युषण आमंत्रणगीत 95 छ अट्ठाइ ढाळ-9 96 श्री महावीर पंच कल्याणक चोढाळीयुं ढाळ
493 97 श्री महावीर स्वामि द्वितिय पंच कल्याणक ढाळ
498 98 श्री महावीर स्वामि तृतिय पंचकल्याणक ढाळ
502 99 श्री महावीर स्वामिना सत्तावीश भव ढाळ 100 श्री महावीर स्वामिना द्वीतिय सत्तावीशभव ढाळ 101 श्री महावीर स्वामिना तृतिय सत्तावीश भव ढाळ-5 102 श्री महावीर स्वामि चतुर्थ सत्तावीश भव ढाळ 103 श्री महावीर स्वामिनुं हालरडुं
527 104 श्री पर्युषण पर्वना स्तवनो 105 श्री वीरभगवाननुं 27 भवनुं 106 श्री पर्युषणपर्वनी सज्झायो
532 107 चंपा श्राविकानी सज्झाय
543 108 प० पू० जीतविजयजी म. सान्नी संज्झाय
543 109 स्व श्री कनकसूरिश्वरजी म० सान्नी सज्झाय 110 प० पू० आ० वि० कनकसूरिश्वरजी म० सा०नी सज्झाय 547 111 दिवाळीनुं स्तवन 112 दिवाळी कल्प स्तवन ढाळ-10 113 दिवाळीना देव वंदन
518
521
528
531
544
548
549
557
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557
• 560
561
563
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114 गौतम स्वामीना देववंदन
श्री सिद्धचक्र स्तवन ढाल सज्झाय वि. 115 श्री सिद्धचक्र स्तवन 116 सिद्धचक्रनुं स्तवन ढाळ-3 117 श्री पंचपरमेष्ठी ढाळ-5 118 श्री सिद्धचक्र स्तवन 119 श्री वर्धमान तपर्नु 120 नवपदजीनी ओळीनी ढाळो नव 121 नवपदजीनी ढाळ-4 122 श्री सिद्धचक्रजी- स्तवन ढाळ-4 123 श्री अरिहंत पदनी तेम पांच पदनी सज्झाय 124 दिवाळी कल्पनी अपूर्ण बीजी त्रीजी ढाल
567
567
571
577
579
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पूज्य पिताश्री
सुपुत्र स्व. चम्पालालजी मंगलचंदजी लुंकड स्व. देवीचंदजी चम्पालालजी लुंकड
की पुण्यस्मृति में मातुश्री जमनादेवी चम्पालालजी लुंकड सरस्वतीदेवी धरमचंदजी लुंकड
काजुदेवी सुमेरमलजी लुंकड भाभीश्री पुष्पादेवी स्वर्गीय देवीचंदजी लुंकड
एवम् लुंकड परिवार
सुपुत्रो शा. महेन्द्रकुमार लुंकड शा. रमेशकुमार लुंकड शा. ललीतकुमार लुंकड
पुत्रवधू श्रीमति विमलादेवी लुंकड श्रीमति लीलादेवी लुंकड श्रीमति मंजुदेवी लुंकड
पौत्र
सुपुत्री-जमाइ संगीतादेवी सुरेशकुमारजी शा. नवीनकुमार, भारतीदेवी हीराचंदजी शा.
खुशालचंद,
वीशालकुमार पौत्री सुदर्शना, अनीता, प्रीयंका, सोनलएवम् चंपालालजी मंगलचंदजी लुंकड परिवार
गांव राजस्थान बालवाडा जी. झालोर फोन : 4733846/4606827
हाल हैद्राबाद - बेग्लोर फोन : 3350256
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चैत्यवंदन विभाग
(1) श्री बीज तिथिनुं चैत्यवंदन
दुविध धर्म जेणे उपदिश्यो. चोथा अभिनंदन; बीजे जन्म्या ते प्रभु, भवदुःखनिकंदन. १ दुविध ध्यान तुमे परिहरो, आदरो दोय ध्यान; अम प्रकाश्युं सुमति जिने, ते चविआ बीज दिन. २ दोय बंधन राग द्वेष, तेहने भवि तजीओ; मुजपरे शीतल जिन कहे, बीज दिने शिव भजीओ . ३ जीवाजीव पदार्थनुं, करो नाण सुजाण; बीज दिने वासुपूज्यपरे, लहो केवलनाण. ४ निश्चय नय व्यवहार दोय, अकांते न ग्रहीओ; अरजिन बीज दिने च्यवी, ओम जन आगल कहीओ. ५ वर्तमान चोवीशीओ, ओम जिन कल्याण; बीज दिने केई पामीयां, प्रभुनाण निर्वाण ६ ओम अनंत चोवीशीओ, हुवा बहु कल्याण; जिन उत्तम पदपद्मने, नमतां होय सुखखाण. ७
(2)
सहु
चोवीशमो जिनराजजी, चंपापुरी आवे; चौद सहस अणगारना, स्वामि तेह कहावे. १ अढी कोष उंचो सहि, समवसरण विरचावे; त्रिभुवन पति गुरु मां, उपदेश वरसावे. २ जितशत्रु राजा तिहा, प्रभुने वंदन आवे; पण समवसरण मांहि, बेसी हर्षित थावे. ३ भविक जीव तारण भणी, गौतम पूछे जिनने; बीज तिथि महिमां कहो, संशय हरण प्रभु अमने. ४ तव प्रभु पर्षदा आगले, बीजनो महिमा भाखे; पंच कल्याणक जिन तणा, संघनी साखे. ५ बीजे अजित जनमीया, बीजे सुमति च्यवन, बीजे वासुपूज्यजी, लहयुं केवलनाण. ६ दशमा शीतलनाथजी बीजे शिव पाम्या; सातमा चक्रि अरजिन, जन्म्या गुण धाम. ७ अणीपरे जिन समरतां अ, भवि पामो दोय धर्म; सर्व विरती देशविरति, टाळे पातिक मर्म. ८ वीर कहे द्वितिया तिथि, ते कारण तमे पाळो; चंद्रकेतु राजापरे, आतम अजवाळो. सांभळी बहु आदरे, प्राणी बीज आराधो; ते आराधतां केईना, थया आतम उद्धार. १० चउविहार उपवास करी, बीज आराधो विवेक; नयसागर कहे वीर जिन, द्यो मुजने शिव ओक. ११
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(3) बीजरीज करी सींचीये, प्रथम तिथिमां एह, चंद्रकला उदये वधे, तेम पुण्योदय रेह ॥१॥ अभिनंदन सुमतिप्रभु, दशमा शीतलनाथ, वासुपूज्य अरनाथजी, मुक्तिपुरीना साथ ॥२॥ इत्यादिक जिनवरतणां, जन्म नाण निर्वाण, बीजतणे दिनवंदता, पामो क्रोड कल्याण ॥३॥ दुविह धर्मने सेवीये, निश्चयने व्यवहार, आगम नोआगमतणो, भावो तत्त्व विचार ॥४॥ बीजे ठाण वर्णव्यां, दोय दोय ए भेद, बीजतणे दिन मुनिवरां, ध्याता ध्यान दुभेद ॥५॥ अंग उपांगे वर्णव्यां, जीव अजीव पुण्यपाप, बंध मोक्ष दुग वर्णव्यो, भव्य अभव्यनी छाप ॥६॥ बहु श्रुत चरण कमल नमी, संषय करीये दूर, गौतम प्रश्नोत्तर करेए, श्री शुभवीर हजूर ॥७॥
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सुंदर समकित क्षेत्रमां, बीजक दिने बीज। किरिया- खेतर करी, वावो राखी रीज॥१॥ संतोषे शोधन करी, नवविध संवर वाडी, समपाणीथी सिंचता, ऊगे अविचलझाडी॥२॥ मोक्षतणां फल तेहनां, खावोखटऋतुखंते। कर्मरोग भवदुःख मीटे, पामे शिवसुखशांते॥३॥ जीव सकल बे भेदथी, मुक्त अने संसारी, सकषाई अकषाईया, आहारी अणाहारी॥४॥ इन्द्रिय सहित रहित वली, वेद अवेद विलासी भासक अणभासका, बे उत्पत्ति भवराशी ॥५॥ बे सूरज बे चंद्रमां, जंबूद्विपे जाणो, बीजतिथीमां बांधीयां, पामेपरभवटाणो,॥६।। उदयसोमसूरिनमेए, सहुजग सुखने काज, तास विमाने तेणे दिने, वंदो श्रीजिनराज ॥७॥
(5) श्री सीमंधर स्वामि चैत्यवंदनो सीमंधर जिन विचरता, सोहे विजय मोझार; समवसरण रचे देवता सोहे पर्षदा बार. १ नवतत्वनी दीये देशना, सांभळे सुरनर कोडी; षट् द्रव्यादिक वर्णवे, ले समकित करजोडी. २ इहां थकी जिन वेगळा, सहस तेवीस सत अक; सत्तावन जोजन वळी, सत्तर कळा सुविशेष. ३ द्रव्य थकी जिन वेगळा, भावथी हृदय मोझार; त्रिहुं काळे वंदन करूं, थास माहे सो
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वार. ४ श्री सीमंधर जिनवरुओ, पूरे वांछित कोड; कांति विजय गुरु प्रणमतां, भक्ति बे करजोड. ५
(6) समोवसरणे बिराजतां, श्री सीमंधर स्वामि; मधुर ध्वनी दिओ देशना, वाणी सुधा समान. १ पर्षदा बेठी सांभळे, वाणीनो विस्तार; सौ सौना मनमां थयो, आनंद हर्ष अपार. २ जाति वैर समाववा, प्रभु अतिशय अद्भुत; संशय सर्वना टाळतां, करे भवि ने पवित्र. ३ हुं निर्भागी रझळु इहां, शां किधा में पाप; ज्ञानी विनानी गोठडी, कया जई करुं विलाप. ४ मात विनानो बाळ जेम, अथडातो कुटातो; आव्यो छु तुज आगले, राखो तो करुं वातो. ५ क्रोड क्रोड वंदना माहरी ओ, अवधारो जिनदेव; मांगु निरंतर आपनां, चरण कमलनी सेव. ६
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जयतु जिन जगदेक भानु, काम कश्मल तमहरं; दुरित ओघ विभाव वर्जित, नौमि श्री जिन मंधरं. १ प्रभुपाद पद्मे चित्त लयनो, विषय दोलित निर्भर; संसार राग असार घातिक, नौमि श्री जिनमंधरं. २ अतिशेष वह्नि मान महिधर, तृष्णा जलधि हितकरंः वंचनोर्जित जंतु बोधक, नौमि श्री . जिन मंधरं. ३ अज्ञान वर्जित रहित चरणं, परगुणोने मत्सरं; अरति अर्दित चरण शरणं, नौमि श्री जिनमंधरं. ४ गंभीर वदनं भवतु दिनदिन, देहि मे प्रभु दर्शन; भावविजय श्री ददतु मंगल, नौमि श्रीजिनमंधरं. ५
(8) श्री सिमंधर जगधणी, आ भरते आवो; करुणा वंत करी, अमने वंदावो. १ सकल भक्त तुमे धणी, जो होवे अम नाथ; भवो भव हुं छु ताहरो, नहीं मेलु हवे साथ. २ सयल संग छंडी करी, चारित्र लेईशुं; पाय तुमारा सेवीने, शिवरमणी वरीशुं. ३ मे अलजो मुजने घणो अ, पूरो सिमंधर देव; इहां थकी हुं विनवू, अवधारो मुज सेव. ४ करजोडी ने विनवू, सामो रही इशान; भाव जिनेश्वर भाणने, देजो समकित दान. ५
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श्री सिमंधर वीतराग, त्रिभुवन तुमे उपगारी; श्री श्रेयांस पिता कुळे, बहु शोभा तुमारी. १ धन्य धन्य माता सत्यकी, जेणे जायो जयकारी; वृषभ लंछने बिराजमान, वंदे नरनारी. २ धनुष पांचसे देहडीओ, सोहीजे सोवन वान; कीर्ति विजय उवज्झायनो विनय धरे तुम ध्यान. ३
(10) पहेला प्रणमुं विहरमान, श्री सिमंधर देव; पूर्व दिशे इशान खूणे, वंदु हुं नित्य मेव. १ पुक्खलवई विजयो तिहां, पुंडरिगिणि नयरी; श्री श्रेयांस राजा भला, जीत्या सवी वैरी. २ देहमान धनुष्य पांचशे, माता सत्यकी नंद; रुक्मिणी राणी नाहलो, वृषभ लंछन जिनचंद. ३ चौराशी लाख पूरव आय. सोवन वरणी काय; वीस लख पूरव कुमार वास, तेम त्रेसठ राय. ४ गणधर चोराशी कह्यांओ, मुनिवर अकसो कोडी; पंडित धीर विमल तणो, ज्ञान विमल कहे करजोडी. ५
(11) सिमंधर प्रमुख नमुं, विहरमान जिन वीश; ऋषभादिक वली वंदिओ, संपइ जिन चोवीश. १ सिद्धाचल गिरनार आबु, अष्टापद वली सार; समेत शीखर मे पंच तीर्थ, पंचमी गति दातार. २ उर्ध्वलोके जिनवर नमुं, ते चोरासी लाख; सहस सत्ताणुं उपरे, त्रेवीस जिनवर भाख. ३ ओक सो बावन कोड वली, लाख चोराणुं सार; सहस चुम्मालीश सातसे, साठ जिन पडिमा उदार. ४ अधोलोक जिन भवन नमुं, सात कोड बहोंतेर लाख; तेरसो कोड नेव्यासी कोड, साठ लाख चित्त राख. ५ व्यंतर ज्योतिषिमा वलीओ, जिन भवन अपार; ते भवि नित्य वंदन करो, जेम पामो भवपार, ६ तिर्छा लोके शाश्वता, श्री जिन भवन विशाळ, बत्री सेने ओगण साठ, वंदुं थई उजमाळ. ७ लाख त्रण अकाणुं सहस, त्रणसें वीश मनोहार; जिनपडीमा ओ शाधतां, नित्य नित्य करुं जुहार. ८ त्रण भुवन माहे वलीओ, नामादिक जिन सार; सिद्ध अनंता वंदिये, महोदय पद दातार. ६
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(12) श्री सिमंधर जिनवरा विचरे जंबुद्विपे; पुक्खलवई विजये नगर, पुंडरीगीणी दीपे. १ सुत श्रेयांस राजातणो, सोवन वरणी काय; पूरव चोराशी लाखनु, आयु जास सोहाय. पांचसे धनुष शरीर छे, वृषभ लंछन पाय; रुक्मिणी राणी नाहलो, सत्यकी जेहनी माय. ३ दश लाख केवली जेहने, सो कोडी मुनि स्वामि; साध्वि सो कोडी कही, श्रावक संख्या न पामी. ४ प्रातिहारज आठ छे, वाणी गुण पांत्रीश; पूर्व विदेहे जाणीये, नमतां लहीये जगीश. ५ इह भरते प्रभु कुंथुजिन, सिद्धिपुर पहोंते; अरजिन जन्म हुओ नही, जे अंतर सोहंते. ६ सिमंधर जिन उपना, सुरपति महोत्सव कीधो; सुव्रत नमिजिन अंतरे, दिक्षा कल्याणक सीधो. ७ उदय पेढाल भावि प्रभु, तस अंतर कहेवाय; सिमंधर जिन पामशे, अविनाशी पुर ठाय. ८ आ भरते पण कोई जीव, सुलभ बोधी जेह; जाप जपे तुज नामनो, लाख संख्या मे तेह. ६ भवस्थित निर्णायत हुआ. अथवा ध्यान पसाये; उपजी विदेहे केवल लहे, नवमें वरस उच्छांहे. १० शासन सुरी पंचांगुली, सवी सानिध्य सारे; सीमंधर जिन सेवतां, दुःख दोहग वारे. ११ प्रह उठीने पणमीओ, आणी मन आणंद; श्री लक्ष्मी सूरी नामथी, प्रगटे परमानंद. १२
(13) सिमंधर परमातमा, शिवसुखना दाता; पुख्खलवई विजये जयो, सर्व जीवना त्राता. १ पूर्व विदेह पुंडरीगीणी नयरीओ सोहे; श्री श्रेयांस राजा तिहां, भवियणनां मन मोहे. २ चौद सुपन निर्मल लही, सत्यकी राणी माय; कुथु अरजिन अंतरे, सिमंधर जिन जात. ३ अनुक्रमे प्रभु जनमीया, वली यौवन पामे; मात पिता हरखे करी, रुक्मिणी परणावे. ४ भोगवी सुख संसारना, संयम मन लावे; मुनिसुव्रत नमि अंतरे, दीक्षा प्रभु पावे. ५ घाती कर्मनो क्षय करी, पाम्या केवल नाण; वृषभ लंछने शोभतां, सर्व भावना जाण. ६ चोराशी तस गणधरा, मुनिवर अकसोक्रोड; त्रण भुवनमां जोवतां, नही कोई अहनी जोड. ७ दशलाख कह्या केवली, प्रभुजीनो परिवार; ओक समय त्रण काळनां, जाणे सर्व विचार. ८ उदय पेढाल जिनांतरे ओ, थाशे जिनवर सिद्ध; जसविजय गुरु प्रणमतां, शुभ वांछित फल लीध. ६
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(14) सिमंधर युगमंधर प्रभु, बाहु सुबाहु चार; जंबुद्विप विदेहमां, विचरे जगदाधार. १ सुजात साहेबने स्वयं प्रभु, ऋषभानन गुण माल; अनंत वीर्य ने सुरप्रभु, दशमा देव विशाल. २ वज्र धर चंद्रानन नमुं, धातकीखंड मोझार; अष्ट कर्म निवारवा, वंदु वार हजार. ३ चंद्रबाहु ने भुजंग प्रभु, नमी इश्चर वीरसेन; महा भद्र ने देवजसा, अजीत वीर्य नामेन. ४ आठे पुष्करार्धमां, अष्टमी गति दातार; विजय अडनव चउविसमी, पण वीसमी कीरतार. ५ जगनायक जगदिश्वरुओ, जगबंधव हितकार; विहरमानने वंदता, जीव लहे भवपार. ६
(15) श्री सिमंधर साहिबा, महाविदेह क्षेत्र मोझार, भक्तिभावे वंदन करूं, दिनमें वार हजार ॥१॥ धन्य धन्य विजय पुष्कलावती, धन्य पुंडरीकीणी
धाम, धन्य धन्य माता सत्यकी, धन्य पिता श्रेयांस नाम ॥२॥ चौराशी . लाख पूर्व स्थिति, धनुष पांचशे काय, धोरी लंछन शोभती, सोवन वरणीकाय ॥३॥ कुंथुनाथ वारे जनमीया, इंद्रे कीधो अभिषेक, सुव्रत समय दीक्षा ग्रही, तार्यां जीव अनेक ॥४॥ उदय पेढाल जिनांतरे, थाशो सिद्ध स्वरूप, अधम ऊद्धारण तारजो, देजो ज्ञान अनूप ॥५॥
(16) ज्ञानपंचमी चैत्यवंदनो त्रिगड़े बेठा वीरजिन, भाखे भविजन आगे; त्रिकरण शुं त्रिहुं लोकजन, निसणो मन रागे. १ आराधो भली भांतसे, पांचम अजुवाली; ज्ञान आराधन कारणे, अहीज तिथि निहाळी. २ ज्ञान विना पशु सारिखा, जाणो अणे संसारः ज्ञान-आराधनथी लहे, शिवपद सुख श्रीकार. ३ ज्ञान रहित क्रिया कही, काशकुसुम उपमान; लोकालोक प्रकाश कर, ज्ञान अक प्रधान. ४ ज्ञानी धासोधासमां, करे कर्मनो छेह; पूर्व कोडी वरसा लगे, अज्ञानी करे तेह. ५ देश आराधक क्रिया कही, सर्व आराधक ज्ञान; ज्ञान तणो महिमा घणो, अंग पांचमे भगवान. ६ पंचमास लघु पंचमी, जावज्जीव उत्कृष्टी, पंच वरस पंच मासनी, पंचमी करो शुभ दृष्टि. ७ अकावन ही पंचनो ओ, काउसग्ग लोगस्स
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केरो; उजमणुं करो भावशुं, टाळो भव फेरो. ८ अणी परे पंचमी आराहिओ अ, आणी भाव अपार; वरदत्त गुणमंजरी परे, रंगविजय लहो सार. ६
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सकल सुरा सुर साहिबो, नमीओ जिनवर नेम; पंचमी तिथि जग परवडो, पाळो जन बहुप्रेम. १ जिनकल्याणक अ तिथे, संभव केवल ज्ञान; सुविधि जिनेश्वर जनमिया, सेवो थई सावधान. २ च्यवन चंद्रप्रभ जाणीओ, अजित सुमति अनंत पंचमी दिने मोक्षे गया, सेवो भविजन संत. ३ कुंथुजिन संयम ग्रह्यो, पंचमी गति जिन धर्म; नेमि जन्म वखाणिओ, पंचमी तिथि जगशर्म. ४ पंचमीना आराधने, पामे पंचम ज्ञान; गुणमंजरी वरदत्त ते, पहोंच्या मोक्ष सुठाण. ५ कार्त्तिक सुदि पंचमी थकी, तप मांडी जे खास; पंच वरस आराधिओ, उपर वळी पंचमास. ६ दशक्षेत्र नेवुं जिन तणां, पंचमी दिनना कल्याण; अह तिथे आराधतां, पामे शिवपदठाम ७. पडिक्कमणां दोय टंकनां, करीओ शुद्ध आचार; देव वंदो ऋण काळनां, पहोचाडे भव पार. ८ नमो नाणस्स गुणणुं गणो, नवकारवाळी वीस; सामायिक शुद्धे मने, धरीये शीयल जगीश. ६ अणी पर पंचमी पालशो अ, भविजन प्राणी जेह; अजर अमर सुख पामशे, हंस कहे गुण गेह. १०
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बारपर्षदा आगळे, नेमी जिनेसर राय; मधुर ध्वनी दिये देशना, भविजनने हित दाय. १ पंचमी तप आराधीओ, जिम लहिओ ज्ञान अपार; कार्तिक सुदि पंचमी ग्रहो, हर्ष घणो बहुमान. २ पंचमास लघु पंचमी, जावज्जीव उत्कृष्टि; पंच वरस पंच मासनी, पंचमी करो शुभ दृष्टि. ३ वरदत्तने गुण मंजरी, पंचमी आराधी; अंते आराधन करी, शिवपुरीने साधी. ४ अणी परे जे आराधशे अ, पंचमी विधि संयुक्त; जिन उत्तम पद पद्मने, नम थाये शिव भक्त. ५
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त्रिशला नंदन दिनमणि, चोविसमो जिनचंद; पंच कल्याणक जेहना,
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सेवे सुरनर वृंद. १ सोवन वरणे शोभतो, समक्सरण मोझार; वाणी सुधारस वरसतो, गाजतो जलधार. २ पंचमगति साधनभणी, पंचमी तप प्रधान; कार्तिक शुकल दिन जाणीओ, सेवो थई सावधान. ३ ज्ञाने दरिसण गुण वधे, ज्ञान ते जगत प्रकाश; ज्ञाने थिरता चरणमा, चरणे शिवपुर वास. ४ जैना गमथी जाणीये, महिमा अगम अनंत; ज्युं वरदत्त गुणमंजरी, पाम्या भवनो अंत. ५ अनुभव सहित आराधतां, लहीले सुख रसाल; जिन उत्तम पद सेवतां, रत्न लहे गुण माळ. ६.
(20) युगला धर्म निवारियो, आदिम अरिहंत, शांति करण श्री शांतिनाथ, जगकरुणा वंत. १ नेमिसर बावीसमां, बाळ थकी ब्रह्मचारी; प्रगट प्रभावी पाश्वदेव, रत्न त्रयी धारी. २ वर्तमान शासन घणी, वर्धमान जगदीश; पांचे जिनवर प्रणमतां, जगमां वाघे जगीश. ३ जन्म कल्याणक पंचरुपे, सोहम पति आवे; पंच वरण कळशे करी, सुरगिरि नवरावे. ४ पंच शाख अंगुठडे, अमृत संचारे; बाळपणे जिनराज काज, इम भक्ति सुधारे. ५ पांच घाव पाली जतां, यौवन वय आवे; पंच विषय विष वेली तोडी, संयम मन भावे. ६ छंडी पंच प्रमाद पंच, इन्द्रिय बल मोडी, पंच महाव्रत आदरी, देइ धन कोडी. ७ पंचाचार आराधता पाम्या पंचम ज्ञान; पंच देह वर्जीत थयां, पंच हस्वाक्षर मान. ८ पंचमी गति भार सार, पूरण परमानंद; पंचमी तप आराधीओ, खिमाविजय जिनचंद. ६
(21) पंचमी दिन प्रभु जनमीया, नेमि जिणंद जगभाण, अजित अनंत संभवलहे, पंचमीगति गुणखाण ॥१॥ सुविधि जिनेश्वर जनमीया, संभव केवलनाण, दीक्षा कुंथुजिनग्रहे, चंद्रप्रभ च्यवन कल्याण ॥२॥ पंचमीतप वली कीजीये, पंचवरस पंचमास, जावन्जीव लगी जे करे, पामे ज्ञान उल्लास ॥३॥ आगम पांच प्रकारनां, सूत्र नियुक्ति सार, टीका भाष्यने चूरणी, पंचम अंग मोझार ।।४।। ठंडे पंच प्रमादने, पंचमी गति लहे तेह, वीरप्रभु मुजदिजीये, किर्तिचंद्र शिवगेह ॥५॥
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(22) श्री अष्टमीनु चैत्यवंदन राजगृही उद्यानमां, वीर जिनेश्वर आव्या; देव इंद्र चोसठ मळ्या, प्रणमे प्रभु पाया. १ रजत हेम मणि रयणनां, तिहुयण कोट बनाय; मध्य मणिमय आसने, बेठा श्री जिनराय. २ चउविह धर्मनी देशना, निसुणे पर्षदा बार; तव गौतम महारायने, पूछे पर्व विचार; ३ पंच पर्वी तुमे वर्णवी, तेमां अधिकी कोण; वीर कहे गौतम सुणो, अष्टमी पर्व विशेष. ४ बीज भवि करतां थकां, बिहु विध धर्म सुणंत; पंचमी तप करतां थकां, पांचे ज्ञान भणंत. ५ अष्टमी तप करतां थका, अष्ट कर्म हणंत; अकादशी करतां थकां, अंग अगयार भणंत. ६ चौदे पूरवधर भलाओ, चौदशे आराधे, अष्टमीतप करता थका, अष्टमी गति साधे. ७ दंड विरज राजा थयो, पाम्यो केवळ नाण; अष्टमी तपमहिमा वडो, भाखे श्री जिनवाण. ८ अष्ट कर्म हणवा भणीओ, करीओ तप सुजाण; न्याय मुनि कहे भवि तुमे, पामो परम कल्याण. ६
(23) महासुदि आठमने दिने, विजया सुत जायो; तेम फागण सुदि आठमे, संभव चवी आयो. १ चैतर वदनी आठमे, जन्म्या ऋषभ जिणंद; दीक्षा पण ओ दिन लही, हुवा प्रथम मुनिचंद. २ माधव सुदि आठम दिने, आठ कर्म कर्या दूर; अभिनंदन चौथा प्रभु, पाम्या सुख भरपुर. ३ ओहिज आठम उजळी, जन्म्या सुमति जिणंद; आठ जाति कळशे करी, न्हवरावे सुर इंद्र. ४ जन्म्या जेठ वदि आठमे, मुनिसुव्रत स्वामि; नेमि अषाढ सुदि आठमे, अष्टमी गति पामी. ५ श्रावण वदनी आठमे, नमि जन्म्या जगभाण; तेम श्रावण सुदि आठमे, पार्धजीनुं निर्वाण. ६ भादरवा वदि आठम दिने, चविआ स्वामि सुपास; जिन उत्तम पद पद्मने, सेव्याथी शिववास. ७
(24) चैत्र वदि आठम दिने, मरुदेवी जायो; आठ जाति दिशि कुमरिओ, आठे दिशि गायो. १ आठ इन्द्राणी नाथy, सुर संगते लई आवे; सुर गिर
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उपर सुरवरा, सर्वे मली आवे. २ आठ जाति कलशा भरी, चोसठ हजार; दोयसेने पचास मान, अभिषेक उदार. ३ ओक क्रोडने साठ लाख, उंचा शत कोश; पोळ पणे अड्याल कोश, कळशा जळकोश. ४ चार वृषभ अड शृंग रंग, आठे जलधारे; न्हवरावी जिनराजने, तिम सुरेन्द्र पाप पखाळे. ५ क्षुद्रादिक अड दोष शोष, करी अड गुण पाखे; टाळी आठ प्रमाद आठ, मंगल आळेखे. ६ कोडी आठ चउ गुणा, कंचन वरसावे; प्रभु सोंपी निज मातने, नंदीश्वर जावे. ७ अट्ठाई महोत्सव करीओ, ठवणा जिन उद्देश; आठ प्रकारे पूजीओ, आठम दिन सुविशेष. ८ ऋषभ अजित सुमति नमी, मुनिसुव्रत जन्म; अभिनंदन ने नेम वास, पाम्या शिव शर्म. ६ संभव देव सुपास दोय, सूरभवथी चवीया; सेना पुहवी मात दुग, उदरे अवतरिया. १० वरस ओक उद्घोषणाओ, ऋषभ लीओ चारित्र; आठम दिन अग्यार इम, कल्याण सुपवित्र. ११ दंसण नाण चारित्रनां, आठे आचार; टाले गाले पापने, पाले पंचाचार. १२ अणिमादिक अड ऋद्धि सिद्धि, क्षणमांहे पामे; आठे कर्म हणी थया, अड गुण अभिराम. १३ आठम दिन उज्वल मने ओ, समरो दश अरिहंत; क्षमाविजय जिन नामथी, प्रगटे ज्ञान अनंत. १४
(25) सुमतिनाथ अकासj, करी संयम लीधो; मल्लि पास जिनराज दोय, अट्ठम शुं प्रसिद्धो. छट्ठ भक्त करी अवर सर्वे, लीओ संयम भार; वासुपूज्य करे चोथ भक्त, थया ते श्री अणगार. २ वरसांते पारणुं करे ओ, इक्षुरस रिसहेश; परमान्ने बीजे दिने, पारणु अवर जिनेश. ३ विनिता नगरीमां लीओ, दीक्षा प्रथम जिणंद; द्वारामती ओ नेमिनाथ, सहेसावन वृंद. ४ शेष तीर्थंकर जन्मभूमि, लीओ संयम भार; अण परण्या श्री मल्लिनाथ, तेम श्री नेमकुमार. ५ वासुपूज्य पास वीरजीओ, भूप थया नवी अह; अवर राज्य भोगवी थया, ज्ञानविमल गुण गेह. ६
(26) सिद्धि आठने साधवा, आठम तिथिने सेवो; महासुदी आठम दिने, जन्म्या अभिनंदन देवो. १ फागण सुदी आठम दिने, चवीया संभव नाथ; चैत्र
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वदी आठम तिथि, जन्म्या आदिनाथ. २ दीक्षा पण तेहिज दिने, आदि जिणंदे लीधि; वैशाख सुदि आठम दिने, अभिनंदन जिन सिद्धि. ३ माघ सुदी आठम दिने, जन्म्या सुमति जिणंद, जेठ सुदी आठम जनमिया, मुनिसुव्रत जिनचंद . ४ अषाड सुदनी आठमे, नेमिनाथ निर्वाण; जन्म्या श्रावण वदी आठमे, नमिनाथ जग भाण. ५ श्रावण सुदि आठमे गया, सिद्धि पार्श्व जिणंद; भादरवा वदी आठमे, चवीया सुपार्श्व मुणिंद. ६ अष्टमी गतिने पामवाओ, आठम तिथि मन धार; दान दया सौभाग्यथी मुक्ति विमल पद सार. ७
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अष्टमी तप आराधीओ, भाव धरी उल्लास; आठ सन्माने ओळखे, पामो लील विलास १ आठ शुद्धि गुण आदरो, वळी अष्टापद योग; अष्ट महा सिद्धि संपजे, नावे शोक ने रोग. २ योग दृष्टिने आदरो अ, मित्रादिक सुखकार; अष्ट महामद टाळीओ, जिम पामो अपहास ३ प्रवचन माता आठनो, आदरो धरी मन रंग; आठ ज्ञानने ओळखी, शिववधु करो संग . ४ गणी संपदा आठमी, आठम दिने धारो; नरक तिर्यंच गति दुःखनी, तेहनो नहि चारो. ५ आठ जाति कलशे करीओ, न्हवरावो जिनराय; आठ योजन जी कही, सिद्धशिला मुनि राय. ६ पूजा अष्ट प्रकारनी, समजी करो तस मर्म; अष्टमी करतां प्राणीओ, क्षय करे आठे कर्म. ७ दूरी करी आठ दोषने, तिम अड गुण पाळो; ज्ञान दर्शन चारित्रनां, आठ अतिचार टाळो. ८ आठ आठ प्रकारना अ, भेद अनेक प्रकार; अष्टमी फळ प्रभु भाखीयां, त्रिगडे बेसी सार. ६ फागण वदि आठम दिने, मरुदेवी जायो; दिक्षा पण तेहिज दिने, सुरनर मली गायो १० सुमति अजित जन्म सार, संभव जिन च्यवन; आठ दिन बहु जाणने, कल्याणक तिथि नवन. ११ अष्टमी तप भवियण करोओ, कर्म न पावे जेह; तप करतां जस संपजे, शुभ फल पामे जेह. १२
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क्रोधे कांई न नीपजे, समकित जे लुंटाय; समता रसथी झीलीओ, तो वैरी कोई न थाय. १ व्हालाशुं वढीओ नहीं, छटकी न दीजे गाळ; थोडे थोडे छंडीओ, जिम छंडे सरोवर पाळ. २ अरिहंत सरीखी गोठडी, धर्म
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सरीखो स्नेह; रत्न सरीखा बेसणां, चंपक वर्णो देह. ३ चंपके प्रभुजी न पूजीयां, न दीधुं मुनिने दान; तप करी काया न शोषवी, किम पामशो निर्वाण. ४ आठम पाखी न ओळखी, ओम करे शुं थाय; उन्मत्त सरखी मांकडी, भोय खणंती जाय. ५ आंगण मोती वेरीयां ओ, वेले वींटाली वेल; हीर विजय गुरु हीरलो, मारुं हैयुं रंगनी रेल. ६
(29) मंत्रादिक अड अष्टबोध, पामी अडबुद्धि, खेदादिक अडदोष भेद, पडिक्कमणे शुद्धि ॥१॥ अद्वेषादिक आठगुण, धरे, अडमद तजीए, यम नियमादिक आठ योग, गुणसंपद भजीये ॥२॥ आठमदिन आराधीये, ए, धातकी पुष्कर अर्थे, क्षमाविजय जिन विचरतां, प्रतिहार्य समूहे ॥३॥
(30) अकादशीना चैत्यवंदनो अकादशी दिन किजीओ, भवियण मौन उपवास; कल्याणक जिनराजनां, जपीये शत पचाश. १ नेमि जिनेसर दाखीयो, महिमा अधिक अपार; आराधि गोविंद लहे, तीर्थंकर पद सार. २ मौने चारित्र गुण वधे, मौने ज्ञान प्रकाश; आतम सत्ता प्रगट करी, केई पाम्या शिव वास. ३ ओ तप गुणमणि आगरु, ओ तप शिवतरु कंद; अवलंबन अहनुं करी, बहु तोड्यां भवफंद. ४ जिनवर नाम जपतां थकां, होवे कारज सिद्धि; ज्ञानादिक गुण संपदा, प्रगटे आतम रिद्धि. ५ सुव्रत प्रमुख तर्या घणां, श्रावक गुण शिरदार; जिन उत्तमपद सेवतां, रल थाय निस्तार. ६
(31) नेमिजिनेश्वर गुण नीलो, ब्रह्मचारी शिरदार; सहस पुरुष शुं आदरी, दीक्षा जिनवर सार. १ पंचावनमें दिन लघु, निरुपम केवल नाण; भविक जीव पडिबोधवा, विचरे महियल जाण. २ विहार करंता आवीया, बावीशमा जिनराय; द्वारिका नगरी समो सर्या, समोवसरण तिहां थाय. ३ बार पर्षदा तिहां मली, भाखे जिनवर धर्म; सर्व पर्व तिथि साचवो, जिम पामो शिव शर्म. ४ तव पूछे हरि नेमने, दाखो दिन मुज ओक; थोडो धर्म कर्या थकी,
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शुभ फल पामो अनेक. ५ नेमि कहे केशव सुणो, वरस दिवसमां जोय; मागशिर सुदी अकादशी, ओ समो अवर न कोय. ६ इणदिन कल्याणक थयां, नेवु जिननां सार; ओ तिथि विधि आराधतां, सुव्रत थयो भवपार. ७ ते माटे मोटी तिथि, आराधो मन शुद्ध; अहोरत्त पोसह करो, मनधरी आतम बुद्ध. ८ दोढसो कल्याणक तणुंओ, गणणुं गणो मन रंग; मौन धरी आराधीओ, जिम पामो सुख संग. ६ उजमणुं पण कीजीओ, चित्त धरी उल्लास; पुंठा ने वींटागणां, इत्यादिक करो खास. १० ओम अकादशी भावशू ओ, आराधे नर राय; क्षायिक समकितनो धणी, जिन वंदी घेर जाय. ११ अकादशी भवियण करोओ, उज्वल गुण जिम थाय; क्षमा विजय जस ध्यानथी, शुभ नरपति गुण गाय. १२
(32) विश्वनायक मुक्ति दायक नमि नेमि निरंजनं, हर्ष धरी हरी पूछे प्रभुने, भाखो आतम हितकरं; कुण दिवस ओवो वरस मांहे, अल्प सुकृत बहु फले, कहे नेवु जिननां हुआ कल्याणक, मौन अकादशी सुखकरं. १ केवली महाजस सर्वानुभूति, श्री श्रीधरनाथ ओ, नमी मल्लि श्री अरनाथ स्वामि, साचो शिवपुर साथ; श्री स्वयंप्रभ देव श्रुत अरिहंत, उदयनाथ जिनेश्वरु. कहे. २ अकलंक कर्म कलंक टाळे, शुभंकर समरूं सदा; सप्तनाथ ब्रमेंद्र जिनवर, श्री गुणनाथ नमुं मुदा, गांगिक नाथ श्री सांप्रति, मुनिनाथ विशिष्ट अतिवरं, कहे. ३ श्री मृदुजिनजी जगतवेत्ता, व्यक्त अरिहा वंदी); श्री कलाशत आरण्य ध्याता, सहज कर्म निकंदी); जोग अजोगश्री परम प्रभुजी, सुद्धातिनी केसरं, कहे. ४ श्री सर्वार्थ सकल ज्ञायक, हरिभद्र अरिहंत जे; मगधाधिप जिनेंद्र वंदो, श्री प्रयच्छ गुणवंत ओ, अक्षोभ मल्ल सिंहनाथ दिनरुक, धनद पौषद जयकर, कहे. ५ श्री प्रलंब चारित्र निधि जिन, प्रशम राजित ध्याइ); स्वामी श्री विपरीत देव अहोनिश, प्रसाद प्रेमे गाई; अघटित ज्ञानी ब्रौद्र प्रभु, ऋषभ चंद्र अघहरं, कहे. ६ दयांत दाता जगत केरो, अभिनंदन रत्नेश मे; श्याम कोष्ट मरुदेव नायक, अतिपार्थ विशेष अं; नमो नंदिषेण व्रतधर श्री निर्वाणी दुःख हरं, कहे. ७ सौंदर्यज्ञानी त्रिविक्रम जिन, श्री नरसिंह नमो तुमे; खेमंत संतोषित अरिहा, कामनाथथी
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दुःख शमे; मुनिनाथ ने श्री चंद्रद्राह, दिलादित्य उदयकरं कहे. ८ श्री आष्टाह्निक वणिक वंदो, उदयज्ञान आराधी); तमो कंद ने सायकाक्षस्वामि, खेमंत शिवसुख साधीये; निर्वाणी ने रविराज साहिब, प्रथम नाथ परमेश्वरं, कहे. ६ श्री पुरुरवास अवबोध जगगुरु, विक्रमेंद्र वखाणी); श्री सुशांति हरि नंदि केशने, महामृगेंद्र मन आणीओ; अशोक चित्त चित्तमा वसे, अहनीश धर्मेंद्र जयजयकरं, कहे. १० अश्ववृंद कुटीलक वर्धमान, नंदिकेशना गुणघणा; श्री धर्मचंद्र विवेक जगपति, श्री कलापक सोहामणा; विसोम सौम्य कृति जेनी, आरण अंगी सुखकरं, कहे. ११ त्रीस चोवीसी दशक्षेत्रे, कालत्रिक जिन लीजीये, पंच कल्याण त्रीस जिननां, इम दोढसो गुणीजी); जिन भक्ति करतां ध्यान धरतां, कोटी तप फल होइ नरं, कहे. १२ पौषध ने उपवास करीओ, आराधे अकादशी; नरभव तेहनो सफल थाये, परमानंद पद देहसी; गुरुरुपकीर्ति हृदय धरीने, माणेक मुनिवंदो सुखकरं, कहे. १३
(33) शासन नायक जगजयो, वर्धमान जगइश; आतमहितने कारणे, प्रणमुं परम मुनीश. १ षट्पर्वी जेणे वर्णवी, तेहमां अधिकि जेह; अकादशी सम को नहि; आराधो गुण गेह. २ मागशर सुदि अकादशी, आराधो शिववास; कल्याणक नेवु जिनतणां, अकसो ने पचास. ३ महायश सर्वानुभूति, श्रीधर नमी मल्लि अरनाथ; स्वयंप्रभ देवश्रुत उदय, मलीया शिवपुर साथ. ४ अकलंक शुभंकर सप्तनाथ, ब्रमेंद्र गुण गांगीक; सांप्रति मुनि विशिष्ट जिन, पाम्या पुन्यनी टेक. ५ श्रीमृदु व्यक्त कलाशत, आरण योग अयोग; परम शुधार्ति निकेश तेम, पाम्या शिव संयोग. ६ सर्वार्थ हरिभद्र मगधाधिप, प्रयच्छ अक्षोभ मलयसिंह; दिनरुक धनद पौषध तथा, जपतां सफली जिह. ७ प्रलंबचारित्र निधि प्रशमराजित, स्वामि विपरीत प्रासाद; अघटित भ्रमणेंद्र ऋषभचंद्र समर्यां शिव अबाद, ८ दयांत अभिनंदन रलेश ते, श्यामकोष्ट मरुदेव अतिपार्थ; नंदीषेण व्रत धर निर्वाण, तथा थाये शिवसुख वास. ६ सौंदर्य त्रिविक्रम नरसिंह क्षेमंत, संतोषित कामनाथ, मुनिनाथ चंद्रदाह दिलादित्य, मळीयो शिवपुर साथ. १० अष्टाहिक वणिक उदयनाथ, तमो
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कंद सायकाक्ष खेमंत; निर्वाणिक रविराज प्रथम, नमतां दुःखनो अंत. ११ पुरुरवास अवबोधविक्रममेंद्र, सुशांति हरदेव नंदिकेश; महा मृगेंद्र अशोचित धर्मेन्द्र, संभारो नाम निवेश. १२ अश्ववृंद कुटीलक वर्धमान, नंदिकेश धर्मचक्र विवेक; कलापक विसोम आरणनाथ, समर्या गुण अनेक. १३ त्रण पदे त्रण चोवीशीओ, पदे पदे कोठे जाण; चोथा पदमां भावना, आराधो गुण खाण. १४ दोढसो कल्याणक तणो, गुणणो ओ मनोहार; चित्त आणीने आदरो, जिम पामो भवपार. १५ जिनवर गुणमाला, पुन्यनी ओ प्रवाला; जे शिवसुख रसाला, पामीये सुविशाला; जिन उत्तम थुणीजे, पाद तेहना नमीजे, जिन रुप समरीजे, शिवलक्ष्मी वरीजे. १६
(34) शासन नायक वीरजी, प्रभु केवल पायो; संघ चतुर्विध स्थापवा, महसेन वन आयो. १ माधव सित अकादशी, सोमल द्विज यज्ञ; इन्द्र भूति आदे मल्या, अकादश विज्ञ. २ अकादशसें चउ गुणा, तेहनो परिवार; वेद अर्थ अवळो करे, मन अभिमान अपार. ३ जीवादिक संशय हरी ओ, अकादश गणधार; वीरे थाप्या वंदीओ, जिन शासन जयकार. ४ मल्लि जन्म अर मल्लि पास, वर चरण विलासी; ऋषभ अजित सुमति नमी, मल्लि घन घाति विनाशी. ५ पद्म प्रभ शिव वास पास, भय भवना तोडी; अकादशी दिन आपणी, ऋद्धि सघली जोडी. ६ दश क्षेत्रे त्रिहुं काळना, त्रणसें कल्याण; वर्ष अग्यार अकादशी, आराधो वरनाण. ७ अगीयार अंग लखावीओ, अकादश पाठा; चाबकी ठवणी पुंजणी, मशी कागल ने काठां. ८ अग्यार अव्रत छंडवाओ, वहो पडिमा अग्यार; क्षमाविजय जिन शासने, सफल करो अवतार. ६
(35)
आज ओच्छव थयो मुजघरे, एकादशी मंडाण, श्रीजिननां त्रणशेभलां, कल्याणक घरजाण ॥१॥ सुरतरुं सुरमणि सुरघट, कल्पवल्ली फली माहरे, एकादशी आराधतां, बोधिबीज चित्तठारे ॥२॥ नेमि जिनेश्वर पूजताए, पहोंचे मननां कोड, ज्ञानविमल गुणथी लहो, प्रणमो बेकरजोड ॥३॥
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(36) श्री नेमिनाथ जिन चैत्यवंदन समुद्र विजय कुल चंद नंद, शिवादेवी जायो; यादव वंश नभोमणि सौरीपुर ठायो. १ बाळ थकी ब्रह्मचर्य धर, गत मार प्रचार; भक्ति निज आत्मिक गुण, त्यागी संसार. २ निष्कारण जग जीवनो ओ, आशानो विश्राम; दिन दयाळ शिरोमणी, पूरण सुरतरु काम. ३ पशुय पोकार सुणी करी, छंडी गृहवास; तत्क्षण संयम आदरी, करी कर्मनो नाश. ४ केवल श्री पामी करीओ, पहोत्या मुक्ति मोझार; जन्म मरण भय टाळवा, ज्ञान सदा सुखकार. ५
(37) बाळपणे श्री नेमिनाथ, वंदु ब्रह्मचारी; आठ भवोनी प्रीतडी, तारी राजुल नारी. १ समुद्रविजय सुत जाणीये, शिवादेवी जाया; जादवकुल सोहामणो, शंख लंछन गुण गाय. २ बत्रीश सहस बांधव तणी, जाणो पटराणी; पिचकारी सोवन तणी, त्यां जल भरीने आणी. ३ दडो उछाळे फुलनो दीयरने बोलावे; सहु को भोजाईओ मली, विवाह नेम मनावे. ४ नारी विनानुं घर नहीं, वांढो नर कहेवाय; भोजाइओ मेणा मारशे, परणे नेमकुमार. ५ परणो राजुल नार तुमे, उग्रसेननी बेटी; सत्यभामानी बेनडी, समकित गुणनी पेटी. ६ अक नारी विना इस्युं, घर शून्य ज कहेवाय; उना अन्न कोण आपशे, सुणो बंधव वात. ७ मंडप चोराशी स्थंभनो, रचीयो मन रंगे; चौदिशी गौरी गावती, सांजे ने सवारे. ८ पीठी चोळे पितराणी मळी, उनां जळे नवरावे; नवल घउंला भेळवी, मग पीठी बनावे. ६ सात जातनां धान्यनां, जुवारा ववरावे; भोजाई पासे सिंचाववा, गंगा नीर मंगावे. १० आभूषण अंगे धरी, पुलनो सेरो भरावो; वरघोडो काढी नेमनो, राजुलने परणावो. ११ पंच शब्द वाजिंत्र त्यां, भेरी वगडावे; थेई थेई नाचे पात्र तिहां, प्रभु तोरण आवे. १२ पशु करे पोकार तिहां, शाळा पतिने बोलावे; सारथीने तिहां पुछता, जीव बंधन केम बंधावे. १३ जादवकुळनी रीत ओ, प्रभाते गौरव देशे; रसना रसने कारणे, जीव सकळना हणशे. १४ फरके जमणुं अंग तिहां, नवला नेमकुमार; राजुल कहे सुण साहेलीओ, रथ
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वाळ्यो तत्काल. १५ वरसीदान देइ करी, ओक कोडी आठ लाख ; सहेसावन संयम लीधो, सहस पुरुष संघात १६ राजुल धरणी ढळी पड्या, उज्जयंत गढ चाल्या; गुफा मांहे रहनेमी मल्यां, राजुले प्रतिबोध्या. १७ स्वामी हाथे संजम लीधो अ, संलेषणा ओक मास; केवल ज्ञाने जळहळ्यां, पाम्या शिवपुर वास. १८ पीयु पहेला मुगते गया, धन धन नेमीकुमार; परण्यां शिवनारी तिहां, सहस पुरुष संघात १६ भणता सविसुख संपजे अ, सुणतां मंगळ माल; हीर विजय वाचक भणे, तस घरे जयजयकार. २०
(38)
बाळ ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ, समुद्रविजय विस्तार; शिवादेवीनो लाडलो, राजुल वर भरथार. १ तोरण आव्या नेमजी, पशुडे मांड्यो पोकार; मोटो कोलाहल थयो, नेमजी करे विचार. २ जो परणुं राजुलने, जाय पशुना प्राण; जीवदया मनमां वसी, त्यांथी कीधुं प्रयाण. ३ तोरणथी रथ फेरव्यो, राजुल मूर्च्छित थाय; आंखे आंसुडा वहे, नेमजीने लागे पाय. ४ सोगन आपुं माहरा, वळो पाछा अकवार; निर्दय थई शुं वालमा, कीधो मारो परिहार . ५ झीणी झबुके वीजळी, झरमर वरसे मेह; राजुल चाल्यां साथमां, वैरागे भींजाणी देह. ६ संयम लेई केवळ वर्या अ, मुक्तिपुरीमां जाय; नेम राजुलनी जोडने, ज्ञान नमे सुख दाय. ७
(39)
नेमिनाथ बावीशमा, शिवादेवी माय; समुद्रविजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय. १ दश धनुषनी देहडी, आयु वरस हजार; शंख लंछन धर स्वामिजी, तजी राजुल नार. २ सौरी पुरी नयरी भलीओ, ब्रह्मचारी भगवान; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अविचल ठाण. ३
(40)
नायक त्रिभुवन नाथजी, श्री नेमिजिनसार, प्रभुपद प्रेमे पूजीये, गिरुओ
गढ गिरनार ||१|| एगिरि उपर एहना, तीन कल्याणक तास, अरिहंत भक्ति अनुसरो, आणी मन उल्लास ॥२॥ जादव कुल दिनकर जिस्यो, ब्रह्मचारी
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शिरदार, सतीयो मांहे शिरोमणि, रूडी राजुलनार ॥३॥ सहसावन संयमलीयो, गिरि उपर केवलज्ञान, कृपानाथ सरखी करी, भामीनीने भगवान ॥४॥ सातफूट सोहामणी, ए तीरथ अहिठाण, पंचम टुंके श्री प्रभु, पाम्यापद निर्वाण ॥५॥ गुणी अढारे गणधरा, गिरुआ बहू गुणवंत, सहस अढारे श्रमणने, सेवो भविजन संत ॥६॥ आठ भवोनी अंबीका, ए तीरथ रखवाल, सेवो भविशुद्ध मने, जावे भवदुःख जाल-11७॥ भविजन भावे भेटीये, आणी मन आणंद, हंसविजय नमे हरखशुं, पामे परमानंद ॥६॥
(41) ... गिरि गिरनार जईवसे, जेसे नेमकुमार, कनक भूमी करी देवता, भक्ति करे मनोहार ॥१॥ एक प्रतिमा वज्रनी, एक कंचनकेरी, एक प्रतिमा रलनी, मणीमय भलेरी ॥२॥ काले सज्जन बहुमिल्याए, जेणे कीधो उद्धार, नेमनाथ बेठां तीहां, कंठे रयण मनोहार ॥३॥
(42) श्री रोहिणी तपनुं चैत्यवंदन रोहिणी तप आराधीओ, श्री श्रीवासुपूज्य; दुःख दोहग दूरे टळे, पूजक होजे पूज्य १. पहेलां कीजे वासक्षेप, प्रह उठीने प्रेमे; मध्यान्हे करी धोतीयां, मन वच काया खेमे. २. अष्ट प्रकारी विरचीओ, पूजा नृत्य वाजिंत्र; भावे भावना भावीओ, कीजे; जन्म पवित्र. ३ त्रिहुकाले लई धूप दिप; प्रभु आगल किजे; जिनवर केरी भक्ति शुं, अविचल सुख लीजे. ४ जिनवर पूजा जिन स्तवन, जिननो कीजे जाप; जिनवर पदने ध्याईओ, जिम नावे संताप. ५ क्रोड क्रोड गणु फळ लीजीओ, उत्तर उत्तर भेद; मान कहे इण विध करो, जिम होय भवनो छेद. ६
(43) वासुपूज्य जिन वंदीओ, जगदीपक जिनराज; रोहिणी तप फळ वर्ण, भवजळ तरण जहाज. १ शुदि वैशाखे रोहिणी, त्रीज तणे दिन जाण; श्री आदिश्वर जिनवर, वर्षी पारणुं जाण. २ रोहिणी नक्षत्रने दिने, चउविहार उपवास; पोसह पडिक्कमणुं करी, तोडो कर्मनो पास. ३ ते दिनथी तप
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मांडीओ, सात वर्ष लगे सीम; सात मास उपर वळी, धरीओ ओहिज नीम. ४ जिम रोहिणी कुंवरी अने, अशोक नामे भूपाल; तप पूरण ध्याइआ, पाम्या सुगति शाल. ५ तिम भविजन तप कीजीओ, शास्त्र तणे अनुसार; . जन्म मरणनां भय थकी, टाळे ओ तप सार. ६ तप पूरण तेहज समे, करो उजमणुं सार; यथा शक्ति होवे जेहनी, तिम करीओ धरी प्यार. ७ वासुपूज्य जिन बिंबनी, पूजा करो त्रण काळ; देव वंदो वळी भावशू, स्वस्तिक पर्व विशाळ. ८ ओ तप जे सही आदरे, पहोंचे मननी कोड; मनवांछित फळे तेहनां, हंस कहे करजोड. ६
(44) वासव पूजित वासुपूज्य, वर अतिशय धारी; केवळ कमला नाथ साथ, अविरति जेणे वारी. १ परमातम परमेश्वरु ओ, भविजन नयनानंद; शांत दांत उत्तम गुणी, वरज्ञान दिणंद; २ बेठी बारे पर्षदा, निसुणे जिन गिर्वाण; ओक चित्त लय लाइओ, देई निज कान. ३ तव जगपति तिहां उपदिशे, रोहिणी तप सुविचार; आराधो भवि भावशुं, आतमने सुखकार. ४ सात वर्ष सात मासनी अवधि कही सुप्रमाण; आराधे सुख संपदा, पामे पद निर्वाण. ५ वाचक शुभ नय शिष्यनो ओ, भक्ति विजय गुणगाय; वासुपूज्य जिन ध्यानथी, अनुभव सुख थाय. ६
(45) श्री सिद्धगिरिना चैत्यवंदन विमल केवळज्ञान कमला, कलित त्रिभुवन हितकरं; सुरराज संस्तुत चरण पंकज, नमो आदि जिनेश्वरं. १ विमल गिरिवर शृंगमंडन, प्रवर गुण गण भूधरं; सुर असुर किन्नर कोडि सेवित, नमो आदि जिनेश्वरं. २.करती नाटक किन्नरी गण, गाय जिनगुण मनहरं; निर्जरावली नमे अहोनिश. नमो. ३ पुंडरिक गणपति सिद्धि साधि, कोडि पण मुनि मनहरं; श्री विमल गिरिवर शृंग सिद्धा. नमो. ४ निज़ साध्य साधन सुर मुनिवर, कोडिनंत ओ गिरिवरं; मुक्ति रमणी वर्या रंगे. नमो. ५ पाताल नर सुरलोक मांही, विमल गिरिवरतो परं; नहि अधिक तीरथ तीर्थपति कहे. नमो. ६ इम विमल गिरिवर शिखर मंडन, दुःख विहंडण ध्याई; निज शुद्ध सत्ता साधनार्थं,
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परम ज्योति निपाइओ. ७ जित मोह कोह विछोह निद्रा, परम पद स्थित जयकरं; गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुविहित करं. ८
(46) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे; भाव धरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे. १ अनंत सिद्धनो ओह ठाम, सकल तीरथनो राय; पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठवीया प्रभु पाय. २ सुरज कुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम; नाभिराया कुल मंडणो, जिनवर करुं प्रणाम. ३
(47) सिद्धाचल शिखरे चढी, ध्यान धरो जगदीश; मन वच काय अकाग्रशुं, नाम जपो अकवीश. १ शत्रुजयगिरि वंदीओ, बाहुबली शिव ठाम; मरुदेव ने पुंडरीकगरि, रैवतगिरि विशराम. २ विपलाचल सिद्धराजजी, नाम भगीरथ सार; सिद्धक्षेत्र ने सहस्रकमल, मुक्ति निलय जयकार. ३ सिद्धाचल शतकूटगिरि, ढंकण कोडि निवास; कदंबगिरि लोहित नमो, ताल ध्वज पुण्य राश. ४ महाबल ने दृढशक्ति सही, अम अकवीश नाम; साते शुद्धि समाचरी, करीओ नित्य प्रणाम. ५ ग्ध शून्यने अविधि दोष, अति परिणति जेह; चार दोष छंडी भजो, भक्ति भाव गुण गेह. ६ मनुष्य जन्म पामी करी, सद्गुरु तीरथ योग; श्री शुभवीरने शासने, शिव रमणी संयोग. ७
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श्री सिद्धाचल तीर्थनायक, विधतारक जाणीये; अकलंक शक्ति अनंत सुरगिरि, विधानंद वखाणीये; मेरु महीधर हस्त गिरिवर, चर्च गिरिधर चिन्ह ओ, श्वासमां सो वार वंदु, नमो गिरि गुणवंत ओ. १ हसित वदने हेमगिरिने, पूजीओ पावन थइ, पुंडरिक पर्वतराज शतकुट, नमत अंग आवे नहीं; प्रीति मंडण कर्म छंडण, शाश्वतो सुरकंदओ. श्वासमां. २ आनंद घर पुन्यकंद सुंदर, मुक्ति राजे मन वस्यो, विजय भद्र सुभद्र नामे, अचल देखत दिल वस्यो, पाताल मूलने ढंक पर्वत, पुष्पदंत जयंत हे. धासमां. ३ बाहुबल मरुदेवी भगीरथ, सिद्धक्षेत्र कंचनगिरि; लोहिताक्ष कुलिनी वासमां जस,
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रैवताचल महागिरि; शत्रुजय मणि पुन्य राशि, कनक केतु कहेत हे. श्वासमां. ४ गुणकंद कामुक दृढशक्ति, सहजानंद सेवा करे, जय जगत तारण ज्योति रूप, मालवंतने मनोहरे; इत्यादिक बहु कीर्ति माणेक, करत सुर सुख अनंत हे. धासमां. ५
(49) धुर समरूं श्री आदिदेव, विमलाचल सोहिमे; सूरति मूरति अतिशय सफळ, भवियणनां मन मोहीओ. १ सुंदर रुप सोहामणो, जोतां तृप्ति न होय; गुण अनंत जिनवर तणां, कही न शके कोय. २ वीतराग दर्शन विना, भवसागरमां रुलीओ; कुगुरु कुदेवे भोळव्यो, गाढो जल भरीओ. ३ पूर्व पुण्य पसाउले, वीतराग में आज; दर्शन दीठो ताहरो, तारण तरण जहाज. ४ सुरघट ने सुरवेलडी, आंगणे मुज आई; कल्पवृक्ष फळीओ वळी, नवनिधि में पाई. ५ तुज नामे संकट टळे, नासे विषम विकार; तुज नामे सुख संपदा, तुज नामे जयकार. ६ आज सफळ दिन माहरो ओ, सफळ थई मुज जात्र; प्रथम तीर्थंकर भेटीया, निर्मळ कीधां गात्र. ७ सुरनर किंनर किन्नरी, विद्याधरनी कोड; मुक्ति पहोंच्या केवळी, वंदुं बे करजोड. ८ शत्रुजयगिरि मंडणो ओ, मरुदेवा मात मल्हार; सिद्धि विजय सेवक कहे, तुमे तरीआ मुज तार. ६
(50) श्री आदिनाथ जगन्नाथ, विमलाचल मंडण; जयनाभि कुलाकाश, प्रकाशन दिवाकर. १ तव देव पदांभोज, सेवापि दुर्लभा भवेत ; पुण्य संसार हीनानां, कल्प वल्ली व देहिनाम्. २ ते धन्या मानवा देवा, योगमं तव शासनं; वंदनीया विभाने ये, वंदंते भवत; पदो. ३ प्रचंड मम रागादि, रिपु संतति घातकं; श्री युगादि जिनाधीशं, देव वंदे मुदा सदा. ४ श्री शंत्रुजय कोटीर कृतं, राज्य श्रिया विभो; सर्वोघनाशनं मेस्तु, शासनं ते भवे भवे. ५ पाताले यानि बिंबानि, यानि बिंबानि भूतले; स्वर्गे पि यानि बिंबानि, तानि वंदे निरंतरम्. ६
(51) नमो आदि देवं नमो आदि देवं, करे सुर असुर भक्तिथी जास सेवं;
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चिदानंद संदोह लीलानिधानं, नमो विमलगिरि तीर्थनाथ प्रधानं. १ नमो सिद्धक्षेत्रं नमो पुंडरीकं, नमो हिमाचलं सिद्धगिरि भक्ति छेकं, नमो पुण्यराशीं नमो पर्वतेन्द्रं, शत्रुंजय देव सयल नतेन्द्रं. २ नमो मुक्ति गेहं सुभद्र नगेन्द्रं, दृढशक्ति महातीर्थ हरे कर्मवृदं; नमो पुष्पदंतं महा पद्मनाभं, धरापीठ कैलास नमो मुक्ति धामं. ३ पाताल मूलं नमो शाश्वतं च नमो सर्व कामित पदं मुक्ति दंच; नमो सर्व तीर्थावतारं सुतारं नमो मुक्ति श्रीमंत निर्वाण हारं. ४ जी को उठी प्रभाते जिन नाम जंपे, गिरिराज नामे सयल पाप कंपे; गिरिराज उत्तम पद पद्म ध्यावे, चिदानंद निज रूप ते शुद्ध पावे. ५
(52)
जयत्यादिम तीर्थेश, त्रिलोकी मंगल द्रुम; श्रेय; फल सदालोका, यथालोका दुपासते. १ श्रीमान् नाभिकुलादित्य, मरुदेवांगज प्रभो; संसाराब्धि महापोत, जयत्वं वृषभं ध्वजं. २ नमस्ते जगदानंद, मोक्षमार्ग विधायक; जैनेन्द्र विदिताशेष, भावस्तद्भाव नायक. ३ प्रक्षीणा शेष संस्कार, विस्तार परमेश्वर; नमस्ते वाक्य पातीत, त्रिलोकनर शेस्वर ४ भवाब्धि पतितानंत, सत्व संसार तारक; घोर संसार कंतार, सार्थवाह नमोस्तुते. ५
(53)
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श्री सिद्धाचल सिद्धक्षेत्र, पुंडरीकगिरि कहीओ विमलाचल ने सुरगिरि, महगिरि लहीओ. १ पुण्यराशि ने पर्वतनाथ, पर्वत इन्द्र होय; महातीरथ शाश्वतगिरि, दृढशक्ति जोय. २ मुक्ति निलय ने महा पद्म, पुष्पदंत वळी जाणो; सुभद्र ने पृथ्वी पीठ, कैलास गिरि मन आणो. ३ पाताल मूल पण जाणीओ; अकर्मक वळी जेह; सर्व काम मन पुरणो, टाळे भव दुःख तेह. ४ जात्रा नवाणुं कीजीओ, जिन उत्तम पद तेह; रुप मनोहर पामीओ, शिव लक्ष्मी गुण गेह. ५
(54)
शत्रुंजय गिरि वंदिओ, सकल तीरथ जगसार; आतम पावन कारणे, हीज तीर्थ निरधार. १ शिवगिरि सेवी शिव वस्या, महात्मा अनंतानंत; अह तीर्थनी फरसना, अम हो जो सुख वंत. २ तीर्थनाम यथार्थ ते, जेहथी
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भव तराय; विषय कषाय मूल भवतणां, तीर्थ भक्ते छेदाय. ३ स्थावर जंगम भेदथी, दुविध तीर्थ गणाय; जिन गणहरादि मुनिवरा, जंगम तीर्थ कहाय. ४ सिद्धाचल अष्टापद गिरि, आबु समेत सार; रैवतगिरि आदे सवे, स्थावर तीर्थ अवधार. ५ चित्त चोक्खे शुद्ध साध्यशुं, तन्मय स्वरूपाधारं; ओक ज वार ओम सेवतां, पामे भवनो पार.६ सेवना जोग असंख्य छे, पण भक्ति अंग बळवान; ते माटे रुप ओळखी, शामल करे गुण गान. ७
(55) विमलगिरिवर सयल अघहर, भविक जनमन रंजणो, निजरुपधारी पाप टाळी, आदिजिन मद गंजणो; जगजीव तारे भरम फारे, सयल अरिदल गंजणो, पुंडरीक गिरिवर शृंग शोभे, आदिनाथ निरंजणो. १ अज अमर अचल आनंद रुपी, जन्म मरण विहंडणो, सुर असुर गावे भक्ति भावे, विमलगिरि जग मंडणो; पुंडरीक गणाधीप रामपांडव, आदितिहां बहु मुनिवरा; जिहां मुक्ति रमणी वर्या रंगे, कर्म कंटक सहु जरा. २ कोई जगमां अन्य नहि, विमलगिरि सम तारकं, दूर भवियां, जे भवियां सदा दृष्टि निवारकं; ओक त्रीजे पंचमे भव, वरे शिव दुःख वारकं, इह आश धारी शरण थारी आतमा हितकारकं. ३
(56) तरण तारण कुगति वारण, सुगति कारण जमगुरु; भवभ्रमण हरता मनुष्यना, वांछित करवा सुरतरु. १ संसार तापथी तप्त जंतु, जातने छाया करूं; छत्राकृती सिद्धाचले, ऋषभेश कळश मनोहरूं; २ श्री ऋषभदेव प्रमुख द्राविड, वारिखील सहोदरा; आदिनाथ भक्त सुवल्गु तापस, बोधथी तापस वर्या. ३ चारण मुनिवर साथ सर्वे, तीर्थ करवा संचर्या; प्रतिबोधथी मुनिराजना, सर्वे मुनीशपणुं वर्या. ४ पुन्य पुंज सम पुंडरिक गिरि, निरखतां नयणे करी; उल्लास पामी दोष वामी, हर्षथी हृदये धरी. ५ वंदन करीने आविया, गिरिराज उपर पदचरी; रायण ने आदिनाथ चरणे, प्रेमे प्रदक्षिणा फरी. ६ पुंडरीक गणधर साथ आदिनाथने पाये पडी; चारण मुनिना केणथी, लगावी ध्यान तणी जडी. ७ दश कोडी मुनिवर साथ, कार्तिक पुनमे मुक्ति जडी; हंसावतास्ण तीर्थ थाप्यु, हंस देवे तेणी घडी. ८
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(57) कल्पवृक्षनी छांयडी, नानाडीओ रमतो; सोवन हिंडोले हिंचतो, माताने मनगमतो. १ सौ देवी बाळक थई, ऋषभजीने तेडे; वहाला लागो छो कही, हैडाशुं भीडे. २ जिनपति यौवन पामीया, भावे | भगवान; इन्द्रे घाल्यो मांडवो, विवाहनो मंडाण. ३ चोरी बांधी चिहुं दिशे, सुर गोरी गीत गावे; सुनंदा सुमंगला, प्रभुजीने परणावे..४ सयल संग छंडी करी, केवल ज्ञानने काजे; अष्ट कर्मनो क्षय करी, पहोंच्या शिवपुर धामे. ५ भरते बिंब भरावीआ ओ, शत्रुजय गिरिराय; श्री विजय प्रभ सूरि तणा, उदय रत्न गुण गाय. ६
(58)
आदिश्वर जिनरायनो, गणधर-गुणवंत; प्रगट नाम पुंडरीक जास, महीमांहे महंत. १ पंचकोडी मुनिराज साप, अणसण तिहां कीध; शुकल ध्यान ध्यातां अमूल, केवळवर लीध. २ चैत्री पूनमने दिने ओ, पाम्या पद महानंद; ते दिनथी पुंडरीक गिरि, नाम दान सुखकंद. ३
(59) अरिहंत नमो भगवंत नमो, परमेश्वर जिनराज नमो; प्रथम जिनेवर प्रेमे पेखत, सिध्यां सघलां काज नमो. अ. १ प्रभु पारं गत परम महोदय, अविनाशी अकलंक नमो; अजर अमर अद्भुत अतिशयनिधि; प्रवचन जलधिमयंक नमो. अ. २ तिहुयण भवियण जनमनवंछित, पूरण देव रसाल नमो; लळि लळि पाय नमुहं भाले, करजोडी त्रिकाल नमो. अ. ३ सिद्ध बुद्ध तुं जगजन सज्जन, नयनानंदनदेव नमो; सकल सुरासुर नरवर नायक, सारे अहनिश सेव नमो. अ. ४ तुं तीर्थंकर सुखकर साहिब, तुं निष्कारण बंधु नमो; शरणागत भविने हित वत्सल, तुं हि कृपारस सिंधु नमो अ. ५ केवलज्ञानादर्श दर्शित, लोकालोक स्वभाव नमो; नाशित सकल कलंक कलुष गण, दुरित उपद्रव भाव नमो. अ. ६ जगचिंतामणि जगगुरु जगहित, कारणजगजन नाथ नमो; धोर अपार भवोदधि तारण, तुं शिवपुरनो साथ नमो. अ. ७ अशरण शरण निरागी निरंजन, निरुपाधिक जगदीश नमो; बोधि दीओ अनुपम दानेसर, ज्ञानविमल सूरीश नमो. अ. ८
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आदि जिनेश्वररायना, छे पगला मनोहार, भाव सहित भक्ति करे, पहोंचाडे भवपार ॥१॥ रायण रुखतले बिराजी, दीये जगने संदेश, भवियण भावे जुहारीये, दूर करे संकलेश ॥२॥ पगले पडीने विनवू, पूरजो माहरी आश, ज्ञानतणी विनती सुणी, देजो शिवपद वास ॥३॥ धन धन सोरठ देशको, धन धन विमल गिरीद, सिद्धाचल गिरि मंडणो, धनधन ऋषभ जिणंद ॥४॥ सिद्धिदायक यह गिरि, महिमा को नहीं पार, अनन्त मुनि मुगते गया, सकल जीव हितकार ॥५॥ दरशन फरशन जे करे, यह गिरि शिव सुखमाल, क्रोड भवो में जे कीया, पाप छूटे ततकाल ॥६॥ कल्पवृक्ष चिंतामणि, ईण भव में हितकार, गिरिवर सेवन से लहे, भव भव सुख अपार ॥७॥ तीर्थ निमित्त भासन सत्ता, प्रगट सिद्ध स्वरूप, सत् चिदानंद आतमा, निरमलज्ञान अनूप ॥८॥
(61) विमलाचलगिरि भेटतां, मुज मन हर्ष न माय, आदिदेव अलवेसीं, सुंदर मूरती सोहाय ॥१॥ प्रभु पासे पद्मासने, पुंडरीक गणधार, जोतां नयन उलसतां, वर्षे अमृतधार ॥२॥ रायण तरु तले सोहतां, तिम घेटीए जाण, प्रभु पगलां वली वंदता, पामे हर्ष सुजाण ॥३॥ राम पांडव नारद वली, शांब प्रद्युम्न जेह, नमि विनमि द्राविडने, वारिखिल्लजी तेह ॥४॥ इण तीर्थे इम मुनिवरा, आणे कर्मनो अंत, धर्मरत्नपद आपजो, भांगे सादि अनंत॥५।।
(62) सकल सुहंकर सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल सुणीये, सुरनर पति असुर खेचर, निकरे जे थुणिये ॥१॥ सकल तीरथ अवतार सार, बहु गुण भंडार, पुंडरिक गणधर, वर जब पाम्यां भवपार ॥२॥ चैत्री पूनमने दिने ए, कर्म मर्म करी दूर, ते तीरथ आराधीये, दान सुयश भरपुर ॥३॥
(63) सर्वतीर्थ शिरोमणी, शत्रुजय सुखकार, घेटी पगलां पूजतां, सफल
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थाय अवतार ॥१॥ पूर्व नव्वाणुं पधारियां, तिहां श्रीअरिहंत, ते पगलां ने वंदिये, आणी मन अतिखंत ॥२॥ चौविहारो छ? करी, घेटी पगले जाय, धर्मरल पसायथी, मन वांछित फल थाय ॥३॥ .
_ (64) सुखदायी श्रीआदिनाथ, अष्टापद वंदो, चंपापुरी श्री वासुपूज्य, मुख पुनमचंदो 09) गिरनारे श्री नेमनाथ, सुख मुरतरुकंदो, समेतशिखरे पार्श्वनाथ, पूजी मन आणंदो ॥२॥ अपापापुरी श्री वीरजी, कल्याणक शुभठाम, रूपविजय कहे साहिबा, ए पांचे आतम राम ॥३॥
(65) छठ तपकरी व्रतलीये, आदिधर जिनराय, आहारादिक तणोहुओ, प्रभुजीने अंतराय ॥१॥ एकवरसने आंतरेए, श्री श्रेयांस कुमार, प्रभुने करावे पारj, वर्षीतप तीणेसार ॥२॥ वैशाखी त्रीजना दीने, धर्मरलगुणगाय, अखात्रीज नामे घणो, महिमा लोक गवाय ॥३॥
__(66) श्री पार्श्व जिन चैत्यवंदन सकल भविजन चमत्कारी, भारी महीमा जेहनो; निखिल आतम रमाराजीत, नाम जपीये तेहनो, दुष्टाष्टकर्म गंजरी जे, भविक जन मन सुखकरो; नित्य जाप जपीये पाप खपीओ, स्वामिनाथ शंखेश्वरो. १ बहु पुन्य राशि देशकाशि, तत्थ नयरी वणारसी, अश्वसेन राजा राणी वामा, रुपे रति तनु सारिखी; तसकुखे चौद सुपन सूचित, स्वर्गथी प्रभु अवतो. नित्य. २ पोष मासे कृष्ण पक्षे, दशमी दिन प्रभु जनमीया; सुरकुमरी सुरपति भक्तिभावे, मेरु श्रृंगे स्नापिया; प्रभाते पृथ्वीपति प्रमोदे, जन्म महोत्सव अति कर्यो, नित्य जाप जपीये पाप खपीओ, स्वामी नाम शंखधरो. ३ त्रण लोक तरुणी, मन प्रमोदी, तरुण वय जब आवीया, तव मात ताते प्रसन्नचित्ते, भामिनी परणाविआ; कमठ शठ कृत अग्निकुंडे, नाग बळतो उद्धर्यो. नित्य. ४ पोष वदी अकादशी दिने, प्रव्रा जिन आदरे, सुर असुर राजी, भक्ति ताजी, सेवना झाझी करे; काउस्सग्ग करतां देखी कमठे, कीध परिषह आकरो, नित्य जाप जपीये, पाप खपीये, स्वामि नाम शंखेश्वरो. ५
अति तरुणी, मन प्रमाणावआ, कमल
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27 तव ध्यान धारा रूढ जिनपति, मेघ धारे नवि चळ्यो, तिहां चलित आसन, धरण आये, कमठ परिसह अटकळ्यो; देवाधिदेवनी, करे सेवा, कमठने काढी परो. नित्य. ६ क्रमे पामी केवळज्ञान कमला, संघ चउविह स्थापीने, प्रभु गया मोक्षे, समेत शिखरे, मास अणसण पाळीने; शिवरमणी रंगे रमे रसियो, भविक तस सेवा करो. नित्य. ७ भूत प्रेत पिशाच व्यंतर, जलण जलोदर भय टळे, राज रमणी रमा पामे, भक्ति भावे जो मळे; कल्पतरुथी अधिक दाता, जगत त्राता जय करो. नित्य. ८ जराजर्जरीभूत यादव, सैन्य रोग निवारता, वढीयार देशे नित्य बीराजे, भविक जीवने तारता; ओ प्रभु तणा पद पद्म सेवा, रूप कहे प्रभुता वरो. नित्य. ६
(67) . मरुभूति ने कमठ विप्र, पहले भव कहीये, बीजे गज कुर्कुट अहि, त्रीजे भव लहीये; १ अष्टम कल्प पंचमी नरक, किरण वेग खग जाणुं, महोरग सर्प चोथे भवे, अच्युत सुरमा आणुं. २ पांचमी नरक पंचम भवे, छटे राय वज्रनाभ; चंडाल कुले कमठ जनित, मध्य ग्रैवेयक लाभ. ३ ललितांग देव सातमा भवे, सातमी नरके भाग; कनकप्रभ चक्री थया, कमठ सिंहना माग. ४ प्राणत कल्पं चोथी नरक, पार्श्वनाथ भव दशमे; कमठ थयो तापस वली, अन्यतीर्थी बहु प्रणमें. ५ दीक्षा लई मुक्ते गया , पार्श्वनाथ जिनदेव; पद्मविजय सुपसाउले, जित प्रणमे नित्यमेव. ६
(68) . सेवो पार्थ शंखेश्वरा मनशुद्धे, नमो नाथ निश्चे करी ओक बुद्ध; देवी देवला अन्यने शुं नमो छो, अहो भव्य लोको भूलां कां भमो छो. १ त्रिलोकना नाथने शुं तजो छो, पड्या पासमां भूतने कां भजो छो, सुरधेनु ठंडी अजाशुं अजो छो, महा पंथ मुक्ति कुपंथे व्रजो छो. २ तजे कोण चिंतामणी काच माटे, ग्रहे कोण रासभने हस्ति साटे? सुर द्रुम उपाडी कोण .
आंक वावे, महा मुढ ते आकुला अंते पावे. ३ किहां कांकरो ने किहां मेरु शृगं, किहां केसरीने किहां ते कुरंग; किहां विश्वनाथं, किहां अन्य देवा, - करो अेक चित्ते प्रभु पार्थ सेवा. ४ पूजो देव प्रभावती प्राणनाथं, सहु जीवने जे करे छे सनाथं; महातृत्त्व जाणी, सदा जेह ध्यावे, तेना दुःख
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दारिद्र दूरे पलावे. ५ पामी मानुषो ने वृथा कां गमो छो, कुशीले करी देहने कां दमो छो; नहि मुक्ति वासं, विना वीतरागं, भजो भगवंतं, तजो दृष्टि रागं. ६ उदय रत्न भाखे सदा हेत तार्णी, दया भाव कीजे प्रभु दास जाणी; आज म्हारे मोतीडे मेह वुठ्यां, प्रभु पार्थ शंखेश्वरो आप तुठ्यां. ७
(69) प्रभु पार्थजी ताहरूं नाम मीर्छ, तिहुँ लोकमां अटलुं सार दीर्छ; सदा समरतां सेवतां पाप नीटुं, मन माहरे ताहरूं ध्यान बेटु. १ मन तुम पासे वसे रात दिसे, मुख पंकज नीरखवा हंस हीसे; धन्य ते घडी जे घडी नयण दीसे, भली भक्ति भावे करी विनवीजे. २ अहो अह संसार छे दुःख घोरी, इंद्रजाळमां चित्त लाग्यु ठगोरी; प्रभु मानीये विनती ओक मोरी, मुज तार तुं तार बलीहारी तोरी. ३ सही स्वप्न जंजालने संग मोह्यो, घडीयालमां काल रमतो न जोयो; मुधा ओम संसारमा जन्म खोयो, अहो घृत तणे कारणे जल विलोयो. ४ ओतो भ्रमर लो केसुआं भांति धायो, जई शुक तणी चंचुमांहे भराणो; शुके जंबू जाणी, गले दुःख पायो, प्रभु लालचे जीवडो अम वाह्यो. ५ भम्यो भर्म भुल्यो, रम्यो कर्म भारी, दया धर्मनी शर्म में न विचारी; तोरी नम्रवाणी परम सुखकारी, त्रिहुं लोकना नाथ में नवि संभारी. ६ विषय वेलडी शेलडी करी जाणी, भजी मोह तृष्णा तजी तुज वाणी; अहवो भलो मँडो निजदास जाणी, प्रभु राखीये बांहीनी छांयमाही. ७ मोरा विविध अपराधनी कोडी सहिये, प्रभु चरण आव्या तणी लाज लहीये; वली घणी घणी विनंती ओम कहीये, भुज मानससरे परम हंस रहीओ. ८ ओम कृपा मूरत पार्थ स्वामि, मुगति गामी ध्याइओ; अतिभक्ति भावे, विपत्ति जावे, परम संपत्ति पाइओ, प्रभु महिमा सागर गुण वैरागर, पास अंतरिक्ष जे स्तवे; तस सकल मंगल जय जयारव, आनंद वर्धन विनवे. ६
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जय जय शिखर गिरीश इश, वीस जिनेवर नामी; अणसण करी तिहां कने, पंचमी गति पामी. १ बीजा पण बहु मुनिवरा, शिवगतिना गामी; परमात्तम पद पामीया, वंदु शिर नामी. २ ओ अवदात सुणी करी, हुं ओ पद कामी; आव्यो छु तुज आगले, कीम कीजे खामी. ३ श्री शामलीया
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पार्श्वनाथ, तुमे छो दिन दयाल; ओ अरजी सुणी माहरी, दो शिवपद रसाल. ४ हुं अनाथ भमीयो घj, न मळ्यो तुम सम नाथ; आपी पद पोता तणुं, राखो निज साथ. ५ राग द्वेष क्रोधे भर्यो, निंदक ने अविवेक; ओ सघरों उवेखीने, राखो मुज टेक. ६ मुज पापीना पापने, दूरे करी हजुर; निज लक्ष्मीने आपजो, आशा छे भरपूर. ७
(71) नमदेव नागेंद्र मंदार माला, मरंच्छटा धौत पादारविंदं परानंद संदर्भ लक्ष्मी सनाथं, स्तुवे देवचिंतामणि पार्श्वनाथं. १ तमोराशिवित्रासने वासरेशं, हत कलेशलेशं श्रियां संनिवेशं, क्रमालीन पद्मावती प्राणनाथं, स्तुवे. २ नवश्री निवासं, नवांभोद तुल्यं, नतानां शिव श्रेणी दाने सलीलं, त्रिलोकस्य नाथं. स्तुवे. ३ हत व्याधि वैताल भूतादि दोषं, कृताशेष भव्यावलि पुण्य पोषं; मुखश्री पराभूत दोषाधिनाथं. स्तुवे. ४ नृपास्याश्वसेनस्य वंशेऽवसंतं, जनानां मनो मानसे राजहंसं; प्रभाव प्रभावाहिनी सिंधु नाथं. स्तुवे. ५ कलौ भाविनां कल्प वृक्षोपमानं, जगत्पालने संततं सावधानं; चिरमैद पाटस्थितं विश्वनाथं. स्तुवे. ६ इति नागेंद्र नरामर वंदित पादांबुजः प्रवर तेजाः; देवकुल पाटकस्थः स जयति चिंतामणिः पार्श्वः ७
__(72) प्रणमामि सदा प्रभु पार्थ जिनं, जिननायक दायक सुखधनं; घनचारु महोत्तम देहधरं, धरणपति नित्य सुसेवकरं. १ करुणा रससंचित भव्यफणि, फणि सप्त सुशोभित मौलिमणि; मणि कंचन रुप त्रिकोटी घटं, घटिता सुर किन्नर पार्वतरं. २ तटिनीपति घोष गंभीर स्वरं, स्वरनाकर अश्वसुसेनवरं; नरनारी नमस्कृत नित्य मुदा, पद्मावती गावती गीत सदा. ३ सहनेन्द्रिय गोप यथा कमळं, कमठासुर वारण मुक्त हठं; हठ हेलित कर्म कृतांत बलं, बलधाम धुरंधर पंकजलं. ४ जलजद्वय पत्र प्रभानयनं, नयनंदित भव्य नरेशमनं; मन मन्थन मही रुह वह्नि समं, समतामय रत्नाकरं परमं. ५ परमार्थ विचार सदा कुशलं, कुशलं कुरु मे जिननाथ अलं; अलिनी नलिनी नली नीलतन, तनुता प्रभु पार्थ जिनं सुधनंः ६ धनधान्यकरं करुणा परमं, परमामृत सिद्धि महासुखदं; सुखदायक नायक संत भवे, भाभृत् प्रभु पार्थ जिनं शिवदं. ७
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आश पूरे प्रभु पासजी, त्रोडे भव पास; वामामाता जनमिया, अहि लंछन जास. १ अश्वसेन सुत सुखकरु, नव हाथनी काया; काशी देश वाराणसी, पुण्ये प्रभु आया. २ अकसो वरसनुं आउखुंओ, पाली पार्श्वकुमार; पद्म कहे मुक्ते गया, नमतां सुख निरधार. ३
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जय चिंतामणी पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी; अष्ट कर्म रिपु जितीने, पंचमी गति पामी. १ प्रभु नामे आनंद कंद, सुख संपत्ति लहीओ; प्रभु नामे भव भयतणा, पातक सवि दहीओ. २ ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करीओ, जपीओ पार्श्वनामः विष अमृत थई परगमे, लहिओ अविचल ठाम. ३
(75)
ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्व चिंतामणियते, ह्रीँ धरणेन्द्र वैरोटया पद्मादेवी युतायते . १ शान्ति तृष्टि महापुष्टि, घृति कीर्ति विधायिने ॐ ह्रीँ द्विड् व्याल वैताल, सर्वाधि व्याधि नाशिने. २ जया जिताख्या विजयाख्या, पराजितयान्वितः दिशांपालैर्ग्रहै र्यक्षै, र्विद्यादेवीभिरन्वितः ३ ॐ असिआ उसायं नमस्तत्र, त्रैलोकय नाथतां, चतुःषष्टी सुरेंद्रास्ते, भासन्ते छत्र चामरैः ४ श्री शंखेश्वर मंडन, पार्श्व जिन प्रणत कल्पतरु कल्प; चूरय दुष्ट व्रातं, पूरय मे वांछित नाथ. ५
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जो मान माया भजो भाव आणी, वामानंदने सेवीए सारजाणी, जुओ नागने नागणी नाथ ध्यानं, पामीयां शक्रनी संपदाबोधीदानं ॥१॥ वस्या पाटणे कालाकेतां घरमां, पधारीयां पछी प्रेमशुं पार करमां, थलीनो वलीवास कीधो विचारी, पुरे लोकनी आश त्रैलोक्य धारी ॥२॥ धरी हाथमां लाल कबाण रंगे, भीडी गातडी रातडी नील अंगे, चढी नीलडे तेजीये विघ्नवारे, घाई बाहरे पंथभूला सुधारे ॥३॥ जेणे पार्श्वगोडीतणो रुपजोयो, तेणे कर्मना पासनो जोर खोयो, जेणे पास गोडीतणां पाय पूज्यां शत्रु सर्वथा
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तेहना सर्वे धूज्यां ॥४॥ सहुदेवदेवी हुआ आज खोटां, प्रभुपासना एकलां कर्ममोटा, गोडी अपना जोरे नवखंड गाजे, जेहथी शाकीणी डाकीणी दूर भाजे ॥५॥ पुरे कामना पासगोडी प्रसिद्धो, हेला मोहराजा जेणे जोर कीधो, महादुष्ट दुदना जे भूत भंडा, प्रभुपास नामे पामे सर्वेवास गुंडा ॥६॥ जरा जन्म महारोगनां मूलकापो, आराध्यो सदा संपदा शुद्धि आपो, उदयरल भाखे नमो पासगोडी, नाखो नाथजी दुःखनी जालतोडी ॥७॥
(77) श्री शंखेश्वर पासजी, मनवांछित फल पुरे, भावे सेवा जे करे, तेहनां कर्मने चूरे ॥१॥ वायु चौराशी उपशमे, असिआणे ओरी, गड गुंमडने कंठमाल, बहु रोगनी टोली ॥२॥ सकल रोगते उपशमे, समरंत तुजनाम, सिद्ध कहे समरुं सदा, श्री शंखेश्वर स्वाम ॥३॥
(78) श्री महावीर जिन चैत्यवंदन सिद्धारथ सुत वंदीओ, त्रिशला देवी माय; क्षत्रिय कुंडमां अवतर्या, प्रभुजी-परम दयाळ. १ उज्वल छठ अषाढनी, उत्तरा फाल्गुनी सार; पुष्पोत्तर विमानथी, चवीआ श्री जिन भाण. २ लक्षण अडहिय सहसनुले, कंचनवर्णी काय; मृगपति लंछन पाउले, श्री वीर जिनेश्वर राय. ३ चैत्र शुदि तेरस दिने, जन्म्या श्री जिनराय; सुरनर मळी सेवा करे, प्रभुनुं जन्म कल्याण. ४ मागशर वदि दशमी दिने, लीओ प्रभु संजमभार; चउनाणी जिनजी थयां, करवा जग उपकार. ५ साडा बार वरस लगे, सह्यां परिसह घोर; घनघाती चउ कर्म जे, वज्र कर्या चकचूर. ६ वैशाख सुदी दशमी दिने, ध्यान शुक्ल मन ध्याय; शमीवृक्ष तळे प्रभु, पाम्या पंचम नाण. ७ संघ चतुर्विध स्थापवा ओ, देशना दिये महावीर; गौतम आदि गणधरुं, वजीर कर्या हजूर. ८ कार्तिक वदि अमावास्या दिने, श्री वीर लह्या निर्वाण; प्रभाते इंद्रभूतिने, आप्यु केवळनाण. ६ ज्ञानगुणे दीवा कर्या ओ, कार्तिक कमळा सार; पुण्ये मुगति वधु वर्या, वरते मंगळ माळ. १० ...
__(79) सिद्धारथ सुत वंदीओ, त्रिशलानो जायो; क्षत्रिय कुंडमां अवतर्यो, सुर
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नरपति गायो. १ मृगपति लंछन पाउले, सात हाथनी काय; बहोंत्तेर वर्षy आउखुं, वीर जिनेश्वर राय. २ खिमाविजय जिनराजनो ओ, उत्तम गुण अवदात; सात बोलथी वर्णव्यो, पद्मविजय विख्यात. ३
(80) त्रीस वरस केवलि पणे, विचर्या श्री महावीर; पावापुरी पधारीया, श्री जिनशासन धीर. १ हस्तिपाल नृप रायनी, रज्जुका सभा मोझार; चरम चोमासु त्यां रह्या, लेइ अभिग्रह सार. २ काशी कोसल देशना, घणा राय अढार; स्वामि सुणी सौ आवीया, वंदनने निरधार. ३ सोल पहोर दीधी देशना, जाणी लाभ अपार; दीधी भविहित कारणे, पीधी तेहीज पार. ४ देवशर्मा बोधन भणी, गोयम गया सुजाण; कार्तिक अमावास्या दिने, प्रभु पाम्या निर्वाण. ५ भाव उद्योत गयो हवे, करो द्रव्य उद्योत; इम कही राय सर्वे वली, कीधी दीपक ज्योत. ६ दीवाली तिहाथी थई, जगमांही प्रसिद्ध; पद्म कहे आराधतां, लहीले अविचल रिद्ध. ७
. (81) शासननां शणगार वीर, मुक्तिपुरी शणगारी; गौतमनी प्रिति प्रभु, अंत समये विसारी. १ देवशर्मा प्रति बोधवा, मोकल्यो मुजने स्वाम; विश्वासी प्रभु वीरजी, छेतों मुझने आम. २ हा! हा! वीर आ शुं कर्यु, भारतमां अंधारु; कुमती मिथ्यात्वी वधी जशे, कोण करशे अजवाजें. ३ नाथ विनानां सैन्य जेम, थया अमे निराधार; ओम गौतम प्रभु वलवले, आंखे
आंसुडानी धार; ४ कोण वीरने कोण हुं, जाणी अहवो विचार; क्षपक श्रेणी आरोहता, प्रभु पाम्या केवल सार. ५ वीर प्रभु मोक्षे गया ओ, दिवाळी दिन जाण; ओच्छव रंग वधामणां, जस नामे कल्याण. ६
(82) जगनाथ जगदानंद जगगुरु, विमल केवल भास्करम्; संसार सुखकर जगत हितकर, नमो वीर जिनेश्वरं. १ भवताप हरता शांति करता, मुक्ति मार्ग स्फुटं करं; निज द्रव्य अनुभव, आत्म सुखकर, नमो वीर जिनेश्वरं. २ हेय ज्ञेय पदार्थ सकल, उपादेय दिवाकर, विज्ञान विशद, विवेक दिनकर,
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नमो वीर जिनेश्वरं. ३ प्रकाशतां प्रभु ध्यान ध्यातां, ध्येय गुणकर शोभितं, सर्व वांछित पूरे जिनवर नमोवीर जिनेश्वरं. ४ जिनराज सुख भगवान दिलभर, त्रैलोकय दीपक शिवकर, आनंद परमानंद पावे, नमो वीर जिनेश्वरं. ५
(83) परमानंद विलास भास, शासन छे जेहनु; वरस सहस अकवीश, वहालुं छे तेहगें. १ श्री महावीर महीअल करुं, पण समता धारी; जोश कबहु न लेखवे, सहुने हितकारी. २ बहु अतिशय लीलावती, करता जन प्रसन्न ब्रह्मचारी चुडामणी, जस नही विषयनो संग. ३ गुरु पासे भण्या नहीं, पण सघलं जाणे; निंद विना परमेश्वरा, सुख सघळा माणे. ४ रजत मणी हेमगढ वसे, नही परिग्रह पास; चामर छत्र विंजावता, निष्परिग्रह भास. ५ सेवा करावे सहु भणी, नाम धरावे साधु; आध धरामण को नहि; सूक्ष्म निराबापुं. ६ राग नही पण भोगवे, सवि वस्तुनां मर्म; कर्म नहि पण सवितणा, कहे कर्मना धर्म. ८ निर्मादिक लीला कही, शर्म तणो नहि पार; तस गुण दाखवी नही शकुं, जो होय जीभ अपार. ६ जिनवर बिंबने पूजतां, होय शतगणुं पुन्य; सहसगणुं फल चंदने, जे लेपे ते धन्य. १० लाख गणुं फल कुसुमनी, माला पहेरावे; अनंत घणुं फल तेहथी, गीत गान करावे. ११ तीर्थंकर पदवी वरे, जिन पूजाथी जीव; प्रीति भली ओम लेखवे, स्थिरता पणे अतीव. १२ जिन प्रतिमा जिन सारीखी, श्री सिद्धांते भाखी; निक्षेपा सहु सारीखा, थापना तेम दाखी. १३ त्रण काले त्रिभुवन माहे, जे करतां पूजन जेह; दर्शन केरुं बीज छे, जेहमां नहीं संदेह. १४ ज्ञान विमल कहे तेहने, होय सदा सुप्रसन्न; अह जीवित फळ जाणीये, तेहि ज भविजन धन्य. १५
(84) पावापुरी पधारीया, चरम जिनेश्वर वीर; मेरु गिरि सम धीर जे, सायर वर गंभीर. १ हस्ति पाळ राजा तणी, लेखन शाळा जेह; चरम चोमासु तिहां वस्यां, भींजे भाव संदेह. २ सोल पहोर देई देशना, करी भविक उपकार; कार्तिक अमावास्या तिहां, पाम्या मुक्ति निस्तार. ३ कल्याणक विधि साचवे, सुरवर सुरपति साथ; नंदीश्वर उत्सव करे, तरवा भवोदधि पाथ. ४
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पर्व दिवाळी ओ थयु, आराधो धरी प्रेम; जिन उत्तम पद पद्मने, नमो अहनिश खेम. ५
(85) चरम चोमासुं वीरजी, पावापुरी नयरी; मुनिवर वृंदे आवीया, जित अंतर वयरी. १ देश अढारनां नरपति, वंदे प्रभु पाय; सोळ पहोरनी देशना, दीधी श्री जिनराय. २ पुन्य पाप फळ केरडों, पंचावन भाख्या, छत्रीश अण पूंख्या वळी, अज्झयणां दाख्यां. ३ प्रधान अध्ययन भावतां, पाम्यां प्रभु निर्वाण, कार्तिक अमासने दहाडले, पण अक्षर मान. ४ गणराये दीवा कर्यां, द्रव्य उद्योतने काज, दिवाळी ते दिन थकी, प्रगटी पुन्य समाज. ५ उत्तम गुरु गौतम भणी), उपन्यु केवळ नाण; पद्मविजय कहे मोटको, ओह परम • कल्याण. ६
पूंख्या वकार्तिक अमासने दहा दिन थकी, प्रणय कहे मोट
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सिद्धारथ कुल दिनमणि, वर्धमान वडवीर; त्रिशला सुत सोहामणो, अनंत गुणे गंभीर. १ भगवती सूत्रे गणधरु, पूछे गौतम स्वामी; ओ तुम शासन किहां लगे, वर्तशे जगविश्रामी. २ वीर कहे सुण गोयमा, अकवीश वर्ष हजार; गजगतिनी परे चालशे, पंचम काल मोझार. ३ संख्या दोय हजार चार, होशे युग प्रधान; तेवीश उदये वर्तशे, अकावतारी मान. ४ तेवीश उदयना वर्णवू, वीश तेवीश अट्ठाणुं, अठ्योत्तेर पंचोत्तरा, नेव्याशी शत जाणुं. ५ सत्याशी आठमे उदय, पंचाणुं सत्याशी; छोत्तेर अठ्योत्तेर वळी, चोराणुं गुण राशी. ६ चौदमे अकसो आठ छे, अकसो तीन मुणींद; अकसो सात छे सोळमे, अकसो चार गणींद; ७ अकसो पंदर अढारमे, अकसो तेत्रीश सूरि; वीशमे उदये सो भला, आचारज वडनूर; ८ अकवीश में उदये वली, पंचाणुं सूरि राजा; नवाणुं बावीश में, चालीश चढत दिवाजा. ६ सहु मली दोय हजार चार, युग प्रधान जयवंत; छेल्ला दुप्पसह सूरि, दशवैकालिक वंत. १० पंचावन लख कोड वली, पंचावन सहस कोडी; पांचसो क्रोड पचास क्रोड, शुद्ध आचारज जोडी. ११ ओ सवि आचारज कह्या, दिपविजय कविराज; शुद्ध समकित गुण निर्मला, सोहम कुलनी लाज. १२
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केवलकमला दिनकरूं, शासनपति प्रभुवीर, एकवीश सहसवरस लगे, शासन अविचल धीर ||१|| चैत्र - सुदि तेरस निशि, जन्म्यां जगसुखकार, तीनलोक उद्योतकरे, सकलजीवहितकार ॥२॥| तीन नरकलगे वेदना, देवे परमाधामी, कर्या कर्म सहु अनुभवे, कोई नही विशरामी ||३|| सर्वे नरकना नारकी, मांहोमांहे लडे धाय, भेदन - छेदन दुःखघणां, दुष्टकरम सुखदाय ॥४॥ वीज जबूकवानीपरे, साते नरक मोझार, ते समये उद्योतथी, सहुने होय विचार ||५|| नारकजीव सुखीया थयाए अंतरमुहूरत एक, दीपविजय कवि इमकहे, वीरजन्म सुविवेक ||६||
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देव तणो विमान छोडी, जिनजी जब च्यवन लहे । अंधकारनुं शासन तुटेने, तेज धारा बहु वहे; बत्रीश लाख विमान मालिक, सौधर्मेन्द्र देखता, सात पगलां सामे चाली, शक्रस्तवथी सेवता ॥ १ ॥ गजवर वृषभने सिंहवळी लक्ष्मी स्वपने देखता, फूल केरी माळा देखी, चंद्र सूरज आवता; वनराज मध्ये शोभतो ते धजा देखे आठमो, पूर्ण कळशो आगळे ने, पद्म सरोवर दशमे ॥२॥ रत्नाकर विमल वरी, राशी तिहां रत्नो तणी, धूम सेर विण अग्नि जातो, निजमात केरो मुख भणी, च्यवन कल्याणक समे, जिन मात सविए देखती, धर्म रत्न पसाय पामी, वाणी जिन गुप्प गावति ॥ ३॥
(89) दिपावलीनुं चैत्यवंदन
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मगध देश पावापुरी, प्रभु वीर पधार्या; सोल पहोर दिओ देशना, भविजीवने तार्या. १ भूप अढार भावे सुणे, अमृत जैसी वाणी; देशना देता रयणीओ, परण्या शिवराणी. २ राय उठी दिवा करे, अजवालाने हेते; अमावास्या ते कही, ते दिन दिवा कीजे; ३ मेरु थकी आव्या इंद्र, हाथे लई दीवी; मेरइया दिन सफल ग्रही, लोक कहे सवि जीवि. ४ कल्याणक जाणी करी, दिवा ते कीजे; जाप जपो जिनराजनो, पातिक सवि छीजे. ५ बीजे दिन गौतम सुणी, घर होशे क्रोड कल्याण ६ सुरनर किन्नर सहु मिली, गौतमने आंपे; भट्टारक पदवी भली, सहु साखे थापे ७ जुहार
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भट्टारक थकी, लोक करे जुहार; बेने भाई जीमाडियां, नंदीवर्धन सार. ८ भाई बीज तिहां थकी, वीरतणो अधिकार; जय विजय गुरु संपदा, मेरु दिओ मनोहार. ६
(90)
ज्ञान उज्वल दिवाकरो, मेरईयां संचिय, तप जप सेव सुंहाळीयां, श्रद्धा अमृत ठाय. १ शुद्धाहार सुख भक्षिका, सत्य वयण तंबोल; शील आभूषण पहेरीये, करीये रंग रोळ. २ निद्रा अलच्छी दूर करो, मोह महाभट मारो; केवल लक्ष्मी लच्छी लावीओ, निज गेह समारो ३ दानादिक स्वस्तिक करो, साधर्मिक सयणां; इम दिवाळी कीजीओ, सुणीये श्री गुरु वयणां. ४ दिवाळी दिन अहीज भलो ओ, वीर प्रभु निर्वाण, जाणी नित्य आराधतां, पद्म कहे
कल्याण. ५
(91)
जय जय श्री जिन वर्धमान, सोवन समकाय, सिंह लंछन सिद्धार्थराय, त्रिशला सुत भाण. १ वरस बहोंतर आयुं देह, कर सत्त प्रमाण; ऋषभादिक सम जास वंश, इक्ष्वाकु सम जान. २ छठ्ठ भत्त संजम लीओ ओ, कुंडल ग्राम शुभ ठाम; गणधर अगीयारे सहित, आवो शिवपुर स्वाम. ३ चौदह सहस मुनि, शिष्य छत्रीस सहस; श्रमणी श्रावक ओक लाख, गुण सट्ठ सहस. ४ तीन लाख श्राविका वली, अधिक सहस अढार; सुर मातंग सिद्धायिका, नीत सानिध्य कार. ५ ओकाकी पावापुरी अ, छट्ठ भक्त सुजाण; प्रभु पहोता अमृत पदे, करो संघ कल्याण. ६
(92) श्री पर्युषण पर्वना चैत्यवंदनो
सकल पर्व शृंगार हार, पर्युषण कहीओ; मंत्र मांही नवकार मंत्र, महिमा जग लहीओ. १ आठ दिवस अमारी सार, अट्ठाई पालो; आरंभादिक परिहरि; नरभव अजुआलो. २ चैत्य परिपाटी शुद्ध साधु, विधि वंदन जावे; अठ्ठम तप संवच्छ, पडिक्कमणुं भावे. ३ साधर्मिक जन खामणां अ, त्रिविधे शुं कीजे; साधु मुख सिद्धांत कांत, वचनामृत रस पीजे. ४ नव व्याख्याने कल्प सूत्र, विधि पूर्वक सुणीओ. पूजा नव प्रभावना, निज पातिक हणीों. ५ प्रथम वीर
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37 चरित्र बीज, पार्थ चरित्र अंकुर; नेमी चरित्र प्रबंध खंध, सुख संपत्ति पुर. ६ ऋषभ चरित्र पवित्र पत्र, शाखा समुदाय; स्थविरावलि बहु कुसुमपुर, सरिखो कहेवाय. ७ सामाचारी शुद्धताओ. वर गंध वखाणो; शिवसुख प्राप्ति फल सही, सुरतरु सम जाणो. ८ चौद पूर्वधर श्री भद्रबाहु, जीणे कल्प उद्धरियो; नवमा पूर्वथी युग प्रधान, आगम जल दरिओ. ६ सात वार श्री कल्पसूत्र, जे सुणे भवि प्राणी; गौतमने कहे वीर जिन, परणे शिवराणी. १० कालिकासूरि कारणे अ, पर्युषण कीधां; भादरवा सुदि चोथमा, निज कारण सीधां. ११ पंचमी करणी चोथमां, जिनवर वचन प्रमाणे; वीर थकी नवसें अशी, वरसे ते आणे. १२ श्री लक्ष्मीसागरसूरीश्वर ओ, प्रमोद सागर सुखकार; पर्व पजूसण पालतां, होवे जय जय कार. १३
(93)
पर्व पर्युषण गुण नीलो, नवकल्पी विहार; चार मासान्तर स्थिर रही, अही ज अर्थ उदार. १ अषाढ सुद चउदश थकी, संवत्सरी पचाश; मुनिवर दिन सित्तेरमे, पडिक्कमतां चौमास. २ श्रावक पण समता धरी, करे गुरुनो बहुमान; कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभले थई ओक तान. ३ जिनवर चैत्य जुहारीये. गुरु भक्ति विशाल; प्राये अष्ट भवांतरे, वरीये शिव वरमाल. ४ दर्पणथी निज रुपनो, जुवे सुदृष्टिरूप; दर्पण अनुभव अर्पणे, ज्ञान रमण मुनि भूप. ५ आत्म स्वरूप विलोकतां ओ, प्रगटयो मित्र स्वभाव; राय उदायी खामणां, पर्व पर्युषण दाव. ६ नव वखाण पूजी सुणो, शुकल चतुर्थी सीमा; पंचमी दिन वांचे सुणे, होय विराधक निमा. ७ मे नही पर्वे पंचमी, सर्व समाणी चोथे; भव भीरु मुनि मानशे, भाख्युं अरिहानाथे. ८ श्रुत केवली वयणा सुणी अ, लही मानव अवतार; श्री शुभवीरने शासने पाम्या जय जय कार. ६
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श्री शत्रुजय शृंगार हार, श्री आदि जिणंद; नाभिराया कुळ चंद्रमा, मरुदेवी नंद. १ काश्यप गोत्रे इक्ष्वाकुवंश, विनीतानो राय; धनुष्य पांचसो देहमान, सुवर्ण सम काय. २ वृषभ लंछन धुर वांदीओ, संघ सकळ शुभरीत; अठ्ठाईधर आराधीओ, आगम वाणी विनित. ३
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(95)
प्रणमुं श्री देवाधिदेव, जिनवर महावीर, सुरवर सेवे शांत दांत, प्रभु साहस धीर. १ पर्व पर्युषण पुण्यथी, पामे भवी प्राणी; जैन धर्म आराधीओ, समकित हित जाणी. २ श्री जिन प्रतिमा पूजीओ मे; कीजे जन्म पवित्र; जीव जतन करी सांभळो, प्रवचन वाणी विनित. ३
(96) * कल्पतरुवर कल्पसूत्र, पूरे मन वांछित; कल्पधरे धुरथी सुणो, श्री महावीर चरित्र. १ क्षत्रिय कुंडे नरपति, सिद्धारथ राय; राणी त्रिशला तणी कुखे, कंचन सम काय. २ पुषोत्तर वरथी चव्या ओ, उपज्या पुण्य पवित्र; चतुरा चौद सुपेन लहे, उपजे विनय विनीत. ३
(97) स्वप्न विधि कहे सुत, होशे त्रिभुवन शृंगार; ते दिनथी ऋद्धे वध्यां, . धन अखूट भंडार. १ साडा सात दिवस अधिक, जनम्या नव मासे; सुरपति करे मेरु शिखर, उत्सव उल्लासे. २ कुंकुम हाथा दीजीये ओ, तोरण झाक झमाळ; हरखे वीर हुलरावीओ, वाणी विनय रसाळ. ३
(98) जिननी हेव सुदर्शना, भाई नंदिवर्धन; परणी यशोदा पद्मणी, वीर सुकोमळ रत्न. १ देई दान संवत्सरी, लेई दीक्षा स्वामि; कर्म खपावी केवळी; पंचमी गति पामी. २ दीवाळी दिवस थकीओ, संघ सकल शुभ रीत; अठ्ठम करी तेलाधरे; सुणजो थई ओक चित्त. ३
(99) पार्थ जिनेश्वर नेमिनाथ, समुद्र विजय विस्तार; सुणीजे आदीश्वर चरित्र, वळी जिनना अंतर १ गौतमादिक स्थविरावली, शुद्ध सामाचारी; पर्व दिन चोथे दिने, भाख्यो गणधारी. २ ज्ञान दर्शन चारित्रं तप अ, जिनधर्म दृढरित; जिन प्रतिमा जिन सारिखी. वंदु सदा विनीत. ३
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(100)
पर्वराज संवत्सरी, दिन दिन प्रति सेवो; श्लोक बारसो कल्पसूत्र, वीरनुं निसुणेवो. १ परम पट्टधर बार बोल; भाख्या गुरु हीर; संप्रति श्री विजयदानसूरि, गच्छाग्रणी हीर. २ जिन शासन शोभा करूं ओ, प्रिति विजय कहे शिष्य; विनय विजय कहे वीरने, चरणे नामुं शिष. ३
(101)
वडा कल्प पूरव दिने, घरे कल्पने लावो; रात्रि जागरण प्रमुख करी, शासन सोहावो. १ हय शणगारी कुमर, लावो गुरु पासे; वडाकल्प दिन सांभळो, वीर चरित्र उल्लासे. २ छट्ट द्वादश तप कीजीओ, धरीओ शुभ परिणाम; साधर्मी वत्सल प्रभावना, पूजा अभिराम. ३ जिन उत्तम गौतम प्रते ओ, कहेजो ओकवीश वार; गुरु मुख पद्मे भावशुं, सुणतां पामे पार. ४
(102)
नव चोमासी तप कर्या, त्रण मासी दोय; दोय दोय अढा मासी तेम, दोढ मासी होय. १ बहोंतेर पास खमण कर्यां, मास खमण कर्या बार; षड् द्विमासी तप आदर्यां, बार अट्ठम तप सार. २ षड्मासी ओक तप कर्यो, पंच दिन उण षड्मास; बसे ओगणत्रीश छठ्ठ भला, दीक्षा दिन ओक खास. ३ भद्र प्रतिमा दोय भली, महाभद्र दिन चार; दश दिन सर्व तो भद्रना लागट निरधार. ४ विण पाणी तप आदर्यो, पारणादिक जास; द्रव्याहारे पारण कर्या, त्रणसो ओगण पचास. ५ छद्मस्थ अणी परे रह्या अ, सह्या परीसह घोर; शुक्ल ध्यान अनले करी, बाळ्या कर्म कठोर. ६ शुक्ल ध्यान अंते रह्या अ, पाम्या केवळज्ञान; पद्मविजय कहे प्रणमतां, लहीओ नित्य कल्याण. ७
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श्री पर्युषण पर्व सेवो, भविजन सहु हरखी; वेण राशी सर्व पर्वणी, निज आतम पर्वी. १ गुण अनंत छे जेहनां, धर्म ध्यान नित्य कीजे; प्रभु गुण सर्व संभालीने, निज भव ओळखीजे. २ कल्पतरु सम कल्पसूत्र, निज मंदीर पधरावो; गीत गान मन भावशुं शुभ भावना भावो ३ करी
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वरघोडो अभिनवो, जिन शासन दिपावो; शुभ करणी अनुमोदतां, गुरु समीपे लावो. ४ गुरु प्ररुपे वायणां, भाव भक्तिने काजे; छठ तप करी निर्मलो, आतम शक्तिने माटे. ५ प्रतिपदाओ प्रभु वीरनो, जन्म महोत्सव कीजे, भक्ति वत्सल भगवंतनी, सुकृत भव कीजे. ६ अट्ठमतप करी निर्मलो, सकल सुणो अधिकार; नागकेतुनी परे निर्मलुं, जेम पामो भवपार. वळी सूणवा बारसे सूत्रनां, भवि थइ उजमाल; श्रीफळ स्वामि प्रभावना, करी टाळो जंजाल. ८ अट्ठाई महोत्सव अणीपरे, पाळो निरति चार; कारज कारण फळ होशे, तो तरशो भवपार. ६ द्वीप नंदीसर आठमे, देवमली समुदाय; अट्ठाई महोच्छव करी, निज निज स्थानक जाय. १० सुलभ बोधि जीवनी, हरखे साते धात; ते माटे आराधवा, मन कीजे रळीयात. ११ तपगच्छ नायक गुणनीलो, विजय सेन सूरिराय; पंडित पद्मविजय तणो, दिप विजय गुण गाय. १२
(104) पुण्योदयथी आवीयां, पर्वपजुसण सार, ओच्छवरंगवधामणां, मंगलहरख अपार ॥१॥ महीधर सुरगिरिवडो, तरुमां सुरतरुं जेम, सुरगणमां सुरपतिवडो, पर्व पर्युषणातेम ॥२॥ अमर पडहो वजडावीये, जीवदयाने लागे, सत्यवचन मुख भाखीये, चौरी मैथुन त्याग ॥३॥ आरंभ मूर्छा छंडीये, नवी रमीये जुगार, कजीयो कलह न कीजीये, हांसीनो परिहार ॥४॥ द्रव्य भाव जिन पूजीये, निर्मलकरी निजगात्र, विनंति करी मुनिराजने, दीजे दानसुपात्र ॥५॥ सद्गुरु पासे सांभलो, कल्पसूत्र मनोहार, त्रीजा
औषधनीपरे, पुण्य पुष्टि करनार ॥६॥ एकवीशवार जे सांभले, कल्पसूत्र सुखकंद, सात आठ भवमां, लहे पदवी परमानंद ॥७॥ जिनवर चैत्यजुहारीये, मुनिवंदन हितकार, वार्षीक पडिक्कमणुंकरी, आलोइये अतिचार ॥८॥ साधर्मिकने स्वामणां, करीये सवि करनार, क्षामक आराधक कह्यो, अवर विराधक सार ॥६॥ लाभ अनंतो पामीये, स्वामीवत्सलरंग, अट्ठमतप वली कीजीये, वरीये शिवसुरव चंग ॥१०॥ इणविध पर्व आराधीये, स्थिरकरी मनवचकाय, तोगुण माणेकसे वधी, थई आतम शिवजाय ॥११॥
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(105) श्री सिद्धचक्रजीनां चैत्यवंदनो
उप्पन्न सन्नाण महो मयाणं, सप्पाडिहेरासण संठियाणं; सद्देसणाणं दिय सजणाणं नमो नमो होउ सया जिणाणं. १ सिद्धाण माणंदर मालयाणं, नमो नमो त चउक्कयाणं; सूरीण दूरीक्कयकुग्गहाणं, नमो नमो सूरसमप्पहाणं. २ सुतथ्थ वित्थारण तप्पराणं, नमो नमो वायग कुंजराणं; साहूण संसाहि अ संजमाणं, नमो नमो सुद्ध दयादमाणं. ३ जिणुत्ततत्ते रुइलख्खणस्स, नमो नमो निम्मल दंसणस्स; अन्नाण संमोह तमोहरस्स, नमो नमो नाण दिवायरस्स. ४ आराहिअखंडिअसक्की अस्स, नमो नमो संजम विरिअस्स; कम्मद्दुमोम्मुलण कुंजरस्स, नमो नमो तिव्व तभोवरस्स. ५ इय नवपयसिद्धिं, लद्धि विज्जामीद्धं, पयडीय सुरवग्गं ह्रींतिरेहा समग्गं. दिसिवई सुरसारं, खोणी पीडा वयारं, तिजय विजयचक्कं, सिद्धचक्कं नमामि .
(106)
जो धुरि सिरि अरिहंत, मूलदढ पीठ पइट्ठिओ; सिद्ध सूरि उवज्झाय साहु, चिहुंपास गरिठ्ठियो. १ दंसण नाण चरित्त तवहिं पडी साहा सुंदरु तत्ख्खरसरवग्गलद्धि, गुरु पयदल दुंबरु. २ दिसिवाल जकख जक्खिणी पमुह सुर कुसुमेहिं अलंकिओ; सो सिद्धचक्क गुरु कप्पतरु, अम्ह मनवांछित फळ दिओ. ३
(107)
सकल मंगल परम कमला, केलि मंजुल मंदिरं ; भवकोटी संचित पाप नाशन, नमो नवपद जयकरं. १ अरिहंत सिद्ध सूरीश वाचक, साधु दर्शन सुखकरं; वर ज्ञान पद चारित्र तप अ, नमो नवपद जयकरं. २ श्रीपाल राजा शरीर साजा, सेवता नवपद वरं; जगमांही गाजा कीर्ति भाजा, नमो नवपद जयकरं. ३ श्री सिद्धचक्क पसाय संकट, आपदा नासे सवे; वळी विस्तरे सुख मनोवांछित, नमो नवपद जयकरं. ४ आंबिल नवदिन देववंदन, त्रण टंक निरंतरं; बे वार पडिक्कमणां पडिलेहण, नमो नवपद जयकरं. ५ त्रण काळ भावे पूजीये, भवतारकं तीर्थंकरं; तिम गुणणुं दोय हजार गणीओ नमो नवपद जयकरं . ६ - विधि सहित मन वचन काया, वश करी आराधीओ; तप
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वर्ष साडा चार नवपद, शुद्ध साधन साधीओ. ७ गद कष्ट चूरे शर्म पूरे, यक्ष विमलेश्वर वरं; श्री सिद्धचक्र प्रताप जाणी, विजय विलसे सुखभरं. ८.
(108) बार गुणे अरिहंत देव, प्रणमीजे भावे; सिद्ध आठ गुण समरतां, दुःख दोहग जावे. १ आचारज गुण छत्रीस, पचवीस उवज्झाय; सत्तावीश गुण साधुनां, जपतां शिव सुख थाय. २ अष्टोत्तर सय गुण मलीये, ओम समरो नवकार; वीर विमल पंडित तणो, नय प्रणमे नित सार. ३
(109) श्री सिद्धचक्र आराधीओ, आसो चैतर मास; नवदिन नव आंबिल करी, कीजे ओळी खास. १ केसर चंदन घसी घणां, कस्तूरी बरास; जुगते जिनवर पूजीया, मयणा ने श्रीपाळ. २ पूजा अष्ट प्रकारनी, देववंदन त्रण काळ; मंत्र जपो त्रण काळने, गुणणं दोय हजार. ३ कष्ट टळ्युं उंबर तj जपतां नवपद ध्यान; श्री श्रीपाल नरिंद थया, वाध्यो बमणो वान. ४ सातसो कोढि सुख लह्या, पाम्या निज आवास; पुण्ये मुक्ति वधू वर्या, पाम्या लील विलास. ५
(110) जगत भूषण विगत दूषण, प्रणव प्राण निरुपकं, गगन मंडल मुक्ति पद्मं, सर्व ऊर्ध्व निवासनं; ज्ञान ज्योति अनंत राजे, नमो सिद्ध निरंजनं. २ अज्ञान निद्रां विगत वेदन, दलित मोह निराउखं; नाम गौत्र निरंतरायं नमो. ३ विगत क्रोधा मान योधा, माया लोभ विसर्जनं; रागद्वेष विमर्दितांकूर. नमो. ४ विमल केवल ज्ञान लोचन, ध्यान शुकल समीरितं; योगिनामिति गम्य रुपं. नमो. ५ योग मुद्रा सम समुद्रा, करी पल्यंकासनं; योगिनामिति गम्यरुपं. नमो. ६ जगत जनके दास दासी, तास आश निराशनं; योगिनामिति गम्यरूपं. नमो ७ अमय समकित दृष्टि जनकी, सोय योगी अयोगीकं; देखी तामें लीन होवे. नमो. ८ सिद्ध तीर्थ अतीर्थ सिद्धा, भेद पंचदशाधिकं; सर्व कर्म विमुक्ति चेतन. नमो. ६ चंद्र सूर्य दीप मणीकी, ज्योति तास ओलंगिकं; ते ज्योतिथी कोई अपर ज्योति नमो. १० अंक
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दिलीजे, बचन निभय जे स
माहे अनेक राजे, अनेक मांहि ओककं; ओक अनेकनी नही संख्या, नमो. ११ अजर अमर अलख अनंतं, निराकार निरंजनं; ब्रह्म ज्ञान अनंत दर्शन. नमो. १३ ध्यान धूप मनोज्ञ पुष्प, पंच इंद्रि हुताशनं; क्षमा जाप संतोष पूजा, पूजो देव निरंजनं. नमो. १४
(111) उदधि सुता सुत तास रिपु, वाहन संस्थित बाल; बाल जाणी निज दिजीओ, वचन विलास रसाल. १ अज अविनाशी अकल जे, निराकार निराधार; निर्मम निर्भय जे सदा, तास भक्ति चित्त धार. २ जन्म जरा जाकुं नहीं, नहीं शोक संताप; सादि अनंत स्थिति करी, स्थिति बंधन रुचिकाय. ३ नीजे अंश रहित शुचि, चरम पिंड अवगाह; ओक समय सम श्रेणीओ, अविचळ थयो शिवनार. ४ सम अस विषम पणे करी, गुण पर्याय अनंत; ओक ओक प्रदेशमें, शक्ति सुजग महंत. ५ रुपातीत व्यतीत मल, पूर्णा नंदी इश; चिदानंद ताकुं नमत, विनय सहित निज शीष. ६
(112) श्री सिद्धचक्र आराधतां, सुख संपत्ति लहीले; सुरतरु ने सुरमणि थकी, अधिक ज महिमा कहिओ. १ अष्ट कर्म हाणि करी, शिवमंदिर रहिजे; विधिशुं नवपद ध्यानथी, पातिक सवि दमीओ. २ सिद्धचक्र जे सेवशे, ओक मना नरनारः मनवांछित फल पामशे, ते त्रिभुवन मोजार. ३ अंग देश चंपापुरी, तस केरो भूपाल; मयणा साथे तप तपे, ते कुंवर श्रीपाल. ४ सिद्धचक्रजीनां न्हवण थकी, जस नाठा रोग; तत्क्षण त्यांथी ते लहे, शिव सुख संजोग. ५ सातसे कोढी हुंता, हुवा निसेगी जेह; सोवन वाने झळहळे, जेनी निरुपम देह. ६ तेणे कारण तमे भविजनो, प्रह उठी भक्ते; आसो मास चैत्र थकी, आराधो जुगते. ७ सिद्धचक्र त्रण कालना, वंदो वळी देव; पडीक्कमणुं करी उभय काल, जिनवर मुनिसेव नवपद ध्यान ह्यदये धरो, प्रतिपालो भवि शील; नवपदे आंबिल तप तपो, जेम होय लीलम लील. ६ पहेले पद अरिहंतनु, नित्य कीजे ध्यान; बीजे पद वळी सिद्धनो, करीओ गुण ग्राम. १० आचारज त्रीजे पदे, जपतां जय जयकार; चोथे पद उवज्झायनां,
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गुण गाउं उदार. ११ सर्व साधु वंदु सही, अढी द्विपमां जेह; पंचम पद आदर करी, धरजो धरी सनेह. १२ छटे पद दरिशण नमुं, दर्शन अजुआलं; ज्ञान पद नमुं सातमें तेम पाप पखालुं; १३ ओहि नवपद ध्यानथी, जपतां नासे कोढ; पंडित धीर विमल तणो, नय वंदे करजोड. १५
(113) ___जीयंत रंगारि जणे सुनाणे, संप्पाडि हेराई सयप्पहाणे; संदेह संदोह रयंहरते, झाओह निच्चं पिजिणे रिहंते. १ दुट्ठ कम्मा वरणप्पमुक्के, अनंत नाणाइ सीरी चउक्के; समग्ग लोगग्ग पयप्प सिद्धि, झाओह निच्चंपि मणस्सु सिद्धे. २ नतं सुहं देई पीया न माया, जंदिति जीवाणीह सूरि पाया; तम्हा हु ते चेव थाम देह, जं मुख्ख सुख्खाई लहं लहेह. ३ सुत्तथ्य संवेग मयस्सु अणं, संखीर निरामय निस्सुअणं; पीणंती जे ते उवज्झाय राओ, झाओह निच्चंपि कयप्प सीओ. ४ खंते य दंत्ते य सुगुत्तिगुत्ते, मुत्ते पसंत्ते गुण जोग जुत्ते; गयप्प माओ गय मोह माये, झाओह निच्चं मुनिराण पाओ. ५ जे दव्व छक्काय सुसद्हाणं, तं दंसणं सव्व गुणप्प हाणं, कुग्गाहीवाही उवयंति जेणं, जहाविधेण रसायणेणं. ६ नाणं पहाणं नय चक्क सिद्धं, तत्ताव बोहिक्कयं प्रसिद्धं; धरेह चित्तावसे फुरंतं, माणिक्क दिवोव्व तमो हरंतं. ७ सुसंवरं मोह निरोह सारं, पंचप्प यारं विगसाईयारं; मुलोत्त रागेण गुणे पवित्तं, पालेहनिच्चं पिहुसच्चरित्तं, ८ बज्झ तहा भिंतर भेय मेयं, कषाय दूभेयकु कम्म भेयं; दुःख खयथ्यं कय पाव नासं, तवं तवेहा गमियं निरासं. ६
(114) सिद्धचक्र आराधतां, भवसागर तरिये; भव अटविथी उतरी, शिव वधुने वरीये. १ अरिहंत पद आराधतां, तीर्थंकर पद पावे; जग उपकार करे घणो, सिधो शिवपुर जावे. २ सिद्ध पद ध्यातां थतां, अक्षय अचल पद पावे; कर्म कटक भेदी करी, अकल अरुपी थावे. ३ आचारज पद ध्यावतां, युग प्रधान पद पावे; जिन शासन अजवालीने, शिवपुर नयर सोहावे. ४ पाठक पद ध्यावतां, वाचक पद पावे; भणे भणावे भावशू, सुरपुर शिवपुर जावे. ५ साधु पद आराधता, साधु पद पावे; तप जप संयम आदरे,
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शिवसुंदरी ने कामे. ६ दर्शन नाण पद ध्यावतां, दर्शन नाण अजुआलो; चारित्र पद ध्यावतां, शिव मंदिरमां म्हालो. ७ केसर कस्तुरी केतकी, मचकुंद मालती म्हाले; सिद्धचक्र सेवुं त्रिकाल, जेम मयणा ने श्रीपाल नव आंबील नववार, शियल समकित शुं पालो; श्री रुपविजय कविराजनो, माणेक कहे उजमालो. ६
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जैनेन्द्रमिद्र महितं गत सर्व दोषं, ज्ञाना द्यनंत गुण रत्न विशाल कोशं, कर्म, क्षयो शिवमयं परिनिष्टितार्थं, सिद्धंच बुद्ध मविरुद्ध महं च वंदे. गच्छाधिपं गुणगुणं गणिनं सुसौम्य, वंदामि वाचक वरं श्रुत दान दक्षम्; क्षांत्यादि धर्म कलिनं मुनि मालिकां च, निर्वाण साधन परं नर लोक मध्ये. २ सदर्शनं शिवमयंचजिनोक्त सत्यं, तत्व प्रकाश कुशलं सुखदं सुबोधम्; छिन्ना श्रव समिति गुप्ति मयं चरित्रं, कर्माष्ट काष्ट दहनं सुतप : श्रयामि. पापौ घनाशन करं वर मंगलं च; त्रैलोक्य सार मुप कार परं गुरुं च; भायाति शुद्ध वर कारण मुत्त मानां, श्री मोक्ष सौख्य करणं हरणं भवानां. ४ भव्याब्ज बोध तरणि भवसिंधु नावं, चिंतामणेः सुरतरो रधिकं सुभवे; तत्व त्रिपाद नवकं नवकार रुपं, श्री सिद्धचक्र सुखदं प्रणमामि नित्यं. ५
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बार गुण अरिहंतना, तेम सिद्धना आठ; छत्रीस गुण आचार्यना, ज्ञान तणा भंडार. १ पचीश गुण उपाध्यायनां, साधु सत्तावीश श्यामवर्ण तनु शोभता, जिनशासनना इश. २ ज्ञान नमुं अकावने, दर्शनना सडसठ; सीत्तेर गुण चारित्रनां, तपना बार ते जीट्ठ. ३ ओम नवपद युक्ते करी, त्रणशत अष्ट गुण थाय; पूजे जे भवी भावशुं, तेहना पातिक जाय. ४ पूज्यां मयणा सुंदरी, तेम नरपति श्रीपाल ; पून्ये मुक्ति सुख लह्या, वरीया मंगल माल. ५
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पहेले पद अरिहंतनुं, नित्य कीजे ध्यान; बीजे पद वळी सिद्धनुं, किजे गुणगान. १ आचारज त्रीजे पदे, जपतां जय जयकार; चोथे पद उपाध्यायनां, गुण गाओ उदार. २ सकल साधु वंदो सहि, अढी द्विपमां
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जेह; पंचम पद आदर करी, जपजो धरी ससनेह. ३ छटे पदे दर्शन नमो, दरिसण अजुआलो; नमो नाण पद सातमे, जिम पाप पखालो. ४ आठमे पद आदर करी, चारित्र सुचंग; पद नवमे बहु तप तणा, फल लीजे अभंग. ५ इणी परे नव पद भावशुं ओ, जपतां नव नवकोड, पंडीत शांतिविजय तणो, शिष्य कहे करजोड. ६
(118) श्री अरिहंत उदार कांति अति सुंदर रुप; सेवो सिद्ध अनंत शान्त, आतम गुण भूप. १ आचारज उवजझाय साधु, समता रस धाम; जिन भाषित सिद्धान्त शुद्ध, अनुभव अभिराम. २ बोधि बीज गुण संपदाओ, नाण चरण तप शुद्ध; ध्यावो परमानंद पद, ओ नवपद अविरुद्ध. ३ इह भव आनंद कंद, जगमांहि प्रसिद्धा; चिंतामणी सम जास ज्योत, बहु पुन्ये लाधा. ४ तिहु यण सार अपार अह, महिमा मन धारो; परिहर पर जंजाल जाल, नित्य अह संभारो. ५ सिद्ध चक्र पद सेवतां, सहजानंद स्वरुप; अमृतमय कल्याण निधि, प्रगटे चेतन भूप. ६
(119) पहेले पद अरिहंतना, गुण गाउं नित्ये; बीजे सिद्ध तणा घणां, समरो ओक ज चित्त. १ आचारज त्रीजे पदे, प्रणमो बहु करजोडी; नमीओ श्री उवज्झायने, चोथे पद मोडी. २ पंचम पद सर्व साधुने, नमतां न आणे लाज; जे परमेष्टी पांचने, ध्याने अविचल राज, ३ दंसण शंकादिक रहित, पद छठे धारो; सर्व नाण पद सातमे, क्षण अक न विसारो. ४ चारित्र चोख्खं चित्तथी, पद अष्टम जपीये; सकल भेद विच दान मूल, तप नवमे तपीओ. ५ ओ सिद्ध चक्र आराधतां, पूरे वांछित कोड; सुमति विजय कवि राजनो, राम कहे कर जोड. ६
(120) शिव संपद वरवा सदा, नवपद धरु हुं ध्यानमां, भव वासनानो वेग टाळी, राचता गुण गानमा. श्रीपाल मयणां सुंदरी, साधी घणा सुखीया थयां, नव पद गणो सौभावथी, अहमां अमुल मंत्रो भर्या. १ अरिहंत पद ने प्रथम
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थुणतां विघ्न सहु दूरे टळे, वळी सिद्ध आचारज अने, उवज्झायथी शान्ति मळे; पंचम मनोहर साधु गणो पदने, सेवता शिवपुर गया, नव पद बळेसौ भावथी, अहमां अमुल मंत्रो भर्या. २ दर्शन तथा शुभज्ञानने, चारित्र पदनी योजना, अ त्रिपदनी आराधना, पूरे सदा सहु कामना; अंतिम रह्युं तप पद चमकतुं, बार जस भेदो रह्या; नव पद गणो सौ भावथी, अहमां अमुल मंत्रो भर्या. ३
(121) श्री चौदसे बावन गणधर चैत्यवंदन
सरस्वती आपे सरस वचन, श्री जिन थुणतां परखे मन; जिन चोविशे गणधर देव, प्रणमुं संख्या सुणो तेह. १ ऋषभ चोराशी गणधर देव, अजित पंचाणुं करो नित्य सेव; श्री संभव अकसो वळी दोय, अभिनंदन अकसो सोळ होय, २ अकसो सुमति शिवपुर वास, पद्मप्रभ अकसो सात खास; स्वामि सुपार्श्व पंचाणुं जाण, चंद्र प्रभ त्राणुं चित्त आण. ३ अठ्यासी सुविधि पुष्पदंत, अकाशी शितल गुणवंत; श्रेयास जिनवर छोत्तेर सुणो, वासु पूज्य छासठ भणी गयो. ४ विमलनाथ सत्तावन सुणो, अनंतनाथ पचास गुणो; तें तालीश गणधर धर्म निधान. शांतिनाथ छत्रीश प्रधान. ५ कुंथु जिनेश्वर कहुं पांत्रीश, अरजिन आराधो तेत्रीश; मल्ली अठ्ठावीश आनंद अंग, मुनि सुव्रत अष्टादश अंग. ६ नमिनाथ सत्तर सांभळ, अकादश नमो नेमि दयाळ; दश गणधर श्री पार्श्वकुमार वर्धमान अकादश धार. ७ सर्व मळी संख्याओ सार, चौदशो बावन गणधार; पुंडरीक ने गौतम प्रमुख, जस नामे लहीओ बहु सुख.. ८ प्रह उठी जपतां जयकार, ऋद्धि वृद्धि वांछित दातार; रत्न विजय सत्य विजय बुधराय, तस सेवक वृद्धि विजय गुण गाय. ६
(122)
प्रथम तीर्थकरने नमुं, गणधर चोराशी देव; पंचाणुं अजित जिणंदना, हुं प्रणमुं नित्य मेव. १ श्री संभवजिनवर तणां, गणधर ओकसो दोय; अभिनंदन चोथा प्रभु, अकसो सोळ तस होय. २ सुमतिनाथ प्रभुजिन तणांओ, गणधर ओकसो जाणुं; पद्म प्रभु स्वामि तणा, अकसो सात वखाणुं . ३ श्री सुपार्श्वजिन सातमा, गणधर पंचाणुं सार; त्राणुं चंद्रप्रभु तणां, उतारे
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भवपार. ४ अठ्यासी गणधर नमुं, सुविधि पुष्पदंत; अकयासी शीतल तणां, गणधर गुणवंत. ५ श्रीश्रेयांस जिनवर तणां, गणधर छोत्तेर नमी); वासुपूज्य छांसठ नमी, भवपापथी गमीओ. ६ विमल विमल जिनवर तणां, गणधर सत्तावन जाणो; पचास अनंत स्वामीना, नित्य हियडे आणो. ७ तेंतालिस गणधर नमुं, जे धर्मनाथ स्वामी; छत्रीस शांति जिणंदना, जिणे पंचमी गती पामी. ८ कुंथु जिनेश्वर सत्तरमा, गणधर जश पांत्रीश; अरनाथ प्रभु अढारमा, जस गणधर पांत्रीस, ६ अठ्ठावीस मल्लिजिनतणा, गणधर अति चंगा मुनिसुव्रत अष्टादश प्रणमो मने रंगा. १० नमीनाथ अकवीसमा, सत्तर गणधर कही; नेमी निरंजन केरडा, अकादश लहीजे. ११ दश गणधर स्वामी नमो ओ, श्री पार्श्वकुमार; अकादश श्री वीर तणा उतारे भवपार. १२ चोवीशे जिनवर तणां अ, गणधर सरखा जाण; चौदसो बावन वली, कल्याण विमल गुण खाण. १३
(123) श्री शांतिनाथ जिन चैत्यवंदन दशमे भवे श्री शांतिजिन, मेधरथ राजा नाम; पोसह लीधो प्रेमथी, आत्म स्वरूप अभिराम. १ अक दिन ईंद्रे वखाणीयो, श्री मेधरथ राय; धर्मे चलाव्या नवि चले, जो प्राण परलोक जाय. २ देवमाया धारण करी, पारेवो सिंचाणो थाय; अणधार्यु आवी पडयुं, पारेवु खोळामांय. ३ शरणे आव्युं पारेवडुं, थर थर कंपे काय; राख राख तुं राजवी, मुजने सींचाणो खाय. ४ जीवदया मनमां वसी, कहे सिंचाणाने अह; नही आ पारेवडुं, कहे तो कापी आपुं देह. ५ अभय दान देई करीओ करीओ, बांध्यं तीर्थकर नाम; उदय रत्न नित्य प्रणमतां, पामे अविचल धाम. ६
(124) विश्वातिशायी महीमा, ज्वल तेजो विराजीतं; शांति शान्तिकर स्तौमि दूरित व्रांत शान्तये. १ षोडश विद्यादेव्योपि, चतुषष्ठि सुरेश्वरा; ब्रह्मादयश्च सर्वेङपि, यं सेवंते कृतादश. २ ॐ ह्रीँ श्री जये विजये, ॐ जपे परैङरपि; तुष्टिं कुरु कुरु पुष्टिं, कुरु कुरु शांति महाजपे. ३ न. क्वापि व्याधयो देहे, न ज्वरा न भगंदरा; कवास स्वासोदया नैव, वाद्यं ते शांति केवलात्. ४
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यक्ष भूत पिशाचाद्या, व्यंतरा दुष्ट मुद्गरा; सर्वे शाम्यन्तु ते शांतिनाथ, सेवा करे जिना मया. ५
(125) शांतिजिनेश्वर सोळमां, चक्री पांचमा जाणुं; कामकुंभ अधिकथी, जस महिमा वखाणुं. १ त्रिगडे बेसी देशना, देता भवि उपगार; भविक कमल प्रतिबोधतां, भाव धरम दातार. २ केवलज्ञान दिवाकरु, केवल कमला कंत; क्षायिक चारित्र अनुभवी, कीधो भवोदधि अंत. ३ अनंत वीर्य अलवेसरु, परमानंद जे पाम्यां. आतमसुख रुचि थई, चउगतिना दुःख वाम्यां. ४ त्रिकरण योगे ताहरूं, ध्यान धर्यु जिनराज; भोळे भक्ते ताहरी, सारे वांछित काज. ५ जग चिंतामणी सारीखो, जगवल्लभ जगनाथ; जिन उत्तम पद सेवतां, रत्न थाये सनाथ. ६
(126) शांतिकरण श्री शांतिनाथ, अचिरा राणी नंद; विश्वसेन राय कुल तिलक, अमीय तणो अकंद. १ धनुष चालीशनी देहडी, लाख वरसनुं आय; मृगलंछन बिराजतां, सोवन सम काय. २ शरणे आव्युं पारेवडु, जीवदया प्रतिपाल; राख राख तुं राजवी, मुजने सिंचाणो खाय. ३ जीवथी अधिक पारेवडूं, राख्यं ते प्रभुनाथ; देव माया धारण समे, न चल्या मेधरथ राय. ४ दयाथी दो पदवी लही , सोळमां शांति नाथ; पुन्ये सिद्धि वधु वर्या, मुक्ति हाथो हाथ. ५
(127) विश्वसेन अचिरातणो, नंदईक्ष्वाकु भाण, भरणीरुक्ष राशिमेष, सेवेसुर नरराण ॥१॥ भाद्रवदि सातम चवीया, जेठवद तेरस जात, मृगलंछन हेमवर्णकाय, चालीश धनु विख्यात ॥२॥ गजपुरी भूषण प्रभु, संयम सहसशुं लीध, ज्येष्ठवदि चौदशदिनेए, सकल मनोरथ सिद्ध ॥३॥ पोषवदि नवमी तरुं, नंदी ज्ञान हजार, बासठ मुनि साधवी सहस, एकसठ छसें धार ॥४॥ वरसलक्ष एक आउखू, नवशे पच्चास मुनिसाथ, जेठवद चौदशे ग्रह्यो, समेत शिववधू हाथ ॥५॥ गर्भवास नवदिन खट, यक्षवर गरुड सूर,
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निर्वाणी नित्यनित्य करे, शासन संघ सनूर ॥६।।
(128) चोवीश जिन लंछन- चैत्यवंदन ऋषभ लंछन वृषभदेव, अजित लंछन हाथी; संभव लंछन घोडलो, शिवपुरनो साथी. १ अभिनंदन लंछन कपि, कौंच लंछन सुमति; पद्म लंछन पद्म प्रभु, विश्वदेवा सुमति. २ सुपार्थ लंछन साथीयो, चंद्रप्रभ लंछन चंद्र; मगर लंछन सुविधि प्रभु, श्री-वच्छ शीतल जिणंद. ३ लंछन खड्गी श्रेयांसने, वासुपूज्यने महीष; सुवर लंछन विमळ देव, भवियां ते नमो शीष. ४ सिंचाणो जिन अनंतने, वज्र लंछन श्री धर्म; शांति लंछन मृगलो, राखे धर्मनो मर्म. ५ कुंथुनाथ जिन बोकडो, अरजिन नंदावर्त; मल्ली कुंभ वखाणीओ, सुव्रत कच्छप विख्यात. ६ नमि जिनने नीलो कमळ, पामीले पंकज मांही; शंख लंछन प्रभु नेमजी, दिसे उंचे आंही. ७ पार्श्वनाथजीने चरण सर्प, नीलवरण शोभित; सिंह लंछन कंचन तनु, वर्धमान विख्यात. ८ ओणी परे लंछण चिंतवीओ, ओळखीओ जिनराय; ज्ञानविमल प्रभु सेवतां, लक्ष्मी रतन सूरीराय. ६
(129) श्री चोवीस तीर्थंकर राशीनु चैत्यवंदन
शांति नमि मल्ली मेष छे, कुंथ अजित वृषभ भाति; संभव अभिनंदन मिथुन, धर्म कर्क सिंह सुमति. १ कन्या पद्मप्रभ नेम वीर, पास सुपास तुलाओ; राशी वृश्चिक धन ऋषभदेव, सुविधि शीतल जिनराय. ३ मकर सुव्रत श्रेयांसने, बारमा घट मिन लील; विमल अनंत अर नामथी सुखदाय श्री शुभवीर.
(130) पद्म प्रभु ने वासु पूज्य, दोय राता कहीजे; चंद्रप्रभ ने सुविधिनाथ, दो उज्वल लहीओ. १ मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ दो, नीला निरख्या; मुनिसुव्रत ने नेमिनाथ, दो अंजन सरिखा. २ सोळे जिन कंचन समाओ, ओवा जिन चोविश; धीर विमळ पंडीत तणो, ज्ञान विमळ कहे शिष्य. ३
(131) श्री चोवीश जिननां देहमान, चैत्यवंदन प्रथम तीर्थकर देहडी, धनुष पांचसे मान; पचास पचास घटाडतां, सो
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गांधीनगरापि उटका सुधी भगवान. २ सोथी दस दस घटतुं, पचासथी पांच पांच नेमनाथ बावीशमा, दश धनुष्यनु मान. २ पारसनाथ नव हाथर्नु, सात हाथ महावीर; अहवा जिन चोविशनु, कवियण कहे सुधिर, ३
(132) श्री चोवीश जिननां आयुष्यनुं चैत्यवंदन
प्रथम तीर्थकर आउ, पूर्व चोराशी लाख; बीजा बहोतेर लाखनु, त्रीजा साइठ लाख. १ पचास चालीस-त्रीसने, वीशने दशने दोय; अक लाख पूर्व तणुं, दशमा शीतल जोय. २ हवे चोराशी लाख वर्ष, बारमा बहोतेर लाख; साईठ त्रीस ने दशर्नु, शांति ओक ज लाख. ३ कुंथु पंचाणुं हजारर्नु, अर चोराशी हजार; पंचावन त्रीसने दशर्नु, नेम ओक हजार. ४ पार्श्वनाथ सो वर्षतुं, बहोतेर श्री महावीर; अहवा जिन चोवीशर्नु, आयु सुणो सुधिर. ५
(133) श्री चोवीश जिन- चैत्यवंदन ऋषभ अजित संभव नमुं, अभिनंदन जिनराज; सुमति पद्म सुपार्थजिन, चंद्रप्रभ महाराज. १ सुविधि शीतल श्रेयांसजिन, वासुपूज्य सुख वास; विमल अनंत श्री धर्मजिन, शांतिनाथ पूरे आश. २ कुंथु अर मल्लीजिन, मुनिसुव्रत जगनाथ; नमि नेमि पार्थ वीर ओ, साचो शिवपुर साथ. ३ द्रव्यभावथी सेवी अ, वाणी मन उल्लास; आतम निर्मल किजीये, जिम पामीये शिव पास. ४ ओम चोवीस जिन समरतांओ, पहोंचे मननी आश; अमी कुमार अणी परेभणे, ओ पामे लील विलास. ५ .
(134) सरस्वती देवी धरी मनरंग, उलटआणी घणुं अंग, चैत्यवंदननो कहुं विचार, जोजो ग्रंथतणे अनुसार ॥१॥ देह -रे जावा मनधरे, चोथलाभते पोतेवरे, ऊभोथावे देहराकाज, छठलाभ कह्यो जिनराज ॥२॥ जिनघर जावा उद्यमकरे, अट्ठमनोतप लाभेखरे, देहरां सामां पगलां भरे, दसमलाभ तप पोते वरे ॥३॥ जिनघर पंथ प्रवर्ते जिसे, द्वादशनो फललाभे तिसे, अर्धपंथ जिसे अतिक्रमे, पासखमण फलतेणेसमे ॥४॥ मासखमण फल पामे खरो, द्रष्टे दीठो जिनदेहरो, जेहफल पामे छे षटमास, तेहफल पामे देहरापास ॥५॥ वर्षीतपनो जेहफलसार, तेहफलपामे देहराबार, वर्षसहस
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उपवासतणो, जिनपूज्यातेहथी घणो ॥६॥ तीन प्रदक्षिणा ततक्षण शुद्ध, दीवे दीठे बहुलीबूद्ध, आरती करतां आरतजाय, मंगलदीवे मंगल थाय ॥७।। प्रभातपूजा कहीजिनआप, रयणीये कीधां टालेपाप, मध्याह्नेजिनपूजाकही, जन्मपापहरे ते सही ॥८॥ सात-जन्म सब कीधां पाप, संध्यापूजा टाले संताप, जिनवर पूजा करवीसही, लाभतणो तो लेखोनही ॥६॥ करे प्रमार्जन देहरातणो, तेहने लाभ अछे सोगुणो, सहसगुणो विलेपनतणो, लाखगुणो फूलमालातणो ॥१०॥ वर वाजींत्रने गीतरसाल, लाभ अनंत कहयो तत्काल, इम जाणीने करवी भप्ति, जेहने जेहवी होशे शक्ति ॥११॥ जे नर उठी पहिले प्रहर, अरिहंत देवने भावे नमे, ते नर पामे संपत्तिक्रोड मानविजय कहे करजोड ।।१२।।
(135) श्री परमात्मानु चैत्यवंदन परमानंद प्रकाश भास, भासित भव किला; लोकालोक लोकवे नित अहवी लीला. १ भाव विभाव पणे करी, जेणे राख्यो अलगो; तर्क परे मेळवी, तेह थकी नवी वळग्यो. २ तेहनी परे आतम भावने ओ, विमळ को जेणे पुर; ते परमात्म देव, दिन दिन वधतुं नुर. ३ नामे तो जगमां रह्यां, स्थापना पण तिमही; द्रव्य भाव मांहे वसे, पण न कळे किमही. ४ भाव थकी सवि ओक रुप, त्रिभुवनमें त्रिकाल; ते पारंगत वंदिओ, त्रिहु योगे स्वभावे. ५ पाळे पावन गुण थकीओ, योग क्षेमंकर जेह; ज्ञान विमल दर्शन करी, पुरण गुणमणि गेह. ६
(136) जगन्नाथने हुं नमुं हाथ जोडी, करुं विनंती भक्ति शुं मान मोडी; कृपा नाथ संसार कु पार तारो, लह्यो पुन्यथी आज देदार तारो. १ सोहीला मळे राज्य देवाधि भोगो, परम दोहीलो ओक मुज भक्ति जोगो; घणा कालथी तुं लह्यो स्वामी मीठो, प्रभुपारगामी सहु दुःख नीठो. २ चिदानंद रुपी परब्रह्म लीला, विलासी विभो त्यक्त कामाग्नि किला; गुणाधार जोगीश नेता अमायी, जय त्वं विभो भूतले सुखदायी. ३ न दीठी जेणे ताहरी योग मुद्रा, पडया रात दिने महा मोह निंद्रा; कीसी तास होशे गति ज्ञान सिंधो. भमंता
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भवे हे जगज्जीव बंधो. ४ सुधा स्यंदी ते दर्शन नित्य देखे, गणुं तेहनो हे विभो जन्म लेखे; त्वदाज्ञा विषे जे रह्या विश्वमांहे, करे कर्मनी हाण क्षण ओक मांहे. ५ जिनेशाय नित्यं प्रभाते नमस्ते, भवि ध्यान होजो ह्यदये समस्ते; स्तवी देवना-देवने हर्ष पुरे, मुखां भोज भाली भजे हेज उरे. ६ कहे देशना स्वामी वैराग्य केरी, सुणे पर्षदा बार बेठी भलेरी;सुधां बोध धारा समी ताप टाळे, बेहुं बांधवा सांभळे ओक ढाळे ७ लहे मोक्षनां सुख लीला अनंती, वर क्षायिक ज्ञान भावे लहंती; चिदानंद चित्ते धरे ध्येय जाणी, कहे राम नित्य जपो वाणी.
( 137 ) श्री मल्ली जिन चैत्यवंदन
पुरुषोत्तम परमातमा, परम ज्योति परधान; परमानंद स्वरुप रुप, जगमां नही उपमान. १ मरकत रत्न समान वान, तनु कांति बिराजे; मुख शोभा श्रीकार देखी, विधु मंडळ लाजे. २ इंदिवर दल नयन सयल, जन आणंद कारी, कुंभराय कुल भाण भाल, दिधिती मनोहारी. ३ सुरवर नरवधु मली मली, जिन गुण गण गाती; भक्ति करे गुणवंतनी, मिथ्या अघघाती. ४ मल्ली जिणंद पद पद्मनी अ, नित्य सेवा करेजेह; रुप विजय पद संपदा, निश्चय पामे तेह. ५
(138) श्री ओकसो सित्तेर जिन चैत्यवंदन
सोल जिनवर शामला, राता त्रीस वखाणुं; लीला मरकत मणी समा, अडत्रीश गुणखाणं. १ पीळा कंचन वर्ण समा, छत्रीस जिनचंद, शंख वरण सोहामणो, पचाशे सुखकंद २ सीत्तेर सो जिन वंदिओ ओ, उत्कृष्ट समकाळ; अजित नाथ वारे हुआ, वंदु थई उजमाळ. ३ नाम जंपंता जिनतणुं, दुरगति दूरे जाय; ध्यान ध्यातां परमात्मनुं, परम महोदय थाय. ४. जिनवर नामे जश भलो अ, सफल मनोरथ सार; शुद्ध प्रतीति जिन तणी, शिव सुख अनुभव पार. ५
(139) श्री पंचतीर्थनुं चैत्यवंदन
आज देव अरिहंत नमुं, समरुं तोरुं नाम; ज्यां ज्यां प्रतिमा जिन तणी, त्यां त्यां करुं प्रणाम. १ शत्रुंजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार; तारंगे श्री
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अजितनाथ, आबु ऋषभ जुहार. २ अष्टापद गिरि उपरे, जिन चोविशे जोय; मणिमय मूरती मानशुं, भरते भरावी सोय. ३ समेत शीखर तीरथ वडुं, ज्यां विशे जिन पाय; वैभार गिरिवर उपरे, श्री वीर जिनेश्वर राय. ४ मांडवगढनो राजियो, नामे देव सुपास; रिखव कहे जिन समरतां, पहोंते मननी आश. ५
(140) विहरमान जिणंद वंदु, उदित केवल भास्करं; असंख्य लोक निवास प्रभुनां, शाधता अघनास्करं. १ अष्टापदे समेत चंपा, नेम गढ गिरि मंडणो; श्री वीर पावा विमल गिरिवर, केसरा दुःख खंडनो. २ आबु तारंगगढ सुचंगा, शिव अभंगा कारणा; श्री अंतरिक्ष जिणंद पास, थंभणा दुःख वारणा. ३ शंखेश्वरा अलवेसरा, जग पावना जीरावला; चिंतामणी फलोधी पार्थ, मल्लि भवोदधि नावला. ४ वरकाण राणक नाडोल नगरे, वीर घाणे गोडीये; श्री नाडुलाई वीर राता, वंदिये भव तोडीये. ५ श्री पाली पाटण राजनगरे, चारूप मंडण पासजी; इम जेह थानक चैत्य जिनवर, भविकपूरे आशजी. ६ सहु साधु गणधर केवली मुनि, संघ भवजल तारणा; दर्शन ज्ञान चरण साचा, महानंदना कारणा. ७ ओ तीरथ वंदन भव निकंदन, भविक शुद्ध मन कीजिये; निज रुप धारो भरम फारो, अघन आतम लीजीये. ८
(141) श्री सामान्य जिन चैत्यवंदन अरिहंत देवा चरणोनी सेवा, पंदर भेदे सिद्ध प्रणमुं मेवा; आयरिय उवज्झाय सर्व साधुनां नाम, ओ पंच योगे करुं प्रणाम. १ अतीत अनागत ने वर्तमान, संप्रति काले वीश विहरमान; उत्कृष्टकाले अकसो सित्तेर जिनना नाम. ओ पंच. २ बार देवलोके नव ग्रैवेयके, पंच अनुत्तर पाताल जोगे; तिर्खा लोके थई जे जिनना नाम. ओ पंच. ३ शाधता भुवन सोनामय कहीये, शाश्वती प्रतिमा सोनामय लहीये, शाश्वता अशाश्वता अभिराम. ओ पंच. ४ दीठा न दीठा श्रवणे न सुणिया, भेटया न भेटया भावेज भणीया; ज्ञान विमल प्रभु समरथ देवा, मने आप जो भव भव स्वामी सेवा. ५
(142) परमेश्वर परमातमा, पावन परमिट्ठ; जय जगगुरु देवाधिदेव, नयणे में
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दिट्ठ. १ अचल अकल अचल अविकार सार, करुणा रस सिंधु; जगती जन आधार ओक, निष्कारण बंधु. २ गुण अनंत प्रभु ताहरा अ, किमही कह्यां न जाय; राम प्रभु जिन ध्यानथी, चिदानंद सुख थाय ३
(143)
जय जय तुं जिनराज आज, मळियो मुज स्वामि; अविनाशी अकलंक रुप, जग अंतर जामी १ रुपा रूपी धर्म देव, आतम आरामी चिदानंद चेतन अचिंत्य, शिव लीला पामी २ सिद्ध बुद्ध तुज वंदतां सकल सिद्धि वर बुद्ध; राम प्रभु ध्याने करी, प्रकटे आतम रिद्ध. ३ काल बहु स्थावर गयो, भमीयो भव मांही; विकलेन्द्रीय मांहि वस्यो, स्थिरता नहीं कयाही. ४ तिर्यच पंचेद्रिमांहि देव, कर्मे हुं आव्यो; करी कुकर्म नरके गयो, तुम दरिशन नही पायो ५ ओम अनंत काले करी अ, पाम्यो नर अवतार; हवे जगतारक तुंही मल्यो, भवजळ पार उतार. ६
(144)
मुख नीरखी जिनराजनुं, भावुं भाव उदार; धन्य दिवस वेला घडी, दीठो तुम देदार. १ अंतर जामी तुं माहरो, समरुं वारो वार; तारक बिरुद्ध सुणी करी, आव्यो तारे द्वार. २ सूतां बेसतां जागतां, अक तुमारुं ध्यान; योगीश्वर पेरे जपुं, निरखुं परम निधान. ३ सुरभि समरे वच्छने, कोयलडी मधु मास; तेम समरुं हुं तुजने, चंद चकोर उल्लास. ४ जिम घन गर्जित मोरने, उलट अंगे थाय; निरखी निरखी हरखे घणुं, मुज मन आवे दाय. ५ अण संभार्यां सांभरे, समय समय सोवार; नयण अमारा लालचुं, देखण तुम देदार. ६ तुं मन मान्यो माहरे, तुं ही ज जीवन प्राण; सेवक करीने दाखवो, तुं मोहे महीराण. ७ काले मोंघे जे दान दीये. ते दानी जग मांय; ते माटे हवे आजथी, रखे विसारो नांह. ८ अकवार सेवक कही, बोलावो महाराज; मुक्ति नथी हुं मांगतो, ओटले सिध्या काज. ६ सेवक हशे ते बोलशे. खमजो मुज अपराध असंजस जे बोलतां दाख्यां वेळा लाग. १० भवो भव तुम चरणातणी, मांगु भक्ति उल्लास; आदि जिनेश्वर पूरजो, खेमवर्धन नी
आश. ११
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(145)
दीनानाथ अनाथ तुं, तुं शिवयोगी अयोगी, नीसंगी संगी सदा, समता सुख संगी. १ तुंही अलिंगी जन कहे, जिन लक्षण लिंगी; संगी तुज पद सेवनां, तेणे मति रंगी. २ हुं केवल लींगी अछु, केम कहुं सकल स्वरूप; करुणा रस भर पूरीयो, तुंप्रभु अकल अरुप. ३ जन्म कृतारथ अब हुओ, तुज दरिसण देखे; जीवित सफळ थयुं माहरु, निशि दिवस थयो लेखे. ४ आज की निश्चय कयो, हवे दुःख नवी पामुं नरक निगोद तिरिय तणां, भव दोहग वामुं. ५ पाम्यो समकित सुरतरुओ, काढयो साल मिथ्यात; रोम रोम तनु उलस्यो, जब तुं निरख्यो नाथ. ६ दूर थकी पण वंदना, नित नित हुं करतो; ध्यान तमारुं चित्तमां, अहो निश हुं धरतो. ७ प्रसन्न थई मुज आज स्वामी, स्वयं मुज जब मलीया; कर्म कलेश टाल्यां सवे, मन वांछित फलिया. ८गळीया पणुं मेली करी, गावुं तुज गुण ग्राम; कह्युं कहाव्युं जेणे हवे, हनी वती प्रणाम. ६ निज बाळकने आपीओ, समकितनो मेवो; महेर करी मुज तारी, अजग जस लेवो. १० जय जय तुं जगदेक बंधु, रिसहेसर स्वामि; सुरमणि सुरतरुथी अधिक, तुज सेवा पामी ११ पाय नमी प्रभु वंदताओ, सेवक कहे निश दिश; धीर विमल पंडित तणो, नय विमल कहे शिष. १२
(146) श्री जिनपूजानुं चैत्यवंदन
प्रणमी श्री गुरुराज आज, जिन मंदिर केरो; पुन्य भणी करशुं सफल, जिन वचन भलेरो . १ देहरे जावा मन करे, चोथ तणुं फल पामे; जिनवर जुहारवा उठतां, छट्ठ पोते आवे. २ जाइशुं जिनवर भणी, मारग चालंता; होवे द्वादश तणुं पुण्य, भक्ते म्हालंता. ३ अर्ध पंथ जिनवर भणी, पंदर उपवास; दीठो स्वामी तणो भवन, लहीये अकजमास ४ जिनवर पासे आवंता, छ मासी फल सिद्ध; आव्यां जिनवर बारणे, वर्षी तप फल ली. ५ सो वरस उपवास पुन्य, प्रदक्षिणां देतां; सहस वर्ष उपवास पुण्य, जिन नजरे जोतां. ६ फल घणो फुलनी मालनो, प्रभु कंठे ठवतां; पार न आवे गीत नाद, केरा फल थुणतां. ७ शिर पूजी पूजा करो अ, सूर धूप तणो धूप; अक्षत सार ते अक्षय सुख; दीये तनु वर रुप. ८ निर्मल तन मने
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करीये, थुणतां इंद्र जगीश; नाटक भावना भावतां, पामे पदवी जगीश. ६ जिनवर भक्ति पालीये, प्रेमे प्रकाशी; सुणी श्री गुरु वयण सार, पूर्व ऋषिले भाखी. १० अष्ट कर्मने टालवा, जिन मंदिर जईशुं. भेटी चरण भगवंतना, हवे निर्मल थइशुं ११ कीर्ति विजय उवजझायनो अ, विनय कहे करजोड; सफल होजो मुज विनति, जिन सेवानो कोड. १२ ।
(147) श्री वर्धमान तप, चैत्यवंदन त्रिगडे त्रिभुवन वालहो, भाखे तपना भेद; अकसो त्रेवीश मुख्य छे, करवा कर्म विच्छेद. १ तेमां पण धुर मोटको, महा उग्र तप अह; शूरवीर कोई आदरे, निर्मल थाशे देह. २ रोग विघ्न दूरे करे ओ, उपजे लब्धि अनेक; क्षमा सहित आराधतां, धर्मरत्न सुविवेक. ३ ।
(148) बे कर जोडी प्रणमीओ, वर्धमान तप धर्म; त्रिकरण शुद्ध पाळतां, टाळे निकाचित कर्म. १ वर्धमान तप सेवीने, कोई पाम्या भवपार; अंतगड सूत्रे वर्णव्या, वंदु वारंवार. २ अंतराय पंचक टळे ओ, बांधे जिनवर गोत्र; नमो नमो तप रत्नने, प्रगटे आतम ज्योत. ३
(149) श्री वीरा स्थानक तप, चैत्यवंदन पहेले पद अरिहंत नमुं, बीजे सर्व सिद्ध; त्रीजे प्रवचन मन धरो, चोथे आचार्य सिद्ध. १ नमो थेराणं पांचमे, पाठक पद छठे; नमो लोओ सव्व साहूणं, जे छे गुण गरिटे. २ नमो नाणस्स आठमे, दर्शन मन भावो; विनय करो गुणवंतनो, चारित्र पद ध्यावो. ३ नमो बंभवय धारिणं, तेरमे क्रिया जाण; नमो तवस्स चौदमे, गोयम नमो जिणाणं. ४ संयम ज्ञान सुअस्सने ओ, नमो तित्थस्स जाणी; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां होय सुखखाणी. ५
(150) श्री अनागत चोवीसी चैत्यवंदन पद्मनाभ पहेला जिणंद, श्रेणिक नृपति जीव; सुरदेव बीजा नमुं, सुपास श्रावक जीव. १ श्री सुपास त्रीजा वली, जीव कोणीक उदाई; स्वयंप्रभ चोथा जिणंद, पोट्टिल मुनिभाई. २ सर्वानुभूति पांचमा, दढायु श्रावक जीव;
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देव श्रुत छट्ठा जिणंद, कार्तिक शेठ वखाण. ३ श्री उदयनाथ जिन सातमा, शंख श्रावक जीव; श्री पेढाल जिन आठमा, आनंद मुनि जीव. ४ पोटिल नवमा वंदिये, जीव जेह सुनंद; शतकीर्ति दशमा जिनंद, शतक श्रावक आणंद. ५ सुव्रत जिन अग्यारमा, देवकी राणी जाण; अमम जिनवर बारमा, श्री कृष्ण गुणखाण. ६ निष्कषाय जिन तेरमा, सत्यकी विद्याधर; निष्पुलाक जिन चौदमा, बलभद्र सोहंकर. ७ श्री निर्मम जिन पंदरमा, सुलसा श्राविका जिव; चित्रगुप्त जिन सोलमा, रोहिणी राणी जीव. ८ श्री समाधिजिन सत्तरमा, रेवती श्राविका जाण; श्री संवर जिन अठारमा, जीव शतानी वखाण. ६ श्री यशोधर ओगणीशमा, जीव कृष्ण द्विपायन; विजय नाम जिन वीसमा, जीव कर्ण सहायण. १० ओकवीशमा श्री मल्लिनाथ, कृष्ण नारद कही ओ; अंबड श्रावक जिन देव, बावीशमा लहीओ. ११ अनंत वीर्य त्रेवीशमा, जीव अमरनो जेह; श्री भद्रजिन चोवीशमा, स्वाति बुद्ध गुण गेह. १२ अ चोवीशे जिनवरा, होशे आवते काले; भाव सहित ते वंदिओ, करजोडी भाले. १३ लंछन वर्ण प्रमाण आयुष्य, अंतर सवि सरखा; संप्रति जिन चोवीश परे, चडते सवि निरखा. १४ पंच कल्याणक तेहनां अ, होशे ओ दिवसे; धीर विमल गुरुनो कहे, ज्ञान विमल सूरिश. १५
(151) श्री शांतिनाथ जिन चैत्यवंदन
सकल कुशल वल्ली, पुष्करावर्त मेघो, दुरित तिमिर भानु, कल्पवृक्षो पमान; भवजलनिधि पोत; सर्व संपत्ति हेतु स भवतु सततंवः श्रेयसे शांतिनाथः श्रेयसे पार्श्वनाथः १
(152) श्री पंच परमेष्ठिनुं चैत्यवंदन
अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धि स्थिता, आचार्या जिन शासनोन्नतिकराः, पूज्या उपाध्यायका; श्री सिद्धान्त सुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधका; पंचैते परमेष्टिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम् . १
(153) श्री सामान्य जिन चैत्यवंदन
तुज मूरतिने निरखवा, मुज नयणा तलसे; तुम गुण गणने बोलवा, रसना मुज हरखे. १ काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे; तो
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सेवक तार्या विना कहो किम हवे सरशे. २ ओम जाणीने साहिबाओ, नेक
नजर मुज जोय; ज्ञान विमल प्रभु सुनजरथी, ते शुं जे नवि होय. ३
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नाना विचित्रं भवदुःख राशीं, नाना प्रकारे बहु मोह फांसी; पापानि दोषाणि स्तुवंति देवा, जे जन्म मरणं त्वं शांतिनाथं. १ संसार मध्ये मिथ्यात्व चिंता, मिथ्यात्व मध्ये कर्माणि बंधे; ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा, जे जन्म. २ कामाश्च क्रोधं मायावि लोभं चतुः कषाय इह जीव बंध; ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा, जे जन्म. ३ जातस्य मरणं भूतस्य वचनं वै जन्म शांति बहु जीव दुःख; ते दुःख छेदन्ति देवाधिदेवा. जे जन्म. ४ चारित्र हिनो नर जन्म मध्ये, सम्यक्त्व रत्नं परिपालयंति; ते जीव सिद्धंति देवाधिदेवा, जे जन्म. ५ मृदु वाकयहिनो कठिनस्य चित्ते, परजीव निंदे मनसाय बंधे; ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा. जे जन्म. ६ पर द्रव्य चोरी परदार सेवा, हिंसानि कांक्षानि अनिवृत बंध; ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा. जे जन्म ७ पुत्राणि मित्राणि कलत्राणि बंध, बहु बंध मध्ये इह जीव बंध; ते बंध छेदन्ति देवाधिदेवा, जे जन्म. ८ जपति पठति नित्यं, शांति नाथादि शुद्धं, स्तवन मदनराया, पाप तापापहारं; शिव सुख निधि पोतं, सर्व सत्वानुं कंपं, कृत मुनि गुणभद्र भद्र कार्येषु नित्यं. ६
(155) श्री नेमिनाथ चैत्यवंदन
जयवंत महंत निरंजन छो, भवनां दुःख दोहग भंजन छो; भवि नेत्र विकास न अंजन छो, प्रभु काम विकार विगंजन छो. १ जगनाथ अनाथ सनाथ करो, मम पाप अमाप समूल हरो; अरजी उर नेमि जिणंद धरो, तुम सेवक पुं प्रभु ना विसरो. २ सुर अर्चित वांछित दायक छो, सो संघ तणा प्रभु नायक छो; गिरनार तणा गुण गायक छो, कलहंस तणी गति लायक
३
(156) श्री गौतम स्वामिनं चैत्यवंदन
गौतम जिन आणा गये, देवशर्मा के हेत; प्रतिबोध आवत सुना, जाण्या नही संकेत. १ वीर प्रभु मोक्षे गया, छोडी मुज असार, हा हा भरते
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हो गया, मोह अति अंधकार. २ वीतराग नहीं रागहे, अक पखो मुज राग; निष्फल ओम चिंतवी गयो, गौतम मनसे राग. ३ मान कियो गणधर हुओ, राग कियो गुरु भक्ति; खेद कियो केवल लह्यो, अद्भूत गौतम शक्ति. ४ दिप जगावे रायने, तीणे दीवाली नाम; अकम गौतम केवली, उत्सव दिन अभिराम. ५
(157) श्री पंचतीर्थ- चैत्यवंदन सिद्धाचल गिरनार गिरि, अर्बुद अति उत्तंग; समेत शिखर जिन वीशनां, मोक्ष कल्याणक चंग. १ कोटी शिला अष्टापदे, मेरु रुचक समीप; शाश्वत जिनवर गृह घणा, श्री नंदीश्वर द्वीप. २ देवलोक ग्रैवेक छ, भवनपति वर भवन; जिनवर बिंब अनेक छे, पूजु ते सर्व सुमन. ३ विहरमान जिनवर भला, अतीत अनागत अद्धा; नाम स्थापना द्रव्य भाव, चार निक्षेपा लद्धा. ४ सहजानंदी सुखकरुओ, परम दयाळप्रधान; पुन्य महोदये पूजतां, लहीजे परम कल्याण. ५
(158) श्री चंद्रप्रभुनु चैत्यवंदन ॐ चंद्रप्रभ प्रभाधीश, चंद्रशेखर चंद्रभूः, चंद्र लक्ष्यांक चंद्रांकं; चंद्र विजये नमो स्तुते. १ ॐ ह्रीँ श्री चंद्रप्रभप्रभु, ह्रीं श्री कुरु स्वाहा प्रभु; इष्ट सिद्ध महासिद्ध, तुष्टि पुष्टि कुरु भवा. २ द्वादश सहस जपते, वांछितार्थ फल प्रदं; महित श्री संघ जपते, सर्वाधि व्याधि नाशिने. ३ सुरा सुरेन्द्र महित श्री, पांडव नृप सुत श्री; चंद्र प्रभ तीर्थेश, श्रियां चंद्रा ज्वाला कुरु. ४ श्री चंद्र प्रभ विधयं, स्मृत सिद्ध फलामृतः; भवाधि व्याधि, विध्वंस, दायनी मे वर सदा. ५
(159) यमकबंध श्री पार्श्वनाथ चैत्यवंदन वरसं वरसं वरसं वरसं, भवदं भवदं भवदं भवदं; सममा सममा सममा सममा, गमभं गमभं गमभं गमभं. ॥१॥ दरमं दरमं दरमं दरमं, गतरं गतरं गतरं गतरं; गरसं गरसं गरसं गरसं, नवरं नवरं नवरं नवरं. ॥२॥ रमुदा रमुदा रमुदा रमुदा, समिनं समिनं समिनं समिनं; विदितं विदितं विदितं विदितं, नमते नमते नमते नमते. ॥३॥ यतना यतना यतना यतना,
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नयमा नयमा नयमा नयमा; क्षणल क्षणल क्षणल क्षणल, क्षरद क्षरद क्षरद क्षरद. ॥४॥ प्रमदा प्रमदा प्रमदा प्रमदा, नकरा नकरा नकरा नकरा; नवमा नवमा नवमा नवमा, नसदा नसदा नसदा नसदा. ।।५।। तरसा तरसा तरसा तरसा, दयनो दयनो दयनो दयनो; कदम कदमं कदम कदम, विभवा विभवा विभवा विभवा. ॥६॥ इति पार्धजिनेश्वर! ते स्तवनं, रचितं खचितं यमकैस्सुधनं, परिरंजितदक्ष नरप्रकरं, कुरुताच्छिवसुंदर सौरभरं ॥७॥
(160) श्री आदिनाथ चैत्यवंदन चिदानन्दलीलारसास्वादलीनं, गुणैः सिद्धिभाजामनन्तैरहीनम् । मुदा सर्वदा श्री युगादीशदेवं, स्तुवे भद्रदायिक्रमाम्भोजसेवम् ॥१॥ गृहस्थो बभासे कलाशिल्पसारं, क्रमात् केवली यश्च धर्मप्रकारम् । स अव प्रभुः सर्वलोकोपकारी, न चान्यस्ततो ज्ञाननैर्मलल्यधारी ॥२॥ महाशुद्धसिद्धान्तमध्ये प्रसिद्धं, प्रतीतं पुराणेषु शोभासमृद्धम् । गतं वेदवेदान्तशास्त्रेङवदातं, यदीय चरित्रं न च क्वापि मातम् ।।३॥ अनन्तं पुनन्तं जनं भक्तिमन्तं, हरन्तं दुरन्तं प्रमाद स्फुरन्तम् । जिनं नाभिभूपालवंशावतंसं, श्रये तं शरण्यं शिवाम्भोजहंसम्॥४॥ कलाकेलि-सर्पप्रणाशे सुपर्णः, सुवर्णोपमानोल्लसद्देहवर्णः। वृषाङ्कः सुखाकूरमेघः सुरम्यं, युगादीधरो मे प्रदत्तां सुसाम्यम् ॥५॥
(161) अथ श्री अजितनाथजिन चैत्यवंदनः कुशल कानन-पुष्टि-बलाङ्गकं, भवदवानल-शान्तिबलाहकम् । अजिततीर्थपतिं श्रितवत्सलं, भजत भव्यजनां! विगतच्छलम् ॥१॥ विमलकेवलबोध-कलाधरं, भविकलोक-चकोर-कलाधरम्। करिवरांकित-पादपयोरुहं, नम जिनं जितशत्रुतनूरुहम् ।।२।। विजयिनी जननी ननु गर्भगे, व्यजनि यत्र बुधैः सदिदं जगे । मृगपतौ सबलेङन्तरमाश्रिते, गिरिगुहा किल कैः परिभूयते? ॥३॥ अपि गदा-युध-चक्रि-पुरंदर, स्थिर-पराक्रम-भङ्ग-करः स्मरः। सुकृतिभिः किल यस्य जगत्पते, जटिति नामबलादपि-जीयते ॥४॥ सततमक्षयमोक्षपदं श्रितः, स्फुर-दनन्तचतुष्टय-शोभितः। अजिततीर्थकरो मम मङगलं, दिशतु शाश्वतसौख्यमलं फलम् ॥५॥
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(162) अथ श्री संभवजिन चैत्यवंदनः लोचनानन्दविस्तारि चन्द्राननं, मोहमातङ्गभेदाय पझ्चाननम् । विश्वविख्यातनित्योदितप्राभवं, संभवं संभवं स्तौमि भकत्याङङभवम् ॥१॥ येन गर्भस्थितेनापि भूमण्डले, सस्यवृद्धया सुभिक्षं विधायाखिले। केवलित्वे पुनर्बोधिबीजार्पणा - द्धारि, वात्सल्य धीः सर्वसाधारणा ॥२॥ शोषितो येन संसारघोरार्णव- श्चूर्णितश्व, प्रमादाचलः सध्रुवः। मोहसेनापि सा दुर्जया निर्जीता, शक्तिमानं गुरुणां हि को वेदिता ॥३॥ देवदेवं दयावल्लरीमण्डपं, दुष्कृतानोकहच्छेदकानेकपम्। पापपङ्कापनोदाय चण्डातपं, संस्तुवे तं तृतीयं तु तीर्थाधिपम् ॥४॥ श्रीजीतारिक्षमापालसेनाङ्गजः, स्वर्णशैलद्युतिभ्राजिवाजिध्वजः। तीर्थनाथस्तृतीयोङस्तु रत्नत्रय, त्रायको मे त्रिलोकीशवन्द्योदयः ।।५।।
(163) अथ श्री अभिनन्दनजिन चैतन्यवंदन गुणौघमन्दारनिवासनन्दनम्, मिथ्यात्वपापोपशमाय चन्दनम् । श्रीसं वरमारमणस्य नन्दनं, मुदा स्तुवेतीर्थकराभिनन्दनम्, ॥१॥ यं संस्तुवानस्य दशातरङिगणी, सहस्त्रचन्द्रांशुरयात्. प्रसर्पिणी, । क्षेत्रे नदिमातृकतागते, हरे,वृद्धिययौ भक्तिलतामनोहरे, ॥२॥ भजन्वनौका अपि यस्यनिश्चलं, पादाम्बुजं नित्यमहोमहाफलम्, । जिनेन्द्रवाच्यं हरिनामसंगतः, स्यान्निष्फलं नो गुरुसेवनं ततः,॥३॥ पराभवन् योगबलेन संवर,-द्विषं सुविस्तारितरा जसंवरः,। ददातु देवो नवमं रसं वर, स्वजन्मसंतर्पितराजसंवरः,॥४॥ ध्यानं चतुर्थ समवाप्य विश्रुतं, योङर्थं चतुर्थं भजति-स्म शाधतम्, । अरे चतुर्थे शुभितः शुभोदय,- श्वतुर्थतीर्थप्रभुरस्तु स श्रिये ॥५॥
(164) त्रीज का चैत्यवंदन श्रावणवदि त्रीजनमो, श्रेयांसनाथ निर्वाण, समेतशिखर गिरिउपरे, सहसमुनि गुणखाण ॥१॥ माधसित त्रीज जनमीयां, धर्मविमल जिनराय, कार्तिक सुदी त्रीजे थया, सुविधिज्ञानीराय ॥२॥ चैत्रशुकल तृतीया, कुंथु केवलज्ञान, रवि उदये शीरनामीये, वरवा निरमलनाण ॥३॥
(165) श्री ऋषभदेवना तेर भव का चैत्यवंदन पहले भव धनसार्थवाह, बीजे युगलिक थाय, त्रीजे भव सौधर्ममां,
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चोथे महाबलराय ||१|| सुर ललितांग इशानमां, वज्रजंग महाराज, सात युगलीक भवकरी, सौधर्मे सरेकाज ॥२॥ नवमे केशव वैद्यराज, दशमे अच्युत देव, वज्रनाभ चक्रीथई, सवार्थ सिद्धे देव ||३|| तेरमो भव ऋषभजी, आदिप्रभु अवतार, ज्ञानविमल गुण गावतां लहीये भवनोपार ||४||
(166) श्री वीर प्रभुना सतावीशभव का चैत्यवंदन
प्रथम भव नयसारनो, पहले स्वर्गेजाय, त्रीजे भवे मरिची बनी, पांचमें स्वर्ग सिधाय ॥१॥ पांचमें भवे त्रिदंडीयो, भमीयो बहु संसार, दशभव तिमहीज लयां, त्रिदंडी सुर अवतार ||२|| सोलमे भवे विश्वभूती, संयमआराधे, पितरीयो हस्यां थकी, नियाणुंबांधे ||३|| महाशुक्र सुरथई, त्रिपुष्ट वासुदेव, सातमी नारकी दुःख लह्यां, न करे कोई सेव ॥४॥ वीशमे सिंह एकवीशमें, चोथी नरकेजाय, बावीशमें नरभव, ते. वशमे, प्रियमित्र चक्री थाय ॥५॥ महाशुक्रे सुख भोगवी, बन्या ऋषीनंदन, वीशस्थानक तप आदरी, करे कर्म निकंदन || ६ || प्राणतकल्प लही बन्यां, वर्धमान जिनराय, ज्ञान विमल गुण गावतां, पामे त्रिभुवन राज ॥७॥
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॥ स्तुति विभाग
(1) श्री सीमंधर जिन स्तुति श्री सीमंधर सेवित सुरवर, जिनवर जग जयकारीजी. धनुष्य पांचशे कंचनवरणी, मूरति मोहनगारीजी; विचरंता प्रभु महाविदेहे, भवि जनने हितकारीजी, प्रह उठी नित्य नाम जपीजे, ह्यदय कमलमां धारीजी. १ सीमंधर युगबाहु सुबाहु, सुजात स्वयंप्रभ ऋषभजी, अनंत सुर विशाल वज्रंधर, चंद्रानन अभिरामजी; चंद्र भुजंग इश्वर नेमिप्रभ, वीरसेन गुण धामजी, महाभद्रने देवयशा वली, अजित करुं प्रणामजी. २ प्रभु मुख वाणी बहु गुण खाणी, मीठी अमीय समाणीजी, सूत्र अने अर्थे गुंथाणी, गणधरथी वीरचाणीजी; केवल नाणी बीज वखाणी, शीवपुरनी नीशानीजी, उलट आणी दिल मांहे जाणी, व्रत करो भवी प्राणीजी. ३ पहेरी पटोली चरणा चोली, चाली चाल मरालीजी, अति रुपाली अधर प्रवाली, आंखलडी अणीआलीजी; विन निवारी सानिध्यकारी, शासननी रखवालीजी, धीरविमल कविरायनो सेवक, बोले नय निहालीजी. ३
(2) श्री सीमंधर जिन स्तुति अजुवाली ते बीज सोहावेरे, चंदारुप अनुपम छाजे रे; चंदा वीनतडी चित्त धरजोरे, श्री सीमंधरने वंदना कहेजो रे. १ वीश विहरमान जिनने वंदोरे, जिनशासन पूजी आणंदो रे; चंदा अटलुं काम मुज करजोरे, श्री सीमंधरने वंदना कहेजो रे. २ श्री सीमंधर जिननी वाणी रे, ते तो पीता अमीय समाणी रे; चंदा तमे सुणी अमने सुणावो रे, भव संचित पाप गमावोरे. ३ श्री सीमंधर जिननी सेवारे, जिन-शासन भासन मेवारे; तुं तो होजो संघनी मातारे, गज लंछन चंद्र विख्यातां रे. ४
(3) श्री सीमंधर जिन स्तुति श्री सीमंधर देव सुहंकर, मुनिमन पंकज हंसा जी, कुंथु अरजिन अंतर जन्म्या, तिहुअण जन प्रशंसा जी, सुव्रत नमि अंतर वळी दीक्षा, शिक्षा
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जगत निराशे जी, उदय पेढाल जिनांतरमा प्रभु, जाशे शिववहु पासे जी, १ बत्रीश चउसठि चउसठि मळीया, इगसयसट्ठि उक्किट्ठा जी, चउ अड अड मळी मध्यम काळे, वीश जिनेश्वर दिठ्ठा जी, दो चउ चार जधन्य दश जंबु, धाययी पुष्कर मोझारो जी, पूजो प्रणमो आचारांगे, प्रवचन सार उद्धारोजी ।२। सीमंधर वर केवळ पामी, जिनपद खवण निमित्ते जी, अर्थनी देशना वस्तु निवेशना, देतां सुणत विनीते जी, द्वादश अंग पूरवयुत रचिया, गणधर लब्धि विकसिया जी, अपज्जवसिय जिनागम वंदो, अक्षयपदना रसिया जी, ३ आणारंगी समकितसंगी, विविध भंगी व्रतधारी जी, चउविह संघ तीरथ रखवाळी, सहु उपद्रव हरनारी जी, पंचांगुलीसुरी शासनदेवी, देती जस तस ऋद्धि जी, श्री शुभवीर कहे शिवसाधन, कार्य सकळमां सिद्धि जी ।४।
(4) श्री सीमंधर जिन स्तुति श्री सिमंधर युगमंधरस्वामि, बाहु सुबाहु ते जाणोजी, सुजात ने स्वयंप्रभ ऋषभानन, अनंतवीर्य वखाणोजी । वंदु सुरप्रभ विशाल वज्रधर, चंद्रानन चंद्रबाहुजी । भुजंग ईश्वर नमिप्रभ वीरसेन, महाभद्र देवयश प्राहुजी...१ अजीतवीर्य ए वीश जिणंदा, महाविदेह विचरंताजी । केई कुमरपद केई नृप पदवी, केई जिनेश महंताजी । अढी द्विपमां पंच विदेहे, विहरमान जिन वीशोजी । भाव धरीने नित प्रणमंता, पहोंचे मनह जगीशोजी....२ दान शियल तप भाव अहिंसा, ए जिन आगम सारजी . प्रवचनमां एह जिनवरे भाख्यो, ते पाळो निरधारजी । अमीय समाणी श्री जिनवाणी, गुंथी गणधर जाणीजी । ते आगम भविजन आराधो, भाव अधिक मन आणीजी....३ समकित धारी सानिध्यकारी, देवदेवी सुखकारीजी । जिनशासन अधिष्ठायक सुरवर, संघ सकल हितकारीजी । पंचागुली देवी जिनसेवी, निज सेवकने सहायजी | श्री कपूर विजय सद्गुरुसुपसाये, मानविजय गुण गायजी...४ ।
(5) श्री सीमंधर जिन स्तुति श्री सीमंधर साहिब मेरा, विनतडी अवधारोजी । नरक निगोदनी भीति
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निवारो, जनने तारण हारोजी । राय श्रेयांसकुल नगीनो, मात सत्यकी नंदोजी । रुक्मिणी कंत विराजित सोहे, भयभंजन भगवंतोजी... १ त्रिजगधारण युगल निवारण, समकितदाई सारोजी । मिथ्यात्व वन तिमिर निवारण, धर्मरूप दातारोजी । उपशम रस ध्याननो दरियो, गांजे गुहिर गंभीरोजी । प्रवचनसार सुधारस वरसे, उपशम निरमल नीरोजी... २ श्री सीमंधर साहिब दिसे, अभिनव आगम दरीयो जी । उद्योत शशी सुर समा गुण, मिथ्यात्व सवि हरीयोजी । क्रोध लोभ अरू माया केरो, ताप हरे सवि दुरोजी । केवलज्ञान सुरज ज्युं ओपे, भविजनने आधारोजी.... ३ पाये नेउर रूमझुम करती, कंठे नवसेरो हारजी | करकंकणवर चुंदडी विराजे, बाजुबंध सफारोजी । काने कुंडल शीर मुगट मनोहर, सजी सोळ शणगारोजी । शासनदेवी विघ्न निवारण, पद्मविजय जय कारोजी...४
(6) श्री सीमंधर जिन स्तुति जंबुद्विप विदेहमां विचरे, सीमंधर जिन भाणजी । सोवनवान ऋषभ लंछन तनु, पांचसे धनुष प्रमाणजी । घातिकर्म क्षये प्रभु पाम्यां, केवल दंसण नाणजी | लोकालोक प्रकाशक वंदूं, नित नित हुं सुवीहाणुंजी....१ जंबुद्विपमां चार' जिनेश्वर, धातकी खंडे आठजी । पुष्करार्धमा आठ जधन्यथी, वीशतणा बहु पाठजी, उत्कृष्टा सीत्तेर सो वंदो, धर्म तणा जिहां ठाठजी | प्रातः समय परमेश्वर प्रणमो, कर्म खपावो आठजी....२ त्रिगडे बेसी गणधर स्थापे, चउविघ संघ उदारजी । धर्म प्रकाशे चउमुख चउविध, सुणती पर्षदा बारजी | पंचवर्णा शुक्र अनियत आवश्यक, तीमवळी महाव्रत चारजी । इणी अर्थे द्वादशांगी मनोहर, हुं वंदु श्रीकारजी....३ धन्य ते देव जे समकितधारी, सीमंधर जिनराजजी | वंदे पापनिकंदे भविनां, सुणे देशनां नीरमायजी । ते सुर हितकर थई जिन उत्तम, मेलो मुने आयजी । पद्मविजय कहे इणीपरे मुजने, वहेलुं शीवसुख थायजी....४
(7) श्री सीमंधर जिन स्तुति श्री सीमंधर मुजनेवाला, आज सफल सुविहाणुंजी । त्रिगडे तेजे तपता जिनवर, मुज तुंठा हुँ जाणुंजी । केवल कमला केलि करता,
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कुलमंडण कुलदीवोजी | लाख चोराशी पूरव आयु, रूक्ष्मणी वर घणुं जीवो जी....१ संप्रति काले वीश तीर्थंकर, उदया अभिनव चंदाजी । केई केवली केई बाळक परण्या, केई महीपति सुखकंदाजी। श्री सीमंधर आदि अनोपम, महाविदेहक्षेत्रे जिणंदाजी । सुरनर कोडाकोडी मळी वळी, जोवे मुख अरविंदाजी....२ सीमंधर मुख त्रिगडुं जोवा, सुणवा हुं अलजायो जी,। आडा डुंगरा आवी न शकुं, वाट विषम अरू पाणीजी | रंगभरी राग धरी पाये लागु, सूत्र अर्थ मन सारोजी । अमृत रसथी अधिक वखाणी, जीवदया चित्त धारोजी....३ पंचांगुली में प्रत्यक्ष दीठीः हुं जाणुं जगमाताजी । पहेरण चरणा चोली पटोली, अधर बिराजे राताजी । स्वर्गभुवन सिंहासन बेठी, तुं ही ज देवी विख्याताजी । सीमंधर शासन रखवाली, शान्तिकुशल सुखदाताजी....४
(8) श्री सीमंधर जिन स्तुति जग चिंतामणी सुरतरु सरीखा, सीमंधर जिनरायाजी, प्रातहारिज आठ बिराजे, कनक वरण सम कायाजी, अतिशय धारी सुविहितकारी, टाळे - भवभय फेराजी, चरणावृंद नित सेवे सुरपति, प्रणमुं उठी सवेराजी, युगमंधर बाहु सुबाहु, सुजात स्वयंप्रभ दुःखवामीजी, ऋषभानन अनंत विशाल, सुरप्रभ व्रजधर स्वामीजी, चंद्रानन चंद्रबाहु भूजंग, ईश्वर नेमी सुख धामीजी, वीरसेन महाभद्र देवदशा, अजीतने करुं प्रणामजी, २ समवसरण बेठा जिननाणी, वाणी सुधारस वरसेजी, भव दव दाह समावण जलधर, अहित ताप विनाशेजी, खीर इक्षु मधु द्राक्षने साकर, मीठी अधिक जिन वाणीजी, भविजन कर्ण कचोले पीवत, अस्थि मज्जा भेदाणीजी, ३ समकित धारी मंगलकारी, नामे पंचांगुली सारीजी, शासन रखवाळी दुष्कत टाळे, जिन आणा शिर धारीजी, सिमंधर जिन ध्यान धरंता संकट विकट चूरेजी कृष्ण विजय शिशु दिप सेवकना, मनह मनोरथ पूरेजी । ४ ।
(9) श्री सीमंधर जिन स्तुति सिमंधर जिन गोरारे, हुं तो ध्यान धरूं छु तोरारे, राणी रुक्ष्मणीना भरताररे, मन वांछित फल दातार रे, १ विश विहरमान जिन नामरे, वीशे
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ने करूं प्रणाम रे, जे- दर्शन आनंदकारी रे, तेने पाय नमे नरनारी रे, २ गणधरने त्रिपदी दीधीरे, सिद्धांत नी रचना कीधी रे, एनो अर्थ अनुपम लहीये रे, सुगुरुना वचने रहिये रे, ३ देवी चक्केश्वरी सानिध्यकारी रे तेने पाय नमे नरनारी रे, ए तो थोय रची छे सारी रे, एवा कनक सौभाग्य जयकारी रे; ४
(10) श्री सीमंधर जिन स्तुति __ मुज आंगण सुरतरु उगीयो, कामधेनुं चिंतामणी पुगीओ, सिमंधरस्वामी जो मीले, तो मननां मनोरथ सवी फले । १। हुं वंदु वीशे विहरमान, ते केवलज्ञानी युगप्रधान, सीमंधरस्वामी गुण निधान, जित्या जेणे क्रोध लोभ मद मान ।२। आंबावन समरे कोकीला, मेहने वंछे जेम मोरला, मधुकर मालती परिमल रमे, तेम आगमे मोरं मन रमे ।३। जय लच्छी शासन देवता, रत्नत्रय गुण जे साधता, विमलसुख पामे ते सदा, सीमंधरजिन प्रणमुं मुदा ।४।
(11) श्री सीमंधर जिन स्तुति महाविदेह क्षेत्रमा सीमंधर स्वामी, सोनाना सिंहासनजी; रुपानो त्यां छत्र बिराजे, रत्नमणी ना दिवा दिपेजी; कुमकुम वरणी त्यां गहुंळी बिराजे, मोतीना अक्षत साराजी; त्यां बेठा सीमंधर स्वामी, बोले मधुरी वाणीजी; केसर चंदन भर्या कचोळां, कस्तुरी बरासोजी; पहेली पूजा अमारी होजो, उगमते प्रभातेजी.
(12) बीजनी स्तुति जंबुद्विपे अहोनिश दीपे, दोय सूर्य दोय चंदाजी, तास विमाने श्री ऋषभादिक, शाश्वता श्री जिन चंदाजी, तेह भणी उगते शशी नीरखी, प्रणमे भवि जन चंदाजी, बीज आराधो धर्मनी बीजे, पूजी शांति जिणंदाजी...१.. द्रव्य भाव दोय भेदे पूजो, चोविशे जिन चंदाजी. बंधन दोय दूर करीने, पाम्या परमाणंदाजी. दुष्ट ध्यान दोय मतमतंगज, भेदन मत महेंदाजी. बीज तणे दिन जे आराधे, जेम जगमांही चिरनंदाजी...२. दुविध धर्म जिनराज
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69 प्रकाशे, समवसरण मंडाणजी, निश्चयने व्यवहार बेहंशु, आगम मधुरि वाणीजी. नरक तिर्यंच गति दोयने होवे, बीज ते जे आराधे जी. दुविध दयात्रस स्थावर केरी, करतां शिवसुख साधेजी...३. बीज वदन पर भुषण भुषित, दीपे ललवटी चंदाजी. गरूडजक्ष नारी सुखकारी, निर्वाणी सुखकंदाजी, बीज तणो तप करतां भविने, समकित सानिध्य कारीजी धीर विमळ शिष्य कहे इण विध शिख, संघना विघन निवारीजी....४.
(13) बीजनी स्तुति पूर्वदिशि उत्तरदिशि वचमां, इशानखूणे अभिरामजी, पुक्खलवइ विजये पुंडरिकगिरि, नगरी उत्तम ठामजी; श्रीसीमंधर जिनसंप्रति केवळी; विचरंता जगजयकारजी, बीज तणे दिन चंद्रने विनवू, वंदना कहेजो अमारीजी. १ जंबूद्वीपमां चार जिनेवर; धातकी खंडे आठजी, पुष्कर अरधे आठ मनोहर, अहवो सिद्धांते पाठजी; पंच महाविदेहे थईने, विहरमान जिन वीशजी, जे आराधे बीज तप साधे, तस मन हुइ जगीशजी. २ समवसरणे बेसीने वखाणी, सुणी इन्द्र इन्द्राणीजी, श्री सीमंधरजिन प्रमुखनी वाणी, मुज मन श्रवणे सुहाणीजी; जे नरनारी समकितधारी, ओ वाणी चित्त धरशेजी; बीजतणो महिमा सांभळतां, केवल कमला वरशेजी. ३ विहरमान जिन सेवाकारी, शासनदेवी सारीजी; सकल संघने आनंदकारी, वांछित फल दातारीजी; बीज तणो तप जे नर करशे, तेहनी तुं रखवालीजी, वीरसागर कहे सरस्वती माता, दीओ मुज वाणी रसालीजी. ४
(14) बीजनी स्तुति दिन सकल मनोहर, बीज दिवस सुविशेष, राय राणा प्रणमे, चंद्रतणी जिहां रेख; तिहां चंद्रविमाने, शाश्वता जिनवर जेह, हुं बीज-तणे दिन, प्रणमुं आणी नेह. १ अभिनंदन चंदन, शीतळ शीतळनाथ, अरनाथ सुमति जिन, वासुपूज्य शिव साथ; इत्यादिक जिनवर, जन्म ज्ञान निरवाण, हुं बीज तणे दिन, प्रणमु ते सुविहाण. २ प्रकाश्यो बीजे, दुविध धर्म भगवंत, जेम विमळ कमळ दोय, विपुल नयन विकसंत, आगम अति अनुपम, जिहां निश्चय व्यवहार, बीजे सवि कीजे, पातकनो परिहार. ३ गजगामिनी कामिनी, कमळ
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सुकोमळ चीर. चक्केसरी केसर, सरस सुगंध शरीर, करजोडी बीजे, हुं प्रणमुं तस पाय, ओम लब्धिविजय कहे. पूरो मनोरथ माय. ४
(15) पंचतीर्थ स्तुतिः श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ तिलकं श्रीनाभिराजांगजं, वन्देरैवतशैलमौलिमुकुटं, श्री नेमिनाथं यथा; तारंगेङप्यजितं जिनं भृगुपरे, श्रीसुव्रतस्तम्भने, श्रीपार्धं प्रणमामि सत्यनगरे, श्रीवर्द्धमानं त्रिधा; १ वन्देङनुत्तरकल्पतल्पभुवने, ग्रैवेयकेव्यन्तरा,-ज्योतिष्काम-रमन्दराद्रिवसती, स्तीर्थं करानादरात्ः, जम्बूपुष्कर-धातकीषु रुचके, नन्दिश्वरे कुन्डले, ये चान्येपि जिना नमामि सततं, तान् कृत्रिमांकृत्रिमान्; २ श्रीमद्विरजिनास्यपद्मादतो निर्गम्य तं गौतम, गंगावर्तनमेत्य या प्रविभिदे, मिथ्यात्ववैताठ्यकम्; उत्पत्ति-स्थितिसंयुतित्रिपथगा, ज्ञानाम्बुदा-वृद्धिगा, सामेकर्म-मलं हरत्वविकलं, श्रीद्वादशांगी नदी; ३ शक्रचंद्ररविग्रहाश्च-धरण,ब्रह्मेन्द्रशान्त्य-म्बिका, दिक्पालाः सकपर्दिगोमुखगणि,श्वकेश्वरी भारती; येङन्ये ज्ञानतपः क्रियाव्रतविधिश्रीतीर्थयात्रादिषु, श्री संघस्य तुरा चतुर्विघ सुरा,स्ते सन्तु भद्रंकराः; ४
(16) श्री शQजय स्तुति जीहां ओगणोत्तर कोडा कोडी, तेम पंचाशी लख वळी जोडी; चुम्मालीश सहस्स कोडी, समवसर्या जिहां अतीवार; पूर्व नवाणुं ओम प्रकार, नाभि नरिंद मल्हार. १ सहसकुट अष्टापद सार, जिन चोवीश तणा गणधार; पगलांनो विस्तार, वली जिनबिंब तणो नहीं पार; देहरी थंभे बहु आकार, वंदु विमलगिरि सार; २ अंशी सीत्तेर साठ पचाश, बार जोयण माने जस विस्तार, इग बीती चउ पण चार; मान कह्यु तेहy निरधार, महिमा अहनो अगम अपार, आगम माहे उदार; ३ चैत्री पूनम दिन शुभ भावे, समकित दृष्टि सुरनर आवे, पूजा विविध रचावे; ज्ञानविमलसूरी भावना भावे, दुरगति दोहग दूर गमावे, बोधि बीज जस पावे. ४
___(17) श्री शजय स्तुति श्री शत्रुजय तीरथ सार, गिरिवरमां जेम मेरू उदार, ठाकुर राम
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अपार, मंत्रमांहे नवकारज जाणु, तारामां जेम चंद्र वखाणुं, जलधर जळमां जाणुं; पंखी माहे जेम उत्तम हंस, कुळमांहे जेम ऋषभनो वंश; नाभितणो ओ अंश; क्षमावंतमां श्री अरिहंत, तपशूरामां मुनि महंत, शत्रुजय गिरि गुणवंत; १ ऋषभ अजित संभव अभिनंदा, सुमतिनाथ मुख पुनमचंदा, पद्मप्रभ सुखकंदा; श्री सुपार्थ चंद्रप्रभ सुविधि, शीतल श्रेयांस सेवो बहु बुद्धि, वासुपूज्य मति शुद्धि; विमल अनंत धर्म जिन शांति, कुंथु अर मल्लि नमुं ओकांति, मुनिसुव्रत शुद्ध पांति; नमि नेम पास वीर जगदिश, नेम वीना ओ जिन तेवीश, सिद्धगिरि आव्या इश. २ भरतराय जिन साथे बोले, स्वामी शत्रुजय गिरि कुण तोले, जिननुं वचन अमोले; ऋषभ कहे सुणो भरतजी राय. छरी पालंता जे नर जाय, पातिक भुको थाय; पशु पंखी जे इण गिरि आवे, भव त्रिजे ते सिद्धज थावे, अजरामर पद पावे; जिनमतमें शेजो वखाण्यो, ते मे आगम दिलमांहे आण्यो, सुणतां सुख उर ठाण्यो; ३ संघपति भरत नरेसर आवे, सोवन तणां प्रासाद करावे, मणिमय मूरति ठावे; नाभिराया मरुदेवी माता, ब्राह्मी सुंदरी व्हेन विख्याता, मूर्ति नवाणु भ्राता; गोमुख यक्ष चक्केसरी देवी, शत्रुजय सार करे नित्यमेवी, तपगच्छ उपर हेवी; श्री विजयसेन सूरीश्वर राया, श्री विजयदेव सूरी प्रणमी पाया, ऋषभदास गुण गाया. ४
(18) श्री शत्रुजय स्तुति शत्रुजय मंडण, ऋषभ जिणंद दयाळ; मरुदेवा नंदन, वंदन करुं त्रण काळ; तीरथ जाणी, पुर्व नवाणुं वार; आदिधर आव्या, जाणी लाभ अपार. १ त्रेवीश तीर्थंकर, चडीआ इणगिरि राय; जे तीरथना गुण, सुर असुरादिक गाय; जे पावन तीरथ, त्रिभुवन नही तस तोले; तीरथना गुण, सीमंधर मुख बोले. २ पुंडरिकगिरि महिमा, आगममां प्रसिद्ध; विमलाचल भेटी, लहिले अविचल रिद्ध; पंचमी गति पहोंता, मुनिवर कोडा कोड, इण तीरथे आवी, कर्म विपाक विछोड. ३ श्री शत्रुजय केरी, अहोनीश रक्षाकारी; श्री आदिजिनेवर, आण ह्यदयमा धारी; श्री संघ विघनहर, कवडजक्ष गणभूर; श्री रवि बुद्धसागर, संघना संकटचुर. ४
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(19) श्री शजय स्तुति विमलाचलमंडण जिनवर आदिजिणंद, निर्भय निरमोही, केवलज्ञान दिणंद; जे पूरव नवाणुं, आव्या धरी आणंद, शत्रुजय शिखरे, समवसर्या सुखकंद. १ वली इण चोविसीमां, ऋषभादिक जिनराय, वली काल अतीते, अनंत चोवीशी थाय, ते सवि इण गिरिवर, आवी फरसी जाय, इम भावि काले, आवशे सवि मुनिराय. २ श्री ऋषभना गणधर, पुंडरीक गुणवंत, द्वादश अंगरचना, कीधी जेने महंत; सविआगममांहे, शत्रुजय महिमा महंत, भावि जिन गणधर, सेवो करी थीर चित्त. ३ चक्केसरी गोमुख, कपर्दि प्रमुख सुर सार, जस सेवा कारण, थापी इंद्र उदार; देवचंद्र गणि भावे, भविजनने आधार, सवीतीरथ मांहे, सिद्धाचल शीरदार. ४
(20) श्री शQजय स्तुति ऋषभ जिन सुहाया, श्री मरुदेवीमाया, कनक वरण काया, मंगला जास जाया, वृषभलंछन पाया, देव नर नारी गाया, पणसय धनु काया, ते प्रभु ध्यान ध्याया; १ अ तिरथ जाणी, जिन त्रेवीश उदार, ओक नेम विना सवि, समवसर्या निरधार, गिरि कंडणे आवी, पहोंता गढगिरनार, चैत्री पूनमदिने, तेवंदु जयकार, २ ज्ञाताधर्मकथा, अंतगडसूत्र मझार, सिद्धाचल सिध्या, बोल्या बहु अणगार, ते माटे ओ गिरि, सवि तीरथ शिरदार, जिन भेटे थावे, सुख संपति विस्तार, ३ गोमुख चक्केसरी, शासननी रखवाल, ओ तीरथ केरी, सान्निध्य करे संभाल, गिरुओ जसमहिमा, संप्रति काले जास, श्री ज्ञानविमलसूरी, नामे लील विलास, ४
___ (21) श्री शजय स्तुति श्री प्रथम जिनेशर, रिसहेसर परमेश, सेवकने पाले, टाले कर्मकलेश, इन्द्रादिक देवा, सेवा सारे जास, मरुदेवा नंदन, वंदन कीजे तास, १ अष्टादश दोषा, अष्ट करम अरिहंता, प्रतिबंध निवारी, वसुधातले विचरंता, जे गतचोविशी, अनागत वर्तमान, तसु पाये लागुं, मांगु समकित दान, २ पुंडरीक गिरि केरो, प्रवचनमा अधिकार, दिठे दुःखवारे, उतारे भवपार,
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सिद्धाचल सिद्धा, साधु अनंती क्रोड, आगम अनुसारे, वांदु बे कर जोड, रवि मंडल सरिखां, काने कुंडल दोय, सुख संपति कारक, विधन निवारक सोय, चक्केसरी देवी, चक्रतणी धरनारी, सेवक साधारी, उदयरत्न जयकारी, ४
(22) श्री शत्रुजय स्तुति प्रणमो भविया रिसहजिनेसर, शत्रुजयकेरो राय जी, वृषभ लंछन जस चरणे सोहे, सोवनवरणी काय जी; भरतादिक शत पुत्र तणो जे, जनक अयोध्या राय जी, चैत्री पूनमने दिने जेहना, महोटा महोत्सव थाय जी. १ अष्टापद गिरि शिवपद पाम्या, श्री रिसहेसर स्वामी जी, चंपाये वासुपूज्य नरेसर, नंदन शिवगतिगामी जी; वीर अपापापुर गिरनारे, सिध्यां नेमी जिणंदो जी, वीश समेतगिरिशिखरे पहोंता, ओम चोवीशे वंदो जी. २ आगम नोआगम परे जाणो, सवि विषनो करे नाशो जी, पापताप विष दूर करवा, निशदिन जेह उपासो जी; ममता कंचुकी कीजे अलगी, निर्विषता आदरीओ जी, इणी परे सहजथकी भव तरीये, जिम शिवसुंदरी वरीये जी. ३ कवडजक्ष प्रत्यक्ष थइने, जेहवा परचा पूरे जी, दोहग दुर्गति दुर्जननो डर, संकट सघळां चूरे जी; दिन दिन दोलत दीपे अधिकी, ज्ञानविमल गुण नूर जी, जीत तणां निशान वजावो, बोधिबीज भरपूर जी. ४
(23) श्री शQजय स्तुति सकल मंगल लीला मुनि ध्यान, परभव घृत, दीधुं दान, भविजन ओक प्रधान, मरूदेवाओ जन्मज दीधो, इन्द्रे सेलडी रस आगल कीधो, वंश इख्खाग ते सीधो; सुनंदा सुमंगला राणी, पूरव प्रीत भली पटराणी, परणावे इन्द्र इन्द्राणी, सुख विलसे रस अमीरस गूंजे, पूरव नव्वाणुं वार शेजे, प्रभु जइ पगले पूजे. १ आदि नहि अंतर कोय अहनो, केम वर्णवीजे सखी गुण अनो, मोटो महिमा तेनो, अनंत तीर्थंकर इण गिरि आवे, विहरमान व्याख्यान सुणावे, दिलभरी दिल समजावे; सकलं तीर्थ- ओहि ज ठाम, सर्वे धर्मर्नु अहि ज धाम, ओ मुज आतमराम, रे रे मूरख मन शुं मुंझे, पूजीओ देव घणां शेजे, ज्ञाननी सुखडी गूंजे. २ सोवन डुंगर टुंक रूपानी, अनुपम माणेक टुंक
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सोनानी, दीसे देरा दधानी, ओक टुंके मुनि अणशण करता, ओक टुंके मुनि व्रत तप करता, ओक टुंके उतरता; सूरजकुंड जल अंग लगायो, महिपालनो कोढ गमायो, तेने ते समुद्र निपायो, सवालाख शत्रुजय महामत, पापतणी तिहां न रहे रातम, सुणतां पवित्र आतम. ३ रमणिक भोयरुं गढ रढीयालो, नवखंड कुर तीर्थ निहालो, भविजन पाप पखालो, चोखाखाण ने वाघणपोळ, चंदनतलावडी उलखा जोळ, कंचन भरोरे अंघोळ; मोक्षबारीनो जग जश मोटो, सिद्धशिला उपर जइ लोटो, समकित सुखडी बोटो, सोना गभारे सोवन्न जाळी, जारो जिननी मूर्ति रसाली, चक्केसरी रखवाली. ४
(24) श्री शQजय स्तुति श्रीशेजूंजय आदिजिनआया, पूर्व नव्वाणुं वारो जी, अनंत लाभ तिहां जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारो जी; विमलगिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामो जी, कांकरे कांकरे अनंता सिद्धा, अकसोने आठ गिरि नामो जी. १ पुंडरिकपर्वत पहोलो कहीये, ॲसी योजन- मान जी, वीश कोडीशुं पांडव सिद्धा, त्रण कोडीशुं राम जी; शांब–प्रद्युम्न साडी आठ कोडी सिध्या, दशकोडी वारिखिल्ल जाणोजी, पांच कोड| पुंडरिक गणधर, सयल जिननी वाणी जी. २ सयल तीर्थनो राजा ओ वली, विमलाचल गिरिवरिये जी, सात छठ्ठ दोय अठ्ठम करीने, अविचल पदवी लहीये जी; छ'री पाली जात्रा करीये, केवल कमला वरीयेजी, सकल सिद्धांतनो राजाओ वली, तीर्थ हृदयमां धरीये जी. ३ श्री सिद्धक्षेत्र शेर्जेजे जाणुं, श्री आदिसर राया जी, गोमुख जक्ष चक्केसरी देवी, सेवे प्रभुना पाया जी; शासनदेवी समकितधारी, सानिध करे संभारी जी, रंगविजय गुरु इणिपरे जंपे, मेरूविजय जयकारी जी. ४
(25) श्री शचुंजय स्तुति ... सीमंधरने पूछे इंदा, विनतडी अवधारो जी, भरतक्षेत्रमा वडु कुण तीरथ, ते मुजने निरधारो जी; वलतुं श्रीजिन मुखे इम भाखे, सुण इंदा मुज वात जी, सकल तीरथमां श्रीशेजेजो, तिहां भरतेसर तात जी. १ अतीत अनागत ने वर्तमान, बहोत्तर जिनवर वंदु जी, विहरमान जिन वीशे वंदु,
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भवनी कोडी निकंदु जी; चंद्रानन वारिषेण वर्धमान, ऋषभानन वली कहीओ जी, ओ छन्नु जिनना गुण गातां, शिवरमणीसुख लहीये जी. २ अग्यार अंग ने बार उपांग, छ छेद ग्रंथ कहीओ जी; चौदपूरव ने दशपयन्ना, मूलसूत्र चार लहीये जी, दूर्गतिहरणी संपत्तिकरणी, शिवमंदिर निसरणी जी, जिननी वाणी अमृत पाणी, सुणो भविका भाव आणीजी. ३ पाट पटोधर शुद्धप्ररूपक, श्रीविजयदेव गणधार जी, गोमुखयक्ष चक्केसरीदेवी, तेहना विघ्न निवारे जी; वीरविजय ज्ञान विजयतणो शिष्य, बोले आणंद आणीजी, संघविजयने वंछित देजो, कवडजक्ष सुणो वाणी जी. ४ ।
(26) श्री शQजय स्तुति ऋषभजिनेसर अति अलवेसर, केशर चरचित कायाजी, श्रीशेजूंजय गिरिवर मंडन, आदिजिनेसर रायाजी; श्री सीमंधर स्वमुखे बोले, शेजूंजयगिरि गुणवंतोजी, जे भवि भाव धरीने सेवे, ते थाशे भगवंतोजी. १ केशर चंदन घसीय कपूर, मृगमद मांहि भेलीजे जी, चउवीशे जिनवर पूजा कीजे, मानवभव फल लीजेजी; कृष्णागुरुनो धूप उखेवी, नाटिक जे जन करशेजी, इणिपरे जिनवर पूजा करशे, ते भवसायर तरशेजी. २ जिनवरवाणी अमीय समाणी, सुणीये निज मन आणी जी, अंग अग्यार ने बार उपांग, छ छेद मूलसूत्रे गुंथाणी जी; भणो भणावो लखो लखावो, ओ समकितनी करणी जी, जिनवाणी भविप्राणी निसुणी, तिणे शिवरमणी परणी जी. ३ नवजोबन पुण्यवंती बाला, आवे अति सुकुमाला जी, देवी चक्केसरी नयन विशाला, कंठे कुसुमनी माला जी; धरमीजनना संकट चूरे, आपे ऋद्धि भंडारा जी, पंडित मेरूविजयनो सेवक, नयविजय जयकारा जी. ४
(27) श्री शजय स्तुति सवि मळि करी आवो, भावना भव्य भावो, विमलगिरि वधावो, मोतियां थाल लावो; जो होय शिव जावो, चित्त तो वात लावो, न होय दुश्मन दावो, आदि पूजा रचावो. १ शुभ केशर घोली, मांहे कर्पूर चोली, पहेरी सित पटोली, वासीये गंध घोली; भरी पुष्कर नोली, टालीये दुःख होली, सवि जिनवर टोली, पूजीये भाव भोली. २ शुभ अंग अग्यार, तेम
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उपांग बार, वली मूलसूत्र चार, नंदी अनुयोगद्वार; दशपयन्ना उदार, छेद वृत्ति सार, प्रवचन विस्तार, भाष्य नियुक्ति सार ३ जय जय जय नंदा, जैन दृष्टि सूरिंदा, करे परमानंदा, टालता दुःखदंदा ज्ञानविमलसूरींदा, साम्यमाकंद कंदा, वर विमल गिरिंदा, ध्यानथी नित्य भदा ४
(28) श्री शत्रुंजय स्तुति
यासी लाख पूरव घरवासे, वसीया परिकर युक्ताजी, जन्म थकी पण देवतरू फल, क्षीरोदधिजल भोक्ताजी; मइ सुअ ओहिं नाणे संयुत, नयण वयण कज चंदाजी, चार सहसशुं दीक्षा शिक्षा, स्वामी श्री ऋषभ जिणंदाजी. १ मनः पर्यव तव नाण उपन्युं, संयत लिंग सहावाजी, अढी द्विपमां सन्नीपंचेन्द्रिय, जाणे मनोगत भावाजी, द्रव्य अनंता सुक्ष्म तिर्च्छा, अढारसे खित्त ठायाजी, पलिय असंखम भाग त्रिकालिक, द्रव्य असंख्य परजायाजी. २ ऋषभ जिणेसर केवल पामी, रयण सिंहासन ठायाजी, अनभिलप्य अभिलाप्य अनंता, भाग अनंत उच्चरायाजी; तास अनंतमे भागे धारी, भाग अनंते सूत्रजी, गणधर रचिया आगम पूजी, करीओ जनम पवित्रजी. ३ गोमुख जक्ष चक्केसरी देवी, समकित शुद्ध सोहावेजी, आदि देवनी सेवा करंती, शासन शोभ चढावेजी; श्रद्धा संयुत जे व्रतधारी, विघन तास निवारेजी, श्री शुभविरविजय प्रभु भगते, समरे नित्य सवारेजी. ४
(29) श्री शत्रुंजय स्तुति
विद्याधरोने इन्द्रदेवो, जेहने नित पूजता, दादा सीमंधर देशनामां, जेहना गुण गावता, जीवो अनंता जेहना, सान्निध्यथी मोक्षे जता, ते विमल गिरिवर वंदता, मुज पाप सहु दूरे थतां १ षटखंडना विजयी बनीने चक्रीपदने पामता, षोडश कषायो परिहरीने सोलमा जिन राजता, चौमास, रही गिरिराज पर जे भव्यने उपदेशता, ते शांति जिनने वंदता मुज पाप सहु दुरे थतां . २. जे आदि जिननी आण पामी सिद्धगीरी ए आवता, अणसण करी एक मासनुं मुनि पंचक्रोडशुं सिद्धता, जे नामथी पुंडरिकगिरि एम तिहुं जगत बिरदावता, पुंडरिक स्वामी वंदता मुज पाप सहु दुरे थतां. ३.
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(30) श्री शजय स्तुति _ विमलाचल शिखर शिरोमणी, तनु तेजे निर्जित दिनमणि; श्री नाभेयजिन जग गृहमणी, ज्यां तिहुंअणवांछित सुरमणि, ओकशत अडनाम सोहामणा, निषधादिक छे जस गुण घणा, शिखरे शिखरे बहु जिनवरा, आवी समोसर्या गुण सायरा, ॥२॥ पुंडरिक गणधरे भाखीयो, मधुकर शजय साखीओ; सुहगुरु संघ पूजा जिहां कही, ते आगम अभ्यासे गह गही. ॥३॥ शशी वयण कमल विलोचना, चक्रेसरी देवी विरोचना; रिसहेसर भक्ति विधाइका, वर दान देजो शुं प्रभाविका.४
(31) श्री शजय स्तुति श्री शत्रुजय मंडण, रिसह जिणेसर देव, सुर नर विद्याधर, सारे जेहनी सेव, सिद्धाचल शिखरे, सोहाकर श्रृंगार, श्री नाभिनरेसर, मरूदेवीनो मल्हार । १। ए तीरथ जाणी, जिन त्रेवीश उदार, एक नेम विना सवि, समवसर्या सुखकार, गिरिकंडणे आई, पहोंता गढ गिरनार, चैत्रीपुनम दिने, ते वंदु जयकार ।२। ज्ञाताधर्म कथांगे, अंतगड सूत्र मोझार, सिद्धाचल सिद्धा, बोल्या बहु अणगार, ते माटे ए गिरि, सवि तीरथ शिरदार, जिण भेटे थावे, सुख संपत्ति विस्तार ।३। गोमुख चक्केश्वरी, शासननी रखवाळी, ए तीरथ केरी, सांनिध्य करे संभाळी, गिरुओ जस महिमा, संप्रति काले जास, श्री ज्ञानविमलसूरी, नामे लील विलास ।४ ।
(32) श्री शत्रुजय स्तुति कोडा कोडी अष्टादश सागर, कलित धर्म प्रकाश्योजी, समतारसनो सागर स्वामी, वैरी कर्म। विनाश्योजी, जगदानंदन त्रिहुंजगवंदन, नंदन नाभि नरेशोजी, ऋषभपताका कंचनवरणी, स्वामी श्री ऋषभ जिनेशोजी, १ ऋषभप्रभु अष्टापद सिध्या, ए तीर्थ जगजाणुजी, वासुपूज्य चंपापुरी नेमि, गिरि गिरनारे वखापुंजी, पावापुरी महावीर जिनेश्वर, शिवरमणी संग धारीजी, वीश तीर्थंकर मोक्षे पहोंच्या, समेतशीखर शिरदारीजी ,२ प्रवचन शुद्धे मारग चोक्खो, धर्म दुविध जिन भाख्योजी, निश्चय अरु व्यवहार निरूपम, निज परिणति परदाख्योजी, व्यय उत्पाद, ध्रुव सुपद साधन, कारण
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कारज संगीजी, हेय सुध्येय पदारथ पूरण, परमारथ प्रसंगीजी, ३ कोमल करणी कोमल वयणी, कोमल कदली गेहजी, कोमल भावे सेवक तारक, कोमल चरण सनेहीजी, शय्या कोमल करणी प्यारी, चक्केश्वरी श्रुतदेवीजी, ज्ञानविमलनो शिष्य सुज्ञान, शासननायक सेवीजी, ४
(33) श्री शत्रुजय स्तुति श्री विमलाचल गिरिवर कहीए, मोक्षतणो अधिकारजी, इणगिरि हुंता भविजन निश्चे, पाम्या केवलज्ञानजी, कांकरे कांकरे साधु अनंता, सिध्या इणगिरि आयाजी, कर्म खपावी केवल पाम्यां, थई अजरामर कायाजी, १ ऋषभ जिनेश्वर आदि मुणिंदा, पूर्व नव्वाणुं वारजी, इणगिरि उपर फरीफरी आया, जाणी लाभ अपारजी, भरत नरेशर प्रथम ज चक्री, प्रथम उद्धार जेणे कीधो जी, संघ चलावीने संघमाळ पहेरी, ते शीवसद्म लय लीनोजी, २ शैल मनोहर उपर सोहे, नाभि नरेसर नंदोजी, भविजन भावे नित प्रति सेवो, प्रत्यक्ष पुन्यतरूं कंदोजी, गिरिकंठे आव्या नेमि जिनेश्वर, आशातना मन आणीजी, इणिगिरि उपर पावन कीनो, सिद्धक्षेत्र एम जाणीजी, ३ पुंडरिक गिरिनो महिमा मोटो, गुणमणि रयण भंडारजी, भाव सहित नरनारी प्रणमे, सफळ करे अवतारजी, देवी चक्केश्वरी सानिध्यकारी, गौमुख जक्ष धन कोडी जी, विबुध प्रतापनो शिष्य ज प्रणमे, जिनेन्द्र विजय करजोडीजी, ४
(34) श्री ऋषभदेवनी स्तुति प्रह ऊठी वंदु, ऋषभदेव गुणवंत, प्रभु बेठा सोहे, समवसरण भगवंत; त्रण छत्र विराजे, चामर ढाळे इन्द्र, जिनना गुण गावे, सुर नरनारीना बुंद. १ बार पर्षदा बेसे, इन्द्र इन्द्राणी राय, नवकमळ रचे सुर, तिहां ठवता प्रभु पाय; देव दुंदुभि वाजे, कुसुम वृष्टि बहु हुँत, ओवा जिन चोवीश, पूजो ओकण चित्त. २ जिन जोजन भूमि, वाणीनो विस्तार, प्रभु अर्थ प्रकाशे, रचना गणधर सार; सो आगम सुणतां, छेदिजे गति चार, जिन वचन वखाणी, लीजे भवनो पार. ३ जक्ष गोमुख गिरवो, जिननी भक्ति करेव, तिहां देवी चक्केसरी, विघ्न कोडी हरेव; श्री तपगच्छ नायक, विजयसेन सूरीराय, तस केरो श्रावक, ऋषभदास गुणमाय. ४
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( 35 ) श्री ऋषभदेवनी स्तुति
आदि जिनवर राया, जास सोवन्न काया, मरुदेवी माया, धोरी लंछन पाया; जगतस्थिति निपाया; शुद्ध चारित्र पाया, केवल सिरिराया, मोक्ष नगरे सिधाया. १ सवि जिन सुखकारी, मोहमिथ्या निवारी, दुर्गति दुःखभारी; शोक संताप वारी; श्रेणी क्षपक सुधारी, केवलानंत धारी, नमीये नरनारी, जेह विश्वोपकारी. २ समोवसरणे बेठा, लागे जे जिनजी मीठा, करे गणपपइट्ठा, इंद्र चंद्रादि दीठा; द्वादशांगी वरीठ्ठा, गुंथता टाले रीठ्ठा, भविजन होय हिठ्ठा, देखी पुण्ये गरीठ्ठा ३ सुर समकितवंता, जेह ऋद्धे महंता, जेह सज्जन संता, टालीयें मुज चिंता; जिनवर सेवंता, विघ्न वारे दुरता; जिन उत्तम थुणंता पद्मने सुख दिता. ४
(36) श्री ऋषभदेवनी स्तुति
अति सुघट सुंदर, गुण पुरंदर, मंदररूप सुधिर, घन कर्म कदली दलान दंती, सिंधु सम गंभीर; नाभिराय नंदन, वृषभ लंछन, ऋषभ जगदानंद, श्री राजविजय, सूरींद तेहनां, वंदे पद अरविंद. १ सुरनाथ सेवित; विबुध वंदित, विदित विश्वाचर, दोय शामला, दोय उजला, दोय नील वर्ण उदार, जासूद फुल, समान दोय, सोल सोवन वान, श्री राजविजय, सूरिश अहोनिश, धरे तेहनुं ध्यान. ३ अज्ञान महातम रुप रजनी, वगे विध्वंसन तास, सिद्धांत शुद्ध, प्रबोध उदयो, दिनकर कोडी प्रकाश; पदबंध शोभित, तत्व गर्भित, सूत्र पिस्तालीश, अति सरस तेहना, अर्थ प्रकाशे, श्री राजविजय सूरीश. ३ गजगामिनी, अभिराम कामिनी, दामिनीसी देह, सा कमल नयणी, विपुल वयणी, चक्केसरी गुण गेह; श्री राजविजय सूरीद पाये, नित्य नमती जेह, श्री उदयरत्न, वाचक जैनशासन, विघ्न निवारो तेह. ४
( 37 ) श्री ऋषभदेवनी स्तुति (भावनगर)
भावनगर बंदर अति सुंदर, जिन मंदिर ज्यां सोहेजी; आदिकरण जीहां प्रथम तीर्थंकर, प्रथम राय मन मोहेजी; प्रथम भिक्षाचर रुषभ जिनेश्वर, अ अभिधाने पूजोजी; दूरित अरिगण केसरी सम जिन, अ विण अवर न
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दुजोजी. १ अभिनंदन जिन शान्ति जिनेश्वर, पास गोडीचा नीरखोजी; वडवा मांहे चंद्रप्रभ जिन. वदन देखी मन हरखोजी, इत्यादिक जिन बिंब नीहाली, अनुभव रसनी थाळीजी; भवोदधि तारण अधिको कारण, अर्थो जिनवर आलिंजी. २ समवसरणमां जिनवर भाखे, उत्पत्ति ध्रुव नाशजी; ते अनुसारे गणधर देवे. द्वादशांगी प्रकाशीजी; मिथ्या तिमिर निवारण हेते. दिनकर तुल्य आचारोजी; जिन पडिमा जिन आगम ओ वली, दुषम काले आधारोजी. ३ जिनमत भक्ता समकित युक्ता, उक्तां जिनवर देवजी; रमता जिनशासनमा जे भवि, करता तेहनी सेवजी; जिनपद ध्यावे तेहीज पावे, अक्षय पदनी ऋद्धिजी; मुनि गुण रसिया परथी खसिया, ते पामे गुण वृद्धिजी. ४
(38) श्री ऋषभदेवनी स्तुति श्री आदिश्वर तुं परमेश्वर, अलवेसर अरिहंताजी, नाभिराया माता मरूदेवी, नंदन श्री भगवंताजी, वृषभ लंछन पूरव चोराशी, लाख वरसनुं आयजी, वडनगरे श्री जिनवर सोहे, विमलाचल गिरिरायजी, १ ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पद्मप्रभ वंदोजी, सुपास ने चंद्रप्रभ सुविधि, शीतल श्रेयांस नंदोजी, वासुपूज्य विमल अनंतधर्म, शांति कुंथु अरनाथजी, मल्लि मुनिसुव्रत नमि नेमि, पास वीर शीवसाथजी, २ भरतादिक शुभ पर्षदा बेठी, श्री आदेश्वर आगेजी, इंद्रादिक सुरनर बहु मलीया, श्री जिनने पाये लागेजी, भवियणने गुणखाणी वाणी, गाजे गुहिर गंभीरजी, शीवपटराणी माने निसुणी, शासननायक धीरजी, ३ शासनदेवी तुं चक्केश्वरी, तुं त्रिपुरा सुखदाताजी, षट् दरिसन माने जे तेहना, वांछित पूरे माताजी, श्री वडनगरे चउविह संघना, संकट सघळा चूरेजी, वाचक देवविजय मन समरी, सुख संपत्ति भरपूरेजी, ४
(39) श्री ऋषभदेवनी स्तुति परम सुख विलासी, शुभ चिद्रुप भासी, सहज रुचि विकासी, मोक्ष आवास वासी, मद मदन विनाशी, विश्वथी जे उदासी, ऋषभ जिन अनासी, वंदी एते नीरासी । १। जिनवर हितकारा, प्राप्त संसार पारा, कृत कपट विदारा, पूर्ण पुन्य प्रचारा, कलिमल हितकारा, मंदिता नंग चारा, दुःख
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विपीन कुठारा, पूजीए प्रेम धारा । २ । प्रबल नयण प्रकाशा, निक्षेप शुद्ध वासा, विविध नय विलासा, पूर्णनाणाव भासा, परिहरित कदाशा, दंत दुर्वादि वासा, भविजन सुणी खासा, जैन वाणी जयासा । ३ । सकल सुर विशिष्टा, पालिता नेक शिष्टा, गरिमगुण गरिष्ठा, नासिता शेष रिष्टा, मरण निष्ठा, दानलीला पटिस्था, हरत सकल दुष्टा, देवी चक्रा वरिष्ठा । ४ । (40) श्री ऋषभदेवनी स्तुति
जन्म
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भव्याम्भोजविबोधनैकतरणे, विस्तारिकर्मावली, रम्मासामजनाभिनन्दन ! महा,नष्टा-पदाभासुरै; भक्त्या वन्दितपादपद्म विदुषां संपादय प्रोज्झिता,रम्भाङसामजनाभिनन्दन महा, नष्टापदाभासुरैः, १ तेवः पान्तु जिनोत्तमाः क्षतरुजो, नाचिक्षिपुर्यन्मनो, दारा विभ्रमरोचिताः सुमनसो, मन्दारवा राजिताः, यत्पादौ च सुरोज्झिताः सुरभयां, चक्रुः पतन्त्योङम्बरा, दाराविभ्रमरोचिताः सुमनसो, मन्दारवाराजिताः, २. शान्ति वस्तुनुतान्मिथोडनुगमना, द्यन्नैगमाद्यैर्नयै,- रक्षोभंजन हेडतुलांछितमदौ, दीर्णांगजालंकृतम्, तत् पूज्यैजगतांजिनैः प्रवचन दृष्यत्कुवाद्यावली, रक्षोभंजन हेतुलांछितमदौ, दीर्णाङगजाङलंकृतम्, ३ शीतांशुत्विषि यत्र नित्य मदधद्, गन्धाढयधूलीकणा, नाली केसरलालसा समुदिता, डडशु भ्रामरी - भासिता; पायावः श्रुतदेवता निदधतो, तत्राब्जकान्तीक्रमौ, नाली केसरलालसा समुदिता, शुभ्रामरीभासिता, ४
( 41 ) चैत्री पूनम जिन स्तुति
चैत्र पूनम दिन, शत्रुंजय अहि ठाण, पुंडरिक वर गणधर, तिहां पाम्यां निर्वाण, आदिश्वर केरा, शिष्य प्रथम जयकार, केवल कमलावर, नाभि नरिंद मल्हार, ॥१॥ चार जंबूद्विपे, विचरंता जिनदेव, अड धातकि खंडे, सुरनर सारे सेव; अड पुष्कर अर्धे, अणीपरे वीश जिनेश, संप्रतिओ सोहे, पंच विदेह निवेश ॥२॥ प्रवचन प्रवहण सम, भवजल निधि तारे; कोहादिक महोटा, मत्स्यतणा भय वारे, जिहां जीवदया रस, सरस सुधारस दाख्यो, भवि भाव धरीने, चित्त करीने चाख्यो, ||३|| जिन शासन सानिध, कारी विघन विदारे, समकित दृष्टि सुर, महिमां जास वधारे, शत्रुंजय गिरि सेवो, जेम पामो भवपार, कवि धिर विमलनो, शिष्य कहे सुखकार ||४||
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( 42 ) अजितनाथ जिनेन्द्र स्तुतिः
तमजितमभिनौमि, यो विराजद्, चनघनमेरुपरागमस्तकान्तम्; निजजननमहोत्सव, धितष्टा- चनघनमेरुपरागमस्तकान्तम, १ स्तुत जिननिवहं तमर्तितप्ता,डध्वनसुरामरवेण वस्तु वन्ति यममरपतयः प्रयाग पार्श्वद्ध्वनसुरामरवेणव स्तुवन्ति २ प्रवितर वसतिं त्रिलोकबन्धे, ! गमनययोगतताङन्तिमे पदे है; जिनमत विततापवर्गविथी, गमनययों ! गततान्ति मेडपदेहे . ३ सितशकुनिगतांशुमान -सीद्धा, त्तततिमिरंमदभासुरांज्तिाडशम् वितरतु दधती पर्विक्षतोद्यत्तततिमिरं मदभासुरांडजिता शम्, ४
( 43 ) अजितनाथ जिनेन्द्र स्तुति
अजित जिनेश्वर सेवये, जेनी विजयामात, नगरी अयोध्यानो राजीयो, लंछन नाग विख्यात, साडी चारसो धनु देहडी, सोहे सोवन वान, बिहुतेर लाख पूरवतणुं, आयु जास प्रधान, तारंगे तारक जयो, प्रभु अजित जिणंद, विमलगिरि आदिश्वरुं, उज्जित नेमि जिणंद, सांचोरे श्री वीरजी, थल ठाकोर गोडी, तिरथ तिहुं लोकमां, प्रणमुं करजोडी, अजित जिनेश्वर उपदिशे, मधुरी मुख वाणी, सांभळतां सुख उपजे, जुओ हियडे आणी, दुर्गतिनां दुःख मेटीये, होवे निर्मल काया, हेलाए शिवपद पामीये, जपतां जिनराया, शासननी रखवालिका | अजिता सूरराणी, सार करे श्री संघने, योग माया ब्रह्माणी, पंडित तिलक विजय गुरू, सेवता भविप्राणी, नेमि विजय सुख संपदा, लहीये गुणखाणी,
( 44 ) श्री संभवनाथ जिनेन्द्र स्तुति
निर्भिन्नशत्रुभवभय, ! सं भवकान्तारतार तार ! ममाडरम्, वितरतु त्रातजगत्त्रय, ! संभव ! कान्तारतारतारममारम्, १ आश्रयतु तव प्रणतं, विभया पमारमारमानमदमरैः स्तुत लहित जिन कदम्बक १ विभयाडपरमार मार मानमदमरैः; जिनराज्या रचितं स्ता- दसमाननयानया नयामृयतमानम्; शिवशर्मणे मतं दध, दसमाननयानयानया मृयतमानम्. ३ शृंखलनयात्कनकनिभा, या ताम-समानमानमानमानवमहिताम्; श्रीवज्रशृखलां कजनयनया, तामसमान मान मानव- महिताम्. ४.
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(45) त्रीजनी स्तुति निसीहि त्रण प्रदक्षिणा त्रण, प्रणाम त्रण करीजेजी, त्रण दिशी वर्जी जिन जुओ, भूमि त्रण पूजीजेजी; त्रण प्रकारी पूजा करीने, अवस्था त्रण भावीजेजी, आलंबन त्रण मुद्रा प्रणिधान, चैत्यवंदन त्रण कीजेजी. १ पहेले भावजिन द्रव्यजिन बीजे, त्रीजे अक चैत्य धारोजी, चोथे नामजिन पांचमे सर्वे, लोक चैत्य जुहारोजी; वीहरमान छठे जिन वंदो, सातमे नाण निहाळोजी, सिद्ध वीर उजिंत अष्टापद, शासन सूर संभारोजी. २ शक्रस्तवमां दोय अधिकार, अरिहंत चेइआणं त्रीजेजी, नाम स्तवमां दोय प्रकार, श्रुतस्तव दोय लीजेजी; सिद्धस्तवमां पांच प्रकार, ओ बारे अधिकारजी, जीतनियुकितमाहे भांख्या, तेह तणो विस्तारजी. ३ भोजण पाण तंबोल वाहन, मेहुण ओक चित्त धारोजी, थुक सळेखम वडी नीति लधु नीति, जुगटे रमवू वारोजी; ओ दशे आशातना मोटी, वरजो जिनवर द्वारेजी, क्षमाविजय जिन अणीपरे जंपे, शासन सूर संभारोजी. ४
(46) अखात्रीजनी स्तुति सरस्वती स्वामीने पाय नमीने, गास्युं अमृत वाणीजी, आदि जिनेश्वर सवि दुःख भंजन, केवलज्ञान दिणंदाजी, अजर अरूपी असंग अभेदी, अक्रोधि प्रभु सोहेजी. श्री विजय देवेन्द्र सूरीश्वर वंदे, नित ऊठी प्रभातेजी. ॥१॥ विनिता नगरी तणो ते राजीयो, मुख सौहे पूनम चंदाजी श्री नाभिराया कुल दिपक, मरूदेवी माता मल्हारजी. राणी सुनंदा तणो जे वल्लहो, त्रण जग जन आधारजी, श्री विजय जिनेन्द्र सूरीधर जंपे, नित नित प्रथम जिणंदाजी, ॥२॥ संवत्सरी प्रभु दान देईने, दीक्षा लीधी सारजी, वरस दिवस लगे प्रभु तपतपीया, धन धन प्रथम जिणंदाजी, केवलज्ञान लही प्रभु पहोता, मुक्ति पुरी सुखदायजी, श्री विजय जिनेन्द्र सूरीधर ध्याने, हैयडे हर्ष बहु आणीजी, ॥३॥ शासन देवीश्री रखवाली, श्री चक्केसरी मायजी, अहनिश संघना कारज सारे, विघन निवारे क्रुरजी, तपगच्छ श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वर, शोधक इम जंपेजी, श्री धन कहे इम मुजने होजो, शिवसुख संपत दायजी,
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(47) संभव जिन स्तुति श्री संभव जिन मुरति सुंदर, जगजन मोहन गारीजी, सेवक जन मनवांछित पुरण, कल्पवेली अवतारीजी, बावना चंदन भरीय कचोळा, टोळे बहु नरनारीजी, संभव जिनवर पूजो भविजन, मुक्तिवधू लहु सारीजी, १ श्री नंदीधरने मानुषोत्तर, इक्षुकार वैताढ्यजी, कुलगिरि प्रमुख जिहां शाश्वतजिन, वंदु चारे नामजी, अतीत अनागत ऋषभादिक जिन, शत्रुजय अर्बुद वंदोजी, इत्यादिक तीरथ जिन सर्वे, पुजी पाप निकंदोजी, २ दो नवकारशी पोरसीतणा छ, सत पुरिमठ्ठ एगठाणजी, निवी विगइ नव एग बियासण, आयंबिल आठ आगारोजी, छ पाणस्स चार चरिम पच्चक्खाण, ए आगम विचारजी, मन शुद्धे आराधो भविका, जिम पामो भवपारजी, ३ अरिहंत देव अहर्निश आराधो, साधुतणा गुण रंजेजी, धर्मध्यान धरे जिन भाख्यो, दुष्कृत दुरित निकंदोजी, तेह तणा तुं विघ्न निवारे, तुं दुरितारी देवीजी, विबुधविजय सौभाग्य समरी, जिन चरणाम्बुज सेवीजी, ४
(48) श्री अभिनन्दन जिनेन्द्र स्तुति ___ त्वमशुभान्यभिनन्दन नन्दिता,-सुरवधूनयनःपरमोदरः,स्मरकरीन्द्रविदारणकेसरिन्, ! सुरवधू नयनः परमोदःर, १ जिनवराः प्रयतध्वमितामया, मम तमोहरणाय महारिणः,! प्रदधतो भुवि विश्वजनीनता, ममतमोहरणा यमहारिणः २ सुमनतां मृतिजात्यहिताययो, जिनवरागमनो भवमायतम्; प्रलद्युतां नय निर्मिततोद्धता,जिनवरागमनोभवमाय तम्. ३ विशिखशंखजुषा धनुषाडस्तसत्, सुरभिया ततनुन्नमहारिणा; परगतां विशदामिह रोहिणी सुरभियाततनुं नम हारिणा, ४
__(49) श्री ज्ञान पंचमी स्तुति श्रीनेमिः पंचरुप,स्त्रिदशपतिकृत, प्राज्य जन्माभिषेक; श्चचत्पंचाक्षमत्त, द्विरदमदभिदा, पंचवक्त्रोपमानः; निर्मुक्तः पंचदेह्याः, परमसुखमय, प्रास्तकर्म प्रपंचः, कल्याणं पंचमीस,त्तपसि वितनुतां, पंचमज्ञानवान्वः १ संप्रीणन् सच्चकोरान्, शिवतिलकसमः, कौशिकानंद मूर्तिः, पुण्याब्धिः प्रीतिदायी,
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सितरु चिरिवयः, स्वीयगोभीत्समांसि; सान्द्राणि ध्वंसमानः, सकल कुवल यो,ल्लास मुच्चैश्चकार, ज्ञानं पुष्याज्रिनौघ, स तपसि भविनां, पंचमीवासरस्य; २ पीत्वानानाभिधार्था,मृतर-समसमं, यांत्तियास्यन्तिजग्मु, र्जीवा यस्मादने के, विधिवदमरतां, प्राज्यनिर्वाणणपुर्याम्; यात्वादेवाधिदेवा, गमदशमसुधा, कुंडमानंद-हेतु, स्तत्पंचम्यास्तपस्यु,द्यतविशदधियां भाविनामस्तु नित्यम्. ३ स्वर्णालंकार वल्ग,न्मणिकिरणगण,ध्वस्त नित्यांधकारा, हुंकारारावदूरी,कृत सुकृत जन, व्रातविघ्नप्रचारा, देवी श्री अंबीकाख्या, जिनवरचरणां, भोज,गीसमाना, पंचम्यःन्यस्तपोर्थं, वितरतुकुशलं, धीमतां सावधाना. ४
(50) श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र स्तुतिः चिक्षेपोर्जितराजकं रणमुखे, यो लक्षसंख्यं क्षणा, दक्षामंजन भासमानमहसं, राजीमतीतापदम्, तं नेमिं नम नम्रनिवृतिकरं, चक्रे यदुनां च यो, दक्षामंजन-भासमा नमहसं राजीमतीतापदम्. १ प्राव्राजीज्जितराजका रज इव, ज्यायोङपि राज्यं जवाद्, या संसारमहोदधावपिहिता, शास्त्री विहायोदितम्; सर्वत अव सा हरतु नो, राजी जिनानां भवा,यासं सारमहो दधाव पिहिता,शास्त्रीविहायोङदितम्. २ कुर्वाणाणुपदार्थदर्शनवशाद्, भास्वत्प्रभायास्त्रपा,मानत्या जनकृत्तमोहरतमे,श स्तादरिद्रोहिका; अक्षोभ्या वत भारती जिनपते, प्रोन्मादिनां वादिनां, मानत्याजनकृत्तमोहरत्तमे,श स्तादरिद्रौहिका. ३ हस्तालम्बितचूतलुम्बिलतिका, यस्या जनोङभ्यागमद्, विश्वासेवितताम्र पादपरतां, वाचा रिपुत्रासकृत्, साभूतिं वितनोतु नोडर्जुनरुचिः, सिंहेङधिरुढोल्लसद्, विश्वासे वितताम्रपादपरता,डम्बा चारिपुत्रासकृत्. ॥४॥
(51) श्री नेमिनाथ जिनेन्द्र स्तुतिः त्वं येनाक्षितधीरिमा गुणनिधिः, प्रेम्णा वितन्वन् सदा, नेमेङकान्तमहामना विलसतां, राजीमतीरागत, कुर्यास्तस्य शिवं शिवाड्रगज ! भवा,म्भोधौ न सौभाग्यभाग, नेमे ! कान्तमहामङनाविल ! सतां, राजीमतिरागतः १ जीयासु-र्जिनपुङ्गवा जगति ते, राज्यद्विषु प्रोल्लस-दुवा,मानेकपराजितासु विभया,सन्नाभि-रामोदिताः; योधालिभिरुदित्वरा न गणता यैः स्फातयः प्रस्फुर-द्वामानेक-पराजितासु विभया, सन्नाभिरामोदिताः, २ या
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गंगेव जनस्य पंकमखिलं, पूता हरत्यंजसा, भारत्याङङगमसङ्गता नयतता, मायाचिता साङधुना; अध्येतुं गुरुसन्निधौ मतिमता, कर्तु सता जन्मभी, भारत्यागमसंगता न यतता,माङडयाचिता साधुना; ३ व्योम स्फारविमानतूरनिनदैः, श्रीनेमिभक्तं जनं, प्रत्यक्षामरसाल-पादपरता वाचालयन्ती हितम्; दद्यान्नित्यमिताङङमुलुम्बिलतिका, विभ्राजि-हस्ताङहितं, प्रत्यक्षामरसालपादपरताङ,म्बा चालयन्तीहितम्. ४ ...
(52) पांचमनी स्तुति श्रावण सुदि दिन पंचमी ओ, जन्म्या नेमि जिणंद तो, श्यामवरण तनु शोभतुं ओ, मुख शारदको चंद तो; सहस वरस प्रभु आउखुं ओ, ब्रह्मचारी भगवंत तो, अष्ट करम हेला हणी ओ, पहोता मुक्ति महंत तो. १ अष्टापदपर आदिजिन ओ, पहोता मुक्ति मोझार तो, वासुपूज्य चंपापुरीओ, नेम मुक्ति गिरनार तो; पावापुरी नगरीमां वळी अ, श्रीवीरतणुं निर्वाण तो, समेतशिखर वीश सिद्ध हुआ ओ, शिर वहुं तेहनी आण तो. २ नेमनाथ ज्ञानी हुवा ओ, भाखे सार वचन तो, जीवदया गुणवेलडी मे, कीजे तास जतन तो, मृषा न बोलो मानवी अ, चोरी चित्त निवार तो, अनंत तीर्थंकर ओम कहे ओ, परिहरिओ पर नार तो. ३ गोमेध नामे यक्ष भलो ओ, देवी श्री अंबिका नाम तो; शासन-सानिध्य जे करे अ, करे वळी धर्मना काम तो; तपगच्छनायक गुणनीलो ओ, श्री विजयसेनसूरिराय तो, ऋषभदासपाय सेवतां अ, सफळ करो अवतार तो. ४
(53) पांचमनी स्तुति ____तीर्थंकर श्री वीर जिणंदा, सिद्धारथ कुलकमल दिणंदा, त्रिशला राणी नंदा; कहे ज्ञान पंचमिदिन सुखकंदा, मति श्रुतावरणी मटे भव फंदा, अन्नाण कुंभी मंडा; दुग चउ भेद अठ्ठावीश वृदां, समकित तिथि उल्लासे आनंदा, छेदे दुरमति दंदा; चउदह भेदे धारो श्रुत चंदा, ज्ञानी दोयना पद अरविंदा, पूजो भाव अमंदा. १ अवतरिया सवि जगदाधार, अवधिनाण सहित निरधार, पामे परम करार, मागशिर शुदि पंचमि दिन सार, श्रावण शुदि पंचमी विस्तार, वो जय जयकार; त्रीजा ज्ञान दर्शन भंडार, देखे प्रगट
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द्रव्यादिक चार, पुण्य अनंत अधिकार. २ वैशाख वदि पंचमि मन आणी, कुंथुनाथ संयम गुण ठाणी, थया मनःपर्यव नाणी; दिक्षा महोत्सव अवसर जाणी, आवे इन्द्र अने इन्द्राणी, वंदे उलट आणी; विचरे पावन करता जग प्राणी, अध्यातम गुण श्रेणी वखाणी, स्वरुप रमण सही नाणी; अप्रमादि रिद्धिवंता प्राणी, नमो नाणीते आगम वाणी, सांभळी लहो शिवराणी. ३ कार्तिक वदि पंचमी दिन आवे, केवलज्ञान संभव जिन पावे, प्रभुता पूरण थावे; अजित संभवजिन अनंत सोहावे, चैत्रशुदी पंचमी मुक्ति कहावे, ज्येष्ठ शुदि तिथि दावे; धर्मनाथ परमानंद पावे, शासन सूरी पंचमी वधावे, गीत सरस कोई गावे; संघ सकळ भणी कुशल बनावे, ज्ञानभक्ति बहु मान जणावे, विजय लक्ष्मीसूरी पावे. ४
(54) श्री सुमतिनाथ जिन स्तुति मोटा ते मेघरथ राय रे, राणी सुमंगला, सुमतिनाथ जिन जनमिया ओ; आसन कंप्युं ताम रे, हरि मन कंपिया, अवधि ज्ञाने निरखताओ; जाण्युं जन्म जिणंदरे, उठ्या आसन थकी, सात आठ डग चालीया ओ; कर जोडी हरि ताम रे, करे नमुथ्थुणं; सुमतिनाथ गुण स्तवे ओ. १ हरिणगमेषि तामरे, इन्द्रे तेडीया, घंटा सुघोषा वजडावीया ; घंटा ते बत्रीस लाख रे, वागे ते वेला, सुरपति सहुको आवीआ ; रच्युं ते पालक विमान रे, लाख जोजन तj, उंचु जोजन पांचशेओ; हरि बेसी ते माही रे, आवे वांदवा, जिन ऋषभदिक वंदिया अ, र. हरि आवे मृत्यु लोकरे, साथे सुर बहु, केता गज उपर चड्याओ; गरुड चड्या गुणवंतरे, नाग पलाणीआ, सुर मली जिनघर आवीआ अ; त्रण प्रदक्षिणा देइ रे, प्रणमी सुमंगला, रत्न- कूख तारी सहि ; जन्म्या सुमति जिणंदरे, त्रण ज्ञान सहित, धन्य वाणी जिनजी तणी अ. ३ पंच रुप करी हाथ रे, इन्द्रे तेडीया, चामर विंझे दोय हरि ओ; ओक हरि छत्र धरंतरे, वज्र करे ग्रहि, ओक हरि आगल चालता ; आव्या मेरुनी श्रृंगे रे, पांडुक वन जिहां, नवरावी घर मूकिआ ओ; यक्ष तुंबरु देव रे, महाकाली यक्षीणी, ऋषभ कहे रक्षा करो ओ. ४
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(55) श्री सुमतिनाथ जिन स्तुति सुमति जिनेसर अति अलवेसर, आश धरूं अविनाशीजी, कौशल्या नगरीओ कहियो, मेधराय रवि भासीजी, मंगलामात सुजात मलाव्यो, बीज दिने जिन जायोजी, हरखे कुमरी छप्पन हुलराये, इन्द्रादिक गुण गायोजी, १ गुण सुमति ग्रहे लहे मुक्ति, प्रवचन साचुं सुणीएजी, अविनाशी अरज अवधारी, अनुभव रसमांश्युं उणुंजी, गुण अनंत गिरुआनां गाजे, लोक चउद जिनलाजेजी, पांचमां सुमति पांचे त्रिण गुप्ति आवे, आपो प्रवचन छाजेजी, २ पंच परमेष्टि ज्ञानादिक पांचे, जिनकल्पी जिनराजेजी, पांचमा पंच मिथ्यात्व प्रजाली, क्रौंच लंछनथी विराजेजी, प्रभु पंचमी गति पहोंचे पहोंचाडे, विरुआ विषय विरामोजी, अचल निर्मल केवल दुजे, बीजे सुमति सिद्ध पावेजी, ३ त्रिवंकी त्रिभुवन यक्ष तुंबरु, बलीयो संघने सहायेजी, देवी काली रढीआळी रुपाळी, रमझम नेउरी निवाजेजी, जिनशासन आसन अधिकारी, सुमति भगति भली भालीजी, पंडीतरत्न पसाये इम पभणे, विनीतनी वाणी रसालीजी, ४
(56) श्री सुमतिनाथ जिन स्तुति सुमतिनाथ जिन पांचमां, सो गणधर जाणुं चालीश लाख पूरव तणुं, जस आयुं वखार्पु, सहस शुं संयम आदर्यो, पामी केवलनाण, समेतशिखर मास अणसणे, सहसशुं निर्वाण १. ऋषभ मल्लि नेमि पासजी, करी त्रण उपवास, वासुपूज्य एक पौषधे, शेष छट्ठ सुविलास, नाण लह्यां हवे वीरजी, छठ्थी शिववास, ऋषभजी षट् उपवासथी, शेषने एकमास, २. समोसरण सुर विचरंता, फूलवृष्टि अशोक, दिव्यध्वनि चामर तथा, सुणे देशना लोक, सिंहासन भामंडल, वाजे दुंदुभि थोक, छत्र त्रण जोई हरखतां, भवि जिम रवि कोक, ३. सिंहराशी जस जनमनी, मघा नक्षत्र सार, चैत्यवृक्ष प्रियंगु मुनि, सहससु भवपार, तुंबरूं महाकाली सुरी, सेवे निरधार, जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां जयकार, ४.
(57) श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तुति मनह मनोरथ पुरण समरथ, कलियुगमा अवतरीयोजी, रूप अनोपम
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कमल दलोपम, नयन अमीरस भरीयोजी, भावठ भंजन जन मन रंजन, उपशम रसनो दरीयोजी, मांडव गढ मंडन दुरित विहंडण, केवल कमला वरीयोजी, १ चोवीश जिनवर शिवसुख दाता, पदमप्रभ वासुपूज्य राताजी, उज्वल वरणाचंद्रप्रभ सुविधि, कृष्ण मुनिसुव्रत नेम विख्याताजी, मल्लिनाथ प्रभु पार्थ जिनेश्वर, नीलरत्न परिसोहेजी, सोलस कंचन वरणा जिनवर; ते देखी मन मोहेजी, २ गंग तरंग तेणी परे निर्मल, उज्वल केवल नाणजी, त्रिगडे बेठा धर्म ज दाखे, भाखे त्रिभुवन भाणजी, किर्ती जिनवाणी अमीय समाणी, गणधर ग्रंथे वखाणीजी, जनहित जाणी गुण मणी खाणी, सुणजो भविजन प्राणीजी, ३ मातंग यक्षने शान्तादेवी, शासन सानिध्य कारीजी, अंग विभूषण रचना सारी, काने कुंडल धारीजी, श्री सुपार्श्वनी अहर्नीश सेवा, करती अति मनोहारीजी, श्री विजयराज वाचक वर सेवा, कीर्ति विजय जयकारीजी, ४
(58) आठमनी स्तुति मंगळ आठ करी जस आगळ, भाव धरी सुरराजेजी, आठ जातिना कळश करीने, न्हवरावे जिनराजजी; वीर जिनेश्वर जन्म महोत्सव, करतां शिवसुख साधेजी, आठमनुं तप करतां अम घर, मंगळ कमळा वाधेजी. १
अष्ट करम वयरी गजलंजन, अष्टापदपरे बळियाजी, आठमे आठ सरुप विचारी, मद आठे तस गळियाजी; अष्टमी गति पहोता जे जिनवर, फरस आठ नहीं अंगेजी; आठमनुं तप करतां अमघर, नित्य नित्य वाध्यो रंगजी. २ आठमे आठसो आगम भाखी, भवि मन संशय भांजेजी; आठे जे प्रवचननी माता, पाले निरतिचारोजी, आठमने दिन अष्ट प्रकारे, जीवदया चित्त धारोजी. ३ अष्ट प्रकारी पूजा करीने, मानवभवफळ लीजेजी, सिद्धाई देवी जिनपदसेवी, अष्ट महासिद्धि दीजेजी; आठमनुं तप करतां लीजे, निर्मळ केवळ ज्ञानजी, धीरविमळ कवि सेवक नय कहे, तपथी कोडी कल्याणजी.४
__(59) आठमनी स्तुति चोविशे जिनवर, हुं प्रणमुं नित्यमेव; आठम दिन करीओ, चंद्रप्रभुजीनी सेव; मूर्ति मनमोहन, जाणे पूनम चंद, दीठे दुःख जाये, पामे परमानंद. १
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मली चोसठ इंद्र, पूजे प्रभुजीना पाय, इंद्राणी अपच्छरा, जोडी गुण गाय; नंदिर द्विपे, मली सुरवरनी कोड, अठ्ठाई महोच्छव, करे ते होडा होड. २ शेत्रुंजा शिखरे, जाणि लाभ अपार, चोमासुं रहिया, गणधर मुनि परिवार; भवियणने तारे, देई धर्म उपदेश, दूध साकरथी पण, वाणी अधिक विशेष. ३ पोसह पडिक्कमणुं, करीओ व्रत पच्चख्खाण, आठम दिन करीओ, अष्ट क़र्मनी हाण; अष्ट मंगळ थाये, दिन दिन क्रोड कल्याण, ओम सुखसूरी कहे, जीवित जन्म प्रमाण. ४
(60) आठमनी स्तुति
अठ्ठमी वासर मज्जिम रयणी, आठ जाति दिशि कुमरीजी; जन्म घरे आवे गहगहति, निज निज कारज समरीजी; अढार कोडा कोडी सागर अंतर, तुज तोले कोण आवेजी; ऋषभ जगत गुरु दायक जननी, ईम कही गीत सुणावेजी. १ आठ कर्म चूरणकर जाणी, कलशा आठ प्रकारजी; आठ इंद्राणी नायक अनुक्रमे, आठनो वर्ग उदारजी; अष्ट प्रकारनी पूजा करीने, मंगल आठ आलेखेजी; दाहिण उत्तर दिशीजिनवरनो, जन्म महोत्सव लेखेजी. २ प्रवचन माता आठ आराधो, आठ प्रमादने छांडोजी; आठ आचार विभूषितागम, भणतां शिव सुख साधोजी; आठमे गुणठाणे चढी अनुक्रमे, क्षपक श्रेणी मंडाणजी; आठमे अंगे अंतगड केवली, वली पामो निर्वाणजी. ३ वैमानिक ज्योतिषि भवनाधिप, व्यंतर पति सुरनारीजी; क्षुद्रादि अडदोष निवारी, अडगुण समकित धारिजी; आठमे द्विप अठ्ठाई महोत्सव, करता भक्ति विशालजी, क्षमाविजय जिनवरनी ठवणा, चउसट्ठी सय अडालजी. ४
(61) शीतलनाथ जिन स्तुति
शीतलजिन शीतलकारी, भविजनने मन भायाजी, शांत सुधारस नयन कचोळा, कनल सुकोमल कायाजी, दढरथ राय सुतं नंदा नदन - प्रणमे सुर नर पायाजी, जन्म जरा मरण ताप समाया, अहोनिश तुमगुण गायाजी, १. अतित अनागत हुंआ होंगे, जिनवर अनंत अपारजी, विहरमान जिन विचरे विशे महाविदेह मोझारजी, ऋषभ चंद्रानन वारिषेण वली, वर्धमान ए
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चारजी, चार निक्षेप सविजिन सेवो, जीम पामो भवपारजी, २ अती परंपर आगम जिनवर, गणधर साखे लख्युंजी, सुत्रथी मुनिवरने आप्यु, सुरनर आगे ते भाख्युंजी, साधु सूरी उवज्झाय विधीशुं, भणीगणी चित राख्युंजी, सुलभ बोधि अल्प संसारी, तिणे अनुभव चाख्युंजी ३ चीर चुंदडी चोळी चरणा, पहेरण झाक झमाळजी, ब्रह्मा यक्षा अशोका जक्षीणी, दिशे अती उजमालजी, शितल जिननी सेवा सारी, धर्मीने प्रतिपालजी, रूपविजय मुनि माणेक संघने, नीतनीत मंगल माताजी, ४
__(62) श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र स्तुतिः पूज्यश्री वासुपूज्या,वृङजिन जिनपते नूतनादित्यकान्ते,-ङ माया-संसारवासा, वन वर तरसा, लीनवालानवाहो !, आनम्रा त्रायतां श्री, प्रभव भवभयाद्, बिभ्रती भक्तिभाजा, मायासं सारवाङसा,वनवरतरसा, लीनवाला नवाङहो. १ पूतो यत्पादपांशुः, शिरसि सुरतते,शिरच्चूरचूर्णशोभां, या तापत्राडसमाना, प्रतिमदमवति, हाङरता राजयन्ति; कीर्तेः कान्त्याततिः सा, प्रविकिरतुतरां, जैनराजी रजस्ते, यातापत्रासमाना, ङप्रतिमदमवती, हारतारा जयन्ति, २ नित्यं हेतूपपत्ति, प्रतिहतकुमत, प्रोद्धतत्वा-तबद्धा, पापायासाद्यमाना, मदनत वसुधा, सार ह्यद्या हितानी; वाणी निर्वाणमार्ग, प्रणयीपरिगता, तीर्थनाथक्रियान्मे,-पापाया गद्यमाना, मदनत वसुधा, सार ह्यद्याहितानि. ३ रक्षः क्षुद्रग्रहाद्री, प्रतिहतिशमनी, वाहितधेतभास्वत्, सन्नालिका सदाप्ता, परीकर-मुदिता, साक्षमाला भवन्तम्; सुभ्रा श्रीशान्तिदेवी, जगती जनयतात्, कुण्डिका भाति यस्याः, सन्नालीका सदाप्ता, परिकरमुदिता सा क्षमालाभवन्तम्, ४
(63) श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र स्तुति श्री वासुपूज्यजी पुजिए, जिन चरण तणां फललीजीए, जयाराणी सुत जयंकरु, मन वांछित पुरण सुरतरु, १ पांच भरत पांच ऐरावतां, पांच महाविदेहमां विचरंता, त्रण चोवीश बहोंतेर जिना, वीश नमुं जिन सुखकरा, २ त्रिगडे बेठा जिन भणे, तिहां वयणे करी वखाण करे, जोजन लगी जिनवाणी विस्तरे, बार पर्षदा बेठी चितधरे, ३ शासनदेवी नाम प्रभा, संघ
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सकल सुहंकरा, वर वाचक मेघ पवन मुदा, मेघ चंद्र हुवा सुख संपदा ४
(64) श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र स्तुति वासुपूज्य जिनेश्वरनंदा, जयामाता आनंदकंदा, सर्व जीव सुखकंदा, वासुपूज्य जिनेश्वर वंदो, भवभव संचित पापनीकंदो आतम गुण आणंदो. १ ऋषभादिक चोवीश जिणंदा जेने सेवे सुरनर इंद्रा; मनधरी हरख आनंदा; तास चरण सेवे मन शुद्धा, शिवसुख कारण सवीओ लुद्धा; निरमल सुरसा दुद्धा. २ रोहीणी प्रमुख तपस्या सारी, जे भाषित जिनवर गणधारी, भविक करे हितकारी, अहवा आगम जे चित्तधारे, श्री जिनवाणी पढे पढावे; तेह अक्षय सुख पावे. ३ श्री जिन शासन सानिध्यकारी, धूरथी मंगल दुरित निवारी, सेवो शुभ आचारी, कल्याणकारी जिनने सेवो, सुरनर पूजित शासन देवो, विघ्न हरे नित्य मेवो.
(65) श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र स्तुति वासुपूज्य जिनराज बिराजे, जलधर परे मधुरी ध्वनी गाजे, रुपे रतिपति लाजे, नितनित दिसे नवल दिवाजे, दरीसण दिठे भावठभांजे, निरमल गुणमणिछाजे, आंतरोली पुर मंडण स्वामी, मुगतीवधू जेणेहेला पामी, इन्द्रनमे शिरनामी, त्रीभुवन ज़न मन अन्तरजामी, अकल अरुप सहज विसरामी, वाचक जग जस नामी, १ समरुं चोवीशे जिनराज, जे सेव्ये आपे शिवराज, सीजे सघळा काज, नमे सवि सूर शिरताज. जे संसार पयोनिधिपाज, सेवे सुजन समाज, स्वर्ग मृत्यु पाताल निवासी, जे दीठे भविकमल उल्लासी, मुगतिसिरि जगदासी, परम ज्योती प्रगट अभ्यासी, जेहनीमति करुणाए वासी, पातीक जाये नासी, २ जिनवर आगम जलधि अपार, नानाविधि रयणे करी सार, सकल साधु सुखकार, जीवदया लहरी आधार, बहुल जुगती जलपुर उदार, जिहां नवत्तत्व विचार, जेहसुं विलसे त्रिपदीगंगा, जेहमांहे सोहे अति बहु भंगा, नितनित नूतनरंगा, ३ वासूपूज्य पूजे जस नामे; सवि संकट ध्रुजे, जसकामे कामधेनु, घर दूजे, जस दृष्टि जिन पडीबुझे, सकल शास्त्रना अर्थ ज बुझे, कुमति मति पडीबुझे, श्री विजयसिंह सूरि चित्त आणी, श्री विजय देवसूरीदे वखाणी, जगमाहे जे
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जाणी, जास पसाए विद्या लहे प्राणी, ते सरस्वती मुझ देजो वाणी, वाचक जश सुखखाणीं ४
(66) श्री धर्मनाथ जिन स्तुति धर्म जिणंद परमपद पाया, सुव्रता नामे राणी जाया, सुरनर मनडे भाया, पण चालीश धनुष्यनी काया, पंचमी दिन ते ध्याने ध्याया, तव मे नव निधि पाया, १ नेमि सुविधिना जन्म कहीजे, अजीत अनंत संभव शीवलीजे, दिक्षा कुंथु ग्रहीजे, चंद्र च्यवन संभवनाण सुणीजे, तीहुं चोवीशी एम जाणीजे, सहु जिनवर प्रणमिजे...२ पंच प्रकारे आगम भाखे, जिनवर चंद सुधारस चाखे, भविजन हैये राखे, पंच ज्ञान तणो विधि दाखे, पंचमी गतिनो मारग भाखे, तेहथी सविदुःख नाशे,...३ जिन भक्ता प्रज्ञप्ती देवी, धर्मनाथ जिनपद प्रणमेवी, किंनरसुर संसेवी, बोधी बीज शुभ दृष्टि लहेवी, नय विमल सदा मतीदेवी, दुश्मन विघ्न हरेवी....४
__(67) श्री शांतिनाथ जिनेन्द्र स्तुतिः राजन्त्या नवपद्मरागरुचिरैः, पादैर्जिताष्टापदा,-द्रेङकोपद्रुतजातरुपविभया, तन्वार्य धीर क्षमाम्; बिभ्रत्यामरसेव्यया जिनपते, श्री शान्तिनाथाङस्मरो,द्रेकोपद्रुत जातरुप विभया,इतन्वार्यधी रक्ष माम्. १ ते जीयासूरविद्विषो जिनवृषा, मालां दधानां रजो, राज्या मेदुरपारिजातसुमनः, संतानकान्तां चिताः; कीर्त्या कुन्दसमत्विषेषदधि ये, न प्राप्तलोकत्रयी, राज्या मेदुरपारिजातसुमनः, संतानकान्ताचिताः, २ जैनेन्द्रं मतमातनोतुसततं, सम्यग्दृश्यां सद्गुणा, लीलाभं गमहारी भिन्नमदनं, तापापह्यद्यामरम्; दूर्निभेदनिरन्तरान्तरतमो, निर्ना शि पर्युल्लसत्,ल्लिलाङभंगमहारीभिन्नमदन,न्ता-डप्रापह्यद्या मरम्, ३ दण्डच्छत्रकमडलूनि कलयन्, सब्रह्मशान्तिः क्रियात्,- सन्त्यज्याति शमि क्षणेन शमिनो, मूक्ताक्षमाली हितम्; तप्ताष्टापद-पिंण्डपिंगलरुचि,र्योङधारयन्मूढतां,संत्यज्यातिशमीक्षणेन शमिनो, मुक्ता-क्षमालीहितम्. ४
(68) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति सकल कुशलवल्लीपुष्करावर्तमेघो, मदनसद्शरुपः, पूर्णराकेन्दुवकत्रः;
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प्रथयतु मृग लक्ष्मा, शान्तिनाथो जनानां, प्रसृत भुवनकीर्तिः कामितं कमेकान्ति; १ जिनपतिसमुदायो, दायकोङभीप्सिताना, दुरिततीमिरभानुः कल्पवृक्षोपमानः, रचयतु शिवशान्ति, प्रातिहार्यं श्रियं यो, विकटविषमभूमी, जातदंतिं बिभर्ति. २ प्रथयतु भविकानां, ज्ञानसम्पत्समूह, समय इह जगत्या, माप्तवक्त्रप्रसूतः, भवजलनिधिपोतः सर्वसम्पत्तिहेतुः, प्रथितधनघटायां, सूर्यकान्तप्रकाशः. ३ जयविजयमनिषा,मन्दिरंः, ब्रह्मशान्तिः सूरगिरिसमधिर, पूजितोन्यक्षयक्षैः हरतु सकलविघ्नं, योजने चिन्त्यमानः स भवतु सततं वः, श्रेयसे शान्तिनाथः, ४
(69) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति चैत्रवदि आठम दिने ओ, जन्म्या आदिजिनराज तो, पांचसे धनुषनुं देहमान अ, कंचनवरणी काय तो; लाख चोराशी पूर्व- अ, आयु भोगवी विशाल तो, अष्ट कर्म शत्रु हणी ओ, वेगे शिवपुर जाय तो. १ भरते भराव्यां देहरा ओ, थाप्यां जिन चोवीश तो, तनुमान आप आपणुं ओ, तेहने नामुं शीशी तो; समनासिका थापीया ओ, मणिमय प्रतिमा कीध तो, अष्ट द्रव्यशुं पूजतां अ, मनवांछित फल लीध तो. २ ऋषभदेव ज्ञानी हुआ ओ, भाखे शुद्ध उपदेश तो, दुविध धरम प्रकाशीयो ओ, श्रावक-साधु निवेश तो; षद्रव्य तिहां भाखीया ओ, पांच छंडी ओक धार तो, ने निखेवा संजुत लहो अ, अम अनेक विचार तो. ३ महावद तेरशे शिव लहुं ओ, अष्टापदगिरि आय तो, गोमुखजक्ष चक्केसरी ओ, करे शासननी सहाय तो; ओवा जिनवर सेवतां ओ, पातक सरवे जाय तो, मुनि हुकम तस ध्यानथी ओ, मनवांछित तस थाय तो. ४
(70) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति वंदो जिन शांति, जास सोवन कांति, टाळे भवभ्रांति, मोह मिथ्यात्व शांति; द्रव्य-भाव अरि पांति, तास करता निकांति, धरता मन खांति, शोक-संताप-वांति. १ दोय जिनवर नीला, दोय धोळा सुशीला, दोय रक्त रंगीलां, काढतां कर्म कीला; न करे कोइ हीला, दोय श्याम सलीला, सोळ स्वामीजी पीला, आपजो मोक्षलीला. २ ज़िनवरनी वाणी, मोह-वल्ली कृपाणी, सूत्रे देवाणी, साधुने योग्य जाणी; अरथे गुंथाणी, देव मनुष्य
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प्राणी, प्रणमो हित आणी, मोक्षनी ओ निशाणी. ३ वाघेश्वरी देवी, हर्ष हियडे धरेवी, जिनवर पाय सेवी, सार श्रद्धा वरेवी; जे नित्य समरेवी, दुःख तेहना हरेवी, पद्मविजय कहेवी, भव्य' संताप खेवी. ४
___(71) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति शान्तिनाथ भजो भगवंत, आठ करमनो कीधो अंत, जिन पाम्या शिवपुरीनो वास, भविजननी ते पुरो आश. १ ऋषभादिक जिन चोवीश, दुर्जय मन्मथ मर्दन इश, भविकमन विकाश्युं चंद, ते नमतां मुज होय आनंद. २ आगम भाख्यो अरिहंत तणो, ते नमतां मुज उलट घणो, भणे गणे जे भावे करी, ते पामे निश्चे शिवपुरी. ३ शान्तिनाथ शासननी सूरी, विघन निवारे बहुगुण भरी, चउंविह संघनी सुखकर सदा, पभणइ देवविजय कवि मुदा. ४
(72) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति प्रणत सुरेसर, असुर नरेसर, शांति जिनेश्वर रायाजी, अचिरानंदन भुवन आणंदन, चंदन चरचित कायाजी; तरण शरण तनु वरण कंचनसम, हरण लंछन प्रभु पायाजी, श्री लक्ष्मीसागर सूरीश पूरंदर, प्रणमे शिवसुख दायाजी. १ सिद्धाचल श्री आदिजिनेसर, उज्जंत नेमिकुमारजी, तारंगे श्री अजितजिनाधिप, सुरत पास उदारजी; भरूअच्छे मुनिसुव्रतस्वामी, प्रबल प्रताप अपारजी, श्री लक्ष्मीसागर सूरीश पुरंदर, वंदे वारंवारजी. २ अंग अने उपांग अनुपम, मूलसूत्र सुविचार जी, छेद ग्रंथने दश पयन्ना, नंदी अनुयोग द्वारजी; इत्यादिक अरथे जिन विरच्यां, सूत्रथकी गणधारजी, श्री लक्ष्मीसागर सूरीश पुरंदर, उपदेशे भवि तारेजी. ३ चरणे नेउर रमझम करती, लीलालंकृतधारीजी, कटि तटि मेखल नाके मोती, श्रुतदेवी मनोहारीजी; श्री लक्ष्मीसागरसूरीश पुरंदर, दिन दिन सा जयकारीजी, प्रमोदसागर हरखे इम भाखे, संघ सकल सुखकारीजी. ४
(73) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति सोलमा शान्तिजिनेसरू अ, शान्तिकरण दुःख वार तो, सर्वारथथी अवतर्या अ, अचिरा गरभे सुखकार तो; भादरवा शुद सातमे , मरकी
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मार निवार तो, गजपुर विश्वसेन राजीयो ओ, तिर्थंकर अवतार तो. १ चउद सुपन माता लहे ओ, चौदलोक अधीश तो, जेठशद तेरसने दिने ओ, जन्म्या श्रीजगदीश तो; छप्पनकुमरी लाड लडाव्या ओ, चोसठ इन्द्र बहु कोड तो, मेरूशिखर पांडुकशिला ओ, नमण करे होडाहोड तो. २ शान्तिनाथ सुहामणुं ओ, नाम सुणी सहु हरखंत तो, चक्रीपद सुख भोगवी ओ, संवच्छरीदान वरखंत तो; जेष्ठवदि चउदसने दिने ओ, दिक्षा लहण अधिकार तो, पोषशुद नवमी केवल लह्यो ओ, भविजनने हितकार तो. ३ वैशाख वदि तेरसे लह्यो हे, समेतशिखर सिद्धशीश तो, कल्याणक पंच पेखजो ओ, निरंजन विसवावीस तो; गरुडयक्ष कंदर्पासुरी मे, जिनशासन रखवाल तो, सुखपाटे रत्नगुरु राजवी ओ, विनितविजय भणे बाल तो. ४
(74) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति शान्तिकरण श्रीशान्तिजिनेसर, सोलमा जिनवर रायाजी, विश्वसेन अचिरासुत सुंदर, सुरकुमरी गुण गाया जी; मृगलंछन प्रणमे सुरराया, कंचनवरणी काया जी, विविध प्रकारे पूजा रचंता, मनवांछित फल पाया जी. १ ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पद्मप्रभ देवो जी, सुपास चंद्रप्रभ सुविधि शीतल, श्रेयांस वासुपूज्य सेवो जी; विमल अनंत धर्म शान्तिसर, कुन्थु अर मन आणुं जी, मल्लि मुनिसुव्रत नमि नेमि, पास वीर वखाणुं जी. २ समोसरण सिंहासन बेठा, छत्रत्रय शिर सोहे जी, योजनवाणी वखाण करंता, रूपे त्रिभुवन मोहे जी; सरस सुधारसथी अति मीठी, श्रीजिनवरनी वाणी जी, श्रवणे सुणतां भावे भणतां, लहीओ शिवपदराणी जी. ३ पाये नेउर रमझम करती, घुघरडी वाचाली जी, पंचानन जीत्यो कटि लंकई, चाले राजमराली जी; शान्तिनाथ चरणाबुज सेवी, निर्वाणी मनोहारी जी, विबुधशिरोमणी मुक्तिविजय शिष्य, रामविजय जयकारी जी. ४
(75) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति जिनपति जयकारी, पंचमो चक्रधारी त्रिभुवन सुखकारी, सप्त भय इति वारी सहस चउसठ नारी, चौद रत्नाधिकारी जिन शांति जीतारी, मोह हस्ति मृगारी १. शुभ केशर घोली, मांहे कर्पूर चोली, पहेरी शीत पटोली, वासीये?
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गंध घोली, भरी पुष्कर नोली, टालीये दुःख होली, सवि जिनवर टोली, पूजीओ भाव भोली, शुभ अंग अग्यार, तेम उपांग बार, वळी मूल सूत्र चार, नंदी अनुयोद द्वार; दशपयन्ना उदार, छेद षट् वृति सार, प्रवचन विस्तार, भाष्य नियुक्ति सार, जय जय जय नंदा, जैन दृष्टि सुरिंदा, करे परमानंदा, टालता दुःख दंदा; ज्ञानविमल सूरिंदा, साम्यमां कंद कंदा, वर विमलगिरिंदा, ध्यानथी नित्य भद्दा. (76) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति ('शांन्ति सुहंकर साहिबो' देशी)
शान्ति जिनेसर समरीओ, जेनी अचिरा माय, विश्वसेन कुल उपन्यां, मृग लंछन पाय; गजपुर नयरीनो धणी, कंचनवर्णी छे काय, धनुष चालीश देहडी, लाख वरस- आय. १ शान्ति जिनेशर सोलमा, चक्री पंचम जाणुं, कुंथुनाथ चक्री छठ्ठा, अरनाथ वखाणु; त्रणे चक्री सहि, देखी आणंदु, संजम लेइ मुगते गया, नित्य उठीने वंदु. २ शान्ति जिनेसर केवली, बेठा धर्म प्रकाशे, दान शियल तप भावना, नर सोहे अभ्यासे, अरे वचन जिनजी तणा, जेणे हियडे धरीया, सुणतां समकित निर्मला, तेणे केवल वरीया. ३ समेतशिखर गिरि उपरे, जेणे अणसण कीधां, काउसग्ग ध्यान मुद्रा रहि, जेणे मोक्षज सिध्यां; जक्ष गरुड समरु सदा, देवी निर्वाणी, भविक जीव तुमे सांभळो, रिखवदासनी वाणी. ४
(77) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति सकल सुखाकर प्रणमीत नागर, सागरपरें गंभीरोजी, सुकृत लतावन, सींचन घनसम, भविजन मन तरु कीरोजी; सुरनर किन्नर असुर विद्याधर, वंदित पद अरविंदाजी, शिव सुख कारण, शुभ परिणामे, सेवो शांति जिणंदाजी. १ सयल जिनेसर भुवन दिणेसर, अलवेसर अरिहंताजी, भविजन कुमुद, संबोधन शशिसम, भयभंजन भगवंताजी; अष्ट करम अरि दल अति गंजन, रंजन मुनिजन चित्तजी, मन शुद्धे जे, जिनने आराधे, तेहने शिवसुख दित्तजी, २ सुविहित मुनिजन, मानसरोवर, सेवित राज मरालोजी, कलिमल सकल, निवारण जलधर, निर्मल सूत्र स्सालोजी; आगम अकल, सुपद पदे शोभित, उंडा अर्थ अगाधोजी, प्रवचन वचना, तणी जे रचना, भवीजन
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भावे आराधोजी. ३ विमल कमल दल, निर्मल लोयणा, उल्लसित उरे ललीतांगीजी, ब्रह्माणी, देवी निरवाणी, विघ्न हरण कणयंगीजी; मुनिवर मेध, रत्नपद अनुचर, अमर रन अनुभावेजी, निर्वाणी देवी प्रभावे, उदय सदा सुध पावेजी. ४
(78) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति गजपुर अवतारा, विश्वसेन कुमारा, अवनितले उदारा, चक्कवि लच्छि धारा; प्रति दिवस सवारा, सेविये शांति सारा, भवजलधि अपारा, पामीये जेम पारा. १ जिनगुण जस मल्ली, वासना विश्व वल्ली, मन सदन च सल्लि, मानवंति निसल्लि; सकल कुशल वल्लि, फुलडे मेघ फुली, दूर्गति तस डूली, ता सदा श्री बहुली. २ जिनकथित विशाला, सूत्र श्रेणी रसाला, सकल सुख सुखाला, मेलवा मुक्तिमाला; प्रवचन पद माला, दूतिका ओ दयाला, उरधरी सुकुमाला, मूकिये मोहजाला. ३ अति चपल वखाणी, सूत्रमा जे प्रमाणी, भगवति ब्रह्माणी, विघ्नहंती निर्वाणी; जिनपद लपटाणी, कोडी कल्याण खाणी, उदयरले जाणी, सुखदाता सयाणी. ४
(79) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति शांति सुहंकर साहिबो, संयम अवधारे, सुमतिने घेर पारj, भवपार उतारे; विचरंता अवनीतले, तप उग्रविहारे, ज्ञान ध्यान ओक तानथी, तिर्यंचने तारे. १ पास वीर वासुपूज्यजी, नेम मल्लि कुमारी, राज्य विहूणा से थया, आपे व्रत धारी; शांतिनाथ प्रमुखा सवि, लही राज्य निवारी, मल्लि नेम परण्या नहीं, बीजा घरबारी २ कनक कमल पगलां ठवे, जग शांति करीजे, रयण सिंहासन बेसीने, भली देशना दीजे; योगावंचक प्राणीया, फल लेता रीझे, पुष्करावर्तना मेधमां, मगसेल न भीजे. ३ क्रोडवदन शुकरारुढो, श्याम रुपे चार, हाथ बीजोरु कमल छे, दक्षिण कर सार; जक्ष गरुड वाम पाणीओ, नकुलाक्ष वखाणे, निर्वाणीनी वात तो, कवि वीर ते जाणे. ४
___(80) श्री मल्लिनाथ जिन स्तुति मल्लिजिनेसर वाने नीला, दीयो मुज समकित लीलाजी, अण परणे जिणे
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संयम लीधो, सूधा संयम शीलाजी; ते नरभवमां पशु, परे जाणो, जे करे तुम अवहीलाजी, तुम पद पंकज सेवाथी होय, बोधी बीज वसीलाजी. १ अष्टापदगिरि रुषभ जिनेश्वर, शिवपद पाम्या सारजी, वासुपूज्य चंपाओ यदुपति, शिव पाम्या गिरनारजी; तिम अपापा पुरीशिव पहोता, वर्द्धमान जिनरायजी, वीश समेतशीखर गिरि सीद्धा, इम जिन चउवीश थायजी. २ जीव अजीव पुण्य पापने आश्रव, बंध संवर निज्जरणाजी, मोक्ष तत्वने नव इणी परे जाणो, वली षट् द्रव्य विवरणाजी; धर्म अधर्म नभ कालने पुद्गल, ओह अजीव विचारोजी, जीव सहित षद्रव्य प्रकाश्यां, ते आगम चित्त धौरोजी. ३ विद्यादेवी सोल कहीजे, शासन सुर सुरी लीजोजी, लोकपालइंद्रादिक सघळा, समकित दृष्टि भणीजेजी; ज्ञानविमल प्रभु शासन भक्ते, देखी जिनने रीझेजी, बोधीबीज शुद्ध वासना द्रढता, तास विरह नवि कीजेजी. ४
(81) श्री मल्लिनाथ जिन स्तुति मल्लि जिनवर शुं प्रीतडी, जे भेद रहित जुगती जडी, अलगो न रहुं एक घडी, जेम भाती पटोलामांही पडी, १ सवि जिनवरना गुणमाल तणी, कंठे आरोपो भविक गुणी, शिव सुंदरी वरवा होंश करो, तोश्री जिन आणा शिर धरो, २ उपदेश अनुपम जलधरु, वच्चे नित्य मल्लिजिनवरु, बोधिबीज सुभिक्ष होय अति घणो, एम महिमाश्री जिनराजतणो, ३ शासन वत्सलजे भाविक जना, जिन धर्म जे छे एक मना, तस सानिध्य करजो सुरवरा, श्री ज्ञानविमल उद्योतकरा, ४ ।
(82) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति श्री नमिनाथ निरंजना देवा, कीजे तेहनी सेवाजी, एह समान अवर नहीं दीसे, जिम मीठा बहुमेवाजी, अहर्निश आतम मांही वसीयो, जिम गजने मन रेवाजी, आदर धरीने प्रभु तुम आणा, शिर धरूं नित्य सेवाजी, 19। चौत्रीश अतिशय पांत्रीश जाणो, वाणीना गुण छाजेजी, आठ प्रातिहारज निरंतर, तेहनी पासे बिराजे जी, जास विहारे दश दिशी कोश, इति उपद्रव भांजेजी, ते अरिहंत सकल गुण भरीया, वांछित देई निवाजेजी, २ मिथ्यामत तत दुष्ट भुजंगसम, तेणे जे जिम हसीयाजी, आगम नोगमता
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परे जाणो, तेहथी ते विष तसीयाजी, श्री जिन वयण सुणवानेहेते भवि मधुकर छे । रसीयाजी, भाव गंभीर अनुपम भाख्या, धन्य ते चित वसीयाजी. ३ श्री नमि जिनवर शासन भासन, भ्रकृटी यक्ष जयकारीजी, परचा पूरे संकट चूरे, वरदाई गंधारीजी, ज्ञान विमल प्रभु आणाधरे, कुमति कदाग्रह वारीजी, बोधीबीज वडबीज तणी पेरे, होजो मुज विस्तारीजी ४
(83) मौन अकादशीनी स्तुति श्रीभाग्नेमिर्बभाषे जलशयसविधे स्फुर्तिमेकादशीयां, माद्यन्मोहावनीन्द्र, प्रशमनविशीखः, पंचबाणार्चिरण; मिथ्यात्वध्वान्तवान्तौ, रवि करनीकर,स्तीव्रलोभाद्रिवज्रं, श्रेयस्तत्पर्व वस्तात्,च्छिवसुखमिति वा, सुव्रतश्रेष्ठिनोभूत्. १ इन्द्रैरभ्रभ्रमदृभि,# निपगुणरसा,स्वादनानन्दपूर्णे-दिव्यद्भिस्फारहारै, ललितवरवपु,र्यष्टिभिस्वर्वधूमिः; सार्धंकल्याणकौघो, जिनपतिनवते, बिन्दुभूतेन्दुसंख्यो, घस्त्रेयस्मिन् जगे तद्, भवतु सुभविनां, पर्वसच्छमहेतुः. २ सिद्धांताब्धिप्रवाहः, कुमतजनपदान्, प्लावयन् यः प्रवृतः, सिद्धिद्विपं नयन् धी, धनमुनिवणिजः सत्यपात्र-प्रतिष्ठान्, अकादश्यादिपर्वे,न्धुमणिमतिदिशन्धिवराणां महायँ, सन्ना-यायाम्भश्च नित्यं, प्रवितरतुसनः, स्वप्रतिरे निवासम्. ३ तत्पर्वोद्यापनार्थं समुदितसुधियां, शम्भुसंख्याप्रमेया,-मुत्कृष्टां वस्तुवीथी, मभयदसदने प्राभृति-कुर्वतांताम्; तेषां सव्याक्षपादैः प्रलपितमतिभिः, प्रेतभूतादिभिर्वा, दुष्टैर्जन्यं त्वजन्यं, हरतु हरितनु,न्यस्तपादाम्बिकाख्या; ६
__(84) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति सुर असुर वंदित पायपंकज, मयण मल्लमक्षोभितं, घन सुघन श्याम शरीर सुंदर, शंख लंछन शोभितं; शिवादेवी नंदन, त्रिजग वंदन, भविक कमल दिनेश्वरं, गिरनार गिरिवर शिखर वंदूं, श्री नेमिनाथ जिनेश्वरं १ अष्टापदे श्री आदिजिनवर, वीर पावापुरी वरु, वासुपूज्य चंपा नयर सिद्धा, नेम रैवत गिरिवरु; समेत शिखरे वीश जिनवर, मुक्ति पहोता मुनिवरु, चोवीश जिनवर नित्य वंदु, संयल संघ सुहंकलं. २ अग्यार अंग उपांग बार, दश पयन्ना जाणियें, छछेद ग्रंथ पसथ्य सथ्था, मूल चार वखाणीयें; अनुयोगद्वार उदार, नंदी, सूत्र जिनमत गाईयें, वृत्ति चूर्णि भाष्य पिस्तालिश
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आगम ध्याइओ. ३ दोय दिशि बालक होय जेहने, सदा भवियण सुखकरूं, दुःख हरि अंबालुंब सुंदर, दुरित दोहग अपहरु; गिरनार मंडण नेमि जिनवर चरण पंकज सेविये, श्री संघ सुप्रसन्न मंगल, करो ते अंबा देविओ. ४
(85) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति श्री गिरनारे जे गुण नीलो, ते तरण तारण त्रिभुवन तिलो; नेमिसर नमीये ते सदा, सेव्याथी आपे संपदा. १ इंद्रादिक देव जेहने नमे, दर्शन दीठे दुःख उपशमे; जे अतित अनागत वर्तमान, जे जिनवर वंदू वर प्रधान. २ अरिहंते वाणी उच्चरी, गणधरे ते रचना करी; पिस्तालीश आगम जाणीये, अर्थ तेना चित्त आणिये. ३ गढ गिरनारनी अधिष्ठायिका, जिनशासननी रखवालिका; समरु सा देवी अंबीका, कवि उदयरत्न सुखदायिका. ४
(86) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति नेमि जिनेश्वर, प्रभु परमेसर, वंदो मन उल्लासजी, श्रावण शुदि पंचमी दिने जन्म्या, हुओ त्रिजग प्रकाशजी; जन्म महोत्सव करवा सुरपति, पांच रुप करी आवेजी, मेरु शिखर पर ओच्छव करीने, विबुध सयल सुख पावेजी. १ श्री शत्रुजय गिरनार वंदु, कंचनगिरि वैभारजी, समेतशिखर अष्टापद आबु, तारंगगिरिने जुहारोजी; श्री फलवर्द्धि पास मंडोवर, शंखेश्वर प्रभु देवजी, सयल तीरथनुं ध्यान धरीजे, अहनिश कीजे सेवजी २ वरदत्तने गुणमंजरी प्रबंधे, नेमि जिणेसर दाख्योजी, पंचमी तप करतां सुख पाम्या, सूत्र सकलमां भाख्योजी; नमो नाणस्स इम गणणुं गणिये, विधि सहित तप कीजेजी, उलट धरी उजमणुं करतां, पंचमी मति सुख लीजेजी. ३ पंचमीनुं तप जे नर करशे, सानिध्य करशे अंबाईजी; दोलत दाई अधिक सवाई, देवी द्यो ठकुराईजी; तपगच्छ अंबर दिनकर सरखो, श्री विजयसिंहसूरीशजी, वीर विजय पंडीत कविराजा, विबुद्ध सदा सुजगीशजी. ४
(87) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति श्री गिरनार शिखर शणगार, राजमति हैयानो हार, जिनवर नेमकुमार;
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पूरण करुणा रस भंडार, उगार्यां पशुआं वार, समुद्रविजय मल्हार; मोर करे मधुरा किंगार, विचे विचे कोयलनां टउंकार, सहस गमे सहकार; सहसा वनमां हुआ अणगार, प्रभुजी पाम्यां केवलसार, पहोंता मुक्ति मोझार. १ सिद्धगिरि जे तीरथ सार, आबु अष्टापद सुखकार, चित्रकुट वैभार; सोवनगिरि सम्मेत श्रीकार, नंदिश्वर वरद्विप उदार, जीहां बावन विहार; कुंडल रुचक ने इक्षुकार, शाश्वत अशात्सताचैत्य विचार, इत्तर अनेक प्रकार; कुमति वयणे न भुल गमार, तीरथ भेटे लाभ अपार, भवियण भावे जुहार, २ प्रगट छठे अंगे वखाणी, द्रौपदी पांडवनी पटराणी, पूजा जिन प्रतिमानी, विधि शुं कीधे उलट आणी, नारद मिथ्यादृष्टि अन्नाणी, छांडयो अविरती जाणी, श्रावक कुलनी सही नाणी, समकित आलावे आख्यानी, सातमे अंगे वखाणी, पूजनिक प्रतिमा अंकाणी, ईम अनेक आगमनी वाणी, ते सुणजो भवि प्राणी. ३ कटी तटी मेखल घुघरीयाली, पाये नेउर रमझम चाली, उज्जयंतगिरि रखवाली; अधर लाल जीस्या परवाली, कंचनवान काया सुकुमाली, कर लहके अंबडाली; वैरीने लागे विकराली, संघना विघ्न हरे उजमाली, अंबादेवी मयाली; महिमा दश दिशी अजुवाली, गुरु श्री संघविजय संभाली, दिन दिन नित्य दिवाली ४.
(88) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति राजुल वर नारी, रुपथी रति हारी; तेहना परिहारी, बालथी ब्रह्मचारी; पशुआं उगारी, हुआ चारित्रधारी; केवलश्री सारी, पामीया घाती वारी. १ त्रण ज्ञान संयुत्ता, मातानी कूखे हूंता; जनमे पुरुहूता, आवी सेवा करंता; अनुक्रमे व्रत करंता, पंच समिति धरंता; महियल विचरंता, केवलश्री वरंता. २ सवि सुर वर आवे, भावना चित्त लावे; त्रिगडुं सोहावे, देव छंदो बनावे; सिंहासनठावे, स्वामिना गुण गावे; तिहां जिनवर आवे, तत्व वाणी सुणावे. ३ शासन सूरी सारी, अंबिका नाम धारी; जे समकित नर नारी, पाप संताप वारी; प्रभु सेवा कारी, जाप जपीये सवारी; संघ दुरित निवारी, पद्मने जेह प्यारी. ४
(89) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति यादव कुलमंडण, नेमिनाथ जगनाथ, त्रिभुवन जगमोहन, शोभन
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समकित थीर कार कल्याणक, आहाश, सा अंक
शिवपुर साथ; गिरनार शिखर शिर, दीक्षा-नाण-निर्वाण, शौरिपुरि नगरे, चवन जनम सुखकार. १ इम भरते पंचे, औरवते बलसार, चोवीसे जिननां, थाये जिन आधार; तसु पंच कल्याणक वंदे पूजे जेह, निरुपम सुख संपत्ति, निश्चे पामे तेह, २ जिनमुख लही त्रिपदी, वळी आगम गुंथ्या जेह, वर अंग अग्यार, दृष्टिवाद गुणगेह; त्रण काले जिनवर, कल्याणक विधि तेह, समकित थीर कारण, सेवो धरिय सनेह. ३ श्री नेमिजिनेश्वर, शासन विनयेरत, जिनवर कल्याणक, आराधक भविचित्त; देवचंद्रने शासन, सानिध्य करे नीत मेव, समरीजे अहनिश, सा अंबाई देव. ४
(90) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति जादवकुलश्री नंद समो ओ, नेमिधर ओ देवतो, कृष्ण आदेशे चालीया ओ, वरवा राजुलनारतो; अनुक्रमे त्यां आवीया अ, उग्रसेन दरबार तो, इन्द्र इन्द्राणी नाचता अ, नाटक थाय तेणी वार तो. १ तोरण पासे आवीया ओ, पशुओनो पोकार तो, सांभळी मुख मरोडीयुं ओ, राजुल मन उच्चाट तो,
आदिनाथ आदि तीर्थंकर अ, परण्या छे दोय नारतो, तेणे कारण तुमे कांई डरोओ, परणो राजुल नारतो. २ २थ फेरी संयम लीधो ओ, चढीया गढ गिरनारतो, नेमिश्वर काउसग्ग रह्या ओ, पाम्या केवल सारतो, सोळ पहोर दीये देशना ओ, आपी अखंडा धारतो, भविकजीव प्रतिबोधीया ओ, बूझी राजुल नार तो, ३ अथीर जाणी संयम लीयो ओ, अंबा जय जय कारतो, ' श्याम वरणना नेमजीओ, शंख लंछन श्रीकारतो, कवि नमि कहे रायने ओ परण्या शिववहु नार तो. ४
(91) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति गिरनारे ते नेमनाथ गाजे रे, राणी राजुल धूसके रुवेरे, मारो सामलियो गिरधारी रे, अने हरणोने हरणी बचावी रे. १ ओक चडता चडती दीसे रे, अष्टापद जिन चोवीसे रे; तमे शेजूंजय जइ जुहारो रे, आबुजी जइ दुःख वारो रे. २ जिहा चोत्रीश अतिशय छाजे रे, त्यां बेठा ढींगलमल गाजे रे, ढींगडनी वाणी मीठी रे, सहु सुणजो समकिति प्राणी रे. ३ त्यां 'बेठा अंबिका भारी रे, अने नाके सोनानी वाळी रे, सहु संघना संकट चूरो रे, नयविमलना वांछित पूरो रे. ४
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(92) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति अमर किन्नर ज्योतिषधर नर, अभिवंदित पायाजी, समुद्रविजय कुल कानन जलधर, श्यामल वर्णजस कायाजी, जय यदुनंदन मदन विगंजन, चंदन वचन सुहायजी, नेम निरंजन नयन नलीनदल, पावन शिव सुख दायाजी, १. जय राजुलवर करुणासागर, पुन्यपवित्र तुज कायजी, राजुल रढीयाली लटकाळी, छोडी चाल्यो तजी मायाजी, सत्यभामा वर लई हलधर, तोरण किणही पठायाजी, ऋषभादिक जिनथी तुं अधिको, कहत शिवा सुण जायाजी, २. चारित्र लेई चोपनमें दिन, केवलज्ञान उपायजी, चउविह देवमली मन रंगे, समवसरण विरचायजी, बारह पर्षदामांही बेसी, बहुजन धर्म बतायाजी, शासन पामी त्रिभुवन स्वामी, आपे मुगते सधायाजी, ३. यदुनायक श्री नेमि जिनेश्वर, यादववंश दिपायाजी, राजुलनारी पियुने प्यारी, लेई मुगति राखी मायाजी, जगदंबा अंबा रखवाली, शासन देवी ठायाजी, माय मया करी संघ विघनहर, भाणविजय गुणगायजी,
(93) अकादशीनी स्तुतिः निरुपम नेमि जिनेश्वर भाखे, अकादशी अभिरामजी; अकमने जेह आराधे, ते पामे शिव ठामजी, तेह निसुणी माधव पूछे, मन धरी अति आनंदोजी, अकादशीनो अहवो महिमा, सांभळी कहे जिणंदोजी, १ अकशत अधिक पचास प्रमाण, कल्याणक सवि जिननाजी, तेह भणी ते दिन आराधो, छंडी पाप सवि मननाजी; पोसह करीओ मौन आदरीओ, परिहरिओ अभिमानजी, ते दिन माया ममता तजीओ, भजीओ श्री भगवानजी. २ प्रभाते पडिक्कमणुं करीने, पोसह पण तिहां पारीजी, देव जुहारी गुरुने वांदी, देशनानी सुणो वाणीजी; साहमी जमाडी कर्म खपावी, उजमणुं घर मांडुजी, अशनादिक गुरुनेवहोरावी, पारj करो पछी वारुजी. ३ बावीसमा जिन अणी परे बोले, सुण तुं कृष्ण नरिंदाजी, अम अकादशी जेह आराधे, ते पामे सुख वृंदाजी; देवी अंबाई पुण्य पसाये, नेमिश्वर हितकारीजी, पंडीत हरख विजय तस शिष्य, मान विजय जयकारीजी. ४
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(94) अकादशीनी स्तुति गौतम बोले ग्रंथ संभाली, वर्द्धमान आगल रढीयाली, वाणी अतीहि रसाली; मौन अग्यारस महिमा भाली, कोणे किधिने कोणे पाली, प्रश्न करे टंकशाली; कहोने स्वामी पर्व पंचाली, महिमा अधिक अधिक सुविशाली, कुणकहे कहो तुमे स्वामी; वीर कहे मागशर अजुआली, दोढसो कल्याणक निहाली, अग्यारस कृष्णे पाली. १ नेमिनाथ वारे जाणो, कान्हुडो त्रण खंडनो राणो, वासुदेवसुप्रमाणो; परिग्रहने आरंभे भराणो, ओक दिन आतम किधो शाणो, जिनवंदन उजाणो; नेमिनाथने कहे हेत आणो, वरसे वारु दिवस वखाणो, पाली थाउं शिव राणो; अतीत अनागत ने वर्तमान, नेवू जिनना हुवा कल्याण, अवर न अह समान. २ आगम आराधो भवि प्राणी, जेहमां तीर्थंकरनी वाणी, गणधर देव कमाणी; दोढसो कल्याणकनी खाणी, ओह अग्यारसने दिन जाणी, ओम कहे केवल नाणी; पुन्य पाप तणी जीहां कहाणी. सांभलता शुभ लेख लखाणी, तेहनी स्वर्ग निसाणी; विद्या पूरव ग्रंथे रचाणी, अंग उपांग सूत्रे गुंथाणी, सुणता दिओ शिव राणी. ३ जिन शासनमां जे अधिकारी, देव देवी होओ समकित धारी, सानिध्य करे संभारी; धरम करे तस उपर प्यारी, निश्चल धर्मकरे सुविचारी; जे छे पर उपकारी; वड मंडल महावीरजी तारी, पाप पखाली जिन जुहारी लालविजय हितकारी, मातंग जक्ष करे मनोहारी, ओलग सारे सुर अवतारी, श्री संघना विधन निवारी. ४
(95) श्री रोहीणीनी स्तुति नक्षत्र रोहीणी जे दिन आवे, अहोरत्त पौषध करी शुभ भावे, चउविहार मन लावे; वासु पुज्यनी भक्ति कीजे, गणणुं पण तस नाम जपीजे, वरस सत्तावीश लीजे, थोडी शकते वरस ते सात, जावज्जीव अथवा विख्यात, तप करी करो कर्म घात; निज शकते उजमणुं आवे, वासुपुज्यनुं बींब भरावे लाल मणीमय ठावे ॥१॥ अतीत अनागतने वर्तमान, वंदो विचरता जिन बहुमान, कीजे तस गुण गान, तप कारकनी भक्ति आदरीओ, साधर्मिक वली संघनी करीओ, धर्म करी भव तरीओ; रोग शोक रोहिणी तपे
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जाय, संकट टले तस जश बहु थाय, तस सुर नर गुण गाय; निराशंसपणे तप अह, शंका रहितपणे करो तेह, नवनिधि होय जेम गेह. ॥२॥ उपधान थानक जिन कल्याण, सिद्धचक्र शत्रुजय जाण, पंचमी तप मन आण, पडिमा तप रोहीणी सुखकार, कनकावली रत्नावली सार,-मुक्तावली मनोहार, आठम चौदशने वर्धमान, इत्यादिक तपमांहे प्रधान, रोहीणी तप बहमान, ओणीपरे भाखे जिनवर वाणी, देशना मीठी अमीय समाणी, सूत्रे तेह गुंथाणी. ॥३॥ चंडा जक्षी यक्षकुमार, वासुपूज्य शासन सुखकार, विघ्न मिटावण हार; रोहीणी तप करता जन जेह, इह भव परभव सुख लहे तेह, अनुक्रमे भवनो छेह, आचारी पंडित उपगारी, सत्य वचन भाखे सुखकारी, कपूर विजय व्रतधारी, खिमा विजय शिष्य जिन गुरूराय, तस शिष्य मुज गुरू उत्तम थाय, पद्मविजय गुणगाय. ॥४।।
(96) श्री रोहीणीनी स्तुति जयकारी जिनवर, वासुपूज्य अरिहंत, रोहीणी तपनो फल, भाखे श्री भगवंत, नरनारी भावे, आराधे तप अह, सुख संपत्ति लीला, लक्ष्मी पामे तेह, ।।१।। ऋषभादिक जिनवर, रोहीणी तप सुविचार, निज मुखथी प्रकाशे, बेठी पर्षदा बार; रोहीणी दिन कीजे, उत्तम तप उपवास, मन वांछित लहीओ, थाय आत्म उल्लास, ॥२॥ आगममां अहना, भाख्या लाभ अनंत, विधिशुं परमारथ, साधे सुधो संत, दिन दिन वळी वाधे, अंग अधिको नूर, दुःख दोहग जाये, पामे सुख भरपूर, ॥३॥ महिमा जग मोटो, रोहीणी तपनो जाण, सौभाग्य सदाते, पामे चतुर सुजाण, नित नित घर ओच्छव, नित्य नवला शणगार, जिन शासन देवी, लब्धि विजय जयकार, ॥४॥
(97) श्री रोहीणीनी स्तुति शिव सुख दायक नायक अ जिन, सेवे चोसठ ईंदाजी; वासु पूज्य जिन ध्यान स्मरणथी, नित नित होय आणंदाजी, रोहीणी तप जगमां अति मोटो, खोटो नहीय लगार जी; अनुभव ज्ञान सहित आदरतां, लहिले भव भय पारजी. ॥१॥ सगवीसमे दिन आवे रोहिणी, तीण दिन करो उपवासजी; द्रव्य भाव जिन पूजो चोवीस, केसर कुसुम बरासजी, धूप अगर
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गौ घृत दीप पूरी, वृक्ष अशोक रसाल जी; ते तले वासुपूज्य प्रतिमां थापी, पूजो भावे त्रीकालजी; ॥२॥ सात वरस सातमासे तपनो, मान कहे जिनरायजी, पडिक्कमणुं देव वंदन किरिया, निर्मल मन वच कायजी; भूमि शयन ब्रह्म व्रत तप पूरे, उजमणुं निज शक्तेजी, दर्शन-नाण चरण आराधो, साधो श्रुत निर्युक्तेजी, ॥३॥ रूमझुम करती संकट हरती, धारती समकित बालिजी, चंडाई देवी जिनपद सेवी, शासननी रखवालीजी, रोहीणी तप आराधे भवियां, भाव थकी मन साचेजी, ते लहे कांति अधिक जस जगमां, जो जिन भक्ते राचेजी. ॥४॥
(98) श्री रोहीणीनी स्तुति रोहिणी नक्षत्र जे दिन आवे, ते दिन उत्तम जाणोजी, चोविहार उपवास ने पौषध, अष्टपहोर मन आणोजी, वासुपूज्य जिनबिंब भरावी, गणणं तस नाम जपीजेजी, वरस सात सत्तावीश सीमा, जावज्जीव पण कीजेजी....१ अतीत अनागत वर्तमान जिन, वंदोधरी मन रंगेजी स्वामी वत्सल भक्ति प्रभावना, कीजेअति उछरंगेजी, रोहिणी तप करतां अघनाशे, रोग शोकजाय दुरेजी, अष्ट महासिद्धि नवनिधि प्रगटे, पामे आनंद पूरेजी....२ विगते जिनवर आगम भाख्यां, तपना अनेक प्रकारजी चउगतिचूरण आशा पूरण, रोहिणी तप जग सारजी, अनुभव जोगी निज गुण भोगी, ए तप जे आराधेजी, ज्ञान दर्शन चरण फरसी विलसे, जेह सुख उच्छांहेजी....३ चंडायक्षिणी शासन सूरी, द्वादशमां जिन केरीजी, कामित दाता जग विख्याता, आपे ऋद्धि भलेरीजी, ज्ञान दिवाकर जग परमेश्वर, ध्यान जीवनमा ध्यावेजी, उत्तमविजय विबुध पय सेवक, रत्नविजय गुण गावेजी....४
(99) अतिशयनी स्तुति पहेलो अपाया पगमातिशय, जिन विचरे त्यां होवेजी, रोग शोकने इति उपद्रव, पाप पराभव खोवेजी, कंटक अवला कुसुम सवला, जानु लगे वरसावेजी, सुभिक्ष सदाकर अतिशय एहवा, नमता शिवसुख आवेजी, १ बीजो ज्ञान महावड अतिशय, केवल कमला दाखेजी, चौदस राजमां जीव
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सकलना, भावमनोगत भाखेजी, जे भवियण तस सेवा सारे, तस दुर्गतिथी राखे जी, लाख चोराशी जलनिधि तारण, नहि को जिनवर पाखेजी, २ त्रीजो वचन महारस अतिशय, बोले मागध वाणीजी, पर्षदाबार मले सुरनरनी, सांभळवा गुणखाणीजी, एकवचनमां भूचर खेचर, सहुको समजे प्राणीजी, जिन चोविशे एहवा वंदु, हियडे उलट आणीजी, ३ चोथो पुजातिशय मोटो, त्रण भुवन जस पुज्रेजी, सत्तर भेदे स्नात्र करीने, नरभव लहावो लीजेजी, शासन देवी वीर पद सेवी, संधने सानिध्य कीजेजी, मणीविजय पंडित इमजंपे, जयसुख मंगलकीजेजी, ४
(100) श्री वीशस्थानक तपनी स्तुतिः वीश स्थानक तप विश्वमां मोटो, श्री जिनवर कहे आपजी, बांधे जिनवर त्रीजा भवमां, करीने स्थानक जापजी; थया थशे सवी जिनवर अरिहा, ओ तपने आराधीजी, केवळज्ञानदर्शन सुख पाम्या, सर्वे टाळी उपाधीजी. १ अरिहंत १ सिद्ध २ पवयण ३ सूरि ४ स्थविर, ५, वाचक ६ साधु ७ नाणजी ८, दर्शन ६ विनय १० चरण ११ बंभ १२ किरिया १३, तप १४ करो गोयम १५, ठाणजी; जिनवर १६ चारित्र १७ पंचविध नाण १८ श्रुत, तीर्थ १६ अह नामजी, ओ वीशस्थानक आराधे ते, पामे शिवपद धामजी. २ दोय काळ पडिक्कमणुं पडिलेहण, देववंदन त्रण वारजी, नवकारवाळी वीश गणी जे, काउस्सग्ग गुण अनुसारजी; चारसो उपवास करी चित्त चोखे, उजमणुं करो सारजी, पडिमा भरावो संघ भक्ति करो; ओ विधि शास्त्र मोझारजी. ३ श्रेणिक सत्यकि सुलसा रेवती, देवपाळ अवदातजी, स्थानक-तप सेवा महिमामे, थया जगमांहि विख्यातजी; आगम विधि सेवे जे तपीया, धन्य धन्य तस अवतारजी, विघ्न हरे तस शासन देवी, सौभाग्यलक्ष्मी दातारजी. ४
(101) श्री वीशस्थानक तपनी स्तुतिः पूछे गौतम वीर जिणंदा, समवसरण बेठा सुखकंदा, पूजित अमर सुरीदा; केम निकाचे पद जिनचंदा ! किण विध तप करतां बहु फंदा! टळे दूरित-दंदा ?; तो भाखे प्रभुजी गतनिंदा, सुण गौतम ! वसुभूति-नंदा, निर्मळ
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तप अरविंदा; वीश स्थानक तप कर महेंदा, जिन तारकसमुदाये चंदा, तिम अ तप सवि इंदा. १ प्रथम पद अरिहंत भणीजे, बीजे सिद्ध पवयणपद त्रीजे, आचारज थिर ठवीजे; उपाध्याय ने साधु ग्रहीजे, नाण दंसण पद विनय वहीजे, अगियारमे चारित्र लीजे; बंभवय-धारिणं गणीजे, किरियाणं तवस्स करीजे, गोयम जिणाणं लहीजे; चारित्र नाण सुअस्स तित्थस्स कीजे, त्री भव तप करत सुणीजे, ओ सवि जिन तप लीजे २ आदि नमो पद सघळे ठवीश, बार पन्नर वळी बार छत्रीश, दश पणवीश सगवीश; पांच ने अडसठ तेर गणीश, सित्तेर नव किरिया पचवीश, बार अठ्ठावीश चोवीश; सत्तर अकावन पिस्तालीश, पांच लोगस्स काउस्सग्ग रहीश, नवकारवाळी वीश; ओक ओक पदे उपवासज वीश, मास षटे ओक ओळी करीश, ओम सिद्धांत जगीश. ३ शकते अकासणुं तिविहार, छठ्ठ अठ्ठम मास खमण उदार, पडिक्कमणुं दोयवार; इत्यादिक विधि गुरुगम धार, अकपद आराधन भवपार उजमणुं विविध प्रकार, मातंगयक्षकरे मनोहार, देवी सिद्धाई शासन सुखकार, विघ्न मिटावणहार; क्षमाविजय जश उपर प्यार, शुभ भवियण धर्म आधार, वीरविजय जयकार. ४
(102) श्री शाश्वता जिन स्तुतिः
रुषभ चंद्रानन वंदन कीजे, वारिषेण दुःख वारोजी; वर्द्धमान जिनंवर वली प्रणमो, शाश्वत नाम से चारजी; भरतादिक क्षेत्रे मलि होवे. चार नाम चित्त धारोजी; तेणे चारे से शाश्वत जिनवर, नमिये नित्य सवारेजी. १ उर्ध्व अधो तिर्च्छालोके थई, कोडिपन्नरसे जाणोजी; उपर कोडी बेंतालीश प्रणमो, अडवन लख मन आणोजी; छत्रीश सहस अंशी ते उपरे, बिंब तणो परिमाणोजी; असंख्यात व्यंतर ज्योतिषिमां, प्रणमुं ते सुविहाणो जी. २ रायपसेणी जीवाभिगमे, भगवती सूत्रे भांखीजी; जंबूद्वीप पन्नति ठाणांगे, विवरीने घणुं दाखीजी; वलीय अशाश्वती ज्ञाता कल्पमां, व्यवहार प्रमुखे आखीजी, ते जिन प्रतिमा लोपे पापी, जीहां बहु सूत्र छे साखीजी ३ अ जिन पूजाथी आराधक, इशान इंद्र कहायाजी; तेम सुरियाभ प्रमुख बहु सुरवर, देवी तणा समुदायाजी; नंदीश्वर अठाई महोत्सव, करे अति हर्ष मरायाजी; जिन उत्तम कल्याणक दिवसे, पद्मविजय नमे पायाजी. ४
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(103) श्री शाश्वत जिन स्तुति
शाश्वत जिनने करूं प्रणाम, जीम सीझे मन वांछित काम, लहिये शिवपद ठाम, जंबूद्विप जोयणलख जाण, धातकी खंड बीजो चित्त आण, पुष्करवर सुप्रमाण; वारूणीवर क्षीरवर द्वीपसार, घृतवर द्वीप इक्षुरसकार, नंदिसर निरधार, आठमो द्विप नंदी सर कहीये, जिहां शाश्वत जिन तीरथ लहीये जिन आणा शिर वहिये, H91 मध्यभागे चिहुं दिशे सार, वापी चार अच्छी मनोहार, लाख जोयण विस्तार, तेह विचे अंजन गिरि ओक, वापी दीठ लहिये सुविवेक, जिहां जिनघर ओक ओक; तस चिहुं पासे पर्वत चार, दधिमुख नामे छे सुखकार, सवि मली सोल श्रीकार, दधिमुख विचे रतिकर दोय दोय, वापी दीठ आठ आठ नग जोय, सवीमली बत्रीश होय ॥२॥ अंजन गिरिओ चार चइत्त, दधिमुखे तिम सोइ पवित्त, रति करे बत्तीस दीत्त, पर्वत दीठ ओक ओक भुवन, नंदिसर प्रासाद बावन, जपतां निरमल मन; प्रासाद दीठ अकसो चोवीश, श्री जिनराजना बिंब कहीश, संख्याओ जगदिश, सवि संख्याओ षट् हजार, चारसे अडतालीस जयकार, भव दव वारणहार. ||३|| ऋषभानन चंद्रानन भाण, वारिषेण वर्धमान जिन जाण, सासय जिनना ठाण, रुचक कुंडलद्विप कहंत, जिनघर चउ चउ तिहां प्रणमंत, जेहनो महिमां अनंत; साठ प्रासादे चउ चउद्वार, अवर सासय प्रासादे त्रिबार नमतां जय जयकार, शासन देवी सानिध्य करेवी, देवेन्द्र कुशल गुरूपाय सेवी, विद्या कुशल प्रणमेवी ॥४॥
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(104) श्री शाश्वता जिन स्तुति
चार निक्षेपा जिनवर, केरा हुं प्रणमुं एक चित्तजी, ऋषभनाम ह्रदयमां धारो, भावो धरी भगवंतजी, द्रव्य घणे जेणे पूजा कीधी, पूज्या ते नर सारजी, पूज्याविण कोई मुक्ति न पामे, ते निश्चे निरधारजी.... १ ऋषभानन नामे जिन प्रतिमा, चंद्रानन चित्त धारोजी, वारीषेण नामे जिन प्रतिमा, श्री वर्धमान जुहारोजी, नंदीसर मेरू प्रभुत प्रतिमां, स्वर्ग मृत्यु पातालजी, सयल जिनने पाये लागुं, जिन पूजु त्रण कालजी .... २ जिन प्रतिमा जिन सरीखी कहीए, सूत्र उपांग माहेजी, छठ्ठे अंगे द्रौपदीए पूज्यां कुमति भूलो कांईजी
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रायपश्रेणी मांहे सिध्या, सूर्याभआदि कहंतजी, ए जिन आगम वयण सुणीने, लहीए सुख अनंतजी ....३ श्रुतदेवीने पाये लागुं, जिनपुजु त्रण वारजी जे जिन प्रतिमा प्रेमे पुजे, तेहना विघ्न निवारजी, तपगच्छनायक कुमति भंजन, श्री विजय देव सुरीरायजी, ऋषभदास कहे कुमति त्यजीने, पुजो श्री जिनरायजी,.... ४
(105) जन्म कल्याणकनी स्तुति
छप्पन दिशिकुमरीनां आसन, कंप्या ते सहु आवेजी, जोयण ओक अशुचि टाळी, प्रभु गुण मंगळ गावेजी; अधोवासी ने ऊर्ध्ववासी, आठ आठ जे देवीजी, आवी प्रणमी निज निज करणी, कीधी प्रभुपद सेवीजी. १ तेरमे द्वीपे पर्वत रुचके, देवी चालीश जाणोजी, आठ आठ ओक ओक दिशिनी, बीस ओम प्रमाणोजी; चार विदिशानी चउ देवी, चार मध्ये वसनारीजी, इम छप्पन परिवार संघाते, जिनभक्ति मनोहारीजी. २ भूमिशोधन मेघ फूलनो, वींजण कळशा नीरजी, चामरवींझण दर्पणधारण, दीपकधारण धीरजी; नालच्छेद से आप आपणी, करणी सूत्र वखाणीजी, जन्म सफल करवा बहु भक्ते, आतमहितकर जाणीजी. ३ इम बहु भक्ते छप्पन कुमरी, कधी करणी रंगेजी, प्रभुगुण गावे नव नव ताने, नाटक गीत उमंगेजी; दीपविजय कविराज प्रभुजी, जीवजो कोडी वरिसजी, इम आशिष दई निज निज स्थानक, पहोंचे सकल जगीसजी. ४
(106) षट् अतिशयनी स्तुति
षट् अतिशय कहुं वर्षीदान, सौधर्म इन्द्र सुगुणनिधान, अवसर पुण्यप्रधान, दोय हाथ पर बेसे सुजाण, थाके - नहिं प्रभु देता दान, अतिशय पहेलो जाण; बीजो इन्द्र जे कहीये इशान, छडीदार थई रहे अकध्यान, शाश्वत अह विधान, चोसठ इन्द्र वर्जीने जाण, लेतां देतां सुर वारे ते ठाण. अतिशय बीजो प्रमाण १ भवनपतिमां वडा कहावे, चमर बलीन्द्र नाम सुहावे, जिनपतिना गुण गावे, प्रभुजीनी मुठी नियमावे, याचक भाग्यथी अधिक जावे, चमरेन्द्र हीन करावे; भाग्याधिकने ओछां थावे, बलीन्द्र तेहमां अधिक बनावे, भाग्य प्रमाणे पावे, जिनकरणी करी आनंद पावे, त्रीजो
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अतिशय अह जणावे, प्रभु भक्ति दिल लावे. २ भवनपतिना नवनिकाय, तेहना इन्द्र अढार कहाय, सूत्र सिद्धांते लखाय, ते सहु इन्द्रना जीत गणाय, दान समय लही अवसर पाय, करणी आप कराय; भरतक्षेत्रना नर समुदाय, दान लेवा जस इच्छा थाय, ते लेवा मन धाय. ते सह माणसने इहां लाय, ओ चोथो अतिशय गवाय, दीपविजय कविराय. ३ वाणव्यंतरने व्यंतर जेह, सहु मळी इन्द्र बत्रीस गुणगेह, समकीतदृष्टि जेह, भरतवासी मानवने अह, पाछा निज निज धाम धरेह, अतिशय पंचम अह; ज्योतिषी इन्द्र करणी ओह, विद्याधरने जाण करेह, छट्ठो अतिशय तेह, दीपविजय कविराज सनेह, ओ षट् अतिशय वरसे सदेह, वीर जगतगुरु मेह. ४
(107) सुधर्मा देवलोकनी स्तुति सुधर्मदेवलोक पहेलो जाणो, दोढ राज ऊंचो चित्त आणो, सौधर्मेन्द्र तेहनो राणो, शक्र नामे सिंहासन छाजे, औरावण हाथी तिहां गाजे, दीठे संकट भांजे; सर्व देव माने तस आण, आठ इन्द्राणी गुणनी खाण, वज्र रत्न जमणे पाण, बत्रीश लाख विमाननो स्वामी, ऋषभदेवने नमे शिर नामी, हैये हर्ष बहु पामी. १ चोवीसे जिन नित प्रणमी जे, विहरमानजिन पूजा कीजे, नरभव लाहो लीजे, बार देवलोक ने नव ग्रैवेयक, पांच अनुत्तर तिहां सबलविवेक, तिहां प्रतिमा छे अनेक; भुवन पति व्यंतरमा सार, ज्योतिषी देव न लाभे पार, तेहसुं नेह अपार, मेरु प्रमुखवली पर्वत जेह, तिलिोकमां प्रतिमा गुणगेह, ते वंदु धरी नेह. २ समवसरण सुर करे उदार, योजन अक तणे विस्तार, रचना विविध प्रकार, अढी गाउ ऊंचो ओ मान, फूल पगर सोहे जानु प्रमाण, देव करे गुण गान; मणि हेम रजतमय सोहे, त्रिगडुं देखी त्रिभुवन मोहे, तिहां बेठा पडिबोहे, अणवाग्या वाजा तिहां वाजे, त्रण छत्र शिर उपर छाजे, सेवक जनने निवाजे. ३ चरणकमल नेउरना चाळा, कटी मेखल सोहे अति विशाला, कंठे मोतनकी माला, पुनमचंद सम वदन विराजे, नयन कमलनी उपमा छाजे, नित नित नवल दिवाजे; चक्केसरी शासननी माय, ऋषभदेवना प्रणमे पाय, श्री संघने सुखदाय, श्री विजयप्रभसूश्चरराय, वंदु किर्तिविजय उवज्झाय, कान्ति-विजय गुण गाय. ४
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(108) अध्यात्मनी स्तुति सोवनवाडी फूलडे छाई, छाब भरी हुं लावू जी. फूलज लावू ने हार गुंथावू, प्रभुजीने कंठे सोहार्बुजी, उपवास करूतो भुख ज लागे, उनु पाणी नविभावेजी, आयंबिल करूतो लूखून भावे, निवीओ दुमा आवेजी. ॥१॥ अकासणुं करूतो भूखे न रहि शकुं, सुखे खाउं त्रण टंकजी. सामायिक करूं तो बेसी न शकु, निंदा करूं सारी रातजी, देरे जाउंतो खोटी ज थाउं, घरनो धंधो चुंकुंजी. दान दउंतो हाथज ध्रुजे, हैये कंप वछूटेजी. ॥२॥ जीवने जमडानुं तेडुज आव्युं, सर्व मेलीने चालोजी, रहो रहो जमडाजी आजनो दहाडो, शेर्जेजे जइने आकुंजी, शेजूंजे जइने द्रव्यज खर्चु, मोक्ष मार्ग हुं मांगुजी, घेला जीवडा धेनुं शुं बोले ? आटला दिवस शुं कीधुंजी. ॥३॥ जाते जे जीवे पाछळ भातुं, शुं शुं साथे आवेजी, काची कूलेरले खोखरी हांडी, काष्टना भारा साथेजी, ज्ञानविमल गुरु इणि परे भाखे, ध्यावो अध्यात्म ध्यानजी; भाव भक्तिशुं जिनजीने पूजो, समकितने अजवाळोजी. ॥४।।
(109) अध्यात्मनी स्तुति ऊठी सवेळा सामायिक लीधुं, पण बारणुं नवि दीधुंजी, काळो कुतरो घरमां पेठो, घी सघ© तेणे पीधुंजी; ऊठो वहुअर आळस मूकी, जे घर आप संभाळोजी, निज पतिने कहो वीरजिन पूजो, समकितने अजवाळोजी. १. बळे बिलाडे झडप झडपावी, उत्रोड सर्वे फोडीजी, चंचल छैया वार्यां न रहे, त्राक भांगी माळ त्रोडीजी; तेह विना रेंटियो नवि चाले, मौन भलु केने कहीयेजी, ऋषभादिक चोवीश तीर्थंकर, जपीओ तो सुख लहिओजी. २. घरवाशीदुं करोने वहुअर, टाळो ओजीशालुंजी, चोरटो अंक फरे छे हेरूं,
ओरडे द्योने तालुंजी; लबके प्राहुणा चार आव्या छे, ते ऊभा नवि राखोजी, शिवपद सुख अनंता लहीये, जो जिनवाणी चाखोजी. ३ घरनो खूणो कोण खणे छे, वहु तमे मनमां लावोजी, पहोळे पलंगे प्रीतम पोढ्यां, प्रेम धरीने जगावोजी; भावप्रभसूरि कहे नहीं ले कथलो, अध्यातम उपयोगीजी, सिद्धायिकादेवी सानिध्य करेवी, साधे ते शिवपद भोगीजी. ४.
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(110) रात्री भोजननी स्तुति शासन नायक वीरजीओ, पामी परम आधारतो, रात्री भोजन मत करोओ, जाणी पाप अपारतो; घुवड कागने नागनाओ, ते पामे अवतारतो, नियम नोकारसी नित्य करोओ, सांजे करो चउविहारो. १ वासी बोळो रिंगाणांओ, कंदमूल तुं टाळतो, खाता खोट घणी कहींओ, ते माटे मन वारतो; काचा दुध दही छाश मांहे, कठोळ जमवू वारतो, ऋषभादिकजिन पूजतां ओ राग धरे शिवनारतो. २ होळी बळेवने नोरतांओ, पीपळे पाणी म रेडतो, शील सातमना वासी वडाओ, खाता मोटी खोडतो; सांभळी समकित दृढ करोओ, मिथ्या पर्व नीवार तो, सामायिक पडिकमणुं नित करोओ, जिनवाणी जगसार तो. ३ रुतवंती अडको नहीओ, नवी करे घरना कामतो, तेना वांछित पूरशे ओ, देवी सिद्धायिका नामतो; हित उपदेशे हर्ष धरीओ, कोई न करशो रीस तो, कीर्ति कमला पामशोओ, जीव कहे तस शिष्य तो. ४
(111) नवतत्वनी स्तुति जीवाजीवापुण्य ने पावा, आश्रव संवर तत्ताजी, सातमे निर्जरा आठमे बंध, नवमे मोक्षपद सत्ताजी; ओ नव सत्ता समकित सत्ता, भाखे श्री अरिहंताजी, भुजनयर मंडण रिसहेसर, वंदो ते अरिहंताजी. १ धम्माधम्मागासा पुग्गल, समया पंच अजीवाजी, नाण विनाण शुभाशुभयोगे, चेतन लक्षण जीवाजी, इत्यादिक षट द्रव्य प्ररुपक, लोकालोक दिणंदाजी, प्रह उठी नित्य नमिये विधिशें, सित्तरि सो जिन चंदाजी. २ सुक्ष्म बादर दोय ओकेन्द्रि, बिती चउरिंदि दुविहाजी, तिविहा पंचिदि पज्जता, अपज्जता ते विविहाजी; संसारी असंसारी सिद्धा, निश्चयने व्यवहाराजी, पन्नवणादिक आगम सुणतां, लहिये शुद्ध विचारीजी. ३ भुवनपति व्यंतर ज्योतिषवर, वैमानिक सुर वृंदाजी, चोवीश जिनना यक्ष यक्षिणी; समकित दृष्टि सुरींदाजी; भुजनगर महिमंडण सघले, संघ सकल सुख करजोजी, पंडित मानविजय इम जंपे, समकित गुण चित्त धरजोजी. ४
(112) चौद गुणस्थानकनी स्तुति पहेलु मिथ्यात्व सास्वादन बीजूं, मिश्र त्रीनुं गुणठाणुंजी, अविरति
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चोथु, पांचमु देशविरति, छठु प्रमत्त वखापुंजी, सातमुं अप्रमत्त प्रमाद परिहरीए, आठमुं अपूर्वकरण कहीएजी, ए उपदेश भुजमंडन, जिन, ऋषभ नमी सुख लहीएजी १ नवमुं निवृत्ति गुणठाणुं, तिम दशमुं सूक्ष्म संपरायजी अगियार{ उपशम मोह खपावी, बारमुं क्षीणमोह कहीएजी, तेरमुं सयोगी केवल पामी, चौदमुं अयोगी उदारजी, ए करीने जिन कर्म खपावी, सवि जिन थया सुखकारीजी, २ काल अनादि छ आवली, अंतर्मुहूर्त, सागर तेत्रीश जाणुंजी, पांचमुं छठे सातमु तेरमुं, पूर्व कोडी देशे उणुंजी, आठमांथी पांच-छ अंतर्मुहूर्त, पंच अक्षर भणीजे जी, सूत्र सिद्धांते ए अधिकार छ,। श्रवण धरी इम सुणीये जी, ३ आठ मांथी बे श्रेणी करे जीव, उपशम क्षपक जाणोजी, क्षपक श्रेणिथी सिद्ध लहेतिम, उपशम पातनी वाणीजी, ऋषभ चरण सेवी वरदेवी, चक्केश्वरी सुखदायीजी, विवेक विजय 'गुरू चरण सेवक तिम, मेघविजय वरदाईजी ४
(113) पंचतीर्थनी स्तति आदि आदि जिनेश्वर सुंदर, त्रिभुवन जन हितकारीजी, शांति करण श्री शांति महामुनि, नेमनाथ ब्रह्मचारीजी, पुरीषादाणी पार्थ प्रगटमल, महावीर उपगारीजी, ए पाचे पंचमगति दायक, वंदो सविनरनारीजी,... १ केताचंद्रकिरण परे उज्जवल, जिनवर अति अभिरामजी, नीलानीलकमल परे केता, अंजन परे केई श्यामजी, पद्मराग परे केत्ता राता, सोवन परे केई पीळाजी,पंच वरण इम सयल जिनवर, दीयो मुज शीवसुख लीलाजी,.... २ जयकर जीवदया पालीजे, जुळु नवि बोलीजेजी, वस्तु प्यारी जे अणदीधी, ते केम नविलीजेजी, मुल थकी मैथुन परीहरवू, परिग्रह चित्त न धरवोजी, ए पांचे व्रत जिहां उपदेशे, ते आगम अनुसरवोजी.... ३ सयल जिनेश्वरचरण सरोरूह, जेह, भ्रमर परे सेवेजी, सुरतरूपरे जेह सेवकने, वांछित संपत्ति देवेजी, जसकर वज्र विराजीत भासुर, जिम उदयाचल भाणजी, भावसुहंकर सुरपति करजो, जिनशासन कल्याणजी,....४
(114) अरिहंत स्तुति श्री अरिहंत ध्यावो, पुण्यना थोक पावो, सवि दूरित गमावो, चितप्रभु
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ध्यान लावो, मद मदन विरावो भावना शुद्ध भावो, जिनवर गुण गावो, जीवने मोक्ष थाओ, १ सवि जिन सुखकारी, क्षय करी गेहभारी, केवल शुचि धारी, मान माया निवारी, थया जग उपकारी, क्रोध योधा प्रहारी, शुचि गुण गणधारी, जे वर्या सिद्धि राणी, २ नव तत्त्व वखाणी, सप्त भंगी प्रमाणी, संग नय मिलाणी, चार अनुयोग खाणी, जिन वरनी वाणी, जे सुणे भव्य प्राणी, तिणे करी अधहाणी, जई वरे सिद्धि राणी, ३ समकिती नरनारी, तेहनी भक्तिकारी, घीरणी, सुर, सारी, विघ्नना थोक हारी, प्रभु आणाकारी, लछ्छी लीला विहारी, संघ दुरित निवारी, होजो आनंद कारी, ४
( 115 ) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुतिः
यामुदारामुदारा, -लीनालीनामिहाली, मधुर-मधुरसां, सूचितोमाचितो मा; पातात्पातात्स पार्थो, रुचिररुचिरया, देवराजीवराजी, - पत्रापत्रा यदीमा, तनुरतनुरवो, नन्दकोनोदको नो. १ राजी राजीववकत्रा, तरलतरलसत्केतुरंगत्तुरंग, व्यालव्यालग्नयोघा, चितरचितरणे, भीतिह्यद्यातिह्यद्याः, सारासारज्जिनाना,मलममलमते, बधिका माधिकामा,दव्यादव्याधिकाला,ननजननजरा, त्रासमानाडसमाना. २ सद्योडसद्योगभिद्वा, गमलगमलया जैनराजीनराजी, - नूता नूतार्थधात्रि, हततहततमः, पातकाड पातकामा, शास्त्री शास्त्री नराणां, ह्यदयह्यदयशा, सेधिकाङबाधिका वा ङङदेया देयान्मुदं ते मनु, जमनु जरा, त्याजयन्तीजयन्ती. ३ यातायातारतेजाः, सदसि सदसिभृत्, कालकान्तालकान्ता, ङपारी पारिन्द्रराजं सुरखसुरव धूपूजिताङरं जितारं; सा त्रासात्त्रायतांवा तमविषमविषभृद्, भूषणाङभीषणा भी, हीनाङ हिनाग्रपत्नी कुवल कुवलयल, श्यामदोहाङडमदेहा. ४
मालामालानबाहु,र्दधददधदरं,
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(116) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति
सौधे सौधे रसे स्वे, रुचिररुचिरया, हारिलेखारिलेखा, पायं पायं निरस्ता, घनयघनयशो, यस्य नाथस्य नाङथ; पार्थं पार्थं तमोद्रौ, तमङहतमहम, ङक्षोभजालं भजाङलं, कामं कामं जयन्तं मधुरमधुरमा, भाजनत्वं जन ! त्वम्. १ तीर्थे तीर्थे तीर्थेशराजी, भवतु भवतुदस्तारीभिमारी भीमा लीकालीकालकूटा, ङकलितकलितयो, ल्लासमूहे समूहे, या मायामानहत्री,
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भवविभवविदां दत्त विश्वास विश्वा - नाप्तानाप्ताभिशंका, विमदविदमनत्रासमोहाङसमोहा. २ गौरागौराति-कीर्तेः परमपरमतहासविश्वासविश्वा,ङङदेया देयान्मुदं मे जनितजनितनू, भावतारावतारा; लोकालोकार्थ वे त्तुर्न यविन यविधुत्र्यासमानासमाना,भंगा भंगानुं योगा, सुगमसुगमयुक्, पाकृतालं, कृताङनलं, ३ लोके लोकेशनुत्या, सुरससुरसभां रंजयन्ति जयन्ति व्युहं व्युहं रिपूणां, जनभजन भवन्तागौरवा मारवामा; कान्ताङकान्ताङहिपस्ये, रितदुरितदुरन्ताहितानां हीतानां दद्यादद्यालिमुच्चै, रुचित-रुचितमा, संस्तुवे च स्तुवेच. ४
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(117) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति
पास जिणंदा वामा नंदा, जब गरभे फली; सुपना देखे, अर्थ विशेषे; कहे मघवा मली, जिनवर जाया, सुर हुलराया, हुआ रमणि प्रिये, नेमी राजी, चित्र विराजी, विलोकित व्रत लीये . १ वीर ओकाकी, चार हजारे, दीक्षा धुर जिनपति, पासने मल्लि, त्रख शक साथे, बीजा सहसे व्रती; षट् शत साथे, संयम घरता, वासुपूज्य जग धणी, अनुपम लीला, ज्ञान रसीला, देजो मुझने घणी. २ जिनमुख दीठी वाणी मीठी, सुरतरु वेलडी, द्राक्ष विहासे, गई वनवासे, पीले रस सेलडी; साकर सेंती, तरणां लेती, मुखे पशु चावती, अमृत मीठं, स्वर्गे दीठं, सुरवधू गावती. ३ गजमुख दक्षो, वामन यक्षो मस्तके फणावली, चार ते बांही, कच्छप वाही, काया जस शामली; चउकर प्रौढा, नागारुढा, देवी पद्मावती, सोवन कांति, प्रभु गुण गाती, वीर घरे आवती.
(118) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति
जग जन भंजन मांहे जे भलियो, जोगीसर ध्याने जे कलीयो, शिव वधू संगे हलियो; अखिल ब्रह्मांडे जे जलहलियो, षटदर्शन मते नवि खलियो, बलवंत मांहे बलीयो ; ज्ञान महोदय गुण उच्छलीयो, मोह महाभट जे छलीयो, काम सुभट निर्दलीयो; अजर अमर पद भारे ललीयो, सो प्रभु पास जिनेसर मलीयो, आज मनोरथ फलीयो. १ मुक्ति महा मंदिरना वासी, अध्यात्म पदना उपासी, आनंद रूप विलासी; अगम अगोचर जे अविनाशी, साधु शिरोमणी महा संन्यासी, लोका लोक प्रकाशी; जग सघले जेहनी
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118 शाबासी, जीवायोनि लाख चोराशी, तेहना पास निकासी; जलहल केवल ज्योतिकी माला, भविजन कंठे धरो सुकुमाला, मेली आल पंपाला; मुक्ति वरवाने वरमाला, चारु वर्ण ते कसम रसाला, गणधरे गुंथी विशाला; मुनिवर मधुकर रूप मयाला, भोगी तेहना वली भूपाला, सुरनर कोडी रढाला; जे मर चतुर अने वाचाला, परिमल ते पामे विगताला, भांजे भव जंजाला; ३ नाग नागिणी अध बलता. जाणी, करुणासागर करुणा आणी, तत्क्षण काढ्यां ताणी; नवकार मंत्र दीयो गुण खाणी, धरणीधर पद्मावती राणी, थया धणी धणी आणी; पास पसाये पद प्रमाणी, सा पद्मा जिन पदे लपटाणी, विघ्न हरण सपराणी; खेडा हरियालीमां शुभ ठाणी पूजो पास जिणंद भविप्राणी, उदय वदे अमवाणी. ४
(119) भीलडीपुर पार्श्वनाथस्तुतिः भीलडीपुर मंडण, सोहिले पार्ध जिणंद; तेहने तमे पूजो, नरनारीना श्रृंदा! ते त्रुठ्यो आपे, धण-कण कंचन क्रोड, ते शिवपद पामे, कर्मतणा भय छोड. १ घनघसीय घनाघन केसरना रंगरोळ, तेहमां तमे भेळो, कस्तुरीना घोळ; तिणे शुं तमे पूजो, चउवीशे जिणंद; जेम दैव दुःख जावे, आवे घर आणंद. २ त्रिगडे जिन बेठा, सोहिये सुंदर रुप, तस वाणी सुणवा, आवी प्रणमे भूप; वाणी जोजननी, सुणजो भवियण सार, ते सुणतां होशे, पातिकनो परिहार. ४ पाय रूमझुम, रूमझम, झांझरनां झणकार; पद्मावती खेले, पार्थ तणा दरबार; “संघ विघ्न हरजो, करजो जयजयकार;" ओम सौभाग्यविजय कहे, सुख संपत्ति दातार.
(120) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति शंखेश्वर पासजी पूजीओ, नरभवनो लाहो लीजीले; मनवांछित पूरण सुरतरु, जय वामासुत ! अलवेसरु. १ दोय राता जिनवर अतिभला, दोय धोळा जिनवर गुणनीला; दोय नीला दोय शामल कह्या, सोळे जिन कंचनवर्ण लह्या. २ आगम ते जिनवर भाखीयो. गणधर ते हैडे राखीयो; तेहनो रस जेणे चाखीयो, ते हुवो शिवसुख साखीयो. ३ धरणीधर राय पद्मावती, प्रभु पार्थ तंणां गुण गावती, सहु संघनां संकट चूरती, नयविमळनां वांछित पूरतीं. ४
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119 (121) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति सकल सुरासुर सेवे पाया, नयरी वाराणसी नाम सोहाया, अश्वसेन कुल आया; दशने चार सुपन दिखलाया, वामादेवी माताओ जाया; लंछन नाग सोहायाः छप्पन दिगकुमरी हुलराया, चोसठ इंद्रासन डोलाया, मेरुशिखर नवराया; नीलवर्ण तनु सोहे काया, श्री विजयसेन सूरीश्वर राया, पास जिनेश्वर गाया. १ विद्रुम वर्णा दोय जिणंदा, दो नीला दो उज्वल चंदा, दो काला सुख कंदा; सोले जिनवर सोवनवर्णा, शिवपुरवासी श्री परसन्ना, जे पूजे ते धन्ना; महा विदेहे जिन विचरंता, विशे पूरा श्री भगवंता, त्रिभुवन ते अरिहंता; तीरथ स्थानक नामुं ओ शिश, भाव धरीने विधावीश, श्री विजयसिंह सूरीश. २ सांभळ सखरा अंग अगिआर, मन शुद्धे उपांगज बार, दश पयन्ना सार; छेद ग्रंथ वली षट् विचार, मूल सूत्र बोल्यां जिन चार, नंदी अनुयोगद्वार; पणयालीश जिन आगम नाम, श्री जिन अरथे भाख्यां जाण, गणधर गुंथे ताम; श्री विजय सेन सुरीद वखाणे, जे भविका निज चित्तमां जाणे, तस घर लक्ष्मी आणे. ३ विजापुरमा स्थानक जाणी, महिमा म्होटें तुं मंडाणी, धरणींद्र धणीआणी; अहनिश सेवे सुर वैमानी, परतो पूरण तु सपराणी, पूरव पुण्य कमाणी; संघ चतुर्विध विघ्न निवारो, पार्श्वनाथनी सेवा सारो, सेवक पार उतारो; श्री विजयसेन सूरीश्वर राया, श्री विजयदेव गुरु, प्रणमी पाया, ऋषभदास गुण गाया. ४
(122) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति श्री शंखेश्वर पास जिणेसर, विनंति मुज अवधारो जी, दुरमति कापी समकित आपी, निज सेवकने तारो जी; तुं जगनायक शिवसुखदायक, तुं त्रिभुवन सुखकारी जी, हरि हितकारी प्रभु उपगारी, यादव जरा निवारी जी. १ श्री शंखेश्वर पुर अति सुंदर, जिहां जिन आप बिराजो जी, सुरगिरि सम अति धवल प्रासादे, दंड, कलश ध्वज राजे जी; चिहुं दिशि बावन जिनमंदिरमें, चोविशे जिन वंदो जी, भीडभंजन जगगुरु मुख निरखो, जिम चिरकाले नंदो जी. २ श्री शंखेश्वर साहिब दरिसन, संघ बहु तिहां आवे जी, धन केकी जिम जिनमुख निरखी, गोरी मंगल गीत गावे जी; आठ
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सत्तर अकवीश प्रकारे, अठोत्तर बहुं भेदे जी, आगम रीते जगगुरु पूजे, कर्मकठीनने छेदे जी. ३ शंखेश्वरने जिमणे पासे, मा पद्मावती दीपे जी, सुरपति धरणराज पटराणी, तेजे रवि शशी जीपे जी; तपगच्छपति श्री विजय जिणंदसूरी, अहनिश तस आराधे जी, कृष्णविजय जिनसेवा करतां, रंग अधिक जश वाधे जी. ४
(123) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति श्री पास जिणंदा, मुख पुनम चंदा, पद युग अरविंदा, सेवे चोसठ इंदा; लंछन नागिंदा, जास पाये सोहंदा, सेवे गुणी वृंदा, जेहथी सुखकंदा. १ जन्मथी वर चार, कर्म नासे अग्यार, ओगणीश निरधार, देवे कीधा उदार; सवि चोत्रीस धार, पुण्यना से प्रकार, नमीओ नर नार, जेम संसार पार. २ अकादश अंगा, तेम बारे उवंगा, षट् छेद सुचंगा, मूल चारे सुरंगा; दश पइन्न सुसंगा, सांभळो थइ अकंगा, अनुयोग बहु भंगा, नंदी सूत्र प्रसंगा. ३ पासे यक्ष पासो, नित्य करतो निवासो, अडतालीस जासो, सहस परिवार खासो; सहुओ प्रभु दासो, मांगता मोक्ष वासो, कहे पद्म निकासो, विघ्ननां वृंद पासो. ४
(124) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति जय पासदेवा, करुं सेवा, अश्वसेनकुलभूषणं, नयरी वाराणसी, शुद्ध ठाणं, विमल विगलितदूषणं; पयकमल फणिधर, भविक सुखकर, नील तनु जगवंदनं, प्रभु पापचूरण, आशपूरण, देव वामानंदनं. १ संसारतारण, सुखकारण, कर्म अरिदलगंजनं, देवाधिदेव, त्रिलोकनायक, कमठमान विहंडनं; तुम नाम निर्मल, सहजशीतल, पापतिमिर भवि दिणयरं, चोराशी लाख जीव बांधव, नमो पास जिनेश्वरं. २ सोहमस्वामी शुद्धमुनिवर, आगमसूत्र प्रकाशीया, अंग अग्यारे उपांग बारे, विविधभेद विकासीया; संदेहभंजन मन:रंजन, अकमन थइ सद्दहे, धन कर्म गंजी पाप भंजी, तेह मुक्ति श्री लहे. ३ अधोलोकवासीनी अलियनाशीनी, देवी श्री पद्मावती, कटी दोय कुंडल हार झगमग, वीजळी जेम राजती; धरणेन्द्र देव तणी जे राणी, संघ मंगलकारणी, उदय मुनीन्द्र समुद्र केरी, सयल आशापूरणी. ४
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(125) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति श्री शंखेश्वर पासजी, प्रभु पूरो वांछित आशजी; प्रभु पोष वदि दशमीये जनमीया, चोसठ इन्द्रे महोत्सव कीया. १ शत्रुजय तीरथ ध्याई, आबु देखी नवनिधि पाई; समेतशीखर तीरथ वंदिये, अष्टापद नमी आणंदीये. २ समोसरणे बेठां पासजी, प्रभु नीलवरण तनु खासजी; पांत्रीसवाणी गुणे करी, सहु सांभळे देशना हितकारी. ३ पास चरण कमल सदा सेवती, धरणेन्द्र अने पद्मावती; पंडित कुंवरविजय तणो, कहे रविविजय वांछित दीयो. ४
(126) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति शंखेश्वर पार्थ जुहारीये, ऋद्धि देखीने लोचन ठारीये; पूजी प्रणमीने सेवा सारिये, भव सागर पार उतारीये. १ शत्रुजय गिरनार गिरि वली, आबु अष्टापद सुखकारी; अवा तीर्थे जिन पाय लागीये, झाझा मुक्ति तणां सुख मांगीये. २ समोसरणमां बार पर्षदा मले, प्रभु उपर चामर छत्र धरे; वाणी सुणतां सवि पातिक टळे, सवि जीवना मनवांछित फले. ३ पद्मावती पडचो पूरती, प्रभु पार्श्वनो महिमा वधारती; सहु संघना संकट चूरती, नयविमलना वांछित पूरती. ४
(127) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति पोषी दशम दिन पास जिनेसर, जन्म्या वामामायजी, जन्म महोत्सव सुरपति कीधो, वलीय विशेषे रायजी; छप्पन दिककुमरी हुलरायो, सुरनरकिन्नर गायोजी, श्री अश्वसेन कुल कमला वतंसे, भानुउदय सम आयोजी. १ पोषी दशमदिन आंबेल करीये, जिम भवसागर तरीयेजी, पास जिणंद- ध्यान धरंता, सुकृतभंडार भरीये जी; ऋषभादिक जिनवर चोवीसे, जे सेवो भवी भावेजी, शिवरमणी वरी निज घर बेठा, परमपद सोहावे जी. २ केवल पामी त्रिगडे बेठा, पास जिनेश्वर साराजी, मधुरगीराओ देशना देवे, भविजन मन सुखकाराजी, दान--शीयळ-तप-भावे आदरशे, ते तरशे संसारजी, आ भव परभव जिनवर जपतां, धर्म होशे आधारजी. ३ सकल दिवसमां अधिको जाणी, दशमी दिन आराधोजी, तेवीसमो जिन मनमां
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ध्याता, आतम साधन साधोजी; धरणेन्द्र पद्मावती देवी, सेवा करे प्रभु आगेजी, श्री हर्ष विजयगुरु चरण कमलनी, राजविजय सेवा मांगेजी. ४
(128) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति श्रेयः श्रियां मंगलकेलिसद्म! श्रीयुक्तचिन्तामणी पार्श्वनाथ !, दुर्वारसंसार-भयाच्च रक्ष, मोक्षस्य मार्गे वरसार्थवाह !. १ जिनेश्वराणां निकर ! क्षमायां, नरेन्द्र देवेन्द्रनतांघ्रिपद्म, कुरुष्व निर्वाणसुखं क्षमाभृत् ! सत्ककेवलज्ञानरमां दधान. २ कैवल्यवामाह्रदयैकहार ! क्षमासरस्वद्रजनीशतुल्य, सर्वज्ञ ! सर्वा तिशयप्रधान ! तनोतु ते वाग् जिनराज! सौख्यम्. ३ श्री पार्श्वनाथक्रमणाडम्बुजातरु सारंगतुल्यः कलधौतकान्ति; श्री यक्षराजो गरूडाभिधानः चिरं जय ज्ञानकलानिधान!. ४
(129) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति श्री शंखेश्वर पुरवर मंडन, पास जिनेसर राजे जी, भाव धरी भवियण जे भेटे, तस घर संपत्ति छाजे जी, जस मुख निरूपम नूर निहाली, मानुं शशधर लाजे जी, अश्वसेननरपति कुल दिनकर, जस महिमा जग गाजे जी. ...१ वर्धमान जिनवर चोवीशे, अरचो भाव अपार जी, चंदन केसर कुसुम कृष्णागरू, भेळी मांहि घनसारजी, इणि पेरे अरिहंतसेवा करतां, मनवांछित फल साधेजी, श्री शंखेश्वर पास जिनेसर, जेह अहनिश आराधेजी. ...२ श्री जिनवर भाषित आदरशे, निज घर लक्ष्मी भरशे जी, दुस्तर भवसागर ते तरसे, केवल कमला वरसेजी, दुर्गति दुष्कृत दूरे करशे, परमानंद अनुसरशे जी, श्री शंखेश्वर पास जिणंदने, जे नर मनमांही धरशे जी. ...३ श्री शंखेश्वरपास तणां जे, सेवे अहनिश पायजी, धरणराज पउमावइ सामिणी, पेखे पाप पलाय जी, श्री राधनपुर सकल संघने, सांनिध्य करजो माय जी, श्री शुभविजय सुधी पद सेवक, जय विजय गुण गायजी. ...४
(130) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति पूजो प्रणमो भवियण वंदो, पाटण प्रगट्यो पुनिमचंदो, चिंतित सुरतरु कंदो, जसपद सेवे सकल सूरिंदो, दिन दिन वाधे अधिकाणंदो, वंदो पास
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जिणंदो. १ भविया भाव धरी चित्त साचो, जिसो अविहड हीरो जाचो, जिम अशुभ कर्म निकाचो, चउवीशे जिन अविचल वाचो, उलट आणी अंगे साचो, अवर देव मतराचो. २ सद्गुरु पद पंकज प्रणमीजे, जिन वचनामृत घट घट पीजे, निज भव लाहो लीजे, निरमल मनवच काया किजे, शिवरमणी सुरंग रमीजे, भव दुःख नवी देखी जे. ३ घम घम घम घूघरी वागे, रुमझुम रुमझुम झांझरी वागे, सुरवर चरणे लागे, पउमावइ वरदेवी आगे, विघन विघातक विद्या मांगे, ऋद्धि विजय मन रागे. ४
(131) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति पास जिनेसर जग धणी, मन वांछित पूरण सुरमणि, मिथ्यातमोहर दिनमणि, प्रणमुं परमारथ शिवभणी. १ मंगल चैत्य यत्रद्वारे ठवी, देहरे भगती प्रतिमा हळी, शाश्वत प्रतिमा शाश्वत स्थळे, नमुं बिंब त्रिविध जाणी भली. २ गम्या गम्यादि विवेचना, आगम विण न लहे भविजना, गणधर पण लीपीने वंदन करे, सन्मार्गी श्रुतने अनुसरे. ३ धरणेन्द्र अने पद्मावती, पार्थ जिननी सेवा सारती, सवि संघना विघन निवारती, मुनि मान ने नेहे निहाळती. ४
(132) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति लोढण मूरति मोहनगारी, देखत जाउं बलीहारीजी, बावना चंदन भरीय कचोली, सुगंधद्रव्य भलां भेलीजी, दक्षिण साडि पहीरेलाडी, पास पूजे लटकाळीजी, नीलवरण जिनसेव संहाली, पास दिठे दिवालीजी, १ आबू अष्टापद सुखकरियाजी, शेर्जेजे अनंत जीव बहु उद्धरीयाजी, शंखेश्वरो गोडी गण भरीयाजी, गिरनारे नेमी शिव वरीयाजी, वीश विहरमान चित्त धरीयाजी, वामा नंदन देखी दिल ठरीयाजी, सुकृत संचे जगतणे किरिया, चावीशे जिनमन धरीयाजी, २ त्रिण गढ तखते जिनजी बेठां, बार पर्षदा पडीबोहेजी, चिहुं मुखवाणी शिव सेताणी, सांभलतां मन मोहेजी, चिहुंगति वारण सुखनो कारण, सरस सुधाथी मीठीजी, जिनवर वाणी पीजे प्राणी, जिनवर शिववधू राणीजी, ३ दर्भावतीमां साहेब मळीया, मुजमन वांछित फलियाजी, विजयप्रभ सूरी गुणमणि दरीया, आजथकी मुज दिन वलियाजी, पास जिनपूजा करो रे रंगीली, देवी पदमावती मटकाळीजी, हर्ष विजयकवि दिनदिन चढती, दे दोलत देवी मयालीजी, ४
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(133) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति कल्याणकारक, दुःखवारक, सकल सुखावासए, संसारतारक, मानकारक, श्री शंखेश्वर पार्थ ए,। अश्वसेन नंदन, भवियवंदन, विश्ववंदन देव ए। भवभीतभंजन, कमठ गंजन, नमीजे नित्यमेव ए,....१ त्रैलोक्यदीपक, मोहजीपक, शीवसरोवर हंस ए। मुनिध्यान मंडन, दुरितखंडन, भुवनशिर अवतंसए, + द्रव्यभाव स्थापननामभेदे, जस निक्षेपा चारए, ते देवदेवा, मुक्ति लेवा, नमो नित्य सुखकार ए....२ गुणपर्याय नयगम, भेदविशद वखाणीये । संसार पारावार तरणी, कुमति कंद कृपाणीए । मिथ्यात्व भुधर शिखर भेदन, व्रजसम जेह जाणीए । अति भक्ति आणी, भविप्राणी, सुणो ते जिनवाणीए....३ जसवदन शारद, चंदसुंदर, सुधासदन विशालए । निष्कलंक सकल, कलंक तमहर, अंग अति सुकुमाल ए | पद्मावती सा भगवती सती, विघ्न हरण सुजाणीए | श्री संघने कल्याणकारीणी, हंस कहे हित आणीए....४
(134) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति सुरपति चउसठ पाय सेवित, कुमति पक्ष विखंडनं, मिथ्यात्व वारक तरण तारक, भविक कमल सुमंडनं, सुख शांति समता रसे रमता, जगति जग जय कारणं, जित मोह मल्ल विहल्ल मन्मथ, पार्थजिन जगतारणं, १ जिन जन्म, महोत्सव, हरख अपच्छर, करती नाटक किन्नरी, उच्छव रंग बहुविध अश्वसेन, माता वामा उरधरी, शुभ रयणी वरते जोग चंद्र, सुपोष वद दशमी भयो, मद कमठ भंजक जन सुवेच्छक, पार्श्व अतिशय ते जयो, २ नय गहन गर्भित, ध्वनि सुगर्जित, चउ निक्षेपा धारीतं, पात्रीश गुण द्युत पियुष वाणी, देशना हित कारितं, स्वाद्वाद रंगी, सप्त भंगी, तत्व रूचि धन गण धरी, गुण दया जीव कृपालु वाणी, पार्श्व चउमुख उच्चरी, ३ शिवशांती कर्ता मोक्ष दाता, कर्म हरता सुखकरं, संसार तारण कुमती वारण, शांतीजिन सुविहित करं, गुणधार सूरीवर विजय राजेन्द्र तीर्थ जंगम जय करं, चउवीश जिन प्रमोद रूचिकर, भक्ति कर शीव सुखकरं, ४
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(135) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति । श्री पार्थजिनेश्वर, पुजा करु त्रण काळ, मुज शिवपुर आपो, टाळो पापनी जाळ, जिन दरिशण दिठे, पहोंचे मननी आश, राय राणा सेवे, सुरपति थाये दास,....१ विमलाचल आबु, गढ गिरनारे नेम, अष्टापद समेत, पांचे तीरथ एम, सुर असुर विद्याधर, नरनारीनी कोड, भली जुगते ध्यावं, वांदु बे करजोड...२ साकरथी मीठी, श्री जिन केरी वाणी, बहू अर्थ विचारी गुंथी गणधर जाणी, तेह वचन सुणीने, मुज मन हर्ष अपार, भवसायर तारो, वारो दुर्गतिवार....३ काने कुंडळ झळके, कंठे नवसेरो हार पद्मावती देवी, सोहे सवि शणगार, जिनशासन केरा, सघळां विघ्न निवार पुन्यरत्नने जिनजी, सुख संपति हितकार....४
(136) श्री समवरण भावगर्भित पार्श्वजिन स्तुतिः देंद्रेकि धपमप, धुदुकी धोंधों, घ्रसकि धर धप धोरवम्, दोंदोंकी दोंदों दाग्डिदि दाग्डिदीकि, द्रमकि द्रण रण द्रेणवम्; झझिझंम कि झेंझें, झणण रण रण निजकि निज्जन रंजनम्, सुरशैल शिखरे भवति सुखदं पार्थ जिनपति मज्जनम्. १ कट रेंगिनि थोगिनि, किटती गिगडदां, धुधुकि घुटनट पाटवम्, गुण गुणण गुण गण, रणकी णे णे, गुणण गुण गण गौरवम्, झझि झें की झें झणण रण रण, निज जन न जन जन सज्जना, कलयन्ति कमला ,कलित कलमल मुकलमिस महेजिनः २ ठकि ट्रेंकी - - ठाहि ठहीक, ठाहि पट्टा ताड्यते, तल लोंकि लों लों, त्रेषि त्रेषिनी, डेंषि डॅषिनि वाद्यते; ओं ओंकि
ओं ओं, धुंगि थुगिनि धोंगि धोंगिम् कलरवे, जिन मत मनंतं महिम तनुता, जमति सुर नर महोत्सवे. ३ खुदांकि खुंदां, खुखुडदिखंदां दोंदों अंबरे, चाचपट चचपट रणकिणे णणे, डण ण डे डे डंबरे; तिहां सरगमपधुनि निधपमगरस, सस ससस सुर नर सेवता, जिन नाटय रंगे, कुशलमुनिशं, दिसतुं शासन देवता. ४
(137) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति जय जयकर साहिब, शासनपति महावीर, मानव मनरंजन, भंजन मोह
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जंजीर, दःख दारिद्र नासे, तिहअण जण कोटीर, आय वर्ष बहोतेर, सोवनवर्ण शरीर. १ ऋषभादिक जिनवर, सोहे जग चोवीश, वळी तेहना सुंदर, अतिशय वर चोत्रीश; भव दव भय भेदक, वाणी गुण पांत्रीश, जिन त्रिभुवन तीरथ, प्रह ऊठी प्रणमीश. २ प्रभु बेसी त्रिगडे, वीर करे वखाण, दान शील तप भाव, समजे जाण अजाण; संसार तणुं जेह, जाणे सकल विन्नाण, जिनवाणी सुणतां, फल लाभे कल्याण. ३ पाय झांझर झमके, घुघरीनो घमकार, कटि मेखल खलके, उर अकावली हार; सिद्धायिका सेवे, वीर तणो दरबार, कवि तिलकविजय बुध, सेवकनो जयकार. ४
(138) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति प्रभु भव पचवीशमे, नंदन मुनि महाराज, तिहां बहु तप कीधा, करवा आतम काज; लाख अगीयार उपर, जाणो अंसी हजार, छस्सो पिस्तालीश, मास खमण सुखकार. १ अरिहंत सिद्ध पवयण, सूरि स्थविर उवज्झाय, साधु नाण दंसण वली, विनय चारित्र कहाय; बंभवय किरीयाणं, तव गोयम ने जिणाणं, चरण नाण सुअस्स, तित्थ विशस्थानक गुणखाण. २ इम शुभ परिणामे, कीधां तप सुविशाल, मुनि मारग साधन, साधक सिद्ध दयाल समकित समताधर, गुप्तिधर गुणवंत, नंदन ऋषि राया, प्रणमुं श्रुतधर संत. ३ धन्य पोटीलाचारज, सद्गुरु गुण भंडार, इम लाख वरस लगे, चारित्र तप सुविचार; पाळीने पहोंच्या, दशमा स्वर्ग मोझार, कहे दीपविजय कवि, करता बहु उपकार. ४
(139) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वंछित पूरण कल्पतरूसम, निर्जित मदन नरेशजी, सिद्धारथ कुलवंश विभुषण, दुषण नहीं लवलेशजी; त्रिशलानंदन दुरित निकंदन, साचोर नयरे सोहेजी, वीर जिणंद मुखचंद अनोपम, भविक कमल पडिबोहेजी. १ ऋषभ अजित संभव अभिनंदन, सुमति पद्मप्रभ वंदोजी, श्री सुपास चंद्रप्रभसुविधि, शीतल जिन सुखकंदोजी; श्रेयांस वासुपूज्य विमल अनंत जिन, धर्म शान्ति कुंथु अरमल्लिजी, मुनिसुव्रत नमि नेमि नमीजे, पास वीर सुख वल्लीजी. २ त्रिगडे बेसी जिनवर भाखे, आगम अरथ उदारजी, सूत्रनी रचना
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गणधर विरचे, पामी त्रिपदी सारजी; नागमंत्र सम श्रीजिनवाणी, भाव धरी भवि प्राणी जी, सुणीओ त्रिकरण शुद्ध करीने, वरीओ शीव पटराणीजी. ३ रूमझुम करती गजगती चालती, भरती पुण्य भंडारजी, सिद्धायिकादेवी सुविचारी, संघ सकल सुखकारजी; वीर जिणंद पद सेवाकारी, शासन विघन निवारीजी, पंडित लक्ष्मीविजय गुरू सेवक, ज्ञानविजय जयकारीजी. ४
(140) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वीर जिनेश्वर अति अलवेसर, मुरति सुरत सारीजी, पूजो प्रणमो भविजन भावे, उतारे भव पारीजी; गुणमणि रोहण जग संबोहन, कंचन सम जे कायाजी, त्रिशला माता जगविख्याता, तात सिद्धारथ रायाजी. १ सयल जिनेश्वर जग परमेश्वर, भुवन दिनेशर देवाजी, पूजो प्रणमो पदकज तेहना, सुरनर सारे सेवाजी; अतीत अनागत ने वर्तमान, विहरमान जिन वीशजी; ते संभारी नित्य समरतां, पहोंचे सयल जगीशजी. २ समवसरण करी बेसी जिनवर, भाखे अर्थ अनेकजी, गणधर रचना सारी जाणी, सुणो ह्रदय विवेकजी; ज्ञान अनोपम दीवा सरखं, जाणो जाण सुजाणजी, पाप निकासे पुण्य प्रकाशे, जिम उदयाचल भाणजी. ३ शासन देवी नित्य समरेवी, संघने सानिध्य करजोजी, दोलत दाता भगवती माता, सेवकने चित धरजोजी, रूप अनोपम वान अनोपम, अनोपम ओ जगसारीजी, पंडित धीरसागर पद सेवक, अमरसागर जयकारीजी. ४
(141) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति शासननायक श्री महावीर, सात हाथ हेम वरण शरीर, हरि लंछन जस धीर, जेहनो गौतमस्वामी वजीर, मदन सुभटगंजन वडवीर; सायर पेरे गंभीर; कार्तिक अमावस्या निर्वाण, द्रव्य उद्योत करे नृप जाण, दीपक श्रेणी मंडाण, दिवाळी प्रगटी अभिधान, प्रभात समे श्रीगौतमज्ञान, वर्धमान धरो ध्यान. १ चोवीशे जिनवर सुखकार, परव दिवाळी अति मनोहार, सकल पर्व शणगार, मेरइया करे अधिकार, महावीर सर्वज्ञाय पद सार, जपीये दोय हजार, मज्झिम रयणी देव वांदीजे, 'महावीरपारंगताय' नमीजे, सहस ते दोय गुणीजे, वळी 'गौतम सर्वज्ञाय' नमीजे, पर्व दिपोच्छव इणि परे कीजे,
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मानवभव फल लीजे. २ अंग अग्यार ने उपांग बार, दशपयन्ना छेद मूल चार, नंदि अनुयोग द्वार, छ लाख ने छत्रीस हजार, चौदपूर्व रचे गणधार, त्रिपदीनो विस्तार; वीर पंचकल्याणक जेह, कल्पसूत्रमें भाख्यो तेह, दीपोच्छव गुणगेह, उपवास छठ अठ्ठम करे जेह, सहस लाख कोडी फल लहे तेह, श्री जिनवाणी अह. ३ वीरनिर्वाण समे सुर जाणी, आवे इन्द्र अने इन्द्राणी, भाव अधिक मन आणी, हाथ ग्रही दीवी निसि जाई, मेरईआ बोले मुख वाणी, दिवाळी कहेवाणी; इणी परे दीपोच्छव करो प्राणी, सकल सुमंगल कारण जाणी, लाभविमल गुणखाणी, वदित रत्नविमल ब्रह्माणी, कमल कमंडल वीणा पाणि, द्यो सरस्वति वर वाणी. ४
(142) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वाणी श्रीवीर जिनेश्वर केरी, सांभळतां सुखकारी जी, ठालीवाव ठणका करती, नीर भरे नर नारीजी. नीचे गागर ते उपर पाणीयारी, नित्य भरे नीर सवारी जी. तले कुंभ ते चाकपर फरतो, वीर वचन उपकारजी. १ किडीओसे ओक कुंजर जायो, बहु बलियो कहेवायोजी; मगर भुगल मुख नवि निकलाये, खीणमाही खालथी जायोजी, कुंजरनुं जोर कांइन चाले, ससलो जो सामे धायजी. उंदर आवे मनी नाशी जावे, प्रणमुं चोवीश जिन पायजी. २ मृगले पासलो मोटो मांडयो, पारधी पडीयो पीलायेजी; ससरो सूतो वहु हिंडोलवा जाये, हालरूवा गायजी, फोंइबाने करी वरसण थाये, नेहथी नीर भींजाय जी; भर भोगथी कमल नीपाये; जग जस वाद वीररायजी. ३ जे हवे अर्थ धरो नरनारी, धर्मने व्रत धारीजी; सिद्धाइ देवी जिन पद सेवी, संधने सानिध्य कारीजी; वड गच्छ नायक विजय जिनेन्द्र सूरि, साधुमां शिरदारजी; थोय सुणी मद मानने टाली, उंडाते अर्थ विचारजी; ४
(143) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वंदु विर जिनेश्वर नमी करी, बहोतेर वरस, आयु पूरण करी; कार्तिक वदि अमावस्या निर्मळी, वीर मोक्षे पहोंच्या पावापुरी. १ चोवीसे जिन मोक्षे गया, मुज शरण होजो निर्मल थयां, अकवार जिनजी जो मिले मारा मननां मनोरथ सवि फळे ॥२।। महावीरे ते दीधी देशना, सोल पहोर सुणी ते भवी
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जना, तेनो अर्थ सुणी गणधर वली, सिद्धांतने बंदु लळी लळी ॥३॥ दिवाळी ते महापर्व जाणीओ; महावीर थकी मन आणीओ; गणणुं गणी छठ्ठ तप जे करे; लाल विजय सिद्धाइ संकट हरे; ||४||
(144) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति
सर हरर खललल, ध्रसग छबछब, न्हवण जल क्रोडो मणो, खण खणण त्रोड् त्रोड्, टनाक, टन् टन्, घोष कळशाओ तणो, सुर संघ नाचे, छनन छूम छूम, रणण झुम झुम, जय करो, श्री विर प्रभुनो जन्म उत्सव, जगतनुं मंगल करो, )) 9)) पी पीव पूंपूं, त्रणण तुम् तुम्, भणण भुं श्रुं वागता, धप खणण खलबल, तडाक त्रुं त्रु, धडाक धुं धुं गाजता, जय जयउनंदा, जयउ भद्रा, जयउ खतिय बल धरो, चोवीश जिननो दीक्षा उत्सव, शांति सद्गुण पाथरो, ॥२॥ गम सारी धपणी, तुं तीणी तुं, विणा वागे सुस्वरे. धा धअअ तरू तरू, ध्रपं ध्रों ध्रों, देववाजा अनुसरे. स्वाद्वाद नय निक्षेप भंगी, द्रव्य गुणनो सागरो, श्री विरवाणी धोध सौनो, कर्म मल दूरे करो, ॥३॥ कड कडड भूस, कडडाट करी, भडवीर भैरव चूरतो, धम् धम् अवाजे चालतो, जिन भक्त पडचा पूरतो, चारित्र दर्शन विघ्न भंजन, धर्म रक्षा तत्परो, मणिभद्रजी कल्याण माळा, संघने कंठे ठवो, 11811
(145) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति
गंधारे महावीर जिणंदा, जेने सेवे सुर नर इंदा, दीठे परमानंदा; चैतर सुद तेरस दिन जाया, छप्पन्न दिग् कुमरी गुण गाया, हरख धरी हुलराया; त्रीश वरस पाली घरवास, मागसर वद दशमी व्रत जास, विचरे मन उल्लास; अ जिन सेवो हितकर जाणी, अहथी लहीओ शिव पटराणी, पुण्य तणी अ खाणी. १ ऋषभ जिनेश्वर तेर भव सार, चंद्र प्रभ भव सात उदार, शान्तिकुमार भव बार ; मुनिसुव्रत ने नेमकुमार, ते जिनना नव नव भवसार, दश भव पार्श्वकुमार; सत्तावीश भव वीरना कहीओ, सत्तर जिनना ऋण ऋण लहीओ, जिन वचने सहीओ; चोविश जिननो अह विचार, अहथी लहीओ भवनो पार, नमतां जय जयकार. २ वैशाख सुदि दशमी लही नाण, सिंहासन बेठा वर्धमान, उपदेश देओ प्रधान; अग्नि खुणे हवे पर्षदा सुणीओ,
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साध्वी वैमानिक स्त्री गणीओ, मुनिवर त्यांहीज भणी); व्यंतर ज्योतिषि भुवनपति सार, अहने नैऋत्य खुणे अधिकार, वायव्य खुणे अनी नार; इशाने सोहीजे नर नार, वैमानीक सुर थई पर्षदा बार, सुणे जिनवाणी उदार. ३ चक्केसरी अजिया दुरिआरि, काली महाकाली मनोहारी, अच्चुआ संता सारी; ज्वाला सुतारया असोया, सिरिवत्सा वर चंडा माया, विजयांकुसी सुखदाया; पन्नत्ति निव्वाणी अच्चुआ धरणी, वैरुटदत्ता गंधारी
अघ हरणी, अंब पउमा सुख करणी; सिद्धाई शासन रखवाली, कनक विजय बुध आनंदकारी, जसविजय जयकारी. ४
(146) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वीर जगतपति जन्मज थावे, नंदन निश्रित शिखर सुहावे, आठ कुमारी गावे; अड गजदंता हेठे वसावे, रुचकगिरिथी छत्रीश जावे, दीप रुचक चउ भावे; छप्पन्न दिगकुमरि हुलरावे, सूती करम करी निज घर जावे, शक्र सुघोषा वजावे; सिंहनाद करी ज्योतिषी आवे, भवन व्यंतर शंख पडहे मिलावे, सुरगिरि जन्म मल्हावे. १ रुषभ तेर चंद्र सात कहीजे, शांतिनाथ भव बार सुणीजे, मुनिसुव्रत नव कीजे; नव नेमीश्वर नमन करी जे, पास प्रभुना दश समरी जे, वीर सत्तावीश लीजे; अजितादिक जिन शेष रहीजे, त्रण्य त्रण्य भव सघले ठवीजे, भव समकित थी गणीजे; जिन नामबंध निकाचित कीजे, त्रीजे भवतप खंती धरीजे, जिनपद उदये सीजे. २ आचारांग आदे अंग अग्यार, उववाई आदे उपांग ते बार, दश पयन्ना सार; छ छेदसूत्र विचित्र प्रकार, उपगारी मूलसूत्र ते चार, नंदी अनुयोग द्वार; ओ पिस्तालीश आगम सार, सुणतां लहीये तत्व उदार, वस्तु स्वभाव विचार; विषय भुजंगिनी विष अपहार, ओ समो मंत्र नको संसार, वीर शासन जयकार. ३ नकुल बीजोरु दोय कर झाली, मातंग सुर कंती तेजाली, वाहन गज शुंढाली; सिंह उपर बेठी रढीयाली, सिद्धायिका देवी लटकाली, हरितामा चार भुजाली; पुस्तक अभया जिमणे झाली, मातुलिंगने वीणा रसाली, वाम भुजा नहीं खाली; शुभ गुरु गुण ध्यान घटाली, अनुभव नेहरों देती ताली, वीर वचन टंकशाली. ४
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(147) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति महावीर जिणंदा, राय सिद्धार्थ नंदा, लंछन मृगेंदा, जास पाये सोहंदा; सुर नर वर इंदा, नित्य सेवा करंदा; टाले भव फंदा, सुख आपे अमंदा. १ अड जिनवर माता, मोक्षमां सुख शाता, अड जिननी ख्याता स्वर्ग त्रीजे अख्याता; अड जिनप जनेता, नाक महेंद्र याता. सवि जिनवर नेता, शाश्वता सुख देता. २ मल्ली नेमी पास, आदि अठ्ठम खास, करी ओक उपवास, वासुपूज्य सुवास, शेष छठ्ठ सुविलास, केवलज्ञान जाश, करे वाणी प्रकाश, जेम अज्ञान नाश. ३ जिनवर जगदीश, जास मोटी जगीश, नहि रागने रीश, नामीये तास शीश; मातंग सुर इश, सेवतो राति दीस, गुरु उत्तम अधीश, पद्म भाखे सुशीश. ४
(148) -श्री महावीरस्वामीनी स्तुति संसार दावानल समावे, जिम पुष्करावर्ते नीरोजी, भवभव संचित करम कठीनजर, हरवा सार समीरोजी, कपटकोट गिरवा गोली माया, मही विदारण सीरोजी, सिद्धारथ सुत त्रिशलानंदन, वीरजिन साहस धीरोजी....१ सकल सुरासर सुरगिरि आवी, सकल जिणंद नवराव्यांजी, देवविबुध ते साचा जाणो, निज सयल कर्म हरायाजी, कनक कळश जळ भरीने ऊभा, जाणे भवोदधि तरीयाजी, पूजे प्रणमे राचे माचे, शिव वधूने वरवाजी....२ आठ पहोरनो पोसह करीने, आठम तिथि आराधोजी, पांच समिति त्रण गुप्ति आराधी, अष्ट महासिद्धि साधोजी, तप जप ध्यान धरता भविजन, आठ करमने साधोजी, श्री आगम आराधी पामो, शिवसुख सार अगाधोजी....३ मातंग जक्ष महिमावंत मोटो, महिमंडलम गाजे जी, श्री सिद्धाइ कमलवासिनी, नयन कमले अति राजेजी, मुखकमल देखीने लाज्यो, चंदो दूरे माजेजी, श्री रूपविजय मुनि माणेक संघना, सारे वांछित काजजी...४
(149) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति सिद्धारथ कुल मुगट नगीनो, त्रिशला राणीए जायोजी, छप्पन दीशी कुमरी करी महोत्सव, गीत मनोहर गायाजी, हरी हरखे महोत्सव करी मेरु गीरी, आनंद अंग न मायजी, जय जय करी जननी घर मेली, प्रणमी
विदारण सीरोजी, सिद्धार आवी, सकल जिनक कलश जल
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प्रमोदीत थायजी, १ एक कोडीने साठ ज लाख, शृंगार उदके भरीयाजी, चंगेरी स्वस्तिक आठे अष्ट, मंगल आगल धरीयाजी, एणी परे महोत्सव करी अनुपम, चोवीश जिननां सूराजी, अट्ठाइ महोत्सव करी नंदीधर ठाम गया पून्य पूराजी, २ ज्ञान आराधो ज्ञानने साधो, ज्ञान विना नर ,गोजी, ज्ञान विना नर भूला भमतां, कासकुसुम पर शृंगांजी, कृत्य अकृत्य जीव साधन जाणे, जो हृदये ज्ञान दीवोजी, ज्ञान विना कोई पार न पामे, ज्ञानी पुरुष चिरंजीवोजी, ३ स्वर्गवासी स्वर्गभूवननी, गलेमोतीनी मालाजी, मातंग देवी सिद्धाई, वीर शासन रखवालीजी, संकट चूरे वंछितपूरे, देवी त्रुठी दयालीजी, धीर विमल कवि सानिध्यकारी, विशुद्ध देवी मयालजी, ४
(150) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वीर जिनेसर गुण गंभीर, गोयम जास वडो वजीर, मेरु समो वडधीर, टालण भवदुःख भव्य गंभीर, वाणी विषानल निर्मळनीर, वंदुश्री महावीर, १ अतीत अनागतने वर्तमान, तीर्थंकर प्रममुं बहुमान, राखी निर्मल ध्यान, सित्तेर सो उत्कृष्टाकाले, विहरमान वीश सुविशाले, वंदु हुं तिहुं काले, २ अंग अग्यारने बार उपांग, दश पयन्ना अतिही सुयंग, छ छेदे ग्रंथ उत्तंग, मुल सूत्र भण्या छे चार, सुणतां लहीए भवनो पार, नंदि अनुयोग द्वार, देवी सिद्धाइ समकित धारी, जिन शासननी छे रखवाली, श्री संघने सानिध्यकारी, भावे वंदो नरने नारी. जेम पामीजे संपत्ति सारी, राज विजय जयकारी, ४
(151) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति ___ वीर जिनेश्वर साहिब साचो, दिवाळी दीन जपीयेजी, दुःख दोहग दौर्भाग्य ते हरे, पाप ताप सवि खपीयेजी, मिथ्यात्व छंडी सुमतिमाही, हेला हेजे हसीयेजी, परमेश्वर प्रभु प्रगट, पदने परमानंद परखोजी, १ सोल पहोरनी देशना सुंदर, सुणीये राय अढारजी, करूणा सागर करुणा नागर, नमीये ते नर नारीजी, वंदो भावे दुःख नावे, पामे सुख भवि प्राणीजी, त्रिशलानंदन जगजीवन, चोवीशे गुण खाणीजी, २ तिथि अमास ए कार्तिक वदनी, वीरे सवि दुःख काढ्याजी, पुठ्या प्रभुए एकावन, छत्रीश उत्तर आप्याजी, मोक्षे पहोंच्या ते वयणां कहेता, देवे दिवा कीधाजी, भव्य
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लोकना थोक सुणीने, सकल मनोरथ सिद्धाजी, ३ ते दीनथी प्रगटी दिवाळी, सर्वजग प्रसिद्धजी, सर्व साथ जाप जपीए दोय, सव पारंग ताय वर्धिजी तपगच्छ तिलक विजय गुरुपंडित, नेमिविजय हितकारीजी, श्री शुभविजय सूरि पद सेवक, जय विजय गुण गायाजी, | ४ |
(152) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति जय जयकर जिन दिपक जिनवर, शासन नायक वीरजी, कल्याणकारी कल्याण वरणी, सुरत शाश्वत धीरजी, निज लब्धे अष्टापद करी, गौतम पीरसे खीरजी, पन्नरसें तापस जमाडी, आप्या केवल चीरजी, १ दिवाळी दीन सार सुधारस, सुणो भविक तुमे प्राणीजी, पडवेने दीन गौतम गणधर, हुआ केवलनाणीजी, उत्सपीणी अवसपीणी आरे, पहेला छेल्लाजिन जाणीजी, अतीत अनागतने वर्तमान, जिन दिवाळी कल्याणीजी, २ दिवाळी दिन स्वाति नक्षत्रे, पाम्या पद निर्वाणजी, महावीर स्वामी पारंगताय, गौतम सर्वज्ञाय जाणजी, सोळ पहोरनो पोसह करीने, छठ्ठ तप लाख गणीजे जी, नवकार वाळी वीस गणीजे, पंच वर्षे जाणीजे जी, ३ आरंभ समारंभ पाप निवारण, मनमंदिरमां धरीजे जी, राग द्वेष मद मत्सर हरीने, तेहमांहि तरीजेजी, संवेगादिक सुखलडी खाजो, ज्ञान दीवा अजवाळीजी, मातंग यक्ष सिद्धाइ कहे छे, माणेक भाव दिवाळीजी, ४
. (153) श्री पर्युषणनी स्तुतिः सत्तर भेदी जिन पूजा रचीने, स्नात्र महोत्सव कीजेजी, ढोल ददामा मेरी नफेरी, जल्लरीनाद सुणीजेजी; वीरजिन आगे भावना भावी, मानव भवफल लीजेजी, पर्व पजुसण पूरव पूण्ये, आव्या अम जाणीजेजी. १ मास पास वली दसम दुवालस, चत्तारी अठ्ठ किजेजी; उपर वळी दस दोय करीने, जिन चोवीशे पूजीजेजी; वडा कल्पनो छठ्ठ करीने, वीर वखाण सुणीजेजी. पडवेने दिन जन्म महोत्सव, धवळमंगळ वर्तीजेजी. २ आठ दिवस लगे अमर पळावी. अठ्ठमनो तप कीजेजी. नाग केतुनी परे केवल लही), जो शुभ भावे रहीओजी, तेलाधर दिन त्रण कल्याणक, गणधर वाद वदीजेजी, पास नेमिसर अंतर त्रीजे, ऋषभ चरित्र सुणीजेजी. ३ बारसासूत्र ने
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समाचारी, संवत्सरी पडिक्कमीओजी; चैत्यप्रवाडी विधिशुं कीजे, सकल जंतुने खामीजेजी; पारणाने दिन स्वामीवत्सल, कीजे अधिक वडाईजी, मानविजय कहे सकल मनोरथ, पूरे देवी सिद्धाईजी. ४
(154) श्री पर्युषणनी स्तुतिः ___जिन आगम चउ परवी गाई, त्रण चोमासा चार अठाई, पजुसणपर्व सवाई; ओ शुभदिनने आव्या जाणी, उठो आळस छंडी प्राणी, धर्मनी नीक मंडाणी; पोसह पडिक्कमणा करो भाई, मासखमण पासखमण अठाई, कल्प अठ्ठम सुखदाई; दान दया देवपूजा गुरुनी, वाचना सुणीजे कल्पसूत्रनी, आज्ञा वीर जिनवरनी. १ सांभळी वीरनुं चरित्र विशाल, चउद स्वप्ने जन्म्या उजमाळ, जन्म महोत्सव रसाळ; आमलक्रिडाओ सुरने हराव्यो, दीक्षा लई केवळ उपजाव्यो, अविचळ धामसें भाव्यो; पास नेमि संबंध सांभळीये, चोवीश जिनना अंतर सुणीये, आदि चरित्र सांभळिये. २ वीरतणां गणधर अग्यार, थविरावलीनो सुणो अधिकार, ओ करणी भवपार; अषाडीथी दिन पचास, पजुषण पडिक्कमणुं उल्लास, सीत्तेरदिन चउमास; समाचारी साधुनो पंथ, वरते जयणाजे निग्रंथ, पाप न लागे अंश; गुरु आणाओ मुनिवर राचे, रागी घरे जई वस्तु न जाचे, चाले मारग साचे. ३ विगई खावानो संच न आणे, आगम सांभलतां सहु जाणे, श्री वीर जिन वखाणे; कुंभार कानमां कांकरी चंपे, पीडाओ क्षुल्लकपणुं कंपे, मिच्छामि दुक्कडं जंपे; ओम जे मन आमलो नवी छोडे, आ भव परभव दुख बहु जोडे, पडे नरकनी खोडे; आराधिक जे खमे खमावे, मन शुद्धे अधिकरण समावे, ते अक्षय सुख पावे; सिद्धाइका सूरी सानिधकारी श्री महिमाप्रभसूरी गच्छधारी, भावरतन सुखकारी. ४
(155) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पुण्यवंत पोशाळे आवे, पर्व पजुषण आव्या वधावे, धर्मना पंथ चलावे; घांचीनी घाणी छोडावे, जीव बंधननी जाळ तोडावे, बंदिवान खोलावे; आठ दिवस लगे अमर पळावे, स्वामीवच्छल मेरु भरावे, जिनशासन दिपावे; पोसह पडिक्कमणा चित्त धारे, क्रोध कषाय अंतरथी वारे,
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वीरजीनी पूजा रचावे. १ पुस्तक लई रात्रिजगो कीजे, गाजंते वाजंते गुरु हस्ते दीजे, गहुंली सुवासण कीजे; कल्पसूत्र प्रारंभे वखाण्युं, वीर जन्म दिन सहुको जाण्युं, नीशाळगरणा टाणुं; खांड पडा पेंडा पतासा, खांडना खडी आने नाळीयेर खासा, प्रभावना उल्लासा; वीर तणो पहेलो अधिकार, पास नेमिसर अंतर सार, आदि चरित्र चित्त धार. २ जंबू पाटे प्रभव गुण भरीया, श्री शयंभव जेणे उद्धरीया, यज्ञ थकी ओसरीया; कोष्या धेर चोमासु कीधुं, अखंड शियलनुं दान ज दीधुं, स्थूलभद्र नाम प्रसिद्धुं; पारणे गाया हालरडां, सांभळतां सूत्र पाटे ठवीया, वयरस्वामी शुभ वरीया; अम स्थविरावली भाखीये जेह, सोहमस्वामी चिंतामणी जेह, कल्पमां सुणीओ अह. ३ कसब मसरु ने पाठां रुमाल, पूजीओ पोथी ने ज्ञान विशाळ, ठवणी सहेज संभाळ; वळी पूजा कीजे गुरु अंग, संवत्सरी दिन मनने रंग, बारसे सुणो अक अंग, सासु जमाईना अडीयाने दडीया, समाचारी मांहे सांभलीया, खामणे पाप ज टलिया, श्री भावलब्धिसूरी कहे ओ करणी, श्री पद महेल चडण नीसरणी, सिद्धायिका दुःखहरणी. ४
(156) श्री पर्युषणनी स्तुतिः
पर्व पजुसण पुन्ये किजे, सत्तरभेदी जिन पूजा रचीजे, वाजींत्र नाद सुणीजे; प्रभावना श्रीफलनी कीजे, याचक जनने दान ज दीजे, जीव अमारी करीजे; मनुष्य जन्मफल लाहो लीजे, चोथ छठ्ठ अठ्ठम तप कीजे; स्वामीवत्सल कीजे; अम अठ्ठाई ओच्छव कीजे, कल्पसूत्र घेर पधरावीजे, आदिनाथ पूजीजे. १ वडा कल्प दिन धुर मंडाण, दश कल्प आचार प्रमाण, नागकेतु वखाण; पछी करीओ सूत्र मंडाण, नमुथ्थुणं होय प्रथम वखाण, मेधकुमार अहिठाण; दश अच्छेरानो अधिकार, इंद्र आदेशे गर्भ परिहार, देखे सुपन उदार; चोथे स्वप्ने बीजुं सार, स्वप्नपाठक आव्या दरबार, ओम त्रीजु जयकार. २ चोथे वीर जन्म वखाण, दिशी कुमरी सवी इन्द्रनी जाण, दीक्षा पंच वखाण; पारणा परिसह तप ने दान, गणधर वाद चोमासुं परिमाण, तव पाम्या निर्वाण; से छठ्ठे वखाणे कहीओ, तेलाधर दिवसे अम लहिओ, वीरचरित्र ओम सुणीओ; पास नेमिजिन अंतर साथ, आठमे ऋषभ थीर अवदात, सुणता दीओ शिव साथ. ३ संवच्छरी दिन सहु नरनारी,
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बारसें सूत्र ने समाचारी, निसुणे अठ्ठम उदारी; सुणीओ गुरु पट्टावली सारी, चैत्यप्रवाडी अति मनोहारी, भावे देव जुहारी; साहमी खमत खामणा कीजे, समतारस मांहे झीली जे, दान संवच्छरी दीजे; श्री चक्केश्वरी सानिध्य कीजे ज्ञानविमल ओम गणी जे, सुजस महोदय लीजे. ४
(157) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पुन्यनुं पोषण पाप, शोषण, पर्वपजुसण पामीजी; कल्प घरे पधरावो स्वामी, नारी कहे शीरनामीजी; कुंवर गयवर खंध चढावी, ढोल नीसान वजडावोजी; सद्गुरु संगे चढते रंगे, वीर चरित्र सुणावोजी. १ प्रथम वखाणे धर्म सारथी पद, बीजे सुपना चारजी; त्रीजे सुपन पाठक वली चोथे, वीर जनम अधिकारजी; पाचमे दिक्षा छठे शिवपद, सातमे जिन त्रेवीशजी, आठमे थिरावली संभळावो, पिउडा पूरो जगीशजी. २ छठ अठ्ठम अट्ठाई कीजे, जिनवर चैत्य नमीजेजी; वरशी पडिक्कमणु मुनि वंदन, संघ सयळ खामीजेजी; आठ दिवस लगे अमर पळावी, दान सुपात्रे दीजेजी; भद्रबाहु गुरु वयण सुणीने, ज्ञान सुधारस पीजेजी. ३ तीरथमां विमळाचळ गीरीमां, मेरु महिधर जेमजी; मुनिवर मांही जिनवर मोटा, पर्वपजुसण तेमजी; अवसर पामी साहम्मी वच्छल, बहु पकवान वडाईजी; खीमाविजय जिन देवी सिद्धाई, दीन दीन अधिक वधाईजी. ४
(158) श्री पर्युषणनी स्तुतिः "णि रचित सिंहासन, बेठा जगदाधार; पर्युषण केरो, महिमा अगम अपार; निज मुखथी दाखी, साखी सुरनर वृंद; अ पर्व पर्वमां, जिम तारामां चंद. १ नाग केतुनी परे, कल्प साधना किजे; व्रत नियम आंखडी, गुरु मुख अधिकी लीजे; दोय भेदे पूजा, दान पांच प्रकार; कर पडिक्कमणां धर, शीयल अखंडीत धार. २ जे त्रिकरण शुद्धे, आराधे नव वार; भव सात आठ, शेष तास संसार; सहु सूत्र शिरोमणी, कल्पसूत्र सुखकार; ते श्रवणे सुणीने, सफल करो अवतार. ३ सहु चैत्य जुहारी, खमतखामणा कीजे; करी साहम्मी वत्सल, कुगति द्वारपट दीजे; अठ्ठाई महोत्सव, चिदानंद चित्त 'लाई; इम करतां संघने, शासन देव सहाई. ४
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(159) श्री पर्युषणनी स्तुतिः वरस दिवसमां अषाड चोमासुं, तेमां वळी भादरवो मास, आठ दिवस अति खास; पर्व पर्युषण करो उल्लास, अछाई धरनो करो उपवास, पोषह लीजे गुरु पास; वडा कल्पनो छठ करीजे, तेह तणो वखाण सुणीजे; चौद सुपन वांचीजे; पडवेने दिन जन्म वंचाय, ओच्छव महोच्छव मंगल गाय, वीर जिणेसर राय. १. बीज दिने दीक्षा अधिकार, सांज समय निर्वाण विचार, वीर तणो परिवार; त्रीज दिने श्री पार्थ विख्यात, वळी नेमिसरनो अवदात, वळी नव भवनी वात; चोवीश जिन अंतर ठेवीश, आदि जिनेश्वर श्रीजगदीश, तास वखाण सुणीश; धवळ मंगळ गीत गहुंली करीए, वली प्रभावना नित अनुसरीए, अठ्ठम तप जय वरीए. २. आठ दिवस लगे अमर पळावो, तेह तणो पडहो वजडावो, ध्यान धरम मन भावो; संवत्सरी दिन सार कहेवाये, संघ चतुर्विध भेळो थाय, बारशे सूत्र सुणाय; थिरावली ने समाचारी, पट्टावली प्रमाद निवारी, सांभळजो नरनारी; आगम सूत्रने हुं प्रणमीश, कल्पसूत्र शुं प्रेम धरीश, शास्त्र सर्वे सुणीश. ३. सत्तरभेदी जिन पूजा रचावो, नाटक केरा खेल मचावो, विधिशुं सात्र भणावो; आडंबरशुं देहरे जईए; संवत्सरी पडिक्कमणुं करीए, संघ सर्वने खमीए, पारणे साहम्मिवच्छल कीजे, यथाशक्ति दानज दीजे, पुण्य भंडार भरीजे; श्री विजय क्षेमसूरी गणधार, जशवंत सागर गुरु उदार जिणिंदसागर जयकार. ४.
(160) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पर्व पर्युषण पुण्ये पामी, परिमल परमानंदोजी, अति ओच्छव आडंबर सघले, घर घर बहु आनंदोजी, शासन अधिपति जिनवर वीरे, पर्व तणां फल दाख्याजी; अमारी तणो ढंढेरो फेरी, पाप करंता वार्याजी. १ मृगनयनी सुंदरी सुकुमाळी, वचन वदे टंकशाळीजी; पूरो पनोता मनोरथ मारा, निरुपम पर्व निहाळिजी; विविध भाति पकवान्न करीने, संघ सयल संतोषीजी; चोवीशे जिनवर पूजीने, पुण्य खजानो पोषोजी. २ सकल सूत्र शिर मुगट नगीनो, कल्पसूत्र जग जाणोजी; वीर पास नेमिधर अंतर, आदि चरित्र वखाणोजी, स्थविरावळीने समाचारी, पट्टावळी गुण गेहजी; ओम ओ सूत्र
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सविस्तर सुणीने, सफल करो नर देहजी. ३ ओणिपरे पर्व पर्युषण पाळी. पाप सर्वे परिहरिओजी; संवत्सरी पडिक्कमणुं करतां, कल्याण कमळा वरीओजी; गोमुख जक्ष चक्केश्वरी देवी, श्री माणीभद्र अंबाईजी, शुभविजय कवि शिष्य अमरने, दिन दिन करजो वधाईजी. ४
(161) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पर्व पजुसण सर्व सजाई, मेलवीने आराधोजी, दान शील तप भावने भेली, सफल करो भव लाधोजी; तत्क्षण अह पर्वथी तरीये, भवजल जेह अगाधोजी, वीरने वांदि अधिक आणंदी, पूजी पूण्ये वाधोजी. १ ऋषभ नेमपास परमेसर, वीर जिणेसर केरांजी. पांच कल्याणक प्रेमे सुणीओ, वली आंतरा अनेराजी; वीशे जिनवरना जे वारि, टाले भवना फेराजी, अतित अनागत जिनने नमिये, वली विशेष भलेराजी. २ दशाश्रृत सिद्धांत मांहेथी, सूरिवर श्री भद्रबाहुजी, कल्पसूत्र उद्धारी संघने, करी उपगार ते साहुजी; जिनवर चरित्र ने श्री समाचारी, स्थिविरावली उमाहोजी, जाणी अहनी आण जे लहेशे, लेशे ते भव लाहोजी. ३ चउथ्थ छठ्ठ अठ्ठम अट्ठाइ दश पंदरने त्रीशजी, पीस्तालीश ने साठ पंचोत्तेर, ईत्यादिक सुजगीशजी; उपवास अता करी आराधे पर्व पजुसण प्रेमजी, शासन देवी विघन तसु वारे, उदय वाचक कहे अमजी.४
(162) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पामी पर्व पजुसण सार, सत्तरभेदी जिनपूजा उदार, करीओ हरख अपार; सद्गुरु पास धरी बहु प्यार, कल्पसूत्र सुणीजे सुखकार, आळस अंग उतार; धरमसारथीपद सुपना चार, सुपनपाठक आव्या दरबार, वीरजनम अधिकार; दिक्षाने निर्वाणविचार, षट् व्याख्यान अनुक्रमे धार, सुणतां होय भवपार. १ नमि सुव्रत मल्लिअर कंत, कुंथु शांति ने धर्म अनंत, विमल वासुपूज्य संत; श्री श्रेयांस शीतळ भगवंत, सुविधि चंद्र सुपार्थ भदंत, पद्म सुमति अरिहंत; अभिनंदन संभव गुणखाण, अजितनाथ पाम्या निरवाण, ओ वीश अंतर मान; पास नेमिसर जगदिशान, ऋषभचरित्र कर्वा प्रधान, सातमुं ओह वखाण. २ आठमे गणधर स्थविर गणीजे, नवमे बारसा समाचारी लीजे, नव वखाण सुणीजे; चैत्यपरिपाटी विधिशुं कीजे, यथाशक्तिले तप
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तपीजे. आश्रव पंच तजीजे; भावे मुनिवरने वंदिजे, संवच्छरी पडिक्कमj कीजे, संध सकल खामीजे; आगमवयण सुधारस पीजे, शुभकरणी सवि अनुमोदिजे, नरभव सफल करीजे. ३ मणिमां चितामणी सार, पर्वतमां जिम मेरु उदार, तरुमां जिम सहकार; तीर्थंकर जिम देवमां सार, गुणगणमां समकित श्रीकार, मंत्र मांही नवकार; मतमां जिम जिनमत मनोहार, पर्वपजुसणमां तेम विचार, सकल पर्व शिणगार; पारणे स्वामिभक्ति प्रकार, माणेक विजय विघन अपहार, देवी सिद्धाई जयकार. ४
(163) श्री पर्युषणनी स्तुतिः एक पनोति पद्मिणि पभणे, सुणीकंता सुविचारोजी, परव पर्युषण एजो आव्या, कीजे करणी सारोजी, प्रेमे पनोता पूजा रचावो, परिमल पुन्य संभारोजी, प्रथम जिनेश्वर पूजी प्रणमी, दुर्गतिना दुःख वारोजी, १ छठ्ठ अठ्ठम पांचने अठ्ठाई, दशम दुवालस वारोजी, पासखमणने सोलह सारा, मासखमण मनोहारजी, इणिपरे दुःसह बहुतप तपीए, सेवा सुगुरुनी कीजेजी, जिन चोवीशीए चंदन चरची, नरभव लाहो लीजे जी, २ अंगे उलट अति घणां आणी, आतमना आधारोजी, कल्पसूत्र सवि नगीनो, सुणतां भवनो पारोजी, ते आपणे घेर पधरावो, धवल मंगल गवरावोजी, सात क्षेत्रे बहु धन खरची, जीव अमारी पलावोजी, ३. ओढण आर्छ छायल छाजे, पहिरण नव अंग फालीजी, सुगति चाले चंपक वरणी, संघ सयल रखवालीजी, तपीयां साहुनी समृद्धि करजो, सा चकेश्वरी देवीजी, विबुध विवेक विजय पद सेवी, पद्म कहे प्रणमेवीजी, ४
___ (164) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पर्वोमां पर्युषण राजा, तीर्थमां सिद्धगिरि राजेजी, सुरनरमां जेम इंद्रने चक्री, तरूगुण सुरतरू छाजेजी, आ उपमांथी अधिक छे गुणधर, पर्व अपूर्व ताजोजी, आंगीने पूजा वीर प्रभुनी, रचीये शुभ मन भाजोजी, १ ऋषभ प्रभुने श्री वर्धमान, तीर्थ जीवना स्वभावोजी, सरलजड ने वक्रजड ते, त्रण दृष्टांत ने भावोजी, बावीस जिनपति वारे, चेतन, बुद्धिवंत सद्भावोजी, जन्मकृतारथ कारण तिरथ, स्थावर जंगमध्यावोजी, २ कल्पसूत्रमा त्रण
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अधिकारे, जिन दृष्टांतने थुणीएजी, स्थविरावलीने समाचारी, परम मांगलीकने सुणीएजी, एक वीश वखते एक ज चित्ते, सकल कर्मने लुणीएजी, महिमां वंतो अपरंपार, सुत्र शिरोमणी सुणीएजी, ३ गुरूगम विधिए पर्व आराधे, थई आराधो धुरेजी, छठ्ठ अठ्ठमने विविध तपथी, रही अंतरमल दूरेजी, खमीए खमावीए सकल जीवने, विघ्न संकट तसचुरेजी, जक्ष मातंगने देवी सिद्धाइ, आतमलब्धि भरपुरेजी, ४
(165) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पर्व पजुशण पुण्ये पामी, श्रावक करे मे करणीजी, आठे दिन आचार पलावे, खांडण पीसण घरणीजी; सूक्ष्म बादर जीव न विणासे, दया ते मनमां जाणेजी, वीर जिनेसर नित्य पूजीने; शुद्ध समकित आणेजी. १ व्रत पालेने धरे ते शुद्ध, पाप वचन नवि बोलेजी, केसर चंदने जिन सवि पूजे, भवभय बंधन खोलेजी; नाटिक करीने वाजिंत्र वगाडे, नर नारीने टोलेजी, गुण गावे जिनवरना इण विधि, तेहने कोईन तोलेजी. २ अठ्ठम भक्त करी लई पोसह, बेसी पौषध शालेजी, राग द्वेष मद मच्छर छांडी, कूड कपट मन टालेजी; कल्पसूत्रनी पूजा करीने, निश दिन धर्मे म्हालेजी, अहवी करणी करतां श्रावक, नरक निगोदादीक टालेजी. ३ पडिक्कमणुं करिये शुद्ध भावे, दान संवत्सरी दीजेजी, समकित धारि जे जिनशासन, रात दिवस समरीजेजी; पारण वेला पडिलाभीने, मन वांछित महोत्सव कीजेजी, चित्त चोखे पजुशण करशे, मन मान्या फल लेशेजी. ४
(166) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः ज्ञात्वाप्रश्नंतदर्थं, गणधरमनसः, प्राग्वदेद्वीरदेवः, अर्हत्सिद्धार्थ साधु, प्रभृतिनवपदान् सिद्धचक्रस्वरुपान्; ये भुव्याश्रित्य धिष्णां, प्रतिदिनमधिकं, संजपन्ते स्वभक्त्या, ते स्युः श्रीपालवच्च, क्षितिवरपतयः, सिद्धचक्रप्रसादात्. १ दुस्तीर्णं निस्तरीतुं, भवजलनिधिकं पाणीयुग्मे गृहीत्वा, यानेकान् कोटिकुम्भान्, कनकमणिमयान् षष्टिलक्षाभियुक्तान्; गंगासिन्धुह्रदानां, जलनिधितटत,स्तीर्थ-तोयेन भृत्वा, तत्सर्वाधीश्वराणां, सुरपतिनिकरा, जन्मकृत्यं प्रचकु; २ कुर्युदेवा-स्त्रिवप्रं, रजतमणिमयं, स्वर्णकान्त्याभिरामे, स्थित्वा स्थाने
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सुवाकयं जिनवर-पतयः, प्रावदन् यां च नित्यम्; तां वाचं कर्मकूपैः, सुनिपुणमतयः, श्रद्धयाये पिबन्ति, ते भव्याः शैवमार्गा, गमविधिकुशला, मोक्षमाशु प्रयान्ति; ३ देवी चक्रेश्वरी स्त्रग्, दधती ह्रदये, पत्तने देवकाख्ये, कामे मोक्षाभिकीर्णे, वीमलपदयुतैः, सिद्धचक्रस्य बीजे, श्रीमद्धर्षा दियुक्तै, विजयप्रभवरैर्वर्य रुपैप्ररुवै; ४
(167) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः विपुल कुशलमाला, केलिगेहं वीशाला, समविभवनिधानं, शुद्धमन्त्र प्रधानम् सुरनरपति सेव्यं, दिव्यमहात्म्यभव्यं, निहत-दुरितचक्रं, संस्तुवेसिद्धचक्रम् १ दमितकरणवाहं, भावतोयं कृताहं, कृतनिकृतविनाशं; पुरिताङ्गिव्रजाशं नमितजनसमाजं, सिद्धचक्रादिबिजं, भजति सगुणराजिः, सोङनिशं सौख्यराजी. २ विविधिसुकृतशाखो, भंगपत्रौघशाली, नयकुसुममनोज्ञः, प्रौढसंतत्फलाढ्यः; हरतु विनुवतां श्रीसिद्धचक्रंजनानां, तरुरिव भवता-पाः नागमः श्री जिनानाम् ३ जिनपति पद सेवा, सावधाना धूनानां, दुरितरिपु कदम्ब, कान्ताकान्ति दधानाः; ददतु तपति पुंसां सिद्धचक्रस्य नव्यं, प्रमदमिह रतानां रोहिणी-मुख्यदेव्यः. ४
(168) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः सिद्धचक्र वरपूजा कीजे, अहनिशि तेहनुं ध्यान धरीजे; ध्यान सार सहु किरियामांहि, तिणे आराधो भवि उच्छाहि १ अरिहंत सिद्ध सूरि प्रणमीये, पाठक मुनि दर्शनपद नमीये; ज्ञान चारित्र करो तप भविया, जिम लहो शाश्वत सुख गहगहियां २ आराधि पाम्या भव पार, मयणा ने श्रीपाल उदार; सुणीये तास चरित्र रसाल, जिम लहो शिवसुख मंगलमाल ३ विमलेसर सुर सानिध्यकारी, मनवांछित पूरे निरधारी; पद्मविजय कहे तप श्रीकार करतां लहीये जयजयकार. ४
(169) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः वीर जिनेश्वर अति अलवेसर, गौतम गुणना दरियाजी, ओक दिन आणा वीरनी लईने, राजग्रही संचरियाजी; श्रेणिक राजा वंदन आव्या, उलट मनमां
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आणीजी, पर्षदा आगल बार बिराजे, हवे सुणो भवि प्राणिजी. १ मानव भव तुम पुन्ये पाम्या, श्री सिद्धचक्र आराधोजी, अरिहंत सिद्ध सूरि उवज्झाया, साधु देखी गुण वाधोजी; दरिसण नाणचारित्र तप कीजे, नवपद ध्यान धरीजेजी, धूर आसोथी करवा आंबिल, सुख संपदा पामीजेजी. श्रेणीकरायगौतमने पूछे, स्वामी ! ओ तप कोणे कीधोजी, नव आंबिल तप विधिशुं करतां, वांछीत सुख कोणे लीधोजी, मधुर ध्वनी बोल्या श्री गौतम, सांभळो श्रेणीकराय वयणाजी, रोग गयो ने संपदा पाम्या, श्री श्रीपाळने मयणाजी. ३ रुमझुम करती पाये नेउर, दीसे देवी रुपालीजी, नाम चक्केसरीने सिद्धाई, आदि जिनवर रखवालीजी; विध कोड हरे सह संघना, जे सेवे अना पायजी, भाणविजय कवि सेवक नय कहे, सानिध्य करजो मायजी. २
(170) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः त्रिगडे बेठा त्रिभुवन नायक, वीर वदे अम वाणीजी, श्री श्रीपालतणी परे सेवो, सिद्धचक्र गुण खाणीजी; अरिहंत आदि सिद्ध आचारज, उवज्झाय उलट आणीजी, साहु दंसण नाण चारित्र तप, इति नवपद जाणीजी. १ आसो चैत्र शुद सातमथी, नव आयंबिल पच्चख्खीओजी, पडिक्कमणा दोय त्रिकाल पूजी, देववन्दन त्रण कीजेजी, पद ओकेकुं प्रतिदिन मन शुद्धे, तेर हजार गुणीजेजी, चोवीश जिननी सेवा करीने, नरभव लाहो लीजेजी. २ नवदिननी नव ओली करतां, आयंबिल अक्याशी थायजी, साडाचार वरसे उजमणुं करीने, तेहने सवी सुख दाईजी. श्री सिद्धचक्रना न्हवणजलथी, कोढ अढार पलायजी, सकल शास्त्र शिरमुकुट नगीनो, अंगे सुणो चित्त लाईजी. ३ मातंग यक्ष प्रभु पद सेवे, उलट आणी अंगेजी, श्री सिद्धचक्रनी ओळी करता, विन हरे मन रंगेजी. हंसविजय गुरु पंडित पुंगव, चरण सरोरुह भंगजी, धीरविमल बुध मंगलमाला, सुख संपत्ति लहे अंगेजी. ४
(171) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः सिद्धचक्र आराधो प्राणी, आणी आणंद पूर जी, वंछित पूरण सुरतरु सरीखो, विघ्न करे सवि दूर जी; आसोमास चैत्री दिन नव नव, ओली आंबिल कीजे जी, मयणासुंदरी श्रीपाल तणी परे, सुर नर सुख शिव लीजे
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जी. १ ऋषभादिक जिन चैत्य जुहारो, पूजा विविध प्रकार जी, उभय टंक आवश्यक पडिलेहण, देव वंदो त्रण वार जी; नित्य नित्य पद अकेकुं गणीओ, नवकारवाली वीस जी, इण परे नवपद ध्यान धरंता, लहीये सयल जगीस जी. २ अरिहंत सिद्ध आचारज वाचक, साधु सदा गुणवंता जी, दंसण नाण चरण तप जपता, प्रगटे गुण अनंताजी; ओ नवपद महिमा जयवंतो, विरजिनेसर आखे जी, ध्यातां ध्येय पदवीने पामे, अक्षयलीला चाखे जी. ३ सिद्धचक्रनो सेवक कही), श्री विमलेश्वरयक्ष जी, रोग शोग दुःख दोहग पीडा, शान्ति करे प्रत्यक्ष जी; भवियण प्राणी जे गुणखाणी, ते नवपद आराधे जी, रत्नविजय कहे उत्तम पदवी, भोगवी सुखीया थाये जी. ४
(172) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः । सकल सुरासुर नर विद्याधर, भक्ति थकी जे थुणियेजी; वांछित पूरण सुरतरु हुंती, अधिकी महिमा सुणीये जी; रोग शोग सवि संकट चूरण, जस गुण पारन मुणियेजी, सिद्धचक्र गुण भवियण अहनिश, नित नित मुखथी गुणीयेजी. १ कंचन कोमल वरणी केई, घन शामल रुचि देहाजी. कइंक स्फटिक परवाला रुचिवर, पंच वरण गुण गेहाजी, सत्तरी सय भरतैरावत, पंच पंच महावीदेहा जी; सिद्धचक्रनो ध्यानज ध्यावो, कर्म थया थाशे छेहाजी २ अरिहंत सिद्ध आचारज वाचक, साधु तणा समुदायजी; दर्शनज्ञान चारित्र तप निर्मल, नवपद शिवपद दायजी, सिद्धचक्रनो महिमा दाख्यो, शिवसाधन निपायाजी; अह विना अवर दूजो नवि लहीये, जस गुण कहयांन जायजी; ३ विमलयक्ष सुर सानिध्य कारी, ग्रह ग्रण सवि दिशी पालाजी; चक्केसरी अमरीने दिसि कुंमरी, श्रुत देवी रखवालाजी; सिद्धचक्र मंत्र अधिकारी, टाले मोहना चालाजी, ज्ञान विमल प्रभु आप वहंता, करता मंगल मालाजी; ४
- (173) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः जिनशासन वंछित, पूरण देव रसाल, भावे भवि भणीये, सिद्धचक्र गुणमाल; तिहुंकाले अहनी, पूजा करे उजमाल, ते अजर अमर पद, सुख पामे सुविशाल. १ अरिहंत सिद्ध वंदो, आचारज उवज्झाय, मुनि दरिसण नाण, चरण तप समुदाय; जे नवपद समुदित, सिद्धचक्र सुखदाय, ओ
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ध्याने भविनां, भवकोटि दुःख जाय. २ आसो चैतरमां शुदी सातमथी सार, पूनम लगे कीजे, नव आंबिल निरधार, दोय सहस गणणुं, पद सम साडा चार, अकाशी आयंबिल, तप आगम अनुसार ३ सिद्धचक्रनो सेवक श्री विमलेसर देव, श्रीपालतणी परे; सुखपूरे स्वयमेव; दुःख दोहग नावे, करे अहनी सेव, श्री सुमति सुगुरुनो, राम कहे नित्यमेव. ४
जे
(174) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः
अरिहंत नमो वली सिद्ध नमो, आचारज वाचक साहु नमो; दर्शन ज्ञान चारित्र नमो, तप अ सिद्धचक्र सदा प्रणमो. १ अरिहंत अनंत थया था, वली भाव निक्षेपे गुण गाशे; पडिक्कमणां देववंदन विधिशुं, आंबिल तप गणुं गणो विधिशुं २ छहरी पाळी जे तप करशे, श्रीपाळतणी पेरे भव तरसे; सिद्धचक्रने कुण आवे तोले, अहवा जिन आगम गुण बोले. ३ साडा चार वरसे तप पूरो, अ कर्म विदारण तप शूरो; सिद्धचक्रने मनमंदिर थापो. नय विमलेसर वर आपो. ४
(175) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः
प्रह उठी वंदु, सिद्धचक्र सदाय. जपीओ नवपदनो, जाप सदा सुखदाय; विधिपूर्वक अ तप, जे करे थई उजमाल, ते सवि सुख पामे, जीम मयणा श्रीपाळ. १ मालवपति पुत्री, मयणा अति गुणवंत, तस कर्म संयोगे, कोढी तरियां मळीयो कंत; गुरुवयणे तेणे, आराध्युं तप ओह, सुख संपद वरियां, भवजल तेह. २ आयंबिल ने उपवास, छट्ट वली अठ्ठम, दश अठ्ठाई पंदर, मास छ मासी विशेष; इत्यादिक तप बहु, सहुमांहि शिरदार, जे भवियण करशे, ते तरशे संसार. ३ तप सानिध्य करशे, श्री विमलेश्वरयक्ष, सहु संघनो संकट, चूरे थई प्रत्यक्ष; पुंडरीक गणधार, कनकविजय बुध शिष्य, बुध दर्शन विजय कहे, पहोंचे सकल जगीश. ४
(176) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः
अंग देश चंपापुरी वासी, मयणा ने श्रीपाल सुखासी, समकितशुं मन वासी; आदि जिनेश्वरनी उल्लासी, भावे पूजा कीधी मन आसी, भाव धरी
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विश्वासी; गलित कोढ गयो तेणे नाशी, सुविधिशुं सिद्धचक्र उपासी, थया स्वर्गना वासी; आसो चैत्र पूरण वासी, प्रेमे पूजो भक्ति विकासी, आदि पुरुष अविनाशी. १ केसर चंदन मृगमद घोळी, हरखेशुं भरी हेमकचोळी, शुद्ध जळे अंघोळी; नव आंबिलनी कीजे ओळी, आसो शुदि सातमथी खोली, पूजो श्री जिन टोळी; चउगतिमाहे आपदां चोळी, दुर्गतिना दुख दूरे ढोळी, कर्म निकाचित तोडी; कर्म कषाय तणा मद मोडी, जेम शिव रमणी भमर भोळी, पाम्या सुखनी ओळी. २ आसो सुद सातमसु विचारी, चैत्री पण चित्तशुं निरधारी, नव आंबिलनी सारी; ओळी किजे आळस वारी, प्रतिक्रमण बे कीजे धारी, सिद्धचक्र पूजो सुखकारी; श्री जिनभाषित परउपकारी, नवदिनजाप जपो नरनारी, जेम लहिले मोक्षनी बारी; नवपद महिमा अति मनोहारी, जिन आगम भाखे चमत्कारी, जाउं तेहनी बलीहारी. ३ श्याम भ्रमर सम वीणा काळी; अति सोहे सुंदर सुकुमाळी, जाणे राजमराळी; जलहल चक्र धरे रुपाळी, श्री जिनशासननी रखवाळी; चक्केश्वरी में भाळी; जे ओ ओळी करे उजमाळी, तेनां विघ्न हरे सा बाळी, सेवक जन संभाळी; उदयरत्न कहे आसनवाळी, जे जिन नाम जपे जप माळी, ते घर नित्य दिवाळी. ४
(177) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः सिद्धचक्र सेवो सुविचार, आणी हैडे हर्ष अपार, जेम लहो सुख श्रीकार; मन शुद्धे नव ओळी कीजे, अहोनिश नवपद ध्यान धरीजे; जिनवर पूजा कीजे; पडिक्कमणां दोय टंकना कीजे, आठे थोये देव वांदिजे, भूमि संथारो कीजे, मृषा तणो कीजे परिहार, अंगे शील धरीजे सार, दीजे दान अपार. १ अरिहंत सिद्ध आचार्य नमीजे, वाचक सर्व साधु वंदीजे, दर्शन ज्ञान थुणीजे, चारित्र तप, ध्यान धरिजे, अहोनिश नवपद गुणणुं गणीजे, नव अंबिल पण कीजे; निश्चय राखीने मन इश, जपो पद ओक ओकने इश, नवकारवाळी वीश; छेल्ले आयंबिल पण कीजे, सत्तरभेदी जिनपूजा रचीजे, मानवभव फळ लीजे. २ सातसे कुष्टिना ओ रोग, नाठा न्हवण लइ संयोग. दूर हुआ कर्मना भोग; कुष्ठ अढारे दूरे जाय, दुःख दारिद्र सवि दूर पलाय, मन वांछित फल थाय; निर्धनीयाने दीओ बहु धन, अपुत्रीयाने पुत्र रतन, जो सेवे शुद्ध मन; नवकार समो नहि कोइ मंत्र, सिद्धचक्र समो नहि कोई
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यंत्र, सेवो भवियण अकांत. ३ जे सेव्यो मयणा श्रीपाल, उंबर रोग गयो तत्काल, पाम्या मंगळमाळ, श्रीपालतणी परे जे आराधे, तस घरे दिन दिन दोलतवाधे, अंते शिवसुख साधे; विमलेश्वर जक्ष सेवा. सारे, आपद कष्ट सवि दूर निवारे, दोलत लक्ष्मी वधारे, मेघविजय कविरायनो शिष्य, हइडे भाव धरी जगीश, विनयविजय निशदिश. ४
(178) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः ____ वीर जिनेसर भवनदिणेसर, जगदिसर जयकारीजी, श्रेणिक नरपति, आगल जंपे, सिद्धचक्र तप सारीजीः समकित दृष्टि, त्रिकरण शुद्धे, जे भवियण आराधेजी, श्री श्रीपाल, नरिंदपरे तस, मंगल कमला वाधेजी. १ अरिहंत विचें, सिद्धसूरि पाठक, साहु चिहुं दिशि सोहेजी; दंसण नाण, चरण तप विदिशें, अह नव पद मन मोहेजी; आठ पांखडी, ह्यदयांबुज रोपी, लोपी रागने रीशजी, ॐ ह्री पद ओक ओकनी गणीये, नवकारवाली वीशजी. २ आसो चैत्र शुदिसातमथी, मांडी शुभ मंडाणजी; नव निधिदायक नव नव आंबिल, ओम अकाशी प्रमाणजी; देव वंदन पडिक्कमणुं पूजा, स्नात्र महोत्सव चंगजी, अह विधि सघलो जिहां उपदेश्यो, प्रणमुं अंग उपांगजी. ३ तप पूरे उजमणुं कीजे, लीजे नरभव लाहोजी, जिनगृहपडिमा साहम्मिवत्सल, साधु भक्ति उत्साहजी; विमलेसर चक्केसरी देवी, सान्निध्यकारी राजेजी, श्री गुरु खिमाविजय सुपसाये, मुनि जिन महिमा छाजेजी. ४
(179) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः सिद्धचक्र यंत्रेश्वर सारो, मंत्र शिरोमणि जगदाधारो. प्रत्यक्ष चमकारो; अनुपमाणे अतिशयवंतो, गुणसमुद्रनो कोण लहे अंतो, त्रिभुवन महिमावंतो; मननी आधि तननी व्याधि, दूर करे भवनी उपाधि, पामे वंछित साधी, शांत दशा ने अकाग्रचित्ते, सकल कार्य करे शुभ रीते, पाप कर्मने जीते. १ देवतत्त्वमां दोय प्रसिद्धा, बार गुणो ने आठ समृद्धा, अरिहंतने प्रभु सिद्धा, सूरि पाठकने जे जग साधु, अढी द्वीपमां वळी आराधुं, त्रण इष्ट गुरु साधु; छत्रीश पचीश ने सत्तावीशी, सर्वोत्तम धर्मी गुणमणीशी, प्रणमो परमेष्ठी अधीशी, दर्शन सडसठ ज्ञान अकावन, चारित्र सीत्तेर पचास पावन, तपगुण
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चउधर्म स्थान. २ श्री जैनधर्मनुं शासन सार, मुनिचंद्रसूरी श्रुतोदधि पार, त्रिभुवन जन हितकार, चउद पूरवमा नवपद धार, श्रीपाल मयणा माटे उद्धार, आराधक जयकार, आसो चैत्र सुदी सातमथी, पुनम लगे आंबिल - तपथी, रहो शुद्ध जापना जपथी, स्नात्रपूजाने अष्टप्रकारी, दिन दिन भावना चढते अपारी, जस महिमा अपरंपारी. ३ प्रतिक्रमण करी शुद्ध भावे, दोय टंक पडिलेहण थावे, त्रिकाल देव वंदावे, गुण प्रमाणे खमासमणां देवो, स्वस्तिक फल नैवेद्यने ढोवो, नित नित प्रभु मुख जोवो; अकेक पदनी वीस जपमाला, गुरुगम विधिये करो विशाला, पर्वोमां शाश्वत वहाला, श्री विमलेश्वर सानिध्यकारी, चक्केसरीमा विघ्न विदारी, आत्मशक्ति जयकारी. ४
(180) श्री नवकार मंत्रनी स्तुति समरो भवियण श्री नवकार, महिमा जेहनो अगम अपार, कहेता नावे पार, चौद पुरवनो एह छे सार, गणि पट्टिका एह उदार, जपता जय जयकार अडसठ अक्षर एहना जाणो, संपदा आठथी जे परमाणो, नवपद शाश्वत ठाणो, हृदयकमलमां अक्षर स्थापी, उज्वल ध्यान करे अणलापी, थाये जग जस व्यापी.... १ मारग देशक श्री अरिहंत, अविनाशी श्री भगवंत, आचारज त्रीजे गुणवंत, विनयशील थीर सूत्र सज्झाय, चोथे पद नमूं श्री उवज्झाय, सहाय करे मुनीराय, बार आठ ने वळी छत्रीशसार, पचवीश सत्तावीश गुणधार, अष्टोत्तर शत निरधार, उज्चल अरूण पीत नील वखाणो, श्यामवर्ण क्रमे ए जाणो, सवि जिनवर सुप्रमाणो...२ श्वेत सुगंधी पुष्प लहीए, शुचि श्रद्धालुं एकभोजी थईए,, नात्र महोत्सव करीए, पांच हजार मंत्र दिन प्रति गणीए, वीश दिवसे एक लाखने, जपीए, तीर्थंकर पद वरीए, पंच मंगल महानिशीथे कहीए, महाश्रुतस्कंधउपमा सुणीए, तन मन अधिक विलसीए, वळी भील भीलडीनो अधीकार, आगम मांहि छे सुखकार, ते सांभळजो नरनार,... ३ काष्टमां बळतो नाग अनाथ, नवकार श्रवणे थयो सनाथ, धरणीधर थीर थाय, पुरीसादाणी पारसनाथ, तस सेवक पद्मावती साथ, साधक गहन प्रमाण, अट्ठोत्तरने एक हजार, प्रत्येक अक्षरमां निरधार, विधा विलसे श्रीकार, इह परभव आपदा कापे, वळी भवोभव संपदा आपे, अजरामर पद स्थापे... ४
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(181) श्री मंगलाचरण श्री गौतमस्वामीजी का प्रभातीयां श्री गौतम गुरू समरीये, उठी उगमते सुर । लब्धि शीलो गुण नीलो, देखो सुख भरपुर ॥१॥ गौतम गोत्र तणो धणी, रूपे अतीव भंडार । अट्ठावीश लब्धी धणी, श्री गौतम गणधार ॥ श्री० ॥२॥ अमृतमय अंगुठडो, ठवीयो पात्र मोझार। खीर खांड धृत पुरीयो, मुनिवर दोढ हजार ।। श्री० ॥३॥ पहेलो मंगल श्री वीरनो, बीजो गौतमस्वाम। त्रीजो मंगल स्थूली भद्रनो, चोथो धर्मनो ध्यान ॥ श्री० ॥४॥ प्रह उठी प्रणमुं सदा, जीहां जिनवर भाण। मानविजय उवजायनो, होजो कुशल कल्याण । होजो मंगलिक माल ॥ श्री० ॥५॥
(182) श्री सरस्वती मातानी स्तुति जय जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता। सद् बुद्धि की दाता, तुं ही हे माता ॥जय०||१|| ज्ञानकी देवी ज्ञान हमे दो, करना सुज्ञानी। जडतां हम जीवनकी, दूरकरो माता, |जय०॥२॥ हम हैं बालक माता तेरे, हरना हम अज्ञान, हो माता हरना हम अज्ञान, ज्ञान का दीप जलाकर, प्रकाश द्यो माता,||जय०||३॥ हो जाये जो कृपा तुमारी, गुंगा बने वाचाल, हो माता गुंगा बने वाचाल, मीट जाता मूरख पण, पंडित बन जाता, हो माता पंडित बन जाता, हो माता पंडित बन जाता ॥जय०॥४॥ धर्मकीर्ति जगमें फेलाये, ऐसा द्यो वरदान । हो माता ऐसा द्यो वरदान, शासन शान बढाये। आशिष द्यो माता ॥जय०॥५॥
(183) प्रभुजी के सामने बोलने की स्तुतियां पूर्णानन्दमयं, महोदयमयं, कैवल्यचिद्विद्मयं रुपातीतमयं, स्वरूपरमणं, स्वाभाविकी श्रीमयं, ज्ञानोद्योतमयं, कृपारसमयं, स्वाद्वाद-विद्यालयं, श्री सिद्धाचलतीर्थराजमनिशं वन्देह-मादीश्वरम् ॥१॥ देश विदेश भवभव भटके, गिरिवर दरिसण नवी पावे, अनंत सिद्धनो ठाम गिरिवर, जोवा मन बहु ललचावे, धन्य मुनिवर धन्य श्रावकगण, श्री सिद्धाचल नित देखे, भक्ति करे गिरिवरनी भावे, जन्मारो तेहनो लेखे ॥२॥ जिनवर मुनिवर नरवरनी, ज्यां आवे कोडाकोडीजी, जय तलेटी उभा वांदे, हरखे होडा
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होडीजी, चैत्यवंदन परिपाटीजी त्यांथी, जयतलेटी ते सोहेजी, दर्शन वंदन स्पर्शन करतां, भवियणनां मन मोहेजी ॥३॥ मन हरण करनारी प्रभु जे, मूर्ति देखे ताहरी, संसारताप मीटावनारी, मूर्ति वंदे ताहरी, चारित्र लक्ष्मी आपनारी, मूर्ति पूजे ताहरी, त्रण जगतमा छे धन्य तेहने, वंदना प्रभू माहरी ॥४॥ आंखडी ताहरा दर्शन करती, चितडुं तो चगडोल फरे, ए रीते तुज ध्यान धरंता, कर्मो मारा क्यांथी खरे, शिवनगरमां जावं छे मारे, बेठो ह दुर्गति नाथ रे, करुणासिंधु करुणा करीने, नैया पार लगाव रे ॥५।। भवमां भम्यो भवमां भूल्यो, मुजमां रहेला दोषथी, जीवोनी साथे वैरभाव, मैं राखीयो बहु रोषथी, मुज जीवननी ए काळी कथनी, स्पष्ट तुजने हुं कहुँ, ए दोषमांथी मुक्त कर, सन्मैत्री भावे हुं रहुँ ॥६॥ आंखडी देखी अमृत झरती, हैयु माझं हर्ष धरे, मुंखडं देखी मलकतुं ताहरूं, थनगन मनडुं नाच करे, मूरती ताहरी नजरे निहालुं, वीतरागतां मनमां करे, दर्शन वंदन स्तवना करतां, भवभव संचित दूर रहे ||७|| कर्मनो क्षय करवो मारे, दुःखनो क्षय पण करवो, समाधि मृत्यु मांगु जिनवर, भवोदधिने तरवो, योग्य नथी हुं करूं याचना, तो पण रोष न धरवो, कोनी पासे जईने हुं मांगु, बोधी लाभने वरवो ।।८।। हुं रागथी रंगेल छु ने द्वेषथी उभराऊं छु, मोह केरां पासमां हुं पापथी पीडाऊं छु, करणी करी में पापनी, पण प्रभु हवे पस्ताऊं छु, शरणुं स्वीकार्यु ताहरूं, हे नाथ तुज गुण गाऊ छु ॥६॥ संगम तणां उपसर्ग सुणतां, भव्यना हैया सूना, तस कर्मनो विपाक देखी, वीरने आंसु ऊना, करुणा निधान वीरने नित नमुं, जे करे मुज अघहरं, वंदन करुं धरी भाव दीलमां, वर्धमान जिनेश्वरम् ॥१०॥ दश भवतणो वैरी करे, कमठ अति संतापने, धरणेन्द्र भक्तिभाव करतो, टालतो संतापने, रागी द्वेषी बेह नीरखे, सम नजर परमेश्वरम्, वंदन करुं धरी भाव दिलमां, पार्श्वनाथ जिनेश्वरम् ॥११॥ गणि गौतम गुण गाता, तीर्थ भरुअच्छ रंजनम्, सुव्रत जिन- तीर्थ मोटुं, भविक दुःख सवि भंजनम्, तुज आण जीव जे आचरे, तस कर्म ह्रासकरं वरम्, वंदन करुं धरी भाव दीलमां, मुनिसुव्रत जिनेश्वरम् ॥१२॥ निज-परतणां जे आत्महितनी, भावनामां नित रहे, सहाय करतां साधुजी, इम आप आगल जिन कहे, अढीद्विपना सवि नित प्रशंसु, साधुवेश मूदा धरं, साधु गुण अनुमोदतो, हुं वंदतो सीमंधरम् ॥१३॥ कषायना
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परवश थई, बहु विषय-सुख में भोगव्यां, चारित्रनां जे भंग विभु, मुक्तिनां वैरी थया, कुबुद्धिथी अनिष्ट किंचित, आचरण में आचर्यु, करजो क्षमा सहु पाप, आ मुज रंक- जेजे थयुं ॥१४॥ आदिनेम वीर वासुपूज्यजी, चार तीर्थंकर छोडीजी, समेतशिखर पर वीश जिनेश्वर, कर्मना बंधन तोडीजी, समेतशिखर फरसन आवे, मानव होडा होडीजी, फरी फरी वंदन करवा काजे, मनईं जावे दोडीजी ॥१५॥ इंद्रभूति गौतम निहाली, आँखडी पावन थई, जन्म सफलो माहरो ने, दुरगति दूरे गई, गौतम गणिनां गुण गणवां, कोण सूरा जगजने, कैवल्य दाननी लब्धि गुरु, गौतम तणी मलजो मने ॥१६॥ भटक भटकमें तेरे मंदिर, आज कही से आया हुं। दरिशण तेरा पाकर जिनवर जीवन सफलतां पाया हुं। अब यह दुनिया जुठी लही हैं, छोड सबको आया हुं। भक्ति दीपसे, मुक्ति किरण की ज्योत जगाने आया हुँ ॥१७॥ स्वर्गोतणां सुख ओ प्रभु, लीधां अनंतीवारमे । चक्री वासुदेवना सुखो, भोगव्यां अनंतीवारमे । ए सुखतणां बदले सही, साते नरकनी वेदना। पोकार करुं हुं हुं रडी, एहथी मुजने बचावजो ।।१८।। निगोदमाथी निकल्यो, एमां हती ताहरी दया। नरकमांथी निकल्यो, एमाहती ताहरी दया। तिर्यंचमांथी तारनारा, स्नेह सिंधू तमे हता। मानवमांथी मुक्त करवां, पापी पावन थइ जवा ॥१६॥ शासनपति महावीर तुज शासनतणी, बलिहारी छ। कलिकालमां पण संघ ताहरो, शास्त्र आज्ञाधारी छे। करी स्थापना शासनतणी, श्री वीर महा उपकारी छे। हो विर विभूना चरणमां, मुज वंदना मुज वंदना ॥२०॥ क्यारे अमारुं भाग्य एहवू, जागशे अमे आवीशुं। महाविदेह क्षेत्रे आवीने, नजरे तने निहालशुं। अद्भूत ताहरु रूपने, अद्भूत तुज रूप छे। करुं, वंदन नित्य उठी प्रात, श्री सीमंधरस्वामीने ॥२१॥
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स्तवन विभाग
(1) श्री सीमंधर जिन स्तवन मलपति टोपी हिरले गुंथी, गुंथी मलपती टोपी रे, बाळकुंवरने माथे सोहिये, नानडीया ने माथे रे, देखत भविजन लोक रे श्री आणा सीमंधर स्वामी, आदिश्वर ने गाईये रे, ॥१॥ ओक ओढाडे रत्न पीछोडे, बीजी पहेरावे मोती रे, ओक अणीयाळी काजळ सोहिये, नजर करी निहाळी रे ॥२॥ -ओक तो फुलनी छाब भरावे, बीजी तो हार गुंथावे रे, ओक प्रभुने कंठे सोहावे, हरखे भावनां भावे रे, ॥३॥ मामा मामी लाड लडावे, बेनी मंगळ गावे रे, फई प्रभुनुं नाम धरावे, इन्द्राणी हुलरावे रे ॥४॥ सोना रुपाना पारणीये पोढाडूं, हीरनी दोरीये हिंचोळु रे. माता प्रभुनु हालरडुं गावे, इन्द्राणी हुलरावे रे ॥५॥ अम कहे सुण वत्स बालुडा, मुजने लागे प्यारो रे.
आपण शुं छातीशुं भींडे, मुकिततणां सुख मांगु रे. ॥६॥ श्री विर विजय कहे सेवा तुमारी, होजो अमने घणी हेवा रे.-ज्यां समलं त्यां केवळ होजो, तुम चरणे मम सेवारे. ॥७॥
(2) श्री सीमंधर जिन स्तवन सुनो सुनो हां हां रे सुनो सुनो, हो हो रे सुनो सुनो, सीमंधर स्वामी शासन स्वामी रे, मने लगी मिलन की आश; अंतर जामी रे. ॥१॥ में भरत क्षेत्र में आय, लियो में वासो रे, तुम लगे न आयो जाय. पुंछु केम सासो रे. ॥२॥ मेरा वितराग विण नीर नयणें वर्षे रे; मेरु हैयुं न रहेवे हाथ, सदा जिन तलसेरे, में नथी उघाडी आंख निंदन आवे रे; भगवंत विना भव्य जीव बहु दुःख पावे रे, इम तलसे दिन ने रात, मनडु मेरुं रे; कब देखें जिन देदार दरिशन तेरु रे. ॥४॥ इम जिनगुण गावे जिन दास, मधुरी वाणी रे, चरणो री रज करी राख....अपनो जाणीरे. ॥५॥
(3) श्री सीमंधर जिन स्तवन स्वस्ति श्री महाविदेह क्षेत्रमां, जिहां राजे तीर्थंकर वीश, तेने नमुं
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शीश. कागळ लर्खा कोडथी० ॥१॥ स्वामी जघन्य तीर्थंकर वीस छे, उत्कृष्टा ओकसो ने सित्तेर, तेमां नही फेर, कागळ लखुं कोडथी० ॥२॥ स्वामी बार गुणे करी युक्त छो, अंगे लक्षण अक हजार, उपर आठ सार.. कागळ० ॥३॥ स्वामी चोत्रीस अतिशये शोभतां, वाणी पांत्रीस वचन रसाळ, गुणो तणी माळ.. कागळ० ॥४।। स्वामी गंधहस्ति सम गाजता, त्रण लोकतणा प्रतिपाळ, छो दिनदयाळ.. कागळ० ॥५।। स्वामी काया सुकोमल शोभती, शोभे सुंदर सोवन वान, करुं हुं प्रणाम. कागळ० ॥६॥ स्वामी गुण अनंत छे आपना, ओक जीभे कहया केम जाय, लख्या न लखाय.. कागळ० ।।७।। भरतक्षेत्रथी लिखीतं ग जाणजो, आप दर्शन इच्छित दाश, राखुं तुम आश.. कागळ० ॥॥ में तो पूर्वे पाप किधा घणां, जेथी आप दर्शन रहयां दूर, न पहोंचुं हजूर. कागळ० ॥६॥ मारा मनना संदेह अति घणां, आप विना कहया केम जाय, अंतर अकलाय. कागळ० ॥१०॥ आडा पहाड पर्वतोने डुंगरा, जेथी नाखी द्रष्टि नव जाय, दर्शन केम थाय..कागळ० ॥११।। स्वामी कागळ पण पहोंचे नही, नहीं पहोंचे संदेशोके शाही, अमे रह्यां आही. कागळ० ।।१२।। देवे पांख आपी होत पीठमां, उडी आवू देशावर दूर, तो पहोंचुं हजूर. कागळ० ॥१३॥ स्वामी केवळज्ञाने करी देखजो, मारा
आतमना छो, आधार, उतारो भवपार. कागळ० ॥१४॥ ओछु अधिकुंने विपरीत जे लख्युं. माफ करजो जरुर जिनराज, लागुं तुम पाय. कागळ० ॥१५॥ संवत अढारसो त्रेपन सालमां, हरखे हरख विजय गुण गाय, प्रेमे प्रणने पाय. कागळ० ॥१६।।
(4) श्री सीमंधर स्वामी- स्तवन ___ श्री सीमंधर मुज मन स्वामी, तुमे साचा छो शीवपुर गामि के चंदा; तुमे जई कहेजो के, अकवार तुमे अहींया ज आवो, मिथ्यात्वीने घj समजावो के चंदा; तुमे जई कहेजो कहेजो. मारा वालाने कहेजो जिनराजने कहेजो; सीमंधर स्वामीने तुमे भरत क्षेत्रमा अहिंया, आवो के चंदा तुमे जइ कहेजो(१) मनडुं ते मारुं तुम पासे छे, चंदा चरणे चित्त चाहुं के चंदा० जिहां ते जिनजीना वृक्ष ज दिसे, तिहा जिनना गुण गावा दील हीसे के चंदा० (२)
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भरत क्षेत्रना जे भवी प्राणी, जिनजी वाणी सुण्यानी घणी खाणी के चंदा, महाविदेह क्षेत्रना जे भवी पाणी, नित्य सुणे छे तुमचीवाणी के चंदा० (३) अनुभव अमृत अवगाही लेजो, चंदा रति ओक दर्शन देजो के चंदा० जो जिनवर वाणी क्षेत्र ज लहिये, तो चंदा अमे तमने शेना कहीये के चंदा० (४) तस पद पंकज जिनविजयना, चंदा नयणे जोवानी घणी होंश के चंदा० वाचक जस कीर्तिविजयना शिष्य, निमळ पहोंचे जगीश के चंदा० (५)
(5) श्री सीमंधर स्वामीनुं स्तवन साहिबा श्री सीमंधर साहिबा सा० तुमे प्रभु देवाधिदेवा, सा० सा० सन्मुख जुओने म्हारा साहिबा; साहिबा मन शुद्धे करूं तुम सेवरे, सा० अंक वार मळोने महारा साहिबा १. सा० सुख दुःख वातो म्हारे अति घणी सा० कोण आगळ कहुं नाथ? रे सा० केवलज्ञानी प्रभु जो मळे, सा० तो थाउं हुँ रे सनाथरे सा० ओक० २. सा० भरत क्षेत्रमा हुँ अवतर्यो सा० ओछु अटलुं पुन्य; सा० ज्ञानी विरह पड्यो आकरो, सा० सा० ज्ञान रह्यं अति न्यून. ओक० ३. सा० दश द्रष्टांते दोहिलो, सा० उत्तम कुळ सौभाग्य सा० पाम्यो पण हारी गयो, जेम रत्ने उडाड्यो काग. रे सा० अक० ४ सा० षटरस भोजन बहु कर्या, सा० तृप्ति न पाम्यो लगार; सा० सा० हुं रे अनादिनी भूलमां, सा० रझव्यो घणो संसार. रे सा० अक० ४ सा० स्वजन कुटुंब मव्यां घणां, सा० तेहने दुःखे दुःखी थाय; सा० सा० जीव ओक ने कर्मजुजु आ, सा० तेहथी दुर्गति थाय. अक०६ सा० धन मेळववा हुं धसमस्यो, सा० तृष्णानो नाव्यो पार; रे, सा० सा० लोभे लटपट बह करी, सा० न जोयो पाप व्यापार रे, सा० अक० ७. सा० जेम शुद्धाशुद्ध वस्तुछे, सा० रवि करे तेह प्रकाश रे, सा० सा० तिमहीज ज्ञानी मल्ये थके, सा० तेतो आपे रे समकित वास रे, सा० अक० ८ सा० मेघ वरसे छे वाडमां, सा० वरसे गामो गाम रे, सा० सा० ठामकुठाम जुओ नही, सा० अहवा म्होटाना काम रे, सा० अक० ६ सा० हुं वस्यो भरतने छेडले, सा० तुमे वस्या महाविदेह मोझार रे, सा० सा० दूर रही करुं वंदना, सा० भव समुद्र उतारो पार रे, सा० ओक० १० सा० तुम पासे देव घणा वसे, सा० ओक मोकलजो महाराज रे, सा० मुखनो संदेशो सांभळो, सा० तो सहेजे सरे
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मुज काज रे, सा० अक० ११ सा० हुं तुम पगनी मोजडी, सा० हुं तुम पगनो दास रे, सा० ज्ञानविमलसूरि ओम भणे, सा० मने राखो तमारी पास रे, साहिबा साहिबा एकवार मलोने मारा साहिबा ओक० १२.
__(6) श्री सीमंधर स्वामीजी का स्तवन सीमंधर सुणजो विनतीरे लोल, क्रांइ आज लगी दीलमा हतीरे लोल, मन भ्रमर अति लोभीयोरे लोलं, कांई प्रभुसेवाथी थोभीयोरे लोल ॥१॥ तुं त्रिभुवननो मोड छेरे लोल, कांई मुखदेखण कोड छेरे लोल, देवे न दीधी पांखडीरे लोल, काई दरिशण चाहे आंखडीरे लोल ॥२॥ मीठं दरिशण प्रभु ताहरु रे लोल, कांई चित्तईं चोर्यु तेणे माहरु रे लोल; हेजे हली तुजशं रह्योरे लोल, कांई तरण-तारण हियडे वस्यो रे लोल ॥३॥ मन जाणे उडी मलूरे लोल, कांई साहिब सेवामां भठूरे लोल नेहे निवारण जेह छे रे लोल, कांई बाह्य गह्यानी लाज छे रे लोल ॥४॥ रंग लाग्यो प्रभुशुं कीस्योरे लोल कांई चोल मजीठनो छे जीस्योरे लोल विसारीया केम विसरे रे लोल. काई रात-दिवसघडी सांभरेरे लोल ॥५।। नवल स्नेही दुःख कंदनारे लोल कांई जिनजी जगदानंदना लोल, अवगुण तजी गुण लेखवोरे लोल कांई सेवक दीलभर देखवोरे लोल, ॥६॥ तुं जग जीवन जोडछेरे लोल कांई सेवामां शी खोड छ लोल कांतिविजय जिनजी मल्यारे लोल, कांई मन मांग्या पासा ढल्यारे लोल, ७||
(7) श्री सीमंधर जिन स्तवन (राग : आसो मासे ते ओली) ___ बे कर जोडी विनवूरे लोल, मारी विनतडी अवधाररे तुमे महाविदेहमां वस्यारे जइ लोल, अमने छे तुम आधाररे, प्रभाते ऊडी करुं वंदनारे लोल ॥१॥ भरतक्षेत्रमा हुँ अवतर्यो रे लोल, किमकरी आq हजूरे, ॥ तुम दरिशण नवि पामीयोरे लाल, रह्यो मजूरनो मजूररे प्रभाते० ॥२॥ तुम पासे देवघणां वसेरे लोल, एक मोकलजो महाराजरे ॥ मननां संदेह प्रभु पूछीनेरेलोल, करुं सफळ दीन आजरे प्रभाते० ॥३॥ केवलज्ञानीना विरहथीरे लोल, मनुष्य जन्म एळे जायरे, शुभ भाव आवे नहीरे लोल, शी गति माहरी थाय रे, प्रभाते० ॥४॥ कर्मने मोहे खूब कस्योरे लोल, हजू न
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थयो खूलाशरे जिमतिम करी प्रभु तारजोरे लोल, हुं तो तुमारो दाशरे प्रभाते० ॥५॥ सीमंधरस्वामीना नामथीरे लोल, थाय सफल अवताररे उदयरत्न इम विनवेरे लोल, प्रभु नामे जयजयकाररे प्रभाते० ॥६।।
__(8) श्री सीमंधर जिन स्तवन श्री सीमंधर साहिबा हुं केम आq तुम पास दूर वच्चे अंतर घणुं मने मलवानी घणी आश ।। हुंतो भरतने छेडले० ॥१॥ हुतो भरतना छेडले कांई, प्रभुजी विदेह मोझार । डुंगर वच्चे दरिया घणा कांई, कोश तेकेई हजार ॥२॥ प्रभुदेता हशे देशना कांई, सांभले तिहांना लोक धन्य ते गाम नगर पुरी, जिहां वसेछे पुण्यवंत लोक, । हुतो० ॥३॥ धन्य ते श्रावक श्राविका जे, नीरखे तुम मुख चंद पण ए मनोरथ अमतणां क्यारे, फलशे भाग्य अभंग ॥४।। वर्ताशे वर्ती जुओ कांई, जोशीए मांड्यां लग्न, क्यारे सीमंघर भेटशुं, मने लागी एह लगन ॥५॥ पण जोषी नही एहवो, जे भांगे मननी भ्रांत अनुभव मित्र कृपाकरी, तुम चरण तणे एकांत. ॥६॥ वीतराग भावे सही, तुमे वर्तो छो जगनाथ,॥ में जाण्युं तुम केणथी, हुं थयो स्वामी सनाथ, ॥७।। पुक्खलवई विजयेवसो, कांई नयरीपुंडरिकगिरि नाम, सत्यकी नंदन वंदना, अवधारो गुणना धाम हुँतो०॥८॥ श्री श्रेयांस नृपकुल चंदलो, कांई रुक्ष्मणी राणीनो कंत, वाचक रामविजयकहे, तुम ध्याने होजो मुज चित्त ॥६॥
(9) श्री सीमंधर जिन स्तवन प्यारो प्यारो लागे छे मने प्राणथी रे, सिमंधर जिनराज, व्हालो व्हालो लागे छे मने प्राणथी रे, सिमंधर जिनराज, स्वामी सोभागी शिरोमणी रे, सिमंधर जिनराज, केवलज्ञान दिवाकरं रे, समर्या सविकाज...(२) ...सिमंधर०...२ चोत्रीश अतिशय शोभतारे, वाणी गुण पांत्रीश, प्रातिहार्य आठ राजतारे, जग तारक जगदीश,..(२)...सिमंधर०...३ समोवसरण सूरे रच्यु रे, तिहां बेसी जिनराज । दीये मधुर ध्वनि देशना रे, भविजन ने हितदाय...(२)...सिमंधर०...४ धन्य दिवस घणो आजनो रे, सफल फल्यां सुविहाण, भांगी भीड मिथ्यात्वनी रे, वांद्या श्री जिन • भाण...(२)... सिमंधर०...५ पुकखलवई विजये भणीरे, नयरी पुंडरीगीणी नाम० तिहां
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विचरे जिनजी सदारे, केवल कमला धाम, ... (२)... सिमंधर०...६ कंचनवर्णी शरीर छे जे, पंचशया धनुमान, सत्यकी नंदन स्मरणतां रे, लहीये शाश्वत स्थान...(२)...सिमंधर०... ७ जगतारक जगदीश छो रे, मुज तारो महाराज, रूप कहे कवि पद्मनो रे, आपो शिवपुर राज...रे.. सिमंधर०... प्यारो प्यारो, लागे छे मने प्राणथी रे. ८
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(10) श्री सीमंधर जिन स्तवन
कोई कहे सीमंधर स्वामी आवीया रे, आवी ने कर्यो रे जुहार सलुणादेव, स्वामी सिमंधर देव.. १ कोई मळे रे बलिहारीनो संग सलुणादेव सिमंधर देव मुज आंगण आंबो फव्यो रे, कोण घाले बावळ तरु बाथ.....२ सागर सायर जले भर्यो रे, वच्चे मेरु पर्वत रुख, द्विप सागर आडा घणा रे, मुज आवणजावण घणुं दूर..... ३ सागर शाही जो करूं रे, लेखण करुं वनराई, आप कागळ जो लखुं रे, तो ये गुण वर्णव्या नविजाय ..... ४ कोई कहे सिंमंधर स्वामी आवीया रे, आवीने कर्यो जुहार, तेनी जीभ घडावुं सोना तणी रे, तेना दुधडे पखालीश पाय.....५ स्वामी स्वप्ने जो मीले रे, मुज जाय वेदना केरीवात स्वा० ..... ६ मुज हैयुं हेजे भर्यु रे, श्वासभर्यो उजमाळ, गुण सुंदर वाचक एम कहे रे, मुज मव्यां रे सिमंधर स्वामी ०....७ ( 11 ) श्री सीमंधर जिन स्तवन
श्री सिमंधर जगधणीजी, राय श्रेयांस कुमार, माता सत्यकी नंदनोजी, रुक्ष्मिणीनो भरथार, सुखकारक स्वामी, सुणो मुज मननी वात... ( १ ) जपतां नाम तमारुं जी, विकसे साते धात... सुखकारक० सुणो० (२) जन कुटुंब छे कारमो जी, कारमो सहु संसार, भवोदधि पडतां माहरेजी, तुं तारक निरधार,... सुखकारक० सुणो० (३) धन्य तिहांना लोकनेजी, जे सेवे तुम पाय, प्रह ऊठीने वांदवाजी, मुज मनडुं नित्य धाय... सुखकारक० सुणो० (४) कागळ कई पहोंचे नहिं जी, केम कहुं मुज अवदात एकवार आवो अहीं जी, कहुं दिलनी सवि वात,... सुखकारक० सुणो० (५) मनडामां क्षणक्षण रमेजी, तुम दरिशणना कोड वाचक 'यश' कहे विनंतीजी, अहोनीश बे कर जोड... सुखकारक० सुणो मुज मननी वात.... ...(६)
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( 12 ) श्री सीमंधर जिन स्तवन
सिमंधर करजो मया, धरजो अविहड नेह रे, अमचा अवगुण देखीने, देखाडो रखे छेह रे, सि० (१) हैयुं जावे माहरु, खिण खिण आवो छो चित्त रे, पळ पळ इच्छे रे जीवडो, करवा तुमशुं प्रित रे, (२) भक्ति तुमारी सदा करे, अणहुंता सुर क्रोड रे, जग जोता को नवि जडे, स्वामी तुमारी जोड रे, सि० (३) दक्षिण भरते अमे वस्या, पुकखलवई जिनराय रे, दिसे छे मळवा तणो, ए मोटो अंतराय रे सि० (४) देवे न दीधी पांखडी, किणविध आवुं हजूर रे, तो पण मानजो वंदना, नित्य उगमते सूर रे, सि० (५) कागळ लखवो रे कारमो, किजे महेर अपार रे, विनती ए दिल धारीए, आवागमन निवार रे, सि० (६) देव दयाल कृपाल छो, सेवकनी करो सार रे, एम उच्चरे, स्वामी मुज न विसार रे सिमंधर करजो मया .... ( ७ ) ( 13 ) श्री सीमंधर स्वामीना स्तवनो
उदयरत्न
तारी मूरति मन मोह्युं रे, मनना मोहनीया, तारी सूरतिए जग सोह्युं रे, जगना जीवनीया, तुम जोतां सवि दुर्मति विसरी, दिन रातडी नव जाणी, प्रभु गुण गण सांकळशुं बांध्युं, चंचल चित्तडुं ताणी रे । म० १ पहेलां तो एक केवल हरखे, हेजाळु थई हळियो, गुण जाणीने रूपे मिलियो, अभ्यंतर जई भळियो रे, म० २ वीतराग इम जस निसुणीने, रागी राग करेह आव अरूपीराग निमित्ते, दास अरूप धरेह रे, म० ३ श्री सीमंधर तुं जगबंधु, सुंदर ताहरी वाणी, मंदर भूधर अधिक धीरज धर, वंदे ते धन्य प्राणी रे, म० ४ श्री श्रेयांस नरेसर नंदन, चंदन शीतल वाणी, सत्यकी माता वृषभ लंछन प्रभु, ज्ञानविमल गुण खाणी रे, मनना मोहनीया....५
( 14 ) श्री सीमंधर जिन स्तवन (सिद्धारथना रे नंदन विननुं)
श्री सीमंधर स्वामि तुम तणा, चरण नमुं चित्त लाय | अंजलि जोडी अरिहंत विनवुं, तुम विण रहण न जाय, ए अवधारो जिनवर विनती, १ श्री सीमंधर स्वामी । विरहनी वेदना वहेली निगमुं, तृप्ति न पामुं नामि । ए० २ जनम अनंता हो श्री जिन हुं भम्यो, अवर अवर अवतार, पुन्य
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प्रमाणे रे हमणां पामीयो, नरभव भरत मोझार । ए० ३ महाविदेहे रे स्वामि तुम वसो, पांख नहि मुज पास, किण पेरे आवी पाप आलोईए, मनमां रहीयो विमास, ए० ४ मिलवा हैडु रे अरिहंत किम मिलुं, शत्रु घणा मुज लार, वहार करजो हो तुम केवल धणी, अवर नहि रे आधार, ए० ५ अंब विना जिम कोयल नवि रमे, मधुकर मालती सेव। रति नवि पामे हो तिम मन माहरूं, तुम दरिशण विण देव, ए० ६ स्वामि तुमारी हो करीशुं स्थापना, जाणे श्री जिनराय, गुण गावंता हो भावशुं भावना, निश्चलता मन लाय, ए ए अवधारो जिनवर विनती....७
(15) श्री सीमंधर जिन स्तवन पुख्खलवई विजये जयो रे, नयरी पुंडरिगिणीसार; श्री सीमंधर साहिबा रे, राय श्रेयांस कुमार जिणंदराय ! धरजो धर्मसनेह ॥१॥ म्होटा नाना अंतरो रे. गिरूआ नवि दाखंत; शशि-दरिशण सायर वधे रे, कैरव-वन विकसंत । जिणंद०।२।। ठाम कुठाम न लेखवे रे, जग वरसंत जलधार; कर दोय कुसुमे वासीये रे, छाया सवि आधार ।। जिणंद०॥३॥ रायने रंक सरीखा गणे रे, उद्योते शशी सूर; गंगा जल ते बिहुँ तणा रे, ताप करे सवि दूर । जिणंद०॥४॥ सरिखा सहुने तारवा रे, तिम तुमे छो महाराज!; मुजशुं अंतर किम करो रे, बाह्य ग्रह्यानी लाज।। जिणंद०॥५।। मुख देखी टीखें करे रे, ते नवि होय प्रमाण; मुजरो माने सवि तणो रे, साहिब तेह सुजाण जिणंद०।।६।। वृषभ लंछन माता सत्यकी रे, नंदन रूकमणीकंत; वाचक जश इम विनवे रे, भय-भंजन भगवंत ॥ जिणंद राय धरजो धर्म स्नेह....७
(16) श्री सीमंधर जिन स्तवन श्री सीमंधरु रेमारा प्राण तणा आधार, जिनवर जयकरूं रे, जेना झा झा छे उपकार, क्षण क्षण सांभरें रे, एक थास मांहे सो वार, किमहिन विसरे रे, जे वसिया छे हृदय मोझार,...॥१॥ हुं शी हियडले रे, जेम होय मुक्ता फळनो हार, ते तो जाणीये रे, ओ सवि बाहिरनो शणगार, प्रभु तो अभ्यंतरे रे, अलगान रहे लगार, अहनिश वंदना रे, करीये छीये ते अवधार श्री०॥२॥ नयन मेलावडे रे, नीरखि सेवकने संभार, तो हुँ लेखवू रे, म्हारो सफळ
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सफळ अवतार, नहि कोई तेहवो रे, विद्या लब्धिनो उपाय, आवीने मर्छ रे, चरण ग्रहुं हुं वळी धाय, श्री०॥३॥ मळवू दोहीलुं रे, तेहशुं नेहतणो जे लाग, करतां सोहिलं रे, पण पछी विरहनो विभाग, चंद्रचकोरने रे, चकवा दिनकर ते होय जेम, दूरे रह्यां थकी रे, तो पण तस वधतो छ प्रेम श्री० ॥४।। पण तिहां एक छे रे, कारण नजरनो संबंध, विरहे ते नहि रे, ए मन मोटा छे रे धंध, पण एक आशरो रे, सुगुण सुं जे रे एकतान, तेहथी वाधशे रे, ज्ञान विमल गुणनो जशमान श्री सीमंधरू रे मारा प्राण तणां आधार श्री सीमंधरु रे मारा प्राण तणा आधार...।।५।।
(17) श्री सीमंधर जिन स्तवन तमे महाविदेह जइने कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर तेडा मोकले, मारा भरतक्षेत्रनां दुःख कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर०॥१॥ अज्ञानता तो छवाइ रही छे, तत्त्वोनी वात बधी भूलाइ गइ छे, एवा आत्मानां दुःख मारा, कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर० ॥२॥ पुद्गलनां मोहमा फसाइ रह्यो छु, कर्मोनी जालमां जकडाइ रह्यो छु, एवा कर्मोनां दुःख मारा कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर० ॥३॥ मारु न हतु तेने मारुं करी जाण्युं, मारु हतुं तेने नवि पिछाण्युं, एवा मुर्खतानां दुःख मारा कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर० सीमंधर सीमंधर हृदयमां धरती, प्रत्यक्ष दर्शननी आशा हुं करती, एवा वियोगनां दुःख मारा कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर० ॥४॥ संसारनुं सुख मने कारमुं लागे, तारा विना वात कहुं कोनी आगे, एवा विरविजयनां दुःख कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर तेडा मोकले ।।५।। (18) श्री सीमंधर जिन स्तवन (राग : उंची तलावडीनी कोर) ___ मनडु ते माहरु मोकले “मारा वालाजी," शशहर साथे संदेश जईने कहेजो अटलं "मारा वालाजी, भरतना भक्तोने तारवा एकवार आवोने आ देश, “मारा वालाजी" भरत० १ प्रभुजी वसोपुष्कलावती महा विदेह क्षेत्र मोझार पूरी राजे पुंडरिक गिणी, जिहां प्रभुनो अवतार (२) मा० वा० २ श्री सीमंधर साहिबा, पण विचरंता वित्तराग, पडीबोहे प्राणीने, तेहनो पामे कुण ताग (२) मा० वा० ३ मन जाणे उडी मर्छ, पण पोते नहि पांख
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भगवंत तुम जोवा भणी, अलजो घरे छे बेउं आंख (२) मा० वा० ४ दुर्गम मोटा डुंगरा, नदी नाळानो नहि पार, घाटीनी आंटी घणी, अटवी, पंथ अपार (२) मा० वा० ५ कोडी सोनैये काशीदुं, करनारो नहि कोय, कागदीयो केम मोकलुं, होंश ते नित्य नवली होय (२) मा० वा० ६ लखुं जे जे लेखमां, लाखो गमे अभिलाष ते लहेज मां तमे लहो, मुज मन पूरे छे शाख (२) मा० वा०७ लोकालोक स्वरूपना, जगमां तुमे छो जाण, जाण आगळ शुं जणावीए, आखर अमे अजाण (२) मा० वा०८ वाचक उदयनी विनंती, शशहर कह्या संदेश, मानी लेजो माहरी, वसता दूर विदेश
(२) मा० वा० ६
(1) श्री सिद्धाचल स्तवन
विमलाचल नितु वंदिओ, कीजे अहनी सेवा; मानुं हाथ अ धर्मनो, शिवतरुफळ लेवा. विमला० १ उज्वल जिनगृहमंडळी, तिहां दिपे उत्तंगा; मानुं हिमगिरि विभ्रमे, आई अंबरगंगा. विमला० २ कोई अनेरो जग नहीं, अ तीरथ तोले; ओम श्रीमुख हरि आगळे, श्री सीमंधर बोले. विमला० ३ जे सघळां तीरथ कह्यां, जात्राफळ कहीओ; तेहथी ঔ गिरि भेटतां, शतगणुं फळ लहीओ. विमला० ४ जनम सफल होय तेहनो, जे अ गिरि वंदे; सुजसविजय संपद लहे, ते नर चिर नंदे. विमलाचल नितु वंदिये... ५
(2) श्री सिद्धाचल स्तवन
मारूं मन मोह्युं रे श्री सिद्धाचले रे, देखीने हरखीत थाय; विधिशुं कीजे रे जात्रा अहनी रे, भवभवनां दुःख जाय मारूं० पंचमे आरे रे पावन कारणे रे, अ समो तीरथ न कोय; मोटो महिमा रे जगमां अहनो रे, आ भरते इहां जोय. मारूं० २ इण गिरि आव्या रे जिनवर गणधरा रे, सिध्या साधु अनंत; कठिण करम पण अ गिरि फरसतां रे, होवे करम निशांत. मारूं० ३ जैन धरमते साचो जाणीने रे, मानव तीरथ से स्थंभ; सुर नर किन्नर नृप विद्याधरा रे, करता नाटारंभ. मारूं० ४ धन्य धन्य दहाडो रे धन्य वेळा घडी रे, धरीओ हृदय मोझार; ज्ञान विमलसूरि गुण अहना घणां रे, कहेतां नावे हो पार. मारूं मन मोह्युं रे श्री सिद्धाचले रे... ५
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(3) श्री सिद्धाचल स्तवन सिद्धाचल वंदो रे नरनारी, सिद्धा० नाभिराया मरूदेवा नंदन, ऋषभदेव सुखकारी. सिद्धा० १ पुंडरिक पमुहा मुनिवर सिद्धा, आतमतत्व विचारी. सिद्धा० २ शिवसुखकारण भवदुःखवारण, त्रिभुवनजन हितकारी. सिद्धा० ३ समकित शुद्ध करण ओ तीरथ, मोह मिथ्यात्व निवारी. सिद्धा० ४ ज्ञान उद्योत प्रभु केवळ धारी, भक्ति करूं अक तारी. सिद्धा० ५
(4) श्री सिद्धाचल स्तवन आंखडीये रे में आज शत्रुजय दीठो रे, सवा लाख टकानो दहाडो रे लागे मने मीठो रे. सफल थयो मारो मननो उमाह्यो, व्हाला मारा भवनो संशय भांग्यो रे, नरक तिर्यंच गति दूर निवारी, चरणे प्रभुने लाग्यो रे; शत्रुजय दीठो रे. १ मानवभवनो लाहो लीजे, वाला० देहडी पावन कीजे रे; सोना रूपाने फूलडे वधावी, प्रेमे प्रदक्षिणा दीजे रे. श० २ दुधडे पखाळी ने केशर घोळी, वा० श्री आदिश्वर पूज्या रे; श्री सिद्धाचल नयणे जोतां, पाप मेवासी धूज्या रे. श० ३ श्रीमुख सुधर्मा सुरपति आगे, वाला मारा वीर जिणंद ओम बोले रे त्रण भुवनमा तीरथ मोटुं, नहीं कोई शत्रुजय तोले रे. श० ४ इन्द्र सरीखा ओ तीरथनी, वा० चाकरी चित्तमां चाहे रे; कायानी तो कासल काढी, सूरजकुंडमां नाही रे. श० ५ कांकरे कांकरे श्री सिद्धक्षेत्रे, वा० साधु अनंता सिद्धा रे; ते माटे ओ तीरथ महोटुं, उद्धार अनंता कीधा रे. श० ६ नाभिरायासुत नयणे जोतां, वा० मेह अमीरस वूठया रे; उदयरतन कहे आजे मारे पोते, श्री आदिश्वर तूठया रे. शत्रुजय दिठोरे० ७
(5) श्री सिद्धाचल स्तवन जात्रा नवाणुं करीओ, विमलगिरि जात्रा नवाणुं करीओ.
पूरव नवाणुं वार शेजागिरि, ऋषभजिणंद समोसरीओ, वि०जा० १ कोडी सहस भव पातिक तूटे, शत्रुजय सामो डग भरीये. वि०जा० २ सात छ? दोय अट्ठम तपस्या, करी चडीये गिरिवरीये. विजा० ३ पुंडरिक पद जपीओ मन हरखे, अध्यवसाय शुभ धरीओ, विजा० ४ पापी अभव्य नजरे
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162 न देखे, हिंसक पण उद्धरीओ. विजा० ५ भूमिसंथारो ने नारीतणो संग, दूर थकी परिहरीओ. वि०जा० ६ सचित्तपरिहारीने अकल आहारी, गुरु साथे पद चरीये. विजा० ७ पडिक्कमणां दोय विधिशुं करीओ, पाप पडल विखरीओ. विजा० ८ कलिकाले ओ तीरथ मोटुं, प्रवहण जिम भरदरिये. वि०जा० ६ उत्तम ओ गिरिवर सेवंता, पद्म कहे भव तरीये. वि०जा० १०
(6) श्री सिद्धाचल स्तवन माता मरुदेवीनानंद, देखी ताहरी मूर्ति माएं मनलोभापुंजी; मारुं दिल लोभापुंजी देखी० करुणानागर करूणासागर काया कंचनवान; घोरी लंछन पाउले कांई, धनुष पांचशे मान. माता० १ त्रिगडे बेसी धर्म कहंता, सुणे पर्षदाबार; जोजनगामिनी वाणी मीठी, वरसंती जलधार. माता० २ उर्वशी रूडी अपच्छरा ने, रामा छे मन रंग; पायेनेयुर रणझणे कांई, करतीनाटारंभ. माता० ३ तुं ही ब्रह्मा तुंही विधाता, तुं जगतारणहार; तुज सरीखो नही देव जगतमां अडवडीआआधार. माता० ४ तुं ही भ्राता तु ही त्राता, तुं ही जगतनो देव; सुर नर किन्नर वासुदेवा, करता तुज पद सेव. माता० ५ श्री सिद्धाचळ तीर्थकरो, राजा ऋषभजिणंद; कीर्ति करे माणेकमुनि ताहरी, टाळो भव भयफंद. माता मरुदेवीना नंद, देखी ताहरी मुरति मारु मन लोभाणुं जी....६ .
(7) श्री सिद्धाचल स्तवन सिद्धाचल गिरि विमलाचल गिरि भेट्या रे, धन्य भाग्य हमारा! ओ आंकणी ओ गिरिवरनो महिमा मोटो, कहेतां न आवे पारा; रायण रूख समोसर्या स्वामी, पुरव नवाणुं वारा रे. ध० १ मूळनायक श्री आदिजिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा; अष्ट द्रव्यशुं पूजा भावे, समकित मूल आधारा. रे. ध० २ भावभक्तिशुं प्रभु गुण गातां, अपना जन्म सुधारा; यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे. ध० ३ दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा; पतित-उद्धारण बिरूद तमारूं, तीरथ जग सारा रे. ध० ४ संवत अढार त्यासी मास अषाढो, वदि आठम भोमवारा; प्रभुजी के चरण प्रताप के संघमें, खीमारतन प्रभु प्यारा रे. धन्य भाग्य हमारा...५
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___(8) श्री सिद्धाचल स्तवन चालो चालो विमलगिरी जईओ रे, भवजल तरवाने, तुमे जयणा ओ धरजो पाय रे, पार उतारवाने (ओ आंकणी) बाळ काळनी चेष्टा टाळी, हां रे हुं तो धर्मयौवन हवे पायो रे, भव० भूल अनादिनी दूर निवारी, हारे हुं तो अनुभवमां लय लायो रे, पार०१ भवतृष्णा सवि दूर करीने, हां रे मारी जिन चरणे लय लागी रे. भव० संवर भावमां दिल हवे ठरीउं, हां रे मारी जिन चरणे लय लागी रे, पार० सचित्त सर्वनो त्याग करीने, हां रे नित्य ओकासणा तपकारी रे, भव० पडिक्कमणां दोय विधि शुं करशुं, हां रे भली अमृत क्रिया दिल धारी रे, पार०३ व्रत उच्चरशुं गुरुनी साखे, हां रे हुं तो यथाशक्ति अनुसार रे, भव० गुरु संघाते चडशुं गिरिपाजे, हां रे हुं तो सूरजकुंडमां नाही रे, भव० अष्टप्रकारी श्री आदिजिणंदनी, हां रे हुं तो पूजा करीश लय लाई रे, पार०५ तीरथपतिने तीरथ सेवा, हां रे ओ तो मीठा मोक्षना मेवा रे, भव० सात छट्ठ दोय अट्ठम करीने, हां रे मने स्वामी वात्सल्यनी हेवा रे, पार०६ प्रभुपदपद्म रायणतळे पूजी, हारे हुं तो पामीश हरख अपार रे, भव० रूपविजय प्रभु ध्यान पसाये, हां रे हुं तो पामीश सुख श्री कार रे; पार० चालो चालो विमलगिरि जईओ रे, भवजल तरवाने; तुम जयणाओ धरजो पाय रे, पार उतरवाने ०७.
(9) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन शेर्बुजा गढना वासी रे मुजरो मानजो रे, सेवकनी सुणी वातो रे दिलमां धारजो रे, प्रभु में दीठो तुम देदार, आज मुने उपन्यो हरख अपार, साहिबानी सेवा रे भवदुःख भांजशे रे, दादाजीनी सेवारे शीवसुख आपशे रे ओक अरज अमारी रे दिलमां धारजो रे, १. चोराशी लाख फेरा रे, दूर निवारजो रे, प्रभु मने दुर्गति पडतो राख, दरिशन वहेलेरु रे दाख. २. दोलत सवाई रे सोरठ देशनी रे, बलहारी जाउ रे प्रभु तारा वेषनी रे, प्रभु तारुं रुईं दीर्छ रूप, मोह्या सुर नर वृंदने भूप० ३. तीरथ को नही रे शेजा सारीखं रे, प्रवचन पेखीने में कीधुं तारू पारखं रे, ऋषभने जोई जोई हरखे जेह, त्रिभुवन लीला पामे तेह, भवोभव मांगु रे प्रभु तारी सेवना
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रे, भावठ न भांगे रे जगमा जे विना रे, प्रभु मारा पूरो मननां कोड, ओम कहे उदयरत्न करजोड, साहिबानी सेवा रे, भवदुःख भांगशे रे. दादाजीनी सेवारे शिवसुख आपशे रे ५. (10) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन (राग : मारे केड कांटो वाग्यो.)
ओ देव मे भेटयां चरणतमास, तुमे टाळोने दुःखडां हमारां, श्री आदिश्वर प्रथम जिणंद, माता मरूदेवीनां नंदा, मुखडु तुमारं पुनमचंदा, तुम दीठे परमानंदा नाभिराया० १. अटुलाने पण आदर कीजे, मारी विनंती चित्तमा धरीजे, प्रभुजी नितनित ओलंभो दीजे, तो प्रभुनां दीलडां रीझे. २. आठ कर्मने दूर निवारो, मारा जन्ममरणना फेरा टाळो, प्रभु भवसागरथी पार उतारो, बाह्य झालीने पार उतारो. ३. केशर चंदन भर्या कचोळा, हुं तो पूजा करुं रंगरोलां, पूजा करीने मारुं दिलरीझे, भला चंपानां ओसडां कीजे. ४. तुमे शेजेजा गढनां वासी, तुमारी सेवा हुं पुन्ये पामी, प्रभु तुमे छो मुज अंतरजामी, अम हर्ष कहे शिरनामी. ५.
(11) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन शोभा शी कहुं रे शेजूंजा तणी, जिहां बिराजे प्रथम तीर्थंकर देव जो, रूडी रे रायणतळे ऋषभ समोसर्या, चोसठ सुरपति सारे प्रभुनी सेव जो. १. निरख्यो रे नाभिराया केरा पुत्रने, माता मरूदेवी केरा नंदजो, रूडी रे विनीता नगरीनो धणी, मुखडु सोहे शरदपुनमनो चंद्रजो. २. नीरखो रे नारी कंतने विनवे, पिउडा मुजने पालिताणा देखाडजो, ओ गिरिजे पूर्व नवाणुं समोसर्या, माटे मुजने आदिश्वर भेटाडजो, ३. मारे मन जावानी घणी होश छे, कयारे जाउंने कयारे करुं दर्शन जो, ते माटे मन मारूं तलसे घj, नयणे निहालूं तो ठरे मारा लोचन जो. ४. ओवी ते अरज अबळानी सांभळो, हुकम करो तो आq तमारी पास जो, महेर करीने दादा दर्शन दीजीये, श्री शुभवीर नी पहोंचे मननी आश जो, ५..
(12) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन सांभळो आदि जिणंद सोभागी, तुम चरणोनी लगनी लागी, श्यां कहुं
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165 वयणां रे हो स्वामी मोरा तु छे अंतरयामी, विकस्यां नयणां रेके जोई तने, जग जन मन विसरामी हो. स्वा० १. हैया मांही कोड घणेरुं, काया करती काम अनेरुं, धर्मीपणा- ढोंग घणेरुं, मन अंदरथी न्यारूं रे. हो. स्वा० २. पांचे इंद्रिय सुखमाही राचुं, जाणुं नही आ सुख छे काचु, मोहरायनी सामे नाचुं, हवे जाणुं साचु रे. हो. स्वा० ३. जे तप संयमथी सुख पामुं, तेहथकी मुज मनडुं विरामुं, केम करी शाधत सुख हुं पामुं, कहुं केहनी सामं रे. हो. स्वा० ४. कीधी बह भूलो जिनराया, मांगे क्षमाविजय मुनिराया, शजयगिरिमंडन सुखदाया, तारी शीतल छांया रे. हो स्वामी मारो तुं छे अंतरजामी ५. (13) श्री आदिजिनन स्तवन (राग : ओक, दो, तीन, चार,...)
भवजल पार उतार जिणंदजी मुज पापीने तार, मुज पापीने तार जिणंदजी १. श्री सिद्धाचल तीर्थ के राजा, त्रण भुवनमा सार, पूर्व नवाणुंवार शेजूंजे, आव्या श्री नाभिकुमार. जिणंदा० २. आज हमारे सुरतरु प्रकट्यो, दीठो प्रभु देदार, भवोभव भटकी आव्यो हुं शरणे, राखो लाज आवार. जिणंदा० ३. भरतादिक असंख्य ते तार्या, तिम प्रभु मुजने तार, माता मरूदेवाने दीर्छ, केवलज्ञान उदार. जिणंदा० ४. क्षायिक समकित मुजने आपो, ओही ज परम आधार, दिनदयाळु दरिसन दीजे, पाय लागुं सो वार. जिणंदा० ५. अवसर पामी अरज सुणीने, विनतडी अवधार, क्षमाविजयनां बाळ सिद्धिने, आवागमन निवार. जिणंदाजी मुज पापीने तार...६.
(14) श्री सिद्धाचलनुं स्तवन (राग : हे त्रिशलानां जाया)
देशमां सोरठ देश वखाणुं, जीहां सिद्धक्षेत्रनुं ठाम, मुनिवर कोडी अनंता सिद्धा, सार्या आतम काज, निरखो प्रभु देदार, लहिये भवनिस्तार, १ श्री पुंडरीक गणपति इहां सिध्यां, पांचकोडी परिवार, तेणे कारण जग मांही प्रगट्युं, पुंडरीकगिरि तेणीवार निरखो० २ वीशकोडीशुं पांडव सिध्यां, राम भरत त्रण कोडी, इणगिरिवरनी कळजुगमांही, जगमां न दिसे जोडी निरखो० ३ सह तीरथ शीर शहेर सरीखो, प्रणमे पाप पलाय, ऋषभ कुटवर ओ शाधतगिरि, चडता दुर्गति जाय, निरखो० ४ सोवन रजतने फुले वधावी,
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नाभिनंदन जिन पूजो, समेत-शिखर अष्टापद प्रणमो, अ सम अवरन दूजो, निरखो० ५ सहस्त्रकुट ने मेरू गिरिवर, पगलां रायण हेठे, चौदसे बावन गणधर पगलां, नमतां पातिक नाठे. निरखो० ६ इत्यादिक बहु चैत्य निहाळी, उत्तम भविजन हरखे, पद्म कहे ए आतम कीनो, अ जिनवरजी सरिखो. निरखो प्रभु देदार, लहिये भव निस्तार...७
(15) श्री सिद्धाचल स्तवन ( राग
रंगाई जाने रंगमा )
में भेट्यां नाभिकुमार, में भेट्यां मरूदेवानंद, मेरी अखियां सफलभई, मेरा नयनां सफल भये. १ तीरथ जगमां छे घणां रे, तेहमां अक छे सार, शेत्रुंजय समो तीरथ नहीं रे, तुरत करे भवपार, मे० २ युगलाधर्म निवारीयो रे, तीन भुवन तुं सार, सोवन वरणी देह छे रे, ऋषभ लंछन मनोहार. मे० ३ सोरठमंडन तुं धणी रे, सकल करम करे दूर, केवळलक्ष्मी पामवा रे, वांछित लीलानूर मे० ४ सुरत निरखी ताहरी रे, आनंद अधिक अपार. उज्वलगिरि राजा प्रभु रे, आवागमन निवार. मे० ५ गिरिवर फरशुं भावशुं रे, सफल कीधो अवतार, श्री जिन हरख पसायथी रे, संघ सदा सुखकार. मे० ६ माधमास सोहामणो रे, सुद बीज रविवार, संवत अढार बासठमां रे, यात्रा करी हितकार. मे० ७ घणा दिवसनी चाह हती प्रभु, देखण तुज देदार, रत्न सुंदर पाठक भणे रे, वर्त्यो जय जयकार. मे भेट्या नाभिकुमार, मे भेट्यां मरुदेवानंद ...
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(16) श्री सिद्धाचल स्तवन पालिताणानुं ( राग द्वारा पुरीनो नेम
डुंगरे डुंगरे रे तारा देहरा, डुंगर उपर कीधो तुमे वास रे, आदिव दादा (आंकणी) चडती राखो रे जैनधर्मनी १ नाभिराया कुल चंदलो मरुदेवी छे तुमारी मात रे आदिश्वर दादा० २ भरतजी राज्यपाट भोगवे ऋषभजी चाल्या वनवास रे, आदिश्वर दादा० ब्राह्मी सुंदरी बे बेनडी बाहुबलीने वनमां कीधी जाण रे, आदिश्वर दादा० ४ पालिताणा नगर सोहामणुं, पर्वत उपर कीधो तुमे वासरे, आदिश्वर दादा० ५ आठे ट्रंको रळियामणी, नवमी ट्रंके कीधो तुमे वास रे, आदिश्वर दादा० ६ सुरजकुंड सोहामणी, चक्केश्वरीदेवी ने लागु पाय रे, आदिश्वर दादा० ७ केशर चंदन
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भर्यो वाटको, पुष्पो चडावु प्रभु आज रे, आदिश्वर दादा ८ हिरविजय गुरू हिरलो, विरविजय गुण गाय रे, आदिधर दादा० ६
(17) श्री सिद्धाचल स्तवन सहु चालो सिद्धगिरि जईओ. गीरी भेटी पावन थईओ, सोरठ देशे यात्रानुं मोटुं धाम छे, ॥१॥ ज्यां तळेटी पहेली आवे, गीरी दरिशन वीरला पावे, प्रभुना पगलां पुनित ने अभिराम छे, ॥२॥ ज्यां गिरिवर चडतां समीपे, देवालय दिव्यज दीपे, बंगाली बाबुनु, अविचल अतो नाम छे, ॥३।। ज्यां कुंड विसामो आवे, थाकयांनो थाक उतारे, परबो रुडी, पाणीनी ठामोठाम छे, ॥४॥ ज्यांहडो आकरो आवे, केडे हाथ दई चढावे, ओवी देवी, हिंगलादे जेनुं नाम छे, ॥५॥ ज्यांगिरिवर चडतां भावे, राम पोळ छेल्ली आवे, डोलीवाळा नां, विसामांनुं ठाम छे. ॥६।। ज्यां नदि शेव्रुजी वहे छे, सूरज कुंड शोभा दे छे, नाहयो नहीं, तेनुं जीवन बे बदाम छे, ॥७॥ ज्यां सोहे शांति दादा, श्री सोलमा त्रिभुवन त्राता, पोळे जाता, सौ पहेला प्रणाम छे, ॥८॥ ज्यां चक्रेश्वरी छे माता, वाघेश्वरी दे सुखशाता, कवड-जक्षादि, सौदेवता तमाम छे, ॥६॥ ज्यां सोहे पुंडरीक स्वामि, गिरुआ गणधर गुणधामी. अंतरजामी, आतमना आधार छो, ॥१०॥ ज्यां रायण छांय निलुडी. प्रभु पगला परे परे रुडी. शीतलकारी, ओ वृक्षनो विश्राम छे. ॥११॥ ज्यांनिरखे छे नव ढूंको. पातिकनो थाये भुक्को, दिव्य दहेराना, अलौकिक काम छे. ॥१२॥ ज्यां गृहीलींग मुनि अनंता, सिद्धिपद पाम्या संता, पंचम काले अ, मुकितनु मुकाम छे. ॥१३॥ ज्यां ज्ञान विमल गुण गावे, ते लाभ अनंता पावे, यात्रा करवा, हियडानी मोटी हाम छे. ॥१४॥
(18) श्री सिद्धाचल स्तवन मने सिद्धाचल देखाड, मने विमलाचल देखाड, तारो गुण मानू लाल, मारा ते भाइ सोडला रे, अना गुण मानुं लाल; हुं छु ओलंगी उछळी रे, मने आपजो ताहरी पांख,...तारो गुण० ॥१॥ आदिश्वर भेटुं उडीने रे, भांगी मारा भवनी धांख; वैशाख जेठनी वादळी रे, मारा संघ उपर करो छांय... तारो गुण० ॥२॥ पवन लागुं तोरा पाउले रे, मारा संघने होजो सुपसाय;
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जलधर तोरा पाउले रे, ओ तो झीणी झीणी वरसे... बुंद....तारो गुण० ॥३॥ मालीडा लावे फुलडां रे, मोगरोने चंपार्नु फूल; जाई जूइने मालती रे, वली डमरो फूल गुलाब... तारो गुण० ॥४॥ पारखे प्रेमे संघवी रे, भणसाली कपूर; मजल नानी जो करे तो, संतापे नंदा सूर... तारो गुण० ॥५॥ उदयरत्न अम उच्चरे रे, तुं तो चित्तमांही धरजे रोज; श्री आदिश्वर साहिबारे; मने दरिशन देजो रोज तारो गुण० ॥६॥
(19) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : मालकोश) जईओ जईओ शत्रुजय चाली, ओतो मने वाटडी लागे छे प्यारी; इण क्षेत्रे आव्या रे जाणी, प्रभुजी मारा पूर्व नवाणु... जईअ० ॥१॥ इण क्षेत्रे छहरी जे पाळे, तेतो नरभव सही अजवाळे; उडे उडे झीणी रे खेहडी, ईण वाटे निर्मल थाय देहडी... जईअ० ॥२॥ मरुदेवी माताने जायो, व्हालो मारो ओ वातनो अलछायो; शत्रुजय शिखरे रे सोहे, व्हाला मारा त्रिभुवन ना मन मोहे... जईओ० ॥३॥ जुवो जुवो अना मुखडा नो मटको, लाखेणो छे ओना अंगनो लटको; जे जोशे अहने रे जुगते, मानव अही ज जाशे मुगते,... जईओ० ॥४॥ अहतणां लीजे रे मीठडां, दिलडूं ठरे छे ओहने दीठडां; उदय कहे अहने रे पूजो, दीठो देव ना कोई दूजो...जई जईओ शत्रुजय चाली ॥५॥
(20) श्री सिद्धाचल स्तवन आपो आपोने लाल, मोंघा मूला मोती, लावो लावो ने राज, मोंघा मूला मोती, श्री सिद्धाचल नीरखी वधावू, पूरण पुन्य पनोती...आपो० ॥१॥ प्रथम जिनेवरने जई पूजु पहेरी निर्मल धोती, हरखी हरखी जिनमुख निरखी मुखने मटके जोती...आपो० ॥२॥ पूर्व संचित जे बहु पातिकडां, दुःख दोहगडा खोती, प्रभुगुण गण मोतनकी माला, भावना गुणमां परोती... आपो० ॥३॥ अनुभव लीला जैसी प्रगटी, पहेंला कदीये न होती; ध्यान ध्येय क्रिया अनुभावे, प्रगटे निरंजन ज्योति...आपो० ॥४॥ पूजा विविध प्रकारे विरचित, मणिमय भूषण द्योती; नाटकगीत करंता मोरी, वांछित आशा फलंती...आपो० ॥५॥ सिद्धाचल नीरखी भवभवनी, अलच्छी गई
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रोवंती; रिद्धि सिद्धि लीला सुख पाई, हैडे हेज हसंती...आपो० ॥६॥ शिवसुंदरी वरवा वरमाळा, कंठे ठवे वश होती; ज्ञानविमल सूरि प्रभुनी सेवा, कामगवि दोहंती...आपो आपोने लाल, मोंघा मूला मोती...|७|| (21) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग-आंखडी मारी प्रभु हरखाय छे)
गिरिवरियानी टोचे रे, जग गुरु जई वस्या, ललचावो लाखोने लेखेन कोई रे; आवी तळाटी ने तळीये टळवलुं ओकलो, सेवक पर जरा महेर करीने देखो रे. गिरि० (१) हाम धामने दाम नथी हुं मागतो, मांगु मांगण थईने चरण हजुरजो, काया निर्मळ छे ते प्रभुजी जाणजो, आप पधारो दिलडे दीलडां पूरजो. गिरि० (२) जन्म लीधो ते दुःखीयाना दुःख टाळवा, ते टाळीने सुखीया कीधा नाथजो, तुम बालकनी पेरेरे हुं पण बालुडो, नमी विनमी ज्युं धरजो मारो हाथजो. गिरि० (३) जेम तेम करी पण आ अवसर आवी मव्यो; स्वामी सेवक सामा सामी थाय जो; वखत जवानो भय छे मुजने आकरो, दर्शन द्यो तो लाखेणो कहेवायजो. गिरि० (४) पंचमे आरे प्रभुजी मळवां दोहिलां, तोपण मळीया भाग्य तणो नहीं पारजो, उवेखो नहीं थोडा माटे साहिबा, ओक अरजने मानी लेजो हजार जो. गिरि० (५) सुरतरुं नाम धरावे पण ते हुं शुं करुं, साचो सुरतरु तु छे दिन दयाळ जो; मन गमतुं दई दानने भव भय वारजो, साचा थाशो षट्काय प्रति पाळजो, गिरि० (६) करगरुं तो पण करुणा जो नहीं लावशो, लंछन लागे संघपति नाम घरावी रे; पाये वळग्या ते सविने सरखा कर्या, धीरज आपो अमने भक्त ठरावी रे. गिरि० (७) नाभी नरेश्वर नंदन आशा पूरजो. रहेजो हृदयमां सदा करीने वासजो; कांतिविजयनो अंतिम पण अभिराम छे, सदा सोहागण मुक्ति थाय विलासजो. गिरिवरियानी टोचे रे, जग गुरु जई वस्या...(८)
(22) श्री सिद्धाचल स्तवन श्री रे सिद्धाचल भेटवा, मुज मन अधिक उमाद्यो; ऋषभदेव पूजा करी, लीजे भवतणो लाहो. श्री० १ मणिमय मूरति श्री ऋषभनी, नीपाई अभिराम; भवन कराव्यां कनकनां, राख्या भरते नाम, श्री० २ नेमि विना त्रेविस प्रभु, आव्या सिद्धक्षेत्र जाणी; शेजा समु तीरथ नहीं, बोल्या सीमंधर वाणी. श्री०
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३ पूरव नवाणुं समोसर्या, स्वामी श्री ऋषभजिणंद, राम पांडव मुगते गया, पाम्या परमानंद. श्री० ४ पूरव पुण्य पसाउले, पुंडरिकगिरि पायो; कांतिविजय हरखे करी, श्री सिद्धाचल गायो श्री रे सिद्धाचल भेटवा....५ ( 23 ) श्री सिद्धाचल स्तवन
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मनना मनोरथ सवि फळ्या अ, सिध्यां वांछित काज; पूजो गिरिराजने रे. प्राये अ गिरि शाश्वतो अ, भवजल तरवा जहाज. पूजो० १ मणि माणेक मुकताफळे अ, रजत कनकनां फूल; पूजो० केसर चंदन घसी घणां अ, बीजी वस्तु अमूल. पूजो० २ छट्टे अंगे दाखीओ ओ, आठमे अंगे भाख; पूजो० स्थिरावलिपयन्ने वर्णव्यो अ, अ आगमनी साख पूजो० ३ विमल करे भविलोकने अ, तेणे विमलाचल जाण; पूजो० शुक्र - राजाथी विस्तर्यो ओ, शत्रुंजय गुणखाण. पूजो० ४ पुंडरीक गणधरथी थयो अ, पुंडरीकगिरि गुणधाम; पूजो० सुरनर - कृत ओम जाणीओ अ, उत्तम अकवीस नाम. पूजो० ५ अ गिरिवरना गुण घणा अ, नाणीथी नवि कहेवाय; पूजो० जाणे पण कही नवि शके अ, मूक गुडने न्याय. पूजो० ६ गिरिवर फरसन नवि कर्यो ओ, पूरे मननी आश. पूजो० ७ आज महोदय में लह्यो अ, पाम्यो प्रमोद रसाळ; पूजो० मणि उद्योत गिरि सेवंता अ, घेर घेर मंगलमाळ. पूजो गिरिराजने रे... ८
(24) श्री सिद्धाचल स्तवन
बापलडां रे पातिकडां, तमे शुं करशो हवे रहीने रे; श्री सिद्धाचल नयणे निरख्यो, दूर जाओ तमे वहीने रे, बापलडा रे पातिकडा तमे० १ काल अनादी लगे तुम साथे, प्रीत करी निरवहीने रे; आज थकी प्रभु चरणे रहेयुं, ओम शीखव्युं मनने रे; बा० २ दुःषमकाळे इण भरते, मुक्ति नहि संघयणे रे; पण तुम भक्ति मुक्ति ने खेंचे, चमक उपल जेम लोहने रे; बा० ३ शुद्ध सुवासन चूरण आप्युं, मिथ्या-पंक शोधनने रे; आतमभाव थयो मुज निर्मळ, आनंदमय तुज भजने रे. बा० ४ अखय - निधान तुज समकित पामी, कुण वंछे चल धनने रे; शांत सुधारस नयन कचोळे, सिंचो सेवक तनने रे. बा० ५ बाह्य अभ्यंतर शत्रु केरो, भय न होवे मुजने रे; सेवक
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सुखीयो सुजस - विलासी, ते महिमा प्रभु तुजने रे. बा० ६ नाममंत्र तुमारो साध्यो, ते थयो जगमोहनने रे; तुज मुखमुद्रा निरखी हरखुं, जिम चातक जलधरने रे. बा० ७ तुज विण अवरने देव करीने, नवि चाहुं फरी फरीने रे; ज्ञानविमल कहे भवजल तारो, सेवक बाह्य ग्रहीने रे. बापलडां रे पातिकडां, तमे शुं करशो हवे रहीने रे.... ८
( 25 ) श्री सिद्धाचल स्तवन
विमलगिरि विमलता समरीये, कमलदलनयन जगदीश रे; त्रिभुवन दिपक दीपतो, जिहां जयो श्री युगादिश रे. विमल ० १ पापना ताप सवि उपशमे, प्रहसमे समरतां नाम रे; पूजतां पाय श्री ऋषभनां, संपजे वांछित काम रे. विमल० २ ऋद्धि राणी घणी घर मळे, पयतळे कनकनी कोडी रे; नाभि नरनाथ सुत समरणे, इम भणे विनय करजोडी रे. विमल० ३
(26) श्री सिद्धाचल स्तवन
ते दिन क्यारे आवशे, श्री सिद्धाचल जईशुं; ऋषभ जिणंद जुहारीने, सूरजकुंडमां न्हाशुं ते दिन० १ समवसरणमां बेसीने, जिनवरनी वाणी; सांभळशुं साचे मने, परमारथ जाणी. ते दिन० २ समकित व्रत सुधां धरी, सद्गुरुने वंदी पाप सर्व आलोईने, निज आतम निंदी. ते दिन० ३ पडिक्कमणां दोय टंकना, करशुं मन कोडे; विषय कषाय विसारीने, तप करशुं होडे. ते दिन० ४ वहाला ने वैरी विचे, नवि करीशुं वहेरो; परना अवगुण देखीने नवि करशुं चहेरो. ते दिन० ५ धर्मस्थानक धन वापरी, छक्कायने हेते; पंचमहाव्रत लेईने, पाळशुं मन प्रीते. ते दिन० ६ कायानी माया मेलीने, परिषहने सहीशुं; सुख-दुःख सरवे विसारीने, समभावे रहीशुं. ते दिन० ७ अरिहंतदेवने ओळखी, गुण तेहना गाशुं; उदयरत्न अम उच्चरे, त्यारे निर्मळ थाशुं . ते दिन क्यारे आवशे... ८
( 27 ) श्री सिद्धाचल स्तवन ( राग : अमी भरेली नजरूं)
आज मारा नयणां सफळ थयां, श्री सिद्धाचल निरखी रे; गिरिने वधावुं मोतीडे, मारा हैयामां हरखी रे आज० १ धन्य धन्य सोरठ देशने,
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जिहां मे तीरथ जोडी रे; विमलाचल गिरनारने रे, वंदं बे कर जोडी. आज० २ साधुअनंता इण गिरि, सिध्या अनशन लेई; राम पांडव नारदऋषी, बीजा मुनिवर केई. आज० ३ मानव भव पामी करी, नवी ओ तीरथ भेटे; पाप कर्म जे आकरा, कहो केणी पेरे मेटे? आज० ४ तीर्थराज समरूं सदा, सारे वांछित काज; दुःख दोहग दूरे करी, आपे अविचल राज. आज० ५ सुख अभिलाषी प्राणीया, वंछे अविचल सुखडां. माणेक मुनि गिरि ध्यानथी, भांगे भवोभव दुःखडा. आज मारा नयणा सफळ थया...६ (28) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : करे विनती चंदनबाला वीरने रे) ___ चालो चालो ने जईओ सोरठ देशमां रे, जिहां पुंडरीकगिरि प्रख्यात; नमो नेह धरी गिरिराजने रे. ओ तरण तारण तीर्थ जाणीजे रे, गिरि महिमा अपरंपार. नमो० १ (साखी) अनंता मुनिवर ओ गिरि, पाम्या शिववधू नार, वळी अनंता अहीं कने; पामशे भवनो पार, नही संदेह अमां आणशो रे, जेनी शास्त्रमा छे घणी शाख. नमो० २ (साखी) अढार कोडाकोडी सागरूं, नाभिराया कुलचंद; प्रथम धर्म चलावता, मरूदेवीना नंद, लाख त्याशी पूरव घरमां रही रे, प्रभु दे छे वरसीदान. नमो० ३ (साखी) राज भळावी भरतने, लेवे संजमभार; वरसीतपर्नु कर्यु पारj, श्री श्रेयांसकुमार; लेवे शेरडी रस प्रभु सुजतो रे, रूडी अक्षयत्रीज मनोहार. नमो० ४ (साखी) प्रथम जिनेश्वर आवीया, पूरव नवाणुं वार; रायण हेठे समोसरी, कीधो गिरि विस्तार, सुणी भरत संघ लई आवता रे, तीरथ फरसीने करता उद्धार. नमो० ५ (साखी) चैत्र सुदनी पुनमे, पांचक्रोड मुनि-सार; पुंडरीक गणधर ओ गिरि, झाल्यो शिववधु हाथ. ओथी पुंडरीकगिरि नाम स्थापियेरे, इहां तीर्थपति श्री आदिनाथ. नमो० ६ (साखी) प्रथम प्रभुना पोतरा, द्राविडने वारीखील; सिद्धाचल सिद्धिवर्या, कार्तिक पुनम दिन, प्रभु अजित शांति दोय जणा रे, आवी चातुर्मास तिहां कीध. नमो० ७ (साखी) फागण सुदनी दशमे, नमि विनमि बे जोड; अणसण करी शिववधु वर्या, साथे मुनि बे क्रोड. सिद्ध थया वीशकोडी अणगारथी रे, पांचे पांडव ओ गिरिराज. नमो० ८ (साखी) नमि पुत्री चोसठ कही, पामी अविचळ धाम. चैतर वदनी चौदशे, पामी अविचळ ठाम. राम भरत मुनि त्रण क्रोडरों रे, कर्म कापी पाम्या सिद्धिराज. नमो० ६ (साखी) फागण उजळी
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तेरशे, शांब प्रद्युम्न कहेवाय; साडी आठ क्रोड मुनिवर्स, शेजूंजे शिवपुर जाय. छेला नारद ओकाणुं लाखथी रे, गिरि उपर वर्या शीवनार. नमो० १० (साखी) गई चोवीशीना प्रभु, बीजा निर्वाणी नाथ; तेणे कदम्बगिरि बोलता रे, जेना नामथी नवनिध थाय. नमो० ११ (साखी) ओम असंख्या मुनिवरू, ओ तीरथ मोझार; सिध्या ने वळी सिद्धशे, महिमा अपरंपार. भाखे दान दया पंन्यासनो रे, शिष्य सौभाग्यविमल सुखकार. नमो नमो नेह धरी गिरिराजने रे....१२
(29) श्री सिद्धाचल स्तवन सिद्धाचलना वासी, विमलाचलना वासी; जिनजी प्यारा! आदिनाथने वंदन हमारा. प्रभुजी- मुखर्छ मलके, नयनोमांथी वरसे अमी रसधारा; आदि० १ प्रभुजी- मुखडुं छे मलक मिलाकर, दिलमें भक्तिकी ज्योत जगाकर; भजले प्रभुने भावे, दुर्गति फरी न आवे; जिनजी प्यारा आदि० २ भमीने लाख चोराशी हुं आव्यो, पुन्ये दरिशन तुमारूं पाम्यो; धन्य दिवन मारो, भवना फेरा टाळो, जिनजी प्यारा! आदि० ३ अमे तो मायाना विलासी, तुमे तो मुक्तिपुरीना वासी, कर्मबंधन कापो, मोक्षसुख आपो; जिनजी प्यारा! आदि० ४ अरजी उरमां धरजो अमारी, अमने आशा छे प्रभुजी तुमारी; कहे हर्ष हवे, साचा स्वामी तुमे, पूजन करीओ अमे, जिनजी प्यारा! आदिनाथने वंदन हमारा. ५
(30) श्री सिद्धाचल स्तवन दादा आदिश्वरजी दूरथी आव्यो, दादा दरिशन द्यो; कोई आवे हाथी घोडे, कोई आवे चडे पलाणे, कोई आवे पगपाळे, दादाने दरबार, हां हां दादाने दरबार; दादा आदिश्वरजी दूरथी आव्यो, दादा दरिशन द्यो. १ शेठ आवे हाथी घोडे, राजा आवे चडे पलाणे; हुं आवु पग पाळे, दादाने दरबार, हां हां दादा ने दरबार, दादा आदिश्वरजी० २ कोई मूके सोना रूपा, कोई मूके महोर; कोई मूके चपटी चोखा, दादाने दरबार. हां हां दादाने दरबार, दादा आदिश्वरजी० ३ शेठ मूके सोना रूपा, राजा मूके महोर; हुं मुकुं चपटी चोखा, दादाने दरबार. हां हां दादाने दरबार, दादा आदिश्वरजी० ४ कोई मांगे कंचनकाया, कोई मांगे आंख; कोई मांगे चरणोनी सेवा, दादा ने
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दरबार. हां हां दादाने दरबार, दादा आदिश्वरजी० ५ पांगळो मांगे कंचनकाया, आंधळो मांगे आंख; हुं मांगु चरणोनी सेवा, दादा ने दरबार. हां हां दादाने दरबार, दादा आदिश्वरजी० ६ हीरविजय गुरु हीरलो ने, वीर विजय गुण गाय, शत्रुजयना दर्शन करतां आनंद अपार. हां हां आनंद अपार. दादा आदिश्वरजी, दूरथी आव्यो दादा दरिशन द्यो. ७
(31) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : दुर्गा) कयुं न भये हम मोर विमलगिर, कयुं न भये हम मोर. १ सिद्धवड रायण रूखकी शाखा, झुलत करत झकोर. विमल० २ आवत संघ रचावत अंगीआ, गावत गुण घमघोर. विमल० ३ हम भी छत्र कला करी निरखत, कटने कर्म कठोर. विमल० ४ मूरत देख सदा मन हरखे, जैसे चंद चकोर. विमल० ५ श्री रिसहेसर दास तुमारो, अरज करत कर जोर. विमलगिर, कयुं न भये हम मोर...६
(32) श्री सिद्धाचल स्तवन सिद्धाचलनो वासी प्यारो लागे मोरा राजींदा. १ इणे रे डुंगरियामां झीणी झीणी कोरणी, उपर शिखर बिराजे. मोरा ०२ काने कुंडल माथे मुगट बिराजे, बांहे बाजुबंध छाजे. मोरा ०३ चौमुख बिंब अनोपम छाजे, अद्भुत दीठे दुःख भांजे. मोरा ०४ चुवा चुवा चंदन और अगरजा, केसर तिलक बिराजे. मोरा ०५ इणेगिरि साधु अनंता सिध्या, कहेतां न आवे पार. मोरा ०६ ज्ञानविमल प्रभु ओणी पेरे बोले, आ भवपार उतारो. मोरा ०७
(33) श्री सिद्धाचल स्तवन आवी रूडी भगती में पहेला न जाणी, पहेला न जाणी रे प्रभुजी, पहेला न जाणी; संसारनी मायामां में वलोव्युं पाणी. आवी० १ शत्रुजय गिरिवर जईओ, नवाणुं करीओ; आतमशुद्ध करीने से तो पावन थईओ.
आवी० २ ऋषभ जिणेसर स्वामी मारा, भेटवा भले भावे; नाभिनरेसर नंदन दीठा, हरख्यो ते वारे. आवी० ३ चोराशी लाख जीवायोनीमां, भमियो काल
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अनंता; तिहां भावमित्तने नवि पेख्यो, ओवा अरिहंता. आवी० ४ कामक्रोध मान माया लोभे, अति रडवडीयो; अकेन्द्रि तेइन्द्रिमांहे, तुं नवि पेख्यो. आवी० ५ ज्ञानविमलसूरि इम जंपे, मुने अहवा हेवा; मोक्षमार्गना स्वामी आपो, मुजने मेवा. आवी रूडी भगती में पहेला न जाणी...६ ।। (34) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : शीदने आंसु सारे हो लाडकी)
विमलाचल जई वसीये, चालोने सखी, विमलाचल जई वसीये, आदि अनादि निगोदमां वसीयो, पन्य उदये निकसीयो; चार गतिमां भ्रमण करीने, लाख चोराशी फरसीयो. चालो ने० १ देव नारकी तिर्यंच मांही वळी, दुःख सह्यां अहनिशीये; पुन्य प्रभावे मनुष्यभव पामी, देश आरजमां वसीये. चालो ने० २ देव गुरु ने जैनधर्म पामी, आतम ऋद्धि उल्लसीये, श्रीसिद्धाचल नयणे निहाली, पापतिमिरथी खसीयो, चालो ने० ३ काल अनादिना मोहरायनां, मसी लईने मुख घसीये, श्री आदिधर चरण पसाये, क्षमा खड्ग लई धसीये. चालो ने० ४ मोहने मारी आतम तारी, शिवपुरमा जई वसीये; जिन उत्तम पद रूप निहाली, केवळ लक्ष्मी फरसीये, चालो ने सखी, विमलाचल जई वसीये...५ (35) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : ओ नील गगननुं पंखेरूं)
विमलाचल विमला पाणी, शीतल तरुछाया ठराणी; रसवेधक कंचनखाणी, कहे इंद्र सुणो इन्द्राणी; सनेही संत! ओ गिर सेवो; चउद क्षेत्रमां तीर्थ न अवो. स० १ छहरी पाली उल्लसीओ, छट्ठ अट्ठम काया कसीमे; मोहमल्लनी सामा धसीओ, विमलाचल वेगे वसीओ. स० २ अन्य स्थानक कर्म जे करीओ, ते हिमगिरि हेठे हरीओ; पाछल प्रदक्षिणा फरीओ, भवजलधि हेला तरीओ. स० ३ शिवमंदिर चढवा काजे, सोपाननी पंक्ति विराजे; चढतां समकित छाजे, दूर्भव्य अभव्य ते लाजे. स० ४ पांडव पमुहा केई संता, आदिधर ध्यान धरंता; परमातम भाव भजंता, सिद्धाचल सिद्धा अनंता. स० ५ षट्मासी ध्यान धरावे, शुकराज ते राज्य निपावे; बहिरंतर शत्रु हरावे, शत्रुजय नाम धरावे. स० ६ प्रणिधाने भजो गिरि जाचो, तीर्थंकर नाम निकाचो; मोहरायने लागे तमाचो, शुभवीर विमलगिरि साचो. सनेही संत! ओ गिर सेवो....७
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(36) श्री सिद्धाचल स्तवन विवेकी विमलाचल वसीये, तप जप करी काया कसीये; खोटी मायाथी खसीये,-विवेकी विमलाचल वसीये; वसी उन्मारगथी खसीये. विवेकी० १ माया मोहनीये मोह्यो, कोण राखे रणमां रोयो; आ नरभव अळे खोयो, विवेकी० २ बाळ लीलाओ हुलराव्यो, यौवन युवतिओ गायो; तोये तृप्ति नवि पायो. विवेकी० ३ रमणी गीत विषय राच्यो, मोहनी मदिराले माच्यो; नव नव वेष करी नाच्यो. विवेकी० ४ आगमवाणी समी आसी, भवजलधी माही वासी, रोहीत मत्स्य समो थासी. विवेकी० ५ मोहनी जालने संहारे, आप कुटुंब सकल तारे; वरणवीये ते संसारे. विवेकी० ६ संसारे कूडी माया, पंथ शिरे पंथी आया; मृगतृष्णा जळने धाया. विवेकी० ७ भव दव ताप लही आया, पांडव परिकर मुनिराया; शीतल सिद्धाचल छाया. विवेकी० ८ गुरु उपदेश सुणी भावे, संघ देशोदेशथी आवे; गिरिवर देखी गुण गावे. विवेकी० ६ संवत अढार चोरासी , माघ उज्वल अकादशी); वांद्या प्रभुजी विमलवसीओ. विवेकी० १० जात्रा नवाणुं अम करीओ, भव भव पातिकडां हरीओ; तीर्थ विना कहो केम तरीओ? विवेकी० ११ हंस मयूरा इण ठामे, चकवा शुक कोयल परिणामे; दर्शन देवगति पामे. विवेकी० १२ शेव्रुजी नदिओ न्हाई, कष्टे सुरसान्निध्य दाई; पणसय चाप गुहा ठाई. विवेकी० १३ रयणमय पडीमा जे पूजे, तेनां पातिकडां धूजे, ते नर सीझे भव त्रीजे. विवेकी० १४ सासयगिरी रायण पगलां, चउमुख आदिचैत्य भलां; श्री शुभवीर नमे सघळां. विवेकी विमलाचल वसीये....१५
(37) श्री सिद्धाचल स्तवन तुमे तो भले बिराजोजी, सिद्धाचल के वासी, साहिब! भले बिराजो जी (ओ आंकणी) मरूदेवीनो नंदन रूडो, नाभि नरिंद मल्हार! जुगला धर्म निवारण आव्यां, पूर्व नवाणुं वार. तुमे तो० १ मूळनायकनी सन्मुख राजे, पुंडरीक गणधार; पंच क्रोडशुं चैत्री पूनमे, वरीआ शिववधू सार. तुमे तो० २ सहस्त्रकूट दक्षिण बिराजे, जिनवर सहस चोवीश; चउदसें बावन गणधरना, पगला पूजो जगीश. तुमे तो० ३ प्रभुनां पगलां रायण हेठे,
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पूजी परमानंद, अष्टापद चोवीश जिनेश्वर, सम्मेत वीश जिणंद. तुमे तो० ४ मेरूपर्वत चैत्य घणेरां, चउमुख बिंब अनेक; बावन जिनालय देवळ निरखी, हरख लहु अतिरेक. तुमे तो० ५ सहस्रफणा ने शामळा पासजी, समवसरण मंडाण; छीपावसी ने खरतरवसी कांई, प्रेमावसी परमाण. तु तो० ६ संवत अढार ओगणपच्चासे, फागण अष्टमी दिन; उज्वल पक्षे उज्वळ हुओ कांई, गिरि फरस्यां मुज मन तुमे तो० ७ इत्यादिक जिनबिंब निहाळी, सांभळी सिद्धनी श्रेण; उत्तम गिरिवर केणी पेरे विसरे, पद्मविजय कहे जेण. तुमे तो भले बिराजोजी..... ८
( 38 ) श्री सिद्धाचल स्तवन
जिणंदा तोरे चरण कमलकी रे, हुं चाहुं सेवा प्यारी; तो नासे कर्म कठारी, भवभ्रांति मीट गई सारी. जिणंदा० १ विमलगिरि राजे रे, महिमा अति गाजे रे; वाजे जग डंका तेरा, तुं सच्चा साहिब मेरा, हुं बालक चेला तेरा. जिणंदा० २ करूणाकर स्वामी रे, तुं अंतरजामी रे; नामी जग पूनम-चंदा, तुं अजर अमर सुखकंदा, तुं नाभिराय कुल नंदा. जिणंदा० ३ इण गिरि सिद्धा रे, मुनि अनंत प्रसिद्धा रे; प्रभु पुंडरीक गणधारी, पुंडरीकगिरि नाम कहारी, यह सब महिमा है थारी. जिणंदा० ४ तारक जग दीठा रे, पाप पंक सहु नीठा रे; हिट्ठा मो मनमें भारी, में कीनी सेवा थारी, हुं मास रह्यो शुभ चारी. जिणंदा ० ५ अब मोहे तारो रे, बिरूद निहारो रे, तीरथ जिनवर दो भेटी; में जन्म जरा दुःख मेटी, हुं पायो गुणनी पेटी. जिणंदा० ६ द्राविड वारिखिल्लारे, दश कोडी मुनि मलिया रे; हुअ मुक्तिरमणी भरतारा, कार्तिक पूनम दिन सारा; जिनशासन जग जयकारा जिणंदा० ७ संवत शिखि चारा रे, निधि इंदु उदारा रे; आतमको आनंदकारी, जिनशासनकी बलिहारी, पाम्यो भवजलधि पारी. जिणंदा० ८
(39) श्री सिद्धाचल स्तवन
वंदना वंदना वंदना रे, गिरिराजकुं सदा मोरी वंदना; वंदना ते पाप - निकंदना रे, आदिनाथकुं सदा मोरी वंदना. गिरि० जिनको दरिसण दुर्लभ देखी, कीधी ते कर्म निकंदना रे; गिरि० १ विषय कषाय ताप उपशमीये,
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जिम मिले बावनचंदना रे; गिरि० धनधन ते दिन कबहु होशे, थाशे तुम मुख दर्शन रे गिरि० २ तिहां विशाल भाव पण होशे, जिहां प्रभु पदकज फर्शना रे; गिरि० चित्तमांहेथी कबहु न विसरूं, प्रभु गुणगणनी ध्यावना रे; गिरि० ३ वळी वळी दरिशण वहेलुं लहीये, अहवी रहे नित्य भावना रे; गिरि० भवोभव अहि ज चित्तमां चाहुं, मेरे ओर नही विचारणा रे; गिरि० ४ चित्र गयंदना महावतनी पेरे, फेर न होय उतारणा रे; गिरि० ज्ञानविमल प्रभु पूर्ण कृपाथी, सुकृत सुबोध सुवासना रे; गिरिराजकुं सदा मोरी वंदनारे... ५ ( 40 ) श्री सिद्धाचल स्तवन
सुखना हो सिंधुरे सखी मारे उल्लट्यां रे, दुःखना दरिया नाठा जाय, पुण्य तणा अंकुरा होजी मारे प्रगटियां रे, में तो भेट्यो शत्रुंजय गिरिराय. सुखना० १ पूर्व नवाणुं वार समोसर्या रे, धन्य धन्य रायण के रूख, प्रेमे पूजोरे पगलां प्रभु तणां रे, भवोभव केरा जाये दुःख सुखना० २ नयणे नीरख्यो रे नाभि नरिंदो रे, नंद ते करुणारसनो कंद, आंखलडी जोई रे कमलनी पांखलडी रे, मुखडुं ते जोयुं पूनम केरो चंद. सुखना० ३ सुरवर मुनिवर मोटा राजवी रे, वळी रे विद्याधर केरो वृंद, भवोभव केरा रे, ताप शमाववा रे, मुखडुं
जाणे शरद के चंद. सुखना० ४ धन्य धन्य राजा ऋषभ जिनेश्वरू रे, धन्य धन्य शत्रुंजय गिरिराय; रूपनी कीर्ति रे चरण पसाउले रे, ओम साधु माणेक गुण गाय. सुखना हो सिंधुरे सखी मारे उल्लट्यां रे...५
( 41 ) श्री सिद्धाचल स्तवन
मोरा आतमराम कुण दिन शेत्रुंजे जाशुं; शेत्रुंजा केरी पाजे चढता, ऋषभतणा गुण गाशुं. मोरा० १ अ गिरिवरनो महिमा सूणीने, हियडे समकित वास्युं; जिनवर भावसहित पूजीने, भवेभवे निर्मळ थाशुं. मोरा० २ मन वचन काय निर्मळ करीने, सूरजकुंडे नहाशुं मरुदेवीनो नंदन नीरखी, पातिक दूरे पलाशुं . मोरा० ३ इणगिरि सिद्ध अनंत हुआ, ध्यान सदा तस ध्याशुं; सकल जनममां अ मानवभव, लेखे करीय सराशुं. मोरा० ४ सुरवरपूजित पदकज रज, मिलवटे तिलक चढावशुं; मनमां हरखी डुंगर फरसी, हैडे हरखित थाशुं . मोरा० ५ समकितधारी स्वामी साथे, सद्गुरु
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समकित लाशुं; छ'री पाळी पाप पखाली, दुर्गति दूरे पलाशुं . मोरा० ६ श्री जिननामी समकित पामी, लेखे त्यारे गणाशुं; ज्ञानविमल कहे धनधन ते दिन, परमानंद पद पाशुं. मोरा आतमराम कुण दिन शेत्रुंजे जाशुं ...७ ( 42 ) श्री सिद्धाचल स्तवन
पालीताणा मन भाव्यं प्रभुजी, नाम मीठं मने लाग्युं, त्या तो बीराजे छे ऋषभ जिनेश्वर, नाभिना जाया. (२) पहेली ट्रंके जई पावन थाशुं, बीजी ट्रंके जई कर्म खपावीशुं. त्रीजे ते पाप पलाय. प्रभुजी ० १ चोथी ट्रंके जई क्रोध न करशो, पांचमी ट्रंके जई मान न करशो. छठे ते मायाने विसरो. प्रभुजी० २ सातमी टूंके लोभ न करशो, आठमी ट्रंके जई ममताने तजशो; नवमे ते दादाने भेटो. प्रभुजी० ३ दर्शनना प्रभु कोड पुरावो, बाळकडानी लाज निभावो, लब्धिसूरिओ तो गायुं प्रभुजी तुं छे तरवानुं ठेकाणुं प्रभुजी० ४ (43) श्री सिद्धाचल स्तवन
दई तस मानने अर्थ समान रे, जे ताहरे दील आवे रे; नागर सज्जना रे, कोई सिद्धगिरिराज बतावे रे, भेटावेरे, वंदावेरे, पूजावेरे, गवरावेरे, नवरावेरे, नागर सज्जना रे, १ अतिहि उमहियो ने बहु दिन वहीयो रे; केई मानवना वृंद आवे रे, नागर सज्जना रे, २ धवळ देवळीया ने सुरपति मळीया रे, केई चारे पागे चढावे रे; नागर सज्जना रे, ३ नाटक गीत ने वाजत्र वागे रे, केई मनगमता नाद सुणावे रे; नागर सज्जना रे, ४ श्री जिन निरखीने हरखित होवे रे, केई तृषित चातक जल पावे रे; नागर सज्जना रे, ५ सकल तिरथ मांहि समरथ अ गिरि, केई आगम पाठ बतावे रे; नागर सज्जना रे, ६ धनधन अ गृहपति ने नस्पति, कोई संघपति तिलक धरावे रे; नागर सज्जना रे, ७ घेर बेठां पण अहीज ध्यावो रे, ज्ञानविमल गुण गावे रे. नागर सज्जना रे, て
(44) श्री सिद्धाचल स्तवन
नाभि भूप मरुदेवी
सिद्धगिरि मंडन पाय नमीजे, रिसहेसर जिनराय; नंदन; जगत जंतु सुखकार रे... स्वामी ! रिसहेसर जिनराय; तुम दरशनथी
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समकित प्रगटे, निज गुणरुद्धि उदार रे० स्वा०. ॥१॥ भारे करमीने पण तें तार्या; भवजलधिथी उगार्या; मुज सरिखा किम नवि संभार्या, चित्तथी केम उतार्या रे०...स्वामी० ॥२॥ पापी अधम पण तुम सुपसाये, पाम्या गुण समुदाय; अमे पण तरशुं शरणु स्वीकारी, महेर करो महाराय! रे०...स्वामी० ॥३॥ तरणतारण जगमांही कहावो हुँ सेवक तारो; अवर आगळ कीम जईने जाचुं, महिमा अधिक तुमारो रे...स्वामी०. ।।४।। मुज अवगुण सामु मत जुवो, बिरुद तमारूं संभाळो;.....पतितपावन तुमे नाम धरावो, मोह विडंबना टाळो रे...स्वामी०. ॥५॥ पूरव नवाणुं वार पधारी, पवित्र कर्यु शुभ धाम; साधु अनंता कर्म खपावी, पहोंच्या मुक्ति मोझार हो स्वामी०. ॥६।। श्री नयविजय विबुध पायसेवक, वाचक जस कहे साचुं; विमलाचल-भूषण स्तवनाथी, आनंद रसभर माचुं रे...स्वामी०. |७||
(45) श्री सिद्धाचल स्तवन तुं त्रिभुवन सुखकार, ऋषभजिन! तुं त्रिभुवन सुखकार; शत्रुजयगिरि शणगार, ऋ० भूषण भरतमझार. ऋ० आदि पुरुष अवतार, ऋ० आंकणी. तुम चरणे पावन कर्यु रे, पूर्व नवाणुं वार; तेणे तीरथ समरथ थयुं रे, करव्रा जगत उद्धार. ऋ० १. अवर ते गिरि पर्वत वडो रे, अह थयो गिरिराज; सिद्ध अनंता इहा थया रे, वली आव्या अवर जिनराज. ऋ० २. सुंदरता सुरसदनथी रे, अधिक जिहां प्रासाद, बिंब अनेके शोभता रे, दीठे टळे विखवाद. ऋ० ३. भेटण काजे उमह्यो रे, आवे सवि भवि लोक; कलिमल तस अडके नहि रे, जयुं सोवनधन रोक. ऋ० ४. ज्ञानविमल प्रभु जस शिरे रे, तस खसे भव परवाह; करतलगत शिवसुंदरी रे, मळे सहज उच्छांह. ऋषभजिन! तुं त्रिभुवन सुखकार...५.
(46) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग-ओ नील गगननुं पंखेरू)
सिद्धाचल सिद्ध सुहावे, अनंत अनंत कहावे, भेद पंदरथी शिव जावे, गुण अगुरुलघु नीपजावेरे, विमलाचल वेगे वधावो, गिरिराज तणा गुण गावोरे, जो होवे शिवपुर जावोरे, विमलाचल वेगे वधावो. १ जितारी अभिग्रह लीधो रे, दिन सातमे भोजन कीधो रे, शुक राजाओ राजते लीधो,
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181 रे शत्रुजय नाम ते दीधो रे, विमलाचल० २ देव दानव इणगिरि आवे, रे जिनराजने शीष नमावे रे सूत्र माहे नाच नचावे, जोगावंचक फल पावेरे, विमलाचल० ३ विद्याचारण मुनिवरीया, मर्कट फल जल संचरिया, आकाशे पवनसे चलिया, देखो हेमगिरि हेठा उतरीया विमलाचल० ४ प्रभु देखीने आनंद पावे, जिनराजने शिष नमावे, देव साथे भावना भावे, पछी इच्छित थानके जावे रे. विमलाचल० ५ ज्ञान दर्शन जेहथी लहीये, नवमो श्रावक गुण वहीये, संसारने तीरे रहीओ, जिनशासन तीरथ कहीओ रे. विमला० ६ सहु तीरथनो ओ राजा, सूरजकुंडमां जल ताजा; नाहतां जन आनंद भाजा, हुओ कुकडो ते चंदराजा रे, विमला० ७ ओ तीरथ भेटण काजे, गुजरातनो संघ समाजे; पंथे पंथे विशामा छाजे, गिरि देखी वधावे उल्लासे रे. विमला० ८ अढार तिहुंतरा वरसे, मागशर वदि तेरस दिवसे; भेट्या आदिश्वर उल्लासे, जाणुं भवजल पार उतरशे रे. विमला० ६ गिरि देखी लोचन ठरीया, चक्केसरी वीर केशरीया; जाई केतकी वृक्ष लहेरीया, शत्रुजी नदी जल भरीया रे. विमला० १० राय भरत रतन बिंब ठावे, चक्केसरी यात्रा करावे; ते त्रीजे भवे शीव जावे, शुभ वीर वचन रस गावे रे. विमलाचल वेगे वधावो...११
(47) श्री सिद्धाचल स्तवन यह विमल गिरिवर शिखर सुंदर, सकल तीरथ सार रे, नाभिनंदन त्रिजग वंदन, ऋषभजिन सुखकार रे. यह० १ चैत्य तरुवरु रुखरायण, तळे अति मनोहर रे, नाभिनंदन तणां पगलां, भेटतां भव पार रे. यह० २ समवसरीया आदि जिनवर, जाणी लाभ अनंत रे, अजित शांति चौमासुं रहीया, इम अनंत महंत रे. यह० ३ साधु सिध्या जिहां अनंता, पुंडरिक गणधाररे, शांबने प्रद्युम्न पांडव, प्रमुख बहु अणगार रे. यह० ४ नेमि जिनना शिष्य थावच्चा, सहस अढी परिवार रे, अंतगडजी सूत्र मांहे, ज्ञाता सूत्र मोझार रे. यह० ५ भाव शुं भवि जेह फरसे, सिद्ध क्षेत्र शुभ ठाम रे, नरक तिरि गति दो निवारे, जपे लाख जिन नाम रे. यह० ६ रयणमय श्री ऋषभ प्रतिमा, पंचसया धनुमान रे, नित्य प्रत्ये जिहा इन्द्र पूजे, दूषम समय प्रमाण रे. यह० ७ त्रीजे भवे जे मुक्ति पहोंचे, भविक भेटे तेह रे, देव सानिध्य सकल वांछित, पुरवे ससनेह रे. यह० ८ इणी पेरे जेहनो सबल
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महिमा कह्यो शास्त्र मोझार रे, ज्ञानविमल गिरिध्यान धरतां, मुज आवागमन निवार रे. यह विमल गिरिवर शिखर सुंदर, सकल तीरथ सार रे...६
(48) श्री सिद्धाचल स्तवन शेजूंजा शिखर सोहामणुं रे लोल; जीहां श्री ऋषभ जिणंद रूडा पंथीडा; भावे भवियण भेटवारे लाल, पातीक दुरे जाय....रुडा पंथीडा... ॥१॥ नयणे निरख्यो दुरथी रे लाल, श्री सिद्धाचल सार...रूडा पंथीडा... अंगे आणंद उलट्यो रे लाल; सफळ थयो अवतार....रुडा पंथीडा...॥२॥ पालीताणा शहेर सोहामणुं रे लाल; जिहां श्री आदि प्रासाद; रूडा० पहेला पूजी तेहने रे लाल, दुर करी प्रमाद....रुडा पंथीडा० ॥३।। ललिता सर लहेरा लीये रे लाल, शीतल तरुवर छांय...रूडा० शेर्बुजा गिरि पगला भरी रे लाल; हीयईं हरखीत थाय....रूडा पंथीडा० ॥४॥ पाजे चढतां पाछलारे लाल, पातिकडा सवी जाय, रूडा० परबे परबे पादुका रे लाल, पेखता भव दुःख जाय....रूडा पंथीडा० ॥५॥ दरवाजो वाघण तणो रे लाल, पेसी कीधां प्रणाम; रूडा० चोरी नेमि जिणंदनी रे लाल; स्वर्ग बारीने काम.... रुडा पंथीडा० ॥६॥ प्रदक्षिणा दीजे जिणंदने रे लाल, पुंडरिक गणधार रूडा०; सहस जिनेसर बिंबनो रे लाल; जीहां सहस्रकुट मनोहार....रूडा पंथीडा० ॥७॥ रायण तळे प्रभु पादुका रे लाल, प्रणमता पावन मन.... रूडा० पंथीडा गणधर पगलां पूजतां रे लाल; चउदशे बावन,....रूडा पंथीडा० ॥८॥ मुल गभारे आवीया रे लाल, गज चड्यां मरुदेवी मात...रूडा० पंथीडा मुरति भरत भूपालनी रे लाल; निरखंता सुख थाय.... रूडा पंथीडा...॥६॥ श्री रिसहेसर वांदवा रे लाल, कीजे रुडा अवतार... रूडा, भवभव भावठ मेटीया रे लाल; दीठे प्रभु देदार....रूडा पंथीडा... ॥१०॥ गोमुख देवी चक्केसरी रे लाल, कवड जक्ष अही ठाण...रूडा... शत्रुजय सानिध्य कारकुं रे लाल; चौमुख प्रासाद मंडाण....रुडा पंथीडा... ॥११॥ प्रौढ प्रतिमा वंदिये रे लाल; अद्भुत आदि जिणंद रूडा...टुंक मरुदेवी मायनी रेलाल; देहरु शांतिने अजीत जिणंद...रूडा... पांच पांडवनी देहरी रे लाल चौमुख आदि जिणंद रूडा० तिहां गणधरनी पादुका रे लाल, प्रणमता अधिक आणंद....रूडा पंथीडा...॥१३॥ अनुक्रमे
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सूरजकुंडथी रे लाल, प्रदक्षिणा देवाय...रूडा० निर्मल चंदन तलावडी रे लाल; जीहा सीध्या ऋषी राय....रूडा पंथीडा...॥१४॥ रयणमय प्रतिमा मूलथी रे लाल, पांचशे धनुष प्रमाण रूडा० नमण लहीजे तेहy रे लाल, उलखा जोली तसनाम.... रूडा पंथीडा...॥१५॥ सिद्धवड तळे पगलां नमि रे लाल, चढीय आदिपुर आज रूडा० फरीने ऋषभ जिन भेटतां रे लाल; मोरा सिध्या सघळा काज....रूडा पंथीडा...।।१६।। अणी पेरे देई प्रदक्षिणा रे लाल; फरसे विमलगीरी जेह; नरक तिरिय गति न रहे रे लाल; शुभ गति पामे तेह....रूडा पंथीडा...॥१७॥ सिद्ध अनंत तिहां थया रे लाल; पाम्या भवनो पार....रूडा० प्रथम जिणंद समोसर्या रे लाल, पूरव नव्वाणुं वार....रूडा पंथीडा...॥१८॥ धन्य दिन वेळा घडी रेलाल, सफळ गणुं अवतार रुडा... नयणे निरख्यो नेहशुं रे लाल, जीहां नाभिनरिंद मल्हार....रूडा पंथीडा० ॥१६।। नीतुं नीतुं किजे, वंदना रे लाल; प्रह समे उगते सूर तस. धीर विमल कवि राजनो रे लाल; कहे नय विमल शुं शिष्य....रूडा पंथीडा... ॥२०॥ इति (49) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : ओक, दो, तीन, चार,...)
सुण जिनवर शेजा धणीजी, दास तणी अरदास; तुज आगळ बाळक परेजी, हुं तो करूं वेखास रे; जिनजी! मुज पापीने तार. तुं तो करुणारसे भर्योजी, तुं सहुनो हितकार रे, जिनजी! मुज० १ हुं अवगुणनो ओरडोजी, गुण तो नहीं लवलेश; परगुण पेखी नवि शकुंजी, केम संसार तरीशरे? रे जिनजी! मुज० २ जीव तणां वध में कर्यां जी, बोल्या मृषावाद; कपट करी परधन हर्या जी, सेव्या विषय संवाद रे. जिनजी! मुज० ३ हुं लंपट हुं लालचुं जी, कर्म कीधां केई क्रोड; त्रण ,भुवनमां को नहींजी, जे आवे मुज जोड रे. जिनजी! मुज० ४ छीद्र परायां अहोनिशेजी, जोतो रहुं जगनाथ; कुगतितणी करणी करीजी, जोड्यो तेहशुं साथ रे जिनजी! मुज० ५ कुमति कुटिल कदाग्रहीजी, वांकी गति मति मुज; वांकी करणी माहरीजी, शी संभळा, तुज रे. जिनजी! मुज० ६ पुन्य विना मुज प्राणीओजी, जाणे मेलु रे आथ; उंचा तरुवर मोरीयांजी, त्यांही पसारे हाथ रे. जिनजी! मुज० ७ विण खाधा विण भोगव्याजी, फोगट कर्म बंधाय; आर्तध्यान मिटे नहींजी,
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कीजे कवण उपाय रे. जिनजी ! मुज० ८ काजळथी पण शामळाजी, मारा मन-परिणाम; सुहणामांही ताहरूंजी संभारूं नहीं नाम रे. जिनजी ! मुज० ६ मुग्ध लोक ठगवा भणीजी, करूं अनेक प्रपंच; कूड कपट बहु केलवीजी, पाप तणो करुं संच रे. जिनजी ! मुज० १० मन चंचळ न रहे कीमेजी, राचे रमणी रूप; काम विटंबणा शी कहुंजी, पडीश हुं दुर्गति कूप रे जिनजी ! मुज० ११ किस्या कहुं गुण माहराजी, किस्या कहुं अपवाद; जेम जेम संभारूं हियेजी, तेम तेम वधे विखवादरे जिनजी! मुज० १२ गिरुआ ते नवि लेखवेजी, निर्गुण सेवकनी वात; नीच तणे पण मंदिरेजी, चंद्र न टाळे ज्योतरे जिनजी! मुज० १३ निगुणो तो पण ताहरोजी, नाम धराव्युं दास; कृपा करी संभारजो जी, पूरजो मुज मन आश रे. जिनजी ! मुज० १४ पापी जाणी मुज मणी जी, मत मूको रे विसार; विष हळाहळ आदर्योजी, ईश्वर न तजे तास रे, निजी ! मुज० १५ उत्तम गुणकारी हुअजी, स्वार्थ विना सुजाण, करसण सिंचे सर भरेजी, मेह न मांगे दाण रे. जिनजी ! मुज० १६ तु उपकारी गुणनीलोजी, तु सेवक प्रतिपाळ; तु समरथ सुख पूरवाजी, कर माहरी संभाळ रे. जिनजी ! मुज० १७ तुजने शुं कहीओ घणुंजी, तु सहु वाते रे जाण; मुजने थाजो - साहिबाजी ! भव भव तारी आण रे. जिनजी! मुज० १८ नाभिरायाकुळ चंदलोजी, मरूदेवीनो रे नंद; कहे जिन हरख निवाजजोजी, देजो परमानंद रे. जिनजी! मुज० १६
(50) श्री जिनप्रतिमानुं स्तवन ( राग तातनुं निर्वाण सांभळी रे)
॥१॥ भरतादिके उद्धारज कीधो, शत्रुंजय मोझार; सोनातणा जेणे देहरा कराव्या, रत्नतणा बिंब स्थाप्या. हो कुमति ! कां? जिनप्रतिमा उत्थापी,
निवचने थापी हो कुमित० ||२|| वीर पछी बसे नेवुं वरसे, संप्रति राय सुजाण; सवा लाख जिन देहरा कराव्यां, सवा क्रोड बिंब स्थाप्या हो कुमि ||३|| द्रौपदि जिनप्रतिमा पूजी, सूत्रमें साख पुराणी; छठे अंगे वीरे भांख्युं, गणधर पुरे साखी . हो कुमित० ॥ ४॥ संवत नवसे त्राणु वरसे, विमल मंत्रीवर जेह; आबुतणा जेणे देहरा कराव्यां, पांच हजार बींब स्थाप्या हो कुमित० ||५|| संवत अगीयार नव्वाणुं वर्षे, राजा कुमारपाल, पांचहजार प्रासाद कराव्यां, सात हजार बिंब स्थाप्या हो कुमित० ||६||
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संवत बार पंचाणुं वर्षे, वस्तुपाल तेजपाल; पांच हजार प्रासाद कराव्या, अग्यार हजार बिंब स्थाप्या हो कुमित० ॥७॥ संवत बार बहोतेर वरसे, धन्नो संघवी जेह, राणकपुर जिन देहरा कराव्या, क्रोड नव्वाणुं द्रव्य खरच्यु हो कुमित० ॥॥संवत तेर अकोतेर वर्षे, समराशा रंग शेठ; उद्धार पंदरमो शत्रुजय कीधो, अगीयार लाख द्रव्य खरच्या०..हो कुमित० ॥६।। संवत पंदर सत्याशी वर्षे, बादशाह वारे; उद्धार सोलमो शत्रुजये कीधो, कर्माशाओ जस लीधो हो कुमित० ॥१०॥ जिन प्रतिमा जिन सरखी जाणी, पूजो त्रिविधे तुम प्राणी; जिन प्रतिमामां संदेह न राखो, वाचक जसनी मे वाणी. हो कुमति! कां? जिनप्रतिमा उत्थापी... (51) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : पापीने तुं प्यार करी ले.)
आज आपे चालो सैया, सिद्धाचल गिरि जई रे, विमलाचलगिरि जईओ रे, बेनी शाश्वत गिरिवर जईओ रे, आज० १. सुणबेनी ओ गिरि नो महिमा, आदिजिनवर भाखे रे, भरतादिक नरपतिनी आगे, इंद्रादिक सहु साखे रे. आज० २. इणगिरि उपर काल अनंता, साधु अनंता सिध्यां रे, जनम मरणनां दुःखडां छोडी, अमुल्य अक्षय फळ लीधां रे. आज० ३ इणगिरि सनमुख पगला भरतां, आतम शुद्ध स्वभावे रे, कोडी भवनां पातक कीधां, ओक पलकमां जावे रे. आज० ४. शाश्वत तीरथ श्री शत्रुजय, जोतां लागे मीठु रे, त्रणभुवनमा इणगिरि तोले, बीजुं कांई नवि दीर्छ रे. आज० ५. निरंजन शुं नेह धरीने, आतम साधन कीधां रे, अद्भुत आदिजिनेश्वर निरखी, प्रेम सुधारस पीधा रे. आज० ६. पुष्प सुगंधी लेई पचरंगी, हार सुगंधी गुंथी रे, पहेरावी प्रभु कंठे लेई, शिक्र मारगनी सिद्धि रे. आज० ७. गुहिर स्वरे जिनगुण गातां, यात्रा नवाणुं करीओ रे, मनगमती भमती जिमभमतां, भवसागरथी तरीओ रे. आज० ८ पूर्व नवाणुं वार प्रथमजिन रायणरुप्पे आया रे, अतीरथ शुभभावे फरसी, करीओ निर्मल काया रे. आज० ६. लाभ उदय ओ गिरि थी होवे, ओम कहे केवलनाणी रे, श्री जिनराज सदा हितवत्सल, प्रेम घणो मन आवे रे. आज आपे चालो सैया, सिद्धाचल गिरि जईओ रे...१०.
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( 52 ) श्री सिद्धाचल स्तवन
डुंगर ठंडोने डुंगर शीयळो, ए - गिरि सीध्या साधु अनंतरे, डुंगर पोलोने डुंगर फूटडो, त्यां वसे सुनंदानो कंत रे, प्रभुजीना शीरे चडे मोगर फूलनां १ पहेले आरे श्री पुंडरिकगिरि, एंसी जोजननुं परिमाणरे, बीजे सीत्र जोजन जाणीए, त्रीजे साठ जोजननुं मान । प्रभु० २ चोथे आरे पचास जोजन जाणीए, पांचमे बार जीजननुं मान, छठ्ठे आरे सात हाथ जाये, एम बोले श्री वर्धमान रे प्रभु० ३ ए गिरिऋषभ जिणंद समोसर्या, पूर्व नव्वाणु वार, जात्रा नव्वाणुं जे जुगते करे, धन धन तेहनो अवतार रे प्रभु० ४ जे नर शेत्रुंजो भेट्यो सही, जे नर पूज्या श्री आदि जिणंदरे, दान सुपात्रे जेणे दिधा नवी, तेना नवी छूटे कर्मना बंध रे, प्रभु० ५ डुंगर निरखी डुंगर जे चडे, डुंगर फरस्यां सो सो वाररे, मुक्ति सामाते पगला भरे, तेना नवि थाय कर्मना बंधरे, प्रभु० ६ उदय रत्ने कहे अवसर पामी, जात्रा करशे जे नरनार रे, शत्रुंजय महातममां कह्युं, तस घर मंगलनी माळ रे, प्रभुजीना शीरे चडे मोगर फूलनां...७
( 53 )
श्री सिद्धाचल स्तवन
मारूं डुंगरीये मन मोही रहयुं, मारूं गिरिवरीये मन मोही रह्युं, जग जीवन आदि जिणंद हो, माता मरूदेवी नो लाडलो, साधे सुनंदा हियडानो हार हो, मा० १ लालन चालोने चतुर उतावला, सुंदर सजवाडी जोडावहो, लालन लाहो लीजे लक्ष्मी तणो, मने विमलाचल भेंटाव हो, मा० २ लालन सेंथो नित्य फूले भर्यो, सोनां चुडलानो नथी मने चाहहो, लालन जोता हवे हुं वाटडी, मने शत्रुंजय भेटाव होमा० ३ लालन नव शेरो हार हुं शुं करूं ? हुं शुं करूं ? चारम चीर हो,....लालन शुं करू बाजु बंध बेरखा, मारे कांकरीये निर्मळ नीर हो, मा० ४ लालन इणगिरि ऋषभ समोसर्या, एकनेम विना विश हो,... लालन पांच पांडव मुक्ते गया, व्रतधारी कोडी वीश हो, मा० ५ लालन पांच कोडी पुंडरिकशुं, एतो सिध्या साधु अनंत हो; लालन द्राविड वारिखिल्ल बिहुंमली, दश क्रोड मुनीनी साथ हो, मा० ६ लालन धन्य दहाडो धन्य घडी, जिहां नाभिनरिंद मल्हार हो, लालन
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अलबेला आदिधर भेटशुं, आर्ची शुं जगत दयाळ हो,मा० ७ लालन इश्वाकुवंश जिनवरा, भरतादिक पेढी असंख्य हो,...लालन वली थावच्चा सहसरों, सिध्या छे सिद्धगिरि साथ हो,मा० ८ लालन नमिविनमि विद्याधरा, दोय क्रोड मुनीनी साथ हो, लालन इण तीर्थे भव निस्तों, एतो पाम्या शिवसुख साथ हो,मा० ६ लालन एकाणुं लाख मुनिवरा, गया नारद साथे सिद्ध हो, लालन भरत त्रण क्रोडीशुं, एतो पाम्या अविचल स्थान हो,मा० १० लालन साडी आठ क्रोडशं, एतो पाम्या शिवपुर साथ हो, लालन श्याम प्रद्युम्न दोय जणा, एतो जाशे शिव प्रशंस हो,मा० ११ लालन इणगिरि ऋषभ समोसर्या, ए तो पूर्व नवाणुं वार हो, लालन सिध्याने वलि सिद्धशे, ए तो कहेता नावे पार हो,मा० १२ लालन जे भेटे सिद्धाचले, तेनो जन्म सफळ सवि थाय हो, लालन मानविजय कविरायनो, तिहा सिद्धिविजय गुणगाय हो, मा० १३
(54) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : वासुपूज्य विलासी)
हे प्रभु ऋषभ स्वामी, अंतरयामि मोक्षना गामी, वंदु छु वारंवार, हे प्रभु हाथज जोडी, मानज मोडी, काया संकोची, वंदु छु वारंवार ।।१।। श्री सिद्धाचलमां आप बिराजो, प्रथम ऋषभ जिणंद, अष्ट अरिनो क्षय करीने, कीधां कर्मनां कंदरे हे प्रभु० ॥२॥ विनिता नगरीने विषेरे, आप जन्म्यां भगवंत, नरक निगोदमां हु बहु भमीयो, भमीयो काल अनंतरे हे प्रभु० ॥३॥ शशीनी परे शीतलतां रे, नाभिराया तुजतात, अष्ट सहस लक्षण तुमारा, मरुदेवा तुजमात रे हे प्रभु० ॥४॥ कषाय दंडक बंधन तोडी, पापकर्यां छे दूर, रे शिवनारीना प्रथमस्वामी, आव्यो छु आप हजूर हे प्रभु० ॥५॥ धर्मविजय गुरुराय पसाये, हितविजय गुणगाय, श्री आदिश्वर नयणे निरखी, हैडे हर्ष न माय रे हे प्रभु० ॥६॥
(55) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : एक, दो, तीन, चार)
भवि तुमे वंदोरे, श्री सिद्धाचल सुखकारी। पाप निकंदोरे, गिरि गुणमनमा धारी॥ नाभिनंदन पूर्व नव्वाणुं, श्री आदिश्वर आव्यां। अजित शांति चौमासुं रहीया, सुरनर पति मन भाव्यां । भवि०॥१॥ चैत्र सुदी
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पुनमने दीवसे, गुण रयणायर भरीया। पांच क्रोडशुं पुंडरिक गणधर, भवसागरने तरीया।। भवि०॥२॥ पोतरा प्रथम प्रभुजीकेरां, द्राविड वारिखिल्ल जाणो। कार्तिक सुदि पुनमने दीवसे, दश क्रोडी गुणखाणो।। भवि०॥३॥ कुंतामाता सती शिरोमणी, यदुवंशी सुखकारी। पांडव वीश क्रोडीशुं सिध्यां, अशरीरी अणाहारी ।। भवि०॥४॥ फागण सुदी दशमी दिन सेवो, नमि विनमि बे कोडी। आतमगुण निर्मल निपजाव्यां, नावे एहनी जोडी। भवि०॥५॥ चैत्र वदि चौदश शिवपामी, नमि पुत्री चौसठ । रत्नत्रयी संपूरणसाधी, पामीए परमट्ठ। भवि०॥६॥ फागण सुद तेरस शिव पाम्यां, शांब प्रद्युम्नगुणखाणी। साडी आठ कोटी मुनिवरशुं, परण्या शिवपटराणी।। भवि०॥७॥ राम भरत त्रण कोडि मुनिशुं, अचल थया अरिहंत, छेल्ला नारद लाख एकाj, समरो मन धरी खंत । भवि० ।।८।। एक सहसशु थावच्चा सुत, पंचसया शेलगजी। एक हजारशुं, शुक्र परिव्राजक, पाम्या पद अविचलजी॥ भवि०॥६॥ अतीत चोवीशनां बीजा प्रभु, तेहना गणधर वंदो। कदंबनामे एक क्रोडशुं, सिद्ध थया सुखकंदो।। भवि०॥१०॥ एक हजारने आठ संघाते, बाहुबली मुनि मोटा। त्रण क्रोडी जयराम मुनिश्वर, सिद्ध थया नही खोटा ।। भवि०॥११॥ अंधकं विष्णु पिता माता धारणी, तेह तणा दशपुत्र। गौतम समुद्र प्रमुख, शिव पाम्यां, राख्युं घरचं सूत्र । भवि०॥१२॥ वळी तेहना आठ पुत्र वखाणो, अक्षोभ आदिकुमार | सोळ वरस संयम आराधी, पाम्यां भवनो पार । भवि०॥१३॥ अनाद्रुष्टिने दारुक मुनि दोय, आतम शक्ति समारी। ऋषभ सेनादिक पण, इहां वरीयां शिवनारी॥ भवि०॥१४॥ भरतवंशी राजादि धणेरां, अंतिम धरमने साध्यो। शुकराजा षटमांसी ध्याने, मुक्ति निलय गुण वाध्यो। भवि० ॥१५॥ जालीमयालीने उवयाली, देवकी षट्सुतवारु। सिद्ध थयां मंडुक मुनि वळि, नमतां मन होय चारुं। भवि०॥१६॥ अतीत काळे सिद्धा अनंता, वळीय सिद्धसे अनंता । संप्रतिकाळे, मोटुं तीरथ, इम भाखे भगवंता । भवि० ॥१७॥ धन्य ए तीरथ मोटो महिमा, पामी पातिक जाये। क्षमाविजय जश तीरथ ध्याने, शुभमने सिद्ध थाये भवि तुमे वंदोरे, श्री सिद्धाचल सुखकारी॥१८॥
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( 56 ) श्री सिद्धाचल स्तवन (खमा मारा नंदजीना लाल ए राग )
अंतरजामी मारानाथ, शासन तारुं सोहामणुं, आंबाने छोडी कोण बावलीयो वावे, सरोवर छोडी कोण, छिल्लरमां न्हावे, हवे में तो झाल्यो तारो हाथ, शासन तारुं सोहामणुं ||१|| सोनुं बदलावी कोण पित्तलने लावे, अमरवेल छोडी कोण धतुरो वावे, साचो एक नाथतारो साथ || शासन० ॥२॥ कमली सूर्यनो, कुमुदनी चंद्रने, चाहुं हुं नित्यतेम, मरुदेवानंदने, चित्तमां छे एकतारुं ध्यान ॥ शासन० ॥ ३ ॥ शत्रुंजय मंडण आदिजिन राया, पुण्य उदयथी दर्शनपाया, आपो मने आत्मानुं ज्ञान | शासन० || ४ || विनिता नगरीमां जन्म तमारो, डुबका खाती, आ नावने तारो, हैये मारे होंश छे अपार,॥ शासन०॥५॥ ओगणीसोने चौराणुं वर्षे, चौथ सुदी फागणनी शांतिथी हर्षे, वीरविजय गुण गाय ॥ शासन तारुं सोहामणुं० ॥ ६ ॥
( 57 ) श्री सिद्धाचल स्तवन
चालो हो चालो सखी सिद्धाचल गिरि जईए के गिरिवर देखी सुख लहीए, चालो हो चालो सखी विमलाचल गिरि जईए, के पालीताणा जईने रहीए.....१ ए गिरि यात्राए जे आवे, भवत्रीजे ते सिद्ध ज थावे, अजरामर पदवी पावे....के गिरिवर० २ यात्रा नवाणुं करीए, नवकार लाख पूरा गणी भवसागर सहेजे तरीए.... के गिरिवर० ३ छठ्ठ अठ्ठम काया कसीए ..... मोहराया सामा धसीए, वेगे शिवपुरीमां वसीए,.... के गिरिवर० ४ सर्व तीरथनो ए राजा ..... सुरज कुंडना जळ ताजा, रोगीआ नर ते थाये साजा.....के गिरिवर० ५ केसर चंदन घसी घोळी.... कस्तुरी बरास भेळी, पूजो सर्व मळी टोळी ..... के गिरिवर० ६ पूजीने भावना भावो ....केवळज्ञान युगल पावो, जो होय शिवपुरीमां जावो..... के गिरिवर० ७ अढार एकोतेर वरसे....महा वदी पांचमी दिवसे, भेट्या श्री आदिश्वर उल्लसे..... के गिरिवर० ८ एह उत्तम पद 'पद्म' नी सेवा..... मुजने होजो देवाधिदेवा शिवरूपी लक्ष्मीसुख लेवा ..... के गिरिवर देखी सुख लहीये ०६
(58) श्री सिद्धाचल स्तवन ( राग जग जीवन जगवाल हो) श्री सिद्धाचल भेटीये रे, आणी हर्ष अपार लाल रे । त्रण भुवनमांहि
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190 जोवता रे, नावे एहनी हार लाल रे....वीर जिनेवर उपदीशे रे, सांभळो गोयम वजीर लालरे....महापापी पण गिरिवरे, पाम्या भवजल तीर लालरे....(१) फागण वदी दिन आठमे, पूर्व नव्वाणुं वार, लालरे, श्री० रायण तळे समोसर्या, प्रथम जिणंद सुखकार....लालरे, गिरिवरमां जेम सुरगिरि रे, मंत्रमां श्री नवकार, लालरे, (२) वासव सुरवरमां वडो रे, धर्ममां दया उदार...लालरे....(३) ग्रहगणमां जे. इंदु वडो रे, व्रतमां ब्रह्मव्रत सार.... लालरे, तिम सह तीरथमां वडो रे, सिद्धाचल सुखकार...लालरे (४) सिद्ध थयां ए तीरथे रे, अनंत अनंती क्रोड हो - हो वळी होंशे इण गिरिवरीये रे, कर्मबंधन सवि तोड-हो लाल (५) ए गिरिना गुण घणा रे, कहेतां न आवे पार, निर्मळ तनमन सेवता रे, उतारे भवपार....हो लाल श्री० (७) संवत अढार सत्याशीनारे, चैत्रवदी शुभ बीज, हो हो बुधवारे गिरिरायनारे, गुणगाए मन रीज हो लाल श्री० (८) जे भवियण गिरिराजनी रे, भक्ति करे सुचि भाव । हो हो श्री गुरु पुन्य प्रतापथी रे, जितनिशान बजाय हो लाल श्री० (६)
(59) श्री सिद्धाचल स्तवन सरस्वत स्वामीने विनतुं हुं वारीलाल, सद्गुरु लागुं छु पाय झरमर जाला लाल, पालिताणा रळियामणुं रे लाल,.....१ शत्रुजय मारगे चालवा हुं वारीलाल, ऊडे छे झीणेरी खेह.....झरमर....पालिताणा० २ सामा मळ्यां दोय पंखीडां हुं वारीलाल, शत्रुजय केटले दूर....झरमर...पालिताणा० ३ धर्मीने मन ढुंकडुं हुं वारी लाल, पापीने मन दूर झरमर... पालिताणा० ४ ऊंचा देहरा आदिनाथना हुँ वारीलाल, बेठा छे उगमणे दरबार...झरमर... पालिताणा० ५ शत्रुजय उपर हाटडी हुं वारीलाल, सोनी घडे शणगार.... झरमर....पालिताणा० ६ घड्या आदिनाथ ना बेरखा हुं वारीलाल, घड्यो सुनंदानो हार.....झरमर....पालिताणा० ७ शत्रुजय उपर त्राजवू हुं वारी... तोळाय छे पुन्यने पाप पालिताणा० ८ धर्मीनुं छाबडु छली वळ्युं वारी... पापी, पहोंच्युं पाताल पालिताणा० ६ शत्रुजय उपर पारj वारी....जई पहोंच्युं गढगिरनार पालिताणा० १० हीरविजय गुरु हीरलो हुँ वारीलाल, लब्धिविजय गुण गाय...११ गाये-शीखेने जे सांभळे हुं वारी लाल....तेनो होजो शत्रुजय वास पालिताणा० १२
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(60) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : होठों से) तमे चालो सज्जन आज, जिनघर जईए रे...नीरखिने प्रभु दरबार, पावन थईए रे तमे० (१) माता मरुदेवीनो नंद, नाभिकुल चंदो रे, आगमनी रीते एह, भविक जन वंदो रे तमे० (२) द्रव्यथी विधि संयोग, आशातना टाळो रे, भावे करी एकणचित, साध्य निहाळो रे, तमे० (३) अनुभव रस भंडार, भवथी अळगो रे, अनुपम आतम भाव, एहने वळगो रे, तमे० (४) धारी एह स्वरूप, जिनपूजा कीजे रे. मारा भवभव संचित पाप, पुरवना खीजे रे, तमे० (५) एही ज छे जगसार, जिनवर वाणी रे, पामी दुर्लभ योग, त्यजे कुण प्राणी रे, तमे० (६) जिनआगम ने जिनबिंब, पंचम आरे रे, श्रद्धा ने ज्ञान सहित पलकमां तारे रे, तमे० (७) ते माटे श्री जिनराज, क्षण क्षण भजीये रे, जे विषय कषायनी टेव, अनादिनी त्यजीये रे, तमे० (८) गिरि सिद्धाचल मंडण, जिनपति राजे रे, श्री खीमाविजय जिन नाम चडत दीवाजे रे, तमे चालो सज्जन आज, जिनघर जईए रे...(६)
(61) श्री सिद्धाचल स्तवन शुभ परिणाम वधारो, तुमे शत्रुजय चालो, मरुदेवानो नंद निहाळो, तुमे पातिक पंक पखाळो, निज जीवित जन्म सुधारो, तुमे गिरिवरीये चालो, (१) मानुए तिरथ समरथ जगमां, शुं करशे कलीकालो, ए पावन भविजनकुं करवा, तरवा मोह हिमाळो... तुमे० (२) दर्शन शुद्ध दर्शनकारक, जामे देव दयाळो, गिरिवर रज सविरज समवाने, मानुं पुष्कर वरसाळो...तुमे० (३) सुनंदा सुमंगला देवीनो, जगभुषण एह वहालो, संकट सघळा अरतिने, रति सवि परजाळों...तुमे० (४) अलख अगोचर चरित्र तुमारो, न लहे मूढमति वालो, मानुं ए मोह जयने कहेतो, ए रढरंग रसालो, तुमे० (५) श्री रिसहेसर तुं परमेधर, उन्नत पंक पखाळो चरण सरोज युगल प्रणमीजे, ज्ञानविमल गुण पाळो, तुमे शत्रुजय चालो....(६) ___(62) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : नीचे तो आवभाई)
विमलाचल व्हाला वारु रे, भले भवियण भेटो भावमां, तुम सेवा ए तीरथ सारु रे, जीम न पडो भवना दावमां वि० (१) जगसघळा तीरथनो
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नायक, हा रे तुमे सेवो शिवसुखदायक, ए गिरिराजने नयणे नीहाळी, हां रे तुम सेवो अविधिदोष टाळी रे वि० (२) मुक्ता सोवन फूले वधावी, हां रे नमी पूजी भावना भावे, कांकरे कांकरे सिद्ध अनंता, हां रे संभारो पागे चढंता रे वि० (३) आदि अर्जित शांति गौतम केरा, पहेलां पगलां पूजो भलेरा रे आगे धोळी परब ट्रंके चढीए, हां रे तीहां भरत चक्रीपद... नमीए रे वि० (४) नीली परब अंतराले आवे, हां रे नमी वरदत पगलां सोहावे रे, आदिथुभनमि कुंडकुमारा, हींगळाज हडे चढो प्यारा रे वि० (५) तिहां कलिकुंड नमी सुपास, हां रे चढो मान मोडी उल्लासे रे, गुणवंत गिरिना गुण गाई, हां रे छालाकुंडे विसामो भाई रे वि० (६) तिहांथी महागालीपंथे धसीये, हां रे प्रभुगढ देखीने उल्लसीए रे । नमिए नारद अईमुतानी मुरती, द्राविड वारिखील्ल सुरती रे वि० (७) तीरथ तुम देखी सुख जागे, हारे नीरखो हेमकुंडनी आगे रे, राम-भरत-शुक सेलग स्वामी, हारे थावच्चा नमुं शिरनामी रे. वि० (८) भुखणकुंड वाडी जोई वंदो, हां रे सुकोशल मुनीपद सुखकंदो रे, आगळ हनुमंत वीर कहावे, हां रे तीणथी बे वाट जवाए रे वि० (६) डाबी दिशा रामपोळ हुरजी हां रे सामी दीशे नदी शेजूंजी रे, जाता जमणी दीशे वंदो भाळी, हां रे मुनिजाली मयाली उवयाली रे वि० (१०) तिहांथी डाबी दीशी सामा सोहावे, हां रे नमो देवकी षटसुत भावे रे। इम शुभ भाव थकी उत्कर्षे, हां रे रामपोळमां पेसीए हरखे रे वि० (११) तीसरे पोळे वाघण भाळो, हां रे जेह कीधी शाल शृंगालो रे । धाई सोपान चढी अति हरखी, हां रे जई वाघणपोळे नीरखो रे, स्थिरताए शुभजोग जगावो, हा रे कहे अमृत भावना भावो रे विमलाचल व्हाला वारु रे, भले भवियण भेटो भावमां....(१२) (63) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : आंखडी मारी प्रभु हरखाय छे)
प्रीतलडी बंधाणी रे विमल गिरिंदशुं, नीशीपती नीरखी हरखे जेम चकोरजो, कमलागौरी हरी हरथी राची रहे, जलधर जोई मस्त बने वन मोरजो, प्री० १ आदिश्वर अलवेश्वर आवी समो सर्या, पून्य भूमिमां पूर्व नवाणुं वारजो, अरिहंताश्री अजितेसर शान्ति नाथजी, रह्यां चोमासु जाणी शिवपुर दारजो, प्री० २ सूर्य वंसी सोमवंसी यादव वंसना, नृप गुण पामी
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निर्मल पद निर्वाणजो, महा मुनीधर ईश्वर पद पूरण वर्या, शिवपुर श्रेणी आरोहण सोपान जो प्री० ३ त्रण भुवनमां तारक तुज सम को नहिं, एम प्रकाशे सीमंधर महाराजजो, ताहरे शरणे आव्यो हुँ उतावळो, तारतार ओ गिरिवर गरीब निवाजजो, प्री० ४ हुँ अपराधी पापी मिथ्याडंबरी, फोगट भूल्यो भवमां तुम विण नाथजो, हवेन मुकुं मोहन मुद्रा ताहरी, ए मुज मोटां वंकनालनी टेकजो प्री० ५ पल्लो पकडी बेठो बापजी लांघवा, आप आप तुं भक्त वत्सल भगवंतजो, अंते पण देहबु रे पडशे साहिबा, शी करवी हवे खाली खेंचाताण जो। प्री० ६ मल विक्षेपने आवरण त्रीक दूरे करी, छेल छबीलो आव्यो आप हजुर जो, आत्म समर्पण कीधु अति उमंगथी, प्रेम पयोनिधि प्रगट्यो अभिनव पुरजो प्री० ७ श्री सिद्धाचल गिरिवर मंडन शिखरा, परम कृपालु पालक प्राणाधारजो, विछोडशो नहि क्यारे प्यारा प्रेमथी रसीया करजो धर्मरत्न विस्तारजो प्रीतलडी बंधाणी रे विमल गिरिंदशुं० ८ (64) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : आंखडी मारी प्रभु हरखाय छे) __ विनतडी मन मोहन माहरी सांभलो, हुं धुं पामर प्राणी निपट अबूजजो, लांबू ट्रंकुं हुं कांइ जाणुं नही, त्रिभुवन नायक ताहरा घरगुंजजो वि० ॥१॥ पहेला छेला गुण ठाणानो आंतरो, तुजमुज मांहे आ बेहुब देखायजो, अंतर मेरु सरसव बिंदु सिंधुनो, शी रीते हवे उभय संध संधायजो वि० ॥२॥ दोष अढारे पाप अढारे तें तज्यां, भावदशा पण दूरे कीधी अढारजो, सघलां दूर्गुण प्रभुजी में अंगीकर्या, शी रीते हवे थाउं एकाकारजो वि० ॥३॥ त्रास विना पण आणा मने ताहरी, जड चेतन जेने लोकालोक मंडाणजो, हुं अपराधी तुज आणा मानुं नही, कहो स्वामी कीमपामुं निर्वाणजो वि० ॥४॥ अंतरमुखनी वातो विधासी कलं, पण भीतरमां कोरो आपो आपजो, भाव विनानी भक्ति लुखी नाथजी, आषीश आपो कापो भवनां पापजो वि० ॥५॥ यादृश आणा सूक्ष्मतर प्रभु ताहरी, तादृश रूपे मुजथी कदीना पलायजो, वात विचारी मनमां चिंता मोटकी, कोइ बतावो स्वामी सरल उपायजो, वि०॥६।। अतिषयधारी उपकारी प्रभु तुं मल्यो, मुजमन मांही पूरो छे विश्वास जो, धर्मरत्न त्रण निर्मल रत्न
आपजो, करजो आतम परमातम प्रकाशजो वि० ॥७|| 13.
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(65) श्री आदिजिन स्तवन (राग : सिद्धाचलनावासी)
रुडा आदिश्वर विना, मुज दिला सुना, कोण तारे, मुज पापीने कोण उगारे ॥१॥ मारुं हैयुं प्रीतिथी डोले, मुज अंतर वेदनाथी बोले, दुःखथी करुं पोकार, तेथी आव्यो तारे द्वार ॥ कोण० ॥२।। मुज अंतरमां वहेती नदीयो, मोहममताना जालनी कडीयो, सेवक पोकार तुजने । कोण० ॥३॥ मुज आंखो नयनोना तारा, मुज-दिलडामां तुमे छो सितारा, दुःख भंजन मनोहारा, साचा तुमे तारणहारा । कोण०॥४॥ क्रोद्ध कषायथी हुँ पीडायो, लोभे मुजने घणो ज सतायो, तारी ज्योति देखी, मारुं हैयु नाच्यु । कोण०॥५॥ तारा वियोगनां वादल छायो, वरस्या विना मारो वियोग आण्यो, ठाम ठेकाj, तारुं क्यां जइ पूर्छ, ॥कोण०॥६।। सूर्यने पूछं तोय जवाब न आपे, नवलाख तारलीया त्यारे ज बोले, मारा अंतरमा वसनारो, प्यारो आदिश्वर दादो ।। कोण०॥७॥ सुंदर तारु शत्रुजय धाम, प्राणसमो तुम बाल कुमार, निशदिन देशे टकोरो, मुज पापनो पतंगो ॥कोण०।८।। मुज अंतरनी आशाओ विनवे, ज्ञानविमलनी ज्योत जगावे, नेहनजरे निहालो, तारा सेवकने संभालो, कोण तारे ॥ कोण०॥६॥
(1) श्री शजय सलोको (दुहो) सरस्वति माता तुम पाये लागु; देवगुरु तणी आज्ञा रे मांगु; श्री सिद्धाचल केरो कहेशुं सलोको, नवाणुं यात्रा करो भवि लोको. ॥१॥ शत्रुजय महातममां लख्युं घj घj, अक जीभे केटकेटलुं वर्णवू, श्री धनेश्वरसूरिश्वर पासे मारी अल्प मति, मम जिह्वाग्रे वसजो माता सरस्वती, ॥२॥
प्रभुजी जावू पालीताणा शहेर के मन हरखे घणुं रे लोल, प्रभुजी आव्युं पालीताणा शहेर के तळेटी शोभती रे लोल; १ प्रभुजी सोना-रूपाना फुलडे गिरिराज वधावू रे लोल, प्रभुजी गिरिवरीओ चडंता, मन हरखे घj रे लोल १. प्रभुजी आवी धनवशी टुंक के, बाबुना दहेरे आवq रे लोल; प्रभुजी रलना भगवंत के, सहस्रकूट भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी सुवर्ण मंदिरने जलमंदिर, महावीर भगवंत नमुं रे लोल, प्रभुजी मूळनायक आदिश्वर के, क्रोडो मारा वंदन होजो रे लोल. २ प्रभुजी बे बाजु बे
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पार्थनाथ के, चंद्रप्रभ भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी मंडपमां भगवंतो जोई, हुं तो दर्शन करूं रे लोल; प्रभुजी भमतीमां भमुं के, भवदुःख कापजो रे लोल, प्रभुजी ज्यां ज्यां जिन भगवंतो के, मारा क्रोडो दर्शन हजो रे लोल. ३ प्रभुजी आव्यां सिद्धचक्रजी के, दर्शन करी पावन थाउं रे लोल, प्रभुजी गिरिवरीओ चडतां के, मन हरखे घणुं रे लोल; प्रभुजी जमणा हाथे सरस्वती के, विद्या आपजो रे लोल, प्रभूजी आव्या नेमीनाथना पगलां के, दर्शन करी थाउं रे लोल. ४ प्रभुजी आव्या हिंगलाज हडो के, केडे हाथ दई चडो रे लोल; प्रभुजी आव्यो हनुमान हडो, नवे ढूंके चालो रे लोल; प्रभुजी आवी पहेली टुंक, अभिनंदन भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी शांतिजिन चंद्रप्रभ के मरूदेवी माता नमुं रे लोल. ५ प्रभुजी धन्य धन्य मरूदेवी माता के, जेनी कुखे रतन पाक्यां रे लोल; प्रभुजी चोमुखजी देखें ने, आनंद उल्लसे रे लोल; प्रभुजी ज्यां ज्यां जिन भगवंतो के, क्रोडो मारा दर्शन होजो रे लोल; प्रभुजी आव्या बीजी टुंक के, आदिधर भगवंत नमुं रे लोल. ६ प्रभुजी नेमिनाथ अजितनाथ, शांतिनाथ भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी नंदिषेण सूरिश्चरे, अजितशांतिनी तिहां रचना करी रे लोल; प्रभुजी आव्या त्रीजी टुंक के, चिंतामणी पार्थ प्रभु रे लोल, प्रभुजी भमतीमां भमुं के, पाप निवारजो रे लोल. प्रभुजी आव्या चोथी टुंक के, नंदिवरद्विप नमुं रे लोल; प्रभुजी बसो अट्ठावीस तीर्थंकर, बावन जिनालय नमुं रे लोल, प्रभुजी आव्या पांचमी टुंके के, अजितनाथ भगवंत नमुं रे लोल, प्रभुजी भमतीमां भमुं के, पाप निवारजो रे लोल, प्रभुजी बे बाजु बे देरासर के, पुंडरीक स्वामीनां दर्शन करूं रे लोल. ८ प्रभुजी आव्या छठी टुंक के, आदेश्वर भगवंत नमुं रे लोल, प्रभुजी भमतीमां भमुं के, पाप निवारजो रे लोल; प्रभुजी देराणी जेठाणीना गोखला के, पार्श्वनाथ भगवंत नमुं रे लोल, प्रभुजी पार्थजिन भगवंत के, अरबी समुद्रमांथी प्रगट थया रे लोल; प्रभुजी माणेकबाई मटको, करी बेसी गया रे लोल. ६ प्रभुजी आव्या अदबदजी दादा के आश्चर्यकारक भगवंत नमुं रे लोल, प्रभुजी सातमी बालाभाईनी टुंक के, आदेश्वर भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी चार बाजु चार देरासर के, पुंडरीक गणधरं रे लोल; प्रभुजी आठमी मोतीशानी टुंक के, धन्य धन्य मोतीशा शेठजी रे लोल; प्रभुजी सोळ शिखरबंधी देरासर के, क्रोडो मारा दर्शन
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जो रे लोल. १० प्रभुजी आवी मोतीशा दीठे झाकझमाळ के जोयानी कती बनी रे लोल; प्रभुजी पहेली भमती फरूं के पाप निवारजो रे लोल; प्रभुजी नाभिराजा मरूदेवी माता के खोळे ऋषभ बेटडो रेलोल. ११ प्रभुजी पुंडरीकजी गणधर देखुं के आनंद उल्लसे रे लोल, प्रभुजी आठमी टुंक मूळ नायक, आदेश्वर में तो दर्शन कर्या रे लोल; प्रभुजी माणेकना दादानी साथिया के रत्नना भगवंत नमुं रे लोलः १२ प्रभुजी नवमी दादानी ट्रंक के, दर्शन करवानो उमंग घणो रे लोल, प्रभुजी चक्केसरी जिनशासन रखवाळ के, संघने सहाय करे रे लोल, प्रभुजी शांतिजिन भगवंत के, शांति आपजो रे लोल. १३ प्रभुजी शांतिनाथ ने सामे, पांचे तीरथ नमुं रे लोल, आबु अष्टापद, गिरनार, समेतशिखर शत्रुंजय सार; पांचे तीरथ उत्तम ठाम, सिद्धि वर्या तेने करूं प्रणाम, प्रभुजी ऋण गढना देरासरे समवसरणमां चौमुखजी नमुं रे लोल; प्रभुजी शत्रुंजय रखवाल के कवडजक्ष देव आव्या रे लोल; प्रभुजी नेमनाथनी चोरी के, पुन्य पापनी बारी आवी रे लोल. १४ प्रभुजी अमीझरा पार्श्वनाथ भगवंत, अमीरस आपजो रे लोल; प्रभुजी आव्या मोटा आदेश्वर के, दर्शन में कर्या रे लोल, प्रभुजी कपंडवंजना दहेरा ने, सो स्थंभना प्रासादे, चौमुखजी नमुं रे लोल, प्रभुजी आव्या कुमारपाळना दहेरे के, आदेश्वर भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी ज्यां ज्यां जिन भगवंतो, क्रोडो मारा दर्शन होजो रे लोल, १५ प्रभुजी आव्या सूरजकुंड के, निर्मळ जळ भर्या रे लोल; प्रभुजी आव्या रतनपोळ के, मंडप रळियामणो रे लोल; प्रभुजी आव्यो मूळ गभारो के, आदेश्वर भेटीया रे लोल. १६ प्रभुजी आदिश्वरने भेटतां भवदुःख जाय के शिवसुख आपजो रे लोल; प्रभुजी देखी दर्शन करूं के, मारी आंखो ठरे रे लोल. १७ प्रभुजी तुमथी नहीं रहुं दूर के, जई गिरिपंथे वस्या रे लोल; प्रभुजी डाबा सहस्रकूट भगवंत के, मारा क्रोडो दर्शन होजो रे लोल; प्रभुजी आव्या नवा आदेश्वर के, पूजन में कर्या रे लोल; प्रभुजी पांच मोटा भगवंत के, परमेष्ठी भगवंत नमुं रे लोल. १८ प्रभुजी सुमतिनाथ भगवंत, सारी मति आपजो रे लोल; प्रभुजी बालब्रह्मचारी नेम के, दर्शन करी पावन थाउं रे लोल; प्रभुजी मेरुं उपर चार भगवंत के, चौमुखजी भला रे लोल; प्रभुजी गोळाकारे समेतशिखरे, वीश तीर्थंकर नमुं रे लोल. १६ प्रभुजी वीश विहरमान जिन वंदु के, महाविदेह क्षेत्र सोहामणुं
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रे लोल; प्रभुजी अमे आवशुं महाविदेह क्षेत्र जरूर के, केवळज्ञान आपजो रे लोल; प्रभुजी अष्टापद चोवीश के, तीर्थंकर नमुं रे लोल; प्रभुजी मंदोदरी नाता रावणे, तीर्थंकर पद अष्टापदे बांध्यु रे लोल; प्रभुजी चौमुखजी पगलांओना, में तो दर्शन कर्या रे लोल. २० प्रभुजी आव्या रायण पगलां भगवंत, पूर्व नवाणुं समोसर्या रे लोल; प्रभुजी भरते भरावेल रत्न प्रतिमा, रायण नीचे इंद्र पूजतां रे लोल; प्रभुजी आव्या नमिविनमी, भरतजी बाहुबळजी रे लोल; प्रभुजी विजय शेठ शेठाणी अने, चोवीश तीर्थंकर नमुं रे लोल. २१ प्रभुजी आव्या चौदरतनना मंदिर, भगवंत पूजन में कर्या रे लोल; प्रभुजी आव्या चमत्कारिक भगवंत के, शामळा आदेश्वर नमुं रे लोल; प्रभुजी गणधर पगलां के, वंदन में कर्या रे लोल; प्रभुजी आव्या सीमंधर प्रासाद के, भगवंत पूजन हुं करूं रे लोल. २२ प्रभुजी त्रण पार्श्वनाथ भगवंत, मुखई सोहामणं रे लोल; प्रभूजी शांतिनाथ चौमुखजी के, शांति आपजो रे लोल, प्रभुजी आव्या रे पुंडरीक गणधरजी, दीसे आनंद अति घणो रे लोल, प्रभुजी पुंडरीक गणधर पांच क्रोड, साथे मोक्षे गया रे लोल. २३ प्रभुजी उपर त्रणेय चौमुखजी के, सर्वे भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी नवा देरासर बावन जिनालयने मूळनायकना दर्शन करूं रे लोल; प्रभुजी पहेली भमतीमां फरूं के, पाप निवारजो रे लोल, प्रभुजी बीजी भमतीमां फरूं के, भवदुःख कापजो रे लोल. २४ प्रभुजी त्रीजी भमतीमा फरूं के, मोक्षसुख आपजो रे लोल, प्रभुजी शेजूंजी नदिमां नाहीने, प्रभु प्रक्षाल करूं रे लोल; प्रभुजी आव्या घेटी पगलां, भावे चैत्यवंदन करूं रे लोल, प्रभुजी दोढ गाउ त्रण गाउ, छ गाउनी फेरी फरूं रे लोल. २५ प्रभुजी आव्यो हुं कदंबगिरि, चोवीशीना तीर्थंकरो नमुं रे लोल, प्रभुजी आव्यो हुं हस्तगिरि, चोवीसे तीर्थंकर नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो तालध्वजगिरि ने, महुवा जिन नमुं रे लोल, प्रभुजी आव्यो हुं गिरनार के, नेमनाथ भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो समेतशिखर के, वीश तीर्थंकर नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो चंपापुरी, वासुपूज्य भगवंत नमुं रे लोल, प्रभुजी आव्यो पावापुरी महावीर स्वामी भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो कुलपाकजी के, माणेकस्वामी महावीरस्वामी नमुं रे लोल, प्रभुजी आव्यो तारंगाजी, अजितनाथ भगवंत नमुं रे लोल. २७ प्रभुजी आव्यो कच्छ भद्रेश्वर, चोवीसे तीर्थंकर नमुं रे
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लोल, प्रभुजी आव्योआबु गिरिराज के पांच तीरथ जुहारूं रे लोल, प्रभुजी आव्यो अचलगढ, के सोनाना भगवंत नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो राणकपुर त्रैलोक्यदीपने, मारवाडना पंचेतीर्थ जुहारूं रे लोल; प्रभुजी आव्यो जेसलमेर वळी शिरोही, जिन भगवंतो नमुं रे लोल. २८ प्रभुजी आव्यो नाकोडा पार्श्वनाथ के, कापरडाजी चारे माळे चौमुखजी नमुं रे लोल, प्रभुजी आव्यो केसरीयाजी, शामळा आदेश्वर नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो उदयपुर आवती चोवीसीना, प्रथम तीर्थंकर पद्मनाभ नमुं रे लोल, प्रभुजी आव्यो जिराउला के, ओकसो आठ पार्श्वनाथ नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो भोंयणी पानसर, सेरीसा जिन भगवंतो नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो कावी, गांधार, झगडीयानी जात्रा करूं रे लोल. २६ प्रभुजी आव्यो शंखेश्वर पार्श्वनाथ, भगवंत पूजवा रे लोल, प्रभुजी आव्यो वरकाणा, स्थंभन अंतरीक्ष पार्श्वनाथ के, पाटणमां जिन भगवंतो नमुं रे लोल; प्रभुजी आव्यो राजनगरे के, तमाम देरासरोओ दर्शन करूं रे लोल, प्रभुजी शांतिनाथ अदबदजी ने, चिंतामणि पार्श्व प्रभु नमुं रे लोल; प्रभुजी दुनियाभरमां ज्यां ज्यां जिन भगवंतो त्या, त्यां क्रोडो मारा दर्शन होजो रे लोल. ३० प्रभुजी गुणीयल जैनो भावे, जात्रा करे रे लोल, प्रभुजी जावुं पालीताणा शहर के मन हरखे घणुं रे लोल, प्रभुजी ओवी वीरविजयनी जोड के, शिवसुख आपजो रे लोल, प्रभुजी ओवी वीरविजयनी जोड के, मोक्षसुख आपजो रे लोल. ३१
(कलश) जे कोई आ तीर्थ स्मरणयात्रा भणशे सांभळशे, ते श्री सिद्धाचलनी नवे टुंकनी भावयात्रा करशे; ते तमाम तीर्थना दर्शन करीने भवना पातिक गाळशे, श्री नव नवकार गणीने यात्रानुं फळ मेळवशे; श्री वीरविजय म०नुं पांच गाथानुं स्तवन आ सिद्धाचलजीना सलोकामां समायेलुं छे.
( 2 ) तलाटीनुं स्तवन (राग : चार दिवसना चांदरडा)
त्रिभुवन तारक तीर्थ तलाटी; चैत्यवंदन परी पाटीजी; मिथ्यामोह उलंघी घाटी आपदा अलगी नाठीजी ...|| १ || जिनवर गणधर मुनिवर नरवर, सुरवर कोडा कोडाजी; इहां उभा गिरिवरने वांदे, पूजे होडा होडीजी ...॥२॥ गुणठाणानी श्रेणी जेहवो; उर्ध्वगामी पंथ इहाथीजी; चढते भावे भवि आराधो, पुण्य विना मळे किहांथीजी... ॥ ३॥ मेरु सरसव तुज मुज अंतर; ऊंचो जोई
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निहाळुं जी; तो पण चरण समीपे बेठो, मननो संशय टाळुंजी...||४|| सोवन कारण पहेली भुमी, अभय अद्वेष अखेदजी, धर्मरत्न पद ते नर पामे; भुगर्भ रहस्यनो भेदजी त्रिभुवन तारक तीर्थ तलाटी...॥५॥ इति.
( 3 ) पुंडरीकस्वामी स्तवन (राग : राखना रमकडा)
धन धन पुंडरीक स्वामीजी, भरत चक्री नृप नंदरे, दीक्षा ग्रही प्रभु हाथथी, पुजित गणधर वृंदरे धन० ||१|| आदिजिन वदन कमळथी, निसुणी सिद्धाचल महिमा रे; आव्या गिरिवर भेटवा, विस्तर्यो तिर्थनो महिमा रे
धन० ||२|| पावन पुरुष पसायथी, पृथ्वी पवित्र थई जायरे; तेथी पुंडरीक नामथी, आज लगी पूजाय रे धन० || ३ || पद्मासन प्रतिमा बनी, प्रभु सन्मुख सोहाय रे; पूजा विविध प्रकारनी करता भवि समुदाय रे धन० || ४ || पांचक्रोड मुनिवरनी साथे, सिध्यां पुंडरिक स्वामरे, धर्म रत्न पद आपजो, मुज मन मोटी आश रे धन धन पुंडरीक स्वामीजी ... ॥ ५॥ इति.
(4) पुंडरिक स्वामिनुं स्तवन
ओक दिन पुंडरिक गणधरू रे लाल, पूछे श्री आदिजिणंद - सुखकारी रे; कही ते भवजल उतरी रे लाल, पामीश परमानंद भव वारी रे. अक० १ कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, ज्ञान अने निरवाण - जयकारी रे; तीरथ महिमा वाधशे रे लाल, अधिक अधिक मंडाण - निरधारी रे. अक० २ इम निसुणीने इहां आवीया रे लाल, घाति करम कर्यां दूर-तम वारी रे; पंच क्रोड मुनि परिवर्या रे लाल, हुआ सिद्धि हजूर - भव वारी रे. अक० ३ चैत्री पूनम दिन कीजीओ रे लाल, पूजा विविध प्रकार - दिल धारी रे; फळ प्रदक्षिणा काउस्सग्गा रे लाल, लोगस्स थुई नमुक्कार नर-नारी रे अक० ४ दश वीशत्रीश चाळीश भलां रे लाल, पचास पुष्पनी माळ अति सारी रे; नरभव लाहो लीजीये रे लाल, जेम होय ज्ञान विशाळ - मनोहारी रे. अक ओक दिन पुंडरिक गणधरू रे लाल० ५
(5) रायण पगलानुं स्तवन
नीलुडी रायण तरु तळे - सुणसुंदरी, पीलुडा प्रभुना पाय रे गुणमंजरी;
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उज्वलध्याने ध्याई अ, सुण० ओही ज मुक्ति उपाय रे गुण ०१ शीतळ छायडे बेसीओ, सुण० रातडो करी मन रंग रे, गुण ०२ पूजीओ सोवन फूलडे, सुण० जेम होय पावन अंग रे. गुण ०२ खीर झरे जेह उपरे, सुण० नेह धरीने अह रे, गुण० त्रीजे भवे ते शिव लहे, सुण० थाये निर्मळ देह रे. गुण ०३ प्रीती धरी प्रदक्षिणा, सुण० दीओ अहने जे सार रे, गुण ० अभंग प्रीति होय तेहने, सुण० भवभव तुम आधार रे. गुण ०४ कुसुम पत्र फळ मंजरी, सुण० शाखा थड अने मूळ रे, गुण ०देव तणा वासाय छे, सुण० तीरथने अनुकूळ रे. गुण ०५ तीरथ ध्यान धरो मुदा, सुण० सेवो अरुनी छांय रे, गुण ० ज्ञानविमल गुण भाखीयो, सुण० शत्रुंजयमहात्म्यमांय रे. गुण ०६
(6) रायण पगलानुं स्तवन
श्री आदिश्वर अंतरजामी, जीवन जगत आधार, शांत सुधारस रूपे भरीयो, सिद्धाचल शणगार, रायण रूडी रे, जीहां प्रभु पाय धरे, विमळगिरि वंदो रे, देखत दुःख हरे; पुण्यवंता प्राणी रे, प्रभुजीनी सेवा करे. १ गुण अनंता गिरिवर केरां, सिध्या साधु अनंत; वळी रे सिद्धशे वार अनंती, अम भाखे भगवंत; भवोभव केरां रे, पातिक दूर टळे विमल० २ वावडीयुं रसकुंपा केरी, मणी माणेकनी खाण; रत्नखाण बहु राजे हो तीरथ, अहवी श्री जिनवाण सुखना स्नेही रे, बंधन दूर करे. विमल० ३ पांच कोडीशुं पुंडरीक सिध्या, त्रण कोडीशुं रामः वीश कोडीशुं पांडव मुक्ति, सिद्धक्षेत्र सिद्ध ठाम, मुनिवर म्होटा रे, अनंता मुक्ति वरे. विमल० ४ असो तिरथ ओरन जगमें, भाखे श्री जिन - भाण; दुर्गति कापे ने पार उतारे, वहालो आपे केवलनाण; भविजन भावे रे, जे अनुं ध्यान धरे विमल० ५ द्रव्य भावशुं पूजा करतां, पूजो श्री जिनपाय; चिदानंद सुख आतम वेदी, ज्योतिसें ज्योत मिलाय, कीर्ति अहनी रे, माणेक मुनि करे. विमल० ६
( 7 ) आदिनाथभ० दीक्षा लईने विहार वखतनुं
दिक्षा लेवाने प्रभु संचर्या रे, करता उग्र विहार रे, वहाला मारा, विनीतानगरी पधारजो रे, करजो भवि उपकार रे, वहाला मारा दिक्षा
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लेवाने० १ राज छोडी रळीयामणुं रे, राणीयो छोडी रढीयाळी रे वहाला मारा० सुख शैय्या मीत्रो त्यजी रे, दोहीला त्यज्या माय बाप रे वहाला मारा० २ सोवन थाल भोजन त्यज्या रे, पातरीये कर्यो व्यवहार रे वहाला मारा० करुणा निधि करुणा करी रे, थया षटकाय प्रतिपाळ रे, वहाला मारा० ३ सरोवरीये पंखी घणां रे, पंखीने सरोवर ओक रे, वहाला मारा० तुम सेवक प्रभु अतिघणा रे, महारे छे तुमारो आधार रे, वहाला मारा० ४ सहु ने जेमतेम चालशे रे, मारे न चाले क्षण ओक रे, वहाला मारा० माता पिता विण बालुडोरे, जेम तेम ठेला खाय रे, वहाला मारा० ५ ऊभी झुरे तारी मावडी रे, भोजन वेला झुरे बाप रे, वहाला मारा० लाडकवाया वहाला दिकरा रे, बेटा सामु तो जुवो अकवार रे वहाला मारा० ६ राणीयो झरे रंग महेळमां रे, तेनो तो हैया केरो हार रे, वहाला मारा० जे गामे तुमे पधारशो रे, धन्य ते लोकोना भाग्य रे, वहाला मारा० ७ भरतजी विनवे भावथी रे, सांभळजो जग पृथ्वीपाळ रे वहाला मारा० अषाढ मासे पधारजो रे, रहीशुं वाटडी जोय रे वहाला मारा० ८ श्रावण मासे वनराजी फुले रे, प्रभु आवे फळे अम आश रे, वहाला मारा० भादरवा मासे प्रभु गाजशे रे, तुम वाणी केरो वरसाद रे, वहाला मारा० ६ आसो मासे आशा घणी रे, रहीशुं अमे हरख भेर रे, वहाला मारा० कार्तिक मासे करू सेवना रे, न करो विहारनी वात रे वहाला मारा० १० विचरंता प्रभु ओम कहे रे, राखजो धर्म उपर राग रे, दान दया दिलमां धरो रे, सुमति विजय गुण गाय रे, वहाला मारा० ११
(8) अखात्रीजनुं स्तवन (राग : ये मेरे वतनके लोको)
श्री ऋषभ वरस उपवासी, पूरवनी प्रीत प्रकाशी; श्रेयांस बोले शाबाशी, बाबाजी विनती अवधारो; माहरे मंदिरीये पाउधारो, बाबाजी विनती अवधारो; ॥१॥ शेरडी रस सूझतो वहोरो, नाथजी न करावो न्होरो, दरिशण फळ आपो दोरो...॥२॥ प्रभुओ तव मांडी पसली, आहार लेवानी गति असली; प्रगटी नव दुर्गति वसली...॥३॥ अजुवाळी त्रीज वैशाखी, पंच दिव्य थता सुर साखी, ओ तो दान तणी गती दाखी...॥४॥ ओम युगादि पर्व जाणे, अखात्रीज नामे वखाणे, सहु कोई करे गरमाणो...॥५॥ सहस वरसे केवल पायों, अक लाख पूरव वरषायो; पछी परम महोदय
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मारे मुरखो. तम० २ हाली है। गलीये गलीये
पायो...॥६॥ अम उदय कहे उवज्झाय, पूजो श्री ऋषभना पाया, जेणे आदि धर्म ओळखाया, ॥७॥ इति (9) ऋषभदेव स्वामीनुं अखात्रीजनुं (राग : वासी दिल्ही रे)
श्री जिन वनमा जई तप करे, फर्या मास छ मास, तप तपता रे पुर मांही, आव्या वहोरवा काज; प्रथम जिनेश्वर पारणे० १ विनिता नगरी रळीयामणी, करता श्री जिनराज, गलीये गलीये रे जो फरे, वहोरावे नहीं कोई आहार. प्रथम० २ हाली हालेरुं फेरवे, बळद धान्य ज खाय, हाली मारेरे मुरखो. ते देखे जिनराय. प्रथम० ३ शींकली सारीरे शोभती, करी आपे जिनराज, बळदने शीका बंधावीआ, उदये आव्या ते आज. प्रथम० ४ हाथी घोडाने पालखी, लावी कर्या हजुर, रथ शणगार्या रे शोभता, ल्यो ल्यो केवळी शूर. प्रथम० ५ थाळ भर्यो सग मोतीडे, घुमर गोरडी गाय, वीरा वचने रे घणं करे, ते ले नहि लगार; प्र० ६ विनिता नगरीमा वेगशें, फरता श्री जिनराय, शेरीये शेरीय जो फरे, आपे नहीं कोई आहार. प्रथम० ७ हरीश्चंद्र सरीखो रे राजवी, सुतारा सती नार, माथे लीधो रे, मोरीयो, नीज घेर पाणीडां जाय. प्रथम० ८ सीता सरखी रे महासती, राम लक्ष्मण दोय जुद्ध, कर्मे किधां रे भमतडां, बार वरस वन दूर. प्रथम० ६ कर्म तो केवळीने पड्यां, मुक्या लोहीज थाम, कर्मथी न्यारारे जे हुवा, पहोंच्या शिवपुर ठाम. प्रथम० १० कर्मे सुधाकर सुरने, भमतो कर्यो दिन रात, कर्मे करणी जेवी करी, झंपे नहीं तिलमात्र. प्रथम० ११ विनिता नगरी रळीयामणी, मांही छे वर्ण अढार, लोक कोलाहल घणो करे, कंईन ले महाराज. प्रथम० १२ प्रभुजी तिहां फरता थका, मास गया दश दोय, त्यां कने अंतराय तुटशे, पामशे आहारज सोय. प्रथम० १३ श्री श्रेयांस नरेसरु, बेठा गोख मोझार, प्रभुजीने फरतारे नीरखीया, वहोरावे नही कोई आहार. प्रथम० १४ श्री श्रेयांस नरेसरु, मोकल्या सेवक सार, प्रभुजी पधारो रे प्रेमशं, छे सुझतो आहार. प्रथम० १५ सो दश घडां त्या लावीया, शेरडी रसनो रे आहार, प्रभुजीने वहोरावे प्रेमशुं, वहोरावे उत्तम भाव. प्रथम० १६ करपात्र ज तिहां मांडीया, इक्षुरस अकधारा, छांटो ओक न भुमि पडे, चोत्रिश अतिशय सार. प्रथम० १७ प्रथम पारणुं तिहां कर्यु, देव बोल्या
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जय जयकार, त्यां कने वृष्टि सोना तणी, थई कोडी साडाबार. प्रथम० १८ श्री श्रेयांस नरेसरु, लेशे मुक्तिनो भार, ज्योतमे ज्योति जळहळे, फरी ओ नावे संसार. प्रथम० १६ संवत अट्ठारस शोभतुं, वर्ष अकाणुं जाण, सागरचंद कहे शोभतुं, पारणुं कीधुं प्रमाण. प्रथम० २० जे जे शीखे सांभळे, तेने अभिमान न होय, ते घरे अविचल वधामणा, लेशे शिवपुर सोय. प्रथम० २१ (10) श्री ऋषभदेव जिन- अखात्रीजनुं (राग : कंकु छांटी)
आहे जशधर जावेजी वहोरवा, होये आनंद अंग नमाय, ऋषभ घेर आवे छे; ॥१॥ आहे मणि रे माणेक मोती भर्या, कंई रन भरी भरी थाळ... ऋषभ० ॥२॥ आहे कोई रे घोडा कोई पालखी, कोई आपे हाथी केरा दान... ऋषभ० ॥३॥ आहे कोईज पुत्री वल्लभा, कोई आपे कन्या केरा दान... ऋषभ० ॥४॥ आहे कोई नवि आपे सूजतो, कोई वहोरावे नहि आहार... ऋषभ० ॥५॥ आहे तेणे समे स्वप्नज देखीयो, आहे दशभव केरो स्नेह... ऋषभ० ॥६॥ आहे इक्षुरस वहोरावीओ तिहां ऋषभने उपजी छे लब्धि... ऋषभ० ॥७|| आहे तिहां ऊभा कीधुं पारj, ओक वरसे मळेल आहार... ऋषभ० ॥८॥ आहे पंच दिव्य प्रगट थया तिहां अहोदान अहोदान गवाय. ऋषभ० ॥६॥ आहे त्यांकने वृष्टि सोनातणी, थई साडाबार क्रोड... ऋषभ० ॥१०॥ आहे हीरविजय गुरु हीरलो, तिहां माणेक विजय गुणगाय... ऋषभ० ॥१२॥
(11) श्री शत्रुजय तीर्थ उद्धार विमल गिरिवर, विमल गिरिवर, मंडलो जिनराय; श्री रिसहेसर पाय नमि, धरिय ध्यान शारदा देवीय, श्री सिद्धाचल गायशुं ओ, हैये भाव निर्मल धरेवी, श्री शजय तीरथ वडो ओ, जीहां सिद्ध अनंती कोडी, जीहां मुनिवर मुक्ते गयां, ते वंदु बे करजोडी. (१)
(ढा. १) बे करजोडीने जिनपाय लागुं, सरसती पासे वचन रस मागुं, श्री शत्रुजय तीरथ सार; थुणवा उलट थाय अपार. (१) तीरथ नहीं कोई शजय तोले, अनंत तीर्थंकर इणीपरे बोले; गुरु मुखे शास्त्रनो लहीय
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विचार, वर्णवुं शत्रुंजय तीर्थ उद्धार. (२) सुरवर मांहे वडो जेम इन्द्र, ग्रह गणमांहे वडो जेम चंद्र, मंत्रमांहे जेम श्री नवकार, जलदायकमां जिम जलधार, (३) धर्ममांहे दयाधर्म वखाणुं व्रतमांहे जेम ब्रह्मव्रत जाणुं, पर्वतमांहे वडो मेरु होई, तेम शत्रुंजय सम तीर्थ न कोई. ( ४ ) (राग - प्रभु पासनुं मुखडुं जोवा)
(ढा. २) आगे ओ आदि जिनेसर, नाभिनरिंद मल्हार, शत्रुंजय शिखर समोसर्या, पुरव नवाणुं वार. (५) केवलज्ञान दिवाकर, स्वामी श्रीऋषभजिणंद; साथे चोराशी गणधरा, सहस चोराशी मुणिंद. (६) बहु परिवारे परिवर्यां, शत्रुंजय अकवार, श्री ऋषभजिणंद समोसर्या, महिमानो न लहुं पार. (७) सुरनर कोडी मिल्या तिहां, धर्म देशना जिन भाषे; पुडरिक गणधर आगले, शत्रुंजय महिमा प्रकाशे . ( ८ ) सांभळो पुंडरिक गणधर, काल अनादि अनंत; अ तीरथ छे से शाधतुं, आगे असंख्य अरिहंत. (६) गणधर मुनिवर केवली, पाम्या अनंती कोडी; मुक्ते गया इण तीरथे, वळी जाशे कर्म विछोडी. (१०) क्रूर होये जे जीवडा, तीर्यंच पंखी कहीजे; अ तीरथ सेव्या थकी, ते सीझे भवत्रीजे, (११) दीठे दुर्गति वारे, सारे अ वांछित काज. सेव्यो श्री शत्रुंजय गिरिवर, आपे अविचळ राज. ( १२ ) (राग -नमोरे नमो श्री शत्रुंजय गिरिवर)
(ढा. ३) उत्सर्पिणी अवसर्पिणी आरो, बिहु मलीने बारजी; वीस कोडाकोडी सागर केरुं, मान कह्यु निरधारजी. (१३) पहेलो आरो सुसम सुसमा, सागर कोडाकोडी चारजी; ते काळे अ श्री शत्रुंजय गिरिवर, अंशी जोयण अवधारजी. (१४) त्रण कोडाकोडी सागर आरो, बीजो सुसम नामजी; तदाकाले अ श्री शत्रुंजय, सीत्तेर जोयण अभिरामजी. (१५) त्रीजे सुसम दुसम आरो, सागर कोडाकोडी दोय जी; सांठ जोयणनुं मान शत्रुंजय, तदा काले तुं जोयजी. (१६) चोथो दुसम सुसम जाणो, पांचमो दुसम आरोजी; छठ्ठो दुसम दुसम कहीजे, अत्रणे थई विचारोजी. ( १७ ) अक कोडाकोडी सागर केरुं, अहनुं कहीओ मानजी; चोथे आरे श्री शत्रुंजय गिरिवर, पचास जोयण प्रधानजी. (१८) पांचमे छट्ठे अकवीश ओकवीश, सहस्स वरस वखाणोजी; बार जोयणने सात हाथनो, तदा विमलगिरि
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जाणोजी. (१६) तेह जाणी सदा काल ओ तीरथ, शाश्चतु जिनवर बोलेजी; ऋषभदेव कहे पुंडरिक निसुणो, नहीं कोई शत्रुजय तोलेजी. (२०) ज्ञान अने निर्वाण महाजश, लेशो तुमे इण ठामोजी, अह गिरि तीरथ महीमा इण जगे, प्रगट होशे. तुम नामेजी. (२१)
(ढा. ४) सांभळि जिनवर मुखथी साचुं, पुडरिक गणधार रे; पंचकोडी मुनिवरशुं इण गिरि, अणसण कीधुं उदार रे. (२२) नमोरे नमो श्री शत्रुजय गिरिवर, सकल तीर्थमांहे सार रे; दीठे दुर्गति दूर निवारे, उतारे भवपाररे, नमो० (२३) केवळ लही चैत्री पूनम दीने, पाम्या मुक्ति सुठाम रे; तदा कालथी पुहवी प्रगटीयुं, पुंडरीक गिरिवर नामरे, नमो. (२४) नयरी अयोध्याथी विचरंता पहोता, तातजी ऋषभजिणंदरे, सांठ सहससम षट खंड साधी, घेर आव्या भरत नरिंदरे, नमो० (२५) घेर जई मायने पाय लागी, जननी दीयो आशिष रे; विमळाचळ संघाधिप केरी, पहोंचजो पुत्र जगिशरे नमो० (२६) भरत विमासे साठ सहस सम, साध्या देश अनेक रे; हवे हुं तात प्रत्ये जई पुर्छ, संघपति तिलक विवेक रे, नमो० (२७) समवसरणेपहोंता-भरतेसर, वंदी प्रभुना पाय रे; इन्द्रादिक सुरनर बहु मळीया, देशना दे जिनराय रे. नमो० (२८) शत्रुजय संघाधिपति यात्रा फळ, भाखे श्री भगवंत रे; तव भरतेसर करेरे सज्जाइ, जाणी लाभ अनंतरे, नमो० (२६)
(ढा. ५) नयरी अयोध्याथी संचर्या, लेई लेई ऋद्धि अशेष; भरत नृप भावशुं ओ; शत्रुजय यात्रा रंग भरेओ, आवे आवे उलट अंग भ० (३०) आवे आवे ऋषभनो पुत्र, विमलगिरि यात्राओ ए, लावे लावे चकवर्तिनी ऋद्धि भ० ओ आंकणी, मंडलीक मुकुटवरबद्ध घणाओ, बत्रीश सहस नरेश भ० (३१) ढम ढम वाजे छंदशुंओ, लाख चोराशी निशान; भ० लाख चोराशी गजतुरीओ, तेहना रत्न जडीत पलाण भ० (३२) लाख चोराशी रथ भलाओ, वृषभ धोरी सुकुमाळ; चरणे झांझर सोना तणांओ, कोटे सोवन घुघरमाल. भ० (३३) बत्रीस सहस नाटक सहीजे, त्रण लाख मंत्री दक्ष; दीवीधरा पंचलाख कह्याओ, सोल सहस सेवा करे यक्ष. भ० (३४) दश कोटी आलंबध्वजा धराओ, पायक छन्नु कोडी; चोसठ सहस अंतेउरी); रुपे सरखी जोडी. भ० (३५) अंक लाख सहस अठ्ठावीशओ वारांगनाना रुपनीहाल. शेष
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तुरंगम सवि मलिओ, कोटी अढार निहाल. भ० (३६) त्रण कोटी साथे वेपारीयाओ, बत्रिस कोडी सुथार. शेठ सार्थवाह सामटाओ, रायराणानो नहिं पार. भ० (३७) नवनिधिने चौदरयणशुं ओ, लीधो लीधो सवि परिवार; संघपति तिलक सोहामणुंओ, भाले धराव्युं सार. भ० (३८) पगपग कर्म निकंदता अ, आव्या आव्या आसन जाम; गिरिदेखी लोचन ठाओ, धन्य धन्य शत्रुजय नाम. भ० (३६) सोवन फुल मुक्ताफले ओ, वधाव्यो गिरिराज; देई प्रदक्षिणा-पाखतीओ, सीध्यां सघळा काज. भ० (४०)
(प्रभु पास, मुखडं जोतां-देशी) (ढा. ६) काज सीधा सकल हवे सार, गिरि दीठे हर्ष अपार, ओ गिरिवर दरिसण जेह, यात्रा फल कहीजे तेह. (४१) सुरजकुंड नदी शेजूंजी, तीर्थजले नाह्यां रंजी; रायण तळे ऋषभजिणंदा, पहेला पगला पुजो नरिंदा. (४२) वळी इंद्र वचन मन आणी, श्री ऋषभर्नु तीरथ जाणी; तव चक्री भरत नरेश, वार्धकिने दीधो आदेश. (४३) तेणे शत्रुजय उपर चंग, सोवन प्रासाद उत्तंग, निपायो अति मनोहार, ओक कोष उचो चउबार. (४४) गाउ दोढ विस्तारे कहीओ, सहस धनुष पहोलपणे लहिजे; अकेके बारणे जोई, मंडप अकवीशज होइ. (४५) इम चिहुं दीसे चोराशी, मंडप रचियो सुप्रकाशी; तिहां रयणमय तोरण माळ, दीसे अति झाकझमाळ. (४६) विचे चिहुं दीसे मूल गंभारे, थापी जिन प्रतिमा चारे; मणिमय मुरति सुखकंद, थाप्या, श्री आदि जिणंद. (४७) गणधर वर पुंडरिक केरी, थापि बिहुं पासे मुर्ति भलेरी; आदिजिन मुर्ति काउस्सग्गीआ, नमि विनवी बेउ पासे ठविया. (४८) मणि सोवन रुप प्रकार, रची समवसरण सुविचार; चिहुं दीसे चउधर्म कहंता, थापी मुरति श्री भगवंता. (४६)भरतेसर जोडी हाथ, मुरती आगळ जगनाथ; रायण तले जमणे पासे, प्रभु पगला थाप्या उल्लासे. (५०) श्री नाभि अने मरुदेवी, प्रासादरों मुर्ति करेवी; गजवर खंधे लई मुक्ति, कीधी आईनी मुर्ति भक्ति. (५१) सुनंदा सुमंगळा माता, ब्राह्मी सुंदरी बेन विख्याता; वळी यक्ष गोमुख चक्केसरी देवी, तीरथ रखवाल ठवेवी. (५३) इम प्रथम उद्धारज कीधो, भरते त्रिभुवन जस लीधो; इंद्रादिक कीर्ति बोले, नहि कोई भरत नृप तोले. (५४) शत्रुजय महातम मांहि, अधिकार जो जो
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उत्साही; जिनप्रतिमा जिनवर सरखी, जुओ सूत्र उववाइ निरखी. (५५) ___ (वस्तु) भरते कीधो भरते कीधो, प्रथम उद्धार, त्रिभुवन कीर्ति विस्तरी; चंद्रसुरज लगेनाम राख्युं, तिणे समय संघपति केटला हुवा. सो इम शास्त्रे भांख्युं, कोडि नवाणुं नरवरा, हुवा नेव्याशी लाख, भरत समय संघपति वळी, सहस चोराशी भाख. (५६)
(राग : रघुपति राघव राजा राम) (ढा. ७) भरतपाटे हुआ आदित्ययशा, तस पाटे तस सुत महायशा, अतिबल भद्र अने बलवीर्य, कीर्तिवीर्य अने जलवीर्य. (५७) ओ साते हुआ सरखी जोडी, भरत थकी पुरव छ कोडी; दंडवीर्य आठमे पाटे हुवो, उद्धार तेणे कराव्यो नवो. (५८) इंद्र सोइ प्रशंस्यो घj, नाम अजवाल्युं पूर्वज तो; भरत तेणीपरे संघवी थयो, बीजो उद्धार ते अहनो कह्यो. (५६) भरत पाटे मे आठे वली, भुवन अरीसामां केवली; इणे आठे सवि राखी रीत, अणे न लोपी पूर्वज रीत. (६०) अकसो सागर वित्या जिसें, इशानेन्द्र विदेहमां तिसे; जिनमुख सिद्धिगिरि सुणी विचार, तेणे कीधो त्रीजो उद्धार. (६१) ओक कोडी सागर वली गयां, दीठां चैत्य विसंस्थुल थयां; माहेद्र चोथो सुरलोकेन्द्र, कीधो चोथो उद्धार गिरेन्द्र. (६२) सागर कोडी गया दशवली, श्री ब्रह्मेन्द्र घj मनरुली; श्री शत्रुजय तीर्थ मनोहार, कीधो तेणे पांचमो उद्धार. (६३) अक कोडी लाख सागर अंतरे, चमरेन्द्रादिक भवन उद्धारे; छठो इंद्र भवनपति तणो, अ उद्धार विमलगिरि सुणो. (६४) पचास कोडी लाख सागर तणुं, आदि अजित विचे अंतर भ[; तेह विचे सुक्ष्म हुवा उद्धार, ते कहेतां नविलाभे पार. (६५) हवे अजित बीजा जिनदेव, शत्रुजय सेवा मिष हेव; सिद्धक्षेत्र देखी गहगह्या, अजितनाथ चोमासु रह्या. (६६) भाई पीतराई अजितजिन तणो, सागर नामे बीजो चक्रवर्ति भणो; पुत्र मरणे पाम्यो वैराग, इंद्रे बुझवियो महाभाग. (६७) इंद्रवचन हियडा मांहे धरी, पुत्र मरण चिंता परिहरि; भरत तणीपरे संघवी थया, श्री शजय गिरियात्रा गया. (६८) भरत मणिमय बिंबविशाळ, कर्या कनक प्रासाद जमाल; ते देखी मन हरख्यो घj, नाम संभाणु पूर्वज तणु. (६६) जाणी पडतो काल विशेष, रखे विनाश उपजे रेष; सोवन गुफा पश्चिमदिशि जीहां,
शत्रुजय माई पीतराई अजिताभावियो महाभाग. संघवी थया,
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रयण बिंब भंडार्यां तिहां. (७०) करी प्रासाद सयल रुपाना, सोवन बिंब करी थापना; कर्यो अजितप्रासाद उदार, अह सगर सत्तम उद्धार. (७१) पचास कोडी पंचाणुं लाख, उपर सहस पंचोतेर भाख; जेटला संघवी भूपति-थया, सगर चक्रवर्ति वारे कह्या. (७२) त्रीस कोडी दस लाख कोडी सार, सागर अंतर करे उद्धार; व्यंतरेन्द्र आठमो सुचंग, अभिनंदन उपदेश उत्तंग. (७३) वारे श्री चंद्रप्रभ तणे, चंद्रशेखर सुत आदर घणे; चंद्रयशा राजा मनरंग, नवमो उद्धार को शत्रुजे. (७४) श्री शांतिनाथ सोलमा स्वाम, रह्या चोमाशु विमलगिरि ठाम; तस सुत चक्रायुद्ध राजीयो, तेणे दशमो उद्धारज कीयो. (७५) कीयो शांति प्रासाद उदाम, हवे दसरथ सुत राजा राम; अकादशमो कर्यो उद्धार, मुनिसुव्रत वारे मनोहार. (७६) नेमिनाथ वारे निर्धार, पांडव पांचे कर्यो उद्धार; श्री शत्रुजयगिरि पुंगी रली, अकादशमो जाणे मनरूली. (७७)
(ढा. ८) पांडव पांच प्रगट हुआ, खोई अक्षोहिणी अढाररे; पोतानी पृथ्वी करी, कीधो मायने जुहाररे. (७८) कुंतारे माता इम भणे, वत्स सांभळो आपरे; गोत्र निकंदन तुमे कर्यो, ते केम छुटसे पापरे. (७६) पुत्र कहे सुणो मावडी, कहो अम सोय उपाय रे; ते पातक केम छुटीओ, वळतु पभणे मायरे. (८०) श्री शत्रुजय तीरथ जई, सुरजकुंडे स्नानरे; ऋषभजिणंद पूजा करी, धरो भगवंतनुं ध्यानरे. (८१) माता शिखामण मन धरी, पांडव पांचे तामरे; हत्यापातक छुटवा, पहोता विमलगिरि ठामरे. (८३) पांडव वीर वच्चे आंतरं, वरस चोराशी हजाररे; चारसे सीत्तेर वर्षे हुवो, वीरथी विक्रम नरेशरे. (८४)
(ढा. ६) धन्य धन्य शत्रुजय गिरिवर, जिहां हुआ सिद्ध अनंतरे; वळी होशे इणे तीरथे, इम भाखे भगवंतरे. धन्य० (८५) विक्रमथी अकसो आठे, वरसे जावडशाहरे, तेरमो उद्धार शेजूंजे कर्यो, थाप्या आदिजिननाथरे, धन्य० (८६) प्रतिमां भरावीने रंगशुं, नवा श्री आदि जिणंदरे, श्री शत्रुजय शिखरे थापीया, प्रासादे नयना नंदरे, धन्य० (८७) पांडव जावड आंतरे, पचवीश कोडी मयालरे, लाख पंचा' उपरे, पंचोतेर सहस भूपालरे. धन्य० (८८) अटलां संघवी तिहां हुवा, चउदशमो उद्धार विशाळ रे; बारतेरोत्तरे
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सोय करे, मंत्री बाहडदे श्रीमाळ रे. धन्य० (८६) प्रतिमा भरावीने रंगशुं, नवा श्री ऋषभजिणंदरे; शेजूंजा शिखरे थापीया, प्रासाद नयणानंदरे. धन्य० (६०) बारसे छ्यासी मंत्री वस्तुपाले, यात्रा शत्रुजयगिरिसाररे, तिलका तोरण शुं करे, श्री गिरनारे उद्धाररे. धन्य० (६१) संवत तेर ओकोतेरे, श्री ओसवंस शणगाररे; समरो शाह द्रव्य व्यय करे, पंचदशमो उद्धाररे. धन्य० (६२) श्री रत्नाकर सूरिश्वर, वर तपगच्छ शणगाररे; स्वामी ऋषभज थापीया, समरोशाह उद्धाररे, धन्य० (६३) ___ (ढा. १०) जावडा समरा उद्धार, अह वच्चे त्रण लाख सार; उपर सहस चोराशी, अटला थया समकित वासी. (६४) श्रावक संघपति हुआ, सत्तर सहस भावसार जुआ; क्षत्रि सोळ सहस जाणुं, पन्नर सहस विप्र वखाणुं. (६५) कौटुंब बार सहस कहीओ, लेउआ नव सहस लहीले; पंच सहस पिस्तालीश, अटलां कंसारा कहीश. (६६) ओ सवि जिनमति भाख्यां, श्री शत्रुजययात्राओ आव्या; अवरनी संख्या न जाणुं, पुस्तक दिठे तेह वखाणुं. (६७) सातसे मेहर संघवी, जात्रा तलहटी तसहवी; बहु श्रुत वचने मे राउँ, ओ सवि मानजो साचुं. (६८) भरत समराशाहे अंतरे, संघवी असंख्याता इणीपरे; केवली विण कोण जाणे, किम छद्मस्थ वखाणे. (६६) नवलाख बंधी बंध काप्या, नवलाख हेमटका तस आप्या; तो देशीलहरीये अन्न चाख्यु, समराशाहे नामज राख्यु. (१००) पन्नर सत्तासीले प्रधान, बादशाह दिओ बहु मान; करमाशाहे जश लीधो, उद्धार सोलमो कीधो. (१०१) इण चोवीशीये विमलगीरि, विमलवाहन नृप आदरी; दुःपसहसूरी गुरु उपदेशे, उद्धार छेल्लो करशे. (१०२) ओम वळी जे गुणवंत, तीरथ उद्धार महंत; लक्ष्मी लही व्यय जे करशे, तस भव कारज सरशे. (१०३)
__ (ढा. ११) धन्य धन्य शत्रुजयगिरि, सिद्धक्षेत्र मे ठाम कर्म क्षय करवां, धरे बेठा जपो नाम. (१०४) चोवीशी अणी ओ गिरि, नेम विना जिन विश, तीरथ भूमि जाणी, समोसर्या जगदीश. (१०५) पुंडरिक पंच कोडीशुं, द्राविड वारिखील्ल जोड, कार्तिक पूनम सिध्यां, मुनिवरशुं दश कोड. (१०६) नमि विनमि विद्याधर, दोय कोडी मुनि संयुत, फागण सुदि दशमी, इणी मुक्ति सर्वार्थे अह गिरि शिवपुर वाट गिरि मोक्ष पहुंत. (१०७) श्री
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ऋषभवंशी नृप, भरत असंख्याता पाट, मुक्ति गया इण गिरि, ओ गिरि शिवपुरी वाट. (१०८) राम मुनि भरतादिक, मुनि त्रण कोडीशुं ओम, नारदशुं अकाणु, लाख, मुनिधर सिध्यां तेम. (१०६) मुनि सांब प्रद्युम्न शुं, साडी आठ कोडी सिद्ध, वीश कोडी शुं पांडवा, मुक्ते गया निराबाध. (११०) वळी थावच्चा सुत, शुक मुनिवर इणे ठाम, ओक सहससुं सिद्धा, पंचशत शैलग नाम. (१११) इम सिद्धा मुनिवर, कोडाकोडी अपार, वळी सिद्धसे इणे गिरि, कोण कहि जाणे पार. (११२) सात छठे दोय अठ्ठम, गणे अकलाख नवकार, शत्रुजयगिरि सेवे, अहने नहि बहु अवतार. (११३) ___(ढा. १२) मानव भव में भले लह्यो रे, लह्यो ते आरज देश, श्रावक कुल लाध्युं भलं रे, जो पाम्योरे व्हालो ऋषभ जिनेशके. (११४) भेट्यो रे गिरिराजने हवे सिध्या रे म्हारा वांछित काजके, त्रुठ्योरे त्रिभुवनपति आज के. (११५) धन्य धन्य वंश कुलगर तणो, धन्य धन्य नाभि नरिंद, धन्य धन्य मरुदेवा मावडी, जेणे जायोरे वहालो ऋषभजिणंद. (११६) धन्य धन्य शत्रुजय तीरथ, रायण रुख धन्य धन्य, धन्य पगला प्रभु तणां, जे पेखीरे मोडं मुज मनके. (११७) धन्य धन्य ते जग जीवडा, जे रहे शत्रुजय पासे, अहोनिश ऋषभ सेवा करे, वळी पूजे रे प्रभु मनने उल्लासके. (११८) आज सखी मुज आंगणे, सुरतरु फळीयो सार, ऋषभ जिनेसर वांदिया, हवे तरीयारे भव जलधिले पारके. (११६) साळे सो अडत्रीशे आसो मासमां, शुदि तेरस बुधवार, अमदावाद नयर माहे, में गायो रे शत्रुजय उद्धारके. (१२०) वड तपगच्छ गुरु गच्छपति, श्री धनरल सुरिन्द्र, तसशिष्य तस पट जयंकर गुरु गच्छपति रे अमर रल सूरिन्द्रके. (१२१) विजय मान तस पटधरुरे, श्री देवरल सूरीश, श्री धनरत्न सूरिश्वरु, शिष्य पंडित रे भानुमेरु गणीशके. (१२२) तस पद कमळ भ्रमर भणे, नयन सुंदर दे आशिष के, त्रिभुवन नायक सेवतां, हवे पुगी रे श्री संघजगीशके. (१२३)
(कळश) इम त्रिजग नायक; मुक्ति दायक विमलगिरि, मंडण धणी, उद्धार शत्रुजयसार गायो, थुण्यो जिन भक्ते घणी;. (१२४) भानु मेरु पंडित शिष्य दोय, करजोडी कहे नयण सुंदरो, प्रभु पाय सेवा नित्य करवा, देई दश्शन जय करो. (१२५)
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(1) श्री आदिनाथ जिन स्तवन बोलबोल आदिशर दादा, कांईथारी मरजी रे, केमांशुमुंडे बोल। माता मरुदेवी वाट जोवंता, इतरे बधाई आयी रे, आज रिषभजी उतर्या बाग में, सुण हरखाई रे.॥१।। नाय धोय ने गज असवारी, करी मरुदेवी माता रे, जाय बाग में नन्दन निरखी, पाई शाता रे.॥२॥ राज छोडने निकल्यो रिखबो,
आ लीला अद्भूती रे, चमर छत्र ने और सिंहासन, मोहनी मूरति रे.।।३।। दिनभर बैठी वाट जोवंती, कद म्हारो रिखबो आवे रे, कहती भरतने
आदिनाथ की, खबरां लावो रे.।।४।। किस्या देश में गयो वालेसर, तुझ विना विनीत सूनी रे, बात कहो दिल खोल लालजी, क्युं बन्यां मुनिजी रे.।।५।। रह्यां मजा में हो सुख शाता, खूब किया दिल चाया रे, अब तो बोल आदिसर माशु, कम्पे काया रे.॥६॥ खैर हुई सो हो गयी वाला, बात भली नहीं कीनीरे, गया पछे कागद नहीं दीनो, म्हारी खबरा न लीनी रे.।।७।। ओलम्बो मैं देउ कठै तक, पाछो क्युं नहीं बोले रे, दुख जननी को देख आदीसर, हियडे तोले रे.।।८।। अनित्य भावना भाई माता, निज आतम ने तारी रे, केवल पामी ने मोक्षे सिधाव्या, ज्याने वन्दना हमारी रे.॥६॥ मुक्ति रा दरवाजा खोल्या, श्री मरुदेवी माता रे, काल असंख्या रह्यो उघाड़ा, जम्बू जड गया ताला रे.॥१०॥ साल बहोत्तर तीर्थ ओसिया, गयवर प्रभु गुण गाया रे, मूरति मनोहर प्रथम जिणंदकी, प्रणमूं पाया रे.।।११।।
(2) श्री आदिनाथ जिन स्तवनो आदिनाथ! ताहरा गुण मुखगाउं, गंगा क्षिरोदधि शुद्ध जलसे, स्नात्रविधि विरचा...आदिनाथ०.॥१॥ पूजा करुं भावे मन शुद्धे, केसर पुष्प चढावू...आदिनाथ०.।।२।। धूप उखेवू, करुं आरती, भावना शुभ मन भावं...आदिनाथ०.॥३॥ जो कछु जानो तो कीजे भलाई, जनम जनम सुख पावू...आदिनाथ०.॥४॥ प्रेम धरीने कांति पयंपे, प्रभु चरणे चित्त लावू... आदिनाथ०.॥५॥
(3) श्री आदिनाथ जिन स्तवन नाभिराया कुल वंशे उदयोदिणंद, देवनो में देव दिठो आदि जिणंद.
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आदि जिणंद, मरुदेवानो नंद, देव नो में देव दीठो आदि जिणंद ||१|| मीठो लागे महाराज, रुप तारुं आज, मुजरो लीयोने मारो, सारो ने काज, दिवस घणे दीठो तुने, नाथ मुंने नेह, उपन्यो आनंद तेनो कोण लहे छेह. आदि० ।।२।। ता.ता.. .थैई थैई ताल बाजे, धीन धीन द्र, मृदंग देव दुदुंभी ते वागे द्यौ.. द्यौ,... आँ... औं... शंख वाजे, बाजे ताल कंसाल, धप मप धमके मादल रसाल... आदि० || ३ || धीन किटा धींन किटा थैई थैई थाय, पपधनी धपमप थैई अति वाय, घणणण घुघरा दमके रे पाय, भणणण भणकारा भेरीना थाय. आदि० || ४ || नाची कुदि पाये वंदि भविजन भावे, भक्तिशुं भगवंत ने शीश नमावे, मुक्तिनी मोज आपो, मांगु बे करजोड, उदयरत्न कहे प्रभु भव दुःख छोड आदि० ||५||
( 4 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन ( राग : नीलुडी रायण तरू तले)
आदिजिणंद अरिहंतजी प्रभु अमने रे, तुमे द्यो दर्शन महाराज, शुं कहूं • तमने रे, १. आठ पहोरमां अक घडी प्र० लाग्युं तमारुं ध्यान शुं कहुं तमने रे, मधुकरने मन मालती प्र० जिम मोरा मन मेह शुं० २. सीता ने मन रामजी प्र०, तेम वाध्यो तुम शुं नेह शुं० रोहिणीने मन चंद्रजी प्र०, वळी रेवाने गजराज शुं० ३. समय समय प्रभु सांभरे प्र०, मनडामां महाराज शुं० निःस्नेही थई नवि छुटिये प्र०, करुणावंत कहाओ शुं० ४. गुण अवगुण जोतां रखे प्र०, तो तारक केम कहाओ शुं० रढ लागी प्रभु रुपने प्र०, मने न गमे बीजी वात शुं० ५. वाये वात बने नहीं प्र०, मळीये मुकि भ्रांत शुं० सेवे चिंतामणी फळे प्र०, तुं तो त्रिभोवन नाथ शुं० ६. सो वाते छोडुं नहीं प्र०, हवे आव्या मुज शुं हाथ शुं० मुहनी वात मूको परी प्र०, जिम तिम तार शुं० तारो सद्गुरु सुंदर कविरायनो प्र०, पद्मने प्रभु शुं प्यार शुं कहुं तमने रे० ७.
( 5 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : विनती अवधारे रे )
तुम सेवा मेवा रे, लागी मुज हेवारे, गयवर जिम रेवा रे; देवाधिदेवा, ऋषभ जिनेसरु रे०. ||१|| कामिनी शणगार रे, कुलवती भरतार रे; मोरा जलधार ज्युं सेवा लही रे. ॥२॥ लोभीने आथरे, पंथिने साथरे, पंडितने ग्रंथ
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रे; जन्म सुकयथ्थ, गणुं तुम सेवना रे. ॥३॥ दरिसण तुम केरा रे, करुं उठी सवेरा रे, मीटे मोह अंधेरा रे; खीजमतमां रहुं, साहिब ! तेरी आगळे रे० ॥४॥ सेव्य सेवक भाव रे, थयो पुण्य जमाव रे, होजो जावज्जीव रे; वीतराग स्वभाव न, प्रगटे जिहां लगे रे०. ॥५॥ प्रभुआणा राग रे, समकितनो लाग रे, अहीज भव ताग रे, शिवपद माग रे, आपो प्रभु तमे जिनविजयनेरे. ॥६॥
(6) श्री ऋषभदेव भगवाननुं स्तवन जीरे सफळ दिवस आज माहरो, दीठो प्रभुनो देदार (२) लय लागी जिनजी थकी, प्रगट्यो प्रेम अपार (२) घडीओ न विसरो हो साहेबा, साहेबा घणो रे सनेह (२) अंतरजामी छो माहरा, मरुदेवाना नंद सुनंदाना कंत घडीओ० ॥१॥ साहिबा लघु थई मन माहरूं, तिहां रद्यु, तुमारी सेवाने काज, ते दिन क्यारे आवशे, होशे सुखनो आवास (२) घडि० ॥२॥ घडीओ० जीरे प्राणेश्वर प्रभुजी तमे, आतमना रे आधार, म्हारे प्रभुजी तुमे ओक छो, जाण जो निरधार. घडीओ० ॥३॥ साहिबा ओक घडी प्रभुजी तुम विना, जाओ वरस समान, प्रेम विरह हवे केम खमुं? जाणो वचन प्रमाण घडीओ० ॥४॥ साहिबा अंतरगतनी वातडी, कहो केने कहेवाय,? व्हालेश्वर वीसवासीया, कहेता दुःख जाय, सुणतां सुख थाय घडीओ० ॥५॥ साहिबा देव अनेक जगमा वसे, तेहनी ऋद्धि अनेक, तुम विना अवरने नवि नमुं, अहवी मुज मन टेक. घडीओ० ॥६॥ जीरे पंडित विवेकविजयतणो, प्रणमे शुभ पाय, हरखविजय श्री ऋषभना, जुगते गुण गाय. घडीओ. न विसरो हो साहिबा ॥७॥ (7) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग-तार हो तार प्रभु-ओ देशी)
ऋषभ जिनराज मुज आज दिन अति भलो, गुण नीलो जेणे तुज नयन दीठो, दुःख टल्यां सुख मळ्या स्वामी तुज निरखता, सुकृत संचय हुओ पाप नीठो. ऋषभ० १ कल्पशाखी फल्यो, कामघट मुज मल्यो, आंगणे अमीयनो मेह वूठो, मुज महीराण महीभाण तुज दर्शने, क्षय गयो कुमति अंधार जूठो. ऋषभ० २ कवण नर कनक मणि छोडी तृण संग्रहे,? कवण कुंजर तजी करह लेवे? कवण बेसे तजी कल्पतरु बाउले? तुज तजी अवर
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सूर कोण सेवे? ऋषभ० ३ अक मुज टेक सुविवेक साहिब सदा, तुज विना देव दूजो न इंहुं तुज वचन राग सुख सागरे झीलतो, कर्मभर भ्रमर थकी हुं न बीहुं, ऋषभ० ४ कोडी छे दास विभु ! ताहरे भलभला, माहरे देव तुं ओक प्यारो; पतित पावन समो जगत उद्धारक, महेर करी मोहे भवजलधि तारो. ऋषभ० ५ मुक्तिथीअधिक तुज भक्ति मुज मन वसी, जेहशु सबळ प्रतिबंध लागो; चमक पाषाण जिम लोहने खेंचशे, मुक्तिने सहज तुज भक्ति रागो. ऋषभ० ६ धन्य ! ते काय जेणे पाय तुज प्रणमिये, तुज थुणे धन्य ! जेह धन्य ! जीहा; धन्य ते ह्वदय जेणे तुज सदा समरतां; धन्य! ते रातने धन्य ! दीहा. ऋषभ० ७ गुण अनंता सदा तुज खजाने भाँ, ओक गुण देत मुज शुं विमासो; रयण ओक देत शी हाण रयणायरे? लोकनी आपदा जेणेनासो ऋषभ० ८ गंग सम रंग तुज कीर्ति कल्लोलिनी, रवि थकी अधिक तपतेज ताजो; नयविजय विबुध पाय सेवक हुं आपनो, जस कहे अब मोहे बहु निवाजो. ऋषभ० ६
(8) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : आवो आवो देव मारा)
___ जोग न मांडयो मैं घर केरो, जोग न धरीओ; जोगविहोणो जोगी हुओ, करुं भवांतर फेरो. आदिसर! विनतडी अवधारो. ॥१॥ मोह नरिंदे नाटक मांड्यो, नाच्यो ते मोझार; धन सज्जनशं रंगे रातो, अने वांछ भवपार०... आदि०.॥२॥ हुं मांडु जगशुं ममकार, कोईन थाये माहरो; माहरुं माहरूं तोय न मेलु, अहवो मूढ गमारो०...आदि०.॥३॥ हैयुं अनेरु मोंढे अनेलं, काया करुं हुं अनेरुं, बाहिर धर्मीपणुं देखाईं, अंदर सत्र अनेरुं०...आदि०.॥४॥ परनिंदा आपणी प्रशंसा, करतां किम न लाजूं; दोष आपणां सुणी दुहवाउं, गुण सांभळतो गाजुं.०...आदि०.।।५।। साचु कहेतां किम ही न राचुं, कुडे जाणुं काज; जे कारण आगे भव भमियो, ते धुर दहाडो आज०... आदि०.॥६॥ मूरखमांही शिरोमणी तो पण, जाणता नामे पूजाउं; नेह नवा विण सगपण मांडु; निरह नाम कहाऊ ॥७॥ आदि धरम तणो मिष मांडी पोषु, विषय तणा व्यापार; मारग झुझुओ नित नित दोडु, इच्छु भववन पार०...आदि०.।।८।। घर आरंभ थकी हुं भाग्यो, कुगुरु तणे
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कर चडियो; शियालना भयथी निसरीयो, सिंह तणे वश पडीयो०...आदि०.॥६॥ अमीय रसायण आगम लहीने, विद्या भणी सुविशाल; नवा नवा मत मे बहु मांड्या, रचियां मायाजाल०...आदि०. ।।१०।। पर बुझववा पहोळो हुओ, आप न जाणुं सार; तरीय न जाणुं तारुं थाऊं, किम पामीश निस्तार०... आदि०.॥११॥ पांच इंद्रिय पूरी पोषु, मांडी कपट जंजाल; भ्रम देखाडी लोक भमाडु, वांर्छ सुख रसाल०... आदि०.॥१२।। निरगुण आराधुं गुणी मानी, आणी ह्वदय बहुमान; निर्दोषी गुणीजन अवहेल्या, मोटुं मुज अज्ञान०...आदि०.॥१३॥ जे जिनवाणी अमिय समाणी, तेविष सरखी जाणी; जे विष सरखा मूरखना मत, ते उपर चित्त पामी०...आदि०.॥१४॥ सेतुं कुदेव कुगुरुं, कुधर्म, आपे आप विगोयो; दोष अवरना बहु देखाईं, जाणपणुं मुज जुओ०...आदि०.॥१५॥ परविधने संतोषी हुओ, परलाभे विषवाद; परहितकारी पणुं देखाईं, बोलुं पर अपवाद०...आदि०.॥१६॥ अंतराय कर्म उदय करीने, भोगसंयोग न मळीयो; अछता भणी व्रतधारी हुओ, मन अभिलाष न टळीयो.०... आदि०. ॥१७|| रागद्वेष क्षण अक न मेलु, स्वामी केम सुख पामुं; संथारामांही सूतो वांछु, भोगीपणुं राजानुं. आदि०.॥१८॥ क्रोध दावानल मांही दाधो, मान महागिरि चडियो; माया सापण सूतो खाधो, लोभ समुद्रमा पडियो०... आदि०.||१६|| काम समीरे भूरी भमाड्यो, मोह पिशाचे छळियो; मिथ्या धूतारे घणुं धूत्यो, तोये रहुं तस मळियो०...आदि०.॥२०॥ पूण्य न पोते संचय कीg, पापे भर्या रे भंडार; सुख वांछतो देह संभालु, छेवट थाशे जे छार०...आदि०.॥२१॥ जे सुखदायक त्रिभुवननायक, सकल जीव हितकारी; तेह तणी पण निन्दा करतो,- कहेवाउ शुद्ध आचारी०... आदि०.।।२२।। जे तप संयमे सुख लहीये, तेह मार्नु दुःख मूल; प्रमाद तणा सुखमांहे राचु, ते मुज मन अनुकूळ०...आदि०.॥२३॥ जे संसार तणा सुख दीठां, ते मुज लागे मीठां; जे तप संयमथी भय नासे, मुज मन तेह अनीठां०...आदि०.॥२४॥ अह भवाडा पार न आवे, कहेवा भवनी कोड; तुम दर्शन देखी हवे लीनो, तेणे टळी सवि खोड०...आदि०.॥२५।। कहे लावण्य समय कर जोडी, मांगु ओक पसाय; हवे भवांतर भेट तमारी, देजो श्री जिनराय!०...आदि०.॥२६॥
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(9) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : जट जाओ चंदन हार) __ घेर आवो विनिताना राय, वदनमुख जोइy, मारा हैया टाढेरा थाय. विरह दुःख दोहिलु...साखी :-सहसवरस पुरा थयाने, तुं कयां गयो परदेश, विछुआ न धरी माडी तणा...आसंगशे नहीं लवलेश..ऋषभ० ॥१॥ क्षण विछुओ नवि छोडताने, जबरे हता नाना बाळ आंख ज थई अळखामणी,... तेनी शीदने करूं संभाळ, ऋषभ० ॥२॥ संदेशो नवि मोकल्यो ने, नवि रे लख्यो अक लेख, मेरे पाळीने मोटो कर्यो..हवे सुख दिधाते देख...ऋषभ० ॥३॥ मंदिर दीठानवि गमे ने, अन्न उदक न सुहाय, रीखव रीखव करी हूं भमुं...मारा दिन ते दोहिला जाय० ऋषभ० ॥४॥ वनरे पूछे वनपालने, ओ सर्वे तमारी पसाय, श्येरे गुणे श्ये अवगुणे०...तुजने मन थकि मेली जाय..ऋषभ० ॥५॥ भक्ति करुं मुज बेटडा रे, घणीओ रे करूं संभाळ, तोओ तारा दर्शन विना..मजने लागी छे आळ पंपाळ...ऋषभ० ॥६॥ आवे सैयर दया जाणीने, पूछीओ निमित्तविचार, रीखव कुंवर आवे घरे रे तेने लाख करु पसाय...ऋषभ० ॥७॥ भरतादिक सुत छे घणांने, तुं कयां गयोपरदेश, लोभ न करीओ बालुडा...तारे घेर छे घणी रे जगीश...ऋषभ० ॥८॥ हंसलवेने... कोयललवे, लवते देव गया दूर, अलवेसर आवे घरे..ओलो कामलवे मोरेनेह,..ऋषभ० ॥६॥ रत्न जडावू तुज पांखडीने, उडतुं काग सुजाण, रीखवकुंवर आवे घरे, तेनी घणी रे करुं गुण खंत..ऋषभ० ॥१०॥ भरते दीधी वधामणीने सत्य देखाडु मोरीमाय, समवसरण देवे रच्यु,... आवी बेठा त्रिभुवन राय, ऋषभ० ॥११॥ गज अंबाडी बेसाडीयाने, आव्या भरतेश्वर माय, दर्शन दीठां पुत्र तणा...त्यारे हरख्या मरुदेवी माय ऋषभ० ॥१२॥ हरखना आसुं आवीयाने, नयणे नीर झरंत, पर्षदा सर्वे सुणी, सुणी त्यारे हैये हरख नवि माय..ऋषभ० ॥१३॥ समवसरण आवी करी, तुं वच्छ सोवनकाय, जगमां कोई कोईनुं नहीं, हवे सगपण श्यो रे सनेह, ऋषभ० ॥१४॥ अम जपता मुगते गयाने, उपन्युं ते केवळज्ञान. हंसविजय कुल चंदलो तेनी भक्ति करुं दिन रात, ऋषभ घेर आवशे ।।१५।।
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(10) श्री कुलपाकजी तीर्थमंडन श्री माणिक्यस्वामी (आदिश्वर भगवान-) (राग : करे विनती चंदनबाला वीरने रे)
जई, जई, जई, जुगते तैलिंग देशमां रे, जिहां माणिकय स्वामि आदिश्वर देव; पूजा करीये आंगि रचीये सुंदर वेशमां रे. (१) ___ साखी :-भरतराय अष्टापदे, स्थापे श्री जिनचंद, विद्याधर आवी करे, दर्शन हर्ष उमंग; मूर्ति लई जावे त्यांथी निज धाममां रे, करें पूजन प्रभुनुं त्रण काळ, जईअ० (२)
साखी :-नारदमुनि ओक दिवसे, विद्याधरनी पास, अद्भुत प्रतिमा देखीने, वंदे धरी उल्लास; मूर्ति संबंधी वात करे इन्द्रने रे, मूर्ति मंगावे छे इन्द्र निजपास, जईओ० (३)
साखी :-सौधर्म देवलोकमां, माणिकय स्वामि देव, पधरावी पूजन करे, शक्र सहित ततखेव; घणो काळ पूजाणी मूर्ति देवलोकमां रे, नारद मुखथी सुणे मंदोदरी अम; जईओ० (४)
साखी :-मूर्तिमां ललचाई गयुं, मंदोदरीनुं मन, प्रतिमा न मळे त्यां लगे, लेवू न मारे अन्न; ओवो गाढ अभिग्रह लीधो त्यारे रावणे रे, आराधन कर्यु इन्द्रनुं खास. जईओ० (५)
साखी :-तुष्टमान थई ने दीये इन्द्र मूर्ति धरी ख्याल, मंदोदरी हर्षित थई, पूजन करे त्रणकाल; अवो अभिग्रह पूरण थयो आकरो रे, प्रभुनी भक्ति तणोओह प्रभाव; जईअ० (६)
साखी :-राम अने रावण तणुं, युद्ध थयुं अतिघोर, त्यारे दरियामां धरी, प्रतिमा न लीये चोर, लवणाधिप पूजे तिहां प्रभुने प्रेमथी रे, घणो काळ पूजाणी समुद्रनी मांय. जईओ० (७)
साखी :-श्री कर्णाटक देशमा, कल्याणी नगरी कहेवाय, राजकरे भूपति तिहां, शंकर नामे राय, महामारी रोग उपन्यो ते देशमां रे, त्यारे पद्मावतीजे स्वप्न कह्यु अम; जईओ० (८)
साखी :-मंदोदरी महाराणीओ, मूर्ति अतिमनोहार, दरियामां पधरावी
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छे, ते काढो ने बहार; पूजो प्रजा साधे प्रतिमा पूरण प्रेमथी रे, जाशे रोग सुखशांति थाशे अपार; जईओ० (६)
साखी:-लवणाधिप आराधवा, समुद्र तटे गया राय; पुन्ये प्रसन्न थया देवता, आपे प्रतिमा लाय, त्यांथी तैलिंग देशे कुलपाक गामे आवतां रे, प्रतिमा स्थिर थई गई ततकाळ; जईओ० ( १० )
थाय
साखी :- तिहां जिनभुवन - करावीने भरीने मुक्ता थाल, पधरावे प्रभु प्यारथी; महोत्सव करे भूपाल, आपे पूजा माटे गाम बार भावथी रे, रोगनी शांति देशमां ते वार जईओ० ( ११ ) लाख अंशी हजार, नवशे पांच गणाय, स्वर्गथी मनुष्यलोकमां, आव्ये वर्ष मनाय; तिहांथी तैलिंग देशे, कुलपाक गामे ते रही रे, अह मूर्ति सहुजनथी वखणाय जईओ० (१२) तरणतारण माणिक्य प्रभु, महिमा जगमशहुर यात्रालुं यात्रा करे, करे कर्म चकचूर, धर्म दोलत दायक प्रभु वंदता रे, कहे हंस विजय तणो शिष्य मुनिकर्पूर, जईओ० (१३)
(11) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
बालपणे आपण ससनेही, रमता नव नव वेषे, आज तुमे पाम्या प्रभुताई, अमे तो संसार ने वेशे, हो प्रभुजी ओलंभडे मत खीजो. बा० १. जो तुम ध्याता शिवसुख लहीओ, तो तुमने केई ध्यावे, पण भवस्थिति परिपाक थया विण, कोईन मुगते जावे हो प्रभुजी. बा० २. सिद्धनिवास लहे भवसिद्धि, तेहमां शुं पाड तमारो, जो उपगार तमारो वहीओ, अभव्यसिद्धने तारो हो प्रभुजी . बा० ३. नाणरयण पामी अकांते, थई बेठां मेवासी, तेह मांहेलो ओक अंश जो आपो ते वाते शाबाशी हो. बा० ४. अक्षयपद देतां भविजन ने, संकिर्णता नव थाय, शिवपद देवां जो समरथ छो, तो जसलेतां शुं जाय हो. बा० ५. सेवागुण रंज्यो भविजनने, जो तुमे करो वडभागी, तो तमे स्वामी केम कहेवाशो, निर्ममने निरागी, हो. बा० ६. नाभिनंदन जगवंदन प्यारो, जगगुरु जगहितकारी, रूपविबुधनो मोहन पभणे, वृषभलंछन मनोहारी. बालपणे आपण ससनेही...७.
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(12) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
प्रथम जिनेश्वर पूजवा, सैयर मोरी अंग उलट धरी आव हो; केसर चंदन मृगमदे, सैयरमोरी सुंदर आंगी बनाव हो, सहेजे सलुणो मारो; शिवसुख लीनो मारो, ज्ञानमां भीनो मारो; देवमां नगीनो मारो साहिबो सैयर मोरी जयो जयो प्रथम जिणंद हो. १ धन्य मारूदेवा कुखने, सैयर० वारी जाउं वार हजार हो, स्वर्ग शिरोमणिने तजी, सैयर० जीहां लहे प्रभु अवतार हो. सहेजे० २ दायक नायक जन्मथी, सैयर० लाज्यो सुरतर वृंद हो; जुगला धर्म निवारणो; सैयर० जे थयो प्रथम नरिंद हो. सहेजे० ३ लोकनीति सवि शीखवी, सैयर० दाखवा मुक्तिनो राह हो; राज्य भळावी पुत्रने, सैयर० थाप्यो धर्म प्रवाह हो. सहेजे ० ४ संजम लेईने संचर्या, सैयर० वरस लगे विण आहार हो; शेलडी रस साटे दीयो, सैयर० श्रेयांसने सुखकार हो. सहेजे० ५ मोटा महंतनी चाकरी, सैयर० निष्फल कदीओ न थाय हो; मुनिपणे नमि विनमि कर्या, सैयर० क्षणमां खेचर राय हो, सहेजे० ६ जननीने कीधुं भेटणुं, सैयर० केवळ रत्न अनूप हो; पहेला माताजीने मोकल्यां, सैयर० जोवा शिववहु रूप हो. सहेजे ० ७ पुत्र नवाणुं परिवर्या, सैयर० भरतना नंदन आठ हो; अष्ट करम अष्टापदे, सैयर० योग निरुद्धे नीठ हो. सहेजे ० ८ तेहना बिंब सिद्धाचळे, सैयर० पूजो अ पावन अंग हो; खीमाविजय जिन निरखतां, सैयर० उछले हर्ष तरंग. सहेजे ०६
( 13 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
हुं तो पाम्यो प्रभुना पाया रे, आण नलोपुं रे. (२) प्रभु सांभळी तारा वयणा रे, कानमां रोपुं रे (२) जनम जनमना फेरा फरतां, में तो ध्याया न देवाधिदेवा, रे कुगुरु कुशास्त्र तणा उपदेशे, लाधी नहीं प्रभु सेवा रे. हुं तो० १ कनक कथीरनो वेरो न जाण्यो, काचमणी सम तोल्या रे; विवेकतणी में वात न जाणी, विष अमृत करी घोव्यां रे. हुं तो० २ समकितनो लवलेश न जाण्यो, हुं तो मिथ्यामतमां खूंच्यो रे; मायातणा पंथे परवरीयो, विषय करी विगुत्तो रे. हुं तो० ३ कोई पूरव
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पुन्य संयोगे, आरज कुळ अवतयरीयो रे, श्री आदिश्वर साहिब मुज मलीयो, तारक भवजल तरीयो रे. हुं तो० ४ ओटला दिन में वात न जाणी, तुजथी रहीयो अलगो रे; उदयरतन कहे आज थकी हुं, तारे पाये वळग्यो रे. हुं तो पाम्यो प्रभुना पाया रे, आण न लोपुं रे. ५
( 14 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
देखो माई आज ऋषभ घर आवे (टेक.) रूप मनोहर जगदानंद, सबही के मन भावे; देखो माई ० १ केई मुक्ताफळ थाळ विशाळ, केई मणि माणेक लावे. देखो माई० २ हय गय रय पायक बहु कन्या, प्रभुजीकुं वेगे वधावे. देखो माई० ३ श्री श्रेयांसकुमार दानेश्वर, इक्षुरस वहोरावे. देखो माई० ४ उत्तम दान दीये अमृतफळ, साधु कीर्ति गुण गावे. देखो माई० ५
(15) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
मनमोहन तुं साहिबो, मरूदेवीमाता मल्हार लाल रे; नाभिराया कुल चंदलो, भरतादिक सुत सार लाल रे. मनमोहन तुं साहिबो १. युगला धर्म निवारणो, तुं मोटो महाराज लाल रे; जगतदारिद्रय चूरणो, सार हवे मुज काज लाल रे. मन० २ ऋषभ लंछन सोहामणो, तुं जगनो आधार लाल रे; भवभमतिना प्राणीने, शिवसुखनो दातार लाल रे. मन० ३ अनंत गुण मणि आगरू, तुं प्रभु दीन दयाळ लाल रे; सेवक जननी विनति, जन्म मरण दुःख टाळ लाल रे. मन० ४ सुरतरु चिंतामणि समो, जे तुम सेवे पाय लाल रे; ऋद्धि अनंती ते लहे, वली कीर्ति अनंती थाय लाल रे. मन० ५
( 16 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे, और न चाहुं रे कंत; रीइयो साहिब संग न परिहरे रे, भांगे सादि अनंत. ऋ० प्रीत सगाई रे जगमां सहु करे रे, प्रीत सगाई न कोय; प्रीत सगाई रे निरुपाधिक कही रे, सोपाधिक धन खोय. ऋ० २ कोई कंत कारण काष्ठभक्षण करे रे, मिलशुं कंतने धाय; अ मेळो नवि कही संभवे रे, मेळो ठाम न ठाय ऋ० ३ कोई पतिरंजन
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अति घणुं तप करे रे, पतिरंजन तनताप; अ पतिरंजन में नवि चित्त धर्युं रे, रंजन धातु मिलाप ऋ० ४ कोई कहे लीला रे अलख अलखतणी रे, लख पूरे मन आश; दोष रहितने लीला नवि धटे रे, लीला दोष विलास ऋ०५ चित्त प्रसन्ने रे पूजनफळ कह्युं रे, पूजा अखंडित अह; कपट रहित थई आतम अरपणा रे, आनंदधन पद रेह. ऋ० ६
( 17 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंदा, तुम दरिसण हुये परमाणंदा; अहनिशि ध्याउं तुम दिदारा, महेर धरीने करजो प्यारा. ऋ० १ आपणने पूंठे जे वळगा किम सरे तेहने करतां अळगा; अळगा कीधा पण रहे वळग्या, मोर-पीछ परे न हुअ ऊभगा. ऋ० २ तुम पण अळगे थये किम सरशे, भगती भली आकर्षी लेशे; गगने उडे दूरे पडाई, दोरी बळे हाथे रहे आई. ऋ० ३ मुज मनडुं छे चपळ स्वभावे, तोहे अंतर्मुहूर्त्त प्रस्तावे; तुं तो समय समय बदलाये, इम किम प्रीति निवाहो थाये. ऋ० ४ ते माटे तुं साहिब माहरो, हुं हुं सेवक भवोभव ताहरो; अह संबंधमां म होशो खामी, वाचक मान कहे शिरनामी. ऋ० ५
(18) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
समकित द्वार गभारे पेसतांजी, पाप-पडल गयां दूर रे; मोहन मरूदेवीनो लाडलोजी, दीठो मीठो आनंद पूर रे. समकित द्वार गभारे पेसतांजी ० १ आयु वर्जीत साते करमनीजी, सागर कोडाकोडी हीण रे; स्थिति प्रथम करणे करीजी, वीर्य अपूरव मोघर लीध रे. स० २ भृंगळ भांगी आद्य कषायनी जी, मिथ्यात्व मोहनी सांकळ साथे रे; द्वार उघाडयां शम संवेगनाजी, अनुभव भुवने बेठा नाथ रे. स० ३ तोरण बांध्युं जीवदया तणुंजी, साथियो पूर्यो श्रद्धा रूप रे; धूपघटी प्रभु गुण अनुमोदनाजी, धीगुण मंगळ आठ अनूपरे. स० ४ संवर पाणी अंग पखालणेजी, केसर चंदन उत्तम ध्यान रे; आतम गुण रुचि मृगमद महमहेजी, पंचाचार कुसुम प्रधान रे. स० ५ भाव - पूजाओ पावन आतमाजी, पूजो परमेश्वर पुन्य पवित्र रे; कारण जोगे कारज नीपजेजी, खिमाविजय जिन आगम रीत रे. स० ६
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(19) श्री आदिनाथ जिन स्तवन ऋषभदेव ! हितकारी जगतगुरु ! ऋषभदेव! हितकारी; प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति व्रतधारी ज०. १ वरसीदान देई तुम जगमें, इलति इति नीवारी; तैसी काही करत नाही करुना, साहिब बेर हमारी. ज०. २ मांगत नही हम हाथी घोरे, धन कन कंचन नारी; दीओ मोही चरन कमलकी सेवा, याही लागत मोहिप्यारी. ज०. ३ भवलीलावासित सुर डारे. तुम पर सबही उवारी; में मेरो मन निश्चल कीनो, तुम आणा शिर धारी ज०. ४ असो साहिब नही कोउ जगमें, यासुं होय दिलधारी; दिल हि दलाल प्रेम के बीचं, तिहां हठ खेंचे गमारी. ज०. ५ तुम हो साहिब में हुं बंदा, या मत दीयो वीसारी, श्री नयविजय विबुध सेवक के, तुम हो परम उपगारी. ज०.६
(20) श्री आदिनाथ जिन स्तवन ज्ञानरयण रयणायरू रे, स्वामी श्री ऋषभ जिणंद; उपगारी अरिहा प्रभु रे, लोक लोकोत्तरानंद रे; भवियाभावे भजो भगवंत, महिमा अतुल अनंत रे. भ० १ तिग तिग आकर सागरू रे, कोडाकोडी अढार; जुगला धर्म निवारीयो रे, धर्म प्रवर्तनहार रे. भ० २ ज्ञानातिशये भव्यना रे, संशय छेदनहार, देव नरा तिरि समजीया रे, वचनातिशय विचार रे. भ० ३ चार धने मधवा स्तवे रे, पूजातिशय महंत; पंच धने योजन टले रे, कष्ट ओ तुर्य प्रसंत रे. भ० ४ योग क्षेमंकर जिनवर रे, उपशम गंगा निर; प्रीति भक्तिपणे करी रे, नित्य नमे शुभवीर रे. भ० ५
(21) श्री आदिनाथ जिन स्तवन श्री आदिजिणंदनां प्रणमुं पाय, प्रभु दरशने आनंद अंग न माय, अत्यंत सुंदर शांतरसमां, झीलती प्रभु मुरती, अवलोकतां हर्षित थयुं, चित्त प्रमोद भावने पुरती, आजे शुभदिन उग्यो माहरो राय, श्री० १ राची माची प्रमादमां ने, कर्म बांध्या में बहु, मिथ्यात्व अविरति कषाय योगे, आप जाणो ते सहु, आव्यो माफी लेवा हवे करजो सहाय;.....श्री० २ अनादि-काळ भवभ्रमण करतो, योनि लाख चोराशीमां,। जन्म जरा मरणे करी, दुःख पाम्यो तेमां
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कमी ना, हवे वांछ्रं चरणनी शीतळ छांय; श्री० ३ भूतकाळे भूल थई ते, सुधारवा चाहे यदा, वर्तमाने विविध वर्ते, भावि तो सुधरे तदा, गुणी थवा श्री जिन भाखे एह उपाय ;..... श्री० ४ नाथ दर्शित मार्गे मुज, चालवा मन थाय छे, पण मोहना आवेशथी, मन माहरु मुंझाय छे, आपो निर्वेद जेम मारां दुःखडां तो जाय;..... श्री० ५ विश्वतारक नामधारक देव तुं सुखकार छे, मानी मायी महा कर्मी, जीव उद्धारनार छे, ताहरु ध्यान धरे, मन वच काय; ...... . श्री० ६ कल्पवृक्षने कामधेनुथी, अधिक चिंतामणी, श्री आदिदेव जिनेश स्वामी, अनंत लब्धिना धणी, 'उदय रत्न 'नो आजे उदय श्री० ७
करो;.... ( 22 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग
श्याम तेरी बंसी......)
सारो लागे मीठो लागे नीको लागे राज, ऋषभ जिणंद मने प्यारो लागे राज प्यारो लागे सारो लागे मीठो लागे राज, ऋषभ जीणंद मने सारो लागे राज, (२) ऋषभ० १ नाभिराया कुलचंद ऋषभ जिणंदा, मरुदेवाना नंद जाया ऋषभ जिणंदा, दीपे दीपे (२) दुनियामां जिस्यो रे दिणंद (२) ऋषभ० २ टाळ्यो टाळ्यो मिथ्यात्व कियो रे उद्योत ( २ ) जागी जागी ( २ ) भविजन अंतरंग ज्योत (२) ऋषभ० ३ पाम्यो पाम्यो हवे तुज चरण निवास ( २ ) अधिक अधिक (२) प्रभु पूरो मारी आशा (२) ऋषभ० ४ धर्म चतुर्विघ कियोरे प्रकाश (२) आपे आपे (२) अनुभव ज्ञान उल्लास ( २ ) ऋषभ० ५ जाग्यो जाग्यो हुं तो एटला दिवस अजाण (२) सुणी नहि ( २ ) शुभ चित्ते प्रभु मुखवाण (२) ऋषभ० ६ आपो आपो हवे मुज ज्ञान प्रकाश (२) ज्ञान विमल प्रभु वचन विलास (२) ऋषभ० ७ मांगु मांगु महानंद पद मोरा देवा (२) साचे चित्ते (२) देजो साहिब चरणोनी सेव (२) ऋषभ०८
( 23 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन ( राग मणियारो ते) ओलगडी ते आदिनाथनी रे, जो कांई कीजीए मनने कोडजो, होड करे कोण नाथनी रे, जेना पाय नमे सुर क्रोड रे.... ओ० (१) मरुदेवानो लाडलो रे, राणी सुनंदाना हैडानो हारजो, त्रण भुवननो नाहलो र्जी, प्राण तणो आधार रे.. ओ० (२) विश पुरव लाख भोगव्युं रे रूडु कुंवरपणुं
मारा
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रंगरोल रे, मनडुं ते मोह्युं जिन रूपशुं रे, जाणे जगमां मोहनवेलरे ओ० (३) पांचशे धनुष्यनी देहडी रे, लखपुरव त्रेसठ राज लाख पुरव समता वरी रे थयां शिवसुंदरी वरराज... ओ० (४) नामथी नवनिधि संपजे रे, वली अलिय विघन सविजायजो सुमति विजय कविराजनो रे, एना राम विजय गुण गायजो....ओ० (५)
( 24 ) श्री आदिनाथ जिन स्त्रवन ( राग : यशोमति मैया से .....)
ऋषभ जिणंदने वंदीए रे, सिद्धाचल शणगार सलुणा, मरुदेवाना नंदने रे, भेटता परमानंद..... सलुणा ..... जीम जीम प्रभु गुण गाईए रे, तीम तीम सुख अपार सलुणा.... (१) अविनाशी अरिहंतडी रे, विमलाचल शणगार सलुणा सुरनर जस सेवा करे ए, पामता सुख अपार सलुणा.... (२) दीक्षा लई प्रभु आदर्यो रे, वरसीतप गुणखाण सलुणा अंतराय उच्छेदिने रे, पाम्या केवलज्ञान सलुणा....(३) पूर्व नव्वाणुं आवीयारे, कंचनगिरि पर नाथ सलुणा तेहथी ए गिरिराजनो रे, महिमा थयो विख्यात सलुणा.... ( ४ ) विमलाचल गिरि मंडणो रे, ऋषभ जिणंद दयाल सलुणा, रायण तळे प्रभु शोभता रे, चरण कमळनी जोड सलुणा.... (५) तरण तारण तुमे देवछोरे, तारजो मुजने देव सलुणा शत्रुंजय गिरि भेटता रे, पाप सवि पलाय सलुणा.... (६) भवोभव तुम पद सेवनारे, आपजो दीनदयाळ रंगविजय कहे प्रेमशुंरे, शरणागत प्रतिपाळ सलुणा....(७)
( 25 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
में भेट्या आदिजिणंद, मरुदेवी केरो नंद, आज अधिक आनंद शुं (२) नाभि नरेसर कुलतिलो रे, मरुदेवी केरो नंद..... में भेट्या० पुरव पुण्य पसाउले में, पाम्यो तुम देदार हो... हो... जीमनिर्धन निधि पामे, मरुं मांहे जिम सहकार .... में भेट्या... लवसत्तम सुरवर तणां, मन शंसय भेदनहार हो... अलग पणे ते ढुंकडा, ते राख्या चित्त मोझार..... में भेट्यां० तो मुझने किम अवगणो सेवक धरी प्रभु चित्त, (२) सरस सुधारस नयणजे रे, निरख्यो साहिब जगमित्त...में... ऋषभ लंछन कंचनवर्ण, प्रभु शरणागत प्रतिपाळ (२) निष्कारण उपगारीयो, तुज नामे मंगळ माळ.... में भेट्यां० श्री रीषहेसर
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संयो में सिध्यां सघळा काज.... ( २ ) धीरविमल कविराजनो, नय प्रणमे श्री जिनराज.... में ०
(26) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग
ऊंची ऊंची तारंगा)
नमो नमो श्री आदिजिणंदने, (२) हुं करूं रे - त्रिविधे प्रणाम रे, पंचाभिगमे नमन करुं हुं, केवलज्ञानी नाम, भाले धरी ललाम । प्रभुजी प्यारा रे... पुण्य थकी में दीठा प्राण आधारा रे । सरस सुधाथी मीठा... प्रभुजी ० १ तुं निष्कलंक अने निर्मोही, तुं अद्रोही उदासी, मारा मनमांहेथी कहो केम, हवे फरी जासी रे हां जासी,... प्रभुजी० २ जीम पंकजमां मधुकर पेसे, तिम मुज मनमां पेठा, तुम दरिसण पामी नविहरखे, ते निगुणाने धीठा, (२) प्रभुजी० ३ हुं निर्गुणी वळी रे पापीणी, लाखेणी तुम सेवा, पामींय तो अनुपम भाग्ये, जेम भुख्या वर मेवा (२) प्रभुजी ० ४ भवोभव ताहरी आणा सुरगवी, होजो अविचल भावे, तेहथी गोरस समकीत शुद्धा, ज्ञानने चरणे जमावे..... प्रभुजी० ५ जीम धृत आप स्वभावे निर्मल, रस शोध्योनवि जाये तिम तुम हेते निज स्वरूप ते, निरावरण प्रगटावे... प्रभुजी० ६ इन्द्र अनंता जो समकाळे, भक्ति करे तोरी कबही, तो पण ते गुण तुम सम नावे, तो हुं दुर्गुणी केही रे... प्रभुजी० ७ प्रभुनी गुण स्तुति करवाथी ज्ञानविमल मति जागी जगचिंतामणी जिन पाम्याथी, भवनी भावठ भांगी रे... ( २ ) ... प्रभुजी०८
( 27 ) श्री आदिनाथ जिन स्तवन
आदि जिणंद भेट्या, आनंद आज मेरे, पुरवनां पुन्य जाग्या, जिनराज आज मारे, आदि० (१) करुणा निधि में जोया, भमतां नहीं संसारे, जोया तो भावशून्ये, सर्या न काज मारे आदि० (२) आत्मानी भक्ति जागी, पूज्यो तरफ ज्यारे, कल्याण भाव योगे, स्वात्माभिमुखी त्यारे आदि० (३) साचा जे तत्त्व णनी, श्रद्धा जो जीव धारे, दयालु देव दयाथी, समकित थाय त्यारे आदि० (४) काम क्रोध लोभ मोहादी, पड्या छे मारी लारे, अंतर रीपुनी पीडा, तुम वीण कोण वारे आदि० (५) आव्यो छु नाथ द्वारे, करजे मने किनारे, विश्वेश तुम बिना, बीजो ही कोण उगारे आदि० (६) सहज राज लेवा, उदयरत्न धारे, जे होय भवसागरमां, तारक तेज तारे आदि० (७)
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(28) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : जरा पाछु वाली जोने)
आण मिलावे रे कोई आण मिलावे (२) ऋषभ जिनेश्वर आण मिलावे मरुदेवी भरत को वचन पठावे रे हां (२) ऋषभ० (१) खबर न लावे मुज नंदन केरी तुं तो षटखंड पृथ्वी आण मनावे ऋ० (२) भरत कहे आई अमे सुत तेरा, आई कहे मुज चितडुं नचावे ऋ० (३) फळ सहकार केरी जस मन इच्छा, आई देखी ते तो तृप्ति न पावे ऋ० (४) वरस सहस अंते केवल पामी, पुरिमताल नगरे प्रभुजी पधारे ऋ० (५) तप वन पालक भरत भुपतिने, जास वधाई वचन सुणावे, गज खंधे मरुदेवी बेसाडी, ऋद्धिदेखावन वंदन जावे, ऋ० (६) निर्मोही सुतनी ऋद्धि देखीने, मोह तिमिर तब सब मीटजावे, ऋ० (७) ज्ञानविमल की ज्योति झळाहळ, सुत पहेला आई शिवगति पावे, ऋषभ जिनेश्वर आण मिलावे...(८) (29) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : तोरणथी वर पाछो)
तुम दरिशन भले पायो, प्रथम जिन! तुम दरिशन भले पायो; नाभि नरेसर नंदन निरूपम, माता मरूदेवी जायो. प्र० १ आज अमिरस जलधर वुठो, मानुं गंगाजले नहायो; सुरतरु सुरमणि प्रमुख अनोपम, ते सवि आज में पायो. प्र० २ युगला धर्म निवारण तारण जग जस मंडप छायो; प्रभु तुज शासन वासन समकित, अंतर वैरी हरायो. प्र० ३ कुगुरु-कुदेव-- कुधर्मनी वासे, मिथ्यामतमे फसायो. मे प्रभु आजसे निश्चय किनो, सवि मिथ्यात्व गमायो, प्र० ४ बेर बेर कई विनंती इतनी, तुम सेवारस पायो; ज्ञानविमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो. प्रथम जिन! तुम दरिशन भले पायो. प्र० ५ (30) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : आयो हो मेरी)
हे आदिजिन स्वामी विनंती सुणो अमारी भवोभव ना रोग टाली, त्यागी बनावो मुजने...अनंत पिताना कुलमां, अवतरी चूक्यो छु, अनंत मातानी कुलमां, जन्मी चूक्यो छु, अनंत कुटुंबमां फरियो, हजु तेना पार पडीयो।।१॥ अग्नि रुपीजे क्रोध, अजगर रुपीजे मान, इन्द्रजाल रूपी माया, वली सर्परूपी लोभ, बंधनरूपी जे माया, ते मे कदी ना छोडी, ॥२॥ हुं
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सुख मां हस्यो छु, हुं दुःखमां रड्यो र्छ संसाररूपी जे समुद्र, भवजल रूपी जे नाव, रझळी रह्यो छु वचमां, हवे पार तु लगाडे ॥३॥ समकित रूपी जे मार्ग, कृपा करी बताव, मुजने जेवी समाधि, तमने, ओवी समाधि, अमने, धुन आदिजिन लगावो, मारा हृदयमां स्वामी तनथी कहु छु तुजने, मनथी कह छु तुजने ॥४॥ चारगतिने कापो, आठ कर्मोने टालो, शांति सुधा वरसावो, आत्मरुपी जिवनमां, चोराशी लाख योनीमां, चौदराज त्रण भुवनमां, कोई थी न राखु वेर, सहु जिवने सम गणजो, संवत्सरिना दिवसे, हीरविजय सौ खमावे, खमावे सौ जिवोने ॥६॥
(31) श्री शत्रुजय विनति पामी सुगुरु पसाय रे, शत्रुजय धणी, श्रीरिसहेसर विनवू ....।।१।। त्रिभुवन नायक देव रे, सेवक विनती, आदिधर अवाधारी ओ ओ...॥२।। शरणे आव्यो स्वामी रे, आ संसारमां, विरुओ वैरी ओ नडयो अ,...॥३॥ तार तार मुज तात रे, वात की शी कहुं, भवो भव मे भावठ तणीओ...॥४॥ जन्म मरण जंजाल रे, बाल तरुण पणु, वळी वळी जरा दहे घणुं अ...॥५॥ किमहिन आव्यो पार रे, सार हवे स्वामी, शे नकरो ओक माहरी ओ, तार्या तुमे अनेक रे, संत सुगुण वली, अपराधी पण उधर्या ओ...॥७॥ तो अक दीन दयाळ रे, बाल दयामणो, हुं शा माटे विसर्यो ओ...॥८॥ जे गिरुआ गुणवंतरे, तारो तेहने, तेहमांहे अचरिज किश्यु अ...॥६॥ जे मुज सरिखो दिन तेहने, तारता, जग विस्तरसे जस घणो ओ...॥१०॥ आपद पडीयो आज रे, राजतुमारडे, चरणे हुं आव्यो वहीओ...॥११॥ मुज सरिखो कोई दीन रे, तुज सरीखो, प्रभु जोता जग लाभे नहीओ...॥१२॥ तोये करुणा सिंधु रे, बंधु भुवनतणां, न घटे तुम उवेखवू ....।।१३।। तारण हारो कोई रे, जो बीजो होवे, तो तुमने शाने कहुं ओ...॥१४॥ तुहि ज तारीश नेट रे, पहेलाने पछे, तो अवडी गाढीम कीसी जे; ॥१५॥ आवी लाग्यो पाय, रे, ते केम छोडशे, मन मनाव्या विण हवे अ; ॥१६॥ सेवक करे पोकार रे, बाहिर रह्या जस, तो साहिब शोभा कीसी मे; ॥१७॥ अतुली बल अरिहंत रे, जगने तारवा, समरथ छो स्वामी तुमे अ...॥१८॥ शुं आवे छे जोर रे, मुजने तारतां, के धन बेसे छे किश्यु
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ओ...॥१६॥ कहेशो तुमे जिणंद रे, भक्ति नथी तेहवी, तो ते भक्ति मुजने दियो ओ...॥२०।। वळी कहेशो भगवंत रे, नही तुज योग्यता, हमणां मुक्ति जावा तणीओ...॥२१॥ योग्यता ते पण नाथ रे, तुमहीज आपशो, तो ते मुजने दीजीओ ओ...।।२२।। वळी कहेशो जगदीश रे, कर्म घणां ताहरे, तो तेहिज टालो पराओ...॥२३॥ कर्म अमारा आज रे, जगपति वारवा, वळी कुण बीजो आवशे अ...॥२४॥ वळी जाणो अरिहंत रे, अहने विनती, करता आवडती नथी ओ...॥२५॥ तो तेहीज महाराज रे, मुजने शीखवो, जिम ते विधि शुं विनवू ओ...॥२६॥ माय ताय विण कुण रे, प्रेमे शीखवे, बालक ने कहो बोलवू ओ...॥२७|| जो मुज जाणो देवरे, ओह अपावन, खरडयो छे कली कादवे ओ...॥२८॥ किम लेवू उत्संग रे, अंग भर्यु ओहy, विषय कषाय अशुचिरों ओ...॥२६॥ तो मुजने करो पवित्र रे, कहो कुण पुत्रने, विण मावित्र पखालशे ओ...॥३०॥ कृपा करी मुज देव रे इहालगे आणीयो, नरक निगोदादिक थकी ओ...॥३१॥ आव्यो हवे हजूर रे ऊभो रहयो, सामु शे जुओ नहीं अ...॥३२॥ आडो मांडी आज रे, बेठो बारणे, मावित्र तुमे मनावशो अ...॥३३॥ तुमे छो दया समुद्र रे, तो मुजने देखी दया नथी शे आणता अ...॥३४।। उवेखसो अरिहंत रे, जो अणी वेळा, तो माहरी शी वले थशे ओ...॥३५॥ ऊभा छे अनेक रे, मोहादिक वैरी, छल जूओ छे माहरा अ...॥३६॥ तेहने वारो वेगे रे, देव दया करी, वळी वळी ते विनवू अ...॥३७॥ मरुदेवी निज माय रे, वेगे मोकली, गज बेसाडी मुक्तिमां रे...॥३८॥ भरतेश्वर निज नंद रे, कीधो केवली, आरीसो अवलोकता अ...॥३६॥ अठ्ठाणुं निज पुत्र रे, प्रतिबोध्या प्रेमे, झुज करता वारीया अ...॥४०॥ बाहुबलीने नेटरे, नाण केवल तुमे, स्वामी सामुं मोकल्युं ओ...॥४१॥ इत्यादिक अवदात रे, सघळां तुम तणां, हुं जाणुं छु मुलगां अ...॥४२॥ माहरी वेला आज रे, मौन करी बेठा, उत्तर शे आप्यो नहींओ...॥४३॥ वीतराग अरिहंत रे, समता सागरुं, माहरा ताहरा शुं करो ओ...॥४४॥ अकवार महाराज रे, मुजने श्रीमुखे, बोलावो सेवक कहीओ...॥४५|| अटले सिध्या काज रे, सघलां माहरा, मनना मनोरथ सवि फल्यां अ...॥४६।। खमजो मुज अपराध रे, आसंगो करी, असम जस जेविनव्युं अ...॥४७॥ अवसर पामी आज रे, जो नवि विनवू, तो पस्तावो
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मन रहे ...||४८ || त्रिभुवन तारणहार रे, पुन्ये माहरे, आवी अकांते मिल्यां अ...।।४६।। बालक बोले बोल रे, जे अविगत पणे, माय ताय ने ते रुचे ...॥५०॥ नयणे निरख्यो नाथ रे, नाभि नरिंदनो, नंदन नंदन वन जिस्यो अ...।।५१।। मरुदेवी उरहंस रे, वंश इक्ष्वागनो, सोहाकार सोहामणो ओ...।।५२|| माय ताय प्रभु मित्र रे, बंधव माहरो, जीव जीवन नुं वालहो अ ...।। ५३ ।। अवर नको आधार रे, अणे जगे तुम विना, प्राण शरण तुं मुज धणी अ... ||५४|| वळीवळी करुं प्रणाम रे, चरणे तुम तणे, परमेश्वर सन्मुख जुओ ओ...॥५५॥ भवो भव तुम पाय सेव रे, सेवकने देजो, हुं मांगु खुं अटलुं ...॥ ५६ ॥ | श्री कीर्तिविजय उवज्झाय रे, सेवक अणी पेरे, विनय विनय करी विनवे से पामी० ॥५७॥ इति
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श्री अष्टापद तीर्थनुं
श्री अष्टापद उपरे, जाणी अवसर हो आव्या आदिनाथ के; भावे चउसठ्ठ इंद्रश्युं, समवसरणे हो मिल्या मोटा साथ के० ... श्री०. ||१|| विनिता पुरथी आवीया, बहु साथे हो वळी भरत भूपाल के; वांदि हियडा हेजशुं, ता मुरति हो नीके नयणे नीहाळ के० ... श्री० ॥२॥ लीये लाखेणा भामणां, कहे वयणां हो मोरां नयणां धन्न के; विण सांकळ विण दोरडे, बांधी लीधुं हो वाहला ते मन्न के०...श्री०. ||३|| लघु भाई ते लाडका, ते तो तातजी हो राख्या आप हजुर के; देशना सुणी वांदी वदे, धन्य जीवडा हो जे तर्या भवपुर के ० ... श्री० ॥ ४ ॥ पूछे प्रेमे पुरीओ, आ भरते हो आगल जगदीश के; तीर्थंकर केटला थशे, भणे ऋषभजी हो अम पछे त्रेवीशके; श्री०. ॥५॥ माघनी शामळी तेरशे प्रभु पाम्या हो पद परमाणंदके; जाणी भरतेसर भणे, ससनेहा हो नाभिरायनां नंद०... श्री० || ६ || मन मोहन ! दिन अटला, मुझ साथे हो रुसणां नवि लीध के; हेज हियालो परीहरी, आज उंडा हो अबोलडा लीध के०... श्री० ॥७॥ विण वांके कांई विरचिया, ते तोड्या हो प्रभु प्रेमनात्राग के; इंद्रे भरतने बुझव्या, दोष म दीओ हो अह जिन वितराग के०... श्री० ॥८॥ शोक मूकी भरतेसरु, वार्द्धकीने हो वली दीओ आदेश h; शुभ करोति थानके, संस्कार्या हो तात श्री रीसहेश के०... श्री०. ||६||
बंधव बीजा साधुना, तिहां कीधां हो तीन थुभ अनुपके; उंचो स्फटिकनो
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फुटडो, देखी डुंगर हो हरख्यो भणे भूप. के०...श्री०. ॥१०॥ रतन कनक थुभ ढुंकडो, करो कंचननो प्रासाद उत्तंग के; चउबारो चोंपे करी, ओक जोयण हो माने मनरंग के०...श्री०. ।।११।। सिंह निषद्या नामनो, निपायो हो मंडप प्रासादके; त्रण कोश उंचो कनकमय, ध्वज कळशे हो करे, मेरुंशं वादके...श्री०. ॥१२॥ वर्ण प्रमाणे लंछन, जिनसरखी हो तेह. प्रतिमा कीध के; दोय चार आठ दश भली, रुषभादिक हो पूरवे प्रसिद्ध के०...श्री०. ।१३।। कंचन मणी कमले ठवीं, प्रतिमानी हो आणी नासिका जोडी के; देवछंदो रंगमंडपे, नीलां तोरण हो करी कोरणी कोडी के०...श्री०. ।।१४।। बंधव बहेन माता तणी, मोटी मूरति हो मणी रतने भराय के; मरुदेवा मयगल चढी, सेवा करती हो जिन मुरति नीपाई के०...श्री०. ।।१५।। प्रातिहार्य छत्र चामरा, जक्षादिक हो कीधा अभिषेक के; गोमुख चतुर चक्केसरी, गढ वाडी हो कुंड वाव विशेष के,०...श्री०. ॥१६।। प्रतिष्ठा सवि प्रतिमा तणी, करावे हो राय मुनिने हाथ के, पूजा स्नात्र प्रभावना, संघभक्ति हो खरची खरी आथके,...श्री०. ।।१७।। पडते आरे पापीया, मत पाडो हो कोई वास आ वाटके; अक अक जोयण आंतरे, इम चिंती हो करी पावडी आठ के०...श्री०.॥१८॥ देव प्रभावे ओ देहरा, होशे अविचल हो छठे आरे सीम के; वांदे आप लब्धे ते नर तरे, तरे भव हो भवसायर भीम वडवीर के,०...श्री०. ॥१६॥ श्री कैलास ना राजीआ, दीओ दरीसण हो कांई करो ढील के; अरथी होय उतावळो, मत राखो हो अमरों आडखील के०...श्री०. ॥२०।। मन मान्याने मेळवे आवा स्थाने हो कोई न मळे मित्तके; अंतरजामी मिल्या पखे, किम चाले हो रंग लागो चित्त के०...श्री०. ॥२१।। ऋषभजी सिद्धि वधू वर्या, चांदलीया हो ते देउल देखाड; के भले भावे वांदी करी, मांगुं मुगतिना हो मुज बार उघाड के०...श्री०. ॥२२॥ अष्टापदनी यातरा फळ पामे हो भावे आ भणी भास के; श्री भावविजय उवज्झायनो, भाणभाखे हो फळे सघळी आश के०,...श्री०.॥२३।।
(33) श्री अष्टापदनुं स्तवन (राग : बारबार वरसे) .
तीरथ अष्टापद नित्य नमीजे, जीहां जिनवर चोवीश जी मणीमय बिंब भराव्या भरते, हुं वंदु निशदिन जी० (१) निज निज देह प्रमाणे मुरति,
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दीठे मनडुं मोहेजी, चत्तारी अठ्ठ दश दोय प्रमाणे, जिन चोवीशे सोहेजी० (२) बत्रीशकोशनो पर्वत उंचो, आठतिहां पावडीयोजी। एकेकी चउकोश प्रमाणे, नविजाये कोई चडीयोजी० (३) गौतम स्वामी चडीया लब्धे, वांद्या जिनचोवीशजी जगचिंतामणी स्तवनमां कीधुं, पुरी मननी जगीशजी० (४) तद्भव मोक्षगामी जे मानव, ए तीरथ सेवंताजी जंधाविद्याचारण वांदे, तेतो लब्धिप्रसादेजी० (५) साठ सहससुत सगरचक्रिना, एतीरथ सेवंताजी बारमे देवलोके ते पहोंच्या, लहेशे सुख अनंताजी० (६) कंचनमय प्रासादइहा छे, वंदन करवा योग्यजी, ए अधिकार छ आवश्यकसुत्रे, जो जो देई उपयोग जी० (७) श्री आदिश्वर मुगते पहोंच्या, अविचल तीरथ एह जी, जसवंत सागर शिष्य पयंपे, जिनेन्द्र वर्धन नेह जी० (८)
(1) श्री अजितनाथ जिन स्तवन जयकारी अजित जिनेश, मोहन मन महेल प्रदेश; पावन करिओ परमेश रे, साहिबजी छो रे सोभागी० ॥१॥ साहिबजी छो रे सोभागी, तुज सुरतिशुं रति जागी; मुज ओक रसे लय लागी रे,...साहिबजी०.।।२।। जिनपति! अतिशय इतमाम, देव! सेवक रहुं दरबारे; अवसर शिर कयुं न चिंता रे, ...साहिबजी०. ॥३॥ गुणवंता गर्व न कीजे, हित आणी हेत धरीजे; पोतावट पेरे पाळीजे रे,...साहिबजी०.॥४॥ तुम बेठा कृतारथ होई, सेवकनुं काम न कोई; तो पण न हुआ तुज कांई रे,...साहिबजी०.॥५।। साहिबने चाहिने जावे, सेवक जन निज शिर ठोवे; मेघनी सरसाई होवे रे, ...साहिबजी०.॥६॥
(2) श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिनेसर आंखडी प्यारी, मोहे अमर नरनारी रे; जिनवर जयकारी...करुणा शांत सुधारस कयारी, उपसम रस भरी न्यारी रे०...जि० ॥१॥ अंजन विणु मंजुलता धारी, सोहे मधुकरसे अति सारी रे; राग विना रेखांकित नीकी, अनुपम टीकी- ज्यां कीकी रे०...जिन०.॥२॥ पूर्णता मग्नता स्थिरता लीनी, पर आशाओ नही दीनी रे० निःस्पृह निरभय समता भीनी, बार पर्षदा पावन कीनी रे०...जि०.।।३।। सौम्य सुभग सुंदर
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सोभागी, देखतही रढ लागी रे; ...आज अपूर्व दशा मोहे जागी, ज्ञान टकोरी वागी रे० जि०.॥४॥ जितशत्रु...नंदन चंदन वाणी, धन्य धन्य विजया देवीराणी रे; जि० गजलंछन कंचनवर्ण काया, खिमाविजय जिन राया रे...जि०.॥५॥
(3) श्री अजितनाथ जिन स्तवन (राग : मणीयारो ते)
शुभ वेला शुभ अवसरे रे, लाग्यो प्रभुशुं नेह; वाधे मुज मन वालहा रे, दिन दिन बमणो नेह; अजित जिन ! विनतडी अवधार. मन माहरूं लागी रह्यु रे, तुज चरणे अकतार०...अजित०॥१॥ हियर्थं मुज हेजालु रे, करे उमाहो अपार; घडी घडीने अंतरे रे, चाहे तुज देदार०...अजित ॥२।। मीठो अमृतनी पेरे रे, साहिब! ताहरो संग; नयणे नयण मिलावतां रे शीतल थाये अंग०...अजित०.॥३॥ अवश्य पणे ओक घडी रे, जाये तुज विण जेह; वरसा सो सम साहिबा रे, मुज मन लागे तेह...अजित०.।।४।। तुजने तो मुज उपरे रे, महेर न आवे काय; तो पण मुज मन लालचुं रे, खिण अलगु नवि थाय...अजित०.॥५॥ आसंगायत आपणो रे, जाणीने जिनराय रे ! दरिशन दिजे दिन प्रति रे, हंसरतन सुख थाय...अजित०.॥६।।
(4) श्री अजितनाथ जिन स्तवन दीठो नंदन विजयानो, नहि लेखो हरख थयानो; प्रभु कीधो मन्नमयानो, बोलपालो बाह्य ग्रह्या नो॥१॥ मुजने प्रभुपद सेवानो, लाग्यो छे अविहड तानो; मुज व्हालो ते हियडानो, जे रसीयो नाथ कथानो, दीठो० ॥२॥ न गमे संग बीजानो, जो केलवे कोडी कवानो; जेणे चाख्यो स्वाद सीतानो; तेने भावे धतुरो शानो. दीठो० ॥३॥ प्रभु साथे लाड कर्यानो, माहरे आ संग सदानो; प्रभुनो गुण चित्त हर्यानो, कही मुज नहि विसर्यानी, दीठो०॥४॥ नहि छे माहरे विनव्यानो, प्रभुजीथी शुं छे छानो; शिष्य वाचक विमल विजयनो, कहे राम सुबोध विजयनो,...दीठो० ॥५॥
(5) श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिनेश्वर साहिबारे लाल, विनतडी अवधार मारा वालाजीरे, तुं
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________________ 233 मन रंजन माहरो रे लाल, दिलडानो जाणणहार मारा वालाजीरे, हवे नहि छोडुं तारी चाकरीरे लोल / / 1 // लाख चौराशी हुं भम्यो रे लाल, काल अनंतो अनंत / / मारा० // 2 // ओलग कीधी में प्रभुताहरीरे लाल, मांगी छे भवतणी अंत // मारा०॥३॥ करी सुनजर हवे साहिबारे लाल, दासधारो दिलमांही // मारा०॥४।। लाखगुन्हे पण ताहरोरे लाल, सेवक हु महाराज / / मारा०।।५।। अवगुण गणतां माहरारे लाल, नहि आवे प्रभुजी पार / / मारा०॥६॥ पण जिन प्रवहणनी परेरे लोल, तुमे छो तारणहार // मारा०॥७॥ नगरी अयोध्यानो * धणीरे लोल, विजय उर सरहंस / / मारा०||८|| जितशत्रु रायनो नंदलोरे लोल, धन इक्ष्वागनो वंश / / मारा०॥६॥ धनुशय साडाचारनी रे लोल, देहडी रंग सनूर / / मारा०॥१०।। बहोतेर पूरव लाखनुरे लोल, आयु अधिक सुखपुर // मारा०।११।। पंचम आरे तुं मल्योरे लोल, प्रगट्यां छे पुण्य निधान // मारा०।।१२॥ सुमति गुरु पद सेवतां रे लोल, राम अधिक गुणवान // मारा०।।१३।। __(6) श्री अजितनाथ जिन स्तवन पंथडो निहाळु रे बीजा जिन तणो रे, अजित अजित गुण धाम; जे तें जीत्यां रे तेणे हुं जीतीयो रे, पुरुष किष्यु मुज नाम ।पं०। 1 चरम नयण करी मारग जोवतां रे, भूल्यो सयल संसार; जेणे नयणे करी मारग जोईये रे, नयण ते दिव्य विचार |पं०। 2 पुरुष परंपर अनुभव जोवतां रे, अंधोअंध पलाय; वस्तु विचारे रे जो आगम करी रे, चरण धरण नहीं ठाय |पं०। 3 तर्क विचारे रे वाद परंपरा रे, पार न पहोंचे कोय; अभिमत वस्तु वस्तुगते कहे रे, ते विरला जग जोय ।पं०। 4 वस्तु विचारे रे दिव्य नयन तणो रे, विरह पड्यो निरधार; तरतम जोगेरे तमतम वासनारे, वासित बोध आधार ।पं०। 5 काळलब्धि लही पंथ निहाळशुं रे, ओ आशा अवलंब; ए जन जीवे रे जिनजी जाणजो रे, आनंदधन मत अंब ।पं०। 6 (7) श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिणंदशुं प्रीतडी, मुज न गमे बीजानो संग के; मालती फुले मोहीयो, किम बेसे हो बावळ तरु भंग के, अ० 1 गंगाजळमां जे रम्या,
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किम छिल्लर हो रति पामेमराल के; सरोवर जलधर जळ विना, नवि चाहे हो जग चातक बाल के ।अ० २ कोकिल कल कुंजित करे, पामी मंजरी हो पंजरी सहकार के; ओछा तरुवर नवि गमे, गिरुआशुं हो होये गुणनो प्यारके ।अ० ३ कमलिनी दिनकर कर ग्रहे, वली कुमुदिनी हो धरे चंद्रशुं प्रीत के; गौरी गिरीशर विना, नवि चाहे हो कमला निज चित्त के ।अ० ४ तिम प्रभु शुं मुज मन रम्युं, बीजाशुं हो नवि आवे दाय के; श्री नयविजय विबुध तणो, वाचक जश हो नित्य नित्य गुण गाय के ।अ० ५
(8) श्री अजितनाथ जिन स्तवन ज्ञानादिक गुण संपदारे, तुज अनंत अपार; ते सांभळतां ऊपनीरे, रुचि तेणे पार उतार | अजित जिन तारजो रे, तारजो दिन दयाळ ॥१॥ जे जे कारण जेहनं रे, सामग्री संयोग: मळतां कारज नीपजे रे, कर्त्ता तणे प्रयोग, अ०॥२॥ कारज सिद्धि कर्ता वसुरे, लहि कारण संयोग; निजपद कारक प्रभु मिल्या रे, होय निमित्तह भोग, अ० ॥३॥ अजकुळगत केशरी लहेरे, निज पद सिंह निहाळ; तिम प्रभु भक्ते भवि लहेरे, आतम शक्ति संभाळ, अ० ॥४॥ कारणपद कर्त्तापणे रे, करी आरोप अभेद; निजपद अर्थी प्रभु थकी रे, करे अनेक उमेद, अ० ॥५॥ एहवा परमातम प्रभु रे, परमानंद स्वरूप; स्वाद्वाद सत्ता रसी रे, अमल अखंड अनुप, अ० ।।६।। आरोपित सुख भ्रम टल्यो रे, भास्यो अव्याबाध; समर्थ्य अभिलाषीपणुं रे, कर्ता साधन साध्य, अ०॥७॥ ग्राहकता स्वामित्वतारे, व्यापक भोक्ताभाव; कारणता कारजदशारे सकळ ग्रह्यो निज भाव, अ०॥८॥ श्रद्धा भासन रमणता रे, दानादिक परिणाम; सकल थया सत्तारसी रे, जिनवर दरसण पाम, अ०||६|| तिणे निर्यामक माहणो रे, वैद्य गोप आधार; देवचन्द्र सुख सागरु रे, भाव धरम दातार, अ० ॥१०॥
(9) श्री अजितनाथ जिन स्तवन प्रीतलडी बंधाणी रे अजित जिणंदरों, प्रभु पाखे क्षण एक मने न सुहाय जो, ध्याननी ताली रे लागी नेहशुं, जलदघटा जिम शिवसुतवाहन दाय जो । प्रीतलडी. १ नेहघेलु मन मारुं रे, प्रभु अलजे रहे, तन मन धन ए कारणथी
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प्रभु मुज जो, मारे तो आधार रे साहिब रावळो, अंतर्गतनी प्रभु आगल कहुं गुंजजो प्रीतलडी . २ साहेब ते साचो रे जगमां जाणिए, सेवकनां जे सहेजे सुधारे काज जो, एहवे रे आचरणे केम करीने रहुं, बिरुद तमारुं तारण तारण जहाज जो । प्रीतलडी. ३ तारकता तुज मांहे रे श्रवणे सांभळी, ते भणी हुं आव्यो छु दीनदयाल जो, तुज करुणानी लहेरे मुज कारज सरे, शुं घणुं कही जाण आगळ कृपाळ जो। प्रीतलडी. ४ करुणा दृष्टि कीधी रे सेवक उपरे, भव भय भावठ भांगी भक्ति प्रसंग जो, मनवांछित फलीयां रे तुज आलंबने, कर जोडीने मोहन कहे मनरंग जो । प्रीतलडी. ५
( 10 ) श्री अजितनाथ जिन स्तवन ( राग नवपद ध२जो ध्यान)
छो जग तारणहार अजितजिन छो जग तारणहार भवोदधि पार उतार अजितजिन छो जग तारणहार.... ( १ ) त्रिभुवनना आधार तुमे प्रभु मंगलना करनार, कर्मरोग काटन कारण तुमे, वैद्य तणो अवतार.... ( २ ) ज्ञानवंत जाणो सहु जगने, तो पण मुज संसार, वीतक परे जे वित्युं छे साहिब, मातापिता परेधार....(३) बालकनी लीलायुत बालक, मा आगळ करे लाड, ती हुं करूं साहिब तुज आगळ, मुज विनंती अवधार.... (४) दान न दीधुं मुनिजनने बहु शियळ न पाळ्युं लगार, तपथी तो बहु त्रास धरूं दिल, शा थाशे मुज हाल.... (५) क्रोधरूपी दावानल बलीयो, लोभ अहि विकराल, वळग्यो छे मुजने शुं करयुं, कहो प्रभु दिन दयाल,.... (६) मान महा अजगरना मुखमे, पडीयो छु निराधार, मायाजाळ थकी बंधाणो, कर्म तणे अनुसार अजित.... (७) आ भव परभव हितकारी, कांई कीधुं न काम लगार, तिण कारण सुख लेश न पाम्यो, गयो जन्म निजहार.... (८) जाण आगळ प्रभुशुं बहु कहेवुं, जल्दि करो उद्धार, अवगुण सघळां उवेखीने, द्यो ‘शिव’ लक्ष्मी दातार....(६)
(11) श्री अजितनाथ जिन स्तवन (राग - ओली चंदनबाळाने)
शारद सार दया करी, मात आपो अविरल वाणी हो.... (२) बीजो जिन मनमा वस्यो, गुण गाऊ गुणमणि खाणी हो....१ मनमोहन जिनजी मन वसीयो, विजया राणीनो नंद हो.... ( २ ) सोभागी महिमानीलो, मनवांछित
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सुरतरु कंद हो....२ चउसय पचाश धनुष- देह, वान सोवन समान हो....(२) बहोतेर लाख पुरवतणुं आयु, पुरण पुन्य निदान हो....३ मुख शारदको चंदलो, गति जीत्यो ते गजराज हो.... मानुं चरण शरण आवि विनवे, पशु दोष हर जिनराज हो....४ मोहन मुरति ताहरी, सुखदाई नयनानंद हो, जोता तृप्ति न पामीए, जिम चतुर चकोर चंद हो....५ साचो स्वामी तुं माहरे, ताहरे दिल न होय रे, मुज सरीखो तुज लाख छ। पण मुजने गंजेना कोई हो....६ मित्र एक तुं माहरे, तुज दीठे परमाणंद हो.... मेरु विजय कविरायनो, शिष्य विनीत कहे चिरनंद हो....७
(12) श्री अजितनाथ जिन स्तवन (राग : चल उडजा पंछी) ____ अजित जिनेश्वर चरणोनी सेवा, हेवाए हुं हलीयो, कहीए अणचाख्यो पण अनुभव, रसनो टाणो मीलीयो प्रभुजी, महेर करीने आज, काज अमारां सारो, साहिब गुणनीधि गरीब निवाज, काज अमारां सारो प्र० १ मुकाव्यो पण हुं नहीं मूकुं, चुकु नवि ए टाणो, भक्तिभाव ऊठ्यो जे अंतर, ते किम रहे शरमाणो प्र० २ लोचन शांत सुधारस सुभगा, मुख मटकालु प्रसन्न, योग मुद्रानो लटको चटको, अतिशयनो अति धन्न प्र० ३ पिंड पदस्थ रूपस्थे लीनो, चरण कमळ तुज ग्रहीया, भ्रमर परे रस स्वाद चखावो, वीरसोकां करो महिया प्र० ४ बालकाळमां वार अनंती, सामग्रीए नवि जाग्यो, यौवनकाळे ते रस चाख्यो, तुं समरथ प्रभु जाग्यो प्र० ५ तुं अनुभव रस देवा समरथ, हुं पण अरथी तेहनो, चित वितने पात्र संबंधे, अजर भयो हवे केहनो प्र० ६ प्रभुनी महेरे ते रस चाखे, अंतरंग सुख पाम्यो, मानविजय वाचक एम जंपे, हुओ मुज मन कामो प्र० ७
(13) श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिणंद जुहारिये रे लो, जित शत्रु विजया जात रे सुगुणनर, नयरी अयोध्या उपनोरेलो, गजलंछन विख्यात रे.... सु० १ उचपणुं प्रभुजी तणुं रे लो, धनुष साडा सयच्चार रे.... सु० २ बहोतेर लाख पूरव धरे रे लो, आउखुं सोवन्वान रे.... सु० लाख एक प्रभुजी तणो रे लो, मुनि परिवारनुं मान रे.... सु० ३ लाख त्रण्य भली संयनी रे लो, उपर त्रीस
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हजार रे.... सु० समेत शिखर शिवपद लहोरे लो, पाम्या भवनो पाररे.... सु० ४ अजितबला शासन सूरि रे लो, महायक्ष करे सेव रे.... सु० कवि जग विजय कहे सहारे लो, ध्याउ ए जिनदेव रे.... सु० ५।
(1) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (राग : मालकेश) संभव जिनवर साहिब साचो, जे छे परमदयाल; करुणानिधि जगमांही मोटो, मोहन गुणमणिमाल; भवियां भाव धरीने लाल, श्री जिन सेवा कीजे; दुरमति दूर करीने लाल, नरभव सफलो कीजे०.॥१॥ अह जगतगुरु जुगते सेवो, षट काय प्रतिपाळ; द्रव्यभाव परिणति करी निरमल, पूजो थई उजमाळ. भ० दु०. ॥२॥ केसर चंदन मृगमद भेळी, अरचो जिनवर अंग; द्रव्य पूजा ते भाव, कारण, कीजे अनुभव रंग. भ० दु०. ॥३॥ नाटक करतां रावण पाम्यो, तीर्थंकर पद सार; देवपालादिक जिनपद ध्यातां, प्रभुपद लघु श्रीकार० भ० दु०. ॥४॥ वीतराग पूजाथी आतम, परमातम पद पावे; अह अक्षय सुख जिहां शाश्वतां; रुपातीत स्वभावे० भ० दु०. ॥५॥ अजर अमर अविनाशी कहीये, पूर्णानंद जे पाम्या; लोकालोक स्वभाव विभासक, चउगतिनां दुःख वाम्या० भ० दु०. ॥६॥ अहवा जिननु ध्यान करतां, लहिये सुख निर्वाण; जिन उत्तम पदने अवलंबी, रत्न लहे गुणखाण० भ० दु०. ।।७।।
(2) श्री संभवनाथ जिन स्तवन वंदोरे भविका संभव नाथ जिणंदा, जितारी नरवर वंशे उग्यो रे दिणंदा; माता सेना देवी उर अवतरीया, कर्म खपावी प्रभु भवजल तरीया...वंदो रे० ॥१॥ अनुपम साहिब तारी सेवा में पामी, तो लहुं वांछित सुख संपदा पामी; तारो दरिशन जिनजी लागे छे प्यारो, अकवार मोहे नजरे निहालो...वंदो रे० ॥२॥ जीम दिनकर उगे कमल विकासे, तिम तुम दीठे मुज मनडुं हिसे; तुमे निरागी मारा मनडाना रागी, तुमशुं पूरव भवनी प्रीतडी जागी...वंदो रे० ॥३॥ तुं ही मेरे दिलको जाणे तुं ही छो ज्ञानी, मारा प्रभुजी तारी अकल कहानी; अकल स्वरुप निरंजन कहीये, ताहरी आणा सदा शिर वहीये...वंदो रे०॥४॥ व्हालंधरी साहिब तारी चाकरी
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238 किजे, तो मन मनाव्यां विण किम रीझे, पंडीत मेरु विजय गुरु चरणे, सेवक विनित कहे राखो शरणे...वंदो रे० ॥५॥ (3) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (राग : रंगाई जाने रंगमां)
समकितदाता समकित आपो, मन मांगे थई मीठं, छती वस्तु देतां | सोचो, मीठं ते सहु दीडूं, प्यारा प्राण थकी छो राज, संभव जिनेश्वर मुजने.
आं०१ इम मत जाणो जे आपे लहीजे, तो लाधुं शुं लेवू; पण परमारथ प्रीछी आपे, तेहज कहीये देवं, प्या० २ ओह अर्थी ह अर्थ समर्पक, इम मत करज्यो हांसु; प्रगट न हतुं तुजने पण पहेलां पण, जे हांसाठें खांसु. प्या० ३ परम पुरुष तुमे प्रथम भजी ने, पाम्या ओ प्रभुताई; तेणे रुपे तुमने प्रभु भजीओ, तेणे तुम हाथे वडाई. प्या० ४ तुमे स्वामी हुँ सेवककामी, मुजरे स्वामी निवाजे; नहि तो हठ मांडी मांगंता, सेवक किणविध लाजे. प्या० ५ ज्योति से ज्योत मिले मन प्रिछे, कुण लहेशे कुण भजशे; साची भक्ति ते हंस तणी परे, खीर नीर तय करशे. प्या० ६ ओलग कीधी ते लेखे लागी, तुम चरणे भेट दीधी; रुप विबुधनो मोहन पभणे, रसना पावन कीधी. प्या० ७
(4) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (राग-राखनां रमकडां)
संभव जिनवर विनती, अवधारो गुणज्ञाता रे; खामी नही मुज खीजमते, कदीय होशो फळदाता रे, संभव० १ कर जोडी ऊभो रहं, रात दिवस तुम ध्यानो रे; जो मनमां आणो नहीं, तो शुं कहीजे छानो रे.? संभव० २ खोट खजाने को नही, दीजीओ वंछित दानो रे; करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानो रे. संभव० ३ काळ लब्धि नहि मति गणो, भाव लब्धि तुम हाथे रे; लडथडतुं पण गज बनू, गाजे गयवर साथे रे. संभव० ४ देशो तो तुमहि भलुं, बीजा तो नवि जाचुं रे; वाचक यश कहे सांइ शुं, फळशे ओ मुज साचुं रे. संभव० ५
(5) श्री संभवनाथ जिन स्तवन हां रे हुं तो मोह्यो रे, लाल, जिन मुखडाने मटके, जिन० हुं वारी जाउं (२) प्रभुमुखडाने मटके० (१) नयण रसीला, वयण सुखाला चितडूं
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लीधुं हरी चटके, प्रभुजीनी साथे प्रीत करंता, कर्मतणी कस तटके,....(२) मुज मन लोभी भ्रमर तणी परे, प्रभु मुख कमले अटके, रत्न चिंतामणी मूकी राचे, कहो काचने कटके.....(३) ए जिन ध्याने क्रोधादिक कुण, आसपास आवतां अटके, केवलनाणी बहु गुण खाणी, कुमति कुगतिने पटके,.....(४) जे जिनवरने दिलमां न आणे, ते तो भूला भटके, प्रभुजीनी साथे ओळख करतां, वांछित सुखडा सटके,.....(५) मूर्ति श्री संभव जिनेश्वर केरी, जोतां हैडुं हरखे, नित्य लाभ कहे प्रभु कीर्ति मोटी, गुण गाउं हुं लटके.....(६)
(6) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (राग : शास्त्रीय) . सेवक नयणे निहाळो संभवजिन (२) अधम उध्धारण बिरुद तमाएं, श्रवणे सुण्डे में आजे, अवरदेवनो संग छोडी हुं, हवेतो तुम शिर लाज.....१ लक्ष चोराशी योनिमां भटक्यो, पाम्यो दुःख अपार, जन्म मरणथी हुँ गभराणो, आव्यो तुम दरबारे.....२ क्षायिक भावे ऋद्धि अनंती, तुज पासे छे स्वामी, ते आपी मुज दुःखडां कापो, अरज करूं शिरनामी.....३ निकट भविने सौ कोई तारे, एमां शुं अधिकाई, दुर भविने जो तुमे तारो, तो तुम जस जग मांहि,.....४ वीर्य उल्लासे थाये तवचेतन, आलंबन ग्रहे ताहरु, रंग विमल सूरि शुभउपयोगे, तोडे मोह अंधारु....५
(7) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (संभव जिनवर विनती)
सांभळ साहिब विनती, तुं छे चतुर सुजाण सनेही। कीधी सुजाणने विनती, प्राये चढे ते प्रमाण सनेही । १ संभव जिन अवधारीये, महेर करी महेरबान सनेही। भवभव भावठ भंजणो, भक्तवच्छल भगवान सनेही सं० २ तुं जाणे विणुं विनवे, तोहे में न रहाय सनेही, अरथी होए उतावळो, क्षण वरसमां सो थाय सनेही। सं० ३ तुं तो मोटिममा रहे, विनवीये पण विलंबाय सनेही। एक धीरो एक उतावळो, इम कीम कारज थाय सनेही । सं० ४ मन मान्यानी वातडी, सघळे दीसे नेट सनेही। एक अंतर पेसी रहे, एक न पामे भेट सनेही। सं० ५ योग्यायोग्य जे जोयवा, ते अपूरणचें काम सनेही। खाईना जलने पण करे, गंगाजळ निज नाम सनेही। सं० ६ काळ
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गयो बहु वायदे, ते तो में न खमाय सनेही,। जोगवाई आ फरी फरी, पामवी दुरलभ थाय सनेही। सं० ७ भेदभाव मुकी परो, मुजशुं रमो एकमेक सनेही। मान विजय वाचक तणी, ए विनती छे छेक सनेही। सं० ८ (8) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (रूप अनूप निहाळी सुमति जिन) ___ श्री संभव जिनराय के, मुज मनमां वस्यो, देखी प्रभु मुख नूर के, हीयडो उल्लस्यो। पाम्यो हर्ष अपार के, मनवंछित फळ्यो, जगजीवन जिनराय के, जो मुजने मिल्यो। १ पाम्यो आनंद पूर के,दुःख दूरे गया, भेटये श्री जिनराय के, वंछित सवि लह्या। पाम्यो भवजल पार के, सार ए दिन गणुं, दीर्छ जो सुखकार के, दरिशन जिन तणुं । २ फळीयो सुरतरू बार के, सार ए दिन थयो, प्रगट्यो पुन्य अंकुर के, पातिक सवि गयो। सिध्यां वंछित काज के, आज ए दिन भलो, भक्तवत्सल भगवंत के, दीठो गुणनीलो। ३ आज थयो सुकयथ्य के, जनम आ माहरो, परम पावन दीदार के, दीठो ताहरो पाम्यो नवनिधि सिद्धि रे, रिद्धि सवि मिली, दीठे प्रभु दीदार के, आशा सवि फळी। ४ नाठा माठा दूर के, दुश्मन जे हता, फरीय न आवे तेह के, न होये वळी छता। गयां सर्व करम के शर्म आवी मळ्युं, भेटये श्री भगवंत के, वंछित सवि फळ्युं । ५ महेर करी महाराज के चरणे राखीये, सेवक तुं मुज एम के सुवचन भाखीये । होए वंछित सिद्धि के, प्रवचन साखीये, अवसर पामी स्वामी के, दरिशन दाखीये। ६ तुम सेवाथी स्वामी के, शिवसुख पामीये, एटले कोडि कल्याण के, घj शुं भाखीये,। ज्ञान विजय गुरू शिष्य के, प्रणमे लळी लळी, तुज चरणांबुज सेवके, होजो वळी वळी। ७ (9) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (राग : अजित जिणंदशुं प्रीतडी)
भवतारण संभव प्रभु, नित नमीये हो, नव नव धरी भाव के, नवरस नाटक नाचीये, वळी राचीये हो, पूजा करी चाव के सेनानंदन वंदीये। १ दुःख दोहग दूरे करी, उपगारी हो, मही महिमावंत के,। भगवंत भक्तवछल भलो, सांई दीठे हो, तन मन विकसंत के। सेना० २ अपराधी तें उद्धर्यां, हवे करीये हो तेहनी केही वात के। मुज वेळा आळस धरे, किम विणसी
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हो, जिनजी तुम घात के । सेना० ३ उभा ओलग कीजीये, वळी लीजीये हो, नित प्रत्ये तुम नाम के। तो पण मुजरो नवि लहो, केता दिन हो, इम रहे मन ठाम के। सेना० ४ इम जाणीने कीजीये, जग ठाकुर हो, चाकर प्रतिपाल के । तुं दुःख तापने टाळवा, जयवंतो हो प्रभु मेघ विशाळ के । सेना० ५
(10) श्री संभवनाथ जिन स्तवन
साहेब सांभळो रे, संभव अरज अमारी, भवोभव हुं भम्यो रे, न लही, सेवा तुमारी, नरक निगोदमां रे, तिहां हुं बहु भव भमियो, तुम विना दुःख सह्यां रे, अहोनिश क्रोधे धमधमीओ ॥१॥ इन्द्रियवश पड्यो रे, पाळ्यां व्रत नवि सुंशे, त्रस पण नवि गण्या रे, हणीआ थावर हुंशे, व्रत नवि चित्त धर्यां रे, बीजुं साचुं न बोल्युं, पापनी गोठडी रे, तिहां में हइडुं खोल्युं ॥२॥ चोरी में करी रे, चउविह अदत्त न टाळ्युं, श्री जिन आणशुं रे, में नवि संयम पायुं, मधुकर तणी परे रे, शुद्ध न आहार गवेख्यो, रसना लालचे रे, नीरस पिंड उवेख्यो || ३ || नरभव दोहिलो रे, पामी मोहवश पडिओ, परस्त्री देखीने रे, मुज मन तिहां जई अडीओ, काम न को सर्यां रे, पापे पिंड में भरीओ, शुद्ध बुद्ध नवि रही रे, तेणे नवि आतम तरियो; साहेब ॥ ४ ॥ लक्ष्मीनी लालचेरे, में बहु दीनता दाखी, तो पण नवि मळी रे मळितो नवी रही राखी, जे जन अभिलषे रे, ते तो तेहथी नासे, तृण सम जे गणे रे, तेही नित्य रहे पासे ॥ ५ ॥ धन्य धन्य ते नरा रे, एहनो मोह विछोडी, विषय निवारीने रे, तेहने धर्ममां जोडी, अभक्ष्य ते में भख्यां रे, रात्रिभोजन कीधां, व्रत नवि पाळीआं रे, जेहवा मूळथी लीधां || ६ || अनंतभव हुं भम्यो रे, भमतां साहिब मळीयो, तुम विण कोण दीए रे ! बोधिरयण मुज बळीयो, संभव आपजो रे, चरणकमळ तुम सेवा, नय एम विनवे रे, सुणजो देवाधिदेवा....
(1) अभिनंदन जिन स्तवन- ( राग : समताथी दर्द सहुँ)
||१|| अभिनंदन स्वामी हमारा, प्रभु भव दुःख भंजनहारा; ये दुनियां दुःखोकी धारा, प्रभु इनसे करो निस्तारा... अभि. ||२|| हुं कुमति कुटिल
6.
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भरमायो, दुर्निति करी दुःख पायो; अब शरण लीयो हैं तुम्हारो मोहे भव जल पार उतारो. ॥३॥ प्रभु शीख हैये नहि धारी, दुर्गतिमां दुःख लियो भारी; इन कर्मोकी गति न्यारी, कीयो बेर बेर खुवारी. ॥४॥ तुमे करुणावंत कहावो, जगतारक बिरुद धरावो; मोरी अरजीनो अक दावो; इन दुःखसे कयुं न छुडावो.... अभि ॥५|| मे व्यर्थ जन्म गुमायो, नहि तनधन स्नेह निवार्यो, अब पारस प्रसंग पामी, नहि वीरविजय की खामी... अभि..।।६।।
(2) अभिनंदन जिन स्तवन अभिनंदन जिनराज सुणो मुज विनती, विषया संगी जीवके पाप कर्या अति; मोहनी कर्मनी स्थिति उत्कृष्ट जे ऊंची, स्थानक तेहनां त्रीश सेव्यां में मनरुचि०. ॥१॥ जळमां बोळी श्वास निरोधी त्रसने, वाधर वींटी शीश मोघर मुख देईने; मुख दाबी गळे फांसो देई जीवने, हणतां बांध्यो मोह महा निर्दयपणे०. ॥२॥ हणवा वांछयुं बहु जनना अधिकारनु, कार्य कर्यु नहि ग्लान तथा निज स्वामीy; धर्म विषे उजमाळने भ्रष्ट करी हस्यो, जिन अरिहाना अवगुण कहेवा उलस्यो०. ॥३॥ आचारज उवज्झायनी निंदाये दहयो, न्याय मारग उन्मार्ग निमित्तादिक कहयो; तीर्थ गच्छना भेद कराव्या कदाग्रहि, देखी ज्ञानी ज्ञान प्रद्वेष हं घरुं वही०.॥४॥ जेहथी ज्ञान शोभा लई तेहने दुभव्यां, माया कपटे दोष पोताना गोपव्यां, जेहथी ज्ञान पूजा लही अवज्ञा तस करी, ऋद्धिवंत मदवंतशुं प्रवचन उच्चरी०.॥५।। सामा वेर उदेयाँ विश्वास घातीयां, मित्रादिकनी स्त्रीशु कामे व्यापीयां; जेणे धनाढय कर्यो तेहy पण धन इहे, अणदेखंतो देख, पेख्युं मुख इम कहे०. ॥६।। संयत थई करी पंच विषय सुख पोसणा, बहु श्रुत तप विण कीधी तेहनी घोषणा; ब्रह्मचारी विना बिरुद वहयो.. ब्रह्मचारीनो, कुमर अवस्थातित, कहयो कुमर पणो०. ॥७॥ अग्नि दीपावी गाम नगरादिक बाळीयां, पोते आचरी पाप, बीजा शिर ढाळियां, गाम नगरना नायकनो वध इच्छीयो, अति संकलेशे आतमतत्त्व न प्रीछीयो. ॥८॥ त्रीश बोल अम सेवी महा मोहे रच्यो, शुद्ध दशा निज हारी परभावे मच्यो; क्षमा विजय जिन राज भक्ति जो चित्त धरी, ज्ञान चरण निज फरसित, उत्तम पद वरी. ||६||
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(3) अभिनंदन जिन स्तवन साहिबा मारा अभिनंदन जिनरायरे, साहिबा मारा सुर सेवित तुम पायरे, साहिबा साहिबा मारा सेवक मनडानी वातरे साहिबा मारा कहुंते सुणो अवदातरे ॥१॥ साहिबा, मारा मोटा जनशुं जे प्रीतरे, साहिबा मारा करवी ते खोटी रीत रे, साहिबा मारा अम मनडामां तुं एकरे ।। सा०।। अस सम तुमने अनेकरे ।।सा०॥२॥ सा० निरागी शुं शुं नेहरे, सा० छटकीदेवे छेहरे, सा० शी धरवी प्रीतते साथरे, सा० ते निष्फल गगनने बाथरे ॥३॥ सा० पण महोटानी जेसेवरे, सा० निष्फल न होवे कदैवरे, सा० मुज उपरे भगवानरे, सा० तुम्हे होज्यो महेरबान रे ॥४॥ सा० तपगच्छमां शिरताजरे, सा० श्री विजयप्रभसूरिराजरे, सा० प्रेम विबुध पसायरे, साहिबा मारा भाण नमे तुम पायरे ॥५॥ (4) अभिनंदन जिन स्तवन (राग : पांदडं लीलुने रंग रातो....) ___ अभिनंदन जिन ताहरी, रे मूरति मोहन वेली रे बहु गुण कुसुम परिमल भरी (२) मन मधुकर केली.... अभि. (१) भविजन भगति अति अमिरसे, सींची जे नित्यमेवरे मनवांछित फळ पामीये रे, सुख संयोग सनेह रे... अभि. (२) देखत ही दिलमां वसी रे, माहरा नयण लोभाणा, जाय मालती मधुकरनी परे रे, अवर न आवे दायरे... अभि. (३) चंद चकोर प्रीतलडी रे, धन गरजारव मोर रे, एक पखो इम नेहलो रे, ए दुःख दिल दिये जोर रे.... (४) परम दयाळु दया करी रे, हमतुम अंतर टाळो रे, मेरु विजय गुर. शिष्यने रे, विनित विजय प्रतिपाळो रे.... अभिनंदन (५)
(5) अभिनंदन जिन स्तवन (सग : प्रभु तारा विना मुज)
प्रभु तुज दरिसण मळीयो अलवे, मन थयुं मारुं हळवे हळवे, साहिबा अभिनंदन देवा, मोहना अभिनंदन देवा, पुन्योदयए म्होटो माहरो, अणचिंत्यो थयो दरिसण तारो....(१) देखत खेव हरी मन लीधुं, कामणगारे कामण कीधुं, मनडुं जाये नहीं कोई पासे, रातदिवस रहे तुम पासे,....(२) पहेतुं तो जाण्युं हतुं सोहिलं पण मोटाशुं मळवू दोहिलं, सोहिलं जाणी मनडु वळग्युं थाय नहिं हवे किधुं अळगुं....(३) रूप देखाडी होय अरूपी
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किम ग्रहीवाये अकळ स्वरूपी ताहरी वात न जाणी जाये, मुज मनडानी शी गति थावे,....(४) पहेला जाणी पछी करे किरिया, ते तो परमारथ सुखना दरिया, वस्तु अजाणे मन दोडावे, तेतो मुरख .बहु पस्ताये,....(५) ते माटे तुं रूपी अरूपी, तुं “शुद्ध' बुद्धने सिध्ध अरूपी, एह ग्रह्यं स्वरूप जब तारूं, तव भ्रमरहित थयुं मन माहीं,....(६) तुज गुण ज्ञान ध्यानमा रहीए, इम हळवू पण सुलभ कहीए मानविजय वाचक प्रभु ध्याने, अनुभवरसमां हुओ एकताने....(७)
(6) अभिनंदन जिन स्तवन (राग : कहीं दीप जले) जिनराज रे मारा साहिबा, मारा अभिननंदन जिनराज रे जरा सांभळोने साहिबा, सुरनर सेवित तुम पायरे....(१) सेवक मनडानी वात, कहुं ते सुणो अवदात....सुरनर....(२) मोटा जनशुं जे प्रीत, करवी ते खोटी रीत । मुज मनमां तुं एक, मुज सरीखा तुमने अनेक....(३) निरागी शुं धरे नेह, छटकीने देवे छेह, शी धरवी प्रीत ते साथ, निष्फळ न होय कदैव, मुज उपर भगवान, तुम होजो महेरबान....(५) तपगच्छमां शिरताज श्री विनयप्रभु सुरीराय प्रेम विबुधनो सुपसाय, भाणनमे तुम पायरे....(६)
(7) अभिनंदन जिन स्तवन अकल कला अविरूद्ध, ध्यान धरे प्रतिबुद्ध, आछेलाल अभिनंदन जिन चंदनाजी। रोमांचित थई देह, प्रगट्यो पूरण नेह, आछेलाल, चंद्र ज्युं वन अरविंदनाजी। १। एको क्षण मन रंग, परम पुरुषने संग, आछेलाल, प्राप्ति होवे सो पामीयेजी,। सुगुण सलुणी गोठ, जिम साकर भरी पोठ, आछेलाल, विण दामे व्यवसाईयेजी।२। स्वामी गुणमणि तुज, निवसो मनडे मुज, आछेलाल, पण कहीये खटके नहींजी। जिम रज नयणे विलग्ग, नीर झरे निरवग्ग, आछेलाल, पण प्रतिबिंब रहे संसहीजी।३। में जाच्या केई लक्ष, तारक लोभे प्रत्यक्ष, आछेलाल, पण को साच नाव्यो वगेजी मुज बहु मैत्री देख, प्रभु कां मूको उवेख, आछेलाल, आतुर जन बहु
ओळगेजी | ४| जग जोतां जगनाथ, जिम तिम आव्या छो हाथ, आछेलाल, पण हवे रखे कुमया करोजी। बीजा स्वारथी देव, तुं परमारथ हेव, ।
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245 आछेलाल, पाम्यो हवे हुँ पटंतरोजी।५। तें तार्या केई कोड, तो मुजथी शी होड, आछेलाल, में एवडुं शुं अलेहणुंजी | मुज अरदास अनंत, भवनी छे भगवंत आछेलाल, जाणने शुं कहेवू घjजी।६। सेवा फल द्यो आज, भोळवो कां महाराज, आछेलाल, भुख न भांगे भामणेजी। रूप विबुध सुपसाय, मोहन ए जिनराय, आछेलाल, भूख्यो उमाहे घणोजी ।७।
(8) अभिनंदन जिन स्तवन दीठी हो प्रभु दीठी जगगुरू तुज, मूरति हो प्रभु मूरति मोहन वेलडीजी,। मीठी हो प्रभु, मीठी ताहरी वाणी, लागे हो प्रभु लागे जेसी शेलडीजी । १। जाणुं हो प्रभु जाणुं जन्म कयत्थ, जो हुं हो प्रभु जो हुं तुम साथे मिल्योजी। सुरमणि हो प्रभु सुरमणि पाम्यो हत्थ। आंगणे हो प्रभु, आंगणे मुज सुरतरू फळ्योजी,।२। जाग्यां हो प्रभु, जाग्यां पुण्य अंकुर, मांग्यां हो प्रभु मुह मांग्या पासा ढळ्यांजी। वुठा हो प्रभु, वुठा अमी रस मेह, नाठा हो प्रभु, नाठा अशुभ दिन वळ्याजी।३। भूख्या हो प्रभु, भूख्या मिल्यां घृतपूर, तरस्यां हो प्रभु, तरस्यां दिव्य उदक मिल्यांजी। थाक्यां हो प्रभु, थाक्यां मिल्यां सुखपाल, चाहतां हो प्रभु, चाहतां सज्जन हेले हल्यांजी।४। दीवो हो प्रभु, दीवो निशा वन गेह, शाखी हो प्रभु, शाखी थले जल नौ मिलीजी,। कलियुगे हो प्रभु, कलियुगे दुल्लहो तुज, दरिशण हो प्रभु, दरिशण लघु आशा फळीजी । ५ । वाचक हो प्रभु, वाचक जस तुम दास, विनवे हो प्रभु विनवे अभिनंदन सुणोजी, । कइयें हो प्रभु, कइयें म देशो छेह, देजो हो प्रभु देजो सुख दरिशन तणुंजी,।६। (9) अभिनंदन जिन स्तवन (राग : श्री सुपार्थजिन साहिबा)
अभिनंदन अरिहंतजी अवधारो हो सेवक अरदास के, दास जाणी मुज दीजीये, मनवांछित हो सुख लीलविलास के. अ० १ पूरव पून्ये पामीयो, सुखकार हो जगतारण देव के. सेवक जाणी साहिबा, हवे सफळी हो कीजे मुज सेव के. अ० २ सेवक जननी सेवना, प्रभु जाणो हो मन न आणो केम के, बूझो पण रीझो नहि, एकांगी हो किम होये प्रेम के. अ० ३
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246 सामान्य जननी चाकरी, सही सफळी हो होये विसवाविश के, प्रभु सरिखानी सेवना,। किम थाये हो विफळी जगदीश के. अ० ४ सेवक जे सेवे सदा, ते पामे हो इच्छित मन काम के, सेवक सुखीये प्रभु तणी, सही वाधे हो जगमांही माम के. अ० ५ साहिब ते साचो सही, जे सेवक हो करे आप समान के. भोळी भक्ते रीझीने, जे आपे हो मनवांछित दान के. अ० ६ इम बहु भक्ते विनव्यो, जगजीवन हो अभिनंदन देव के, नय विजय कहे साहिबा, मुज होजो हो भवभव तुज सेव के. अ० ७ (10) अभिनंदन जिन स्तवन (राग : एक, दो, तीन, चार)
निरमल ज्ञान गुणे करीजी, तुं जाणे जगभाव। जगहितकारी तुं जयोजी, भवजल तारण नाव। जिनेसर सुण अभिनंदन जिन, तुज दरिशण सुखकंद। जि. सु० १ तुज दरिसण मुज वालहुंजी, जिम कुमुदिनी मन चंद, जिम मोरा मन मेहलोजी, भमरा मन अरविंद । जि. सु० २ तुज विण कुण छे जगतमांजी, ज्ञानी महा गुण जाण । तुज ध्यायक मुज महेरथीजी हित करी द्यो बहुमान। जि. सु० ३ तुज हेतथी मुज साहिबाजी, सीझे वंछित काज। तिण हेते तुज सेवीयेजी, महेर करो महाराज। जि. सु० ४ सिद्धारथा उर हंसलोजी, संवर नृप कुल भाण। केसर कहे तुज हेतथीजी, दिन दिन कोडी कल्याण। जि. सु० ५
(11) अभिनंदन जिन स्तवन (राग : ऋषभ जिनेश्वर) . आणा वहीये रे चोथा जिन तणी रे, जिम न पडो संसार। आणा विण रे करणी सत करे रे, नवि पामे भव पार | आणा० १ जीव लाखो पूर्व संयम तप करे रे, उर्ध्व तुंड आकाश। शीतल पाणी रे हिम ऋते सहे रे, साधे योग अभ्यास । आणा० २ देवनी पूजा रे भक्ति अति घणी रे,करतां दीसे विशेष । आणा लोपी रे निजमत स्थापना रे, न लहे आतम लेश। आणा० ३ आणा ताहरी रे उभय स्वरूपनी रे, उत्सर्ग ने अपवाद । व्यवहार शोभे रे निश्चयनय थकी रे, किरिया ज्ञान सुवाद । आणा० सुंदर जाणीरे निज मतिआचरे रे, नहिं सुंदर निरधार । उत्तम पासे रे मनीषा पाधरी रे, जो जो ग्रंथ विचार। आणा० ५ धन ते कहीये रे नरनारी सदा रे,
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आसन्नसिद्धक जाण। ज्ञाता श्रोता रे अनुभवी संवरी रे, जे माने तुज आण । आणा० ६ दोय कर जोडी मागुं एटलुं रे, आणा भव भव भेट | वाचक दीजे रे कीर्ति शुचि प्रभु रे, आणा शिवलच्छी बेट । आणा० ७ (12) अभिनंदन जिन स्तवन
सज्जन
अभिनंदन अरिहंतजी रे लो, कांई करूणा कर गुणवंतजी रे लो, साचा जो मिले रे लो, तो दूध मांही साकर भळे रे लो ||१|| केवल कमलाजो ताहरे रे लो, तेणे कारज श्यो सरे माहरे रे लो, भाळतां भूखन भांजशे रे लो, पेट पड्या कांई धापीए रे लो, ॥२॥ हेजे करी हुलरावीया रेलो, कांई तत्त्व वेंचीदीये तारीने रे लो ||३|| आतममां अजुवाळी ए रे लो, कांई वास तुमारे वासीये रे लो, कारण जो कांई लेखवो रे लो, तो नेह नजर भर देखवो रे लो, ॥ ५॥ सिद्धारथा संवर तणोरे लो, कांई कुल अजवायुं ते घणुं रे लो, शास्वत संपदा स्वामीथी रे लो, कांई जीवण जश लहे नामथी रे लो, ॥६॥
(1) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन
दिलरंजन जिनराजजी रे, सुमतिनाथ जगस्वामी; सलुणा० जगतारक जगहितकरु रे, भविजन मन विसरामी ० सलुणा || १ || मुज चित्त लाग्युं तुम थकी रे, किम रहो न्यारा देव; सलुणा० समरथ जाणीने साहिबा रे, कीजीये तुम पद सेव. सलुणा०... दि० || २ || दायक नाम धरावीने रे, वळी धरो कृपणता दोष; सलुणा० न वधे जग जस इम कर्यां रे, ति प्रभु दीजे संतोष० सलुणा०... दि० || ३ || करुणा सागर दीजीये रे, रत्नत्रयी अभिराम; सलुणा० ललचावीने आपतां रे, जलद हुओ जुओ श्याम; सलुणा०... दि० ॥ ४ ॥ तार्या तुमे केई जीवने रे, अपराधी सुखी कीध; सलुणा० शिवसुख आप्युं भक्तने रे, तेणे तुमने शुं दीध. सलुणा०... दि० ||५|| कथ दूर रहो विभुरे, ओकने दीओ सुखसाज, सलुणा० इम करतां तारकपणुं रे, न रहे गरीब नवाज ०. सलुणा०... दि० || ६ || सो वाते ओक वातडी, रे सुणजो त्रिभुवननाथ; सलुणा० अमृत पद देइ रंगने रे, तारजो झाली हाथ. सलुणा०... दि० ॥७॥
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(2) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन
रुप अनुप निहाली सुमति जिन ताहरु, छांडी चपल स्वभाव ठर्युं मन माहरु, रुपी सरुप न होत जो जग तुज दीसतुं, तो कुण उपर मन्न कहो अम हीसतुं,... रुप० ॥ १|| हीस्यां विण किम शुद्ध स्वभावने इच्छता, इच्छा विण तुज भाव प्रगट किम प्रीछता,... प्रीछयां विण किम ध्यान दशा मांही लावता, रुप० लाव्या विण रस स्वाद कहो किम पावता, रुप० ॥२॥ भक्ति विना विमुक्ति हुये कोई भक्तने, रुपी विना तो तेह हुये किम व्यक्तने, नव विलेपन माल प्रदिपनें धूंपणा,... नवनव भूषण भाल तिलक शिर खुंपणा, रुप० ||३|| अम सित पुण्यने योगे तुमे रुपी थया, अमृत समाणी वाणी धरमनी कही गया, तेह आलंबीने जीव घणाओ बुझीयां, भाविभावने ज्ञाने योगे अमो रीझीया, रुप० || ४ || ते माटे तुझ पिंड घणां गुण कारणो, सेव्यो ध्यायो हुये महाभय वारणो, शांतिविजय बुध शीस कहे भविकजना, प्रभुनुं पिंडस्थ ध्यान करो थई ओकमना रुप० ॥५॥
( 3 ) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( राग
यशोमति मैया )
सुमति जिनेश्वर प्रभु परमातम, तुं परमागम, तुं शुद्धातम साहिबा विनंती अवधारो, मोहना प्रभु पार उतारो; तुमे ज्ञानादिक गुणना दरिया, अनंत अक्षय निजभावमां भरीया... (१) तुम शब्दादिक गुण निःसंगी, अमे स्वप्ने पण तेहना संगी, तुम उत्तमगुण ठाणे चढिया, अमे कोहादिक कषाये नडिया...(२) अममति इन्द्रिय विषये राची, तुमे अनुभव रसमां रह्यां मांची, अमे मदमातंगनेवश पडिया, नवि तुमे ते तिलमात्र आभडीया... (३) तुमे जगशरण विनित सुजाण, तुमे जगगगन विकासक भाण, तुमे अकलंक अबीह अकोही, तुजसंगी न रागी न मोही... (४) अतिन्द्रिय स्वाद्वाद वागीश, सहजानंद गुण पज्जव इश, अलख अगोचर जिनजगदीश, अशरणनाथ नायक अमीश ... (५) ते माटे तुम चरणे विलग्यां, एक पलक नहिं रहीशुं अलगा, सौभाग्यलक्ष्मी सूरिगुण वाधे, जिन सेवे साध्यता साधे ... (६)
(4) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( राग साजन मेरा उस पार ) मारा प्रभुजी शुं बांधी प्रीतडी, एतो जीवन जगआधार रे, साचो
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साहिब ते सांभरे, क्षणमांहे कोटिवार रे... सनेहि वारी हुं सुमति जिणंदनी-9 प्रभु थोडा बोला ने निपुण घणा, ए तो कार्य अनंत करनार रे, ओलग जेहनी जेवडी, फळ तेहवा तस देनार रे... मारा० २ प्रभु अति धीरो लाजे भर्यो, जिम सिंच्यो सुकृत घनसार रे, एक ज करुणानी ल्हेरमां सुनिवाजे करे निहाल रे... मारा० ३ प्रभु भवस्थिति पाके भक्तने, फळ आपे हो सुपसाय रे, ऋतु विण कहो किम तरूवरे, फळ पाकीने सुंदर थाय रे मारा० ४ अति भूख्यो पण शुं करे, कांई बेउ हाथे न जमाय रे, दास तणी उतावळे, प्रभु किणविध रीइयो जाय रे मारा० ५ प्रभु लेखित होय ते लावीये, मन मान्यो महाराज रे, फळतो सेवाथी संप जे, विण खणे न भांजे खाज रे मारा० ६ प्रभु विसर्या नवि विसरे, सामुं अधिक होये नहि । मोहन कहे कवि रूपनो, मुज वहाला छे जिनवर एहरे... मारा० ७
( 5 ) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन
सुमतिजिणंद जयकारी प्रभुजी तोरा जिनजी तोरा, नामनी जाउं बलिहारी, व्हालाजी तारा नामनी जाउं बलिहारी, लोकोतर मुद्रा ताहरी, शांत पुंज मय सोहे, शुक्लध्यान धारा रस लीनो, देखी सुरनर मोहे० (२) १ घनघाती चकचुर करी प्रभु, केवल कमला पामी, चार निकाय मली सुर करता, समवसरण मनोहारी प्रभु० (२) २ त्रिगडे त्रिभुवन नाथ बिराजे, करूणा जलहल धारी, अरिहंत पद प्रभु ठकुराईनो भोगी, देशना दिये हितकारी० । प्रभु० (२) ३ अमृत झरणी मिथ्यातम तरणी, नय गर्भित अति गाजे, मानु अषाढो मेहुलो वरशे, भवि मन संशय भांजे ० । (२) प्रभु० ४ कोडी गमे सुर सेवा करता, चिदानंद चिरंजीवो बोले, ए ठकुराई तुजने छाजे, अवर नहि तस तोले० । ५ कमलविजयनो मोहन पभणे, प्रभु नामे जयकारी, जाप जपंता पातिक जाये, नित नित मंगलकारी० (२) प्रभु० ६
(6) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( राग : बेनारे)
मन मारूं लागी रह्युं, दिलमारू लागी रह्युं, चित्त मारूं लागी रह्युं रे, सुमति जिणंदशुं० १ धन्य धन्य दिवस आजनो माहरो, धन्य धन्य घडी वळी जेह, धन्य धन्य समयजे वळी ताहरू, दरिशण दीठं नयणे नेह० मन०
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२ सुंदर मूरति में दीठी ताहरी, केटले दीवसे आज; नयन पावन थया प्रभुजी अमारा, पाप तिमिर गया आज० मन० ३ खासो खिजमत गार ते जाणीने, करूणा धरो मनमांय सेवक उपर हिंत बुद्धि आणीने, वळी धरो ह्रदय उमहाय० मन० ४ निर्मल सेवा मृत तुज आपीने, जेम बुझे भवनारे ताप; हवे दरिसणनो विरहते मत करो, जेम मेटजो मननां संताप० मनं० ५ घणुं घणुं शुं कहीए नाथ तमोने, तुम्रे छो चतुर सुजाण; मुज मन वांछित पूरजो एम, कहे पंडित प्रेमनो भाण० मन० ६
( 7 )
श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन (आवो आवो जसोदाना कंत)
1
पांचमा सुमति जिनेसर स्वामी के सुण जिनराया रे, । तुमथी नवनिधि रिद्धि में पामी के, शिवसुख दाया रे, तुं तो पावन धर्म नगीनो के सुर गुण गाया रे, । अहनिश समता रसमां भीनो के, शिवसुख दाया रे० १ मंगला मावडीए प्रभु जायो के, सुणो जिनराया रे, । छप्पन दिगकुमरी हुलरायो के, शिवसुख दाया रे, । तुं तो मेघ नृपति कुल हीरो के, हरि नती पाया रे तुं तो करूणा सागर स्वामी के, शिवसुख दाया रे०२ त्रणसें उंची काया धनुष के, सुण जिनराया रे, । चालीसलाख पूरवनुं आयु रे, पूरण पाया रे । तारी सेव करे सुर स्वामी के सुर गुण गाया रे । तुं तो शिवसुंदरी सुख कामी के, निर्मल काया रे० ३ तुं तो भक्तवच्छल भय टाळे के, शिवसुख दाया रे। तुं तो त्रण भुवन अजुवाले के जिम दिनराया रे तुं तो मुनिजनमां निशि दीवों के, सुर गुण गाया रे । अविचल धूमंडल चिरंजीवो के जिम गिरिराया रे० ४ प्रभुजीनी वाणी अमीरस मीठी के, शिवसुख दाया रे । जिनजीनी मोहन मूरति दीठे के, अति सुख थायरे, श्री गुरु सुमतिविजय कविराया के । सुणो जिनराया रे सेवक रामविजय गुण गाया के, जयो जिनराया के० ५
,
( 8 ) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( मन मोहन तुं साहिबो)
समकित ताहरूं सोहामणुं, विश्वजंतु आधार लाल रे । कृपा करी प्रकाशिए, मिटे मोह अंधार लाल रे । स० १ नाण दंसण आवरणनी, वेयण मोहनी जाण लाल रे । नाम गोत्र विघ्ननी स्थिति, एक कोडाकोडि मान लाल
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रे। स० २ यथा प्रवृत्ति करण ते, फरसे अनंतीवार लाल रे । दरिशन ताहरूं नवि लहे, दूरभव्य अभव्य अपार लाल रे। स० ३ शुद्ध चित्त मोगर करी, भेदी अनादिनी गांठ लाल रे। नाण विलोचने देखीये, सिद्धि सरोवर कंठ लाल रे । स० ४ भेद अनेक छे तेहना, बृहत ग्रंथ विचार लाल रे। सुसंप्रदाय अनुभव थकी, धरजो शुद्ध आचार लाल रे। स० ५ अहो अहो समकितने सुण्यो । महिमा अनोपम सार लाल रे। शिवशर्म दाता एह समो, अवर न को संसार लाल रे । स० ६ श्री सुमतिजिनेसर सेवथी, समकित शुद्ध ठराय लाल रे। कीर्तिविमल प्रभुनी कृपा, शिवलच्छी घर आय लाल रे। स० ७
(1) पद्मप्रभ जिन स्तवन पद्मप्रभ प्राणसे प्यारा, छोडावो कर्मकी धारा; करम बंध तोडवा घोरी, प्रभुजीसे अर्ज है मोरी० पद्म० ।।१।। लघु वय ओक तें जीया, मुक्तिमें वास तुम कीया; न जाणी पीर ते मोरी, प्रभु अब खेंच ले दोरी० पद्म० ।।३।। विषय सुख मान मो मनमें, गयो सब काल गफलतमें; नरक दुख वेदना भारी निकलवा ना रही बारी० पद्म० ॥४॥ परवश दिनता कीनी, पापोकी पोट शिर लीनी; न जाणी भक्ति तुम केरी, रह्यो निशदिन दुःख घेरी...पद्म० ॥५॥ इसविध विनति मोरी, करुं में दोय कर जोडी; आतम आनंद मुज दीजो, वीरनुं काम सब कीजो...पद्म० ॥६।।
(2) पद्मप्रभ जिन स्तवन पद्मप्रभ जिन भेटीये रे...साचो श्री जिनराय दुःख दोहग दूरे टळे रे, सीजे वांछित काज, भविकजन पूजो श्री जिनराय..भविका० आणी मन अति ठाय० ॥१॥ सिवराना वश ताह रे रे, रातो तेणे तुज अंग, कमल रहे निज पगतले रे, ते पण तिण हीज रंग० ॥२॥ रंगे रातो जे अछे रे, विचे रह्या थिर थाय, तुं रातो पण साहिबा रे, जई बेठो सिद्धिमाय० ॥३॥ अधिकांई ओ तुम तणी रे, दीठो में जिनराय, ठकुराई त्रण जगतणी रे, सेवा करे सुरराज० ॥४॥ देवाधिदेव मे ताहरु रे, नाम अछे जगदीश, उदारपणु पण अति घणुं रे, रंक ने करो क्षण इस० ॥५॥ अहवी करणी तुमतणी रे, देखी सेवू तुज, केसर विमल कहे साहिबा रे, वांछित पुरो मुज० ॥६।।
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(3) पद्मप्रभ जिन स्तवन घडी घडी सांभरे सांइ सलुणा, पद्मप्रभ जिन दिलसे न विसरे, मानु किया कछु गुना दुना, दरिशण देखत ही सुखपाउं, तो बिन होत हुँ ऊना दुना । घडी०॥१॥ प्रभुगुण ज्ञान ध्यान विधि रचना, पान सुपारी काथा चूना, राग भयो दिलमें आ योगे, रहे छिपाया ना छाना छूना ।। घडी०।।२।। प्रभु गुण चित्त बांध्यो सब साखे; कुण पइसे लेवे घरका खूणा, राग जगा प्रभु शुं मोहे प्रगट, कोउ नया कहो कोऊ जूना ॥ घडी०॥३॥ लोकलाज से जो चित्त चोरे, सोतो सहज विवेक ही सूना, प्रभु गुण ध्यान विगर भ्रम भूला, करे किरीया सो राने रुला ॥ घडी० ॥४॥ में तो नेहकीयो तोही साथे, अब निवाहोता सेहुना, जस कहेता बिनुं और न सेवू, अमीय खाई कुण चाखे लूणा ॥ घडी० ॥५॥
(4) पद्मप्रभ जिन स्तवन (राग - सांभळ छेल्ली वात)
श्री पद्म प्रभुना नामने, हुं जाउ बलिहार, नामजपंता दीहागामु, भव भय भंजनहार (२).....१ नाम सुणंता मन उल्लासे, लोचन विकसीत होय, रोमांचित हुए देहडी, जाणे मीलीयो सोय.....२ पंचम आरे पामवो, दुल्लहो प्रभु देदार, तोपण तारा नामनो, छे मोटो आधार,.....३ नाम ग्रहे आवी मीले, मन भीतर भगवान, मंत्रबळे जेम देवता, व्हालो कीधो आह्वान.....४ ध्यान पदस्थ प्रभावथी, चाख्यो अनुभव स्वाद, मान विजय वाचक भणे, मूको बीजो वाद.....५
(5) पद्मप्रभ जिन स्तवन (राग - मोसम है आ सुहाना.....) ___ पद्म प्रभु जिन सेवना, में पामी पुरव पुन्य हो, जन्म सफळ ए माहरो, हुं मार्नु ए दिन धन्य हो....(१) विनती निज सेवक तणी, अवधारो दिन दयाळ हो, सेवक जाणीने आपणो हवे, महेर करो मयाळ हो....(२) दुषम
आरे जो प्रभु मीलीओ, तो फलीयां वांछित कामहो, मानुं तरता जलनिधि हुं, पाम्यो सफरी जहाज हो....(३) चउगति महाकांतारमा हुं, भमीयो वार अनंत हो, चरण - शरण हवे आवीयो, मने तार तार किरतार हो....(४) सेवना देव देवनी जो, पामी में कृत पुन्य हो, जन्म सफळ हुं गणुं ने, गणुं
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जीवित धन्य धन्य हो.... (५) धन्य दिवस धन्य ते घडि, धन वेळा मुज एह हो मन वच कायाए तारीए, जो सेवा करीए तुज हो.... (६) महेर करी प्रभु माहरी, पूरजो वांछित आश हो 'ज्ञानविमल' गुरु शिष्यने, जो तुम चरणे वास हो....(७)
( 6 ) पद्मप्रभ जिन स्तवन (राग : मैं देखुं जीस और सखी रे....) अजब बनी रे, मेरे अजब बनी रे, प्रभु साथै प्रीति अजब बनी अजब बनीरे प्रभु साथै प्रीति तोमुज दुर्गतिनी शी भिती देखी प्रभुनी मोटी रीति, पामी पूरण रीति प्रतीति.... (१) जे दुनियामां दुर्लभ नेह, ते में पामी प्रभुनी भेट, आळसुने घरे आवी गंग, पाम्यो पंथी सफर तुरंग,...(२) नीरसे पाम्यो मानस तीर, वाद वदंता वाधी भीर, चित्त चोर्यो सज्जननो संग, अणचिंत्यो मिलियो चढते रंग.... (३) जिम जिम नीरखुं प्रभु मुखनूर, तिम तिम थाउं आनंद पूर सुणतां जनमुख प्रभुनी वात, हरखे मारा साते धात....(४) पद्मप्रभु जिननां गुण गाता, लहीए शिवपदवी असमान, 'विमल विजय' वाचकनो शीश, 'रामे' पायो परम जगीश.... ( ५ )
( 7 ) पद्मप्रभ जिन स्तवन ( राग : तुम दरिसण भले पायो )
प्रभु तेरी मुरति मोहनगारी, (२) पद्म प्रभु जिन तेरे ही आगे, और देव न छबी हारी,.... ( १ ) समता शीतल भरी दोय, अखीयां, कमल पंखरीया वारी, आनन निराका चंद सो राजे, वानी सुधारस सारी.... (२) लंछन अंग भर्यो तन तेरो, सहस अठ्ठोतर भारी, भीतर गुण का पार न आवे, जो कोउ कहत विचारी.... (३) शशि रवि हरि को गुण लेइ, निर्मित गात्र संचारी, वचन बुलंद कहांसे आये, ए मुज अचरिज भारी.... (४) यो गुण अनंतभरी छबी प्यारी, परम धरम हितकारी, कवि अमृत कहे चित्त अवतारी, बिसरत नहीं बीसारी,.... (५)
( 8 ) पद्मप्रभ जिन स्तवन (राग - पद्मप्रभुनुं स्तवन)
धन धन संप्रति साचो राजा, जेणे कीधा उत्तम काम रे, सवा लाख प्रासाद करावी, कलियुगे राख्युं नाम रे, । १ वीर संवत्सर संवर बीजे, तेरोत्तर रविवारे रे, महासुदि आठमे बिंब भरावी, सफल कीधो अवतार
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रे,। २ श्री पद्मप्रभुनी मूर्ति स्थापी, सकल तीरथ शणगार रे, कलीयुगे कल्पतरू ए प्रगट्यो, वांछित फल दातार रे,। ३ उपाश्रय बे हजार कराव्या, दानशाला सवा सात रे, धर्मतणा आधार आरोपी, त्रीजग हुओ विख्यात रे,। ४ सवा लाख प्रासाद करावी, छत्रीश सहस उद्धार रे, सवा कोडी संख्याए प्रतिमा, धातुं पंचाणुं हजार रे,। ५ एक प्रासाद नवो नित निपजे, तो मुख शुद्धि होय रे, एवो अभिग्रह संप्रतिए कीधो, उत्तम करणी थाय रे,। ६ आर्य सुहस्ति गुरु उपदेशे, श्रावकने आचार रे, समकित मूल बार व्रत पाली, कीधो जग उपकार रे,। ७ जिनशासन उद्योत करीने, पामी त्रण खंडे राज रे, ए संसार अस्थिर जाणीने, साध्या आतम काज रे,। ८ गंगाणी नयरीमा प्रगट्या, श्री पद्मप्रभु देव रे, विबुध कांति शिष्य कनकने, देजो तुज पय सेव रे,। ६ (9) पद्मप्रभ जिन स्तवन (एक दिन पुंडरिक गणधरू रे लाल)
श्री पद्मप्रभ जिनराजने रे लो, विनती करूं करजोड रे। जिणंदराय माहरे तुं प्रभुं एक छे रे लो, मुज सम ताहरे कोड रे । जिणंदराय,। श्री० १ लोकालोकमां जाणीए रे लो, इम न सरे मुज काज रे। जिणंदराय । दास सभावे जो गणे रे लो, तो आवे मन ठाम रे। जिणंदराय। श्री० २ कहेवाये पण तेहने रे लो, जेह राखे मुह लाज रे। जिणंदराय । प्रारथीयां पहिडिये नहि रे लो, साहिब गरीब निवाज रे । जिणंदराय । श्री० ३ कर पद मुख कज शोभथी रे लो, जीती पंकज जात रे। जिणंदराय, । लंछन मिसि सेवा करे रे लो, धर नृप सुसीमा मात रे | जिणंदराय श्री० ४ उगत अरूण तनु वान छे रे लो, छठो देव दयाल रे । जिणंदराय । न्यायसागर मन कामना रे लो, पूरण सुख रसाल रे। जिणंदराय श्री० ५
(10) पद्मप्रभ जिन स्तवन हो अविनाशी, शिववासी सुविलासी सुसीमा नंदना,। छो गुणराशी, तत्त्व प्रकाशी खासी मानो वंदना। तुमे धरनरपतिने कुले आया, तुमे सुसीमा राणीना जाया, छप्पन दिशिकुमरी हुलराया। हो० १ सोहम सुरपति प्रभु घर आवे, करी पंच रूप सुरगिरि लावे, तिहां चोसठ हरि भेळा थावे। हो० २
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कोडि साठ लाख उपर भारी, जल भरीया कलशा मनोहारी, सुर नवरावे समकितधारी। हो० ३ थय थुई मंगल करी घर लावे, प्रभुने जननी पासे ठावे, कोडी बत्रीस सोवन वरसावे। हो० ४ प्रभु देहडी दीपे नीलमणि, गुणगावे श्रेणी इन्द्र तणी, प्रभु चिरंजीवो त्रिभुवन धणी। हो० ५ अढीसें धनुष उंची काया, लही भोगवी राज्य रमा जाया, पछी संजम लही केवल पाया। हो० ६ तीरथ वर्तावी जगमांहे, जन निस्तार्यापकडी बांहे, जेरमण करे निज गुण माहे । हो० ७ अम वेळा मौन करी स्वामी, किम बेठा छो अंतरजामी, जगतारक बिरूदे लगे खामी हो० ८ निज पादपद्म सेवा दीजे, निज समवड सेवकने कीजे, कहे रूपविजय मुजरो लीजे। हो० ६
(1) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन ॥१॥ नीरखी नीरखी तुज बिंबने रे, हरखीत होये मुज मन्न, सुपास सोहामणा रे, निर्विकारता नयनमां रे, मुखडु सदा सुप्रसन्न सुपास० ॥२।। भाव अवस्था सांभरे रे, प्रातिहारजनी शोभ; सुपास...कोडी गमे देवा सेवारे, करता मूकी लोभ,...सुपास० ॥३॥ लोकालोकना सवि भावा रे, प्रतिभासे प्रत्यक्ष, सुपास...तोहे नविराचे नवि रुसें रे, नहि अविरतिनो पक्ष...सुपास० ॥४॥ हास्य न रति अरति नहिरे, नहि भय शोक दुगंछ, सुपास० नहिं कंदर्प कदर्थना रे, नहि अंतरायनो संच...सुपास० ॥५॥ मोहमिथ्यात निंद्रा गई रे, नाठा दोष अढार; सुपास० चोत्रीश अतिशय राजता रे, मुलातिशय चार,...सुपास० ॥६॥ पांत्रीस वाणी गुणे करी रे, देता भावे उपदेश; सुपास...इम तुज बिंब ताहरो रे, भेदनो नहि लवलेश...सुपास० ॥७|| रुपथी प्रभुगण सांभरे रे, ध्यान रुपस्थ विचार; सुपास...मानविजय वाचक वदे रे, जिन प्रतिमा जयकार...सुपास० ॥८॥
(2) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन श्री सुपास जिन साहिबा, सुणो विनती हो प्रभु परम कृपाल के; समकित सुखडी आपीये, दुःख कापीये हो जिन दीन दयाल के०...श्री सुपास०. ।।१।। मौन धरी बेठा तुमे, निश्चीता हो प्रभु थईने नाथ के; हुं तो आतुर अति उतावलो, मांगु छु हो जोडी दोय हाथ के...श्री सुपास०. ।।२।।
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सुगुणा साहिबा तुम विना, कुण करशे हो सेवकनी सार के; आखर तुमहीज आपशो, तो शाने हो करो छो वार के,...श्री सुपास०. ॥३॥ मनमा विमासी शुं रह्या, अंश ओछु हो ते होय महाराज के निर्गुणीने गुण आपतां, ते वाते हो नहि प्रभु लाज के०...श्री सुपास०. ॥४।। मोटा पासे मांगे सहु कुण करशे हो खोटानी आश के; दाताने देतां वधे घj, कृपणने हो होय तेहनो नाश के,...श्री सुपास०. ॥५॥ कृपा करी सामुं, जो जुओ, तो भांजे हो मुज कर्मनी जाल के; उत्तर साधक उभां थकां, जिम विद्या हो सिद्ध होय तत्काल के; जाण आगल कहेवु किश्युं पण अरथी हो करे अरदास के खिमा विजय पय सेवतां, जस लहिये हो प्रभु नामे खास के०...श्री सुपास०. ।।७।।
(3) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन कयुं न हो सुनाई स्वामि जैसा गुन्हा क्यां? कीया, जैसा गुन्हा क्यां? कीया, औरोकी सुनाई जावे, मेरी बारी नहि आवे, तुम बिन कौन मेरा, मुझे कयुं भूला दीया...कयुं० ॥१॥ भक्त जनोकुं तार दीया, तारने का काम लीया; बिन भक्तिवाला मोंपें, पक्षपात कयुं किया..क्युं ?० ॥२॥ राय रंक अक जाणो, मेरा तेरा नहीं मानो, तरण तारण जैसा बिरूद, धार क्युं ? विसार दिया क्युं० ॥३॥ गुना मेरा बक्ष दीजे, मों में अतिरहेम कीजे, पक्का ही भरोसा तेरा, दिलोमें जमा लिया, कयु. ॥४|| तुं ही अक अंतरजामी, सुणोश्री सुपार्थ स्वामी; अबतो आशा पुरो मेरी, कहना थाशो कह दीया..कयु..॥५॥ शहेर अंबालाभेटी, प्रभुजीका मुख देखी; मनुष्य जन्मका लाहा, लेना थासो ले लीया..क्युं० ॥६॥ उन्नीसो छासठ छबीला, दीपमाला दिन रंगीला; कहे वीर विजय प्रभु, भक्ति में जगादीया...क्युं ?० ॥७॥
(4) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन मुज मन भ्रमरे, प्रभु गुण फूलडे, रमण करे दिनरात रे, सुणजो स्वामी सुपार्थ सोहामणा, करजोडी करुं वात रे....१ मनडुं ते चाहे मळवा भणीजी, पण दीसे छे अंतराय रे, जीव प्रमादी कर्म तणे वसे, ते किम मळवू थाय रे.... २ लाख चोराशी जीवायोनि मांहे, भव अटवी गति चार रे, काळ
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अनादि अनंता भमतां, किमही न आव्यो पार रे.... ३ मार्ग बतावो स्वामी माहरा, जीम आवुं तुम पास रे, लाज वधारो सेवक जाणीने, द्यो दरिशन महाराज रे,.... ४ मूर्ति ताहरी रूपे रूडी, अनुभव पद दातार रे नित्य लाभ प्रभु प्रेमे विनवे, तुमथी बहु सुखसार रे .....
५
(5) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन
पास सुपासजी राखीये रे, सेवक चित्तमां आणी सलुणा, जिम हुं अंतर चित्तनीरे, वात कहूं गुण खाणी सलुणा, १ करुणा विलासी तुमे अछो रे, करुणासागर कृपाल रे, करुणासागर सरोवरे रे, प्रभु छो मान मरालरे.... २ अपराधी जो सेवक गणो रे, तो पण नवि छंडाय रे, जेम विद्युत अग्नि समीरे, नवि छंडे मेघराय.... ३ ते माटे छांडता थकारे, शोभशो किम महाराज रे, बाह्य ग्रह्यानी लाज रे, घणुं शुं तमने कहाय.... ४ तुं छंडे पण नवि छंडु रे, हुं तुजने महाराज रे, तुम चरणे भाण आवियोरे, प्रेम विबुध सुपसाय..... ५ (6) श्री सुपार्श्व जिन स्तवन
श्री सुपासजिनशुं करो साहेलडीयां० अति अनोपम रंग रे, गुणवेलडीयां० एह रंग हीणो नहि सा० बीजो हीणो पतंग रे, गु० श्री० १ तुं साहिब सोहामणो सा०, बीजो नावे दाय रे, गु० एह रंग सदा होजो, सा०, ज्यां लगे शिवपद थाय रे, गु० श्री० २ भव अनंत भमतां थक, सा०, पुन्ये पाम्यो आज रे, गु० तो मुज मनवांछित फल्यो, सा०, सिध्यां सघळां का रे, गु० श्री० ३ राग रहित प्रभु तुं कह्यो, सा०, मुजने तुजशुं राग रे । गु० सरीखा विण प्रभु गोठडी, सा०, केम बनी आवे लाग रे, गु० श्री० ४ कृपा नजर साहिब तणी, सा०, सेवकनां दुःख जाय रे, गु० ऋद्धि अनंत कीर्ति घणी, सा०, जगमां जस बहु थाय रे, गु० श्री० ५
(1) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन
चंद्रप्रभुजीनी चाकरी रे, द्राख साकर पें मीठ... जिनेसर; सफल कर्यो संसारमां रे, जन्म जेणे जिन दीठ, जिनेसर. ||१|| वहालो तुं वीतराग, मुझ मलियो मोटे भाग,... जिनेसर; वळी पहोंते पुन्य अथाग, करूं सेवा हुं चरणे लाग०... जि०व०॥२॥ मेवासी भड मारीओ रे, मयण महा दुरदंत, जि...
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विषया तरुणी वेगळी रे, मूकी थया महंत रे०... जि० व० || ३ || करडा कर्माष्टक चोरटा रे, जिनपति जित्या जेह, जि०.. तृष्णा दासी जे तजी रे, मुझ मन अचरिज अह. जि० व० ॥४॥ दोष दोय छोडाविया रे, धुरथी राग ने द्वेष, जि० जगव्यापी योध लोभने रे, राख्यो नहि कांई रेख. जि० व० ॥५॥ अरियण जिती आकरा रे, वरियो केवलनाण; जि०; लक्ष्मणा मातनो लाडलो रे, करतो सफल विहाण० जि० व० || ६ || पामी तें ते हुं पामशुं रे, लीला लहेर भंडार, जि०; कहे जीवण जिनजी करो रे, निशदिन हर्ष अपार जि० व० . ||७||
( 2 )
श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन (राग
वीरकुंवरनी वातडी केने)
चंद्रप्रभनी चाकरी नित्य करीओ रे, हारे नित्य करीये रे, नित्य करिये. करतां भवजलनिधि तरिये, हारे होय परम आनंद... चंद्र० || १|| लक्ष्मणा देवीना लाडका जिनराया, जस उडुपति लंछन पाया, प्रभु चंद्रपुरीना राया, हारे नित्य समरीओ नाम ०... चंद्र० . || २ || महसेन नृप कुलचंद्रमां सुखदाया, अना दर्शने पाप पलाया आतम निज तत्वे समाया, हारे भव भवनां दुःख जाय०...चंद्र०.।।३।। दोढसो धनुष प्रमाण सुंदर देह, तेजे करी दिणयर ह; गुणगण कही न शके केह, हारे धन्य प्रभुनो देदार ... चंद्र०. ॥४॥ दश लख पूरव आउखुं प्रभुपाळी, निज आतमने अजवाळी; दुष्ट कर्मना मर्मने टाळी, हारे पोम्या केवळ ज्ञान०... चंद्र० ।। ५ ।। समेत शिखर सिद्धि वर्या उछरंगे, अक सहस मुनिवर संगे, पाळी अणसण मनने रंगे हारे, लह्युं पद निर्वाण चंद्र० || ६ || जिन उत्तम पद पद्मने जेह ध्यावे, हारे रूप कीर्ति कमला पावे. हांरे मुनि मोतिविजय गुण गावे, हारे आपो अक्षयराज, ॥७॥ ( 3 )
श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन ( राग आजनो दिवस मने लागे ) चांदलीया संदेशो कहे जो मारा स्वामीने रे, वंदन वारंवार रे; श्री चंद्रप्रभ चरणे तुंवसे रे, मुज मन ताप निवाररे०... चांदलीया०. ॥१॥ दूर देशांतर तुमे वसो रे, कारज सवि तुम हाथरे; साथ न कोई तेहवो सांपडे रे, नयने मिलावे नाथरे० ... चांदलीया० ॥२॥ तुम गुण सुणतां मुज मनडुं ठरे रे, नवलो जागे नेहरे ; श्वासोश्वास समा तुम सांभरे रे, मन माने
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259 निःसंदेह०... चांदलीया०.॥३॥ मुगति मानिनी मोहन मोहियोरे, आनंदमय अवतार; वात न पूछो सेवकनी कदा रे. जे कुण तुम आचाररे०... चांदलीया०. ॥४॥ चतुरने चिंता चित्तनी शुं कहुं रे, तुमे छो जगना जाणरे; आप स्वरुप प्रकाशो आपशुं रे, महीयल मेघ प्रमाण०...चांदलीया०.।।५।।
(4) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन मुज घट आवजो रे नाथ! मेरे दिल आवजो रे नाथ, करुणा कटाक्षे जोईने, दासने करजो सनाथ० मु.॥१॥ चंद्रप्रभ जिनराजीया, तुज वास विषमो दुर; मळवा मन अलजो घणो, किम आवीये हजुर० मु०.।।२।। विरह वेदना आकरी, कही पाठवू कुण, साथ; पंथी तो आवे नही, ते मारगे जगनाथ० मु.॥३॥ तुं तो निरागी छे प्रभु, पण वालहो मुज जोर; ओक पखी प्रीतडी, जिम चंद्रमाने चकोर०..मु० ॥४॥ तुम साथे जे प्रीतडी, अतिविषम खांडाधार; पण तेहना आदरथकी, तस फळ तणो नहिपार. मुज०॥५॥ अमे भक्ति योगे आणशुं, मन मंदिरे तुज आज; वाचक विमळना रामशें, घj रीझशो महाराज०..मु०.॥६॥
(5) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन चंद्रप्रभ चित्तमां वस्यां रे, जीवण प्राण आधार रे, तुम बिन को दिसे नहि रे, भवि जीवने सुखकार रे चंद्र० ॥१॥ निश दिन सुता जागता रे, चित्तधरुं तारुं ध्यान रे, रात दिवस तळसे बहु रे, रसना तुम गुण गान रे. ॥२॥ माहरे तुम सरीखो नहि रे, मुज सरिखा तुम लाख रे, तोही निज सेवक भणी रे, कांईक करुणा दाख रे, ॥३॥ अंतर जामी तुं खरो रे, न गमे बीजु नाम रे; सेवक अवसर आवीयो रे, राखो अनी माम रे. ॥४॥ करुणा वंत कृपा करीने, आपो निज पद वास रे, उदय रत्न अम उच्चरे रे, दिजे तत्व सुवास रे. चंद्रप्रभ० ॥५॥ (6) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन (राग - ऊंची तलावडीनी कोर....) ___ तुंही साहिबा मन मान्या हो साहिबा(२) ...तुंही० (१) तुंतो अकल स्वरूपी जगतमां, मनमां केणे न पायो, शब्दे बोलावी ओळखाव्यो, हो
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साहिबा (२)...तुंही० (२) शब्दातीत कहायो हो, साहिबा० (२)...तुंही रूप निहाळी परिचय किनो, रूपमाही नहिं आयो, प्राति हारज अतिशय नाणे, शास्त्रमा बुद्ध न लखायो (२)...तुंही० (३) शब्द न रूप न गंध न रस नहि, फरस न वरण न भेद, नहि संज्ञा नहि छेदन भेदन, हास्य नहि नहि खेद (२)...तुंही० (४) सुख नहिं दुःख नहि वळी वांछा नहि रोग, योग ते भोग नहि गति नहि थीती नहि रति अरती नहि तुज हर्ष शोग (२) ...तुंही० (५) पुन्य न पाप न बंधन छेदन, जन्म न मरण न पीडा, राग न द्वेष न कहत न भय नहि नहि संताप न क्रिडा(२) ...तुंही० (६) अलख अगोचर अज अविनाशी, अविकारी निरूपाधि, पुरण ब्रह्म चिदानंद साहिबा, ध्यावो सहज समाधि, (२) ...तुंही० (७) जे जे पूजो ते ते अंगे, तुं तो अंगथी दूर, माटे पूजा उपचारक न धरे ध्यान ने पूर(२) ...तुंही० (८) चिदानंद घन केरी पूजा, निर्विकल्प उपयोग, आतम परमातमने अभेदे, नहि कोई जडनो योग, (२) ...तुंही० (६) रूपातित ध्यानमा रहेतां, चंद्रप्रभु जिनराया मानविजय वाचक एम बोले, प्रभु सरखाईन थाय (२) ...तुंही० (१०)
(7) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन चंद्रप्रभुजी मने तारो, खरो आशरो मने अक तारो, चंद्रप्रभु मने तारो राज तारो तारो प्रभुजी मने तारो, खरो आशरो मने अक तारो। नरकनिगोदमां भवभव भमीयो, छेदन-भेदन खमीयो, परवशमां पण कर्मे दमीयो, काळ अनादि निर्गमीयो हो राज० (१) भाग्य उदयथी नरभव पायो, विषयातुर थई फरीयो, पुन्य पापनी खबर पडेना, पापनो पोटलो भरीयो हो राज० (२) रात-दिवस धन कारण रळीयो, ज्यां त्यां अति आथडियो, हो राज रतिभर जेटलुं धनं नवि मळीयु, निबीड विघन घन नडीयो हो राज० (३) भान पोतानुं हुं प्रभु मूल्यो, फोगट गुण विण फूल्यो, जन्म अनंता गर्भे झुल्यो, दुःखना दरियामां डूब्यो हो राज० (४) दान सुपात्रे में नवि दीधुं, शियळ न पाळ्युं शुद्ध, किंचित् तप पण में नवि कीर्छ, भाव पियूष मत पीधुं हो. राज० (५) जालिम कोधानलथी बळीयो, गर्वेमहोरगे गळीयो हो राज माया सांकळथी सांकळीयो, लोभ-पिशाचे छलीयो हो राज० (६) क्षमानिधि तुज चरणकमलमां, आजे अंतर्यामी हो राज निराश्रयी थई अरज
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करूं छु, चरणे पड्यो हुं स्वामी हो राज० (७) दिन-दयाळ दया दिल धारो, दारिद्र दुःख विदारी हो राज उदय रत्न कहे आज प्रभुजी, लेजो भवथी उगारी हो राज० (८)
(8) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन श्री शंकर चंद्रप्रभु रे लो, तुं ध्याता जगनो विभु रे लो । तिणे हुं ओलगे आवीयो रे लो, तुं पण मुज मन भावीयो रे लो । १ दीधी चरणनी चाकरी रे लो, हुं से, हरखे करी रे लो | साहिब सामु निहाळजो रे लो, भवसमुद्रथी तारजो रे लो । २ अगणित गुण गणवा तणी रे लो, मुज मन होंश धरे घणी रे लो | जिम नभने पाम्या पखी रे लो, दाखे बाळक करथी लखी रे लो । ३ जो जिन तुं छे पांशरो रे लो, कर्म तणो शो आशरो रे लो । जो तुमे राखशो गोदमां रे लो, तो किम जाशुं निगोदमां रे लो । ४ जब ताहरी करूणा थई रे लो, कुमति कुगति दूरे गई रे लो | अध्यातम रवि उगीयो रे लो | पाप तिमिर किहां पुगीयो रे लो । ५ तुज मूरति माया जीसी रे लो | उर्वशी थई उरे वसी रे लो | रखे प्रभु टाळो एक घडी रे लो, नजर वादळनी छांयडी रे लो । ६ ताहरी भक्ति भली बनी रे लो, जिम औषधि संजीवीनी रे लो । तन मन आनंद उपन्यो रे लो, कहे मोहन कवि रूपनो रे लो । ७ (9) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन (हारे मारे धर्म जिणंद| लागी पूरण) ___हारे मारे चंद्रवदनजिन चंद्रप्रभु जगनाथजो । दीठो मीठो इठो जिनवर आठमो रे लो। हारे मारे मनडानो मानीतो प्राण आधार जो। जग सुखदायक जंगम सुर शाखी समो रे. लो। १ हारे मारे शुभ आशय उदयाचलः समकित सुरजो। विमल दशा पूरवदिशि उग्यो दीपतो रे लो। हारे मारे मैत्री मुदिता करुणाने माध्यस्थ जो। विमल विवेक सुलंछन कमळ विकासतो रे लो। २ हारे मारे सद्हणा अनुमोदन परिमल पूरजो। पसर्यो मन मानस सर अनुभव वायरो रे लो। हारे मारे चेतन चकवा उपशम सरोवर नीरजो। शुभमति चकवी संगे रंगरमत करे रे लो। ३ हारे मारे ज्ञान प्रकाशे नयन खुल्यां मुज दोयजो। जाणे रे षटद्रव्य स्वभाव यथापणे
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रे लो। हारे मारे जड चेतन भिन्नाभिन्न नित्यानित्य जो। रूपी अरूपी आदि स्वरूप आपापणे रे लो। ४ हारे मारे लखगुण दायक लखमणा राणी नंदजो। चरण सरोरूह सेवा मेवा सारखी रे लो। हारे मारे पंडित श्री गुरू क्षमाविजय सुपसाय जो। मुनि जिन जंपे जगतमां जोतां पारखी रे लो। ५
(10) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन जिनजी चंद्रप्रभ अवधारों के, नाथ निहाळजो रे लोल, बमणी बिरूद गरीब निवाज के, वाचा पाळजो रे लोल...हरखे हुं तुम शरणे आव्यो के, मुजने राखजो रे लोल, चोरटा चार चुगल जे भुंडा के, ते दूरे नाखजो रे लोल...प्रभुजी पंचतणी परशंसा के, रूडी थापजो रे लोल, मोहन महेर करीने दरिसन के, मुजने आपजो रे लोल...तारक तुम पालव में झाल्यो के, हवे मुने तारजो रे लोल, कुतरी कुमति थई छे केडे के, तेहने वारजो रे लोल...सुंदरी सुमति सोहागण सारी के, प्यारी छे घणी रे लोल, तातजी ते विण जीवे के, चौद भुवन कर्यु आंगणुं रे लोल...लखगुण लखमणा राणीना जाया के, मुज मन आवजो रे लोल, अनुपम अनुभव अमृत मीठी के, सुखडी लावजो रे लोल...दीपती दोठसो धनुष प्रमाण के, प्रभुजीनी देहडी रे लोल, देवनी दश लखपूरव मान के, आयुष वेलडी रे लोल...निर्गुण नीरागी पण हुं रागी के, मनमाहे रह्यो रे लोल, शुभगुरू सुमतिविजय सुपसाय के, रामे सुख लह्यो रे लोल.... (11) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन (सुमतिनाथ गुण शुं मिलीजी)
श्री चंद्रप्रभ माहराजी, तुमे छो दीनदयाळ, महेर धरो मुज उपरेजी, विनती मानो कृपाल, ससनेहा प्रभु शुं लाग्यो अविहड नेह, जिम चातक मन मेह, स० १ सज्जनशुं जे नेहलोजी, करतां बमणो रंग, दुर्जनजनशुं प्रीतडीजी, क्षण क्षणमां मन भंग स० २ उत्तम जनशुं रूसणांजी, तेह पण भलां निरधार। मूरख जनशुं गोठडीजी, करतां रस न लगार। ३ मनमा इम जाणी करीजी, आव्यो तुमारी पास । निरवहीए हवे मुजनेजी, जिम पहोंचे मननी आश। स० ४बहुलपणे शुं दाखीयेजी, तुमे छो बुद्धि निधान । प्रेम विबुधना भाणशुंजी, राखो प्रीत प्रधान । स० ५
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(12) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन हे सखी मुने देखण दे, हो सखी मुने देखण दे, | उपशम रसनो कंद, हो सखी० सेवे सुरनर वृंद, हो सखी० गत कलिमल दुःख वृंद हो सखी०॥१॥ सूक्ष्म निगोद न देखियो, स० बादर अतिहि विशेष; पूढवी आउन लेखियो, स० तेउ वाउन लेश, हो० स०॥२॥ वनस्पति अति घण दिहा, स० दीठो नहि देदार, बिति चउरिन्द्रिय जल लीहा, स० गत सन्नि पण धार, हो० स०॥३॥ सुरतिरि निरय निवासमां, स० मनुज अनारज साथ, अपज्जता प्रति भासमां, स० चतुर न चढीयो हाथ, हो स०॥४॥ एम अनेक थल जाणिये स० दरिशण विणु जिनदेव, आगमथी मति आणिये स० किजिये निर्मल सेव हो सखी०॥५॥ निर्मल साधु भक्ति लही, स० योग अवंचक होय, किरिया अवंचक तिम सही, स० फल अवंचक जोय हो सखी०।६।। प्रेरक अवसर जिनवरू स० मोहनिय क्षय जाय, कामित पूरण सुरतरू स० आनंदधन प्रभुपाय हो सखी०।।७।।
(1) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन ॥१॥ में कीनो नही तुम बीन ओरशुं राग रे दिन दिन वान वधे गुण तेरो, जयुं कंचन परभाग; औरन में है कषायकी कलिमा, सो कयुं सेवा लाग रे,...मे किनो०॥२॥ राजहंस तुं मान सरोवर, और अशुचि रुचि काग; विषय भुजंग गरुड कहीये, और विषय विषनाग,..रे में कीनो० ॥३॥
और देव जल छिल्लर सरीखे, तुं तो समुद्र अथाग; रे तुं सुरतरुं जन वांछित पूरण और तो सुको साग..रे में कीनो० ॥४॥ तुं पुरुषोत्तम तुहि निरंजन, तुं शंकर वडभाग; रे तुं ब्रह्मा तुं बुद्ध महाबल, तुहिज देव वितराग..रे, में कीनो० ॥५॥ सुविधिनाथ तुम गुण फुलनको, मेरो दिल है बाग; रे जश कहे भ्रमर रसिक होई ताको, दिजे भक्ति पराग..रे में कीनो० ॥६॥
(2) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन सुविधि सुविधिना रागी, अक अरज करुं पाय लागी; दीदार दीठे वडभागी भली भाग्य-दशा मुज जागी रे. ॥१॥ सुण शिवरमणीना कंत, मनमोहन तुं गुणवंत; सुख वंछित दीजे संत, प्रभु पाम्या जेह अनंत हो०
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।।२।। लायकथी लायक लाज, लहीये महीयल महाराज हो; गुणग्राही गरीब निवाज, पय प्रणमी कहं प्रभु आज हो० ॥३॥ रागी रस अनुभव दीजे, सुपसाय ओ तो अम कीजे हो; साचाने साच दाखीजे, जिनजी तो जस पामी जेहो. ॥४॥ मत चूको मानव! खेव, तारक छे ओही ज देव हो; जग जागृत्ति छे नितमेव, कहे जीवण प्रभु पय सेव हो. ॥५॥
(3) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन सुविधि जिणंद मुजने दरिशण धोने, दिलभर दिलथी मारा सामु जुवोने, हसी तारा दिलनी वातो मने ते कहोने, प्रीतनी रीतमां शुं ते वहोने, ॥१॥ अंतर चित्तनी वारतारे, प्रभु कहुं ते चित्त धरोने, प्रीत प्रतित जिम उपजेरे, तिम अविहड प्रीत करोने, ॥२॥ सुंदर तुम मुख मरकडेरे, प्रभु लोभाव्यां ते अमने, मुजमन मलवा अति घणोरे, चाहे क्षण क्षणमां हे तुजने ॥३॥ ललचावशो दिन केटलारे, इम मुजने दिलासो देइने, हा ना मुखथी भाखीयेरे, बेसी शुं रह्यां मौन लइने ॥४॥ हसीत वदने बोलावीने रे, आज मुजने राजी करोने, वांछित देई अमनेरे, तमे शुं जगमां जश वरोरे ॥५॥ रोग शोक दुःख दोहग, पाप संतापने ताप हरोने, पंडित प्रेमना भाणने रे, प्रसन्न होजो हेज धरीने ॥६॥ (4) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन (राग -- ओ परम कृपालु....) ___ सुविधि जिनेसर साहिब सांभळो, तुमे छो चतुर सुजाणोजी, साहिब सन्मुख नजरे जोवतां, वाधे सेवक वानोजी,....(१) भवमंडपमां रे भमतां जगगुरु, काळ अनादि अनंतो जी, जन्ममरणनां दुःख ते आकरां, हजुए न आव्यो अंतोजी....(२) छेदन भेदन वेदन आकरी, गुणनिधि नरक मोझारोजी, क्षेत्रकुंभी वैतरणी वेदना, कहेतां न आवे पारोजी....(३) विवेक रहित विकल पणे करी, न लह्यो तत्त्व विचारोजी, गति तिर्यंचमां परवशपणे करी, सह्या दुःख अपारोजी....(४) विषय संगी रे रंगे राचीयो, बंधाणो मोह पासोजी, अमरी संगे रे सुर भव हारीओ, कीधो दुर्गति वासोजी....(५) पून्य महोदय जगगुरु पामीयो, उत्तम नर अवतारोजी, आरजक्षेत्रे रे सामग्री धर्मनी, सद्गुरु संगति सारोजी....(६) ज्ञानानंदे रे पूरणपावनो, तीर्थपति
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जिनराजोजी, पुष्टालंबन करतां जगगुरु, सिध्यां सेवक काजोजी,....(७) नाम जपंता रे सवि मळे, स्तवतां कारज सिद्धोजी, जिन उत्तम पद पंकज सेवतां, 'रतन' लहे नवनिधोजी....(८) (5) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन (राग - ओली चंदन बाळाने....)
___ लाग्यो लाग्यो प्रभु शुं नेहरे (२) वसीयो हइडामां, मारो साहिबो अति ससनेह (२) वसीयो हइडामां....(१) दर्शन प्रभुजीनुं देखतां रे, जोतां मुखनी ज्योत रे, दुरित पडल दूरे कर्या रे वारी, प्रगट्यो ज्ञान उद्योत रे....वसीयो० (२) सुरत मनडामां वसी रे, कागळ जिम चित्राम रात-दिवस सूतां जागतां रे, हुं तो नित समरूं प्रभु नामरे,....वसीयो० (३) जेहना मनमां जेह वस्यां रे, तेहने तेह शुं नेह रे, मधुकरने मन मालती रे, जिम मोर तणे मन मेह रे....वसीयो० (४) देव अवर देखी घणा रे, किहां न माने मन्न रे, प्रभुगुण सांकळे सांकल्यो तो आलोये नहि अन्न....वसीयो० (५) साहिब सुविधि जिणंदनी रे, हुं चाहं भवोभव सेव रे, हंसरतन कहे माहरे कांई, लागी एह ज टेव रे....वसीयो० (६) (6) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन (स्वामी तुमे कांई कामण कीg)
__ अरज सुणो एक सुविधि जिनेसर,। परम कृपानिधि तुं परमेसर, । साहिबा सुज्ञानी जोवो तो। वात छे मान्यानी,। कहेवाओ पंचम चरणना धारी, किम आदरी अश्वनी असवारी,। सा० १ छो त्यागी शिववास वसो छो, सुग्रीव सुत रथे किम बेसो छो, । आंगी प्रमुख परिग्रहमां पडशो, हरि हरादिकने किणविध नडशो,। सा० २ धुरथी सकल संसार निवार्यो, किम फरी देव द्रव्यादिक धार्यो,। तजी संजमने थाशो गृहवासी, कुण आशातना तजशे चोराशी, सा० ३ समकित मिथ्यामतमें निरंतर, इम किम भांजशे प्रभुजी अंतर, लोक तो देखशे तेहबुं कहेशे,। इम जिनता तुम किणविध रहेशे। सा० ४ पण हवे शास्त्र गते मति पहोंची, तेहथी में जोडे उंडे आलोची। इम कीधे तुम प्रभुताई न घटे, साहमुं इम अनुभव गुण प्रगटे । सा० ५ हय गय यद्यपि तुं आरोपाए, तो पण सिद्धपणुं न लोपाए। जिम मुगुटादिक भूषण कहेवाये, पण कंचननी कंचनता न जाये,। सा० ६
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भक्तनी करणी दोष न तमने, अघटित कहेवू अयुक्त ते अमने, लोपाये नहि तुं कोईथी स्वामी, मोहन विजय कहे शिरनामी। सा० ७ (7) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन (तुं पारंगत तुं परमेश्वर)
ताहरी अजबशी योगनी मुद्रा रे, लागे मने मीठी रे | ए तो टाले मोहनी निद्रा रे, प्रत्यक्ष दीठी रे। लोकोत्तरथी जोगनी मुद्रा, व्हाला मारा, निरूपम आसन सोहे। सरस रचित शुकलध्याननी धारे, सुर नरना मन मोहे रे लागे० १ त्रिगडे रतनसिंहासने बेसी, व्हाला मारा, चिहुं दिशेचामर ढलावे । अरिहंतपद प्रभुतानो भोगी, तो पण जोगी कहावे रे | लागे० २ अमृत झरणी मीठी तुज वाणी, व्हाला मारा, जेम आषाढो गाजे, कान मारग थई हियडे पेसी, संदेह मनना भांजे रे,। लागे० ३ कोडि गमे उभा दरबारे, व्हाला मारा, जयमंगल सुर बोले,। त्रण भुवननी रिद्धि तुज आगे। दीसे इम तृण तोले रे, । लागे० ४ भेद लहुं नहि जोग जुगतिनो, व्हाला मारा सुविधि जिणंद बतावो, । प्रेमशुं कान्ति कहे करी करूणा, मुज मनमंदिर आवो रे, । लागे० ५ (8) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन (दुःख दोहग दूरे टळ्यां रे)
ज्ञानी शिर चूडामणिजी, जगजीवन जिनचंद। मळीयो तुं प्रभु आ समेजी, फळीयो सुरतरू कंद। सुविधि जिन, तुमशुं अविहड नेह, जिम बपैया मेह। सु० १ मानुं हुं मरूमंडलेजी, पाम्यो सुरतरुं सार। भूख्याने भोजन भलुंजी, तरस्यांने अमृत वारि। सु० २ दूषित दुषमा काळमांजी, पूरव पुन्य प्रमाण । तुं साहिब जो मुज मिल्योजी, प्रगट्यो आज विहाण । सु० ३ समरण पण प्रभुजी तणुंजी, जे करे ते कृतपुन्य। दरिशन जे आ अवसरेजी, पामे ते धन्य धन्य । सु० ४ जगजीवन जग वालहोजी, भेट्यो तुं ससनेह। धन्य दिवस धन्य आ घडीजी, धन्य मुज वेळा एह। सु० ५ आज भली जागी दिशाजी, भागी भावठ दूर। पाम्यो वंछित कामनाजी, प्रगट्यो सहज सनूर, सु० ६ अंगीकृत निज दासनीजी, आशा पूरो देव । नयविजय कहे तो सहिजी, सुगुण साहिबनी सेव। सु० ७
(9) श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन । सुविधि जिन त्रीगडे छाजे, देव दुंदुही गयणे गाजे, शिर उपर छत्र
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बिराजे हो, देव प्यारा, दरिशन तमारे जावू, ॥१॥ सम पंच वर्ण फूल, देव वरसावे बहु मूल, पामे समकित अनुकुल हो, ॥२॥ पूंठे भामंडल झलके, दुगपासे चामर ललके, स्वर झीणी घुघरी रणके हो० ॥३।। सिंहासन वृक्ष अशोक, दल फलनी शी कहुं शोक, मांहे दानव मानव थोक हो दे०॥४॥ दूध साकर मेवा दाक्ष, पाकी सहकारनी शाख, तेहथी मीठी तुम्ह भाख हो, दे०॥५॥ भवोभवना ताप समावे, एक वचने सहु समजावे, वळी बीज धर्मनुं वावे हो, दे०॥६॥ सुणी बारे पर्षदा हर्षे, संयम सुख समता फरशे, सेवक जिन तेहने तरशे, हो देव प्यारा, दरीशन तुमारे जावू।।७।।
(1) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन ॥१॥ मुज मनडामां तुं वस्यो रे, ज्युं पुष्पोमां वास, अलगो न रहु ओक घडी रे, सांभरे श्वासोश्वास; तुमशुं रंग लाग्यो, रंग लाग्यो साते घात, रंग लाग्यो श्री. जिनराज, रंग लाग्यो त्रिभुवन नाथ. ॥२॥ शितलस्वामी जे दिने रे, दीठो तुम देदार; ते दिनथी मन माहरु रे, प्रभु लाग्युं ताहरी लार. तुंज°० ॥३॥ मधुकर चाहे मालती रे, चाहे चंद्र चकोर, तिम मुजने प्रभू ताहरी रे, लागी लगन अति जोर, तुजशुं० ॥४॥ भर्या सरोवर उलटे रे नदियां नीर नमाय, तोपण जांचे मेघकुंरे, जिम चातक जगमांय, तुमशुं० ॥५॥ तिम जगमांहे तुम विना रे, मुज मन नावे रे कोय; उदय वदे पद सेवना रे, प्रभु दीजे सन्मुख जोय...तुजशुं० ॥६॥
(2) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (राग - हेले चड्यां रे हैयां) ___ भक्तिनो भीनो मारो, मुजरो ते ल्योने मारो, मुजरो ते ल्योने, नेहने सलूणो, तारो दरिसण धोने, मारा ते दिलमां आवी वसोने....(१) शितलजिन त्रिभुवन धणी रे, प्रभु सेवकने चित्त रहोने, दास कहावो आपनो रे, प्रभु सेवकनी लाज वहोने....(२) जाणपणुं मे ताहरुं रे, प्रभु ते नवि दीर्छ क्याहीने, रे मोहनमुद्रा देखीने रे, प्रभु वसो मुज हैयामाही रे....(३) रात-दिवस तुज गुण जपुं रे, प्रभु ते बीजं क्यायन सुहाय रे, जीम जाणो तिम राखजो रे, प्रभु हुं वळग्यो तुम पाये रे....(४) नरक निगोद तणा धणी
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रे, प्रभु जे ते झिल्या लही रे, तेह थया तुज सरीखा रे, प्रभुजी वाध्यो वधतो वान, 'विमल विजय' उवज्झायनोरे, प्रभु 'राम' करे गुणगान रे (६)
(3) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (राग - शास्त्रीय)
शितलजिन मोहे प्यारा हो साहिब, शितलजिन मोहे प्यारा, भुवन विरोचन पंकज लोचन, जिउके जीउ हमारा....साहिब० (१) ज्योतिशुं ज्योत मिलत जब ध्याये, होवत नहि तब न्यारा, बांधी मुठी खुले भव-माया, मीटे महा भ्रम भारा....साहिब० (२) तुम न्यारे तब सबही न्यारा, अंतर कुटुंब उदारा, तुमही नजीक नजीक है सबही, ऋद्धि अनंत अपारा.... साहिब० (३) विषय लगन की अग्नि बुझावत, तुम गुण अनुभव धारा, भई मगनता तुम गुण रसकी, कुण कंचन कुण दारा....साहिब० (४) शीतलता गुण होत करत तुम चंदन काही बिचारा, नामही तुम ताप हरत है, वांकु घसत घसारारे....साहिब० (५) करहुं कष्ट जन बहुत हमारे, नाम तिहारो आधारा, जस कहे जन्ममरण भय भागो, तुम नामे भवपारा रे....साहिब० (६)
(4) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन ए तो श्री शितलजिन मेरा, मेंतो चरणा ग्रह्या प्रभु तेरा अब दूर करो भवफेरा रे, प्रभु माहरे मन मान्या,....(१) ए तो शितल मुद्रा जेहनी, वळी शितलवाणी तेहनी, तेह सम सुंदरता केहनी....प्रभु० (२) तुम शितल नाम प्रधान, मुज तनमन करी एकतान, तुम नामे करुं कुरबान रे....प्रभु० (३) तुम वाणी घणी इष्ट, साकरद्राक्षथी अधिक मिष्ट, अतो लागे छे मुज मन इष्ट रे....प्रभु० (४) निज चरणोनी सेवा देजो, निज बालक परे मने गणजो, बाह्यग्रहीने तुम निरवहो जो हो....प्रभु० (५) ए तो प्रेम विबुध सुपसाय, भाण विजय नमे तुज पाय, तुम दरिसणे आनंद थाय रे....प्रभु० (६) (5) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (राग - मारा गुरुनी वात न)
शितलजिन सोहामणा रे, हुलरावे नंदा माय रे, बालुडा मारा हो नानडिया मारा, हुलरावे नंदा माय रे, रत्न समोवडी तुज छेने, दीठे अम सुख थाय....बालुडा० (१) मुखडे चंद्र हरावीया रे, तेजे सूरज कोडी रे रूप
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अनुपम ताहरुं रे, अवर न ताहरी जोड रे....बालुडा० (२) आंखडी कमलनी पांखडी रे, चाले हार्यो हंस, तुजथी अम सौभाग्य छ रे, पवित्र कर्यो अम वंश रे, । (३) जे भावे ते सुखडी रे, ल्यो आपुं धरीने स्नेह रे खोळामांहे बेसीए रे, तुं अम मनोरथ मेह रे । (४) अमीय समाणे बोलडे रे, बोल चतुर सुजाण रे, भामणा लेउ ताहरारे, तुं अम जीवन प्राण रे, । (५) खम्मा खम्मा मुख उच्चरे रे, जीवो तुमे कोडी वरीस रे, ज्ञान विमल जिनने मावडी रे, दीये नित्य एम आशिष रे, । (६) (6) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (आनंदधनजी कृत स्तवन)
शीतळ जिनपति ललित त्रिभंगी, विविधभंगी मन मोहे रे; करुणा कोमळता तीक्षणता, उदासीनता सोहे रे, ।शी०। १ सर्वजंतु हितकरणी करुणा, कर्मविदारण तीक्षण रे; हाना दान रहित परिणामी, उदासीनता वीक्षण रे ।शी०। २ परदुःख छेदन इच्छा करुणा, तीक्षण परदुःख रीझे रे; उदासीनता उभय विलक्षण, एक ठामे किम सीझे रे ।शी० । ३ अभयदान ते मलक्षय करुणा, तीक्षणता गुण भावे रे; प्रेरण विण कृत उदासीनता, इम विरोध मति नावे रे ।शी०। ४ शक्ति व्यक्ति त्रिभुवन प्रभूता, निर्ग्रन्थता संयोगे रे; योगी भोगी तक्ता मौनी, अनुपयोगी उपयोगी रे ।शी०। ५ इत्यादिक बहु भंग त्रिभंगी, चमत्कार चित्त देती रे; अचरिजकारी चित्रविचित्रा, आनंदघन पद लेती रे ।शी०। ६
(7) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन श्री शीतलजिन भेटिये, करी भगते चोखं चित्त हो; तेह थी कहो छार्नु किशुं, जेहने सोंप्यां तन मन वित्त हो, श्री० १ दायक नामे छे घणां, पण तुं सायर ते कूप हो; ते बहु खजुआ तगतगे, तुं दिनकर तेज स्वरूप हो, श्री० २ मोटो जाणी आदर्यो, दारिद्र भांजे जग तात हो; तुं करुणावंत शिरोमणी, हुं करुणापात्र विख्यात हो, श्री० ३ अंतरयामी सवि लहो, अम मननी जे छे वात हो; मा आगळ मोसाळना, श्या वरणववा अवदात हो, श्री० ४ जाणो तो ताणो किशुं, सेवाफल दीजे देव हो; वाचक जश कहे ढीलनी, ए न गमे मुज मन टेव हो, श्री० ५
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(8) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन शीतल जिनपति प्रभुता प्रभुनी, मुजथी कहीय न जायजी; अनंतता निर्मलता पूर्णता, ज्ञान विना न जणायजी, शी० १ चरम जलधि जल मिणे अंजलि, गति जीपे अति वायजी; सर्व आकाश उल्लंघे चरणे, पण प्रभुता न गणायजी, शी० २ सर्व द्रव्य प्रदेश अनंता, तेहथी गुण पर्यायजी; तास वर्गथी अनंतगणुं प्रभु, केवलज्ञान कहायजी, शी० ३ केवल दर्शन एम अनंतु, ग्रहे सामान्य स्वभावजी; स्वपर अनंतथी चरण अनंतु, समरण संवर भावजी, शी० ४ द्रव्य क्षेत्र ने काळ भाव गुण, राजनीति ए चारजी; त्रास विना जड चेतन प्रभुनी, कोई न लोपे कारजी शी० ५ शुद्धाशय थिर प्रभु उपयोगे, जे समरे प्रभु नामजी; अव्याबाध अनंतुं पामे, परम अमृत सुख धामजी, शी० ६ आणा ईश्वरता निर्भयता, निर्वांछकता रूपजी; भाव स्वाधीन ते अव्यय रीते, इम अनंतगुण भूपजी, शी० ७ अव्याबाध सुख निर्मल ते तो, करण ज्ञाने न जणायजी, तेहज एहनो जाणग भोक्ता, जे तुम सम गुणरायजी, शी० ८ इम अनंत दानादिक निज गुण, वचनातीत पंडुरजी; वासन भासन भावे दुर्लभ, प्राप्ति तो अति दूरजी, शी० ६ सकळ प्रत्यक्षपणे त्रिभुवन गुरु, जाणुं तुज गुणग्रामजी; बीजुं कांई न मांगु स्वामी, एहि ज छे मुज कामजी, शी० १० इम अनंत प्रभुता सदृहतां, अरचे जे प्रभु रूपजी; देवचंद्र प्रभु प्रभुता ते पामे, परमानंद स्वरूपजी, शी० ११
(9) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (सनेही संत ए गिरि सेवो) ___ शीतलजिन सहजानंदी, थयो मोहनी कर्म निकंदी। परजायी बुद्धि निवारी पारिणामिक भाव समारी,। मनोहर मित्र ए प्रभु सेवो, दुनियामां देव न एहवो,। म० १ वर केवलनाण विभासी,। अज्ञान तिमिर भर नाशी, जयो लोकालोक प्रकाशी, गुण पज्जव वस्तु विलासी। म० २ अक्षय थिति अव्याबाध, दानादिक लब्धि अगाध । जेह शाश्वत सुखनो स्वामी, जड इन्द्रिय भोग विरामी,। म० ३ जेह देवनो देव कहावे, योगीश्वर जेहने ध्यावे,। जस आणा सुरतरू वेली, मुनि हृदय आरामे फेली। म० ४ जेहनी शीतलता संगे, सुख प्रगटे अंगो अंगे। क्रोधादिक ताप समावे,। जिन विजयानंद सभावे । म० ५
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(10) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (दीठी हो प्रभु दीठी जगगुरू)
सेवो हो सखी सेवो शीतलनाथ, साथ ज हो सखी साथ ए शिवपुर तणोजी। महमहे हे सखी महमहे जास अनूप। महिमा हे सखी महिमा महिमांहे घणोजी।१। मोटो हे सखी मोटो हे जगदीश, जगमां ए सखी जगमां ए प्रभु जाणीयेजी। अवर न हे सखी अवर न कोई इश, एहनी हे सखी एहनी ओपमा आणीयेजी ।२। प्रभुता हे सखी प्रभुतानो नहि पार | सायर हे सखी सायर परे गुणमणि भर्योजी। मूरति हे सखी मूरति मोहनगार, हरि परे हे सखी हरि परे शिवकमला वॉजी।३। तारक हे सखी तारक सकल जहाज, आपे हे सखी आपे भवजल निस्तॉजी। सुरमणि हे सखी सुरमणि जेम सदैव, संपद हे सखी संपद सवि अलंकर्योजी । ४ । ए सम हे सखी ए सम अवर न देव, सेवा हे सखी सेवा एहनी कीजीयेजी। कीजीये हे सखी कीजीये जन्म कयथ्थ । मानव हे सखी मानवभव फळ लीजीयेजी। ५ । पूरे हे सखी पूरे वंछित आश, चूरे हे सखी चूरे भवभय आपदाजी। सुरतरू हे सखी सुरतरू जेम सदैव, आपे हे सखी आपे शिवसुख संपदाजी।६। धन धन हे सखी धन धन तस अवतार, जेणे हे सखी जेणे तुं प्रभु भेटियाजी। पातक हे सखी पातक तस गयां दूर, भवभय हे सखी भवभय तेणे मेटीयोजी |७। पामी हे सखी पामी तेणे नवनिधि, सिद्धिज हे सखी सिद्धिज सघळी वश करीजी। दूरगति हे सखी दूरगति वारी दूर | केवल हे सखी केवल कमला तिणे वरीजी | ८ | सेवी हे सखी सेवी साहिब एह, हरिहर हे सखी हरिहरने कहो कुण नमेजी। चाखी हे सखी चाखी अमृत स्वाद, बाकस हे सखी बाकसबूकस कुण जमेजी।६। पामी हे सखी पामी सुरतरू सार । बाउल हे सखी बाउल वनमां कुण भमेजी। लेई हे सखी लेई मृगमद वास, पासे हे सखी पासे लसणने कण रमेजी।१०। जाणी हे सखी जाणी अंतर एम, एहशुं हे सखी एहशुं प्रेमज राखीयेजी। लहिये हे सखी लहिये कामित काम, शिवसुख हे सखी शिवसुख सहेजे चाखीयेजी । ११ । नयविजय हे सखी नयविजय कहे धन्य । तेह, अहनिशि हे सखी अहनिशि जे सेवा करेजी, पामे हे सखी पामे नवनिधि सिद्धि, संपद हे सखी संपद सघळी ते वरेजी । १२ ।
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( 11 ) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (रूप अनूप निहाळी सुमतिजिन,
दसमो देव दयाल मयाल मनोहरू, नयनानंद अमंद जिणंद सुहंकरू सेवीजे सुखदाय सुरासुर शिर तिलो, शीतल शीतलवाणी गंभीर गुणनिलो । १ । शीतल चंदन चंद ज्युं दरिशन तुम तणो, निरखी निरखी जिननाह हैये आनंद घणो । धन धन दिन मुज आज दीठो मुख तुज तणो, सुरतरू सुरमणि जेम मनोरथ पूरणो |२| तुं प्रभु रयण निधान प्रधान गुणे करी, द्यो एक समकित रयण वयण मुज मन धरी । भवभव भावठ दूर सांई करूणा करे, रविमंडल ज्युं तिमिर निकर दूरे हरे । ३ । मुज मन निवसी आप भगति प्रभु तुम तणी, तुज दरिशणकी चाह तेणे मुज मन घणी । द्यो दरिशन सुप्रसन्न मनोरथ पूरवो, गुणघातक जे पाप ते मुज चूरवो । ४ । सुण शीतल जिनभाण सुजाण सुहंकरू, दृढरथराय कुलचंद नंदानंदन वरू । कहे केसर जिननाह कहुं एक तुज भणी । आपणो जाणी जिणंद मया करजो घणी । ५ ।
(1) श्री श्रेयांस जिन स्तवन
श्री श्रेयांस जिन अगियारमां सुणो साहिब जगदाधार मोरा लाल; भवोभव भमता जे कर्या, में पाप स्थानक अढार मोरा लाल ... श्री० (१) जीव हिंसा कीधी घणी, वली बोल्यां मृषावाद मोरा लाल; अदत्त पराया आदर्यां, मैथुन सेव्यां उन्माद मोरा लाल ... श्री० (२) पापे परिग्रह मेलीयो, कर्यो क्रोध अगननी जाल मोरा लाल; मान गजेन्द्रे हुं चढयों, पड्यो माया वंश जाळ मोरा लाल ... श्री० (३) लोभे थोभे न आवीयो, रागे न कीधो त्याग मोरा लाल; द्वेषे दोष वाध्यो घणो, कलह कर्यो प्रसिद्ध मोरा लाल... श्री० (४) कूडा आळ दीधा घणां, पर चाडी पापनुं मूळ मोरा लाल; इष्ट मळे रति उपनी, अनिष्टे अरति प्रतिकुळ मोरा लाल... श्री० (५) पर निंदाओ परिवर्यो, वली बोल्या माया मोस मोरा लाल; मिथ्यात्व शल्ये हुं भारीयो, न आण्यो धर्मनो शोष मोरा लाल... श्री० (६) अ पाप थकी प्रभु उद्धरो, हुं आलोउ तुम साख मोरा लाल; श्री खीमा विजय पद सेवतां, जस ने अनुभव गुण दाख मोरा लाल... श्री० (७)
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(2) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (राग -- पनघट पाणी ग्याता)
श्रेयांस जिन सुण साहिबा जिनजी, दास तणी अरदास के दिलडे मारे, के मनडे मारे, वसी रह्या प्रभुजी दूर रह्यां नही जाण्यु रे पास, मृगने ज्यु मधुर आलाप के मोरने० (२) पीछानो कलाप के दिलडे मारे, के मनडे मारे वसी रह्या प्रभुजी (१) हे.... जलथल महियल जोवतारे, वाला चिंतामणी जड्यो हाथ, उणप शी हवे माहरे रे, नीरख्यो नयणे नाथ.... के दिलडे० (२) हे....चरणे तेहने विलगीयेरे जेहथी सीजे काज, फोगट शुं फेरा तिहारे, पूछे नहि तसनाम....के दिलडे० (३) हे.... कूडो कलियुग छोडिने रे व्हाला आप रह्यां एकान्त, सगा-संबंधी राखे घणां रे, पर राखे ते संत.... के दिलडे० (४) हे.... देव घणा में देखीया रे, व्हाला आडंबर पटराय, नैगम नहीं पण सोडथी रे, आछा पसारे पाय,.... के दिलडे० (५) हे.... सेवकने निवाजीए रे व्हाला, तो तिहां स्थाने जाय, निपट निरागी होवतो रे स्वामीपणुं किम थाय,.... के दिलडे० (६) हे....में तो तुजने आदर्यो रे, व्हाला भावे तुं जाण जाण, 'रूप विजय' कविरायनो रे, 'मोहन' वचन प्रमाण.... के दिलडे० (७) (3) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (राग - विषधरीने विषधर सूतो)
तारक बिरुद सुणी करी, हुं आवी ऊभो दरबार.... (२) श्री श्रेयांसजिन साहिबा हुं आवी ऊभो दरबार....(२) प्रभु घणी ताण न कीजीये, मुज उतारो भवपार,....तारक० (१) काळ अनादि दूषण दाखंता, दातार पणुं किम थाय, जो विण आलंबन तारीये, तो जग सघळो जश गाय....(२) बाळकने समजाववा कहेशो, भोळामणीनी वात पण हठ लीधी मूकीश नहि, विण तारे त्रिभुवन तात, (३) जो मन तारण- अछे तो, ढील तणुं शुं काम, चातक निर्मुख दूषणो थई, मेघघटा जग श्याम....(४) तुज दरिशणथी ताहरो, हुं कहेवाणो जगमांही, हवे मुज कोण सोपी शके, बळियानी झाली बांही....तारक० (५) विष्णुकुमार वालेसरु, प्र. सिंह-पुरीनो राय, लाख चोराशी वर्षतुं प्रभु, पाळ्युं पूरण आय,....तारक० (६) धनुष एंशी तणुं शोभतुं, खड्गी लंछन जगदीश, हरख धरीने विनवू श्री सुमतिविजय कवि शीस....तारक० (७)
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(4) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (राग : ये मेरे प्यारे सनम)
तुमे बहु मैत्री साहिबा, मारे तो मन एक रे, (२) तुम विण बीजो नवि गमे, ए मुज मोटी टेक रे, | श्री श्रेयांस कृपा करो रे (१) मन राखो तुमे सवि तणां, पण कीहां एक मळी जाओ रे, ललचावो लख लोकने, साथी सहेज न थाओ रे,....श्री० (२) रागभरे जनमन रहो, पण तिहुं काल विराग रे, चित तुमारो समुद्रनो, कोई न पामे ताग रे,....श्री० (३) एहवा
शुं चित मेळव्युं, केळव्युं पहेलां न कांई रे, सेवक निपट अबुझ छो, निर्वहेशो तुमे सांई रे....श्री० (४) निरागी शं किम मिले पण, मिलवानो एकांत, वाचक यश कहे मुज मिल्यो, भक्ते कामणवंत रे (५)
(5) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (आनंदधनजी कृत स्तवन)
श्री श्रेयांसजिन अंतरजामी, आतमरामी नामी रे; अध्यातम मत पूरण पामी, सहज मुक्ति गति गामी रे | श्री०। १ सयल संसारी इन्द्रिय रामी, मुनिगण आतमरामी रे; मुख्यपणे जे आतमरामी, ते केवळ निःकामी रे । श्री०। २ निज स्वरूपे जे किरिया साधे, ते अध्यातम लहिये रे; जे किरिया करी चउगति साधे, ते न अध्यातम कहिये रे । श्री०। ३ नाम अध्यातम ठवण अध्यातम, द्रव्य अध्यातम छंडो रे; भाव अध्यातम निज गुण साधे, तो तेहशुं रढ मंडो रे | श्री०। ४ शब्द अध्यातम अरथ सुणीने, निर्विकल्प आदरजो रे; शब्द अध्यातम भजना जाणी, दानग्रहण मति धरजो रे ।श्री०। ५ अध्यातम जे वस्तु विचारी, बीजा जाण लबासी रे; वस्तुगते जे वस्तु प्रकाशे, आनंदघन मतवासी रे । श्री०। ६
(6) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (परमातम पूरण कला) .. श्री श्रेयांस जिनेसरू, सेवकनी हो करजो संभाळ तो। रखे विसारी मूकता, होय मोटा हो जगे दिन दयाल तो श्री० १ मुज सरीखा छे ताहरे, सेवकनी हो बहु कोडाकोड तो। पण जे सुनजरे निरखीयो, किम दीजे हो प्रभु तेहने छोडतो श्री० २ मुजने हेज छे अति घj, प्रभु तुमथी हो जाणुं निरधार तो। तो तुं निपट निरागीयो, हुं रागी हो ए वचन विचार तो श्री०
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३ वळी नानुं मन माहरु, हुं तो राखुं हो तुमने ते मांहि तो । हुं रागी प्रभु ताहरो, एकांगी हो ग्रहीये प्रभु बांहि तो । श्री० ४ निगुणो नवि उवेखीये, पोतावट हो इम न होय स्वामि तो, ज्ञानविमल प्रभुशुं करो, विणु अंतर हो सेवक एकतान तो । श्री० ५
( 7 ) श्री श्रेयांस जिन स्तवन ( अनंतवीरज अरिहंत)
श्री श्रेयांस जिणंद, घनाघन गहगह्यो । वृक्ष अशोकनी छाया, सुभर छाई रह्यो। भामंडलनी झलक, झबूके वीजली । उन्नत गढ तिग, इन्द्र धनुष शोभा मिली | १ | देवदुंदुभिनो नाद, गुहिर गाजे घणुं । भाविकजननां नाटिक, मोर क्रिडा भणुं । चामर केरी हार चलंती, बगतति । देशना सरस सुधारस, वरसे जिनपति। २ । समकिति चातकवृंद, तृप्ति पामे तिहां । सकल कषाय दावानल, शान्ति हुई जिहां । जनचित्त वृत्ति सुभूमि, नेहाली थई रही । तेणि रोमांच अंकुर, वती काया लही । ३ । श्रमण कृषिवल सज्ज, हुए तव उज्जमी । गुणवंत जनमनक्षेत्र, समारे, संयमी । करतां बीजाधान, सुधान नीपावता । जेणे जगना लोक, रहे सवि जीवता । ४ । गणधर गिरितट संगी, थई सूत्र गुंथना । तेहज नदी परवाहे, हुई बहु पावना । एहज मोटो आधार, विषम काले लह्यो । मानविजय उवज्झाय, कहे में सद्यो । ५ ।
( 8 ) श्री श्रेयांस जिन स्तवन ( संभव जिनवर विनती )
श्री श्रेयांस कृपा करो, तुं जगबंधव तात रे । अलख निरंजन तुं जयो । तुं छे जगमां विख्यात रे । श्री० १ धन्य धन्य नरभव तेहनो, जेणे तुज दरिशन पायो रे। मानुं चिंतामणि सुरतरु, तस घरे चाली आयो रे । श्री० २ धन्य ते गाम नगरी पुरी, जस घरे तुं प्रभु आयो रे । भगति धरी पडिलाभयो, तेणे बहु सुकृत कमायो रे । श्री० ३ जिहां जिहां इम प्रभु तुं गयो, तिहां बहु पाप पलायो रे । तुज मूरति निरखी भली, जेणे तुं दिलमां धार्यो रे । श्री० ४ हवे प्रभु मुजने आपीये, तुज चरण निवासो रे । रिद्धि अनंती आपीये, कीर्ति अनंती आवासो रे । श्री० ५
(9) श्री श्रेयांस जिन स्तवन ( संभव जिनवर विनती )
श्री श्रेयांस साहिब सुणो, हुं अरज करूं छं जेहो रे । मान गाले जे
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मोहनं, तुज विण नवि दीठो तेहो रे । श्री० १. मोहराजाए मेलीया, आप मनाववा आण रे। युवती रूपे महा जालमी, पायक परम सुजाण रे। श्री० २ खंद्यं खमे सहुं तेहy, कोई न खंडे कारो रे । सुरपति नरपति सहु नरे, आप्यो तस अधिकारो रे । श्री० ३ कयुं न थाए केहY, हरिणाक्षी करे सो होय रे । त्रण भुवनमा तेहर्नु, कथन न लोपे कोय रे । श्री० ४ परे परे तेणे पराभवी, देव कर्या सहु दासो रे । हरिहर ब्रह्मा सारीखा, पलक न छोडे पासो रे। श्री० ५ देव गुरु धर्म दुहवे, गायुं तेहy गाय रे । राजी एहने राखवा, अनेक करे ते उपाय रे। श्री० ६ चोसठ सहस चक्री केडे, इन्द्र केडे कही आठ रे। एक बे चार अनेकने, अनेक करे ते ठाठ रे। श्री० ७ आणज तेहनी उत्थापवा, एक ज तुं अरिहंतो रे। समरथ आ संसारमां, भेट्यो में भगवंतो रे। श्री० प्मान मोडीने मोहर्नु, हेजे राज हजुर रे। उदय कहे हुं आवीयो, आपो बोधि सनूर रे। श्री० ६ (10) श्री श्रेयांस जिन स्तवन (राग : साचो संगम प्रभु साथे)
श्री श्रेयांस प्रभु तणो, अति अद्भूत सहजानंद रे; गुण इक विध परिणम्यो, इम अनंत गुणनो वृंदरे । मुनिचंद जिणंद अमंद दिणंद परे नित, दीपतो सुखकंद रे० १ निज ज्ञाने करी ज्ञेयनो, ज्ञायक ज्ञाता पद इशरे; देखे निज दर्शन करी, निज दृश्य सामान्य जगीश रे, मु० २ निज रम्ये रमण करो प्रभु, चारित्र रमताराम रे; भोग अनंतने भोगवो, भोग विण भोक्ता स्वामी रे, मु० ३ देय दान नित दीजते, अति दाता प्रभु स्वयमेव रे; पात्र तुमे निज शक्तिना, ग्राहक व्यापकमय देव रे, मु० ४ परिणामी. कारज तणो, कर्ता गुण करणे नाथ रे; अक्रिय अक्षय स्थितिमयी, निकलंक अनंती आथ रे, म० ५ पारिणामिक सत्ता तणो,
आविर्भाव विलास निवास रे; सहज अकृत्रिम अपराश्रयी, निर्विकल्पने निःप्रयास रे, म० ६ प्रभु प्रभुता संभारतां, गातां करतां गुणग्राम रे; सेवक साधनता वरे, निज संवर परिणति पाम रे, मु० ७ प्रगट तत्त्वना ध्यावतां, निज तत्त्वनो ध्याता थाय रे, तत्त्वरमण एकाग्रता, पूरण तत्त्वे एह समाय रे, मु० ८ प्रभु दीठे मुज सांभरे, परमातम पूरणानंद रे, देवचंद्र जिनराजना, नित वंदो पद अरविंद रे, मु० ६
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__(1) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन प्रभुजी धरशो ना दिलमां रीश, जिणंदजी धरशो ना दिलमां रीश, तुं दायकने हुं मांगण छं. मांगणीतो मांगीश हठीलो थईने हठ मांडिश...प्रभुजी० ॥१॥ आज काल कही कही ललचावो, दीधुं न हाथथी दान, फरी फरी फेरा फरी थाकयो, तोओ ना दीधुं ध्यान; हवे हुँ घर घर घरj घालीश,...प्रभुजी० ॥२॥ मोख नथी हमणां देवानो, ओम मुखे कहेता शुं थाय, सूडी वच्चे सोपारी आवी अवो बन्यो छे न्याय, छतां नही लीधा विना जइश,...प्रभुजी० ॥३॥ ना कहेता मान रहेता, देता न चाले जीव; दातारथी पण कंजूश सारो, ना कही आपे सदैव, प्रभुजी खाली केम काढीश...प्रभुजी० ॥४॥ ओर्छ थई जाशे ओवा भयथी, देता करो छो विचार; मांग जे मांगे आपु तुजने, ते केम उच्चर्या उच्चार, हवे तुं मुजने | आपीश...प्रभुजी० ॥५॥ दायक बिरुद्ध घरीने बेठा, कल्पतरुनी जेम, हवे याचकनुं वांछित देतां, गुडा घालो छो केम, जगतपति बिरुद केम पाळीश...प्रभुजी० ॥६॥ धार्याथी तने ओछु आपीश, काढीश नहिं नीराश, आटलुं पण नहिं मुखथी बोलो, शुं अम सरसे आश, वळी मुज दारिद्र शुं टाळीश...प्रभुजी० ॥७॥ तुं दारिद्र दावानल समाववा, समजी मेघ समान, वरस वरस कहेतो हुं मुखथी धरुं हुं ताहरुं ध्यान, छतां मने कयां सुधी सतावीश,...प्रभुजी० ॥८॥ वितराग पद पामी पोते, भक्तने रागी कीध, रागी ने शुं आपे निरागी, हवे मे समजण लीध, मुनिश्वर इच्छाने वाळीश, प्रभुजी० ॥६॥ नरपति चंपा नगरी केरा, वासुपूज्य परमेश, चतुर विजयनो किंकर कहे छे, दर्शन ताहरुं हमेश, मळो. मुज उमेद दिल राखीश, प्रभुजी० ॥१०।।
(2) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन (राग-सावन का महिना)
वासुपूज्य स्वामीजीने करुं रे प्रणाम, मूरति सुरति नीरखी हरख्यो, मारो आतमराम, मोरा सुखना ओ ठाम (२) मीठी आंखे देखत मोरी भावठ गई तमाम० (२) (१) अचरिज तारी वार्तामा थयो रे करार, मूढ पणे विसारी मूकी नवि किया निरधार, मारो० (२) अवगुण मुजमां छे घणां पण साहेब न आणो मन, लोक कलंकित थापीयो रे, पण शशीधर राख्यो कंत
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मोरा० (३) भवमां भमतां जोयो में तो तुज सरीखो देव, दीठो तेना कारणे हवे निश्चल करवी सेव, मोरा० (४) ज्ञान-विमल प्रभु ते दियो रे, महेर करो महाराज आटला दिने लेखे गयाने, सफळ थयो अवतार मोरा० (५) (3) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन (राग-मैं तो भूल चली....)
में छोडी और की आश, चाहु. तुम सेवा महाराज० (१) वासुपूज्य पंचमी गति पामी, और में है बहु खामी, तुमे तोडी मोह की पास, चाहुं तुम सेवा महाराज० (२) धनुष तीर गदा चक्रना धारी, कामिनीने संग काम विकारी, ते देव नहीं कांई लाज, चाहुं तुम सेवा महाराज० (३) जवमाला भले रुद्रनी माला, भोग लेवा अति है विकराला, तुम छोडो ते देवनो ख्याल, चाहु तुम सेवा महाराज० (४) भोगविकार ते सघळा स्वामी, तुम भये वासुपूज्य जग स्वामी तुं देवनो देव कहेवाय....चाहुं तुम सेवा महाराज० (५) वासुपूज्य सम देव न दूजो, सुरतरु छोडी बाउल मत पूजो जेथी मनवांछित फल थाय, चाहुं तुम सेवा महाराज० (६) आतम आनंद देजो भारी, इनमे शोभा है प्रभु तारी तुं, 'विरविजय'ने तार, चाहुं तुम सेवा महाराज० (७) (4) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन (राग - शुं ये तारुं मंदिर)
श्री वासुपूज्यजी साहिब मारा, प्रभु लागो छो तुमे प्रेम प्यारा, साहिबा जिनराज हमारा, मोहना जिनराज हमारा, तनमन चित्त वळग्युं तुमशुं, हवे अंतर राखो किम अमशुं० (१) दासनी आश पूरो प्रभु प्यारा, जो नाम धरावो छो जगदातार, अकल लीला तुज पासे जे स्वामी, हित आणी दीजीए अंतरजामी० (२) एटली विमासण शी छे तुजने, ए तो वांछित देता स्वामी मुजने, खोड खजानो नहीं पड़े ताहरो, अक्षय खजानो होशे माहरो० (३) भलो मूंडो पण पोतानो जाणी, वळी करुणानी लहेर मनमां आणी, अमने वांछित देजो प्रभु, हेत धरीने सामुं जो जे० (४) वारंवार कहुं हुं तुमने, सेवाफल देजो स्वामी मुजने, प्रेम विबुधना भाणने प्रभुजी, तुम नामे दोलत चढती विभुजी० (५) (5) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन (राग - श्याम तेरी बंसी) स्वामी तुमे कांई कामण कीg, चितडं हमारुं चोरी लीधुं, साहिबा
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वासुपूज्य जिणंदा, मोहना वासुपूज्य जिणंदा, अमे पण तुम शं कामण करशुं, भक्ते ग्रही मन घरमां धरशुं० (१) मन घरमां धरीया घर शोभा, देखत नित्य रहे थिर शोभा, मनवैकुंठ अकुंठित भक्ते, योगी भाखे अनुभव युक्ते० (२) कलेशे वासित मन संसार, कलेश रहित मन ते भवपार, जो विशुद्ध मन घर तुम आया, तो अमे नवनिधि ऋद्धि पाया० (३) सातराज अलगा जई बेठा, पण भक्ते अम मन मांही पेठा, | अळगाने वळगा जे रहेg, ते भाणा खडखड दुःख सहेवू० (४) ध्याता ध्यान ध्येय गुण एके, भेद छेद करशुं हवे टेके । खीर नीर परे तुमशुं मीलशुं, वाचक जश कहे हेजे हळशुं० (५) (6) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन (राग : जरा सामे जोवानुं तने)
वासववंदित वंदीयेजी, वासुपूज्य जिनराज, मानु अरुण निग्रह कर्योजी, अंतररीपु जयकार गुणाकर अद्भूत ताहरी वात, सुणता होय सुखसात गुणाकर० (१) अंतररीपु कर्म जय कर्योजी, पाम्यो केवळज्ञान शैलेशीकरणे कर्याजी, शेष करम सुहझाण - गुणाकर० (२) बंधन छेदादिक थकीजी, जई फरस्या लोकांत, जीहां निज एक अवगाहनाजी, तिहां भव मुक्त अनंत० (३) अवगाहनां जे मूळ छे जी, तेहमां सिद्ध अनंत । तेहथी असंख्यगुणा होवेजी, फरसीत जिन भगवंत० (४) असंख्य प्रदेश अवगाहनाजी, असंख्य गुणा तिणे होय, ज्योतिमां ज्योति मिल्या परेजी, पण संकीर्ण न होय० (५) सिद्ध बुद्ध परमात्माजी, आधि व्याधि करी दूर | अचल अमल निकलंकतुं जी, चिदानंद भरपुर० (६) निज स्वरूप मांही रमेजी, भेळी रहत अनंत, पद्म विजय ते सिद्धनुं जी, उत्तम ध्यान धरंत० (७) (7) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन (राग : आजनो दिवस मने लागे)
वासु पूज्य जिन त्रिभुवन स्वामी, घननामी परिणामी रे; निराकार साकार सचेतन, करम करमफळ कामी रे॥वा०॥ १ निराकार अभेद संग्राहक, भेद ग्राहक साकारो रे; दर्शन ज्ञान अभेद चेतना, वस्तु ग्रहण व्यापारो रे ॥वा०॥ २ कर्ता परिणामी परिणामो, कर्म जे जीवे करीये रे; एक अनेक रूप नयवादे, नियते नय अनुसरीये रे ॥वा०॥ ३ दुःख सुख रूप
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करमफळ जाणो, निश्चय एक आनंदो रे; चेतनता परिणाम न चूके, चेतन कहे जिन चंदो रे॥वा० ॥ ४ परिणामी चेतन परिणामो, ज्ञानकरमफळ भावी रे; ज्ञानकरमफळ चेतन कहीये, लेजो तेह मनावी रे | वा० ॥ ५ आतमज्ञानी श्रमण कहावे, बीजा तो द्रव्यलिंगी रे; वस्तुगते जे प्रकाशे, आनंदधन मत संगी रे | वा० ॥ ६
( 8 )
श्री वासुपूज्य जिन स्तवन ( सुमतिनाथ गुणशुं मिलीजी)
श्री वासुपूज्य नरिंदनोजी, नंदन गुण मणि धाम । वासुपूज्य जिन राजीयोजी, अतिशय रत्न निधान । प्रभु चित्त धरीने, अवधारो मुज वात। १। दोष सयल मुजसांसहोजी, स्वामी करी सुपसाय । तुम चरणे हुं आवीयोजी । महेर करो महाराय । २ । कुमति कुसंगति संग्रहिजी, अविधि ने असदाचार । ते मुजने आवी मिल्याजी, अनंत अनंती वार । प्र० ३ जबमें तुमने निरखीयाजी, तव ते नाठा दूर । पुण्ये प्रगटे शुभ दिशाजी, आयो तुम हजुर । प्र० ४ ज्ञानविमल प्रभु जाणनेजी, शुं कहेवुं बहु वार दास आश पूरण करोजी, आपो समकित सार । प्र० ५
(9) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन ( व्हालो वसे विमलाचले रे )
अनिहारे, मारो प्रभु दीए छे देशना रे, ते तो सांभळे छे भविजन | समवसरण बेठा शोभता रे, भाखे चार मुखे सुप्रसन्न । मारो० १ अनिहां रे, बारे परषदा तिहां मळी रे, सवि बेसे आपणे ठाय । वाणी जोजन गामिनी
ए तो सुणतां आवे दाय । मारो० २ अनिहां रे, रूडा वयणडां नीकळे रे । ध्वनी मेघ परे गंभीर। पामर वचने न मीले कई रे, उंचे शब्दे साहस धीर । मारो ३ अनिहां रे, पडछंदा उठे बोलतां रे, अति सरलपणे अभिराम । मालवकेशिक रागथी रे, जे आणे हियडुं ठाम मारो० ४ अनिहां रे, श्री वासुपूज्य जिन साहिबा रे, मारी मिथ्यामतिने टाळ खुशालमुनि नित आपणो रे, तुम जाणीने थाजो दयाल | मारो० ५
(10) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन ( संयम रंग लाग्यो) वासुपूज्य जिन वंदीये, भाव धरी भगवंत रे, जिनपति जसधारी ।
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दीठो देव दयाल ते, नयना हेजे हसंत रे, जिनपति० १ हरिहर जेणे वश कर्या, इन्द्रादिक जस दास रे, जिनपति० ते मन्मथनो मद हो, तें प्रभुं कीधो उदास रे, जिनपति० २ मयण मयण परे गाळीयो, ध्यान अनल बळ देख रे, जिनपति० कामिनी कोमळ वयणशुं, चूक्यो नहि राई रेख रे, जिनपति० ३ नाण दरिशण चरण तणो, जे भंडार जयवंत रे, जिनपति०
आप तरी पर तारवा, तुं अविचल बलवंत रे, जिनपति० ४ मन मेरो तुम पाखली, रसीयो फरे दिन रात रे, जिनपति० सरस मेघने वरसवे रे, नाचे मोर विख्यात रे, जिनपति० ५ (1) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : कोण भरे? कोण भरे?) ___ मनवसी मनवसी मनवसी रे प्रभुजी नी मूर्ति मारे मन वसी रे, जिम हंसामन बहती गंगा, जिम चतुर मने चतुरानो संग, जिम बाळकने माता उछरंग, तिम मुजने प्रभु साथे संग० मन..१ मुख सोहे पुनम केरो चंद, नयन कमल दल मोहे छंद. अधर जिस्या परवाळा लाल, अधर शसीसम दीसे भाल; मन० २ बाहडी जीसे बाल प्रुणाल, प्रभुजी मेरा प्रभुजी कृपाल, जपता को नही प्रभुनी जोड, पुरे त्रिभुवन केरा क्रोड मन० ३ सागरथी अधिको गंभीर, सेव्यो आपे भवनो तीर, सेवे सुरनर क्रोडाक्रोड कर्मतणा मद नाखे मोड मन० ४ भेट्यो भावे ऋषभ जिणंद, मुज मन अधिको परमानंद, विमल विजय वाचकनो शिष्य, राम कहे मुज पुरो जगीश, मन० ५
(2) श्री विमलनाथ जिन स्तवन ॥१॥ प्रभुजी मुज अवगुण मत देखो, राग दशाथी तुं रहे न्यारो; हुं मन रागे वालु, द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुं चालुं प्र० ॥२।। मोह लेश फरस्यो नहि तुजने, मोह लगन मुज प्यारी, तुं अकलंकित कलंकित हुं तो, अ पण रहेणी न्यारी प्र० ॥३॥ तुं ही निराशी भावपद साथे, हुं आशा संगे विलुद्धो! तुं निश्चल हुं चल तो सुद्धो, हुं आचरणे उंधों प्र० ॥४॥ तुज स्वभावथी अवला मारा, चरित्र सकल जगे जाण्या! अहवा अवगुण मुज अति भारी, न घटे तुज मुख आण्यां प्र० ॥५॥ प्रेम नवल जो होय सवाई, विमलनाथ मुख आगे ! कांति कहे भव रान, उतरतां, तो वेला नवि लागे प्र० ॥६॥
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(3) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : बहे अखियोसे धार)
विमल जिनेश्वर वालहो, आतमथी अति प्यारो, मुज मन लाग्यो तेह शुं, पण तें थई रह्यो न्यारो, साहिब० (१) दरिसण तेहगें देखवा, रातदिवस हुँ रसियो, पण ते निस्नेही थयो, शिवपुरमां जई वसीयो रे विमल० (२) चंद्र चकोर तणी परे, चुप धरीने हुं चाहुं, मळवा मन भेलु भळी, आठे पहोर उमाह रे, विमल० (३) एक घडी अडधी घडी, जो एकांत लीजे रे, अंतरजामीनी आगळे, तो मन वात कहीजे रे, विमल० (४) सात राजने अंतरे, जे बेठा जई दूर रे, ते साथे शी परे करी, मील्ये प्रेम प्रहर रे विमल० (५) नेण नेण मिल्या पखे, किम भांजे मन भ्रांतो अलजो न टळे अंगनो, भेट्या विण भगवंतो रे विमल० (६) हंस कहे हवे आजथी, भक्ति करुं इण भ्रांति रे आवीने मनमां वसो, मुज साहिब मन खांति रे विमल० (७). (4) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : खारी खारी जगनी सहु)
विमल जिनेश्वर सुण मुज विनती, तुं निसनेही आप, हुं ससनेही छु प्रभु उपरे, इम किम थाशे मिलाप० (१) निसनेही जिनवरा आवे नहीं, कीजे कोडी उपाय, ताली एकण हाथे बजावता, (२) उद्यम निष्फल थाय विमल० (२) रात-दिवस रहीये करजोडीने, खीजमत करीए खास, तो पण जे नजरे आणे नहीं, (२) ते श्युं दीजे साबास, विमल० (३) भक्तवत्सल जिनभक्ति पसायथी, चढ्यो काज प्रमाण, इम थिर मन करीने जे रहे, (२) लहे फल ते निर्वाण, विमल० (४) जो पोते मन थीर करी आदरी, तुं प्रभु दीनदयाळ, आपवजाइ निज मन आणी (२) दान विजय प्रतिपाल विमल० (५) (5) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : सकल समता सुरल)
दुःख दोहग दूरे टल्या रे, सुखसंपदशं भेट; धींग धणी माथे कीयो रे, कुण गंजे नर खेट; विमळजिन दीठा लोयण आज; मारां सिध्यां वांछित काज ।।१॥ चरण कमळ कमळा वसे रे, निर्मळ थिरपद देख; समळ अस्थिर पद परिहरी रे, पंकज पामर पेख ।वि०॥ २ मुज मन तुज पदपंकजे रे, लीनो गुण मकरंद; रंक गणे मंदर धरा रे, इन्द चंद नागिंद॥वि०॥ ३
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साहिब समरथ तुं धणी रे, पाम्यो परम उदार; मन विसरामी वालहो रे, आतमचो आधार ।।वि०॥ ४ दरिसन दीठे जिनतणो रे, संशय न रहे वेध; दिनकर कर भर प्रसरतां रे, अंधकार प्रतिषेध ।।वि०॥ ५ अमीय भरी मूरति रची रे, उपमा न घटे कोय; शांत सुधारस झीलती रे, निरखत तृप्ति न होय ।।वि०॥ ६ एक अरज सेवकतणी रे, अवधारो जिनदेव; कृपा करी मुज दीजीये रे, आनंदघन पद सेव ॥वि०॥ ७ (6) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : मुश्केल संयम मव)
सेवो भविया विमल जिनेश्वर, दुल्लहा सज्जन संगाजी, एहवा प्रभुनु दरिसण ले, ते आळसमां हे गंगाजी॥१॥ अवसर पामी आळस करशे, ते मूरखमां पहेलोजी; भूख्याने जिम घेबर देतां, हाथ न मांडे घेलोजी।।२।। भव अनंतमां दरशण दीर्छ, प्रभु एहवा देखाडेजी; विकड ग्रंथि जे पोळ पोलियो, कर्म विवर ऊघाडेजी॥३॥ तत्त्व प्रीतिकर पाणी पाए, विमलालोके आंजीजी; लोयण गुरु परमान्नदिओ तव, भ्रम नांखे सवि भांगीजी॥४॥ तव प्रभुशुं प्रेमे, वात करूं मन खोलीजी; सरल तणे जे हियडे आवे, तेह जणावे बोलीजी॥५॥ श्री नयविजय विबुध पय सेवक, वाचक जश कहे साचुंजी; कोडि कपट जो कोई दिखावे, तोही प्रभु विण नवि राचुंजी॥६॥ (7) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (राग : मेरे मनकी गंगा)
विमल जिन विमलता ताहरीजी, अवर बीजे न कहाय; लघु नदी जिम लंघीएजी, पण स्वयंभूरमण न तराय, वि० १ सयल पुढवी गिरि जल तरुजी, कोई तोले एक हत्थ; तेह पण तुज गुणगण भणीजी, भाखवा नहि समरत्थ, वि० २ सर्व पुद्गल नभ धरमना जी, तेम अधरम प्रदेश; तास गुण धरम पज्जव सहुजी, तुज गुण इक तणो लेश, वि० ३ एम निज भाव अनंतनीजी, अस्तिता केटली थाय; नास्तिता स्व पर पद अस्तिताजी, तुज सम काळ समाय, वि० ४ ताहरा शुद्ध स्वभावनेजी, आदरे धरी बहुमान; तेहने तेहीज नीपजेजी, ए कोई अद्भूत तान, वि० ५ तुम प्रभु तुम तारक विभुजी, तुम समो अवर न कोइ; तुम दरशण थकी हुँ तर्योजी, शुद्ध
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आलंबन होय, वि० ६ प्रभु तणी विमलता ओलखीजी, जे करे थिर मन सेव; देवचंद्र पद ते लहेजी, विमल आनंद स्वयमेव, वि० ७
(8) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (जगजीवन जिनजी)
विमल जिणेसर मुज परमेसर, अलवेसर उपगारी रे, सुण साहिबा साचा। जगजीवन जिनराज जयंकर। मुजने तुज सुरति प्यारी रे, सुण०।१। महेर करीजे वंछित दीजे । सेवक चित्त धरीजे रे, सुण०, सेवा जाणी शिवसुख पाणी, भक्ति सही नाणी दीजे रे, सुण०।२। कामकुंभने सुरतरुथी पण प्रभु भक्ति मुज प्यारी रे, सुण०। जेओए खिण एक लगी सेवी, शिव सुखनी दातारी रे, सुण०।३। भगति सुवासना वासे वासति । जे होये भवि प्राणी रे, सुण०। जीवन मुक्त चिदानंद रूपी ते कहिये शुद्ध नाणी रे, सुण०।४। प्रभु तुम भक्ति तणी अति मोटी, शक्ति आ जगमा व्यापे रे, सुण०। एक वार पण भावे सेवी, चिदानंद पद आपे रे, सुण०।५। पूरण पूरव पुण्य पसाये, जो तुम भगति में पामी रे, सुण०। तो हुँ दुत्तर आ भव दरीयो, तरीयो सहेजे स्वामी रे, सुण०।६। साहिब सेवक जाणी साचो, नेक सुनजरे जो जो रे, सुण० । नयविजय कहे भवभव जिनजी, तुम भगति मुज होजो रे, सुण०।७।
(9) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (पुक्खलवई विजये जयोरे) ___ घर आंगण सुरतरू फल्योजी, कवण कनक फल खाय। गयवर बांघ्यो बारणेजी, खर किम आवे दाय । विमलजिन | माहरे तुमशुं प्रेम १ सुर सवि कलंकीत मिल्याजी, हियडो हिंसे केम, जेहशुं चित्तडु नवि ठरेजी, तेहरों किम थाय प्रेम. वि० २ मनगमता मेवा लहीजी, कुण खोळ खावा जाय,
आदर साहिबनो लहीजी, कुण ते रांक मनाय । वि० ३ पारस छते कुण काचनेजी, अलवे पसारे रे हाथ, कुण सुरतरूथी उठीनेजी, बाउल घाले हाथ । वि० ४ देव अवर प्रभु हुं करूंजी, तो प्रभु तुमची रे आण। श्री जिनराज भवोभवेजी, तुंहीज देव प्रमाण । वि० ५
(1) अनंत जिन स्तवन (राग : ए व्रत जगमां दीवोमेरे) करुणाधर प्रभु विनवू रे, विनतडी अवधार, तुज दरिशण विण हुं
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भम्योरे, काल अनंत अपार, जिणंदराय हवे मुजपार उतार ॥१॥ सूक्ष्म निगोदमां हुं भम्यो रे, पुद्गल परिअट्ट अनंत, अव्यवहार राशी वस्योरे, भव क्षुल्लक अतिजंत जि०॥ २ ॥ सूक्ष्म स्थावरपणुं पामीयोरे, अनुक्रमे बादर भाव, जन्म-मरण प्रभु बहु कर्यां रे, जिहां सुखनो अटकाव जि० ॥३॥ विकलपणुं पाम्यां पछी रे, तिरि पंचेन्द्रिय जाण, शुद्ध तत्त्व जाण्यां विनारे, भमीयो नवनव ठाणरे जि० || ४ || इम कोई पूरव पुण्यथीरे, मनुष्य जन्म सुजाण, शुद्ध सामग्री संयोगथी रे, दीठो तुं त्रिभुवन भाण जि० ॥ ५ ॥ अनंतनाथ जिनेश्वरुं रे, तुं तारक जगदेव, मोहन कहे तुज नामथरे, टलशे अनादि कुटेव जि० ॥६॥
(2) अनंत जिन स्तवन ( राग : नाणावटि रे साजन बेठु)
धार तलवारनी सोहिली दोहिली, चौदमा जिन तणी चरणसेवा; धार पर नाचतां देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा, धा० १ एक कहे सेवी विविध किरिया करी, फळ अनेकांत लोचन न देखे; फळ अनेकांत किरिया करी बापडा, रडवडे चार गतिमांहि लेखे, धा० २ गच्छना भेद बहु नयण निहाळतां, तत्त्वनी वात करतां न लाजे; उदर भरणादि निज काज करतां थकां ; मोह नडिया कळिकाळ राजे, धा० ३ वचन निरपेक्ष व्यवहार जूठो कयो, वचन सापेक्ष व्यवहार साचो; वचन निरपेक्ष व्यवहार संसारफळ, सांभळी आदरी कांई राचो, धा० ४ देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे, किम रहे शुद्ध श्रद्धान आणो; शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया कही, छार परे लींपणुं तेह जाणो, धा० ५ पाप नही कोई उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोई जग सूत्र सरिखो; सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे; तेहनुं शुद्ध चारित्र परखो, धा० ६ एह उपदेशनो सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमां नित्य ध्यावे; ते नरा दिव्य बहुकाळ सुख अनुभवी, नियत आनंदघन राज पावे, धा० ७
(3) अनंत जिन स्तवन ( राग : आंखंडी मारी प्रभु हरखाय छे)
श्री अनंतजिनशुं करो साहेलडीयां, चोलमजीठनो रंग रे गुण वेलडीयां; साचो रंग ते धर्मनी ॥ सा० वीजो रंग पतंग रे गु० १ धरम रंग जीरण
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नहि, सा० घाट घडामण जाय रे, गु० २ त्रांबु जे रस वेधीयुं, सा० ते होय जायँ हेमरे, गु० फरी त्रांबु ते नवि होवे, सा० एहवो जगगुरु प्रेम रे, गु० ३ उत्तम गुण अनुरागथी सा० लहिए उत्तम ठाम रे, गु० उत्तम निज महिमा वधे, सा० दीपे उत्तम धाम रे, गु० ४ उदक बिन्दु सायर भव्यो, सा० जिम होय अक्षय अभंग रे, गु० वाचक जश कहे प्रभु गुणे सा० तिम मुज प्रेम प्रसंग रे, गु० ५ .." (4) अनंत जिन स्तवन (राग : गिरनारनां डुंगरा सुनाहो)
मूरति हो प्रभु मूरति अनंत जिणंद, ताहरी हो प्रभु ताहरी मुज नयणे वसीजी; समता हो प्रभु समता रसनो कंद, सहेजे हो प्रभु सहेजे अनुभव रसलसीजी॥१॥ भव दव हो प्रभु भव दव तापित जीव, तेहने हो प्रभु तेहने अमृतघन समीजी; मिथ्या हो प्रभु मिथ्या विषनी खीव, हरवा हो प्रभु हरवा जांगुली मन रमीजी॥२॥ भाव हो प्रभु भाव चिंतामणी एह, आतम हो प्रभु आतम संपत्ति आपवाजी; एहिज हो प्रभु एहिज शिव सुख गेह, तत्त्व हो प्रभु तत्त्वालंबन थापवाजी॥३॥ जाये हो प्रभु जाये आश्रव चाल, दीठे हो प्रभु दीठे संवरता वधेजी; रत्न हो प्रभु रत्नत्रयी गुणमाळ, अध्यातम हो प्रभु अध्यातम साधन सधेजी॥४॥ मीठी हो प्रभु मीठी सूरत तुज, दीठी हो प्रभु दीठी रुचि बहु मानथीजी; तुज गुण हो प्रभु तुज गुण भासन युक्त, सेवे हो प्रभु सेवे तसु भव भय नथीजी॥५।। नामे हो प्रभु नामे अद्भूत रंग, ठवणा हो प्रभु ठवणा दीठे उल्लसेजी; गुण आस्वाद हो प्रभु गुण आस्वाद अभंग, तन्मय हो प्रभु तन्मयताए जे धसेजी॥६॥ गुण अनंत हो प्रभु गुण अनंतनो वृंद, नाथ हो प्रभु नाथ अनंतने आदरेजी; देवचंद्र हो प्रभु देवचंद्रने आणंद, परम हो प्रभु परम महोदय ते वरेजी॥७॥
(5) अनंत जिन स्तवन (सनेही संत ए गिरि सेवो)
अनंतजिन सहज विलासी, प्रभु लोकालोक प्रकाशी, जिन केवल नाण विकासी, जिणंदराय, देशना देई तारे, भवजल निधि पार उतारे । जिणंदराय० १ गुणमणी खाणी सत्यवंती, नय ग्राम धारक धनवंती, भवि चित्त पंकज विलसंती। जिणंदराय० २ त्रिभुवनपति त्रिगडे सोहे, त्रिभुवन
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जनना मन मोहे, तरणी परे जन पडिबोहे। जिणंदराय० ३ नवि मत एकांत भणंती, जेह चार निक्षेपावंती। षटभाषामां परिणमती। जिणंदराय० ४ उपजे व्यय थिर त्रिक रूप, सर्व भावमां वर्तन स्वरूप, ते कहेवा वचन अनूप। जिणंदराय० ५ पणतीस गुणे गुणवंती, समकाळे संशय हरंती, मुखे शुभ चेतना विकसंती। जिणंदराय० ६ कैवल्य कासारथी निकसी, निश्चय व्यवहार प्रशंसी, मिथ्या कलिमल विध्वंसी। जिणंदराय० ७ सुणतां जिणवाणी शी वांच्छा, षटमास न भोजन इच्छा, दूरे निगमे भव विच्छा। जिणंदराय० ८ सवि दोष हरण जिनवाणी, सौभाग्य लक्ष्मीसूरी जाणी ए तो समकित सुखनी निसाणी। जिणंदराय० ६
(6) अनंत जिन स्तवन (ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी) अनंत जिणंदशुं प्रीतडी, नीकी लागी हो अमृतरस जेम। अवर सरागी देवनी। विष सरीखी हो सेवा करूं केम। अनंत० १. जिम पदमिनी मन पीउ वसे, निरधनीया हो मन धनकी प्रीत । मधुकर केतकी मन वसे, जिम साजन हो विरही जन चित्त। अनंत० २. करषणी मेह अषाढ ज्युं, निज वाछड हो सुरभि जिम प्रेम, साहिब अनंतजिणंदशं, मुज लागी हो भक्ति तेम। अनंत० ३. प्रीति अनादिनी दुःख भरी, में कीधी हो पर पुद्गल संग। जगत भम्यो तीण प्रीतशुं, स्वांग धारी हो नाच्यो नवनव रंग० ४. जिसको अपना जानीया, तिने दीना हो छिनमें अति छेह। परजन केरी प्रीतडी, में देखी हो अंते निःसनेह । अनंत० ५. मेरा कोई न जगतमें। तुम छोडी हो जिनवर जगदीश। प्रीत करूं अब कोनशुं, तुम त्राता हो मोहे विसवावीश। अनंत०६. आतमराम तुं माहरो, सिर सेहरो हो हियडानो हार । दीनदयाल कृपा करो, मुज वेगे हो अब पार उतार। अनंत० ७.
(7) अनंत जिन स्तवन (रूप अनूप निहाळी) अनंत जिणंद मुणिंद घनाघन उमयो। सकळ अशोकनी छांहि सभर छांई रह्यो। छत्रत्रयी चउपास चालता वादळां, चंचल चौदिश चामर बग परे उजळा । १। भामंडलनी ज्योति झबुके वीजळी, रत्नसिहांसन इन्द्र धनुष शोभा मिली। गुहिरो दुंदुहि नाद आकाशने पूरतो, चौविह देव निकाय मयुर
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नचावतो ।२। बहु विध फुल अमूल सुगंधी विस्तरे, बार पर्षदा नयन के सरसीया करे, सुजसानंदन वयण सुधारस वरसतो, भविक हृदय भू पीठ रोमांच अंकूरतो।३। गणधर गिरिवर श्रृंगथी पसरी सुर सरी । नय गम भंग प्रमाण तरंगे परवरी। क्रोध दावानल शांतिथी शीतल गुण वहे, अशुभ कर्म धन धाम समाधि सुख लहे । ४। विकसित संयम श्रेणि विचित्र वनांवलि, आश्रव. पंच जवासके मूळ संतति बळी। प्रसर्यो सुथ सुकाल दुकाल गयो टळी, क्षमाविजय जिन संपद वर्षा रूतु फळी । ५ ।
(8) अनंत जिन स्तवन अनंत जिनेश्वर आपजो रे, अक्षय अनंतीवार, भव अटवीमां मुज मिल्यो रे, अवि हड शिवपुर साथ, गुणनो धारक मारो सुखनो कारक, मारो दुःखनो वारक, प्रभुजी मारा भवोदधि पार उतार, ॥१॥ ज्ञान अनंतु ताहरे रे, दोय अनंत प्रकाश, (२) देखत दर्शन गुण थकी रे, वस्तु सामान्य अषेश, (२)।।२।। आप स्वरूप मांही रमो रे, अव्याबाध महंत, (२) क्षायिक वीर्यनो धणी रे, महीमावंत महंत, (२)॥३॥ लंछन सिंचाणो भलो रे, देह धनुष्य पचास (२) लाख वरसनुं आउखुं रे, पीत्त वर्णतनुं खास, (२)॥४॥ धन्य सिंहसेन तातनेरे धन्य धन्य सुजसा मात, (२) नयरी
अयोध्या विचरता रे, पवित्र करे कूल जात (२)॥४॥ समेत शिखर गिरि उपरेरे, सात हजार मुणिंद (२) क्षमा विजय जिन पामीयारे, उत्तम सहजानंद (२) अनंत जिनेश्वर आपजो,... ॥५।।
(1) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : आज अमे मंदिर म्याता)
धर्म जिनेश्वर पूजवा सैयर मोरी, पूजो अधिक ऊमंग हो, केशर चंदन मृगमदे सैयर मोरी, पूजो अधिक आनंदहो, सहेजे सलूणो मारो, शिवसुख लीनो मारो, कामथी बीनोमारो, वैराग्यमां भीनो मारो साहिबो० ॥ सैयरमोरी जय जयधर्म जिणंद हो।।१।। विजय विमानथी उतर्यां सैय० रत्नपुरे अवतार हो, माता सुव्रतानी कुंखे अवतर्या जन्म्यां जगत आधार हो ॥२॥ पुष्य नक्षत्रे जनमीया सैय० देवगणे अभिरामहो, कर्कराशी प्रभुजीतणी, सैय० वज्र लक्षण गुण धामहो ॥शा भानुराम कुल उपन्यां सैय० धनुष्य
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पिस्तालीश कायहो, रत्नपुरे दिक्षा लीये, सैय० दशलाख पूरव आयहो।।४।। त्रण लाख पल्योपम आंतरे सैय० धर्म प्रवर्तनहारहो, गच्छ तेंतालीश स्थापीया, सैय० गणधर पण मनोहार हो सैय०॥५।। हरीवर्ण वृक्षनी हेटले, सैय० छठतपे चौविहारहो, घातीकर्म खपावीने, सैय० केवलज्ञान उदार हो ॥६॥ अडशत मुनिशुं शिववर्या, सैय० धर्मनाथ महाराज हो, विजयमुक्तिवर पामीने, सैय०, कमलना सिध्याकाजहो।।७।।
(2) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : मारी आ जीवन नैया)
धर्मजिनेश्वर सुण परमेश्वर, तुम गुण केता कहायजी, तुज वचने तुज रूप जणाये, अवर न कोई उपायजी (१) ताहरे मित्र अने शत्रु सम, अरिहंत तुं ही गवायजी, रूप स्वरूप अनुपम तुं जिन, तो ही अरूपी कहायजी, (२) लोभ नहि तुजमाही तो पण, सघळा गुण ते लीधजी, तुंही निरागी पण ते रागी, भक्त तणा मन कीधजी (३) नहि माया तुजमां जिनराया, पण तुज वश जग थायजी, तुं ही सकल अकल कले कुण, ज्ञान विना जिनरायजी (४) सुगुण सनेहा महेर करो मुज, सुप्रसन्न होय जिणंदजी, पभणे केसर धर्मजिनेश्वर, तुज नामे आनंदजी (५) (3) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : ज्योत से ज्योत जगाते चलो)
श्री धर्म जिनेश्वर धर्मधुरंधर, पुरव पुन्ये मीलीयो मनमरूथलमें सुरतरु फळीयो, आज थकी दिन वळीयो । (१) प्रभुजी महेर करी महाराज, काज हमारां सारो, साहिब गुणनिधि गरीब निवाज (२) भवजल पार उतारो । (२) बहु गुणवंता जेह ते तार्या, तेमां नहि पाड तुमारो मुज सरीखो जो पथ्थर तारो (२) तो तुमची बलिहारी० (३) हुं निर्गुणी पण ताहरी संगे, गुणलहु तेह घटमान निंबादिकपणे चंदन संगे (२) चंदन सम लहे तान० (४) निर्गुणी जाणी छेह न देशो, जो-जो आप विचारी हा-विचारी चंद्र कलंकित पण नीजशिरथी (२) न तजे गंगाधारी० (५) सुव्रतानंदन सुव्रतदायक, नायक जिन पदवीनो, हा पदवीनो, पायक जास सुरासुर किन्नर (२) घायक मोहरीपुनो,। (६) तारक तुमसम अवर न दीठो, लायक नाथ हमेरो हा हमेरो श्री गुरुक्षमाविजय पाय सेवी (२) कहे जिन भवजल तारो० (७)
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(4) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : ओक दो तीन चार)
धर्म जिनेश्वर ध्याइए, आणी अधिक सनेह, गुण गाता गिरुआ तणारे, वाधे बमणो स्नेह जिनेसर, पूरो माहरी आश हो, जिम पामो शिवपुर वास० (१) काल अनादि निगोदमां रे, भम्यो अनंतिवार, कर्म नटारे रोळव्यो रे, सेव्या पाप अढार-जिनेसर० (२) प्राणातिपात मृषा घणुं रे, त्रीजुं अदत्तादान, विषया रसमां राचीयो रे, कीधुं बहु दुर्ध्यान - जिनेसर० (३) नवविध परिग्रह मेळव्यो रे, कीधो क्रोध अपार, मान माया लोभे करी रे, न लह्यो तत्त्व विचार-जिनेसर० (४) राग-द्वेष-कलह कर्या रे, दीधा परने आळ, पैशुन्य रति-अरति वळी रे, सेवता दुःख असराळ-जिनेसर० (५) दोष दिया गुणवंतने रे, कीधा मायामोष, मिथ्यात्वशल्य दोषे करी, कीधो अविरती पोष-जिनेसर० (६) पाप स्थानक सेवी जीवडो रे, रूल्यो चउगति मोझार, जन्म-मरणादि वेदना रे, सही ते अनंतअपार –जिनेसर० (७) एह विडंबन आकरी रे, टाळो श्री जिनराज, बाह्य ग्रहीने तारजो रे, सारो सेवक काज - जिनेसर० (८) धर्म जिणंद स्तवता थकारे, पहोती मननी आश, जिन उत्तम पद सेवता रे, रत्न लहे शिववास -जिनेसर० (६) (5) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : अब सोंप दिया इस जीवनको)
धर्म जिनेसर गाउं रंगशुं, भंग म पडजो हो प्रीत जिनेश्वर; बीजो मन मंदिर आणुं नहिं, ए अम कुळवट रीत, जि० ध० १ धरम धरम करतो जग सहु फिरे, धर्म न जाणे हो मर्म; जि० धर्म जिनेसर चरण ग्रह्या पछी, कोई न बांधे हो कर्म, जि० ध० २ प्रवचन अंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम निधान; जि० ह्रदय नयन निहाळे जगधणी, महिमा मेरु समान, जि० ध० ३ दोडत दोडत दोडत दोडियो, जेती मननी रे दोड; जि० प्रेम प्रतीत विचारो ढुंकडी, गुरुगम लेजो रे जोड, जि० ध० ४ एक पखी किम प्रीति परवडे, उभय मिल्यां हुवे संघ; जि० हुं रागी हुं मोहे फंदियो, तुं नीरागी निरबंध जि० ध० ५ परमनिधान प्रगट मुख आगळे, जगत उलंघी हो जाय; जि० ज्योति विना जुओ जगदीशनी, अंधो अंध पुलाय, जि० ध० ६ निरमळ गुणमणि रोहण भूधरा, मुनिराज मानसहंस; जि० धन्य ते नगरी धन्य वेळा
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घडी, मात पिता कुळ वंश, जि० ध० ७ मन मधुकर वर करजोडी कहे, पदकज निकट निवास; जि० धननामी आनंदघन सांभळो, ए सेवक अरदास, जि० ध० ८ (6) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : बहुत याद करते है महावीरको) ___थाशुं प्रेम बन्यो छे राज, निरवहेशो तो लेखे, में रागी प्रभु थें छो नीरागी, अणजुगते होय हांसी; एक पखो जे नेह निरवहवो, तेहमां की शाबाशी, था०॥१॥ नीरागी सेवे कांई होवे, इम मनमां नवि आणु; फळे अचेतन पण जिम सुरमणि तिम तुज भक्ति प्रमाणु, था०॥२॥ चंदन शीतलता उपजावे, अग्नि ते शीत मिटावे; सेवकनां तिम दुःख गमावे, प्रभु गुण प्रेम स्वभावे, था०॥३॥ व्यसन उदय जलधि अनुहारे, शशीने तेज संबंधे; अणसंबंधे कुमुद अणुहरे, शुद्धस्वभाव प्रबंधे, था०॥४॥ देव अनेरा तुमथी छोटा, थें जगमें अधिकेरा; जश कहे धर्म जिनेश्वर थारों, दिल मान्या हैं मेरा, था०॥५॥
(7) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : असो मति मैया) ___धर्म जगनाथनो धर्म सुचि गाईये, आपणो आतमा तेहवो भाविये; जाति जसु एकता, तेह पलटे नहि, शुद्ध गुण पज्जवा वस्तु सत्तामयी॥१॥ नित्य निरवयव वली एक अक्रियपणे, सर्वगत तेह सामान्य भावे भणे; तेहथी इतर सावयव विशेषता, व्यक्ति भेदे पडे जेहनी भेदता, ॥२॥ एकता पिंडने नित्य अविनाशता, अस्ति निज रिद्धिथी कार्य गत भेदता; भावश्रुत गम्य अभिलाप्य अनंतता, भव्यपर्यायनी जे परावर्त्तिता, ॥३॥ क्षेत्र गुण भाव अविभाग अनेकता, नाश उत्पाद अनित्य परनास्तिता; क्षेत्र व्यापत्व अभेद अवक्तव्यता, वस्तु ते रूपथी नियत अभव्यता धर्म प्राग्भावता सकळ गुण शुद्धता, भोग्यता कर्तृता रमण परिणामता; शुद्ध स्वप्रदेशता तत्त्व चैतन्यता, व्याप्त व्यापक तथा ग्राह्य ग्राहकता ॥५॥ संग परिहारथी स्वामी निज पद लघु, शुद्ध आत्मिक आनंद पद संग्रह्यु; जहवि परभावथी हुं भवोदधि वस्यो, पर तणो संग संसारताए ग्रस्यो, तहवि सत्ता गुणे जीव छे निरमळो, अन्य संश्लेष जिम स्फटिक नवि सामळो; जे परोपाधिथी दुष्ट परिणति ग्रही,
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भाव तादात्म्यमां माहरुं ते नहीं,॥७] तिणे परमात्म प्रभु भक्ति रंगी थई, शुद्ध कारण रसे तत्त्व परिणतिमयी; आत्म ग्राहक थये तजे परग्रहणता, तत्त्व भोगी थये टळे परभोग्यता, ।।८। शुद्ध निःप्रयास निज भाव भोगी यदा, आत्मक्षेत्रे नहि अन्य रक्षण तदा; एक असहाय निस्संग निरद्वंद्वता, शक्ति उत्सर्गनी होय सहु व्यक्तता, ॥६॥ तिणे मुज आतमा तुज थकी नीपजे, माहरी संपदा सकळ मुज संपने; तेणे मन-मंदिरे धर्म प्रभु ध्याइये, परम देवचंद्र निज सिद्ध सुख पाईये ॥१०॥
(8) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग–अमिभरेली नजरूं राखो)
पूरजो मारी आश जिनेश्वर, (२) जेम पामुं शिवपुर वास, (२) धर्म जिनेश्वर ध्याइए, आणी अधिक स्नेह (२) गुण गाता गिरुआ तणा, वाधे बमणो नेह,॥१॥ काल अनादि निगोदमांहि, वसिओ काल अनंत, कर्म कठोरे रोलव्यो, सेव्या पाप अढार ॥२॥ प्राणातिपात मृषा घणुं रे, त्रीजुं अदतादान, विषय रसमां राचियो, रे कीधुं बहु दुर्ध्यान ॥३॥ नवविध परिग्रह मेलव्यो रे कीधो क्रोध अपार, मान माया लोभे करी, न लह्यो तत्त्वविचार ॥४॥ रागद्वेष कलह कर्या दिधा परने आल, पैशुन्य रति अरति वली,-सेव्यां दुःख असराल॥५॥ दोष दीधां गुणवंतने रे, कीधां माया मोस, मिथ्यात्वशल्य दोषे करी, कीधो अविरति पोष,॥६।। पापस्थानक सेवी जीवडो रे, रूल्यो चउगति मोझार, जन्म मरणादि वेदना, सही ते अनंत अपार ॥७॥ एह विडंबना आकरी रे, टाले श्री जिनराय, ब्राह्मग्रहीने तारजो, सारो सेवक काज॥८॥ धर्म जिणंद स्तवना थकी रे, पहोंची मननी आश, जिन उत्तम पद सेवता, रल लहे शिववास॥६॥
(9) धर्मनाथ जिन स्तवन (वीर मधुरी वाणी भाखे) ___धर्म जिनवर दरिशन पायो। प्रबल पुण्ये आज रे। मानुं भवजल राशि तरवां, जड्युं जंगी जहाज रे। ध० १ सुकृत सुरतरू सहेजे फळीयो, दुरित टळीयो वेगे रे । भुवन पावन स्वामी मिलीयो, टल्यो सकल उद्वेग रे। ध० २ नाम समरूं रात दिहा, पवित्र जिहा होय रे । फरी फरी मुज एह निहा, नेह नयणे जोय रे। ध० ३ तुहि माता तुंहि त्राता। तुहि भ्राता सयण रे ।
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तुंहि सुरतरू तुंहि सद्गुरू, निसुणो सेवक वयण रे। ध० ४ आप विलासो सुख अनंता, रह्या दुःखथी दुर रे। इणि परे किम शोभ लेसो, करो दास हजुर रे । ध० ५ एम विचारी चरण सेवा, दासने द्यो देव रे। ज्ञानविमल जिणंद ध्याने लहे सुख नित्यमेव रे। ध० ६
(10) धर्मनाथ जिन स्तवन (हारे मारे ठाम धरमना) हारे मारे धर्म जिणंदशुं लागी पूरण प्रीतजो, जीवडलो ललचाणो जिनजीनी ओलगे रे लो। हारे मुने थाशे कोईक समे प्रभु सुप्रसन्न जो। वातलडी माहरी रे सवि थाशे वगे रे लो । १। हारे प्रभु दुर्जननो भंभेर्यो मारो नाथ जो। ओलवशे नहि क्यारे कीधी चाकरी रे लो। हारे मारा स्वामी सरखो कुण छे दुनियामांहि जो, जईए रे जिम तेहने घर आशा करी रे लो । २। हारे जस सेवा सेंती स्वारथनी नहि सिद्धि जो। ठाली रे शी करवी तेहथी गोठडी रे लो। हारे कांई जुट्ठ खाय ते मीठाईने माटे जो। कांई रे परमारथ विण नहि प्रीतडी रे लो । ४ । हारे प्रभु लागी मुजने ताहरी माया जोर जो। अलगा रे रह्याथी होय ओसींगलो रे लो। हारे कुण जाणे अंतरगतनी विण महाराज जो। हेजे रे हसी बोलो छांडी आमलो रे लो । ५। हारे तारा मुखने मटके अटक्युं माहरु मन जो। आंखलडी अणीयाली कामणगारडी रे लो। हारे मारा नयणा लंपट जोवे खिणखिण तुज जो। राता रे प्रभु रूपे न रहे वारीया रे लो।६। हारे प्रभु अलगांतो पण जाणजो करीने हजुर जो । ताहरी रे बलिहारी हुं जाउं वारणे रे लो। हारे कवि रूप विबुधनो मोहन करे अरदास जो। गिरूआथी मन आणी उलट अति घणे रे लो।७।
(11) धर्मनाथ जिन स्तवन धर्म जिणंद तुमे लायक स्वामी, मुज सेवक पण नहि खामी, साहिबा रंगीला हमारा, मोहना रंगीला अमारा, जुगती जोडी मली छे सारी, जो जो हैडे आप विचारी।।१॥ भक्त वत्सल तारू बिरूद जाणी, भक्ति तणो गुण अचल अमारो, तेहमां को विवरो करी करशे, तो मुज गुण अवरमां भल।।।२॥ मूळ गुणे तुंनिरागी कहेवाय, ते किम राग भुवनमां आवे, वळी
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छोटे घर महोटे न मावे, ते मे आण्यो सहज स्वभावे, धर्म० || ३ || अनुपम अनुभव रचनां कीधी, एम शाबाशी जगमां लीधी, अधिकुं ओछु अति आसंगे, बोल्युं खमजो प्रेम प्रसंगे धर्म० || ४ || अमथी होड होये किम भारी, जो जो हैडे आप विचारी, हुं सेवक नो जगत विसराम, वाचक विमल तणा हे राम धर्म० || ६ ||
(1) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग
भक्ति करता छूटे )
तरी भक्ति करु भगवान, छोडुं नहि ओक घडी, त्यारे पामीश पद वितराग मानुं मारी धन्य घडी; तमे अमे रमतां साथै सही, मारी प्रित पुराणी पाळी नहि, तमे लीधु मोक्ष साम्राज्य ||१|| जीती कर्म सेना तमे वीर थया, मारा आतम देव फसाई गया, हवे केम करी लउं साम्राज्य || २ || मारा घरमां अंधारुं छवाई गयुं, मारुं आतम भान भूलाई गयुं. मारी लाज राखो प्रभु आज छोडुं० ||३|| मे तो कदीए दान दीधुं नहि, में तो शियल पण पाळ्युं नहि, विविध तप करी कर्मे । काप्यां नहि, दुःखे थई छे दशा मारी. ||४|| आत्म धर्मनी भावना भूलाई गई, जड राग रगोमां राची रह्या, मारी शी गति थशे भगवान. ||५|| शान्तिनाथ प्रभु मने शान्ति आपो, मारा भवना बंधनो बधा कापो; आपो आत्मधर्मनी जहाज. || ६ || दिनबंधु दयाळु दया करो, मुज पापी अधमनो उद्धार करो; स्वामी मारा छो शिरताज ॥७॥ तारा शरणे आवेलाने तारी लिधां तेना बगडेलां कार्य सुधारी दीधां, प्रभु सरसे अमारा काज. ॥८॥ सुवर्ण शासन संघ अखंड मलो, मारा भवोभवनां पातिक दूर करो, ज्ञान विमल तारा गुण गाय. ॥६॥
"
( 2 )
श्री शान्ति जिन स्तवन
आज थकी में पामीयो रे, चिंतामणी सम इश, सकल मनोरथ पूरवा रे, ऊग्यो विशवा वीश, भविजन सेवो शांति जिणंद ||१|| मोटाना मनमां नहि रे, सेवकनी अरदास, इण वाते जूगतुं नहिं रे, जेहशुं बांधी आश ||२|| साहिबथी दुरं रह्या रे, तो नवि सीझे काम, तो पण तुं रीझे नीहाळता रे, को नहि लागे दाम ||३|| ओलग आजे ताहरी रे, अहनिश उभा बार, तो पण तुं रीझे नहि रे, ओ छे कवण विचार || ४ || उपरली वातो कियेरे,
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नावे मन विश्वास, आप रुपे आवी मीलो रे, जीम होय लील विलास. ।।५।। दृढ विश्वास करी कहुं रे, तुहिज साहिब ओक, जो जाणो तो जाणजो रे, मुज मन अहीज टेक. ॥६॥ शांति जिनेश्वर साहिबा रे, विनतडी अवधार, कहे कवियण प्रभु आजथी रे, अंतर दुर निवार. ॥७॥
(3) श्री शान्ति जिन स्तवन शांतीनाथ तारी मूर्ति मोहनगारी, सौ संघने लागे छे प्यारी प्यारी; शांतीनाथ तारी कीकी कामणगारि रे. सहु संघने लागे छे प्यारी प्यारी ।।१।। दया कीधी घणी पारेवो उगारी, लीधी पदवी तीर्थंकरनी अति भारी. ।।२।। मंडप अध्ययन रच्यो, सुखकारी, समिति गुप्तिनी रचना अति सारी (२). ॥३॥ चढया श्रेणीओ वरघोडे आनंदकारी, त्रण भुवनमां शोभा दिसे सारी (२). ॥४॥ सासु परिणती पोखे अविकारि, मुक्ताफळ थाळ वधावे जयकारी. ॥५॥ क्षमा मायरामां बेठा आनंद कारी, मुक्ति वधु जिनराज वर्या नारी. ॥६॥ दया दान तणी चोरी अविकारी, देखी अमची ठरे छे आंखडी प्यारी. ॥७॥ कंसार परम आरोगे अणाहारी, बेहु परस्पर कवल दिये विचारी (२) कहे रुप विबुधनो शिष्य वारंवारी. ॥८॥ शांति बोलो प्रभुजीनी जयकारी, सिद्धि बोलो प्रभुजीनी जयकारी. ॥६॥
(4) श्री शान्ति जिन स्तवन शांतीजिनरे शी गति थाशे अमारी, में तो कर्म कर्या बहु भारी, हुं तो काल अनादिनो भमीयो, महा मोहना घरमां रमीयो, समकित पामी फरी वमीयो, नथी ज्ञानी रे कयां करूं जई पोकारी...में ॥१॥ मने कर्म शत्रू दल नडीयो, नरक निगोदमां अडवडीयो; परमाधामी वश पडीयो, लडथडीयो रे आप शरण विना भारी. में. ॥२॥ विश्वसेन पिता कुले आव्यो, अचिरा माता ओ हुलराव्यो, हत्थिणा उर नयरीनो रायो, मृगलंछन रे, सोबन वरणी सारी..में.॥३॥ तुमे शीवरमणीना रसीया, शिवसुंदरी सेजे उलसीया; सुख शाश्वतमां जई वसीया, अविनाशी रे, नजर करो अकवारी. ॥४॥ शांतिजिन शांति आपो, मारा भवदल तापने कापो; मने मोक्षनगरमां स्थापो, दयानिधि, रे जन्म मरणथी उगारी. ॥५॥ तुमे समता रसना दरिया, कर्म रायना चूरा
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करीया; घोर संसार सागर तरीया, दादाजीरे, द्यो दरिसण अकवारी. ॥६॥ क्रोध मान माया मद छाकयो, राग द्वेश विषय नवि थाकयो; तृष्णा तरुणी रस चाख्यो, अथडायो रे, योनी अनंती वारी. ॥७॥ हुं कुमती कदाग्रहे भरीयो, धूर्त लोभ अरि मुज नडीयो; गुण श्रेणी चढी फरी पडीयो, नथी आरो रे बाल करे पोकारी रे. ॥८॥ शांत दान्त वृद्धि जयकारी, गुरु कपूर विजय बलीहारी; ल्यो पून्यने भवथी उगारी, आव्यो शरणे रे, विलंब न करशो लगारी. ॥६॥ (5) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : विनति अवधारे रे पुरमांहे)
सुणो शांति जिणंदा रे, तुम दीठे आणंदारे, दुर टले भवफंदा दरिसण देखतां रे. ॥१॥ मुद्रा मनोहारी रे, त्रिभुवन उपकारी रे, प्यारी वळी लागे सहुने पेखतां रे०...॥२॥ सौम्यताओ शशी नासी रे, भमे उदासी रे, आव्यो मृग पासे अधिकाई जोवतो रे. ॥३॥ तेजे भाण भागो रे, आकाशे जई लाग्यो रे, धरे प्रभु रागे मोहतो रे. ॥४॥ परमाणुं जे शांत रे, निपनी तुम कांत रे, टळी मन भ्रांत परमाणुं अटलो रे. ॥५॥ देव जोतां कोडी रे, नावे तुम होडी रे, नमे कर जोडी सुर जे भला रे. ॥६॥ जनमे इति वारी रे, षटखंड भोग धारी रे, थया व्रतधारी नारी परिहरी रे. ॥७॥ वरसी दान वरसी रे, संजम श्रेणी फरसी रे, करी करम राशी नरसि तेथयी थया रे. ॥।॥ ध्यानानल जोगे रे, आतम गुण भोगे रे, रोगे ने सोगेथी तुं दुरे रहे रे. ॥६॥ प्रणमें प्रभु पाया रे, खिमा विजय गुरुराया रे; तुम गुण प्रतिभाया जस ते लहे रे. ॥१०॥
__(6) श्री शान्ति जिन स्तवन शांतिकुमार सोहामणा रे, हुलरावे अचिरा माय रे, माहरो नानडीयो, तुज आगे इन्द्रो नमे रे, इन्द्राणी प्रणमे पाय रे० मा०...हु०...मा० ॥१॥ छप्पन दिशीकुमरी मली रे, नवरावी तुज साथ रे; बांधी सर्व शु भौषधि रे, रक्षा पोटली हाथ रे० मा०...हु०...मा० ॥२॥ कुलध्वज कुलचुडामणी रे, अम कुल कानन मेहरे; तुज इडा पीडा पडो रे, खारा समुद्रने छेह रे मा०...हु०...मा० ॥३॥ आवी बेसो गोदमां रे, भीडुं हृदय मोजार रे;
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रमझम करतो घुघरो रे, आल्यो मुज प्राण आधार रे. मा०...हु०...मा० ।।४॥ लो लाडकडा सुखडी रे, साकर द्राख बदाम रे, मरुकडलो करी मोहनोरे, रुपे जीत्यो काम रे० मा०...हु०...मा० ॥५।। मुख सुषमा जिम चंद्रमां रे, जीभ अमीरस नाल रे; आंखडी अंबुज पांखडी रे, वांकडी भमुह विचाल रे. मा०...हु०...मा० ॥६॥ दंतपंक्ति हीरा तति रे, अधर प्रवाली रंग रे; वदन कनक कज शोभा विचेरे, मार्नु जडीया नंगरे. मा०...हु०...मा० ||७|| खमा खमा तुज उपरे रे, हुं वारी वार हजार रे; सुरगिरी जीवन जीवजो रे, वधतो तुज परिवार के मा०...हु०...मा० ।।८।। तुज पगले कुरुदेशमां रे, वरते जीव अमारी रे; जगजीवन जिन! ताहरारे, गुण गाये सुरनारी रे० मा०...हु०...मा० ।।६।।
(7) श्री शान्ति जिन स्तवन सुणो शांति जिनेसर साहिबा, सुखकार करुणा सिन्धु; प्रभु तुम समको दाता नहि, निष्कारण त्रिभुवन बंधु... ॥१॥ जस नामे अक्षय संपदा होणे, वळी आधि तणी होवे शांति, दुःख दुरित उपद्रव सवी मीटे, भांजे मिथ्यामति भ्रांति... ॥२॥ तुं तो राग रहित पण रीझवे, सवि सज्जन केरा चित्त; निर्द्रव्य अने परमेश्वरु, विण नेहे तु जगमित्त... ॥३॥ तुं तो चक्री पण भव चक्रनो, संबंध कांई न कीधः तं तो भोगी योगी दाखियो, सहजे समतारस सिद्ध... ॥४॥ विण तेडयो नित्य सहाय छे, तुज लोकोत्तर आचार; कहे ज्ञानविमल गुण ताहरो, लहीजे गणवे किमपार... ॥५॥ इति...
(8) श्री शान्ति जिन स्तवन सुणो शांतिजिणंद सोभागी, हुं तो थयो छु तुम गुणरागी; तुमे निरागी भगवंत, जोतां किम मळशे तंत. ॥सुणो०।। १ हुं तो क्रोध कषायनो भरीओ, तूं तो उपशम रसनो दरीयो; हं तो अज्ञाने आवरीयो. तुं तो केवळ कमळा वरीओ. ॥सु०॥ २ हुं तो विषया रसनो आशी, तें तो विषया कीधी निराशी; हुं तो करमने भारे भार्यो, तें तो प्रभु! भार उतार्यो. ॥सु०॥ ३ हुं तो मोह तणे वश पडीओ, ते तो सघला मोहने हणीओ; हुं तो भव समुद्रमां खुच्यो, तुं तो शिवमंदिरमा पहोंच्यो. ॥सु०॥ ४ मारे जन्म मरणनो जोरो,
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तें तो तोड्यो तेहनो दोरो; मारो पासो न मेले राग, तमे प्रभुजी थया वितराग. ॥सु०॥ ५ मने मायाले मूकयो पाशी, तुं तो निरबंधन अविनासी; हुं तो समकितथी अधूरो, तुं तो सकळ पदारथे पूरो. ॥सु०॥ ६ मारे छो प्रभु तुही ओक, त्हारे मुज सरीखा अनेक; हुं तो मनथी न मूंकु मान, तुं तो मानरहित भगवान ॥सु०॥ ७ मारुं कीधुं कशुं नवि थाय, तुं तो रंकने करे छे राय; ओक करो ने मुज महेरबानी, मारो मुजरो लेजो मानी. ।।सु०।। ८ ओकवार जो नजरे निरखो, तो करो मुजने तुज सरीखो; जो सेवक तुम सरीखो थाशे, तो गुण तमारा गाशे. ।।सु०॥ ६ भवो भव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मागु देवाधिदेवा; सामुं जुओने सेवक जाणी, ओवी उदयरतननी वाणी ॥सु०॥ १० (9) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग-आवो आवो हो वीर....)
शांति जिनेश्वर साहिब मारो, मीलीयो जगनो तारु, भीम भवोदधि तरवा कारण, जिनपद प्रवहण वारुं, साहिब नीरखो आज सेवक स्नेह धरीने, मानो ते मानो आज, मनमां महेर करीने (१) अचीरा कुखे जब प्रभु आया, तब सवि दुरित गमाणा, घर घर मंगळ माळा प्रगटी, दुःख दोहग कुमलाणा.... साहिब० (२) मृग लंछन मनहरणी मूर्ति, सुरति सुंदर दिशे, चंद्र चकोर तणी परे नीरखी, तन मन हैडुं हींसे,....साहिब० (३) जेम पारेवां पंखी उपरे, कीधी करुणा स्वामी, तिमजो सेवकने संभाळो तो, साचो अंतरजामी.... साहिब० (४) विश्वसेन नृप नयनानंदन, चंदन शितळ वाणी, शक्ति तुमारी जगजन तारक, जाणी विबुध वखाणी.... साहिब० (५) बोधिबिज तुम पदकज सेवा, आपो एहिज मांगु, 'ज्ञान-विमल' सूरि कहे एम अहोनिश, लळीलळी तुम पाय लागुं.... साहिब० (६) (10) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग - हुं तारी बोलावं जे)
श्री शांति जिनेश्वर दीठा, मारा मनमा लाग्यो मीठा, आज मुखड़े तमारुं, जोता मारा नयन थयां पनोता...(१) जे नजर मांडि एने जोशे, ते तो भवनी भावठ खोशे रे, एन रूप जोई जे जाणे रे, तेहने सुरनर सह वखाणे रे..(२) ए तो साहिबा छे सयाणो रे, मने लागे एहशुं तानो रे, ए
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तो शिवसुंदरीनो रसीयो रे, मारा नयणा मांहे वसीयो रे..(३) में तो सगपण एहशुं किधुं रे, हवे सघळु कारज सिध्युं रे, ए तो जीवन अंतरजामी रे, निरंजन ए बहु नामी रे..(४) घणुं शुं एहने वखाणु रे, हुं तो जीवनो जीवन जाणुं रे, घणुं जे एहने मलशे रे, ते तो माणसमांथी टळशे रे..(५) मनडां जेणे एहशुं मांड्यां रे, तेणे ऋद्धिवंता घर छांड्या रे, आगे जेणे एह उपाश्यो रे, तेणे शिवसुख करतल वास्यो रे...(६) आशिक जे एहना थाय रे, तेणे संसारमा न रहेवाये रे, गुण एहना जे घणा गाशे रे, ते तो आखर निर्गुण थाशे रे, रे..(७) में तो मांडी एहशुं माया रे, मने न गमे बीजानी छाया रे, वाचक 'उदयरल' एम बोले रे, कोई न आवे एहने तोले रे..(८)
(11) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : मेरा जीवन....)
शांति जिनेश्वर साहिबा रे, शांति तणो दातार, अंतरजामी छो माहरा रे, आतमना आधार.... शांति० (१) चित्त चाहे प्रभु चाकरी रे, मनचाहे मळवाने काज (२) नयन चाहे प्रभु निरखवा रे, द्यो दरिशन महाराज... शांति० (२) पलक न विसरो मन थकी रे, जेम मोरा मन मेह, एक पखो केम राखीयो रे, राज कपटनो नेह... शांति० (३) नेह नजर निहाळतां रे, वाधे बमणो वान, अखूट खजानो प्रभु ताहरो रे, दीजीए वांछित दान... शांति० (४) आश करे जे कोई आपणी रे, नवि मूकीए निराश, सेवक जाणीने आपणो रे, दीजीए तास विलास... शांति० (५) दायकने देतां थकां रे, क्षण नवि लागे वार, काज सरे निज दासनां रे, ए न्होटो उपकार... शांति० (६) एवू जाणीने जगधणी रे, दिलमां धरजो प्यार, रूपविजय कविरायनो रे, मोहन जयजयकार... शांति० (७) (12) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : एक, दो, तीन, चार, पांच)
शांति जिनेश्वर सांभळोजी, मुज मननी एक वातलडी, रात-दिवस हुं विनवू जी, शरणुं मांगु साक्षातजी, शरणुं मांगु साक्षात् जिनेश्वर मुज पापीने तार... मुजपापी० (१) साचा खोटा में कर्यां जी, कीधां पाप अपारजी, महेर करी मने तारजोजी, टाळो पाप परिताप० (२).... (२) स्वारथीओ संसार छे
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जी, लक्ष्मी अस्थिर निदानजी, परमार्थमां नवि वापर्यु जी, एकलां जावं ते जाणजी, (२).... (३) लक्ष्मी केरी लालचेजी, लूटयां में लोक अनेक रे, शासन पतिना चोपडे जी, लखाई गया त्यां लेख रे० (२).... (४) कर्या कर्म सहु अनुभवेजी, कोई न राखणहार रे, शांति जिनेश्वर आपथीजी, कोई दिन पामे पार रे० (२).... (५) विश्वसेन कुल दिपावीयुंजी, अचिरामात सुखकार रे, लाख वरसनुं आउखुंजी, मृगलंछन मनोहार रे० (२).... (६) भरणी नक्षत्रमा जनमीयाजी, मेघ राशी प्रमाण रे, गरुड निर्वाणी सेवा करे जी, शासनना रखवाळ रे० (२).... (७) 'विनय-विजय'नी विनंतीजी, स्वीकारो वारंवार रे, शरणुं ताहरु प्रभु मने जी, आ भव पार उतार रे० (२).... (८)
(13) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : मेरा जीवन......)
शांतिजिन एक मुज विनतिजी, सांभळो जगत आधार । साहिब हुं बहु भव भम्योजी, सेवतां पाप अढार.....शांति० (१) प्रथम हिंसामांही राचीयोजी, नाचीयो बोली मृषावाद, माचीयो लई धन पारकुं, हारीयो निज गुण स्वाद,..... शांति० (२) देव मानव तिर्यंच नाजी, मैथुन सेव्या घणी वार, नवविध परीग्रह मेळवीयोजी, क्रोध कीयो अपार,.....शांति० (३) मान माया लोभ वश पड्योजी, राग ने द्वेषपरिणाम, कलह अभ्याख्यान तिम सहीजी, पैशून्य दुरितर्नु ठाम,.....शांति० (४) रति अरति निंदा में करीजी, जेहथी होय नरकवास, कपट सहित जूठं भाखीयुंजी, वासीयुंचित मिथ्यात्व.....शांति० (५) पातिक स्थानक ए कह्याजी, तिम प्रभु आगममांही, तेह अशुद्ध परिणामथीजी, राखीए ग्रही मुज बांही.....शांति० (६) हुं परमात्मा जगगुरुजी, हितकर जग सुखदाय, हंसविजय कविराजनोजी, मोहन विजय गुण गाय.....शांति० (७) (14) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : चांदि जैसी सुरत तेरी)
शांति जिणंदप्रभु त्रिभुवन स्वामी, शिवगामी यशनामी, जेहने परम प्रभुता पामी, सिद्धि वधु सुखकारी, (२)...(१) चोसठ इन्द्र रह्या करजोडी, पाय नमे मान मोडी, अमरी भमरी परेमुखकमले, रासलीये हाथजोडी, (२)...(२) भावथी ताल विणा प्रभु पासे, धपमप मृदंग बजावे, ता ता थै थे नाटक करे निज, लळी लळी शीश नमावे, (२) हो (३) समता सुंदरीना
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प्रभु भोगी, त्रण रन मुज आपो, दिन-दयाळ कृपा करी तारक, जन्म-मरण दुःख कापो, (२) हो (४) निर्मोही पण जगजन मोहे, देशना भवि पडिबोहे अकल अगम्य अचिंत्य तुज महिमा, योगीधर नवि जोय हो, (५) शांतिजिनेश्वर शान्ति अनुपम मोहन कहे मुज आपोजी शांतिजिनेश्वर बाह्य ग्रही मुने, सेवक रूपे स्थापो, (२) हो (६) (15) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग-सासरीये केम जाशो हो)
अचिरानंदन वंदना जिणंदजी, भवोभवफंद निकंदना रे आराधो आनंदमां जिणंदजी, मपडो माया फंदमां रे हुं तो प्रभु पूजवा निसर्यो जिणंदजी, मने घरनो घंघो विसर्यो रे, मुखडुं जोवा ताहरूं जिणंदजी, व्हाला मोही रयुं मन माहीं, (१) तारु रूप दीर्छ जे वारनुं जिणंदजी, मने विसर्यु पुर संसार- रे, (२) तारी मूर्ति दीठी जे घडी जिणंदजी, मारी आंख हैयानी उघडी, (२) मने तुजशु लागी मोहनी जिणंदजी, मने नगमे संगत केहनी रे, मने घडीघडी तुं सांभळे जिणंदजी, वळी विसर्यो नवी विसरे० (३) रूडी अणियाली तुज आंखडी जिणंदजी, ते तो जाणे कमलनी पांखडीरे (२) मस्तक मुगट सोहामणो जिणंदजी, मने जोवानो अलजो घणो रे जिणंदजी, कांइ काने कुंडल सरीखा रे, हार हैये अति सोहतो जिणंदजी, ते तो भविजनना मन मोहतो रे, (५) पचरंगी आंगी बनी जिणंदजी, कांई शोभा शी कहुं तेहनी रे, (२) कुलपगर अति फूटडो जिणंदजी, तारा वयण अमीरस घुटडा रे, (६) दीपमाला धूप आरति जिणंदजी, दुःख दोहग दुरे वारती रे, (२) ता ता थै थै तानमां जिणंदजी, तने सुरनर गावे गानमारे, (७) जो तुम सेवक करीने लेखवो जिणंदजी, तो सुनजर करी देखवो, (२) उदय रत्न कहे आजथी जिणंदथी, मारां काज सर्यां जिनराजथी, (८)
(16) श्री शान्ति जिन स्तवन देखत नयन सोहाय प्रभुजी, (२) अजब मूर्ति अचिराजी को नंदन, चंदन चर्चित काय, प्रभुजी० (१) कंचन कांति पराजित सुरगिरि, दीठो नावे दाय, प्रभुजी० (२) पंचमचक्री षोड्शमोजिन टाळे सोळ कषाय प्रभुजी० (३) सोळ शणगार सजी सुरबाला, रास रमे चितलाय प्रभुजी० (४) खीमाविजय जिन चरणोनी सेवा, करता पाप पलाय प्रभुजी० (५)
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(17) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : असो मति भैया)
सकल समीहीत सुरतरु कंदा, शांतिकरण श्री शांति जिणंदा, साहिबा जिनराज हमारा, मोहना जिनराज हमारा, त्रिकरण शुद्धे चरण तुम विलगो, पलक मात्र न रहुं हवे अलगो सा० (१) विलगाते अलगा केम जाशे, छंड्ये पण तुम्हे नवि छुटाशे, प्रभु तुमे केह श्युं नेह न लाओ, वीतराग कही सवि समजावो सा० (२) ब्रीजा अवर को इम समजे, पण छोरु दीधाथी रीझे, बाळकना हठ श्युं नवि चाले, जे मांगे ते मावित्र आले सा० (३) भगते खेंची मनमां आण्यां, सहज स्वभावपणे ते में जाण्यां, माहरे एह प्रतिज्ञा साची, तुम पद सेवा एक ज जाची सा० (४) कबजे आव्या तो केम छुटी जे, जे मुंह मांगे तेहीज दीजे, अभेदपणे जो मन में मिलश्यो, कबजे थकी तो प्रभु निकलशो सा० (५) अक्षयभाव निधि तुम पास, आपी दासनी पुरो आश ज्ञानविमल समकित प्रभु ताई, दीधी साहिब एक वडाई सा० (६) (18) श्री शान्ति जिन स्तवन (श्री शांतिनाथ स्वामीना स्तवनो)
हम मगन भये प्रभु ध्यानमें, ध्यानमें ध्यानमें ध्यानमें ह० बिसर गई दुविधा तनमनकी अचिरा सुत गुन गानमें, ह० १ हरिहर ब्रह्म पुरंदरकी ऋद्धि, आवत नहि कोउ मानमें,। चिदानंदकी मोज मची है, समता रसके पानमे, ह० २ इतने दिन तुं नाहि पिछांन्यों, मेरो जनम गयो सो अजानमें। अब तो अधिकारी होइ बैठे, प्रभु गुन अक्षय खजानमें ह० ३ गइ दीनता सबही हमारी, प्रभु तुज समकित दानमें। प्रभु गुन अनुभव रसके आगे, आवत नहि कोउ मानमें। ह० ४ जिनही पाया तिनही छीपाया, न कहे कोई के कानमें। ताली लागी जब अनुभवकी, तब जाने कोउ सानमें। ह० ५ प्रभु गुन अनुभव चंद्रहास ज्यौं, सो तो न रहे म्यानमें। वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लीयो है मेदानमें। ह० ६
. (19) श्री शान्ति जिन. स्तवन
साहिब हो तुमे साहिब शांति जिणंद, सांभळो हो प्रभु सांभळो विनती माहरीजी। मनडुं हो प्रभु मनडुं रयुं लपटाय, सूरति हो प्रभु
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सूरति देखी ताहरीजी। १। आशा हो प्रभु आशा मेरू समान, मनमा हो प्रभु मनमा हती मुज अति घणीजी। पूरण हो प्रभु पूरण थइ अम आश, मूरति हो प्रभु मूरति दीठे तुम तणीजी |२| सेवक हो प्रभु सेवक जाणी स्वामी, मुजशुं हो प्रभु मुजशुं अंतर नवि राखीयेजी। विलगा हो प्रभु विलगा चरणे जेह, तेहने हो प्रभु तेहने छेह न दाखीयेजी।३। उत्तम हो प्रभु उत्तम जनशुं प्रीत, करवी हो प्रभु करवी निश्चे ते खरीजी। मुरख हो प्रभु मुरख शुं जसवाद, जाणी हो प्रभु जाणी तुमशुं मेकरीजी। ४ । निरवहवी हो प्रभु निरवहवि तुम हाथ, मोटाने हो प्रभु मोटाने भाखीये शं घणुंजी। पंडित हो प्रभु पंडित प्रेमनो भाण, चाहे हो नितु चाहे दरिशण तुम तणुंजी।५।
(20) श्री शान्ति जिन स्तवन (संभव जिनवर विनती)
सखी सेवो शांति जिणंदने । मन आणी अति उच्छाह रे । ए प्रभुनी जे सेवना, ते मानव भवनो लाह रे स० १ सेवा जे ए जिन तणी, ते साची सुरतरु सेव रे। आ जगमांहि जोवतां, अवर न एहवो देव रे। स० २ भगति भाव आणी घणो, जे सेवे ए निशदीश रे। सफळ सकल मन कामना, ते पामे वीसवावीस रे। स० ३ खिण एक सेवा प्रभु तणी। ते पूरे कामित काम रे। मार्नु त्रिभुवन संपदा, केरूं ए उत्तम धाम रे। स० ४ जनम सफळ जगे तेहनो, जे पाम्यो प्रभुनी सेव रे। पुण्य सकल तस प्रगटीयां, तस बेठ्या त्रिभुवन देव रे। स० ५ शिवसुख दायक सेवना, ए देवना देवनी जेह रे । पामीने जे आराधशे। शिवसुख लहेशे तेह रे। स० ६ इम जाणी नितु सेवीए, जिम पहोंचे वंछित कोडी रे। ज्ञानविजय बुधरायनो इम शिष्य कहे करजोडी रे। स०७
(21) श्री शान्ति जिन स्तवन । मोरा साहिब हो श्री शांतिजिणंद के, चंदन शीतल देशना, आवी नमे झे प्रभु ताहरा पाय के। सुरपति नरपति देशना । १। सुखकारी हो प्रभु ताहरो दीदार के, सार संसारमा एह छे। वारी जाउं हो हुं वार हजार के, चंद चकोर जयुं नेह छ । २। धर्मारथ हो पुरूषार्थ चार के, मोक्ष फळे सवि
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ते फव्यां, अनुबंधे हो चारे परमाण के, जे तुमची आणे मिल्या ।३। नाम थापन हो द्रव्य भाव स्वभाव के, चार निक्षेप जे तुम तणा। त्रिभुवनमा हो तारक छे एह के, जेहने ए तस शी मणा । ४। करूणाकर हो जगजन प्रतिपाल के, श्री विश्वसेन नृपनंदनो, अचिरामाता हो वळी पंचम चक्री के, सोलमो जिन कंचनवानो । ५ । मृग लंछन हो मूर्ति मनोहार के, सुरति सुंदर देखीये । बहु मोहे हो वंद्या जिन आज के, ज्ञानविमल गुण भाविये ।६।
(22) श्री शान्ति जिन स्तवन सुखदाई हो श्री शांति जिणंद के, साहिब सुणीए विनती, सेवकनी हो सुपरे दिलमांही के, बहु दिन केरी जे हती, तुज आणा हो पाखे निरधार के, काळ अनंत लगे भम्यो, भिन्न रूपे हो धरी आतम भाव के, शुद्ध अभेदे नवि नम्यो । १। जे भाख्या हो दंडक चउवीश के, तेहमां नव दंडक अछे । तुम भगति हो हीणा नर जेह के, प्राये ते तेहमां अछे। निक्षेपा हो जिनना छे चार के, सरीखे भावे जाणवा। तिहां बहुली हो छे प्रवचन साख के, मन संदेह न आणवा ।२। तुज मुद्रा हो नीरखीने जेह के, हरख न पाम्या प्राणीया। ते दुर्लभ हो बोधि निरधार के, जाणो प्रथम गुणठाणीया। तस तप जप हो किरीयानो धर्म के, कारण ते सवि कर्मना। नवि आवे हो संसारनो पारके, मर्म न पामे धर्मना, तुज चरणे हो आव्यो हुं आज के। सामग्री सघळी सही। जे दोहीला हो चारे परमांग के। ते पाम्या में गहगही। निज सेवक हो कामित न लहंत के, ते साहिब शोभा कीसी। अमे ले| हो तुम अचल साहि के देशो तुमे हरखे हसी।४। नवि जाण्या हो दीठा पण नाहि के, एहवो काळ घणो वयो। हवे जाण्या हो दीठा बहु हेज के, कहो किम हवे जाए रहयो। में जोडी हो एहवी एकांत के, प्रीति न जाए ते टळी। सूत्रार्थ हो जिम गुणपर्याय के, जिम दुधे धृत हळी मळी । ५ । वळी भव स्थिति हो कालादिक दोष के, अवलंबन बहु दाखशो । तेम निरखी हो उवेखी स्वामितो, पोतावट किम राखशो। वळी कहेशो हो अवसर नहि आज के, अविरति दोष देखाडशो । अवलंब्या हो आवि जे बांहि के । तेहने किम हवे छांडशो । ६ । वळी कहेशो हा अमे छु निराग के, सहु प्राणी सरीखा गणुं। नवि मार्नु हो अमे तेह वचन के, तारक बिरूद छे
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तुम तणुं। तुज मुद्रा हो सुप्रसन्न देखके लटके वंछित आपशो। शुभ अनुभव हो विचमांहि दलाल के। सहज स्वभावे थापशो |७। मुज निश्चय हो एहवो छे स्वामि तो, अलगा पलक एक नवि रहो। तस मनथी हो अंतर नहि कांई के, वयणे आप तणो कहो । मुज साथे हो जेह छे एकतान के, एक मने ते ध्याईए । रढ मांडे हो बालक परे जेह के, विनती वयणे गाईए । ८ । कहेवानो हो एह तो व्यवहार के, विनति लोक शीखाववा, शुद्ध समकित हो जेहने छे हाथ के, अंतर कोई न भाववा। मृग लंछन हो कंचन वान काय के, अचिरा नंदन जग धणी। तुम ध्याने हो होय सुजस सुवास के, ज्ञानविमल प्रभुता घणी | ६ |
(23) श्री शान्ति जिन स्तवन तार मुज तार मुज तार जिनराज तुं, आज में तोहि दिदार पायो । सकल संपत्ति मिल्यो, आज शुभ दिन वल्यो, सुरमणि आज अप्पचिंत आयो। तार०।१। ताहरी आण हुं शेष परे शिरवहुं, निरवहुं भवभये चित्त शुद्धे । भमतां भवकानने सुरतरूंनी परे, तुं प्रभु ओळख्यो देव बुद्धे । तार०।२। अथिर संसारमा सार तुज सेवना। देवना देव तुज सेव सारे । शत्रुने मित्र समभावे बेहु गणे, भक्तवत्सल सदा बिरूद धारे। तार०।३ । ताहरा चित्तमा दास बुद्धे सदा, हुं वसुं एहवी वात दूरे | पण मुज चित्तमां तुहि जो नित वसे, तो किशुं कीजिये मोह चोरे। तार०।४। तुं कृपाकुंभ गतदंभ भगवंत तुं, सकल भविलोकने सिद्धि दाता। त्राण मुज प्राण मुज शरण आधार तुं, तुं सखा मातने तात भ्राता। तार०।५। आतमाराम अभिराम अभिधान तुज, समरतां दासनां दुरित जावे। तुज वदन चंद्रमा निशदिन पेखतां, नयन चकोर आनंद प्रवे। तार०।६। श्री विश्वसेन कुलकमल दिनकर जिस्यो। मन वस्यो मात अचिरा मल्हायो। शांति जिनराज शिरताज दातारमां, अभयदानी शिरे जग सवायो। तार०।७। लाज जिनराज अब दासनी तो शिरे, अवसरे मोद| मोज पावे। पंडितराय कवि धीरविमल तणो, शिष्य गुण ज्ञानविमलादि गावे। तार० | ८ |
(24) श्री शान्ति जिन स्तवन जीरे मारे शांति जिनेवर देव, अरज सुणो प्रभु माहरी जीरेजी जीरे
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मारे भवमा भमतां सार । सेवा पामी ताहरी जीरेजी, 19। जीरे मारे मार्नु सार हुं तेह, हरिहर दीठा लोयणे जीरेजी,। जीरे मारे दिठे लाग्यो रंग, तुम उपर एके मने जीरेजी ।२। जीरे मारे जिम पंथी मन धाम, सीतानुं मन रामशुं जीरेजी। जीरे मारे विषयीने मन काम, लोभी- चित्त दामÓ जीरेजी ।३। जीरे मारे एहवो प्रभुशुं रंग, ते तो तुम कृपा थकी जीरेजी। जीरे मारे निर्वेद अत्यंत, नित्ये ज्ञान दशा थकी जीरेजी।४। जीरे मारे शांति करो शांतिनाथ, शांति तणो अरथी सही जीरेजी। जीरे मारे ऋद्धि कीर्ति तुम पास, अमृतपद आपो वही जीरेजी । ५ |
(25) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : बेना...रे) ___ प्रभुजी रे...... शांति जिणंद सुखकारी घट अंतर करुणा धारी (२) विश्वसेन अचीराजीको नंदन, कर्म कलंक निवारी, अलख अगोचर अजर अमरतुं, मृग लंछन पदधारी, घ० १. कंचनवर्ण शिला तनुं सुंदर, मुरती मोहनगारी, पंचमो चक्री सोलमो जिनवर, रोग शोक भय वारी घ० २. पारेवो प्रभु शरण ग्रहीने, अभयदान दियो भारी, हम प्रभु शांती जिनेश्वर नामे, ले| शिव पटराणी घ० ३. शांति जिनेश्वर साहिबा मेरा, शरण लियो में तेरा, कृपा करी मुज टाळो साहिब, जन्म मरणना फेरा घ० ४. तन मन स्थिर करी तुम ध्याने, अंतर मेल ते वागे, विरविजय कहे तुम सेवनथी, आतम आनंद पावे घ० ५
(26) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : मणियारो ते)
शांतिनाथ सोहामणो रे, सोळमो ए जिनराय, शांति करो भव चक्रने रे, चक्रधर कहेवाय रे, मुनिवर तुं जग जीवन सार, मुनि० १ भवोदधि मथतो में लह्यो रे, अमुलख रत्न उदार रे, लक्ष्मी पामी सायर मथी रे, जिम हर्षे मुरार रे, मुनि० २ रजनी अटतां थकां रे, पूर्ण-मासे पूर्ण चंद रे, तिम मे साहिब पामीओ रे, भवमां नयणानंद रे० मुनि० ३ भोजन करतां अनुदिने रे, बहु लहे घृतपुर, तिम मुजने तुहि मिल्यो रे, आतमरूप मुनि० ४ दरिद्रता रीसे जळी रे, नाशी गई पाताळ, रे शेषनाग काळो थई रे, भू-भार उपाडे बाळ रे, मुनि० ५ योगीसर जोया थकां रे, समरे योग सुजाण
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307 रे, अजोगिता वांछिये रे, योग्यालोक निदान रे, मुनि० ६ अचिरा नंदन तुं जयोरे, जय जय तुं जगनाथ रे, किर्तीलक्ष्मी मुज घणी रे, जो तुं चडीओ हाथ रे मुनि० ७
(1) श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन ॥१॥ वागी वागी रे अमरी वीणा वाजे, मृदंग रणके रे! ठमक पाव विछुवा ठमके, भेरी भणके रे...वागी० ॥२॥ घम घम घम घुघरी घमके, झांझरी झमके रे! नृत्य करंति देवांगना जाणे, दामनी दमके रे...वागी० ॥३॥ दौं दौं किदौ दुंदुभी बाजे, चुडी खलके रे। फुदडी लेतां कुमति फरके, झाल झबुके रे...वागी० ॥४॥ कुंथु आगे इम नाच नाचे, चालने चमके रे, उदय प्रभु बोधी बीज आपो, ढोलने ढमके रे...वागी० ॥५।।
(2) श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन तुज मुद्रा सुंदर, रुप पुरंदर, मोहीया साहिबजी तुज अंगे कोडी गमे गुण गिरुआ, सोहीया साहेबजी, तुम अमीय थकी पण लागे मीठी, वाणी रे साहेबजी, विण दोरी सांकळ लीधु मनडु ताणीरे साहेबजी ॥२॥ खिण खिण गुणगाउं पाउं तो, आराम रे साहेबजी, तुज दरिशन पाखे न गमे बीजा, काम रे साहेबजी ॥३॥ मुज हृदय कमल विच वसीयुं, ताहरु नामरे साहेबजी, तुज मुरति उपर वारुं तन मन, दामरे, साहेबजी. ।।४।। करजोडीने निशदिन उभो रहुँ, तुज आगेरे साहेबजी, तुज मुखडु जोता भूख तरस, नवि लागे रे साहेबजी, ॥५॥ में कयांयन दीठी जगमां ताहरी, जोडरे, साहेबजी, तुज दीठे पुरण पहोंता मननां, कोड रे साहेबजी, ॥६॥ मुज न गमे नयणे दीठा बीजा, देव रे साहेबजी हवे भवो भव होजो मुजने ताहरी सेवा रे साहेबजी, ॥७॥ तुं परम पुरुष परमेश्वर अकल स्वरुप रे साहेबजी, तुज चरणे प्रणमें सुरनर केरा भुप रे साहेबजी, ॥८॥ तुं कापे भव दुःख आपे परमानंद रे साहेबजी, बलीहारी ताहरी प्रभुजी, कुंथु जिणंद रे साहेबजी, ॥६॥ मन वांछित फळीयो मळियो तुं मुज, जाम रे साहेबजी, इम पभणे वाचक विमल विजयनो राम रे साहेबजी ॥१०॥
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(3) श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन ( राग नगरी नगरी द्वारे द्वारे)
मनडुं किमही न बाजे हो कुन्थुजिन मनडुं किम ही न बाजे; जिम जिम जतन करीने राखुं, तिम तिम अलगुं भांजे - हो कुं. १ रजनी वासरवसति उज्जड, गयण पायाले जाय; साप खाय ने मुखडुं थोथु, अह उखाणो न्याय हो कुं० २ मुगतितणा अभिलाषी तपीया, ज्ञान ने ध्यान अभ्यासे; वैरीडुं कांइ अहवुं चिंतें, नांखे अवळे पासे हो कुं० ३ आगम आगमधरने हाथे, नावे किणविध आंकुं; किहां कणे जो हठ करी हटकुं, तो व्यालतणी परे वांकु. हो कुं० ४ जो ठग कहुं तो ठगतो न देखूं, शाहुकार पण नाही, सर्वमाहे ने सहुथी अलगुं, अ अचरिज मनमांही हो कुं० ५ जे जे कहूं. ते कान न धारे, आपमते रहे कालो; सुरनर पंडितजन समजावे, समजे न माहरो सालो. हो कुं० ६ में जाण्युं अ लिंग नपुंसक, सकल मरदने ठेले; बीजी वाते समरथ छे नर, अहने कोई न जेले. हो कुं० ७ मन साध्युं तेणे सघळं साध्युं, अह वात नहि खोटी; इम कहे साध्युं ते नवि मानुं, अ कही वात छे मोटी. हो कुं० ८ मनडुं दुराराध्य तें वश आण्युं, ते आगमथी मतिआणुं; आनंदघन प्रभु माहरूं आणो, तो साधुं करी जाणुं, हो कुं० ६
( 4 )
श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन
समवसरण बेसी करीरे, बारह पर्षदामांहि; वस्तु स्वरूप प्रकाशतारे, करुणाकर जगनाहोरे, कुंथु जिनेसरु || १ || निरमल तुज मुख वाणी रे; जे श्रवणे सुणे, तेहिज गुण मणि खाणी रे, कु० ॥ २ ॥ गुण पर्याय अनंततारे, वळी स्वभाव अगाह; नय गम भंग निक्षेपनारे, हेयाहेय प्रवाह रे, कु० || ३ || कुंथुनाथ प्रभु देशनारे, साधन साधक सिद्ध; गौण मुख्यता वचनमांरे, ज्ञान ते सकल समृद्ध रे, वस्तु अनंत स्वभाव छे रे, अनंत कथक तसु नाम; ग्राहक अवसर बोधथीरे, कहे ते अर्पित कामो रे, कु० ||५|| शेष अर्पित धर्मनेरे, सापेक्ष श्रद्धा बोध; उभय रहित भासन हुवे रे, प्रगटे केवल बोध, कु० ॥६॥ छति परिणति गुण वर्तनारे, भासन भोग आणंद; सम काळे प्रभु ताहरे रे, रम्य रमण गुणवृंदो रे, कुं० ॥७॥ निज
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भावे सिय अस्तिता रे, पर नास्तित्व स्वभाव; अस्तिपणे ते नास्तिपणे रे, सिय ते उभय स्वभावो रे, कुं० ॥८॥ अस्ति स्वभाव जे आपणो रे, रुचि वैराग्य समेत प्रभु सन्मुख वंदन करीरे, मांगीश आतम हेतो रे, कुं० ॥६॥ अस्ति स्वभाव जे रुचि थई रे, ध्यातो अस्ति स्वभाव; देवचंद्र पद ते लहे रे, परमानंद जमावो रे, कुं० १०
(5) श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन
कुन्थु जिनेसर जाणजोरे लाल, मुज मननो अभिप्राय रे; जिनेश्वर मोरा, तुं आतम अलवेसरुरे लाल, रखे तुज विरहो थाय रे. जि० तुज विरहो किम वेठियेरे लाल, तुज विरहो दुःखदायरे जि० तुंज विरहो न खमायरे, जि० क्षण वरसां सो थाय रे. जि० विरहो मोटी बलाय रे, जि० तुज० अ आंकणी १ ताहरी पासे आववुं रे लाल, पहेलां न आवतुं दाय रे; जि० आव्या पछी जे जायवुं रे लाल, तुज गुण वशे न सुहायरे. जि० तुज० २ न मिल्यानो धोखो नहि रे लाल, जस गुणनुं नहि नाण रे; जि० मळीया गुण कळीया पछी रे लाल, विछुडत जाये प्राण रे. जि० तुज० ३ जाति अंधने दुःख नहि रे लाल, न लहे नयननो स्वादरे; जि० नयन स्वाद लही करी रे लाल, हार्याने विखवाद रे. जि० तुज - ४ बीजे पण किहां नवि गमे रे लाल, जिणे तुज विरहे बचायरे. जि० मालति कुसुमे म्हालीयो रे लाल, मधुप करी रे न जाय रे. जि० तुज० ५ वनदव दाधां रुखडां रे लाल, पाल्हवे वली वरसात रे; जि० तुज विरहानलता बल्या रे लाल, काल अनंत गमातरे. जि० तुज० ६ टाढक रहे संगमां रे लाल, आकुलता मिटि जाय रे, जि० तुज संगे सुखीयो सदारे लाल, मानविजय उवज्झायरे. जि० तुज० ७ (6) श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन
कुन्थुजिनेश्वर साचो देव, चोसठ इन्द्र करे जस सेव, साहिब सांभळो । तुं साहिब जगनो आधार, भव भमतां मुज नाव्यो पार, साहिब सांभळो । कहुं मुज मननी वात, मूकी आंबलो । सा० १ प्रशंसा उपर मुज रीझ, निंदा करे ते उपर खीज। साहिब सांभळो । ए बे तुमने छे समभाव । ते मांगु छं पामी दाव, साहिब सांभळो । २ । पुद्गल पामी राचुं रे हुं, ते नवि इच्छे
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प्रभुजी तुं साहिब सांभळो। ए गुण मोटो छे तुम पास, ते देतां सुखीयो होय दास, साहिब सांभळो। ३ विषय वयरी संतापे जोर, कामे वाह्यो फरू जिम ढोर, साहिब सांभळो। वळी वळी दुःख दीये चार चोर, तुम विना कोण आगळ करूं सोर, साहिब सांभळो । ४ तुमथी भाग्यां लाग्या मुज केड, चिहुं गतिनी करावे खेड। साहिब सांभळो । जाणी तुमारो दे मुज मार, तो किम न करो प्रभुजी सार । साहिब सांभळो। ५ सेवक सन्मुख जुओ एकवार, तो ते उभा न रहे लगार, साहिब सांभळो। मोटानी मीटे काम थाय। तरणि तेजे तिमिर पलाय, साहिब सांभळो। ६ करूणावंत अनंतबळ धणी, वार न लागे तुम तारवा भणी। साहिब सांभळो । श्री गुरु खिमाविजयनो शीस, जस प्रेमे प्रणमे निशदिश। साहिब सांभळो । ७ । (7) श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन (पंथडो निहालुं रे बीजा जिन)
कुन्थु जिनेसर साहिब तु धणी रे, जगजीवन जगदेव । जगत उद्धारण शिवसुख कारणे रे, निशदिन सारूं सेव कुन्थु० १. हुं अपराधी काल अनादिनो रे, कुटिल कुबोध कुनीत, लोभ क्रोध मद मोहे माचीयो रे, मत्सर मग्न अनीत । कुन्थु० २. लंपट कंटक निंदक दंभीयो रे, पर वंचक गुण चोर | आपथापक परनिंदक मानीयो रे, कलह कदाग्रह घोर । कुन्थु० ३. इत्यादिक अवगुण कहुँ केटला रे, तुं सब जाननहार। जो मुज वीतक वीत्यो वीतशे रे, तुं जाणे कीरतार। कुन्थु० ४. जे जग पूरण वैद कहाइयो रे, रोग करे सब दूर । तिनही अपना रोग दीखाइये रे, तो होवे चिंता चुर । कुन्थु० ५. तुं मुज साहिब वैद धनवंतरूं रे, करम रोग मोह काट । रत्नत्रयी पंथ मुज मन मानीयो रे, दीजो सुखनो थाट। कुन्थु० ६. निरगुण लोह कनक पारस करे रे, मांगे नवि कछु तेह | जो मुज आतमसंपद निरमलि रे, दास भणी अब देह। कुन्थु० ७..
(1) श्री अरनाथ जिन स्तवन प्रभु ताहरो ताग न पामीओ, गुणदरिओ उंडो अगाध हो; किहां ओ दिलनो दिलासो नवि मळे, कोई बगसे नही अपराध हो०. ।।१।। मुज मननो मानीतो तुं प्रभु, निसनेही घणुं निरलेप हो; प्रीती तोकीम ही न पालटे, जो
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कीजे कोड आक्षेप हो०...मुज०. ॥२॥ जे भजतां भाव धरे नहि, किम भजी ओ तेह उल्लास हो; न्याराशुं प्यार कीजे किश्यो, पण मेले नहि मन आश हो०...मुज०.॥३॥ जाण आगे जणावीओ, अम विनतडी वितराग हो; शुं घj आप वखाणीओ, ओक तुजशुं मुज मन राग हो०...मुज० ॥४।। ताहरी महेर नजर विना, मुज सेवा सफल न होय हो; जे सहेजे तमे साहमुं जुओ, तो मुजने गंजे न कोय हो. मुज०. ॥५॥ त्रिभुवनमां तुज विण सही, शिर केहने न नामुं स्वामी हो; ओलगडी श्री अरनाथनी, अवसरे आवशे काम हो०...मुज०. ॥६॥ जाणुं छु विसवाविश सही, मुज आशा फळशे नेट हो; नित्य चाहुं उदयरत्न वदे, तुज पयनी भवो भव भेट हो०...मुज०. ।।७।।
(2) श्री अरनाथ जिन स्तवन सुण मेरी बेनी ओ जिन साचो, रत्नचिंतामणि जाचो रे, राय सुदर्शन कुल दीवो, श्रीदेवी सुत चिरंजीवो रे,..सुण० ॥१॥ ओ साहिब मोरा दिल माहे वसीयो, जिम कमले भमरो रसीयो रे, अही ज सयण सदा निरवहीये, जिम कुसुममां परिमल वहिये रे,..सुण० ॥२॥ ताहरी सूरतकी बलिहारी, देखत ही दिल प्यारी रे, पाप संताप कहत अवगाहयां आज सुधाकुंडमां नाहयो रे..सुण० ॥३॥ नाथ मेरे अरनाथ सोहावे. जश सेवे सुरनर नाथो रे. दान संवत्सरी बहु धन दीधा, सुरतरु समवड हाथो रे,..सुण० ॥४॥ त्यागी भोगीने, सौभागी, जोगीसर वैरागी रे, मेरुविजय गुरु चरण सेवा करे, विनित है तुम गुण रागी रे,..सुण० ॥५॥
(3) श्री अरनाथ जिन स्तवन (मेरा जीवन कोरा कागज)
प्रणमो प्रेमे प्रह समेरे, जिनवर श्री अरनाथ ॥ आं जगमांही जोवतारे साचो शिवपुर साथ ॥ प्रणमो प्रेमे०।।१।। सुखदायक साहिब मल्योतो, फल्यो सुरतरुं बाल ।। देखी प्रभु देदारनेरे, पामी जे भवपार ।। प्रणमो प्रेमे०॥२॥ नामथी नवनिधि पामीयेरे, दरिशणे दुर पलाय॥ प्रहसमे प्रेमे प्रणमतारे, भवोभवना पातीक जाय॥ प्रणमो प्रेमे०॥३॥ सुरती ए जिनवर तणी रे, साची सुरतरु वेल ॥ निखतां नितुं नयणशुरे, उलटे आनंद रेल ।। प्रणमो प्रेमे०॥४॥ शांत सुधारस शुं भरीरे, ए मुरती मनोहार ।। प्रणमे जे
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नित्य प्रेमशुंरे, धन धन तस अवतार ॥ प्रणमो प्रेमे० ॥ ५ ॥ पुण्य हशे ते पामशे रे, ए प्रभुनी नीत सेव ॥ सकल गुणेकरी शोभतां रे, अवर न एहवो देव ॥ प्रणमो प्रे० ॥ ६ ॥ चरण कमलए प्रभु तणां रे, सेवतां निशदिन, ॥ नयविजय कहे संपदारे, मलशे विशवाविश || प्रणमो प्रेमे० ॥७॥
( 4 )
श्री अरनाथ जिन स्तवन ( राग : राखना रमकडां)
धरम परम अरनाथनो, किम जाणुं भगवंत रे; स्वपर समय समजावीये, महिमावंत महंत रे ॥ ० ॥ १ शुद्धातम अनुभव सदा, स्वसमय एह विलास रे; परबडी छांहडी जिहां पडे, ते पर समय निवास रे ॥ध॥ २ तारा नक्षत्र ग्रह चंद्रनी, ज्योति दिनेश मोझाररे; दर्शन ज्ञान चरणथकी, शक्ति निज धार रे || ध० || ३ भारी पीळो चीकणो, कनक अनेक तरंग रे; पर्याय दृष्टि न दीजीये, एक ज कनक अभंग रे || ध० ॥ ४ दर्शन ज्ञान चरण थकी, अलख सरूप अनेक रे; निर्विकल्प रस पीजीए, शुद्ध निरंजन एक रे ॥० ॥ ५ परमारथ पंथ जे कहे, ते रंजे एक तंत रे; व्यवहारे लख जे रहे, तेहना भेद अनंत रे | | ० || ६ व्यवहारे लखे दोहिला, कांई न आवे हाथ रे; शुद्ध नय थापना सेवतां, नवि रहे दुविधा साथ रे ॥ ० ॥ ७ एक पखी लख प्रीतनी, तुम साथे जगनाथ रे; कृपा करीने राखजो, चरण तले ग्रही हाथ रे ॥०॥ ८ चक्री धरम तीरथ तणो, तीरथ फल ततसार रे, तीरथ सेवे ते लहे, आनंदघन निरधार रे ॥ध॥ ६
( 5 )
श्री अरनाथ जिन स्तवन ( राग : अंधारानो दिवडो )
प्रणमो श्री अरनाथ, शिवपुर साथ खरोरी; त्रिभुवन जन आधार, भवनिस्तार करोरी ॥१॥ कर्ता कारण योग, कार्य सिद्धि लहेरी; कारण चार
अनूप, कार्यथी तेह ग्रहेरी || २ || जे कारण ते कार्य, थाये पूर्ण पदेरी; उपादान ते हेतु, माटी घट जेम वदेरी || ३ || उपादानथी भिन्न, जे विणु कार्य न थाये; न हुवे कार्य रुप, कर्त्ताने व्यवसाये ॥४॥ कारण तेह निमित्त, चक्रादिक घट भावे, कार्य तथा समवाय, कारण नियतने दावे ॥ ५ ॥ वस्तु अभेद सरुप, कार्यपणुं न ग्रहेरी; ते असाधारण हेतु, कुंभे स्थास लहेरी || ६ || जेनो न व्यापार, भिन्न नियत बहु भावी; भूमि काळ आकाश,
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घट कारण सद्भावी॥७॥ एह अपेक्षा हेतु, आगममांहि कयोरी; कारणपद उत्पन्न, कार्य थये न लह्योरी ॥ ८ ॥ कर्त्ता आतम द्रव्य, कार्य सिद्धिपणोरी; निज सत्तागत धर्म, ते उपादान गणोरी || ६ || योग समाधि विधान, असाधारण तेह वदेरी; विधि आचरणा भक्ति, जिणे निज कार्य सधेरी ॥ १० ॥ नरगति पढम संघयण, तेह अपेक्षा जाणो; निमित्ताश्रित उपादान, तेहनी लेखे आणो || ११|| निमित्त हेतु जिनराज, समता अमृत खाणी; प्रभु आलंबन सिद्धि, नियमा एह वखाणी ॥१२॥ पुष्ट हेतु अरनाथ, तेहना गुणथी हलीये; रीझ भक्ति बहुमान, भोग ध्यानथी मलीये ॥ १३ ॥ मोटाने उछंग, बेठाने शी चिंता; तिम प्रभु चरण पसाय, सेवक थया निचिंता ||१४|| अर प्रभु प्रभुता रंग, अंतर शक्ति विकासी; देवचंद्रने आनंद अक्षयभोग विलासी ॥१५॥
(1) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन
मल्लिनाथ प्रभुशुं होके, साकर दुध परे; मुज मन अति मलीयो होके, पूरव प्रेम भरे०. |9|| प्यारा मांही प्यारो होके, तेजमां तेज भले; भूते भूत भेला होके, जगमां जेम मले० ॥ २॥ तन्मय ते रीते होके, अंतर ती अलगो; पुरण प्रभु साथे हो के, मन मारो वलगो० . ||३|| फुले जेम परिमल होके, तलमां तेल जिस्यो; मुज मनडां मांहे हो के, तुं प्रभु तेम वस्यो ०. ॥४॥ कोडी गमे कोई होके, तरजे जो त्रटकी; बे दिल नवि थाउं हो के, तो पण तुम थकी ० . ||५|| तुं मुज स्वामी होके, छे अंतर जामी; मुज खमजे खामी हो के, कहुं हुं शीरनामी ०. || ६ || उदय रतननी हो के, अहवी अरज सुणी; प्रभु मिलीया पोते हो के, मनमा महेर घणी०. ||७|| समताथी दर्द सहु ) हवे जाणी मल्लि जिणंद में माया तमारी रे, तुमे कहेवाओ निरागी, जुओ विचारी रे. ॥१॥ प्रभु तेहशुं ताहरी वात, जे रहे तुजवलगारे; ते मुळन पामे घात, जे होवे अलगारे. ॥२॥ तुमे वारो चोरी नाम, जगत चित्त चोरो रे, तुमे तारो जगनां लोक, कराव्यों न्होरो रे ||३|| तुमे कहेवाओ निर्ग्रथ, तो त्रिभुवन केरी रे; प्रभु केम धरो ठकुरात, कहेशो शुं फेरी रे,
(2) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन ( राग
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॥४॥ प्रभु मोटा केरी वात, कहोकुण जाणे रे; तुमे बोलो थोडा बोल, न चुको टाणे रे. ॥५॥ प्रभु तुजशुं माहरे प्रिति, अभेदक जागी रे, मारा भव भव केरी आज, भावठ सहु भांगी रे. ।।६।। गुरु वाचक विमलनो शिष्य, कहे गुण रागे रे; इम पाम्यो मल्ली जिणंद, मिल्यो तुं भाग्ये रे. ॥७।।
(3) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन सेवक किम अवगणिये? हो मल्लिजिन! ओ अब शोभा सारी; अवर जेहने आदर अति दीये, तेहने मूल निवारी, हो मल्लि १. ज्ञान स्वरूप अनादि तमारुं, ते लीधुं तुमे ताणी; जुओ अज्ञान दशा रीसावी, जातां काण न आणी, हो मल्लि २. निद्रा सुपन जागर उजागरता, तुरीय अवस्था आवी; निद्रा सुपन दशा रीसाणी, जाणी न नाथ मनावी, हो मल्लि ३. समकित साथे सगाई कीधी, सपरिवार शुं गाढी; मिथ्यामति अपराधण जाणी, घरथी बाहिर काढी, हो मल्ली ४. हास्य अरति रति शोक दुर्गंछा, भय पामर करसाली; नोकषाय श्रेणी गज चढतां, श्वानतणी गति झाली, हो मल्लि ५. रागद्वेष अविरतीनी परिणति, चरण मोहना योद्धा; वीतराग परिणति परिणमतां, उठी नाठा बोद्धा, हो मल्लि ६. वेदोदय कामा परिणामां, काम्य करम सहु त्यागी; निःकामी करुणा रससागर, अनंत चतुष्क पद पागी, हो मल्लि ७. दान विघन वारी सहु जनने, अभयदान पद दाता; लाभ विघन जग विघन निवारक, परम लाभ रस माता, हो मल्लि ८. वीर्य विघन पंडीत विर्येहणी, पूरण पदवी जोगी; भोगोपभोग दोय विघन निवारी, पूरण भोगी सुभोगी, हो मल्लि ६. इम अढार दूषण वर्जित तनु, मुनिजन वृंदे गाया; अविरति रुपक दोष निरुपम, निर्दुषण मन भाया, हो मल्लि १०. इम विध परखी मन विसरामी, जिन वर गुण जे गावे; दीन बंधुनी महेर नजरथी, आनंद घन पद पावे, हो मल्लि ११.
(4) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन ___ मनमोहन मल्लिनाथ सुणो मुज विनती; हुँतो डूब्यो भवोदधी मांही, पीडायो कर्मे अति. मल्लि० (१) ज्यां ज्यां अधर्म केरा काम, तेमां घj हरखीओ; धर्मकाजमां न दीधुं ध्यान, मारग नवि परखीयो. मल्लि० (२) दुर्गुण भर्यो रे हुं बाळ, सुगुण गुण नवि रम्यो; मोहे माच्यो सदाकाळ,
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हर्षना फंदे फर्यो. मल्लि० (३) छल करीने घणुं दगाबाज, द्रव्य में संचिया; जुठु लवी मुख वाच, लोकोना मन हर्या मल्लि० (४) पतित पामर रंक जे जीव, तेने छेतर्या बहु; पापे करी भराय पिंड, कथा केटली कहुं. मल्लि० (५) प्रभु ताहरो धर्म लगार, में तो नवि जाणीयो; में तो उत्थापी तुम आण, पापे भर्यो प्राणीओ. मल्लि० (६) शुद्ध समकित ताहरूं जेह, ते मनथी न भावियु; शंका कंखा वितिगिच्छा, मोही पाखंडे पडावीयुं. मल्लि० (७) तकशीरो घणी जगनाथ, तें मुखे नवि गणि शकुं; करो माफ गुना जगनाथ, कथा केटली बकुं मल्लि० (८) रीझ करीने घणी जगनाथ, भवपासने तोडीओ, शरणे राखीने महाराज, पछे केम छोडीये. मलल० (६) मलीया वाचक वीर सुजाण, विनयनी आवारमा, जेथी टळीया कर्मना फंद, प्रभुजी देदारमां. मल्लि० (१०)
(5) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (घोर अंधारीरे) मिथिला नगरीरे, अवतरीयाने, कुंभ नरेश्वर नंद, लंछन सोहेरे, कलश तणुंने नीलवरण सुखकंद ॥१॥ मल्लि जिनेश्वर रे, मन वसीयाने
ओगणीशमा अरिहंत, कपट धरमनारे, कारण थी प्रभु कुंवरी रुप धरंत ।।२।। सहस पंचावनरे, वर्ष सुणोने आयुतणो परिमाण, माता प्रभावतीरे, उदरे धरीया, पणवीश धनुष तनुमान ॥३॥ सहस पंचावनरे, साध्वीओने, मुनि चालीश हजार, समेत शिखरेरे, मुगते गयाने, त्रणभुवन आधार ॥४॥ अडभय टालीरे, आजथकी जिणे, बांधी अविहड प्रीत, राम विजयनारे, सेवकनी प्रभु, एह छे अविहड रीत।।५।। (6) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (सग : द्वारापुरीनो नेम राजीयो)
प्रभु मल्लि जिणंद शांति आपजो, कापजो मारा भवो दधिना पापरे ।। दयालु देवा प्रभु०॥१॥ वीतराग देवने वंदु सदा, बालब्रह्मचारी जग विख्यात रे।। दयालु देवा०॥२।। अचल अकलने अमर तुं, कषायमोह नथी लवलेशरे । दयालु देवा०॥३॥ सर्प इंश्यो छे मने क्रोद्धनो, रगे रगे व्याप्यु तेनुं विषरे ।। दयालु देवा०॥४॥ मान पत्थर स्थंभ सारीखो, मने कीधो तेहने जडवानरे ।। दयालु देवा०॥५॥ माया डाकण वलगी मने, आप विना
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कोण छोडावण हाररे ।। दयालु देवा०॥६॥ लोभ सागरमां हुं पड्यो, डूबी गयो छु भवदुःख अपाररे । दयालु देवा० ॥७॥ आप चरणे हवे आवीयो, रक्षा करो मुज जगनाथरे। दयालु देवा०॥८॥ अरज स्वीकारो मुज आ बालनी, ज्ञानविमल बाल तुज हाथरे ।। दयालु देवा०॥६॥ (7) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (राग : झणण झणण झणकारो रे)
सेवो भवियण मल्लि जिनेसर, भावभगती मन आणी रे, मारो जिनजी चित्त सुहावे.... गंगोदक जळ कुंभ भरी भरी, स्नात्र करो भवि प्राणी रे... (१) केशर चंदन भरीय कचोळी, आणी फुल चंगेरी (२) नव नव अंगे पूजो मूरति, मल्लि जिनेसर केरी (२) सेवो० (२) देवाधिदेव तणी जे पूजा, किजे अष्ट प्रकारी... (२) ते तो अष्ट महासिद्धि आपे, अष्ट करम निवारी (२) सेवो० (३) धन ते दिठां जिहां ते धन जेणे प्रभु गुण गाइजे...(२) जीणे प्रभु देखी हरख लहीजे सा नयणा फल लीजे० (२) (४) जीणे नयणे दीठा ए जिनवर तेही ज जिन हैये वहीए, (२) धन ते हैडुं नयन थकी पण, अधिक कृतारथ कहीए० (२) (५) धन ते हाथ जेणे प्रभु पूजे, ते धन शिरे जेणे नमीये, (२) जिन गुण गातां भक्ति करतां, शिवरमणी शुं वरीये० (२) (६) शिवसुखकारी भव भयहारी, मूरति मोहनगारी, (२) कहे 'केसर' नीत सेवा कीजे, मल्लि जिनेसर केरी० (२) (७) (8) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (राग : आंखडी मारी प्रभु)
मल्लिनाथ जगनाथ चरणयुग ध्याईये रे, च० शुद्धातम प्रागभाव परम पद पाईये रे; प० साधक कारक षट करे गुण साधना रे, क० तेहिज शुद्ध सरुप थाये निराबाधनो रे, था० ॥१॥ कर्ता आतमद्रव्य कार्यनी सिद्धता रे, का० उपादान परिणाम प्रयुक्त ते करणतारे; प० आतम संपद दान तेह संप्रदानतारे, ते० दाता पात्रने देय त्रिभाव अभेदता रे, त्रि०॥२॥ स्व पर विवेचन करण तेह अपादानथी रे, ते० सकळ पर्याय आधार संबंध आस्थानथी रे; स० बाधक कारक भाव अनादि निवारवोरे, अ० साधकता अवलंबी तेह समारवोरे, ते०॥३॥ शुद्धपणे पर्याय प्रवर्तन कार्यमेरे, ते० चेतन चैतन्य भाव करे समवेतमें रे, क० सादि अनंतो काळ रहे निज
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खेतमें रे, २०॥४॥ पर कर्तृत्व स्वभाव करे त्यां लगी करे रे, क० शुद्धकार्य रुचि भास थये नवि आदरे रे; थ० शुद्धातम निज कार्य रुचि कारक फिरे रे, रु० तेहिज मूळ स्वभाव ग्रह्यो निज पद वरे रे, ग्र०॥५॥ कारण कारज रुप अछे कारकदशा रे, अ० वस्तु प्रगट पर्याय एह मनमें वस्या रे, ए० पण शुद्ध सरुप ध्यान चेतनता ग्रहे हे, चे० तब निज साधक भाव सकळ कारक लहेरे, स०॥६॥ माहरु पूर्णानंद स्वरूप प्रगट करवा भणीरे, प्र० पुष्टालंबन रुप सेव प्रभुजी तणीरे, स० देवचंद्र जिनचंद्र भक्ति मनमें धरो रे, भ० अव्याबाध अनंत अक्षयपद आदरोरे, अ०॥७॥
(9) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (रूप अनूप निहाळी)
सुगुरु सुणी उपदेश, ध्यायो दिलमें धरी, कीधी भगती अनंत, चवी चवी चातुरी।, सेव्यो रे वीसवा वीश, उलट धरी उलस्यो। दीठो नवि दीदार, कां न कीणही लस्यो ।9। परमेसरशुं प्रीत, कहो कीम कीजीये । निमेष न मेले मीट, दोष किण दीजीये। कोण करे तकसीर, सेवामां साहिबा। कीजे न छोकरवाद, भगत भरमाववा । २। जाण्युं तमारूं जाण, पुरुष न पारिखो । सुगुण निगुणनो राह, कर्यो | सारिखो। दीधो दिलासो दीन, दयाल कहावशो। करूणा रसभंडार, बिरूद किम पालशो । ३। शुं निवस्या तुमे सिद्धि, सेवकने अवगणी। दाखो अविहड प्रीत, जावा द्यो भोलामणी। जो कोई राखे राग, निराग न राखीये। गुण अवगुणनी वात, कही प्रभु भाखीये । ४ । अमचा दोष हजार, तिके मत भालजो। तुमे छो चतुर सुजाण, प्रीतम गुण पाळजो। मल्लिनाथ महाराज, म राखो आंतरो। द्यो दरिशन दीलधार, मिटे ज्युं खांतरो । ५। मनमंदिर महाराज, विराजो दिल मली। चंद्रातप जिम कमल, हृदय विकसे कली। कवि रूप विबुध सुपसाय, करो अम रंगरली। कहे मोहन कविराय, सकल आशा फली।६। (10) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (दुःख दोहग दूरे टळ्यां रे)
मल्लिनाथ मुज विनतीजी, अवधारो अरिहंत । दंभ विना हुं दाखवूजी, अचरिज एह अत्यंत गुणवंता साहिब दर्शन ज्ञान निधान । ते आपीने कीजीयेजी, सेवक आप समान । गुणवंता । १। वीतरागता दाखवोजी, रंजो
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सवि भवि चित्त अपरिग्रही त्रिगडे वसोजी, भोगवो सूरना वित्त । गुणवंता । २। कुंभ करे पद सेवनाजी, लंछन मिसि प्रभु पाय । तें तारक गुण आपीयोजी, घटमां तुम पसाय । गुणवंता।३। कुंभ थकी जे उपनोजी, मनिपति मही मांह। राणी प्रभावती नंदनोजी, महिमावंत अथाह । गुणवंता । ४। लीला लच्छी दीये घणीजी, नीला वान अदीन । न्यायसागर प्रभु पद कजेजी, मन मधुकर लयलीन। गुणवता ।५। (11) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (सिद्धारथना रे नंदन विनवू)
सेवो मल्लि जिनेसर मनधरी, आणी उलट अंग। नित नित नेह नवल प्रभुशुं करो। जेहवो चोलनो रंग। से० १ जिणे पामी वली नरभव दोहिलो, नवि सेव्या जगदीश। ते तो दीन दुःखी घर घर तणां, काम करे निशदीश । से० २ प्रभु सेव्ये सुर सानिध्य इहां करे, परभव अमरनी रिद्ध | उत्तम कुल आरज क्षेत्र लही, पामीये अविचल सिद्ध। से० ३ प्रभु दरिशन देखी नवि उल्लसे, रोमांचित जस देह। भवसायर भमवानुं जाणीये, प्राये कारण तेह । से० ४ जिनमुद्रा देखीने जेहने, उपजे अभिनवो हर्ष । भवदव ताप शमे सही तेहनो, जिम वूठे पुख्खर वर्ष। से० ५ तुम गुण गावारे जिव्हा उल्लसे, पुन्य पडुर होय जास। बीजा कलेश निंदा विकथा भर्या, करे परनी अरदास । से० ६ गिरूओ साहिब सहेजे गुण करे। आपे अविचल ठाम । श्री गुरू खिमाविजय पय सेवतां, सकल फले जस काम। से० ७ (12) श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन (जगपति नायक नेमि जिणंद)
जगपति साहिब मल्लि जिणंद, महिमा महियल गुणनीलो। जगपति दिनकर ज्युं उद्योत, कारक वंशे कुलतिलो । १। जगपति प्रबल पुन्य पसाय, उद्योत नरके विस्तरे, जगपति अंतरमुहूर्त ताम, शातावेदनी अनुसरे । २ । जगपति शांत सुधारस वृष्टि, तुज मुखचंद थकी झरे | जगपति पडिबोहे भवि जीव, मिथ्या तिमिर दूरे करे । ३। जगपति भवसायरमां जहाज, उपगारी शिर सेहरो। जगपति तुम दरिशनथी आज, काज सर्यो हवे माहरो । ४ । जगपति दीठे मुखकज तुज, नाठा त्रण प्रभु माहरे। जगपति दारिद्रय पाप दुर्भाग्य, पुष्टालंबन ताहरे । ५। जगपति भव भव संचित जेह,
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जगपति
नेह, आल जगपति ड भावे
अघ नाठां टळी आपदा। जगपति जाचुं कीशो नहि दाम, मागुं तुम पद संपदा । ६। जगपति थुणीओ मन धरी नेह, ओगणीसमो जिन सुखकरूं । जगपति नील रयण तनुकांति, दीपति रूप मनोहरू ।७। जगपति जिन उत्तम पद सेव, करतां सवि संपद मले। जगपति रतन नमे करजोड भावे भवोदधि भव टळे । ८।
(1) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन जिनजी मुनिसुव्रतशुं मांडी, में तो प्रीतडी रे लो, मारा सुगुण सनेहालो; जिनजी तुं सुरतरुनी छांय, न छांडुडुं हुं घडी रे लो०...मा०. ॥१॥ जिनजी श्री पद्मासुत नंदन, श्री सुमित्रनो रेलो;...मा०...जिनजी दीपे वरतनुं श्याम, कला शुं विचित्रनो रे लो...मा०. ॥२॥ जिनजी आरतडी मुज अलगी गई, तुज नामथी रे लो; जिनजी विनतडी सफल करी लीजे मन धामथी रे लोल...मा०. ॥३॥ जिनजी क्षण क्षणमें तुज आशा, पाश न छोडशं रे लो;...मा०...जिनजी वारु परि वधतो नेह, सुरंगो जोडशुं रे लो...मा०. ॥४॥ जिनजी विसार्यो किम व्हाला!, तुं मुझ विसरे रे लो, जिनजी ताहरे सेवक केई पण मुज तु शिरे रे लोल०. ॥५॥ जिनजी सिद्धिवधूनी चाह, मेतो करी परे रे लो०...मा०. जिनजी दीजे तेही ज देव, कृपा करी मो पेरे रे लो०...मा०. ॥६॥ जिनजी तारे ओ कीरतार, प्रभुने जे स्तवे रे लो; मा० जिनजी जीव विजय पय सेवक, जीवण विनवे रे लो...मा० ॥७।।
(2) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन जय जय मुनिसुव्रत जगदिश, वरसे गुण पांत्रीस, वारे घाती सुडतालीश अथी प्रगटे रे. जेहथी प्रगटे गुण अकत्रीश रे. मुणिंदा तोरी देशना सुखखाणी रे...सुखखाणी रे में जाणी रे...मुणिंदा० अतो लाजे साकर पाणी रे मुणिंदा.. तो धर्मराय पटराणी रे..मुणिंदा० तोरी देशना सुखखाणी रे. ॥१॥ अना अंग उपांग अनुप, अनुं मुखडु ते मंगलरुप, अतो नवरस रंग स्वरुप, अना पगला रे..अना पगला प्रणमे भूप रे..मुणिंदा० ॥२॥ अतो ओक अनेक स्वभाव. अतो भासे भाव विभाव, अतो बोले बहु पस्ताव, अतो भंगी रे ओतो भंगी सप्त बनाय रे..मुणिंदा० ॥३॥ अतो नवगर्भित
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अवदात. अतो तीर्थंकर पद तात. ओतो चउपुरुषार्थनी मात..ओना सघळा अर्थ छे जात रे..मुणिंदा० ॥४॥ ओ तो त्रिहुं जगमां उद्योत, जिम रवि शशी दीपक ज्योत बीजा वादिश्रुत खद्योत, अतो तारे रे. अतो तारे जिम जल पोत रे..मुणिंदा० ॥५॥ अनो गणधर करे शणगार, अने गावे नरने नार, ओतो धूरथी सदा ब्रह्मचार, अंतो त्रिपदी रे मेतो त्रिपदीनो विस्तार रे. मुणिंदा० ॥६॥ अथी जातिना वैर समाय, बेसे वाघण भेळी गाय, आवे सुरदेवी समुदाय, अने गावे रे, अने गावे पाप पलाय रे मुणिंदा० ॥७॥ अने वंछे नरनेनार. जेथी नाशे कामविकार, अतो घर घर मंगल चार. अतो मुनि जिनरे ओतो मुनिजिन प्राण आधार रे मुणिंदा तोरी देशना सुखखाणी० ॥८॥ (3) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (राग : तुम्ह दरिशन भले पायो)
मुनिसुव्रत मन मोयुं मारुं, मे शरण हवे छे तमारुं, प्रातः समये ज्यारे हुं जागुं, स्मरण करुं छु तमाएं हो जिनजी, तुज मुरति मनहरणी, भवसायर जलतरणी हो जिनजी.....(१) आप भरोसो आ जगमां छे, तारो तो घणुं सारु, जन्म जरा मरणे करी थाक्यो, आशरो लीधो में तमारो..... (२) चुं चुं चुं चुं चिडिया बोले, भजन करे छे तमारु, मूर्ख मनुष्य प्रमादे पड्यो रहे, नाम जपे नहि तारुं होजिनजी० (३) भोर थतां बहु सोर सुगुं हुँ, कोई हसे कोई रूवे न्यारं, सुखीयो सूवे दुःखीयो रुवे, अकल गतिए विचारुं हो जिनजी० (४) खेल खलकनो बधो नाटकनो, कुटुंब कबिलो हुं धारुं, ज्यां सुधी स्वार्थ, त्यां सुधी सर्वे, अंत समय सहुं न्यारुं० (५) माया जाळ तणी जोई जाळी, जगत लागे छे खारुं, 'उदयरत्न' इम जाणी प्रभु ताहरु, शरण ग्रयुं छे में सारुं, हो जिन जी, (६) (4) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (राग : जय पालिताणा जय....) ___ मुनिसुव्रत जिन वंदता, अति उलसीत तन-मन थाय, वदन अनुपम निरखता मारां, भवोभवना दुःख जाय, जगतगुरु जागतो सुखकंद, सुखकंद अमंद आनंद, परमगुरु, दीपतो सुखकंद (१) निशदिन सुतां जागतां रे, हैयाथी न रहे दूर, जब उपकार संभारीये, तब उपजे आनंद पुर..... (२) प्रभु उपकार गुणे भर्या मन, अवगुण एक न समाय, प्रभु गुणगण अनुबंधी
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हुआ ते तो, अक्षय भाव कहाय, (३) अक्षयपद दीये प्रेमशुं रे, प्रभुनुं ते अनुपम रूप, अक्षर स्वर गोचर नही तेतो, अकल अमाव्य अरूप (४) अक्षर थोडा गुण घणा रे, सज्जनना ते न लखाय, वाचक यश कहे प्रेमशुं पण मनमाहे परखाय० जगतगुरु (५)
(5) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (राग : बेनारे) मुनिसुव्रत जिन राय, एक मुज विनती निसुणो | आतमतत्त्व क्युं जाणुं जगतगुरु, एह विचार मुज कहीयो; आतमतत्त्व जाण्या विण निरमल, चित्तसमाधि नवि लहिये ।मु०। १ कोई अबंध आतमतत्त्व माने, किरिया करतो दीसे; क्रियातणुं फळ कुण भोगवे, इम पूछ्युं चित्त रिसे ।मु०। २ जड चेतन ए आतम एक ज, थावर जंगम सरीखो; दुःख सुख शंकर दूषण आवे, चित्त विचारी जो परीखो ।मु०। ३ एक कहे नित्य ज आतम तत्त, आतम दरिसण लीणो; कृतविनाश अकृतागम दूषण, नवि देखे मति हीणो |मु०। ४ सुगत मतरागी कहे वादी, क्षणिक ए आतम जाणो; बंध मोक्ष सुख दुःख न घटे, एह विचार मन आणो ।मु०। ५ भूत चतुष्क वरजित आतमतत्त, सत्ता अलगी न घटे; अंध शकट जो नजरे न देखे, तो शुं कीजे शकटे ।मु०। ६ इम अनेक वादी मतिविभ्रम, संकट पडियो न लहे; चित्तसमाधि ते माटे पूर्छ, तुम विण तत्त कोई न कहे ।मु०। ७ वलतुं जगगुरु इणिपरे भाखे, पक्षपात सवि छंडी; राग द्वेष मोह पख वर्जित, आतम शुं रढ मंडी ।मु०। ८ आतमध्यान करे जो कोउ, सो फिर इणमें नावे; वाग्जाळ बीजुं सहुं जाणे, एह तत्त्व चित्त आवे ।मु०। ६ जेणे विवेक धरी ए पख ग्रहिये, ते तत्त्वज्ञानी कहीये; श्री मुनिसुव्रत कृपा करो तो, आनंदघन पद लहिये ।मु०। १०
(6) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ओलगडी तो कीजे श्री मुनिसुव्रतस्वामीनी रे, जेहथी निजपद सिद्धि; केवल ज्ञानादिक गुण उल्लसे रे, लहिये सहज समृद्धि, ओ०।१। उपादान निज परिणति वस्तुनीरे, पण कारण निमित्त आधीन; पुष्ट अपुष्ट दुविध ते उपदिश्यो रे, ग्राहक विधि आधीन, ओ०।२। साध्य साध्य धर्म जे मांही
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322 हुवेरे, ते निमित्त अति पुष्ट; पुष्पमांहि तिलकवासक वासनारे, नहि प्रध्वंसक दुष्ट, ओ०।३। दंड निमित्त अपुष्ट घडा तणो रे, नवि घटता तसु मांहि; साधक साधक प्रध्वंसकता अछे रे, तिणे नहि निमित्त प्रवाह, ओ०। ४ । षटकारक षटकारक ते कारण कार्यनोरे, जे कारण स्वाधीन; ते कर्ता कर्ता सहु कारक ते वसुरे, कर्म ते कारण पीन, ओ०।५। कार्य कार्य संकल्पे कारकदशारे, छति सत्ता सद्भाव; अथवा तुल्य धर्मने जोयवेरे, साध्यारोपण दाव, ओ०।६। अतिशय अतिशय कारण कारक ते रे, निमित्त अने उपादान; संप्रदान संप्रदान कारण पद भवनथी रे, कारण व्यय अपादान, ओ०।७। भवन भवन व्यय विण कार्य नवि होवे रे, जिम द्वषदे न घटत्व; शुद्धाधार शुद्धाधार स्वगुणनो द्रव्य छे रे, सत्ताधार सुतत्त्व, ओ०।८। आतम आतम कर्ता कार्य सिद्धतारे, तसु साधन जिनराज; प्रभु दीठे कारज रुचि उपजे रे, प्रगटे आत्म सम्राज, ओ०।६। वंदन वंदन नमन सेवन वळी पूजनारे, समरण स्तवन वळी ध्यान; देवचंद्र देवचंद्र कीजे जिनराजनो रे, प्रगटे पूर्ण निधान, ओ०।१०।
(7) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (हारे मारे धर्मजिणंदशुं)
हारे मुज प्राण आधार तुं मुनिसुव्रत जिनराय जो, मळीयो हेजे हळियो प्रीत प्रसंगथी रे लोल। हारे मुज सुंदर लागी माया ताहरी जोर जो। अलगो रे न रहुं हुं प्रभु तुज संगथी रे लोल ।१। हारे मा अमीय कचोला हेजाळा तुज नेण जो, मनोहर रे हसित वदन प्रभु ताहरुं रे लो। हां रे कोईनी नहि तीन भुवनमां तुम सम मूर्ति जो। एहवी सुरती देखी उलस्युं मन माहीं रे लो । २। हारे प्रभु अंतर पडदो खोली कीजे वात जो, हेज हैयानी आणी मुजने बोलावीये रे लो। हारे प्रभु नयण सलुणे सन्मुख जोई एकवार जो, सेवकना चित्तमांहि आनंद उपजावीयेरे लो।३। हारे प्रभु करूणा सागर दीनदयाल कृपाल जो। महेर धरी मुज उपर प्रीत धरी हीये रे लो। हारे प्रभु निज बालक परे मुज लेखवजो जिणंदजो । प्रीत सुरंगी अविहड मुजरों निवाहीये रे लो । ४ । हारे प्रभु बांह ग्रह्यानी लाज छे तुजने स्वामी जो। चरण सेवा मुजने देजो हेते हसी रे लो। हारे प्रभु पंडित प्रेमविजयनो कवि एम भाणजो। पभणे रे जिन मूरति मुज दिलमां वसी रे लो । ५ ।
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323 (8) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन मुनिसुव्रत हो प्रभु मुनिसुव्रत महाराज। सुणजो हो प्रभु सुणजो सेवकनी कथाजी। भवमां हो प्रभु भवमां भमीयो हुँ जेह, तुमने हो प्रभु तुमने ते कहुं छु कथाजी। १। नरके हो प्रभु नरके नोधारो दीन । वसीयो हो प्रभु वसीयो तुम आणा विनाजी। दीठां हो प्रभु दीठां दुःख अनंत, वेठी हो प्रभु वेठी नानाविध वेदनाजी । २। तिम वली हो प्रभु तिम वली तिर्यंच मांही। जालीम हो प्रभु जालीम पीडा जे सहीजी। तुं हीज हो प्रभु तुंहीज जाणे तेह, कहेतां हो प्रभु कहेतां पार पामुं नहिजी ३। नरनी हो प्रभु नरनी जातिमां जेह। आपदा हो प्रभु आपदा केम जाये कथीजी। तुज विण हो प्रभु तुज विण जाणणहार, तेहनो हो प्रभु तेहनो त्रिभुवनको नथीजी । ४ । देवनी हो प्रभु देवनी गति दुःख दीठ। ते पण हो प्रभु ते पण सम्यक् तुं लहेजी। हो जो हो प्रभु हो जो तुमशुं नेह। भवोभव हो प्रभु भवोभव उदय रतन कहेजी।५।
(9) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (तेरे द्वार खडा भगवान)
श्री जिनना गुण गाउं रे, प्रभुजी जयकारी। चरण कमलने पाउं रे, जाउं बलिहारी। श्री मुनिसुव्रत जिनवर सुखकर, जगबंधव जगवाहला । सुकृतलता नवपल्लव करवा, तुज आणा घनमाला रे। प्र० १ उपकारी शिर शेष छे तुंहि, गुणनो पार न लहीए। लोकोत्तर गुण लौकिक नरथी, कुण अतिशयथी कहीए रे। प्र० २ समकित सुखडली लघु शिशुने। आपीने प्रीति करावी। केवल रयण दीया विण साहिब, किम सरशे कहो समजावी रे। प्र० ३ कच्छप लंछन वाने अंजनपणे, पाप पंक सवि टाळे । अचरिज एह अद्भूत जगमांहि, धवल ध्यान अजुआळे रे। प्र० ४ वीतरागपणे लोक तणां मन, रंजे ए अधिकाइ। सुमित्र जात ते जुगतुं सहुशुं, राखे जे मित्राई रे। प्र० ५ पद्मानंदनना पद वंदन, करतां सुर नर कोडी। जगत गुरू जिनजीना सरीखी, त्रिभुवनमां नहि जोडी रे। प्र० ६ ज्ञानविमल गुणनी प्रभुताइ, अधिक उदय दिलधारो। दरिशनथी दर्शन करी निर्मल, सफल करो जनमारो रे। प्र० ७
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(10) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन एह संसारथी तार जिनेश्वर, एह संसारथी तार रे, मुनिसुव्रत जिनराज आज मोहे, भवजल पार उतार रे॥१॥ पद्मावती जी को नंदन नीरखी, हरखीत तन मन थाय रे, कच्छप लंछन प्रभु पद धारे, श्यामल वर्ण सोहाय रे०॥२॥ लोकांतिक सुर अवसर देखी, प्रति बोधन कुं आय रे, राज काज सब छोड दिये अब, संयमशुं चित्तलाय रे०॥३॥ तप जप संयम ध्यानथी रे, कर्म इंधन जल जायरे, लोकालोक प्रकाशक अद्भूत, केवल ज्ञान सोहाय रे०॥४॥ ज्ञानमें भाळी करुणाधारी, जीवदया प्रतिपाल रे, मित्र अश्व उपकार करण कुं, भरूअच्छ नगरमें आयरे।।५॥ अश्व ऊगारी बहु जन तारी, अजरामर पद पायरे, ज्ञान विमल कहे महेर करी द्यो, अमने तो शिवसुख थाय रे,॥६॥ (1) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : मन डोले मारूं तन डोले)
ओकवीशमां जिन आगळेथी, अरज करुं करजोड; आठ अरीओ मुज बांधीयोजी, ते भव बंधन तोड! प्रभुजी ! प्रेम धरीने अवधारो अरदास, ओ अरिथी अलगा रह्याजी, अवर न दीसे देव; तो किम तेहने जाचीओजी, किम करुं तेहनी सेव प्रभुजी!० (२) हास्य विलास विनोदमांथी, लीन रहे सुर जेह; आप अरिगण वश चड्याथी, अवर उगारे किम तेह प्रभुजी !० (३) छत होय तिहां जाचीयेजी, अछते किम सरे काज; योग्यता विण जाचताजी, पोते गुमावे लाज प्रभुजी !० (४) निश्चय छे मन माहरेजी, तुमथी पामीश पार; पण भूख्यो भोजन जमेजी, भाणे न टके लगार प्रभुजी !०(५) मोटानां मनमां नहीजी, अर्थी उतावळो थाय; श्री खीमा विजय गुरु नामथी, जी जग जस वांछीत थाय प्रभुजी !० (६) (2) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : मैं तो भुल चली)
श्री नेमिनाथने चरणे रमता, मनगमता सुख लहीए, भवजंगलमा भमता रहीए, कर्म निकाचीत दहिए रे.....श्री० (१) समकित शिवपुर माही पहोंचाडे, समकित धर्म आधार रे, श्री जिनवरनी पूजा करीए, ए समकितनो सार रे.....श्री० (२) जे समकितथी होय उपरठा, ते सुख जाये नाठा रे, जे
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कोई जिनपूजा नवि कीजे, तेहगें नाम नहि लीजे रे.....श्री० (३) वप्राराणीनो सुत पूजो, जेम संसारने धूजो रे, भवजल तारक कष्ट निवारक, नहि कोई एहवो दुजो रे.....श्री० (४) श्री कीर्तिविजय उवज्झायनो सेवक, विनय कहे प्रभु सेवो, त्रण तत्त्व मनमांही अवधारी, वंदो अरिहंत देवो रे.....श्री० (५)
(3) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : मणियारो ते)
श्री नमिजिन तुज शुं सहिरे मे, करी अविहड प्रीत रे, तुं निसनेही थई रह्यो प्रभु ए नहि उत्तम रीत रे, सलूणा मन खोली सामु जुओ मारा वाहला मनखोली...(१) एटला दिन में त्रेवडी रे, राखी ताहरी लाज, रे आजथी झघडो मांडशुं रे, जो नहि सारे मुज काज रे... सलूणा० (२) आगळथी मन माहरूं रे, ते कीधुं निज हाथ रे, हवे अळगा थईने रह्या ते दावो छे तुम साथ रे...सलूणा० (३) कठिन ह्रदय सही ताहरुं रे, वज्र थकी पण बेस रे, निर्गुण गुण राचे नहि रे, तिल मात्र नहि तुज हेज रे... सलूणा० (४) मे एक तारी आदरी रे, न आवे तुज मन नेह रे, छोटतां किम छूटशो रे आवी पालव वळग्या जेह रे... सलूणा० (५) सो वाते एक वातडी रे, ऊंडु आलोची जोय, आपणने जे आदर्या, इम जाणे जगसहु कोय रे...सलूणा० (६) जो राखे सही, दीजे मनवंछित दान रे... सलूणा० (७) । (4) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : जरा सामने तो आवो)
षट दरिसण जिन अंग भणीजे, न्याय षडंग जो साधे रे; नमि जिनवरना चरण उपासक, षट् दरसण आराधे रे ।१०। १ जिन सुरपादप पाय वखाणुं, सांख्य योग दोय भेदे रे; आतमसत्ता विवरण करता, लहो दुग अंग अखेदे रे |ष०। २ भेद अभेद सुगत मीमांसक जिनवर दोय कर भारी रे; लोकालोक अवलंबन भजीये, गुरुगमथी अवधारी रे । ष०। ३ लोकायतिक कूख जिनवरनी, अंश विचार जो कीजे रे; तत्त्वविचार सुधारस धारा, गुरुगम विण किम पीजे रेष+ ४ जैन जिनेश्वर वर उत्तम अंग, अंतरंग बहिरंगे रे; अक्षर न्यास धरा आराधक, आराधे धरी संगे रे, राष० । ५ जिनवरमां सघला दरिशन छे, दर्शने, जिनवर भजनारे; सागरमां सघली
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तटिनी सही, तटिनीमां सागर भजना रे, ष०। ६ जिन सरूप थई जिन आराधे, ते सही जिनवर होवे रे; मुंगी इलिकाने चटकावे, ते भृगी जग जोवे रे ।ष०। ७ चूर्णि भाष्य सूत्र नियुक्ति, वृत्ति परंपर अनुभव रे; समय पुरुषना अंग कयां ए, जे छेदे ते दुरभव्य रे, राष०। ८ मुद्रा बीज धारण अक्षर, न्यास अरथ विनियोगे रे; जे ध्यावे ते नवि वंचिजे, क्रिया अवंचक भोगे रे, राष०। ६ श्रुत अनुसार विचारी बोलुं, सुगुरु तथाविध न मिले रे; क्रिया करी नवि साधी शकीये, ए विखवाद चित्त सघळे रे, Iष०। १० ते माटे उभा कर जोडी, जिनवर आगळ कहीए रे; समय चरण सेवा शुद्ध देजो, जिन आनंदघन लहिए रे, राष०। ११ (5) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : घj घणुं जीवो रे)
श्री नमिजिननी सेवा करतां, अलिय विघन सवि दूरे नासेजी; अष्ट महासिद्धि नवनिधि लीला, आवे बहु महमूर पासेजी, श्री०।।१।। मयमत्ता अंगण गज गाजे, राजे, तेजी तुखार ते चंगाजी; बेटा बेटी बंधव जोडी, लहीये बहु अधिकार रंगाजी, श्री०॥२॥ वल्लभ संगम रंग लहीजे, अणवालहा होये दूर सहेजेजी; वांछातणो विलंबन दूजो, कारज सीझे भूरि सहेजेजी, श्री०॥३॥ चंद्र किरण उज्वल यश उल्लसे, सूरज तुल्य प्रतापी दीपेजी; जे प्रभुभक्ति करे निज विनये, ते अरियण बहु प्रताप झीपेजी, श्री०॥४॥ मंगलमाळा लच्छी विशाळा, बाळा बहुले प्रेमे रंगेजी; श्री नयविजय विबुध पय सेवक, कहे लहिये प्रेम सुख अंगेजी, श्री०॥५॥
(6) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : में तो भुल चले)
श्री नमि जिनवर सेव घनाघन ऊनम्यो रे, घ० दीठां मिथ्यारोर भविक चित्तथी गम्योरे; भ० शुचि आचरणा रीते ते अभ्र वधे वडा रे, ते आतम परिणति शुद्ध ते वीज झबुकडारे, वी० ॥१॥ वाजे वायु सुवायु ते पावन भावनारे, पा० इंद्र धनुष त्रिक योग ते भक्ति इक मनारे; भ० निर्मळ प्रभु स्तव घोष ध्वनि घनगर्जनारे, ध्व० तुष्णा ग्रीष्म काळ तापनी तर्जनारे, ता० ॥२॥ शुभ लेश्यानी आलि ते बग पंक्ति बनी रे, ब० श्रेणि सरोवर हंस वसे शुचि गुण मुनिरे; व० चौगति मारग बंध भविक निज घर रह्या रे,
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भ० चेतन समता संग रंगमें उमयां रे, रं०॥३॥ सम्यग्दृष्टि मोर तिहां हरखे घणुं रे, ति० देखी अद्भूत रुप परम जिनवर तणुं रे, प० प्रभु गुणनो उपदेश ते जलधारा वहीरे, ज० धर्म रुचि चित्त भूमिमांहि निश्चय रही रे, मां०॥४॥ चातक श्रमण समूह करे तब पारणो रे, क० अनुभव रस आस्वाद सकळ दुःख वारणो रे; स० अशुभाचार निवारण तृण अंकूरतारे, तृ० विरति तणो परिणाम ते बीजनी पूरतारे, बी०॥५॥ पंच महाव्रत धान्य तणा करसण वध्यारे, त० साध्य भाव निज थापी साधनताए सध्या रे; सा० क्षायिक दर्शन ज्ञान चरण गुण ऊपना रे; च० आदिक बहु गुण सस्य आतम घर नीपना रे, आ०॥६॥ प्रभु दरशण महा मेह तणे प्रवेशमें रे, त० परमानंद सुभिक्ष थयो मुज देशमें रे, थ० देवचंद्र जिनचंद्र तणो अनुभव करोरे, त० सादि अनंतो काळ आतम सुख अनुसरोरे, आ०॥७॥
(7) श्री नमिनाथ जिन स्तवन वप्रानंदन वधारजो रे, निज सेवकनी लाजरे। जिनेसर० सौम्य नजरे सामुं जुओ हो लाल । एकांगी करी ओळगे रे, ते किम आवे वाजरे । जिनेसर० १ रागीद्वेषी देवता रे, दीठां नावे दाय रे। जिनेसर० मुख मीठा मीठा हिये हो लाल । लट पट करी लख लोकने रे, ललचावे धरी माया रे । जिनेसर० २ मन न रूचे तिहां माहरूं हो लाल आगम मांही सांभव्युं रे, पतित पावन तुम नाम रे। जिनेसर० करुणावंत शिरोमणी हो लाल। तो मुजने एक तारतां रे। शुं लागे छे दाम रे। जिनेसर० ३ जग जश विस्तरशे घणो हो लाल । तुम दरिशने तन उल्लसेरे, जलधर जेम कदंब रे। जिनेसर० कोकिल अंब अलि मालति हो लाल । मोडो वहेलो मनावशो रे, तो एवडो शो विलंब रे। जिनेसर ४ खोट खजाने को नहि होलाल । आखर आशा पूरशो रे, मुजने सबळ विश्वासरे। जिनेसर० एवडी गाढिम कां करो हो लाल । क्षमाविजय कवि शिष्यनी रे, सांभळी ए अरदास रे । जिनेसर० ५ परमानंद पद दीजीये हो लाल ।
(1) श्री नेमनाथ जिन स्तवन नेमजी चालो तो तमने आंखडीजी, राजा श्री समुद्रविजयनी आणजो,
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एम कहेता पीउजी पाछा चालीयाजी, । राजुलने पाणीना पच्चक्खाणजो, नेमजी० ||१|| पालव झालीने उभी रहीजी, श्यो साहीबजी अमारो दोषजो, आठ भवनी नारी केम तजोजी, नवमे ना करीए वालम रीसजो, नेमजी०||२|| यादवराव जानो लाव्योजी, रात्रे श्री राजीमति परणावजो, छेल छबीली नारी केम तजोजी, समज्या विण केम पाछा जाशोजी नेमजी०||३|| माता शिवादेवीना लाडला जी नेमजी कांई यादव कुलना शणगारजो, पशुडा देखी पाछा वव्यांजी, नेमजी कांई दयाना भंडारजो नेमजी०||४|| सरखी साहेली जाशे सासरेजी, सासरीये कांई सुख वासजो, जईने सासुने पाय लागशोजी, ससरो कांई पूरे मननी आशजो, नेमजी०||५|| आडाने अवळा उभा डुंगराजी, वचमां कांई पूरे मननी आशजो, नेमजी०|| ६ || गाजे वाजेने झबुके विजळीजी, झरमर वरशे झीणा मेघजो, आसुंडे भींजाय राजुलनो कंचुवोजी, हैये भींजाय नवशेरो हारजी नेमजी० ||७|| सहेसावन जइ संयम आदर्योजी, पांचमी टुंके कर्तुं अणशण जो, हीरविजय गुरू हिरलो जी कान्ति नमे करजोड जो, नेमजी०||८||
(2) श्री नेमनाथ जिन स्तवन
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हुंकरगरी कहुं छु, करगरी कहुं हुं प्रभुजी पाछा वलोने ? प्रभु वचन अमारूं मान्य तुमे तो करोने ? में निति न छोडी, तुमशुं जरा नवि चुक़ी; तोडी अष्ट भवोनी प्रिति कुंवारी मुकी ॥१॥ बहु ठाठ बनावी बेसी, गीत गवरावी, तोरणथी पाछा फरीने लाज गुमावी ॥२॥ एवं करवुं हतुं तो नेम शीदने आव्या, रूडी जान सजावी, साथे यादव लाव्यां ||३|| एवं कर हतुं तो, शीदने परण्या मोरारी, तुम भाई वर्या छे, सहस बत्रीशनारी, 11811 शुं तुम कुल एवो धारो कन्या रखडावो, परणी पोताने घेर फरी नहि लावो, ||५|| मने उत्कंठा हती जईश, श्वसूर भवनमां, मारा मननी वातो रहि गई सौ मनमां, ॥६॥ माटे चानक लावी, आवी जरूर वरजो, प्रभु वचन अमारूं मान्य तुमे तो करजो, ॥७॥ हुं आवुं तमारी साथ, प्रभु गिरनारे, मने आपो अक्षय सार, उतारो भवपारे ॥८॥ हुं जोडीने बे हाथ कहुं हुं दासी, मने लई जाओने साथ करोने उल्लासी ॥६॥ हुं जोडीने बेहुं हाथ कहुं हुं स्वामी, कहुं यशोविजयजी तारो अंतर पामी - हुं करगरी कहुं छु, ||१०||
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(3) श्री नेमनाथ जिन स्तवन अति शोभे मुद्रा नेमिनाथ नी रे लोल, मने जोईने आनंद थाय जो, सुंदर दिवस लागे आजनो रे लोल,॥१॥ जादव कुळ दीपतुं रे लोल, तारा जन्मथी दुःख सहु जाय जो, अति०॥२॥ संसार स्वरूप खोटुं देखीने रे लोल संयम लीधो सुख दाय जो, अति०॥३।। तमे नवभवनो नेह साचव्यो रे लोल, तेथी राजीमति हरखाय जो, अति०॥४॥ दिक्षा आपीने तेणे तारीया रे लोल, शिवपुरीमां सिद्धि सहाय जो, अति०॥५॥ तीन कल्याणक आपनारे लोल, गिरनार उपर कहेवाय जो, अति०॥६॥ मोह मायानी जाळे हुं पड्यो रे लोल, पशुं माफक करो सहाय जो, अति०॥७॥ गति चारेना नाटक में कर्यां रे लोल, हवे शांतिनो देजो उपायजो, अति०॥८॥ बाळ ब्रह्मचारी तने विनवू रे लोल, मारा आत्म शत्रु पलायजो अति०॥६॥ प्रेम राखी सेवक तारजो रे लोल, मान माने प्रभुना पसाय जो अति०॥१०॥
(4) श्री नेमनाथ जिन स्तवन सखि आई रे नेमजीनी जानरे सखि आई रे नेमजीनी जान, आई आई साजन मन भाइ रे सखि आई रे नेमजीनी जान, दश दशारण रे चाले सहुं मलपंता मन माहे घणुं हरखता रे. अम जान बनी बहु भारी रे क्रोड, छप्पन मली मनोहारी रे. ॥२॥ सखि जादव रे, सखि जादव रे, ओक मने थई आवे. गोरी मंगलीक गीत सहु गावे रे...सखी० ॥१॥ कृष्ण बलभद्र सहित बे भाई तेणे अद्भुत रचना रचाई रे. रथ उपर रे, त्रिभूवन नाथ बेठाई, ढाळे चामर छत्र धराई, रे चामर छत्र धराई रे अनुक्रमे तोरण आवे रे, राजुल मन हरख न माये रे राजुल मन हरख न माये रे, अणे अवसर रे, अणे अवसर रे, पशुडा करत पोकार, सुणो नेमजी जगत आधार रे...सखी० ॥२॥ तमे परणशो राजुल गुणवंती नार, प्रभाते जाशे हमारा प्राणरे, करुणा निधिरे पशु पोकार दिलधारी बंधन, छोडी कर्या सुखकारी रे, संसार अनित्य जग जाणी रे, अवो विषया रस दुःख खाणी रे, रथ फेरवी रे वरसीदान जेणे दीधो, जई गिरनारे संयम लीधो रे...सखी० ॥३॥ सखी राजुल रे प्रीतम वळीया जाणी, ढळी धरणी लई मुर्छाणी रे, सखी मळीने रे कदली पंखे करी पाणी,
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छांटे, शीतळ पवन सुहाणी रे शीतल पवन सुहाणी रे, पामी चेतना कहे गुण खाणी रे, अणघटतुं शुं कीधुं ओम नाणी रे, अण परणी रे, उभी मुज छिटकाई, दया दिलमां ते लेश न लाई सखी० ||४|| मुज जोबन रे बाले वेष भरपुर, जाणे नदीओनुं चडतुं पुर रे, किम रहीशुं रे प्रीतम तुम विण दूर, रथवाळोने नेम ससनुर रे, मुज मंदिर पावन थाये रे, जादव कुल सहु हरखाओ रे, हठ नवी करीओ रे, मूकी दीओ छोकरवाद, घेर आवोने गरीब निवाज रे... सखी० ||५|| मुज अवगुण रे कोईक नाथ बतावो, विण अपराधे मुकी शुं जाओ रे, त्रण. जगतमां परम दयालु कहावो, रोती मूकी राजुल केम जाओ रे, करुणानिधि नाम धरावो मुज उपर दया केम ना लावो रे नवी जाणती रे निस्नेही अवो नेम, नवि परणविती तो आव्या ता केमरे. सखी० ||६|| ओम राजुल रे वील वील करती तेवार, नेम सन्मुख जुअ न लगार... निरागी रे प्रभु जाणी ते वार, लीओ संजम हरख अपार, तप करीलही केवल नाणी रे पामी, राजुल पद निरवाणी रे, ओम जाणी ने रे, दान दया चित्त धरीओ, सहेजे अमृत विमल पदवरिओ. सखी० ||७|| (5) राजुलनो विंझणो ( राग : तारी लियोने वितरागी)
आव्या उनाळाना दहाडा राजुल बेनी विंझणीयो शुं न लावी विंझणियो शुं न लावी, राजुल बेनी विंझणीयो शुं न लावी के, मारा नेमने ढोळवा थाय के, प्रभुजीना चरणे शिश नमावी चरणे शीष नमावी, राजुल बेनी वींझणीयो शुं न लावी. ||१|| राजुल कहे सुणो सहियर मोरी, विंझणीयो शा माटे लावु ? स्वामी मुकी गया गिरनारे, संसार छोडी मुनिवर थावुं. ||२|| चंद्रा कहे सुणो राजुल बाळा, सरळ स्वभावी न होय काळा, कारणओ स्वामीने तजीओ के, बीजो वर, मनमां भजीओ के. ॥३॥ राजुल कहे बोलो बोल म झुठा, श्याम वस्तुमां गुण छे मोटां, अ तो त्रण भुवननो स्वामी के, हुंतो, पूरव पुण्ये पामी के. || ४ || जिनजी ओ जीवदया मन आणी, रथडो फेरी चाल्या पाप जाणी, पशुडां उगारी दान दीधां कुंवारे, मन वांछित फळ लीधां के. ॥५॥ मात कहे सुण पुत्र सुजाण के तुं तो अनंत गुण भगवान; मारी आशा पुरो अकवार के, कन्या परणीने वान वधार ||६|| पुत्र कहे सुणो माता हमारी, परणुं नहि हुं मानव नारी; संयम नारी
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मे मनमां धारी, मुजने लागे अती घणी प्यारी के. ॥७॥ राजुल कहे सुणो सैयर मारी, हुं तो नवभव केरी नारी, अने बीजो कोई मनमां न धारी, के जाणी शिवसुंदरी घणी प्यारी के. ॥८॥ जिनजीओ दान संवत्सरी दीg, भवि प्राणी, कारज सीधुं; लेई जान जादवजी पाछा वळिया, केवल पामी शिवसुख वरिया. ॥६॥ राजुल दान पुन्य नित्य करती, नेमनुं ध्यान ह्रदयमां धरती; संयम लई गिरनारे चडीयां के, तोड्यां अष्ट कर्मनां दळिया ॥१०॥ जगमां धन्य धन्य अह नरनारी; हुवा जन्म थकी ब्रह्मचारी; थया दंपति ओ व्रतधारी के, पाम्या शिव पदवी सुखकारी के. ॥११॥ अवो विंझणीयो जे कोई गाशे, तस घर मन वांछित सवि थाशे के; अमर विजय गुरु अणी पेरे बोले, नहि मारा नेम राजुल तोले के. ॥१२॥
(6) श्री नेमनाथ जिन स्तवन दर्शन दीठे दिलडां ठरीया, वाल्हम वलतां वली उकलीयां, ध्रुमें आंसु भरिया नयणां, श्यां कहुं वयणां रे, वाल्हो मारो मोजी मनडां केरो, सुणज्यो सयणां रे, नेम विण न भजु नाथ अनेरो. ॥१॥ पिउडे प्रेम नजर नवी प्रेरी, सुखभर सुरत रति नवि खेलि, वाल्हे मारे भर जोवनमां मेहली, परण्या पहेली रे. ॥२॥ हां रे वाल्हे मुख कंसार न घाल्यो, वाल्हे मारो हाथेवालो नवी झाल्यो, निपुण थईने नेह न पाल्यो, शुं रथ वाल्यो रे. ॥३॥ हां रे वाल्हा नाथ विहुणा रहेता, कुलवट सतीय पणुं शिर वहेतुं, हां रे नीत नीत ओलंभा सहेता, हवे नथी कहेतां रे. ॥४॥ वाल्हो मारो शिवरमणीनो कामी, अलवेसर आतम विशरामी, नकरुं खामी सेवा पामी अंतरजामी रे. ॥५।। इम चिंतवती राजुलबाला, प्रभुजी पाम्या ज्ञान विशाला, सहसावन संयम पिऊ हाथे, विचरी साथे रे. ॥६॥ पंचावन दिन आप कमाणी, प्रभु आपे जाणी पट्टराणी, दंपती दोय मुक्ति पद पावे, क्षायिक भावे रे. ॥७॥ लोकोत्तर प्रभु प्रेमने पाले, दुग उपयोगे वस्तु निहाळे, जगत उपाधि भवने टाळे, सौख्य विशाले रे. ॥८॥ जससुख अंत जगत नवी मावे, योगीश्वर पण जेहने ध्यावे, श्री शुभवीर--प्रभु गुण गावे, उल्लसित भावे रे. ॥६॥
(7) श्री नेमनाथ जिन स्तवन सुणो सहियर मोरी, जुवो अटारी, आवे छे नेमजी श्याम, शीवादेवी नो
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नंद छे, व्हालो, समुद्र विजय छे तात, कृष्ण मोरारीना बंधु वखाणुं, यादव कुल मोझार रे, प्रभु नेम विहारी, बाल ब्रह्मचारी आवे छे. नेमजी श्याम ।।१॥ अंगज फरके छे जमणुं, व्हेनी अपशुकन मने थाय, जरुर व्हालो पाछो ज फरशे, नही ग्रहे मम हाथ रे. मने दुःख छे भारी, कहुं हुं आवारी. ॥२।। परणुं तो बेहनी तेहने परj, बीजां पुरुष भाई बाप, हाथ न ग्रहे मारो के ओमनो, मस्तके मुकावु हाथ रे, हुं थाउं व्रत धारी, बालकुमारी. ।।३।। संयमधारी राजुलनारी, चाल्या-छे गढगीरनार, मारगे जाता मेहुलो वर्षे, भींजाया सतीना चिर रे, गया गुफा मोझारी, मनमां विचारी. ॥४॥ चीर सूकवे छे राजुलनारी, नग्न पणे तेणीवार, रहनेमि मुनि काउसग्गे उभा, रुपे मोह्या तेणी वार रे, सुणो भाभी हमारी, थाओ घरबारी. ॥५॥ वमेलो आहार कुकुना वंछे, सुणो दियरजी आवार, मुजने वमेली जाणो दियरजी, शाने खोवो व्रत चार रे, हुं संयम सुखकारी, दुषण टाळी. ॥६॥ रहनेमी मुनि राजीमतिने, उपन्यं छे केवलज्ञान, चरम शरीरे मोक्षे सीधाव्या, सिध्या आतम काज रे, वीर विजय आवारी, गुण गाउं भारी, अती सुखकारी. ॥७॥
(8) श्री नेमनाथ जिन स्तवन सखी श्रावणनी छठ्ठ उजली, भली विजळीनो झबकार रे, अती वहेला पिउजी रह्या, राणी राजुलने दरबार रे, पियुजी वसे कैलासमां. ॥१॥ पाछा तोरण आवी वव्यां, करी अमने ते कंत वियोगी रे, कंसार मुज चाख्या विना, वाल्हो हुओ छे भिक्षानो भोगी रे. ॥२॥ रुडी श्याम घटा गगने रही, वाल्हो शीयल सुंदर वाने रे, सहसावने समता धरी, रह्या मौन ते उज्वल ध्यान रे. ॥३॥ कोई दोष विनादयीतातजी, मने मेली छे बाले वेश रे, यौवनवयमां ओकली, तजी पीयुजी चाल्या परदेश रे. ॥४॥ सहु यादव साखे नवी दीओ, मारा हाथ नी उपर हाथ रे, हाथ मेलावीश हुँ मस्तके, देव देवी साखे जगनाथ रे. ॥५॥ अम राजुल राग विराग से, नेमनाथ नो मंत्र जपाय रे, कालांतरे प्रभु केवली, सुणी राजुल वंदन जाय रे. ॥६।। चरण धरे भव निसुणी सुणी, शिव पहुंता सलुणा नाहरे, गोत्र विनाशे उपनो, गुण अगरु लघु अवगाह रे. ।।७।। सिद्धि सादि अनंते भंगशुं, रंग रसे बनी खरी प्रित रे, श्री शुभवीर-विनोद स्युं, नित्य आवे छे खिण खिण चित्तरे. ॥८॥
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(9) श्री नेमनाथ जिन स्तवन द्वारापुरीनो नेम राजीयो, तजी छे जेणे राजुल जेवी नार रे, गीरनारी नेम संयम लीधो छे बाला वेशमां. ॥१॥ मंडप रच्यो छे मध्य चोकमां, जोवा मल्युं छे द्वारापुरीनुं लोक रे. ॥२॥ भाभीओ मेणां मारिया, परणे वालो श्री कृष्णमो वीर रे. ॥३॥ गोखे बेसीने राजुल जोई रह्यां, कयारे आवे जादव कुळनो दीप रे. ॥४॥ नेमजी ते तोरण आवीया, सुणी कांई पशुना पोकार रे. ॥५॥ सासुओ नेमजीने पोखीया, व्हालो मारो तोरण चढवा जाय रे. ॥६॥ नेमजीओ शाळाने बोलावीया, शाने करे छे पशुडां पोकार रे. ॥७॥ राते राजुल बेनी परणशे, सवारे देशुं गोरवना भोजन रे. ॥८॥ नेमजीओ रथ पाछो वालीयो, जई चढ्यां गढ गिरनार रे. ॥६॥ राजुल बेनी रुवे ध्रुसके, रुवे रुवे कांई सौरीपुरी नां लोक रे. ॥१०॥ वीराओ बेनीने समजावीयां, अवर देशुं नेम सरीखो भरथार रे. ।।११।। पीयु ते नेम ओक धारीया, अवर देखुं भाईने बीजा बाप रे,.॥१२॥ जमणी आंखे श्रावण सरवरे, डाबी आंखे भादरवो भरपुर रे. ॥१३॥ चीर भीजांय राजुल नारनां, वागे छे कांई कंटक अपार रे. ॥१४।। हीर विजय गुरु हिरलो, लब्धिविजय कहे करजोड रे. ॥१५।। जैन तीर्थंकर बावीशमां, सखीयो कहे न मले अनी जोड रे. ॥१६।।
(10) श्री नेमनाथ जिन स्तवन प्रभु नेम गया गिरनार, छोडी संसारने, तज्या मात-पिता परिवार, के जाणी असारने, प्रभु तुं छे प्राण आधार, जगतना लोकने, मारा जीवनना आधार, टाळो मुज शोकने. ॥१॥ प्रभु छोडी राजुल नार, तोरणथी पाछा वव्यां, करी पशुओनो उपगार, पोते गीरिवर चढया; हवे लोकांतिक जे देव, आवे आदर करी, वरसावो वरसीदान, प्रभु कृपा करी. ॥२॥ त्रणसे क्रोड अठ्यासी क्रोड लाख ॲसी वळी, दीये सोनैयानुं दान, प्रभुजी अतुल बळी, हवे दीक्षा लेवा काज, प्रभुजी संचरे, सहसावन करे निवास, रैवत गीरी उपरे. ॥३॥ प्रभु सिद्धने करी प्रणाम, सामायिक उच्चरे, करवा घाती कर्मने दूर, भयंकर तप करे. दिन चोपन सुधी अम. प्रभुजीओ तप कर्या, दिन पंचावनमें ज्ञान, केवल सिद्धि वर्या. ॥४॥ प्रभु तारी राजुल नार, पोतानी
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जाणीने, पछी वर्या श्री जिनराज, मोक्ष पट्टराणीने प्रभु मुक्ति विजय महाराज, हृदयमां स्थापजो, तुम चरण कमलनी सेव, निरंतर आपजो. ॥५॥
(11) श्री नेमनाथ जिन स्तवन गढ गिरनारे जई रह्या रे, यादव नेमिकुमार, विर वचन बोले इस्यां रे, राजीमती तव नार, सुणजो सैयरो रे वयणा. ॥१॥ पगला पीयुनां जट जट लागी, लागी रे नयणां, माहरे तीखा तीर जटपटे, लागी रे वयणा...सु. ॥२॥ तोरण आव्या नेमजी रे, पाछा वव्यां केम, कपट कर्यु परण्या तणुं रे, बाजीगर पर जेम...सु० ॥३॥ करुणा कीधी पंखीया रे, नवि किधी मुज सार, तो पण साची पतिव्रता रे, तेही ज तारी नार...स० ॥४॥ अष्टभवांतर नेहलो रे, नवमें भव दीधो छेह, केड न छोडुं ताहरो रे, जेम छायाने देह...सु० ॥५॥ अम कहेती पहोती पीया रे, पीयु पासे लीये दीख, रहनेमी पण बुझव्या रे, देही हितनी शीख...सु० ॥६।। यादव कुल चुडामणी रे, धन-धन राजुल नेम, ज्ञान विमल कहे अहनो रे, साचो पूरण प्रेम...सु० ॥७॥
(12) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : मणियारो ते)
चंपकवर्णी चुंदडी रे, साहिबा आवि छे गढ गिरनार रे, केसरीया नेम आवोने, माहरे मंदिरे. ॥१॥ कोणे लीधीने कोणे मुलवी रे, कोणे खरच्या छे द्रव्य रे, कृष्णे लीधी बलभद्रे मुलवी रे, नेमजीओ खरच्या छे द्रव्य रे. ॥२॥ राजुलबेनी बेठा माळीये रे, जुओ छे जादव कुलनी जानरे, सरखी साहेली बोले मचकडे रे, राजुलनो काळो भरथार रे.॥३॥ काळा ते गेमर हाथीया रे, काळा ते वरसे मेघ रे, काळो ते कसबी कंचवो रे, काळी ते काजल रेख रे. ॥४॥ नेमजी ते तोरण आवीया रे, पशुडाओ मांड्यो पोकार रे, नेमजीओ शाळाने पुछीयुं रे, मांडवे आ शो पोकार रे. ॥५॥ राजुल बेनी राते परणशे रे, प्रभाते देशुं गौरव रे, नेमजीओ रथ पाछो वाळीयो रे, जई चड्या गढ गिरनार रे. ॥६॥ राजुल रोती नीसरी रे, विनवे छे मात ने तात रे, राजुल तमारी चुंदडी रे, रंगी छे वार कुवार रे. ॥७॥ नहि पहेरीने नथी पहेरवी रे, मेली छे बारणा बहार रे, राजुल तमारो कंचवो रे, सीव्यो छे रात--सवार रे. ॥८॥ नही पहेर्यो ने नथी पहेरवो रे, मेल्यो छे मोभा हेठ रे,
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सीमा मटा मन
भठ पडयुं मारुं परणवू रे, भठ्ठ पड्यो संसार रे. ॥६॥ न काढ्या ससराजीना घुमटा रे, न पडी सासुने पाय रे, न खम्या दियरनां बोलडां रे. न काढयां जेठनां धुंघटरे. ॥१०॥ न गुंथ्यां नणंदिना चोटला रे न कीधा नणदोईना मान रे, चोरी मांही न चडी रे, न खाधो परण्यांनो कंसार रे. ॥११॥ नेम राजुले संयम आदर्यो रे, पाम्या छे भवनो पार रे, हिरविजय गुरु हीरलो रे, लब्धिविजय गुण गाय रे. केसरीया नेम आवो ने० ॥१२।।
(13) श्री नेमनाथ जिन स्तवन ॥१॥ नेमि निरंजन नाथ हमारो, अंजन वर्ण शरीर, पण अज्ञान तिमिरने टाले, जीत्यो मन्मथ वीर! प्रणमो प्रेम धरीने पाय, पामो परमानंदा! यदुकुल चंदा राय, मात शिवादे नंदा...प्र० ॥२॥ राजीमतीशुं पूरव भवनी, प्रीत भली पेरे पाली! पाणी ग्रहण संकेते आवी, तोरणथी रथवाली...प्र० ॥३॥ अबला साथे नेह न जोड्यो, ते पण धन्य कहाणी! अक रसे बिहु प्रित थई तो कीर्ति क्रोड गवाणी...प्र० ॥४॥ चंदन परिमल जिम जिम खीले, घृत, ओक रुप ओक नही अलगां, पणजो प्रित निर्वाहे अहनिश, ते धन गुणशुं वलगां...प्र० ॥५॥ अम अकांगी जे नर करशे, ते भव सागर तरशे, ज्ञान विमल लीला ते धरशे, शिव सुंदरी तस वरशे...प्र० ॥६॥
(14) श्री नेमनाथ जिन स्तवन सुणो सखी सज्जन ना विसरे, सुणो सखी०...आंकणी० आठ भवांतर नेह निवाही, नवमें कयुं बिछरे; सु० नेहविलुधा आ दुनियामें, झंपापात करे०. ।।१।। घर छंडी परदेशमें भमता, पूरण प्रेम करे; सु० जान सजी करी जादव आये; नयने नयन मिले. सु० ॥२॥ तोरण देख गये गिरनारे, चारित्र लेई विचरे; सु० दूषण भरिया दुर्जन लोको, दयिता दोष भरे. सु०. ॥३॥ मात शिवासुत सांभळ सज्जन, साचा इम ठरे; सु० तोरण आई मुज समजाई, संयम सान करे; सु० ॥४॥ राजुल राग विरागे रहेती, ज्ञान वधाई वरे; सु० प्रीतम पासे संयम वासे, पातिक दूर करें सु० ॥५॥ सहसावनकी कुंज गलनमें, ज्ञान से ध्यान धरे; सु० केवल पामी शिवाति गामी, आ संसार तरे सु० ॥६नेमिजिणेसर सुख सज्झाओ, पोढ्यां शिवनगरे; सु० श्री शुभवीर अखंड सनेही, कीर्ति जग प्रसरे. सु. ॥७॥
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(15) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : मणीयारो ते)
अगर चंदन गरु ओरडा, फुलडे बिछाईं प्रभुनी शय्यारे, नवी गमे ओरडा ओसरी, नवि गमे केवडियो भरथार रे, लीधा रे अबोला नेमे जनमनां, पाळ्यो रे अबोला. नेमे भवतणां. ॥१॥ समुद्र विजय कुळ चंदलो, शिवादेवी मात मल्हार रे, तोरण आवी पाछा वव्यां, सुणी पशुनो पोकार रे. ॥२॥ आठे भवनी ते प्रीतडी. घमे भव तोडी नाथ रे. कुंवारी मेली रे मने आ भवे, प्रगट्यां पूरवना पाप रे. ॥३॥ नानपणे नथी पीयर सासरा, नानपणे नथी मोसाळ रे, अगंधन कुळनाने कलंक चडे रे, सुणो सुणो जादव राय रे. ॥४॥ नथी हाथे हाथवालो मेळव्यो, नथी नांखी कोटे वर माळ रे. नथी चडयां चोरीने चोगठे, नथी चाख्यो साकरियो कंसार रे. ॥५॥ नथी ताण्यां ससरानां धुंघटा रे, नथी लाग्यां सासुने पाय रे, दीयरे न दीधी साकर सुखडी रे, नावलीये न दिधो शणगार रे. ॥६॥ रत्न सागर गुरु ओम कहे रे, होजो मंगळ माळ रे, प्रभु पासे जईने संजम लीधो रे, पहोंच्या मुक्ति मोझार रे. ॥७॥
(16) श्री नेमनाथ जिन स्तवन मारा पीयुजीनी वाते रे हुं कोने पुंछु, जेने पुंछु ते तो दुर बतावे; सबहि रे लाला सबहि धुतारा लोक रे-दादुर मोर बपैयारे बोले. कोयल रे लाला कोयल शब्द सुणावे-झरमर झरमर मेहुलो वरसे बुंद पडेलाल-बुंद पडे रंग चोल रे-आंबो ते मोर्यो ते केसुडो फुल्यो, आव्यो रे लाला आव्यो मास वसंत रे-ककडोरे कागळ लखी लखी मुकुं, सहे सावनमां कोई सहेसावनमां जाय रे-नेमजीने जईने अटलुं कहेजो राणी राजुल रे राणी राजुल धान्य न खाय रे, रुप विबुधनो मोहन पभणे जन्म रे लाल, जन्मो जन्म रे लाला, जन्मो जन्म तारो दास रे...
(17) श्री नेमनाथ जिन स्तवन शामळिया लाल तोरणथी रथ फेर्यो, कारण कहोने, २ गुणगिरुआ लाल मुजने मूकीने चाल्या दरिशन धोने, हुं छु ते नारी तमारी, तुमे तो प्रीति मुकी अमारी, तुमे संयम स्त्री मनमां धारी...शामलीया० ॥१॥ तुमे पशुआ उपर कृपा आणी, पण मारी वात न कोई जाणी, तुम विण परणुं नहिं को
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प्राणी...शामलीया० ॥२॥ आठ आठ भवोनी प्रीतलडी, मूकीने चाल्या रोतलडी, ओ सज्जननी नही रीतलडी...शामलीया० ॥३॥ नवि दीधो हाथ उपर ते हाथ, तो हाथ मुकावु हु माथे, हु जावु प्रभुजीनी साथे...शामलीया० ॥४॥ इम कही प्रभु हाथे व्रत लीधो, पोतानो कारज सवी सीधो, पकड्यो अणे शिव सीधो...शामलीया० ॥५॥ चोपन दिन प्रभुओ तप करीयो, पणपन्ने केवळ वरीयो, पण सत छत्तिश शुं शीव वरीयो...शामलीया० ॥६॥ अम त्रण कल्याणक गिरनारे, पाम्या ते जिन उत्तम तारे, जो पाद पदम शिरधारे... शामलीया० ॥७॥ तोरणथी रथ फेर्यो कारण कहोने०
(18) श्री नेमनाथ जिन स्तवन नंदाथई शिव नंदा, नेमजी जन्म्यां; भक्ते करी हुलराव्यां हो नेम, घुघरडी रे तारी घम घम वाजे ॥१॥ राजा थई जिनराज दिपावे, पांच वरसनां थाशे हो नेम घुघरडी० ॥२॥ उग्रसेन राजा घेर विवाह थासे, यादव जान लई आवशे हो नेम घु० ॥३।। मुज देखीने सामैयु करशे, करशे तो हैडामां हरखे हो नेम घु० ॥४॥ गोखेथी राजुल बेनी नीरखे, कबारे सोनेरी झरुखे हो नेम घु० ॥५॥ नेमजी शाळाने पूछे, आघर केवो आचार हो नेम घु० ॥६॥ आज रात्रे राजुल बेनी परणशे, पशुडानुं करवू पकवान हो नेम घु० ॥७|तोरणथी रथ पाछो वळीयो, उग्रसेन आडा फरीया हो नेम घु० ॥८॥ छप्पनकोड जादव परणी वळीयां, नेमजी वगर परणे वळीयां हो नेम घु० ॥६॥ आठ भवे नेमजी भेळा चालीया, नवमें भवे मुकी जाशे हो नेम घु० ॥१०॥ नेमजीनो घोडो गिरनारे चढीयो, राजुल शिव रथ ढळीयां हो नेम घु. ॥११॥ रुप विजय कहे प्रभु नाथ निरंजन, आपो वरसीदान हो नेम घु० ॥१२॥ (19) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : सारी सारी जगना सहु) ___ नेमजी सहेसावन अमने मळीने सिधावो, ओक वार आवीने राजुल मनडा मनावो रे, व्हाला मारानेमजी, नेमजी सहेसावन मळिने सिधावो...(१) हुँ छु अबळा तोरा चरणोनी दासी, दर्शन देखाडी शुं जाव छो नाशी, दर्शन देखाडी | जाव छो नाशी... व्हाला मारा नेमजी० (२) आव्यो शियाळो देह
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थर थर ध्रुजे, नेमजी चाल्याने राजुल रह्या रह्या झुरे; नेमजी चाल्याने राजुल रह्या रह्या झुरे-व्हाला मारा० (३) आव्यो उनाळो नेम केम जावछो भागी, नदिने किनारे जईने रथ पाछो वाळी० (४) आव्युं चोमाशुं पंखीओ घाल्या छे माळा, नेमजी चाल्याने राजुल कोण रखवाळा मारा० (५) शेजा उपर केवडा कयारा, में नोता जाण्यां नेम आटला अटारा; मे नोता जाण्या नेम आटला अटारारे...व्हाला मारा० (६) शेजूंजा उपर छे दुधना कयारां, में नो 'ता जाण्यानेम दुःखना दहाडा, में नो' ता जाण्यानेम दुःखना दहाडा रे...व्हाला मारा० (७) शेजूंजा उपर वेर्या छे मोती, नेमजी चाल्याने राजुल मेल्या छे रोती, नेमजी चाल्याने राजुल मेल्या छे रोती रे,...व्हाला मारा० (८) शाने कारण आटलो मोह लगाड्यो, दर्शन देखाडी जुनो प्रेम जगाड्यो, दर्शन देखाडी जुनो प्रेम जगाड्यो रे,...व्हाला मारा० (६) उदय रत्न कहे नेम निरागी, नेमजी चाल्याने राजुल मुक्तिना वासी, नेमजी चाल्याने राजुल मुक्तिना वासी रे...व्हाला मारा० (१०)
__(20) श्री नेमनाथ जिन स्तवन व्हालारे मारा पहेलानी प्रीत अमरों कीधी, हसीने ताली दीधीरे, छेल छबीला ॥१॥ व्हालारे मारा नेमजी तोरण आव्यां, पशुडाए पोकार कीधारे ॥ छेल छबीला० ॥२॥ व्हालारे मारा नेमजीए शालाने बोलावी, पूछ्युं मांडवडे शोर शानारे ॥ छेल छबीला० ॥३॥ व्हालारे मारा रात्रे राजूल बेन परणशे, प्रभाते गौरव देशुरे ॥ छेल छबीला० ॥४॥ व्हालारे मारा नेमजी ए रथापाछो वाल्यो, वालंता दीन दयालरे ॥ छेल छबीला० ॥५॥ व्हालारे मारा राजूल रडतां निकल्यां, आ भरीयां भीम तलावरे ।। छेल छबीला० ॥६।। व्हालारे मारा ससरानी टेव छे मूंडी, आ रीश राखशे ऊंडी रे ।। छेल छबीला० ॥७|| व्हालारे मारा जेठनी लाज घणी धरती, परण्या पहेला हुं डरती रे ॥ छेल छबीला० ॥८॥ व्हालारे मारा नणदी कटकनो घोडो, जेठाणी जमनो जोडोरे ॥ छेल छबीला० ॥६|| व्हालारे मारा मैयर केम रहेवाशे, मारा दिवस केम जाशेरे ।। छेल छबीला० ॥१०॥ व्हालारे मारा दियरियो केटे पडीयो, पाडोशण मेणां देशेरे ।। छेल छबीला० ॥११॥ व्हालारे मारा पडोशण एवी मुंडी, बळतांमां मेलशे पुणीरे ॥ छेल छबीला० ॥१२॥ व्हालारे मारा कंशनुं राज्यघणुं मूंडु,
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आ कोई मलशे कुडुं रे ॥ छेल छबीला० ॥१३॥ व्हालारे मारा हिरविजय गुरुराया, एतो पूरण पदवी पायारे ॥ छैल छबीला० ॥१४॥ (21) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : धोम धेड धरती तपेरे-२)
जइने रहेजो मारा वालमां रे, श्रीगिरनारने गोख, प्रभुजीना ध्यानमारे, अमेपण तिहांकने आवशुरे, ज्यारे पामीशुं जोग, जइने रहेजो मारा वालमारे ॥१॥ जानलइ जूनागढेरे, आव्यां तोरण आप ॥ प्रभु० ।। पशुआं पेखी पाछां वल्यारे, जातां न दीधो जवाब ॥जइ० ॥२॥ सुंदर आपना सारीखारे, जोतां नहि मले जोड ॥ प्रभु० ॥ बोल्यां अणबोल्यां करोरे, एवाते तमने खोट प्रभु० ॥३॥ हुं रागी तुं वैरागीयोरे, जगमां जाणे सहुकोय ॥ प्रभु० ॥ रागी तो लागी रहेरे, वैरागी रागी न होय प्रभु० ॥४॥ वर बीजो हुं नवि करुंरे, सघलां मेली संवाद ॥ प्रभु० ॥ मोहनीयाने जइ मलीरे, मोटा साथे श्योवाद ? ॥ जइ० ॥५॥ गढ तो एक गिरनार छ रे, नर तो छे एक नेम ।। प्रभु० ॥ रमणीतो एक राजीमतीरे, पूरो पाड्यो छे जेणेप्रेम ॥ प्रभु० ॥६॥ वाचक उदयनी वंदनारे, मानी लेजो महाराज ॥ प्रभु० ॥ नेम राजूल मूक्ते मल्यारे, सार्यां आतम काज, जइने रहेजो मारा वालमारे ॥ प्रभु० ॥७।। (22) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : पांदडं लीलुने रंग रातो)
शामलीयो त्यागीने हुं तो रागी, संयम शुं रढलागी रढलागी । शाम० ॥१॥ व्हाला मारा नेमनगीना निरागी, सुंदर श्याम वरण शोभागी, संयमलीये वडभागी, वडभागी ॥ शाम० ॥२॥ व्हाला मारा गिरनारनी वाटे, मोहन मलशे ए वाट, एहवाटे, जइ हुँ हाथ मेलावीश माथे ॥ शाम० ॥३॥ जइ हवे राजुल नेमजी पासे, संयमलीये अति उल्लासे, हारे ते स्वामी पहेला शिवजाशे, शिवजाशे ॥ शाम० ॥४॥ व्हालामारा दंपती शिवसुख मलीयो, विरह दावानल खमीयो (२) अगुर, लघु गुण भरीयो, गुण भरीयो ॥ शाम० ॥५॥ कहे दीप सुणो अरज अमारी, तमे तो तारी राजुलनारी, मोहे तारी करो महेरबानी महेरबानी, शामलीयो त्यागीने हुं तो रागी । शाम० ॥६॥
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(23) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : दिदि तेरा देवर दिवाना)
नेमजी कागल मोकले, निशदिन राजुल हाथ, हवे अमे संयम लेइशें, तमे चालो अमारी साथ ॥१॥ अमे छीए गढ गिरनारमां, सुंदर सहेसारे वन, तिहांतमे व्हेला पधारजो, जो होय संयमनो मन ॥२॥ कहेशो अमने कयुं नही, आठे भवनी हो प्रीत, वलतुं वालम वालमां, ए छे उत्तम रीत ॥३॥ लेख वांचीने राजीमति, चढियां गढ गिरनार, स्वामी हाथे संयम लीधो, पाले पंच आचार ॥४॥ धन्य राजुल धन्य नेमजी, धन्य धन्य बेहुनी प्रीत, संयम पाली मुक्तेगयां, रुपवंदे निशदिन ॥५॥ (24) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : नेमजी कुंवर मारा)
पाछा वलो बेनी पातलीयां, एथी भलोरे भरतार, सरखी साहेलीयो महेणां मारशेरे, राजुलने कालो भरतार ॥ हे पाछा० ॥१॥ काळां ते भम्मर हाथीयारे, काळां ते मेघ मल्हार, काळी ते कस्तुरी जगमगेरे, काळीते काजल मेस ॥ हे माधव० ॥१०॥ घरेणां भरेलो मारो ते दाबडो, मेल्यो छे पटारामांय, जाणेरे जइशुं सासरे, सजीशुं सोळे शणगार ॥ हे माधव० ।।११।। काजल भरेली मारी ते दाबडी, मेली छे गोखलां मांय, जाणे ते जइशुं सासरे,
आंजीशुं अणियाली आंख, ॥ हे पाछा० ॥१२॥ राजूल बेनी तमारुं कपडु, सिवडाव्युं मंगलवार, न पहेर्यु पीयर के सासरे रे, न पेयुं मायने मोसाळ । हे पाछा० ॥१३॥ ना काढ्यां जेठाणीना धुंघटारे, न वदया जेठाणीना वाद ॥ हे पाछा० ॥१४॥ ना खवरावी दियरने सुखडीरे, न ओल्यां नणदीना माथा, ना चढ्यां चौरीना चोगठारे, नारे जम्यो कंसार ॥ हे पाछा० ॥१५॥ हाथे ते हाथ न मीलावीयारे, न पहेरी वरमाल, पुरुषने व्हाली पाघडीरे, राजुलने व्हालो भरतार ॥ हे पाछा० ॥१६॥ मारी बेनी संसार छोडी, संयम पंथजाय, है धन धन नेम राजुलनेरे, जेणे पालीछे पुरण प्रीत ॥ हे पाछा० ॥१७।। नेमजीए कागल लखी मोकल्योरे, अमे छीए गढ गिरनार, संयम लेवा होयतो आवजोरे, उपन्युं छे केवलज्ञान ॥ हे पाछा० ॥१८॥ राजुल बेनी निसर्यार, संयम लेवाने काज, संयम लेइ केवल पामीयांरे, साध्यु आतम काज ॥ हे पाछा० ||१६|| हीरविजय गुरु हीरलोरे, विरविजय गुण गाय, लब्धिविजय , गुरु राजीयोरे, तेनां हुँ नमुं पाय ।। हे पाछा० ॥२०॥
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(25) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : तेरी प्यारी प्यारी सुरत)
सांभळ रे शामळीया स्वामी, साच कहुं शिरनामी, वात न पूछे तुं अवसर पामी, तो शानो तुं अंतरजामी.... कहु० (१) आगळ ऊभा सेवा कीजे, पण तुं किमही न रीझे रे, निशदिन तुज गुणो गाईए, पण तिल मात्र न भीजे.... सां० (२) जो मुजने भवसायर तारो, तो शुं जाये तुमारो रे, जो पोतानो बिरुद संभाळो, तो कांई न विचारो रे.... सां० (३) हुं शुं तारो तारक शानो, इमछूटी पडी न शकशो रे, जो मुजने सेवक त्रेवडशो तो वातोडीया माहे पडशो.... सां० (४) ओछी अधिक वात बनाइ, कहेतां खोट न कांई रे, भक्त वत्सल्य जिनराज सदाइ, विर विजय वरदाई रे.... सां० (५)
(26) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग-तोरा मन दर्पण)
में आजे दरिसण पाया, श्री नेमीनाथ जिनराया, प्रभु शिवादेवीना - जाया, प्रभु समुद्र विजय कुळ आया, कर्मो के फंद छोडाया, ब्रह्मचारी नाम धराया, जेणे तोडी जगतनी माया, श्री नेमीनाथ जिनराया० (१) रैवतगिरि मंडण राया, कल्याणक तीन सोहाया, दीक्षा केवल शिवराया, जगतारक बिरुद धराया, तुम बेठे ध्यान लगाया, में आजे दरिशन पाया० (२) अब सुनो त्रिभुवन राया, में कर्मो के वस आया, हुं चतुर्गति भटकाया एम दुःख अनंता पाया, ते गिनती नहि गिणाया, में आजे दरिशन पाया० (३) में गर्भावास में आया, उंधे मस्तक लटकाया, आहार सरस विरस भुक्ताया, एम अशुभ कर्मफल पाया, इण दुःख से नहीं मुकाया, में आजे दरिशन पाया० (४) नरभव चिंतामणी पाया, तब चार चोरमिल आया, मुज चौटेमें लूंट खाया, अब सार करो जिनराया, किस कारण देर लगाया, में आजे दरिशन पाया० (५) जिणे अंतर गत में लाया, मे नेमि निरंजन ध्याया, दुःख संकट विघ्न हठाया, ते परमानंद पाया, फिर संसारे नहि आया, में आजे दरिशन पाया० (६) में दूर देश से आया, प्रभु चरणे शिश नमाया, में अरज करी सुखदाया, तुमे अवधारो महाराया, एम 'विर विजय' गुण गाया, में आजे दरिशन पाया० (७)
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(27) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : केम रे विसारी)
ना करीए रे मेळा ना करीए रे, निगुणा | मेळो ना करीए, अमे रोई रोई आँखडीमां नीर भरीए.... निगुणा० (१) प्रेम निरवही प्रेमी जननो, अविचार्यु डग ना भरीये (२) नि० २ जादवजान सजीने यदुपति, तोरण आवी केम फरीए (२) नि० ३ संयमनारी व्हाले कीधी प्यारी, राजुल मूकी भरदरिये (२) नि० ४ अम अबळानी सामु निरखो, विरह जलधिथी केम तरीये। ५ जोबनवय केम करी निरगमी, लोकलाजथी घणुं डरीये (२) नि० ६ दिलरंजन प्रभु दिलमां धरीये, निशदिन अवलाईमां मरीये । ७ चतुर थइ अवसर शुं चूको, अमृत सुखरंगे वरीए (२) नि० ८ (28) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : मेरे मनकी गंगा)
पांच वरसना नेमजी पाटी, लइ भणवा जाय, नेमजी तारी घुघरी रणक झणक वागे.... हो० (२) १ एक दिन शाळाने विचार आव्यो, भोजाईओने घेर रमवा जाय पांच-सात भोजाई भेगी मळी, कांई परणो राजुलनार (२) १ नेम छबीला तोरण आव्यां, पशुए मांड्यो पोकार, नेमजीए एमना साळाने पूछ्युं, तुम घेर शुं आचार (२) २ रात्रे राजुल बेनी परणशे, सवारे गौरव भोजन देवाय, नेमजीए रथ पाछो वाळीयो, जइ चढ्या गढ गिरनार (२) ३ झरमर झरमर मेहुलो वरसे, भीजाई राजीमतिना चीर, गुफामां जइने चीर सुकाव्यां, दियर दीठा अंग (२) नेमजी ४ नेम छे काळाने लचकाळा, हुं हुं तेमनो भाई, फिट फिट दियर आवं शुं बोलो, रत्नचिंतामणी पास, (२) ५ सहेसावन जइ संयम लीधो मुक्तिपुरीमा जाय, हिरविजय गुरु हिरलो रे लब्धि विजय गुण गाय (२) नेमजी० ६ (29) श्री नेमनाथ जिन स्तवन (राग : दुखडा निवारो मारा)
अष्ट भवांतर वालहो रे, तुं मुज आतमराम, मनरावाला; मुगति नारीशुं आपणे रे, सगपण कोई न काम ।म०। १-घरे आवो हो वालम घरे आवो, मारी आशाना विसराम; म० रथ फेरो हो साजन रथ फेरो, हो साजन माहरा मनोरथ साथ, म० नारी पखो शो नेहलो रे, साच कहे जगनाथ; म० इश्वर अरधांगे धरी रे, तुं मुज झाले न हाथ ।म०। २ पशु जननी करुणा
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करी रे, आणी ह्रदय विचार; म० माणसनी करुणा नही रे, ए कुण घर आचार |म०। ३ प्रेम कल्पतरु छेदियो रे, धरियो योग धतूर; म० इण चतुराई रो कुण कहो रे, गुरु मिलियो जगसूर ।म०। ४ माहरूं तो एमां कशुं नहीं रे, आप विचारो राज; म० राज सभामां बेसतां रे, कीसडी वधशे लाज ।म०। ५ प्रेम करे जग जन सहुरे, निरवाहे ते ओर; म० प्रीत करीने छोडी दिये रे, तेह शुं चाले न जोर ।म०। ६ जो मनमां एहवू हतुं रे, निसबत करत न जाण; म० निसबत करीने छांडतां रे, माणस हुवे नुकशान । म०। ७ देतां दान संवत्सरी रे, सहु लहे वांछित पोष; म० सेवक वांछित नवि लहे रे, ते सेवकनो दोष 1 म०। ८ सखी कहे ए शामळो रे, हुं कहुं लक्षण श्वेत; म० इण लक्षण साची सखीरे, आप विचारो हेत
म०। ६ रागी शुं रागी सहु रे, वैरागी थी शो राग; म० राग विना किम दाखवोरे, मुगति सुंदरी माग ।म०। १० एक गुह्य घटतुं नथी रे, सघलोई जाणे लोग; म० अनेकांतिक भोगवे रे, ब्रह्मचारी गत रोग ।म०। ११ जिण जोगे तुजने जोउं रे, तिण जोगे जुवो राज; म० एकवार मुजने जुवो रे, तो सीझे मुज काज ।म०। १२ मोह दशा धरी भावना रे, चित्त लहे तत्त्व विचार; म० वीतरागता आदरी रे, प्राणनाथ निरधार |म०। १३ सेवक पण ते आदरे रे, तो रहे सेवक माम; म० आशय साथे चालीये रे, एहिज रूईं काम ।म०। १४ त्रिविध योग धरी आदर्यो रे, नेमिनाथ भरतार; म० धारण पोषण तारणो रे, नव रस मुगताहार ।म०। १५ कारुणरूपी प्रभु भज्यो रे, गण्यो न काज अकाज; म० कृपा करी प्रभु दीजी । ए रे, आनंदघन पद राज ।म०। १६
(30) श्री नेमनाथ जिन स्तवन रहो रहोरे यादव दोघडियां, दोघडियां दोचार घडियां, शिवामाता मल्हार नगीनो, क्युं चलीये हम विछडियां रहो० १. यादव वंश विभूषण स्वामी, तुमे आधार छो अडवडीयां, रहो० २. तुम बिन ओरसे नेह न कीनों, और करनकी आंखडीया, रहो० ३. इतने बीच हम छोड न जईए, होत बुराइ लाजडीयां, रहो० ४. प्रीतम प्यारे नेह करजानां, जो होत हम शिर बांकडियां, रहो० ५. हाथ से हाथ मीलादे सांइ, फुल बिछावू
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344 सेजडियां, रहो० ६. प्रेम के प्याले बहुत मसाले, पीबत मधुरे शेलडियां, रहो० ७. समुद्रविजय कुल तिलक नेमकुं, राजुल झरती आंखडीयां, रहो० ८. राजुल छोड चले गिरनारे, नेम युगल केवल वरीयां, रहो० ६. राजीमती पण दीक्षा लीनी, भावना रंग रसे चडीयां, रहो० १०. केवल लही करी मुगति सीधावे, दंपती मोहन वेलडीयां, रहो० ११. श्रीशुभवीर अचल भई जोडी, मोहराय शिर लाकडियां रहो० १२.
(31) श्री नेमनाथ जिननो मांडवो हे सरस्वती स्वामीने विनवू रे, मोतीवाडा जिनवर जी, हे सद्गुरु लागु पाय रे, मारा ते वाव्या नवि वव्यां जी रे, मारा ते वाव्या नवि वव्यां.१
(राग : अमदावादी पालखी रे) माधवपुरनो मारो मांडवो, सौरपुरीनो छे शिरताज के कोने लखी ते कंकोत्री कोने ते रांध्यो कंसार....माधव उग्रसेने लखी छे कंकोत्री रुक्षमणीओ रांध्यो कंसार, के माधवपुरनो मारो मांडवो ॥१॥ पश्चिमथी रे कांई आव्या पानना बीडलां, गिरनारथी कांई आव्या नाळीयेर, राजुल बेठी छे रे, गोखमां जुवे छे रे कांई जाननी वाट के, माधवपुरनो मारो मांडवो ॥२॥ कई दिशाथी जान आवशे, उडे छे रे कांई अबील गुलाल, के राजुल. सैयरोने विनवे, विवाहमां रे कांई होंशे विघ्न रे, के माधवपुरनो मारो मांडवो. ॥३॥ छप्पन कोडी जादव मलीया, सत्यभामा गावे रे गीत, नेमजी ते तोरण आवीया रे, पशुढे मांडयो पोकार, के राजुल बेठी छ गोख. ॥४॥ नेमजीओ साळाने पूछ्युं, मांडवे आवडो ते शो छे शोर, राते राजुल बेनी परणशे, प्रभाते गौरव रे देवाय. ॥५॥
(राग : वहुओ वगोव्या मोटा खोरडां रे लोल) जावो पंखीडा पाणी पीवो रे लोल, नगरीमा करोरे कल्लोलरे, धीक पड्युं आ परणवू रेलोल, शैल्य वव्यो रे संसार रे, राजुल बेठी गोखमां रे लोल. ॥६॥ नेमजीओ रथ पाछो वाळीयो रे लोल, जई चढ्यां गढ गिरनार रे, रोता राजुल बेनी निसर्या रे लोल, मनावे माय ने बाप रे, राजुल बेठी गोखमां रे लोल. ॥७॥
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(राग : अखंड सौभाग्यवती) पाछो वाळो राजुल बेनी पातळा रे, ओथी भलो भरथार रे; सरखी साहेली मेणा मारशे रे, राजुलने काळो भरथार रे, माधव पुरनो मांडवो रे. ॥८॥ काळा ते भम्मर हाथीया रे, काळा ते मेघ मल्हार रे; काळी ते कस्तुरी मघ मघे, काळी ते काजल मेष..माधवपुरनो मांडवो रे. ॥६॥
(राग : ओक लीला ते रंगनी वांसलडी रे) घरेणा भर्यो ते मारो डाबलो रे, ओ तो मेल्यो छे पटारामांय, जाणे ते जईशुं सासरे, जाणे ते जईशुं सासरे, सजीशुं सोळे शणगार, घरेणां भरेलो मारो डाबलो रे. ॥१०॥ काजल भरेली मारी डाबली रे, काजल भरेली मारी डाबली रे, ओ तो मेली छे गोखनी मांय, जाणे ते जईशुं सासरे, जाणे ते जईशुं सासरे, आंजीशुं अणीयारी आंख...,घरेणां भरेलो मारो डाबलो रे. ॥११॥
(राग : परण्या अटले प्यारा लाडी.) राजुल बेनी तमारं कपडुं, सीवडाव्युं मंगळवारे रे, न पहेर्यु पीयर के सासरे, न पहेयुं माने मोसाळ रे. ॥१२॥ न काढ्यां ससराजीनां घुमटा, न पड्यां सासुजीने पाय रे, न काढ्यां जेठजीनां धुंघटां, न वद्या जेठाणीजीना वाद रे. ॥१३॥ न खाधी दियरनी सुखडी, न ओळ्या नणंदीना माथा रे, न चढ्यां चोरीना रे चोगठे, न जम्यां कंसार रे. ॥१४॥ हाथे ते हाथे न मीलावीयो, न पहेरावी वरमाळा रे, पुरुषोने वहाली पाघडीरे, राजुलने वहालो भरथार रे. ॥१५॥
(राग : मेरा जीवन कोरा कागज) नेमजीने कागळ लखी मोकल्यो, अमे छीओ गढ गिरनार, संयम लेवो होय तो आवजो, उपन्यु केवलज्ञान; मारी बेनी, संसार छोडी, संयम पंथे जाय. नेमजीओ० ॥१६।। राजुल बेनी निसर्या रे, संयम लेवाने काज, संयम लेवाने काज, मारी बेनी संसार छोडी, संयम पंथे जाय. ॥१७॥ धन-धन नेम राजुल जेने, पाळी पूरण प्रीत, पाळी पूरण प्रीत; हिर विजय गुरु हीरलोने लब्धिविजय गुण गाय, लब्धिविजय गुण गाय, मोतीवाडा जिनवर मारा वाव्यां नवि वव्यांजी रे. ॥१८॥
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(32) श्री नेमनाथ जिननो मांडवो (मारा शामळा छो नाथ)
आव्या उग्रसेन दरबार, नेम परणवा राजुलनार, नवभवनी नारीने बुजववा ॥१॥ जान तोरण पासे आवे, सखीयो मंगल गीतो गावे, सजी सोळ शणगार, राजुल उभा गोख मोजार, पति शामळीया नेमने निहाळवा ॥२॥ सुणी नेमनुं हैयु दुभाय छे रथडो पाछो चाळीने जाय छे, देवा मांडयु वरसीदान, त्यां तो रुवे राजुलनार पतिः ॥३॥ पति विरह सुणी धरणी ढळे, राजुल कोटी कोटी विलाप करे, मुजने छोडी न जाओ नाथ, हुं तो आवु तमारी साथ पति० ॥४॥ सहसावनमां जइ संयम लीये, राजुल पण संसार तजे, बुजवी नेहे राजुल नी जोडी शोभे छे, बन्ने मुक्तिनी मोज माणे छे, पहेला तारी राजुल नार, पछी पहेरे मुक्तिमाळ पति० ॥६।। गुरु उदय रन वीनवे छे, भवोभवनां दर्शन इच्छे छे, जेम तारी राजुलनार, तेम तारी ल्यो आ बाळ, पति शामळीया नेमने निहाळवा ।।७।।
(33) नेमनाथनी जान जानमां हाथी घोडा ने गाडी, नेमजी बेठा जान सजावी, आइ आइ आइ जान, जोवा चालो भाइ, जान आवी तोरण, आवा ज सुणी, पशु कहे प्राण हमारा जाए भाइ, आइ आइ आइ दया, नेमकुमार को भाइ,...२.... जीव सहुने वहालो, दया वसावी, तोरणथी रथडो लीधो पाछो वाळी; वाळी वाळी वाळी मन पाछो वाळी भाइ....३.....राजुल रही झुरी, नयने वहे पाणी, नेम विना बीज, नाम नहि भाइ; चाली चाली चाली राजुल, पियु पंथे चाली, नव नव भवनी, प्रीत संभारी, मुक्ति महेलने, रह्या शोभाइ, वंदे वंदे वंदे दर्शक, प्रेमे प्रभुने वंदे....५.....जानमां हाथी घोडाने गाडी....
(34) श्री नेमिनाथ भगवाननो विवाहलो (ढा. १) सरस्वती चरण सरोज रमी रे, श्री शंखेश्वर पाय नमी रे; नेमी विवाह ते रंगे गाशें, जिम नमिनाथे पूरव प्रकाश्युं, ॥१॥ नेम नगिना आवो घडी रे, मित्र कहे अम पाय पडी रे; रमतां आयुधशालाओ आव्या, चक्र गदा लेई शंख वजाव्या. नेम० ॥२॥ शब्द सुणी चिंता अधिकेरी, कुण उपनो मुज उपर वेरी; दैत्यारी ततखिण तिहां जाय, तव दीठो मीठो लघु
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भाय. नेम० ॥३॥ पाणि पसारि करीय परिक्षा, चिंते जे किम लेशे दीक्षा; नीलवसनशुं विचार करे रे, तव अंबरे सुर ओम उच्चरे रे. नेम० ॥४॥ नेमी कुमार पणे व्रतधारी, अकवीसमा जिन वचन विचारी; श्याने दामोदर शोक धरे रे, ईम निसुणी हरि हर्ष घरे रे. नेम० ॥५॥ वली निश्चय करवा गोपीने, कहे विवाह मनावो नेमिने; सरोवर पाळे केलि करी रे, वीर कहे रसरंग भरी रे नेम० ॥६॥
(ढा. २) गोपी आठनी रे टोली, बत्रीश सहस ते बाली भोली; नेमि वरासन रे थापी, सरोवर तीरे क्रीडा व्यापी० ॥१॥ हसी हसी बोलो रे वहाला, लालच लागी, प्रभु लटकाळा; पाननां बीडां रे खाती, यौवनमद रसमां रंग राती हसी० ॥२॥ दडो फूले केरो रे उछाले, बीजी रसभर रमती झाले; नेमिने ह्रदये रे मारे, तव ओक जाई छाती पंपाळे. हसी० ॥३।। कांई दियरीया रे वाग्युं, परणवा कायर कां तुम लाग्यु; प्रभुने छांटे सघळी नारी, जलशुं भरी सोवन पीचकारी हसी० ॥४॥ मनमां जाणे रे जलशुं, प्रभुने आकुल व्याकुल करशुं तव अंबरे देवा रे वाणी, बोले सुणजो हरिठकुराणी. हसी० ॥५॥ लघु पणे मेरु रे हलाव्यां, चउसठ्ठ इन्द्रे प्रभु नवराव्यां; तव व्याकुलता रे नावी, तो तुमने शी मति आवी. हसी० ॥६।। ओम सुणी गोपी रे आवी, सरोवर तीरे प्रभुने लावी; वीर कहे रस रंगे भराणी, हवे बोले कमला पटराणी. हसी० ॥७॥
(ढा. ३) हां रे कांई रुकिमणी राणी कहे दियर अवधार जो; नारी विना अकलडा दुःख पामशो रे लो; हां रे कांई जोबनीयानो लटको दहाडा चार जो, जातां रे नहि वार पछे पस्तावशो रे लो..॥१॥ हां रे कांई छेल छबीली रंगीली भोजाईओ जो, लोचनने लटके रे तुम स्हामुं जुओ रे लोल; हां रे कांई मुखने मटके कहे तुमने सुखदाय जो, जोबननो लाहो नारी विण कां खुवो रे लो..॥२॥ हां रे कांई दियरीया इम होशे तुम मनमांही जो, ओ बत्रीश हजार मळी धिंगाणियो रे लो; हां रे कांई पंडित थई शुं न विचारो दिलमांहि जो, कहो परण्या विण कुण थाशे पोतानीयो रे लो..॥३॥ हां रे कांई ओक नारी परण्या विण सुत नहि नेम जो, पुत्र विना कुण नाम तुमारूं राखशे रे लो; हां रे कांई राज्यभार कायर थई करशो केम जो, हुं कमला
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विण इम वयणां कुण भाखशे रे लो..॥४॥ हां रे कांई कण पीसण जल भरवा जाशे कोण जो, भोजाईओना विश्वासे रहेशो नहि रे लो; हां रे कांई कहेवानी सगीओ पणनहि दे लूण जो, वीर कहे अणिपरे कमला बोली रही रे लो..॥५॥
(ढा. ४) भामा कहे हां भूला भमो रे लो, नारी विना अकवार; मोरा दियर हो, दातण जल पण नहि दिउँ रे लो; खटरस भोजन कुणकरे लो, पीरसशे विण नार० मो० दी० ।।१॥ स्नान-विधि कुण साचवे रे लो, बेसण आसन सार; मो० दी० शयनादिक कुण पाथरे लो, रामा विण निरधार. मो.दी० ॥२॥ भामा छे भरथारनी रे लो, सुखदुःख वातनी जाण; मो० दी० तुम सरिखा जिहां उपन्या रे लो, नारी रत्ननी खाण मो० दी० ॥३।। प्रेम रसे रस केलवे रे लो, नारी विसामानु ठाम; मो० दी० ओक नारीथी निस्तरे रे लो, सघर्छ घरचं काम० मो० दी० ॥४॥ छंद गीत रमणी भणी रे लो, मन नवि भेदे जास; मो० दी० वीर रसे सत्यभामा कहे रे लो, नर पशु कहिये तास मो० दी० ॥५॥
(ढा. ५) कहे जंबूवतीनां वयणां भला रे, ओक ओक सनेहे वाहला रे; आकाश फिरंता अकलां रे, पशु पंखी पण तुमथी भलां रे, कांई सुण छोगाळा रे के, नारी थकी डरशो तो; सुणो रढीयाळा रे के, राज्य ते केम करशो...॥१॥ पशु पंखी पोपट सूअडा छे, अज्ञानी ते पण रुअडा छे; तरु उपर ओक दिशा धारी, रहे सुख विलसंता नरनारी कांइ० ॥२॥ चूण करवा प्रभाते जावे, संध्याकाले माले आवे; निज बालकशुं भेला भलतां, नरनारी प्रेम रसे मलतां०...कांई० ॥३॥ तुमे राजकुमरीया कहेवाओ, शुं पशुआं पंखीथी जाओ; जाओ जाओ रे दियरीया धीठा छो, हठवाद लेईशुं बेठा छो०...कांई० ॥४॥ किम मौनपणुं अमशुं लीधुं, के कोईये तुम कामण कीधुं; ओ वीर पराक्रम तुम जोयु, ओक नारी विना सहु सुख खोयु...कांई० ॥५।।
(ढा. ६) तें नारी विना सुख खोयुं रे, सुंदर...शामळिया० कांई जादवकुल विगोयुं रे सुंदर...शामळिया० कहे सुसीमा हसी हसी बोलो रे, सुं० हईडा- अंतर खोलो रे. सुं०..।।१।। में वात हईडानी जाणी रे, सुं-घेर बांधवो हाथी ताणी रे; सुं०.. जो परणो ओक ज भोली रे, सुं० कटि मेखला चीर
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पटोली रे, सुं०..॥२॥ हिंगलोनो टीको प्यारो रे, सुं० पगे झांझरनो झमकारो रे; सुं०... कर कंकण नाके मोती रे, सुं० ओक पहेरे ने ओक खोती रे. सुं०.. || ३ || जे जे मन वल्लभ लागे रे, सुं०.. ते ते तुम पासे मांगे रे; सुं०.. तरणा तूर जाचक तिजे रे, सुं०... विवरी लघु तरतम दीजे रे. सुं० . . ||४|| वायु जाचकने न ग्रहाय रे, सुं०... कांई मांगे ते मोटी बलाय रे ; सुं०... छो कायर पण थाओ धीर रे, सुं०... तुम बंधव जे वडवीर रे. सुं० ॥ ५॥ जेम बीस हजारनुं भरशे रे, सुं० तेम तुम नारीनुं पुरुं करशे रे; सुं०...शे परणो नहि हवे कांई रे, सुं०.. कहे वीर सलूणा सांई रे. सुं०..||६||
( ढा. ७) लक्ष्मणा हे हलवे रही; शे हवे नारी परणो नहि; न्हानडीया दीयर अवधार, नारी विना निष्फल अवतार... ॥१॥ अहवी धीठाई छे घणी, कुण नारी वरशे तुम भणी; अकलडा वांढा थई रही, घरणी विना घर शोभे नहि... ॥ २॥ संघवी थाशो उलट घणे, संघ चाले सिद्धाचल भणे; संघवण कुण तुम पूछे कोई, शुं कहेशो तिहां नीचुं जोई... ॥३॥ माल पहेरशो नारी विना, पूंखण विधि कुंण करशे जना; उजाणी स्वजन जातरा, घर विवाह नहि सुंदरा... ॥ ४ ॥ पर्वोत्सव न जणाये कदा, पेड भरे दीवाली सदा; महोटाई जगमांहि थशे, वीर कहे घरणी घेर हशे ... ||५||
(ढा. ८) ते माटे वरो ओक नारी रे, हरिनारी कहे गंधारी रे; प्रीतडी पाळीये रे०... घेर प्राहुणो अकतान रे, कुण देशे आदरमान रे, प्री०... ||१|| गुरू आगे जाश्यो ज्यारे रे, गहुंली करशे कुण त्यारे रे; प्री०... मुनिने देशे कुणदान रे, रामाविण घर उद्यान रे... प्री० ... ॥२॥ व्यापारे चले घरे ताकुंरे, आवी संध्या ओ करशो वाळु रे; प्री०... ओम अकला बारेमास रे, लोक केम करशे विश्वास रे० प्री०... ||३|| ओकलाने सांढ ते कहेशे रे, कुण परघर पेसण देशे रे; प्री०... जिहां जाशो छेलाईने वेशे रे, लोक भोजाई मेहणां देशे रे. प्री० ... ॥४॥ कांई दियरया तुं जाणे रे, नारी सांभरसे घणुं टाणे रे; प्री०... दोषाकर किरणा लगावे रे, कहे वीर ते विरह जगावे रे. प्री० ... ॥५॥
(ढा. ६) सुण अलबेला ? अलबेली विण किम जाशे जनमारो; हे रंगीला ? रंगीली विण ओळे जाशे अवतारो;... ओक दिन अमे रंगभर रमतां ता, माहरे
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पग झांझर रमझमतांता, नम्रता करी नाथने नमतांता, ससनेहीना खंद्या खमतांता. सुण०... ॥१॥ हरि समनामे सुख समधारी, देखण आव्यो विधु सह नारी;.. मोरा हइडा उपर नभचारी, तेणे दरिसणे हुं थइ हुंशियारी. सुण०... ॥२॥ जाणे हरि गोरीये कुंवरीयो, दो चार घडी आशा भरीयो; में हरि साथे लीला करीयो, हरि कोपे पश्चिम दिशि वळियो. सुण०... ॥३॥ अणे अवसरे रंग रसे भरीयो, मने नेम दियरीयो सांभरीयो; छे जोबन मद पावक जलीयो, घन घोर घटा होय विजलीयो. सुण०... ॥४॥ अक पाउस मासे जल वरसे, अकलडो नेम ते शुं करशे; पण जाणुं हुं झुरी मरशे, ओक वैराग्ये | मन ठरशे. सुण०... ॥५॥ कहे गोरी हुं तुम दुःखभारी, ते माटे परणो ओक नारी; पूर्वे सवि जिनवर संसारी, कहे वीर पछे संजमधारी. सुण०... ॥६॥
(ढा. १०) कहे पद्मावती दियरीया जो, नारी नथी कुण वरीया जो; हरिवंश विभूषणकारीजो, मुनिसुव्रत घरबारी जो०...तुमे शिवनारीना रसिया जो. माहरे घेर अभिनव वसीया...जो.॥१॥ शी झाझी छोकरवादी जो, देखोने देव युगादि जो; प्रभु जुगला धर्म निवारजो, आप वर्या दोय नारी जो...तुमे०. ॥२॥ सुख विलसी संजम रसिया जो, शिवमंदिरमां पण वसिया जो; प्रभु थापित वरणा वरणे जो, आज लगी सहु परणे जो...तुमे०. ॥३॥ चक्री जिन शांति उदार जो, ओक लाख बाणुं हजार जो; सुख विलसी ओटली नारी जो, पछे थया व्रतधारी जो...तुमे०. ॥४॥ लही केवल भव निस्तरीया जो, मोक्ष-वधू पण वरीया जो; परणी शिवमंदिर चिठा जो, सघला जिनवर दीठा जो...तुमे०. ॥५॥ तुमे नवि मुगति दिल धारी जो, के वात तुमारी न्यारी जो;...कां धीठा देवर मलीया जो, कहे वीर पराक्रम बलीयाजो...तुमे०. ॥६॥ __(ढा. ११) अम सघली नानी वडेरी रे, नेमिनाथ ने चिहुं दिशि घेरी रे; तुम बलनुं मर्मज लध्ध रे, नारी परणो तो रहे युद्ध रे...॥१॥ परणी भव लाहो लीजे रे, पछी बलनी परीक्षा कीजे रे; हरि जीतो तो जाउं बलिहारी रे; ओम बोले हसी केई नारी रे...॥२॥ रामा शठ हठ नवि छांडे रे, ओहशुं चतुर कुण मांडे रे; रह्यां मौन ते अम विचारी रे, तो पण बोले धूतारी रे...।।३।। कर झाली कहे मतवाली रे, कहे केती ते पालव झाली रे; थई
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नींचुं जुवे मुख जाम रे. मुख हसतुं दीठं ताम रे...॥४।। मान्यो मान्यो विवाह नेमिनाथे रे; देई ताली कहे सहु साथे रे; अनिषेधे अनुमति न्याय रे; पाणीग्रहण ते अंगीकराय रे...॥५॥ करे उद्घोषणा सहु नारी रे, नजरे निरखे मोरारी रे; जई समुद्र विजयकुं वधाई रे, देतां हरि वीर सवाई रे...॥६।।
(ढा. १२) आगल भोलीने पाछळ टोली तो, विचमां नगीना नेम चले; अलबेली साहेली रे, चाली पुरमां०..ओक कहे सुण भामिनी भोली तो, पाणिग्रहण मान्युं भले०..अ०..चा०..।।१॥ एक कहे महिमा मुज करो तो, माहरु वचन अणे मानीयुं; अ०....कोई कहे मान्युं अहनी मेले तो, नहि चाले ओम जाणीयुं०...अ०...चा०..॥२॥ केई कहे माहरा लोचन लटके तो, केई वचन मुज वांकडे; अ०...चा०..केई कहे मान्यु इणे त्यार तो, आव्या घj जब सांकडे. अ०...चा०..॥३॥ भामिनी भाखे धरी उजमाल तो, परणवा नारी भणी; अ०...चा०..॥४॥ केई कहे खोटी अह वात तो, राखी माजा आपणी; अ०...चा०..॥५॥ उग्रसेन तणे घरे श्री कृष्ण तो, पहोत्या मन हरखे करी तास सुता मांगी गुणवंततो, रुप हरत सुर सुंदरी अ०...चा०..॥६॥ पंचबाण तणी राजधानी तो, नामे सती राजीमती; अ०...चा०..कोष्टुकिने पूछे वर लग्न तो, समुद्रविजय ने श्रीपती, अ०... चा०..॥७॥ श्रावण मासनी उज्वल छठे तो, ली, लगन उलट घणे; अ०...चा०..वीर विवेकी चढे वरघोडे तो, चालो सखीयो जोवा भणे. अ०...चा०..॥८॥
(ढा. १३) हवे विवाह सामग्री मेली रे, देती तिहां वडीयो वडेरी रे; वळी धवल मंगलशं राती रे, शामलियाना गुण गाती रे...शामलियाना... ॥१॥ पीठी चोले सुगंध धरीने रे, विधिपूर्वक स्नान करीने रे; हेम मुद्राओ दश अंगुलीयो रे, बाजुबंध गले सांकलीयो रे...शामलियाना...॥२॥ काने कुंडल केडे कंदोरो रे, कटिबंध कसबनी कोरो रे; ओम शोभित झाकझमाल रे, धर्यो खूपतिलक शिर भाले रे...शामलियाना...॥३॥ करमा धरी श्रीफल पान रे, रथ बेठां पतंग समान रे; वळी बळद जोतरीया बाला रे, गले सोवन घुघर माला रे...शामलियाना...॥४॥ हय गय चलतां बहु तत्र रे, प्रभु शोभित चामर छत्र रे; जादव नारी बहु साथे रे, लामण दीवो माताजीने हाथे रे...शामलियाना...।।५।। जादव कुल कोडि ते झाझा रे, ओक ओक नी
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धरता माझा रे; वळी दशे दशारथ ताजा रे, नारायण हलिधर राजा रे...शामलियानां...॥७।। शरणाई ने भूगल वाजे रे, सजी जान ते साजन साजे रे; नेमिजिन परणा सांभलीया रे, जोवा कौतुक सुरनर मलीया रे...शामलियाना...||८| अम जान सजीने जातां रे, मंदिरीया ते पीला रातां रे; चित्रामण धोलित शुं छे रे, ओम सारथिने प्रभु पूछे रे...शामलियाना... ॥६॥ कहे सारथि ससरा केरुं रे, मंदिर छे अह भलेलं रे; तुम नारीनी दोय साहेली रे, करे वातो मली बे भेली रे...शामलियाना...॥१०॥ तव राजीमती गजगेली रे, आवी जंगम मोहन वेली रे; वर देखण द्यो साहेली रे, जूओ उभी सहियरने ठेली रे...शामलियाना...॥११॥ अमरावतिमां जेम इंद्र रे, तारागणमां जेम चंद्र रे; देखी राजुल धरती प्रेम रे, वीर वंदे नगीना नेम रे...शामलियाना...॥१२॥
(ढा. १४) राजुल रुपेशुं मोही घणुं रे, कहे सखीयो वर कालो श्याम; आज भ्रम भाग्यो रे तुम चतुराईनो...रे०... अहवां हांसी रुप वयणां सुणी रे, कहे सहियरने राजुल ताम...आज०...॥१॥ श्याम पणुं सुंदर छे लोकमां रे, भूषणने पण दूषण दीध; आज०.. उज्वल पयमां पोरा काढीया रे, सुणजो श्याम गुण प्रसिद्ध०...आज०...॥२॥ कस्तूरी रयणी वरभूमिका रे, कालो मेघ करे जल रेल; काली रेखा जिम चित्रामणे रे, वळी कर्पूरमां अंगार, आज०...भोजनमां मरी अम आश्रयगुणा रे, कहुं हवे गोरानो अधिकार०...आज०...॥४॥ नहि मीठाश लवण गोरा तणी रे, हिम पडतुं जल बालंत; आज०...अति गोरा नरनारी कोढीया रे, गोरा केवल अवगुणवंत. आज०...॥५॥ अम साहेली साथे बोलती रे, राजुल बेठी गोख मोझार;...आज०...वीर विवेकी वर तोरण भणी रे, आवे ते सुणजो अधिकार०...आज०...॥६॥
(ढा. १५) आडंबर वर आविया रे, नेमिश्वर गुणवंत व्हाला; राव पशुनी सांभळी रे, सारथिने पूछंत व्हाला, करुणावंत शिरोमणी रे, भय भंजन भगवंत व्हाला...॥१॥ कहे सारथी विवाहमारे, गौरव कारण अह व्हाला; मेल्यां पशुं हरणां घणां रे, दारुण स्वर करे तेह व्हाला...करुणा०...॥२॥ नेम सुणी चित्त चित्तवे रे, धिग् माहरो विवाह व्हाला; जादवने ओच्छव घणो रे,
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पशुआ अंतर दाह व्हाला...करुणा०... ॥३॥ इणे अवसरे प्रभु देखीने रे, हरणो कहे सुणनार व्हाला; मरण थकी तुज विरहनुं रे, हैयडे दुःख अपार व्हाला...करुणा०... ॥४॥ प्रभु देखी हरणी कहे रे, करुणावंत भदंत व्हाला; करी विनति जिम छुटीये रे, मरण थकी सुणकंत व्हाला ईम सुणी मृग प्रभुने कहेरे, करीओ भक्षण घास व्हाला; निर्झरणां जल पीजीयेरे, वळी रहीये वनवास व्हाला, करुणा०...॥६॥ निरअपराधि नाथजी रे, छोडावो तुमे आज व्हाला;...सांभळी सारंग विनति रे, नेमिश्वर महाराज व्हाला...करुणा०... ॥७॥ हरणी ग्रीवा निज नारीने रे, कंठे ठवी रह्यो हेत व्हाला; ते देखी मति केळवीरे, वर कवि उपमा देत व्हाला...करुणा०...॥८॥ बंधनथी पशु छोडतो रे, प्रभु वचने रखवाल व्हाला; नहि परj नेमि कहे रे, सारथि! तुं रथ वाल व्हाला...करुणा०... ॥६॥ पाछा वलता देखीने रे, मातपितादिक आय व्हाला वीर कहे वचने करी रे, शामलकुं समझाय व्हाला...करुणा०...।।१०।। ... (ढा. १६) रथ झाली कहे मातपिता सुण व्हाला ओ, मांगु छु तुज पासे ओक वचन; हेजे हली रे, मानजो माझा करी, मुज हैयानो ओह मनोरथ पूरवो, वहु परणीने देखाडो वदन हेजे हली रे--मानजो० ॥१॥ नेम कहे श्यो आग्रह माताजी करो, ओ नारी मलमूत्र केरु धाम;-हेजे० थोडे काले विरह ते नारी कुण वरे, माहरे तो छे शिवनारीशुं काम०... हे.मा०...॥२॥ जोबन रागी पछे विरागी नारीयो, अंग अशुचि रोग तणो भंडार; हेजे० मदिरा घट समनारी मांस रुधिर भरी; भक्ष अभक्ष्य असार करे आहार. ...हे.मा०...॥३॥ उडी जातां प्रभाते सहु पंखीया, ओक तरुवासी नाना प्रकार; हेजे० प्रेम भजी नरनारी परभव ओकलां, माता ईह भव स्वारथीयो संसार०...हे.मा०...॥४॥ तात कहे सुण नंदन! ओ तुं शुं कहे, रुषभादिक परणी सिद्धा जिनराज; हेजे०..तेह थकी उंची पदवी केई पामशो रे, कांत्युं पीज्युं विणसाडो छो आज......हे.मा०...॥५॥ नेम कहे क्षीण करम छे माहरे, विवाहे श्यो आग्रह करवो तात;...हेजे० कामिनी केरे संगम दुर्गति पामिये, थाय वळी बहु जंतु केरी घात....हे.मा०...॥६॥ अणे अवसर लोकांतिक मलीया देवता, धर्म तीर्थ वरतावो जयजयकार: हेजे० नेम गया पाछा देखी राजीमती, लही मूर्छा सखी ओ चंदनना उपचार०... हे.मा०...|७|| चेत वलि रोती राजुल ते ओम कहे, मुझने म्हेली शुं चाल्या
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महाराज; देजे०...करुणायर मुज उपर नाथ दया करी, वीर कहे पाछा घेर आवो आज....हे.मा०...॥८॥
(ढा. १७) आवो हरिवंशी जदुराजा, राखो जदुकुलनी माझा; जादव लोक जूले झाजा, छोकरवादी करी ना जा...आवो०...॥१॥ हा! जादवकुल ठाकुरीया! हा? जगत-शरण! गुण भरीया; हा! करुणायर! सुण बलीया, मने मेली पाछा किम वळीया...आवो०...॥२॥ निस्नेही त्यजता भज्जा, निर्लज्ज नावी किम लज्जा; दैव! किहां ते ओ कीg, निष्ठुर! में तुज | लीधुं०...आवो०...॥३॥ दैव पति अवलो किधो, जीवीत शुं मुजने दीधो; रुप समर बाणे छेडु, प्रेम रसे हैडुं भेद्यु...आवो०...॥४॥ शान ने शुद्ध गई वहेली, घरन गमे हुं थई घेली; मंदिरयुं खावा धाशे, वासरवरस समो जाशे०...आवो०...॥५॥ मुज कंसार नवि चाख्यो, शो अवडो अंतर राख्यो; जी- अंतर हतो पहेलो तो शुं? विवाह कर्यो वहेलो०...आवो०...॥६॥ काढो धेलाई अणेवेशे, मने साहेलीओ महेणां देशे; नणदीरा वीरा! सांभलजो, के शामलिया, पाछा वळजो...आवो०...||७||
(ढा. १८) तुम नारी तणुं दुःख देखी हो के, पाछा वलजो शामलीया; नवि जाशो अम उवेखी हो के, पाछा वलजो शामलिया, मेहेली जाशो आ वेशे हो के, पा०...मुने लोक ते चुंटी लेशे होके०...पा०...॥१॥ तुम हांसी ने हुं रोसी हो के, पा० अहवो कुण मलीयो जोशी होके;...पा०...शुं हरणां वचने लागा हो के, पा० जूं करडये कुण होय नागा होके०...पा०...॥२॥ ओणे चंद्र कलंकी कीधो हो के, पा० सीताने विजोग ते दीधो हो के पा० माहरो को रंगमां भंग हो के, पा० साचुं छे नाम कुरंग होके०... पा०...॥३॥ सघला सिद्धनी भुगतारी होके०...पा० मुगति गणिका धूतारी हो के, पा० धूतारीशु कुण महाले हो के, पा० वेश्याओ घर किम चाले होके०...पा०...॥४॥ कहे सखीयो बहेनी सुणीये होके०...पा०...किम निस्नेही वर थुणीये होके०...पा० प्रेम ते हैडुं ज्वाले होके०...पा०.... प्रेम ज्ञानना गुणने बाले होके०...पा०...॥५॥ वर छांडो जे वैरागी होके०...पा०...बीजो वर करशुं रागी होके०...पा०...राजीमती कानने ढांकी हो के, पा० दूर तजीये वात जे वांकी होके०...पा०...॥६॥ कहे राजुल
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नेमने मेहेली होके०...पा०...न करुं बीजो साहेली होके०...पा०... हवे मन वैरागे वाली होके०...पा०...राजीमती रामा बाली होके०...पा०...|७|| सुण प्रीतमजी गुण राता होके०...पा० तु अरथी जनने दाता होके०...पा०...मोरी * याचना भंग ते कीधो हो के, पा० हाथ उपर हाथ न दीधो होके०...पा०...॥८॥ पण मे मन निश्चय करीयो होके०...पा०...जो कर पर हाथ न धरीयो होके०...पा०...संजम ले| पियु हाथे होके०...पा०...तव हाथ मेलावीश माथे होके०...पा०...॥६॥ इम राजुल रंग भर कहे छे हो के, पा०.. निज समता घरमां रहे छे होके०...पा०...रथवाळी पंथ चलाव्यां होके०...पा०...कहे वीर प्रभु घर आव्या होके०...पा०...॥१०॥
(ढा. १६) हवे वरसीदान ते दीधुंजी जिनवर जयकारी० श्रावण सुदी छठे लीधुंजी; जिनवर जयकारी० सहसावन संयम धारीजी जि० छठ भक्त प्रभु अणगारीजी...जि० ॥१॥ पंचावनमें दिनमानजी, जि० प्रभु पाम्या केवलज्ञानजी; जि० शिवसुंदरी विवाह कीधोजी जि० निज ज्ञानतिलक शिर दीधोजी०... जि० ॥२॥ राजुल अमृत दोय शोक्योजी, जि०. अण मेल्ये लगन दिन रोकयोजी; जि० दोयने मेल होशे जयारेजी, जि० शिव वरसे जिनवर त्यारेजी०... जि० ॥३॥ अम कवि घटना गुणखाण, जि० जिन ज्ञान वर्या सुर जाणीजी; जी० इन्द्रादिक आवी वंदेजी० जि० रच्यु समवसरण आनंदेजी०... जि० ॥४॥ कृष्णादिक वंदन आवेजी, जि० राजुलने हरख न मावेजी; जि० प्रभु वाणी सुधारस पीधीजी, जि० दोय सहसे दीक्षा लीधीजी०... जि० ॥५॥ वरदत्त आदि नृप जाणोजी, जि० पूछे त्रिहुं खंडनो राणोजी; जि० जे राजीमति वडभागीजी, जि० ओवडी किम तुमची रागीजी०... जि० ॥६॥ कहे शंकर-सुण हरि तेहजी, जि० मुजY नव भवनो नेहजी; जि० अमे पहेले भव संसारीजी जि० धनराजा धनवती नारीजी०... जि० ॥७॥ सौधर्मे देवा बीजेजी, जि० नरनारी हुआ भव बीजेजी; जि० नाम चित्रगति रलवतीजी, जि० माहेन्द्रे अमर ते युतुजी०... जि०.. ॥८॥ अपराजित ने प्रीतिमतीजी, जि० आरण्ये देवा नेह अतिजी; जि० शंखराय यशोमती हितेजी, जि० भव आठमे अपराजितेज़ी०... जि०
॥६॥ नवमें हुं राजुल अहजी, जि० नव भवनो भाख्यो नेहजी; जि० अम । कही विचरे जिनरायजी, जि० कहे वीर हरि जायजी०... जि० ॥१०||
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(ढा. २०) समवसर्या जिनराय, श्री गिरनारे रे; तव वंदे हरि प्रभु पाय, दुःखडां हारे रे...।।१।। सांभळी देशना सार, केई प्रतिबूझीया रे; लहीले संसार असार, कर्म शुं झुझिया रे०...॥२॥ राजसुता बहु साथ, संजम लीधु रे; कांई राजुल नेमी हाथ, बोल्युं कीधुं रे०...॥३॥ रहनेमि पण त्याहिं, चारित्र लीधुं रे; पण अक दीन कंदरमाही, चलचित्त की, रे०...।।४।। राजीमती परताप, धीरज धारी रे, प्रभुपासे आलोई पाप, वरी शिवनारी रे०...॥५॥ घरमांहे सय चार, वरस रहाणी रे; वळी पांचसे राजुलनार, केवलनाणी रे०...॥६॥ संजम पाळी सार, शिवसुख धरती रे; कहे वीर धरी बहु प्यार, व्हेनने मळती रे०...॥७।।
(ढा. २१) रसिया शिवनारीना सघला. प्रभुना परिकरा रे लोल, रसिया अकादश गुणवंत सुहंकर गणधरा रे लोल; रसिया सहस अढार अढार, शीलांग धणी मुनि रे लोल, रसिया आणाधार हजार, चालीश साहुणी रे लोल०...॥१॥ रसिया श्रावक ओगणोतेर, सहस लक्षाधिका रे लोल, रसिया त्रण लाख छत्रीश, हजार ते श्राविका रे लोल; रसिया त्रणसें वरस कुमारपणे, घरमा रह्यां रे लोल; रसिया चोपन वासर, छद्मस्थे अ रह्या रे लोल०...॥२।। रसिया देसुणा सातसें वरस, प्रभुजी केवली रे लोल, रसिया ओक हजार वरस ओ, सर्वाय मली रे लोल; रसिया सदि अषाडनी आठमे, रैवतगिरिवरे रे लोल, रसिया पांचसे छत्रीस मुनि, साथे अणसण करे रे लोल०...॥३॥ रसिया ओक मासी उपवासे, प्रभुजी शिव गया रे लोल, रसिया अविचल जोडी राजुलशुं, भेला थया रे लोल; रसिया जन्म जरा मरणादिक, भव भय निस्तर्या रे लोल०...॥४॥ रसिया पूर्णानंद विलासी, अरुपी पद वर्या रेलोल, रसिया अगुरुलघु अवगाह, अनंत गुणे भर्या रे लोल; रसिया ध्यान अगोचर गोचर, ज्ञानी गंभीरने रे लोल, रसिया महेर करीने शरणे, राखो वीरने रे लोल०..।।५।।
(ढा. २२) मे इम नाथ निरंजन गाया लाल प्रभु गुण दिल धारी, मली जिम गोपिये हुल राया लाल प्रभु गुण दिलधारी, परण्या नहि पण प्रितडी पाळी, लाल प्रभु गुण दिल धारी, अंते वरिया शिव लटकाळी, लाल प्रभु गुण दिल धारी. १. तपगच्छ गयण दिणंद समानो लाल प्रभु गुण दिल
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धारी, श्री विजयसिंहसूरी सन्नीधानो लाल प्रभु गुण दिल धारी, शिष्य ते सत्यविजय गुणगेहा, लाल प्रभु गुण दिल धारी, तस कपूर खिमाविजयससनेहा, लाल प्रभु गुण दिल धारी. २. सेवक जशविजयो जयवंता, लाल प्रभु० पंडित श्री शुभ विजय महंता, लाल प्रभु० तस शिष्ये गरबी देशीमांहि लाल प्रभु० गायो नेमिविवाह उच्छाहि लाल प्रभु० ३. नभ भोजन गज चंद्रने (१८६०) वरसे, लाल प्रभु० पोष तणी वदि आठम दिवसे, लाल प्रभु० राजनगरमां श्रावक शोभे, लाल प्रभु० गुरु उपदेशे कुमति थोभे, लाल प्रभु० ४. वंश श्रीमाली अमिचंद नंदे, लाल प्रभु० घरे जिनपूजी गुरुनीत वंदे, लाल प्रभु० बावीसमो जिन बावीस ढाळे लाल प्रभु० ५. थुणिया विरविजय जयकारी लाल प्रभु० सुणशे गाशे जे नरनारी, लाल प्रभु तस घर मंगलमाल रसाला, लाल प्रभु० विमला कमला झाक झमाला लाल प्रभु गुण दिलधारी . ६ .
(1) पार्श्वनाथ जिन स्तवन दशभव (राग
साबरमती के संत)
वामादेवीना नंद तमे सुणजो वितराग, शंखेश्वर दरबारमा गाउ मधुरा राग, जय जय जय जय पारसनाथ || 9 || पोतन पुरी पहेले भवे समकितने लीधां, “मरुभूति” नामे तमे सत्कार्योने कीधां; खमावता निज भाईने, मृत्यु शिरे लीधां, समता धरी आपे अहा ! पामे न कोई ताग. ॥२॥ बीजे भवे हस्ति बन्यां, जिन धर्मने पाम्यां, सर्पे दीधो विष डंखने, तोये तमे खम्यां; मृत्यु थयुं, स्वर्गे गया, दिल धर्ममां जाम्यां, धन्य हे जगनाथ, समाधी तमारी साथ. ||३|| विद्याधर चोथे भवे वैराग्यने पाया, राज्य त्यजी रळीयामणुं, संसारनी माया; अणगार थई विचरे सदा, जिन ध्यानने ध्याया, झेरी डस्यो भुजंग तोय प्रेमना निनाद. ||४|| बारमे स्वर्गे गया भव पांचमो उजमाळ, त्यांथी च्यवी छट्ठे भवे विदेहमां अवतार; कुमार व्रजनाभ नाम संयम स्विकार; भीले कर्यो तीर घा मुनि धीर वडभाग ॥५॥ ग्रैवेयके सुर देवता भव सातमो सुजाण, त्यांथी च्यवी विदेहमां चक्री बन्यां कल्याण; सुवर्णबाहु नाम गुणरत्ननीओ खाण, दीक्षा ग्रही जिनराज पास. धन्य हे नरनाथ || ६ || निकाचता जिननामने अणगार महाधीर, वनराज स्मरी वैरीने मारे मुनिवर वीर; नवमें भवे स्वर्गे गया, खील्युं महाखमीर, वाह रे जिनराज ! तमे शिवपुरनी पाग. ||७|| जंबुद्विपे गंगा तीरे
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जयनाद कराया, वैभव मा संसारको प्रभु
वाराणसी आया, स्वर्गेथी च्यवी दशमे भवे पार्थ कहाया; अश्वसेन राजा कुले, जयनाद कराया, वैभव भर्या संसारनो प्रभुओ किधो त्याग. ॥८॥ संसार कारागारनी सौ बेडीओ तोडी, वैराग्यनी हाकल करी मोहहांडीओ फोडी, सिद्धि वधु साथे तमे शुभ प्रीतने जोडी, तोड्यां अने मोड्यां सहु संसारना विखवाद. ॥६॥ मोक्षे गया जिन आप मूकी जीवोने अनाथ, विकराळ आ संसारमाथी रुडो गयो संगाथ; मुनि भद्रगुप्त कहे तारजो जगनाथ, निवारजो संसारनां रखडेलनो सहु थाक. ॥१०॥
(2) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : रमैय्या वता मैया)
शंखेश्वर साहिब देवा, आपोने शिवना मेवा, घरवास तजी; प्रभु पार्श्व भजी, तमे मुक्ति पुरी महेमान थाशो, जिन दामोदर, वाणी शिवंकर, सुणी अषाढी श्रावक चित्त हस्यो, प्रतिमा ते करावे पारस नाम धरावे, आ० ॥१॥ भाव हैये भरी, पुष्प अर्चन करी, गीत गातो पारसनुं नाम स्मरी, गमे नहि संसार अने लागे असार, धून पारसनाथनी चित्त धरी, स्वर्गवास थयो वैमानिक भयो...आ० ॥२॥ उपयोग मूके प्रतिमा न भुले, लावे स्वर्गे पूजे खुब प्रेम धरे, सूर्य-चंद्र विमान, त्यां शोभे भगवान, देवो पार्थ प्रतिमानी सेवा करे, पाताले पण पधार्या, देवोना दुःख निवार्या..आ० ॥३॥ युद्ध जाम्युं महा, यदु सैन्य तिहां, जरासंघ झुझे रणवीर बनी, “जरा' विद्या मूके, यदु सैन्य उंघे, कृष्ण मुंझाणा हवे कोण धणी? नेमिश्वर बोल्या वीरा, डरो ना कोई जरा..आ० ॥४॥ पार्थ प्रतिमा लावो, स्नात्र जल छांटो, जरा टळशे पलकमां सैन्य तणी, कृष्ण अठ्ठम करे, महेर पद्मां करे, लावी आपे प्रतिमाने पार्थ तणी, पूजीने पारसनाथ, बन्या यादव सनाथ..आ० ॥५॥ कृष्ण शंख फुके, सहु लोक जागे, गाम शंखेश्वर त्याही ज वसे, चैत्य सोहे अनूप, आवे केईक भूप, पूजे पार्थ प्रतिमा पाप खसे, अनूपम झाकझमाळ, प्रतिमा तेज अपार..आ० ॥६॥ चित्त निर्मळ रहे, देव दानव चहे, शिवराज मळे जे पार्थ भजे, ज्ञानदिप जले, अज्ञान टळे, जे बीजा देवो ने दुर तजे, शंखेश्वर पार्श्वनाथ, करजो भवमांसाथ..आ० ॥७॥ प्रेम-भानु उद्योत, थयो भव्य विनोद, गीत आनंदनां गवाई रह्यां, भद्रगुप्त कहे पार्थसेवा लहे, तेना दुःख सदाये दुर गयां, भजीलो पारसनाथ, भमोना कोई अनाथ..आ० ॥६॥
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359 (3) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : हो राज रे नावडीना पाणी)
जिनराज रे श्री शंखेश्वर प्रभु पास, मारी विनंती मानो खास, करो मुज हैयामां वास, मने दर्शन द्यो अकवार० ॥१॥ जिनराज रे ताहरी मुरति मोहनगारी, सहु कोईना दिल हरनारी, तारो महिमा अपरंपारी...मने० ॥२॥ जिनराज रे तारी सुरतरु जेवीछाया, छे पुनित तारी काया, मने न गमे बीजानी माया...मने० ॥३॥ जिनराज रे हुं रागी तुं छे निरागी, तारा दर्शननी लगनी लागी, मारा भवनी भावठ भांगी...मने० ॥४॥ जिनराज रे हुँ कहुं ओक वात मारी मानो, तारी पासे छे गुणनो खजानो, मने आपो तो नही खुटवानो...मने० ॥५॥ जिनराज रे तारी आंगी अनुपम चळके, कांई झगमग झगमग झळके, निरखीने मनई मलके...मने० ॥६॥ जिनराज रे तं मारो अंतरयामी, भवोभव मुज होजो स्वामी, तने प्रणमुं छु शिरनामी मने० ॥७॥ जिनराज रे दुर दुरथी यात्रिक आवे, भक्ति भावे गुण तारा गावे, सम्यक् दर्शन पद पावे...मने० ॥८॥ जिनराज रे तारा दर्शननी बलीहारी, अमने ल्यो भवथी उगारी, कहे पद्मविजय सुखकारी...मने० ॥६॥
(4) पार्श्वनाथ जिन स्तवन । ॥१॥ तारा नयनां ते प्याला प्रेमना भर्या छे प्रेमना भर्या छे अमी छांटणा भर्या छे, दयारसना भर्या छे, अमीरसना भर्या छे, दयारसना भर्या छे, तारा० जे कोई ताहरी नजरे चढी आवे, कारज तेहनां तें सफल कर्या छे. तारा० ॥२॥ प्रगट थई पातालथी प्रभु ते, जादवना दुःख दुर कर्या छे तारा० ॥३॥ पन्नगपति पावकथी उगार्यो, 'जनम मरण भय तेहना हर्या छे० ॥४॥ पतित पावन शरणागत वत्सल, दर्शन दीठे मारा चित्तडां ठर्या छे. तारा० ॥५॥ श्री शंखेंधर पार्थ जिनेश्वर, तुज पद पंकज आजथी धर्या छे. तारा० ॥६॥ जे कोई तुजने ध्याने ध्यावे, अमृत सुख तेणे रंगथी वर्या छे. तारा० ॥७॥
(5) पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥१॥ शंखेश्वर मंडन, पार्थ जिणंदा प्रभु वामाजीको नंदा, प्रभु पार्थ जिणंदा, अरज सुणो टालो दुःखदंदा, साहिबा रंगीला हमारा,
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प्रभु तेहीज देशी दाखो, तोपण लिन छुटे...शंखेश्वर
मोहना रंगीला हमारा, तुंज साहिब प्रभु हुं मे तुज बंदा, प्रीतबनी छे जैसे कैरव चंदा...शंखेश्वर मंडन० ॥२॥ तुजशुं नेह नहीं मुज काचो, घणही न भांजे हीरो जाचो, देतातो दान प्रभु कांई विमासो, लागे छे मुज मन अहि तमासो...शंखेश्वर मंडन० ॥३॥ केडे लाग्यां ते प्रभु केड न छोडे, दीओ वांछित सेवक कर जोडे, अखय खजानो प्रभु तुज नवि खूटे, हाथ थकी तो प्रभु शुं नवि छुटे...शंखेश्वर मंडन० ॥४॥ जो खीजमतमां खामी दाखो, तोपण निज जाणी हित राखो, जेणे दीधुं छे. प्रभु तेहीज देशे, सेवा करशे ते फळ लेशे...शंखेश्वर मंडन० ॥५॥ धेनु कुप आराम स्वभावे, देतां देतां प्रभु संपति पावे, तो प्रभु मुजने जो गुण देशो, तो जगमां जस अधिको वहेशो...शंखेश्वर मंडन० ॥६।। अधिकुं ओर्छ प्रभु कीशुं कहावो, जिम तिम सेवक चित्त मनावो, मांग्या विना तो प्रभु माय न पीरसे, उखाणो साचो ज दिसे...शंखेश्वर मंडन० ॥७॥ अम जाणीने प्रभु विनति कीजे, मोहनगारा मुजरो लीजे वाचक जश कहे खमीय आसंगो, दीओ शिवसुख धरी अविहड रंगो...शंखेश्वर मंडन० ॥८॥
(6) पार्श्वनाथ जिन स्तवन अखीयां हरखन लागी, हमारी अखियां हरखण लागी. दरिसन देखत पास जिणंदको, भाग्य दशा अब जागी...हमारी० ॥१॥ अकल अरुपी ओर अविनाशी, जगमे तुंही निरागी ॥२॥ सुरत सुंदर अचरज एहि, जगजननें करे रागीहमारी० ॥३॥ शरणागत प्रभु तुम पय पंकज, सेवना मुज मन जागी. हमारी० ॥४॥ लीलालहेरे दे पदवी तुमारी, तुम समको नहीं त्यागी हमारी० ॥५॥ वामानंदन चंदननी परे, शीतल तुं सोभागी...हमारी० ॥६।। ज्ञान विमल प्रभु ध्यान धरता, भव भव भावठ भांगी. हमारी० ॥७॥
- (7) पार्श्वनाथ जिन स्तवन कोयल टहुकी रही मधुवनमें, पार्थ शामलीया वसो मेरे दिलमें. ॥१॥ काशी देश वाराणशी नगरी, जन्म लियो प्रभु क्षत्रियकुलमें,...कोयल० ।।२।। बालपणामां प्रभु अद्भुत ज्ञानी, कमठको मान हों ओक पलमें...कोयल०
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॥३॥ नाग निकाला काष्ठचिराकर, नागकुं सुरपति कियो ओक छिनमें... कोयल० ॥४॥ संयम लइ प्रभु विचरवा लाग्यां, संयम भींज गयो ओक रंगमें, ॥५॥ समेतशिखर प्रभु मोक्षे सिधाव्यां पार्श्वजीको महिमा तीन जगतमें...कोयल० ॥६।। उदयरतनकी ओही अरज है, दिल अटक्यो तोरा चरण कमलमें...कोयल० ॥७।।
• (8) पार्श्वनाथ जिन स्तवन मन मीठडी मूरति प्यारी, दिल दिठडी ज्योति झगारी० नेक नजर करी सांइ सलूणा, सुणीओ अरज हमारी; व० चरण शरण प्रभु पास हुँ आयो, नेह करण हुंशीयारी० व०दि०. ॥१॥ नेहनवल में पगपग कीनो, लीनो प्रेम कटारी; व० दीनो तन-धन प्राणमें अपना, पण सवि मिली मे गमारी. व०दि०. ॥२॥ नयन नचावे वचन हसावें, स्वारथीया संसारी व० देवी देवा भवो भव सेव्या, पूरण प्रेम विचारी. व०दि०. ॥३॥ आदे सनेहि अंते विछोहे, देखत नेह निवारी, पारसनामा पूरणकामा नेहकीरीत हे न्यारी; व०दि०. ॥४॥ रंग मजीठमें राग भाग हे, घण कुट्टण दुःख भारी; व० पण वीतरागशुं राग करंता, मणि फणिधर विषहारी. व०दि०. ॥५॥ पारस संगे कंचन लोहा, नेह अचल निरधारी; व० कहिले म देशो छेह सनेहा, वीरविजय जयकारी व०दि०. ॥६॥
(9) पार्श्वनाथ जिन स्तवन रुमझुम रुमझुम घूघरी वागे, हाथे उछाळे दडियाजी, पूनमचंद सम मुखहुं मलके, आंखलडी अणियालीजी, शेरीमाहे रमता देख्यां, पार्धकुमार नानडीयाजी,...रुमझुम० ॥१॥ कमलनाल तणी परे बाहलडी, आंगळीओनी फळीयाजी, शिरपर टोपी सोहे अणीयारी, काने कुंडल वांकलडाजी रुमझुम० ॥२॥ हैये हार अनुपम बिराजे, केडे कंदोरो जडीयो जी, नाना कता ओढणी ताणे, इन्द्रनी केडे चडीयाजी रुमझुम० ॥३॥ सवेरे उठी निशाळे जावे, हाथमे पाटी खडीयाजी, इन्द्रतणा शंसयने टाळे, सर्व शास्त्र आवडीयाजी रुमझुम० ॥४॥ शेरी मांहे हरता फरता, पीवे रस शेलडीयाजी, सरखे सरखी टोळी मळीने, वाटे छे सुखडीयाजी रुमझुम० ||५|| पार्थ प्रभु
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जन्म्या जिण वेळा, अमृत छे चोघडीयाजी, आनंद घन प्रभु ओणी परे बोले, आई भाग उघडीयाजी रुमझुम० ॥६॥
(10) पार्श्वनाथ जिन स्तवन श्री चिंतामणी पार्श्वजी, दादा वात सुणो ओक मोरी रे, मारा मनना मनोरथ पूरजो, हुं तो भक्ति ना छोडूं तोरी रे...श्री० ॥१॥ मारी खिजमतमां खामी नहिं, ताहरे खोट न कांई खजाने रे, हवे देवानी शी ढील छे, कहेवं ते कहिले छाने रे,...श्री० ॥२॥ ते उरण सवि पृथ्वि करी, धन वरसी वरसी दाने रे; माहरी वेळा | अहवा, दीओ वांछित वाळो वाने रे...श्री० ॥३॥ हुं तो केड न छोड़े ताहरी. आप्या विण शिव सुख स्वामी रे, मूरखते ओछे मानशे, चिंतामणी करयल पामी रे...श्री० ॥४॥ मत कहेशो तुज कर्मे नथी, कर्मे छे तो तुं पाम्यो रे, मुज सरीखा कीधा मोटका, कहो तेणे कांई तुज थाप्यो रे...श्री० ॥५॥ काल स्वभाव भवितव्यता, ते सघळा तुमारा दासोरे, मुख्य हेतु तुं मोक्षनो, ओ मुज सबळ विश्वासो रे...श्री० ॥६॥ अमे भक्ते मुक्तिने खेंचÓ, जिम लोहने चमक पाषाणो रे, तुमे हेजे हसीने देखशो, कहेशो सेवक छे सपराणो रे...श्री० ॥७॥ भक्ति आराध्यां फळ दीये. चिंतामणी पण पाषाणो रे, वळी अधिकुं कांई कहावशो ओ भद्र भक्तिते जाणो रे...श्री० ॥८॥ बाळक ते जिमतिम बोल तो, करे लाड तातने आगेरे, ते तेहशुं वांछित पूरवे, बनी आवे सघर्छ रागे रे...श्री० ॥६॥ माहरे बनवानुं ते बन्यु ज छे, हुं तो लोकने वात शीखावू रे, श्रीवाचक जश कहे साहिबा, ओ भक्ते तुम गुण गाउं रे...श्री० ॥१०॥
(11) पार्श्वनाथ जिन स्तवन . ___वामानंदन शंखेश्वरा पास, मारी सांभळो अरदास, हो साहिबा ससनेहा, हो स्वामी मोरा ससनेहा, अमे सेवक तमारा हो, तमे स्वामी अमारा हो..होसाहिबा० ॥१॥ सुंदर प्रभुजी तुम रुप, जश दीठे हार्यो रतिभूप, प्रभु मुख वीधुं समदीसे, देखी भविना मनडां हिंसे...वामा० ॥२॥ कमलदल सम तुम नयणां, अमृतथी मीठा तुज वयणां, अर्ध चंद्र सम तुम भाल, मानुं अधर जिस्या परवाल० ॥३॥ शांत दांत गुणोनो भरीयो, तुं तो अगणित
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गुणोनो दरियो, साचो शिवपुरनो तुं साथ, तुं छे अनाथनो नाथ..वामा० ॥४॥ अतो भजन करवाने ताहरूं, प्रभु उलस्युं छे मनडुं मारुं ओ तो प्रेमविबुधनो शिष्य. भाण विजय नमे निशदिन..वामा० ॥५।। (12) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : ओ नील गगननुं पंखेरू)
नित्य समरं साहिब सयणा रे, नाम सुणतां शीतल श्रवणा रे, जिन दरिशने विकसे नयणां रे, गुण गातां उल्लसे वयणा रे, शंखेश्वर साहिब सागे रे, बीजानो आशरो काचो रे...शंखेश्वर० ॥१॥ द्रव्यथी देव दानव पूजे रे, गुण शांत रुचिपणुं लीजे रे, अरिहापद पज्जव छाजे रे, मुद्रा पद्मासन राजे रे..शंखेश्वर० ॥२॥ संवेगे तजी घरवासो रे. प्रभु पासना गणधर थाशो रे, तव मुक्तिपुरीमां जाशो रे, गुणीलोकमां वयणे गवाशो रे..शंखेश्वर० ॥३॥ अम दामोदर जिन वाणी रे, अषाढी श्रावके जाणी रे, जिनवंदी निज घर आवे रे प्रभु पार्थनी प्रतिमा भरावे रे...शंखेश्वर० ॥४॥ त्रणकाल ते धूप उखेवे रे, उपकारी श्री जिन सेवे रे. पछी तेह वैमानिक थावे रे, तेह प्रतिमापण तिहां लावे रे..शंखेश्वर० ॥५॥ घणा काळ पूजी बहुमाने रे, पछी ज्या सूरज चंद्रविमाने रे, नागलोकनां कष्ट निवार्यां रे, जयारे पार्थ प्रभुजी पधार्यां रे..शंखेश्वर० ॥६॥ यदुसैन्य रहयो रणघेरी, रे जीत्यानवि जावे वैरी रे, जरासंघे जरातव मेली रे, हरिबल विना सघळे फेली रे..शंखेश्वर० ॥७॥ नेमीश्वर चोकी विशाली रे, अठ्ठम करे वनमाली रे, तूठी पद्मावती बाली रे, आपे प्रतिमा झाकझमाली रे..शंखेश्वर० ॥८॥ प्रभु पार्थनी प्रतिमा पूजी रे, बलवंत जरा तव, धूजी रे, छंटकाव न्हवण जल ज्योती रे, जादवनी जरा जाय रोती रे..शंखेश्वर० ॥६॥ शंखपुरी ने सहुने जगावे रे, शंखेश्वर गाम वसावे रे, मंदिरमा प्रभु पधरावे रे, शंखेश्वर नाम धरावे रे० ॥१०॥ रहेजे जिनराज हजूर रे, सेवक मन वांछित पूरे रे, ओ तीरथ भेटण काजे रे, शेठ मोतीभाईना राजे रे..शंखेश्वर० ॥११॥ नाना माणेक केरा नंदरे, संघवी प्रेमचंद वीरचंद रे, राजनगरथी संघचलावे रे गामोगामना संघ मिलावे रे..शंखेश्वर० ॥१२॥ अढार अठोतेर वरसे रे. फागणवदि तेरस दिवसे रे, प्रभु भेटीने आनंद पावे रे. शुभवीर वचन रस गावे रे..शंखेश्वर० ॥१३॥
सहुने ज्योती रे, जादवनान, बलवंत जरा तकझमाली रे. शंखेश्वर वनमाली
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(13) पार्श्वनाथ जिन स्तवन तुं प्रभु मारो हुं प्रभु तारो, क्षण अक मुजने नारे विसारो, महेर करी मुज विनंति स्वीकारो, स्वामी सेवक सामु निहाळो,...तुं प्रभु० ॥१॥ लाख चोराशी भटकी प्रभुजी, आव्यो तुम शरणे हो जिनजी, दुर्गति कापो, शिवसुख आपो, भक्त सेवकने निजपद स्थापो, तुं प्रभु० ॥२॥ अक्षय खजानो प्रभु ताहरो भर्यो छे, आपो कृपालु में हाथ धर्यो छे, वामानंदन जगवंदन प्यारो, देव अनेरा मांहे तुं न्यारो, तुं प्रभु० ॥३॥ पल पल समरुं नाथ शंखेश्वर, समरथ तारण तुं ही जिनेश्वर, प्राणथकी मुज अधिको व्हालो, दयाकरी मुज स्नेहे निहाळो, तुं प्रभु० ॥४॥ भक्तवत्सल तारु बिरुद जाणी, केड न छोडुं ओम लेजो जाणी, चरणोनी सेवा हुं नित नित चाहुं, घडीओ घडीओ मनमां उमाहु, तुं प्रभु० ॥५॥ ज्ञानविमल तुज भक्ति प्रभावे भवोभवना संताप समावे, अमीय भरेली तारी मूर्ति निहाळी, पाप अंतरनां देजो पखाळी, तुं प्रभु० ॥६॥ (14) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : तात नुं निर्वाण सांभळी रे)
पार्थप्रभुना चरण नमीने, अरज करुं गुणखाणी, मिथ्यादेवनी मूर्ति सेवी साहिब तुमे छो ज्ञानी हो प्रभुजी अहवो हु छु. अज्ञानी० ॥१॥ गीत अज्ञान नाटकमां हुं भमियो, कुगुरु तणे उपदेशे, रंग भर रातो ने मदभर मातो, भमियो देश विदेशे हो..प्रभुजी० ॥२॥ जिन प्रसादमें जयणा न कीधी, जीवदयाथी हुं नाठो, धर्म न जाण्यो में जिनजी तुमारो, हृदय को घणो काठो हो, प्रभुजी० ॥३॥ परनिंदामा रहुं छु पुरो, पापतणो हु वासी, कहो साहेब शी गती अमारी, धर्म स्थानक गया नाशी हो..प्रभुजी० ॥४॥ त्रण भुवनमा भमता भमतां, कोई भाळ बतावी, महा दातार जिनेश्वर मोटा, महेर विपुलना वासी हो..प्रभुजी० ॥५॥ कोई ओक पूरव पून्य संयोगे, आरज कुल अवतरियो, पुन्यसंयोगे जिनवर मळिया, भवना फेरा टळिया हो..प्रभुजी० ॥६॥ ते माटे हुं अरज करीने, आव्यो छु दुःखवासी, मिथ्यादेवनी मूर्ति मूकी, चाकरी करुं तुम खासी. हो, प्रभुजी० ॥७॥ वामादेवीना नंदन सुणजो, आतम अरज अमारी, मनमोहयुं जिनजी तुम
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साथे, तारी मूर्ति उपर जाउं वारी हो, प्रभुजी० ॥८॥ उदयरत्ननो सेवक पभणे, मोक्षमांगु गुणखाणी, भवोभव तुम चरणोनी सेवा, ओह उपर हु रागी हो..प्रभुजी० ॥६॥
(15) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : गोडी) जय जय जय जय पास जिणंद. अंतरिक्ष प्रभु त्रिभुवन! तारक, भविक कमल उल्लास दिणंद०...जय० ॥१॥ तेरे चरन शरन में किनो, तुं बिनु कुन तोरे भव-फंद, परम पुरुष परमारथदर्शी, तुं दिये भविककुं परमानंद०... . जय० ॥२॥ तुं नायक तुं शिवसुख-दायक, तुं हितचिंतक तुं सुखकंद; तुं जनरंजन तुं भवभंजन, तुं केवल कमला गोविंद०...जय० ॥३॥ कोडी देव मिलके कर न शके, ओक अंगुठ रुप प्रतिछंद; जैसो अद्भुत रुप तिहारो, वरसत मानुं अमृतके बुंद०...जय० ॥४॥ मेरे मन मधुकरके मोहन, तुम हो विमल सदल अरविंद; नयन चकोर विलास करतुं ही, देखत तुम मुख पूनमचंद...जय० ॥५॥ दूर जावे प्रभु! तुम दरिशनसे, दुःख दोहग दारिद्र अघदंद; वाचक जस कहे सहस फलते तुमहो, जे बोलेतुमगुनकेवृंद०...जय० ॥६॥
(16) पार्श्वनाथ जिन स्तवन मोहनगारो मारो, दुःखनो हरनारो मारो, प्राण पियारो मारो, साहिबो; प्रभु माहरा, दिलभर दरिसण आप हो, प्रभु माहरा, मुगति तणाफल आप हो. ॥१॥ कर जोडी ओळग करु, प्रभुजी माहरा, रात दिवस ओक ध्यान हो; जाणो रखे देवू पडे, प्रभुजी माहरा, वात सुणो नहि कान हो...मोहन०. ॥२॥ करतां नित्य भोळामणी, प्र० इम केता दिन जाशे हो; भीना जे ओलग रसे प्र०, ते केम आकुल थाशे हो...मोहन०. ॥३॥ देव जगमा छे अनेरडा, प्र० ते मुज नवि सुहाय हो; फळ थाये जे तुम थकी, प्र०, ते किम अन्यथी थाय हो...मोहन०. ॥४॥ ओछा कदीय न सेविये, प्र०, जे न हरे पर पीड हो; मोटी लहरी सायर तणी, प्र०, भांगे ते भवनी भीड हो...मोहन०. ॥५॥ देतां भाडु भक्तिर्नु, प्र०, तिहां नही केहनो पाड हो; लेशुं फळ मन रीझवी, प्र०, तिहां किश्युं कहेशे चाड हो...मोहन०. ॥६।। मुख देखी टीलुं करे, प्र०
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ओ तो जगव्यवहार हो; गिरुआ अहवू न लेखवे, प्र० जेम उंचा जल धार हो...मोहन०. ॥७|श्री शंखेश्वर पासजी, प्र०, व्हाला प्राण आधार हो; कांति कहे कवि प्रेमनो प्र०, तुमथी क्रोड कल्याण हो...मोहन०. ॥८॥
(17) पार्श्वनाथ जिन स्तवन तेवीसमां श्री जिनराज रे, नामे सुधरे सवि काज रे; लहे लीला लच्छी समाज, शंखेश्वर पासजी जयकारी रे, जूनी मूरति मोहनगारी. ॥१॥ अतीत चोवीसी मोझार रे, नवमा दामोदर सार रे; जिनराज जगत शणगार,... शंखेश्वर०.॥२॥ आषाढी श्रावक गुणधारी रे, जिनवाणी सुणी मनोहारी रे; पास तीरथे मुक्ति संभारी,...शंखेश्वर०.॥३॥ प्रभु पडीमा भरावी रंगे रे, शशि सूरज पूजी उमंगे रे; नागेन्द्र घणे उछरंगे,...शंखेधर०.॥४॥ सुरनर विद्याधर वृंद रे, करे सेवना अधिक आणंदे रे, यदुवारे पूजे धरणेन्द्र... शंखेश्वर०.॥५॥ यदुसेना जराये भराणी रे, पूछी नेमिने सारंगपाणी रे; करे भक्ति भाव चित्त आणी०...शंखेश्वर०.॥६॥ जरासिंधु जरादुःख भारी रे, प्रभु तुम विण कोण निस्तारी रे; तुमे जगत जंतु हितकारी... शंखेश्वर०.||७|| हरि अठुमे ते धरणींद रे, आव्यो पास प्रभु सुखकंद; जिन न्हवणे गयुं दुःख दंद,...शंखेश्वर०.॥८॥ शंखेश्वर आण्या जेणे रे, शंखेश्वर नाम छे तेणे रे; महिमा गवरावे कोण,...शंखेश्वर०.॥६॥ द्वारामति अस्थिर जाणी रे, वढियार मांहि गुणखाणी रे; शंखेश्वर भूमि प्रमाणी... शंखेश्वर०.॥१०॥ मध्य लोक ओक करी खास रे; पूरे त्रण्य भुवननी आश रे; दुश्मननी काढे काश;... शंखेश्वर०.।।११॥ पद्मावती परचो पुरेरे, धरणेन्द्र विघन सवि चुरे रे; सेवकनुं वधारे नूर,...शंखेश्वर०.॥१२॥ श्री जिन उत्तम पद ध्यावे रे, ते परम महोदय पावे रे; कवि रुपविजय गुण गावे,...शंखेश्वर०.॥१३॥
(18) पार्श्वनाथ जिन स्तवन चाल चाल रे सहीयर चाल मुने चाल गमे रे, पास गमे रे, शंखेश्वरा पास गमे रे० ॥१॥ आतम लीला लच्छी साथे, जेह रमे रे, शंखेश्वर० ॥२|| • देव दानव राय राणा, आय नमे रे, शंखेश्वर० ॥३॥ अंतर जामी स्वामी सेंती, प्रीते जमे रे, शंखेश्वर० ॥४।। वचमां आवी बोले ते शुं, रीशे धमेरे.
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शंखेश्वर० ॥५॥ सुरतरुनी छाया छोडी तावडे, कुण भमे रे, शंखेश्वर० ॥६।। खीर खांड घृत पामी कुकस, कोण जमे रे०. शंखेश्वर० ॥७।। खिमाविजय जिन गेह, मंगलगीत घुमे रे०. शंखेश्वर० ॥८॥
(19) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - मणीयारो ते)
श्री चिंतामणी पार्थजीरे, द्यो दरिसण महाराज रे प्रभुजी मारा द्यो० (१) सुरतरुनी पेरे शोभता रे, आपो अविचल राजरे, प्रभुजी मारा द्यो० (२) कुमार पणे करुणा करीरे, राख्यो बळतो नागरे, जो सेवकने मूकशो रे, तो अपजशनो लागरे.... प्रभुजी० (३) वामा उरसर हंसलो रे, अश्वसेन कुलचंद रे, शीवरमणी वर्या प्रभुजी, भोगवे परमानंद रे.... प्रभुजी० (४) धन्य जीवन जन एहवं रे, अहनिश सेवे पायरे, भक्ति भलि परे साचवी रे, आण वहे सदाय रे....प्रभुजी० (५) भव अटवी भमतां थकारे, दीठो प्रभुजी देदार रे, श्री जिन उत्तम देव हुओ रे, पद्मने हर्ष अपार रे....प्रभुजी० (६)
(20) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राता जेवा फुलडां) लाखेणो सोहावे जिनजी फूलडांनो गळे हार, आणीने सोहावे जिनजी आंगीओ रचाव, मारो पार्थ जी हो लाल, शंखेश्वरा पार्श्वजी हो लाल, संकट छोडावो स्वामी विघ्न निवार० (२)...(१) पद्मणी चाल्या पूजवाने, धरी सोळ शणगार, पाये घमके घुघरीने उरनो रणकार.... मोरा पार्थजी० (२) मेघमाळी देवताए, कीधो घनघोर, गाजे गगने वीजळीने, पाणी वरसे जोर.... मोरा पार्धजी० (३) ध्यान थकी नवि चूकिया, प्रभु पार्थ जिणंद, देही कष्ट निवारवाने, आव्या छे धरणिंद....मोरा पार्धजी० (४) गोडी पार्थ पूजीए जीम, होये रंगरेल देखी मुर्ति पार्थजिननी जाणे मोहनवेल....मोरा पार्धजी० (५) ठमक ठमक चालतीने, घुघरीनो घमकार ताता थै ताल वाजे देवतानी चाल....मोरा पार्थजी० (६) केसर चंदन घसी घणाने, कस्तुरी बरास, जे नर भावे पूजशे ते उतरशे भवपार.... मोरा पार्थजी० (७) तुं ही मारो साहिबोने, तुं ही जीवन प्राण, तुं ने माने देवताने, मोटा राणा राय,....मोरा पार्श्वजी० (८) पंडित मांहे शिरोमणी, कनक विमल गुरुधीर, चरण कमल सेवे सदाने, 'केसर' कवियण धीर....मोरा पार्धजी० (६)
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(21) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग-: हे करुणाना करनारा) - सुणो पार्थ जिनेश्वर स्वामी, अलवेसर अंतर्यामी, हुं तो अरज करूं शिरनामी, प्रभु साथे अवसर पामी, तारो तारो प्रभुजी मुने तारो, मुजने भव सायर तारो,... (१) मुजने भवसागर तारो, चिहुं गतिना फेरा वारो, करुणा करी पार उतारो, ए विनंती मनमां धारो... तारो० (२) संसारे सार न कांई रे, साचो एक तुं सख्राइ, ते माटे करी थीरताइ, में तुज चरणे लय लागी... तारो० (३) तारक तुजग प्रसिद्धो रे, पहेलां पण ते जसलीधो रे, सेवकने शिवसुख दिधो, एक मुज शुं अंतर शुं कीधो... तारो० (४) इम अंतर ते न करवो, सेवकने शीवसुख देवो, अवगुण पण गुण करी लेवो, हेत आणी बाह्य ग्रहेवो...तारो० (५) तारो सेवक चूके कोई टाणे रे, पण साहिब मनमांन आणे रे, निज अंगिकृत परिणामे, पोतानो करीने जाणे,...तारो० (६) तुं तो त्रिभुवन नाथ कहेवायो इम जाणीने जिनरायरे, यो चरण सेवा सुपसाय, जीम 'हंसरतन' सुखदाय,...तारो० (७).
(22) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग -- दिल अपना और)
सदा आनंद, नयन मेरे, भेटीया भगवान रे, पार्थ स्थंभन भुवन मंडन, तीर्थ तिलक समानरे,.... सदा आनंद० (१) सप्त फणी मणि, मुगट मंडित, तेजे झाकझमाळरे, कांति मरकत, रत्न सरीखी, मूर्ति अति सुकुमाळ रे,.... सदा आनंद० (२) कृष्ण पण, मोह तिमिर टाळे, एही ज अचरीज नाण रे, वीतराग छे, तुही जिननो, चितरंजन आण रे,....सदा आनंद० (३) अश्वसेन नरिदनंदन, जास वामा मात रे, परम ज्योति, स्वरूप प्रगटे, गुण अनंत विख्यात रे....सदा आनंद० (४) परम पुरुष परहुंत प्रणमतां प्रबळ पुन्य प्रभातरे ज्ञान-विमल जिणंद सेवा भवजल लंही नावरे....सदा आनंद० (५)
(23) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग--तुं प्यार का सागर है)
प्राण थकी प्यारो मुजने श्री शंखेश्वर पास,....हां हां...श्री शंखेश्वर पास आव्यो तुज मुख देखवा पूरो मुज मन आश....प्राण० (१) हवे तुज मुज मेळो थयो, नाव नदी संयोग, सेवक जाणी आपनो, दाखोनव नव रंग....प्राण० (२) में पल्लव पकड्यो खरो, दास छु दीनदयाळ, नाठा इम
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नवि छूटशो, सेवक जन प्रतिपाल....प्राण० (३) निपट कांइ करी रह्यां,
आंखो आडा कान, सेवक जाणी निवाजजो, कीजे आप समान....प्राण० (४) भाग्यवंत हुं जगतमां, नीरख्यो तुम देदार, 'मोहन' कहे कवि रूपनो, जिनजी जगत आधार,....प्राण० (५) (24) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : धीरे धीरे आवो बेनी)
द्योजी द्योजी द्योजी, दरिशण द्योजी, श्री शंखेश्वर साहिब दरिसण द्योजी त्रिभुवनना तुमे नायक दरि० में तुम पद पायक दरि० प्रगटे जिम गुण क्षायक दरिसण द्योजी० (१) आशा करीने उमा धरीने, अलगाथी अमे आव्या, महेर करीने दरिशण आपो, तो अमे सवि सुख पाया. दरि० (२) एकण चित्ते शुभ विधि रीते, अविचल प्रिते ध्यातां, गति थिति मति छती तुंही तुंही, इम बहुविधि गुणगाता दरि० (३) लोचन लीले अनुभव शीले, खलक पलक में तारी, तो एवडी शं ढील करो छो, आज अमारी वारी दरि० (४) दरिशणथी दरिशण हुए निर्मल, दर्शन गुण पण आवे, दरिशण मुद्रा एहीज शुद्धि, त्रिकरण तुम गुण गावे दरि० (५) ज्ञानविमल लीलाए स्वामी, वात अमारी जाणो, तुझ आणा अनुसारे साचुं, एह प्रतिति में पामी दरि० (६) ।
(25) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - तेरी शहनाइ बोले)
लगनी लागी पारसनाथ, मने करजो सनाथ, चिंतामणी हो... पारसनाथ...मारा पूरा करजो क्रोड, मारी साथे पारस बोल, चिंतामणी हो...पारसनाथ... (१) तारे द्वारे प्रभुजी हुं आव्यो, तारा चरणोमां शीश नमा, तने छोडीने क्यां मारे जाउं, तारा रंगे रंगीला रंगावु, मारा अंतरनी आश, तारा दर्शननी प्यास.... चिंतामणी० (२) मारुं चित्तईं चड्युं चगडोळे, तो ये प्रभुजी माहरा नवि बोले, मारुं हैयुं तो निशदिन झूरे, में तो माथु मूक्युं प्रभु तारे खोळे, आठ पहोर आनंद थाय, सेवक जिन गुण गाय,... चिंतामणी० (३) सेवक दुःखीयारो प्रभुजी पोकारे, तेनी वारे तुं केम न आवे, सेवक रोई रोई दहाडा वितावे, तारो वियोग मुजने सतावे, वात कोने कहुं, क्यां जईने रहुं....चिंतामणी० (४) वामानंदन अवधारो, अश्वसेन
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कुल चंद प्यारो 'ज्ञान - विमल' प्रभु गुण गावे, भवोभव तुम चरणोनी सेवा, मारा पूरा करजो कोड, मारी साथे पारस बोल....चिंतामणी० (५) (26) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - हवे नहि छोडुं तारी चाकरी)
पार्थ शंखधर भेटीये रे लोल, मेटीए विघ्नविकाररे वालेश्वर, पार्श्व शंखेश्वर, (२) भेटीये रे लोल० अद्भुत कीर्ति कळियुगे रे लोल, भविजनने आधार रे....(२) देश देशना-जन घणा रे लोल, यात्रा करवा काज रे....आवे अति उलट भर्या रे लोल, लेइ लेइ पूजा समाज रे.... एही ज भावना भावता रे लोल, भवजल तरवा नाव रे.... कमठ हठी हठ भंजणो रे लोल, रंजणो जग जन चित्त रे.... साथ मिल्यो ए ताहरो रे लोल, किधो जन्म पवित्र रे.... वामानंद वालहो रे लोल, प्रभावतीना नाथ रे, 'ज्ञानविमळ' प्रभु बाह्यथी रे लोल, ग्रहीने करो सनाथ रे....
(27) पार्श्वनाथ जिन स्तवन तारी मूर्तिनुं नहि मूल रे, लागे मने प्यारी रे, तारी आंखडीए मन मोयुं रे, जाउं बलिहारी रे....(१) त्रण भुवननुं तत्त्व, लहीने, निर्मळ तुंही निपायो रे, जगसघळो नीरखीने जोता, तारी होडे को नहि आयो रे । (२) त्रिभुवन तिलक समोवड ताहरी, सुंदर सुरती दीसे रे, कोडी कंदर्प सम रूप निहाळी, सुरनरनां मन हीसे रे (३) ज्योति स्वरूपी तुं जिन दीठो, तेहने न गमे बीजुं कांई रे...ज्यां जइए त्यां पुरण सघळे, दीसे छे तुंही ज तुंही रे (४) तुज मुख जोवाने रढ लागी, तेहने न गमे घरनो धंधो रे, आळपंपाळ सवि अळगी मुकी, तुजशुं मांड्यो प्रतिबंधो रे, (५) भवसागरमां भमता भमता, प्रभु पाईनो पामी आरो रे, उदयरत्न कहे बाह्य ग्रहीने, सेवक पार उतारो रे (६) (28) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - अय मेरे प्यारे सनम)
वामानंदन वंदना चरणोमां अवधारो रे... (२) करी करुणा करुणानिधि, भवसायरथी तारो रे... (१) एक समय संसारमां, आप साथे रमीया रे, तुमे निर्मोही थई गया, अमे भव अटवीमां भमीया रे... (२)
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परिणती तीव्र कषायनी, भटकावे चोराशी रे, नाना जन्म धरावीने, नाखे गलामां फांसी रे... (३) दुखडा नरक निगोदमां, कहेता न आवे पार रे, छेदन भेदन बहु सह्यां, परमाधामीना मार रे... (४) अवर नही कोई विश्वमां, तुज विण तारण हार रे, एहवू जाणी आवीयो, स्वामी तुज दरबार रे,... (५) प्रीत पुरातन दाखवो, निज गुण आपो नाथ रे, हुं भवकादवमां खुंच्यो, उगारो देई हाथ रे,... (६) धनदोलत मागु नहि, छे मम ए अरदास रे, त्रिभुवन तिलक बोलावजो, मम सेवक तुम पास रे,...(७) ।
(29) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : ले के पहेला प्यार)
पार्थजी तोरा रे... पाय, पलकमें छोड्या नवि जाय (२) साहिबा तुमसे लगन लगी (१) लगी लगी आंखीयाने, रही रे लोभाई, दुनियामां दुजो कोई, आवे न दाई, पार्श्व० (२) आछी आछी आंगीयाने, रंग अनुप, अजब बन्युं छे साहिबा आजचं रूप (३) शिर कान कर हैये, सोहे उदार, मुगट कुंडल बाजुबंधने हार,....पार्श्वजी० (४) देवाधिदेव तुं तो दिनदयाळ, त्रिभुवन नायक तुजने, नमु त्रणकाळ....पार्धजी० (५) तुज पद पंकज मुज मन ,ग, चितमा लाग्यो छे, साहिबा चोळनो रंग० (६) लंबी लंबी बाउडीने बडेबडे नेण, सुरतरू सरीखो साहिबा शिवसुख देण० (७) जूनी जूनी मुरतिने ज्योत अपार, सुरत देखीने प्रभुनी मोह्यो आसंसार,० (८) सतरसें एंशी समे, चैतर मास, पूरण मासे ते पहोती पुरण आश० (६) उदयरल वाचक वदे एम, पार्श्वशंखेधर जोता वाध्यो छे प्रेम० (१०)
(30) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - शास्त्रीय) तार मुज तार मुज, तार त्रिभुवन धणी, पार उतार संसार स्वामी, प्राण तुं त्राण तुं शरण आधार तुं, आतमाराम मुज तुंही कामी, (१) तुं ही चिंतामणी, तुं ही मुज सुरतरु, कामघट कानधेनु विधाता, सकल संपति करुं, विकट संकट हरु,....पार्थ शंखेश्वरो मुक्तिदाता, (२) पुण्य भरपुर अंकुर मुज जागीयो, भाग्य सौभाग्य मुज नूर वाध्यो रे, सकल वांछित फल्यो, माहरो दिन वव्यो, पार्थ शंखेश्वरो देव लाध्यो(३) मूर्ति मनोहारीणी, भवजलधि तारणी, निरखता नयने आनंद हुओ, पार्श्वप्रभु भेटीया पातिक
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372 मेटीया, लेटीया ताहरे चरणे जूओ० (४) पार्थ तु मुज धणी, प्रीति मुज बनी घणी, विबुधवर नयविजय गुरु वखाणी,....मुक्तिपद आपजो, आपपद स्थापजो, जस विजय आपनो भक्त जाणी, (५)
(31) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - दिल दिवाना)
शेरी माहे रमता दीठा, पार्थ कुंवर नानडीयाजी, रूमझुम रूमझुम घुघरा घमके, हाथे उछाळे दडीयांजी, (१) पुनम चंद सम मुखडु मलके, काने कुंडळ वांकडीयाजी, हैये हार अनुपम सोहे, केडे कंदोरो जडियाजी, (२) सुवासण खंधोले बेसाडे, केडना देदार फरियाजी, मा मा करतां
ओढणी खेंचे, इन्द्राणी केडे चडीयाजी, (३) शेरी माहे फेरी रे करतां, रस पीने शेलडीयांजी सरखे सरखां टोळा मळीने, वहेंचे छे सुखडियांजी, (२) (४) सवार पहोरमां निशाळे जातां, हाथमां पाटी खडियांजी, इन्द्र तणा संशय जेणे पुर्यां, शास्त्र सकल आवडियांजी, आनंद घन प्रभुना गुण गातां, आछाते भाग्य उघडियांजी, (६)
(32) पार्श्वनाथ जिन स्तवन मारा पार्थ जिनदेव, आज तारे ध्यान मारे आनंद थयो (२) ॥१॥ काम कुंभ काम धे, आज मारे बार, तारो जिन आज दीठो, मीठो जब देदार....मारा०॥२॥ अष्ट सिद्धि नव निधि आज तारे नाम, ते जे जीति पाम्यो जोर यादव कान....मारा०॥३॥ माता वामादेवी नंद, मुख पूनम चंद, अश्वसेन भूप वंश, दीपतो दीणंद,....मारा०॥४॥ सेवा सारे चित्त धारे, जेह नरने नार, ब्राह्य ग्रही तेहने तुं, तारे आ संसार....मारा०॥५॥ देव दानव इन्द्र मानव, जख्ख रख्ख कोडी, पाय नमी सेव सारे, उभा बे कर जोडी....मारा० ॥६॥ घणा दिन चाहता में दीठो तुं जिणंद, रोमे रोमे मुज जाग्यो, प्रेम परमानंद....मारा० ॥७॥ स्वामी अंतर्यामी, आज पाम्यो में एकांत, दास गणीए वयण सुणीये, विनंती वृतांत....मारा० ॥८॥ आठ कर्म मोरा टाळो, शाळो सघळा पाप, जपतां हरे रोग शोक, नाठा सवी संताप ....मारा ॥६तुठ्यो तुठ्यो अमीय वुठ्यो, मेघ मारे आज, ज्ञान विमल स्वामी माहरे, सिध्यां सघळा काज....मारा० ॥१०॥
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(33) पार्श्वनाथ जिन स्तवन सुणरे सखी मुज नेहलोरे, वामाराणीनो पुत्र, संयम लेवा अलजो रे, मेली घर- सुख, साहीबोरे सखी मारो मनडानो चोर, जाणे कल्लैयो मोर, साहिबारे सखी मारो नणंदीनो वीर, सोहे श्याम शरीर 191 प्रभावती राणी तणोरे, नयणे खल खलनीर, पीयुशुं प्रेम लागी रह्यो रे, जीवन धरे ज्युंज धीर ।२। सुंदरीने समजावीने, प्रभु आप थया अणगार, सुख दुःख जेहने सारीखं रे, सरखो सह संसार ।३। साहीबोरे सखीमारो मेरूं तणी पेरे धीर, सायर पेरे गंभीर, साहीबो रे सखी मारो आपे भवोदधि तीर, सोहे श्याम शरीर ।४। काउसग्ग रया ध्यानमा रे, मळीयो कमठ कठोर, पूरव भवना वैरथी रे जळ वरसावे जोर ।५। घोर घनाघन उमयो रे, चिहुं दिशी चमके रे वीज, कमठ तो साचु कांगरूं रे, साहिबो ते शालीनुं बीज, ।६ । जळ आवी नाके अडयुरे चलीयुं सिहांसन ताम, धरणेन्द्र पद्मावती रे, आव्यां इणे ठाम ।७। फणा धरे प्रभु उपरे रे, जळथी लही अंतरीख, नृत्य करे तिहां नागणी रे, कमठने दीधी शीख, || सुरपती सेवा सारिखी रे, सहु गया निज धाम, केवल लही मुक्ते गया रे, प्रभुजी प्राण आधार, I६ | सकल देवोमां राजीयो रे, त्रेवीशमो जिनराय, उदय रत्न लळी लळी विनवे, प्रणमे प्रभुजीना पाय, ।१०।।
(34) पार्श्वनाथ जिन स्तवन सत्वित घन सुख आपो, घन घाति कर्मने कापो, घन घाती कर्मने कापो, प्रभु मोक्ष सुख मुज आपो... |१। लाख चोराशी भवमांही भटक्यो प्रभु, वार अनंती वेला; पारंगत सुज चरणे आव्यो, टालो भव भवना फेरा हो राज० ।२। मोहादिक रिपु रण संग्रामे, घेरी मन घबरायो, ज्ञान खजानो लूट लीयो सब, अबहुं जिनजी हरायो हो राज० ।३। विषय रागमां भान भूल्यो प्रभु, कुसुमायुद्धना जोरे, तृष्णा तरुणी लीन थयो विभू, लूंटायो कर्मना जोरे हो राज० ।४। अश्वसेन कुल वामा माता, नयरी वाराणसी जाया, सिद्धपुर क्षेत्रमा भवदुःखभंजन, सुलतानी पार्थ कहायो हो राज० ।५। भव अटवीमां हुं रडवडियो प्रभु,
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374 कर्म जंजीरनां फंदे, समता शांत सुधारस आपो, भेटवा पाय अरविंदे हो, राज० ।६। अमृत झरती पापने हरती, मूर्ति मनोहर पाई, मीट गयो भवदुःख हमेंरो, घटमे ज्योत जलाइ हो राज० ।७। ऋद्धि विजय गुरू कर्पूर विजय तस, बालक उपासक जाणे, पून्योदय आज हमेरो, ह्रदय कमल हरखायो हो राज०।८। ..
(35) पार्श्वनाथ जिन स्तवन राता जेवा फूलडांने, शामळ जेवो रंग; आज तारी आंगीनो कांई, रूडो बन्यो छे रंग, प्यारा पासजी हो लाल, दीनदयाळ मुजने नयणे निहाल, ॥१॥ जोगीवाडे जागतो ने, मातो धिंगडमल; शामळो सोहामणो कांई, जीत्या आठे मल्ल, प्यारा० ॥२॥ तुं छे मारो साहिबो ने, हुं छु तारो दास; आशा पूरो दासनी कांई, सांभळी अरदास । प्यारा० ॥३॥ देव सघळा दीठा तेमां, एक तुं अवल्ल; लाखेणो छे लटको ताहरो, देखी रीझे दिल्ल, । प्यारा० ॥४॥ कोई नमे पीरने ने, कोइ नमे राम; उदयरत्न कहे प्रभुजी, मारे तुमशुं काम प्यारा० ॥५॥
(36) दश भव वर्णन रूप पार्श्वनाथ का स्तवन
जंबूद्विपे पोतनपुरमां, अरविंदनामे राजारे, तास पुरोहित विश्वभूती द्विज, सुत मरुभूतिगुण ताजारे, पास जिनेसर पुरुषादाणी० ॥१॥ श्रावक धर्म आराधे, अंते कमठे शिलातले चांप्यो रे, कुंजर होए श्वेत वरणा, करणी मोहे व्याप्योरे ॥ पास० ॥२॥ अरविंद राजऋषि देखीने, जाति स्मरण पाम्यो रे, कमठ कुर्कुट डंस्यो, सहसा रे सुख काम्योरे ।। पास० ॥३।। महाविदेह विद्युतगति नृप, तिलकावति तस राणीरे, किरणवेग सुत संयमलेइ, विद्याधर तस वारु रे, संयम मारग साधोरे, कमठ जीव सिंहे ते हणीयो, मध्य प्रैवेयके सुखलाधेरे, कमठजीव व्याने ते हणीयो, प्राणतसुर सुसमाधिरे ॥ पास० ॥६॥ अश्वसेन नृप वामा नंदन, नयरी वाराणसी जेहनीरे, नीलवरण अहिलंछनदीपे, आणावहुं हुं तेहनी रे ॥ पास० ॥७॥ पासजिनेसर त्रेवीशमो जिन, ज्ञानविमल गुण भरीयोरे, ब्रांहीग्रहिते सेवक तारे, अपरंपार भवदीयोरे ॥ पास० ॥८॥
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(37) श्री अंतरीक्ष पार्श्वनाथ जिन स्तवन श्री अंतरीक्ष महाराज, गरीब निवाज, सुणो जिनवरजी, सेवक शिर नामे तने, गुजारे छे अरजी, वीशमां तिर्थंकर मुनिसुव्रतनां वारे, लंकापति रावण राज्य करे छे त्यारे, तसभवन पतिश्वर राजाए व्रत लीधो, जिनभक्ति विना नवि खावू सवि प्रसिद्धो ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥१।। एकदिन जंगलमां नृपजई चढ्यो जोवारे, सेवाने अवसरे जिन प्रतिमा संभाले, तव विसरी प्रतिमा सेवक मुखथी जाणी, मंत्रीश्वर आवी विनवे गुण निशानी ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥२॥ तिहां छाण-वेलुनी प्रतिमा करी प्रभु पूजे, नदी खाडो घाली युक्ति शुं मांही मूके, पछी देव अधिष्ठ प्रतिमा ते तिहां थावे, नदी सुकतां पण पाणी अधिक तिहां आवे, ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥३॥ हवे एलचपुरजो राजा एलच नामे, कोइ कारण योगी आवी गयो ते ठाणे, ते राजा कृष्टि रोगे अति पीडाणो, तिहां पाणी लेवा आव्यो मंत्री शाणो ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥४॥ ते पाणी लईने पीधुं राय ते वारे, तव रोग गयोने शांति थइ तेवारे, पछी राणी वचने राजा प्रतिमा लावे, काचा तंतुथी आकट गाडी जोडावे ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥५॥ एक दीवसना जन्मेला वत्स बे लावे, काचा तंतुथी गाडी साथे जोडावे, संवत पांचसे पंचावन प्रभु आव्यां, पछी देश वराडे शिवपुर नगर सोहाव्यां ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥६॥ जिहां लइ जावो तिहां पार्छ वालीने जोशो, नही तो ते प्रतिमा अधर आकाशे रहेशे, इम सुपन मांहेली छेली वात विचारी, पार्छ वाली नप जोवे ह्रदयमां विचारी ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥७।। चाल्युं प्रभु अंतरीक्षमांही रहीयां, छमास सुधी इम आकाशे गह गहीया, घोडे अशवार पण नीचे थईने जातो, तेथी अंतरीक्ष ए नाम जगत विख्यांत ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥८॥ अब पंचम कालमां अंगलुंछणो निकले, ते पडिमा देखी भवियणना मन उछले, अब देश वराडे शिवपुर नगर मोझार, प्रभु प्रतिमा देखी, वो जयजयकार ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥६॥ संवत ओगणीशे चोशठ साल वखाणो, चैत्रसुदि अष्टमी गुरुवारनो टाणो, प्रभु पार्थनाथनी यात्रा कीधी भारी, कहे कमलविजय मुज होजो भव निस्तारी ॥ श्री अंतरीक्ष० ॥१०॥
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(38) पार्श्वनाथ जिन स्तवन चित्त समरी शारदा मायरे, वली प्रणमी निजगुरु पायरे, गाउ त्रेवीशमोजिनराय, व्हालाजी, जन्म कल्याणक गाउंरे, सोना रुपाने फुलडे वधाएं ।। व्हाला० ॥१॥ काशी देश वाणारसी राजेरे, अश्वसेन छत्रपति छाजेरे, राणी वामा गृहिणी सुराजे ॥ व्हाला० ॥२।। चैत्रवदि चोथे ते चवीयारे, माता वामा कुखे अवतरीयारे, अजुवाल्यां छे एहना परिया ॥ व्हाला० ॥३॥ पोषवदि दशमी जगभाणरे, होवे प्रभु, जन्म कल्याणरे, वीशस्थानक सुकृत कमाण ॥ व्हाला० ॥४॥ नारकी नरक सुख पावेरे, अंतमुहूर्तदुःख जावेरे, एतोजन्म कल्याणक कहावे।। व्हाला० ॥५॥ प्रभु त्रण भुवन शिरताजरे, तुम तारण तरण जहाजरे, कहे दीपविजय कविराय ॥ व्हाला० ॥६॥
(39) श्री मक्षीजी पार्श्वनाथ भगवान का स्तवन
वामा नंदन चालो भवियण भावशुं रे, तमे चालो चालो मक्षी पारसनाथ, एहनी यात्रा करतां, संकट सघला जाय छे, रे एतो साचो साचो शिवनगरीनो साथ, वामानंदन वंदन चालो भवियण भावशं रे ॥१॥ जिनजी दिक्षा लइने वडतल काउस्सगमें रह्यां रे, आव्यो कमठां सुर लेई मोटी मेघनी माल, गाज्यो गगने सघने गड गड करतो घुमतो रे, दामिनी बीजली चमके, जब जब करती जाल, ॥ वामा० ॥२॥ वरसवा लाग्यो वरसवां मुंशल जेवी धारशुं रे, क्षणमें जल थल ते तिहां भू पर एकज थाय, प्रभुनी नासिका पासे जलनो छोलो आवीयो रे, अवधिये जोई अहिपति आव्यो पाय ॥ वामा० ॥३॥ प्रभुने वंदि खंधे लेइने उपाडिया रे, शिर पर सहस्त्र फणोकरी रोकी जलनी छांट, जयजय शब्द करीने अद्भूत नाटक मांडियो रे, -थावा लाग्यां मंगल रव रव ना ते ठाठ, ॥ वामा० ॥४॥ इंद्राणीयो मली ठम ठम ठम ठम करती नाचती रे, धींतांक धींतांक धींतांक मृदंगना भौंकार ॥ वीणा वाजे रणजण रणजण रणजण वांदशुं रे, पुनीताल कंसारने, भुंगलना भौंकार ॥ वामा० ॥५॥ रुमझुम रुमझुम रुमझुम ठमको देइने नाचती रे, छूमछुम छुमछुम छुम छूम घुघरीनो घमकार, वांदणा लेती गावती अश्वसेनना पुत्रने रे, माती तानी मुखथी करती सौ सौंकार । वामा० ॥६॥
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करती फरती फुदडी कर जालीने बेहुजणे रे, जालादेती लेती नामने वारंवार, जुगजुग जुगजुग जीवो जयवंता जिनराजजी रे, रुडो रुडो विश्वमें, तुम केरो उपकार ।। वामा० ॥७॥ गडगड गडगड करतो गाजतो चमकतो जोरशुं रे, वरसे जलधर जाणे जेहवो प्रयलकाल, कारण विणकिम कटके, जटके एहवो मेहुलो रे, जोइ अवधियेछे, कमठासुर कंगाल, ॥ वामा० ॥८॥ हांकी हलकारी कहे अहिपतिरे तुं पापीया रे, तुजने शिक्षा थइ इहां बंदर सुगरी चाल, एहतो जिनजी समतारसकेरा भंडार छे रे, हुं तो हणशुं हणशुं ताहरी चाल कुचाल ॥ वामा० ॥६॥ एहवा वयण सुणीने धग धग धग धग ध्रुजीयो रे, प्रत्यक्ष देख में सहु ए, कार्यो आल पंपाल, प्रभुना चरणा शरणा विन नहि मारो छूटको रे, हुं तो छोडुं छोडूं छोडूं मिथ्या पर जंजाल | वामा० ॥१०॥ सरसर सरसर सरसर संकेले सहु मेघने रे, जोडी अंजली प्रांजली जिनवरना नमेपाय, सामे करजोडीने खमजो हे करुणानिधि रे, समकित पामी खामी साचो भक्त सोहाय ॥ वामा० ॥११॥ नमीने खमीने निजनिज निजनिज स्थाने तेगया रे, त्यांथी थयो हो प्रभुने अहिछत्र सहेलाण, मक्षी पारसने पण एहीज शिरपर सोहतो रे, पुनीजगामे पण एहीज लंछनजाण ॥ वामा० ॥१२॥ एहनी सेवा सुखर सारतां सघलां भावशुं रे, वली वली वारतां विघ्नो व्यसनोनां विस्तार, सेवोसेवो ही मक्षीपारसनाथने रे, करशे करशे ए सही भव भावट निस्तार । वामा० ॥१३॥ हुं तो प्रणमुं प्रणमुं पद पंकज प्रभु पार्श्वना रे, हेते गाया गाया गुणगण आनंदपुर, आपो आपो मुजने, मुक्ति विमल सुख शाश्वतुं रे, जेहथी थाशे थाशे रंग विमल दुःख दूर ।। वामा० ॥१४॥
(40) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (अब सोंप दिया इस) जिनराज नमो जिनराज नमो, अहनिश प्रभु भावे चित्त रमो। दुःख दोहग दुरित मिथ्यात गमो, चउ गति भव वनमा जिम न भमो। जि० १ प्रभु पास जिनेसर वंदो रे, भव संचित दुरित निकंदो रे। प्रभु अनुभव ज्ञान दिणंदो रे, समता वनिता सवि इंदो रे। जि० २ प्रभुमें काळ अनंत गमायो रे, तुम दरिशन सार न पायो रे। जो पायो तो न सुहायो रे, त्रिकरण शुद्ध नवि ध्यायो रे। जि० ३ मुजने मोह महीशे रमाडयो रे। भवनाटक माहि
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378 भमाडयो रे। वली कुगुरु कुदेव नमाडयो रे, युंहि एळे अवतार गमाडयो रे। जि० ४ शुद्धबोध नृपति सुप्रसादे रे, लयुं समकित परम आल्हादे रे | टव्युं परम मिथ्यात अनादि रे, थयो सहज स्वभाव सवादि रे । जि० ५ जब आपे आप विचार्यु रे, तब निश्चय एहिज धार्यु रे । उपगार गुणे न विसार्यो रे। जब विषय कषाय निवार्यो रे । जि० ६ ए महिमा सर्व तुमारो रे, तुज मुज वच्चे अंतर वारो रे,। जिम सफल होवे अवतारो रे, ज्ञानविमल गुण दिल धारो रे,। जि० ७ । (41) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (भक्ति करतां छूटे मारा प्राण-राग) __मारी रक्षा करो भगवान, शंखेश्वर पारसनाथ, हुं तो आव्यो तुमारे द्वार, शंखश्वर पारसनाथ, में तो तारी साथे प्रीत कीधी, मारीजीवनदोरी तुजने दीधी, अमने तारो छे आधार ॥ शंखेश्वरा० ॥१॥ हुं तो रात दिवस तारुं .ध्यान धरुं, मारां मनडामां स्वामी तुजने भर्नु, करो अमीदृष्टि एकवार ॥ शंखेश्वरा० ॥२॥ तारी करुणा भरी में मूर्ति दीठी, मारा हैये लागे छे अति मीठी, तुं तो जगतनो तारणहार ॥ शंखेश्वरा० ॥३॥ दयालावोने मुजपर करुणा करी, तमने पाये लागुं चरणे पडी, मारी नैयाने पार उतारो ॥ शंखेश्वरा० ॥४|| मारी दर्दभरी विनंती सुणो, मारी बधी भूलोने क्षमाकरो, हवे जल्दि करोने उद्धार ।। शंखेश्वरा० ॥५॥ शंखेश्वरमां प्रभु तुं बिराजे छे, महिमा तारो त्रिलोकमां गाजे छे, उदयरत्न कहे कर जोड, ॥ शंखेश्वरा० ॥६॥ (42) श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिन स्तवन (हे करुणाना करनारा) __हुं चरणे तुमारे आव्यो, शंखेश्वर पारसनाथ ॥ हुं चार गतिमां रुल्यो, हुं भवोभवमां भूल्यो | तुम दर्शनने नवि पायो, ॥१॥ हुं लाख चौराशी भटक्यो, समकित दर्शन नवि अटक्यो, ॥ हुं नरकनिगोदमां फरस्यो, ॥ शंखेश्वरा० ॥२॥ महामोह मिथ्यात्वे भरीयो, क्रोध राग तृष्णाथी भरीयो । हुं विषया रसमां डूब्यो ॥ शंखेश्वरा० ॥३॥ तुंतो निरागी भगवंत ॥ क्षायिकगुण समकितवंत ॥ ज्ञान दरिशन चरण अनंत ॥ शंखेश्वरा० ॥४॥ हुं भटकी भटकी आव्यो, तुज चरणे पाप परवाल्यो । हवे सेवकने तुमे तारो ॥ शंखेश्वरा० ॥५॥ हुं तो अज्ञानगुणे भरीयो, तुं तो केवल कमला
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वरीयो, मने मायाए फसाव्यो, ॥ शंखेश्वरा० ॥६।। भवोभव तुहिज साचो, अवरदेव मुज काचो, ॥ ए भावनाए शिवपुर जासो, ॥ शंखेश्वरा० ॥७|| तार तार प्रभु तुं तार, भव सायर पार उतार, कहे धर्म रत्न सुखकार, ।। शंखेश्वरा० ॥८॥
(43) पार्श्वनाथ जिन स्तवन शंखेश्वर अलवेसर तारी, आश धरी हुं आव्यो, सेवक सार करो हवे साहिब, चिंतामणी में पायो, चिंतामणी में पायो, जिनेश्वर ओळगडे अवधारो शंखेश्वर० । १ देव घणा में सेव्या पहेला, जीहां लगे तुं नवि मलियो, हवे भवांतरमां पण तेहथी, किमही जाउं न छळीयो, । चिंतामणी० २ अतिशय ज्ञानादिक गुण ताहरो, दीसे छे प्रभु जेहवो, सूरज आगळ ग्रहगण दीसे, हरिहर दीपे तेहवो। चिंतामणी० ३ कलियुगे परगट तुज परचो, देखुं हुं विघ्न मोझार, पुरुषादाणी पार्श्वजिनेसर, बाह्य ग्रहीने तारो । चिंतामणी० ४ पुष्करावर्त घनाघन पामी, ओर छिल्लर नवि जाचुं, काम कुंभ-साचो पामीने, चित्त करे कोण काचुं । चिंतामणी० ५ जरा निवारी जादव केरी, सुरनरवर सहु पूज्या, पार्थजी प्रत्यक्ष देखंतां दर्शन, पाप मेवासी धूज्या । चिंतामणी० ६ सो वाते एक वातडी जाणो, सेवक पार उतारो, पंडित उत्तमविजयनो शिष्य, रलविजय जयकारो । चिंतामणी० ७
(44) पार्श्वनाथ जिन स्तवन अंतरजामी सुण अलवेसर, महिमा त्रिजग तुमारो रे, सांभळीने आव्यो हुँ तीरे, जन्म-मरण दुःख वारो; सेवक अरज करे छे राज, अमने शिवसुख आपो । सहु कोनां मनवांछित पूरो, चिन्ता सहुनी चूरो; एq बिरुद छे राज तुमारुं, केम राखो छो दूरे ? से० सेवकने वलवलतो देखी, मनमां महेर न धरशो; करूणा सागर केम कहेवाशो, जो उपगार न करशो । से० लटपटनुं हवे काम नहीं छे, प्रत्यक्ष दरिशन दीजे; धुमाडे धीजो नहीं साहिब, पेट पड्या पतिजे, से० श्री शंखेश्वर मंडण साहेब, विनतडी अवधारो; कहे 'जिनहर्ष' मया करी मुजने, भवसागरथी तारो से०
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( 45 ) पार्श्वनाथ जिन स्तवन ( राग : आजनो दिवस मने लागे )
समय समय सोवार संभारूं, तुज शुं लगनी जोर रे, मोहन मुजरो मानी लेजो, ज्युं जलधर प्रीति मोर रे माहरे तन धन जीवन तुंही, एहमां जुठ न जाणो रे अंतरजामी जगजन नेता, तूं कीहां नथी छानो रे, जेणे तुजने हैडे नवि ध्यायो, तास जनम कुण लेखे 'रे, काचे राचे ते जन मूरख, रत्नने दुर उवेखे रे, सुरतरू छाया मूकी गहरी, बावळ तळे कुण बेसे रे, ताहरी ओलग लागे मीठी, किम छोडाये विशेषे रे, वामानंदन पास प्रभुजी, अरजी चित्तमां आणोरे, रूप विबुधनो मोहन पभणे, निज सेवक करी जाणो रे, (46) पार्श्वनाथ जिन स्तवन
श्री पार्श्वजी प्रगट प्रभावी, तुज मूर्ति मुज मन भावी रे, मन मोहना जिनराया, सुर नर किन्नर गुण गाया रे, मन । जे दिनथी तुज मूर्ति दीठी, तेदिनथी आपद नीठी रे, । मटकाळु मुख सुप्रसन्न, देखत रीझे भवि मन रे, समता रस केरा कचोला, नयणां दीठे रंग रोला रे.... हाथे न धरे हथियार, नहि जपमालानो प्रचार रे, उत्संगे न धरे वामा, जेहथी उपजे सवि कामा रे.... न करे गीत - नृत्यना चाला, ए तो प्रत्यक्ष नटना ख्याला रे, न बजावे आपे वाजा, न धरे वस्त्र जीरण साजा रे .... इम मूर्ति तुज निरूपाधि, वीतराग पणे करी साधी रे, कहे मानविजय उवज्झाया, में अवलंब्या तुज पाया रे ..... ( 47 ) पार्श्वनाथ जिन स्तवन
अब मोहे एैसी आय बनी, श्री शंखेश्वर पास जिनेसर, मेरे तुं एक धनी । अब० तुम बिनु कोउं चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुनी, मेरो मन तुज उपर रसियो, अलि जिम कमल भणी । अब० तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज घरनी, नाम जपुं निशि वासर तेरो, ए मुज शुभ करनी । अब० कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी, नाम जपुं जलधार तिहां तुज, धारूं दुःख हरनी । अब० मिथ्यामति बहु जन है जगमें, पद न धरत धरनी, उनका अब तुज भक्ति प्रभावे, भय नहि एक कनी । अब० सज्जन-नयन सुधारस-अंजन, दुर्जन रवि भरनी, तुज मूरति निरखे सो पावे, सुख जस लील धनी । अब०
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(48) श्री पार्श्वनाथ भगवान नी पंचकल्याणकनी ढालो
(ढाल--पहेली) हारे मारे पार्थजिणंदनो, महिमा पुरण जाणजो, पंचकल्याणक वर्णवू, हर्ष हैडे धरीरे लोल, हारे मारे सुणता थाये दुःख दोहग हरनारजो, थुणतां पातिक न रहे, कर्म दूरे करीरे लोल ॥१॥ हारे मारे सागर विशनी स्थिति पूरण करी आपजो, प्राणतनामा दशमां देवलोकथी चवेरे लोल, हां० ॥ चैत्रवदनी चोथ घणी सुखदायजो, चवीयां जिनजी माता वामानी कुंखेरे लोल ॥२॥ हां० नयरी वाराणसी अश्वसेनमहाराजजो, विशाखानक्षत्रे गर्भे उत्पन्न थयां रे लोल, हां० ॥ मतिश्रुत अवधिना साहित जिनरायजो, मातावामाए सपना चौदनिरखीयारे लोल ॥हां०॥ मासनव घणा, पूरण वीतीजायजो, साडासात दिवस उपरगणतां थयारे लोल हां० ॥ पोषवदनी दशमी दिन शुभ आपजो, जन्म्या जिनजी औच्छवमंगल अतिथयारे लोल हां० ॥४॥ आसनकंपथी जन्म प्रभुजीनो जाणजो, छपन्नदिक्कुमरीमली सूती करम करेरे लोल, हां ॥ रक्षापोटली बांधे प्रभुजीने पाणीजो, कलशा चामर अरिसाने पंखो धरेरे लोल ॥हां०॥५॥ हारे मारे इद्र चौशठ मली आवे होडा होडजो, पर्वतमेरुनी उपरे मात्र महोत्सव करेरे लोल, हां० ॥ देव चतुर्विघ मलीयां क्रोडा क्रोडजो, जन्म महोत्सव करी जिनने जननी पासे धरेरे लोल ॥हां०॥६॥ हारे मारे अनुक्रमे जन्म्यां त्रिभुवनस्वामीजो, विजय मुक्तिपद लेवा सुरमुख उच्चरे रे लोल, हारे मारे प्रभुजीनी स्तवना करीये बुद्धि पामीजो, कमलविजयकहे व्हेला शिव सुख ते वरेरे लोल ॥हां०||७||
(राग : दिलरंजन जिनराजजीरे) (ढाल--बीजी) जन्म महोत्सव जिनजी जाणी, हरख्यां राजा राणीरे ॥ स्वामी० ॥ जयवंत दश दिवसनी कुल मर्यादा, करे उलट आणीरे ॥ स्वामी० ॥ देख्यां सुपन तणे अनुसारे, पार्थकुमार नाम धाररे ॥ स्वामी० ॥१॥ बालपणे प्रभुने हुलरावे, मात-पिता सुखपावे रे ॥ स्वामी० ॥ अनुक्रमे गुणरत्नाकरस्वामी, बाल अवस्था पामीरे ॥ स्वामी० ॥२॥ हवे यौवनवय प्रभुनी जाणी, परणावे प्रभावती राणीरे ॥ स्वामी० ॥ सुखविलसे संसारना स्वामी, नव-हाथ- देह पामीरे ॥ स्वामी० ॥३॥ एकदिन गोखे बेठा बिराजे,
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शुं कौतुक छे आजरे ॥ स्वामी० ॥ इम पूछे सेवकने स्वामी, तव ते कहे शिरनामीरे ॥ स्वामी० ॥४॥ दरिद्रि एक ब्राह्मणनो पुत्र, लोकेजीवडाव्यो कुत्ररे ॥ स्वामी० ॥ नामे कमठ पंचाग्नितापे, लोको बहुमान आपेरे ।। स्वामी० ॥५॥ सांभली कौतुक प्रभुजी उल्लासे, आव्यां कमठनी पासेरे ।। स्वामी० ॥ बलतो सर्प काष्ठमांथी झाली, करुणा अतिदील आणीरे ।। स्वामी० ॥६॥ कहे तापसने हे तापसीलोक, दयाविण सविकोडरे ॥ स्वामी० ॥ तुमेतो घोडाने खेलावा जाणो, नही धर्म पीछाणोरे ॥ स्वामी० ॥७।। इमसुणी प्रभु काष्ट चिरावे, बलतो सर्प कढावे रे ॥ स्वामी० ॥ सेवक मुखे नवकार सुणावे, धरणेन्द्र पद ते पावरे ॥ स्वामी० ॥८॥ अहोज्ञानी अहोज्ञानी स्तवना करतां, लोकोमन वदतारे ॥ स्वामी० ॥ अनुक्रमे स्वामीघेर आव्यां, धवलमंगल वरतायेरे ॥ स्वामी० ॥ थयो कमठ मरी मेघमाली, तापसनुं व्रत पालीरे ॥ स्वामी० ॥६॥ त्रीशवरस रही घरवासे, दीक्षालेवा उल्लाशेरे ।। स्वामी० ॥ वरसीदान वरसावी ते काले, जगनां दारिद्र टालेरे ।। स्वामी० ।। हवे लोकांतिक देवतिहां आवे, प्रभुजीने समजावेरे । स्वामी० ।।१०।। बुजो भगवंत लोकना नाथ, करो अमने सनाथरे, ।। स्वामी० ॥ इम कही जय जय शब्द बोलावे, प्रभुजीना गुण गावेरे ॥ स्वामी० ॥११॥ प्रभु मति, श्रुत, अवधिनाणे, दिक्षाअवसर जाणेरे ॥ स्वामी० ॥ विजयमुक्तिपद वरवामेवो, चरणकमल तस सेवोरे ॥ स्वामी० ॥१२॥
__ (राग : आजे आव्योने काले-आवशुं रे) (ढाल त्रीजी) दीक्षालेवा संचार लाल, श्री जिनपार्थ जिणंदरे हुं वारि लाल, पासजिणंदसेवीयेरे लाल, पोषवदि एकादशी रे लाल, पर्व दिवसनो कालरे हुं वारिलाल०॥१॥ विशाल शिबिका भलीरे लाल, देव मनुष्यथी विशालरे हुं०॥ नयरी वाराणसी शोभती रे लाल, तेहना मध्ये जायरे॥ हुं० ॥२॥ आश्रमपद उद्यानमारे लाल, अशोकवृक्षतले ठायरे हुं वारिलाल, शिबिका तिहां स्थापना करीरे लाल, उत्तरे श्रीजिनरायरे हुं वारिलाल ।।३।। आभरण मूके सहीरे लाल, निर्ममने निर्मायरे । हं०॥ पोतानी मेले करे रे लोल, पंचमुष्ठि केशलोचरे, हुं वारिलाल०॥४॥ अठमतप चौविहारथी रे लाल, नहि कोइने मन शोचरे । हुं० ॥ विशाखा नक्षत्र भावेरे लोल,
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त्रणशेपुरुषनी साथरे ॥ हुं० ॥५॥ घरथकी निकली करीरे लोल, निग्रंथपणुं लीये नाथरे ।। हुं० ॥ पार्श्वनाथ अरिहंत तणुरे लोल, पुरिसादाणी छे नामरे हुँ वारिलाल ॥ त्याशी अहोरात्री लगेरे लोल, छोडी कायानी मायारे ॥ हुं० ॥६॥ देवमनुष तिर्यंचनारेलोल, सहे परिषह धीररे ।। हुं० ॥ तेहमां मेघमाली तणोरे लोल, सुणजो स्थिर करी मनरे ॥ हुं० ॥७॥ एक दिन विचरंता प्रभु रे लोल, तापस आश्रमें जायरे हुं वारीलाल, न्यग्रोध वृक्षनी हेठलेरे लोल, रयां ध्यान लगायरे ॥ हुं० ॥८॥ मेघमाली देवतेणे समेरे लोल, उपसर्ग करवाने आयरे ॥ हुं वारिलाल ॥ कल्पांत काल मेघनी परेरे लोल, जलधारा वरसावेरे ॥ हुं० ॥६॥ दशदिशी विजली चमकतीरे लोल, गर्जारण घणो थायरे ।। हुं० ॥ क्षणमात्रमा प्रभुजी लगेरे, लो० नासिका लगेजल जायरे ।। हुं० ॥१०॥ आसन कंपथी आवीयोरे लोल, धरणेन्द्र तत्कालरे ॥ हुं० ॥ फणारोपे करी ढांकीयोरे लोल प्रभुजी दिनदयालरे । हुं० ॥११॥ अवधिज्ञाने जाणी करीरे लोल, उपसर्ग कर्यां दूररे । हुं० ॥ मेघमाली बीतो थकोरे लोल, थयो प्रभुजी हजूररे, ।। हुं० ॥१२।। ते पण समकित पामीयोरे लोल, प्रभुतणे सुपसायरे, ॥ हुं० ॥ वांदि स्वस्थाने गयारे लोल, शरणुं करी सुखदायरे ॥ हुं० ॥१३॥ धरणेन्द्र पण भक्ति करेरे लोल, गयो पोताने ठामरे ॥ हुं० ।। प्रभु परिषह खमतां थकारे लोल, विचर्यां गामोगामरे ॥ हुं० ॥१४॥ इम परिषह सहन कर्यां रे लोल, त्यासी दिन जिनरायरे ॥ हं० ॥ दीन चौराशीमो आवीयोरे लोल, ग्रीष्म ऋतुवर्तायरे ॥ हुं० ॥ चैत्रवदनी चोथनेरे लोल, चढतो पहोर श्रीकार रे ॥ हुं० ॥१५॥ धातकी वृक्षनी हेटलेरे लोल, अठम तपे चौविहाररे ।। हुं० ॥१६॥ विशाखा नक्षत्रमारे लोल, चंद्रयोग शुभ आयरे ॥ हुं० ॥ शुक्ल ध्यान ध्यातां थकारे लोल, केवलज्ञानी प्रभु थायरे ।। हुं० ॥१७। इंद्र चोसठ तिहां मल्यां रे लोल, समवसरण रचे साररे ।। हुं० ॥ देशना अमृत धारथीरे लोल, तार्यां बहु नरनाररे ॥ हुं० ॥१८॥ हवे प्रभुजीनुं वर्णवू रे लोल, जे जे थयो परिवाररे ॥ हुं० ॥ विजयमुक्तिवर पामीयारे लाल, चरण कमल आधाररे । हूं० ॥१६॥
(ढाल चोथी) प्रभुजी पार्थजिनेसर केरो, वर्णवशुं परिवाररे, गच्छ आठ थाप्यारे जिनजी, आठ थया गणधाररे ॥हमचडी।।१।। आर्यदिन्न प्रमुख
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साधुजी थयासोल हजार, पुष्पचूला प्रमुख साध्वीओ, अडतालीस हजाररे ।। हम० ॥२॥ एकलाखने चौसठ हजार, श्रावकनो परिवार, सुव्रत प्रमुख थया प्रभुजीनो, द्वादशवर्त धारीरे ॥ हम० ॥३॥ त्रणलाखने सहस सतावीश, श्राविका व्रतधार, सुनंदा प्रमुख प्रभुजीने, सेवानी करनाररे । हम० ।।४।। चौद पूर्वी जिनवर नही, नही पण जिनसरीखा, सर्वे अक्षर अबोपेता, जाणेमति विषेसेरे ॥ हम० ॥५॥ चउदशो अवधिनाणी जाणो, दशसो केवलनाणी, अग्यारशो वैक्रियलब्धि धारी, छशे ऋजुमतिनाणीरे ॥ हम० ॥६॥ हजार साधुमोक्षे पहोंच्या, शिववधू वरिया रंगे, बे हजार साधवी पहोंची, शिवरमणीने संगेरे ॥ हम० ॥७॥ साडा सातसे विपुलमतिना, धारक मनअवधारो, छसो वादि पर्षदामांही, वाद करंतां न हारे रे । हम० ॥८॥ बारशे शिष्य प्रभुजी केरां, गयां अनुतर विमाने, बे प्रकारे अंतकृतभुमि, प्रभुजीनी वखाणेरे ॥ हम० ॥६॥ त्रण वर्ष पर्याय प्रभुजीए, मोक्षमार्ग चलायो, चारपाट सुधी तेवो, दिनदिन तेज सवायोरे ॥ हम० ॥१०॥ त्रीश वरस रह्यां घरवासे, त्याशी दिन छद्मस्थे, देशे ऊणा सितेर, जाणो केवलीपर्याय वरतेरे ॥ हम० ॥११॥ प्रथम मास वर्षा प्रभुजीनो, तेत्रीश मुनि संघाते, समेतशिखर गिरिनी उपर, अणशण, करी एकांतेरे ॥ हम० ॥१२॥ एकमास, अणसणपाली, श्रावकसुदी अष्टमीए, विशाखा नक्षत्रे प्रभुजी, पूर्व रात्रीना समयेरे ॥ हम० ॥१३।। पुरा सितेर वरस पाली, श्रमण • तणो पर्याय, एकसो वर्ष- आयुपाली, मोक्षनगरे सिधायारे ॥ हम० ॥१४॥ काउसग्गमांही मुक्तिवाँ, त्रेवीशमां जिनराया, विजयमुक्तिपद वरवाकाजे, कमलविजय मन ध्यायारे ॥ हम० ॥१५॥
(49) श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिन स्तवन पास प्रभु शंखेश्वरा, मुज दरिसण वेगे दीजे रे; तुज दरिसण मुज वालहुं जाणुं, अहनिश सेवा कीजे रे०....पा० ॥१॥ रात दिवस सूतां जागतां, मुज हैडे ध्यान तुमारुं रे; जीभ जंपे तुम नामने, तव उल्लसे मनडुं मारु रे०....पा० ॥२॥ दैव दीये जो पांखडी तो, आq तुम हजुर रे; मुज मन केरी वातडी, कांई दुःखडा कीजे दूर रे०....पा० ॥३॥ तुं प्रभु आतम माहरो तुं, प्राण जीवन मुज देव रे; संकट चूरण तुं सदा मुज, महेर करो
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नित मेव रे;....पा० ॥४॥ कमल सूरज जेम प्रीतडी जेम, प्रीति बपैया मेहरे; दुर थकी तिम राखजो, मुज उपर अधिको सनेह रे०....पा० ॥५॥ सेवक तणी ए विनति, अवधारी सुनजर कीजे रे; लब्धि विजय कवि प्रेमने प्रभु, अविचल सुखडा दीजे रे० ॥६॥
(50) पार्श्वनाथ जिन स्तवन माता वामादे बोलावे जमवा पासने रे, जमवा वेळा थई छे रमवाने चित्त जाय; चालो तात तुमारा बहु थाये उतावळा रे, वहेला हालोने भोजनीयां टांढा थाय. माता० १: मातानुं वचन सुणीने, जमवाने बहु प्रेमशं, रे बुद्धि बाजोठ ढाळी, बेठा थई होशियार; विनय थाळ अजुआली, लालन आगळ मूकीयो रे, विवेक वाटकीयो, शोभावे थाळ मोझार. माता० २. समकित शेलडीना छोलीने गट्टा मूकीया रे, दानना दाडम दाणा फोली आप्या खास, समता सिताफळनो, रस पीज्यो बहु राजीया रे, जुक्ति जामफळ प्यारा, आरोगोने पास. माता० ३. मारा नानडीयाने, चोखा चित्तना चूरमां रे, सुमति साकर उपर, भावशुं भेळु घृत; भक्ति भजीयां पीरस्या, पास कुमारने प्रेमशुं रे, अनुभव अथाणा, चाोंने राखो सरत. माता० ४. प्रभुने गुण गुजां, ने ज्ञान गुंदवडा पीरस्या रे, प्रेमना पेंडा जमज्यो, मान वधारण काज; जाणपणानी जलेबी, जमतां भागे भुखडी रे, दया दूधपाक अमीरस, आरोगोने आज. माता० ५. संतोष सीरोने वळी, पुन्यनी पुरी पीरसी रे, संवेग शाक भलां छे, दातार ढीली दाळ; मोटाइ मालपुवाने प्रभावनाना पूडला रे, विचार वडी वघारी जमज्यो. मारा लाल. माता० ६. रुची रायतां रुडा, पवित्र पापड पीरस्या रे, चतुराइ चोखा, ओशावी आण्या भरपूर; उपर इन्द्रीदमन दूध तप तापे तातु करी रे, प्रीते पीरस्युं, जमजो जगजीवन सहनूर. माता० ७. प्रीती पाणी पीधा, प्रभावतीना हाथथी रे, तत्व तंबोल लीधां, शीयल सोपारी साथ; अक्कल एलायची आपीने, माता मुख वदे रे, त्रिभुवन तारी तरज्यो, जगजीवन जगनाथ. माता० ८. प्रभुना थाल तणा जे, गुण गावे ने सांभळे रे, भेद भेदान्तर समजे, ज्ञानी ते कहेवाय; गुरु गुमान विजयनो, शिष्य कहे शीरनामीने रे, सदा सौभाग्यविजय थाए गावे गुण सदाय. माता० ६.
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__(51) पार्श्वनाथ जिन स्तवन आज रूडी रढीयाळी, तारी आंगीने जोइ मारी, आंखलडी ठरी ठरी जाय छे, आज रूटुं रूपाळु तारु मुखलढुं जोइ, मारूं हैयुं तारा चरणे झुकाय छे, ॥१॥ मुर्ति तारी जोइ मारू दिलडं लहेराय छे, अलबेली आंगी जोइ आनंद उभराय छे, भक्तिथी भवदुःख जाय छे रे, ॥२॥ पतित पावन तुं करूणानिधान छे, परम कृपळु दिनबंधु भगवान छे, दर्शनथी दुःखडा जाय छे रे ॥३॥ अधम उद्धारण ओ दिनानाथ छो, दयाधन देव प्रभु पारस नाथ छो, दिलकुं दयाथी उभराय छे रे, ॥४॥ नागने बचाव्यों ते बलती आगथी, आत्मशान्ति आपी तेने मंत्र नवकारथी, धरणेन्द्र थइने पूजाय छे रे, ॥५॥ शंखेश्वर पार्श्वनाथ भक्ति श्रद्धा आपजे, सेवकने तारा चरणोमां राखजे, करूणासिंधु तुं कहेवाय छे रे, ॥६॥
(52) पार्श्वनाथ जिन स्तवन शंखेश्वर साहिब आप बिराजो, वढियार देशमा, तरह तरहनां फुलो चढे छे, गुच्छातणो मरकाव रे, घातिकर्मो दूर करीने, उतर्या छो भवपार रे, शंखे० ॥१॥ रन जडेलो मस्तके मुगुट, कानमें कुंडल सार रे, झलहल झलके तुज मुद्रा, अधिको आनंद अपाय रे, शंखे० ॥२॥ अश्वसेन राजा के नंदन, वामाराणी मात रे, वाणारसी नगरी ते शोभावी, शोभा तणो नहि पार रे, शंखे० ॥३॥ नाग नागणी ते ज उगारी, कीर्तिनो नहि पार रे, तुज मुख जोतां आनंदकारी, हैये हर्ष अपार रे, शंखे० ॥४॥ रत्नविजय विबुधनो सेवक, मोहन विजय गुण गाय रे, सेवक उपर कृपा करीने, तारजो दिन दयाल रे, शंखे० ॥५॥
(53) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : शंखेश्वर पार्श्वतारी,)
तारा दर्शनथी भवदुःख जाय रे, भवि मन लागे प्यारी, केवी चमत्कारी ? तारा० ॥१॥ शंखेश्वरमां तूही बिराजे, महिमां तारो त्रिजगमाहि गाजे, आव्यो दर्शनने काजे, धन्य घडी धन्य आजे, तारा० ॥२॥ मूर्ति शोभे सुंदर पूराणी, दामोदर जिन वारे भराणी, (वी) केवी सुंदर लागे ? निरखतां भव दुःख भागे; तारा० ॥३॥ महा पुन्यो दये तुं मलीयो, मारा भवनो फेरो
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टलियो, हवे न छोड़े तारूं ध्यान, हे.. करूणा निधान, तारा० ॥४॥ काळ अनादि निगोदमां वसीयो, पुद्गलनां संगे हुं फसियो, हवे करतुं उध्धार, आतम तणा उध्धार, तारा० ॥५॥ विघ्न निवारण संकटचूरण, मनवांछित आशापूरण, बतलावो मुक्ति मिनारो, जावं छे भवने किनारे, तारा० ॥६॥ भवोभव तुमचरणोनी सेवा, हुं तो मांगु कुं देवाधिदेवा, तुं छे साचो मारोनाथ, शंखेश्वरा पार्श्वनाथ, तारा० ॥७॥ वामा उर सरोवर हंस,
अश्वसेन कुले अवतंस, दूरथी आव्यो तारी पास, पूरजो हर्षनी आस तारा दर्शनथी भवदुःख जाय रे० ॥८॥
(54) पार्श्वनाथ जिन स्तवन शंखेश्वर अलवेसर ताहरी, आश धरीने आव्या रे, सेवक सार हशे साहिबा, चिंतामणि मे पायो रे, ओळगडी अवधारो... ॥१॥ देव घणां में सेव्या पहेला, जिहां लगे तुं नवि मलियो, हवे भवांतर पण हुं तेहथी, किमहि न जाउं छळीयो रे ॥२॥ अतिशय ज्ञानादिक गुण ताहरो, दिसे छे प्रभु जेहवो, सुरज आगळ ग्रह गण दीसे, हरिहर दिपे ऐहवो.. ॥३॥ कलियुगे प्रगट तुज परचो, देखुं हुं विश्व मोझार, पुरिसादाणी पार्श्व जिनेश्वर, ब्राह्य ग्रहीने तारो.. ओ. ॥४॥ पुश्करावर्त घनाघन पामी, ओर छिल्लर नवि राचुं, कामकुंभ साचो पामीने, चित्त करे कोण? काचुं.. ओ. ॥५॥ जरा निवारी यादव केरी, सुर नरवर सहुँ पूज्यां, पार्थजी प्रत्यक्ष देखता दर्शन, पाप मेवासी ध्रुज्यां, ओ० ॥६॥ सो वाते एक वातडी जाणो, सेवक पार उतारो, पंडित उत्तमविजयनो सेवक, रनविजय जयकारा ओलगडी अवधारो जिनेश्वर ओळगडी अवधारो० ॥७॥
(55) पार्श्वनाथ जिन स्तवन मुख खोल जरा यह कह दे खरा, तुं नही मैं ओर नहीं, तु नाथ मेरा मैं हु जान तेरी, तुझे क्युं विसराई जान तेरी, जब करम कटे और भरम फटे, तुं ओर नही में ओर नहीं ।१ | तुं हे इश मेरा में हुं दास तेरा, मुझे क्युं न करो अब नाथ खरा, जब कुमति टरे, और सुमति वरै, तुं ओर नही में ओर नही ।२। तुं हे पास जरा में हुं पास परा, मुझे क्युं न छोडावो
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पास टरा, जब राग कटे ओर द्वेष मिटे, तुं ओर नहीं में ओर नही० ।३ । तुं हे अचलवरा में हुं चलनचरा, मुझे क्युं न बनावो आप सरा, जब होश झरे और संग टरे, तुं ओर० ।४। तुं हे भूपवरा, शंखेश खरा, मेंतो आतम राम आनंद भरा, तुम दरस करी सब भ्रान्ति हरी, तुं ओर० ।५।
(56) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : विनती अवधारेरे;)
वामा राणी जाया रे, सुर नर-मुनि भाया रे मुज मन आया हुआं, शुभ-वधामणा रे ।१। आरति सवि भांगी रे, तुमच्यु लय लागी रे, रूचि जागि धन पूरां आव्यां आपणा रे ।२। तुज संगे शोभागी रे, बहु शर्म विभागी रे, पशु भोग थयो धरणो धरो रे, ।३। आशातना कारी रे, दोषी महाभारी रे, द्वेष धारी असुर कमठ तर्यो रे ।४। श्री पार्थ जिणंदा रे, मुख पुनिम चंदा रे, परमानंदकारी ए प्रभु जाणीए रे ।५। तुज नाम संभारी रे, निज गुण विचारी रे, किर्ती ताहरी जग वखाणीए रे ।६। इम कहे लक्ष्मी वाचक प्रमाणीये रे ।७।
(57) पार्श्वनाथ जिन स्तवन नवखंडा हो पास, मनडु लोभावी बेठा आप उदास, तारे तो अनेक छे ने, मारे तो तुं एक; कामी क्रोधी देव जोई। काठी नांखी टेक..... नव० १ कोई देवी देवताना, झाली उभा हाथ, मोढे मांडी मोरली ने, नाचे राधा नाच ..... नव० २ जटा जुट शिर धारे, वळी चोळे राख, गमे तो गिरजाने राखे, जोगीपणुं खाख ..... नव० ३ पीर ने फकीर जोया, निरगुणी देव, काच तृण मणी गणी, आ तो खोटी टेव ..... नव० ४ देव देखी जुठडाने, आव्यो छु हजुर, गुण आपो आपना तो, कांति भरपूर ..... नव० ५
(1) श्री महावीर जिन स्तवन वीरजिनेश्वर साहिब मेरा, पार न लहुँ तेरा, महेर करी टालो महाराजजी; जन्म मरणना फेरा हो जिनजी, अब हुं शरणे आव्यो, ॥१।। गर्भावास तणां दुःख महोटां उंधे मस्तके रहियो; मल मूत्र मांहे लपटाणो, एहवां दुःख में सहियां०....हो जिनजी० ॥२॥ नरक निगोदमां उपन्यो में चवीयो, सूक्ष्म बादर थईयों; वींधांणो सुइने अग्र भागे, मान तिहां किहां रहियो०....हो
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जिनजी० ॥३॥ नरक तणी वेदना अति उलसी; सही ते जीवे बहु; परमाधामीने वश पडीयो, ते जाणो तमे सहु. हो जिनजी० ॥४॥ तिर्यंच तणा भव कीधा घणेरां, विवेक नहींय लगार; निश दिननो व्यवहार न जाण्यो, केम उतराये पार०....हो जिनजी० ॥५॥ देवतणी गति पुण्ये हुं पाम्यो, विषयारसमां लीनो; व्रत पच्चकखाण उदय नवि आव्या; तान मान मांहे तीनो०....हो जिनजी० ॥६॥ मनुष्य जन्म ने धर्म सामग्री, पाम्यो छु बहु पुण्ये, रागद्वेष मांहे बहु मलीयो, न टाली ममता बुद्धि०....हो जिनजी० ॥७|| एक कंचन ने बीजी कामिनी, तेहशुं मनईं बांध्यु, तेहना भोग लेवाने हुं शुरो; केम करी जिन धर्म साधु०....हो जिनजी० ॥८॥ मननी दोड कीधी अति झाजी, हुं छु कोक जड जेवो, कलिकलि कल्पमें जन्म गुमायो, पुनरपि पुनरपि तेहवो०....हो जिनजी० ॥६॥ गुरु उपदेशमां हुं नथी भीनो, न आवी सद्हणा स्वामी, हवे वडाई जोईए तमारी, खिजमत मांहे छे खामी०....हो जिनजी० ॥१०॥ चार गति मांहे रडवडीयो, तोए न सिध्यां काज! ऋषभ कहे तारो सेवकने, बाह्य ग्रह्यानी लाज०....हो जिनजी० ॥११॥
(2) श्री महावीर जिन स्तवन तेरो दरस मन भायो, चरम जिन. तेरो दरस मन भायो; तुं प्रभु करुणारसमय स्वामी, गर्भमें सोग मीटायो; त्रिशला माताको आनंद दिनो, ज्ञातनंदन जग गायो०....चरम० ॥१॥ वरसी दान दे रोरता वारी, संयम राज्य उपायो; दीन हीनता कबहु न तेरे, सच्चिद आनंद रायो०....चरम० ॥२॥ करुणा मंथर नयने निहाली, चंडकौशिक सुख दायो; आनंद रस भर सरगे पहुंतो, ऐसा को न करायो०....चरम० ॥३॥ रत्न कंबल द्विजवरको दिनो, गोशालक उधरायो; जमाली पन्नर भव अंते, महानंद पद ठायो०....चरम० ॥४॥ मत्सरी गौतमको गणधारी, शासन नायक ठायो, तेरे अवदात गिनुं जग के ते, तुं करुणा सिंधु कहायो;०....चरम० ।।५।। हुं बालक शरणागत तेरो कयुं मुजको विसरायो, तेरे विरहसे हुं दुःख पामुं, कर मुज आतम रायो०....चरम० ॥६॥
(3) श्री महावीर जिन स्तवन त्रिशलादे गोद खिलावे छे, त्रिशलादे. वीर जिणंद जगत कृपाला, तेरा
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ही दर्श सुहावे छे०... त्रिशला० ||१|| ओ मेरे व्हाला त्रिभुवन पाला, ठुमक ठुमक चल आवे छे..... त्रिशला ० ||२|| पारणे पोढ्यो त्रिभुवन नायक, फिर फिरके कंठ लगावे छे०.... त्रिशला० ||४|| आवो सखी मुज नंदन निरखो, जगत उद्योत करावे छे. आतम अनुभव रसके दाता, चरण शरण तुम भावे छे०.... त्रिशला० ॥५॥
( 4 ) श्री महावीर जिन स्तवन
मारा प्राण तणा
|| १ || माता त्रिशला नंद कुमार, जगतनो दीवो रे, आधार, वीर घणुं जीवो रे, आमलकी क्रीडाए रमतां, हार्यो सुरप्रभु पामी रे, सुणजो ते स्वामि अंतरजामी, वात कहुं शीर नामी रे, वीर घणुं जीव २० ॥२॥ सुधर्मा देवलोके रहेतां, अमे मिथ्यात्व भराणां रे; नागदेवनी पूजा करतां, शिर न धरी प्रभु आणा रे. माता० ||३|| एक दिन इन्द्रसभामां बेठा, सोहमपति एम बोले रे; धिरज बल त्रिभुवननुं आवे, त्रिशला बालक तोले २०.... माता० ||४|| साचुं साचुं सहु सुर बोल्या, पण में वात न मानी रे; फणीधर ने लघु बालक रुपे, रमत रमीयो छानी २०.... माता० ॥ ५॥ वर्धमान तुम धैर्य मोटुं; बलमांपण नहि काचुं रे०.... गिरुआना गुण गिरुआ गावे; हवे में जाण्यं साचुं रे..... माता० || ६ || एक ज मृष्टि प्रहारे महारुं मिथ्यात्व भाग्युं जाय रे; केवल प्रगट्ये मोहरायने, रहेवानुं नहि थाय रे.....माता० ||७|| आज थकीतुं साहिब मारो, हुं हुं सेवक तारो रे; क्षण एक स्वामी गुणन विसारुं, प्राण थकी तुं प्यारो रे..... माता० ||८|| मोह हरावे समकित पावे, ते सुर स्वर्ग सिधावे रे महावीर प्रभु नाम धरावे, इन्द्रसभा गुण गावे. २०....माता० ||६|| प्रभु मलपंता निज घेर आवे, सरिखा मित्रे सोहावे रे श्री शुभवीरनुं मुखडुं जोतां, माताजी सुख पावे रे०.... माता० ||१०||
(5) श्री महावीर जिन स्तवन
वीर वड धीर महावीर मोटो प्रभु, पेखतां पाप संताप नासे; जेहना नाम गुण धाम बहु मानथी; अविचल लील हैये उल्लासे ० .... वीर० ||१|| कर्म अरि जीपतो दीपतो वीर तुं, धीर परिषह सहे मेरुं तोले; सुर बल परखीयो, रमत करी निरखीयो, हरखीयों नाम महावीर बोले ०.... वीर०
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॥२॥ साप चंडकोशीयो, जे महारोषीयो, पोषीयो ते सुधा नयन पुरे; एवडा अवगुण शा प्रभु में कर्या ? ताहरा चरणथी राखे दुरे०....वीर० ॥३।। शूलपाणी सुरने प्रतिबोधियो, चंदना चित चिंता निवारी; महेर धरी घेर पहोता प्रभु जेहने, तेह पाम्या भव दुःख पारी०....वीर० ॥४॥ गौतमा दिकने जई प्रभु तारवा, वारवा यज्ञ मिथ्यात्व खोटो; तेह अगीआर परिवार
शुं बुझवी, रुझवी रोग अज्ञान मोटो०....वीर० ॥५॥ हवे प्रभु मुज भणी तुं त्रिभुवन धणी, दास अरदास सुणी सामु जोवे; आप पद आपतां, आपदा कापतां, ताहरे अंश ओर्छ न होवे;०....वीर० ॥६॥ गुरु गुणे राजता अधिक दिवाजता, छाजता जेह कलिकाल मांहे; श्री खिमाविजय पय सेव नित्यमेव लही, पामीये शमरस सुजस त्यांहि०....वीर० ॥७॥
(6) श्री महावीर जिन स्तवन प्रभु बिन वाणी कौन सुनावे ?....प्रभु० जब ये वीर गये शिवमंदिर, अब मेरा संशय कौण मिटावे०....प्रभु. ॥१॥ कहे गौतम गणधर तमहर ए, जिनवर दिनकर जावे रे जावे०....प्रभु०. ॥२।। कुमति उलूक कुतीर्थ किनारे, तिगतिताटतस थावे रे थावे०....प्रभु०. ॥३॥ तुम बिण चउविह संघ कमल वन, विकसित कोण करावे रे करावे०....प्रभु०. ॥४॥ मोकु साथ कयुं न चले ले, चित्त अपराध धरावे रे धरावे०....प्रभु०. ॥५॥ युं परभाव विचारी अपनो, भाव समभावमां लावे रे लावे०....प्रभु०. ॥६॥ वीर वीर लवतां वीर अक्षर अंतर तिमिर हरावे रे हटावे०....प्रभु० ॥७|| इन्द्रभूति अनुभव अनुभूति, ज्ञान विमल गुण पावे रे पावे०....प्रभु०. ॥८॥ सकल सुरासूर हरखित होवत जुहार करणकुं आवे रे आवे०....प्रभु०. ॥६॥
(7) श्री महावीर जिन स्तवन चोवीशमो श्री महावीर, साहिब साचो रे; रत्नत्रयी पात्र, हीरो जाचो रे. ॥१॥ आठ करमनो भार. कीधो दुरे रे; शिववधू सुंदर नार, थई हजूरे रे. ॥२॥ तुमे सार्या आतम काज, दुःख निवार्यां रे; पहोता अविचल ठाम, जिहां नहि फेरारे. ॥३॥ जिहां नहि जन्म मरण, थया अविनाशी रे; आतम
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सत्ताजेह, तेह प्रकाशी रे. ॥४॥ थया निरंजन नाथ, मोहने चूरी रे; छोडी भवभय कूप, गति निवारी रे. ॥५॥ अतुल बल अरिहंत, क्रोध ने छेदी रे; फरसी गुणनां ठाण, थया अवेदी रे. ॥६।। एहवा प्रभुनुं ध्यान, भवियण करीए रे; करीये आतम काज, सिद्धि वरीए रे. ॥७॥ सेवो थई सावधान, आळस मोडी रे; निद्रा विकथा दूर, माया छोडी रे. ॥८॥ मृगपति लंछन पाय, सोवन काया रे; सिद्धारथ कुल आय, त्रिशलाए जाया रे. ॥६॥ बहोतेर वरस, आय, पूरण पाळी रे; उद्धरीया जीव अनेक, मिथ्यात्व टाळी रे. ॥१०॥ जिन उत्तम पद सेव, करतां सारी रे; रतन लहे गुणमाळ, अति मनोहारि रे ॥११॥
(8) श्री महावीर जिन स्तवन रुडी ने रढीयाळी रे, वीर तारी देशना रे; ए तो भली जोजनमां संभळाय, समकित बीज आरोपण थाय०....रुडी० ॥१॥ षट् महिनानी रे भूख तरस शमे रे, साकर द्राख ते हारी जाय; कुमति जनना मद मोडाय. रुडी०. ॥२॥ चार निक्षेपे रे सात नये करी रे, माहे भली सप्तभंगी बनाय; निज निज भाषाए सहु समजाय. रुडी०. ॥३॥ प्रभुजीने ध्यातां रे शिव पदवी लहेरे, आतम ऋद्धिनो भोक्ता थाय; ज्ञानमां लोकालोक समाय. रुडी०. ॥४॥ प्रभुजी सरखी हो देशनाको नहि रे, एम सहु जिन उत्तम गुण गाय; प्रभु पद पद्मने नित्य नित्य ध्याय. रुडी०. ॥५॥
(9) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : आंखडी मारी प्रभु)
करुणा सागर जीव जीवन प्रभु वीरजी, अनंत गुणना धारक प्राण आधारजो, मुजने :मुकी भव अटवीमा एकलो, आप सिद्धाव्या मुक्तिपुरीमां नाथजो क० ॥१॥ सिद्ध बुद्ध अविनाशी पदना भोगी छो, हुं पामर छु मोह जाळमां लीन जो; शरणे आव्यो नाथ निहाळो बापजी, तार तार हे तारक देव दयाळ जो. करुणा० ॥२॥ समवसरणमां बेसी अमीरस वाणी थी, ज्यारे प्रभुजी करता भवि उपकारजो; ते वेळां हुं भाग्य विहुंणो कइ गति, जेथी न पाम्यो भवसायरनो अंतजो. करुणा० ॥३॥ ज्ञान अनंतु सुख अनंतु ताहरे, क्षायिक भावे वर्ते छे तुज गुण जो; पण हुं पापी रमण करु परभावमां, तो
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केम पामुं स्वरुप रमण- सुख जो. करुणा० ॥४॥ सिद्धारथ कुल चरम श्री महावीरजी, त्रिशला नंदन त्रिजग वंदन नाथजो; मन मंदिरमां आवो प्यारा वीरजी, आप विना सुनाछे आ दरबार जो, करुणा० ॥५॥ अनेक जीवने तार्या तुमे करुणा निधि, तो शुं मुजने भूली जशो भगवंत जो, मन मोहन मुद्रा जोवा तलशे ताहरी, उदय रल कहे दियो दरिशण प्रभु आजजो, करुणा० ॥६॥
(10) श्री महावीर जिन स्तवन आव आव रे मारा मनडामां हे तुं छे प्यारो रे....हां तुं छे प्यारो रे, हरिहरादिक देव तुंही, तुं छे न्यारो रे....आव० ॥१॥ अहो महावीर गंभीर तुं तो नाथ माहरो रे. हुं नमुं तने गमे मने साथ ताहरो रे....आव आव रे० ॥२॥ ग्राही सही रे मीठडा हाथ माहरा वैरी वारो रे, द्यो द्यो रे दर्शन देव मने धोने लारो रे....आव आव रे० ॥३॥ तुं ही विना त्रिलोकमें केहनो नथी चारो रे, संसार पारा वारनो स्वामी आपनो आरो रे....आव आव रे० ॥४॥ उदयरल प्रभु जगमें जोतां तुं छे तारो रे, तार तारने मुने तार तुं संसार खारो रे....आव आव रे० ॥५॥
(11) श्री महावीर जिन स्तवन नव कनक कमल पगला धरतां, वळी चोत्रीस अतिशय अनुसरता, सवि जीव उपर करुणा करता, सखी वीरजिणंद महावीर जिणंद, सखीवीर जिणंद पावापुरी, उद्यानमां आवी समोसर्या,....सखी. वी० ॥१॥ मणी रजत कनक वडे भारी, करी समवसरण शोभा सारी, मव्यां सुरनर पति सेवा कारी,....सखी. वी० ॥२॥ देव वाजींत्र गगने गाजे छे, सुणी कुमति कदागह लाजे छे. प्रभुजीनी ठकुराई छाजे छे,....सखी वीर० ॥३॥ इन्द्रादिक पमुहा आवे छे. सर्वज्ञर्नु बिरुद धरावे छे, जिन वीरना नाद मचावे छे....सखी....वीर० ॥४॥ सुणी वेद अर्थ मद गळीया छे, जीवादिक संसय टळीया छे, जिन चरणे मनडां मळीया छे....सखी....वीर० ॥५॥ दीक्षा प्रभु हाथे लीधी छे, त्रिपदी जिनराजे दीधी छे, अंग बारनी रचना कीधी छे....सखी वीर० ॥६॥ करी चूरणावास भरी रंगे, भरी थाळ रह्यो जिनने
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संगे जिनचरण धरी सिर ठवे उछरंगे....सखी वीर० ॥७॥ सुर नरनारी मंगल भणी, करे गहुंली भावना भक्ति आणी, जिनराज वधावे गुण खाणी....सखी वीर० ॥८॥ प्रभु पद पंकजं नमी भारे, पलमां आगम वाणी ध्यावे, निज रुप विजय संपत्ति पावे....सखी वीर० ॥६॥
(12) श्री महावीर जिन स्तवन __वीरजो सुणो एक विनंती मोरी, वात विचारो तुमे धणी रे, वीर मने तारो महावीर मने तारो, भवजल पार उतारोने रे,....परिभ्रमण में अनंता रे किधां, हजु एन आव्यो छेडलो रे, तुमे तो थया प्रभु सिद्ध निरंजन, अमे तो अनंता भव भम्या रे वीर० ॥१॥ तमे अमे वार अनंती रे वेळा रमीया संसारी पणे रे, तेह प्रीत जो पूरण पाळो, तो अमने तम समकरो रे वीर० ॥२।। तुम सम अमने जोग न जाणो, तो कांइ थोडं दीजी ए रे, भवो भव तुम चरणोनी सेवा, पामी अमे घj रीझीये रे वीर० ॥३॥ इन्द्रजालीओ कहेतो रे आव्यो गणधर पद तेहने दीओ रे, अर्जुन माली जे धोर पापी, तेहने जिन तुमे उधर्यो रे वीर० ॥४॥ चंदनबाला ए अडदना बाकुला, पडिलाभ्या तुमने प्रभु रे, तेहने साहुणी साची रे कीधी, शिव वहु साथे मेलवी रे वीर० ॥५॥ चरणे चंड कोशीयो डशीओ, कल्प आठमे ते गयो रे. गुण तो तमारा प्रभु मुखथी सुणीने, आवी तुम सन्मुख रह्यो रे वीर० ॥६॥ निरंजन प्रभु नाम धरावो तो सहुने सरखा गणो रे, भेदभाव प्रभु दुर करीने, मुजशुं रमो एक मेकशुं रे वीर० ॥७॥ वेला मोडा प्रभु तुमहीज तारक हवे विलंब शा कारणे रे, ज्ञान तणा भवना पाप मिटावो, वारी जाउं वीर तारा वारणे रे वीर० ॥८॥
(13) श्री महावीर जिन स्तवन त्रिशला नंदन वंदिये रे, लहीए आनंद कंद, समवसरणे बिराजतां रे, सेवित सुरनर वृंद. मनोहर झुमखडु,....झुमखडं विर तणे दरबार, झुमखडा झुमी रह्या रे....वीरतणे....महावीर तणे दरबार, ॥१॥ जोजन वायु वृष्टि करे रे, फुल भरे जानुमान, मणी रयणे भूतल रचे रे, व्यंतरना राजन मनो० ॥२॥ कनक कोसीसा रुपा गढे रे, रचे भुवन पति इश, रतन कनक गढ ज्योतीषी
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रे, मणिरतने सुर इश, म० ॥३॥ भीती पृथुल तेत्रीश धनु रे, एक कर अंगुल आठ, वृते तेरशे धनु अंतरु रे, उची पणसे धनु ठाठ. मन० ॥४॥ पावडीयारा सहस दशरे, पंच पंच परिमाण, एक कर पीठ उच्च पणे रे, प्रत्तर पचास धनुमान. मन० ॥५॥ चउबारा त्रण तोरणा रे, नील रतनमय रंग, मध्य मणिमय पीठीकारे, भूमीथी अढी गाउं तुंग. मन० ॥६।। दीर्ध पृथुल बसे धनुं रे, जिन तनु माने उंच, चैत्य सहित अशोक तरु रे, जिनथी बार गुणे उंच मन० ॥७॥ चउदिशी चउ सिंहासने रे, आठ चामर छत्रबार, धर्मचक्र स्फटिक रत्ननुं रे, सहस्र जोजन ध्वज चार. मन० ॥८॥ देव छंदो इशान खूणे रे, प्रभुने विसामा नु ठाम; चउ मुखे दीये देशनारे, भामंडल अभीराम. मन० ॥६॥ मुनि वैमानिक साध्वी रे, रहे अग्नि खूण मोझार; ज्योतिषी भुवनपति व्यंतरारे, नैरुत्य खूणे तसनार. मन० ॥१०॥ वायु खूणे रही देवतारे, सुणे जिनवरनी वाणी, वैमानिक श्रावक श्राविका रे, रहे इशान खूणे सुजाण. मन० ॥११॥ चिहुं देवीने साधवी रे, उभी सुणे उपदेश, तिर्यंच सहु बीजे गढेरे, त्रीजे वाहन विशेष. मन० ॥१२॥ वृताकारे चिहुं वावडी रे, चउरंसी आठ तनु वाव, प्रथम पंदरशे धनु आंतरुं रे बीजे सहस धनु भाव मन० ॥१३॥ रयण भींत गढ आंतरु रे, वृते धनु शत छवीस; चउरंसे त्रणसे धनु रे, इम साख दीए जगदीश. मन० ॥१४॥ तुंबरु प्रमुख तिहां पोलीयारे, धुप घटी ठामो ठाम; द्वारे मंगल पूतलीरे, दुंदुभी वाजे ताम. मन० ॥१५॥ दिव्य ध्वनी समझे सहुरे, मीठी योजन विस्तार; सुणतां समता सहुं जीवने रे, नहि विरोध लगार मन० ॥१६॥ चउतीश अतिशय विराजतारे दोष रहित भगवंत; श्री जय विजय गुरु शिष्यनो रे, जिन पद सेवा खंत. मन० ॥१७।।
(14) श्री महावीर- जिन स्तवन सरसती माता ! रे, मति दियो निरमली, मांगु एक पसाय; श्री महावीरे जे जे तप कर्या, भालुं ते सुखदाय. वळी वळी वंदु रे वीरजी सोहामणा, श्री जिनशासन सार. ॥१॥ भावठ भजन सुखकारण सही, समर्या संपत्ति थाय; नाम लिये तारे नवनिधि संपजे, पातिक दुर पलाय०....वळी० ॥२॥ बार वरस लगे वीरजीए तप कर्यो, उपर तेर ज पाख; बे कर जोडी रे स्वामीने, विनवू, आगम दे छे रे साख०....वळी० ॥३॥ नव चोमासी रे, प्रभुजीनी
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जाणवी, एक को खट मास; पणदिन उणो रे खट एक धारिये बारे एकेके मास०....वळी०.॥४।। बहोतेर पासखमण जग दीपता, छ दोय मासी वखाण; त्रण अढी मासी रे ए दोय दोय करी, दो दोढ मासी रे जाण०....वळी०.॥५॥ भद्र महाभद्र सर्वतोभद्र ए, दो चउ दश दिन होय; एहमां पारणुं प्रभुए नवि कर्यु, एम सोले दिन जोय०....वळी०. ॥६॥ त्रण उपवास रे पडिमा बारमी, कीधी बार ज़ वार; दोसो बेलारे उपर जाणिये,
ओगणत्रीस उदार०....वळी०. १७॥ नित्य नित्य भोजन वीरजी ए नवि कर्यु, नवि को चोथ आहार; थोडा तपमां रे बेलो जाणिये, तप सघळो चोविहार०....वळी०. ॥८॥ देव मनुष्य तिर्यंचे जे कर्यां, परीसह सहयां अपार; बे घडी उपर नींद नवि करी, साडा बार वरस मोझार०....वळी०. ॥६॥ त्रणसो पारण दिवस वखाणिये, उपर ओगणपचास; अनुक्रमे स्वामी रे केवल पामिया, थाप्युं तीरथ सार०....वळी०. ॥१०॥
(15) श्री महावीर जिन स्तवन सुत सिद्धारथ सुत कंदोरे, वीर जिणंदा, भवि चातक चित्तहर चंदारे, त्रिशलाना नंदा प्रभुजी मारा, दशमा देवलोकथी चवीया, क्षत्रीय कुल अवतरीयां रे वीर० ॥१॥ मोहनजी मारा, मातानी भक्तिमां रातां, नंदिवर्धन छे भ्राता रे त्रि० ॥ वीरजिणंदा ॥२॥ बालुडा प्रभुजी, बालपणे बलवंता, जगजीवनजी जयवंतारे । वीर० ॥३॥ प्रीतम प्रभुजी प्यारा, परण्यां यशोदानारी, ते पुण्य पतिव्रतधारी रे । वीर० ।।४।। वैरागी वहाला, त्रीश वरसे थया त्यागी, पण शिवरमणीना रागीरे, ।। वीर० ॥५॥ त्रिभुवन तारक, तप तपीया बहु भारी, पण तुं ही रत्न कुख धारी रे, वीर० ॥६॥ शरणे हुं आव्यो, सहाय लेवाने तुमारी, स्वीकारो अरजी अमारी रे, ।। वीर० ||७|| लटकाला लटके, चंदनबालाने तारी, तारा मुखडा उपर जाऊ वारीरे, ॥ वीर० ।।८।। केवल गुणवंता केवलज्ञानने पामी, थयां शिवरमणीना स्वामीरे, ।। वीर० ||६|| महावीर प्रभु प्यारा, ह्रदय कमलमांही रहेजो, शुभवीरने अमरपद देजो रे, । वीर० ॥१०॥
(16) श्री महावीर जिन स्तवन वीर तमारी मूर्ति मंगलकारी, मंगलकारीने आनंदकारी, हेमवर्ण तनुं
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तेज सोहे, जोतां सुरनरना मनमोहे, मुखडो तमारो प्रभु शरदनो चंद । वीर० ॥१॥ कमल सुगंधी श्वासमनोहर, चौत्रीश अतिशय मशहुर, वाणी पांत्रीश गुणे भरपुर । वीर० ॥२॥ बालपणामां तमे रमत रमतां, काढ्यो सुरने मुष्टिए हणतां, एवा अनंतबली तुमे धीरवीर ॥ वीर० ॥३॥ यौवनवय तमे यशोदाने परण्यां, भोगने रोग करी समजाण्यां, अंतर तमाएं प्रभु निर्विकारी ॥ वीर० ॥४॥ संयमलेइ तमे घोर तप तपीया, उपसर्गो गोशालाना सहियां, कर्म खपावी बन्यां वितरागी । वीर० ॥५॥ केवल लइ बेठा समवसरणमां, भव्यजीवोने तार्यां क्षणमां, इंद्रभूतिने दीधं गणधर पद ।। वीर० ॥६॥ घोर पापी हतो अर्जूनमाली, चंडकौशीक जेवां दीधां तमे तारी, करुणाना सागर गजब दातारी ॥ वीर० ॥७॥ भवो भवमांगुं तुम चरणोनी सेवा, कृपाकरी आपो देवाधिदेवा, जेथी टले भवभ्रमणना फेरां ।। वीर० ॥८॥ जेम बधाने तार्यां तेम मने तारो, सेवकनां गुनाने वारो, शुभविजयनमे पाय पडीने ॥ वीर० ॥६।।
(17) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : नगर नगरे)
जीवननां महासागरमां एवू, पापर्नु आव्युं पुररे ॥ महावीर ताहरा मारगथी अमे लाखो योजन रयां दूररे ॥१॥ सिद्धना शिखरे स्थान ताहरुंने, क्यांये अमारी तलेटी रे ॥ क्यां तुं दयासागरने अमे, सागरना जलबिंदुरे ।। सूरजना ए तेजपासे पेला, तारलीयानुं शुं नूररे । महा० ॥२॥ संकटने उपसर्गो सामे, केवी समता ताहरीरे ॥ मोहमायामां रमतां रमतां, करतां मारामारी रे ॥ तुं वीतरागी अमे रंगरागी, विलासमां चकचूररे ।। महा० ॥३।। निर्मल गंगा जेवी तारी, पावनकारी वाणीरे ॥ काळाधोळा कुकर्मोथी, काळी करी में कमाणीरे ॥ क्यां तु करुणा सागरने अमे, काजळथी निष्ठुररे ॥ महाद ॥४॥ ताहरीने अमारी वच्चे, अंतर आवडुं मोठं रे । तो पण तुजने निशदिन भजीये, शरणुं तारुं साचुं रे ॥ तोपण आ उदयरत्न तमने, जंखे छे निशदिन रे ॥ महा० तारा० ॥५॥
(18) श्री महावीर जिन स्तवन ___ वीर प्रभुनुं ध्यान धरूं, वीरना चरणोमां वंदन करूं, वीरे बताव्यो मारग साचो, वीरछे तारणहारा, वीरनो महीमा अनुपम जगमां, वीर छे
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जगदाधारा, वीरने आतम अर्पण करूं ॥वीरना० ॥१॥ अर्जुनमाली शेठसुदर्शन, तारी चंदनबाला, आनंदने प्रभु शरणुं आव्यु, सौना प्रभु रखवाला, वीरना नामर्नु रटण करुं ॥वीरना० ॥२॥ संगमदेवे प्रभुने सताव्यां, प्रभुए समताधारी, भय भैरवमां प्रभुजीनिर्मल, कर्मसत्ता पणहारी, वीरनी वाणी- पान करुं ॥वीरना० ॥३॥ दर्शन जेनुं दुःख हरनारुं, गुणसागर जिनदेवा, आनंदमंगल दाता प्रभुजी, मलजो भवोभव सेवा, वीरनुं एकज नाम खलं ॥वीरना० ॥४॥ वीरजिनेश्वरराया निराला, श्री गौतमगुरु प्यारा, श्रीहीरविजय गुरुशासन नायक, अक्षयपद अविकारा, अंतर आतम भाव धरूं ॥वीरना० ॥५॥ (19) श्री महावीर जिन स्तवन (दिवाली-) (राग : बेना...रे)
महावीरस्वामी प्रभु मोटकाजो, जगमां जय जिनराजजो, हस्तिपाल रायनी विनंतीजो, धारी पावापुरी आयजो, दिन दिवालीनो दीपतो ॥१।। चरम चौमाशुं महावीरजो, रह्यां पावापुरी मांडजो, दर्शन करवाने कारणेजो, सुरनर आवेने जायजो ॥२॥ देश अढारना राजीयाजो, लगतां पोषध दोय ठायजो, वीरवाणी वरसावतांजो, पहोर सोले सुखदायजो ॥३।। आसोवद अमावसनीजो, सांजे गौतम गणधारजो, देवशर्माने प्रतिबोधवांजो, मोकल्या वीर तेणीवारजो ॥४॥ वीरनुं निर्वाण जाणीनेजो, आव्यां चौशठ इन्द्रजो, रातमां दिन रचना रचीजो, जुवे नरनारीनां वृंदजो ॥५॥ कनेरी गोखने गोखलेजो, श्रेणीदीप समानजो, रत्नो विविध रंगनाजो, ठाम ठाम देवीना गानजो ॥६॥ ते दीन दिप मालिकाजो, पडयुं जगमांही नामजो, ते दिन अणसण पालीनेजो, पहोंच्यां शिवपुर ठामजो ॥७॥ गौतम गयां ते रात्रीमांजो, वीर पाम्यां निर्वाणजो, प्रातःकाले तव आवीयाजो, देखी मूछार्णा जाणजो ॥८॥ वीर वजीर एम विनवेजो, सामु जुवो एकवारजो, देवशर्माने में बूजव्याजो, आप आणा निरधारजो ॥६॥ मौनधारी महावीर प्रभुजों, केम बेठां आवारजो, रीसाणा शुं अपराधथीजो, सेवक मूक्यो विसारजो ॥१०।। मुखडं जोइ प्रभु तुम तणुंजो, झुरे सहु परिवारजो, हसी बोलावोरे वालहाजो, पामे हर्ष अपारजो ॥११॥ दुःख घणां जगजाणीयेजो, वीर समो नहि कोईजो, वीरना वजीर सरीखांजो, चीवर भीजाये रोयजो ॥१२॥ शंसय
दिन मणसण
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हवे कोण छेदशेजो, दहाडा दोहिला जायजो, वीतराग भावने भावतांजो, निज आतमनी मायजो ॥१४॥ चढीयां गौतम ध्यानमांजो, पाम्यां केवलज्ञानजो, देह दहन करी वीर-जो, पहोंच्या देव विमानजो ॥१५॥ उत्तम दिन छे आजनोजो, करो ज्ञान दिवायजो, अलस आलश काढीनेजो, पौषध करवां सदायजो ॥१६॥ वीर वजीर दीपमालीकाजो, गातां पुरेमन कोटजो, हीरविजय गुरु हीरलोजो, लब्धिविजय कहे करजोडजो ॥१७।।
(29) श्री महावीर जिन स्तवन चालोने प्रीतमजी प्यारा, वीर वंदन जइयेरे, ॥ वीरवंदन जइयेरे व्हालावीरवंदन जइयेरे, ॥१॥ बार वरस दुष्करतपतपीयां, सकल कर्मने वारीरे ॥ वैशाख सुदी दशमी दहाडे, आपदशाभाली, ॥ चालोने० ॥२॥ केवलज्ञानने केवलदर्शन, तेरमें गुणठाणे, ॥ गुण अनंता प्रगट्यां प्रभुने, भूतभविष्य जाणे, ॥ चालोने० ॥३॥ मुंभीक गामथी बार योजनपर, गणधरनो छे ठाम, ॥ रातोरात प्रभुजी पधार्यां, महसेन वननाम, ॥ चालोने० ॥४॥ माधवसित एकादशी दिवसे, सुरपति अति हरखे, ।। समवसरणनी रचना कीधी, प्रभु अमृत वरसे, ॥ चालोने० ॥५॥ आठ देवने चार मानवनी, पर्षदाएबारे; ॥ निजनिज भाषाए सहु समजे, प्रभुगुण दिलधारे ॥ चालोने० ॥६॥ वृक्ष अशोकनी छांया गहेरी, सिंहासन राजे, ॥ देवतणां तिहांवाजा वागे, भामंडल छाजे, ॥ चालोने० ॥७॥ शिखर हाथदीये जब प्रभुजी, करुणारस भावे, ॥ गणधर पूरवधर लब्धि, प्रगटे शुभदावे, । चालोने० ॥८॥ त्रीश वरस लगे केवल पामी, जग जन उद्धरिया ॥ दीपविजय कविराज प्रभुजी, अविचल पदवरिया ।। चालोने० ।।६।। (21) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : मथुरामा खेल खेली)
वीरतारी जाउं बलिहारी, हो नाथ जग उपकारी ॥ संयम लेइ परिषह बहू सहीया, बार वरसतपकारी ॥ हो नाथ जग उपकारी ॥१॥ अपराधी प्राणी पण ऊधार्यां, अनुकंपा उरधारी ॥ हो नाथ० ॥२॥ चंडकौशीयो डसीयो तुज चरणे, क्रोधातुर भयकारी ॥ हो नाथ० ॥३॥ आत्म अजराअभय तस आप्यु, शिखामण देइ सारी, ॥ हो नाथ० ॥४॥ द्रोही गौशाले
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दुःखबहु दीधां, गालो भांडी तने भारी ।। हो नाथ० ॥५॥ अंते हितोपदेश आपीने तेहने, कीधो अल्प संसारी ॥ हो नाथ० ॥६॥ जमालीजे तुज साथे झगड्यो, अलिकं वचन उच्चारी ॥ हो नाथ० ॥७।। पंदरभवमां तेने पण कीधो, प्रभु अमृतपद अविकारी ॥ हो नाथ० ।।८, इंद्र जालीयो कहेतो जे आव्यो, इंद्रभूति अहंकारी । हो नाथ० ॥६॥ तेने पोतानो वजीर बनाव्यो, धुर गणधर पदधारी । हो नाथ० ॥१०॥ पापी अर्जूनमाली प्रमुखने, आपे दीधां उगारी ।। हो नाथ० ॥११॥ मार्गेस्थिर कर्यो मेघकुमारने, पूर्व भव संभारी ।। हो नाथ० ॥१२॥ अडदना बाकुलाने लेइ अरिहा, चंदनबालाने तें तारी ॥ हो नाथ० ॥१३॥ जिन माणेक हवे तारी मुजने, करम-भरम संहारी ॥ हो नाथ० ॥१४॥
(22) श्री महावीर जिन स्तवन (आनंद मंगल गावो)
सौ चालो भविजन जईये, महावीर भेटी लहीये, पावापुरी मुक्तिनुं रुडु स्थान छे ॥१॥ श्रीवीर प्रभुना पगलां, अष्टकर्मथी अलगां, मगधदेशे, शुद्ध भूमिर्नु विश्राम छे, ॥२॥ तिहां हस्तिपाल राजा, सुरलोके गुण अवाजा, मनमां समरे, महावीर केरां नामने ॥३॥ कुरकुनकनी जीरणशाला, सुंदर गुणोनी ते माला, शुद्ध प्रदेशे मुक्तिवरवानु, रुडुमान छे ॥४॥ मंदु संवत्सर आवे, कार्तिकमास मनमां लावे, अमावास्या, रात्रीमां शुक्लध्यान छे, ॥५॥ अढार देशना राजा, न मूके विवेकके माजां, मोक्षसमये, पौषह करे शुभ भावथी, ॥६॥ साधु चौदहजार, वली गणधर छे अगीयार, गौतम मोटां श्री वीरतणो परिवार छे, ॥७॥ साध्वी छत्रीश हजार, गुणोनोओ अवतार, चंदनबाला, श्रीवीरतणो परिवार छे, ॥८॥ ओगणसाठ हजार, एकलाख उपरसार, शतक श्रावक, श्री वीरतणो परिवार छे, ॥६॥ त्रणलाख श्राविकासारी, अढार हजार मनमां धारी, रेवती मोटी, श्रीवीरतणो परिवार छे, ॥१०॥ चुमालीशसौ ब्राह्मणना, इंद्रभूति स्वामी जेना, वीर उपदेशे, यज्ञने छोडे जाणीपापने ॥११॥ अपापापुरी कहावे, वीर प्रभुजी मुक्ति जावे, पावापुरी, भक्तों बोले एवानामने ॥१२॥ पद्मासने बेठावीर, देशना आपे, गंभीर, सोलपहोर भावे, वस्तु स्वभावने, ॥१३॥ पंचावन पुण्यकेरां पंचावन पापनांकेरां, फल प्रकाशे, उतराध्ययन प्रकाशतां ॥१४॥ देव
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मानवमलीयां, गौतम स्वामीजी चलीयां, प्रभु आदेशे, देवशर्माने प्रतिबोधवा, ।।१५।। पाछा आवतां गौतमस्वामी, सुणे वीर थया निर्वाणी, शोक समुद्रे, गौतम डूब्यां प्रभु प्रेमथी, ॥१६॥ रण- स्वरूपधारे, वीतराग दशा विचारे, उगते सूर्य, पामेते केवलज्ञानने, ॥१७॥ वीरमोक्ष गौतमकेवल, पावापुरी दीपे देवल, भाव दिवाली, लोको करे शुभ भावथी, ॥१८॥ छ? तपकर्या अंते, मोक्ष लीधुं शादी अनंते, मंगलकारी, शासननो जयजयकार छे, ॥१६॥ महावीर प्रभुनी वाणी, ए तो स्वर्गनी निशरणी, मुक्तिमार्गे जवानी, सिद्धि सडक छे ॥२०।। ओगणीशोने त्राणुं, आसो मासने प्रमाणो, दिवाली दिन गायां, महावीर केरां गुण गीतने ॥२१॥ मुनिराम विजयजी गावे, भक्तिभाव मनमां लावे, वीरना गुणो, गावाथी जयजयकार छे, ॥२२॥ (23) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : चार दिवसनां चांदरडा)
महावीरस्वामी रे, विनंती सांभलो, हुं छु दुःखीयो अपार, भवोभव भटक्योरे, वेदना बहु सही, चऊगतिमा बहुवार, ॥१॥ जन्म मरण-रे दुःख निवारवा, आव्यो हुं आप हजूर, सम्यग् दर्शनरे, जो मुजने दीयो, तो लहुँ सुख भरपुर, ॥२॥ रखडी रझलीरे, हुं अहीं आवीयो, साचो जाणी तुं एक, मुज पापीने रे प्रभुजी तारजो, तार्यां जेम अनेक ॥३॥ ना नहि कहीजोरे, मुजने साहिबा, हुं छु पामर रांक, आप कृपालुरे, खास दयाकरी, माफ करो मुज वांक, ॥४॥ भूल अनंतीरे, वार आवी हशे, माफ करो महाराज, श्री उदयरत्नरे लली लली विनवे, ब्राह्य ग्रहो राखी लाज, || महावीर० ।।५।।
(24) श्री महावीर स्वामीजीनो थाळ (स्तवन) । माता त्रिशला बोलावे, जमवा कारणे, तमे चालो प्रभु प्यारावीरजिणंद, तमारा पितातो उभा छे वाट निहालतां रे, भोजन टाढां होवे, आवो परमानंद० ॥१॥ प्रभुजी आमलकी क्रिडा करवाने निकल्यां, माता उभी जुवे वीर कुंवरनी वाट, सखीयो त्रिशलाने तो ओलंभा देई रही रे, तुमे वेगे चालो, त्रण भुवनना नाथ ॥२॥ प्रभुजीए मुष्टिबले पटकीने पछाडीयोरे, भोरिंग खेंची नांख्यो रमण भूमीनी बार, प्रभुजीए देवना पिचाशनुं रुप बनावीयुं, प्रभुजीने खंधे लेई आकाशे ऊडी जाय ॥३॥ प्रभुजी नांहि धोई
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माताजी पासे आवीयां, बेठां सिद्धार्थराजाना खोळामांय, पछी खोळेलेइ माताए हुलरावीयारे, मुखडुं जोईजोई आनंदआनंद थाय ॥४॥ माताए सुमतीशुं बाजोठ बिछावीयारे, तेनी उपर वळी थाळ दीवा धरवाय, विवेक वाटकीयो राखी दीधी ते उपरे रे, तमे बेशो बेशो त्रण भुवनना नाथ, ।।५।। आजे अमे लब्धि लाडू मंगावीयारे, वळी पुण्यतणां पेंडा प्रमाण, जुवो आव्या पापना पापड चुरमारे, तुमे जमो जमो श्री जगना नाथ ॥६॥ शियळ व्रतनी शेरडी मंगावीनेरे, महासंतोष सीताफल जायफल, नम्रता नारंगी जिमो बहु प्रेमशुं रे, वळी दाडम केरी कळीयो सुजाण ॥७|| जिहां मुक्तिकेरा मगज मंगावीया, माता त्रिशला पीरसे तुमारे काज, ए तो ज्ञाननां गुलाबजांबू जाणीयारे, त्रिभुवन तारी तरजो जगजीवन जगनाथ ॥८॥ संतोष शीरोने वळीपुण्यनी पुरी पीरसी रे, भक्ति भजीयां पीरस्यां महावीरने काज, वळी तपस्या केरो दुधपाक जाणीयोरे, एनो अमे कंसार कीधो दूर ॥६॥ व्रतनी वेढमीने प्रभावनाना पुडलां रे, तमे जमोजमो आतम भरपुर, एतो सोनानी भरी जल निर्मलोरे, त्रिशलाराणी उभी हाजर लइ आवे ॥१०॥ प्रभु पीओ पीओ गंगाजल निर्मलारे, सुखसेजा जग जीवोनानाथ, बीडा पान सोपारी एलायची, लवींगडाने, विनय वरीयाली आपी खाश ॥११॥ इणी पेरे थाळ गायो माता त्रिशला सुतनो रे, जे कोइ गावे सुणे तेने होजो मंगलमाल, गुरु रलविजय गुण गाया गवरावीया रे, वीर पुत्रनी शोभा जुओ अपरंपार, ते तो भवसागरथी उतरशे पार, ॥१२॥ (25) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : सिद्धाचलना वासी)
हे करुणानासागर, हे समता सागर, वीरमारा, कोटि कोटि हो वंदन मारा, उपसर्ग कीधो गोवाले, तोयनेह नजरथी निहाले, कर्यो रोश ना लेश, लवलेश ना द्वेष, वीरमारा, कोटि कोटि हो वंदना मारा ॥१॥ चंडकौशीये पगेडंख दीधो, तोये रोश लगीरे न कीधो, बूझबूझ कही, तार्यो तेने सही । वीर० ॥२॥ कर्यां संगमे उपसर्ग वीश, पण मनमां जरीय न रीश, केवा समताधारी, तार्यां नरने नारी ।। वीर० ॥३॥ अर्जूनमालीने द्रढ प्रहारी, क्रूर हिंसक दीधा तारी, दया दिलमां धारी, केई दीधांतारी ॥ वीर० ॥४॥ लेई बाकुला मोक्षज आप्युं, दुःख चंदनबालानु काप्युं, कर्यो जगनो उद्धार, क्षमा
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रसना भंडार ॥ वीर मारा० ॥५॥ साडाबार वर्ष तप कीधो, सही उपसर्ग केवल लीधो, मारा हैयाना हार, साचा तारणहार ॥ वीर मारा० ॥६॥ गुरु हीरसूरि प्रवर गावे, वीर चरणोमां शीष जुकावे, अरजी ऊरमां धरो, भवपार करो, वीर मारा कोटि कोटि हो वंदन मारा० ॥७।। (26) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : तेरी प्यारी प्यारी)
ताहरे वयणे मनडुं मोयुं रे, गिरुणा गुण दरिया, ताहरे चरणे चित्तढुं भेधुं रे, मीठा ठाकुरिया.... (१) साकर द्राक्ष थकी पण अधिकी, प्रभु मारा मीठी तारी वाणी, सांभळता संतोष न थाये, अमृत रसनी खाणी....(२) वयण तमाळं सांभळवाने, प्रभु आसक्त थईने रहीए, सांभळतां संतोष न थाये, फरी फरी भामणे जईए.... (३) ऋद्धिवंता बहु राज्य तजीने, प्रभु जे तुम वयणाना रसिया, सघळी वात तणो रस छांडी, आवी तुज चरणे वसिया,....(४) सुरनर मुनिजन जनमन भावी, प्रभु ग्रंथे जे गुणखाणी, श्री जिनवर तणी सुणी वाणी, बुझ्या बहु भवि प्राणी....(५) त्रण भुवनने पावन करवा, प्रभु निर्मल जे निसरणी, उदय-रत्न' कहे भवजल तरवा, सही नावा संवरणी....(६)
(27) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : अब सोय दिया)
तारा मुखडा उपर जाउं वारी रे वीर मारा मन मान्या तारा दर्शननी बलिहारी रे वीर मारा मन मान्या....(१) मूठी बाकुळा माटे आव्या रे मने हेत धरी बोलावी रे....(२) पाये कीधी झांझरनी जेण रे माथे कीधी मुगटनी वेण रे प्रभु शासन नायक रूडो रे में तो पहेर्यो तारा नामनो चूडो रे....(३) ये चूडो सदा काळ छाजे रे, मारे माथे वीर-धणी गाजे रे, अने आपी ज्ञाननी हेली रे, पहेलां थया चंदनबाला चेली रे....(४) एने ओधो मुहपत्ति हाथ रे, तिहां महावीर विचरंता आव्यारे मने आपी ज्ञाननी हेली रे, बीजा थया मृगावती चेली रे,....(५) तिहां देशना अमृतधारी रे, भवि जीवने कीधां उपगारी रे, चंद्र सूर्य मूळ विमाने आव्या रे, चंदनबाला उपाश्रये आव्या रे.... (६) चंद्र सूर्य स्वस्थाने जावेरे, मृगावती उपाश्रये आवे रे, गुरुणीजी बार उघाडो रे, गुरुणीजीए कीधो ताडो रे,....(७) गुरुजीने खमाववा लाग्या रे,
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केवळ पाम्याने कर्म भाग्या रे, एणे आवता सापने दिठो रे, गुरुणीजीनो हाथ उंचो लीधो रे,....(८) गुरुणीजी झबकीने जाग्या रे, साधवीने पूछवा लाग्या रे, तने आशुं केवळ थाय रे, गुरुणीजी तमारे पसाय रे....(६) चंदनबाळा चेलीने खमाव्या रे, तिहां खामतां केवळ पाम्या रे गुरुणीजी ने चेली मोक्ष पाया रे, एम ‘पद्मविजय' गुणगायारे,....(१०)
(28) श्री महावीर-जिन स्तवन (राग -- मन डोले) सिद्धारथ कुल कमळ दिवाकर सोवन वर्ण शरीर, राणी तारे चिरंजीवो महावीर,....(१) इन्द्र जिननो ओच्छव करतां, मेरुं शिखर भर्या नीर भरनिंद्रामां त्रिशला जाग्या, भरी नवराव्या नीर राणी० (२) अवतर्या उदरशी आनंद पाया, बेठा हर्ष धरीश तात थै थै नाटक करता, धरता मुनिवर धीर, राणी० (३) सुर लोको सहु जोवा मलीया, देवे पहेराव्या चीर दिवाळी दिन पोषह कीजे, राये धार्या धीर....राणी० (४) कार्तिकवदि अमासनी रात्रे, पाछली घडी एक चार महाविर स्वामी मुक्ते पहोंच्यां, गौतम केवलज्ञान.... राणी० (५) गणणुं गणीए वीरने समरीये, हणीये पाप अढार पंडित 'लक्ष्मीविजय' गुण प्रणमीए, देवे वखाण्या एवा वीर राणी० (६) (29) श्री महावीर जिन स्तवन (राग -- हे त्रिशलाना जाया)
वीर जिनेवर प्रणमुं पाया, त्रिशलादेवी जाया, सिद्धारथ राजा तस ताया, नंदी वर्धन भाया,....(१) लेई दिक्षा परिषह बहु आया, सम दम समण ते जाया (२) बार वर्ष प्रभु भुमि न ठाया, निंद्रा अल्प कहाया....(२) चंडकौशिक प्रतिबोधन आया, भय मनमां नवि लाया (२) त्रण प्रकारे वीर कहाया, सुरनर जस गुण गाया....(३) जगत जीव हितकारी काया, हरिलंछन जस पाया (२) मान न लोभ न वळी अकसाया, विहार करी निरमाया.... (४) केवळज्ञान अनंत उपाया, ध्यान शुक्ल प्रभु ध्याया (२) समोवसरणे बेसी जिनराया, चउविह संघ थपाया.... (५) कनक कमळ उपर ठवे पाया, चउविह देशना दाया (२) पांत्रीश गुण वाणी उच्चराया चोत्रीश अतिशय थाया....(६) शैलेशीमां कर्म जलाया, जीत निशान बजाया (२) पंडित 'उत्तम--विजय' सुपसाया, 'पद्मविजय' गुण गाया....(७)
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(30) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : चांदिकी दिवार न...)
हुँ साचो शिष्य तुमारो प्रभुजी, पट्टो लखी द्यो मारो (२) लावू लेखन लावू शाही, ला, कागळ सारो रे, मुक्तिपूरी, राज लखावू, मुजरो मानो मारो हु० (१) सगा संबंधी सर्व तजीने, आपनी सेवा कीधी, मात्र एटली आशा पूरी, जींदगी सोंपी दीधी,....हुं० (२) अनार्यआद्रकने पापी, अर्जुनमाळी उदाईराजा, शुं कर्यु बाळक अइमुत्ते, आप्युं शिवराज्य,....हुं० (३) चंद्रादि आदिनृप पुत्रो थया, सातसो सिद्ध किया, तो शुं हुं पण मुक्ति न मांगुं, में शी भूल ज कीधी....हुं० (४) गोशाळे लेश्याने मूकी, आपने पीडा दीधी, बीजोरा पाक वहोरावे रेवती, तेने जिनपदवी दीधी....हुं० (५) चंदनबाळा बाकुळा आपी, धरे मुक्तिनुं राज्य, श्रेणिक आदि त्रेविश शिवपद, चौदशे नारी समाज....हुं० (६) अष्टापद पर्वत जइ आव्या, पंदरसो अवधुत, तेने पण तमे मुक्तिमां स्थाप्या, प्रभु न्याय अद्भत....हं० (७) गौतम गणधर महामुनिवर, मोक्षवान लयलीन, शांति पामे विरवचनथी, दर्शन पाठ आ दीन...हुं० (८) (31) श्री महावीर जिन स्तवन (राग - सावन का महिना)
जोयां प्रभुजी तमने, भटकीने में तो आज, सेवकने बोलावीने आपो शिवपुर राज, दिनदुःखीयाने तुं तो, बेली छे दिनदयाळ, मारा हैये तुं तो वसीयो जगनो तारणहार, (१) भटकी-भटकी आव्यो छु द्वारे, शरण हवे छे प्रभु एक, तारुं मारे, रखडतो रझळतो दुःख पाम्यो अपार, आव्यो ज्यारे तारा शरणे सुख पाम्यो हुं लगार (२) मोह-मायानुं तोफान आव्युं, भान भुलीने में तो सर्व गुमाव्युं, आपो आपोने मने शिक्पुर राज, लेवा आव्यो आजे प्रभु तारे दरबारमा (३) भूलो कीधी में भवोभव भारी, थाय छे दुःख मने अपरंपारी, तारो तारोने मने तारणहार, भक्ति करशुं आजे अमे तारी वारंवार (४) नित-नित नवला प्रभु गुण गावं, भावधरीने हैये भावना भावं, लावो सेवकने हवे भवने किनारे, तारा विना नथी कोई शरणुं मारे, (५) धन्य घडी छे धन्य दिवस छे, प्रभु मुख जोवानी तक मळी छे, चरण कमळनी सेवा मागु हुं करजोडी भवोभव होजो ज्ञानविमलने सेवा तुमारी, (६)
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406 (32) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : आंखडी मारी प्रभु)
तारा विना वीर कोनी साथे बोलरों, जंगलवत् लागे छे आ संसारजो, विध विध शास्त्र तणो आलाप करूं किहां, भोजन पण नवि भावे तुम विण नाथजो, तारा० ॥१॥ कार्य सकल करवा तुजअनुमति मांगतो, एहवी ए वीर कोणथी प्राप्तज थायजो, प्रेमे प्रकर्षे हर्ष हतो मुज अंतरे, नीराश्रय करी आप चाल्या शिवस्थान जो, तारा० ॥२॥ अमृत अंजन सम प्रभु दर्शन ताहरु, करवा अति अम अंतर इच्छा थाय जो, स्वामी नीरागी छतां हुं तमने विनवू, शिष्य गणीलो साथे दिन दयाल जो, तारा० ॥३॥ राग दशा ए बंधन आसंसारनुं, एहवी ए वीर वाणीनो विस्तार जो, आज खरेखर अंतरथी में अनुभव्युं, बाह्य दृष्टिथी स्वामी शिष्य गणाय जो, तारा० ॥४॥ कोनावीरने कोना स्वामी जाणवां, श्री युत गौतम ए भावे तद्पजो, निज स्वरूपी केवल कमला तुं वर्यो, भवि प्रगट्यो ते भावे निज रूपजो, तारा विना वीर कोनी साथे बोलशुं, तारा० ॥५॥
(33) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : मणियारो ते)
नारे प्रभु नहि मानु अवरनी आण, मारे ताहरू वचन प्रमाण नारे० हरि हरादिक देव अनेरा, ते दिठा जग माहिं, भामीनी भ्रमर भ्रकुटीए भुल्यो, ते मुजने न सोहाय नारे० ॥१॥ केईक रागी केईक द्वेषी केईक लोभी देव, केइक मद मायामां भरीया, केम करवी तस सेव नारे० ॥२॥ मुद्रा पण तेहमां नवि दिसे, तुज माहेली तिलमात्र, ते देखी दीलडु नवि रीझे, शी करवी तस वात नारे० ॥३॥ तुं गति तुं मति तुं मुज प्रीतम, जीव जीवन आधार, रात दिवस स्वप्नांतर माहि, तुं मारे निरधार नारे० ॥४॥ अवगुण सहु उवेखीने प्रभु, सेवक करीने निहाळ, जग बांधव ओ विनंति मारी, जन्म मरण दुःख टाल ॥५॥ चोविशमां प्रभु त्रिभुवन स्वामी, सिद्धारथना नंद, त्रिशलाजीना नानडीया प्रभु, तुम दीठे अतिही आनंद नारे० ॥६॥ सुमति विजय कविरायनो रे, राम विजय करजोड, उपकारी अरीहंतजी मारा, भवो भवना बंध तोड नारे,० ॥७।।
(34) श्री महावीर जिन स्तवन वीर हमणां आवेछे मारे मंदिरीए मारे मंदिरीऐ, पाय पडी हुं तो गोद
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बिंछावू, नित नित विनतडी करीए वी० ॥१॥ स्वजन कुटुंब पुत्रादिक सहुने, हरखे इणीपरे उचरीये, वी० ॥२॥ जब आंगणे प्रभु वीर पधार्या, तव वत्स सन्मुख डग भरीये, वी० ॥३॥ सयणा सुणो प्रभु पडीलाभीजे, तो भवि भव सागर तरीये वी० ॥४॥ अप्रतिबध्धपणे प्रभु विरजी, घर घर भिक्षाए फरीए वी० ॥५॥ अभिनव शेठ तणे घर पारj, कीधुं फरता गोचरीये, वी० ॥६॥ भावना भावता जीरण शेठजी, देव दुंदुभि सुणी चित्त भरिये, वी० ॥७॥ बारमा कल्पनुं बांध्युं आयुष, जिन उत्तम वीर चित्त धरिये, वी० ॥८॥ तस पदपद्मनी सेवा करतां, स्हेजे शिव सुंदरी वरीये,... वीर हमणां आवेछे मारे आंगणीये,...वी० ॥६॥
(35) श्री महावीर जिन स्तवन हरलीया हरलीया हरलीयारे मेरा मनडां, हां हारे मेरा दिलडा, हां हारे मेरा चित्तडा, महावीरजिने हरलीयारे, ले लीया ले लीया ले लीयारे मेरा मनडां, महावीर जिने ले लिया रे (१) वीचरंता वीर जिनेश्वर आव्या, पावापुरी पावन कीयारे, सुरवर समवसरण करे रचना, करी भक्ति मन हरलीयारे, (२) सिंहासनमें प्रभुजी बिराजे, देशना अमृत वरसीया रे,.... सोल पहोर प्रभु देशना दीधी, अवसरे अणसण करलीयारे, में० (३) सर्व समाधि क्षण क्षण पामी, मन वच काया वश कीया रे... शिववधु वरीया भवोदधी तरीया, पारंगता ये पदलीया रे में० (४) मोक्ष कल्याणक महोत्सव जाणी, इन्द्रादिक सब मील गयारे, बडा ठाठसे ओच्छव करके, गाम पावापुरी कह दीयारे में० (५) तीरथ भेटी भवदुःख मेटी, आतम आनंद ले लीयारे ओगणीश पांसठ मागसुदी को, पंचमी दीने पावन थयारे, वीर विजय कहे वीर जिणंदना, दर्शन विना हम हरगयारे, (६)
(36) श्री महावीर जिन स्तवन हे त्रिशलाना जाया, हुं मांगु तारी माया, घेरी वळ्या छे मुजने मारा, पापोना पडछाया, हे त्रिशला० (१) बाकुळाना भोजन लईने, चंदनबाळाने तारी, चंडकौशिकना झेर उतारी, एने पण लीधो उगारी, रोहिणीया जेवा चोर लूंटारा, तुज पंथे पलटाया, हे त्रिशला० (२) जुदा थईने पुत्री जमाई,
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केवो विरोध करता, गाळो दे गोशाळो तोये, दिलमां समता धरता, झेरना घुंडा गळी जइने, प्रेमना अमृत पाया, हे त्रिशला० (३) सुलसा जेवी श्राविकाने, करूणा आणी संभारी, विनवुं छु हे महावीर स्वामी, लेशो नहि विसारी, सळगता संसारे देजो, सुखनी शीतळ छाया, हे त्रिशला० (४) ( 37 ) श्री महावीर जिन स्तवन
गिरुआ रे गुण तुम तणा, श्री वर्धमान जिनराया रे; सुणतां श्रवणे अमीझरे, म्हारी निर्मल थाये काया रे, गि० (१) तुम गुण गण गंगाजळे, हुं झीलीने निर्मल थाउं रे; अवर न धंधो आदरुं, निशदिन तोरा गुण गाउं रे गि० (२) झील्या जे गंगाजले, ते छिल्लर जल नवि पेसे रे; जे मालती फूले मोहीयो, ते बावळ जइ नवि बेसे रे । गि० (३) एम अमे तुम गुण गोठशुं, रंगे राच्या ने वळी माच्या रे; ते केम परसुर आदरे, जे परनारी वश राच्या रे, । गि० (४) तुं गति तुं मति आशरो, तुं आलंबन मुज प्यारो रे, वाचक यश कहे माहरे, तुं जीव जीवन आधारो रे । गि० (५) श्री महावीर जिन स्तवन
( 38 )
दीन दुःखीयानो तुं छे बेली, तुं छे तारणहार, तारा महिमानो नहि पार २ राजपाटने वैभव छोडी, छोडी दीधो संसार, तारा महिमानो नहि पार २ ( १ ) ... चंडकोशियो डसीयो ज्यारे, दूधनी धारा नीकळी चरणे, विषने बदले दूध जोईने, चंडकोशीयो आव्यो शरणे, चंडकोशीयाने तें तारी, कीधो घणो उपकार,.... .तारा० (२) काने खीला ठोक्या ज्यारे, थई वेदना प्रभुने भारे, तोये प्रभुजी शांत विचारे, गोवाळनो नहि वांक लगारे, क्षमा करीने ते जीवोने तारी दीधो संसार,....तारा० (३) महावीर महावीर गौतम पुकारे, आंसुडा आंखोथी सारे, क्यां गया एकला मूकी मुजने, हवे नथी जगमां कोई मारे, पश्चात्ताप करतां करतां उपन्युं केवलज्ञान .... तारा० (४) ज्ञान विमल गुरु वयणे आजे, गुण तमारा गावे भावे, थई सुकानी तुं प्रभु आवे, भवजल नैया पार करावे, अरज अमारी दिलमां धारी, करीए वंदन वारंवार .... तारा० ( ५ )
(39) श्री महावीर जिन स्तवन
विष भरीने विषधर सूतो चंडकोशीयो नामे, महा भयंकर ए मारमा
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विचरे महावीर स्वामी, जाशो मा प्रभु पंथ विकट छे, झेर भर्यो एक नाग निकट छे । हाथ जोडीने विनवे वीरने, लोक बधा भय पामी, महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी, (१) आवी गंध ज्यां मानवकेरी, डंख दीधो त्यां थईने वेरी, कंईक समज तुं, कंईक समज एम, कहे करूणा आणी महाभयंकर ए मारगमा विचरे महावीर स्वामी, (२) दूध वयुं ज्यां प्रभुना चरणे, चंडकोशीयो आव्यो शरणे, हिंसा अने अहिंसा वच्चे, लडाई भीषण जामी। महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी, (३) वेरथी वेर शर्म नहि जगमां प्रेमथी प्रेम वधे जीवनमां,। प्रेम धर्मनो परिचय पामी नाग रह्यो शीष नामी महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी० (४)
(40) श्री महावीर जिन स्तवन तार हो तार प्रभु, मुज सेवक भणी, जगतमां एटलो सुजश लीजे; दास अवगुण भर्यो, जाणी पोता तणो, दयानिधि दीन पर दया कीजे ता० १. रागद्वेषे भर्यो, मोह वैरी नड्यो, लोकनी रीतीमां घjय रातो; क्रोधवश धमधम्यो, शुद्धगुण नवि रम्यो, भम्यो भवमांही हुं विषयमातो। ता० २. आदर्यो आचरण, लोक उपचारथी, शास्त्र अभ्यास पण कांई कीधो; शुद्ध श्रद्धान वली, आत्म अवलंबन विना, तेहवो कार्य तिणे को न सीधो। ता० ३. स्वामी दरिसण समो, निमित्त लही निर्मलो, जो उपादान ए शुचि न थाशे; दोष को वस्तुनो, अथवा उद्यम तणो, स्वामी सेवा सही निकट लाशे। ता० ४. स्वामी गुण ओळखी, स्वामीने जे भजे, दरिसण शुद्धता तेह पामे; ज्ञान चारित्र तप वीर्य उल्लासथी, कर्म झीपी वसे मुक्ति धामे ता० ५. जगत वत्सल महावीर जिनवर सुणी, चित्त प्रभु चरणने शरण वास्यो; तारजो बापजी बिरुद निज राखवा, दासनी सेवना रखे जोशो। ता० ६. वीनति मानजो, शक्ति ए आपजो, भाव स्याद्वादता शुद्ध भासे; साधी साधक दशा सिद्धता अनुभवी, 'देवचन्द्र' विमल प्रभुता प्रकाशे। (41) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : आजनो दिवस मने)
वंदो वीर जिनेश्वर राया, त्रिशलादेवीना जाया रे, हरि लंछन कंचनवर्ण काया, अमर वधु हुलराया रे, वंदो० १. बालपणे सुरगिरि डोलाया, अहि
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410 वेताल हराया रे, इन्द्र कहण व्याकरण निपाया, पंडित विस्मय पायारे, वंदो० २. त्रीश वरस घरवास वसाया, संयम शुं दिल लाया रे; बार वर्ष तपी कर्म खपाया, केवलनाणं उपाया रे, वंदो० ३. क्षायिक ऋद्धि अनंती पाया, अतिशय अधिक सोहाया रे, चार रूप करी धर्म बताया, चउविह सुर गुण गाया रे, वंदो० ४. तीन भुवन में आण मनाया, दश दोय छत्र धराया रे, रूप कनक मणिगढ विरचाया, निर्ग्रन्थ नाम धरायां रे, वंदो० ५. रयण सिंहासन बेसण ठाया, दुंदुभि नाद बजाया रे, दानव मानव वासव आया, भक्ते शीष नमायां रे, वंदो० ६. प्रभु गुण गण गंगाजळ नाह्यां, पावन तेहनी काया रे, पंडित क्षमाविजय सुपसाया, सेवक जिनगुण गाया रे, वंदो० ७. (42) श्री महावीर जिन स्तवन (वीर जिणंद जगत उपगारी)
वर्धमानजिनवर ध्याने, वर्धमान सम थावेजी। वर्धमान विद्या सुपसाये, वर्धमान सुख पावेजी। व० १ तुं गति मति स्थिति छे माहरो, जीवन प्राण आधारोजी। जयवंतु जगमां जस शासन, करतुं बहु उपगारोजी। व० २ जे अज्ञानी तुम मत सरीखो, पर मतने करी जाणेजी। कहो कुण अमृतने विष सरीखं, मंदमति विण जाणेजी, व० ३ जे तुम आगम रस सुधा रसे, सींच्यो शीतल थायजी। तास जन्म सुकृतारथ जाणो, सुरनर तस गुण गायजी। व० ४ साहिब तुम पद पंकज सेवा, नितु नित एहिज याचुंजी। श्री ज्ञानविमल सूरीश्वर भाखे, प्रभुने ध्याने माचुंजी। व० ५
(43) श्री महावीर जिन स्तवन आज जिनराज मुज काज सिध्यां सवे, तुं कृपा कुंभ जो मुज तुट्यो। कल्पतरू कामघट कामधेनु मिल्यो, आंगणे अमीय रस मेह वुठ्यो । आ० १ वीर तुं कुंडपुर नयर भूषण हुओ। राय सिद्धार्थ त्रिशला तनुजो। सिंह लंछन । कनक वर्ण कर सप्त तनु । तुज समो जगतमां को न दूजो। आ० २ सिंह परे एकलो धीर संयम ग्रही, आयु बहोतेर वरस पूरण पाली, पुरी अपापाए निष्पाप शिववहु वर्यो, तिहां थकी पर्व प्रगटी दिवाली। आ० ३ सहस तुज चौद मुनिवर महा संयमी। साहुणी सहसछत्रीस राजे। यक्ष मातंग सिद्धायिका वर सुरी, सकल तुज भविकनी भीति भांजे । आ० ४ तुज वचन
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राग सुख सागरे झीलतो, पीलतो मोहमिथ्यात्व वेली। आवीयो भावियो धरमपथ हुं हवे। दिजीये परमपद होई बेली। आ० ५ सिंह निशदिह जो हृदयगिरि मुज रमे, तुं सुगुण लीह अविचल निरीहो। तो कुमतरंग मातंगना युथथी, मुज नहि कोई लवलेश बीहो । आ० ६ चरण तुज शरणमें चरण गुण निधि ग्रह्या। भवतरण करण दम शर्म दाखो। हाथ जोडी कहे जस विजय बुध इस्यु । देव निज भुवनमा दास राखो। आ० ७ (44) श्री गौतमस्वामी- स्तवन (राग : आवो आवो देव मारा)
पहेलो गणधर वीरनो रे, शासननो शणगार ॥ जयंकर जीवो हो गौतमस्वाम, गुणमणि रयण भंडार ॥ नवनिधि हो जशनाम, पुरे वांछित काम ॥ जय० ॥१॥ ज्येष्ठ नक्षत्रे जनमीयोरे, गोबर गाम मोझार ॥ विधभूति पृथ्वीतणोरे, मानवी मोहनगार ॥ जय० ॥२॥ वीरकने दीक्षाग्रहीरे, पांचशोनो परिवार ॥ छठ छठ तपकरी पार[रे, उग्रकरे विहार ॥ जय० ॥३॥ अष्टापद लब्धे करीरे, वांद्याजिन चोवीश ॥ जगचिंतामणी तिहांकरीरे, स्तविया श्री जगदीश ॥ जय० ॥४॥ पंदरशो तापस पारणारे, खीर खांड घृत आण ॥ अमृतजश अंगुठडेरे, उग्यो केवलभाण ।। जयं० ॥५॥ दिवाली दिन उपन्युरे, प्रत्यक्ष केवलनाण ॥ अक्षयलब्धि तणोधणीरे, गुणमणि रयण भंडार ॥ जय० ॥६॥ पचासवर्ष गृहवासमारे, छद्मस्थपणाए त्रीश ॥ बार वरस लगे केवली रे, आयुं बाणुं जगीश ।। जय० ॥७॥ गौतम गणधर चरणपसाउलेरे, वीरनमे निशदिश ॥ जय० ॥८।।
(45) श्री गौतमस्वामी विलाप ___ तो शुं प्रीत बंधाणी जगतगुरु! तो शुं प्रीत बंधाणी; वेद अरथ करी मो ब्हामणकुं, क्षण में कीधो नाणी,...जगतगुरु!०.।।१।। बालक परे में जे जे पूछ्युं, ते भाख्युं हित आणी; मुज कालाने कुण समजावे, तुम बिन मधुरी वाणी...जगतगुरु!०.॥२॥ वयण सुधारस वरसी वसुधा, पावन खेत समाणी; नर नारकी तिरि प्रमोदित बोधित, तोही गुण मणिखाणी... जगतगुरु!०.॥३॥ किसके पाउं परुं अब जाई, किनकी पकरुं पानी; कुण मुजने गोयम कही बोलावे, तो सम कुण वखाणी,...जगतगुरु!०.॥४॥
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अईमुत्तो आयो मुज साथे, रमतो काचली पाणी; केवल कमला उसकुं दीनी, याही कीरति नहि छानी०... जगतगुरु!०.॥५॥ चउद सहस अणगारमा मोटो, किनो कां तु पिछानी; अंतिम अवसर करुणासागर, दुरे भेज्यो जाणी०...जगतगुरु!०.॥६॥ केवल भाग न मांगत स्वामी, रहेत न छेडो ताणी; बिचमें छोड गये शिवमंदिर, लोकमां होत कहाणी; जगतगुरु०.७|| स्वामी कछ खिजमतमे कीनी, ताकी, याही कमाणी, स्वामी भाव लहे सुसेवक, याही वात नीपानी, ६ जगतगुरु!०.॥८॥ वीतराग भावे चेतनता, अंतरमूरति कराणी; खिमाविजय जिन गौतम गणधर, ज्योतिसे ज्योत मिलाणी...जगतगुरु!०.॥६॥
(46) श्री गौतमस्वामी, विलाप स्तवन वीर वेला आवो रे, गौतम कही बोलावो रे, दरिशण वेला दिजिओ होजी; प्रभु तुं निःसनेही, हुं ससनेही अजाण रे. वीर० १ गौतम भणे भो नाथ तें, विश्वास आपी छेतर्यो, परगाम मुजने मोकली तुं, मुक्ति रमणीने वर्यो, हे प्रभुजी, तारा गुप्त भेदोथी अजाण रे, वीर० २ शिवनगर थयुं शुं सांकडु के, हती नहीं मुज योग्यता; जो कयुं होत मुजने तो, कोण कोइ ने रोकता, हे प्रभुजी! हु शु मांगत भाग सुजाण रे. वीर० ३ मम प्रश्नना उत्तर दई, गौतम कही कोण बोलावशे, कोण सार करशे संघनी, शंका बिचारी कयां जशे, हे पून्य कथा कही पावन करो मम कान रे. वीर० ४ जिन भाण अस्त थतां तिमिर, मिथ्यात्व सघळे व्यापशे, कुमति कुशल्य जागशे वली, चोर चुगल वधी जशे, हे त्रिगडे बेसी देशना दीये जिन भाण रे, वीर० ५ मुनि चौद सहस छे ताहरे, वीर माहरे तुं ओक छे, टळवळतो मुजने मुकी गयां, प्रभु कयां तमारी टेक छे, हे प्रभु स्वप्नांतरमां अंतर न धर्यो सुजाण रे. वीर० ६ पण हुं आज्ञावाट चाल्यो, न मळे कोई अवसरे, हुं रागवश रखडं निरागी, वीर शीवपुर संचरे, हुं वीर वीर कहुं, वीर न दिये कांइ ध्यान रे. वीर० ७ कोण वीर ने कोण गौतम, नहीं कोई कोइनुं तदा, ओ राग ग्रंथी छूटतां, वळी ज्ञान गौतमने थतां, हे सुरतरु मणि सम गौतम नामे निधान रे, वीर० ८ कार्तिक मास अमास रात्रे, अष्ट द्रव्य दीपक मले, भाव दीपक ज्योत प्रगटे, लोको देव दिवाली भणे, हे वीर विजयना नर नारी धरे ध्यान रे. वीर० ६
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(47) श्री गौतम स्वामीना विलाप स्तवन वर्धमान वचने तदा, श्री गौतम गणधार. देवशर्मा प्रति बोधवा, गया हता निरधार. १ प्रतिबोधी ते विप्रने, पाछा वलीया जाम, तव ते श्रवणे साभव्युं, वीर लह्या निर्वाण. २ ध्रसक पड्यो तव ध्रासको, उपन्यो खेद अपार, वीर वीर कही वलवले, समरे गुण संभार. ३ पूछीश कोने प्रश्न हुं, भंते कही भगवंत, उत्तर कोण मुज आपशे, गोयम कही गुणवंत. ४ अहो प्रभु आ शुं कर्यु, दीनानाथ दयाल, ओ अवसरे मुजने तमे, काढयो दुर कृपाळ. ५
(48) श्री महावीर जिन स्तवन मोक्षे गया महावीर प्रभु रे, चोवीशमो जिन चंदरे, अंतर जामी उडी गया, छोडी दुनियाना फंद रे, प्रभु०॥१।। सिद्धारथ कुल चंद्रमां रे, सिद्धारथ भगवंत, विरह पड्यो भरत क्षेत्रमा रे, आज पछी अरिहंत रे, प्रभु०॥२॥ संघ सकल शोक थयो त्यां, भाव दिपक थयो खलास, दुर्गति अंधकार रे, बहु प्रसरशे, हवे कोण करशे प्रकाश रे, प्रभु०॥३॥ देवशर्माने प्रतिबोधवारे, गौतमने मूक्या आज, शिवपुर आज पधारीया रे, मन मोहन महाराज रे, प्रभु०॥४॥ वळतां गौतम श्रवणे सुणी रे, मन थयुं अरिहंत साथ; इण समय अलगो केम मूक्यो, मने श्री जगनाथ रे प्रभु०॥५।। मनना संषय कोण भांजशे रे, अहर्निश मारा आधार, गौतम कही कोण बोलावशे, क्षण क्षणमां केई वाररे, प्रभु०॥६॥ कहोने भगवंत हवे शुं कहु, पूज्य वळी परमेश्वर आप, छोडी मने एकला चाल्या, बहु दूर दूर देशरे प्रभु०।।७।। कुमति खजुआ बहु जागशे, आप विना अरिहंत, रवि विण जिम चमके तारा, तेहनो कोण करशे अंतरे, प्रभु०॥ना एह हुं वीतरागनो रागीयो, भूली गयो निज भान, इम निर्मोही भावे भावना रे, गौतमने केवल ज्ञान रे, प्रभु०॥६॥ दिन दिवाळीए गाईए बालापुर नयनानंद रे, प्रवचन नयनिधि चंद्रमा रे, विर विजय जिनचंदरे, प्रभु०।१०।।।
(49) श्री महावीर जिन स्तवन महावीर तेरे चरणोंकी यदी धुलही मिल जाये, ये मन बडा चंचल है, कैसे तेरा भजन करूं, कितना इसे समजाओ, उतनाहि मचलता है,।।१।।
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कहते है तेरी रहेमत, दिनरात बरसती है, एक बुंदजो मिलजाये, (२) दिलकी कली खील जाये,॥२॥ महावीर इस जीवनकी, बस एक तमना है, : तुम सामने हो मेरे, (२) मेरा प्राण निकल जाये०,॥३।। महावीर तेरा सेवक हुँ, पल पल तेरा ध्यान धरूं, इस सेवककी अरजी है, (२) भव भ्रमण मिटाओ मेरे,-महावीर तेरे चरणो की०।४।।
(50) श्री महावीर जिन स्तवन वीर प्रभुनुं ध्यान धरूं, वीरना चरणोमां वंदन करूं, वीरे बताव्यो मारग साचो, वीरछे तारणहारा, वीरनो महीमा अनुपम जगमां, वीर छे जगदाधारा, वीरने आतम अर्पण करूं ॥वीरना० ॥१॥ अर्जुनमाली शेठसुदर्शन, तारी चंदनबाला, आनंदने प्रभु शरणुं आव्युं, सौना प्रभु रखवाला, वीरना नामर्नु रटण करुं ॥वीरना० ॥२॥ संगमदेवे प्रभुने सताव्यां, प्रभुए समताधारी, भय भैरवमां प्रभुजीनिर्मल, कर्मसत्ता पणहारी, वीरनी वाणी- पान करुं ॥वीरना० ॥३॥ दर्शन जेनुं दुःख हरनारं, गुणसागर जिनदेवा, आनंदमंगल दाता प्रभुजी, मलजो भवोभव सेवा, वीरनुं एकज नाम खलं ॥वीरना० ॥४॥ वीरजिनेश्वरराया निराला, श्री गौतमगुरु प्यारा, श्रीहीरविजय गुरुशासन नायक, अक्षयपद अविकारा, अंतर आतम भाव धरूं ॥वीरना० ॥५॥
__(51) श्री महावीर जिन स्तवन एक वार वच्छ देश आवजो, जिणंदजी ! एक वार वच्छ देश आवजो; जयंतीने पाये नमावजो-जिणंदजी ! एकवार०॥ वळी समवसरण देखावजो-जिणंदजी एकवार०||१॥ समवशरण शोभा जे दीठी, क्षण क्षण सांभरी आवशे जिणंदजी; भूतल सुगंधी जल वरसावे, फूलना पगर भरावशेजिणंदजी०॥२॥ कनक रतननी पीठ करीने, त्रिगडानी शोभा रचावशे,जिणंदजी०; रूपानो गढने कनक कोसीसां, वचे वचे रतन जडावशे-- जिणंदजी०॥३॥ रयण गढे मणीना कोसीसां, झगमग ज्योति दीपावजोजिणंदजी०; चार दुवारे एंसी हजारा, शिव-सोपान चडावजो-- जिणंदजी०॥४॥ देव चारे कर आयुध धारी, द्वारे खडा करे चाकरी
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जिणंदजी०; दूर पासेथी एक समये वांदे, जयंति ने लघु छोकरी-जिणंदजी० ॥५॥ सहस योजन ध्वज चार ते उंचा, तोरण आठ चउ वावडीजिणंदजी० मंगळ आठने धूप घटिका, फूलमाळा कर फुटडी-जिणंदजी० ॥६॥ आठ स्त्री बीजे गढ द्वारे, रयण गढे चउ देवता-जिणंदजी०; जाति-वैर छंडी पशु पंखी, तुज पदकमलने सेवतां-जिणंदजी० ॥७॥ पंच वरण-मयी जल थल केरां, फूल पगर वरसावतां-जिणंदजी०; पर्षदा सात ते उपर बेसे, मुनि नर नारी देवता-जिणंदजी० ॥८॥ आवश्यक टीकाये पड-उतर, थाये न कुसुम किलामणा-जिणंदजी०; साधवी वैमानिकनी देवी, उभी सुणे दोय धुंटणी-जिणंदजी० ॥६॥ बत्रीश धनुष अशोक ते उंचो, चामर छत्र धरावजो-जिणंदजी०; चउ मुख रयण-सिंहासन बेसी, अमृत वयणां सुणावजो-जिणंदजी० ॥१०॥ धर्मचक्र भामंडल तेजे, मिथ्या-तिमिर हरावजो-जिणंदजी०; गणधर-वाणी जब अमे सुणीये, तव देवछंदे सुहावजो--जिणंदजी० ॥११॥ देवता सुर कवि साचुं बोले, जिहां जाशो तिहां आवशे-जिणंदजी०; रंभादिक अपच्छरानी टोळी, वंदी नमी गुण गावशे-जिणंदजी० ॥१२॥ अंतरजामी दूरे विचरो, अम चित्त भींज्यु ज्ञानशुं-जिणंदजी०; हृदय थकी दूरे जो जाओ, तो साचुं करी मान\जिणंदजी० ॥१३।। सुलसादिक नव जिनपद दिधां, अमशुं अंतर एवडो ?-जिणंदजी०; वीतराग जो नाम धरावो, सहुने सरीखा त्रेवडो-जिणंदजी० ॥१४॥ ज्ञान-नजरथी वात विचारो, राग दशा अम रूअडी-जिणंदजी !०; सेवक रागे साहिब रीझे, धन धन त्रिशला मावडी-जिणंदजी० ॥१५।। तुम विण सुरपति सघळा तुसे, पण अमे आमणा-दुमणा-जिणंदजी०; श्री शुभवीर हजूरे रहेतां, ओच्छव रंग वधामणां-जिणंदजी० ॥१६॥
___(52) श्री महावीर जिन स्तवन वीरजिणंद जगत उपगारी, मिथ्याधाम निवारीजी। देशना अमृतधारा वरसी, पर परिणति सवि वारीजी। वी० १ पंचमे आरे जेहनुं शासन, दोय हजारने चारजी। युगप्रधान सूरीश्वर वहशे, सुविहित मुनि आधारजी, वी०२ उत्तम आचारज मुनि राया, श्रावक श्राविका अच्छजी। लवण जलधि माहि मीठं जल। पीवे शृंगी मच्छनी। वी० ३ दश अच्छेरे दूषित भरते, बहु
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416 मतभेद करालजी, जिन केवली पूरवधर विरहे, फणी सम पंचम कालजी । वी० ४ तेहनुं झेर निवारण मणि सम, तुज आगम तुज बिंबजी। निशि दीपक प्रवहण जिम दरीये, मरूमां सुरतरू लुंबजी। वी० ५ जैनागम वक्ताने श्रोता, स्वाद्वाद शुचि बोधजी। कलिकाले पण प्रभु तुज शासन, वर्ते छे अविरोधजी। वी० ६ मारे तो सुषमाथी दुषमा, अवसर पुन्य निधानजी । क्षमाविजय जिनवीर सदागम, पाम्यो सिद्धि निदानजी। वी० ७
(1) श्री सामान्य जिन स्तवन आनंदकी घडी आइ, सखिरि आज आनंदकी घडी आइ० २...करके कृपा प्रभु दर्शन दीनो, भवकी पीर मीटाई; मोह निंद्रासे जाग्रत करके, सत्यकी सान सुनाई, तन मन हर्ष न माई. ॥१॥ नित्यानित्यकी तोड बताकर, मिथ्या दृष्टि हराई; सम्यग्ज्ञानकी दिव्यप्रभाको अंतरमें प्रगटाई, साध्य-साधन दिखलाई. ॥२॥ त्याग वैराग्य संयम योग से, निस्पृह भाव जगाइ. सर्वसंग परि त्याग करा कर, अलख धून मचाई, अपगत दुःख कहलाई. ॥३॥ अपूर्वकरण गुणस्थानक सुखकर, श्रेणी क्षपक मंडवाइ, वेद तीनो का छेद कराकर, क्षीण मोही बनवाइ, जीवन मुक्ति दिखलाई. ॥४।। भक्त वच्छल प्रमु करुणा सागर, चरण शरण सुखदाई, जश कहे ध्यान प्रभुका ध्यावत, अजर अमर पद पाई, द्वंद सकल मिट जाई...सखिरी० ॥५॥
(2) श्री सामान्य जिन स्तवन मारी नावलडी मजधार, तारो प्रभु अकज छे आधार...तारो० ॥१॥ शासन पामी ताहरूं रे, नहीं चिंता तलभार, पूरवना कोई अढळक पुण्ये, दीठो तु देदार...तारो० ॥२॥ अनादिकालनी अंतरनी प्रभु, वात सुणावू हुं नाथ, कृपा करीने तुं सांभळजे, बीजो नथी सांभळनार...तारो० ॥३।। देव नरकने मनुष्य तिर्यंचमां, दुःख सह्या वारंवार, विषय कषायमां मस्त बनीने, फुल्यो तुं फूलणहार...तारो० ॥४॥ अशुभ विचारोने, वाणीविलासो, काया कुंडु करनार, इंद्रियोनी प्रभु वासना मूंडी, लपटायो तारणहार...तारो० ॥५। क्रोध करीने मानी बनीने, कपट कीधां बहु वार, सौथी मूंडो लोभ चंडाल जे, पापो करावे अपार...तारो० ॥६॥ तुं विरागी हुँ छु रागी, भक्ति करु भारोभार, भ्रमर इलिका न्याये प्रभुजी, थईशुं तुम सम नाथ...तारो० १७।। शांत मुद्रा
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तारी मुखनी सुंदर, अखीयनमें अविकार, सविकारी अमे आव्या शरणे, तार तार मुझ तार...तारो० ॥८॥ मन मोहन प्रभु अरज अमारी, सुणजोने आवार, सुयश मागे सेवा तमारी, तरवा भव जल पार...तारो० ॥६॥
(3) श्री सामान्य जिन स्तवन रसिया श्री अरिहंत प्रभु भगवंत नमोडस्तु ते रे लो, रसिया पारगतोडभयदं विभवदं नमोडस्तु ते रे लो; रसिया० भव्यांभोज विबोधजनक सम जिनवरु रे लो, रसिया० दुरिततमं तरणि सम दोषमपाहरु रे लो०. ॥१॥ रसिया० हरे समं विमलास्य प्रभु नीरजंदलं रे लो; रसिया० विध्वंष्टमीस भाल विशाल सुकोमलं रे लो; रसिया० दशनतलि सित केशवितान सितेतरं रे लो, रसिया० अष्टवरग्रह णार्चित कुंकुम केसरं रे लो०. ॥२॥ रसिया० हरिणकं हरिवर्ण सुकांति विसरती रे लो, रसिया० वृक्ष कपाट करोभय भुंगल गजगति रे लो; रसिया० शांतरागरुचिनाद्भूत तव सुंदर वपु रे लो, रसिया कर्माष्टक दल पंक्ति विनाशित गत रिपु रे लो०. ॥३॥ रसिया बाह्य अभ्यंतर रोग गता विगतं दुःखं रे लो, रसिया० लव सप्तम सुर तरमादप्यधिकं सुखं रे लो; रसिया० सिद्धार्था दुग केवल कैवल्य वरेरे लो, रसिया० ईदग शांति कुतर्क मया हृदये धर्यो रे लो. ॥४॥ रसिया० भव पादप उन्मूल सुखदा दुःखहरि रे लो, रसिया० अकादश जिन सेव मया ह्रदय धरी रे लो; रसिया० ओक विहिन पंच वरगमा वशि प्रभु रे लो, रसिया० विजयां कित शुभ सेवक वीर नमे रे लो. ॥५॥
(4) श्री सामान्य जिन स्तवन जीवजीवन प्रभु म्हारा, अबोलडां शानां लीधां छे राज, तमे अमारा अमे तमारा, वासनिगोदमां रहेतां; अबोलडां० काल अनंत स्नेहि प्यारा, कदिय न अंतर करता, बादर स्थावरमां बेहु आपण, काल असंख्य निगमता अबोलडां०. ॥१॥ विकलेन्द्रियमां काल संख्याता, विसर्या नवि विसरता; नरकस्थाने रहया बेहु साथे, तिहां पण बहु दुःख सहता० .....अबोलडां०. ॥२॥ परमाधामी सनमुख आपण, टगटग नजरे जोता; देवना भवमा ओक विमाने, देव नां सुख अनुभवता०...अबोलडां०... ॥३॥ ओकण पासे अक
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शय्यामां, थेई थेई नाटक सुणतां; तिहांपण तमे अने अमे बेहु साथे, जिन जन्म महोत्सव करता० अबोलडां०. ॥४॥ तिर्यच गतिमां सुखदुःख अनुभवतां, तिहां पण संग चलंता; अकदिन समवसरणमां आपण, जिन गुण अमृत पीता०...अबोलडां०. ॥५॥ ओक दिन तमे अने अमे बेहु साथे, वेलडीओ वळगी ने फरता; अकदिन बाळपणामां आपण, गेडीदडे नित्य रमता०..अबोलडां०. ॥६॥ तमे अने अमे बेहु सिद्धस्वरूपी ओवी कथा नित्य करता; ओक कुल गोत्र अकज ठेकाणे, ओक ज थाळीमां जमता०... अबोलडां०. ।।७। अक दिन हुं ठाकोर तमे चाकर सेवा माहरी करतां; आज तो आप बन्या जगठाकोर, सिद्धि वधुना पनोता०..अबोलडा०. ।।८।। काल अनंतनो स्नेह विसारी, काम कीधां मनगमतां; हवे अंतर केम कीधुं प्रभुजी, चौदराज लोक जई पहोंत्यां०...अबोलडां०. ॥६॥ दिपविजय कविराज प्रभुजी, जगतारण जगनेता; निज सेवकने यशपद दीजे, अनंत गुण गुणगणता...अबोलडां०. ।।१०।।
__(5) श्री सामान्य जिन स्तवन श्री जिनराजने वंदना ओ, करतां लाभ अनंत तो स्वामी सोहामणा मे, भवोभवना दुःख भांजवा ओ, समरथ तुमे गुणवंत.. तोस्वामी० तारक तुम समको नहीं दीठो भूतले..स्वामी स्वामी तो, स्वा० ॥१॥ तुमे उपकार कर्या घणाए रे कहेतां न आवे पारतो स्वामी० आ संसार बिहामणोए, उतारो तस पारतो स्वामी० ॥२॥ जाणकने शुं याचिये रे, जाणे विण कहे वाततो. पण अम कंईमाग्या विना रे, नवि पीरसे निज मात तो..स्वामी० ॥३॥ ते माटे हुं विनवू ओ, आपो तुम पद सेव तो स्वामी ढील किसी करो मे घडीये, दायक छो स्वयमेव तो स्वामी० ॥४॥ ज्ञान विमल सुख संपदाओ. शुभ अनुबंधी जाणतो, अधिक हुवे हवे आजथीओ प्रभु तुम वचन प्रमाण तो..स्वामी० ॥५॥
(6) श्री सामान्य जिन स्तवन आज महारा प्रभुजी स्हामुं जुओने, सेवक कहीने बोलावो रे; जेटले हुं मनगमतुं पाम्यो, रुठडां बाल मनावो. मोरा सांइरे. आज० १ पतित पावन
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शरणागत वच्छल, ओ जश जगमां चावो रे; मन रे मनाव्या विण नवि मूकू, ओहिज माहरो दावो. मो० आज० २ कबजे आव्या स्वामी हवे नही छोडूं, जिहां लगे तुम सम थावो रे; जो तुम ध्यान विना शिव लहीजे, तेही ज दाव बतावो. मो. आज० ३ महा गोपने महा निर्मामक, ओवा अवा बिरुद धरावो मोरा साइ रे तो शुं? आश्रितने उद्धारता घj घणुं शुं कहेवरावो मोरा साइरे आज० ॥४॥ ज्ञानविमल गुणनो निधि महिमा, मंगल ओहि वधावो रे; अचल अभेदपणे अवलंबी, अहनिश अहि दिल ध्यावो. मो० आज० ५
(7) श्री सामान्य जिन स्तवन चेतन नगरीमां मनराज रीसाईने बेठा, रीसाईने बेठा अवळे मारगडे पेठा मनराज रीसाईने बेठा.॥१॥ कहोतो मनराज तमारो पोषाक सीवडावीये, पोषाक सिवडावीयेने, मनडा मानवीये, मनराज रीसाईने बेठा. ॥२॥ जिन आणा आगलाने तपस्या टोपी, धिरजना धोतिया पहेरावू हो मनराज० ॥३॥ कहो तो मनराज तमारो शणगार सजावीओ, शणगार सजावीयेने मनडा मनावीओ. म० ॥४॥ नवपद हार रूपी नवसेरो हार, चारित्र चगदा बंधावू हो. म० ॥५॥ शुभ करणी कुंडलने बुद्धि बेरखडा, नंगना मुगुट जडा, हो. म० ॥६॥ हर्षना हाथीयाने ध्यान अंबाडी, समकित सडके फरका, हो मनराज रीसाईने० ॥७॥ कहो तो मनराज तमोने विगते वधावीओ, विगते वधावीओने मनडा० ॥८॥ स्थिरताना थाल माहे मृदुताना मोती, वैराग्य व्हालथी वधावू हो मनराजरि० ॥६॥ कहो तो मनराज तमोने फुलेके जमाडीओने फुलेके जमाडीएने मनडा मनावीओ. म० ॥१०॥ संतोष शीरोने प्रेमनी पुरी, भक्तिना भजीयां पीरसावू हो. म० ॥११॥ पून्यना पूडलाने दयानी दाळ, शभ्यताना शाक पीरसा, हो मनराज. री० ॥१२॥ ज्ञान गुंदवडाने दमनना दूध, व्रतनी वेढमी पीरसावू हो. म० ॥१३॥ पवीत्र पेंडाने गमकेरा गांठीया, अनुभव अथाणा खवरा, हो मनराज री० ॥१४॥ शांतिनी सेवने सत्यनी साकर, नीरंजन घी पीरसा, हो. म० ॥१५॥ कहो तो मनराज तमोने मुखवास करावीओ, मुखवास करावीओ मनडा मनावीओ. विवेक वाटकीमां श्रद्धा सोपारी, स्याद्वाद तंबोल खवरायूँ हो. ॥१७॥ आनंद अलचीने लक्षण लवींगडा, विनय वरीयाळी चवरा, हो. म० ॥१८॥ कहो
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तो मनराज तमने सोगठे रमाडीये, सोगठे रमाडीयेने मनडा मनावीओ. म० ||१६|| बोधीबीज बाजीयोने समभाव सोगठा, चतुराई चोपाट पथरावुं हो. म० ||२०|| कहो तो मनराज तमोने कबजामां लावीओ, कबजामां लावीओने मनडा मनावीओ. म० ||२१|| मनरुपी घोडोने सद्गुरु लगाम, उपदेश अंकुश धरावुं हो. म० ||२२|| अध्यात्म आरसीने तत्व रमणता, आत्म स्वरुपमां जमावीओ...हो. म० ॥२३॥ धीर विमल कहे मनवश करीये, मनवश करीओने शीवसुख वरीओ. म० ||२४|| मनवश करवामां श्रुत केरी सांकल, मुक्तिना मारगडे बोलावुं हो. म० ॥ २५॥ (8) श्री जिन प्रतिमानुं स्तवन
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ओ जिन प्रतिमा पूजो मेरे प्यारे से जिन प्रतिमा पूजो, अ जिन प्रतिमा पूजो, अ जिन प्रतिमा पूजो, मेरे प्यारे जगमां देवन दुजो मेरे प्यारे.. अ जिन० ॥१॥ करजोडी जिन प्रतिमा वंदो, ठाणांगने अनुसारे, ठवण नीक्षेपानी रचना कहीशुं, गुरुगम विधि आधारे ॥ २॥ श्री जिन प्रतिमा जिनवरे सरखी, जिनवर गणधरे भाखी, मुनिवर सुस्वर वंदनपूजा, अनेक सूत्र छे साखी ॥३॥ जंघा विद्या चारण मुनिवर, यात्रा करवा जावे, पांचमे अंगे भगवती सूत्रे, वीसमे शतक दीखावे. || ४ || सुर्याभदेव जिन प्रतिमा पूजी, राय पसेणी भाखे, विजयदेव जिन प्रतिमा पूजी, जीवा भीगमें दाखे.. ॥५॥ इंद्रादिक सर्व देव मळीने, स्वर्ग विमाने देखो, जिनेश्वरनी दाढा पूजे, जंबुपन्नतीमें पेंखो. ॥६ || सिद्धारथ राजा त्रिशला राणी, निरमल समकित धारी, अष्ट द्रव्य शुं पूजा कीधी, कल्पसूत्रे अधिकारी ॥७॥ संप्रति राजा धरमनो धोरी, त्रणखंड कीर्ति व्यापी, सवा लाख जिन दहेरा कराव्या, सवा क्रोड जिन बिंब स्थापी ॥८॥ अष्टापद गिरि भरत नरेश्वर, बींब चोवीशी स्थापी, आवश्यक सूत्रे गणधरे भाखी, तोही नमाने पापी. ॥६॥ अभयकुमारे जिन प्रतिमा भेजी, आर्द्रकुमार बोध पायो, चारित्र लईने मुक्ति उंधो पाम्यो, सुयगडांग पाठ दिखायो ||१०|| मनो मतिशुं कुमति बोले, राह बतावे, शाहुकार जन नाम धरावे सूत्र आधार दिखावे. ॥११॥ गृह वासमां वसतां जिनवर, जिन प्रतिमा नित्य पूजे, छट्टे अंगे मल्ली जिनेश्वर, अह अधिकारे सुझे ||१२|| जिनवर बिंब विना नवीपुंजुं, आनंदादिक बोले,
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सूत्र उपासक गणधर भाखे, नहि कोइ अहने तोले. ॥१३॥ तूंगीया नगरी श्रावक बहुला, पांचमे अंग दिखावे, जिन प्रतिमानी पूजा करी, पछी गुरु वंदन जावे. ॥१४॥ सूत्र समवायांग आवष्यक बोले, जल थल फुल लावे, समकित स्थापना धारी श्रावक, प्रभुजीने फुल चढावे. ॥१५॥ फुल पूजा प्रतिमानी करतां, कुमति पाप बतावे, कल्पोमें देखो फुलनी पूजा, नागकेतु केवलपावे. ॥१६॥ पांचकोडी प्रभु फुलडे पुंजी, पाम्यो देश अढार, ओकावतारी भावने पाम्यो, कुमारपाल भूपाल. ॥१७॥ ज्ञाता सूत्रे, द्रौपदि पूजा, करती शिव सुख मांगे, शक्र स्तवनो पाठ ज भणती, प्रभु गुण अनुभव रागे. ॥१८॥ भिंतमां चित्रनी नारी आलेखी, त्यां मुनिने नवी रहेवू. दशवैकालिक आठमा अध्ययने ओ न्याय प्रतिमा लेवो. ॥१६॥ सद्गुण आणाधारक मुनिवर, जिन मारग सत्य भाखे, वस्तु गते जे वस्तु प्रकाशे, कुड कपट नवी राखे. ॥२०॥ नीज पक्षपातमें कुमति पडीया, जिन प्रतिमा नवी माने, विधवा नारी गर्भने न्योये, सूत्र पाठ राखे छाने. ॥२१॥ चक्षु दर्शनावरणिथी कुमति, जिन प्रतिमा नवि देखे, उग्यो प्रभाते रवि झळहळतो, घुवड तेजने पेखे. ॥२२॥ पोते मनमां कुमति जाणे, प्रतिमा सूत्रमा बोली, निज जननीने डाकण जाणे, मुख शुं न कहे खोली. ॥२३॥ जे जिनवर प्रतिमा नवि पूजे, नव दंडक ते जाशे, सूत्र आधारे प्रतिमा पूजे, मुक्ति तणां फल पाशे. ॥२४॥ चार निक्षेपा ठाणांगे भाख्यां, अनुयोग द्वारा दिखावे, ओकने आवरे अवरने ठंडे, कुमतिने लाज न आवे. ॥२५॥ सूतो माणस शब्द शुं जाणे, जागतो कदी न जागे,. जाणतो जिन वचन उत्थापे, समकित दूर भागे. ॥२६॥ इत्यादिक सूत्र पाठ सुणीने, कुमति दूर करीजे, द्रव्यभाव प्रभु पूजा करीने, नरभव लाहो लीजे. ॥२७॥ पंचमे आरे साधु श्रावकने, होये आधार सत्य जाणो, श्रीजिन आगम जिनवर प्रतिमा, सद्दहणा खरी आणो. ॥२८॥ तपगच्छ दिनमणि सरिखा दीपे, श्री हर्ष विजय गुरराया, तसपद पंकज चंद्रविजय गुरु, हितविजय गुण गाया. ॥२६।।
(9) सासु वहुना संवादनुं स्तवन हीराबाई सासुने वीराबाई वहुजी, दर्शन करवाने जाय जो, वहु उंचा ने बारणां नीचां, देखी शीश नमायजो सज्जन सुणोजी, ओक सासुने वहु
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संवाद...सज्जन० ॥१॥ बाईजी शिखर महोरा बंधावीयाजी रे, बारणां नीचां कीधां रे, साभळी सासु रीश चढावी, वहुने महेणां दीधां रे सज्जन० ॥२॥ ते वहु तमारे होंश होय तो, पियरथी द्रव्य मंगावोरे, नाना मोटा समजीने वळी, मोटा शिखर बंधावो रे...सज्जन० ॥३॥ सासुना महेणां उपर वहुओ, पियरथी द्रव्य मंगाव्यारे, नाना मोटां समजीने वळी, मोटा शीखर बंधाव्या रे...सज्जन० ॥४॥ पांच वरसमां बावन जिनालय, देवी कीर्ति बनावीरे, संवत सोळ पंचागुंजे वहुआ, मोटी मुर्ति बनावी रे सज्जन० ॥५॥ तपगच्छाधिपतिश्री हिरसूरिश्वर, ते पण तिहां आवे रे, रत्नतिलक प्रासाद करावी, उत्तम नाम सुहावे रे सज्जन० ॥६।।
___ (10) आठ कर्मनी प्रकृतिनुं स्तवन आठ कर्मोकी कुंजमां हुं भुली पडी...हां हां मतिश्रुति अवधिने मन पर्यव; केवळ विना शुद्धि जरा न पडी १. चक्षु अचक्षु अवधि केवल, ओ चारे पांच निंद्रा मळी दर्शनावरणी शाता अशाता, वेदनी ओ बे छे, तेणे जीत्यो पंचेन्द्रिय दमन करी २. क्रोध मान माया लोभ ओ चारे, सोळ रुप करी मने घेरी लीधी नवनोकषाय त्रण-दर्शन मोहनीय, लालच देखाडी मने लंटी ३. लीधी-देव मनुष्यने गति तिर्यंचनी चोथी नरकमां मने लीधी ठवी,-चार गतिने पंचेन्द्रिय जाति, आठ शरीरमां, मने जडी लिधी, ४. संघयण संस्थान बारे मळीने,-संघातन बंधनथी मने बांधी लीधी,-वर्ण गंध रस स्पर्शे चारे, विग्रह गतिमां चार अनुपुर्वी ५. शुभ-अशुभ बे गति विहायोनी, ओ पंचोतेर प्रकृति छे पिंडनी, आठ प्रत्येक त्रसदशदिसे स्थावरनी, ओकसो त्रण नाम कर्मे मने चीतरी ६. कोई कहे उचने कोक कहे नीच, गोत्र कर्मनी गति छे न्यारी, दानलाभ भोग उपभोग अंतराय वीर्य, अंतराय मारी शक्ति हरी ७. उत्तर भेद १५८ अकर्मना, टूकमां हुं फसी पडी, चार घातिने चार अघाति, घाति जीतेथी थाय केवळी, घाति जिते अघाति जीते, न्याय वरे जई शिवसुंदरी,...८.
(11) चोवीश भगवाननां परिवारनुं स्तवन राजा राणीने कुटुंब घj, मन मोहन मेरे, दिपती कुंवरोनी जोड रे -
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मन० संसारी सगपण जाणीने, मन० काचा सुत ज्युं नांखो तोड रे म० १ ऋषभदेवने बे बेटीओ, मन० भरतादिक सो पुत्र रे, मन० २ सघळाए संयम आदर्यो मन०, प्रभुए किधो मुक्तिमां वासरे म० ३ अजीतनाथने बेटो नहि मन० स्हेजे टळी गया पाप रे.....४ संसारी सगपण जाणीने मन०, प्रभुए न आण्यो संताप रे म० ५ संभव, अभिनंदन सुमति नाथजी मन०, त्रणेने त्रण त्रण पुत्र रे म० ६ पद्मप्रभने तेर बेटडा मन०, भारी घरोका सुत रे.....मन० ७ सुपार्श्वनाथजीने सत्तर बेटडा मन०, चंद्रप्रभुने दश आठ पुत्र रे० ८ सुविधिनाथने ओगणीस बेटडा मन०, ज्यारे करता मळीने वात रे० ६ शीतलनाथ वासुपूज्यने बार बेटडा मन०, श्रेयांसनाथने नव्वाणुं पुत्र रे म० १० विमलनाथने बेटो नहि मन०, करता कर्मोनो अंत रे, मन० ११ अनंतनाथने अठ्यासी पुत्र रे मन०, धर्मनाथजीने ओगणीश पुत्र रे० १२ शांतिनाथने दोढ कोड बेटडा मन०, जागी ज्योत जगीश रे० १३ कुंथुनाथने दोढ करोड बेटडा मन०, अरनाथजीने सवाकोड रे० १४ मल्लिनाथजी कुंवारा रह्या मन०, बाल ब्रह्मचारी ज्यारे देख रे० १५ मुनिसुव्रतने ओगणीश बेटडा मन०, नमिनाथजीने बेटो नहिं रे० १६ नेमनाथजी कुंवारा रह्या मन०, तोरण जई छोडी राजुलनार रे० १७ पार्श्वनाथने बेटो नहीं मन०, महावीरस्वामीने बेटी एक रे० १८ सघळाए संयम आदर्यो मन०, मुक्तिनगरमां दीधी टेक रे० १६ ए चोविश जिनना सवाचार कोड बेटडा मन०, वळी उपर चारशो पंदर रे....मन० २० सत्तर जिनने बेटा हुआ मन०, त्रण बेटीनी चाली वात रे० २१ अजीत-विमल मल्लिनाथजी मन, नमि नेमि पार्थजयवंत रे म० २२ सत्यवादी हुआ महावीरजी मन, जोयो नहि बेटानो फंद रे म० २३ आनंदघन कहे विनवू मन०, भवजल पार उतार रे म० २४
(12) श्री जिन प्रतिमानुं स्तवन (राग-धुणी रे धखावी)
जेवो तेवो पण प्रभुजी पोतानो कहेजो (१) अमे तमे रसीया भेला, नाथ अनंती वेळा, प्रीतलडी पाळी समकित, सुखलडी देजो....जेवो० (२) कागळनो कटको के संदेशो नहिं पहोंचे, कोंने कहुं प्रभु जईने, संदेशो कहेजो० (२)... जेवो० शक्ति नथी पण भक्ति, मुक्तिने खेंचे । लोहचुंबक लोहने, तेम तमे नीरवहेजो । (३)... जेवो जीवने देह पुरमा मोह लुटारे
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घेर्यो, धर्मराजाने प्रभुजी, व्हारे अहीं भेजो । (४)... जेवो मोटानो महिमा मोटो, आशरो मोटो, सेवक रत्न विजय मांगे शिवसुखदेजो । (५)... जेवो०
__(13) श्री सहस्रकुट जिन प्रतिमानुं स्तवन
सहस्त्रकुट जिन प्रतिमां वंदिये, मन धरी अधिक जगीश विवेकी सुंदर मूरती हती सोहामणी, एक सहसने चोवीश वि०॥१॥ अतीत अनागतने वर्तमाननी, त्रण चोवीशी सार हो विवेकी, बहोतेर जिन एक एक क्षेत्रमें, प्रणमी जे वारोवार वि०॥२॥ पांच भरत वळी ऐरावत पांचशे, सरखी रीत समाज वि०, दश क्षेत्रे थई थाए सातशे, वीश अधिक जिनराज वि०॥३॥ पांच विदेह जिनवर साठसो, उत्कृष्ट एहिज टेव विवेकी, जिन समाज जिन प्रतिमा ओळखी, भक्ति कीजे हो सेव वि०॥४॥ पंच कल्याणक जिन चोवीस तणा, वीसासो तेहीज थाय वि० ते कल्याणक विधिशुं साचवी, लाभ अनंत कहाय वि०॥५॥ पंच विदेह हमणां विचरंता, वीश अछे अरिहंत वि० शाश्वत जिन ऋषभानन आदि चार अनादी अनंत वि०॥६॥ एक सहस जिन चोवीश तणा, प्रतिमां एकण ठाम विवेकी, पूजा करी जन्म सफळ होवे, सीजे हो वांछित काम वि०॥७॥ तीन लाख अढाईद्विपमां, केवल नाणी पहाय वि० कल्याणक करी इहां प्रभु सामटा, लाभे गुणमणी खाण वि०॥८॥ सहस्त्रकुट सिद्धाचल उपरे, तीमहीज धरणी कहाय वि० तेथी अद्भूत एछे स्थापना, पाटण नगर मोझार वि०।६।। तीर्थ सकल वली तीर्थंकरूं सहु, एणे पूजो ते पूजाय वि० एक जिह्वाथी महिमां एहनो, किण भाते हो कहेवाय वि०।१०।। श्रीमाली कुल दीपक जेतशी, शेठ सुगुण भंडार वि० तस सुत शेठ शिरोमणी तेजशी, पाटण नगरमें दातार वि०||११॥ तेणेए बिंब भराव्या भावशुं, सहस अधिक चोविश वि० किधी प्रतिष्ठा पुनमगच्छधरू, भाव प्रभ सूरीश वि०।१२।। सहस जिनेसर विधिशुं पुजशे, द्रव्यभाव शुचि होय वि० इहभव परभव सुखी होवे, लहेस्ये नवनिधि सोय वि०॥१३॥ जिनवर भक्ति करे मनरंगशुं, भविजननी एछे रीत वि० दीपचंद्र सम श्री जिनराजजी देवचंद्रनी ए प्रित विवेकी,....॥१४॥
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(14) श्री समवसरण, स्तवन आज गईती हुं समवसरणमां, वाणी सुधारस पीवा रे, पीता पीता रे मगन भर्यो रे, में तो अनुभव प्यालो पीधो रे ॥१॥ पहेले रे प्याले मुने समकित प्रगट्यों, दूसरे अज्ञानता मेली रे, तत्त्व तणा रे, प्यालो तीसरो पीधो, मारी कुमति गइ पीता पहेली रे ॥२॥ अजब अनोपम मूर्ति प्रभुजीनी, दीठडे मति थई रूडी रे, वासोधास तणो परिमल महेके, आवा चंपक केतकी फूली रे ॥३॥ प्रभुजीनी आगळ बार पर्षदा, मळ्या छे कोडाकोडी रे, चोसठ इन्द्र नमे शिरनामी, तो रह्या छे बे कर जोडी रे, ॥४॥ प्रभुजीनी वाणी सुणो भविकजन, तिर्यंच तणा दुःख हरवा रे, मृग पासे मृगराज बिराजे, तो वेर तणा नहि देवा रे ॥५॥ पंचम गतिना प्रथम जिनेश्वर, दातारी प्रभु दीठो रे, सुण रे बेनी एनी गति निहाली, तो मुज मन लागे मीठो रे ॥६॥ समवसरणमां प्रभुजी बिराजे, चिहुं दिशि महिमा छाजे, “रलविमळसूरि" रंगनी स्वामी, तो जीतना डंका प्रभु गाजे छे ।।७।।
(15) श्री सामान्य जिन स्तवन मन मोयुं, दिल मोहूं, दिल मोह्यु, चित्त मो, प्रभु गुण गानमा, . काल अनंत न जाण्यो जोतां, मोह सुराके पानमां, (२) प्रभु०॥१॥ एकेन्द्रिय बि-ति-चउरिन्द्रिमां, काळ गयो अज्ञानमां, हवे कोईक पून्योदय प्रगट्यो, आवी मिल्यो प्रभु ध्यानमां, प्रभु०॥२॥ अंतर भरम सवि गयो दूरे, तत्त्व सुधारस पानमां; प्रभु तुम दृष्टि भई मोहे उपर, अंतर आतम सानमां प्रभु०॥३॥ दरस सरस देख्यो जिनजी को, लगन लागी तारा ज्ञानमां, केवल कमला कंत कृपा निधि, औरन देख्यो जहानमां, प्रभु०॥४॥ अशरण. शरण जगत उपकारी, परमात्मा सुचि बानमां; जश कहे ध्यान प्रभुका ध्यावत, धारी नय प्रमाणमां प्रभु० मन मोयुं० ॥५॥
(16) सर्वसाधारण स्तवन (राग : साचो संगम प्रभु साथे)
सकल समता सुरलतानो, तुं ही अनोपम कंद रे; तुं ही कृपारस . कनककुंभो, तुंही जिणंद मुणिंद रे॥१॥ प्रभु तुंही तुंही तुंही तुंही, युही धरतां ध्यान रे; तुज स्वरूपी जे थया तेणे, लघु ताहरु तान रे।।प्रभु०॥२॥
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(17) श्री सामान्य जिन स्तवन पास जिणंदा माता वामाजीके नंदारे, तुम पर वारी जाउं बोल बोल रे, १ हारे दरवाजा तेरे खोल खोल रे, हम दरसन आये दोड दोड रे ।२। पूजा करुंगा में तो धूप धरूंगारे, फूल चढाउंगा बहु मोल मोल रे ।३। वे मेरा ठाकर में तेरा चाकर, एक वार मोसुं बोल बोल रे ।४। सुरत मंडन सुंदर सुरत, मुखडुते झाकम झोल रे झोल रे । ५। रूप विबुधनो मोहन प्रभणे, रंग लाग्यो चित्त चोल चोल रे ।६।।
(18) श्री सामान्य जिन स्तवन कृपा करो कृपा करो कृपा करो रे, सुमतिनाथ दादा मोहे कृपा करो रे, तारी कृपासे मारा काज सरो रे....१ कोल्हापुर शहेरना साई सोहामणा, देवाधिदेव करो दिलमां पधरामणा, अंतर पधारी मारूं श्रेय करो रे सु० २ भवनी गलीनो हुँ तो मँडो भिखारी, रूडा हे नाथ आज करू तारी यारी, शिवपुरना वासी मने याद करो रे सु० ३ तारे ने मारे नाथ अंतर जाजेलं, आवो अंतर तो मारा पापो विखेळं, पापो विखेरी दिलमां आवी मळो रे सु० ४ तारो विरह मारा दिलडाने डंखतो, तेथी तमारुं दर्स दिलथी हुं झंखतो, मोघेरी झंखनाने पूर्ण करो रे सु० ५ मंथन स्वरूप तारी यात्राना दावथी, टळशे वियोग तारो तारा सद्भावथी, मळवा एकांत मन मारूं मलो रे सु०६ प्रेमे सकळ संघ आज तने वंदतो, भुवन भानु तारो भक्त आनंदतो धर्मजित शीशतणी पीर हरो रे, ७
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पर्वतिथी ढाळो
(1) बीज तिथिनी ढाल--२ (दुहा) सरस वचन रस वरसती, सरसती कळा भंडार; बीजतणो महिमा कहुं जिम कह्यो शास्त्र मोझार...॥१॥ जंबु द्विपना भरतमा, राजगृही नयरी उद्यान; वीर जिणंद समोसर्या, वांदवा आव्या राजन...॥२॥ श्रेणिक नामे भूपति, बेठा बेसण ठाय: पूछे श्री जिनरायने, द्यो उपदेश महाराय...।।३।। त्रिगडे बेठा त्रिभुवन पति; देशना दिये जिनराय; कमळ सुकोमळ पांखडी, ओम जिन ह्रदय सोहाय०...।।४॥ शशी प्रगटे जिम ते दीने, धन्य ते दिन सुविहाण, अकमने आराधतां, पामे पद निर्वाण...॥५॥
ढा. १ कल्याणक जिननां कहुं, सुण प्राणीजी रे, अभिनंदन अरिहंत.
भगवंत, भवि प्राणीजीरे, माघ सुदि बीजने दिने सुण०; पाम्या शिवसुख सार, हरख अपार०...भवि०..॥१॥ वासुपूज्य जिन बारमा सुण० ओहज तिथे थयुं नाण, सफळ विहाण भवि०.. अष्ट कर्म चूरण करी, सुण० अवगाहन अकवार, मुक्ति मोझार०...भवि०..।।२।। अरनाथ जिनजी नमुं, सुण० अष्टादशमा अरिहंत, ओ भगवंत,...भवि०..उज्वल तिथि फागण भली सुण० वरिया शिववधु सार, सुंदर नार,...भवि०..॥३॥ दशमा शीतळ जिनेवरु सुण० परमपदनी जे वेल, गुणनी गेल;...भवि०..वैशाख वदि बीजने दिने, सुण० मूकयो सरवे ओ साथ, सुर नरनाथ,...भवि०..॥४॥ श्रावण सुदनी बीज भली, सुण० सुमतिनाथ जिन देव सारे सेव,...भवि०...णि तिथिओ जिनजी तणा, सुण कल्याणक पंच सार भवनो पार,...भवि०..॥५॥ ____ढा. २ (राग : एक दिन पुंडरिक) जगपति जिन चोविशमो रे लाल, ओ भाख्यो अधिकार रे भविक जन; श्रेणिक आदे सहु मव्यां रे लाल, शक्ति तणे अनुसार रे, भविकजन, भाव धरीने साभळो रे लाल०...॥१॥ दोय वरस दोय मासनी रे लाल, आराधो धरी हेत रे भविक जन; उजमगुं विधिशुं करो रे लाल, बीज ते मुक्ति महंत रे भविकज०...॥२॥ मार्ग
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मिथ्या दुरे तजो रे, लाल, आराधो गुण थोकरे भविकजन; वीरनी वाणी सांभळी रे लाल, उछरंग थया बहु लोक रे...भविक-जन०..॥३॥ आणी बीजे केई तर्या रेलाल, वळी तरशे, करशे संग रे, भविकजन, शशी सिद्धि अनुमानथी, रे लाल, शैला नागधर अंकरे, भविकजन०..॥४॥ अषाढ सुदि दशमी दिने रे लाल, ओ गायो स्तवन रसाळ रे, भविकजन; नवलविजय सुपसायथी रे लाल, चतुरने मंगळ माळ रे०..भविकजन०..॥५॥
(2) श्री सीमंधर जिन ढाळो-७ (दुहा) सुण सुण सरस्वती भगवती, ताहरी जग विख्यात; कविजननी कीर्ति वधे, तिम तुमे करजो मात. ॥१॥ सीमंधर स्वामी महाविदेहमां, बेठा करे वखाण; वंदना मारी त्यां जई, कहेजो चंदा भाण. ॥२॥ मुज ह्रदय संशय भयु, कोण आगळ कहुं वात, जे शु बांधी गोठडी, तस मुजन मीले धात०. ॥३॥ जाणुं तो आq कने, विषम वाट पंथ दुर; डूंगरने दरिया घणा, वच्चे नदी वहे पूर. ॥४॥ ते माटे इहां कने रही, जे जे करुं विलाप; ते तमे प्रभुजी सांभळी, अवगुण करजो माफ. ॥५॥ ___ ढा. १ भरत क्षेत्रना मानवी रे, ज्ञानी विना रे मुंझाय; तेणे कारण तुमने घणुं रे, प्रभुजी मनमां चहाय रे स्वामी०...॥१॥ आवो आणे क्षेत्र, तुम दर्शन जो देखीओ रे तो, निर्मळ थाय मारा नेत्र रे; स्वामी, आवो आणे क्षेत्र०..॥२॥ गाडरियो परिवार मिल्यो रे, घणा करे ते खास; परिक्षावंत थोडा हुवारे, श्रद्धानो अविश्वास रे०...स्वामी०...॥३॥ धर्मीनी तो हांसी करे रे, पक्ष विहुणो सीदाय, लोभ घणो जग व्यापीयो रे; तेणे साचुं नवि थाय रे०..स्वामी०...॥४॥ समाचारी जुदी जुदी रे, सहु कहे माहरो धर्म; खरं खोटुं केम जाणीअरे, ते कोण भांगे भर्म रे स्वामी०...॥५॥ ___ढा. २ वीरजी ज्यारे इहा विचरता, त्यारे वर्तति शांतिरे; जे जन
आवीने पूछता, तस भांगती भ्रांती रे०...॥१॥ है है ज्ञानीनो विरह पड्यो, ते तो दहे मुज दुःख रे; स्वामी सीमंधर तुज विना, ते मुज कुण करे सुख रे०...॥२॥ विरहिणीनी रयणी जेसी, तेसी मुज घडी जाय रे; वात मुखे नवनवी सांभळी, पण निर्णय नवि थाय रे०...॥३॥ जे जे दुर्भागी जीवडा,
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ते तो अवतर्यां अहीं रे; भूला भमे रे वाडोलीये, जीहां केवळी नाहीं रे०...॥४॥ धन्य महाविदेहना मानवी, जीहां जिनजी आरोग्य रे; ज्ञान दर्शन चरण आदरी, संयम लिये गुरु योग रे०...॥५।। ____ढा. ३ सीमंधर स्वामी माहरा रे; तुं गुरु ने तुं ज देव; तुज विण अवर न ओळखुं रे, न करुं अवरनी सेव रे; इहांकने आवजो, वळी चतुर्विध संघने रे साथे लावजो रे०...॥१॥ ते संघ केम क्रिया करे रे, केणी परे ध्यावे रे ध्यान, व्रत पच्चक्खाण किम आदरे रे; केणी परे दीओ बहुं दान रे०..॥२॥ इहां उचित क्रिया नहीं रे, अनुकंपा लवलेश; अभय सुपात्र अल्प हुवा रे, ओवो भरत आ देश रे०...॥३॥ निश्चय सरसव जेटलो रे, बहु चाल्यो व्यवहार; अभ्यंतर विरला हुवा रे; झाझो बाहय आचार रे, इहां कणे आवजो०..॥४॥
ढा. ४ सीमंधर तुं माहरो साहिब; हुँ सेवक तारो दास रे; तुज विना भव भमी करी थाकयो, हवे आपो शिववासरे...॥१॥ अणे वाटे वटे मार्गु नावे, नावे कासीद कोयरे कागल कुण साथे पहोचाईं, हुं मोहयों तुज मांही रे...॥२।। तृष्णानुं दुःख होत न मुजने, होत संतोषनुं ध्यान रे; तो हुं ध्यान धरत प्रभु ताहरु, स्थिर करी राखत मन्न रे०..॥३॥ चार कषाय धटमां रहया व्यापी, रातो इंद्रिय रस रे; मदनपणुं कहो कयारे व्यापे, नावे मुज मन्न वश रे..॥४॥ निबिड परिणामे गांठो बांधी, ते केम छुटशे स्वाम रे; ते हुन्नर छे तुजमां प्रभुजी, आवो अमारे काम रे...॥५॥ ___ढा. ५ सीमंधर जिन अम कहे, पूछे तिहांनां लोक रे; भरत क्षेत्रनी वातडी, सांभळे सुर नर थोकरे,...॥१॥ त्रीजो आरो बेठा पछी, जाशे केटलोक काळ रे, पद्मनाभ प्रभु तव होंशे, ज्ञाननो झाकझमाळ रे,...॥२॥ छठे आरेरे जे होशे, ते प्राणी ना महापाप रे; शाता नहीं अके घडी, रविना झाझेरा ताप रे०...॥३॥ ओछा आयुं मानव तणा, मोटा देवना आयरे; सुख भोगवतां स्वर्गमां, सागर पल्योपम जाय रे०...॥४॥ सरागी नर ओम कहे, तुमे तारो भगवंत रे; आपेथी आपे तरे, ओम सहु सणो संतरे...।।५।। ___ ढा. ६ ओवी सूत्रमा जीवते वातो सांभळी रे; म करतुं हवे विखवाद; जो रे जीवते पुरण पुण्य कीधा नहीं रे, तो किम पहोंचे आश रे, जिनजी
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किम मळे रे, भोळाशुं रडवडे रे...॥१॥ चोळमजीठ सरीखो जिनजी साहिबो रे, तुं तो गळीनो रे रंग; कटका काच तणुं मुल्य तुजमां नही रे, प्रभुतो नगीनो नंग...॥२॥ भ्रमर सरीखो भोगी श्री भगवंतजी रे; तुं तो माखीने. तोलरे सरखा सरखी विण केम वाजे गोठडी रे; ह्रदय विचारी जोय०... ॥३॥ तुं सरागी प्रभु विरागीमां वडो रे; किम तेडे तुज त्यांहि, शो गुण देखी, तुज उपर करुणा करे रे, किम आवे प्रभु आहिं...॥४॥ कर्म साथे लपटाणो जीवडो जिहां लगेरे, तिहां लगे नही अवकाश; ज्यारे तुजमां समताना गुण आवशे रे, त्यारे जईश प्रभुजीनी पास...॥५।।
ढा. ७ सीमंधर स्वामी तणी गुणमाळा, जे नर भावे भणशे; तस शिर वैरी कोई न व्यापे,कर्म शत्रु ने हणशे रे हमचडी०...॥१॥ सीमंधर स्वामी तणी गुण रचना, जे नरनारी भणशे, सखी सोभागणी पीयर पनोती, पुत्र सुलक्षण जणशेरे...॥२॥ सीमंधर स्वामी शीवपुरी गामी, कविता कहे शिरनामी, वंदना मारी हृदयमां घारी; धर्मलाभ द्यो स्वामी रे०...॥३॥ श्री तपगच्छनो नायक सुंदर, विजय देवपट्ट धारी; कीर्ति जेहनी जगमां झाझी, बोले नरने नारी रे.॥४॥
(3) श्री ज्ञानपंचमीनुं स्तवन (राग : वासुपूज्य विलासी) ज्ञान पंचमी सेवो, मुक्तिनोमेवो चाखो चतुर सुजाण,
महानिशीथे पंचमी महिमां, भाखे श्री गणधार, पंचमीदिन पंचज्ञान आराधी, पंचमी गती दाताररे ज्ञा० ॥१॥ मति श्रुत अवधि मनः पर्यव, पंचम केवलज्ञान; एकावन भेदे करी रे, सेवो शास्त्र प्रमाण रे ज्ञा० ॥२॥ ज्ञान पंचमी आराधी सुधी, पंचमी करो उपवास, ज्ञान आराधना कीजीये रे, पंच वरस पंचमास रे ज्ञा० ॥३॥ ॐ ह्रीं नमो नाणस्सनी रे, नवकारवाळीवीश, एकावन लोगस्स स्वस्तिक अरू, खमासमण जगदीश रे ज्ञा० ॥४॥ ज्ञान विना नवी जाणता रे, धर्मा धर्म विवेक, अज्ञानी पशु सारीखा रे, बांधे कर्म अनेक रे ज्ञा० ॥५॥ पंचमी तप सुपसायथी रे, प्रगटे सम्यग्ज्ञान, कर्मदहन करी ज्ञानथी रे, पामे अविचल ठाण रे ज्ञा० ॥६॥ जिनवरदत्त गुणमंजरी रे, आराध्यो तप एह, वीर आराधे ज्ञानने रे धन्य जगतमां तेहरे, ज्ञान पंचमी सेवो, मुक्तिनो मेवो, चाखो चतुर सुजाण रे ज्ञा० ॥७॥
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__(4) श्री ज्ञान पंचमीनी ढाल-६ ढा. १ प्रणमी पार्थ जिनेश्वर प्रेमशुं, आणी उलट अंग चतुर नर! पंचमी तप महिमा महियल घणो, कहे शुं सुणजो रे रंग चतुरनर, भाव भले पंचमी तप कीजीओ, ॥१॥ इम उपदेशे हो नेमि जिनेश्वरु, पंचमी करजो रे तेम च० गुणमंजरी वरदत्त तणी परे, आराधे फळ जेम. च० ॥२॥ जंबुद्विपेहो भरत मनोहरु, नयरी पद्मपुर खास च०, राजा अजित सेनाभिध तिहा कणे, राणी यशोमती तास च० ॥३॥ वरदत्त नामे हो कुंवर तेहनो, कोढे व्यापी रे देह, च० ज्ञान विराधीने कर्म जे बांधीयुं, उदये आव्यु रे तेह च० ॥४॥ तेणे नयरे सिंहदास गृहिवसे, कपूर तिलका तस नार च०, तस बेटी गुणमंजरी रोगीणी, वचने मुंगी रे खास च० ॥५॥ चउनाणी विजयसेन सूरिधरुं, आव्या तिण पुर जाम च० राजा शेठ प्रमुख वंदन गया, सांभळी देशना ताम च० ॥६॥ पूछे तिहां सिंहदास गुरु प्रत्ये, उपन्यो पुत्रीने रोग. च० थई मुंगी वळी परणे को नहीं, ओ श्यां कर्मना भोग. च० ॥७॥ गुरु कहे पुरवभव तमे सांभळो, खेटक नयरे वसंत च० श्री जिनदेव तिहां व्यवहारीयो, सुंदरी गृहीणीनो कंत. च० ॥८॥ बेटा पांच थया हवे तेहने पुत्री अति भली चार.च० भणवा मूकया हो पांचे पुत्रने, पण ते चपळ अपार. च० ॥६॥ ___ ढा. २ ते सुत पांच हो के, पढण करे नही, रमत रमता हो के, दिन जाये वही, शीखवे पंडीत हो के, छात्रने शीश करी, आवी माताने होके, कहे सुत रुदन करी,...॥१॥ मात अध्यारु हो के, अमने मारे घणु, काम अमारे होके, नहीं भणवा तj, शंखणी माता हो के, सुतने शीख दीये, भणवा मत जाजो होके, शुं कंठ शोष कीये, ॥२॥ तेडवा तमने हो के, अध्यारु आवे, तो तस हणजो हो के, पुनरपि जीम नावे, शीखवी सुतने हो के, सुंदरीओ तिहां, पाटी पोथी होके, अग्निमां नांखी दीया...॥३॥ ते वात सुणीने हो के, जिनदेव बोले इस्युं, फिटरे सुंदरी होके, जे काम कर्यु कीस्युं, मुरख राख्या हो के, जे सर्व पुत्र तमे...॥४॥ नारी बोली हो के, नवि जाणुं अमे. मुरख मोटा हो के, पुत्र थया ज्यारे, न दीओ कन्या होके, कोई तेहने त्यारे, कंत कहे सुण होके, ओ करणी तुमची, वयण न मान्यां
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हो के, ते पहेलां अमचा,...॥५॥ अम वात सुणीने होके, सुंदरी क्रोधे चडी, प्रीतम साथे हो के, प्रेमदा अतिही वढी, कंते मारी हो के, तिहांथी काळ करी, तुम बेटी हो के, थई गुणमंजरी...॥६॥ पूर्व भवे अणे हो के, ज्ञान विराधीउं, पुस्तक बाळी हो के, कर्म जे बांधी उ, उदये आव्युं हो के, देहे रोग थयो, वचने मुंगी हो के, ओ फळ तास लह्यो...।७।।
ढा. ३ निज पूरव भव सांभळी, गुण मंजरी ओ त्यांहि ललना. जाति समरण पामीयु; गुरुने कहे उत्साह ललना, भविका ज्ञान अभ्यासीओ...॥१॥ ज्ञान भलो गुरुजी तणो, गुण मंजरी कहे ओम ललना; शेठ पूछे गुरुने तिहां, रोग जावे हवे केम ललना...॥२॥ गुरु कहे हवे विधि सांभळो, जे कह्यो, शास्त्र मोझार, कार्तिक सुदि दिन पंचमी, पुस्तक आगळ सार ललना...॥३।। दीवो पंच दीवेट तणो, कीजीओ स्वस्तिक सार ल० नमो नाणस्स गुणगुं गुणो चोविहार उपवास ललना...॥४॥ पडिक्कमणा दोय कीजीओ, देववंदन त्रण काळ ललना...पांच वरस पांच मासनी, किजीओ पंचमी सार ललना...॥५॥ तप उजमणुं पारणे, किजिओ विधिनो प्रपंच ललना...पुस्तक आगळ मुकवां सघळां वाना पांच, ललना...॥६॥ पुस्तक ठवणी पुंजणी, नवकारवाळी प्रत ललना, लेखण खडीया दाभडा, पाटी कवळी युक्त, ललना...॥७॥ धान्य फळादिक ढोईओ, कीजीओ ज्ञाननी भक्ति, ललना... उजमणं ओम कीजीओ, भावथी जेवी शक्ति, ललना...॥८॥ गुरुवाणी अम सांभळी पंचमी किधी तेह ललना, गुण मंजरी मुंगी टळी, निरोगी थई देह ललना...॥६॥
ढा. ४ राजा पूछे साधुने रे, वरदत्त कुमार ने अंग, कोढ रोग से कीम थयो रे, मुज भाखो भगवंत, सद्गुरुजी धन्य तमारु ज्ञान...॥१॥ गुरु कहे जंबुद्विपमां रे, भरते श्रीपुर गाम, वसुनामा व्यवहारीयो रे, दोय पुत्र तस नाम स०...॥२॥ वसुसारने वसुदेवजीरे, दीक्षा लीओ गुरु पास, लधु बंधव वासु देवने रे, पदवी दीओ गुरु तास स०...॥३॥ पंच सहस अणगारने रे, आचारज वसुदेव, शास्त्र भणावे खंतशं रे, नहीं आळस नित्य मेव...॥४॥ ओक दिन सूरि संथारीयारे, पूछे पद ओक साधु, अर्थ कहीयो तेहने रे, वळी आव्यो बीजो साधु स०...॥५॥ अम बहु मुनि पद पुछवारे, ओक आवे ओक
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जाय, आचारजनी उंघमारे, थाय अति अंतराय स०...॥६॥ सूरि मन ओम चिंतवे रे, कयां मुज लाग्युं पाप, शास्त्र में ओ अभ्यासीयो रे, तो अटलो संताप स०...॥७॥ पद न कहं हवे केहने रे, सघळा मुकू विसार, ज्ञान उपर ओम आणीयो रे, त्रिकरण क्रोध अपार स०...॥८॥ बार दिवस अण बोलीया रे, अक्षर न कह्यो ओक, अशुभ ध्याने ते मरी रे, ओ सुत तुज अविवेक स०...||६|| ___ढा. ५ वाणी सुणी वरदत्तेजी, जाति स्मरण लघु; निज पूर्व दीठोजी; जेम गुरुओ कह्यु, वरदत्त कहे तव गुरुनेजी, रोग जे केम जावे, सुंदर काया होवेजी, विद्या केम आवे...॥१॥ भांखे गुरुजी भली भातजी, पंचमी तप करो, ज्ञान आराधो रंगेजी, उजमणुं करो, वरदत्ते ते विधि कीधीजी, रोग दुरे गयो, भुक्त भोगी राज्य पाळीजी, अंते सिद्ध थयो...॥२॥ गुण मंजरी परणावीजी, शाह जिनचंद्रने, सुख भोगवी पछी लीधुंजी, चारित्र सुमतिने, गुणमंजरी वरदत्तेजी, चारित्र पाळीने, विजय विमाने पहोच्यांजी, पाप प्रजाळीने,...॥३॥ भोगवी सुरसुख तिहांधीजी, चविया दोय सुरा, पाम्यां जंबु विदेहेजी, मानव अवतारा, भोगवी राज्य उदारजी, चारित्र लीये सारा, हुवा केवळ ज्ञानीजी, पाम्या भव पारा...॥४॥ ___ ढा. ६ जगदीश्वर नेमिश्वरु रे लोल, ओ भाख्यो संबंध रे, सोभागी लाल, बारे पर्षदा आगळे रे लाल, ओ सघळो प्रबंध रे सो० ॥१॥ नेमिश्वर जिन जय करु रे लोल...॥१॥ पंचमी तप करवा भणी रे लोल, उत्सुक थया बहु लोक रे, सो० महापुरुषनी देशना रे लाल, ते कीम होवे फोक रे, सो० ॥२॥ कार्तिक सुदि जे पंचमी रे, लाल, सौभाग्य पंचमी नाम रे सो०, सौभाग्य लही ओ अहथी रे लाल, फळे मनवांछित काम रे सो० ॥३॥ समुद्र विजय कुळ शेहरो रे लाल ब्रह्मचारी शीरदार रे सो०, मोहनगारी मानीनी रे लाल, रुडी राजुल नार रे सो० ॥४॥ ते नवि परणी पद्मिनी रे लाल, पण राख्यो जेणे रंग रे सो० मुक्ति महेलमां बेहुं मव्यां रे लोल, अविचळ जोड अभंग रे सो० ॥५॥ तेणे ओ महात्म्य भाखीयुं रे लाल, पांचमनुं प्रगटरे सो०, जे सांभळतां भावभुं रे लाल श्री संघने गह गट्टरे सो० ॥६।।
(कळश) ओम सयळ सुखकर, सयळ दुःखहर, गायो नेमि जिणेसरो,
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तपगच्छ राजा, वडदिवाजा, विजयानंदसूरिश्वरो, तस चरण पद्म पराग मधुकर, कोविंद कुंवर विजय गणी, तस शिष्य पंचमी स्तवन भांखे, गुण विजय रंगे मुनि,...॥७॥
___(5) ज्ञानपंचमीनी ढाळो-६ (ढाल-१) सुत. सिद्धारथ भूपनो रे, सिद्धारथ भगवान, बार पर्षदा आगळे रे, भाखे श्री वर्द्धमाको रे। भवियण चित्त धरो, मन वच काय उम्हायो रे ज्ञानभक्ति करो। १. ए आंकणी । गुण अनंत आतमतणा रे, मुख्यपणे तिहां दोय; तेमां पण ज्ञान ज वडुरे, जिणथी दंशण होय रे। भ० २. ज्ञाने चारित्र गुण वधे रे, ज्ञाने उद्योत सहाय; ज्ञाने स्थविरपणुं लहे रे, आचारज उवज्झायो रे । भ० ३. ज्ञानी श्वासोश्वासमां रे, कठिण करम करे नाश; वह्नि जेम इंधण दहे रे, क्षणमां ज्योति प्रकाशो रे । भ० ४. प्रथम ज्ञान पछे दया रे, संवर मोह विनाश; गुणस्थानक पगथालीये रे, जेम चडे मोक्ष आवासो रे। भ० ५. मई सुअ ओहि, मणपज्जवा रे, पंचम केवलज्ञान; चउ मुंगा श्रुत एक छे रे, स्वपरप्रकाश निदानो रे। भ० ६. तेहना साधन जे कह्यां रे, पाटी पुस्तक आदि; लखे लखावे साचवे रे, धर्मी धरी अप्रमादो रे। भ० ७. त्रिविध आशातना जे करे रे, भणतां करे अंतराय; अंधा बहेरा बोबडा रे, मुंगा पांगळा थाय रे । भ० ८. भणतां गुणतां न आवडे रे, न मळे वल्लभ चीज; गुणमंजरी वरदत्त परे रे, ज्ञान विराधन बीज रे। भ० ६. प्रेमे पूछे पर्षदा रे, प्रणमी जगगुरु पाय; गुणमंजरी वरदत्तनो रे, करो अधिकार पसायो रे। भ० १०.
(ढाळ २) (राग : आवो आवो देव मारा) जंबुद्विपना भरतमा रे, नयर पद्मपुर खास; अजितसेन राजा तिहां रे, राणी यशोमती तास रे। प्राणी आराधो वर ज्ञान, एहि जै मुक्तिनिदान रे प्राणी आराधो वर ज्ञान०। १. वरदत्त कुंवर तेहनो रे, विनयादिक गुणवंत; पिताए भणवा मूकीओ रे, आठ वरस जब हुंत रे। प्रा० २. पंडित यत्न करे घणो रे, छात्र भणावण हेत; अक्षर एक न आवडे रे, ग्रंथतणी शी चेत रे ? प्रा० ३. कोढे व्यापी देहडी रे, राजा राणी सचिंत; श्रेष्ठी तेही ज नयरमां रे; सिंहदास धनवंत रे। प्रा० ४. कर्पूरतिलका मेहिनी रे, शीले शोभित अंग; गुणमंजरी तस बेटडी रे, मूंगी
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रोगे व्यंग रे। प्रा० ५. सोळ वरसनी सा थई रे, पामी यौवन वेष; दुर्भग पण परणे नहीं रे, मातपिता धरे खेद रे। प्रा० ६. तेणे अवसरे उद्यानमां रे, विजयसेन गणधार; ज्ञानरयण रयणायरु रे, चरणकमल व्रतधार रे। प्रा० ७. वनपालके भूपालने रे, दीध वधाई जाम; चतुरंगी सेना सजी रे। वंदन जावे ताम रे। प्रा० ८. धर्म देशना सांभळे रे, पुरजन सहित नरेश; विकसीत नयण वदन मुदा रे, नहि प्रमाद प्रवेश रे। प्रा० ६. ज्ञान विराधन परभवे रे, मूरख पर आधीन; रोगे पीड्या टळवळे रे, दीसे दुःखिया दीन रे । प्रा० १०. ज्ञान सार संसारमा रे, ज्ञान परम सुख हेत; ज्ञान विना जग जीवडा रे, न लहे तत्व संकेत रे। प्रा० ११. श्रेष्ठी पूछे मुणिंदने रे, भाखो करुणावंत; गुणमंजरी मुज अंगजा रे, कवण करम विरतंत रे। प्रा० १२.
(ढाळ ३) (राग : सरस वचन रस वरसती) धातकी खंडना भरतमां, खेटक नयर सुठाम; व्यवहारी जिनदेव छे, घरणी सुंदरी नाम। १ अंगज पांच सोहामणां, पुत्री चतुरा चार; पंडित पासे शिखवा, ताते मूक्या कुमार। २ बाल स्वभावे रमत, करतां दहाडा जाय; पंडित मारे त्यारे मा, आगळ कहे आय। ३ सुंदरी शंखणी शीखवे, भणवानुं नहि काम; पंड्यो आवे तेडवा, तो तस हणजो ताम। ४ पाटी खडीया लेखण, बाळी कीधां राख, शठने विद्या नवि रूचे, जिम करहाने प्राख । ५ पाडा परे म्होटा थया, कन्या न दिए कोय; शेठ कहे सुण सुंदरी, ए तुज करणी जोय। ६ त्रटकीभाखे भामिनी, बेटा बापना होय; पुत्री होये मातनी, जाणे छे सौ कोय। ७ रे रे पापिणी सापिणी, सामा बोल म बोल; रीसाळी कहे ताहरो, पापी बाप निटोल । ८ शेठे मारी सुंदरी, काल करी ततखेव; ए तुज बेटी उपनी, ज्ञान विराधन हेव |६| मूच्छांगत गुणमंजरी, जाति स्मरण पामी; ज्ञान दिवाकर साचो, गुरूने कहे शिरनामी। १० शेठ कहे सुणो स्वामी, किम जावे ए रोग; गुरू कहे ज्ञान आराधो, साधो वंछित योग। ११। उज्वल पंचमी सेवो, पंच वरस पंच मास; 'नमो नाणस्स' गणणुं गणो, चोविहार उपवास । १२ पूरव उत्तर सन्मुख, जपीये दोय हजार; पुस्तक आगळ ढोईए, धान्य फलादि उदार । १३ दीवो पंच दीवेटतणो, साथीओ मंगल गेह; पोसहमां न करी शके, तेणे विधि पारणे एह। १४ अथवा सौभाग्य पंचमी,
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उज्वल कार्तिक मास; जावज्जीव लगे सेवीये, उजमणा विधि खास । १५'
(ढाळ ४) पांच पोथी रे, ठवणी पाठां विटांगणा, चाबखी दोरा रे, पाटी पाटला वतरणां; मसी कागल रे, कांबी खडीआ लेखणी, कवली डाबली रे, चंद्रुआ झरमर पुंजणी।१।
(त्रुटक) प्रासाद प्रतिमा तास भूषण, केसर चंदन डाबली, वासकुंपी वाळाकुंची। अंगलुहणां छाबडी; कलश थाळी मंगळदीवो, आरतिने धूपणां, चरवला मुहपत्ति साहमिवच्छल, नवकारवाली स्थापना।२।
(ढाळ) ज्ञान दरिशण रे; चरणनां साधन जे कयां, तप संयुत रे, गुण मंजरीए सद्यां , नृप पूछे रे, वरदत्त कुंवरने अंगरे, रोग उपनो रे, कवण करमना भोग रे ।३। ।
(त्रुटक) मुनिराज भाखे जंबूद्विपे, भरत सिंहपुर गाम ए, व्यवहारी वसु तास नंदन, वसुसार वसुदेव नाम ए, वनमाहे रमतां दोय बांधव, पुन्ययोगे गुरु मत्र्यां, वैराग्य पामी भोग वामी, धर्म धामी संचर्या । ४ ।
(ढाळ) लघु बांधव रे, गुणवंत गुरू पदवी लहे, पणशय मुनिने रे, सारण वारण नितु दीए; कर्मयोगे रे, अशुभ उदय थयो अन्यदा, संथारे रे, पोरसि भणी पोढ्यां यदा । ५।
(त्रुटक) सर्वघाती निंद व्यापी, साधु मांगे वायणा, उंघमां अंतराय थातां, सूरी हुआ दूमणां; ज्ञान उपर द्वेष जाग्यो, लाग्यो मिथ्यात्व भूतडो । पुण्य अमृत ढोळी नांख्युं, भर्यो पापतणो घडो । ६।
(ढाळ) मन चिंतवे रे, कां मुज लाग्युं पाप रे, श्रुत अभ्यासो रे, तो एवडो संताप रे; मुज बांधव रे, भोजन शयन सुखे करे, मूरखना रे, आठ गुण मुख उच्चरे ।७।
(त्रुटक) बार वरस कोई मुनिने, वांचना दिधी नहि, अशुभध्याने आयु पूरी, भूप तुज नंदन सही; ज्ञान विराधने मूढ जडपणुं, कोढनी वेदना लही, वृद्ध बांधव मान सरवर, हंस गति पाम्यो सही। ८।
(ढाळ) वरदत्तने रे, जातिस्मरण उपन्युं, भव दीठो रे, गुरू प्रणमी कहे
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शुभ मनो; धन्य गुरूजी रे, ज्ञान जगमाय दीवडो, गुण अवगुण रे, भासन जे जग परवडो ।६।
(त्रुटक) ज्ञान पावन सिद्ध साधन; ज्ञान कहो केम आवडे ? गुरू कहे तपथी पाप नाशे, टाढ जेम घन तावडे, भूप पभणे पुत्रने प्रभु, तपनी शक्ति न एवडी, गुरू कहे पंचमी तप आराधो, संपदा ल्यो बेवडी । १० ।
(राग : मेंदी ते वावी मांडवे रे) (ढाळ प) सद्गुरु वयण सुधारसे रे, भेदी साते धात, तपशुं रंग लाग्यो; गुणमंजरी वरदत्तनो रे, नाठो रोग मिथ्यात, तप० १ पंचमी तप महिमा घणो रे, प्रसर्यो महीयलमांही; तप० कन्या सहस स्वयंवरा रे, वरदत्त परण्यो त्यांही, तप० २ भूपे कीधो पाटवी रे, आप थयो मुनि भूप, तप० भीमकांत गुणे करी रे, वरदत्त रवि शशि रूप तप० ३ राजरमा रमणी तणां रे, भोगवे भोग अखंड; तप० वरसे वरसे उजवे रे, पंचमी तेज प्रचंड। तप० ४ भुक्त भोगी थयो संजमी रे, पाले व्रत षट्काय; तप० गुणमंजरी जिनचंद्रने रे, परणावे निज ताय तप० ५ सुख विलसी बई साधवी रे, वैजयंते दोय देव; तप० वरदत्त पण उपनो रे, जिहां सीमंधर देव, तप० ६ अमरसेन राजा घरे रे, गुणवंत नारी पेट; तप० लक्षण लक्षित रायने रे, पुण्ये कीधो भेट। तप० ७ शूरसेन राजा थयो रे, सो कन्या भरथार, तप० सीमंधर स्वामी कने रे, सुणी पंचमी अधिकार, तप० ८ तिहां पण ते तप आदर्यु रे, लोक सहित भूपाल तप० दशहजार वरसा लगे रे, पाले राज्य उदार तप० ६ चार महाव्रत चोपशुं रे, श्री जिनवरनी पास; तप० केवलधर मुक्ते गयो रे, सादि अनंत निवास, तप० १० रमणी विजय शुभापुरी रे, जंबूविदेह मोझार; तप० अमरसिंह मही पालने रे, अमरावती घरनार, तप० ११ वैजयंत थकी चवी रे, गुणमंजरीनो जीव; तप० मानसरोवर हंसलो रे, नाम धर्यु सुग्रीव, तप० १२ वीशे वरसे राजवी रे, सहस चोराशी पुत्र; तप० लाख पूरव समता धरे, रे, केवलज्ञान पवित्र, तप० १३ पंचमी तप महिमा विषे रे, भाखे निज अधिकार; तप० जेणे जेहथी शिवपद लयुं रे, तेहने तस उपकार । तप० १४ ....
(ढाळ ६) चोवीश दंडक वारवा हुं वारी लाल, चोवीशमो जिनचंदरे,
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हुं वारी लाल; प्रगट्यो प्राणत स्वर्गथी, हुं वारी लाल, त्रिशला उर सुखकंद ना रे, हुं वारी लाल, महावीरने करूं वंदणा, हुं वारी लाल । १ पंचमी गतिने साधवा, हुं वारी लाल पंचमनाण विलास रे, हुं वारी लाल । महानिशीथ सिद्धांतमां, हुं वारी लाल, पंचमी तप प्रकाश रे, हुं वारी लाल, २ अपराधी पण उद्धर्यो, हुं वारी लाल;, चंडकोशियो नाग रे, हुं वारी लाल; यज्ञ करता ब्राह्मणा, हुं वारी लाल, सरखा कीधा आप रे, हुं वारी लाल। ३ देवानंदा ब्राह्मणी, हुंवारी लाल, ऋषभदत्त वळी विप्र रे, हूं वारी लाल; ब्यासी दिवस संबंधथी, हुं वारी लाल, कामित पूर्यो क्षिप्रे रे, हुं वारी लाल, ४ कर्म रोगने टाळवा, हुं वारी लाल, सर्व औषधनो जाण रे, हुं वारी लाल; आदर्यो में आशा धरी, हुं वारी लाल, मुज उपर हित आण रे, हुं वारी लाल, ५ श्री विजयसिंह सूरीशनो, हुं वारी लाल, सत्यविजय पंन्यास रे, हुं वारी लाल; शिष्य कपूरविजय कवि, हुं वारी लाल, चंदकिरण जस जास रे, हुं वारी लाल। ६ पास पंचासरा सानिध्ये, हुं वारी लाल, खीमाविजय गुरू नाम रे, हुं वारी लाल; जिनविजय कहे मुज हजो, हुं वारी लाल, पंचमी तप परिणाम रे, हुं वारी लाल । ७
(कळश) इम वीरलायक विश्वनायक, सिद्धिदायक संस्तव्यो, पंचमी तप स्तवन टोडर, गुंथी जिन कंठे ठव्यो; पुण्य पाटण क्षेत्र मांहे, सत्तर त्राणुं संवत्सरे, श्री पार्थ जन्म कल्याणक दिवसे, सकल भवि मंगल करे। (6) ज्ञानपंचमी स्तवन ढाल-५ (राग : पहेले भवे एक गामनो रे)
(ढाळ १) श्री गुरुचरण नमी करी रे, प्रणमी सरस्वती माय, पंचमी तप विधिशं करो रे। निर्मल ज्ञान उपाय, भविकजन कीजे ए तपसार, जन्म सफल निरधार भविकजन लहीये सुख श्रीकार १ समवसरण देवे रच्युं रे, बेठां नेमि जिणंद; बारे पर्षदा आगले रे, भांखे श्री जिनचंद। भविक० २ ज्ञानवडो संसारमा रे, शिवपुरनो दातार, ज्ञानरूपी दीवो कह्यो रे, प्रगट्यो तेज अपार । भविक० ३ ज्ञान लोचन जब निरखीये रे, तवं देखे लोकालोक; पशुआ परे ते मानवी रे, ज्ञान विना सवि फोफ। भविक० ४ ज्ञानी धासोधासमां रे, कर्म करे जे नाश, नारकीना ते जीवने रे, कोडी वरस शुं विलास। भविक० ५ आराधक अधिको कह्यो रे, भगवति सूत्र
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मोझार; क्रियावंतने आगले रे, ज्ञान सकल शिरदार । भविक० ६ कष्ट क्रिया तो सहु करे रे, तेहथी नहि कोई सिद्ध; ज्ञान क्रिया जब दो मिले रे, तव पामे बहुली ऋद्ध । भविक० ७ कोणे आराधी एहवी रे, कोइ ने फळी तत्काळ; तेह उपर तुमे सांभळो रे, एहनी कथा रसाळ। भविक० ८ जंबूद्विपे सोहामणो रे, भतक्षेत्र अभिराम, पद्मपुर नगरे शोभता रे, अजितसेन राय नाम। भविक० ६ शिल सौभागी आगले रे, यशोमति राणी नार; वरदत्त बेटो तेहनो रे, मूरखमां शिरदार। भविक० १० मातपिता मन रंगशुं रे, मूके अध्यापक पास; पण तेहने नवि आवडे रे, विद्या विनय विलास । भविक० ११ जिम जिम यौवन जागतो रे, तिम तिम तनु बहु रोग; कोढ थयो वळी तेहने रे, विषमा कर्मना भोग, भविक० १२ आदरीओ आदर करी रे सौभाग्य पंचमी सार; सुख सघळां स्हेजे मिले रे, पामे ज्ञान अपार । भविक० १३
(दुहा) तिलकपुर शेठ वसे तिहां, सिंहदास गुणवंत, जैन धर्म करतां लहे, कंचन कोडी अनंत । १। कपूरतिलका सुंदरी, चाले कुल आचार; तेहनी कुखे अवतरी, गुणमंजरी वरनार । २। मूंगी थई ते बाळीका, वचन वदे नहीं एक, जिम जिम अति औषध करे, तिम तिम तनुं बहु रोग ।३ । सोल वरस तेहने थयां, परणे नहीं कुमार; एहने कोई वांछे नही; स्वजनादिक परिवार । ४।
(ढाळ २) एहवे आवी समोसर्या, श्री विजयसेन सूरिंदरे सुंदर; ज्ञानीगुरुने वांदवा, पुत्र सहित भूपवृंद रे सुंदर । १ सद्गुरु दीये धर्म देशना, सांभळो चतुर सुजाण रे सुंदर; ज्ञान भणो भवि भावशू, जिम लहो कोडि कल्याण रे सुंदर० २ सिंहदास सुत आपणो, आवी नम्यो करजोड रे सुंदर; विधिशुं वांदि देशना, सांभळवाना कोड रे। सुंदर० ३ ज्ञान आशातना जे करे, ते लहे दुःख अनेक रे सुंदर; वाचा पण नवि उपजे, बालपदे अविवेक रे सुंदर० ४ इहभव परभव दुःख लहे, दुष्ट कुष्टादिक रोग रे, सुंदर; परभव पुत्र न संपजे, कलत्रादि वियोग रे। सुंदर० ५ सिंहदास पूछे हवे, निज बेटीनी वात रे। सुंदर; श्या कर्मे रोग उपन्यो, ते कहो सकल अवदात रे । सुंदर० ६ गुरु कहे शेठजी सांभळो, पूर्वभव विरतंत रे। सुंदर; धातकी
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खंडमध्ये भरतमां, खेटक नगरे निरखंत रे। सुंदर० ७ जिनदेव वणिक वसे तिहां, सुंदरी नामे नाम रे | सुंदर; पांच बेटा गुण आगला, चारसुता मनोहार रे। सुंदर० ८ एक दिन भणवा मूकीया, होंश धरी मनमांही रे। सुंदर; चपलाई करे चोगुणी, न भणे हरखे उच्छांही रे। सुंदर० ६ शिखामण पंड्यो दीये, आवी रूवे माता पास रे। सुंदर; कोप करी वळतुं कहे, बेठा रहो घर वास रे। सुंदर० १० चूलां मांही नांखीया, पुस्तक पाटी सोय रे। सुंदर; रीसे धमधमती कहे, आखर मरशे सहु कोय रे । सुंदर० ११ कंत कहे नारी प्रत्ये, कोण दीए कन्यादान रे। सुंदर; मूरख गुण ग्रहे नहिं, न लहे आदरमान रे। सुंदर० १२ बिहु जण मांही बोलता, क्रोध वध्यो विकराल रे। सुंदर; जिनदेवे मार्यु मुशलुं, मरण पामी तत्काल रे। सुंदर० १३ तेह मरी गुणमंजरी, अवतारी ताहरे गेह रे । सुंदर; जातिस्मरण उपन्युं, प्रगटी पुन्यनी रेह रे । सुंदर० १४ साचुं साचुं सहु कहे, ज्ञान भणो गुणखाण रे। सुंदर; तपनो जो उद्यम करो, तो लहो केवलज्ञान रे। सुंदर० १५.
(दुहा) पांसठ महिना कीजीये, मास मास उपवास; पोथी थापो आगले, स्वस्तीक पुरो खास । १। पांच पांच फल मूकीये, पांच जातिनां धान; पांच वाटी दीवो करे, पांच ढोउं पकवान । २। कुसुम भला आणी करी, धूप पूजा करी सार; नमो नाणस्स गुणणु गणो, उत्तरदिशि दोय हजार । ३ । भक्ति करे स्वामीतणी, शक्ति तणे अनुसार; जिनवर जुगते पुजतां, पामे मोक्ष द्वार । ४। बार उपवास न करी शके, वरसमांही दिन एक; जावज्जीव आराधीए, आणी परम विवेक ।५।
(ढाळ ३) मुनिवर दीये धर्मदेशना, सुधीये देई कान राजन; आळस मूकी आदरो अजुवालो निजज्ञान राजन | मुनि० १ राय पूछे हरखे करी, सांभळो गुरु गुणवंत राजन; वरदत्ते कर्मकीश्यां कर्या, कोढे अंग गलंत राजन । मुनि० २ भविक जीव हितकारणे, गुरु कहे मधुरी वाण राजन; पूर्व भवनी वार्ता, सांभळो चतुर सुजाण राजन । मुनि० ३ जंबूद्विप भरतक्षेत्रमां, श्रीपुर नगरविशाल राजन; वसुशेठना सुत बे भलां, वसुसार वसुदेव निहाल, राजन। मुनि० ४ वन रमतां गुरु वांदिया, श्री मुनिसुंदरसूरि राजन; सांभलतां संयम लीये, तप करे आनंदपुर राजन । मुनि० ५ सकलकला गुण
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आगलो, लघुभाई अतिसार राजन; वसुदेवने कीधो पाटवी, पंचशयां शिरदार राजन । मुनि० ६ पग पग पूछे तेहने, सुत्र अर्थ निरधार राजन; पलक एक उंघे नहि, तव चिंते अणगार राजन । मुनि० ७ पाप लाग्युं मुज कीहां थकी, एवडो श्यो कंठशोष राजन; मूढ मूरख संसारमां, काया करे निज पोष राजन। मुनि० ८ बार दिवस मौन रह्यो, प्रगट थयो तव पाप राजन; जेवां कर्म जे कोई करे, ते लहे सघळां आप राजन । मुनि० ६ तुज कुले आवी अवतर्यो, दिपाव्यो तुज वंश राजन; वृद्धभाई मरी उपन्यो, मान सरोवर हंस राजन । मुनि० १० सयल कथा सुणता लयो, जातिस्मरण बाल राजन; धन धन ज्ञानी गुरु मल्या, रोग थया आलमाल राजन। मुनि० ११ विधि साथे पंचमी तप करे, राजादिक परिवार राजन; रोग गया सवि तेहना, जिम जाये तडके ठार राजन | मुनि० १२ स्वयंवर मंडप मांडीयो, परणी एक हजार राजन; हरख्यो वरदत्त इम कहे, जैनधर्म जगसार राजन । मुनि० १३ राज्ये स्थापी निजपुत्रने, साधे शिवपुर साथ राजन; अजितसेन चारित्र लीयो, साचा श्री गुरु हाथ राजन। मुनि० १४ सुख विलसे संसारना, वरतावे नित आण राजन; पुत्र जनम एहवे थयो, ऊग्यो अभिनव भाण राजन। मुनि० १५
(दुहा) गुणमंजरी सुंदरभई, परणी सा जिनचंद, चारित्र पाली निर्मलुं, पामे विजयंत सुरिंद। १। वरदत्त मनमां चिंतवे, आपुं सुतने राज, हवे हुं संयम आदरूं, साधु आतम काज, २ अशुभ ध्यान दूर करी, धरतो जिनवर ध्यान, काळधर्म पामी उपन्यो, पुष्कलावती विजय प्रधान । ३ ।
(ढाळ ४) सौभाग्य पंचमी आदरो, जिम पामो हो सुखसघलां वडवीर तो; चोथभक्ते शुदि पंचमी, व्रत धरवु हो, भोंये सुq धीर तो। सौभाग्य० १ त्रणकाल देव वांदिये, कीजे दीजे हो, मुरुने बहुमान तो; पडिक्कमणां दोय वारना, जिम वाधे हो उत्तमगुणज्ञान तो। सौभाग्य० २ नयरी पुंडरिगिणी सोहती, विराजे हो अमरसेन भूपाल तो; तस घरणी शीले सती, गुणवंती कुंखे हो अवतरीयो बाल तो। सौभाग्य० ३ सज्जन संतोषी सामटा, नाम स्थापे हो सुरसेन अभिराम तो; चंद्रकला जेम वाधती, तेम साधे हो वाधे निज नाम तो। सौभाग्य० ४ यौवनवय जाणी पिता, सो कन्या परणावी सार तो; राज्य देई निज पुत्रने, अमरसेन पहोंतो हो परलोक मोझार तो।
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442 सौभाग्य० ५ श्री सीमंधर आव्या सांभळी, वांदवाने हो, आवे तिहांभूप तो; ज्ञान आराधन देशना, देखाडे हो, वरदत्त स्वरूप तो। सौभाग्य० ६ सुरसेन हवे विनवे, प्रभु प्रकाशो हो ते कोण वरदत्त तो; सकल वात मांडी कही, तप मांड्यो हो कीजे रंग रत्त तो। सौभाग्य० ७ जिनवर वांदि आवीया, संवेगे हो मूके घरभार तो; सिंहतणी परे आदरी, जेणे लहीये हो भवजलनो पार तो। सौभाग्य० ८ पंचमहाव्रत. आदर्यो, सहस्त्र वरसे हो पामे केवलज्ञान तो; अविचल सुख एणे लयां, इमनिसुणी हो आराधो ज्ञान तो। सौभाग्य० ६ जंबूद्वीप माहे वळी, विजय रमणी हो नगरी चोसाल तो; अमरसेन अमरावती, पुण्ये प्रगट्यो हो आव्यो ए बोल तो। सौभाग्य० १० गुणमंजरी जीव ऊपन्यो, राजाने हो हुवो उछरंग तो; राज्य करे निज तातर्नु, प्रेमे परणे हो कन्यासुखसंग तो। सौभाग्य० ११ एकदिन मनमां चिंतवे, हुं तो साधु हो, निज आतम काज तो; चार सहस बेटा थया, पाट आपे हो, निज सुत शिरताज तो। सौभाग्य० १२ सिंहतणी परे निकळी, लाख पुरव हो संयम शिरताज तो; तप तपे अति आकरा, केवळ पामी हो लहे शिवराज तो। सौभाग्य० १३
___(ढाळ ५) (राग : काशी रे नगरीनी बाहिर) तप उजमणुं एणी परे सुणीये, वित्त सारूं धन खरचोजी, पांचम दिन पामी किजीये, ज्ञानादिकने आचरोजी । १। पांच प्रत सिद्धांतनी सारी, पाठां पांच रूमालजी, खडियो लेखण पाटी पोथी, ठवणी कवली द्यो लालजी । २। सात्र महोत्सव विधि| कीजे; रात्रिजगे गीत गाओजी, चैत्यादिकनी पूजा करतां, जिनवरना गुण गाओजी।३। गुणमंजरी वरदत्ततणीपरे, कीजे त्रिकरण शुद्धजी, ए विधि करतां थोडे काळे, लहिये सघळी रिद्धजी । ४। वासकुंपी धूपधाणुं वळी कीजिये, झरमर पांच मंगावोजी, गुरुने वांदी पुस्तकने पूजी, स्वामी स्वामीने नोतरावोजी, । ५ । गुरुने तेडी बे करजोडी, आदर शुं वहोरावोजी, पारj कीजे लाहो लीजे, पंचमी तप उजवावोजी।६। नेमि जिनेश्वर
अतिअलवेसर, केशर वर सम कायाजी, ए उपदेश सुणीने समज्यां, ज्ञान लोचन देखायाजी ।७। वरदत्त गणधर आगे कहीए, लहीए भविजन प्राणीजी, सौभाग्य पंचमी आगे आराधो, निसुणो जिनवर वाणीजी. ८. देह
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निरोगी सौभागी थाओ, पामो रंग रसालजी, मूरखपणुं दूरे छांडो, मांडो ज्ञान विशालजी. ६. सौभाग्य पंचमी जे नर करशे, ते वरशे मंगलमालजी, गज रथ घोडा सुंदर मंदिर, मणिमय झाकझमालजी. १०. संवत सत्तर अठ्ठावन मांहि, सिद्धपुर रही चोमासुजी, कार्तिक शुदि दिन पंचमी गायो, सकल फली मुज आशजी. ११. तपगच्छ नायक दिनकर सरिखा, श्री विजय प्रभसूरिंदाजी, श्री विजय रत्नसूरीश्वर राजे, प्रणमे परमानंदाजी. १२.
(कलश) एम नेमि जिनवर, सयल सुखकर, उपदिशे भवि हितकरो, तपगच्छ नायक, शिवसुख दायक, लायक मांहि पुरंदरो. श्री लाभ कुशल, विबुद्ध सुखकर, वीरकुशल पंडित वरो; सौभाग्य कुशल, सुगुरु सेवक, केशवकुशल, जय करो.
(7) श्री ज्ञान पंचमीनु स्तवन ढाल-६ (दुहो) प्रणमी प्रेमे पासजी, पद पंकज अभिराम, पंचमी तप महिमां कहुं, सुणतां सीझे काम॥१॥ अलका अधिक विराजति, द्वारामति इति नाम, नेमिजिनेश्वर आवीया, रैवत गिरि शुभठाम॥२॥ केशव वंदन आवीया, बेठी पर्षदा बार, वरदत्त गणधर तव तिहां, प्रश्न करे सुविचार, ॥३॥ दंशण नाण चारित्रनी, कहो तिथि केही होय, किणा विधि ते आराधीए, जंपे श्री जिन सोय॥४॥ चौदश आठम पूर्णीमां, अमावासी ए तिथि चार, चारित्र पोषह आदरी, लहिए भवजल पार॥५॥ पंचमी बीज अग्यारशी, ज्ञान तणी तिथी एह, ज्ञान भक्ति बहु साचवो, जिम होय निर्मळ देह ॥६॥ नवतिथी शेषे किजीए, दर्शन भक्ति विशेष, जिन पूजन क्ल्याणका, दिक साधर्मीक देख, ७॥ तेह माहे वळी निर्मळी, कार्तिक पंचमी जेह, ज्ञान आराधन कही, नेमि जिने धरी नेह, ॥८॥ एह दिवसे आराधता, पाम्युं निर्मळ नाण, वरदत्तने गुणमंजरी, सुणज्यो तास वखाण,॥६॥
(ढाळ १) जंबु द्विपेभरतमां, पद्मपुरी अति सोहेरे, सुषमां जेहनी जोवतां, सुरनरनां मन मोहे रे, श्री जिनवर इम उपदेशे।।१॥ अजितसेन तस राजीयो, तस घरणी यशोमति राणी रे, वरदत्त तेहनो सुत भलो, सकल
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कला गुण खाणी रे, श्रीजि० ॥२॥ आठ वरसनो जब थयो, तव मूक्यो निशाळ रे, अक्षर मात्र न आवडे, जिम जलमां सेवाल रे, श्रीजि०।।३।। अनुक्रमे योवन पामीयो, विणस्युं कोढे देही रे, रतिनवि पामे केहथी, न धरे कांइ सनेहोरे श्रीजि०॥४॥ हवे तिणहीजपुरमा वसे, सिंहदास जिन धर्मी रे, कोटि ध्वज व्यवहारीया, संघ मुख्य शुभ कर्मी रे॥५॥ कर्पूर तिलका तस गेहीनी, गुण मंजरी तस बेटी रे, वचने मूंगी वरतर्नु, रोग तणी छे पेटी रे श्रीजि०॥६॥ सोलवरसनी सा थइ, पण तस कोइन इच्छे रे, मात पिता परिजन सर्वे, तस दुःखे दुःखिया होवे रे श्रीजि०७||
(दुहो) एणे समये तव एकदा, विजयसेन गच्छनाथ, चउनाणी गुरू गुण भाँ, मुनि परिकरे सनाथ, नागरजन सवि आविया, सुत संयुत नर नाथ, सिंहदास तनया सहीत, वंदे श्री मुनिनाथ
___ (राग : अंधारानो दीवडो) (ढाळ २) कलेशनाशिनी देशना (हित आणी,) भाखे श्री गुरुराज सुणो भविप्राणी ज्ञान आराधना साचवो, हित० श्रवण पठन ने काज सुणो० ।।१।। ज्ञान विराधे जे मने, हि० ते परभवे मनहिण सु० वचने जेह विराधता, हि० ते मूंगा दुःख दिण, सु०॥२॥ कायाथी जे विराधतां, हि० तस कुष्टादिक रोग सु० त्रिविधे विराधतां ज्ञाननी, हि० जे मुरख करे भोग सु०॥३॥ पुत्र कलत्र धन मित्रनो हि० तेहनो होये नाश सु० आधि व्याधि तस परभवे, हि० निर्विवेक तनुं नाश सु०॥४॥ सिंहदास एम सांभळी हि० पूछे उलट आणी रे सु० कहो भगवन् किण कर्मथी, हि० मुज तनया गुण हीण सु०॥५॥ गुरू कहे एह संसारमां, हि० सुख दुःख कर्मने हाथ, सु० कर्म थकी बलीया नहि, हि० चक्री हलधर साथ, सु०॥६।। एहनो पूरव भव सुणोहि० हृदय विचारो हेव, सु० कर्म तणी गतिएहवीहि० गुरू भाखे तत खेव, सु०॥७॥
(ढाळ ३) धातकी खंडे भरतमां मनहर खेटक नाम नरराज, नयरमांहि व्यवहारीओ, धनवंत वसुदेव नाम नरराज, पूरव भव तुमे सांभळो ॥१॥
सुंदरी नामे गेहिनी, तस सुत पंच रसाल नरराज, आस पाल पहेलो
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भण्यो, बीजो ते तेजपाल नरराज, पू०॥२॥ गुणपाल त्रीजो कह्यो, धर्मपाल धर्मसार नरराज, लावण्य रूपे शोभती, वळी तस पुत्री चार नरराज । पू०॥३॥ लीलावतीने शीलावती, रंगावती तीम जाण नरराज मृगावती चोथी भली, महीमा गुणनी खाण नरराज ।पू०॥४॥ पंडित पासे मोकल्यां । ते पांचे निज नंद नरराज० चपलाइ करता घj, मांहो मांही द्वंद नरराज । पू०॥५॥ पंडित मारे तेहने, ते रोये घर जाय नरराज, पंडितने उपले हण्यो, जो फरी तुमन सोहाय नरराज,. पू०॥६॥ दुःख थकी तेणे भणेशृं? होवे, शिखवे एणी परे माय नरराज, कंठ शोष किधा थकी, शुं अधिकेरू थाय, नरराज पू०॥७|| पाटी पोथी प्रमुख जे, परजाळे तिणिवार नरराज, मूर्ख पणाथी तेहने, नवि परणावे नार नरराज, पू०॥८॥ तेणे दुखे दुःखीओ स्त्री प्रत्ये, भाखे शेठ वचन नरराज, अंगज मुरख राखीया, कीधो अहित जनम नरराज, पू०॥६॥ प्रत्युतर तव स्त्री कहे, ए सघळो तुम दोष नरराज, मर्मथानके उपले हणी, आणी अतिघणो रोष नरराज, पू० ॥१०॥ ते तुज तनया उपनी, ज्ञानाशातना किध नरराज, अंगे पीडी रोगशुं, ए फल तास प्रसिद्ध नरराज, पू०॥११॥
(राग : सांभल जो हवे कर्मविपाक कहे मुनि रे) (ढाळ ४) पूरव भव एम सांभळी जी, जातिस्मरण लह्योताम, कहो भगवन हवे एहनुंजी, कर्म छोडणर्नु निदान, ज्ञान आराधन आदरो जी।।१।। इणे अवसरे वरदत्तनो जी, कर्म पूछे नृप ताम, गुरू कहे एहिज भरतमा जी, श्रीपूरे शेठ वसुनाम, ज्ञा० ॥२॥ वसुसार वसुदेव बेहुं हताजी, तेहनो पुत्र गुणवंत, गुरूतणी देशना सांभळीजी, मनमांहि तेणे एकांत ज्ञा० ॥३॥ संयम बेहु जणे आदर्यो जी, सूरि मुनिसुंदर पास, वसुदेव बहु श्रुत गुण थकी जी, सूरि पद ठवे रे उल्लास, ज्ञा०॥४॥ पंचसया साधुने वांचनाजी, आपतो करतो सज्झाय, एकदिन पोरिशी सूयताजी, प्रश्नमां रयणी विहाय ज्ञा०॥५॥ निद्रान करी शके गच्छधणीजी, चिंतवे मनमांही एम, धन्य मूरख मुज बांधवो जी, किसीय चिंता नहि तेम ज्ञा०॥६॥ एहवं मुरख पणुं लहु जी, चित्त धर्यु जेह अज्ञान, बारदिन मौन करी उपन्यो जी, ताहरो पुत्र निदान ज्ञा० ।।७।। वृद्ध भ्राता थयो हंसलो जी, मानस सरोवर मांही, इम
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सुणी जाति स्मरण लघु जी, वरदत्ते देशनामांहि, ज्ञा०॥८॥ भूपतिशेठ बेहुं भणे जी, सूरि आगळ करजोडी, विधि कहो ज्ञान आराधवाजी, जेम पहोंचे मन दोडी, ज्ञा०, ॥६॥
(राग : अंधारानो दिवडोने) (ढाळ-५) भाखे तव मुनिनाथ साथ, नी सुणी चित्त आणी, उज्वळ पंचमी दीवसे, जेह आराधे प्राणी, चोथ भक्त जिन वांदवां, पूजा त्रीहु काळ, सावध करणी नवी करे, ब्रह्मचर्य संभार ।।१॥ मास मास एणी परे करे, तिहां पासठ मास, उजमणुं करे तेहथु, पंच वस्तु प्रकाश, पाटी पोथी परति, पंच ठवणीने कवली, नोकारवाळी पूंजणी, चाबखा पंच वरणी,॥२॥ पंच जाति फल पंच पंच, जिन बिंब प्रषाद, पंच जातिना द्रव्य जेह, टाळो पंच प्रमाद, मासे मासे न करी शके, तो कार्तिक पंचमी, अजुआली आराधीए, जावज्जीव करी एम॥३॥ कुसुम कपुर सुगंध द्रव्य, लेइ पुस्तक पूजे, ठवणी बाजोठ उपरे, थापी ने रीझे, पंचवर्ति दीपक करे, तिम स्वस्तिक पूरे, पंच वर्ण फल सुखडीधन ढोवे अधुरे ।।४।। ओँ ही नमो नाणस जाण, गुण सहसज दोय, उत्तर साहमो शुद्ध वस्त्र, धरे निर्मळ होय, गुरूमुखे लेइ पच्चखाण, रूपा नाणु मुके, जावज्जीव एम उच्चरे, पछी विधि नवि चुके ॥५॥ जो पोषहने कारणे, ए विधि करी न शके, तो बीजे दिन साचवे, तो किर्ती नवि झलके, रोग शोक संताप दुःख, जावे संपद पावे, अनुक्रमे सुर सुख भोगवी, अजरामर थावे॥६॥ ते तप बेहुं जणे आदर्या, थया तेह निरोग, तेणे सौभाग्यनी पंचमी, कहे ते एहबुं लोग, एम उजमणुं वरिस करे, वरदत्त शिक्षा, सहस कन्या परणी तिहां, अनुक्रमे लीये दिक्षा,... |७|| गुणमंजरी पण थई निरोगी, गुणचंद्रे परणी, पंचमी तपनी विधि अनेक, किधि निर्मळ करणी, अंते संयम आदरी, बेहुं विजय विमान, बत्रीश सागर आयुमान, पहोता शुभ ध्याने.... ॥८॥
(राग : सुहस्ती नामे) (ढाळ ६) जंबु पूर्व विदेहे, विजय पुष्कलावती नाम, पुंडरी गिणी नगरी, अमरसेन नृप धाम, गुणवती तस राणी, तस कुखे उपन्न, वरदत्त जीवसुरना, गुण लक्षण संपुन्न,....१. गुण लक्षण संपुन्नो पेखी, सूर सेन
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दियो नाम बार वरसनो एक शत कन्या, परणाव्यो अभिराम, तीर्थंकर मुखथी पूरवभव, निसुणी चारित्र लेई, वर्ष सहस एक पाळी केवळ, सिध्यां कर्म खपेई,....२. हवे रमणी विजय, नरसिंह भूपति गेह, अमरावती कुखे, गुणमंजरी जीव तेह, उपन्नो आवी, सुग्रीव ठवीयुं नाम, बहु कन्या परण्यो, राज तेज बहुधाम,....३. बहुधा सुख विलसंता हुआ, पुत्र चोराशी हजार, थापी पुत्र राज्य लई संयम, केवल पाम्या सार, पूर्व एक लाख भवि प्रतिबोधी, पाम्यां अविचल सुख, सौभाग्यपंचमीनो तप करता, जाये दुर्गति दुःख....४. एह संबंध नीसुणी, ज्ञान आराधो प्राणी, आशातना टाळो, जिमपाओ गुणखाणी, एम जाणी नाणी, सुणीये ए हित आणी, श्री जिनवर गणधरनी, एहवी उत्तम वाणी,....५. उत्तमवाणी जिननी सुणीने, प्रतिबोध्या भवि प्राणी, पंचम नाण लहेवा कारण, ए साची सही नाणी, श्री विनय विमल कविराज सुसेवक, धीरविमलकवीराय, नय विमल तस शिष्य कहे एम, ज्ञाने सुजस सवाय,....६.
(8) श्री अष्टमीनी ढाल-४ (दुहो) पंचतीर्थ प्रणमुं सदा, समरी शारदमाय, अष्टमी स्तवन हरखे रचुं, सुगुरु चरण पसाय; १
(ढा. १) हारे लाला जंबुद्विपनां भरतमां, मगध देश महंत रे लाला; राजगृही नयरी मनोहरूं; श्रेणिक बहु बळवंत रे लाला, अष्टमि तिथि मनोहरु. ॥१॥ हारे लाला चेलणा राणी सुंदरुं, शीयलवंती शीरदार रे, लाला, श्रेणीक शुद्ध बुद्ध छाजता, नामे अभयकुमार रे लाला,...अष्टमी० ॥२॥ वर्गणा आठ मीटे अहथी, अष्ट साधे सुख निधान रे लाला, अष्टभय नासे अहथी, अष्ट बुद्धि तणो भंडार रे, लाला; अष्टमी० ॥३॥ अष्ट प्रवचन माता संपजे, चारित्र तणे आगार रे,... लाला...अष्टमी० ॥४॥ हारे लाला अष्टमी आराधन थकी, अष्टकर्म करे चकचूर रे, लाला; नव निधि प्रगटे तस घरे, संपूर्ण सुख भरपुर रे लाल, अष्टमी० ॥५॥ हां रे लाला अडदृष्टि उपजे अहथी, शिव साधे गुण अनुप रे लाला; सिद्धना आठगुण संपजे, शिवकमळा रुप स्वरुप रे लाला...अष्टमी० ॥६॥
(ढा. २) जीहो राजगृही रळियामणी, जिहो विचरे वीरजिणंद, जीहो
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समवसरण इन्द्रे रच्युं, जीहो सुर असुरनो वृंद. जगत सहु, वंदो वीर जिणंद...।।१।। जीहो देवरचित सिंहासने, जीहो बेठा श्री वर्द्धमान, जीहो अष्टप्रातिहार ज शोभता; जीहो भामंडळ असमान, जगत० ॥२॥ जीहो अनंत गुणे जिनराजजी; जीहो परउपकारी प्रधान; जीहो करुणां सिंधु मनोहरु, हो त्रिलोके जिनभाण, जगत० ||३|| जीहो चोत्रीश अतिशय विराजता,
वाणी गुण पांीश, जीहो बार पर्षदा भावशुं, जीहो भक्ते नमावे शीष, जगत || ४ || जीहो मधुर ध्वनि दीओ देशना, जीहो जिम अषाढो रे मेह, जीहो अष्टमी महिमा वर्णवे, जीहो जगबंधु कहे तेह, जगत० ॥ ५१
(ढा. ३) रुडी ने रढीयाळी रे, प्रभु तारी देशना रे; ते तो अक जोजन लगे संभळाय, त्रीगडे विराजित जिन दिओ देशना रे, श्रेणिक वंदे प्रभुना पाय अष्टमी महिमा कहो कृपा करी रे, पुछे गोयम श्री गणधार, अष्टमी आराधन फळ सिद्धनुं रे. ॥१॥ वीर कहे तपथी महिमा अहनो रे, श्री ऋषभनुं जन्म कल्याण, ऋषभ चारित्र होये निर्मळु रे, श्री अजितनुं जन्म कल्याण. अष्टमी० ॥ २॥ संभव च्यवन त्रीजा जिनेश्वरु रे, श्री अभिनंदन निर्वाण, सुमति जन्म सूपार्श्व च्यवन छे रे, सुविधि नमि जन्म कल्याण. अष्टमी० ||३|| मुनिसुव्रत जन्म अति गुणनिधि रे, नेमि शिवपद लघुं सार, पार्श्वनाथ निर्वाण मनोहरु रे, अ तिथि परम आधार, अष्टमी० ॥४॥ उत्तम गणधर महिमा सांभळी रे, अष्टमी छे तिथि प्रमाण, मंगळ आठ तणी गुण मालिकारे, तस घर शिवकमळा प्रधान. अष्टमी० ||५||
(ढा. ४) काउसग्गनी नियुक्ति से भांखे, महानिशीथ सूत्र रे; ऋषभवंश . दृढ वीरजी आराधी, शिव सुख पामे पवित्र रे, श्री जिनराज जगत उपकारी.....।।१।। अ तिथि महिमा वीर प्रकाशे; भविक जीवने भासे रे; शासन तारुं अविचळ राजे, दिन दिन दोलत वासे रे; श्री० ॥२॥ त्रिशला नंदन दोष निकंदन, कर्मशत्रुने जीत्या रे, तीर्थंकर महंत मनोहर, दोष अढार निवर्त्यां रे श्री० ||३|| मन- मधुकर वर पदकज लीनो, हरखी निरखी प्रभु ध्यावुं रे; शिव कमला श्युं दीओ प्रभुजी, करुणानंद पद पाउं रे श्री० ॥४॥ वृक्ष अशोक सुर कुसुमनी वृष्टि, चामर छत्र विराजे रे, आसन भामंडळ जिन दिपे, दुंदुभी अंबर गाजे रे, श्री० ॥५॥ खंभात बंदर अति मनोहर, जिन
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प्रासाद घणा सोहे रे, बिंब संख्यानो पार ज न लहुं, दरिसण करी मन मोहेरे श्री० ॥६।। संवत अढार ओगणचालिस वरसे, अश्विन मास उदार रे, शुकल पक्ष पंचमी गुरुवारे, स्तवन रच्युं छे त्यारे रे, श्री० ॥७॥ पंडित देव सौभाग्य बुद्धि लावण्य, रत्न सौभाग्य तेणे नाम रे; बुद्धि लावण्य लीओ सुख संपूरण, श्री संघने कोड कल्याण रे० श्री० ॥८॥
(9) अष्टमीनी ढाल-२ (ढा. १) श्री राजगृही शुभ ठाम अधिक दिवाजे रे, विचरंता वीर जिणंद अतिशय छाजे रे. ॥१।। तिहां चोत्रीशने पात्रिश, वाणी गुण लावे रे, पधार्यां वधामणी जाय, श्रेणिक आवे रे, ॥२॥ तिहां चोसठ सुरपति आविने, त्रिगडु बनावे रे. तेमां बेसीने उपदेश, प्रभुजी सुणावे रे, ॥३।। तिहां सुरनर नारी तिर्यंच, निज निज भाषा रे, तिहा. समझीने भवतीर, पामे सुख खासा रे, ॥४॥ तिहां इन्द्रभूति महाराज, श्री गुरुवीरने रे, पूछे अष्टमीनो महिमाय, कहो प्रभु अमने रे, ॥५॥ तव भाखे वीर जिणंद, सुणो सहु प्राणी रे, आठम दिन जिनना कल्याण, धरो चित्त आणी रे, ॥६।।
(ढा. २) श्री ऋषभर्नु जन्म कल्याण रे; वळीचारित्र लघु भगवानरे, त्रीजा संभवतुं च्यवन, भविजन अष्टमी तिथि सेवो रे, ओ छे शिववधू वरवानो मेवो, भवि० ॥१॥ श्री अजित सुमति जिन जन्म्या रे, अभिनंदन शिवपद पाम्या रे; जिन सातमा शिव विसराम्या भवि० ॥२॥ वीशमा मुनिसुव्रत स्वामि रे, तेहना जन्म मोक्ष गुण धामी रे, अकवीसमां शिव विशरामी भवि०...॥३॥ पार्श्वनाथजी मोक्ष महंतरे, इत्यादिक जिन गुणवंत रे, कल्याणक मुख्य कहंत भवि०...॥४॥ आठ कर्मने दूर पलाय रे, अथी अडसिद्धि अडबुद्धि थाय रे; तेणे कारण सेवो चित्त लाई भवि० ॥५॥ ओवी वीर जिणंदनी वाणी रे, सुणी समज्यां बहु भव्य प्राणी रे, आठम दिन अति गुणखाणी भवि० ॥६॥ श्री उदय सागर सूरि रायारे, गुरु शिष्य विवेके ध्याया रे तस न्यायसागर गुण गाया भवि० ॥७॥
(10) आठमनी ढाळो-२ (ढाल--१) हारे मारे ठाम धरमना साडा पचवीश देशजो, दीपे रे त्यां
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देश मगध सहुमां शिरेरे लोल, हारे मारे नगरी तेहमां राजगीरी सविशेषजो राजेरे त्यां श्रेणिक गाजे गज परे रे लोल ||१॥ हारे मारे गाम नगर पुर पावन करता नाथजो, विचरंता तिहां आवी वीर समोसर्या रे लोल, हारे मारे चौद सहस मुनीवरना साथे साथ जो, सुधारे तप संयम शीयले अलंकर्या रे लोल, ॥२॥ हारे मारे फूल्यां रस भर झूल्यां अंब कदंब जो, जाणुं रे गुण शील वन हसी रोमांचीयो रे लोल, हारे मारे वाया वाय सुवास तिहां अविलंबजो, वासे रे परिमल चीहुं पासे संचीयो रे लोल, ॥३॥ हारे मारे देव चतुर्विध आवे कोडाकोडजो, त्रीगडुरे मणि हेम रजतनुं ते रचे रे लोल, हारे मारे चोसठ सुरपति सेवे होडा होड जो, आगेरे रस लागे इन्द्राणि नचे रे लोल, ॥४॥ हारे मारे मणिमय हेम सिंहासन बेठा आपजो, ढाले रे सुर चामर मणी रत्ने जड़यां रे लोल, हारे मारे सुणतां दुंदुभी नाद हरे सवितापजो, वरसे रे सुर फूल सरस भान अड्यां रे लोल, ॥५॥ हारे मारे ताजे तेजे गाजे घन जेम लुंबजो, राजे रे जिनराज समाजे धर्मने रे लोल, हारे मारे निरखी हरखी, आवे जन मन लुंबजो पोषेरे रस न पडे घोषे भर्ममां रे लोल, ॥६॥ हारे मारे आगमन जाणी जिनना श्रेणिक रायजो, आव्यो रे परवरीयो हय गय रथ पायगेरे लोल, हारे मारे देई प्रदक्षिणा वंदी बेठो ठायजो, सुणवारे जिनवाणी मोटे भायगेरे लोल, ॥७॥ हारे मारे त्रिभुवन नायक लायक तव भगवंतजो, आणी रे जन करुणा धर्म कथा कहेरे लोल, हारे मारे सहज विरोध विसारी जगना नाथजो, सुणवारे जिनवाणी मनमां गह गहेरे लोल, ॥८॥
... (ढाळ २) वीर जिनवर इम उपदिशे, सांभळो चतुर सुजाणरे, मोहनी निंदमां का पडो, ओळखो धर्मना कामरे, ॥१॥ विरतीए सुमतिधरी आदरो, परिहरो विषय कषायरे, बापडां पंच प्रमादथी, का पडो कुगतिमां धाय रे ॥२॥ करी शको धर्म करणी सदा, तो करो ए उपदेश रे, सर्वकाळे नवि करी शको, तो करो पर्व सुविषेश रे, वि० ॥३॥ जुजुंआ पर्व षटना कह्या, फळ घणा आगमे जोय रे, वचन अनुसारे आराधतां, सर्वदा सिद्धी होय रे, वि० ॥४॥ जीवने आयु परभव तणुं, तिथि दिने बंध होय प्राय रे, ते भणी एह आराधता, प्राणीयो सद्गति जाय रे, वि० ॥५॥ तेहवे
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अष्टमी फळ तिहां, पूछे गौतम स्वामरे, भविक जीव जाणवा कारणे, कहे वीर प्रभु तामरे, वि० ॥६॥ अष्ट महा सिद्धि होय एहने, संपदा आठनी वृद्धि रे, बुद्धिना आठ गुण संपजे, एहथी अष्टगुण सिद्धि रे, वि० ॥७॥ लाभ होय आठ परिहारनो, आठ पवयण फल होय रे, नाश आठ कर्मनो मूळथी, अष्टमी- फल जोयरे वि० ॥८॥ आदि जिन जन्म दिक्षा तणो,
अजितनो जन्म कल्याणरे, च्यवन संभव तणो एह तिथे, अभिनंदन पाम्या निर्वाण रे, वि० ॥६॥ सुमति सुव्रत नमि जनमिया, नेमनो मुक्ति दिन जाणरे, पार्थजिन एह तिथे सिधला, सातमां जिनच्यवन माणरे वि० ।।१०।। एह तिथे साधतो राजीयो, दंड वीरज लयां मुक्तिरे, कर्म हणवा भणी अष्टमी, कहे सूत्र निर्युक्ती, रे, वि० ॥११।। अतीत अनागत काळना, जिन तणा केई कल्याण रे, एह तिथे वळी घणा संयमी, पामशे पद निर्वाण रे, वि० ॥१२॥ धर्म वासित पशु पंखीयां एह तिथे उपवास रे, व्रतधारी जीव पोसह करे, जेहने धर्म अभ्यासरे, वि० ॥१३॥ भाखी वीर आठम तणो, भविक हित अधिकाररे, जिनमुखे उच्चरी प्राणीयां, पामशे भवतणे पाररे, वि० ॥१४॥ एहथी संपदा सवि लहे, टळे कष्टनी कोडीरे, सेवजो शिष्य बुद्ध प्रेमनो, कहे कांति करजोडी रे, वि० ॥१५॥
(कळश) इम त्रिजग भासन अचल शासन, वर्धमान जिनेश्वरूं, बुद्ध प्रेम गुरु सुपसाय पामी, संथुण्यो अलवेसरू, जिन गुण प्रसंग, भण्यो रंगे, स्तवन ए आठम तणो, जे भविकभावे सुणे गावे, कांति सुख पावे घणो ।
(11) श्री पार्श्वनाथ जिन ८ ढाळनुं स्तवन सरस्वति सामिणि माय, आपो मुजने पसाय; पास जिणंद तणाए, के दशभव गायवाए ॥१॥ पोतनपुर अरविंद, राज करे जिम चंद; विश्वभूति तस तणोए, के पुरोहित गुण नीलोए, ॥२॥ घरणी अनुद्धरा तास, पुत्र जण्या बे खास, कमठ मरूभूति ए, के बीजो समकित मति ए ॥३॥ मरूभूतिनी नारी, कमठे भुवन मोझारी, एकदा भोगवीए, के राय खबर लहीए ॥४॥ राये काढ्यो जाम, तापस हुओ ताम, डुंगरे तप करे ए, के मन मत्सर धरेए ॥५॥ कमठ पाय प्रणमेव, मरूभूति खामेय; शिलातळे चांपीयो ए, के पहेलो भव हुवो ए ॥६॥ बीजो भव हवे जोई, मरूभूति हाथी होई;
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अरविंद मुनिवरू ए, के देखी संयम धरे ए, ७॥ जातिस्मरण पामी, मनराख्यं तिणे ठाम; कमठ उल्लंठ अहि ए, के हाथी डस्यो सहीए ॥८॥ त्रीजो भव देवलोक, आठमे अमर विलोक; नरके पंचम गयो ए, के कमठ सांपडोए ॥६॥ चोथे भव हवे जाणो, जंबुद्विप वखाणो; पूर्व विदेह जीहां ए, के सुवच्छ विजय तिहांये ॥१०॥ वैताढय पर्वतसार, तिलकापुरी भरतार; विद्युतगति सरू ए, के तिलकावति वरूए, ॥११॥ तास कुंखे सुत सार,
अमर तणो अवतार; कीरण वेग वळी ए, के नाम दीयो मन रळीए, ॥१२॥ विद्याधरनो राय, संयमशुं मन लाय; गिरि काउसग्ग करी ए, के मन उपशम धरीये, ॥१३॥ पंचम नरकथी आय, कमठ जीव अहि थाय; मुनिवर तेणे डस्यो ए, के ध्यानथी नवी खस्योए, ॥१४॥ बारमे कल्पे जाय, किरणवेग सुर थाय; नरके पंचम अहि ए के, पंचम भव लहीए, ॥१५।।
- (राग : सुमतिनाथ गुणसु मिलिजी) (ढाळ-२) छठो भव भविया हवे सुणो, जंबु-द्विप वखाण; पश्चिमविदेह सुगंध विजयतिहां, शुभंकरा नगरी जाण, गुणवंता निसुणो, पासना दश भव सार ॥१॥ वज्रवीर्य राजा षटखंडपति, लक्ष्मीवति भरतार; कीरणवेग विद्याधर देव, तास कुंखे अवतार । गुणवंता० ॥२॥ माय ताय हरखे करी ठवीयो, वज्रनाभ वर नाम; तात राज्य सुतने देई करी, चारित्र लीयो अभिराम, गुण० ॥३॥ क्षेमंकर जिन वाणी सुणतां, लाध्यो उपशम लाभ; चक्रायुध सुतने राज देई, चारित्र लीये वज्रनाभ गुण० ॥४॥ चौदपूर्व भणी करीजी, लब्धि लही आकाश; उडी सुकच्छ विजयमां पडीआ, देखी जलणगिरिखास। गुण० ॥५॥ मुनिवर तिहां काउस्सग्गे रहीआ, ध्यान धरे नवकार; कमठ जीव नरकथी आवी, पाम्यो भील अवतार। गुण० ॥६॥ काउसग्गे देखी वैर उछळीयो, बाणे हण्यो मुनिराय; एक पाक्षिक वैर करतो, जिहां तिहां दुर्गति जाय। गुण० ॥७|| मध्य प्रवेयके पहोतो, वज्रनाम मुनिसिंह, भील सातमी नरके पहोतो, सातमां भवनी लीह। गुण० ॥८॥ आठमो भव हवे जाणीएजी, जंबुद्विप विशाळ; पूर्वविदेह वखाणीयेजी, सुरपुर नयर रसाळ,। गुण० ॥६॥ वज्रबाहु तिहां राज करेजी, राणी सुदर्शना तास; एकदिन सुखकर सुति देखे, चौद सुपने मुख वास, । गुण०
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।।१०।। वज्रनाभ जीव सुर आवीयो, तास कुंखे उत्पन्न; सुवर्णबाहु अभिधान ठवीयुं, तस उपन्युं चक्ररत्न। गुण० ॥११॥ षटखंड तेणे करी निसाध्या, एक दिन गोखे बेठ; देवतणा गण जातां देखी, पूर्वभव तीणे दीठ। गुण० ॥१२।। जिनवर वांदि वाणी नीसुणी, उपन्यो मन वैराग; १ दिक्षा लई विश स्थानकने, आराध्या निरागी। गुण० ॥१३॥ गिरिशिखर जई काउसग्ग रहीओ, हवे जुओ भील अबीह; २ सातमी नरक थकी निसरीयो, गीर गुहा हुओ सिंह। गुण० ॥१४॥ पुरव वैरी मुनिवर हणीओ, दशमे कल्पे जाय; ३ सिंह गयो वळी चोथी नरके, नवमो भव इम थाय। गुण० ॥१५॥
(राग : धनद ताणे आदेशथी) (ढाळ ३) दशमो भव जिनवर तणो मनरंगीला, भावेसुणो नरनार लाल। मन० ५ जंबुद्विप सोहामणो,। मन० सघला द्विप मोझार लाल । मन० १ मन रंगीला निरंगीला मन० पासकुमार पुण्यवंत लाल | मन०१ दाहिण भरत वखाणीये। मन० नयरी वाणारसी सार लाल। मन० १ अश्वसेन नृप जाणीए, मन० वामादेवी उर हार लाल। मन० २ दशमां कल्पथकी आवी, मन० आउ पुरू वीश सागर लाल। मन० चैत्रासीत चोथे च्यवी, मन० वामा कुखे अवतार। लाल। मन० ३ चौद सुपन देखी राणी, मन० हर्षे विनवे राय। लाल | मन० सुपन विचार सुंदर जाणी, मन० राय मन हर्ष न माय। लाल। मन० ४ सुपन पाठक पंडित आणी। मन० पूछे स्वप्न विचार। लाल | मन० सुत होशे त्रिभुवन धणी। मन० सकल लोक आधार। लाल। मन० ५।
(राग : सकल कुशल कमलानुं मंदिर) (ढाळ ४) पोष वदी दशमी दिन भली रे, जन्म्या पासजिणंद, छप्पन दिशीकुमरी करे रे, सुति करम आणंद रे, भविका पूजो पास जिणंद, दीठे परमानंदरे भविका, जेहने सेवे सुरनर इन्द्र रे। भविका० १ सोहमपति तिहा आवीयो रे, लाग्यो मायने पाय; रत्नकुक्षी तुं धारणी रे, तें जण्यो त्रिभुवनराय रे। भ० २ मेरू जइ नवरावभुं रे, करशुं महोत्सव काज, तुं मत बीहे मावडी रे, आणी आपशुं आज रे। भ० ३ इम कही मेरू पधरावीयाजी, पंच रूप करी आप; चोसठ इन्द्र नवरावीयांजी, टाव्या पापना
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व्यापार रे । भ० ४ इन्द्रे जन्म महोत्सव करीजी, आणी आप्या मात: प्रभाते बहु हरखी करीरे, जन्म महोत्सव तातरे । भ० ५
(राग : सेवो भविया विमल जिनेश्वर) (ढाळ ५) शेरीमाहे रमता दीठा, पासकुमार नानडीया रे रमझम करतां चरणे नेउर, हाथे उछाळे दडियो रे; हारे हाथे सोवन खडीयो रे। १ शिर टोपी ओपे खुंपाली, काने कडी वांकडीयोरे, हैये हार अनुपम सोहे, केडे कंदोरो जडीयो रे । २ धम धम करता घुघरा पाये, मघमघती मोजडीयो रे; ठमक ठमक ते पगलां भरतो, माताने मन चडीयो रे । ३ नाना मंदिर रमत करतो, फेरवे दड दडियो रे; माता कुमार बोलावे हरखे, आवे देतो दडबडियो रे,। ४ पुनमचंद समो मुख टीको, अणीयाळी आंखडीयो रे: कमलनाल सरखी बांहडियो, पापणी कज पांखडियो रे । ५ सोहागणी खंधो लई चडियो, कोटे देइ पडपडीयो रे। कुंडल तणाए माचा करतां, इन्द्राणी कर चढीयो के। ६ सरखे सरखी टोळी मळीने, वावरे सुखडियो रे; शेरीमांहि फेरी लेइ, रस घुटे शेलडीयो रे। ७ इम अनुक्रमे जगगुरु वाधे, रूपे रतिपति घडीयो रे; पासकुमार जायो जिण वेळा, ते सफलो चोघडीयो रे । ८ सकल मनोरथ पुन्ये फळीया, सुत सुखकर सांपडीयो रे; शुभविजय प्रभुना गुण गाया, हमचो भाग्य उघडियो रे । ६
__ (राग : ते दिन क्यारे आवशे) (ढाळ ६) नवयौवन प्रभु पामीया, प्रभावती राणी; परणी मन रंगे करी, जाणे इन्द्र इन्द्राणी ।।१।। एक दिन गोखे बेठा देखे, प्रभु बहुजनने; सेवक पूछयो इम भणे, पूजवा तापसने ॥२॥ कौतुक जोवा आवीया, अहि बळतो दीठो; अहो अज्ञानी दया नहीं, तापस थईने बेठो ॥३॥ काष्ट विदारी काढीयो, पन्नग तरफडतुं; नमस्कार संभळावीयो, इन्द्र पदवी पहोंच्यो ॥४॥ कमठ मेघमाळी हुओ, पास उपरे रूठो; दिक्षा समय जाण्यो प्रभु, दान देवा बेठो ॥५॥
(राग : श्री श्रेयांस जिन अग्यारमां) (ढाळ ७) पोषवदी अग्यारशी दिने भणी रे लाल, चारित्र लीयो मुनिचंद । मेरे प्यारे; चोसठ इन्द्र तिहां मलीरे लाल, ओच्छव करे नरवृंद ।
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मेरे प्यारे; १ पार्थ जिनेसर सुंदरू रे लाल, वामादेवी मल्हार। मेरे प्यारे; अश्वसेन रायकुल चंदलो रे लाल, रूपे रति भरतार। मेरे प्यारे; २ चैत्रवदी चोथे केवली रे लाल, त्रीगडु रचे सुरिंद। मेरे प्यारे; संघचतुर्विघ स्थापीयो रे लाल, देशना दीये आणंद। मेरे प्यारे; ३ चोत्रीश अतिशय शोभता रे लाल, वाणी गुण पांत्रीस। मेरे प्यारे; प्रातीहार्य आठ सहचरू रे लाल, त्रण जग केरो इश। मेरे प्यारे; ४ श्रावणसुदि आठमदिने रे लाल, मुक्ति पहोंत्यां पास। मेरे प्यारे; समेतगिरिवर उपरेरे लाल, करे इन्द्र महोत्सव खास । मेरे प्यारे; ५
(राग : झणण झणण झणकारो रे) (ढाळ ८) इणी पेरे सुंदर संथुण्यो रे, पुन्ये पास जिणंद; शंखेश्वर पुर राजीयो रे, अश्वसेन कुलचंद, दशमे भवे शिववधु वरीरे, मोहन वल्ली कंद ।।१॥ अकबरशाह प्रतिबोधीयो रे, तपगच्छ पुनमचंद; श्री हीरविजय सूरिधरू रे, सेवे सुरनर इंद॥२॥ तस पद पंकज मधुकरूं रे, शुभ विजय सुखकंद; संकट विकट निवारतारे, करता भविकानंद ।।३।। श्री विजयसेनसूरि पटधणीरे, श्री विजयदेवसूरिंद, तस राज्ये स्तवन कर्यु रे, प्रतपे जीहां रविचंद॥४॥
(कळश) इम पास जिनवर भविक सुखकर, यादव जरा निवारणो; अंभोधि गज रस शशी वर्षे, अभय देव रोग वारणो; धरणेन्द्र पद्मावती पुजित, भव महोदधि तारणो, श्री हीरविजय सुरिंद शिष्यो, थुण्यो वांछित पुरणो । १.
(12) मौन एकादशी, ५ ढाळ स्तवन (ढाळ १) देश सोरठ द्वारिका पुरी, केशव हरि नरिंदो ए; जादव कुल नभ दिनमणि, सौम्य गुणे करी चंदो ए, दृढ मने धर्म समाचरो १ नेमि जिणंद समोसर्या, मुनिवर सहस अढार ए; रैवतगिरि सुणी आवीया, वंदे हरि सुखकार ए द्रढ० २ निसुणी देशना पूछीउं, एकादशी फळ सार ए; ज्ञाननी तिथि आराधतां, आपे शिवसुख सार ए द्रढ० ३ दाखे सुव्रत मुनि कथा, निसुणे पर्षदा बार ए; पुण्य विशेष थकी फळे, विधिथी शुभ आचार
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ए द्रढ० ४ धातकी दक्षिण भरतमां, विजय पुरी सुविशाळ ए, पश्चिम दिशि इषुकारथी, नृप नामे पृथ्वीपाळ ए द्रढ० ५ चंद्रावती तेहनी प्रिया, नगरशेठ सुर नाम ए; पुत्र अनेक छे तेहने, सकळ कळा गुण धाम ए द्रढ० ६ जिनधर्मे बहु नेहीयो, आवष्यक व्रत धार ए; एक दिने गुरू मुखे ज्ञाननो, सुण्यो महिमा हितकार ए द्रढ० ७ तव गुरु धवल एकादशी, दिन आराधन भाख्यो ए; ज्ञान बळे तस हित भणी, विधि सघळो तिहां दाख्यो ए द्रढ० ८
(ढाळ २) मौनपणे पोसह करे रे, अहोरत्त चोविहार; पठन गणन जिन नामनो रे, करतां धर्म विचार रे, भवि व्रत आदरो। १ पारणे उत्तर वारणे रे, एक भक्त आहार; उभय टंक-आवश्यक करे रे, करे सचित्त परिहार रे। भ० २ ज्ञानतणी पूजा करे रे, स्वामी वत्सल्य सार; जिन आगम ढोकणुं करे रे, पूजा विविध प्रकार रे। भ० ३ संविभाग व्रत साचवी रे, पारणुं एम करंत; बार वर्ष पूरा थये रे, उजमणुं मन खंत रे भ० ४ जिनवरने नव भूषणां रे, प्रत्येक वस्तु अग्यार; धान्य पकवान प्रमुख बहु रे, लखावे अंग अग्यार रे। भ० ५ संघ भक्ति बहुविध करे रे, ज्ञानोपकरण सार; ठवणी कवळी चाबखी रे, पाठां प्रमुख अगियार रे, विटांगणा तिम सार रे। भ० ६ एणी पेरे बहु विध साचवे रे, एक वरस ते सर्व, अग्यार अग्यारश उजळी रे, कीधुं पूरण पर्व रे भ० ७ ऊजमणानां दिन थकी रे, पन्नरमे दिन तेहः शूळ रोगे मरी सुर थयो रे, आरण कल्पे गुण गेह रे भ० ८
(राग : पहेले भवे एक गामनो रे) (ढाळ ३) तिहांथी चवी आ भरतमांजी, सौरीपुरे पुण्यवंत; समुद्रदत्त व्यवहारीओजी, प्रीतिमतिनो कंत रे, भावे भवियण व्रत धरो० १ तस कूखे सुर उपन्योजी, नाल निक्षेपण ठामजी; नीधि प्रगटे महोत्सव करेजी, सुव्रत । दीधु नामजी। भा० २ साधु समीपे संग्रहेजी, समकित तिम व्रत बारजी; यौचन वय परणावीयाजी, कन्या अग्यार उदारजी। भा० ३ संयम जनके आदर्यो जी, साधे आतम काजजी; सुव्रत घर स्वामी थयो जी, कोडी अग्यार धन साजजी। भा० ४ धर्मघोषसूरि आवीया जी, कहे तिहां पर्व विचारजी, जाति स्मरणथी ते ग्रहेजी, पूरवलो आचारजी। भा० ५ एक दिन पोसह आदर्यो जी, मौन निशि परिवारजी; ते निसुणी चोर आवीयाजी, धन
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लेवा तेणी वारजी। कीधो प्रदीप प्रचारजी भावे० ६ दीठा काउस्सग्गे रह्या जी, लेवे धननी कोडीजी; थंभे शासन देवता जी, नहि कोई धर्मनी जोडीजी; भा० ७ लोके राय जणावीओ जी, आव्यो चोकीदार जी; थंभाणा सवि ते तिहां जी, अचरीज एह अपारजी भा० ८ .
(राग : सांभळजो ससनेहि सयणा) ___ (ढाळ ४) मन स्थिर करीने पोसह पारे, विधि सघळो आराधे; राजा पण तेहने घेर आव्यो, भेटे भक्ति सहु साधे रे हमचडी १ अभयदान मांगी मूकाव्यां, तस्कर व्यसनथी वार्या रे; शेठ पदे राजाए स्थाप्यो, तस परिजन सत्कार्या रे हम० २ वळी एकदा अग्यारस दिवसे, सपरिवार व्रत धारे; लाग्यो अग्नि जलतुं पुर देखी, धर्म शरण करे सार रे। हम० ३ धर्मशाला सुव्रत गेहादिक, मूकी अवर मवि जळियू; देखी नरपति बोले एहने, धर्मे विघ्न टळियुं रे हम० ४ एक शत. ब्होंतेर पुत्र थया तस, सधळी ए नारी केरा; क्रोडि नवाणुं धन सवि मूकी, लीए संयम थई शुरा रे हम० ५ जयशेखर चउनाणी गुरूथी, अंग अग्यार अभ्यासे; छठ्ठ अठ्ठम शत चार छ मासी, एम तिम चार चउमासी रे हम० ६ एम तप करतां सुव्रत मुनिने, मौन एकादशी दिवसे, अंगे पीडा बहु उपजावी, पण स्थिरता गुण विकसे रे हम० ७ एक मिथ्या सुर क्षोभण काजे, पर मुनिने मुखे आवी, श्राद्धगृहे जइ भेषज लावे, तो वेदना शमावे रे हम० ८ कहे व्यंतर वसतिने बाहिर, जावे तो सुख पावे; कह्यो न मान्यो मस्तके हणीयो, पण निज मन न डगावे रे हम० ६ एणीपरे घातीकर्म खपावी, पामी केवलनाण; सिद्ध थया सुरवृंद मळीने, ओच्छव करे विहाण रे हम० १० वनिता पण अग्यारे संयम, लेइ निरतिचार; मास संलेखण शिवगति पामी, वळी बहु तस परिवार रे हम० ११ ।
(राग : रघुपति राघव राजा राम) (ढाळ ५) नेमि जिणंदे केशव आगे, एह संबंध कह्यो चित्त रागे; सांभळी कृष्ण ए दिवस आराधे, क्षायिक समकितना गुण गावे ॥१॥ अरजिन व्रत नमि जिनवर ज्ञान, मल्ली जिन व्रत केवलनाण; एक चोवीसीमां पंच कल्याण, त्रण चोवीसीनां पंदर कल्याण, ।।२।। एक क्षेत्रे
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एम भणीजे, दश क्षेत्रे दोढसो जाणीजे; अतीत अनागतने वर्तमान, पचास पचास एम प्रमाण, ॥३॥ नेवु जिनना नाम गणीजे, एक त्रणने एकज लीजे; अढारमा ओगणीसने एकवीस, वर्तमान जिन ए निशदिन, ॥४॥ सातमा चोथा छठ्ठा एह, अतीत अनागत जिन जेह; मोटुं पर्व कह्यु तिण हेते, जिन शासनने वळी शिव संकेते, ॥५॥ मागशर सुदि अग्यारस पाळे, ते सवि कर्मना मेल खपावे; जावज्जीव कीजे शुभ भावे, भवभवना तिम संकट जावे, ॥६॥ श्री ज्ञानविमलसूरी एणी परे भाखे, एह चरित्र तणी छे साखे; आराधे जे जिन कल्याणक, तस घर होवे कोडी कल्याण ।।७।।
तपनी आराधना केवी रीते करशो? मौन एकादशी तपनी आराधनाना चार प्रकार छ ।
(१) अगियार वर्ष सुधी दरेक मासनी सुद अगियारसे उपवास करवो। (२) यावज्जीव लगी मौन एकादशीए उपवास करवो। (३) अगियार वर्ष सुधी मौन एकादशीए उपवास करवो। (४) अगियार महिना सुधी सुद अगियारसे उपवास करवो। उपरनी दरेक प्रकारनी तपनी आराधनामां नीचे प्रमाणे जाप वगेरे करवू जोईए : (अ) "श्री मल्लिनाथ सर्वज्ञाय नमः” ए पदनी २० नवकारवाळी गणवी। (ब) अगियार साथिया करवा । ते उपर नैवेद्य तथा अगियार फळ मुकवा। (क) अगियार लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो। प्रथम इरि० करी एकादशी तप आराधनार्थं काउस्सग्ग करुं? इच्छं! एकादशी तप आराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तिआए० अन्नत्थ कही दर मौन एकादशीए १५० कल्याणकनी एक एक एम १५० नवकारवाळी गणवी। (13) अकादशीनुं स्तवन (राग : पालिताणा मन भाव्युं प्रभुजी)
मौनपणु मन भाव्युं प्रभुजी, अकादशी व्रत आव्युं, आज तो दोढसो कल्याणक, उत्तम जिनेश्वर केराहो प्रभुजी० ॥१॥ श्री अरजिन- दीक्षा कल्याणक, मल्लि जन्म दिक्षा केवल पाया, नमी ते केवळ पाया प्रभुजी, हो प्र० ॥२॥ सप्तमचक्रि थया अरस्वामी, इण तिथि दिक्षा ग्रही मद वामी, तीर्थंकर पद सोहाय होप्रभुजी, हो प्र० ॥३॥ ओगणीसमां श्री मल्लिजिणेसर,
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त्रण कल्याणक अहना सुखकर, नमि ते केवल प्रगट, हो प्र० ॥४॥ जंबुद्विपनां भरते जाणुं, अह कल्याणक मन आणु, ओम दश क्षेत्रे कहाया, हो प्र० ॥५॥ पांच भरत पांच औरावत कहीये, अतित अनागत वर्तमान लहीये, ओम दोढसो गणाया हो प्रभुजी० ॥६॥ जन्म कल्याणक त्रीस वखार्पु, दिक्षा कल्याणक साइठ प्रमा, केवलि साइठ सोहाय हो प्रभुजी० ॥७॥ कोण पूछे श्री नेमि जिनने, प्रभु प्रकाशो अकादशी दिनने, सुव्रत शेठ सुख पाया हो प्रभुजी० ॥८॥ उत्कृष्ट वरस अगियार वखाणो, जघन्यमास अग्यार प्रमाणो, उजमणुं करी मन भाया प्रभुजी० ।।६। जाप जपो मल्लिजिन भविया, भातृसागर सूरि गुणना दरिया, वृद्धिचंद्र गुण गाया प्रभुजी० ।।१०।।
(14) मौन अकादशी दोढसो कल्याणक, ढाळ-१२
(ढा. १) धुर प्रणमुं जिन महरिसी, समरूं सरस्वति उल्लसी, धसमसी मुजमति जिन गुण गायवाओ, १ हरि पूछे जिन उपदिशि, पर्वते मौन अकादशी, मनवसी, अहनिशी ते भविलोकने ओ. २ तरियाने भवजल तरसि, अह पर्व पौषध फरसि, मनहरसि, अवसर जे आराहसिओ, ३. उजमणे ते धारसि, वस्तु अग्यार अग्यारसि, वारसि ते दुर्गतिना बारणाओ. ४ अ दिन अतिहि सोहामणो, दोढसो कल्याणक तणो, मन घणो, गणj गणतां सुख होये अ. ५
(ढा. २) पाडे पाडे त्रण चोवीशि, द्विप क्षेत्र जिन नामें; पाडे पाडे पंच कल्याणक, धारो शुभ परिणामे, जिनवर ध्यायीये रे, मोक्ष मार्गना दाता. १ सर्वज्ञाय नमो एम पहेले, नमो अरिहंतते बीजे, त्रीजे नमो नाथाय ते चोथे, सर्वज्ञाय कही जे, जिनवर० २ पांचमे नमो नाथाय कही जे, पाडे पाडे जाणो, त्रण तीर्थंकर केरा, गुणणां पांच वखाणो, जिनवर० ३ त्रण चोवीसी ओक ओक ढाले, त्रण नामे जिन कहिशुं, कोडी तपेकरी जे फल लहीए, ते जिन भक्ते लहियुं, जिनवर० ४ कामसर्व सीजे जिन नामें, सफळ होय निज जीह्वा, जे जिभे जिन गुण समरंता, सफळ जनम ते तिहा. जिनवर० ५
(ढा. ३) जंबु द्विप भरत भलु, अतित चोवीशी सार मेरेलाल; चोथा महायश केवळी, छठ्ठा सर्वानुभुती उदार मेरेलाल, जिनवर नामे जय हुआ. १
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श्री श्रीधर जिन सातमा, हवे चोवीशी वर्तमान मेरेलाल; श्री नमिजिन अकवीशमा, ओगणीसमा मल्लि प्रधान मेरेलाल, जिनवर० २ श्री अरनाथ अठारमा, हवे भावि चोवीशी भाव मेरेलाल; श्री स्वयंप्रभु चोथा नमुं, छठ्ठा देवसुत मन लाव मेरेलाल, जिनवर० ३ उदय नाथ जिन सातमा, तेहने नामे मंगल माल मेरेलाल, ओच्छव रंगवधारणां, वळी लहीये प्रेम रसाल मेरेलाल, जिनवर० ४ अलिय विघन दुरे टले. दुर्जन- चिंत्यु नवि थाय मेरेलाल; महिमा मोटाई वधे, वली जगमां सुजस गवाय मेरेलाल, जिनवर० ५
(ढा. ४) पुरव भरते धातकि खंडे रे, अतित चोवीसी गुण अखंडे रे, चोथा श्री अकलंक सोभागीरे, छठ्ठा देव सुभंकर. त्यागी रे; १ सप्तनाथ सप्तम जिनराया रे, सुरपति प्रणमे तेहना पाया रे, वर्तमान चोवीसी जाणो रे, अकवीसमा ब्रह्मेन्द्र वखाणो रे. २ ओगणीसमां गुणनाथ समरीओ रे, अढारमा गांगीक मन धरीओ रे, कहु अनागत हवे चोवीसी रे, धातकी खंडे हियडे हीसी रे, ३ श्री सांप्रत चोथा सुखदायी रे, छठ्ठा श्री मुनिनाथ उमायी रे, श्री विशिष्ट सप्तम सुखकारा रे, ते तो लागे मुजमन प्यारा रे. ४ श्री जिन समरण जेहवु मीठु रे, अहवू अमृत जगमां न दीर्छ रे, सुजस महोदय श्री जिन नामे रे, विजय लही जे ठामो ठामे रे. ५
(ढा. ५) पुख्खर अर्द्ध पुरव हुवा, जिन वंदिओ रे, भरत अतीत चोवीसी के, पाप निकंदीओ रे, चोथा सुमृदु सुहंकरुं, जिन वं०, छठा व्यक्त जगदीश के, पाप नि० १ श्री कलाशत गुणे भर्या, जिन वं०. हवे चोवीसी वर्तमान के, पाप नि०, कल्याणक ओ दिन हुवा, जिन० लीजीओ तेहना अभिधान के, पाप नि० २ अरण्य वास अकवीसमां, जिन० ओगणीसमां श्रीयोग के, पाप नि०, श्री अयोग ते अढारमां, जिन० दियेशिवरमणी संयोग के, पाप नि० ३ चोवीशी अनागत भली, जिन० तिहां चोथा परम जिनेशके, पाप नि०, सुधारति छठ्ठा नमुं जिन० सातमा श्री निकेशके. पाप नि० ४ प्रिय मेलक परमेश्वरु, जिन० अनुं नाम ते परम निधान के, पाप नि० महोटानो जे • आशरो, जिन० तेहथी लहीये यश बहुमान के, पाप नि० ५
(ढा. ६) धातकी खंडे रे पश्चिम भरतमा, अतित चोवीसी संभार, श्री सर्वारथ चोथा जिनवरु, छठ्ठा हरिभद्र धार, जिनवर नामे रे मुज आनंद घणो.
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१ श्री मगधाधिप वंदु सातमा, हवे चोवीसी वर्तमान, श्री प्रयच्छ प्रणमुं ओकवीसमा, जेहनुं जगमां नहि उपनाम, जिनवर नामे रे० २ श्री अक्षोभ जिनवर ओगणीसमा, अढारमा मल्लिसिंह नाथ, हवे अनागत चोवीसी नमुं, चोथा दिनरुक शिव सात, जिनवर नामे रे० ३ छठ्ठा श्री जिन धनद संभारीओ, सातमा पौषध देव, हरखे तेहना चरण कमल तणी, सुरनर सारे रे सेव, जिनवर नामे रे० ४ ध्याने मलq अहवा प्रभु तणु, आलस मांहे रे गंग, सफळ जनम करी मानु तेहथी, सुजस विलास सुरंग, जिनवर नामे रे० ५
(ढा. ७) पुख्खर पच्छिम भरतमां, धारो अतित चोवीसी रे, चोथा प्रलंब जिनेश्वरं, प्रणमुं हियडले हींसी रे. १ अहवा साहिब नवि विसरे, क्षिण क्षिण समरीयें हेजे रे, प्रभु गुण अनुभव योगथी, शोभीये आतम तेजे रे, अहवा० २ छठ्ठा चारित्र निधि सातमा, प्रशमराजित गुण धाम रे, हवे वर्तमान चोवीशीयें, समरिजे जिन नाम रे, अहवा० ३ स्वामी सर्वज्ञ जयंकरुं, अकवीसमां गुण गेह रे, श्री विपरीत ओगणिसमा, अविहड धर्म सनेहरे, अहवा० ४ नाथ प्रसाद अढारमां, हवे अनागत चोवीशी रे चोथा श्री अघटित जिन वंदिये, कर्म संतति जिणे पीसी रे, अहवा० ५ श्री भ्रमणेद्र छठ्ठा नमुं, रिषभचंद्राभिध वंदु रे, सातमा जगजश जयकरूं, जिन गुण गाता आनंदु रे, अहवा० ६
(ढा. ८) जंबुद्विप औरावतेजी, अतित चोवीसी उदार, श्री दयांत चौथा नमुंजी, जग जनना आधार, मन मोहन जिनजी मनथी नहीं मुज दुर. १
अभिनंदन छठ्ठा नमुंजी, सातमा श्री रलेश, वर्तमान चोवीसीओजी, हवे जिननाम गणेश, मन मोहन० २ श्यामकोष्ट ओकवीसमाजी, ओगणीसमा मरुदेव, श्री अति पार्थ अढारमाजी, समरूं चित्त नित मेव, मन मोहन० ३ भावी चोवीशी वंदियेजी, चोथा श्री नंदिषेण, श्री व्रतधर छट्ठा नमुंजी, टाली कर्मनी रेण, मन मोहन० ४ श्री निवारण ते सातमाजी, तेहसुं सुजस सनेह, जिम चकोर चित्त चंदशुंजी, तिम मोरा मन मेह. मन मोहन० ५
(ढा. ६) पूरव अर्धे धातकीजी, औरावते जे अतित, चोवीशी तेहमां कहुजी, कल्याणक सुप्रतित, महोदय सुंदर जिनवर नाम. १ चोथा श्री सौंदर्यनेजी, वंदु वारोवार, छठ्ठा त्रिविक्रम समरीयेजी, सातमा नरसिंह सार.
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महोदय० २ वर्तमान चोवीसीओसी, अकवीसमा क्षेमंत, संतोषित ओगणासमाजी, अढारमा कामनाथ संत. महोदय० ३ भावी चोवीसी वंदिओजी, चोथा श्री मुनिनाथ, चंद्रदाह छठ्ठा नमुजी, भवदव नीरद पाथ. महोदय० ४ दिलादित्य जिन सातमाजी, जनमन मोहन वेल, सुख जस लीला पामीयेजी, जश नामे रंग रेल. महोदय० ५
(ढा. १०) पूख्खर अर्द्ध पूरव औरवते, अतित चोवीसी संभारं, श्री अष्टान्हिक चोथा वंदी, भववन भ्रमण निवारु रे; भविका अहवा जिनवर ध्यावो, गुणवंतना गुण गावो रे. भ० १ वणिक नाम छठ्ठा जिन नमीये, शुद्ध धर्म व्यवहारी, उदयनाथ सातमा संभारु, त्रण भुवन उपगारी रे. भ० २ वर्तमान चोवीसी वंदु. अकवीसमा तमो कंद, सायकाक्ष ओगणीसमां समरो, जनमन नयणानंद रे. भ० ३ श्री क्षेमंत अढारमां वंदो, भावी चोवीसी भावो, श्री निर्वाण चोथा जिनवर, ह्रदयकमलमां लावो रे. भ० ४ छठ्ठा रविराज सातमा, प्रथम नाथ प्रणमी जे, जिनचंद घन सुजस महोदय, लीला लच्छी लही जेरे. भ० ५
(ढा. ११) पश्चिम औरावत भलो, धातकी खंडे अतित के, चोवीसी रे पूरुरवा, चोथा जिन सुप्रतित के, जिनवर नाम सोहामणुं. १ घडीय न मेल्युं जाय के, रात दिवस मुज सांभरे, संभारे सुख थाय के, जिनवर० २ श्री अवबोध छठ्ठा नमुं, सातमा श्री विक्रमेंद्र के, चोवीसी वर्तमानना, हवे संभालं जिनेद्र के, जिनवर० ३ अकवीसमा श्री सुशांतजी, ओगणीसमा हरनाम के, श्री नंदीकेश अढारमा, होजो तास प्रणाम के, जिनवर० ४ भावी चोवीसी संभारीये, चोथा श्री महामृगेंद्र के, छठा अशोचित्त वंदिये, सातमा श्री धमेन्द्र के. जिनवर० ५ मन लाग्युं जस जेहस्युं, न सरे तेह विण तास के, तिणे मुज मन जिन गुण थुणी, पामीशुं जश विलासके. जिनवर० ६
(ढा. १२) पुख्खर पश्चिम रावते हवे, अतित चोवीसी वखाणुंजी, अश्ववृंद चोथा जिन नमीयें, छठा कुटीकल जाणुंजी, सातमा श्री वर्धमान जिनेश्वर, चोवीसी वर्तमानजी, अकवीसमा श्री नंदीकेश जिन, ते समरो शुभ ध्यानजी, १ ओगणीसमा श्री धर्मचंद्र जिन, अढारमा श्री विवेकोजी, हवे अनागत चोवीसीमां, संभारुं शुभ टेकोजी, श्री कलापक चोथा जिन छठ्ठा, श्री
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विशोम प्रणमीजे जी, सातमा श्री अरण्य जिन ध्याता, जन्मनो लाहो लीजेजी. २ श्री विजय प्रभ सूरीश्वर राजे, दिन दिन अधिक जगीसजी, खंभ नयरमां रही चोमासुं, संवत सत्तर बत्रीसेंजी, दोढसो कल्याणकनुं गुणगुं, इम में पूरण कीधुंजी, दुःख चुरण दिवाली दिवसे, मन वांछित फल लीधुंजी, ३ श्री कल्याणविजय वर वाचक, वादी मातंगज सिंहोजी, तास शिष्य श्री लाभ विजय बुध, पंडित मांही लिहोजी, तास शिष्य श्री जितविजय बुध, श्री नय विजय सौभागीजी, वाचक जस विजये तस शिष्ये, थुणिया जिन वडभागीजी. ४ ओ गणणुं जे कंठे करशे, ते शिव रमणी वरशेजी, तरशे भव हरसे सवि पातिक, निज आतम उद्धरशेजी, बार ढाल जे नित समरसे, उचित काज आचरशेजी, सुकृत सुहोदय सुजस महोदय, लीला ते आदरशेजी. ५
(कळश) बार ढाल रसाल बारह, भावना तरु मंजरी, वर बार अंग विवेक पल्लव, बार व्रत शोभा करी, इम बार तप विध सार साधन, ध्यान जिन गुण अनुसरी, श्री नय विजय बुध चरण सेवक, जस विजय जयश्री लही. (15) मौन एकादशीनी ढाळो-४ (राग : नणदल सिद्धारथ सुत) __(ढाळ १) जगपति नायक नेमि जिणंद, द्वारिका नगरी समोसर्या, जगपति वांदवा कृष्ण नरिंद, जादव क्रोडरों परिवर्या....१ जगपति धी गुण फूल अमूल, भक्ति गुणे माळा रची, जगपति पूजी पूछे कृष्ण, क्षायिक समकित शिवरूचि...२ जगपति चारित्र धर्म अशक्त, रक्त आरंभ परिग्रहे, जगपति मुज आतम उद्धार, कारण तुम विण कोण कहे...३ जगपति तुम सरिखो मुज नाथ, माथे गाजे गुण निलो, जगपति कोई उपाय बताव, जेम करे शिववधूकंतलो....४ नरपति उज्वल मागसर मास, आराधो एकादशी, नरपति एकसोने पचास, कल्याणक तिथी उल्लर्सी...५ नरपति दशक्षेत्रे त्रणकाल चोविशी त्रीसे मली, नरपति नेवू जिननां कल्याण विवरी कहुं आगळ वळी....६ नरपति अर दीक्षा नमीनाण, मल्ली जन्म व्रत केवली, नरपति वर्तमान चोवीसी, माहे कल्याण कह्यां वळी....७ नरपति मौनपणे उपवास, दोढसो जपमाळा गणो, नरपति मन वच काया पवित्र, चरित्र सुणो सुव्रत तणो....८ नरपति दाहिण धातकी खंड, पश्चिम दिशी इक्षुकारथी, नरपति विजय पाटण अभिधान, साचो नृप प्रजापाळथी....६ नरपति नारी चंद्रावती
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तास, चंद्रमुखी गजगामिनी, नरपति श्रेष्ठी शूर- विख्यात, शीयल सलीला कामिनी,....१० नरपति पुत्रादिक परिवार, सार भूषण चीवर धरी, नरपति जाये नित्य जिनगेह, नमन स्तवन पूजा करे....११ नरपति पोषे पात्र सुपात्र, सामायिक पौषध वरे, नरपति देववंदन आवष्यक, काळ वेळाए अनुसरे...१२
(ढाळ २) एक दिन प्रणमी पाय, सुव्रत साधु तणां री, विनये विनवे शेठ, मुनिवर करी करूणा री । ....१. दाखो दिन मुज एक, थोडो पुण्य कीयो री, वाधे जिम वड बीज, शुभ अनुबंधी थयो री।....२ मुनि भाखे महाभाग्य, पावन पर्व घणां री, एकादशी सुविशेष, तेहमां सुण सुमना री।....३ सित एकादशी सेव, मास अग्यार लगें री, अथवा वरस अग्यार, उजवी तपसुं वगे री।....४ सांभळी सद्गुरु वेण, आनंद अति उल्लस्यो री, तप सेवी उजविय, आरण स्वर्ग वस्यो री।....५ एकवीस सागर आय, पाली पुण्य वसे री, सांभळ केशवराय! आगळ जेह थशे री।....६ सौरीपुरीमा शेठ, समुद्रदत्त वडो री, प्रीतिमति प्रिया तास, पुण्ये जोग जड्योरी ।....७ तस कूखे अवतार, सूचित शुभ स्वप्ने री, जन्म्यो पुत्र पवित्र, उत्तम ग्रह. शकुने री।....नाल निक्षेप निधान, भूमिथी प्रगट हुवोरी, गर्भदोहद अनुभाव, सुव्रत नाम ठव्यो री।....६ बुद्धि उद्यम गुरु जोग, शास्त्र अनेक भण्यो री, यौवनवय अगीयार, रूपवती परण्यो री।.... १० जिनपूजा मुनिदान, सुव्रत पच्चकखाण धरे री, अगियार कंचन कोड, . नायक पुण्ये भरे री।....११ धर्म घोष अणगार, तिथि अधिकार कहे री, सांभळी सुव्रत शेठ, जातिस्मरण लहे री।....१२ जिन प्रत्ये मुनि साख, भक्ते तप उचरे री, एकादशी दिन आठ, पहोरो पोषो धरे री।....१३
(राग : सांभळजो मुनि संयमरागे) (ढाळ ३) पनि संयुत पोषह लीधो, सुव्रत शेठ अन्यदाजी, अवसर जाणी तस्कर आव्या, घरमां धन लूंटे तदाजी....१ शासन भक्ते देवी शकतें, थंभाया ते बापडाजी, कोलाहल सुणी कोटवाल आव्यो, भूप आगल धर्या रांकडांजी....२ पोषह पारी देव जुहारी, दयावंत लेई भेटणांजी, रायने प्रणमी चोर मूकावी, शेठे कीधां पारणांजी....३ अन्य दिवस वैवानल लागो, सौरीपुरमा आकषरोजी, शेठजी पोसह समरस बेठा, लोक कहे हठ
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कां करोजी....४ पुण्ये हाट वखारो शेठनी, उगरी सौ प्रशंसा करेजी, हरखे शेठजी तप उजमणुं, प्रेमदा साथे आदरेजी....५ पुत्रने घरनो भार भलावी, संवेगी शिर सेहरोजी, चउनाणी विजयशेखर सूरि, पासें तपव्रत आदरेजी.... ६ एक खट मासी चार चौमासी, दोसय छठ सो अट्ठम करेजी, बीजा तप पण बहुश्रुत सुव्रत, मौन एकादशी व्रत धरेजी....७ एक अधम सुर मिथ्यादृष्टि, देवता सुव्रत साधुनेजी, पूर्वोपार्जित कर्म उदेरी, अंगे वधारे व्याधिनेजी....८ कर्मे नडीओ पापे जडीओ, सुर कहे जाओ औषध भणीजी, साधु न जाये रोष भराये, पाटु प्रहारे हण्यो मुनिजी....६ मुनि मन वचन काय त्रियोगे, ध्यान अनल दहे कर्मनेजी, केवल पामी जिनपद रामी, सुव्रत नेम कहे श्यामनेजी....१०
(राग : सिद्धारथ राय कुलतिलोए) (ढाळ ४) कान पयंपे नेमने ए, धन्य धन्य यादववंश, जिहां प्रभु अवतर्या ए, मुज मन मानस हंस, जयो जिन नेमने ए....१ धन्य शिवादेवी मावडीए, समुद्र विजय धन्य तात सुजात जगतगुरुए, रत्नत्रयी अवदात जयो०....२ चरण विरोधी उपनाए, हुं नवमो वासुदेव, जयो०। तिणे मन नवि उल्लसेए, चरण धरमनी सेव, जयो० ३ हाथी जेम कादव गल्योए जाणुं उपादेय हेय जयो०। तोपण हुं न करी शकुं ए, दुष्ट कर्मनो भेद जयो० ४ पण शरणुं बलियातणुं ए, कीजे सीजे काज, जयो०। एहवां वचनने सांभळीए, बांह्य ग्रह्यानी लाज, जयो०....५ नेम कहे एकादशीए, समकित युत्त आराध, जयो०। थाईश जिनवर बारमोए, भावि चोवीशीएं लद्ध जयो०....६
(कलश) एम नेमि जिनवर, नित्य पुरंदर, रैवताचल मंडणो, बाण नव मुनि चंद वरसें, राजनगरे संथुण्यो, ७ संवेग रंग तरंग जलनिधि, सत्यविजय गुरु अनुसरी, “कपुर विजय कवि क्षमाविजय गणि, जिन विजय" जय सिरि वरी....८
(16) श्री रोहीणी तपनुं स्तवन ढाल-४ (ढा. १) मघवा नगरी करी झंपा, अरि वर्ग थकी नहि कंपा, आ भरते
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पुरी छे चंपा, राम सीता सरोवर पंपा, पनोता प्रेमथी तप कीजे, गुरु पासे तप उच्चरीजे. ||१|| वासूपूज्य पुत्रना कहाय, मघवा नामे तिहां राय, तस लक्ष्मीवती छे राणी, आठ पुत्र उपर ओक जाणी. ॥२॥ रोहीणी नामे थई बेटी, नृप वल्लभ शुं थई मोटी, यौवन वयमां जब आवे, तव वरनी चिंता थावे. ||३|| स्वयंवर मंडप मंडावे, दुरथी राजपुत्र मिलावे, रोहिणी शणगार धरावे, जाणुं चंद्र प्रिया इहां आवे || ४ || नागपुर वितशोक भूपाल, तस पुत्र अशोककुमार, वरमाला कंठे ठावे, नृप रोहिणीने परणावे ॥५॥ परिकरसुं सासरे जावे, अशोकने राज्ये ठावे; प्रिया पुण्ये वधी बहु रिद्धि, वित शोके दीक्षा लीधी. ॥६॥ सुख विलसे पंचप्रकार, आठ पुत्र सुता थई चार, रही दंपति सात माले, लघु पुत्र रमाडे खोळे. ||७|| लोकपाल भीधानने बाल, रही गोखे जुड़े जन चाल, तस सन्मुख रोती नारी, सुणी रोशे भर्या नृप भारी. ॥१०॥ कहे नाच शीखो इण वेळा, लेई पुत्र बाहिर दीओ झोला करथी विछोड्यो ते बाल, नृप हां हां करे तत्काल. ||११|| पुर देव वच्चेथी लेतां, भोय सिहांसन करी देतां, राणी हसती हसती जुओ हेठु, राजाओ कौतुक दी. ||१२|| लोक सघळा विस्मय पामे, वासुपूज्य शिष्यवन ठामे, आव्या रुप सोवन कुंभ ठाम, शुभविर करें प्रणाम. ॥१३॥
( राग : रघुपति राघव राजा राम )
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(ढा. २) चउनाणी नृप प्रणमी पाय, निज राणीनो प्रश्न कराय, आ भव दुःख नवि जाण्या ओह, अ उपर मुज अधिको नेह ...॥१॥ मुनि कहे इण नगरे धनवंतो, धनमित्र नामे शेठज हुतो, दुर्गंधा तस बेटी थई, कुब्जा करूपा दुर्भगा भई...||२|| यौवन वय धन देतां सही, दुर्भग पण कोई परणे नही, नृप हणतां कौतव शिष्येण, राखी परणावी सातेण... ।। ३।। नाठोते दुर्गंधा लही, दान दियंता सा घर रही, ज्ञानीने परभव पूछती, मुनि कहे रैवत गिरि तट हती... || ४ || पृथ्वीपाल नृप सिद्धिमती, नारी नृपवनमां क्रिडती, राय कहे देखी गुणवंता, तपसी मुनि गोचरी अ जतां ... ॥ ५॥ दान दीयोघर पाछा वली, तव क्रिडा रसे रीसे बली, मुर्ख पणे करी बळते हैये, कडवो तुंबडो मुनिने दीये ... ॥ ६ ॥ पारणुं करतां प्राण ज गयां, सुरलोके मुनि देवज थया, अशुभ कर्म बांध्यु ओ नारी, जाणी नृप काढे
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घरबारी...॥७॥ कुष्ट रोग दिन साते मरी, गई छठी नरके दुःखभारी, तिरिच भवे अंतरता लही, मरीने सातमी नरके गई...॥८॥ नागण करभीने कुतरी उंदर गिरोली जलो शुंकरी,...काकी चंडालण भव लही, नवकार मंत्र सिंहा सद्दही...॥६॥ मरीने शेठनी पुत्री भई, शेष कर्म दुर्गंधा थई, सांभळी जाति स्मरण लही, श्री शुभवीर वचन सद्दही...॥१०॥
(ढा. ३) दुर्गंधा कहे साधुनेरे, दुःख भोगवीया अतिरेक, करुणा करीने दाखिओरे, जिम जाओ पाप अनेक रे...॥१॥ जिम मुनि कहे रोहीणी तप करे, सात वरस उपर सात मास, रोहीणी नक्षत्रने दिने रे, गुरु मुख करीओ उपवास रे,...॥२॥ तपथी अशोक नपथी प्रियारे थई, भोगवी भोग विलास, वासुपूज्य जिन तिर्थे रे, तमो पामशो मोक्ष निवासो,...॥३॥ उजमणे पुरे तपे रे, वासूपूज्यनी पडिमा भराय, चैत्य अशोक तरु तळे रे, अशोक रोहिणी चितराय,...॥४॥ साधु कहे सिंहपुरमा रे, सिंहसेन नरेसर सार, कनकप्रभा राणी तणोरे दुर्गंधी अनिष्ट कुमार रे,...॥६॥ पद्मप्रभुने पूछता रे, जिन जल्पे पूर्व भव तास, बार योजन नागपुरथी रे, ओक शिला निलगीरी खास रे,...॥७॥ ते उपर मुनि ध्यानथी रे, न लहे आहेडी शिकार; गोचरी गतशिला तले रे, कोप्यो धरे अग्नि अपार रे,...॥८॥ शिला तपी रही उपरे रे, मुनि आहार करी केरी काउसग्ग, क्षपक श्रेणी थई केवली रे; ततक्षण पाम्या अपवर्ग रे...||६|| आहेडी कुष्टि थई रे, गयो सातमी नरक मोझार, मच्छ मघा अहिं पांचमी रे, सिंह चोथी चित्र अवतार रे...॥१०॥ त्रिजी बिलाडो बीजीओरे, घुक प्रथम नरक दुःख जाल, दुःखना भव भमी ते थयो रे, ओक शेठ घरे पशुपाल रे...॥११॥ धर्म लही दवमां बल्यो रे, निद्राओ हृदय नवकार, श्री शुभवीरना ध्यानथी रे, तुज पुत्र पणे अवतार रे...॥१२॥
(ढा. ४) निसुणी दुर्गंध कुमार, जाति स्मरण पामतो रे, पद्मप्रभु चरणे शीष, नामि उपाय ते पुछतो रे, प्रभु वयणे उजमणे युक्त, रोहीणीनो तप से वीयो रे, दुर्गंधपणुं गयुं दुर, नामे सुगंधी कुमार थयो रे,...रोहीणी तप महिमा सार, सांभळता नवि विसरे-ओ,...॥१॥ रहि वात अधूरी अह, सांभळशो रोहीणी भवे अ, इम सुणी दुर्गंधा राणी, रोहीणी तप करे ओच्छवे रे... सुगंधी लही सुखभोग, स्वर्गे देवी सोहमणी रे, तुज कांता मघवा धुआ, मरी चंपाओ थई रोहीणी रे...॥२॥ तप पूण्य तणे प्रभाव, जन्मथी दुःख न
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देखीयो रे, अति स्नेह कीधो अम साथ, राय अशोके वळी पुछीयुं रे; गुरु बोले सुगंधी राय, देव थई पुष्कलावती रे; विजये थई चक्री तेह; संयम धर हुवा अच्युतपति अ...॥३॥ चविने थया तमे अशोक, ओक तपे प्रेम बन्यो घणो रे, सात पुत्री नी सुणजो वात, मथुरामां अक माहणो रे, अग्नि शर्मा सुत सात, पाटलीपुर जई भीक्षा भमेरे, मुनि पासे लेई वैराग्य, विचर्या साते रहि संजमे रे,...॥४॥ सौधर्मे हुवा सुत सात, ते सुत साते रोहीणी तणा रे, वैताढ्ये भिल्ल चुल खेट, समकित शुद्ध सोहामणो रे, देवगुरूनी भक्ति पसाय, धुर स्वर्गे थई देवतारे,...॥५॥ वळी खेट सुता छे चार, रमवाने वनमा गईर, तिहां दीठा ओक अणगार, भाखे धर्म वेला थई रे; पूछवाथी मुनि कहे भाग; आठ पहोर तुम आयु छे रे, आज पंचमीनो उपवास, करशो तो फलदायी छे रे...॥६॥ ध्रुजंती करी पच्चक्खाण, गेह अगाशे जई सोवती रे, पडी विजळीओ वळी तेह, धुर सुरलोके देवी थईओ, चवी थई तुम पुत्री चार, ओक दिन पंचमी तप करीरे, इम सांभळी सहु परिवार, वात पुर्व भवनी सांभळी रे,...॥७।। गुरुवांदि गया निज गेह, रोहीणी तप करता सहु रे, मोटी शक्ति बहुमान, उजमणां वस्तु बहु रे, इम धर्म करी परिवार, साथे मोक्ष पुरी वरी रे, शुभ वीरना शासन माही, सुभ फल पामो तप आदरी रे...॥८॥
(कळश) इम त्रिजग नायक, मुक्तिदायक, वीर जिनवर भाखीयो, तप रोहीणीनो फल विधाने, विधि विशेषे दाखियो; श्री क्षमा विजय जसविजय पाटे, शुभ विजय सुमति धरो, तस चरण सेवक, कहे पंडित, विर विजय जय जय करो...॥१॥
(17) श्री रोहीणी तपनुं स्तवन ढाल-६ (ढाळ १) हारे मारे वासुपूज्यनो नंदन मघवा नामजो, राणी तेहनी कमला पंकज लोयणी रे लो, हारे मारे आठ पुत्रने उपर पुत्री एक जो, मातपिताने व्हाली नामे, रोहीणी रे लो, ॥१॥ हां रे मारे पेखी यौवन वयनिज पुत्री भूपजो स्वयंवर मंडप मांडी नृप तेडावीयोरे लो, हारे मारे अंग बंगने मरूधर केरा रायजो, चतुरंगी फोजेथी चंपाए आवीयारे लोल, ॥२॥ हारे मारे पूरवभवना रागे रोहीणी तामजो, भूप अशोकने कंठे वरमाळा धरे रे लो, हारे मारे गजरथ घोडा दान अने बहुमान जो, देई
कताने व्हाली नामवर मंडप माइजयी चंपाए आने कंठे
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वोळावी बेटी बहु आडंबरे लो, ॥३॥ हारे मारे रोहीणी राणी भोगवता सुख भोगजो, आठ पुत्रने चार पुत्री सोहामणी रे लो, हारे मारे आठमा पुत्रनुं लोकपाल छे नाम जो, ते खोळे लई बेठी गोखे भामीनी रे लो ॥४॥ हारे मार एहवे कोई नगर वणीकनो पुत्रजो, आयुक्षयेथी बालक मरणदशा लहे रे लो, हारे मार मातपितादिक सहु तेहनो परिवार जो, रडतो पडतो गोख तले थईने वहे रे लो, ॥५॥ हारे मारे ते देखी अति हर्षीत रोहिणी तामजो, पियुने भाखे ए नाटक कुण भातिनुं रे लो, हारे मारे दिप कहे ए पूरव पून्य संयोगजो, जन्म थकी नवि दिठं दुःख कोई जातनुं रे लो, ॥६।।
(ढाळ २) पियु कहे जोबन मद माती, सहुने सरखी आशाए, ए बालकना दुःख थी रोवे, तुजने होवे तमासा, बोलो बोल विचारी राज, एम केम कीजे हांसी, ॥१॥ तव राणीने रीस करी खोलेथी, पुत्रने खेंची लीधो, रोहीणी राणी नजरे जोतां, गोखेथी नांखी दीधो, बोलो० ॥२॥ ते देखी सहु अंते उरमां, सज्जने पोकार कीधो, रोहीणी एम जाणे के बालक, कोईक रमवा लीधो, बोलो० ॥३॥ नगर तणे रखवाले देवे, अधर ग्रह्यो तिहां आवी, सोनाने सिंहासन स्थाप्यो, आभूषण पहेरावी बोलो० ॥४॥ नगर लोक सहं भाग्य वखाणे, राजा विस्मय थावे, दीप कहे जश पून्य सखाइ, तिहां सहु नवनिधि थावे, बोलो० ॥५॥
(ढाल ३) एक दिन वासुपूज्य जिनवरना, अंते वासी जिनराज वाला, रूपकुंभने सुवर्णकुंभजी, चउज्ञानी भवजहाज व्हाला, रोहीणी तप जग जयवंतु, ॥१॥ पाउधार्या प्रभु नयर समीपे, हरख्यो रोहीणी कंत व्हाला, सहु परिवारशुं पदयुग वंदे, निसुण्यो धर्म एकंत व्हाला, ॥२॥ करजोडी नृप पुछे गुरुने, रोहीणी पून्य प्रबंध व्हाला, शुं क्रीधु प्रभुः सुकृत तेने, भाख्यो तेह संबंध व्हाला, ॥३॥ गुरु कहे पूरव भवमां कीg, रोहीणी तप गुण खाण व्हाला, तेथी जन्म थकी नवी दीर्छ, सुख दुःख जाण अजाण व्हाला, ॥४॥ भाखशे गुरु हवे पुरव भवनो, रोहीणीनो अधिकार व्हाला, दीप कहे सुणजो एक चीते, कर्म प्रपंच विचार व्हाला, ॥५॥
(ढाल ४) गुरुकहे जंबुद्विपे भरतमां, सिद्धपुर नगर मोझारजो, पृथ्वीपाल नरेश्वर राजा, सिद्धि मति तस नार राजन सुणजोरे, कांइक
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पूरवभव अधिकार दिलमां धरजोरे, ॥१॥ एक दिन आव्या चंद्र उद्याने, राणीने राजन खेले, क्रिडा नव नव भाते, जो जो कर्म निदान राजन० ॥२॥ ए हवे कोईक मुनि तिहां आव्यां, गुण सागर तस नामजो, राजा ते मुनिवरने देखी, राणीने कहे ताम राजन० ॥३॥ उठो ए मुनिने व्होरावो, जे होय, सुजतो आहाररे, निसुणी राणीने मुनि उपर, उपन्यो क्रोध अपार राजन० ॥४॥ विषय थकी अंतराय थयो ते, मनमां बहु दुःख लावे रे, रीसे बळती कडवू तुंबडु रे, ते मुनिने व्होरावेरे, राजन० ॥५॥ मुनिने आहार थकी विष व्याप्यु, काळधर्म तिहां कीधोरे, राजाए राणीने ततक्षण, देश निकालो दीधोरे राजन० ॥६॥ सातमे दिन मुनि हत्या पापे, गलत कोढ थयो अंग रे, काळ करीने छठी नरके, उपनी पाप प्रसंगे रे राजन० ॥७॥ नारकीने तीर्यंच तणां भव, भटकी काल अनंत रे, दीप कहे हवे धर्मी जागजो, कहीश सरस वृतांत राजन० ॥८॥
(ढाळ ५) ते राणी मुनि पापथी केशरीयालाल, फरती भव चक्र फेरारे केशरीयालाल, धन मित्र शेठने घरेरे केशरीयालाल ॥१॥ जुओ जुओ कर्म विटंबना के० धनवंती कुखे उपनी के. दुर्गंधा तस नाम रे के० नगर वणिकना पुत्रने के० परणावी बहुमान रे, के० ॥२॥ सुखशय्यानी उपरे के० आवी कंतनी पासरे के० वधु दुर्गंधता उछळी के० स्वामी पाम्यो त्रास रे के० ॥३॥ मूकी परदेशे गयो के० जुओ जुओ कर्म स्वभावरे के० एकदिन कन्यानो पिता के० ज्ञानीने पूछे भावरे के० ॥४॥ ज्ञानीए पूर्व भव कयो के० भूपनो सहु अवदात रे के० फरी पूछे गुरुने रायरे के० किम होवे सुखशात रे के० ॥५॥ गुरु कहे रोहिणी तप करो के० सात वरस सात मास रे के० रोहिणी नक्षत्रने दिने के० चौविहार उपवास रे के० ॥६॥ वासुपूज्य भगवंतनी के० पूजा करो शुभ भाव रे के० एम ए तप आराधतां के० प्रगटे शुद्ध स्वभावरे के० ॥७|करजो तप पूरण थये के० उजमणुं भली भात रे के० तेहथी एक भव आंतरे के० लहेशो ज्योति महंतरे के० ॥८॥ एम मुनि मुखथी सांभळी के० आराधी ते सार रे के० ए तारी राणी थई रे के० रोहिणी नामे नाररे के० ॥६॥ एम निसुणी हरख्या सहु के० रोहिणीने वली राय रे के० दीप कहे मुनि कुंभ के० प्रणमी थानक जाय रे के० ॥१०॥
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471 (ढाळ ६) एक दिन वासुपूज्यजीए, समोसर्या जिनराज नमो जिनराजनेरे, रायने राणी हरखीयारे, सिध्या सघळा काज नमो० ॥१॥ बहु परिवारशुं आवीयारे, वंदे प्रभुना पाय, श्री मुखथी वाणी सुणीए, आनंद अंगन माय नमो० ॥२॥ रायने रोहिणी बेहं जणाए, लीधो संयम खास, धन्य धन्य संयम धर मुनिए, सुरनर जेहना दास नमो० ॥३॥ तपतपी केवल लही ए, तार्या बहु नरनार, शिवपद अविचल पद लयुए, पाम्या भवनो पार नमो० ॥४॥ एम जे रोहिणी तप करे ए, रोहिणीनी परे तेह, मंगल माला ते लहे ए, वली अजरामर गेह, नमो० ॥५॥ धन्य वासुपूज्य तीर्थने ए, धन्य धन्य रोहिणी नार, ए तप जे भावे करे ए, पामे ते जय जय कार नमो० ॥६॥ संवत अढार ओगण साठनो ए, उज्वल भाद्रवमास दिप विजय तस गाइओए, करी खंभात चोमास नमो० ॥७॥
(कळश) वासुपूज्य जगनाथ साहेब, तास तीर्थ ए थयो, चार पुत्रीने आठ पुत्रथी, दंपती मुक्ते गया, तपगच्छ विजयानंद पट्टधर, विजय देवेन्द्र सूरिश्चरे, तास राजे स्तवन कीर्छ, सकल संघ सुहंकरूं, सकल पंडित प्रवरभूषण, प्रेम रत्न गुरु ध्याईओ, दिप विजये पून्य हेते, रोहिणी गुण गाईए,
(18) दस पच्चक्खाणनी ढाल-३ (दुहा) सिद्धारथ नंदन नमु, महावीर भगवंत, त्रिगडे बेठा जिनवरु, पर्षदा बार मिलंत. १ गणधर गौतम तिणे समे, पूछे श्री जिनराय; दस पच्चक्खाण किसां कह्या, किहां कवण फल थाय. २
(ढा. १) (राग : श्री सुपार्श्व जिन साहिबा) श्री जिनवर ओम उपदिशे, साभळ गौतम स्वाम रे, दस पच्चखाण किधां थकां, लईओ अविचल ठाम रे, श्री जिनवर ओम उपदिशे. १ नवकारसी१ –बीजी पोरसीर, -साढ पोरसी३ -पुरिमठ्ठ४ रे, अकासj५ निवि कही६, अकलठाणुं७ दिवठ्ठप रे; श्री जिन० २ दत्ती आंबिल१० उपवास सही, अहीज दस पच्चक्खाण रे, अहना फल सुणो गोयमा, जुजुआं करुं वखाण, रे श्री जिन० ३ रत्नप्रभा १ शर्कराप्रभार, वालुका३ त्रीजीय जाण रे; पंकप्रभा४ धुमप्रभा६ तमप्रभा तमतमा७ ठाम रे, श्री जिन० ४ नरक साते रही सही, करम कठीन करे
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जोर रे, जीव करमवश करे जुदा, उपजे तीन बीज ठोर रे, श्री जिन० ५ छेदन भेदन ताडना, भूख तृषापछी त्रास रे, रोम रोम पीडा करे, परधामीनो त्रास रे, श्री जिन० ६ रात दिवस क्षेत्र वेदना, तिलभर नहि तिहां सुख रे, कीधा कर्म तिहां भोगवे, पामे जीव बहु दुःख रे, श्री जिन० ७ अकदिननी नोकारसी, जे करे भाव विशुद्ध रे, सो वर्ष नरकनुं आवखुं, दुर करे ज्ञानी बुद्ध रे, श्री जिन०८ नित्य करे नवकारसी, ते नर नरके न जायरे? न रहे पाप वली पाछला, निर्मल होवेजी काय रे, श्री जिन०६
(ढा. २ ) ( राग : मेरा जीवन कोरा कागज) सुण गौतम पोरसी कीयां, महा मोटो फल होय, भावशुं जे पोरसी करे, दुर्गती छेदे रे सोय, सुण० १ नरक मांहे नारकी, वरस अक हजार रे, कर्म खपावे नरकमां, करतां बहुं पोकार रे, सुण० २ दुर्गति मांहे नारकी, दश हजार परिणाम रे, नरकनुं आयु खिण अकमें, साढपोरसी करे हाण, सुण० ३. पुरिमुड्ढ करतां जीवडां, नरके ते नहि जाय, लाख वर्ष कर्मना कटे, पूरिमट करत खपाय, सुण० ४ लाख वरस दश नारकी, पामे दुःख अनंत, अटलां कर्म ओकासणे, दूरी करे मनखंत सुण० ५ ओक कोडी वरसा लगे, कर्म खपावे रे जीव, निवि करतां भावशुं, दुर्गति हणे सदीव, सुण० ६ दश कोडी जीव नरकमें, जेटलो करे कर्म दूर, तेटलो अकल ठाणमें, करे सही चकचुर, सुण० ७ दत्ति करतां प्राणियां, सो कोडी परिणाम, अटला वरस दुर्गति तणां, छेदे चतुर सुजाण, सुण०८ आंबिलनो फल बहु कह्यो, कोडी दश हजार, कर्म खपावे इणि परे, भावे आंबिल कर, सुण० ६ कोडी हजार दश वर्षसही, दुःख सहे नरक मोझार, उपवास करे अक भावशुं, पामे मुक्ति दुवार, सुण० १०
( ढा. ३) ( राग : अमका ते वादल उगीयो सूरे) लाख कोडी वरसां लगे, नरके करतां बहु रीव, छठ्ठनो तप करतां थका, नरक निवारे जीव, सुण गौतम गणधर सही. १ नरक विषे कोडी लाखही, जीव लहे तीहां अति दुःख, दुःख अठ्ठम तप हुंती, दूर करे पामे सुख. सुण० २ छेदन भेदन नारकी, कोडा कोडी वरसा सुधी, दुर्गति कर्मने परिहरे, दशमे अटलो फल होय. सुण० ३ नित्य फासुजल पिवतां, कोडा कोडी वरसना पाप, करे दुर क्षण अकमां, जीव निश्चये निरधार. सुण० ४ अ तो वलीय विशेष फल
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कह्यो, पांच करता उपवास, ते तो पामे ज्ञान पांच भला, करतां त्रिभुवन उजवास. सुण० ५ चौदश तप विधि शुं करे, चौद पूरव होय धार, अगियारस अकादशी, करतां लहीजे शिवसार, सुण० ६ अठ्ठम तप आराधतां, जीव न फरे इण संसार, अम अनेक फल तप तणां, कहतां वली न आवे पार सुण० ७ मन वचन काया ओ करी, तप करे जे नरनारी, अनंत भवना पापथी, जीवडो पामे दुःख निरधार सुण० ८ तप हुंती पापी तर्या, निष्तपिया अर्जुन माली, तप हुंति दिन अकमें, शिव पाम्या गज सुकुमाळ. सुण० ६ तपना फल सुत्रे कह्यां, पच्चखाण तणा दश भेद, अवर पण छे घणा, करतां छेदे तिन वेद, सुण० १०
(कळश) पच्चक्खाण दश विध फल प्ररुपयां, महावीर जिन देव ओ, जे करे भवियण तप अखंडीत, तास सुरपद सेव ओ. १ संवत विधु गुण अध शशी, वळी पोष शुद दशमी दिने, पदम रंग वाचक शिष्य गणि, रामचंद तप विधि भणे. २
(19) श्री छ आवष्यकनी ढाळो-६ चोवीसे जिनवर नमुं, चतुर चेतना काज, आवष्यक जिणे उपदिश्या, ते थुणश्युं जिनराज. १ आवष्यक आराधिओ, दिवस प्रत्ये दोय वार, दुरित दोष दुरे टले, जे आतम उपकार. २ सामायिक चउवीसथ्यो, वंदन पडिक्कमणेण, काउस्सग्ग पच्चक्खाण कर, आतम निर्मल ओण. ३ झेर जाय जीम जांगुली, मंत्र तणे महिमाय, तेम आवष्यक आदरे, पातक दूर पलाय. ४ भार तजी जिम भारवहु, हेजे हलवो थाय. अतिचार आलोवतां, जन्म दोष तिम जाय. ५
(ढा. १) (राग : आवो आवो देव मारा) पेलू सामयिक करो रे, आणी समता भाव; राग द्वेष दूरे करो रे, आतम अह स्वभाव रे. प्राणी समता छे गुण गेह, ओ तो अभिनव अमृत मेह रे प्राणी. स० १ आपे आप विचारीले रे, रमीओ आप स्वरुप; ममता जे परभावनी रे; विषमा ते विष पंक रे. प्राणी. स० २ भवभव मेळवी मूकिया रे, धन कुटुंब संजोग; वार अनंती अनुभव्यां रे, सवि संजोग वियोग रे. प्राणी. स० ३ शत्रु मित्र जग को नहीं रे, सुखदुःख माया जाळ; जो जागे चित्त चेतना रे, तो सवि दुःख विसराल
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रे. प्राणी. स० ४ सावध जोग सवि परिहरो रे, ओ सामायिक रुप, हुआ ओ परिणामथी रे, सिद्ध अनंत अरुप रे. प्राणी. स० ५
(ढा. २) (राग : पंच महाव्रत आदरो) आदिश्वर आराहिओ साहेलडी रे, अजित भजो भगवंत तो; संभवनाथ सोहामणा, सा० अभिनंदन अरिहंत तो. १ सुमति पद्म प्रभु पूजीओ सा० समरूं स्वामी सुपार्थ तो, चंद्र प्रभु चित्त धारीओ सा० सुविधि सुविधि ऋद्धि वास तो. २ शीतल भूतल दिनमणि सा० श्रीपूरण श्रेयांस तो; वासुपूज्य सुर पूजिओ सा० विमल विमल जस होत तो. ३ करु अनंत उपासना सा० धर्म धर्म धुर धार तो; शांति कुंथु अर मल्लि नमु सा० मुनिसुव्रत वडवीर तो. ४ चरण नमुं नमिनाथना, सा० नेमिधर करुं ध्यान तो; पार्श्वनाथ प्रभु पूजीओ सा० वंदु श्री वर्द्धमान तो. ५ मे चोवीसे जिनवरा सा० त्रिभुवन करण उद्योत तो; मुक्ति पंथे जेणे दाखवीयो साहेलडी रे, निर्मळ केवळ ज्योततो ६. समकित शुद्ध अहथी होये, सा० लीजे भवनो पारतो सा बीजुं आवश्यक इश्युं सा० चउवीसथ्यो सारतो. ७ ___ (ढा. ३) (राग : श्री जगदीश दयाल दुःख दूरे करे रे) बे कर जोडी गुरु चरणे वांदणां रे, आवष्यक पचवीश, धारो रे धारो रे, दोष बत्रीश निवारीओ रे. (१) चारवार गुरु चरणे मस्तक नामिओ रे, बार करी आवर्त, खामोरे खामोरे, वली तेत्रीस आशातना रे. (२) गीतार्थ गुणी गिरुआ गुरुने वंदता रे, नीच गोत्र क्षय थाय, थायेरे थाये रे, उंच गोत्रनी अर्जना रे. (३) आण ओळंगे कोईन जगमां तेहनी रे, परभवे लहे सौभाग्य, भाग्य रे भाग्य रे, दीपे जगमां तेहनुं रे. (४) कृष्णराय मुनिवरने दीधां वांदणा, क्षायिक समकित सार, पाम्यो रे पाम्यो रे, तीर्थंकर पद पामशे रे. (५) श्री शीतलाचार्य जिम भाणेजनेरे, द्रव्य वांदणा दीध, भावे रे भावे रे, देतां वळी केवल लघु रे. (६) ओ आवष्यक त्रीजुं अणी पेरे जाणजो रे, गुरु वंदण अधिकार, करजो रे करजो रे, विनय भक्ति गुणवंतनी रे. (७)
(ढा. ४) (राग : सिद्धारथ राजा कुल तिळोओ) ज्ञानादिक जिनवर कह्या रे, जे पांचे आचारतो; दोय वार ते दिन प्रति रे, पडिक्कमीओ अतिचार; जयो जिनवरजी रे. १ आलोईने पडिक्कमी रे, मिच्छामि दुक्कडं देय तो; मन वच
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काया शुद्ध करी रे, चारित्र चोक्खु करेय. जयो० २ अतिचार शल्य गोपवे रे, न करे दोष प्रकाश; माछीमल्ल तणी परे रे, ते पामे परिहास जयो० ३ शल्य प्रकाशे गुरु मुखे रे, होय तस भाव विशुद्धतो; तेहथी ते हारे नही रे, करे कर्म शुं जुद्ध. जयो० ४ अतिचार इम पडिक्कमी रे, धर्म करो निःशल्य तो; जित पताका तुमे वरोरे, जिम जग फलही मल्ल. जयो० ५ वंदितुं विधिशुं करो रे, तिम पडिक्कमणा सूत्रतो; चोथुं आवष्यक इस्युं रे, पडिक्कमणा सूत्र पवित्र जयो० ६
(ढा. ५) वैद्य विचक्षण जेम हरे अ, पहेलां सोल विकारतो; दोष शेष पछी रुझवाओ, करे औषध उपचारतो. १ अतिचार व्रण रुझवाओ, काउस्सग्ग तिम होय तो, नव पल्लव संयम हुवे अ, दूषण नवी रहे कोयतो. २ कायानी स्थिरता करीओ, चपल चित्त करो ठामतो; वचन जोग सवि परिहरिओ, रमीओ आतम रामतो. ३ श्वास उश्वासादि कह्या अ, जे सोले आगार तो; तेह विना सवि परीहरोओ, देह तणा व्यापारतो, ४ आवष्यक अ पांचमुं अ, पंचम गति दातारतो, मन शुद्धे आराधिओ ओ, लहीओ भवनो पारतो. ५
(ढा. ६ ) ( राग : वासी दिल्ही रे नयरना) सुगुण पच्चक्खाण आराधजो, अह छे मुक्तिनुं हेत रे, आहारनी लालच परिहरो, चतुर चित्त तुं चेत रे. सुं० १ शल्य काढ्युं व्रण रुजव्युं, गई वेदना दूर रे, पछी भला पथ्य भोजन थकी, वधे देह जेम नूर रे. सुं० २ तिम पडिक्कमण काउस्सग्गथी, गया दोष सवि दुष्ट रे, पछी पच्चक्खाण गुण धारणे, होय धर्म तनु पुष्ट रे. सुं० ३ अहथी कर्म कादव टले, अह छे संवर रुप रे, अविरति कुपथी उद्धरे, तप अकलंक स्वरुप रे सुं० ४ पूर्व जन्म तप आचर्यो, विशल्या थई नार रे, जेहना नवणना नीरथी, शमे सकल विकार रे. सुं० ५ रावणे शक्ति शस्त्रे हण्यो, पड्यो लक्ष्मण सेज रे, हाथ अडतां सचेतन थयो, विशल्यातप तेज रे. सुं० ६ छठु आवष्यक कह्युं, अहवं ते पच्चक्खाण रे, छये आवष्यक जेणे कह्यां, नमुं ते जगभाण रे. सुं० ७
( कळश) तपगच्छ नायक मुक्तिदायक, श्री विजयदेवसूरिश्वरो, तस पट्ट दिपक मोह जीपक, श्री विजयप्रभसूरि गणधरो; श्री कीर्तिविजय उवझाय
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सेवक, विनय विजय वाचक कहे, छ आवष्यक जे आराधे, तेह शिव संपदा लहे, १
(20) षट्पर्वी माहात्म्यनुं स्तवन ढाळ ६ (ढाळ १) (पुन्य प्रशंसीए--देशी) श्री गुरुपद पंकज नमीरे, भालुं पर्व विचार; आगळ चरित्रने प्रकरणेरे, भाख्यो जेम प्रकारोरे। भवियण सांभळो । १। निद्रा विकथा टाळीरे, मुकी आमळो-ए आंकणी० चरम जिणंद चोवीशमारे, राजग्रही उद्यान; गौतम उद्देशी कहेरे, जिनपति श्री वर्धमानरे। भवि०।२। पक्षमां षट् तिथी पाळीएरे, आरंभादिक त्याग; मासमां षट्पर्वी तिथीरे, पोसह केरा लागरे । भवि०।३। दुविध धर्म आराधवारे, बीज ते अति मनोहार; पंचमी नाण आराधवारे, अष्टमी कर्मक्षयकाररे । भवि०।४। अग्यारस चौदश तिथीरे, अंग पूर्वने काज; आराधी शुभ धर्मनेरे, पामो अविचळ राजरे,। भवि०।५। धनेश्वर प्रमुखे यथारे, पर्व आराध्यारे एह; पाम्या अव्याबाधनेरे, जिन गुण ऋद्धि वरेहरे । भवि०।६। गौतम पुछे वीरनेरे, कहो तेनो अधिकार; सांभळी पर्व आराधवारे, आदर होय अपाररे । भवि०।७।
(ढाळ २) (एकवीसानी--ए देशी) धनपुरमारे, शेठ धनेश्वर शुभमति, शुद्ध श्रावकरे, पर्व तिथे पोसह व्रती; धनश्री तसरे, पली नाम सोहामणो, धनसार सुतरे, तेहज जन्मनो कामणो-त्रोटक० कामणो निजहित कारण माटे, शेठजी आठम दिने, लही पोषह शून्य घरमां, रह्या काउसग्ग स्थिर मने; इण अवसरे सोहम इंदो, बेठो निजसुर पर्षदा, करे प्रशंसा शेठनी एम, सांभळे सहुसुर तदा । २ जो चळावेरे, सुरपति जइने आपही, पण शेठजीरे, पोषहमांहि चळे नहि; इम नीसुणीरे, मिथ्यात्वी एक चिंतवे, हुं चळावू रे, जईने हरकोई कौतुके,-त्रोटक० ३ शेठना मित्रनुं रूप करीने, कोटी सुवर्णनो ढग करी, कहे ल्यो ए शेठ तो पण, नवि चळ्या जेम सुरगिरि; पछी पत्नी रूप करीने, आलिंगनादिक बहु करे, अनुकूल उपसर्गे तो पण शेठजी, ध्यान अधिकेरूं धरे,। ४ करे बिहामणुं रे, ताप प्रमुख देखाडतो, नारीने सुतरे आवी एणी पेरे भाखतो; पारो पोषहरे, अवसर तुमचो बहु थयो, तव शेठजीरे, चिंतवे काल केतो गयो,-त्रोटक० ५ सज्झायने
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अनुसार करीने, जाण्युं छे हजी रातए, पोषह हमणा पारीए किम, नवि थयो प्रभातए; तव पिशाचर्नु रूप करीने, चामडी उतारतो; घात उछालन शिलास्फालन, सायरमांहि नांखतो,।६ इम प्रतिकूलरे, उपसर्गे पण नवि चव्यो, प्राणांतेरे, अष्टमी व्रतथी नवि डग्या; तव ते सुररे, मांग मांग मुख इम कहे, पण ध्यानमारे, ते वात पण नवी लहे, त्रोटक० ७ तव तेणे रत्न अनेक कोटी, वृष्टि कीधी जाणीए; बहु जणा पर्व आराधवाने, सादरा गुण खाणए; राजा पण ते देखी महिमा, शेठने माने घj, कहे धन्य धन्य शेठजी तुम, सफल जीवित हुं गणुं | ८
(ढाळ ३) (साहेलडी---ए देशी) तेह नगरमांहे वसे, साहेलडीरे, त्रण पुरुष गुणवंत तो; घांची हाली एक धोबी, साहेलडीरे, षटपर्वी पालंततो। १ । साधर्मीक जाणी करी, सा० शेठ करे बहु मानतो; पारणे अशन वसन तथा सा० द्रव्यतणुं बहु दान तो । २। साधर्मिक सगपण वडुं, सा० ए सम अवर न कोई तो; शेठ संगे ते त्रण जणा, सा० समकित दृष्टि होय तो।३। एकदिन चौदश ने दिने, सा० राय धोबीने गेह तो; चिवर राय राणी तणां, सा० मोकलीया वरनेह तो । ४ । आजेज धोई आपज्यो, सा० महोत्सव कौमुदी काल तो; रजक कहे सुणो माहरे, सा० कुटुंब सहित व्रत पाळतो । ५। धोवू नहि चौदश दिने, सा० तव नृप बोले जाणतो; नृप आणाए नियमशो, सा० जेहथी जाये प्राणतो । ६। सज्जन शेठ पण एम कहे, सा० एहमां हठ नहिं ताणतो; राजकोप अप्रभाजना, सा० धर्मतणी पण हाणतो।७। वळी रायाभियोगेणं, सा० छे आगार पच्चक्खाण तो; तव धोबी चित्त चिंतवे, सा० दृढता विण धर्म हाणतो । ८। धोवू नही मान्युं तेणे, सा० राय सुणी ते वाततो; कुटुंब सहित निग्रह करूं, सा० काल जो हुं नृप साचतो । ६ । दैवयोगे ते रातमां, सा० शूल व्यथा नप थाय तो, हाहाकार नगर थयो, सा० इम दिन त्रण वहि जाय तो । १०। पडवे दिन धोई करी, सा० आप्यां वस्त्र ते राय तो; व्रत निर्वाह सुखे थयो, सा० धर्म तणे सुपसाय तो।११। .
(ढाळ ४) (भरत नृप भावशू---ए देशी) नरपति चौदशने दिनेए, घाणी वाहन आदेश; करे तेली प्रतेए, रजक परे ते अशेष; व्रत नियम पाळीयेए । आंकणी० १ भूपति कोपे कलकल्योए, इण अवसर पर चक्र; आव्युं देश
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भांजवाए, महादुर्दान्त ए चक्र; व्रत नियम० २ नृप पण सन्मुख निकव्योए, युद्ध करणने काज; विकळ चित्तथी थयोए, इम रही तेलीनी लाज | व्रत नियम०।३। हालीने आठम दिनेए, दीधुं मुहूर्त ततकाल; तेणे पण एम कह्युए, खेडीश हळ हुं काल । व्रत नियम०।४। कोपे भराणो भूपतिए, इण अवसर तिहां मेह; वरसण लाग्यो घणुंए, खेड न थावे हेव । व्रत नियम०।५। त्रणे अखंड व्रत पालतीए, पुण्य अतोलथी तेह; मरण पामी स्वर्गे गयाए, छठे देवलोके जेह । व्रत नियम०।६। चौद सागरनु आवखुंए, उपना ते ततखेव; हवे शेठ उपनाए, बारमे देवलोके देव । व्रत नियम०।७। मैत्री थई ते च्यारनेए, श्रेष्ठी सुरने ताम; कहे त्रण देवताए, प्रतिबोधजो अम स्वाम । व्रत नियम०|८| ते पण अंगीकरे तदाए, अनुक्रमे चविया तेह; उपन्या भिन्न देशमाए, नरपति कुलमां तेह । व्रत नियम०।६। धीर वीर हीर नामथीए, देश धणी वडराय; थया व्रत दृढ थकीए, बहु नृप प्रणमे पाय | व्रत नियम०।१०।
(ढाळ ५) (राग : ते दिन क्यारे आवशे) धीरपुर एक शेठने, पर्व दिने व्यवहार; करतां लाभ घणो होवे, लोकने अचरिजकार, अन्यदिने हानिपण, होये पुण्य प्रमाण; एक दिने पूछे ज्ञानीने, पूर्व भव मंडाण, ।१। ज्ञानी कहेसुण परभवे, निर्धन पण व्रतराग; आराधिने पर्व तिथि, आरंभनो त्याग; अन्य दिने तुमे कीधो, सहेजे पण व्रतभंग; तिणे ए कर्म बंधाणा, सांभळो ए कंत,।२। सांभळी ते सह कुटुंबशुं, पाळे व्रत निरमाय; बीज प्रमुख आराधे, सविशेष सुखदाय; ग्राहक पण बहु आवे अर्थे, थावे लाभ अपार; विधासी बहु लोकथी, थयो कोटी सरदार । ३। निजकुल शोषक वाणीआ, जाणो आ जगत प्रसिद्ध; तेणे जई रायने वाणीए, इणी परे चुगली कीध, इणे कोटी निधान लाधो, ते स्वामीनो होय, लोक; नरपति पूछे शेठने, वात कहो सहु कोय, । ४। शेठ कहे सुणो नरपति, महारे छे पच्चखाण; स्थूल मृषावादने वळी, स्थूल अदत्तादान, गुरु पासे व्रत आदर्यु, ते पालुं निरमाय; पिशुन वणिक कहे स्वामी ए, धर्मी धूतारो थाय । ५। तस वचने करी तेहना, द्रव्य तणो अपहार; करीने भूपति राचे, पुत्र सहित निजद्वार; राजद्वारे रह्यो चिंतवे, आज लयो में कष्ट; पण आज पंचमी तिथि तिणे, लाभ होई
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कोई लष्ट; ६ प्रातःस्मरणे नृप देखे, खाली निज भंडार; शेठ घरे मणि रत्न सुवर्ण, भर्या श्री श्रीकार, आवी वधामणी रायनी, ते बिहुनी समकाल; शेठ तेडी कहे नरपति, वात सुणो इण ताल ।७।
(ढाळ ६) (राग : अंधारानो दिवडोने तुं मनडानो मोर) भूपति चमक्यो चित्तमां ललना लाल हो, देखी ए अवदात व्रत इम पालीए ललना; खेद लही खामे घणुं ललना, लालहो, प्रश्न पूछे सुखशात; व्रत इम पालीए ललना० १ कहे नृप ए केम नीपन्युं ललना लालहो, तुज घर धन किम होय; व्रत० १ शेठ कहे जाणुं नहि ललना लालहो, किणी परे ए मुज थाय। व्रत० २ पण मुज पर्वने दहाडले ललना लालहो, लाभ अणचिंतव्यो थाय; व्रत० ३ पर्व महिमा इम सांभळी ललना लालहो, भूपतिने तत्काल; व्रत० जातिस्मरण उपन्युं ललना लालहो, निजभव दिठो रसाल। व्रत० ४ धोबीनो भव सांभर्यो ललना, पाल्युं जे व्रत सार; व्रत० जावज्जीव नृप आदरे ललना लालहो, षटपर्वि व्रतधार | व्रत० ५ आवी वधामणी तेणे समे ललना लालहो, स्वामी भरणा भंडार; व्रत० विस्मित राय थयो तदा ललना लालहो, हियडे हर्ष अपार । व्रत० ६
(ढाळ ७) साहेबजी शेठ अमर प्रगट थयो हो लाल, भाखे रायने एम; सा० तुं नवि मुजने ओळखे हो लाल, हुं आव्यो तुज प्रेम १ साहेबजी पर्व तिथि एम पाळीए हो लाल, साहेबजी श्रेष्ठी सुर हुं जाणजो हो लाल; तुज प्रतिबोधन आज, सा० शेठ सानिध्य करवा वली हो लाल, कीधुं में सवि काज। सा० पर्व २ साहेबजी धर्म उद्यम करे जे सदा हो लाल; जावू छु सुणी वात; सा० तेलिक हालिक रायने होलाल, प्रतिबोधन अवदात। सा० पर्व० ३ तिहां जइ पूर्वभव तणा हो लाल, रूप देखावे तास; सा० देखीने ते पामीया हो लाल, जातिस्मरण खास । सा० पर्व० ४ ते बेउ श्रावक थया हो लाल, पाले नित षट् पर्व सा० त्रणे ते नररायने हो लाल सहाय करे ते सुपर्व। सा० पर्व० ५ निज निज देश निवारता हो लाल, मारी व्यसन सवि जेह; सा० चैत्य करावे तेहवा हो लाल; प्रतिमा भरावे तेह। सा० पर्व०६ संघ चलावे सामटा हो लाल, स्वामिवच्छल भातभात; सा० पर्व दिन नित्य . नगरमां हो लाल, पडह अमारी प्रख्यात । सा० पर्व० ७ पर्व तिथि सहु
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पाळता हो लाल, राजा प्रजा बहु धर्म; सा० इति उपद्रव सहु टळे हो लाल, नहि निज परचक्र भर्म | सा० पर्व० ८ धर्मथी सुर सानिध्य करो हो लाल, धर्म पाळी पाले राज; सा० कोई सद्गुरु संजोगथी हो लाल, थया त्रणे ऋषिराज। सा० पर्व० ६
(ढाळ ८) (राग : मेंदी ते वावी मांडवे) त्रणे नरपति आदर्यो रे, चोक्खो चारित्र भार संयम रंग लाग्यो तप तपतां अति आंकरा रे, पाले निरतिचार । संयम० १ ध्यान बळे खेरु कर्या रे, घनघाति जे च्यार; संयम० केवळज्ञान लही करीरे, विचरे महियल सार। संयम० २ श्रेष्ठी सुर महिमा करे रे, ठाम ठाम मनोहार; संयम० देशना देता केवली रे, भाखे निज अधिकार । संयम० ३ पर्व तिथि आराधियेरे, भवियण भाव उल्लास; संयम० इम महिमा विस्तारीनेरे; पाम्या शिवपुर वास। संयम० ४ बारमा देवलोकथी चवीरे, श्रेष्ठी सुर थया राय; संयम० महिमा पर्वनो सांभळीरे जाति-स्मरण थाय। संयम० ५ संयम ग्रही केवल लहीरे, पाम्या अविचळ ठाण; संयम० अव्याबाध सुखी थयारे, केवल चिद् आराम । संयम० ६ ___ (ढाळ ६) (राग : आजनो दिवस मने लागे बहु प्यारो) उजमणां ए तप तणां करो, तिथि परिमाण उपगणां रे; रत्नत्रय साधन तणां, भवि भवसायर निस्तरणां रे । उ० १ जो पण सहु दिन साधवा, तो पण तेनी अशक्तिरे, पर्वतिथि आराधीने, तुम उजवजो बहु भक्तिरे। उ० २ श्राद्धविधि वर ग्रंथमां, भलो भाख्यो ए अवदातोरे; भगवतीने महानीशीथमां कयो, तिथि अधिकार विख्यातोरे । उ० ३ तपगच्छ गगनांगण रवि, श्री विजयसिंह गणधारोरे; अंतेवासी तेहना, श्री सत्यविजय सुखकारोरे । उ० ४ कर्पूर-विजय वर तेहना, वर क्षमाविजय पंन्यासरे, जिनविजय जगमां जयो, शिष्य उत्तमविजय ते खासरे। उ० ५ तसपद चरण भ्रमण समा, रही साणंद चोमासु रे, अढार त्रीस संवत्सर, सुद तेरस फागण मासोरे। उ० ६ पद्मविजय भक्ते करी, श्री विजयधर्मसूरि राजेरे; वर्धमान जिन गाईया, श्री अमीजरा प्रभु पासेरे । उ०७
(कळश) पर्व तिथि आराधो, सुव्रत साधो, लाध्यो भव सफळो करो, संवेगे संगी तत्वरंगी, उत्तमविजय गुणाकरो; तस शिष्य नामे सुगुण कामे, पद्मविजये आदर्यो, शुभ एह आदर, भवि सहाधर, नाम षट् पर्वी धर्यो ।
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( 21 ) नरक दुःख वर्णन गर्भित श्री आदिनाथ जिन विनति
(हो) आदि जिणंद जुहारीओ आणी अधिक उल्लास, मन वचन काया शुद्ध शुं, कीजे नित्य अरदास ||१|| नरक तणां दुःख दोहिला, में सहियां वार अनंत, वर्णवुं तेह किणी परे, जाणे सवि भगवंत. ॥ २॥ करम कठोर उपाईने, पहोत्या नरक निवास, वेदन तीन प्रकारनी, सहत अनंत दुःख राश. ॥३॥
( ढा. १ ) ( राग : अमका ते वादळ ) आदिसर अवधारिओ, दास तणी अरदास रे, नरक तणी गति वारिओ, दीजे चरणमां वास रे,...||१|| शितल योनिमां उपन्यो, बलति भूमि वसंतो रे, तीखी तीखी सुचिका, उपरे पाय ठवंतो रे... ॥ २ ॥ सहित दुर्गंधि कलेवरा, चाले परू प्रवाह रे, वसवुं तेहमां अहोनिशे, उठे अधिको दाह रे ... ॥ ३ ॥ दिन हिन अति दुःखिया, देखे परमा धामी रे, हा हा! केम छुटशुं, कवण दशा में पामी रे...।। ४ ।। हसी हसी पाप समाचरे, न गणे भय परलोक रे, फळ भोगवतां जीवडो, फोगट कां करे शोक रे... ॥५॥ खोटी कमाई आपणी, शुंहोये पछताये रे, वावे बीज करीरनुं, आंबा ते किम खाय रे
(ढा . २ ) ( राग : इन्द्रभूति अवसर लही रे ) मुद्गर कर लही लोहनारे, उठे असुर हाथरे, पापी पिडा नवि लहेरे; भांजी करे चकचूर रे; प्रभुजी ! मया करो! जिम न लहुं गति तेहोरे, जब ते हैये सांभरे रे, तव कंपे मुज देहो रे, प्रभुजी० ||१|| नदी वैतरणी ते करे रे, अति विषमो पंथ जास, ताता तरुआ जळ भळी रे, तामे झबोळे तास रे. प्र० ॥२॥ तेल उकाळी आकरो रे; कुंभीमां भरे देह; जे पशुमांस पकावतो रे, पामे तस फळ अह रे. प्र० || ३ || बटाटा कांदा गुलर भखे रे, रींगण मुळा अ शाक, दारुण वेदन अ सहेरे, रसना रसनो विपाक रे. प्र० ||४|| छाया जाणी तरु तळे रे, ते जाये निरधार, उपर छत्र झाझी पडे रे, जाणे खड्गनी धार रे. प्र० ॥ ५ ॥ नासी गिरि कंदर गयोरे, तनु धरी अधिक प्रचंड, व्रजशिला, मस्तक पडे रे, भांजी करे शत खंड रे. प्र० || ६ || भार घणो गाडे भरे रे, जोतरी दीओ तस खंध, वेलुमांही चलावतारे, तूटे तननी संध रे. प्र० ||७||
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(ढा. ३) कीधा कर्म छुटे नही, जाणो चतुर सुजाण, पामे वेदना अतिघणी, दिलचेतो मन धरी नाण; तारो श्री जिनराजजी! दुं छु दिन अनाथ, वारंवार किश्युं विनवू, मीटाडो दुःख साथ तारो० ॥१॥ अग्नि वरण करी पुतळी, फरसावे तस अंग, असुर प्रचारे उपरे, कीधा पर स्त्री संग, तारो० ॥२॥ टाणे करी मस्तक धरे, करवत केरी धार; काष्ट तणी परे छेदतां, उपर नांखे रे खार, तारो० ॥३॥ उंचो जोयण पांचसे, उडयां जाव जाणे तुल, पडतां असुर तिहांवळी, तळे मांडे त्रिशुळ, तारो० ॥४॥ टळवळतो धरणी पडे, प्यासो मांगे नीर; तपत रांग मुदु मेदिओ, वाधे बहुली पीड तारो० ॥५।। सो नही तस रक्षण करे, दुःखी दीन अवतार, शरण ग्रयुं हवे ताहरूं, किजे सेवक सार तारो० ॥६।। परमाधामी सुर कहे, शुं? काढे अम दोष. आप कमाई भोगवे, कीजे राग न रोष, न दीयो. अमने दोष; तारो० ॥७॥
(ढा. ४) ओक जिभे शुं वर्ण, रे, दुःख अनंत अगाह, जेम तेम ते दिन निर्गम्या रे, ते जाणो जगनाह हो स्वामी!, पूरो माहरी आश न लहु नरक निवास...॥१॥ पापी पाप माने नहि रे, राते गल गल खाय, वदन भरी तस कीडियो रे, होठे सीवे लगे साय हो स्वा० ॥२॥ कान वशे जे मानवी रे, तेहना कान कथीर, नयन चपळता जे धरे रे, तेहमां तातो तीर, हो स्वा० ॥३॥ जीभ लंपट जेहुओ रे, खंडे तेहनी जीभ, नासा रस रसिया तणुं रे, छेदे नाक अबीह, हो स्वा० ॥४॥ तप जप संजम नवि धरे रे, पोषे बहु विध देह. कंटक सेज बीछावीने रे, पोढाडे तिहां तेह हो स्वा० ।।५।। आपसमा लडे नारकी रे, हाथ ग्रही हथियार, खंड खंड थई ते पडे रे, पामे कष्ट अपार हो स्वा० ॥६॥ भूख अनंती ते सहे रे, तेम अनंती प्यास, व्याधि व्यथा दुःख आप तारे, सहे ते दीन निराश हो स्वा० ॥७॥ लाख चोराशी जाणीओ रे, साते नरक निवास, लेश थकी भांखीयुं रे, सुणी जिन आगम भाष हो स्वा० ॥८॥ वंश इक्खाग सोहामणो रे नाभि नरिंद मल्हार, शेजूंजा गिरि राजीयो रे, सेवक जन आधार हो स्वा० ॥६॥
(22) नारकीनी स्तवन ढाळो ६ (ढा. १) (राग : चार दिवसना चांरडा) वर्धमान जिन विनवू, साहेब साहस धीरोजी; तुम दरिशण विण हुं भम्यो, चिहुँ गतिमां वड वीरोजी. १ प्रभु नरक
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तणां दुःख दोहिळा, में सह्या काळ अनंतोजी, शोर कियो नवि को सुणे, ओक विना भगवंतोजी. प्रभु० २ पाप करीने प्राणीओ, पहोंतो नरक मोझारोजी, कठिन कुभाषा सांभळी, नयण श्रवण दुःखकारोजी. प्रभु० ३ शीतल योनिमां उपन्यो, रहेवू तपते ठामोजी; जानुं प्रमाण रुधिरमां, किचड त्यां बहु तामोजी. प्रभु० ४ तव मन माहे चिंतवे, जाइओ किण दिशे नाशोजी; परवश पडीयो प्राणीयो, करतो कोड विखासोजी. प्रभु० ५ चंद्र नहिं त्यां सुरज नहीं, त्यां घोर घपट अंधारोजी; स्थानक अतिय बीहामणां, फरस जीस्यो क्षुर धारोजी. प्रभु० ६ नवो नरकमां उपन्यो, जाणे असुर तेणि वारोजी; कोप करीने आवे तिहां, हाथ धरी हथीआरोजी. प्रभु० ७ करे कातरणी देहनी, करतो खंडोखंडजी; रीव अतिय करे बहु, पामे दुःख प्रचंडोजी. प्रभु० ८
(ढा. २) (वैरागी थयो--ओ देशी) भांजे काया भांजतो रे, मारे फेचारे मांहे. उंधे मस्तके अग्नि दीओ रे, उंचा बांधे पाय रे. १ जिनजी सांभळो, कडवा करम विपाकोरे. वीरजी सांभळो ओ टेक. वैतरणी तटीनी तणो रे; जलमां नाखे रे पास; करिय कुहाडो तरु परे रे, छेदे अधिक उल्लासो रे जिनजी० २ उंचा जोयण पांचसेरे, उछाळे आकाश; धान रुप करे तिहारे, मृग जेम पाडे पासोरे जिनजी० ३ पन्नर भेदे सुर मलीरे, करवत दीयेरे कपाल, तस आरोपे शूलिमा रे, भांजे जिम तरु डाळ रे. जिनजी० ४ बोळे ताता तेलमारे, तळी तळी काढेरे ताम; वळी भोभरमां क्षेपवेरे, विरुआ तास विपाकोरे. जिनजी० ५ खाळ उतारे देहनीरे, आमिष दीओ आहार; बहु बराडा पाडतो रे, तन विचे घाले खाररे. जिनजी० ६
(ढा. ३) (राग : जिनजी कब मिले रे, के भोलासु टळवळे रे--अ देशी,) ताप करीने ते वळी भूमिका रे, मन शुं शीतळ जाण; आवि बेसे तरुवर छायडेरे, पडतां भांजे प्राण. १ चतुर मत राचज्योरे, विरुआ विषय विलास; सुख थोडा दुःख दोहिला, जेहथी रे, लहिजे नरक निवास. च० २ कुंभि मांहे पाक करे तस देहनोरे, तल जेम घांणी मांहे. पिली पीली ने रस काढे तेहनोरे, महेर न आवे त्यांही. च० ३ नाठो जाई त्रीजी नरक लगेरे, मन धर तो भय भ्रांति. पछी परमाधामी शुलि उपरे रे, होवे काल कल्पांत. च० ४ खाल उतारे तेहनी खांतसुं रे, क्षार भरे तस देह खास. पोरानी परे ते
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तिहां टळवलेरे, महेर न आवे तास. दीये च० ५ दांत विचे दिये दश
आंगुलीरे, फरी फरी लागे रे पाय; वेदना सहेता काळ गयो घणो रे, हवे ओ सह्यो न जाय. च० ६ जीहां जाय तिहां उठे मारवारे, कोईन पूछे रे सार; दुःख भरी रोवे दीनपणे करीने रे, निपट हैयानी धार. च० ७
(ढा. ४) परमाधामि सुर कहे, सांभळ रे तुं भाई; कियो दोष अमारडो रे, निज देखो कमाइ. परमा० १ पाप करम किधां घणां, बहु जीव विणास्या; पीडा न जाणी पर तणीरे, कुडा मुखे भाख्या. परमा० २ चोरी लाव्या धन पारकुं, सेवी परनार; आरंभ काम कीधा घणा, परिग्रहनो नही पार. परमा० ३ निशि भोजन कीधा घणारे, बहु जीव संहार; अभक्ष अथाणां आचर्या, पातिकनो नहि पार. परमा० ४ मातपिता गुरु ओलव्या, किधा क्रोध अपार; मान माया लोभ मन वस्यारे, मति हीण गमार. परमा० ५।
(ढा. ५) (राग : सिद्धारथ राय कुल तिलोए) इम कही सुर वेदना, वळी उदेरे तेहतो; खिला कांटाळा वजा तणो, तिहां पछाडे देहतो. १ तृषा वशे तातो तरुओ, मुखमां घाले तामतो; अग्नि गरम करी पूतलीओ, आलिंगन दे जामतो. २ सयल वदन भरे ओ, जीभ करे शतखंडतो; ओ फळ निशि भोजन तणांओ, जाणे पाप अखंडतो. ३ अति उनो अति आकरो, आणे तातो तीरतो; ते घाले तस आंखमांओ, काने भरे कथीरतो. ४ काला अधिक होय बिहामणा ओ, हुंडक संठाण तो; ते दिसे दीन दयामणो ओ, वळी नीराधार प्राणतो. ५
(ढा. ६) इणी परे बहु वेदना सहि चित्त चेतोरे, वसता नरक मजार, चतुर चेतोरे; ज्ञानी विण जाणे कोई, चित्त० कहेतां न आवे पार. चतुर० १ दश द्रष्टांते दोहीलो, चित्त० लाधो नर भवसार; चतुर० पाम्यो अळे हारी गयो. चित्त० करज्यो अह विचार चतुर० २ सुधो संजम आदरो, चित्त० टाळो विषय विकार. चतुर० पांचे इंद्रिय वश करो, चित्त० जिम होये छुटकबार. चतुर० ३ निंदा विकथा परिहरो, चित्त० आराधो जिन धर्म चतुर० समकित रत्न हैये धरी, चित्त० भांजे मिथ्या मुर चतुर० ४ वीर जिणंद पसाउले, चित्त० अहिपुर नगर मोझार; चतुर० स्तवन रच्यो रळियामणो, चित्त० ए छे परम उदार. चतुर० ५
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( 23 ) नारकीनी सात ढालोनुं स्तवन
श्री त्रिशलानंदन प्रणमीये, शासन नायक वीर ; सिद्धारथ नृप कुळतिलो, बळवंत साहस धीर, चरण अंगुठे चांपीयो, जेणे मेरु गिरिंद, सविसुर संशय उपन्यो, जाण्यो त्रिभुवन चंद, बाळलीला सुख भोगवी, पछी लीये संजम भार. केवलज्ञान पामी करी, करे भविनो उपगार. समवसरण बेसी करी, गौतम आगळ वीर; नरकतणां दुःख वर्णवे, सांभळे वीर वजीर. विविध प्रकारनी वेदना, सहेता नारकी जीव; सांभळतां हैया थरथरे, भाखे शासन वीर .
( ढा. १ ) ( राग : पामी सुगुरु पसाय रे ) पहेली नरके जान रे, सागर अकनो, आयु भाखे वीरजी ओ, बीजी नरके जोय रे, सागर त्रणनुं, आयु अटलुं जाणीये अ, सागर सातनुं आयु रे, त्रीजीओ कह्युं, केवळीवचन ते सद्दहो अ, ३ चोथे दश सागर जाण रे, गुणवंत सांभळो, अह वचन जिन वीरना अ. ४ गणधर भाखे तास अ, पांचमी नरकनो, सत्तर सागर आउखु अ. ५ छठ्ठी नरके गुणवंत रे, सागर बावीसनो, इणिपरे गुरुमुखे सांभव्युं अ. ६ सातमी जाणो संत रे, सागर तेत्रीसनो, आयु वीरजिन प्ररुपताओ. ७ ओ साते नरके आयुं रे, जाणे शास्त्रथी, नरकवेदना अति आकरी ओ. मूक्ति वीर जिणंद रे, किम समे वेदना, धर्मे मुक्ति जश लहे ओ. €
कहे
(ढा. २) काळ अनंती वेदना गुणवंताजी, घणुं शुं भाखुं अह सुगुणजन सांभळो गुणवंताजी शोर बकोर करे नारकी गु०, केवळी जाणे तेह सु० सांभळो गुणवंताजी. १ परमाधामी देवता सु०, वेदना उपजावे प्रचंड सु०; खंडोखंड ते प्राण ना गु०, उपर मुद्गर दंड सु०, सां० २ ओवा शब्द कोण सांभळे गु०, अक सांभळे श्री जिनराज सु०, पापकरीने प्राणीओ गु०, जई बेसे नारकीपात सु०, सां० ३ कर्कश भाषा बोलता गु०, वर्ण कुवर्ण तु जाणशुं०; माहोमांहे सांभळे गु०, सहेवळी दुःखनी खाण. सु०, सां०४ शीतल योनिओ उपजे गु०, रहेता तिणेज ठाम सु०; रुधिरमां खुंचा बापडा गु०, देखत घोर अंधार सु० सां० ५ किच भक्षण करे नारकी गु०, घणा नरकमां दुःख सु०, मननी वात मनमां रहे, गु०, परवश नारकी जीव सु० सां० ६ दिशा नवि मुज सूझे तेहने गु०, परमाधामी उभा जेह सु०; नाशीने जाय किहां नारकी जीव गु०, ओवो थानक नहि. जेह सु०, सां० ७ सांभळी
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486 हैडा कमकमे गु०, अहवा नारकी दुःख सु० जीवजंत मारे प्राणीयो गु०, किम लहे मुक्तिना सुख सु० सां० ८
(दुहा) दश प्रकारनी वेदना, सहेता नारकी जीव; अन्यो अन्य झुझता, सहता दुःख सदैव. १ अशुभ बंधन अशुभ गति, अशुभ संस्थान हुंड; भेदन अशुभ वर्ण ते, सहेता दुःख प्रचंड. २ अशुभ गंध ते जाणजो, अशुभ रस वळी जोय; माठो फरस वळी कह्यो, अगुरुलघु ते होय. ३ माठो शब्द ते लह्यो, वेदन दशे प्रकार; त्रैलोक्य दीपकथी जाणजो, भाख्यों सूत्र मोझार. ४
(ढा. ३) (राग : हारे लाल पापकर्मथी प्राणिया) साते नरकमां जाणजो, वेदन श्री वीर वखाणे रे प्यारा, नरकतणां दुःख सुणजो. नहि सुरज नहि चंद, रे नहि पाणी नहि पवन प्रचंड रे. प्यारा० १ महाघोर अंधकार छे, थानक पण नहि सार रे प्यारा० बिहामणी भूमि जाणो, तस फरस खांडाधार रे. प्यारा० २ साते नरके जाणो तस वेदन कहि नवी जाय रे प्यारा०; महा क्रोध धरीने तिहां, हथियार धरीने आवे रे. प्यारा० ३ कातरणीओ करी देहने, इम चूरण करता तेह रे प्यारा० महारौख शब्द ते जाणो, केवळी जाणे तेह रे. प्यारा० ४ परमाधामी पचावे रे, वळी ऊंधे मस्तक टांगे रे; प्यारा० देहने क्षारमां मरोडे, वळी तेहनी पूंठे दोडे रे. प्यारा० ५ वैतरणी नदीमां लई आवे. वळी पाणीमां झबकावे रे; प्यारा० ओ कर्म तणा विपाक, मांहे मांहे मळी जावे रे. प्यारा० ६ करे कोहाडा राखे वळी, वचन बिहामणा भाखे. प्यारा० छेदन भेदन करतां वळी, पापनी राशे वधता रे. प्यारा० ७ समळीने रुपे आवी, वळी वाय स्वरुपे साहावे रे; प्यारा० वाघ सिंहना रुपज करतां, थई चितारुपे ताडुके रे. प्यारा० ८ इम अनेक हिंसाक जीव, इम परमाधामी रुपे रे, प्यारा० वीर भाखे पंदर भेदे, कहे मुक्ति दुःख उच्छेदे रे. प्यारा० ६
(दुहा) इम दस प्रकारनी वेदना, कहे नरके जिनराज; सीत उष्णनी वेदना, केवळी कही नवी जाय. भूख तरस तस वेदना, खरज वेदना अत्यंत; परवसता ज्वर तापणुं, दाह ज्वर पामे अनंत. २ भय शोक तेहनो घणो, इम ते नारकी जाम; वीर जिन इणीपरे भाखता, सुणतां गोयम स्वाम. ३
(ढा. ४) (राग : सुणो चंदाजी) सुणो गोयमजी? वीर पयंपे नरक तणा
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दुःख वारता, हे श्रोताजनो? नरकनां दुःख सांभळता हैया थरथरे, परनारी संगत जे करता, वळी पाप थकी पण नवि डरता, जमरायनी शंका नवि धरता; सुणो० ॥१॥ हे गुणवंता वीर वाणी सांभळीने धर्म खजानो भरो....लोह तणी पूतळी ने तपावे छे, अति अग्निमय करावे छे, तस आलिंगन देवरावे छे, सुणो० ॥२॥ पांचशे जोजन उछाळे छे, आकाशे पडता झाळे छे पछी पकडी भोय पछाडे छे. सुणो० ॥३॥ धान थईने तेहने करडे छे, झाळी परमाधामी मरडे छे, वळी तेहनी पाछळ दोडे छे, हे श्रोता० ॥४॥ मृगनी जेम पासमां पकडे छे, करवतथी तेहने फाडे छे, वळी पकड़ी पकडी भमावे छे, सुण० ॥५॥ वळी तेहने शळीओ चडावे छे, कान नाक पण तेहना कापे छे, वळी भरसाडमां तेहने भारे छे, सुणो० ॥६॥ वळी खाल उतारी जलावे छे, उकळता तेलमां घाले छे, विरूआ विपाको देखाडे छे, सुणो० ॥७॥ मांस कापीने खवडावे छे, ओम जीव घणा दुःख पावे छे, अति त्रासमां समय वितावे छे, सुण० ॥८॥ वळी शरीरमां खार मिलावे छे, ओम परमाधामी दुःख देखाडे छे, शुभवीरनी वाणीओ शीतळ थावे छे, सुण० ॥६।।
दुहा) भूमि छे तिहां आकरी, वन जे शीतल जाण; आवी बेसे तरु छांयडी, पडता भांजे प्राण. १ विरुआ विषय विलास छे, सुख थोडं दुःख बहु जाण; नरक तणां दुःख सांभलो, भाखे वीर वर्धमान. २
(ढा. ५) (राग : अढारमे भवे) कुंभिमां करतां पाक. देह ते जाणो रे; तेल घाणीमां तेह, पीले जिम राणो रे. १ महेर न आवे तास, बोचीये झाले रे; रस काढे तनुथी जेह, वळी वळी बाळे रे. २ नाठा जाये तेह, मन भयभ्रांति रे; परमाधामी तेह, झाले ओकांते रे. ३ शूलि परोवे जेह, दांतमां लेवे रे; वळी मारी करे शत खंड, घणुं दुःख देवे रे. ४ फिर फिर लागे पाय, वेदना सहेता रे; ओम काळ अनंतो त्याय, सहे दुःख मरतां रे. ५ हवे तो सह्या न जाय, नारकी दुःखडां रे; कोईन पूछे सार, नारकी जीवडा रे. ६ नहि शरण तस कोई, अशरण मरता रे; परमाधामि जेह, बहु दुःख देता रे. ७ सांभळी थरहरे देह, कंपे प्राणी रे; कहे मुक्ति आपो महाराज, प्रभु शिरनामुं रे. ८
(दुहा) पाप कर्म कीधां घणां, कीधा जीवनां संहार; पीडा न जाणी परतणी, जीवडो बडो गमार. १ अलिकवचन मुख भाखिया, पारका चोर्या
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माल; सेवी परनारी निःशंकपणे, आरंभ कीधा अपार. २ बहु परिग्रह मेळव्यो, निशिभोजन अंधार; बहुजीव विणास्यां तिहांकने, अभक्ष अथा| नही पार. ३ कठोळमां छाश भेळवी; जिम्यो आहार निशंक, लालच जोगे बहु जीवने, उपजे तेन देखंत. ४ अळगी थाओ नार तस, आभड छेट निवार; ठाणांगे प्रगट पाठ छे, जाणो तमे निरधार. ५
(ढा. ६) (राग : चैत्र वदी पंचमी दिने) मातापिता गुरु ओळव्या, गुणरागी रे, कीधा क्रोध अपार, सुणो तमे गुण रागी रे; मान माया लोभथी गु० बुद्धि रही नही कांइ सुणो० १ नरक तणां जे बारणां गु० पापे उघाड्यां तेह सुणो; अम परमाधामी निंदता गु०, शुली कंटक वज्र सुणो० २ उंचे उछाळी देहने गु०, पाछा पछाडे तेह सुणो० तरस वसे करी तेहने गु०, उकाळी कथीर ते पाय सुणो० ३ मुखमां नाखे तेहने गु०, सहे वदन वळी ताम सुणो० बहु किडा करडे देहमां गु०, वळी अप्पा करे तस खंडो खंड, सुणो० ४ निशि भोजन तस पारणुं गु० जाणो पाप अखंड, सुणो० उनो ने अति आकरो गु०, नीर आणे प्रचंड, सुणो० ५ ते घाली निज आंखमां, गु०, श्रवणमां भरे कथिर सुणो० महा खाल बिहामणां, गु०, महा बिभत्स चित्तधार, सुणो० ६ दीन दयामणां जाणवा, गु०, नरकना जीव अतीव, सुणो० वीर जिणंद अम देशना गु०, सुणे ते मुक्ति वरकंत सुणो० ७
(दुहा) नरक तणां दुःख सांभळी, कंपे तास शरीर; नमी गोयम ते इम कहे, सांभलो गुण गंभिर. १ प्रभु चरणे शीर नामीने, पूछे गौतम स्वाम; अंतरजामी माहरा, कहो संबंध ते खास. २ ओ वेदना में बहु सही, वसियो काळ अनंत; कोईक पुण्य कल्लोलथी, मुज मळिया भगवंत ३ पंच महाव्रत जे धरे, पाळे पांच आचार, पांच समिति जे आदरे, ते लेशे भवपार. ४
(ढा. ७) (राग : पापी ने तुं प्यार करी ले) इणिपरे बहु वेदना अधिकाई, हवे आव्यो चरण निवासे रे; वीरजी गुणवंता वसता नरकमांही, गयो काळ अनंत महाराज रे. वी. १ ज्ञान विना कुण जाणे प्राणी, कहेता नावे पारे रे; शुद्ध संजम रागी, दश दृष्टांते दोहीलो, भाख्यो नरभव, पुण्य संजोग रे वी० २ सुधा संजमनो खप करशो, टाळी विषय कषाय रे; पांचे इंद्रिय वश करज्यो हो, तो शीव रमणीने वरशो रे वी० ३ निंदा विकथा दूर निवारो,
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श्री जिन धर्म चित्त धारो रे; समकित रत्न हैडे धारो, नरक तणां दुःख वारो रे वी० ४ भांजे सर्वे मिथ्या भ्रम, अवो जिन शासन धर्म रे; श्री चिंतामणी चरण पसाये रे, संकट विकट ते जावे वी० ५ मूजपर शहेर प्रभुनी महेर रे, को चोमाशुं उल्लास रे; संवत ओगणीसतोत्तेर वरसे, पोष तणी सुद दशमी रे वी० ६ श्री अगलगच्छे पूज्य पटोधर, श्री पुण्य सिंधु सूरिराय रे; तस घर मंगळमाळ रे; नरक तणां दुःख वीरे भाख्यां, वीर वचन रस चाख्यो रे वी० ८ कहे मुक्ति कमळा तस वरज्यो, सद्हजो वीरनी वाणी रे; मिथ्या प्रासाद तजो सवि भाई, जिन आणा चित्त लाई रे वी० ६
श्री पर्युषण पर्व ढालो
(24) पर्व पर्युषण ने आमंत्रण
(राग : खारी खारी जगनी सहु प्रीत सतावे) पर्व पर्युषण प्रेमे पधारो, प्रेमे पधारो, स्नेहेस्वीकारे, स्नेहे स्वीकारे हर्षेथी वधावो पर्व० ॥१। पर्व पर्युषण ह्रदयमां धरीए, ह्रदयमां धरीए, दिलमां वसावीए, दिलमां वसावीए, ह्रदयमां धरीए; पर्व० ॥२॥ मनडाना मेलने दूर ज करीए, वाणीना मंत्रोने दिलमां वसावीए, कायानी ममताने दूर ज करीए, पर्व० ॥३॥ तपस्या करीने कर्म खपावीए, कर्म खपावीए मोक्ष सुख वरीए, मोक्ष सुख वरीए, शिवसुख पामीए, पर्व० ॥४॥ वेरने भूलीए, ने मैत्री मेळवीए, भक्ति करीए, भाव भेळवीए, जाप जपीए ने, कर्मो खपावीए, पर्व० ।।५।। महावीर जन्मनुं स्वागत करीए, महावीर जन्मने प्रेमे वधावीए प्रेमे वधावीए, हर्षे स्वीकारीए, हर्षे स्वीकारीए, आनंद पामीए, महावीर प्रभुनी जय जय बोलो त्रिशला गुण गंभीर बोलो वीर प्रभुनी जय जय बोलो
(25) छ अट्ठाई स्तवन ढाळ ६ (दोहा) श्री स्याद्वाद शुद्धोदधि, वृद्धि हेतु जिनचंद; परम पंच परमेष्ठिमां, तास चरण सुखकंद. ॥१॥ त्रिगुण गोचर नाम जे; सुबुद्ध
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इशानमाने जेह; थया लोकोत्तर तत्त्वथी, ते सर्वे जिन गेह. ॥२॥ पंच वर्ण अरिहंत शं, पंच कल्याणक ध्येय; षड् अठ्ठाई स्तवना रचुं, प्रणमी अनंत गुणगेह. ॥३॥
(ढा. १) (राग : आवो आवो देव मारा) चैत्र मास शुदि पक्षमा रे, प्रथम अठ्ठाई संजोग; तिहां सिद्धचक्रनी सेवना रे, अध्यातम उपयोग रे; भविका पर्व अठ्ठाई आराध, मन वांछित सुख-साध रे. भविका० ॥१॥ पंच परमेष्ठी त्रिकालनां रे, उत्तर चउ गुणकंत; शाश्वत पद सिद्धचक्र नेरे, वंदता पुण्य महंत रे. भविका० ॥२॥ लोचन कर्ण युगल मुखे रे, नासिका अग्र निलाड; तालु शिर नाभि कंदे रे; भ्रमुह मध्ये ध्यान पाठ रे. भविका० ॥३।।
आलंबन स्थानक कह्यां रे, ज्ञानीओ देह मझार; तेहमां विगत विषय पेरे रे, चित्तमां अक आधार रे. भविका० ॥४॥ अष्ट कमल दल कर्णिका रे, नव पद थापो भाव; बहिर यंत्र रची करी रे, धारो अनंत अनुभाव रे. भविका० ॥५॥ आसो सुदि सातम थकी रे, बीजी अठ्ठाई मंडाण; बसे तेंतालीस गुणे करी रे, असिआउसादिक ध्यान रे. भविका० ॥६।। उत्तराध्ययन टीका कहे रे, ओ दोय शाश्वती यात्र; करतां देव नंदिश्वरे रे, नर निज ठाम सुपात्र रे. भविका० ॥७॥
(ढा. २) (सिद्धचक्र पद वंदो. देशी) आषाढ चोमासानी अठ्ठाई, जिहां अभिग्रह अधिकाई; कृष्णकुमारपाळ परे पाळो, जीवदया चित्त लाई रे; प्राणी अठ्ठाई महोत्सव करीओ, सचित्त आरंभ परिहरिओ रे. प्रा० ॥१॥ दिशी गमन तजो वर्षा समये, भक्ष्या भक्ष्य विवेक; अछती वस्तु पण विरतिओ रे, बहु फल वंकचूल सुविवेक रे. प्रा० ॥२॥ जे जे देह ग्रहिने मूकयां, जेहथी ते हिंसा थाय; पाप आकर्षण अव्रतिजोग, ते जीवे कर्म बंधाय रे. प्रा० ॥३॥ सायक देहता जीव जे गतीमां, वसीया तस होय कर्म; राजा रंकने किरिया सरीखी, भगवती अंगनो मर्म रे. प्रा० ॥४॥ चोमासी आवष्यक काउसग्गनां, पंच सत्तमाने उसासा; छठु तपनी आलोयण करतां, विरति धर्म उजासा रे. प्रा० ॥५॥
(दुहा) (जिन रयणीजी, दश दिशि निर्मलता धरे.) कार्तिक सुदिमांजी, धर्म वासर अडधारी); तीम वली फाल्गुणेजी, पर्व अट्ठाई संभारी); त्रण अठ्ठाई
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जी, चउ मासी त्रण कारणे, भवि जीवनाजी, पातिक सर्व निवारणे. ॥१।। ___उथलो (ढा. ३) निवारणी पातक तणी ओ जाणी, अवधिज्ञाने सुरवरा; निकाय चारना इंद्र हर्षित, वंदे निजनिज अनुचरा; अठाई महोत्सव करण समये, शाश्वता जे देखीओ; सवी सज्ज थाये देव देवी, घंट नाद विशेषीओ. ॥२॥
(दुहो) वली सुरपतिजी, उद्घोषणा सुरलोकनां, निपजावीजी, परिकर सहित अशोकमां; द्विप आठमेजी, नंदीश्वर सुर आवीया; शाधती पडिमाजी, प्रणमी वधावे भावीया. ॥३॥
(उथलो) भाविया प्रणमी वधावे प्रभुने, हर्ष बहुले नाचतां, बत्तीस बद्ध करीय नाटीक, कोडी सुरपति माचतां, हाथ जोडी मान मोडी, अंग भाव देखावती, अप्सरा रंभा अति अचंभा, अरिहंत गुण आलावती. ॥४॥
दुहो-त्रण अठ्ठाईमांजी, षड् कल्याणक जिन तणा, तथा आलायजी, बावन जिनना बिंब घणा; तस स्तवनाजी, सद्भुत अर्थ वखाणतां, ठामे पहोंचेजी, पछी जिन नाम संभारतां. ॥५॥
ऊथलो संभारता प्रभुनुं नाम निशदिन, पर्व अठाई मन धरे; समकित निर्मल करण कारण, शुभ अभ्यासे अनुसरे; नरनारी समकितवंत भावे, अह पर्व आराधशे, विघ्न निवारे तेहना सवि, सौभाग्य लक्ष्मी वाधशे. ॥६॥
(ढा. ४) (राग :--साथीया पुरावो आज) पर्व पजुसणमां सदा, अमारी पडहो वजाडावे रे; संघ भक्ति द्रव्य भावथी, स्वामी वत्सल सुमंडावे रे. महोदय पर्व महिमा निधि. (२) ॥१॥ स्वामी वत्सल ओकण पासे, ओकत्र धर्म समुदाय रे; बुद्धि तुलाओ तोलीओ, तुल्य लाभ फल थाय रे. महो० ॥२॥ उदायी चरम राजऋषि, तेम करो खामणा सत्य रे; मिच्छामि दुक्कडं देई ने, फरी सेवे पापवंत्त रे. महो० ॥३॥ ते कह्या माया मृषवादी, आवष्यक निर्युक्त मांही रे; चैत्य परिपाटी कीजीअरे, पूजा त्रिकाल उच्छांही. रे. महो० ॥४॥ छेली चारे अठ्ठाई ओ, म्होटो महोत्सव रचे देवा रे; जीवाभिगमे अम उच्चरे, प्रभु शासनना ओ मेवा रे. महो० ॥५॥
(ढा. ५) (राग : साचो संगम प्रभु साथे) अठ्ठमनो तप वार्षिक पर्वमां,
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शल्य रहित अविरोघ रे; कारक साधक प्रभुना धर्मनी, इच्छारोधे होय शुद्ध रे० तपने सेवा रे कंता विरतिना. ॥१॥ छूटे सो वर्षे रे कर्म अकामथी, नारकी ते तो सकामे रे; पाप रहित होय नवकारशी थकी, सहस ते पोरिसी ठामे रे. तप० ॥२॥ वधतो वधतो रे तप करवा थकी, दश गुणो लाभ उदार रे; दश लाख कोडी वर्षनुं अठ्ठमे, दुरित मीटे निरधार रे. तप० ।।३।। पचास वर्ष सुधी तप तप्या लक्ष्मणां, माया तप नवि शद्ध रे; असंख्य भव भम्या ओक कुवचनथी पद्मनाभवारे सिद्ध रे. तप० ॥४॥ आहार निरिहंता रे सम्यक् तप कह्यो, जुवो अभ्यंतर तत्त्व रे; भवोदधि सेतुरे अठ्ठम तपभणि, नागकेतु फल पत्त रे. तप० ।५।।
(ढा. ६) (राग :--अनु मन डोळे) वार्षिक पडिक्कमणा विषे, ओक हजार शुभ आठ रे; श्वास उधास काउसग्ग तणां, आदरी त्यजो कर्म आठ रे. प्रभु तुज शासन अति भलुं ॥२॥ दुग लख चउ सय अड कह्या, पल्य पणयालीस हजार रे; नव भागे पल्यना चउ ग्रह्या, धासमां सुर आयु सार रे. प्रभु० ॥३॥ ओगणीस लाख ने तेसठी, सहस बसे सडसट्ठी रे; पल्योपम देव- आउद्य, नवकार काउसग्ग जीठ रे. प्रभु० ॥३॥ अकसठ लाख ने पणतीसा, सहस बसे दश जाण रे; अटला पल्यनुं सुर आउखुं, लोगस्स काउसग्ग मान रे. प्रभु० ॥४॥ धेनुथण रूपे रे जीवना, अचल छे आठ प्रदेश रे; तेह परे सर्व निर्मल करे, पर्व अट्ठाई उपदेश रे. प्रभु० ॥५॥
(ढा. ७) (राग : आजनो दिवस मने लागे बहु प्यारो रे) सोहम कहे जंबू प्रत्ये, ज्ञानादि धर्म अनंत रे विनीत; अर्थ प्रकाश्यो वीरजी, तेम में रचीयो सिद्धांत रे. विनीत. प्रभु आगम भलो विश्वमां. ॥१॥ षट् लाख त्रणसो तेत्रीशा, अगुणसठ्ठी हजार रे. विनीत; पिस्तालिश आगम तणी, संख्या जग आधार रे. विनीत. प्रभु० ॥२॥ आर्थम्ये जिन केवल रवि, सुत्त दीपकथी व्यवहार रे. विनीत; उभय प्रकाशक सूत्रनो, संप्रति बहु उपगार रे. विनीत. प्रभु० ॥३॥ पुण्यक्षेत्रमा सिद्धगिरि, मंत्रमांहि नवकार रे. विनीत; शुकल ध्यान छे ध्यानमां, कल्पसूत्र तेम सार रे. विनीत. प्रभु० ॥४॥ वीर वर्णन छे जेहमां; श्री पर्व तसु सेव रे विनीत; छ? तपे कल्पसूत्र सुणे मुदा, उचित विधि तसखेव रे. विनीत. प्रभु० ॥५।।
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(ढा. ८) (राग : शेजयगिरिनां सोयडारे) नेवू सहस संप्रति नृपे रे, उद्धर्या जैन प्रासाद; छत्रीस सहस नवा कर्या रे, निज आयु दिनवाद रे, मनने मोदे रे, महोत्सव मोटे रे, पूजो पूजो महोदयपर्व. ॥१॥ असंख्य भरतना पाटवी रे, अछाई धर्मना कामी; सिद्धगिरिओ शिवपुरी वर्या रे, अजरामर शुभ ठामने रे. मनने० ॥२॥ युग प्रधान पूरव धणी रे, वयर स्वामी गणधार; निज पितु मित्र पासे जईर, याच्यां फुल तैयार रे. मनने० ॥३।। वीश लाख फुल लेइने रे, आव्या गिरिहिमवंत; श्रीदेवी हाथे लीया रे, महा कमल गुणवंत रे. मनने० ॥४।। पछी जिनरागीने सोपीया रे, सुभिक्षनगरी मझार; सुगत मत उच्छेदिने रे, शासन शोभा अपार रे. मनने० ।।५।।
(ढा. ६) (राग : मेंदीने वावी मांडवे रे) प्रतिहार्य अड पामीले रे, सिद्ध प्रभुना गुण आठ, हरख धरी सेवीये अ. ज्ञान दर्शन चारित्रनां ओ, आठ आचारना पाठ. ह० सेवो सेवो पर्व महंत. ह० ॥१॥ पवयण माता सिद्धिनुंओ, बुद्धिगुणा अडदृष्टि; ह० गणी संपदा अड संपदाओ, आठमी गति दीओ पुष्टि. ह० ॥२॥ आठ कर्म आठ दोषने अ, अडविध मद परमाद; ह० परिहरी अड विध कारण भजीओ, आठ प्रभावक वाद ह० ॥३॥ गुर्जर दिल्ही देशनां , अकबर शाह सुलतान; ह० हीरजी गुरूना वयणथी अ, अमारी पडह वजाव. ह० ॥४॥ सेनसूरि तपगच्छ मणिओ, तिलक आणंद मुणिंद; ह० राज्यमान रिद्धि लहे , सौभाग्य लक्ष्मी सुरींद. ह० ॥५॥ सेवो सेवो पर्व महंत ह० पूजो जिनपद अरविंद; ह० पुण्य पर्व सुखकंद ह० प्रगटे परमानंद ह० ओम कहे लक्ष्मी सुरींद हर्ष० ॥६॥
(कळश) अम पार्थ प्रभुनो पसाय पामी, नामे अठ्ठाइनां गुण कह्या; भवि जीव साधो, नित्य आराधो, आत्म धर्मे उमहया. ॥१॥ संवत जिन अतिशय वसु शशी, चैत्री पुनमे ध्याईया; सौभाग्य सूरि शिष्य, लक्ष्मी सूरि बहु, संघ मंगल पाईया. ॥२॥ (26) श्री महावीर पंच कल्याणकनुं चोढाळियुं ढाळ ४
(दुहा) प्रेमे प्रणमुं सरस्वति, मांगु अविचल वाण; वीर तणा गुण गायशुं, पंच कल्याणक जाण. ।।१।। गुण गाता जिनजी तणा, लहीजे भवनो पार; सुख समाधि होय जीवने, सुणजो सहु नरनार. ॥२॥
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(ढा. १) (राग : मने संसार शेरी विसरे रे लोल) जंबूद्विपना भरतमां जो, रुडं माहणकुंड छे गाम जो; रुषभदत्त माहण सिंहा वसे जो, तस नारी देवानंदा नामजो. चरित्र सुणो जिनजी तणा जो. ॥१॥ जेम समकित निर्मल थाय जों, अष्ट महासिद्धि संपजे जो; वली पातिक दूर पलाय जो. च० ॥२॥ उजळी छठ्ठ अषाढनी जो, योगे उत्तराफाल्गुनी सारजो; पुष्पोत्तर सुविमानथी जो, चवी कुखे लीओ. अर्घतार जो. च० ॥३॥ देवानंदा तिण रयणीओ जो, सुता सुपन लह्या दशचार जो; फळ पूछे निज कंतने जो, कहे ऋषभदत्त मन धार जो. च० ॥४॥ भोग अरथ सुख पामशो जो, तमे लहेशो पुत्र रतन जो; देवानंदा ते सांभळी जो, कीधु मनमां तहत्ति वचन जो. च० ॥५॥ संसारीक सुख भोगवे जो, सुणो अचरिज हुओ तेणीवार जो; सुधर्म इन्द्र तिहां कने जो, जोई अवधि तणे अनुसार जो. च० ॥६।। चरम जिनेश्वर उपन्या जो, देखी परख्यो इन्द्र महाराज जो; सात आठ पग सामो जई जो, ओम वंदन करे शुभ साज जो. च० ॥७।। शक्रस्तव विधि| करे जो, फरी बेठो सिंहासन जाम जो; मन विमासणमां पड्युं जो; चित्त चिंतवे सुरपति ताम जो. च० ॥८॥ जिन चक्रि हरि रामजी जो, अंत प्रांत माहणकुले जोय जो; आव्या नही नही आवशे जो, ओतो उग्रभोग राजकुल होय जो. च० ॥६॥ अंतिम जिनेश्वर आवीया जो, ओतो माहणकुलमां जोय जो; अतो अच्छेरा भूत थयुं जो, थयुं हुंडासर्पिणी तेण जो. च० ॥१०।। काळ अनंत जाते थके जो, ओहवा दश अच्छेरा थाय जो; इण अवसर्पिणीमां थया जो, ते कहीये चित्त लाय जो. च० ॥११॥ गर्भ हरण उपसर्गनो जो, मुल रुपे आव्या रविचंद जो; निष्फळ देशना जे गइ जो, गयो सौधर्मे चमरेन्द्र जो. च० ॥१२॥ ओ श्री वीरनी वारमा जो, कृष्ण अमरकंका गया जाण जो; नेमिनाथ ने वारे सही जो, स्त्री तीर्थ मल्लि गुण खाण जो. च० ॥१३॥ अकसो ने आठ सिद्ध ऋषभने जो, वारे सुविधिने असंयति जो; शीतल नाथ वारे थयुं जो, कुळ हरि वंशनी उत्पत्ति जो. च० ॥१४॥ओम विचार करे इंद्रलो जो, प्रभु नीच कुले अवतार जो; तेहD कारण शुं अछे जो, इम चिंतवे हृदय मोझार जो. च० ॥१५॥
(ना. २) (राग : आसो मासे शरद पुनमनी रात जो) भव म्होटा कहीजे
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प्रभुना सत्तावीश जो; मरिच त्रिदंडी ते मांहे त्रीजे भवे रे जोः तिहां भरत चक्रीसर वंदे आवी पायजो; कुळनो मद करी नीच गोत्र बांध्युं तेहवे रे जो. ।।१।। ओ तो माहण कुळमां आव्या जिनवर देव जो; अति अणजुगतुं ओह थयु थाशे नही रे जो; जे जिनवर चक्री आवी नीच कळ मांय जो, छे आचार धरु उत्तम कुळे सही रे जो. ॥२॥ अम चिंती तेडयो हरिणगमेषी देव जो; कहे माहणकुंडे जईने कारज करो रे जो; छे देवानंदानी कूखे चरम जिणंद जो; हर्ष धरीने प्रभुने तिहांथी संहरो रे जो. ॥३॥ नयर क्षत्रियकुंड राय सिद्धारथ गेह जो; त्रिशला राणी तेहनी छे रुपे भली रे जो; तस कूखे जई संक्रमावो प्रभुने आज जो; त्रिशलानो जे गर्भ ते माहण कूखे रे जो. ॥४॥ जेम इंद्रे का तेम कीधुं तत्क्षण तेणे जो; ब्याशी रातने आंतरे प्रभुने संहर्या रे जो; माहणी सुपना जाणे त्रिशला ओ हरि लीधा जो; त्रिशला देखी चौद सुपन मनमां धर्या रे जो. ॥५॥ गज वृषभ सिंह ने लक्ष्मी फुलनी माळ जो; चांदो सूरज ध्वज कुंभ पद्मसरोवरु रे जो; सागर देव विमानने रलनी राशी जो; चौदमे सुपने देखी अग्नि मनोहरु रे जो. ॥६॥ शुभ सुहणां देखी हरखी त्रिशला नार जो; प्रभाते उठीने पियु आगळ कहे रे जो; ते सांभळी दिलमां राय सिद्धारथ नेह जो; सुपन पाठक तेडी पूछे फळ लहे रे जो. ॥७॥ तुम होशे राज अरथ ने सुत सुख भोग जो; सुणी त्रिशला देवी सुखे गर्भ पोषण करे रे जो; तव माता हेते प्रभुजी रह्या संलीन जो; ते जाणीने त्रिशला दुःख दिलमां धरे रे जो. ॥८॥ में कीधां पापज घोर भवोभव जेह जो; दैव अटारो दोषो देखी नवी शके रे जो; मुज गर्भ हो जे किम पामुं हवे तेह जो; रांक तणे घर रत्न चिंतामणी किम टके रे जो. ॥६॥ प्रभुजीओ जाणी तत्क्षण दुःखनी वात जो; मोह विडम्बन जालिम जगमा जे लहुं रे जो, जुओ दीठा विण पण अवडो जागे मोह जो; नजरे बांध्या प्रेमनुं कारण शुं कहुं रे जो. ॥१०॥ प्रभु गर्भ थकी हवे अभिग्रह लीधो अह जो; माता पिता जीवता संयम लेशुं नही रे जो; अम करुणा आणी तुरत हलाव्युं अंग जो; माता ने मन उपन्यो हर्ष घणो सही रे जो. ॥११॥ अहो भाग्य जाग्युं अमारु सहियर आज जो, गर्म अमारो हाल्यो बहु चिंता गइ रे जो; इम सुख भर रहेता पूर्ण हुवा नव मास जो, ते उपर वळी साडि सात रयणी थइ रे जो. ॥१२॥ तव चैत्र तणी शुदि तेरस उत्तरा
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जोग जो; जन्म्या श्री जिन वीर हुई वधामणी रे जो; सहु धरणी विकसी जगमां थयो प्रकाशजो सुर नरपति घर वृष्टि करे सोवन तणी रे जो. ॥१३॥
(ढा. ३) (राग : अंधारानो दीवडो ने) जन्म समय श्री वीरनो जाणी, आवी छप्पन कुमारी रे; जगजीवन-जयकारी जिनजी, (२) जनम महोत्सव करी गीत ज गावे; प्रभुजी ने जाउं बलिहारी रे. ।।१।। तत्क्षण इंद्र सिंहासन हाल्युं, सुघोषा घंट वजडावी रे; जि० मळिया कोडी सुरासुर देवा, मेरु पर्वत आवी रे. ज० ॥२॥ इंद्रो पंच रुपे प्रभुजीने, सुरगिरि उपर लावे रे; जि० यत्न करी हियडामा राखे, प्रभुजीने शीश नमावे रे. जि० ॥३॥ ओक कोडी साठ लाख कळशला, निर्मळ नीरे भरीया; जि० न्हानो बाळक ओ किम सहशे, इंद्रे संशय धरिया रे. जि० ॥४॥ अतुल बलि जिन अवधे जोई, मेरु अंगुठे चांप्यो रे; जि० पृथ्वी हाल कल्लोल थइ तव, धरणीधर तिहां कंप्यो रे. जि० ॥५॥ जिननुं बळ देखीने सुरपति, भक्ते करीने खमावे रे; जि० चार वृषभना रुप धरीने, जिनवरने न्हवरावे रे. जि० ।।६।। अमृत अंगुठे थापीने, माता पासे मेले रे; जि० देव सहु नंदिधर जावे, आवता पातक ठेले रे. जि० ॥७||हवे प्रभाते सिद्धारथ राजा, अति घणां उच्छव मंडावे रे जि. चकले चकले नाच करावे, जगतना दान ठंडावे रे. जि. ॥८॥ बारमे दिवसे सज्जन संतोषी, नाम दिधुं वर्धमान रे; ज० अनुक्रमे वधता आठ वरसना, हुआ श्री भगवान रे. ज० ॥६॥ अक दिन प्रभुजी रमवा चाल्यां, ते तेवडा संघाते रे; जि० इंद्र मुखे प्रशंसा निसुणी, आव्यो सुर मिथ्यात्वी रे. जि० ॥१०॥ पन्नग रुपे झाडे वळग्यो, प्रभुजीओ नांख्यो झाली रे; जि० ताड समान वळी रुप कीg, तव मुठीओ नांख्यो उछाळी रे. जि० ॥११॥ चरणे नमीने खमावे ते सुर, नाम धरे महावीर रे; जि० जेहवा तुमने इंद्रे वखाण्या, तेहवा छो प्रभु धीर रे. जि० ॥१२॥ मात पिता निशाळे भणवा, मुके बाळक जाणी रे; जि० इंद्र आवी तिहां प्रश्न ज पूछे, प्रभु कहे अर्थ वखाणी रे. जि० ॥१३॥ जोवन वय जाणी प्रभु परण्या, नारी यशोदा नामे रे; जि० अठ्ठावीश वर्षे प्रभुजीना, मातापिता स्वर्ग पामे रे. जि० ॥१४॥ भाई तणो अति आग्रह जाणी, दोय वरस घर वासी रे; जि० तेहवे लोकांतिक सुर बोले, प्रभु कहो धर्म प्रकाशी रे. जि० ॥१५॥
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(ढा. ४) (राग : ओ नील गगननुं पंखेरूं) प्रभु आपी वरसीदान भलु रवि उगते. जिनवरजी, ओक कोडीने आठ लाख, सोनैया दिन प्रते. जिनवरजी; मागशर वदी दशमी, उत्तरा योगे मन धरी, जिनवरजी, भाईनी अनुमती मांगीने दीक्षा वरी. जिनवरजी. ॥१॥ तेह दिवस थकी प्रभु वीरजी चउनाणी थया. जिनवरजी; साधिक ओक वरसे ते चीवर धारी प्रभु रह्या. जिनवरजी, पछे दीधुं बंभण ने बे वार खंडो खंड करी. जिनवरजी० प्रभु विहार करे ओकाकी अभिग्रही चित्त धरी. जिनवरजी. ॥२॥ साडा बार वरसमां घोर परिसह जे सह्या. जिनवरजी, शूळ पाणि ने संगम देव गोशाळाना कह्या. जिनवरजी, चंडकोशीकने गोवाळे खीर रांधी पग उपरे. जिनवरजी० काने खीला ठोकया ते दुष्ट सहु प्रभु उद्धरे. जिनवरजी० ॥३॥ लेई अडदना बाकुळा चंदनबाला तारीयां. जिनवरजी, प्रभु पर उपगारी सुख दुःख सम धारियां. जिनवरजी० छ मासी बे ने नव चोमासी कहीओ रे. जिनवरजी० अढी मास त्रिमास दोढ मास ओ बे बे लहीअरे. जिनवरजी० ॥४॥ षट् कीधा बे बे मास प्रभु सोहामणा. जिनवरजी० बार मास ने पख बहोतेर ते रळीयामणा. जिनवरजी० छठु बसे ओगणत्रीश बार अठ्ठम वखाणीये. जिनवरजी० भद्रादिक प्रतिमा दिन बे चौदश. जिनवरजी० ।।५।। साडाबार वरस तप कीधां विण पाणी जिनवरजी० पारणा त्रणशे ओगणपचास ते जाणीजे जिनवरजी० तव कर्म खपावी ध्यान शुकल मन ध्यावता. जिनवरजी० वैशाख शुदि दशमी उत्तरा जोगे सोहावता. जिनवरजी० ॥६।। शाली वृक्ष तळे प्रभु पाम्या केवळनाण रे. जिनवरजी० लोकोलोक तणा प्रकाशी थया प्रभु जाण रे. जिनवरजी. इन्द्रभूति प्रमुख प्रतिबोधि गणधर किध रे, जिनवरजी० संघ स्थापना करीने धर्मनी देशना दिध रे, जिनवरजी० ॥७॥ चौद सहस भला अणगार प्रभुने शोभता. जिनवरजी, वळी साधवी सहस छत्रीश कही निर्लोभता. जिनवरजी० ओगणसाठ सहस ओक लाख ते श्रावक संपदा. जिनवरजी, तिन लाख ने सहस अढार ते श्राविका समुदाय रे. जिनवरजी, ॥८॥ चौद पूर्वधारी त्रणशे संख्या जाणिये जिनवरजी, तेरसे ओहिनाणी सातशे केवळी वखाणीये. जिनवरजी, लब्धि धारी सातशे विपूलमति वळी पांचशे. जिनवरजी, वली चारशे वादि ते प्रभजी पासे वसे. जिनवरजी. ॥६॥ शिष्य सातसेने वळी चउदशे साध्वी
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सिद्ध थया. जिनवरजी, ओ प्रभुनो परिवार कहेता मन गह गह्या. जिनवरजी, प्रभुजीओ त्रीश वरस घर वासे भोगव्यां. जिनवरजी, छद्मस्थपणामां बार वरस, ते जोगव्यां. जिनवरजी. ||१०|| त्रीश वरसे केवळ बेंतालीश वरस संयमपणुं जिनवरजी, संपूर्ण बहोतेर वरस आयु श्री वीरतणुं जिनवरजी० दीवाळी दिवसे स्वाति नक्षत्र सोहंकरु जिनवरजी, मध्यराते मुगति पहोत्यां प्रभुजी मनोहरु, जिनवरजी, ॥११॥ ओ पांचे कल्याणक चोवीशमा जिनवर तणा. जिनवरजी, ते भणतां गणतां हरख होय मनमा घणा. जिनवरजी, जिन शासन नायक त्रिशला सुत चित्त रंजणो. जिनवरजी, भवियणने शिव सुखकारी भवभय भंजणो. जिनवरजी. ॥१२॥
(कळश) जय वीर जिनवर, संघ सुखकर, थुण्यो अति उत्सुक धरी, संवत सत्तर अकाशीये, सुरत चोमासुं करी, ॥१३॥ श्री सहज सुंदर, तणो सेवक, भक्ति शुं अणी परे कहे; प्रभुजी शुं पूर्ण, प्रेम पाम्यो, नित्य लाभ वांछित लहे, ॥१४॥ (27) श्री महावीरस्वामी, द्वितीय पंचकल्याणकनु स्तवन
(दुहा) शासन नायक शिवकरण, वंदु वीर जिणंद, पंच कल्याणक जेहना, गाशुं धरी आणंद. ॥१॥ सूणतां थुणतां प्रभु तणा, गुण गीरुआ अकतान; ऋद्धि वृद्धि सुख संपदा, सफल हुओ अवतार. ॥२॥
(ढा. १) (राग : साचो संगम प्रभु साथे) सांभळजो ससनेही सयणां, प्रभुना चरित्र उल्लासे; जे सांभळशे प्रभु गुण तेहनां, समकित निर्मळ थाशे रे. सां० ॥१॥ जंबूद्विपे दक्षिण भरते, माहणकुंड ग्रामे; ऋषभदत्त ब्राह्मण तस नारी, देवा नंदा नामे रे. सां० ॥२॥ अषाड सुदि छठे प्रभुजी, पुष्पोत्तरथी चवीया; उत्तराफाल्गुनी योगे आवी, तस कुखे अवतरीया रे. सां० ।।३।। तिण रयणी सा देवानंदा, सुपन गजादिक निरखे; प्रभाते सुणी कंथ ऋषभदत्त, हीयडा मांहि हरखे रे. सां० ॥४॥ भाखे भोग अर्थ सुख होस्ये, होस्ये पुत्र सुजाण; ते निसुणी सा देवानंदा, कीधुं वचन प्रमाण रे. सां० ॥५॥ भोग भला भोगवता विचरे, अहवे अचरिज होवे; शतक्रतु जीव सुरेश्वर हरख्यो, अवधिओ प्रभुने जोवे रे. सां० ॥६॥ करी वंदनने इन्द्र सन्मुख, सात आठ पग आवे; शक्रस्तव विधि सहित भणीने, सिंहासन
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सोहावे रे. सां० ॥७॥ संशय पडिओ ओम विमासे, जिन चक्री हरि राम; तुच्छ दरिद्र माहणकुल नावे, उग्र भोगे विणधाम रे. सां० ॥८॥ अंतिम जिन माहणकुंड आव्या, अह अछेरु कहीओ; उत्सर्पिणी अवसर्पिणी अनंती, जातां अहवू लहीओ रे. सां० ॥६॥ इण अवसर्पिणी दश अच्छेरां, थयां ते कहीजे तेह; गर्भ हरण गोशाला उपसर्ग, निष्फळ देशना जेह रे सां० ॥१०॥ मूल विमाने रवि शशी आव्या, चमरानो उत्पात; ओ श्री वीर जिनेसर वारे, उपनां पंच विख्यात रे. सां० ॥११॥ स्त्री तीर्थ मल्लिजिन वारे, शीतल ने हरिवंश; ऋषभने अट्ठोतेरसो सीधा, सुविधि असंजती संसरे. सां० ॥१२॥ शंख शब्द मिलीया हरिहरस्युं, नेमिसरने वारे; तिम प्रभु नीच कुले अवतरिया, सुरपति अम विचारे रे. सां० ॥१३॥
(ढा. २) (राग : अढारमें भव सात सुपन) भव सत्तावीश स्थुलमांहि त्रीजे भवे, मरीची कीयो कुलनो मद भरत यदा स्तवे; नीच गोत्र कर्म बांध्यु तिहां ते वली, अवतरिया माहणकुल अंतिम जिनपति.....॥१॥ अति अघटतुं अह थयुं थासे नहि; जे प्रसवे जिन चक्री नीच कुले नहि, इहां माहरो आचार धरु उत्तम कुले; हरिणगमेषी देव तेडावे अटले..॥२॥ कहे माहणकुंड नयरे जाई उचित करो; देवानंदा कुखेथी प्रभुने संहरो, नयर क्षत्रियकुंड राय सिद्धारथ गेहिनी; त्रिशला नामे धरो प्रभु कुखे तेहनी. ॥३॥ त्रिशला गर्भ लईने धरो माहणी उरे; ब्यासी रात वसीने कयुं तीम सुर करे, माहणी देखे सुपन जाणे त्रिशला हर्या, त्रिशला सुपन लहे तव चौद अलंकर्या. ॥४॥ हाथी वृषभ सिंह लक्ष्मी माला सुंदरु; शशी रवि ध्वज कुंभ पद्म सरोवर सागरु; देव विमान रयणपुंज अग्नि विमल हवे; देखे त्रिशलाह के पीउने विनवे, ॥५॥ हरख्यो राय सुपन पाठक तेडावीया; राज भोग सुत फल सुणी तेह वधावीया; त्रिशला राणी विधिस्युं गर्भ सुखे हवे; माय तणे हित हेत के प्रभु निश्चल रहे, ॥६॥ माय धरे दुःख जोर विलाप घणुं करे; कहे में कीधां पाप अघोर भवांतरे; गर्भ हो मुज कोण हवे केम पामीओ, दुःख- कारण जाणी विचार्यु स्वामीओ. |७|| अहो अहो मोह विटंबणा जालिम जगतमे; अण दीठे दुःख ओवडो उपायो पलकमे, ताम अभिग्रह धारे प्रभु ते कडं, मात पिता जीवता संयम नवि ग्रहु. ।।८।। करुणा आणी अंग हलाव्युं जिनपति, बोली त्रिशला मात हियडे घj
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हिंसती; अहो मुज जाग्या भाग्यगर्भ मुज सलसल्यो, सेव्यो श्री जिन धर्मक सुरतरु जिम फल्यो, ||६|| सखीय कहे शीखामण स्वामीनी सांभलो; हळवे हळवे बोलो हसो रंगे चलो; इम आनंदे विचरतां दोहला पुरते; नव महिना ने साडा सात दिवस थते. ॥१०॥ चैत्र तणी सुदि तेरस नक्षत्र उत्तरा; जोगे जन्म्या वीर के तव विकसी धरा, त्रिभुवन थयो उद्योत के रंग वधामणां; सोना रुपानी वृष्टि करे घेर सुर घणा. ॥११॥ आवी छप्पन कुमारी के ओच्छव प्रभुतणे; चल्युं रे सिंहासन इद्र के घंटा रणझणे; मळी सुरनी क्रोड के सुरवर आवीयो; पंचरुप करीने प्रभुने सुरगिरि लावीओ. ।।१२।। ओक क्रोड साठ लाख कलश जलशं भर्या, किम सहस्ये लधु वीर के इंद्रे संशय धर्या; प्रभु अंगुठे मेरु चांप्यो अति गडगडे; गडगडे पृथ्वी लोक जगतना लडथडे. ॥१३॥ अनंत बळी प्रभु जाणी इंद्रे खमावीओ, चार वृषभना रुप करी जल नामीओ; पूजी अरची प्रभुने माय पासे धरे, धरी अंगुठे अमृत गया नंदिश्वरे. ॥१४॥
(ढा. ३) (राग : हमचडी) करी महोच्छव सिद्धारथ भूप, नाम धरे वर्धमान; दिन दिन वाधे प्रभु सुरतरु जिम, रुपकला असमान रे. हमचडी० ।।१।। ओक दिन प्रभुजी रमवा कारण, पुर बाहिर जब जावे; इन्द्र मुखे प्रशंसा सुणी तिहां, मिथ्यात्वी सुर आवे रे. हमचडी० ॥२॥ अहि रुपे विंटाणो तरुशुं, प्रभु नाख्यो उछाली; सात ताडनुं रुप कर्यु तब, मुठे नांख्यो वाळी रे. हमचडी० ॥३।। पाय लागीने ते सुर खामे, नाम धरे महावीर; जेवो इंद्रे वखाण्यो स्वामी, तेवो साहस धीर रे. हमचडी० ॥४॥ माता पिता निशाले मूके, आठ वरसनां जाणी; इंद्र तणां तिहां संशय टाल्यां, नव व्याकरण वखाणी रे. हमचडी० ॥५॥ अनुक्रमे यौवन पाम्या प्रभुजी, वर्या यशोदा राणी; अठ्ठावीश वरसे प्रभुजीना, मातापिता निर्वाणी रे. हमचडी० ।।६।। दोय वरस भाईने आग्रहे, प्रभु घर वासे वसीया; धर्म पंथ देखाडो इम कहे, लोकांतिक उल्लसिया रे हमचडी० ॥७|| ओक क्रोड आठ लाख सोनैया, दिन दिन प्रभुजी आपे; इम संवत्सरी दान दईने, जगनां दारिद्र कापे रे हमचडी० ॥८॥ छांड्या राज अंतेउर प्रभुजी, भाईले अनुमति दीधी; मृगशिर वदी दशमी उत्तराये, वीरे दीक्षा लीधी रे. हमचडी० ॥६॥ चउनाणी तिण दिनथी प्रभुजी, वरस दिवस झाझेरां, चिवर अर्ध ब्राह्मणने दीg, खंड खंड बे फेरी
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रे. हमचडी० ॥१०॥ घोर परिसह साडा बार, वरसे जे जे सहीया; घोर अभिग्रह जे जे धरीया, ते नवि जाये कहीया रे. हमचडी० ।।११।। शूलपाणीने संगमदेवे, चंड कोशी गोशाले; दीधु दुःखने पायस रांधी, पग उपर गोवाले रे. हमचडी० ।।१२।। काने गोपे खीला मार्या, काढता मूकी राडी; जे सांभलतां त्रिभुवन कंप्या, पर्वत शिला फाटी रे. हमचडी० ॥१३।। ते ते दुष्ट सहु उद्धरीया, प्रभुजी पर उपगारी; अडद तणा बाकुला लईने, चंदन बाला तारी रे. हमचडी० ॥१४॥ दोय छ मासी नव चउ मासी, अढीमासी त्रण मासी; दोढ मासी बे बे कीधां, छ कीधां बे मासी रे हमचडी० ॥१५॥ बार मासने पख बहोतेर छठ, बसे ओगणत्रीस वखाणुं; बार अठ्ठम भद्रादि प्रतिमा, दिन दोय चार दश जाणुं रे. हमचडी० ॥१६।। इम तप कीधा बारे वरसे, वीण पाणी उल्लासें; तेमां पारणां प्रभुजीओ कीधां, त्रणसे ओगण पचास रे. हमचडी० ॥१७॥ कर्म खपावी वैशाख मास, सुद दशमी शुभ जाण; उत्तरायोग शालिवृक्ष तले, पाम्या केवल नाण रे. हमचडी० ।।१८।। इंद्रभूति आदि प्रतिबोध्यां, गणधर पदवी दीधी; साधु साध्वी श्रावक श्राविका, संघ स्थापना कीधी रे. हमचडी० ।।१६। चउद सहस अणगार साधवी, छत्रीस सहस कहीजे; ओक लाख ने सहस गुण सठी, श्रावक शुद्ध कहीजे रे. हमचडी० ॥२०।। तीन लाख अढार सहस वली, श्राविका संख्या जाणी; त्रणसे चउद पूर्वधारी, तेरसे ओही नाणी रे. हमचडी० ॥२१॥ सात सया ते केवलनाणी, लब्धी धारी पण तेता; विपुल मतियां पांचसे कहीयां, चारसे वादि जित्या रे. हमचडी० ॥२२।। सातसे अंते वासी सिध्यां, साधवी चउदसे सार; दिन दिन तेज सवाये दिपे, प्रभुजीनो परिवार रे. हमचडी० ॥२३।। त्रीस वरस घरवासे वसिया, बार वरस छद्मस्थे; तीस वरस केवल बेंतालीश, श्रमणावस्थेरे. हमचडी० ॥२४॥ वरस बहोतेर केरु आयु, वीर जिणंद- जाणो; दीवाली दिन स्वाती नक्षत्रे, प्रभुजीनो निर्वाण रे. हमचडी० ॥२५।। पंच कल्याणक अम वखाण्या, प्रभुजीना उल्लासे; संघ तणे आग्रह हरख धरीने, सुरत रही चोमासुं रे. हमचडी० ।।२६।।
(कलश) इम चरम जिनवर, सयल सुखकर, थुण्यो अति उलट धरी; अषाड उज्वल पंचमी दिन, संवत शत त्रिहोत्तरे; भादरवा सुद पडवा तणे
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दिने, रविवार उलट भरो; विमलविजय उवज्झाय पदकज, भ्रमर सम शुभ शिष्यये; रामविजय जिनवर नामे, लहे अधिक जगीश ओ. ॥२७।।
(28) श्री महावीरस्वामी तृतिय पंचकल्याणकनुं स्तवन
(ढा. १) (राग : दीदी तेरा देवर दिवाना) सरसति भगवति दीयो मति चंगी, सरस सुरंगी वाण; तुझ पसाय माय चित्त धरीने, जिनगुण रयणनी खाण. ॥१॥ गिरुआ गुण वीरजी, गाइशुं त्रिभुवन राय; तस नामे घर मंगल माला, चित्त. धरे बहु सुख थाय. गि० ॥२॥ जंबूद्विप भरत क्षेत्रमांहि, नयर माहणकुंड गाम; ऋषभदत्त वर विप्र वसे तिहां, देवानंदा तस प्रिया नाम. गि० ॥३॥ सुरविमान वर पुष्पोत्तरथी, चवि प्रभु लीये अवतार; तव ते माहणी रयणी मध्ये, सुपन लहे दशचार. गि० धुरे मयगल मलपंतो देखे, बीजे वृषभ विशाल; त्रीजे केसरी चोथे लक्ष्मी, पांचमे फूलनी माल. गि० ॥५॥ चंद सूरज ध्वज कलश पद्मसर, देखे ओ देव विमान; रयण रेल रयणायर राजे, चौदमे अग्नि प्रधान. गि० ॥६॥ आनंदभर तव जागी सुंदरी, कंथने कहे परभात; सुणीय विप्र कहे तुम सुत होशे, त्रिभुवन माहे विख्यात गि० ॥७॥ अति अभिमान कीयो मरीचि भवे, भवी जुओ कर्म विचार; तात सुता वर तिहां थया कुंवर, वली नीच कुले अवतार. गि० ॥८॥ इण अवसर इंद्रासन डोले, नाणे करी हरि जोय, माहणी कुखे जगगुरू पेखे, नमि कहे अघटतुं होय ॥६॥ तत्क्षणहरिण गमेषी तेडावी, मोकलीयो तेणे ठाय; माहणी गर्भ अने त्रिशलानो, बिहु बदली सुर जाय. गि० ।।१०।। वली निशीभर ते देवानंदा, देखे ओ सुपन असार; जाणे ओ सुपन त्रिशला कर चढिया, जइ कहे निज भरतार. गि० ॥११॥ कंत कहे तुं दुःख हर सुंदरी, मुजमन अचरिज होय; मरु स्थल मांहे कल्पद्रुम दीठो, आज संशय टल्यो तेह. गि० ॥१२॥
(ढा. २) (राग : लाडो लाडी जमे रे) नयर क्षत्रियकुंड नरपति, सिद्धारथ भलो अ; आण न खंडे तस कोयके जग जस निर्मलो ओ, तस पट्टराणी त्रिशला सती कुखे जगपति ओ; परम हर्ष हियडे धरी ठविया सुरपति ओ. ॥१॥ सुख सज्झाये पोढी देवी, तो चउद सुपन लहे ओ; जागती जिन गुण समरती, हरखती गहगहे ; राजहंस गति चालती, पियु कने आवती);
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प्रह उगमते सुरके, विनवे निज पति अ. ॥२॥ वात सुणी राय रंजिओ, पडित तेडीयां अ; तेणे समे सुपन विचारवा, पुस्तक छोडीयां अ; बोले मधुरी वाणके, गुणनिधि सुत होशे अ; सुख संपत्ति वाधशे, संकट भांजशे अ. ||३|| पंडितने राय तोषीया, लच्छी दीये घणी अ; कहे अह वाणी सफल होजो, अमने तुम तणी अ; निज पद पंडित संचर्या, राय सुखे रहे अ; देवी उदर गर्भ वाधतो, शुभ दोहला लहे ओ. || ४ || मातभक्ति जिनपति करे, गर्भ हाले नहीओ; सात मास वोलीगया, माय चिंता लही अ; सहियरने कहे सांभली, कोणे मारो गर्भ हर्यो अ; हुं भोली जाणुं नही, फोगट प्रगट कर्यो ओ. ||५|| सखी कहे अरिहंत समरतां, दुःख दोहग टळे ओ, तव जिनज्ञान प्रयुंजीयुं, गर्भथी सळसळे, मात पिता परिवारनुं दुःख निवारियुं अ; संयम न लेउं मायाताय छतां, जिन निर्धारीयुं अ. ||६|| अणदीठे मोह अवडो, किम विछुओ खमे अ; नव मासवाडा उपरे, दिन साडा सातमे अ चैत्र शुक्ल दिन तेरशे, श्री जिन जनमिया अ; सिद्धारथ भूपति भलां, ओच्छव तव कीया ओ. ॥७॥
( वस्तु) पुत्र जनम्यो पुत्र जनम्यो जगत शणगार, श्री सिद्धारथ नृपकुलतिलो. कुल मंडण कुल तणो दीवो, श्री जिनधर्म पसाउले, त्रिशलादेवी सुत चिरंजीवो; ओम आशिष दीये भली, आवी छप्पनकुमारी; शुचि कर्म करे ते सही, सोहे जिसी हरिनी नारी ॥१॥
(ढा. ३) (राग : लाडो लाडी जमे रे कंसार के ) चल्युं रे सिंहासण इंद्र, ज्ञाने निरखतां अ; जाणी जन्म जिणंद, इंद्र तव हरखतां अ. ||१|| आसनथी रे उठेव, भक्तिओ थुणे अ; वागे सुघोषा घंट सघले रणझणे अ. ॥२॥ इंद्र भुवनपति वीश, व्यंतर तणां अ; बत्रीश रवि शशि दोय, दश हरि कल्पना अ. ||३|| चोसठ इंद्र मिलेवी, प्रणमी कहे अ; रत्न गर्भा जिनमात, दुजी ओसी नहि अ. ||४|| जन्म महोत्सव करे देव सरवे आवीया अ; मायने देइ निद्रा मंत्र, सुत लई मेरु गया . ||५|| कंचन मणि भृंगार, गंघोदके भर्या अ; किम सहेशे लघुविर, हरि संशय धर्या अ || ६ || वशे नीर प्रवाह, किम ते नामीये अ; न करे नमण सनाह, जाण्युं स्वामीये . ||७|| चरण अंगुठे मेरु, चांपी नाचियो अ; मुज शिर पर भगवंत, इम लही राचियो अ.
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॥८॥ उलट्यां सायर सात, सरवे जल हल्या ओ; पायाले नागिंद, सघला सल सल्या अ. ।।६।। गिरिवर त्रुटे टुंक, गड गडी पडयां मे; त्रण भुवननां लोक, कंपित लडथडया अ. ॥१०॥ अनंत बल अरिहंत सुरपति ओ कहे ओ; हुं मुरख सही मुढ, अटलु नवी लयुं ओ. ॥११॥ प्रदक्षिणा देइ खामेय, महोत्सव करे ओ; नाचे सुर गाओ गीत, पुण्य पोते भरे ओ. ॥१२।। इण समे स्वर्गनी लील, तृण सम गणे ; जिन मूकी मायने पास, पद गया आपणे ओ. ॥१३॥ माय जागी जुवे पुत्र, सुरवरे पूजियो ओ; कुंडल दोय देव दुष्य, अमीय अंगुठे दीयो ओ. ॥१४॥ जन्म महोत्सव करे तात, रिद्धिये वाधियो ओ; स्वजन संतोषी नाम, वर्धमान थापीयो ओ. ॥१५॥ ___(ढा. ४) (राग : मने ज्यां जवान मन) प्रभु कल्पतरु सम वाधे, गुण महिमा पार न लाधे; रुपे अद्भुत अनुपम अकल अंगे लक्षण विद्या सकल. ।।१॥ मुख चंद्रकमल दलनयणा, सास सुरभि गंध मीठा वयणा हेम वरणे प्रभु तनु शोभावे, अति निर्मल जल नवरावे. ॥२॥ तप तेजे सूरज सोहे, जोतां सुरनरना मन मोहे; प्रभु रमे राजकुंवर शुं वनमां, माय तायने आनंद मनमां. ॥३॥ बल अतुल वृषभ गति वीर, इंद्र सभामां कह्यो जिन धीर; ओक सुर मुढ वात न माने, आव्यो परखवाने वन रमवाने. ॥४॥ अहि थइ वृक्ष आमलीये राख्यो, प्रभु हाथे झाली दूर नांख्यो; वली बालक थई आवी रमीओ, हारी वीरने खांधे लई गमियो. ॥५॥ पाय नमी नाम दीधुं महावीर, जेहवो इंद्रे कह्यो तेहवो धीर; सुर वलियो प्रभु आव्या रंगे, माय तायने उलट अंगे. ॥६॥
(वस्तु) राय ओच्छव राय ओच्छव, करे मन रंग; लेखन शाळाओ सत ठवे, वीर ज्ञान राजा न जाणे, तव सौधर्म इंद्र आवीया; पूछे ग्रंथ स्वामी वखाणे. व्याकरण जैन तिहां कीओ, आनंद्यो सुर राय; वचन वदे प्रभु भारती, पंड्यो विस्मय थाय. ॥१॥
(ढा. ५) (राग : जादव कुळ श्री नंद समो अ) यौवन वय जिन आवीया ओ, । कन्या यशोदा परणावीया ओ; विवाह महोत्सव शुभकिया ओ, सवि सुस ससरना विलसीया ओ. ।।१।। अनुक्रमे हुइ ओक कुंवरी ओ, त्रीश वरस जिनराज लीला करी मे; मातापिता सद्गति गयाओ, पछे वीर वैरागे पूरिया
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ओ.।।२।। मयणराय मनशुं जीतियो अ, वीर अथीर संसार मने चिंतीयो ओ; राजरमणी ऋद्धि परिहरी ओ, कहे कुटुंबने लेशुं संयम सीरी ओ. ॥३॥
(ढा. ६) (राग : जंबुद्धिप मोझार रे) पितरीयो सुपास रे, भाई नंदि वर्धन; कहे वत्स अम न कीजीओ ओ. ॥१॥ आगे माय ताय विच्छोह रे, तुं वली व्रत लिओ; चांदे खार न दीजीओ ओ. ॥२॥ नीर विण जिम मत्स्य रे, वीर विना तिम; टल वलतुं सहु अम कहे ओ. ॥३॥ कृपावंत भगवंत रे, नेह विना वली; बे वरस झाझेरां रहे ओ. ॥४॥ फासुं लीये अन्न पान रे, पर घर नवि जीमे; चित्त चारित्र भावे रमेए, न करे राजनी चिंत रे, सुर लोकांतिक, आवी कहे संयम समे ओ ॥६॥ बुझ बुझ भगवंत रे, छांडी विषय सुख; आ संसार वधारणो ओ. ॥७॥
. (ढा. ७) आले आले त्रिशलानो कुंवर, राजा सिद्धारथनो नंदन; दान संवत्सरी ओ. ॥१॥ ओक कोडी आठ लाख दिन प्रते ओ, कनक रयण रुपा मोतीतो; मुठी दीओ भरी भरी ओ. ॥२॥ धन कण गज रथ घोडला अ, गाम नगर पुर देश तो; मनो वांछित फल्या ओ. ॥३॥ निर्धन ते धनवंत थया ओ, तस घरे न ओळखे नारी तो; सम करे वली वली ओ. ॥४॥ दुःख दारिद्र हरे जगतणा ओ, मेघ परे वरसे दानतो; पृथ्वी अरुण करी ओ. ॥५॥ बह नरनारी उत्सव जुओ ओ, सुरनर करे रे मंडाण तो; जिन दीक्षा वरी अ. ॥६॥ विहार करम जगगुरु कियो ओ, केडे आव्यो माहण मित्र तो; नारी संतापियो ओ. ॥७॥ जिन याचक हुं वीसर्यो अ, प्रभु खंध थकी देव दुष्य तो; खंड करी दिजीओ ओ. ।।८।।
(ढा. ८) जस घर करे प्रभु पारj, सुर तिहां कंचन वरसे अति घj; आंगणुं, दीपे तेजे तेहर्नु अ. देव दुंदुभि वाजे ओ, तिण नादे अंबर गाजे ओ; छाजे ओ, त्रिभुवन मांहे सोहामणुं ओ. ॥१॥ त्रुटक :-सोहामणुं प्रभु तप तपे; बहु देश विदेशे विचरतां; भवि जीवने उपदेश देई, साते इति शमावता. षट्मास वनमें काउसग्गे रह्या, जिन कर्म कठीन दहे सही; गोवाल गौउ भलावी गया, वीर मुखे बोल्या नहीं. ॥२।। ढाल :-गौउ सवि दश दिशि गया, तिणे आवी कह्यु मुनि किहां गया; रुषिराय, उपर मुरख कोपीआ ओ, चरण उपर रांधी खीर; तेणे उपसर्गे न चल्या धीर, महावीर,
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श्रवणे खीलां ठोकीआ ओ.. ॥३॥ त्रुटक :-ठोकीया खीला दुःख पीडा, को न लहे तिम करी गयां; जिनरायने मन शत्रु मित्र सरिखा, मेरु परे ध्याने रह्यां; उन्ही वरसे मेघ बारे. वीजली झबूके घणी, बेहु चरण उपर डाभ उग्या, इम सहे त्रिभुवन धणी. ॥४॥ ढाल :-ओक दिन ध्यान पुरुं करी प्रभु नयरीये पहोता गोचरी; तिहां वैद्य, श्रवणे खीला जाणीया अ. पारणुं करी काउस्सग्गे रह्यां, तिहां वैद्य संच भेला कीया; बांधीया, वृक्षे दोर खीला ताणीया ओ. ॥५॥ त्रुटक :-ताणी कांढ्या दोय खीला, वीर वेदना थइ घणी; आक्रंद करता गिरि थयो शतखंड, जुओ गति कर्म तणी, बांधे जीवडो कर्म हसतां, रोवंता छूटे नहीं; धन्य धन्य मुनिवर रहे समचित्त, इम कर्म त्रुटे सही. ॥६॥ ___ (ढा. ६) (राग : श्री चिंतामणी पासजी) जुओ जुओ करमे शुं कीधुं रे, अन्न वरस ऋषभे न लीधुं रे; करम वशे म करो कोई खेद रे, मल्लीनाथ पाम्या स्त्री वेद रे. ॥१॥ कर्मे चक्री ब्रह्मदत्त नडीयो रे, सुभूम नरके ओ पडीयो रे; भरत बाहुबल शुं लडीयो रे, चक्री हार्यो राय जस चडीयो रे; ॥२॥ सनत्कुमारे सह्या रोग रे, नल दमयंती वियोग रे वासुदेवे जराकुंवरने मार्यो रे, बलदेव मोहनीये मार्यो रे. ॥३॥ भाई शब मस्तके वहीयो रे, प्रतिबोध सुरमुखे लहीयो रे; श्रेणीक नरके पोंहोतो रे. वन गया दशरथ पुत्रो रे. ॥४॥ सत्यवंत हरिश्चंद्र धीर रे, डुंब घरे शिर वडुं नीर रे; कुबेरदत्तने कुयोग रे, बेन वली माता शुं भोग रे. ॥५॥ परहस्ते चंदन बाल रे, चढयुं सुभद्रा सतीने आल रे; मयण रेहा मृगांकलेखा रे, दुःख भोगव्यां ते अनेका रे. ॥६।। करमे चंद्र कलंकयो रे, राय रंक कोई न मूकयोरे; इंद्र अहिल्या शु लुब्ध्यो रे, रत्ना देवी इश वश कीधो रे. ॥७॥ ईश्वर नारीये नचाव्यो रे, ब्रह्मा ध्यानथी चूकाव्यो रे; अहो अहो कर्म प्रधान रे, जीत्या जीत्या श्री वर्धमान रे. ॥८॥
(ढा. १०) (राग : प्रह उठी वंदु) इम कर्म खपावी, धीर पुरुष महावीर; बार वरस तप्युं तप, ते सघलुं विणनीर. शालिवृक्ष तले प्रभु, पाम्या केवलज्ञान; समोसरण रच्युं सुर, देशना दीये जिनभाण. ॥१॥ अपापानयरी, यज्ञ करे विप्र जेह; सर्वे बुझवी दीक्षा दीये, वीरने वंदे तेह. गौतम ऋषि
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आदे, चारशे चार हजार; सहस चउद मुनिश्वर, गणधर वर अग्यार. ॥२॥ चंदन बाला प्रमुख, साध्वी सहस छत्रीश, दोढ लाख सहस नव, श्रावक दे आशीष. त्रण लाख श्राविका, उपर सहस अढार; संघ चतुर्विध थाप्यो, धन धन जिन परिवार. ॥३॥ प्रभु अशोक तरु तले, त्रीगडे करे वखाण; सुणे बारे पर्षदा, योजन वाणी प्रमाण. त्रण छत्र सोहे शिर, चामर ढाले इंद्र; नाटक बद्ध बत्रीश, चोत्रीश अतिशय जिणंद. ॥४।। फुल पगर भरे सुर, वाजे दुंदुभी नाद; नमे सकल सुरासुर, छांडी सवि प्रमाद. चिहं रुपे सोहे, धर्म प्रकाशे चार; चोवीशमो जिनवर, आपे भवनो पार. ॥५॥ प्रभु वरस बहोंतेर, पाली निरमल आय; त्रिभुवन उपगारी, तरण तारण जिनराय. कार्तिक मासे दिन, दिवाली निर्वाण; प्रभु मुगते पहोता, प्रणमे नित्य कल्याण. ॥६।।
(कलश) ओम वीर जिनवर सयल सुखकर, नामे नवनिधि संपजे; घर ऋद्धि वृद्धि सुसिद्धि पामे, अकमना जे नर भजे. तपगच्छ ठाकुर गुण वैरागर, हीर विजय सूरिश्वरो; हंस राज वंदे, मन आणंदे, कहे धन्य मुज ओ गुरो. ।।१।।
(29) श्री महावीर स्वामीना सत्तावीश भवनुं स्तवन
(दुहा) पुरण प्रेमे प्रणमीए, ब्रह्माणी गुणखाणी; जास प्रसादे पामीए, निरमळ नवरस वाणी.।।१॥ श्री गुरुचरण कमळ नमुं, मोटो महिमा जास; सफल मनोरथ मन तणा, वदति वचन विलास ॥२॥ पिता सिद्धारथ जेहनो, त्रिशलादेवी मात; बहेनी जास सुदंसणा, नंदि वर्धन भ्रात ॥३॥ नारी जशोदा मन वस्यो, सात हाथ तनुं मान; वरस बहोतेर आउखुं, लंछन सिंह प्रधान ॥४॥ क्षत्रिय कुंडपुर जनमीयो, सोवन वरण शरीर; पग अंगुठे नचावीओ, मेरु गिरिवर धीर.॥५॥ वीर करम भड भंजवा, वीर दीन दातार; वीर सहु ने वालहो, वीर हियानो हार ॥६॥ ते जिनवर चोवीशमो, महावीर भगवंतः सतावीश भव वर्णवी, गाशुं गुण महंत ।।७।।
(ढाल १) (राग :--नित्य समरूं साहेब सयणा) पश्चिम विदेह वखाणीएए, अधिकारी गामनो जाणीएए; नयसार नामे वनमां गयो ए, तिहां साधु संयोग सहेजे थयो ए।।।८।। मारग भूला साधु सेवा करीए, शुद्ध समकित मति तिहां धुरि धुरिए ए; फासु असण पाणी केलव्या वहोरावीयां ए, भला
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त्रण तत्त्व चित्त मांहि भाविया ए.॥६॥ तीर्थंकर गोत्रदल मेलव्यां ए, तिणे भाव चडती पुण्य केलव्या ए; प्रथम भव एह मने धारीए ए, बीजे भव सौधर्म धारीए ए.।।१०।। तिहांथी चवी भरतराय सुत सही ए, दादा ऋषभजी हाथे दीक्षा लही ए; दोहितुं चारित्र परिहरि ए, त्रिदंडियावेश सोहिलो धारि ए.॥११॥ ऋषभ वचने भरत भूपति ए, आवी वंदियो मरीचि तापस मति ए; चक्री वासुदेव चरम जिनवरु ए, पदवी त्रण पामशो सुखकरूं ए.॥१२॥ सांभली वात मन मद वस्यो ए, घणुं नाचतो कुदतो अतिहस्यो ए; करम वात कहीए कीसी ए, जुओ जाणतो कर्म बांधे रिसि ए.॥१३।। पूछतां कपिल आगळ कहीए, प्रभु पासे इहां धरम सरीखो सही ए; दुष्ट भाषित वचन रस केलव्यु ए, तिहां मदवेश करमदल मेलव्युं ए.।।१४।। सागर कोडाकोडी नीच कुले ए, मन गर्वथी तेह भवभव रुले ए, त्रीजो भव मरिची पुरण हुवो ए, चवे सुरलोके चोथे, भवे ए.।।१५।। कोल्लाग पुरे कौशिक बंभणो ए, ऐसी पुरव लख जीवीज भणो ए; त्रिदंडी पंचम भव ए गणो ए, छठे भवे इशान अमर सुणो ए.।।१६।।
(ढा. २) थूलपुर बंभण थाय रे, बहोतेर लाख पूरव आय रे; सातमो भव पुष्पमित्र नाम रे, तापस मुनि अभिराम रे. ॥१७।। आठमे भवे देवता थाय रे, सुधर्मे मध्य आय रे; अग्निदत्त ब्राह्मण हुवो रे, चइत्र गामे नवमे भवे गयो रे. ॥१८॥ चोसठ लाख पूरव पाली रे, तापस दीक्षा संभाली रे; दशमे भवे देवता होय रे, बीजे देवलोके जोय रे. ॥१६॥ इग्यारमो भव मंदिर गामे रे, ब्राह्मण थया अग्नि नामे रे; छप्पन लाख पूरव आय रे, अंते ते तापस थाय रे. ॥२०॥ त्रीजे देवलोके देव रे, बारमे भव ततखेव रे; श्वेतांबीये भाररद्वज नाम रे, ब्राह्मण थया तेरमे ठामे रे. ।।२१।। जीवी पूरव चुमालीस लाख रे, तापसनो धर्म राखे रे; चोथे देवलोके जाय रे, चौदमे भवे मध्यम आय रे. ।।२२।।
(ढा. ३) (राग :--महावीर तारा मारगथी अमे) तिहांथी घणां भवमां भमी, राजगृही नगरी उपनो रे; चोत्रीस लाख पूरव आयु, थावर विप्र संपन्नो रे. ॥२३।। पंदरमो भव थुणीओ, छेहडे तापस योग रे; भव सोलमें पांचमें, सुरलोके देवना भोग रे. ॥२४॥ संसारमाही घणुं भमी, राजगृही नगरी
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वखाणो रे; विश्वनंदी नामे राजा तेहनो, लघु भाई जाणो रे. ॥२५॥ विशाखाभूति नामे, तस घर पुत्र उदार रे; अवतरिया सत्तरमे भवे, तिहां नामे संभूति कुमार रे. ॥ २६ ॥ काका पासे वैरागे, मन धरी संयम लीध रे; मथुरा नगरी गौरी, गाये संघट्ट की रे. ||२७|| हांसी सुणी तिहां सुभटनी, मनमांही नियाणो राख्यो रे; कोडी वरसने आउखे रे, ओक सहस दीक्षानो भाख्यो रे ॥ २८ ॥ अणसण पुरी सातमें, सुरलोके देवता कहीओ रे; सत्तर सागर सुख भोगवी, भव अढारमो अ लहीओ रे ॥ २६ ॥ हवे पोतनपुर राजा, नामे प्रजापति सार रे; नारी मृगावती तस कुखे; वासुदेव पृथ्वी उदार रे. ॥ ३० ॥ त्रपृष्ठ त्रिखंडनो स्वामी ज्यारे सिंह विदार्यो रे; ताते तरुओ काने, सय्यापालक मार्यो रे ॥३१॥ कठीन करम अति मेलव्यां, ओगणीशमो भव अह रे; सातमी नरके नारकी, वीसमा भव माहे तेह रे. ॥ ३२ ॥ नीसरी भव अकवीशमे, सिंहनी अवतार पामे रे; चोथी नरके बावीशमें, भवे नारकी ठामे रे. ||३३|| भव असंख्याता इहां कणे, जाण्यो करमनो भार रे; ते लेखे अ गणीओ नही, सूक्ष्म वात विचार रे ॥ ३४॥
(ढा. ४ ) ( राग :-- लाडो लाडी जमे रे कंसार) पश्चिम महाविदेह ठाम, मुका नयरी भणोरी; राय धनंजय नामे, धारणी राणी घणोरी ||३४|| तस कुखे अवतार, प्रियमित्र भलोरी; चक्रवर्ति पदवी उदार, भोगवे नेह निलोरी. ||३६|| रुपे देवकुमार, खेले खान खरीरी; संसार सुख सार, वीलसे प्रेम भरीरी. ॥३७॥ केसरीया वेश बनाय, मोहन माननी मोरी; अबील गुलाब उडाय, फागर साबरी मीरी ||३८|| ओक लाख बाणुं सहस, परम राग रसोरी, छेहडे छोडी राज, भावे चारित्र लेरी ||३६|| कोडी वरस तप काज, करतो नर मही ओरी. ||४०|| पूरव चोराशी लाख, आउखुं पाली सहीरी; वीशमो भव भाख, आगम वात लहीरी ॥ ४१ ॥ सातमे लोक अवतार, जीवी सत्तर सागरेरी; चोवीशमो भव धार, जीवे सुख सागरेरी ॥४२॥
(ढा. ५) ( राग :-- आज गइती हुंतो समवसरणमां) जंबूद्विपे भरत क्षेत्रमां, छत्रा नगरी नाम; जीत शत्रु राजा रे राणी, तस घरे भद्रा गुण अभिराम, ||४३|| उत्तम वीर तणो रे भव सांभलो, आंकणी, तेहनी कुखे रे आवी अवतर्या, नंदन नामे कुमार; चोवीश लाख वरस सुख भोगवी, लीधो संयम
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भार. उ० ॥४४॥ पंच महाव्रत पाली भावश्युं, टाली करमनी कोडी; निर्मलभावे रे किरीया आगले, नमीओ बे कर जोडी. उ० ।।४५॥ लाख वरस ओक दीक्षा पालतो, पोटीलाचारज पास; त्रणकोडी छासठ लाख दिवस लगे, तप करे चढते उल्लास. उ० ॥४६॥ मासे मासे रे खमणे पारj, अग्यार लाख अंसी हजार; छसे पीस्तालीश मास खमण कर्या, पंच दिन उपर धार. उ० ॥४७|| पारणां दिन पण तेटला जाणज्यो, विशस्थानक निमित्त आराध: ओ तपमाथी रे मासे पारणे. धन धन नंदन साध. ॥४८।। तीर्थंकर नाम तिहां संबद्ध कर्यु, तप करी निर्मल देह; पचीश लाख वरसनुं आउखुं, पचवीशमो भव अह. उ० ॥४६॥ तिहां देवलोके रे दशमे अवतर्या, पुष्पोत्तर नाम विमान; सागर आउखुं वीश छवीसमो, अ भव जाणो प्रधान. उ० ॥५०॥
(ढा. ६) (राग :--हवे अवसरजाणी) प्राणत देवलोके, सुख भोगवी संसार, चवीया प्रभु माहण; कुंड ग्रामे अवतार, रिखवदत्त ब्राह्मण, देवानंदा नारी, तस कुखे वसीया. ॥१॥ ब्यासीदिन मनधारी. इंद्रने आदेशे, हरिण गमेषी देव, क्षत्रिय कुंड ग्रामे; लेइ मूकया ततखेव, सिद्धारथ राजा, त्रिशला राणी नाम, चउ दश वर सुपनां, देखी हरखी ताम. ॥२॥ राये सांभळी पाठक, तेडी कहे सुविचार, सूत चक्रवर्ति होशे, के अरिहंत अवतार; शुभदोहला उपजे, राज वाधे राजन; चैत्र सुदि तेरस दिने, जन्म्या जिन वर्धमान. ॥३॥ छप्पन दिग् कुमरी, इंद्र महोत्सव थाय, वधामणी आपी, हरख्या सिद्धारथ राय; दिन दिन जिन वाधे, सुरतरु जिम फलवंत, आमलकी, क्रिडा रमंत, महावीर नाम लहंत. ॥४॥ निशाळे भणवा मूके, त्यां आव्या इन्द्र, पूछी प्रश्न करावीयु, तिहां व्याकरण जिणंद; अनुक्रमे परणाव्या, नामे यशोदा राणी, मात पिता पहोंता, सुखे सुरलोक मोझारी. ॥५॥
(ढा. ७) (राग :--मने ज्यां जवानुं मन) हवे देव लोकांतिक आव्या, जय जय वीर वधाव्या, नंदिवर्धन साथ पुरंत, वरस ओके वैराग्य धरंत. ॥६।। दिनप्रते सौनैया दीजे, ओक कोडी आठ लाख गणीजे; दीक्षा अवसर वरसीदान, त्रणशे अठ्यासी कोडी मान. ॥७॥ अॅशी लाख उपर जाणो, मागशर वदी दशमी वखाणो; नंदी वर्धन महोत्सव करे, इन्द्र खांधे पालखी
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धरे. ॥८॥ वाजिंत्र कोडा कोडी वाजे, अंबरे दुंदुभि गाजे; देखी हरखे सुरनर लाख, मुख बोले जय जय भाख. ॥६॥ क्षत्रियकुंड ज्ञातवन आवी, अशोक तले पालखी ठावी; आभूषण उतार्या उल्लास, अमरी नारी गायो भास. ॥१०॥ पंच मुष्टी लोच करेइ, शुद्ध नीति मनमां धरेइ; महावीरे चारित्र लीधो, चौविहारो छठ्ठ तप कीधो. ।।११।।
(ढा. ८) (राग :--सिद्धाचल सिद्ध सुहावे) संजम लेइ वीर अ, रह्या काउस्सग्ग धीर ओ; गोवालीओ परिसह कर्या अ, आवी इन्द्रे सिद्धारथ अनुसर्या मे ॥१२॥ ओष पडे तापस तेणे अ, उपज्या चोमासु नवी गणे ओ; परिमले मोह्यां भृग ओ, आवी चामडी चुंटे अंग ओ. ॥१३॥ सोमदेवने चीवर दीध रे, अरधुं कांटे वलगु लीद्ध मे; शूलपाणी परिसह सह्या ओ, बे घडी उंघे दश सुपन लह्या अ. ॥१४॥ राजगृही गोशालो मल्यो अ, प्रभु शिष्य थई साथे चाल्यो ओ; जिन तपे घर प्रजालतो फिरे ओ, चोर हेरु करी जिनने धरे ओ. ॥१५॥ अछंद कवचने खीमा धरीरे, चंडकोशीओ बूझव्यो हितकरि ओ; सिंह जीव बोले नाव अ, राखी संबल कंबल भाव ओ. ।।१६।। अग्नि परिसह पग देह ओ, कट पूतना शीत प्रभु सहे ओ; लोहनो घण उपाडीओ अ, आवी इंद्रे तेहने ताडी ओ ओ. ।।१७।। म्लेच्छ अनारज देश ओ, घणा परिसह पुर सन्निवेश ; देवता संगमो पापी अ, लोह चक्र करी संतापीयो ओ. ॥१८॥ पीडा उपाई अति घणी मे, ते सर्वे सहे त्रिभुवन धणी ओ; प्रथम छ मासी भाविआ ओ, सुर महिमा करवा आवीया ओ. ॥१६॥ अभिग्रह उणा छ मासी थया ओ, चंदना आपे कुल मासीया ओ; सय्या पालक गोप ओ, बेहं काने शिला रोप ओ. ॥२०॥ खरक सिद्धारथ उद्धरी ओ, तेणे वेदना व्यापी अति खरी अ; शब्द पर्वत राये धरीये, छठगांमे जिन पादुका करी अ. ॥२१॥
(ढा. ६) (राग :--जयो जिन वीरजी अ) चउनाणी वीर परिसह खम्या ओ, नर सूर तिरि तिवार; तप वीरजीनो सांभलो ओ, खेपवी करमनी कोडी. करी मन निरमलो अ. ॥२२॥ अक छमासी पुरण कर्या ओ, पांच दिन ऊणो वली ओक; तप० नव चौमासी दोय त्रिमासीया ओ, अढी मासीया दोय विवेक. तप० ।।२२।। छ बे मासी दोढ मासी दो ओ गणो अ. ओक मासी
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512 वली बार; तप० बहोतेर अरध मासी भणो ओ. ओगणत्रीश बसें छठ्ठ धारी. तप० ॥२४॥ ओक भद्र प्रतिमा दोयना ओ, महाभद्र प्रतिमा दिन चार; तप० सर्व प्रतिमा दोयना ओ, महाभद्र दिनदश वली ओ, त्रिदिवस प्रतिमा बार. तप० ॥२५॥ अकसो अडत्रिश मास थया अ, ऊपर दिन पचवीश; तप० त्रणसें ओगणपचास दिन पारणां ओ, मेलवो सर्व जगीश. तप० ।।२६।। साडाबार वरस पन्नर दिना ओ, वीर छद्मस्थ विहार; तप० बे घडी तेहमां प्रमादनी ओ, तप सघलो चोविहार. तप० ॥२७।। ज्ञानादि शुभ गुण वाधता ओ, वैशाख मास दशमी शुद्ध ओ; तप० जुंभी गाम नदी रुजु वालिकाओ, तिहां पाम्या केवल रिद्ध. तप० ॥२८॥
(ढा. १०) (राग :--मने ज्यां जवान मन) वीर केवल कमला वरीयो, गौतम गणधर पांखरीओ; मने वालो वीर जिनवर वंदो. जस दरिसणे थाय आणंदो मन० त्रण गढ हेम रुप रतनना, पांत्रीश गुण जाणी वचननां, ॥२६॥ देवदुंदुभि प्रभु गुण गाजे, वाजींत्र कोडा कोडी वाजे; म० धर्म चक्र प्रभु आगल सोहें, इंद्र ध्वजे जन मन मोहे. म० ॥३०॥ शिर छत्र चामर बेहुं पासे, सिंहासण बेठा उल्लासे; म० देइ धरम तणो उपदेश, प्रति बोध्या सुर सन्निवेश. म० ॥३१॥ त्रीश वरस सदने सुख रसिया, बार अधिक छद्मस्थे वसिया; म० त्रीशे उणा केवल लीला, तीर्थंकर राज रंगीला. म० ॥३२॥ वरस बहोतेर आउखं पाली, त्रिभुवनमां धरम अजुआली; म० निर्वाण कल्याणक जाणी, समो सर्या पावापुरी नाणी. म० ॥३३।। साधु साध्वी पचास हजार, मलीओ सह प्रभु परिवार; म० कारतक वदि दिवस पन्नरमो, शिवसुख पाम्या जिन चरमो. म० ॥३४॥ सुरनर पति चउविह देवा, तिहां आव्या करवा सेवा; म० अर्धरात्री दीपक आली, प्रगटयो तिहां पर्व दीवाली. म० ॥३४॥ ___(ढा. ११) (राग :--नवमा नेमि जिणंदने) भविजन भावे सांभलो, मन आणी अति आणंदो रे; वालेसर वीर जिनना. गुण गातां परम आणंदोरे, जय जय वीर जिनेसरु. ॥३६॥ वर्धमान जिनवर तणां, भव सत्तावीश थुणीया रे; मति अनुसारे आपणी, में शास्त्र मांहेथी भणीया रे. ज० ॥३७।। आज मनोरथं सवि फल्या, आज अमृत वुठा मेहरे; सिद्धि सकल आवी
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मिले, वली धण कण पुरा गेह रे. ज० ॥३८॥ सत्तर अकत्रीसे शाहपुरे, पोष वदि दशमी शनिवार रे; समकित वंतने भणवा तणो, जे स्तवन रच्यो अधिकारो रे. ज० ॥३६॥ भणे गणे वली सांभले, जे धारे धरम नीसाणी रे; अविचल ज्ञाननी कला लहीजे, जे भव परभव ते प्राणी रे. ज. ॥४०।।
(कळश) ओम वीर जिनवर सकल सुखकर, परम धरम दय करो; नर अमर किन्नर वाण व्यंतर असुर नीकर सुहंकरो ॥४१॥ लख लाभ जाणी नेह आणी, थुण्यो प्राणी गुणधरो; श्री विजयप्रभ सूरीद गच्छपति, सोहम स्वामी गणधरो ॥४२॥ तस गच्छ सोहे भविक मोहे, श्री हरख कुशल गुरु कविवरो; तस शिष्य भावे ज्ञान गावे, वीर जिनवर जयकरो० ॥४३॥ (30) श्री महावीर स्वामीना द्वितिय सत्तावीश भवनुं स्तवन
(दुहा) विमल कमलदल लोयणां, दीसे वदन प्रसन्न; आदर आणी वीर जिन, वांदी करुं स्तवन. ॥१॥ श्री गुरु तणे पसाउले, स्तवशुं वीर जिणंद; भव सत्तावीश वर्णवू, सुणजो सहु आणंद.॥२॥ सांभलतां सुख उपजे, समकित निर्मल होय; करतां जिननी संकथा, सफल दहाडो सोय. ॥३॥
(ढा. १) (रागः--नवो वेष रचे) महाविदेह पश्चिम जाणुं, नयसार नामे वखाणुं; नयर तणो छे राणो, अटवी गयो सपराणो॥१॥ जमवा वेला ओ जाणी, भक्ति रसवंती आणी; दत्तनी वासना आवी, तपसी जुवे छे भावी. ॥२॥ मारग भूल्या ते हेव आव्या, मुनि आव्या तत्खेव; आहार दीधो पाय लागी, ऋषिनी भूख तृषा सवी भांगी.॥३॥ धर्म सुण्यो मन रंगे, समकित पाम्यो ओ चंगे; ऋषिने चालंता जाणी, हैडे ते उलट आणी. |४॥ मारग देखाडयो वहेतो, पाछो वलीओ ओम कहेतो; पहेले भवे धरमज पावे, अंते देवगुरुने ध्यावे. ॥५॥ पंच परमेष्ठितुं ध्यान, सौधर्म पाम्यो विमान; आउखुं ओक पल्योपम, सुख भोगवी अनोपम. ॥६॥ भव बीजे त्रीजे आयो, भरत कुले सुत जायो; ओच्छव मंगलीक कीधुं, नाम ते मरीची दीधुं. ७।। वाधे सुरतरु सरिखो, आदि जिन देखी हरख्यो; ओहो ओ देशना दीधी, भावे दीक्षा ले लीधी. ॥८॥ ज्ञान भण्यो सुविशेष, विहार करे देश विदेश; दिक्षा देई ओ नजरे, अलगो स्वामीथी विचरे. ॥६॥ महाव्रत भार ओ महोटो, 33.
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हुं पुण पुन्याई छोटो; भगवू कापड करशुं, माथे छत्रते धरशुं. ॥१०॥ पाये पानही पेरशुं, स्नान शुची जले करशुं; प्राणी थूल नही मारूं, खूर मुंड चोटीओ धारुं. ॥११।। जनोइ सोवन केरी, शोभा चंदन भलेरी; हाथे त्रिदंडीयुं लेवू, मन माहे चिंतव्यु अहवं. ॥१२॥ लिंग कुलिंगी- रचीउं, सुख कारण जे मचीऊं; गुण साधुना वखाणे, दीक्षा योग ते जाणे. ॥१३।। आणी जतिओने आपे, शुद्धो मारग ते स्थापे; समवसरण रच्युं जाणी, वांदे भरत विन्नाणी. ॥१४॥ बारे पर्षदा राजे, पूछे भरत ओ आजे; कोई छे तुम सरीखो, दाख्यं मरीची नीको. ॥१५॥ पहेलो वासुदेव थाशे, चकवर्ति मूकाओ वासे; चोवीशमो श्री तीर्थंकर, वर्धमान नामे जयंकर. ॥१६।। उलस्युं भरतनुं हैयुं, जई मरिचिने कह्यु; ताते पदवी ओ दाखी, हरी चक्रि जिनपद भाखी. ॥१७॥ त्रण प्रदक्षिणा देइ, वंदन विधिशुं करेइ; स्तवतो करे ओम दाहो, पुत्र त्रिदंडी न राहो. ॥१८॥ वांदु छु अह मरम, थाशो जिनपति चरम; अम कही पाछो वलीयो, गरवे मरीची. चडीयो, ॥१६।। ___ढा. २ (राग :--छठ्ठो आरो अवो आवशे) इक्ष्वाग कुले हुं उपनो, मारो चक्रवर्ति तातजी; दादो माहरो जिन हुओ, हुं पण त्रिजग विख्यातजी. ॥१॥ अहो? अहो? उत्तम कुल माहरु, अहो! अहो! मुज अवतारजी; नीच गोत्र तिहां बांधीउं, जुओ जुओ करम प्रचारजी. अ० ॥२॥ आ भरते पोतन पुरे, त्रिपृष्ट हरि अभिरामजी; महाविदेह क्षेत्र मुकापुरी, चक्री प्रियमित्र नामजी. अ० ॥३॥ चरम तीर्थंकर थाइशें, होशे त्रिगईं सारजी; सुर नर सेवा सारशे, धन्य धन्य मुज अवतारजी. अ० ॥४॥ रहे मदमातो अणि परे, ओक दिन रोग अतीवजी; मुनि जन सार को नवी करे, सुख वंछे निज जीवजी. अ० ॥५॥ कपिल नामे कोइ आवीयो, प्रतिबोध्यो निज वाणीजी; साधु समिपे दीक्षा वरो, धरम छे तेणे ठामजी. अ० ॥६॥ साधु समीपे मोकले, नवी जाओ ते अजोगजी; चिंते मरीची निज मने, दीसे छे मुज जोगजी. अ० ॥७॥ तव ते वलतुं बोलीयो, तुम वांदे शुं होयजी; भो! भो! धरम इहां अछे, उत्सूत्र भांख्यु सोयजी. अ० ॥८॥ तेणे संसार वधारीओ, सागर कोडा कोडीजी; लाख चोराशी पूरव तणुं, आयु त्रीजे भव जोडीजी. अ० ।।६।। भव चोथे स्वर्ग पांचमे, सागर स्थिति दश जाणजी; कौशीक द्विज भव
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515 पांचमे, लाख अंशी पूरव मानजी अ० ॥१०॥ थुणा नयरीये द्विज थयो, पूरव लाख बहोंतेर सारजी; हुओ त्रिदंडी छठे भवे, सातमे सोहम अवतारजी. अ० ॥११॥ अग्निद्योत आठमे भवे, साठ लाख पूरव आयजी; त्रिदंडी थई विचरे वली, नवमे इशान जायजी. अ० ॥१२॥ अग्निभूती दशमे भवे, मंदिरपुरे द्विज होयजी; लाख छपन्न पूरव आउखुं; त्रिदंडी थइ मरे सोयजी. अ० ॥१३॥ इग्यारमे भवे ते थयो, सनत कुमारे देवजी; नयरी धेतांबीये अवतर्यो, बारमे भवे द्विज हेवजी. अ० ॥१४॥ चुमालीश लाख पूरव आउखुं, भार द्वाज जस नामजी; त्रिदंडी थइ विचरे वली, महाइंद्र तेरमे भवे ठामजी. अ० ॥१५॥ राजगृही नयरी भव चउदमे, थावर ब्राह्मण दाखजी; चोत्रीश लाख पूरव आउद्य, त्रिदंडी लिंग ते भाखजी. अ० ।।१६।। अमर थयो भव पन्नरमे, पांचमे देवलोके देवजी; संसार भम्यो भव सोलमे, विश्वभूति क्षत्रीय हेवजी. अ० ॥१७।।
(ढा. ३) (राग :--भवोभव केरो माथे भारो) विधभूति धारणीनो बेटो, भुजबळ कुल सबल समेटो; संभूति गुरुने तेणे भेटयो. ॥१॥ सहस वर्ष तिहां चारित्र पाली, लही दीक्षा आतम अजुआली; तप करी काया गाली ॥२॥ अक दिन गाय धसी सिंगाली, पडयो भूमि तस भाइये भाली; तेहशुं बल संभाली. ॥३।। गरवे रीस चढी विकराली, सिंगधरी आकाशे उछाली; तस बल शंका टाली ॥४॥ तिहां अनशन नियाj, कीर्छ, तप वेंची बल मागी लीधुं; अधो नियाj कीधु. ॥५॥ सत्तरमे भवे शुक्रे सुरवर, चवी अवतरीयो जिहां पोतनपुर; प्रजापति मृगावति कुंवर. ॥६॥ चोराशी लाख वरसनुं आयु, सात सुपन सुचित सुत जायो; ॥७|| त्रिपृष्ट वासुदेव गायो, ओगणीसमे भवे सातमी नरके, तेत्रीस सागर आयु अभंगे, भोगवीयुं तनु संगे. ॥८॥ वीशमे भवे सिंह हिंसा करतो, अकवीशमे चोथी नरके फरतो; वच्चे वच्चे घणा भव भमतो. ॥६॥ बावीशमे भव सरल स्वभावी, सुख भोगवता जश गवरावी; पुन्ये शुभमति आवी. ॥१०॥ त्रेवीशमे भवे मुकापुरी मुखे, धनंजय धारणीनी कूखे; नर अवतरीओ सुखे. ॥११॥ चक्रवर्तिनी पदवी लाधी, पोटीलाचार्य शुं मति बांधी; शुभमति किरिआ साधी. ॥१२॥ कोडी वरस दीक्षानो जाण, लाख चोराशी पूरव प्रमाण,
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आउखुं पुरुं जाण. ॥१३|| चोवीशमे भवे शुक्रे सुरवर, सुख भोगवीआ सागर सत्तर; तिहांथी चवीओ अमर ॥१४॥
( ढा. ४ ) ( राग :-- श्रेयांस जिन अगियारमे) आ भरते छत्रिका पुरी जितशत्रु विजया नार; मेरे लाल. पचवीशमे भवे उपनो, नंदन नाम उदार मेरे लाल. तीर्थंकर पद बांधी ||१|| लेई दीक्षा सुविचार मेरे लाल, वीशस्थानक तप आदर्यु; हुओ तिहां जय जयकार मेरे लाल. तीर्थं० ॥२॥ राज तजी दीक्षा लीये, पोटीला चार्य पास; मेरे लाल. मास खमण पारणुं करे, अभिग्रह वंत उल्लास. मेरे० तीर्थं० ||३|| लाखवरस इम तप कर्यो, आलस नही य लगार; मेरे० परिगल पुण्य पोते कर्यु, निकाच्युं जिन पद सार, मेरे० तीर्थं० ॥४॥ मास खमण संख्या कहुं, लाख अग्यार अंशी हजार; मेरे लाल. छसें पीस्तालीश उपरे, पंच दिन वृद्धि करेय. मेरे० तीर्थं० ||५|| पचवीश लाख वरसनुं आउखु, मास संलेषण कीध; मेरे० खमी खमावी ते चव्यो, दशमे स्वर्ग फल लीध. मेरे० तीर्थं० || ६ || पुष्पोत्तरावतंसके, विमान सागर वीश; मेरे० सुर चवीओ सुख भोगवी, हुवा अ भव छवीस. मेरे० तीर्थं० ||७||
(ढा. ५) सत्तावीशमो भव सांभलो तो, भ्रमर हुली, रुडुं माहणकुंड गाम तो, ऋषभदत्त ब्राह्मण वसे तो. भमर० देवानंदा घरणी नामे तो. ॥१॥ कर्म रह्या लवलेश वली तो, भ० मरीची भव ना जेहतो; प्राणत कल्पथकी चवी तो, भ० द्विज कुले अवतर्या तेह तो. ॥२॥ चौद सुपन माता लहे तो, भ० आणंद हुओ बहुत तो, इंद्रे अवधि जोइयुं तो, भ० अह अच्छेरा भुत तो. || ३ || ब्याशी दिन तिहां कणे रह्या तो भ० इंद्र आदेशे देवतो; सिद्धार्थ त्रिशला कुखे तो, भ० गर्भ पालटे ततखेव तो. || ४ || चौद सुपन त्रिशला लहे तो, भ० शुभ मुहूर्ते जन्म्या जाम तो; जन्म महोच्छव तिहां करे तो, भ० इंद्र इंद्राणी ताम तो. ॥५ ॥ | वर्धमान तसनाम दीओ तो, भ० देवेदीओ महावीर तो; हर्षे शुं परणावीआ तो, भ० सुख विलसे घर वीर तो || ६ || माय ताय सुरलोक गया तो, भ० जिन साधे निज काज तो; लोकांतिक सुर इम कहे तो, भ० ल्यो दीक्षा महाराज तो. ॥७॥ वरसीदान देइ करी तो, भ० लीधो संयम भार तो; अकाकी जिन विहार करे तो, भ० उपसर्गनो नही पार तो ॥८॥ तप चउविहार कर्या घणा तो, भ० ओक छमासी चौविहार तो; बीजो
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छमासी कर्यो तो, भ० पंच दिन उणा उदार तो. ॥६॥ नव ते चोमासी कर्या तो, भ० बे त्रण मासी जाणतो, अढी मासी बे वार कर्या तो, भ० बे मासी छ वार वखाण तो. ॥१०॥ दोढ मासी बे वार कर्या तो, भ० मासक्षमण कर्या बार तो; बहोंतरे पास खमण कर्या तो, भ० छठ्ठ बसें ओगणत्रीश सार तो, ॥११॥ बार वरसमां पारणां तो, भ० त्रणशे ओगण पचास तो; निद्रा बे घडीनी करी तो, भ० बेठां नही बार वरस तो. ॥१२॥ कर्म खपावी केवल लयुं तो, भ० त्रिगडे पर्षदा बार तो; गणधर पदनी थापना तो, भ० जग हुओ जय जयकार तो. ॥१३॥ गणधर वर अग्यार हुआ तो, भ० चौद सहस साधु सुखकार तो; छत्रीस सहस साधवी हुइ तो, भ० शीयल रयण भंडार तो. ॥१४॥ अकलाख ओगणसाठ हजार कह्या तो, भ० श्रावक समकित धार तो; त्रण लाख अढार हजार श्राविका तो, भ० ओ कह्यो वीर परिवार तो. ॥१५।। ब्राह्मण मातपिता हुआ तो, भ० मोकल्यां मुक्ति मोझार तो; सुपुत्र आवो इम कह्यो तो, भ० सेवकनी करो सार तो. ॥१६॥ त्रीश वरस गहवास वस्या तो, भ० बार वरस छद्मस्थ तो; त्रीश वर्ष केवल धर्यु तो, भ० बहोंतेर वरस समस्त तो. ॥१७॥ आणी परे पाली आउखुं तो, भ० दिन दिवालीनो जेह तो; महानंद पदवी पामीया तो, भ० समरुं हुं नित्य तेह तो. ॥१८॥ संवत सोल बासठ वर्षे तो, भ० विजया दशमी उदार तो; लालविजय भक्ते कहे तो, भ० वीरजिन भवजल तार तो. ॥१६॥
(ढा. ६) (राग :--छटो आरो अवो आवशे) स्मरण सुख संपद मिले, फले मनोरथ कोडजी; रोग वियोग सवि टले, न होय शरीरे कोढजी. स्म० ॥१॥ आद्रीआणा पुर मंडणो, खंडणो पापनो पूरोजी; जे भवियण सेवा करे, सुख पामे ते भर पूरोजी. स्म० ॥२॥ मूरति मोहन वेलडी, दीठे अति आणंदोजी; सिंहासण बेठो सोहे सदा, गगने जिस्यो रविचंदोजी. स्म० ॥३॥ प्रतिमा ओ लहीओ सदा, प्रणमुं जोडी हाथजी; त्रण प्रदक्षिणा देइ करी, मांगु मुक्तिनो साथजी. स्म० ॥४॥ श्रावक अति उद्यम करी, कीधो जिन प्रासादोजी; काढ्युं पाप ठेली करी, पुण्ये जग जसवाधोजी. स्म० ॥५॥
(कळश) श्री वीर पाट परंपरागत, श्री आणंद विमल सूरिश्वरु; श्री विजयदान सूरि तास पाटे, श्री हीर विजय सूरिगणधरु, श्री विजयसेन सूरि
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तास पाटे, श्री विजयदेव सूरि हितकरु; कल्याण विजय उवज्झाय पंडित, श्री शुभविजय शिष्य जयकरु. ॥१॥
( 31 ) श्री महावीरना तृतिय सत्तावीस भवनुं स्तवन ढाळ - ५
(दुहा) श्री शुभविजय सुगुरु नमी, नमी पद्मावती माय; भव सत्तावीश वर्णवुं, सुणतां समकित थाय ॥ १॥ समकित पामे जीवने, भव गणतीओ गणाय; जो वळी संसारे भमे, तो पण मुगते जाय. ॥२॥ वीर जिनेश्वर साहेबो भमीयो काळ अनंत; पण समकित पाम्या पछी, अंते थया अरिहंत ||३||
( ढा. १ ) ( कपूर होय अति उजळो रे. देशी) पहेले भवे अक गामनो रे, राय नामे नयसार; काष्ट लेवा अटवी गयो रे, भोजन वेळा थाय रे. प्राणी० धरीये समकित रंग, जिम पामिये सुख अभंग रे. प्राणी० || १ || मन चिंते महिमा नीलो रे, आवे तपसी कोय; दान देई भोजन करूं रे, तो वांछित फळ होय रे. प्राणी० || २ || मारग देखी मुनिवरा रे, वंदे देइ उपयोग; पूछे
म भटको इहां रे, मुनि कहे साथ वियोग रे. प्राणी० ||३|| हर्ष भरे तेडी गयो रे, पडिलाभ्या मुनिराज भोजन करी कहे चालीओ रे, साथ भेळा करूं आज रे. प्राणी० ||४|| पगवटीओ भेळा कर्या रे, कहे मुनि द्रव्य अ मार्ग; संसारे भूला भमो रे, भाव मारग अपवर्ग रे. प्राणी० ॥५॥ देव - गुरु ओळखाविआ रे, दीधो विधि नवकार; पश्चिम महाविदेहमां रे, पाम्यो समकित सार रे. प्राणी० || ६ || शुभ ध्याने मरी शुभ हुआ रे, पहेला स्वर्ग मोझार; पल्योयम आयु चवी रे, भरत घरे अवतार रे. प्राणी० ||७|| नामे मरीची जोवने रे, संयम लीओ प्रभु पास; दुष्कर चरण लही थयो रे, त्रिदंडीक शुभ वास रे. प्राणी० ॥८॥
(ढा. २ ) ( राग :--मने ज्यां जवानुं मन थाय) नवो वेष रचे तेणी वेळा, विचरे आदिसर भेळा; जल थोडे स्नान विशेष, पगपावडी भगवे वेष . ॥१॥ धरे त्रिदंडीक लाकडी म्होटी, शिर मूंडण ने धरे चोटी; वळी छत्र विलेपन अंगे थुलथी व्रत धरतो रंगे. ॥२॥ सोनानी जनोइ राखे, सहुने मुनि मारग भाखे; समोसरणे पूछे नरेश, कोइ आगे होशे जिनेश. ||३|| जिन जंपे भरतने ताम, तुज पुत्र मरिची नाम; वीर नामे थशे जिन छेल्ला, आ भरते वासुदेव पहेला ॥४॥ चक्रवर्ति विदेहे थाशे, सुणी आव्या भरत उल्लासे;
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मरिचिने प्रदक्षिणा देता, नमी वंदी ने अम कहेता. ॥५॥ तुमे पुन्याइवंत गवाशो, हरि चक्री चरम जिन थासो; नवी वंदु त्रिदंडीक वेश, नमुं भक्तिये वीर जिनेश. ॥६॥ अम स्तवना करी घर जावे, मरीची मन हर्ष न मावे; म्हारे त्रण पदवीनी छाप, दादा जिन चक्री बाप. |७|| ओम वासुदेव धुर थइशुं, कुळ उत्तम म्हारुं कहीशुं; नाचे कुळ मदशुं भराणो, नीच गोत्र तिहां बंधाणो. ॥८॥ अक दिन तनु रोगे व्यापे, कोइ साधु पाणी न आपे; त्यारे वंछे चेलो ओक, तव मळीयो कपिल अविवेक. ॥६॥ देशना सुणी दीक्षा वासे, कहे मरिची लीयो प्रभु पासे; राजपुत्र कहे तुम पासे, ले| अमे दीक्षा उल्लासे. ॥१०॥ तुम दरशने धरमनो हेम, सुणी चिंते मरीची अम; मुज योग्य मल्यो जे चेलो, मूळ कडवे कडवो वेलो. ॥११॥ मरिची कहे धर्म उभयमां, लीओ दीक्षा जोवन वयमां; जेणे वचने वध्यो संसार. मे बीजो कह्यो अवतार. ॥१२॥ लाख चोराशी पूरव आय, पाळी पंचमे स्वर्ग सधाय; दश सागर जीवित त्यांही, शुभ वीर सदा सुखदाइ. ॥१३॥
(ढा. ३) (रागः--रघुपति राघव) पांचमे भव कोल्लाग सन्निवेश, कौशिक नामे ब्राह्मण वेश; अंशी लाख पूरव अनुसरी, त्रिदंडीयाने वेशे मरी. ॥१॥ काळ बहु भमियो संसार, थुणा पुरी छठो अवतार; बहोतेर लाख पूरवने आय, विप्र त्रिदंडीक वेष धराय. ॥२॥ सौधर्मे मध्य स्थितिये थयो, आठमे चैत्य सन्निवेशे गयो; अग्निद्योत द्विज त्रिदंडीयो, पूर्व आयु लाख साठे मूओ. ॥३॥ मध्य स्थितिओ सुर स्वर्ग इशान, दशमे मंदिरपुर द्विज ठाण; लाख छप्पन पूरवायुधरी, अग्निभूति त्रिदंडीकी मरी. ॥४॥ त्रीजे स्वर्ग मध्यायु धरी, बारमे भव श्वेतांबी पुरी; पूरव लाख चुमालीस आय, भार द्विज त्रिदंडीक थाय. ॥५॥ तेरमे चोथे स्वर्गे. रमी, काळ घणो संसारे भमी; चउदमे भव राजगृही जाय, चोत्रीस लाख पूर्वने आय. ॥६॥ थावर विप्र त्रिदंडी थयो, पांचमे स्वर्गे मरीने गयो; सोळमे भव क्रोड वरसनुं आय, राजकुमार विश्वभूति थाय. ॥७।। संभूति मुनि पासे अणगार, दुक्कर तप करी वरस हजार; मासखमण पारणे धरी दया, मथुरामां गोचरीये गया. ॥८॥ गाये हण्या मुनि पडीया वशा. विशाखा नंदी पितरीयां हस्या, गौशृंगे मुनि गर्वे करी, गयणे उछाली धरती धरी, ॥६॥ तप बळथी होज्यो बळ धणी,
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520 करी निया| मुनि अणसणी; सत्तरमे महाशुक्रे सुरा, श्री शुभवीर सागर सत्तरा. ॥१०॥
(ढा. ४) अढारमे भव सात, सुपन सूचित सती; पोतन पुरीय प्रजापति, राणी मृगावती; तस सुत नामे त्रिपृष्ठ, वासुदेव निपन्या; पाप घणुं करी, सातमी नरके उपन्या. ॥१॥ वीशमे भव थइ सिंह, चोथी नरके गया; तिहाथी चवी संसारे, भव बहुला थया; बावीशमे नर भव लही, पुण्य दशा वर्या, त्रेवीशमे राज्यधानी, मूकाओ संचर्या. ॥२॥ राय धनंजय धारणी, राणीये जनमीया; लाख चोराशी पूर्व आयु जीविया; प्रियमित्र नामे चक्रवर्ति दीक्षा लही; कोडी वरस चारित्र दशा पाळी सही. ॥३॥ महाशुक्रे थइ देव, इणे भरते च्यवी; छत्रिका नगरीये, जितशत्रु राजवी; भद्रा माय राजा लखपचवीश, वरस स्थिति धरी; नंदन नामे पुत्रे, दीक्षा आचरी. ॥४॥ अगीयार लाख ने अंशी हजार छस्से वळी, उपर पिस्तालीश अधिक पण मन रुळी; वीश स्थानक मास खमणे, जावज्जीव साधता; तीर्थंकर नामकर्म, तिहां निकाचता. ॥५।। लाख वरस दीक्षा, पर्याय ते पाळता; छवीशमे भव, प्राणत कल्पे देवता, सागर वीश- जिवीत सुखभर भोगवे; श्री शुभवीर जिनेवर, भव सुणजो हवे. ॥६॥
(ढा. ५) (राग :--अंधारानो दीवडोने) नयर माहणकुंडमां वसे रे, महारुद्धि ऋषभदत्त नाम; देवानंदा द्विज श्राविका रे, पेटे लीधो प्रभु विसराम रे; पेट लीधो प्रभु विसराम. ॥१॥ ब्याशी दिवसने अंतरे रे, सुर हरिण गमेषी आय; सिद्धारथ राजा घरे रे, त्रिशला कूखे छटकाय रे. त्रि० ॥२।। नव मासांतरे जनमिया रे, देव देवीये ओच्छव कीध; परणी यशोदा यौवने रे, नामे महावीर प्रसिद्ध रे. ना. ॥३॥ संसार लीला भोगवी रे, त्रीश वर्षे दीक्षा लीध; बार वरसे हुआ केवळी रे, शिव वहुनुं तिलक शिर दीध रे. शि० ॥४॥ संघ चतुर्विघ थापीयो रे, देवानंदा रुषभदत्त प्यार; संयम देइ शिव मोकल्या रे, भगवति सूत्रे अधिकार रे. भ० ॥५॥ चोत्रिश अतिशय शोभता रे, साथे चउद सहस अणगार; छत्रीस. सहस ते साधवी रे, बीजो देवदेवी परिवार रे. बी० ॥६॥ त्रीश वरस प्रभु केवली रे, गाम नगर ते पावन कीध; बहोतेर वरस, आउखुं रे, दीवाळीये शिवपद लीध रे. दी०
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॥७॥ अगुरु लघु अवगाहने रे, कीयो सादि अनंत निवास; मोहराय मल्ल मूळशुं रे, तन मन सुखनो होय नाश रे. त० ॥८॥ तुम सुख ओक प्रदेशY रे, नवि मावे लोकाकाश; तो अमने सुखिया करो रे, अमे धरीये तुमारी आश रे. अ० ॥६॥ अक्षय खजानो नाथनो रे, में दीठो गुरु उपदेश; लालच लागी साहेबा रे, नवी भजीये कुमतिनो लेश रे. न० ॥१०॥ म्होटानो जे आशरो, तेथी पामीये लील विलास; द्रव्य भाव शत्रु हणी रे, शुभवीर सदा सुख वास रे. शु० ॥११॥
(कळश) ओगणीश ओके वरस छेके, पूर्णीमा श्रावण वरो; में थुण्यों लायक विश्वनायक, वर्धमान जिनेश्वरो; सवेंग रंग तरंग झीले, जसविजय समता धरो; शुभ विजय पंडित चरण सेवक, वीर विजयो जय करो. ॥१२।। (32) श्री महावीर स्वामीना चतुर्थ सत्तावीश भवनुं स्तवन
(ढा. १) (माझं मन मोमु रे श्री सिद्धाचले रे. देशी) पेला ते समरुं पास, शंखेश्वरो रे, वली शारद सुखकंद; निज गुरु केरा रे, चरण कमल नमुं रे, थुणशुं वीर जिणंद; भवी तमे सुणजो रे, सत्तावीश भव मोटकारे. ॥१॥ नयसार नामे रे, अपर विदेहमां रे, महिपतिने आदेश; काष्ट लेवा नर वन गयो परिकरे रे, गिरि गहवने प्रदेश. भ० ॥२॥ आहार वेलाये रसवती निपनी रे, दान रुचि चित्त लाय; अतिथि जुओ रे इण अवसरे रे, धरी अंतरथी भाव भ० ॥३॥ पुण्य संयोगे रे, मुनिवर आवीयारे, मार्ग भूल्या छे तेह; निरखी चिंते रे, धन्य मुज जे भाग्यने रे, रोमांचित थयो देह. भ० ॥४॥ निरवद्य आहार देइने इम कहे रे, निस्तारो मुज स्वाम; योग्य जाणीने मुनि दीये देशना रे, समकित लह्यो अभिराम. भ० ॥५॥ मार्ग देखाडीने वांदिने वल्यो रे, समरंतो नवकार; देवगुरु धर्म तत्त्वने आदरी रे, शाश्वतो सुख दातार. भ० ॥६॥ पहेले भवे इम धर्म आराधीने रे, सौधर्मे थयो देव; ओक पल्योपम आउखुं भोगवी रे, बीजे भवे स्वयमेव. भ० ॥७॥ त्रीजे भव चक्रि भरतेसरु रे, तस हुओ मारिची कुमार, प्रभु वचनामृत सांभळी रंगथी रे, दीक्षित थयो अणगार. भ० ॥८॥
(ढा. २) (चतुर सनेही मोहना देशी) अेक दिन ग्रीष्म कालमां, विचरंतो ओकांकी रे; अलगो स्वामी थकी रहे, ज्ञानमदे अति छाकी रे. त्रीजो भव भवि
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सांभलो. टेक ॥१॥ तप तपे अति आकरो, मेले मलीन छे देह रे; श्रमणपणं दुक्कर घj, जलवाये नही अह रे. त्रीजो० ॥२॥ घर जावू जुगतु नही, ओम धारीने विरचे रे; वेश नवो त्रिदंडीनो, चंदन देहे ते चरचे रे. त्रीजो० ॥३॥ कर कमले ग्रहु दंडने, भगवू कपडं करवू रे; पाये उपानह पहेरणे, माथे छत्रने धरतुं रे. त्रीजो० ॥४॥ परिमित जलशुं स्नान हो, मुंड जटाजुट धारूं रे; राखु जनोइ सुर्वणनी, प्राणी स्थूल न मारु रे. त्रीजो० ॥५।। वेष करीने कुलिंगीनो, धर्म करे वली साचो रे; वाणी गुणे पडिबोहतो, जेहवो हीरो जाचो रे. त्रीजो० ॥६॥ जाणी दीक्षा योग्यने, आणी मुनिने आपे रे; जण जण आगल रागथी, साधु तणा गुण थापे रे. त्रीजो० ॥७॥ आदि जिणंद समोसर्या, साकेतनगर उद्योने रे; भरतजी वंदन संचर्या, वंद्या हरख अमाने रे. त्रीजो० ॥८॥ भरतजी वंदीने उच्चरे, कोई अछे तुम सरखो रे; स्वामी कहे सुण राजीआ, तुम सुत मरिची ओ परखो रे. त्रीजो० ॥६॥ वासुदेव पहेलो होंशे चक्रवर्ती मुकाओ रे; तीर्थपति चोवीशमो, नामे वीर कहाये रे. त्रीजो० ।।१०।। पुलकीत थइ प्रभु वंदीने, मरिची निकटे पहोतो रे; त्रण प्रदक्षिणा देइने, वंदे मन गह गहतो रे. त्रीजो० ॥११॥ गुण स्तवना करी इम कहे; वंदु छु अह मरम रे; वासुदेव चक्री थइ, थास्यो जिनपति चरम रे. त्रीजो० ॥१२॥ जिन वचनामृत दाखवी, रंगे उलट आणी रे; प्रणमी भरत घरे गयो, मरिचीने गुण निधि जाणी रे. त्रीजो० ॥१३॥
(ढा. ३) (राग :--अढारमे भवे) मरीची मन इम चिंतवे, भरत वचन सुणी, मुज सम अवर न कोय छे, ते जगमा अछे गुणी; जेटला लाभ जगतमां, छे ते में लह्या; अहो श्री आदि जिणंदे, निज मुखथी कह्या. ।।१।। रत्नाकर मुज वंश, अनोपम गुण युता, दादो जिनमां मुख्य, चक्रीमां मुज पिता; अहो उत्तम कुल माहरु, हुं सहुमां शिरे, धन धन मुज अवतार, हरिमां हुं धुरे. ॥२॥ चक्रवर्ती थइ चरम जिणेसर थाइरों, कनक कमल पर निजपद कमलने ठायशुं; सुरनर कोडा कोडी मली मुज प्रणमशे, प्रातिहारज वर आठशुं समवसरण थशे. ॥३॥ मद करवाथी नीच गोत्र इम बांधीउं, भव भव नीच कर्मचें फळ इहां साधीउं; ओक दिन रोग उदयथी मन अम चिंतवे, सेवा कारक शिष्य करुं कोइक हवे. ॥४॥ सार न पूछे ओ मुनि
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परिचित छे घणा, डुंगरा दूरथकी दीसे रळीयामणा, अवे कपिल नामे ओक नृप सुत आवीयो, तेने मरिची अ प्रभुनो धर्म सुणावीओ. ॥५॥ योग्य जाणी कहे जाओ मुनि पासे तुमे, दीक्षा ल्यो शुभ भावथी कहीओ छीओ अमे; कपिल कहे तव धर्म नथी शुं तुम गच्छे, मनथी चिंते अजोग ओ मुज लायक अछे. ॥६॥ मरिची कहे भो कपिल इहां पण धर्म छे. चित्त रुचे तिहां सेवीओ ओ हित मर्म छे; इम उत्सूत्र कह्याथी संसार वधारीयो, सागर कोडा कोडी अपार अवारीयो. ॥७॥ चोराशी लाख पूर्व- आयुष्य भोगवी, अने अनालोचित त्रीजे भवथी चवी; दश सागर भव चोथे पंचमे स्वर्गथी, उपन्यो पंचम भव हवे ब्राह्मण गर्वथी. ॥८॥ अॅसी पूर्व लख आउखे कौशिक द्विज थयो, थुणा नयरीओ छठे भव भमता गयो; बहोतेर लख पूरवायुपुष्प द्विज नामथी, अंते त्रिदंडी थइने मुओ ते अकामथी. ॥६॥ सातमे सोहम चैत्यपुरे भव आठमे, अग्नि द्योत द्विज लख पूर्वायु साठमें; अंते त्रिदंडी थइने, हवे नवमे भवे, इशाने अमृत सुख रंगे अनुभवे. ॥१०॥
(ढा. ४) (राग :--सिद्धागिरि ध्यावो भविका) अग्निभूति द्विज दशमे आयो, मंदर पुरमा तेह सोहायो; लालन छप्पन लाख पूर्वायु धरतो, अंते त्रिदंडी थइने ते फरतो, लालन त्रिदंडी थइने ते फरतो. ॥१॥ इग्यारमे भवे सनत्कुमार, बारमे घेतांबीये अवतार. लालन० भारद्विज अंते त्रीदंडी, चुंमालीस लाख पूर्वायु मंडी. ला० पू० ॥२॥ तेरमे भव थयो महेंद्रदेव, चौदमे थावर ब्राह्मण देव. ला० ब्रा० चोत्रीश लाख पूर्वायु पाली, त्रिदंडीयो थइने कायाने गाळी. ला० का० ॥३॥ पन्नरमे भवे पांचमे स्वर्गे, तिहांथी चवी भमीयो भवरणे भ० सोलमे भवे विधभूति नामे, क्षत्रीयसुत उपन्यो ते सकामे. ला० उ० ॥४॥ विशाखा भूति धारिणी जायो, संभूति साधुओ तेह वंदायो. ला० ते० सहस वरस जिन चरण आराधी, तपसी थयो अति विरमी उपाधी. ला० वि०॥५॥ ओक दिन मथुरामां गोचरी चाल्यो, वरजात्राओ जता भाईले भाल्यो. ला० भा० अहवे अक गाये तस मार्यो, भूमि पड्यो अति क्रोध वधार्यो. ला० अ० ॥६॥ ते जोता गौ गगने भमाडी, ईम निज ओम भुजबल तेहने देखाडी. ला०ते० अणसण साथे नियाj कीg, तप साटे बल मांगीने लीधुं. ला० मा० ॥७॥ कोड वरसनुं जिवीत धारी, सत्तरमे शुक्र स्वर्गे अवतरि. ला० स्व० अढारमे भवे पुत्रीनो कामी, प्रजापति पोतनपुर स्वामी.
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ला० पो० ॥८॥ मृगावती राणी कूखे अवतरीयो, सात सुपन सुचित बल भरीयो. ला० सा० बालपणे जेणे सिंहने हण्यो, त्रिपृष्ट नारायण करी सुणीयो. ला० ना० ॥६॥ त्रणसेंसाठ संग्राम ते कीधा, शय्या पालकने दुःख दीधा. ला०पा० लाख चोराशी वरस, आय, भोगवी सातमी नरके जाय. ला०पा० ॥१०॥ ओगणीशमे भवे दुःख अतिवेदी, वीशमे भव हुओ सिंह सखेदी. चोथी नरके भव अकवीशमे, बहुभव भमता हवे बावीशमे ला० हवे० ॥११॥ कोई शुभ योगे नरभव पायो, त्रेवीसमे भवे चक्री गवायो. ला०च० धनंजय धारणीनो बेटो, मुका नगरीये भुज बल पेठो. ला० भु० ॥१२॥ षट्खंड पृथ्वीमां आण मनावी, चौद रयण निधि संपद पाइ. ला० सं० पोटीलाचार्य गुरु तिहां वांदी, दीक्षा आदरी मनथी आनंदी. ला० म० ॥१३॥ चोराशी लाख पूर्व प्रमाण, आयु पाळी हवे चोवीशमे जाण. ला० चो० महा शुक्रे हुवो अमर उमंगे, अमृत सुर सुख भोगवे रंगे. ला० भो० ॥१४॥
(ढा. ५) आ भरते छत्रिकापुरी, पचवीशमे भवे आयाजी; भद्रा जितशत्रु नृप कुले, नन्दन नाम सुहायाजी. त्रुटक : नाम नंदन त्रिजग वंदन, पोटीला चारज कन्हे; ग्रही चरण दमतो करण, विचरे मृगपति जिम वने. ।।१।। तिहां मास खमणे वीशस्थानक, तप तपी दुष्करपणे; पद बांधीयुं इहां तीर्थपतिर्नु, भावथी आदर घणे; चाल० : अभिग्रही मास खमण कीयां, जावजीव पर्यंतोजी; उलसीत भावे तपतपी, कीधो करमनो अंतोजी. ॥२॥ त्रोटक : भव अंत कीधो काज सिध्यो, तास संख्या हुं कहुं, अगीआर लाख ने सहस अॅशी, छसे पीस्तालीश लहुं; दीन पांच उपर अधिक जाणो, लाख पचवीश वरसनु; आउखुं पाली भ्रमण टाली, काम साध्यु आपणुं. ॥३॥ चाल० : अणसण मास संलेखणा, करी वधते परिणामजी; सवी जगजंतु खमावीने, चवीयो तिहांथी सकामजी. ॥४॥ त्रोटक० : चवीयो सकामे स्वर्ग दशमे, वीश सागरे सुर हुओ, तिहां विविध सुर सुख भोगवे, खटवीशमे भव अ जुओ; मरिची भवे ओ कर्म बांध्युं, ते हजी खुट्युं नही; चरम सत्तावीशमे भवे, उदय आव्युं ते सही. ॥५॥ चाल० : ऋषभदत्त ब्राह्मण वसे, वर माहणकुंड गामजी; तस घरणी गुण गोरडी, देवानंदा इति नामेजी. ॥६।। त्रौटक : देवानंदा कूखे आया, चौद सुपना निशि लहे; तव इंद्र अवधिओ जोइने, हरिण गमेषीने कहे; नगर क्षत्रीयकुंड नामे, सिद्धारथ छे नरपति;
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तस पट्टराणी तेह खाणी, नामे त्रिशला गुणवती. ॥७॥ चाल० : तिहां जइ गर्भने पालटो, ओ तुमने छे आदेशजी; कोई काले अम नथी बन्युं, द्विज कुल होय जिनेशजी. |८| त्रोटक : द्विज कुले न होय जिनपति वली, ओह अचरिजनी कथा; लवणमां जिम अमृत लहरी, मरुमां सुरतरु यथा; ओम इन्द्र वयणां सांभळी, पहोंची तिहां प्रणमे प्रभु; बेहु गर्भ पलटी रंगथी, जइ कहे ते नीज विभु. ॥६॥
(ढा. ६) (राग :--हारे मारे ठाम धरमना) हारे मारे अॅशी दिन इम वसीने द्विज घर मांहीजो; त्रिशला कुखे त्रिभुवन नायक आवीया रेलोल; हारे मारे तेहज राते चौद सुपन लहे मात जो; सुपन पाठक तेडीने अर्थ सुणावीयो रे लोल ॥१॥ हारे मारे गर्भ स्थिति पूर्ण थये जन्म्या स्वामी जो; नारक स्थावर जनना सुखने भावता रे लोल. ॥२॥ हारे मारे सुतीने करती धरती नीजमन हर्ष जो; अमरी रे गुण समरी नीज पद आवती रे लोल. ॥३॥ हारे मारे सोहम इंद्रादिकनो ओच्छव हुंत जो; सिद्धारथ पण तिम वली मन मोटो करे रे लोल. ॥४॥ हारे मारे नाम ठव्युं श्री वर्धमान कुमार जो; दिन दिन वाधे प्रभुजी कल्पतरु परे रे लोल. ॥५॥ हारे मारे देवे अभिधा दीधु श्री महावीर जो; जोवन वय वली विलसे नव नव भोगने रे लोल. ॥६॥ हारे मारेइम करतां गया मातपिता स्वर्ग मोजार जो; लोकांतिक तब आवी करे उपयोगने रे लोल. ॥७॥ हारे मारे वरसीदान दइने संजम लीध जो; परिसहने उपसर्ग सह्या प्रभुओ घणा रे लोल. ॥८॥ हारे मारे लाख वरस तपसी पूर्व भव नाथ जो; तो पण आ भव तपनी राखी नही मणा रे लोल. ॥६॥ हारे मारे बे खटमासी तेमां पण दिन उण जो; नव चउमासी बे त्रण मासीने लहुं रे लोल. ॥१०॥ हारे मारे बे अढीमासी तेमां खट बे मासी जाणजो; दोढ मासी दोय मासखमण बारे कहुं रे लोल. ॥११॥ हारे मारे बहोतेर पासखमण वली अठ्ठम बार जो; दोय शत ओगणत्रीश ओ छठ तपभणुं रे लोल. ॥१२॥ हारे मारे प्रभु तप तपीया ते जाणो विण नीरजो; त्रणसो ओगण पचाश जे पारणा दिन गणुं रे लोल. ॥१३॥ हारे मार तिम अप्रतिबंधी बेठा नही भगवंत जो; बार वरसमां निंद्रा बे घडीनी करी रे लोल. ॥१४॥ हारे मारे तेम निरमल ध्याने घाति कर्म खपायजो; दर्शन ज्ञान विलासी केवलने वरी रे लोल. ॥१५॥ हारे मारे केवल पाम्या
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रुजुवालिका तिर जो; आवे रे विचरंता चित्त उमंगथी रे लोल. ॥१६।। हारे मारे अति उलसित थइने सुरनर कोडाकोड जो; जिन वचनामृत सुणवा आवे रंगथी रे लोल. ॥१७॥
(ढा. ७) (राग :-दिलरंजन जिनराजजी रे) महसेन वनमां समोसर्या, जगनायक जिन चंद्र सुज्ञानी; समवसरण रचना करी, प्रणमे चोसठ इंद्र सुज्ञानी. वीर जिणंदने वंदीओ. ॥१॥ प्रतिहारज वर आठ. शुं, शोभे प्रभुनो देदार; सुज्ञानी० दिव्य ध्वनि देवे देशना, सांभळे पर्षदा बार. सुज्ञानी० ॥२॥ इंद्रभूति द्विज प्रमुखने, गणधर थापे अग्यार; सुज्ञानी० दर्शन नाण चरण धरा, चौद सहस अणगार. सुज्ञानी० ॥३॥ छत्रीश सहस-सुसाहुणी, चारसे वादी प्रमाण; सुज्ञानी० वैक्रिय लब्धि ने केवली, सातसे सातसे जाण. सुज्ञानी० ॥४॥ ओही नाणीधर तेरसे, मनःपर्यव शत पंच. सुज्ञानी० पूरवधर अनुत्तर मुनि, त्रणसे सप्रशत संच सुज्ञानी० ॥५॥ दोढ लाख नव सहस छे, क्षमणो पासक सार; सुज्ञानी० श्राविका वळी त्रण लाखने, उपर सहस अढार. सुज्ञानी० ॥६।। चतुर्विघ संघनी थापना, करता फिरता नाथ; सुज्ञानी० भविक कमल पडिबोहता, मेलता शिवपुर साथ.सुज्ञानी० ॥७॥ पुत सुपुत न अहवा, जगमां दीसे कोय; सुज्ञानी० ब्याशी दिन कूखे वस्यां, ओ उपकारने जोय. सुज्ञानी० ॥८॥ शिवपुर तेहने पहोंचाडीया, ब्राह्मण ब्राह्मणी दोय; सुज्ञानी० जगवात्सल जिन वंदता, हियडुं हरखित होय. सुज्ञानी० ॥६॥ त्रीश वरस गृहवासनां, भोगवी भोग उदार; सुज्ञानी० छद्मस्थ अवस्था सहि, बार साधिक वर्ष विलास सुज्ञानी, त्रीश वरस वीरे अनुभव्यो, केवल लील विलास सुज्ञानी० पूर्ण आउऱ्या पाळीने, बोंतेर वरसनुं खास. सुज्ञानी० ॥११।।. दीवाली दिन शिव वर्या, छोडी सयल जंजाल; सुज्ञानी० सहजानंदी सुख लघु, आतम शक्ति अजुआल सुज्ञानी० ॥१२॥ भूत भावी वर्तमानना, सुर सुख लेइ अशेष; सुज्ञानी० नभ प्रदेश ठवे करी, कीजे वर्ग विशेष. सुज्ञानी० ॥१३॥ इणी परे वर्ग अनंतना, करीये सहु समुदाय; सुज्ञानी० अव्याबाधित सुखतणो, अंश न ओक लखाय. सुज्ञानी० ॥१४॥ निज गुण भोगी भोगवे, सादि अनंतो काल; सुज्ञानी० निजसत्ताने विलसता, निश्चय नय संभाल. सुज्ञानी० ॥१५|| इम अमृत पदने वरी, बेठा थइ निःशंक सुज्ञानी० वर्धमान भावे करी, वंदु नित नित रंग. सुज्ञानी० ॥१६।।
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(कळश) इम वीर जिनवर सयल सुखकर दुरित दुःखहर सुर मणि, युग बाण वसु शशीमान वरसे, संथुण्यो त्रिभुवन धणी; सत्तावीश भवनुं स्तवन भवियण, सांभळी जे सद्हे, ते ऋद्धि वृद्धि सुसिद्धि सघळे, सदा रंग विजय लहे. ॥१॥
(33) श्री महावीर स्वामी- हालरर्ल्ड माता त्रिशला झुलावे पुत्र पारणे रे; गावे हालो हालो हालरुवाना गीत; सोना रुपा ने वली रले जडीयुं पारणुं रे; रेशम दोरी घूघरी वागे छुम छुम रीत; हालो हालो हालो हालो मारा नंदने. ॥१॥ जिनजी पास प्रभुजी वरस अढीसे अंतरे रे; होशे चोवीशमो तीर्थंकर जिन परिणाम; केशी स्वामी मुखथी ओवी वाणी सांभळी रे; साची साची हुइ ते मारे अमृत वाण. हालो० ॥२॥ चौदे स्वप्ने होशे चक्री के जिनराज; वीत्या बारे चक्री, नहिं हवे चक्रि राज; जिनजी पास प्रभुना श्री केशी गणधार; तेहनेवचने जाण्यां चोवीशमां जिनराज. हालो० ॥३॥ मारी कूखे आव्यां तारण तरण जहाज; मारी कुखे
आव्या त्रण भुवन शिरताज; मारी कुखे आव्या संघ तीरथनी लाज; हुं तो पुण्य पनोती इंद्राणी थइ आज. हालो० ॥४॥ मुजने दोहलो उपन्यो बेसुं गज अंबाडीओ, सिंहासन पर बेसुं चामर छत्र धराय; जे सहु लक्षण मुजने नंदन ताहरा तेजनां रे ते दिन संभारुं ने आनंद अंग न माय. हालो० ॥५॥ करतल पगतल लक्षण ओक हजार ने आठ छे, तेहथी निश्चय जाण्या जिनवर श्री जगदीश; नंदन जमणी जंघे लंछन सिंह बीराजतो रे; मे तो पहेले सपने दीठो विशवावीश. हालो० ॥६॥ नंदन नवला बंधव नंदीवर्धनना तमे; नंदन भोजाईओना देवर छो सुकुमाल; हसशे भोजाईओ कही दियर मारा लाडका रे हससे रमशेने वळी चुंटी खणशे गाल; हसशे रमशे ने वळी ठंसा देशे गाल. हालो० ॥७।। नंदन नवला चेडा राजाना भाणेज छो रे नंदन मामलीयाना भाणेजा सुकुमाल; हसशे हाथ उच्छाली कहीने नाना भाणजा रे; आंखो आंजीने वली टपकुं करसे गाल. हालो० ॥८॥नंदन मामा मामी लावशे टोपी आंगला रे रतने जडीयां झालर मोती कसबी कोर; नीला पीला ने वळी रातां सरवे जातिना रे पहेरावशे मामी माहरा नंद किशोर. हालो० ॥६॥ नंदन मामा मामी सुखलडी सहु लावशेरे;
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नंदन गजुवे भरशे लाडु मोती चुर; नंदन मुखडा जोईने लेशे मामी भामणां रे; नंदन मामी कहेशे जीवो सुख भरपूर. हालो० ॥१०॥ नंदन नवला चेडा मामानी साते सती रे; मारी भत्रीजी ने बेन तमारी नंद, ते पण गुंजे भरवा लाखण साइ लावशे रे, तुमने जोइ जोइ होशे अधिको परमानंद. हालो० ॥११॥ रमवा काजे लावशे लाख टकानो घुघरो रे, वळी शुडा मेना पोपट ने गजराज; सारस हंस कोयल तीतर नेवली मोरजी रे; मामी लावशे रमवा नंद तमारे काज. हालो० ॥१२॥ छप्पन कुमरी अमरी जलकलशे नवरावीयारे; नंदन तमने अमने केली घरनी मांहे; फुलनी वृष्टि कीधी योजन ओकने मांडले; बहु चिरंजीवो आशीष दीधी तुमने त्यांही. हालो० ॥१३॥ तमने मेरुगिरि पर सुरपतिओ नवरावीया रे; नीरखी नीरखी हरखी सुकृत लाभ कमाय; मुखडा उपर वारुं कोटी कोटी चंद्रमां; वली तनपर वारु ग्रह गणनो समुदाय. हालो० ॥१४।। नंदन नवला भणवा निशाले पण मूकशुं रे; गजपर अंबाडी बेसाडी मोटे साज; पसली भरशुं श्रीफळ फोफल नागर वेलशुं रे; पेंडा सुखडी ले| नीशालीयाने काज. हालो० ॥१५॥ नंदन नवला महोटा थाशो ने परणावशुं रे; वहुवर सरखी जोडी लावशुं राजकुमार; नंदन सरखा वेवाइ वेवाणुं ने पधरावशुं रे, वरवहु पोखी ले| जोइ जोइने देदार. हालो० ॥१६॥ पीयर सासर माहरा बेहु पख नंदन उजला रे; मारी कुखे आव्या तात पनोता नंद; माहरे आंगण वुठा अमृत दूधे मेहुला रे; माहरे आंगण फलीया सुरतरु सुखना कंद. हालो० ॥१७|| इणिपरे गायुं माता त्रिशला सुतनुं पारणुं रे; जेकोई गाशे लेशे पुत्र तणा साम्राज; बीली मोरा नगरे वर्णव्युं वीरनुं हालरूं रे; जय जय मंगल होजो दीपविजय कविराज. हालो० ॥१८॥ (34) पर्युषण पर्व- स्तवन (तर्ज एक दिन पुंडरिक गणधरु रे) ___ पर्व पर्युषण आवीया रे, लाल-हैयामां हरख न माय रे सलुणा, त्रिकरण योगे सेवता रे लाल, पातक दूरे पलाय रे. सलुणा० १ पर्व आराधन कीजीए रे लाल, पामीये भवोदधि पार रे, सलुणा, नंदिवर ओच्छव करे रे लाल, सुर सफल अवतार रे. सलुणा० पर्व० २ जीव अमारी पलावीए रे लाल आरंभनो करी त्याग रे सलुणा० नरनारी शुद्ध
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भावथी रे लाल, धर्मे धरो अनुराग रे. सलुणा० पर्व० ३ गिरिवरमां मेरू बडो रे लाल, मंत्रमांही नवकार रे सलुणा० शत्रुजय तीरथ बडो रे लाल, देव वितराग धार रे. सलुणा० पर्व० ४ रत्न विषे चिंतामणि रे लाल, कल्पवृक्ष सुखकार रे, सलुणा० कामधेनु उत्तम गणी रे लाल तेम आ पर्व सार रे. सलुणा० पर्व० ५ अट्ठाई महोत्सवकिजीए रे लाल, प्रतिदिन पूजा भणाय रे सलुणा० खमो खमावो खंतथी रे लाल, ए जिन शासन रीत रे. सलुणा० पर्व० ७ वाजिंत्र विधविध वागता रे लाल, गाता मांगलिक गीत रे, सलुणा० श्रेष्ठ वरघोडे चढावीए रे लाल, आवी गुरुनी पास रे. सलुणा० पर्व० ८ ज्ञान गुरुर्नु पूजन करो रे लाल, प्रीते करी पच्चक्खाण रे, सलुणा० छट्ठ अट्ठम आदि तप करे रे लाल, दानादि धर्म वरवाण रे. सलुणा० पर्व० ६ चैत्यपरिपाटी थकी रे लाल, जुहारे सवि जिनराज रे सलुणा० काउस्सग्गमां मन स्थिर करी रे लाल, सारो आतम काज रे. सलुणा० पर्व० १० स्वामीवत्सल नेहे करे रे लाल प्रभावना बहु होय रे, सलुणा० उजमणादिक आदरे लाल, इण सम पर्व न होय. सलुणा० पर्व० ११ इण विध जेह आराधशे रे लाल, करे शासन सुर सदाय रे सलुणा० शांति पुण्य क्षमावडे रे लाल, इह पर भवे, सुख थाय रे. सलुणा० पर्व० १२
(35) पर्युषण पर्व- स्तवन (तर्ज बोल बोल आदिश्वर)
करलो करलो रे, थे भविजन प्राणी, शिवसुख वरलो रे, सब सुरवर मिल निज निज भक्ते, द्विप नंदिवर जावे रे, आठ दिवस अट्ठाइ महोत्सव कर सुख पावे रे. पजुषण करलो रे० १ तिम भवि प्राणी आतम शकते, धार्मिक कार्य आराधो रे, जिनवरजी की पूजा करके शिवसुख साधो रे. पजुषण० २ विविध प्रकारे पूजारचावो, समकित निर्मल करलो रे, आंगी भावना मन शुद्ध करके भवजल तरलो रे. पजुषण० ३ आठ दिवस अट्ठाई तपस्या, करके काज सुधारो रे, जैन धर्म की महिमा करके, जन्म सुधारो रे. पजुषण० ४ हाथी, घोडा और पालखी, रथ तैयारी करावो रे, वस्त्र आभूषण सजकर भविजन, मंगल गावो रे. पजुषण० ५ गाजे गाजे सब मिल गौरी, गुरु के पास जावो रे, कल्पसूत्र को लेकर माथे, हाथ
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धरावो रे. पजुषण० ६ घर को जावो रात्रि जगावो, ज्ञान की भक्ति करावो रे, सवि शहेर में फिरकर गुरुके पास लावो रे. पजुषण० ७ कल्पसूत्र की पूजा करके, वाचना को सुणलो रे, मधुरी वाणी गुरु मुख प्राणी अमृत पिलो रे. पजुषण० ८ जिन चरित्र और पटावली, समाचारी भावे रे, तीन अधिकार आदी से सुन लो, मुगति मे जावो रे. पजुषण० ६ अट्ठाई उपवास करो, भवि, वडा कल्पनो छट्ट रे, संवत्सरीनो अट्टम तेलो करीने, बारसा सांभलो रे. पजुषण० १० मूल पाठ को एक सुणीने, चैत्य प्रवाडी जाणे रे, मोहन मुद्रा जिनवर निरखी, अति हरखावो रे. पजुषण० ११ आयम अमारो पडह बजाणे, दान सुपात्रे देवो रे, अनुकंपा कर जीवो उपर प्रेम जगावो रे. पजुषण० १२ नवविध बह्म गुप्ति को धारो, भावना मन शुद्ध भावो रे, दोय टंकना पडिकमणो करीने पाप गमावो रे. पजुषण० १३ संवत्सरी पडिक्कमणो करीजे, जीव चौराशी कमावो रे, अपराधो को माफी देकर अति हरखावो रे. पजुषण० १४ तिवरी गाम चौमासो रहकर, पर्व पजुसण किधा रे, संवत उन्नीस एसी वरसे उदयरत्न गुण गाया रे. पजुषण० १५
( 36 ) पर्युषण पर्वनुं स्तवन
प्रभु वीरजिणंद विचारी, भाख्या पर्व पजुषण भारी, आखा वर्षमां ते दिन मोटा, आठे नहीं तेहना छोटा रे, ए उत्तम ने उपकारी. भाख्या० १ जैम औषधिमांहे कहीये, अमृतने सारुं कहीये रे, महामंत्र नवकार वली. भाख्या० २ वृक्षमांहे कल्पतरु सारो, तेम पर्व पजुषण धारो, सूत्र मांहे कल्प भवतारुं. भाख्या० ३ तारा गणमां जेम चंद्र, सुरवरमांहे जेम इन्द्र, सतीओ मां सीता नारी. भाख्या० ४ जो बने तो अठ्ठाई कीजे, वली मासक्षमण तप लीजे, सोल भतानी बलिहारी. भाख्या० ५ नहीं तो चोथ छट्ठ लहीये, अट्ठम करी दुःख सहीये रे, ते प्राणी जूज अवतारी. भाख्या० ६ ते दिवस राखी समता, छोडो मोह माया ने ममता रे, समतारस दिलमां धारी. भाख्या० ७ नव पूर्व तणो सार लावी, जेणे कल्पसूत्र बनावी रे, भद्रबाहु अनुसारी. भाख्या० ८ सोना रूपानां फूलडा भरीये, ए कल्पनी पूजा करीए रे, शास्त्र अनुपम भारी. भाख्या० ६ सुगुरु मुखथी ते सार, सुणे अखंड
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एकवीश वार रे, ए जुवे अष्ट भवे शिव प्यारी. भाख्या० १० गीत गान वाजिंत्र बजावे, प्रभुजीनी आंगी रचावे रे, करे भक्ति वार हजारी भाख्या. भाख्या० ११ एवा अनेक गुणना खाणी, ते पर्व पर्युषण जाणी रे सेवो दान दया मनोहारी. भाख्या० १२
(37) श्री पर्युषण पर्व- स्तवन रीझो रीझो श्री वीर देखी शासनना शिरताज। हरखो हरखो आ मोसम आवी पर्व पर्युषण आज...री० ॥१॥ प्रभुजी देवे पर्षदा मांही, उत्तम शीक्षा एम, आळसमां बहु काळ गुमाव्यो, पर्वन साधो केम...री० ॥२॥ सोनानो रंजकण संभाळे जेम सोनी एक चित्त; तेथी पण आ अवसर अधिको, करो आतम पवित्र...री० ॥३॥ जेनी माटेनिशदिन रखडो, तजी धरमना निम, पाप करोतो शिरपर बोजो, तो व्याजबी कीम...री० ॥४॥ कोईन लेशे भाग पापनो धननो लेशे सर्व; परभव जाता साथ धर्मनो, साधो आ शुभपर्व...री० ॥५॥ संपीने समताए सुणजो, अठ्ठाइ व्याख्यान, छठ करजोश्रीकल्पसूत्रनो, वार्षिक अठ्ठम जाण...री० ॥६॥ निशिथ सूत्रनी चूर्णिमांहे, आलोचना वखणाय, खमीयेहोंशेसर्वजीवने, जीवन निर्मळ थाय...री० ॥७॥ उपकारी श्री प्रभुनी कीजे, पूजा अष्ट प्रकारी, चैत्य जुहारो गुरू वंदीजे, आवष्यक बे काळ...री० ॥८॥ पौषध चोसठ प्रहरी करतां, जाये कर्म जंजाळ; पद्म विजय समता रस झीलो, धर्मे मंगळ माळ...री० ॥६॥
(38) श्री वीरभगवान- २७ भव- स्तवन जंबुद्विपे अपर विदेह, ग्रामाधिप नयसार ॥ श्रावक धर्म आराधी सोहमे, एकपल्य सुर सारेरे ॥ हमचडी, ||१॥ नाम मरिचि भरततणो सुत, मुनि थई थयो त्रिदंडी ॥ लाख चौराशी पूर्व आयुष्ये, बंभलोके सुरमंडीरे ।। हमचडी, ॥२॥ एकलाख पूर्व- जीवित, कोशिक द्विज सुतथयो देवी ।। थुणापुरी ए द्विज लींगी, बहोतेर पूर्वलाख जीवीरे । हमचडी, ॥३॥ सौधर्मे सुर अग्निद्योत, द्विज, चौसठ लाख पूरव आयु, थुणापुरी ए द्विजलींगी छप्पन पूर्वलाख आयुरे ॥ हमचडी, ॥४॥ सनतकुमारे भारद्विजे, चुंमालीश लाख पूर्व आयु, माहेन्द्र सुर तिहांथी बहुभव, अंते त्रिदंडी थायरे ।
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हमचडी, ॥५॥ राजगृहे विश्वभूति नृपति थया, वर्ष कोटि, आयु, वर्ष सहस चारित्र निया' करी, महाशुक्रे जायरे ।। हमचडी, ॥६॥ त्रिपृष्ट नाम हरि पोतनपुरमां, चुमालीसलाखवर्ष आय, सातमी नरके सिंह चतुर्नरके भव भ्रमणबहु थायरे । हमचडी, ॥७॥ महाविदेहे प्रियमित्र चक्री, कोटि वर्षतप करतो, शुक्रे सुरवर तिहांथी भरते, छत्रापुरीमां अवतरतो ॥ हमचडी, ॥८॥ नंदननामे लाखवरसनो, पाली संयमनो भार, लाख अग्यार ऐसी सहसने छसय, पणयाल संभाररे ॥ हमचडी, ॥६॥ मासखमणथी वीस स्थानक साधी, बांधी जिनपद कर्म, प्राणतसुर तिहांथी कुंडनपुर, गर्भे बहु संकमेरे ।। हमचडी, ॥१०॥ क्षत्रियकुंड पुरी सिद्धारथ, नृप त्रिशलादेवी मायरे, हरिलंछन कंचनवान काय, इम सत्तावीश भव थायरे ॥ हमचडी, ॥११॥ वर्धमान महावीर श्रमणए, नाम त्रणे सुखदाई, ज्ञानविमलथी जस शासन, महिमा अविचल उदय सवाईरे ॥ हमचडी, ॥१२॥
(39) पर्युषण पर्वनी सज्झाय पहेला व्याख्याननी पर्वपजुसण आवीया, आनंद अंगे न माय रे; घर घर उत्सव अतिघणा, श्री संघ आवे ने जाय रे. पर्व पर्युषण आवीया. आंकणी. 1१।। जीव अमारी पलावीओ, कीजीओ व्रत पच्चक्खाण रे; भाव धरी गुरु वंदीये, सुणीओ सूत्र वखाण रे. पर्व० ॥२॥ आठ दिवस ओम पालीओ, आरंभनो परिहारो रे; नावण धोवण खांडण, लींपण पीसण वारो रे. पर्व० ॥३॥ शक्ति होय तो पच्चक्खीओ, अठ्ठाइ अति सारो रे; परम भक्ति प्रीति लावीने, साधुने चार आहारो रे. पर्व० ॥४। गाय सोहागण सवि मली, धवल मंगल गीत रे; पकवाने करी पोषीओ, पारणे साहमी मन प्रीत रे. पर्व० ॥५॥ सत्तर भेदी पूजा रची, पूजीओ श्री जिनराय रे; आगळ भावना भावीओ, पातक मल धोवाय रे. पर्व० ॥६।। लोच करावे रे साधुजी, बेसे बेसणा मांडी रे; शिर विलेपन कीजीओ, आळस अंगथी छंडी रे. पर्व० ॥७॥ गजगति चाले चालती, सोहागण नारी ते आवे रे; कुंकुम चंदन गहुंअली, मोतीये चोक पुरावे रे. पर्व० ॥८॥ रुपा म्होर प्रभावना, करीओ तव सुख कारी रे; श्री क्षमाविजय कविरायनो, बुध माणेक विजय जयकारी रे. पर्व० ।।६।।
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(40) प्रथम व्याख्याननी द्वितीय सज्झाय पहेले दिन बहु आदर आणी, कल्पसूत्र घर आणो; कुसुम वस्त्र केसर शुं पूजी, रात्री जगे लीये लाहो रे प्राणी. कल्पसूत्र आराधो, आराधी शिवसुख साधो रे, प्राणी. कल्प० ॥१॥ प्रह उठीने उपाश्रये आवी, पूजी गुरु नव अंगे; वाजिंत्र वाजंता मंगल गावंता, गहुंली दीओ मन रंगे रे. प्रा० क० ॥२॥ मनवच कायाले त्रिकरण शुद्धे, श्री जिनशासन मांहे; सुविहित साधु तणे मुख सुणीये, उत्तम सूत्र उमांही रे. प्रा० क० ॥३॥ गिरिमांहे जेम मेरूवडो गिरि मंत्र मांहे नवकार; वृक्षमाहे कल्पवृक्ष अनुपम, शास्त्रमाहे कल्प सार रे. प्रा० क० ॥४॥ नवमां पुर्वनु दशाश्रुत, अध्ययन आठमुं जेह; चौद पूर्वधर श्री भद्रबाहु, उद्धर्यु श्री कल्प अह रे. प्रा० क० ॥५॥ पहेला मुनि दश कल्प वखाणो, क्षेत्र गुण कह्या तेर; तृतिय रसायण सरीखं ओ सूत्र, पूरवमां नही फेर रे. प्रा० क० ॥६॥ नवसें त्राणुं वर्षे वीरथी, सदा कल्प वखाण; धूवसेन राजा पुत्रनी आरती, आनंद पुर मंडाण रे. प्रा० क० ॥७|| अठ्ठम तप महिमा उपर जे, नागकेतु दृष्टांत; ओतो पीठिका हवे सूत्र वांचना, वीर चरित्र सूणो संत रे. प्रा० क० ॥८॥ जंबूद्विपमां दक्षिण भरते, माहणकुंड सुठाम; अषाढ शुदि छठे प्रभु चविया, सुरलोकथी अभिराम रे. प्रा० क० ॥६॥ रुषभदत्त घरे देवानंदा, कुखे अवतरिया स्वामी; चौद सुपन देखी मन हरखी, पियु आगळ कहे ताम रे. प्रा० क० ॥१०॥ सुपन अर्थ कह्यो सुत होशे, अहवे इंद्रे आलोचे, ब्राह्मण घरे अवतरीया देखी, बेठो सुरपति शोचे रे. प्रा० क० ।।११।। इंद्रे स्तवी उलट आणी, पूरण प्रथम वखाण; मेघ कुमार कथाथी सांजे, कहे बुध माणेक जाणी रे. प्रा० क० ॥१२॥ (41) द्वितिय व्याख्याननी सज्झाय (प्रथम गोवालीया तणे भवेजी)
इंद्र विचारे चित्तमांजी, जे तो अचरिज वात; नीच कुले नाव्या कदाजी, उत्तम पुरुष अवदात. सुगुणनर, जुवो जुवो कर्म प्रधान. कर्म सबल बलवान. सु० जु० ॥१॥ आवे तो जन्मे नहींजी, जिन चक्री हरि राम; उग्रभोज राजन कुलेजी, आवे उत्तम ठाम. सु० जु० ॥२॥ काल अनंते उपनाजी, दश अच्छेरा रे होय; तेणे अच्छे ओ थयुंजी, गर्भ हरण
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दश मांय. सु० जु० ॥३॥ अथवा प्रभु सत्यावीशमांजी, भवमां त्रीजे रे जन्म; मरिचि भव कुलमद कीयोजी, तेथी बांध्यं नीच कर्म. सु० जु० ॥४।। गोत्र कर्म उदये करीजी, माहण कुले उववाय; उत्तम कुले जे अवतरेजी, इंद्रजीत ते थाय. सु० जु० ॥५॥ हरिणगमेषी तेडीने जी, हरि कहे अह विचार; विप्रकुलेथी लेइ प्रभुजी, क्षत्रिय कुले अवतार. सु० जु० ॥६।। राय सिद्धारथ घर भलीजी, राणी त्रिशला देवी; तास कुखे अवतारीयाजी, हरि सेवक ततखेव. सु० जु० ७ गज वृषभादिक सुंदरुजी, चौद सुपन तेणीवार, देखी राणी जेहवांजी, वर्णव्या सूत्रे सार. सु० जु० ॥८॥ वर्णन करी सुपन तणुंजी, मूकी बीजुं वखाण; श्री क्षमाविजय गुरु तणोजी, कहे माणेक गुण खाण. सु० जु० ॥६॥
(42) तृतिय व्याख्याननी सज्झाय देखी सुपन तव जागी राणी, ओ तो, हियडे हेतज आणी रे; प्रभु अर्थ प्रकाशे आंकणी. उठीने पियु पासें ते आवे, कोमल वचने जगावे रे. प्रभु० ॥१॥ कर जोडीने सुपन सुणावे, भूपतिने मन भावे रे. प्रभु० कहे राजा सुण प्राण प्यारी तुम, पुत्र होशे सुखकारी रे. प्रभु० ॥२॥ जाओ सुभगे सुख शय्याओ, शयन करोने सज्झाये रे. रे. प्रभु० निज घर आवी रात्री विहाइ, धर्म कथा कहे बाई रे. प्रभु० ॥३॥ प्रातःसमय थयो सूरज उग्यो, उठ्यो राय उमायो रे. प्रभु० कौटुंबिक नर वेगे बोलावे, सुपन पाठक तेडावे रे. प्रभु० ॥४॥ आव्या पाठक आदर पावे, सुपन अर्थ समजावे रे. प्रभु० द्विज अर्थ प्रकाशे. “आंकणी." जिनवर चक्री जननी पेखे, चौद सुपन सुविशेषेरे. प्रभु० ॥५॥ वसुदेवनी माता सात, चार बळदेवनी मात रे. द्विज० ते माटे जिन चक्रि सारो, होशे पुत्र तुमारो रे. द्विज० ॥६॥ सुपन विचार सुणी पाठकने, संतोषे नृप बहु दान रे. द्विज० सुपन पाठक घे बोलावी, नृप राणी पासे आवी रे रे. द्विज० ॥७॥ सुपन अर्थ कह्यां संखे सुख पामी प्रीया ततखेवे रे. द्विज० गर्भ पोषण करे हवे हर्षे, राणी अं आनंद वर्षे रे. डिज० ॥८॥ पंच विषय सुख रंग विलसे, अब पुर्ण मनो फळशे रे. द्विज० ओटले पुरुं त्रीजुं वखाण, करे माणेक जिन गुणगान द्विज० ॥६॥
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(43) चतुर्थ व्याख्याननी सज्झाय धनद तणे आदेशथी रे, मन मोहना रे लाल; तियक् जुंभक देव रे. जग सोहना रे लाल; राय सिद्धारथने घरे रे. म० वृष्टि करे नित्य मेव रे. ज० ॥१॥ कनक रयण मणि रौप्यनी रे. म० धनकण भूषण पान रे. ज वरसावे फल फुलनी रे, मन मोहनारे लाल, नुतन वस्त्र निधान रे जग सोहनारे लाल० ॥२॥ वाधे दोलत दिन प्रत्ये रे. म० तेणे वर्धमान हेत रे. ज० देशुं नामज तेहगें रे. म० मात पिता संकेत रे. ज० ॥३॥ मातानी भक्ति करी रे. म० निश्चल रह्या प्रभु ताम रे. ज० माता अरति उपनी रे. म० शुं थयुं गर्भने आम रे. ज० ॥४॥ चिंतातुर सहु देखीने रे. म० प्रभु हाल्या तेणीवार रे. ज० हर्ष थयो सहु लोकने रे. म० आनंदमय अपार रे. ज० ॥५॥ उत्तम दोहला उपजे रे. म० देव पूजादिक भाव रे० ज० पूरण थाये ते सहु रे म० पुरव पुण्य प्रभाव रे. ज० ॥६।। नव मास पूरा उपरे. म० दिवस साडा सात रे. ज० उच्च स्थाने ग्रह आवतां रे. म० वाये अनुकुळ वात रे ज० ॥७॥ वसंत ऋतु वन मोरीयां रे. म० जन मन हर्ष न मायरे. ज० चैत्र मास शुदि तेरशे रे. म० जिन जन्म्या आधी रात रे. ज० ॥८॥ अजुआलु तिहुं जग थयुं रे. म० वरत्यो जय जयकार रे. ज० चोथु वखाण पूरण इहां रे. म० बुध माणेक विजय हितकार रे. ज० ॥६॥
(44) पंचम व्याख्याननी सज्झाय जिननो जन्म महोत्सव पहेलो रे, छप्पनदिशि कुमरी वहेलो रे; चोसठ इंद्र मली पछी भावे रे, जिनने मेरु शिखर लइ जावे रे. 19॥ क्षीर समुद्रनां नीर अणावी रे, कनक रजत मणि कुंभ रचावी रे; ओक कोटी साठ लाख भरावे रे, अहवे इंद्रने संदेह आवे रे. ॥२॥ जलधारा केम खमसे बाल रे, तव प्रभु हरिनो संशय टाले रे; अंगुठे करी मेरु हलावे रे, हरि खामीने जिन न्हवरावे रे. ॥३॥ बावना चंदन अंगे लगावे रे, पूजी प्रणमी घरे पधरावे रे; सबल विधानी सिद्धारथ राजा रे, दशदिन उत्सव करी ताजा रे. ॥४॥ कुंकुम हाथा दिये घरबारे रे. वाजा वागे विविध प्रकारे रे; धवल मंगल गोरी गावे रे, स्वजन कुटुंब ते आनंद पावे रे. ॥५॥ पकवान शुं पोषी नात
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रे, नाम धर्यु वर्द्धमान विख्यात रे; चंद्रकला जिम वाधे वीर रे, आठ वरसना थया वड वीर रे. ॥६॥ देव सभामां इंद्र वखाणे रे, मिथ्यादृष्टि सुर नवि माने रे; सापर्नु रुप करी विकराल रे, आव्यो देव बिवराववा बाळ रे. |७|| नांख्यो वीरे हाथे साही रे, बालक रुप करी सुर त्यांही रे; वीरनी साथे आव्यो रमवा रे, जाणी हार्यो सुर ते बळमां रे. ॥८॥ निज खंधोले वीरने चडावे रे. सात ताड प्रमाण ते थावे रे; वीरें मार्यो मुष्टि प्रहार रे, बीनो सुर ते कर्यो पोकार रे. ॥६॥ देव खमावी कहे सुण धीर रे, जगमां महोटो तुं महावीर रे; माता पिता हवे मुहुर्त वारु रे, सुतने महेले भणवा सारु रे. ॥१०॥ आवी इंद्र ते पुछवा लाग्यो रे, वीरे संशय सघळो भाग्यो रे; जैन व्याकरण तिहां होवे रे, पंड्यो उभो आगळ जोवे रे. ॥११॥ मतिश्रुत अवधिज्ञाने पूरा रे, संयम क्षमा तपें शूरा रे; अति आग्रहथी परण्या नारी रे, सुख भोगवे तेह शुं संसारी रे. ॥१२॥ नंदि वर्धन भाई वडेरो रे, व्हेनी सुदंसणा बहु सुख दायी रे; सुरलोके पहोंता माय ने ताय रे, पूर्ण अभिग्रह वीरनो थाय रे. ॥१३॥ देव लोकांतिक समय जणावे रे, दान संवत्सरी देवा मंडावे रे; मागशिर वदि दशमि व्रत लीनो रे, तीव्र भावथी लोच तव कीनो रे. ॥१४॥ देश विदेशे करे विहार रे, सहे उपसर्ग सबळ उदार रे; पुरुं पांचमुं वखाण ते आंही रे, बुध माणेक विजय उमांहि रे. ॥१५।।
(45) पष्ठ व्याख्याननी सज्झाय चारित्र लेता खंधे मुकयु, देवदुष्य सुरनाथे जी; अधु तेहने आप्यु प्रभुजी; ब्राह्मणने निज हाथे जी. ॥१॥ विहार करंतां कांटे वलग्युं, बीजु अर्द्ध ते चैल जी; तेर मास सचैलक रहिया, पछे कहीयें अचैल जी. ॥२॥ पन्नर दिवस रही तापस आश्रमें, स्वामी प्रथम चोमासें जी; अस्थिग्रामे पहोतां जगगुरु, शुल पाणीनी पासें जी. ॥३॥ कष्ट स्वभाव व्यंतर तेणे कीधा, उपसर्ग अति घोर जी; सही परिसह ते प्रतिबोधी, मारी निवारी जोर जी. ॥४॥ मोराक गामे काउस्सग्ग प्रभुजी, तापस तिहां कर भेदी जी; अहच्छंदकनुं मान उतार्यु, इंद्रे आंगुली छेदी जी. ॥५॥ कनक बले कौशिक विषधर, परमेश्वर पडिबोह्यो जी; धवल रुधिर देखी जिन देहे, जाति समरण सोह्यो जी. ॥६॥ सिह देव जीवे कियो परिषह, गंगा नदी उतारे जी; नावने
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मज्जन करतो देखी, कंबल संबल निवारे जी. ।।७।। धर्माचार्य नामे मंखली, पुत्रं परिगल ज्वाला जी; तेजो लेश्या मूकी प्रभुने, तेहने जिवित दान आल्यां जी. ॥८॥ वासुदेव भवें पूतना राणी, व्यंतरी तापस रुपे जी; जटा भरी जल छांटे प्रभुने, तो पण ध्यान स्वरुपे जी. ॥६॥ इंद्र प्रशंसा अण मानते संगमें, सुरे बहु दुःख दीधां जी; लेक रात्रीमा वीस उपसर्ग, कठोर निठोर तेणे कीधा जी. ॥१०॥ छमासवाडा पूंठे पडियो, आहार असुझतो करतो जी; निश्चल ध्यान निहाली प्रभुनु, नाठो कर्मथी डरतो जी. ॥११॥ हजी कर्म अघोर ते जाणी, मने अभीग्रह धारे जी; चंदन बाला अडदने बाकुले, षट्मासी तप पारे जी. ॥१२॥ पूरव भव वैरी गोवाले, काने खीला ठोक्या जी; खरक वैयें खेंची काढ्या, इणीपेरें सहु कर्म रोकयां जी. ॥१३॥ बार वर्ष सहेतां इम परिसह, वैशाख शुदि दिन दशमी जी; केवल ज्ञान उपन्यु प्रभुने, वारी चिहुं गति विषमी जी. ॥१४॥ समोसरण तिहां देवे रचियुं, बेठा त्रिभुवन इश जी; शोभिता अतिशय चोत्रिशें, वाणी गुण पांत्रीश जी. ।१५।। गौतम प्रमुख अकादश गणधर, चौद सहस मुनिराया जी; साधवी छत्रीस सहस अनोपम, दीठे दुर्गति जाय जी. ॥१६॥ अक लाख ने सहस ओगणसाठ, श्रावक समकित धारी जी; त्रण लाख ने सहस अढारशें, श्राविका सोहे सारीजी. ॥१७॥ स्वामी चउविह संघ अनुक्रमे, पावा पुरी पाय धारे जी; कार्तिक वदि अमावस्या दिवसे, पहोता मुक्ति मोझार जी. ॥१८॥ पर्व दीवाली तिहांथी प्रगट्युं, कीधो दीप उद्योत जी; राय मलीने तिणे प्रभाते, गौतम केवल होत जी. ॥१६॥ ते श्री गौतम नाम जपंतां, होवे मंगल मालजी; वीर मुक्ते गयाथी नवशें, अंशी वरसे सिद्धांत जी. ।२०।। श्री क्षमा विजय शिष्य बुध माणेक कहे, सांभलो श्रोता सुजाण जी; (कल्पसूत्रनी पुस्तक रचना देवर्धि कीधी जी) चरम जिणेसर तव मे चरित्रे, मूक्युं छठु वखाण जी. ॥२१॥
(46) षष्ठ द्वितीय व्याख्यान सज्झाय काशी देश बनारसी सुखकारी रे, अश्वसेन राजन प्रभु उपकारी रे; पट्टराणी वामा सती सु० रुपे रंभा समान प्रभु० ॥१॥ चौद सुपन सुचित भला, स० जन्म्या पासकुमार; प्रभु० पोष वदी दशमी दिने, सु० सुर करे
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यदि चोयने समेत
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उत्सव सार. प्रभु० ॥२॥ देहमान नव हाथर्नु, सु० नील वरण मनोहार; प्रभु० अनुक्रमे जोबन पामीया, सु० परणी प्रभावती नार. प्रभु० ॥३।। कमठ तणो मद गालीयो, सु० काढ्यो जलतो नाग; प्रभु० नवकार सुणावी ते कीयो, सु० धरण राय महाभाग. प्रभु० ॥४॥ पोष वदि अकादशी, सु० व्रत लेइ विचरे स्वाम; प्रभु० वडतलें काउस्सग्गे रह्यां, सुख० मेघमाली सुर ताम. प्रभु० ॥५॥ करे उपसर्ग जलवृष्टिनो, सुख० आव्युं नासिका नीर; प्रभु० चूकया नहीं प्रभु ध्यानथी, सु० समरथ साहस धीर प्रभु० ॥६।। चैत्र वदि चोथने दिने, सु० पाम्या केवल नाण; प्रभु० चउविह संघ थापी करी, सु० आव्या समेत गिरि ठाण. प्रभु० ॥७॥ पाली आयु सो वर्षमुं, सु० पहोंता मुक्ति महंत; प्रभु० श्रावण शुदि दिन अष्टमी, सु० किधो कर्मनी
अंत. प्रभु० ॥८॥ पास वीरने आंतरं, सु० वर्ष अढीशे जाण; प्रभु० कहे माणेक जिनदासने सु० कीजे कोटी कल्याण. प्रभु० ॥६॥ (47) सातमुं व्याख्यान सज्झाय (राग : अमी भरेली नजरू राखो) ___ सौरीपुर समुद्र विजय घरे, शिवादेवी कुखे सारो रे; कार्तिक वदि बारश दिने, अवतर्या नेम कुमारो रे, जयो जयो जिन बावीशमो. ॥१॥ चौद स्वप्न राणीयें पेखियां, करवो स्वप्न तणो विचार रे; श्रावण शुदि दिन पंचमी, प्रभु जन्म्या हुओ जयकार रे. जयो० ॥२॥ सुरगिरि उत्सव सुर करे, जिनचंद्र कला जिम वाधे रे; अेक दिन रमता रंगमां, हरि आयुध सघला साधे रे. जयो० ॥३॥ खबर सुणी हरि शंकिया, प्रभु लघुवय थकी ब्रह्मचारी रे; बलवंत जाणी जिनने, विवाह मनावे मुरारी रे. जयो० ॥४॥ जान लेइ जादव आग्रहें, जिन आव्या तोरण बार रे; उग्रसेन घर आंगणे, तव सुणीयो पशु पोकार रे. जयो० ॥५।। करुणा निधि रथ फेरव्यो, नवि मान्यो कहेण केहनो रे; राजुलने खटके घj, नव भवनो स्नेह छे जेहनो रे. जयो० ॥६॥ दान देइ संयम लीधो, श्रावण छठ्ठ अजुआली रे; चोपन दिन छद्मस्थ रही, लडं केवल कर्मने गाली रे. जयो० ॥७॥ आसो वदि अमावसें, दे देशना प्रभुजी सारी रे; प्रति बोध पामी व्रत लियो, रहनेमि राजुल नारी रे. जयो० ॥८॥ आषाढ शुदि दिन अष्टमी, प्रभु पाम्या पद निर्वाणो रे; रैवत गिरिवर उपरे, मध्य रात्रिये ते मन आणो रे. जयो० ॥६॥ श्री पार्थनाथ थया पहेला, कयारे नेम थया निरधारो रे; साडा
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सातसें ब्यासी हजार वरसओ, चित्तमांहे चतुर विचारो रे. जयो० ॥१०॥ सहुको जिनना आंतरा, मन देइ मुनिवर वांचे रे; इहां पुरण व्याख्यान सातमु, सुणी पुण्य भंडारने सांचे रे. जयो० ॥११॥ (48) अष्टम व्याख्याननी सज्झाय (आजनो दिवस मने लागे बहु)
इक्ष्वाकु भूमी नाभि कुलघर घरे जी, सोहे मरुदेव तस नार रे; अषाढ वदि सुरलोकथी चवी रे, अवतरीया जग सुख कार रे, प्रणमो भविजन आदि जिणेसरु रे. आंकणी० ॥१॥ गज वृषभादिक चौद सुहणे जी, दीठां माडिये माझम रात रे; सुपन अर्थ कहे नाभि कुलगरुजी, होशे नंदन वीर विख्यात रे. प्र० ॥२॥ चैत्र अंधारी आठमे जनमियाजी, सुरमली उत्सव सुर गिरिकीध रे; दीठो वृषभ ते पेले सुपनेंजी, तेणे करी नाम रुषभ ते दीध रे. प्र० ॥३॥ वाधे रुषभजी कल्प वेलि ज्युं रे, दर्शन दीठे सकल समृद्धि रे; बालक रुप करीने देवता जी, खेले जिन साथे हित वृद्धि रे. प्र० ॥४॥ कुमरी सुनंदा बीजी सुमंगलाजी, जिनने परणावी हरि आय रे; बालक रुप करीने देवताजी, खेले जिन साथे हित वृद्धि रे. प्र० ॥५॥ कुमरी सुनंदा बीजी सुमंगलाजी, जिननें परणावी हरि आय रे; थापी अयोध्या नगरी वसावीने रे, थापी राजनीति तिण ठाय रे. प्र० ॥६॥ रीति प्रकाशी सघली विश्वनी रे, कियो असी मषी कृषी व्यवहार रे; अकसो वीस नरनारी कला रे; प्रभुजी युगला धर्म निवार रे. प्र० ॥७॥ भरतादिक शत पुत्र सोहामणां रे, बेटी ब्राह्मी सुंदरी सार रे; लाख व्यासी पूरव गृहिपणे जी, भोगवी भोग मनोहार रे. प्र० ॥८॥ देव लोकांतिक समय जणावियो रे, जिननो दीक्षानो व्यवहार रे; ओक कोटी आठ लाख सोवन दिन प्रत्ये, देइ वरसीदान उदार रे. प्र० ॥६॥ चैत्र अंधारी आठम आदर्यो रे, संयम मुष्टियें करी लोच रे; श्रेयांसकुमर घरे वरसी पारगुंजी, कीधुं इक्षुरसे चित्त साच रे. प्र० ॥१०॥ सहस्त्र वर्ष लगे छद्मस्थ पणेरह्या जी; पछी पाम्या केवलज्ञान रे; फागुण अंधारी अग्यारस दिने जी, सुर करे समवसरण मंडाण रे. प्र० ॥११॥ त्यां बेसी प्रभु धर्म देशना रे, साहमी ने सुणे पर्षदा बार रे; प्रतिबोधणा केइ व्रत ग्रहे जी, केइ श्रावकनां व्रत बार रे. प्र० ॥१२॥ थाप्या चोराशी गणधर गुणनिलाजी, मुनिवर मान चोराशी हजार रे; साधवी त्रण लाख श्रावक
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अटलाजी, उपर पांच सहस अवधार रे. प्र० ॥१३॥ पांच लाख चोपन सहस श्राविकाजी, थापी चउविह संघ सुजाण रे; महावदि तेरसे मुक्ते पधारियाजी, बुध माणेक नमे सुविहाण रे. प्र० ॥१४॥ वांचे विस्तारें मुनिवरा वलीजी; मूकयुं आठमुं वखाण इण ठाम रे; बुध श्री क्षमाविजय गुरु तणोजी. करे माणेक मुनि गुण ग्राम रे. प्र० ॥१५॥
(49) नवमा व्याख्याननी सज्झाय संवत्सरी दिन सांभलो ओ, बारसा सूत्र सुजाण; सफल दिन आजनोओ; श्रीफलनी प्रभावनाओ, रुपा नाणुं जाण. स० ॥१॥ सामाचारी चित्त धरोओ, साधु तणो आचार; स० नाना मोटा खामणां अ, खामो सहु नर नार. स० ॥२॥ रीष वसे मन दुषणां , राखी खमावे जेह; स० कोयुं पान जिम काढवू ओ, संघ बाहेर सहि तेह. स० ॥३॥ गलित वृषभ वधकारकु ओ, निर्दय जाणी विप्र; स० पंक्ति बाहिर ते कह्यो ओ. जिम महा स्थाने क्षिप्र; स०॥४॥ चंदनबाला मृगावती मे, जेम खमाव्युं तेम; सं० चंडप्रद्योतनरायने ओ, उदायन खमाव्यु जेम. स० ॥५॥ कुंभार शिष्यनी परे ओ, तिम न खमवो जेम; स० बार बोले पट्टावली ओ, सुणतां वाधे प्रेम. स० ॥६।। पडिक्कमणुं संवत्सरी ओ, करीयें स्थिर करी चित्त; स० दान संवत्सरी देईने ओ, लीजे लाहो नित. स० ॥७॥ चउविह संघ संतोषियें ओ, भक्ति करी भलि भ्रांति; स० इणीपरे पर्व पजुसणा , खरचो लक्ष्मी अनंत. सं० ॥८॥ जिनवर पूजा रचावियें ओ, भक्ति मुक्ति सुख दाय; स० क्षमाविजय पंडित तणो ओ, बुध माणेक मन भाय स० ॥६॥ (50) पर्युषण पर्वनी सज्झाय (राग : आवो आवो देव मारा)
पिता मित्र तापस मल्योजी, बांय पसारी आय; कहे चोमासु पधारजोजी, माने प्रभु ओम ताय. चउनाणी वीरजी भूतल करे रे विहार. ॥१॥ दिव्य चुर्ण वासे करेजी, भमरा पण विलगंत; कामी जन अनुकूलथीजी, आलिंगन दीयंत. चउ० ॥२॥ मित्र द्विज आवी मल्योजी, चीवर दीधो अर्ध; आव्या तास विवडलेजी, चोमांसे निराबाध. चउ० ॥३॥ अप्रीति लही अभिग्रह धरीजी, ओक पख करी विचरंत; शुलपाणी सुर
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बोधीओजी, उपसर्ग सही अत्यंत. चउ० ॥४॥ मुहूर्त मात्र निद्रा लहेजी, सुहणां दश देखंत; उत्पल नाम नीमीत्तीयोजी, अर्थ कहे अम तंत. चउ० ॥५॥ ताल पीशाच हण्यो जे पहेलो, ते हणशो तुमे मोह; शीत पंखी दल ध्यायसोजी, शुक्लध्यान अक्षोभ. चउ० ॥६॥ विचित्र पंखी पेखीओजी, ते कहेशो दुवालस अंग; गोवर्ग सेवित फल थापशोजी, अनोपम चउविह संघ चउ० ॥७॥ चउविध सुर सेवित हशोजी, पद्म सरोवर दीठ; मेरु आरोहणथी होयसेजी, सुर सिंहासन इठ. चउ० ॥८॥ जे सुरज मंडळ देखीयुंजी, ते होशे केवल नाण; मानुषोत्तर अंतर वीटीयोजी, ते जगकीर्ति मंडाण. चउ० ॥६।। जलधि तरण फळ ओ होंशेजी, ते तरशो संसार; युग माल फळ नवी लहुंजी, ते कहो करी उपगार. चउ० ।।१०।। कहे प्रभु ते फल तेहवोजी, धर्म दुविध कहुं संत; प्रथम चोमासुं तिहां करीजी, विचरे समतावंत. चउ० ॥११॥ उतरतां गंगा नदीजी, सुरकृत सहे उपसर्ग; संबल कंबले वारीओजी, पूर्व भवे गोवर्ग. चउ० ॥१२॥ चडकोशियो सुर कीयोजी, पूर्वे भिक्षु चारित्र; सींची नयनसुं ध्यान धरेजी; हवे मल्यो ब्राह्मण पुत्र. चउ० ॥१४।। संगम सुर अधमे को जी, बहु उपसर्ग सहंत; देश अनारज संचर्याजी, जाणी करम महंत. चउ० ॥१५॥ व्यंतरीकृत सहे शीतथीजी, लोकावधि लहे नाण; पूर्व कृत कर्मे नड्यांजी, जेहनां नही परमाण. चउ० ।।१६।। चमरो शरणे राखीओजी, सुसुमार पुरी धरी ध्यान; अनुक्रमे चंदन बालिकाजी, प्रतिलाभे भगवान. चउ० ॥१७|| काने खीला घालीयाजी, गोप करे घोर कर्म; वैद्ये तो वली उगारीयाजी, सही वेदन अति मर्म. चउ० ॥१८॥ साडा बार वरस लगेजी, कर्म कर्या सवी जेर; चउविहार तप जाणवोजी, नीत काउस्सग्ग जीम मेर. चउ० ।।१६।। हवे तप संकलना कहुंजी, जे कीधा जिनराय; बेठा ते कदीओ नहीजी, गाय दुहीकासन काय. चउ० ॥२०॥
(51) चंपा श्राविकानी सज्झाय वासी दिल्ही रे नयरना, थानसिंग मानसिंग रिद्ध रे; माता चंपादे तेहनी, तपस्या छ मासी कीध रे. थें मन मोह्यो गुरु हीरजी. ॥१॥ अक दिन फुलेको निसर्यो, बाई चंपादे मात रे; साहमी अवसारी आवीयो, अकबर शाह सुगात रे. थें० ॥२॥ पूछे ओ कौन लोक छे. श्यो छे ?
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महोत्सव अह रे; बोले कामेति शेठीया, हजरत सुनिई सनेह रे. थे० ॥३।। रोजा धरीया छ मासनां, बाई चंपादे मात रे; तेहनो फुलेको अह छे, ओ सहु रोजा इतमाम रे. थे० ॥४॥ अकबर शाह सुणी बोलीयो, ओह मे अधिकाई कांई रे; बालक नाना रोजा धरे, महिना रमजान मांही रे. थे० ॥५।। बोले कामेती शेठीया, उन्हा पाणी उपवास रे; अहवा रोजा छे अहना, अन्न न लेवु छ मास रे. थे० ॥६॥ चमकयो अकबर सांभळी, आव्यो चंपादे पास रे; देख्यो दुरबल देहने, पूछे अकबर तास रे. थें० ॥७॥ बोले चंपादे मावडी, देवगुरु धर्म पसाय रे; रोजा धरीया रे साहिबा, ते सहु तेहने सुपसाय रे. थें० ॥८॥ ते गुरु शहेर गंधार छे, सपरिवार चौमास रे; निसुणी अकबर रीझीयो, हुवो मलवा उल्लास रे. थें० ॥६॥ अकबर फरमान मोकले, हिरजी वांचीने जोय रे; वहेला आज्यों गच्छरायजी, विलंब न कीजे कोय रे. थे० ।।१०।। कार्तिक चोमासुं उतरे, सूरि हीर निग्रंथ रे; सहु परिवार शुं पांगर्या, चलीया दील्हीने पंथ रे. थे० ॥११॥ दूर देशांतर जाणीने, राजनगर शुभ ठाम रे; पट्टधर थाप्यो रे प्रेमशुं, सेन सूरि वड नाम रे. थें० ।।१२।। पालनपुरनी आगले, रोह सरोत्तरा गाम रे; ठाकोर आहेडे आवीयो, अहने बोल्यो गुण धाम रे. थे० ॥१३॥ अणीपरे पंथे रे आवता, करतां भवि उपगार रे; आग्रा नयर पधारीया, वंदे बहु नरनार रे. थे० ॥१४॥ मालम हुइ पात शाह ने, हुओ उलसित अंग रे; संवत गुण च्याल में, जेठ वदि तेरस रंग रे. थें० ॥१५॥ परीक्षा जोवाने कारणे, भूमि खाणी तेह मांही रे; बकरी घाली रे जीवती, उपर आसन थाय रे. थे० ॥१६॥ गुरुने मलवा बोलावीया, दीधो गुरु उपयोग रे; ओ आसन नही अम कामनो, माहे सचित्त संजोग रे. थे० ॥१७|| अ आसन तले मोटका, तिन पंचेन्द्रिय जीव रे; अकबर मन मांही चिंतवे, पुरा समजु नहि सोय रे. थें० ॥१८॥ चिंतवी भोयरुं उघाडीयुं, बकरी जोवाने काज रे; बालक दोय ने मावडी, दीठो त्रणेनो साज रे. थें० ॥१६॥ अकबर शाह मन चिंतवे, प्रत्यक्ष परवरदिगार रे; प्रणमें पद गच्छरायनां, धर्म श्रवण मन धार रे. थें० ॥२०।। ओक प्रहर लगे शाहने, उपदेशे सूरिराय रे; हिंसा पातिक सांभली, परिणती कुणेरी थाय रे. थें ॥२१॥ अरज करे सुलतानजी, निस्पृह थे सूरिराय रे; धन मणी कंचन ल्यो नही, मुज प्रार्थन कुण काज रे. थे० ॥२२॥ पुस्तक तुम चारे
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धर्मना, वहोरे श्री गच्छराय रे; शाह वचनथी रे वहोरीयां, पुस्तक श्री श्रुत राज रे. थें० ॥२३॥ आग्रा शहेरना संघने, उपदेश्यो सूरिराय रे; प्रथम चोमासुंजी तिहां रह्यां, जाणी धर्म सनेह रे. थें० ॥२४॥ आग्रा नगर भंडारमें, पुस्तक ठवीयां छे ओह रे; दीपविजय कविराज जी, हीर सूरि महाराज रे. थे० ॥२५॥ (52) तपगच्छ नभोमणि परमपूज्य पं० मणिविजयजीना शिष्यरत्न ज्योतिषशिरोमणी पद्मवि० म०नी सज्झाय
देव समा गुरु पद्मविजयजी, सबही गुणे पुरा, शुद्ध प्ररूपक समता धारी, कोई वाते नही अधुरा; मुनिवर लीजे वंदना हमारी, गुरू दर्शन सुखकारी। मुनि० १ संवत अढार छासठनी साले, ओसवाल कुळे आव्या; गाम भरूडीए शुभ लग्ने, माता रूपाबाई जाया। मुनि० २ सत्तर वर्षना रवि गुरु पासे; हुआ यति वेषधारी; गुरू विनये गीतारथ थया, चंद्र जेसा शीतल कारी। मुनि० ३ संवत ओगणीश अगियारसनी साले, संवेग रसगुण पीधो; रूपे रूडा ज्ञाने पुरा, जिन शासन डंको दीधो। मनि० ४ संवत ओगणी चोवीसनी साले, छेदोपस्थान कीधो; महाराज मणिविजय नामनो, वासक्षेप शीर लीधो। मुनि० ५ दिनदिन अधिक संवेग रंगे, काम कषाय निवारी; धर्म उपदेशे बहु जीव तारी, ज्ञान क्रिया गुण धारी। मुनि० ६ संवत ओगणीसो साडत्रीस, वैसाख सुदी अगियारस राते; गामे पलासवां काल धर्म कीधो, जीन नमे नित्य प्रते। मुनि० ७ (53) प० पू० जीतविजयजी महाराज० सा०
(दादागुरुदेवश्री)नी० सज्झाय समतां गुणे करी शोभतां रे, जीत विजयजी महाराय; तेहना गुणो गातां थकां रे, आतम निर्मल थाय रे भवियण वंदो मुनिवर एह, जेम थाये भवोदधि छेह रे भ०॥१॥ कच्छ देशमां दींपतु रे, मनफरा नामे गाम; भविक कज विकासतुं रे, जीहां शांति जिन धाम रे भ०॥२॥ संवत अढार छर्नु ए रे, एम उज्वल बीज सार; माता अवलबाइए जनमीयां रे, वो जयजयकार रे भ०॥३॥ बार वर्षना जब थया रे, नेत्र पीडा तब थाय; सोळ वर्षनी
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वयमां रे, द्रव्य लोचन अवराय रे भ०॥४॥ ज्ञान लोचन प्रकाशथी रे, अभिग्रह धरे सुजाण; जो नेत्र पडल दूरे थशे रे, संयम लेशु सुख खाण रे भ०।।५।। दृढ अभिग्रह प्रभावथी रे, मनवंछित सिद्ध थाय; संवत ओगणीश पंदरमा रे, चक्षु दर्शन शुद्ध थाय रे भ०॥६॥ संवत ओगणीश वीशमां रे, श्री सिद्ध क्षेत्र मोझार; तीर्थपतिनी समक्षमां रे, उचरे चतुर्थ व्रत सार रे भ० ॥७॥ चढते संवेग रंगथी रे, आव्या आडीसर गाम; गुरू गुणवंता वखाणीये रे, पद्मविजयजी नाम रे भ०॥८॥ तेहनी पासे संयम लीये रे, ओगणीसो पचीस मोझार; वैशाख अक्षय त्रीज भली रे, शुभ मुहूर्त शुभ वार रे भ०॥६॥ संयम लइ आनंदथी रे, करे गुरू साथ विहार; विहार करी शुभ भावथी रे, आगम भणे सुखकार रे भ०॥१०॥ अनुक्रमे सूत्र धारतां रे, मूल अर्थ विस्तार रे; एम पीस्तालीस सूत्रनारे, जाण थयां निरधार रे भ०॥११॥ संवत ओगणीस अडत्रीशे रे, गुरू सिधाव्या परलोक; पछी विचरी प्रतिबोधीया रे, अनेक देशनां लोक रे भ०।१२।। कच्छ काठियावाड भलो रे, सोरठ गुजरात सार; मेवाड मारवाड तेम सही रे, थरादरी वढीआर रे भ०॥१३॥ ज्ञान क्रिया उपदेशता रे, मधुर वचने मनोहार; दृष्टांत बहु दर्शावी ने रे, समजावे धर्म सार रे भ०॥१४॥ तेह देशना सांभली रे, दीक्षा केइ भव्य लीध; केइक देशविरति ग्रहे रे, समकित केइ प्रसिद्ध रे भ०॥१६॥ निर्मल भावना भावतां रे, संवेगी शिरदार; काम कषायने जीपता रे, निर्मम निरहंकार रे भ०॥१६।। तपसीने व्याधि थयो रे, दुर्बळ थयुं निज देह; तोपण द्रढ श्रद्धा थकी रे, तप नवी मूके जेह रे भ०।।१७।। चोपन वर्ष एम चोपथी रे, कीधो पर उपगार; अखंड चारित्र पालीने रे, सफल कर्यो अवतार रे भ०॥१८॥ पंचावननां वर्ष मांहे, अधिक व्याधि थयो जाम; आतम बल आगल धरी रे, धरतां सिद्धनुं ध्यान रे भ०।।१६। संवत ओगणीश ऐंशीये रे, अषाढ कृष्ण छठ्ठ धार; शुक्रवारे सिधावीया रे, परलोक पलांसवा मझार रे भ० ॥२०॥ तेहनी भक्ति पूरे भर्या रे, हीर विजयजी गुण गेह; शिष्य कनक कहे भवि तुमे रे, गुरू पद नमो ससनेह रे भ०॥२१॥ (54) (स्व) श्री कनक सूरीश्वरजी म० सा०नी सज्झाय (दोहा) श्री शंखेश्वर साहिबा, पुरिसादाणी पास; प्रणमी गुरू गुण वर्णवू,
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545 मुज मन पूरो आश १ श्रुत देवी सानिध्यथी, उपकारी गुरूराय; गुण गाउं उल्लासथी, मनमां हर्ष न माय २
(ढाळ--१) (राग : आजे आव्या ने काले आवशुं रे) जंबूद्वीप सोहामणो रे लाल, सकलद्वीप शणगार रे; भविकजन० भावधरी नित्य सांभळो रे लाल, सांभळतां सुख थाय रे भ०॥१॥ तेहना दक्षिण भरतमां रे लाल, आर्यदेश मनोहार रे; भ० तेहमां कल्पतरू समो रे लाल, कच्छ देश सुखकार रे, भ०॥२॥ तेहना पूर्व विभागमां रे लाल, पवित्र पलांसवा गाम रे; भ० कच्छ वागड भूषण समो रे लाल, गुणवंतोनुं गुण धाम रे, भ०॥३॥ पूर्वे पण केइ जनमीया रे लाल, पून्यवंत तेणे ठाम रे; भ० संयम लइ शुभ भावथी रे लाल, राख्या जगमां नाम रे भ०॥४॥ श्रद्धावंत तिहां वसे रे लाल, श्रावक कुल अभिराम रे; भ० भविककज विकसावतुं रे लाल, जिहां शांति जिन धाम रे भ०॥५॥ श्रेष्टी जनमां शोभतां रे लाल, चंदुरा नानचंद नाम रे; भ० तेहना गृहदेवी भला रे लाल, नवलबाइ गुणधाम रे भ०॥६॥ संवत
ओगणीसो गुण चालीशे रे लाल, भादरवा पुन्य निधान रे; भ० तेहमां वदि पांचम भली रे लाल, जन्म्या सुगुण सुजाण रे भ०॥७॥ उत्तम लक्षण शोभता रे लाल, चंदुरा कुल चंद रे; भ० रन निधान प्राप्ति समो रे लाल, सहने अति आनंद रे भ०॥८॥ मातापिताए उत्साहथी रे लाल, कानजी दीए शुभ नाम रे; भ० उज्वल बीजना चंद्र समा रे लाल, वधता ते गुण धाम रे, भ०॥६॥ देशी शिक्षण पामता रे लाल, न्याय निति र व्यवहार रे; भ० कानमां समकित वाहीओ रे लाल, धरता धर्म शुं प्यार रे भ०॥१०॥ देवगुरूनी सेवा करे रे लाल, मोहनो करे परिहार रे; भ० वैराग्ये मन वासीयो रे लाल, जाण्यो अथिर संसार रे, भ०॥११॥ शास्त्र सिद्धांत रूची घणी रे लाल, भणता धर्मनो सार रे; भ० ज्ञान क्रियाए शोभता रे लाल, ब्रह्मचारी शिरदार रे, भ०॥१२॥ दादाबिरूदे बिराजता रे लाल, जित विजयजी गुरुराज रे; भ० तास शिष्य हीरविजय गणी रे लाल, मुनिजनमां शिरताज रे, भ०॥१३॥ संवत ओगणीस बासठे रे लाल, पुनम मागसिर मास रे; भ० अमृत सिद्धि योगमां रे लाल, चारित्र लीये उल्लास रे भ० भा०।।१४।। दादा वरद हस्ते दीक्षा रे लाल, हीरविजयजी गुरूनाम रे; भ०
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किर्ती विजयजी नामथी रे लाल, मुनि थया भीमासर गाम रे भ० भा०॥१५॥ छेदोपस्थापनाए ते थया रे लाल, कनक विजयजी नाम रे; भ० कच्छमां कनक मणि समा रे लाल, सर्व गुणोना धाम रे भ० भा०॥१६।। अनुक्रमे योग वहन करी रे लाल, आगम वाचना लीध रे; भ० छोत्तेर कार्तिक वद पंचमी रे लाल, पंन्यास पदवी प्रसिद्ध रे भ० भा० ।।१७।। आचार्य सिद्धि सूरिश्वरा रे लाल, श्री सिद्धक्षेत्र मोझार रे; भ० संघ समस्त पदवी दीए रे लाल, वरत्यो जय जय कार रे भ० भा०॥१८॥ पूर्व वृत्तांत प्रमोदथी रे लाल, तेहनी पहेली ढाळ रे; भ० सावधान थइ सांभळो रे लाल, हवे सुंदर सुगुण रसाल रे भ० भा०॥१६॥
(ढाळ २) गीतारथ पद पामीने जी, करता भवि उपकार; पाठक पद पंच्यासीए जी मल्लिनाथ दरबार, सूरिश्वर धन्य धन्य तुम अवतार ।।१।। उज्वळ एकादशी माघनीजी, भोयणी तीर्थ मोझार; उपाध्याय उमंगथी जी, देशना दीये मनोहार सूरी धन्य० ॥२॥ ज्ञान क्रिया उपदेशता जी, मधुर अर्थ सुखकार; भव्य जीवोना हित भणीजी, समजावे धर्मनो सार सूरी० धन्य० ॥३॥ तेह देशना सांभळीजी, दीक्षा केइ भव्य लीध; देशविरति केइ थया जी, समकित केइ प्रसिद्ध सूरी० धन्य०॥४॥ ग्रामानुं ग्राम विचरतां जी, राजनगर पावन कीध; संघ मळी महोत्सव कीयो जी, सूरीपद तिहां दीध सूरी० धन्य०॥५॥ नेव्यासी पोष वद सातमेजी, सिद्धि सूरीश्वर राय; पटधर मेघ सूरीश्वरजी कर्या जी, विजय कनकसूरी राय सूरी० धन्य०॥६।। शम दम रस सायर समाजी, शासनना शणगार रे; जंगम कल्प तरू समाजी, भविजनना आधार सूरी० धन्य०॥७|| शासन प्रभावना बह करेजी, प्रतिष्ठा उपधान; उद्यापन दीक्षा घणीजी, आगम वाचना पान सूरी० धन्य०॥८॥ छरी पालता संघ घणाजी, देशनो को उद्धार; काम कषायने जीतवाजी, निर्मम निरहंकार सूरी० धन्य०॥६॥ अष्ट प्रवचन मातशुंजी, वरस अठ्ठावन जाण; समता भावे आतमाजी, निर्मळ करे गुणखाण सूरी० धन्य०॥१०॥ संवत बे हजार थीजी, ओगणीश उपर थाय; श्रावण वद शुभ चोथनेजी, पन्नर धर कहेवाय सूरी० धन्य० ॥११॥ कच्छ वागड भूषण समोजी, भचाउ नामे गाम; शुक्रवारे सिधावीयाजी, सूरीश्वर सूरधाम सूरी० धन्य० ॥१२॥
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संघ चतुर्विध ते समोजी, संबल दीयेरे तास; ते संख्या हवे वर्णकुंजी, यात्रा स्वाध्याय उपवास सूरी० धन्य० ॥१३॥ अट्टाइचोत्रीस भत्त भलीजी, छमासी वरसी तप सार; सत्तपिस्तालीस तोत्तेर भलाजी, उपवास संख्या धार सूरी० धन्य० ॥१४॥ बेहजार चुमोत्तेर भलाजी, आंबिल संख्या जाण; साथीया अढार हजार भलाजी, एकासणा प्रमाण सूरी० धन्य०॥१५॥ बेहजार चुमोत्तेर भलाजी, बीआसणा तप जाण; बसो बार निवि भलीजी, तप संख्या प्रमाण सूरी० धन्य० ॥१६॥ नवाणुं यात्रा सोळ भलीजी, स्वाध्याय तप बे क्रोड; चोपन हजार पांचसेजी, सामायिकनी जोड सूरी० धन्य०॥१७।। नूतन अभ्यास मौन वलीजी, बीजा अनेक प्रकार; ते सर्वे गणी लेखं करेजी, तो लखतां नावे पार सूरी० धन्य०॥१८॥ स्मशांन यात्रामां भलीजी, सद्ग्रहस्थोए कर्यो विचार; शुभ मार्गे रोकड करीजी, साडा अग्यार हजार सूरी० धन्य०॥१६॥ सूरीश्वरना गुण वर्णव्याजी, तेहनी बीजी रे ढाळ; भणशे सुणशे भावथीजी, तसघर मंगल माल सूरी० धन्य०॥२०॥ गुरूकूळ वासी विनवेजी, शिष्य कंचन करजोड; वंदना लेजो माहरीजी, वंदु मनने क्रोड सूरी० धन्य० ॥२१॥ वंदु वारहजार सूरी० लियो वंदन स्विकार, दीओ दर्शन एकवार सूरीधर जेम थाय अम उद्धार सूरीधर धन्य धन्य तुम अवतार........ ॥२२॥ (55) प० पू० आ० वि० कनकसूरिजी म०सा०नी सज्झाय
विजय कनकसूरीजी वंदिए, गुणमणि रयण भंडार रे; शोभे मुद्रा समता मयी, तपगच्छना शणगार रे। वि० १ कच्छ वागडमां दिपतुं, सुंदर पलांसवां शहेर रे; शांति जिनेश्वर शोभतां, नामे थाय लीला ल्हेर रे । वि० २ उत्तम कोटीना आतमा, उपन्या जीहां महाभाग रे; अनेक भाई बहेनो बुझीयां, संयम लीये शुभ राग रे। वि० ३ श्रावक लोक सुखीया वसे, श्रद्धा क्रिया भरपुर रे; बहोलो परिवार जेहनो, चंदुरा कुल सनुर रे। वि० ४ नानचंद पिताजी निर्मला, माता नवलबाई नाम रे; ओगणीश इगुण चालीशे, नभस्य वद पंचमी अभिराम रे । वि० ५ शुभ नक्षत्रवारे जनमीया, कानजीभाई अभीधान रे; लघुवयमां वैरागी थयां, ए पुरव पुण्य अनुमान रे। वि० ६ ओगणीश बासठ भीमासरे, पूर्णिमा मागशीर मास रे; संघ
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चतुर्विध साक्षीए, चारित्र लीए उल्लास रे। वि० ७ आगम सकल अवगाही ने, योगवहन पण कीध रे; छोतेर कार्तिक वद पांचमी, पंन्यास पदवी प्रसिद्ध रे। वि० ८ श्री सिद्धगिरिनी छायामां, वो जय जयकार रे; पाठक पदवी पंचासीए, मल्लीनाथ दरबार रे। वि० ६ शुकल एकादशी माघनी, भोयणी तीर्थ मोझार रे; उपाध्याय उमंगथी, कच्छ भणी कर्यो विहार रे । वि० १० ग्रामानुं ग्राम अनुक्रमे, विचरंता गुरुराज रे; राजनगर संघे कियो, सूरीपद महोत्सव शुभ साज रे | वि० ११ नेव्यासी पोष वदी सातमे, सिद्धि सूरीधर राय रे; पट्टधर मेघ सूरीश्वर, वरदहस्ते त्रण पद थाय रे । वि० १२ तपगच्छ गगनां गण दिनमणि, मणि विजयजी महाराय रे; दादा बिरूदे बिराजतां, महिमा अधिक गवाय रे। वि० १३ पद्मविजयजी पद्म सारिखा, जीतविजयजी शिष्य हीर रे; तस शिष्य मुज गुरू शोभता, विजय कनक सूरी धीर रे। वि० १४ ओगणीश सत्ताणुं खंभातमां, महासुदि छठ्ठ रवि योग रे; दिपविजय गुरु गुण थकी, मंगळ वांछित भोग रे; वि० १५
(56) दिवाळीनुं स्तवन दिवाळी दिन प्रभु मोक्षे सिधाव्यां अमे अनंत भव भमीया (२) ओ शासन नो दीवडो. ॥१॥ अंतीम सोल पहोर देशना दीधी, ओक घडी नही खाली अमृतनी भरेली, ओ शासन नो दीवडो० ॥२॥ देवो प्रभुने आवी प्रश्न करे छे, जीवन मेक घडी राखो, छे भस्मग्रह खारो. अ० ॥३॥ देव के तीर्थंकर होय भला भूपती, आयुष्य पळ नही वधशे, के पळ नही घटसे.
० ॥४॥ अंधारी रात वळी पाछली अमासे, वीर प्रभुनुं निर्वाण, गौतमने थइ जाण. ओ० ॥५॥ वीर प्रभु मारा हैयाना हार छे, मुजने मोकल्यो दूर गाम, हुं भूल्यो भान. अ० ॥६॥ प्रीतलडी हती प्रभु आपनी पुराणी, भेटमां केवल ज्ञान, हुं मांगु नही मान. ओ० ॥७॥ तुमे निरागी प्रभु हु छु रागी, हृदयमां ध्यान धरता, त्यां केवल वरंता. ओ० ॥८॥ शासन दीप प्रभु मूकी सोहाया, द्रव्य दीपक प्रगटावे, श्री जिन गुण गावे. अ० ।।६।।
(57) दिवाली- स्तवन सकल सुरासुर सेवित साहिब, अहनिश वीर जिणंद, सुरकंता शची
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नाटक पेखत, पण नहि हर्ष आणंद; हो जिनवर! तु मुज प्राण आधार, जगजनने हितकार०...हो०. ॥१॥ दानवीर तपवीर जिनेश्वर करमरिपुहतवीर; ते कारणे अभिधान तुमारुं, युद्धवीर गंभीर०...हो०. ॥२॥ तुं सिद्धारथ सिद्धारथसुत, नहि सुत मात अबीह; हरिलंछन गतलंछन साहिब, चउमुख धर्म निरिह०...हो०. ॥३॥ संघ चतुर्विघ थापना कीधी, चउगई पंथ विहाय; पंचम नाणे पंचम गतिओ, वीर जिणंद सधाय०...हो०. ॥४॥ सोल प्रहर प्रभु देशना वरसी, फरसी विभु गुणठाण; बंधन छेदन गति परिणामे, चरम समय निर्वाण...हो०. ॥५॥ स्वाति नक्षत्रे शिवपद पाम्यां; दिवाली दिन तेह; वीर! वीर! गौतम वीतरागी, त्रुट्यो बंधन स्नेह०...हो०. ॥६॥ खीमाविजय जश शुभ लहीओ, वीर कहे वीरध्यान; करतां सौख्य महोदय पामे, लीला लहेर वितान०...हो जिनवर तु मुज प्राण आधार...॥७॥
(58) दिवालीनां स्तवनो आवी आवी हो राज, पून्य थकी दिवाली-धवल मंगल जिनमंदीर दीपे, पूजा कीजे रसाली; अह पर्वनो महीमा निसुणो, आगमपाठ निहाली...आवी०. ॥१॥ अह दीवाली केरे दिवस, ध्यान शुक्ल संभारी; छ? तणुं अणशण आराधी, कठीण करममल टाळी०...आवी०. ॥२॥ सोल प्रहरनी देशना दीधी, ह्रदय करी उजमाली; श्री जिनवर जिनेसर मुगति, पहोत्या पातक गाली०...आवी०. ॥३॥ तत खीण अष्टापद नृप विरचे, द्रव्य थकी दिपमाली; प्रभाते श्री गौतम पाम्या, केवलज्ञान विशाली०...आवी०. ॥४॥ इंद्रादिक मली ओच्छव कीधो, विरची वर कमलाली; ते माटे श्री वीर जिणंदनो, नाम जपो जपमाली०...आवी०. ॥५॥ गौतम गणधरनो पण जुगते, ध्यान धरो मद गाली; छ8 करीने बार सहस जप, कीजे निज मन वाली०...आवी०. ॥६॥ श्री जिन भक्ति तथा गुरु सेवा, करतां सद्गति भालि; जिन कहे दीपोत्सव आराध्ये, नितु नितु मंगलमाली०...आवी०. ॥७॥
(59) दीवाली पर्वतुं स्तवन ढाल-८ (ढा. १) (राग :--समरजीव ओक नवकार) श्री श्रमण संघ तिलकोपमं गौतम, सुगति प्रणिपत्य पादारविंदं इंद्रभूति प्रभवम हंसो मोचकं, कृत
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कुशल कोटी कल्याणकंदं; ॥१॥ मुनिमन रंजणो, सयल दुःख भंजणो, वीर वर्धमान जिणंदो; मुगति गति जिम लही, तिम कहु सुण सही, जिम होओ हर्ष हइडे आणंदो. मु० ॥२॥ करीय उद्घोषणा; देशपुर पाटणे, मेघ जिम दान जल बहुल वरसी; धण कणग मोतीया, झगमगे जोतिया, जिन देइ दान इम ओक वरसी. मु० ॥३॥ दोयविण तोय उपवास आदे करी, मागशिर कृष्ण दशमी दहाडे; सिद्धि सामा थइ, वीर दीक्षा लेइ, पाप संताप मल दूर टाले. मु० ॥४॥ बहुल बंभण घरे, पारj सामीओ, पुण्य परमान्न मध्यान्ह किधुं; भुवन गुरु पारणां, पुन्यथी बंभणे, आप अवतार फल सयल लीधुं. मु० ॥५॥ कर्म चंडाल गोशाल संगम शुरो, जीणे जिन उपरे घात मांड्यो; ओवडो वयर ते पापीया शे कर्यो, कर्म कोटी तुही ज सबल दंड्यो. मु० ॥६॥ सहज गुण रोषीयो, नामे चंडकोशियो, जिनपदे श्वानजिम जेह विलगो; तेहने बुझवी उद्धर्यो जगपति, किधलो पापथी अतिहि अलगो. मु० ॥७॥ वेदयामा त्रीयामा लगे खेदीयो, भेदीयो तुज नवी ध्यान कुंभो; शूलपाणी अनाणी अहो बुझव्यो, तुज कृपा पारपामे न शंभो. मु० ॥८॥ संगमे पीडीयो प्रभु सजल लोयणे, चिंतवे छुटस्यें किम अहो; तास उपरे दया अवडी शी करी, सापराधे जने सबल नेहो. मु० ॥६॥ इम उपसर्ग सहेतां, तरणि मीत वरस, सार्ध उपर अधिक पक्ष अके; वीर केवल लडं कर्म दुःख सवीदह्यु, गहगर्दा सुर निकर नर अनेके. मु० ॥१०॥ इंद्रभूति प्रमुख सहस चउदशमुनि, साहुणी सहस छत्रीस विहसी; ओगणसाठ सहस ओक लाख श्रद्धालुआ, श्राविका त्रिलख अढार सहसी. मु० ॥११॥ इम अखिल साधु परिवारशुं परिवर्यो, जलधि जंगम जीस्यो गुहिर गाजे; विचरता देश परदेश निय देशना, उपदिशे सयल संदेह भांजे, मु० ॥१२॥ ___ (ढा. २) (राग :--शांति सुहंकर साहिबो संयम अवधारे) श्रावक सिंधुर सारिखा, जिनमतना रागी; त्यागी सह गुरु देव धर्म, तत्त्वे मती जागी; विनय विवेक विचार वंत, प्रवचन गुण पुरा; अहवा श्रावक होयसे, मतिमंत सनुरा. ॥२६।। लालचे लागा थोडीले, सुखे राचि रहिया; घरवासे आशा अमर, परमारथ दुहिया; व्रत वैराग्य थकी नही, कोइ लेशे प्राये; गज सुपने फल ओह नेह नवि मांहो मांहे. ॥३०॥ वानर चंचल चपल जाति, सरखा मुनि
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मोटा; आगल होस्ये लालची, लोभी मन खोटा, आचारज ते आचार हिण प्राये प्रमादि; धर्म भेद करस्ये घणा, सहेजे स्वारथ वादी. ॥३१॥ को गुणवंत महंत संत, मोहन मुनि रुडा; मुख मीठा मायाविया, मनमांहे कूडा, करस्ये मांहो माहे वाद, परवादे नासे; बीजा सुपन तणो विचार, इम वीर प्रकाशे. ॥३२॥ कल्पवृक्ष सरिखा होस्ये, दातार भलेरा; देव धर्म गुरु वासना, वरि वारिना वेरा; सरल वृक्ष सविने दीओ, मनमां गह गहता; दाता दुर्लभ वृक्षराज, फल कुले बहता. ॥३३॥ कपटी जिनमत लिंगीया. वळी बबुल सरीखा; खीर वृक्ष आडा थया, जीम कंटक तिखा; दान देयतां वारसी, अन्य पावन पात्री; त्रीजो सुपन विचार कह्यो, जिनधर्म विधात्री. ॥३४॥ सिंह कलेवर सारिखो. जिन शासन सबलो; अति दुर्दीत अगाहनिय, जिम वाचक जमलो; परशासन सावज अज, ते देखी कंपे; चउथा सुपन विचार इम, जिनमुखथी जंपे. ॥३५॥ तपगच्छ गंगाजल सरिखो, मूकी मतिहिणा; मुनिमन राचे छिल्लरे, जीम वायस दीणा; वंचक आचारज अनेक, तेणे भूलवीया; ते धर्मांतर आदरे, जडमति बहु भवियां. ॥३६।। पंचम सुपन विचार अह, सुणीओ राजाने; छठे सोवन कुंभ दीठ, मइलो सुणी काने; कोकोमुनि दरिसण चारित्र, ज्ञानपूरण देहा; पाले पंचाचार चारु, छांडी निज गेहा. ॥३७॥ को कपटी चारित्र वेश लइ विप्र तारे; मइलो सोवन कुंभ जिम पिंड पापे भारे; छठो सुपन विचार अह, सातमे इंदिवर; उकरडे उत्पत्ति थइ, तेशुं कहो जिनवर. ॥३८॥ पुण्यवंतप्राणी हुस्ये, प्राही मध्यम जाति; दाता भोक्ता ऋद्धिवंत, निरमल अवदात; साधु असाधु जति वंदे, तव सरिखा कीजे; ते बहु भद्रिक भवियणे. श्यो ओलंभो दिजे. ॥३६॥ राजा मंत्री परे सुसाधु, आपो पु गोपी; चारित्र सुधु राखस्ये, सवी पाप विलोपी, सप्तम सुपन विचार वीर जिनवरे इम कहियो अष्टम सुपन तणो विचार सुणी मन गह गहियो. ॥४०॥ न लहे जिनमत मात्र जेह, तेह पात्र न कही; दीधार्नु परभव पुण्य फल, कांइ न लहीले; पात्र अपात्र विचार भेद, भोला नवी लहेस्ये; पुण्य अर्थे ते अर्थ आथ, कुपात्रे देहस्ये. ॥४१।। उखर भूमि दृष्ट बीज, तेहनो फल कहीओ; अष्टम सुपन विचार इम, राजा मन ग्रहिये; ओह अनागत सवी सरुप, जाणी तिणे काले; दीक्षा लीधी वीर पास, राजा पुन्यपाले ॥४२॥
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(ढा. ३) (राग :--सीमंधर स्वामी माहरा रे) इंद्रभूति अवसर लहिरे, पूछे कहो जिनराय; श्यु आगल हवे होयस्ये रे, तारण तरण जहाजो रे कहे जिनवरजी. ॥४३॥ मुज निर्वाण समय थकी रे, त्रिहुं वरसे नव मास; माठेरो तिहां बेसश्ये रे, पंचम काल निरासो रे. कहे० ॥४४॥ बारे वरस्ये मुझ थकी रे, गौतम तुज निर्वाण; सोहम वीशे पामशे रे, वरसे अक्षय सुख ठाणो रे. कहे० ॥४५॥ चउसठ वरसे मुझ थकी रे, जंबूने निर्वाण; आथमशे आदित्य थकी रे, अधिकुं केवल नाणो रे. कहे० ॥४६॥ मन पज्जव परमावधि रे, क्षपकोपशम मन आण, संयम त्रिण जिन कल्पनी रे पुलागाहारगहाण रे. कहे० ॥४७॥ सिज्जंभव अठावणे रे, करस्ये दश वैलायिय; चउद पूर्वी भद्र बाहुथी रे, थास्ये सयल विलिओरे. कहे० ॥४८।। दोय शत पन्नरे मुझ थकी रे, प्रथम संघयण संठाण; पुवणुं उगते नवि हुस्ये रे, महाप्राण नवि झाणो रे. कहे० ॥४६॥ चउत्रयपने मुझ थकी रे, होस्ये कालिक सूर; करश्ये चउथी पजुसणे रे, वरगुण रयणनो पुरो रे. कहे० ॥५०॥ मुजथी पण चोराशीये रे, होश्ये वयर कुमार; दश पूर्वी अधिकालिओ रे, रहस्ये तिहां निरधारो रे. कहे० ॥५१॥ मुझ निर्वाण थकी छसे रे, विस पछी वनवास; मूकी करशे नगरमां रे, आर्यरक्षित मुनिवासो रे. कहे० ॥५२॥ सहसें वरसें मुज थकी थशे रे, चउद पूरव विच्छेद; जोतीष अण मिलतां हुशे रे, बहुल मतांतर भेदो रे. कहे० ॥५३॥ विक्रमथी पंच पच्याशीओ रे, होश्ये हरिभद्रसूरि; जिनशासन अजुवालशे रे, जेहथी दुरियां सवी दुरोरे. कहे० ॥५४॥ द्वादश शत सत्तर समेरे, मुजथी मुनि सूरि हीर; बप्पभट्ट सूरि होयशे रे, ते जिन शासन विरो रे. कहे० ॥५५॥ मुज प्रतिबिंब भरावस्ये रे, आम राय भूपाल; सार्द्ध त्रिकोटी सोवन तणो रे. तास वयणथी विशालो रे. कहे० ॥५६॥ षोडश शत ओगणोतरे रे, वरसे मुजथी मुणिंद; हेमसूरि गुरु होयश्ये रे, शासन गयन दिणंदो रे. कहे० ॥५७।। हेमसूरि पडिबोहशे रे, कुमारपाल भूपाल; होस्यें जिन मंडित महीरे, जिन शासनप्रतिपालो रे. कहे० ॥५८॥ गौतमनबळासमयथी रे, मुज शासन मन मेल; मांहो मांहे नवी होस्ये रे, मच्छ गलागल न्यायो रे. कहे० ॥५६॥ मुनि मोटा माया वियारे, वेढी गारा विषेश; आप सवारथ वसी थाय रे, जे विडंबस्ये वेष रे. कहे० ॥६०॥ लोभी लखपति जन हुंसे रे, जम सरीखा
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भूपाल; सज्जन विरोधि जन हुओ रे, नवि लज्जालु दयालो रे. कहे० ॥६१।। निर्लोभी निरमाइया रे, सुधा चारित्रवंत; थोडा मुनि महियले हुसे रे, सुण गौतम गुणवंत रे. कहे० ॥६२॥ गुरु भक्ति शिष्य थोडला रे, श्रावक भक्ति विहिण; मात पिताना सुत नही रे, ते महिलाना आधिनो रे. कहे० ॥६३।। दुप्पसह सूरि फल्गुसिरीये, नागिल श्रावक जाण; सच्चसिरि तिम श्राविका रे, अंतिम संघ वखाण्यो रे. कहे० ॥६४॥ वरस सहस अॅकवींसते रे, जिन शासन विख्यात; अविचल धर्म चलावशे रे, गौतम आगल वातो रे. कहे० ॥६५॥ दुषमे दुषमा कालनी रे, ते कहीये शी वात; कायर कंपे हैडलो रे, जे सुणतां अवदातो रे. कहे० ॥६६।।
(ढा. ४) मुज शुं अविहड नेह बांध्यो, हेज हैडा रंगे, दृढ मोह बंधण सबल बांध्यो, वज्री जिम अभंग; अलगा थया मुज थकी अहने, उपजशे रे केवल नियअंग के गौतम रे गुणवंता. ॥६७।। अवसर जाणी जिनवरे, पूछीया गौतम स्वाम; दोहग दुखीया जीवने, आवीये आपण काम, देव शर्मा बंभणो, जइ, बुझवोरे ओरे ढुंकडे गाम के.गौ० ॥६॥ सांभली वयण जिणंदमुं, आणंद अंगन माय; गौतम बे कर जोडी, प्रणम्यां वीर जिनना पाय; पांगर्या पूरव प्रीतथी, चउनाणी मनमां निरमाय के.गौ० ॥६६गौतम गुरु तिहां आवीयां, वंदाविओ ते विप्र; उपदेश अमृत दीधलो, पीधलो तिणे क्षिप्र; धसमस करता बंभणे, बारी वागी रे थइ वेदन विप्रके.गौ० ॥७०।। गौतम गुरुना वयणलां, नवि धर्या तिणे कान; ते मरी तस शिर कृमि थयो, कामिनी ने ओक तान, उठीयो गोयम जाणीओ, तस चवीयो रे पोताने ज्ञान के.गौ० ॥७१॥ .
(ढा. ५) चोसठ मणना मोती झगमगे रे, गाजे गुहिर गंभिर शीरे रे, पुरां तेत्रीश सागर पूरवे रे, नादे लिणा लवसंत्तमिया सूर रे, वीरजी वीरजी वखाणे रे जगजन मोहीयो रे. ॥७२॥ अमृतथी अधिकी मीठी वाणी रे, सुणतां सुखडो जे मनडे संपजे रे; ते लहेस्ये जे पोहोंचस्ये निर्वाण रे. वी० ॥७३।। वाणी पडछंदे सुर पडिबोहीयों रे, सुणतां पामे सुख संपत्तिनी कोड रे; बीजा अटल उलटथी घणां रे, आवी बेठा आगल बे कर जोड रे. वी० ॥७४॥ सोहम इंदो शासन मोहीयारे, पूछे परमेश्वर ने तुम आय रे; बे घडी
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वधारो स्वाति थकी परहुं रे, तो भस्मग्रह सघलो दूरे जाय रे. वी० ॥७५।। शासन शोभा अधिकी वाधश्येरे, सुखीया होशे मुनिवरना वृंद रे; संघ सयलने सवि सुख संपदा रे, होशे दिनदिनथी परमानंद रे. वी० ॥७६।। इंदा न कदारे कहीओ केहy रे, केणे सांध्यं नवि जाओ आय रे; भावी पदारथ भावे निपजे रे, जे जिम सरज्यो ते तिम थाय रे. वी० ॥७७॥ सोल पहोरनी देतां देशना रे, परधानक नामा रुअडझे अज्झयण रे; कहेता कार्तिक वदि कहुं परगडी रे, वीरजी पोहोता पंचमी गति रयण रे. वी० ॥७८॥ ज्ञान दीवो रे जब दूरे थयो रे, तव देवे कीधी दीवानी श्रेणी रे; तिमरे चिहुं वरणे दीवा कीधलां रे, दिवाली कहीये छे कारण तेण रे. वी० ॥७६। आंसु परिपूर्ण नयण आंखलडे रे, मूकी चंदननी चेहमां अंग रे; दीधो देवे दहन सघले मीली रे, हा धिग् धिग् संसार विरंग रे. वी० ॥८॥
(ढा. ६) वंदे शुं वेगे जइ वीरो, इम गौतम गह गहता; मारगे आवता सांभलीउं, वीर मुगति मांहे पोहता रे. जिनजी तुं निस्नेही मोटो, अविहड प्रेम हतो तुज उपरे, ते तो कीधो; खोटो रे. जिनजी तुं० ॥१॥ है है वीर कर्यो अणघटतो, मुज मोकलीओ गामे; रे अंत काले बेठां तुज पासे, हुं श्ये नावत कामे रे. जि० ॥२॥ चौद सहस मुज सरिखा ताहरे, तुज सरिखो मुज तुहि; विधासी वीरे छेतरीओ, ते स्यां अवगुण मुंहि रे. जि० ॥८३।। को केहने छेहडे नवी वलगे, जो मिलतो होओ सबलो; रे मिलतास्युं जेणे चित्त चोर्यो, ते तिणे निर्बलो रे. जि० ॥४॥ निठुर हैडा शुं नेह न कीजे, निसनेही नर निरखी; हैडा हेजे मिले जिहां हरखी, ते प्रीतलडी सरिखी रे. जि० ॥५॥ तें मुजने मनडो नवी दीधो, मुज मनडो ते लीधो रे; आप सवारथ सघलो कीधो, मुगति जइने सिद्धो रे. जि० ॥८६।। आज लगे तुज मुज शुं अंतर, सुपनांतर नवि हुं तो रे; हैडा हेजे हियाली छंडी, मुजने मूक्यो रोवंतो रे. जि० ॥८७|| को केहशुं बहु प्रेम म करस्यो, प्रेम विडंबण विरुइ रे; प्रेमे परवश जे दुःख पामे, ते कथा घणी गिरुइ रे. जि० ॥८८|| निसनेही सुखीया रहे सघल, ससनेही दुःख देखे रे, तेल दुग्ध परे परनी पीडा, पामे नेह विशेषे रे. जि० ॥८६॥ समवसरण कहीजे हवे होशे, कहो कुण नयणें जोशे; रे दया धेनु पुरी कण दोहस्ये, वृष दधि कुण
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विलोशे रे. जि० ॥६०॥ इण मारग जे वाल्हा जावे, ते पाछा नवी आवे रे, मुज हैडो दुःखडे न समाओ, ते कहो कुण समावे रे. जि० ॥६१॥ द्यो दरिसण वीरावालाने, जे दरिसणना तरस्या रे; जो सुहणे केवा रे देखशुं, तो दुःख दूरे करशुं रे. जि० ॥२॥ पुण्य कथा हवे कोण केलवशे, कण वाल्हा मेलवशे; मुज मनडो हवे कुण खेलवशे, कुमति जिम तिम लवशे रे. जि० ॥६३॥ कुण पुछ्यानो उत्तर देशे, कुण संदेह भांजशे रे; संघ कमळ वन किम विकसशे, हुं छद्मस्था वेशे रे. जि० ॥६४॥ अहवे जिन वयणे मन व्याप्यो, मोह सबल बल काप्यो रे, इण भावे केवल पद आप्यो, इंद्रे जिनपदे थाप्यो रे. जि० ॥६६।। इंद्रे जुहार्या भट्टारक, जुहार भट्टारक तेणे; रे पर्व पनोतु जगमां वाप्यु, ते कीजे सवी केणे रे. जि० ॥६७। राजा नंदीवर्धन नोतरीयो, भाइ बेनडी बीजे रे, ते भावड बीज हुइ जग सघळे, बहेन बहु परे कीजे. रे. जि० ॥६॥
(ढा. ७) (राग :--राग तप करीओ समता राखी घटमां) पहरीये नवरंग पालडीओ, माडी मृगसद केसर भालडीओ; झबझबके श्रवणे झालडीओ, करी कंठे मुकताफल मालडीओ. ॥६६॥ घर घर मंगल मालडीओ, जपे गोयम गुण जप मालडीओ; पहोंतलो परव दिवालडीओ रमे रस भर रमत बालडीओ. ।।१००।। शोक संताप सवी कापीओओ, इंद्रे गोयम वीर पदे थापीओओ; नारी कहे सांभळ कंतडाओ, जपो गोयम नाम अकंतडाओ. ॥१०१॥ ल्यो लख लाभ लखेशरीओ, ल्यो मंगल कोडी दानेशरीओ; जाप जपो थइ सुत पेसरीओ, जिम पामीले ऋद्धि परमेसरीओ. ॥१०२॥ लहीओ दिवालडी दाडलो ओ, ओ तो पुण्यनो टबको टालुओओ; सुकृत सिरि दृढ करो पालडीओ, जिम घर होय नित्य दीवालडीओ. ॥१०३।। --
(ढा. ८) (राग :--श्री चिंतामणी पासजी) हवे मुनिसुव्रत सीसो रे, जेहनी सबल जगीसो; ते गुरु गजपुरे आव्या रे, वादी सवी हार मनाव्या. ॥१०४॥ पावस चोमासु रहिया रे, भवीयण हइडे गहगहीआ रे; नवमो चक्रवर्ती पद्म रे, जसु हियडे नवी छद्म. रे ॥१०५॥ नमुची तस नामे प्रधान रे, राजा दियो बहुमान; रे तिणे तिहां रिझवी राय रे, मांगी मोटो पसाय. ॥१०६।। लीधो षट खंड राज रे, सात दिवस मांडी आज रे, पूर्वे मुनिशुं विरोध्यो रे,
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तिहां किणे नवि प्रतिबोध्यो. रे ॥१०७।। ते मुनि शुं कहे बंडो रे, मुज धरती सवी छंडो रे; विनवीयो मुनि मोटो रे, नवी माने कर्मे खोटे. ॥१०८॥ साठसया वरसे तप तपिओ रे, जे जिन किरीआनो खपीओ रे, नामे विष्णुकुमार रे, सयल लब्धिनो भंडार रे. ॥१०६॥ उठ क्रम भूमि लेवा रे, जोवा भाईनी सेवा रे, लीधं त्रिपदी भूमि दान रे, भले भले आव्या भगवान रे; ॥११०॥ इंदो वयणे धडहडीयो रे, ते मुनि बहु कोपे चढीओ रे; किधो अद्भूत रुप रे, जोयण लाख सरुपरे. ॥१११॥ प्रथम पग चरण पूर्वे दीधो रे, बीजो पश्चिमे दीधो रे, त्रीजो तस पूंठे थाप्यो रे, नमुची पाताले चांप्यो रे, ॥११२॥ थरहरियो त्रिभुवन रे, खल भलीओ सवी जन; रे सल सलियो सुर दिन्न रे, पडयो नवि सांभलीये कन्नरे. ॥११३। ओ उत्पात अत्यंत रे, दूरि करो भगवंत रे; है है श्युं हवे थाशे रे, बोले बहु ओक सासे रे, ॥११४॥ करणे किन्नर देवा रे, कडुआ क्रोध समेवा रे, मधुर मधुर गाओ गीत रे, बे कर जोडी विनीत रे, ॥११५॥ विनय थकी वेगे वलियो रे, श्री जिन शासन बलिओ रे, दानव देवे खमाव्यो रे, नर नारीओ वधाव्यो रे ॥११६।। गावलडी भेंस भडकी रे, जे देखी दूरे तडकी रे; जे जतने ग्रही छे रे, आरति उतारी मेरईओ लयुं ओ. ॥११७।। नवले अवतारे आव्या रे, जीवीत फल लही फाव्यारे, शेव सुंहाली कंसार रे, फल लघु नवे अवतार रे. ॥११८।। छगण तणो घरबार रे, नमुची लख्यं घरनारे; ते जीम जीम खेरु थाय रे, तिम तिम दुःख दूरे जाय रे. ।।११६॥ मंदिर मंडाण मांड्यो रे, दालिद्र दुःख दूरे छांड्या रे; कार्तिक सुदि पडवे परवे रे, इम मे आदरीओ सर्वे रे, ॥१२०।। पुण्ये नरभव पामी रे, धर्म पुन्ये करो निरधामी रे; पुन्य ऋद्धि रसाली रे, नित नित पुन्ये दिवाली. ॥१२१॥
(कलश) जिन तुं निरंजण सकल रंजण, दुःख भंजन देवता, द्यो सुख सामि, मुगति गामी, वीर तुज पाये सेवता; तप गच्छ गयण दिणंद दह दिसे, दिपतो जग जाणीओ, श्री हीर विजय सुरिंद सद्गुरु, तास पाट वखाणिजे. ॥१२२॥ श्री विजय सेन सूरीश सद्गुरु, विजय देव सूरीसरु, जे जपे अहनिश नाम जेहनो, वर्धमान जिनेश्वरु; निर्वाण स्तवन महिमा भवन, वीर जिननो जे भणे; जे लहे लीला लब्धि लच्छि, श्री गुण हर्ष वधामणे. ॥१२३।।
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(60) दिवाळीना देववंदन (प्रथम चैत्यवंदन) वीर जिनवर वीर जिनवर, चरम चौमास; नयरी अपापाये आवीया, हस्तिपाल राजन सभाये, कार्तिकवदी अमावस्या रयणीये; मुर्हतशेष निर्वाण ताहि सोल पहोर देइ देशना, पहोत्या मुक्ति मोझार; नित्य दिवाली नय कहे, मलीया नृपति अढार. ।।१।।
(द्वितिय चैत्यवंदन) देव मलीया देव मलीया, करे उत्सव रंग; मेरइयां हाथे ग्रही, द्रव्य तेज उद्योत कीधो, भाव उद्योत जिनेंद्रने, ठाम ठाम अह
ओच्छव प्रसिद्धो, लख कोडी छठ्ठ फल करी, कल्याणकरो अह; कवि नयविमल कहे इश्युं, धनधन दहाडो तेह.॥२॥
(प्रथम वीर स्तुति) मनोहर मूर्ति महावीर तणी, जिणे सोल पहोर देशना पभणी; नव मल्ली नव लच्छी नृपति सुणी, कही शिव पाम्या त्रिभुवन धणी. ॥१॥ शिव पहोत्या ऋषभ चउदश भक्ते, बावीश लह्या शिवमास थिते; छठटे शिव पाम्या वीर वली, कार्तिक वदी अमावस्या निरमली. ॥२॥ आगामी भावे भाव कह्यां, दिवाली कल्पे जेह लह्या; पुण्य पाप फल अज्झयणे कयां, सवि तहत्ति करीने सद्ह्यां. ॥३॥ सवि देव मली उद्योत करे, प्रभाते गौतम ज्ञान वरे; ज्ञानविमल सदा गुण विस्तरे. जिन शासनमां जयकार करे. ॥४॥
(दितिय वीर स्तुति) जय जय भविहितकर, वीर जिनेश्वर देव; सुरनरना नायक, जेहनी सारे सेव; करुणा रस कंदो, वंदो आणंद आणी; त्रिशला सुत सुंदर, गुण मणी केरो खाणी. ।१॥ जस पंच कल्याणक, दिवस विशेष सुहावे; पण थावर. नारक, तेहने पण सुख थावे; ते च्यवन जन्म व्रत, नाण अने निर्वाण, सवि जिनवर केरां, ओ पांचे अहिठाण. ॥२॥ जिहां पंच समिति युत; पंच महाव्रत सार; तेहमां प्रकाश्या, वली पांचे व्यवहार; परमेष्ठी अरिहंत, नाथ सर्वज्ञने पार; अह पंच पदे लह्यो, आगम अर्थ उदार. ॥३॥ मातंग सिद्धाइ, देवी जिनपद सेवी, दुःख दुरित उपद्रव, जे टाले नित्य मेवी; शासन सुखदायी, आइ सुणो अरदास; श्री ज्ञान विमल गुण, पुरो वांछित आश. ॥४।।
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(श्री महावीर जिन स्तवन) श्री महावीर मनोहरु, प्रणमुं शिर नामी; कंथ जशोदा नारीनो, जिन शिवगति गामी. ।।१।। भगिनी जास सुंदसणा, नंदी वर्धन भाई, हरि लंछन हेजालुओ, सहु कोने सुखदायी. ॥२॥ सिद्धार्थ भूपति तणो, सुत सुंदर सोहे; नंदन त्रिशला देवीनो, त्रिभुवन मन मोहे. ॥३॥ अक शतदश अध्ययन जे, प्रभु आप प्रकाशे; पुण्य पाप फल केरडां, सुणे भविक उल्लासें. ॥४॥ उत्तराध्ययन छत्रीश जे, कहे अर्थ उदार; सोल पहोर दीये देशना, करे भविक उपगार. ॥५॥ सर्वार्थ सिद्ध मुहर्तमां, पाछली जे रयणी; योग निरोध करे तिहां, शिवनी निसरणी. ॥६॥ स्वाती नक्षत्र चंद्रमा, जोगे शुभ आवे; अजरामर पद पामीया, जय जय रव थावे. ॥७॥ चोसठ सुरपति आवीयां, जिन अंग पखाली; कल्याणक विधि साचवी, प्रगटी दिवाली. ॥॥ लाख कोडी फल पामीये, जिन ध्याने रहीये; धीर विमल कविराजनो, ज्ञान विमल कहीये. ।।६।।
(तृतीय चैत्यवंदन) श्री सिद्धार्थ नृप कुल तिलो, त्रिशला जस मात; हरि लंछन तनु सात हाथ, महिमा विख्यात; ॥१॥ त्रीश वरस गृहवास छंडी, लही संयम भार; बार वरस छद्मस्थ मान, लही केवल सार; ॥२॥ त्रीश वरस ओम सवि मली अ, बहोतेर आयु प्रमाण; दिवाली दीन शिव गया, कहे नय तेह गुण खाण. ॥३॥
(61) गौतम स्वामीना देव वंदन बीजो जोडो--(प्रथम चैत्यवंदन) नमो गणधर नमो गणधर, लब्धि भंडार; इंद्रभूति महिमानिलो, वड वजीर महावीर केरो, गौतम गोत्रे उपन्यो गणि अग्यार मांहे वडेरो, केवलज्ञान लडं जिणे, दिवाली परभात; ज्ञान विमल कहे जेहना, नाम थकी सुख शात. ॥१।।
(द्वितीय चैत्यवंदन) इंद्रभूति पहिलो भए॒, गौतम जस नाम; गोबर गामे उपन्या, विद्याना धाम. ।।१।। पंच सया परिवारशुं, लेइ संयम भार; वरस पचास गृहे वस्यां, व्रते वर्षज त्रीस. ॥२॥ बार वरस केवल वर्या मे, बाणुं वरस सवि आय; नय कहे गौतम नामथी, नित्य नित्य नवनिधि थाय. ॥३॥
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(प्रथम स्तुति जोडो) इंद्रभूति अनुपम गुण भर्या, जै गौतम गोत्रे अलंकर्या; पंचशत छात्रशुं परिवर्यां, वीर चरण लही भवजल तर्या. ॥१॥ चउ अड दश दोय जिनने स्तवे, दक्षिण पश्चिम उत्तर पूरवे; संभव आदि अष्टापद गिरिये वली, जे गौतम वंदे लळीलळी. ॥२॥ त्रिपदी पामीने जेणे करी, द्वादशांगी सकल गुणे भरी; दीये दीक्षा ते लहे केवल सिरि. ते गौतमने रहुं अनुसरी. ॥३॥ जक्ष मातंग ने सिद्धाइका, सूरि शासननी प्रभाविका; श्री ज्ञान विमल दिपालिका, करो नित्य नित्य मंगल मालिका. ॥४॥
(द्वितीय स्तुति जोडो) श्री इंद्रभूतिं गण वृद्धि भूति, श्री वीर तीर्था धि प मुख्य शिष्यम्; सुवर्ण कांतिं कृत कर्म शांति, नमाम्यहं गौतम गोत्र रत्नम् ॥१॥ तीर्थंकरा धर्म धुरिणां, ये भूत-भावी-प्रति वर्तमानां; सत् पंच कल्याणक वासरस्था, दीशंतु ते मंगल मालिकां च. ॥२॥ जिनेंद्र वाक्यं प्रथित प्रभावं, कर्माष्ट कानेक प्रभेद सिहम्; आराधितं शुद्ध मुनिंद्र वर्गे, र्जगत्य मेवं जयतात् नितांतम्. ॥३॥ सम्यग्दशां विध्नहरा भवंतु, मातंगयक्षाः सुरनायकाश्च; दिपालिका पर्वणि सुप्रसन्ना, श्रीज्ञानसूरि वरदायकाश्च. ॥४॥
(वीरजिन स्तवन) वीर मधुरी वाणी भाखे, जलधिजल गंभीर रे; इंद्रभूति चित्त भ्रांति रजकण, हरण प्रवर समीर रे. वी० ॥१॥ पंच भूत थकीज प्रगटे, चेतना विज्ञान रे; तेहमां लयलिन थाये, न परभव संज्ञान रे. वी० ॥२॥ वेद पदनो अर्थ अहवो, करे मिथ्या रुप रे; विज्ञान घन पद वेद केरां, तेहगें अह स्वरुप रे. वी० ॥३॥ चेतना विज्ञान घन छे, ज्ञान दर्शन उपयोग रे; पंच भूतिक ज्ञान मय ते, होय वस्तु संयोग रे. वी० ॥४॥ जिहां जेहवी वस्तु देखीये, होय तेहबुं ज्ञान रे; पूरव ज्ञान विपर्ययथी, होय उत्तम ज्ञान रे. वी० ॥५॥ अह अर्थ समर्थ जाणी, मभण पद विपरीत रे; इणीपेरे भ्रांति निरा करीने, थया शिष्य विनीत रे. वी० ॥६।। दिपालिका प्रभाते केवल, लयुं ते गौतम स्वाम रे; अनुक्रमे शिव सुख लह्या, तेहने, नय करे प्रणाम रे. वी० ॥७॥
(तृतिय चैत्यवंदन) जीव केरो जीवकेरो, अछे मनमांही, संशय वेद पदे करी, कही अर्थ अभिमान वार्यो, ॥१॥ श्री महावीर सेवा करी, ग्रही संयम
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आप तार्यो, त्रिपदी पामी गुंथीया, पूरव चउद उदार, नय कहे गौतम नामथी, होवे जय जयकार ॥२॥
(62) दीवाळी मां रात नां गणवानो जाप (१) ॐ ह्रीँ श्री महावीर स्वामि सर्वज्ञाय नमः। रातना बार वाग्या पहला नव-दस वाग्या सुधी २० माळा गणवी० (२) ॐ ह्रीँ श्री महावीर स्वामि पारंगताय नमः। रातना बार वागे पछी एक-डोढ वागे २० माळा गणवी० (३) ॐ ह्रीं श्रीं गौतमस्वामि सर्वज्ञाय नमः। रातना बार वाग्या पछी चार पांच वागे २० माळा गणवी०
श्री सिद्धचक्र ढाल विभाग
(63) श्री सिद्धचक्र स्तवन (अजित जिणंदशुं प्रीतडी अ-राग)
श्री सिद्धचक्र आराधिओ, जिम पामो हो भवि कोड कल्याण के; श्री श्री पालतणी परे, सुख पामो हो लही निर्मळ मन्न के, श्री सिद्धचक्र आराधिये. ॥१॥ नवपद ध्यान धरो सदा, चोखे चित्ते हो लही बहु भाव के; विधि आराधन साचवो, जिम जगमां हो होय जशनो जवाब के. श्री सिद्धचक्र० ॥२॥ केसर चंदन कुसुमशुं, पूजीजे हो उवेखी धूप के; कुंदरूं अगरु ने अगरजा, तपदिनतां हो तप कीजे, घृतदिप ॥३॥ आसो चैत्र शुक्ल पक्षे, नव दिवसे हो, तप कीजे अह के, सहज सोभागी सुसंपदा, सोवन सम हो झलके तस देह के. श्री सिद्धचक्र० ॥४॥ जावज्जीव शक्ते करो, जिम पामो हो नित्य नवला भोग के; साडा चार वरस तथा, जिनशासन हो ओ मोटा योग के. श्री सिद्धचक्र० ॥५॥ विमळदेव सान्निध्य करे, चक्रेश्वरी हो करे तास सहाय के; श्री जिनशासन सोहीजे, ओह करतां हो अविचळ सुख थाय के. श्री सिद्धचक्र० ॥६॥ मंत्र तंत्र मणि, औषधि, वश करवा हो शिवरमणी काज के, त्रिभुवन तिलक समोवडे, होय ते नर हो कहे नयकविराजके श्री सिद्धचक्र० ॥७॥
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(64) श्री सिद्धचक्र स्तवन (राग : ओक लाल दरवाजो तंबु)
अलबेला नी जोउं वाटडी रे, मारी खसी खसी जाओ पाटली रे, जाणे घेबर केरी माटली रे अलबेला० ॥१॥ प्रेमधरीने परखीये रे, अंतर भावे हरखी ओ रे, ओक नजर थी निरखीओ रे. ॥२॥ नवपद ने मनमां धरो रे, शिव सुंदरी स्हेजे वरो रे, प्रदक्षिणा फेरा फरो रे. अल० ।३॥ पहेले पद अरिहंतनारे, गुणगावो भगवंतना रे, कर्म चूरो जेम संतना रे. अल० ॥४॥ बीजे पदे सिद्ध शोभता रे, त्रण भुवनमां नही लोभतारे, तुमे कोई उपर नही कोपतारे. अल० ॥५॥ त्रीजे पदे सुख पामीओरे. आचारज शीश नामीओरे, अष्टकर्म दुःख वामीओरे. अल० ॥६॥ चोथे पदे उवज्झायनेरे, समरे संपत्ति थाय छे रे दुःख दोहग सहु जाय छे रे. अल० ॥७॥ पंचम पद सुखे वरो रे, साधु सकल हैये धरो रे, भव समुद्र सहेजे तरो रे. अल० ॥८॥ समकित सरखी सुंदरी रे, खटपटने मूको परी रे, शिव सुंदरी सहेजे वरो रे. अल० ॥६॥ ज्ञान-चारित्रने तपनो रे. चउद भुवनमा खप नो रे, नवपद विना नही जपनो रे. अल० ॥१०|| नवपद निश्चे जाणीओ रे, शिव सुंदरी सुख माणीओ रे शुभ वीर विजयनी वाणीओ रे. अल० ॥११॥
(65) सिद्धचक्रनुं स्तवन (राग : जगजीवन जगवाहलो)
श्री सिद्धचक्र आराधिये, शिवसुख फल सहकार लाल रे; ज्ञानादिक त्रण रत्ननु, तेज चडावणहार लाल रे. श्री० सि० ॥१॥ गौतम पूछता कह्यो रे, वीरजिणंद विचार लाल रे; नवपद मंत्र आराधतां, फळ लहे भविक अपार लाल रे, श्री० सि० ॥२॥ धर्म-रथ ना चार चक्र छे, उपशम ने सुविवेक लाल रे; संवर त्रीजो जाणीये, चोथो सिद्धचक्र यंत्र लाल रे. श्री० सि० ॥३॥ चक्री चक्रने रथ बले, साधे सयल छ खंड लाल रे; तिम सिद्धचक्र प्रभावथी, तेज प्रताप अखंड लाल रे. श्री० सि० ॥४॥ मयणा ने श्रीपालजी, जपतां बहु फळ लीध लाल रे; गुण जसवंत जिनेन्द्रनो, ज्ञानविनोद प्रसिद्ध लाल रे. श्री० सि० ॥५॥
(66) श्री सिद्धचक्रनुं स्तवन ढाळ ३ ___(ढा. १) सरस्वतीने चरणे नमी, प्रणमी सद्गुरु पाय रे; सिद्धचक्र गुण
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गाइशें, मुज मन हर्ष उछाय रे, धन्य धन्य श्री सिद्धचक्रने. ॥१।। तेह दिवसे सुरपति मळी, जाई नंदिवरद्विपरे; उत्सव महोत्सव सुर करी. कर्म कटकने जीपे रे. धन्य० ॥२॥ अठ्ठाई महोत्सव करे, जीवाभिगमनी साखे रे, श्रेणिक राये पुछीयुं, इन्द्रभूति इम दाखे रे. धन्य० ॥३॥ श्री श्रीपाळ मयणा परे, जाप जपे भव्य प्राणी रे, रोग शोकने आपदा, जीम शमे ते प्राणी रे. धन्य० ।।४।। आसो सुदि सातम थकी, पूनम लगे ओळी रे, अकयांशी नव ओळीओ, आंबील तप सुविवेक रे. धन्य० ॥६॥ साडा चार संवत्सरे, तपनो मेह परिणाम रे; गुणणुं पद ओक ओकनु, सहस दोय सुविज्ञान रे. धन्य० ॥६।।
___ (ढा. २) गुणणुं गणजो ओ पद ध्यायी रे; बार गुण अरिहंत ध्याएँ; सिद्धभजो गुण आठे रे, छत्रीश गुणे आचार्य सोहे, पचवीस उपाध्याय पाखे रे०... ।।१।। गुण सत्तावीश साधु वंदु, दर्शन सडसठ भेदे रे; ज्ञान अकावन गुणे संपुरो, चारित्र सीत्तेर उमेद रे०...।।२।। पचास भेदे तपने जपीओ, गुणणुं व्रत माहे रे; तेर सहस वली बीजे भेदे, विद्याप्रवाह वखाणे रे०... ॥३॥ अरिहंत आदे पंच पद केरा, गुण छे अकसो आठ रे; दर्शन ज्ञाननी दशावली जाणो; चारित्र षट् बहु पाठे रे०...॥४॥ तपना षट्गुण सर्व मलीने, अकसो त्रीस ज थाय रे; नवकारवाळी अह प्रमाणे, समर्थे भवदुःख जाय रे०...॥५॥ अह उजमणां विधि श्युं बोलुं, सांभळो चित्त लायी रे; उजमणाथी फल बहु वाधे, जीम जल पंकज न्याय रे०...॥६॥ ___(ढा. ३) तप जप करीओ शक्तिथी, तेह तणो छे भेद रे; शक्ति प्रमाणे उजवो, भव भवना दुःख छेद रे; वीर वचनथी जाण जयो०...॥१॥ उजमणां विण फल कहुं, जीम अलुणो धान्य रे; शक्ति घणी छे, जेहनी, पण उजवे नहीं बहु मान रे...॥२॥ तेहy फल ते कहयु, सांभळ श्रेणिक राय रे; कुकश आपे वृत्तिने, पुण्य जे ते थाय रे...॥३॥ आतम ज्ञाने धारिये, धरिओ शीयळ जगीश रे; गुरु पडिलाभीने पारीओ, स्वामी वत्सल फल लईश रे...॥४॥ पालणपुरमा प्रेमश्यु, श्री सिध्धचक्र गुण गाया रे; चतुर चोमासु तिहां रही, उजमणे मन भाया रे०...॥५॥
(कळश) इम सयल सुखकर पुरंदर पुर, संस्तव्यो रिसहेश्वरु; तप गच्छ राजे वडदीवाजे विजय जिनेन्द्र सुरीधरु. तास पसाये स्तवन पभण्यो शिष्य
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रुप विजय तणो; अढार अकाशी आसो पूनमे, रंग विजय उलट घणो ... ॥१॥ (67) श्री पंचपरमेष्ठी ढाळ ५
(ढा. १ ) ( राग : ओ नील गगननुं पंखेरुं ) स्वस्ति श्री सुख संपदा, आतम ऋद्धि विनोद, (१) सिद्धचक्र सुख सिद्धता, आपे परम प्रमोद. सकल कुशल कमला निलो रे, समकित गुण संजुतो रे, जिन शासन अजुवाळवा रे, जिनपद बंध प्रयुत्तो रे०... भ० ॥१॥ भविका जिनपद वांदिये रे, जिम ते श्रेणिकाराय रे; तन मन ध्याने धावतां रे, अरिहंत पदवी पाय रे०... भ० ॥२- ३॥ दुःखीया देखी संसारमां रे, जगजीवने ओम चिंते रे; अहो! अहो! मोह विकारता रे, फरता जेम तेम रीते रे०... भ०॥३-४॥ अहने जिनवचने करी रे, उतारु भवपार रे; देई आलंबन धर्मनुं, सुखीया करुं निरधार रे०... भ० ॥४-५॥ इम चिंत्ते प्राणी हितकरु रे, वीस स्थानक आराधे रे; त्रीजे भव तन्मय थई रे, तीर्थंकर पद बांधे रे०... भ० .. ।।५-६ ।। त्रण ज्ञान सहित प्रभु रे, कल्याणके सुख करतां रे; भोग करम क्षीण जाणीने, चारित्र गुणने धरता रे०... भ० ॥ ६-७।। अड पडिहारे शोभता, सकल अधिक गुण सोहे रे ; अतिशय वाणी गुण युता, जगजनने पडिबोहे रे० ... भ० ..॥७
कर आमलक तणी परे, केवल अर्थ प्रकाशे रे; भासन रमणपणे लही, गणधर सूत्र अभ्यासे २०... भ० ॥ ८-६ ॥ भगवंते अर्थ प्रकाशीयो, सुत्रे गणधर भाख्यो रे; उत्तम संशय नवि लहे, जिन अमृत जिणे चाख्यो रे०... भ०..॥६-१०॥
( ढा. २ ) ( राग : चार दिवसनां चांदरडां) नमो नमो सिद्ध निरंजना, अविनाशी अरिहंत रे, नाण दंसण - क्षायिक गुणा, भांगे सादि अनंतरे . नमो० ... ।।१-११।। अंतर नवि संकोचता, गेह दीपक दृष्टांत रे; निरुपाधिक निर्ग्रथता, ज्योतिशुं ज्योत मिलंत रे; नमो० ॥ २ - १२ ॥ निरमल सिद्धशिला भली, अर्जुन हेम सिद्धांत रे; अखय सुखस्थिति जेहनी, जोयण अक लोगंतरे... नमो०... ॥३ - १३ || जममां जस ओपम नहि, रुपातीत स्वभाव रे;... घृतनो स्वाद न कही शके, प्राकृत शहेर बनाव रेनमो० ॥ ४-१४॥ सेवे चोसठ सुरपति, भ्रमर परे जनवृंद रे; त्रिगडे बेठा जिनपति, लहे सिद्ध आनंद रे...नमो०... ॥५- १५।। देश सर्वसंयती यथा, गृही मुनि साधे मुनि
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योग रे; अहोनिश चाहे सिद्धता, विरही इष्ट संयोग रे...नमो०... ॥६-१६।। आतमराम रमापति, समरे किरिया असंग रे; तो लहे सिद्धदशा भली, श्री जिन अमीय सुरंग रे...नमो०... ॥७१७।। __(ढा. ३) माझं मन मोहयुं रे सुरिगुण गायवारे, वर छत्रीश प्रधान; भुवन पदारथ प्रगट प्रकाशतारे, दीपक जेम निधान...मा०..॥१-१८|| मल कोपादिकनी नहि कलुषतारे; न धरे मायानो लेश; गुणीजन मोहन बोधन भव्यनेरे; भाखे शुद्ध उपदेश०...मा०..॥२-१६॥ पंचाचार ते सुधा पाळतारे, नहि परमाद लगार; सारण वारण चोयण साधुनेरे, आपे नित्य संभार०...मा०..॥३-२०॥ आतम साधन पंच प्रस्थाननारे, ध्यानमालामां विस्तार; तेहीज रीते प्रीते साधतारे, धन्य तेहनो अवतार०...मा०..।।४२१॥ अहवा गुरुनी सेवा तुम करोरे, गौतम विर जिणंद, असनवसनादिक भक्ति कीजीये रे, ओ व्यवहार अमंद०...मा०..॥५-२२॥ जिनवर कहे वंदो तुम प्राणियारे, आचारज गुणवंत; आतम भावे परिणती जो लहेरे, अमृत पदवी लहंत०...मा०..॥६-२३।।
(ढा. ४) (राग : मेरा जीवन कोरा कागज) द्वादश अंगना धारका, पारग सयल सिद्धांत रे, कारक सुत्र समरथ भला, वारक अहितनी वात रे०..द्वादश० ॥१-२४॥ बावना चंदनरस भरे, वरसता वाणी कल्लोल रे; बोधिबीज दीये भव्यने, धरमशं करे रंगरोल रे०..द्वादश० ॥२-२५।। राजपुत्र जिम गुणचिंतका आचारज संपत्ति योग रे; त्रीजे भवे लहे शिवसंपदा, नमो पाठक शुभ योग रे०..द्वादश० ॥३-२६॥ शब्द शास्त्रे अम सूचवे, शब्द अर्थ परिणाम रे; भणे भणावे तेह पाठका, अवर ते नाम निदान रे०..द्वादश० ॥४-२७।। शिष्यने सुहित शिक्षा दिये, पावन जिम शुभ घाट रे; मूर्खने पण पंडित करे, नमुं पाठक महाराज रे०..द्वादश० ॥५-२८।। शासन जैन अजुवालता, पालता आप परतीत रे; आतम परिणति ते लहे, अमृत अह पदप्रीत रे०..द्वादश० ॥६-२६॥
(ढा. ५) (राग : जीवनना महासागरनां) इंद्रिय जीपेरे मन संयम धरे, चरण करण गुण ज्ञान; बाह्यचरणेरे देखी न राचीये, भगवती सूत्र प्रमाण रे, ते मुनि वंदो रे शुभ समता धरा०..॥१-३०॥ वस्त्र न धोवे रे रंगे नहि
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कदा, आचारांग मोझार रे, प्रवचन माने रे मुनि चालता, तेहनी जाउं बलिहारी०..ते०..॥२-३१।। जिम तरु फुलेरे भमरो बेसतां, न करे कांई उपघात रे, तिम मुनि जावे रे आहार गवेषवा, दशवैकालिक वात रे,०..ते०.. ॥३-३२॥ आहार ते लावी निरस भोगवे, जिम दर माहेरे साप रे, अनुत्तरोववाई धन्नो वर्णव्यो, नमतां जाये रे पाप०..ते०.. ॥४-३३॥ चउविह भाख्या रे पन्न वणा पदे, बोले मुनि निर्दोश रे, अहवा मुनिनेरे भावे वंदीये, तो होय समकित पोष रे,०..ते०.. ॥५-३४॥ कहीय प्रमादी रे मुनि न उवेखीये, जूओ चारण मुनि दोय; लब्धि प्रयुंजी रे जगतीरथ करे, तेहनो महिमारे जोय रे,०..ते०.. ॥६-३५।। लवण न मूके मर्यादा सही, जीवाभिगम तरंग रे, श्री जिनवचनेरे, ते मुनि वांदतां, वाधे संयम रंग रे,०..ते०.. ॥७३६॥ निरमल दीसेरे सोनातणी परे, ब्रह्म नवविध ब्रह्म सुहाय; पुन्य अंकुरारे दरिशन पामे, अमृत वंदेरे पाय रे,०..ते०.. ॥८-३७।। (68) श्री सिद्धचक्र स्तवन (राग : आवो आवो देव मारा)
सकल कुशल कमलानुं मंदिर, सुंदर महिमारे जास, नवपदमां नवनिधिनो दाता, सिद्ध अनेकमां वास रे, भविका सिद्धचक्र सुखकारी, तमे आराधो नरनारी रे. भ. १ प्रथम पदे अरिहंत आराधो, स्फटीक रल समवान; पद्म राग मणिनी परे राता, बीजे सिद्धनुं ध्यान रे. भ० २ बीजे आचारज अनुसरीओ, कंचन कांति अनुप; पद चोथे उवज्झायने प्रणमो, इंद्र निल समवान रे. भ० ३ सर्व साधुपद पंचम प्रणमो, श्याम वरण सुखकार, छठे दरिसण ज्ञान सातमे. आठमे चारित्र सार रे. भ० ४ तप, आराधन पद नवमे, चार ओ उज्वल वरणा; इहलोगुत्तम अहीज मंगळ, करवा अहनुं शरण रे. भ० ५ आसो चैत्री अठ्ठाइ मांही, नव आंबिल ओळी; सिद्धचक्रनी पूजा करतां, दुःख सवि नाखो ढोळी रे. भ० ६ सिद्धचक्र पूजाथी सघळी, संपदा नीज घेर आवे; दुष्ट कुष्ट प्रमुख जे रोगो, ते पण दूरे जावे रे. भ० ७ पृथ्वी निरुपम नयरी उज्जेणी, दोय पुत्री तस सारी; सुरसुंदरी मिथ्यात्विने पेखी, मयणाजिन मत धारी रे. भ० ८ सुरसुंदरी कहे सवि सुख अमने, छे निज तात पसाय; मयणा कहे ओ फोगट कुमत, सुख दुःख कर्म पसाय रे. भ० ६ तस वचने नृप कोप्यो ओह, आव्यो उबर इण समे; सातसे कोढीनो ते
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अधिपति, तेणे मांगी कन्याय रे. भ० १० नृप कहे मयणा तुम कर्मे, आण्यो ओ वर रसाल; तव मयणा मन धीरज धरीने, कंठे ठवे वरमाल रे. भ० ११ शुभवेला परणी दोय पहोंच्या, श्री जिनवर प्रसाद; ऋषभदेव पूजी गुरु पासे, आव्या धरि उल्लासे रे. भ० १२ प्रणमी मयणा कहे गुरुने, हवे भाखो कोइ उपाय; जेहथी तुम श्रावकनी काया, सर्व निरोगी थाय रे. भ० १३ गुरु कहे अमने मंत्र जंत्रादिक, कहेवा नही आचार; योग्यपणुं जाणी अमे कहेशृं, करवाने उपगार रे. भ० १४ नवदिन नव आंबिल तप करीने, सिद्धचक्र नित्य पूजो; न्हवण तणुं जल छांटो अंगे, रोग सकल तिहां ध्रुजे रे. भ० १५ गुरु वचने आंबिल तप करीने, सिद्धचक्र आराध्यो; उंबर कोढ गयो तस दूरे, रुप अनुपम वाध्यो रे. भ० १६ श्री श्रीपाल नरेंद्र थयो जे, परण्यो बहु कन्याय; प्रजापाल पण थयो श्रावक, श्री जिन धर्म पसाय रे. भ० १७ अनुक्रमे चंपा राज्य लेइने, पाळे अखंडीत आण; जगमाहे जसवाद थयो बहु, नित्य नित्य रंग मंडाण रे. भ० १८ महामंत्र परमेष्टि तणो ओ, भवदुःख नासे अविलंब; सकल सिद्धि वश करवाने, ओह अनोपम यंत्र रे. भ० १६ अहनो महिमा केवली जाणे, किम छद्मस्थ प्रकाशे; ते माटे पण सकल धर्मथी, जैन धर्म सारो भासे रे. भ० २० ते माटे भवियण तुमे भावो, सिद्धचक्रनी करो सेवा; आ भव परभव बहु सुख संपदा, जिम लहिये शिवमेवा. भ० २१ सुरत बंदर रही चोमासुं, स्तवन रच्यु ओ वारी; सत्तरसें बासठ वरसें, संघ सकल हितकारी रे. भ० २२ सिद्धचक्रनो महिमा सुणतां, होवे सुख विस्तार; श्री विजय सेनसूरिश्वर विनवे, दानविजय जयकार रे. भ० २३ (69) श्री सिद्धचक्र स्तवन (राग : शान्तिजिन रे शी गति थाशे)
नरनारी रे भमतां भव भरदरीओ, नवपदनुं ध्यान सदा धरीले; सुखकारी रे तो शिवसुंदरी वरीओ, नवपदनुं ध्यान सदा धरीओ. (१) पहेले पद श्री अरिहंत रे, करी अष्ट रिपुनो अंत रे, थया शिवरमणीना कंत रे, पद बीजे रे सिद्ध भजी दुःख हरीओ रे. नवपदनुं ध्यान सदा धरीओ, सुखकारी रे० (२) आचार्य नमुं पद त्रीजे रे, चोथे पद पाठक लीजे रे; प्रीतेथी पाय प्रणमीजे रे, पद पांचमे रे मुनि महाराज उच्चरीओ. नव० (३) छठे पदे दर्शन जाणुं रे, ज्ञान गुण मुख्य वखाणुं रे; जगमां जे खरु नाणुं रे, बहु खरचो रे.
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तोयन खुटे जरीओ. नव० (४) चारित्र पद नमुं आठ रे, नवमे तप करो बहु ठाठ नव. रे. दुःखदारिद्र जेहथी नाशे रे, जिनवरनी रे प्यारथी पूजा करीओ. नव० (५) नवदिन शियळव्रत पाळो रे, पडिक्कमणुं करि दुःख टालो रे, जेम चंपापति श्रीपाळ रे, मनमांही रे शंका न राखो जरीओ. नव० (६) ओगणीश अठ्ठावन वर्षे रे, पोष मास पुनमतिथी फरसे रे, भावे गावे ते भव नवि फरसे रे, निर्भयथी रे धर्म कहे भव तरीओ. नव० (७)
(70) श्री वर्द्धमान तपy तप पद धरजो ध्यान भवि तुमे तप पद धरजो ध्यान, नामे श्री वर्द्धमान...भवि०...दिन दिन चढते वान भवि०...सेवो थई सावधान भवि०... प्रथम ओली अक आयंबील, बीजीओ आंबेल दोय भवि०...त्रीजी ओ त्रण चोथी चार छे रे, उपवासांतर होय. भवि०॥१॥ ओम सो आंबील व्रतनी रे, सोमी ओली थाय भवि०...शक्ति अभावे आंतरे रे, विश्रामे पहोंचाय० भवि०॥२॥ चौद वर्ष त्रण मासनी रे; उपर संख्या दिन वीस भ०...; काल मान ओ जाणवू रे कहे वीर जगदीश...भ०.॥३॥ अंतगड अंगे वर्णव्युं रे, आचार दिनकर लेख भ०...ग्रंथांतरथी जाणवो रे ओ तपनो उल्लेख...भवि०.।।४।। पांच हजार पचास छे रे, आयंबील मली सर्व भ०...; संख्या सो उपवासनीरे, तपमां न करो गर्व०...भवि०.॥५॥ महासेन कृष्णा साधवी रे, अजरामद पद लीध...भवि०. ॥६॥ श्री चंद्र केवली ओ तप सेवीने रे, पाम्या पद निर्वाण०...भवि, धर्म रन पद पामवा रे, ओ उत्तम अनुष्ठान...भ०.||७|| (71) नवपदनी ओळीनी द्राको नव (राग जीवनना महासागरमां)
(ढा. १) देश मनोहर माळवो, निरुपम नयरी उज्जेण ललना; राज करे तिहां राजीयो, प्रजा पाल भूपाल ललना, श्री सिद्धचक्र आराधीओ. १ तस अंगज बे बालिका, मयणा जग विख्यात ललना; जिनमति पासे विद्याभणी, चोसठ कळा विशाळ ललना श्री सिद्धचक्र० २ सातसें कोढीनो अधिपति, श्री श्रीपाल नरिंद ललना; परणावी मयणा तेहने, कोढीशं धरती नेह ललना श्री सिद्धचक्र० ३ पियु! चालो देव जुहारीओ, ऋषभ जिणंद इष्टदेव ललना;
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पूजी प्रणमी आवीया; गुरु पासे ससनेह ललना श्री सिद्धचक्र० ४ कहे मयणा सुणो पुज्यजी, तुम श्रावकनो रोग ललना; कवण कर्म संजोगथी, केम जाशे जे रोग ललना, श्री सिद्धचक्र० ५ गुरु कहे वत्सा सांभळो, नही अम अवर आचार ललना; सिद्धचक्र यंत्र जोइने, करशुं तुम उपकार ललना श्री सिद्धचक्र० ६ आसो सुदि सातम दिने, कीजे ओळी उदार ललना; पांचे इंद्रिय वश करी, केवळ भूमि संथार- ललना श्री सिद्धचक्र० ७ पडिक्कमणां दोय टंकना, देववंदन त्रण काळ ललना; विधिशुं जिनवर पूजीओ, गणj तेर हजार ललना श्री सिद्धचक्र० ८ ओम नव दिन आंबिल करे, मयणां ने श्रीपाल ललना; पंचामृत न्हवणे करी नवरावे भरथार ललना श्री सिद्धचक्र० ६ श्री सिद्धचक्र सेवा फळी, पाम्या सुख श्रीपाल ललना; पूरव पूण्य पसायथी, मुक्ति लहे वरमाळ ललना श्री सिद्धचक्र० १०
(ढा. २) (राग : आज आव्याने काले आवशुं रे लोल) श्री गुरुवयणे तप करे रे लोल, नारीने भरथार रे चतुर नर! भक्ति युक्ति घणी साचवे रे लाल, रहे स्वामी आवास रे चतुर नर! श्री सिद्धचक्र सेवा करे रे लाल० १ श्री अरिहंत पहेले पदे रे लाल, बीजे सिद्धनुं ध्यान रे चतुर नर! त्रीजे आचारज उवज्झाय ने रे लाल, सकळ साधु प्रणमे पाय रे. रे चतुर नर! श्री० २ ज्ञान-दर्शन चारित्रना रे लाल, गुण स्तवे चित्त उदार रे चतुर नर! नवमे तप पुरु थयुं रे लाल, फळीयां वांछित काज रे चतुर नर! श्री० ३ ओम नव दिन
आंबिल करे रे लाल, मयणाने श्रीपाळ रे चतुर नर! दंपती सुख लीये स्वर्गना रे लाल, विलसे सुख श्रीकार रे चतुर नर! श्री०४ सूई जिम दोरा प्रत्ये रे लाल, आणी दीये कसीदो ठाय रे रे चतुर नर! मयणा बेउ कुळ उद्धर्या रे लाल, श्री जिनधर्म पसाय रे चतुर नर! श्री० ५ गुरु दीवो देवता रे लाल, गुरु मोटा महीराण रे चतुर नर! भवोदधि पार उतारवा रे लाल, जलधिजे जेम नाव रे चतुर नर! श्री० ६ जे नवपद गुरुजी दीया रे लाल, धरता तेह शुं नेह रे चतुर नर! पूरव पुण्ये पामीया रेलाल, मूक्ति वर्या गुण गेह रे चतुर नर! श्री० ७
(ढा. ३) (राग : विचरंता गामो गाम) राजग्रही उद्यान, समवसर्या भगवान; आछेलाल श्रेणिक वंदन आवियाजी. १ हयगय रथ परिवार, मंत्री
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अभयकुमार, आछे लाल बहु परिवारे परिवर्याजी, २ वांद्या प्रभुजीना पाय, बेठी पर्षदाबार; आछेलाल जिनवाणी सुणवा भणीजी, ३ देशना दीये जिनराज, सांभळे सौ नरनार; आछेलाल, नवपद महिमा वर्णवेजी, ४ आसो चैतर मास, कीजे ओळी उल्लास; आछेलालसुदि सातमथी मांडीओजी. ५ पंच विषय परिहार, केवळ भूमि संथार; आछेलाल जुगते जिनवर पूजीओजी. ६ जपीओ श्री नवकार, देववंदन त्रणकाळ; आछेलाल, तेह हजार गणj गणोजी. ७ ओम नव आंबिल सार, कीजे ओळी उदार; आछेलाल, दंपती सुख लह्या, स्वर्गनाजी. ८ करतां नवपद ध्यान, मयणा ने श्रीपाळ; आछेलाल अनुक्रमे, मूक्ति पद वर्याजी. ६ __(ढा. ४) (राग--मारे घेर आवजोरे वाला.) आजे ओच्छव छेरे अधिको, जोवा दरिसण प्रभु मुख मटको; मटके मोह्यारे इंदा. जाणुं प्रभु मुख पुनम चंदा. श्री सिद्धचक्रने रे सेवो. १ केसर चंदन रे धसीओ, नव अंगे प्रभुजीनी पूजा रचीओ; पूजानां फळ छे रे मीठां, तेतो मयणा ओ प्रत्यक्ष दीठां. श्री. २ पहेले पदे अरिहंत लीजे, बीजे सिद्धपद ध्यान धरीजे; त्रीजे आचारज थुणीजे, उवज्झायपदने चोथे गुणीजे श्री. ३ पांचमे साधुरे प्रणमो. छठे दरिसण ज्ञान सातमे, आठमे चारित्र रे सार, नवमे तप पद उज्वळ वान. श्री. ४ ओम नव आंबिल कीजे, स्वामी वत्सल पारणुं दीजे; रात्री जागरण रे कीजे, स्वामीभाईने श्रीफळ दीजे श्री. ५ अम अकाशी आंबिल तप पुरूं, शक्ति सार करो उजमj, ओम नवपदने रे ध्याता, मयणा श्रीपाळ, जगविख्याता; पुण्ये सिद्धचक्र रे सेव्या, चाखे मुक्ति शिव वधु मेवा श्री. ३
(ढा. ५) (राग--झुमखडानी) श्री सिद्धचक्र आराधिजे रे, जेहना गुण अनंत जिनेश्वर पूजीओ; अडविध अड पांखडी करी रे, नवमां सिद्ध नमंत जिनेवर पूजीओ १ चक्रवाक फिरे चक्र जयुं रे, फरता पद ठव्या आठ जि०; मध्य भाग वच्चे ठव्या रे, राता सिद्ध भगवंत. जि० २ ज्ञान दरिसण चारित्र गणे रे, क्षायिक समकितवंत, कम्मपयडी अड क्षय करी रे, पंदर भेदे सिद्ध. जि० ३ लोकने अंते जई वस्या रे, सादि अनंतमे भाग. दि० योगिधर परे ध्यावता रे, आणी ठव्या निज लाग. जि० ४ अरिहंत सिद्ध सूरि नमो रे, उवज्झायने सर्व साधु, जि० ज्ञान दर्शन चारित्र तपो रे, ओम नवपद संयुक्त.
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मयणा ने श्रीपाळ, जि० दंपति नव पद सेवतां रे, पाम्या नवमुं स्वर्ग, जि० आत्म अनुभव ज्ञानथी रे, भक्त लहे अपवर्ग. जि० ७
(ढा. ६) (राग :--रघुपति राघव राजा राम) सेवो रे भविजन भक्ति भाव, ध्यावो रे सिद्धचक्र मन उमाय; आसो मासे चैत्र उमंग, कीजे ओळी नव अभंग. भ० १ उभय टंक पडिक्कमणुं जाण, देव वंदन पूजा त्रण काळ; केसर चंदन मृग मद सार, पूजा रचावो थई उजमाळ. भ० २ मंगळ दीवो आरती सार, अक्षत फळादिक नैवेध सार; चउद पूर्वनो जे छे सार, तेणे कारण समरो नवकार. भ० ३ ओ सिद्धचक्रनी भक्ति नित्य, नव पद जाप जपो ओकांत; जपता नवपद मयणा श्रीपाळ, उंबर रोग गयो तत्काळ भ० ४ सातसो महीपति नमण प्रभाव, देही पाम्यां कंचनवान, भ० बांधी संपदा जग जस नूर, पाम्या मुक्ति सुख भरपूर. भ० ५
(ढा. ७) (दशी मन मोहन मेरे) श्री सिद्धचक्र सेवा करो मन मोहन मेरे, जे छे परम दयाळ मन मोहन मेरे, अलिय विघन दूरे करे मन मोहन मेरे, उतारे भवपार रे मन मोहन मेरे, १ आसो सुदि सातम दिने, मन० कीजे
ओळी उदार, मन मोहन मेरे. उभयटंक काउसग्ग करो मन मोहन मेरे. तजी विषय प्रमाद मन मोहन मेरे २ केशर चंदन घसी घणां मन मोहन मेरे पूजा रचो श्रीकार मन मोहन मेरे, धान्य फळादिक ढोइ ओ मन मोहन मेरे फूल पगर भराव रे मन मोहन मेरे, ३ श्री सिद्ध-चक्र भक्ति करे मन मोहन० मयणा ने श्रीपाळ मन मोहन० देववंदन काउस्सग करो मन० पूरव भव अभ्यास मन० ओम नवपद विधि साचवे मन० चार वर्ष षट्मास मन० दंपति नव पद सेवतां मन० लहे मुक्ति सुखवास, मन०
(ढा. ८) (राग--सिद्धचक्र पद वंदो) आसो चैतर मासे करो, ओळी मन उल्लासे रे; भविया श्री सिद्धचक्र आराधो, पूर्व दिशि अरिहंत श्वेत, बार गुणे सोहंत रे भविया, श्री सिद्धचक्र आराधो० १ मध्य भागे सिद्धराज सोहे, रकत वर्ण गुण आठ रे; भ० श्री सि० दक्षिणे आचार ज होये, पीतवान छत्रीश गुण शोभे रे. भ० श्री सिद्ध० २ पश्चिम नीला गुण पच्चवीश, वाचक द्वादश अंगी रे; भ० श्री सिद्ध० उत्तर दीशे सोहे धनवान, गुण सत्तावीस तनुं तापे रे. भ० श्री सिद्ध०३ नाण नमुं अग्नि खूणे रे, भेद अकावन उज्वल वर्ण
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रे. भ० श्री सिद्ध० नेऋत्य खूणे दर्शन राजे, धवळा सडसठ भांजे रे. भ० श्री सिद्ध० ४ वायु खूणे चारित्र भलु, सित्तेर गुण पवित्र रे. भ० श्री सिद्धः इशान खूणे तप तपतां, षट ब्रह्म अभ्यंतर विराजे रे. भ० श्री सिद्ध० ५ अम बाह्य नवपद जे पूजे, तेना रोग सकळ तिहां धूजे रे. भ० श्री सिद्ध० दंपति साथे नवपद सेव्या, चाखे पुन्य मुक्ति मेवा रे. भ० श्री सिद्ध० ६
(ढा. ६) (राग--श्री अष्टापद उपरे) नवपद महिमां सांभळो, वीर भाखे हो जिनधर्मनो मर्म के; पर्षदा बार मळी तिहां, देवदेवी हो नरनारी वृंद के. १ जैन धर्म जग सुरतरु, जे सेवो हो धरी चित्त उदार के; आभव परभव सुख लहे, जेम पाम्या हो उंबर श्रीपाळ के; जै० २ पूछे नृप प्रणमी प्रभु, कोण नृपति हो कुंवर श्रीपाळ के; अणे भवे सुखसंपदा, केम परभवे हो लह्या स्वर्ग निधान के. जै० ३ कहे गौतम श्रेणिक सुणो, तुमने दाखं हो श्रीपाल चरित्र के, निद्रा विकथा परिहरो, वळी सांभळी हो करो श्रवण पवित्र के. जै० ४ अंग अनोपम देशमां, नृप नामे हो सिंहरथ भूपाळ के; राणी कमळ प्रभा देवी, तस अंगज हो कुंवर श्रीपाळ के. जै० ५ गुरुमुख नवपद उचर्या, नृप सेवे हो धरी चित्त उदार के, भक्ति करे गुरुदेवनी, व्रत पाळे हो समकित शुं बार के. जै० ६ पूर्वे नवपद आचर्या, श्रीकांत राजा हो. श्रीमती नार के, तेने पून्ये रुद्धि रमणी मळी, वळी लीधो, स्वर्ग नवमो सार के. जै० ७ आठ सखी श्रीमतीनी, ते राखे हो नवपद शुं प्रेम के, ते पून्ये नृप कुळ ऊपनी, थई मयणानी ते आठे बेन के. जै० ८ देशना सुणी नृप रंजीओ, हरखीत थया हो नगरीना लोक के, भक्ति करे सिद्धचक्रनी, कहे धन धन हो श्री जैन धर्म पोतके. जै० ६ वाधे कमळा कीर्तिने, जस प्रसरे हो पून्य जोगे तेज के, चरण कमल नित सेवता, बोलावे हो वळी मुक्ति सेज के. जैन धर्म जग सुरतरु १० . . (72) नवपदनी ढाळो चार (राग मीठा मधुने मीठा मेहुला रे लोल)
आसो मासे ते ओळी- आदरी रे लोल, धर्यु नवपदजीनुं ध्यान रे, श्रीपाल राजाने मयणा सुंदरी रे लोल. (१) मालवदेशनो राजीयो रे लोल, नामे प्रजापाल भुप रे श्रीपाल० (२) सौभाग्य सुंदरी रुप सुंदरी रे लोल, राणी बे रुप भंडार रे, श्रीपाल० (३) ओक मिथ्यात्वी धर्मनी रे लोल,
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कमारीका, उत्तम फुल शुं सार, राजा
बीजीने जिन धर्म राग रे. श्रीपाल० (४) पुत्री ओकेकी बेउने रे लोल, वधे जेम बीज केरो चंद्र रे श्रीपाल० (५) सौभाग्य सुंदरीनी सुर सुंदरी रे लोल, भणे मिथ्यात्वीनी पास रे. श्रीपाल (६) मयणा सुंदरीने, रुपसुंदरी लोल, भणावे जैन धर्म सार रे श्रीपाल० (७) रुपकला गुणे शोभती रे लोल, चोसठ कळानी जाण रे. श्रीपाल० (८) बेठो सभामां राजवी रे लोल बोलावे बालिका दोय रे श्रीपाल० (६) सोळे शणगारे शोभती रे लोल, आवी उभी पिताजीनी पास रे श्रीपाल० (१०) विद्या भण्यानुं जोवा पारखं रे लोल, पूछे राजा तिहां प्रश्न रे. श्रीपाल० (११)
(साखी) जीव लक्षण शं जाणवू, कोण कामदेव घर नार; शुं करे परणी कुमारीका, उत्तम फुल शुं सार, राजा पूछे चारनो, आपो उत्तर ओक; बुद्धिशाळी कुंवरी, आपे उत्तर अक, वासलक्षण पहेलुं जीव- रे लोल. रति कामदेव घर नार रे, श्रीपाल० (१२) जाईनुं फुल उत्तम जातिमां रे, लोल, कन्या परणीने सासरे. जाय रे, श्रीपाल० (१३)
(साखी) प्रथम अक्षर विना, जीवाडनार जगनो कह्यो, मध्यम अक्षर विना, संहार जगनो ते थयो; अंतीम अक्षर विना, सौ मन मीठु होय; आपो उत्तर ओकमां, जेम स्त्रीने व्हालु. होय, आपे उत्तर मयणा सुंदरी रे लोल, मारी आंखमां काजळ सोहाय रे, श्रीपालक (१४)
(साखी) पहेलो अक्षर काढतां, सोहे नरपति सोय, मध्याक्षर विना जाणवू, स्त्री मन व्हालुं होय, त्रीजो अक्षर काढतां, पंडितने प्यारो थयो. मांगु उत्तर अकमां, ताते पुत्रीने कह्यो. मयणाजे उत्तर आपीयो रे लोल. अर्थ त्रणेनो वादळ थाय रे. श्रीपाल० (१५) राजा पूछे सूर सुंदरीने रे लोल, कहो पुन्यथी शुं शुं पमाय रे. श्रीपाल० (१६) धन यौवन सुंदर देहडी रे लोल, चोथो मन वल्लभ भरथार रे. श्रीपाल० (१७) कहे मयणा निज तातने रे लोल, सहु पामीये पून्य पसाय रे. श्रीपाल० (१८) शीयलव्रते शोभे देहडी रे लोल, बीजी बुद्धि न्याये करी होय रे. श्रीपाल० (१६) गुणवंत गुरुनी संगती रे लोल, मळे वस्तु पुन्यने योग रे. श्रीपाल० (२०) बोले राजा अभिमाने करी रे लोल, करुं निर्धनने धनवंत रे. श्रीपाल० (२१) सर्वे लोको सुख भोगवे रे लोल, ओ सघळो छे मारो पसाय रे. श्रीपाल० (२२)
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सुर सुंदरी कहे तात ने लोल, ओ साचामां शानो संदेह रे. श्रीपाल० (२३) राय त्रुट्यो सुर सुंदरी रे लोल, परणावी पहेरामणी दीध रे. श्रीपाल० (२४) शंखपुरीनो राजीयो रेलोल, जेनुं अरिदमन छे नाम रे. श्रीपाल० (२५) राय सेवार्थे आवयो रे लोल, सुर सुंदरी आपी सोय रे. श्रीपाल० (२६) राये मयणाने पूछीयुं रे लोल, मारी वातमां तने संदेह रे. श्रीपाल० (२७) मयणा कहे नीज तातने रो लोल, तमे शाने करो छो अभिमान रे. श्रीपाल० (२८) संसारमां सुखदुःख भोगवे रे लोल, तेतो कर्मनी जाणो पसाय रे. श्रीपाल ० (२६) राजा क्रोधे बहु कळ कव्यो रे लोल, भाखे मयणां शुं रोष वचन रे. श्रीपाल ० (३०) रत्न हींडोले तुं हींचती रे लोल, पहेरी रेशमी ऊंचा चीर रे. श्रीपाल ० (३१) जगत सौ जी जी करे रे लोल, तारी चाकर करे पाय सेव रे. श्रीपाल० (३२) ते मारा पसायथी जाणजो रे लोल, रुठे रोली नांखु पलमांय रे. श्रीपाल० (३३) मयणां कहे तुम कुळमां रे लोल, उपजवानो क्यां? जोयो तो जोश रे. श्रीपाल० (३४) कर्म संयोगे उपनी रे लोल, व्यां खान पान आराम रे. श्रीपाल० (३५) तमे म्होटे मने मल्हावता रे लोल, मुज कर्म तणो छे पसाय रे. श्रीपाल० (३६) राजा कहे कर्म उपरे रे लोल, दीसे तने घणो हठवाद रे. श्रीपाल० (३७) कर्मे आणेला भरथारने रे लोल, परणावी उतारुं गुमान रे. श्रीपाल० (३८) राजाना क्रोधने निवारवा रे लोल, लइ चाल्यो रयवाडी प्रधान रे. श्रीपाल० ( ३६ ) नवपद ध्यान पसायथी रे लोल, सवी संकट दूरे पलाय रे श्रीपाल० (४०) कह्युं न्याय सागरे पहेली ढाळमां रे लोल, नवपदथी नवनिधि थाय रे. श्रीपाल० (४१)
(ढा. २) राजा चाल्यो अ रयवाडी अ, साथे लीधो सैन्यनो परिवार रे. साहेली मोरी ध्यान धरो अरिहंतनुं, ढोल नगारा तिहां गडगडे, बरछीओने भालानो झलहलाट रे. साहेली मोरी० (१) धूळ उडेने लोको आवता, राजा पूछे प्रधानने अ कोण रे, सा० कहे प्रधान सुणो भूपति. ओछे सातसो कोढीयानुं सैन्य रे. साहेली मोरी० (२) राजानी पासे याचवा, आवे कोढीयो स्थापी राजा ओक रे. साहेली० कोढे गळी छे जेनी अंगुली, याचवा आव्यो कोढीया केरो दुत रे. साहेली मोरी० (३) राणी नही रे अमरायने, उंचा कुळनी कन्या मले कोई रे,. साहेली० दाढ खटके रे जाणे कांकरो, नयण
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खटके तेतो रेणुं समान रे. साहेली मोरी० (४) वयण खटके जाणे पाउलो, राजा हैडे खटके मयणा बोल रे. साहेली० कोढीया राजाने कहेवरावीयुं, आवजो नगरी उजेणीनी माय रे. साहेली मोरी० (५) कीर्ति अविचल राखवा, आपीश मारी राजकुंवरी कन्याय रे. साहेली० उंबर राणो हवे आवीयो, साथे सातसो कोढीया केरुं सैन्य रे. साहेली मोरी० (६) आव्यो वरघोडो मध्य चोकमां, खच्चर उपर बेठां उंबर राय रे. साहेली० कोई लुलाने कोई पांगुला रे, कोइना मोटा सुपडा जेवा कान रे. साहेली. मोरी० (७) मोढे चांदाने चाठा चग चगे, मुख उपर माखीयोनो भणकार रे. साहेली० शोर बकोर सुणी सामटा, लाखो लोको जोवा भेगा थाय रे. साहेली मोरी० (८) सर्वे लोको मळी पूछतां, भूत प्रेत राक्षसके पिशाच रे. साहेली० भूतडा जाणीने भसे कुतरा, लोकोने मन थयो छे उत्पात रे. साहेली मोरी० (६) जान लइने अमे आवीयां, परणे अमारो राणो राज कन्याय. साहेली० कौतुक जोवाने लोको साथमां, उंबर राणो राजदरबारे रे. साहेली मोरी० (१०) हवे राय मयणाने कहे सांभलो, कर्मे आव्यो करो तुमे भरथार रे. साहेली० करो अनुभव हवे सुखनो, जुओ तमारा कर्म तणो पसाय रे. साहेली० कर्तुं न्याय सागरे बीजी ढाळमां, नवपद ध्याने थाशे मंगळ माळ रे. साहेली मोरी० (११)
(ढा. ३) (राग : मालव धूर उजेणी ओ रे लाल) तात आदेशे मयणा चिंतवे रे लोल, जे ज्ञानीओ दीठं ते थाय रे. कर्मतणी गति पेखजो रे लोल. (१) अंश मात्र खेद नथी आणती रे लोल, नवि मुखडानो रंग पलटाय रे. कर्म० (२) हशे जायो राजानो के रंकनो रे लोल, पिता सोंपे छे पंचनी साख रे. कर्म० (३) अने देवनी पेरे आराधवो रे लोल, उत्तम कुलनी स्त्रीनोओ आचार रे. कर्म० (४) ओम विचारी मयणा सुंदरी रे लोल, कर्यु तातनुं वचन प्रमाण रे. कर्म० (५) मुख रंग पूनमनी चांदनीरे लोल, शास्त्रे लग्नवेळा जाणी शुद्ध रे. कर्म० (६) आवी उंबर राणानी डाबी बाजुओ रे लोल, जाते करे छे हस्त मेलाप रे. कर्म० (८) होय दासी कन्या तो परणावजो रे लोल, कोढी साथे शं? राजकन्याय रे. कर्म० (६) माता मयणानी झुरती रे लोल, रोवे कुटुंब सखी परिवार रे. कर्म० (१०) कोई
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राजानो रोष धिक्कारता रे लोल, कोइ कहे कन्या अपराध रे. कर्म० (११) देखी राजकुंवरी अति दीपति रे लोल, रोगी सर्व थया रळीयात रे. कर्म० (१२) चाली मयणा उंबरनी साथमां रे लोल, ज्यां छे कोढी तणो जानी वास रे. कर्म० (१३) हवे उंबर राणो मन चिंतवे रे लोल, धीक धीक म्हारो अवतार रे. कर्म० (१४) सुंदर रंगीली छबी शोभती रे लोल, तेनुं जीवन कर्यु में धूळ रे. कर्म० (१५) कहे उंबर राणो मयणा सुंदरी रे लोल, तमे ऊंडो करोने आलोच रे. कर्म० (१६) तारी सोना सरखी छे देहडी रे लोल,, मारा संगतथी थासे विनाश रे. कर्म० (१७) तुं तो रुप केरी रंभा सरखी रे लोल, मुज कोढी साथे शुं स्नेह रे कर्म० (१८) पति उंबर राणाना वचन सांभळी रे लोल, मयणा हैडे दुःख न समाय रे कर्म० (१६) ठळक ठळक आंसुं ठळे रे लोल, काग हसवू देडक जीव जाय रे कर्म० (२०)
(साखी) कमलीनी जळमां वसे, चंद्र वसे आकाश, जे जेहना मनमा वसे, ते तेहनी रे पास. हवे मयणा कहे उंबर रायने रे लोल, तमे व्हाला छो जीवन प्राण रे कर्म० (२१) पश्चिम रवि उगे नहि रेलोल, नवि मुके जलधि मर्याद रे कर्म० (२२) सती अवर पुरुष इच्छे नहि रे लोल; कदी प्राण जाय परलोक रे कर्म० (२३) पंचनी साखे परणावीयो रे लोल, अवर पुरुष बांधव मुज होय रे कर्म० (२४) हवे पाय लागीने वीन, रे लोल, तमे बोलो विचारीने बोल रे कर्म० (२५) रात्री वीती ओम वातमां रे लोल, बीजे दीन थयो प्रभात रे कर्म० (२६) हवे मयणा आदिसर भेटवा रे लोल, जाय साथे लइ भरथार कर्म० (२८) प्रभु कुसुम चंदने जइ पुजीया रे लोल, प्रभु कंठे ठवी कुलनी माळ रे कर्म० (२६) प्रभु हाथे बीजोरुं शोभतुं रे लोल, प्रभु कंठे सोहे फुलनी माळ रे. कर्म० (३०) शासन देव सहु देखतां रे लोल, आप्यु बीजोरुं ने कुल माळ रे. कर्म० (३१) लीधुं उंबर राणाले ते हाथमां रे लोल, मयणा हैडे हर्ष न माय रे. कर्म० (३२) पौषध शाला मां गुरु वांदवा रे लोल, चाली मयणा साथे भरथार रे. कर्म० (३३) गुरु आपे धर्मनी देशना रे लोल, दोहीलो मनुष्य अवतार रे. कर्म० (३४) पांच भुल्याने चारे चुकीयो रे लोल, त्रण- जाण्युं न नाम रे. कर्म० (३५) जगत ढंढेरो फेरीयो रे लोल, छे श्रावक अमारुं नाम रे. कर्म० (३६) पप्पा शुं
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परख्यो नही रे लोल, व्हालो ददो कीधो दूर रे. कर्म० (३७) लल्लासुं लागी रह्यो रे लोल, व्हालो नन्नो रह्यो हजुर रे. कर्म० (३८) उंबर मयणा ओ गुरु वांदिआ रे लोल, गुरु दीओ छे धर्म लाभ रे. कर्म० (३६) सखी परिवारे तुं शोभती रे लोल, आज सखी न दीसे अक रे. कर्म० (४०) सर्व वृतांत सुणावीयो रे लोल, ओक वातनुं मने छे दुःख रे. कर्म० (४१) देखी जैन शासननी हेलना रे लोल, करे मुर्ख मिथ्यात्वी लोक रे. कर्म० (४२) हवे गुरुने मयणा विनवे रे लोल, मटे रोग जो मुज भरथार रे. कर्म० (४३) लोक निंदा टळे जेहथी रे लोल, उपाय कहो गुरुराज रे. कर्म० (४४) यंत्र जडी बुटी औषधी रे लोल, भणी मंत्र बीजा उपचार रे. कर्म० (४५) गृहस्थीने ओ कहेवा तणो रे लोल, नहि साधुनो ओ आचार रे. कर्म० (४६) गुरु कहे मयणा सुंदरी रे लोल, आराधो नवपद सार रे. कर्म० (४७) जेथी विघन सहु दूर थशे रे लोल, धर्म उपर राखो मन दृढ रे. कर्म० (४८) कहे न्याय सागर त्रीजी ढाळमां रे लोल, तमे सांभळजो नरनार रे. कर्म० (४६)
(ढा. ४) (राग : रातुं रातुं गुलाब- फुल गुलाबे रमतीती) मयणा सिद्धचक्र आराधे गुलाबमां रमतीती, निज पति उंबरनी साथे जापोने जपतीती. (१) पहेले पदे अरिहंत पूज्या, गुलाबमां० हण्या घाती आघाती धूजे जापोने० (२) त्रण लोकनी ठकुराइ छाजे गुलाबमां० वाणी पुर योजनमां गाजे, जापोने० (३) बीजे सोहे सिद्ध महाराज गुलाबमां० त्रण लोकना थइ शिरताज जापोने० (४) त्रीजे पदे आचारज जाणो गुलाबमां० मली लाकडी अंध प्रमाणो जापोने० (५) चोथे पदे उपाध्याय सोहे गुलाबमां० भणे भणावे जन मन मोहे जापोने० (६) पद पांचमे साधु मुनिराया गुलाबमां० गुण सत्तावीश सोहाया जापोने० (७) मन वचन गोपवी काया गुलाबमां० वंदु तेवा मुनिवर राया जापोने० (८) छठे दर्शन पद छे मूळ गुलाबमां० कोई आवे न तस तोले रे जापोने० (६) सोहे सातमुं पद वरनाण गुलाबमां० तेना भेद ओकावन जाण जापोने० (१०) ज्ञान पांचमुं केवल थाय गुलाबमां० त्रण लोकना भाव जणाय जापोने० (११) देवो इच्छा करे न पावे जापोने० (१२) भवि जीवो ते भावना भावे गुलाबमां० केवी रीते उदयमां आवे जापोने० (१३) करो नवमे पद तप भावे गुलाबमां० आठ
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कर्मो बाळीने राख थावे जापोने० (१४) रिद्धि आतम अनंती पावे गुलाबमां० देव देवी मली गुण गावे जापोने० (१५) प्रभु पूजो केशर मद घोळी गुलाबमां० भरी हरखे हेम कचोली जापोने० (१६) भरी शुद्ध जले अंघोली गुलाबमां० चउगतिंनी आपदा चोली जापोने० (१७) दुरगतिना दुःख दुर ढोली गुलाबमां० आसो सुदि सातमथी ओली जापोने० (१८) करो नव आंबेलनी ओळी गुलाबमां० मळी सरखी सैयरोनी टोली जापोने० (१६) मयणा धरे नवपद ध्यान गुलाबमां० पति काया थइ कंचनवान जापोने० (२०) सौ मंत्रमा छे शिरदार गुलाबमां० तमे आराधो नरनार जापोने० (२१) न्याय सागरे कही ढाल चोथी गुलाबमां० सुणो श्रीपाळ राजानी रास पोथी जापोने० (२२)
(73) श्री सिद्धचक्रजी- स्तवन ढाळ ४ (ढा. १) (जीहो कुंवर बेठा गोखडे-ओ देशी) जीहो प्रणमुं दिन प्रत्ये जिनपति लाला शिव सुखकारी अषेश, जीहो आसोइ चैत्री भणी रे लाला अठ्ठाइसु विशेष, भविकजन जिनवर जग जयकार, जीहो जीहां नवपद आधार भविजन० आंकणी० १ जीहो तेह दिवस आराधवा लाला, नंदीसर सुर जाय, जीहो जीवाभिगम माहे कह्यं रे लाल, करे अडदिन महिमाय. भ० २ जीहो नवपद केरा यंत्रनी लाला, पूजा कीजे रे जाप, जीहो रोग शोक सवि आपदा लाल; नासे पापनो व्याप. भ० ३ जीहो अरिहंत सिद्ध आचारजा रे लाला, उवज्झाय साधुओ पंच, जीहो सणनाण चरित्त तवो रे लाला ओ चउगुणनो प्रपंच. भ० ४ जीहो ओ नवपद आराधतां लाला, चंपापति विख्यात, जीहो नृप श्रीपाळसुखीयो थयो लाला, ते सुणजो अवदात. भ० ५
(ढा. २) (कोई लो पर्वत धुंधलो रे--ओ देशी) मालवधुर उज्जेणीये रे लो, राज्यकरे प्रजापाल रे सुगुणनर, सुरसुंदरी मयणा सुंदरी रेलो, बे पुत्री तस बाल रे सुगुणनर, श्री सिद्धचक्र आराधिये रे लो, जेम होय सुखनी माल रे सुगुणनर, श्री सिद्धचक्र आराधिये रे लो. आंकणी १ पहेली मिथ्याश्रुत भणी रे लोल, बीजी जिन सिद्धांत रे सु० बुद्धि परिक्षा अवसरे रे लो, पूछे समस्या तूरंत रे सु० श्री० ॥२॥ त्रुठो नृपवर आपवा रे लो, पहेली कहे ते प्रमाण रे सु० बीजी कर्म प्रमाणथी रे लो, कोप्यो ते तव नृप भाण रे सु०
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श्री० ||३|| कुष्टिवर परणावियो रे लो, मयणां वरे धरि नेह रे सु० रामा हजीय विचारीये रे लो, सुंदरी विणसे तुज देह रे सु० श्री० || ४ || श्री सिद्धचक्र प्रभावथी रे लो, निरोगी थयो जेह रे सु० पुण्य पसाये कमला लही रे लो, वाध्यो घणो ससनेह रे सु० श्री० ||५|| माउले वात ते जब लही रे लो, वांदवा आव्यो गुरु पास रे सु० निज घर तेडी आवीयो रे लो, आपे निज आवास रे सु० श्री० || ६ || श्री पाल कहे कामीनी सुणो रे लो, में जावुं परदेश रे सु० मालमत्ता, बहु लावशुं रे लो, पूरशु तुम तणी खांत रेसु० श्री० ||७|| अवधि करी अक वरसनी रे लो, चाल्यो नृप परदेश रे सु० शेठ धवल साथे चाल्यो रे लो, जलपंथे सुविषेश रे सु० श्री० ॥८॥
(ढा. ३) परणी बब्बर पति सुतारे, धवल मूकाव्यो ज्यांही, जिनघर बार उघाडतां रे, कनककेतु बीजी त्यांही, चतुर नर श्री श्रीपाल चरित्र, अ आंकणी. ॥१॥ परणी वस्तुपालनी रे समुद्र तटे आवंत, मकरकेतु नृपनी सुतारे, वीणा वादे रीझंत. च० ||१|| पांचमी त्रैलोक्य सुंदरी रे, परणी कुब्जा रुप, छठ्ठी समस्या पूरती रे, पंच सखी शुं अनुप. च० ||३|| राघावेघे सातमी रे, आठमी विष उतार, परणी आव्यो निज घरे रे, साथे बहु परिवार. च० ।।४।। प्रजापाले सांभली रे, पर दल केरी वात, खंधे कुहाडो
इ करी रे, मयणां हुइ विख्यात च० ||५|| चंपाराज्य लेइ करी रे, भोगवी कामित भोग, धर्म आराधी अवतर्यो रे, पहोतो नवमे सुरलोक. च० ||६||
( ढा. ४) ओम महिमा सिद्धचक्रनो, सुणी आराधे सूविवेक मेरे लाल, श्री सिद्धचक्र आराधीये, अ आंकणी० नवओळी नव आंबिले, तेर सहस जपो पद ओक मेरे लाल. श्री० १ अडदल कमलनी थापना, मध्ये अरिहंत उदारमे ० चिहुं दिशे सिद्धादिक चिउ, चक्र दिशे तुं गुणधार. मे० श्री० २ बे पक्किमणां यंत्रनी, पूजा देव वंदन त्रिकाल मे० नवमे दिन सुविषेशथी, पंचामृत कीजे पखाल. मे० श्री० ३ भूमि शयन ब्रह्म धारणा, रुंधी राखो त्रण जोग, मे० गुरु वैयावच्च कीजीये, धरो सदृहणा भोग. मे० श्री० ४ गुरू पडिलाभी पारीओ साहम्मी वत्सल पण होय मेरे लाल; उजमणां पण नव नवां, फल धान्य रयणादिक ढोय. मे० श्री० ५ इह भव सवि सुख संपदा, परभवे सविसुख थाय मे० पंडित शांतिविजय तणो, कहे मानविजय उवज्झाय मे० श्री० ६
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(74) श्री अरिहंत पदनी सज्झाय (राग : आजनो दिवस मने)
वारी जाउं श्री अरिहंतनी, जेहना गुण छे बार मोहन, प्रति हारज आठ छे, मूल अतिशय छे चार मोहन वारि ० १ वृक्ष अशोक सुर कुसुमनी, वृष्टी दीव्यध्वनी वाण मोहन, चामर सिंहासन दुंदुभि, भामंडल छत्र वखाण मोहन वारी० २ पूजा अतिशय छे भलो, त्रिभुवन जनने मान, मोहन, वचना अतिशय जोजन गामी, समजे भविय समान मोहन वारि० ३ ज्ञाना अतिशय अनुतर तणा, संशय छेदनहार, मोहन, लोका लोक प्रकाशतां, केवळ ज्ञान भंडार, मोहन वारि० ४ रागादिक अंतर रिपु, तेहनो कीधो अंत मोहन, जिहां विचरे जगदिश्वरुं, तिहां साते इति समंत मोहन वारि० ५ अहवा अपायापगमनो, अतिशय अति अद्भुत मोहन, अह निश सेवा सारता, कोडी गमे सुरहुंत मोहन वारि० ६ मार्ग श्री अरिहंतनो, आदरिओ गुणगेह मोहन, चार निक्षेपे वांदिओ, ज्ञान विमल गुणगेह मोहन वारि० ७
(75) सिद्धपदनी सज्झाय (राग : आजे आव्याने काले आवशुं रे)
नमो सिद्धाणं बीजे पदे रे लाल, जेहना गुण छे आठ रे हुं वारि लाल, शुक्ल ध्यान अनले करी रे लाल, बाल्या कर्म कठोर रे हु० ||१|| ज्ञानवरणी क्षये लह्युं रे लाल, केवळ ज्ञान अनंत रे हुं वारिलाल, दर्शनावरणी क्षयथी थया रे लाल, केवळ दर्शन कंत रे हु० || २ || नमो अक्षय अनंत सुख सहजथी रे लाल, वेदनी कर्मनो नाश रे मोहनीय क्षये निर्मळु रे लाल, क्षायिक समकित वास रे हु. २० ||३|| अक्षय स्थिति गुण उपन्यो रे लाल, आयु कर्म अभाव रे हुं वारिलाल नाम कर्म क्षये निपन्यो रेलाल, रूपादिक गति भाव रे हुं वारिलाल अगुरुलघु मुण उपन्यो रे लाल, न रह्यो कोई विभाव रे हु० ||४|| गोत्र कर्मना नाशथी रे लाल, निज प्रगट्या जस भाव रे हु० ||५|| नमो० अनंत वीर्य आतम तणुं रे लाल प्रगटयो अंतराय नाश रेहुं वारिलाल || ६ || आठे कर्म नाशी गया रे लाल, अनंत अक्षय गुण वास रे हु० न० भेद पन्चर उपचारथी रे लाल, अनंतर परंपर भेद रे निश्चयथी वीतरागना रे लाल, किरण कर्म उच्छेद रे हु० नमो० ॥७॥ ज्ञानविमळनी ज्योतिमां रे लाल, भासित लोकालोक रे तेहनां ध्यान थकी थशे रे लाल, सुखीया सघळा लोक रे हु० नमो० ॥८॥
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(76) श्री आचार्यपदनी सज्झाय आचारी आचार्य नोजी, त्रीजे पद धरो ध्यान, शुभ उपदेश प्ररुपताजी, कह्या अरिहंत समान, सूरिश्वर नमतां शिवसुख थाय. भव भवना पातिक जाय, सूरिश्वर नमतां शिवसुख थाय. ॥१॥ पंचाचार पलावतांजी, आपण पे पालंत, छत्रीश छत्रीशी गुणेजी, अलंकृत तनुं विलसंत सूरिश्वर नम० ॥२।। दर्शनज्ञान चारित्रनाजी, ओकेक आठ आचार, बारह तप आचारनाजी, इम छत्रीश उदार सूरिश्वर नम० ॥३॥ पडिरुपादिक चौदे अ छेजी, वली दश विध यति धर्म, बारह भावना भावतांजी, ओ छत्रीशे मर्म सूरिश्वर नमः ॥४॥ पंचेन्द्रिय दमे विषयथीजी, धारे नवविध ब्रह्म, पंचमहाव्रत पोषतांजी, पंचाचार समर्थ सूरिश्वर नम० ॥५।। समिति गुप्ति शुद्धि धरेजी, टाले चार कषाय, ओ छत्रीशे आदरे जी, धन्य धन्य तेहनी माय, सूरिधर नम० ॥६।। अप्रमत्ते अर्थ भांखताजी, गणि संपद जे आठ, छत्रीश चउविनयादिकेजी, ओम छत्रीशे पाट, सूरिश्वर नम० ॥७॥ गणधर उपमा दीजीओजी; युग प्रधान कहाय, भाव चारित्री तेहवाजी, तिहां जिन मार्ग ठराय सूरिधर नम० ॥८॥ ज्ञानविमल गुण गावतांजी गाजे शासन मांहे, ते वांदि निर्मळ करोजी, बोधीबीज उच्छाह सूरिधर नम० ॥६॥ (77) उपाध्यायपदनी सज्झाय (राग : जननी जोड सखी नहिं मळे)
चोथे पदे उवज्झायर्नु, गुणवंतनुं धरो ध्यान रे; युवराज सम ते कह्या, पद सूरिने समान रे चोथे० (१) जे सूरि सम व्याख्यान करे, पण न धरे अभिमान रे; वळी सूत्र अर्थनो पाठ दीये, भविजीवने सावधान रे चोथे० (२) अंग अग्यार चौद पूर्व जे, वळी भणे भणावे जेहरे; गुण पचवीश अलंकर्या, दृष्टिवादे अर्थना गेहरे चोथे० (३) बहु नेहे अर्थ अभ्यासे सदा, मन धरतां धर्म ध्यान रे; करे गच्छ निश्चित प्रवर्तक, दिये स्थविरने बहु मान रे चोथे० (४) अथवा अंग अग्यार जे, वली, तेहना बार उपांग रे, चरण करणनी, सित्तरी, जे धारे आपणे अंग रे, चोथे० (५) वळी धारे आपणे अंगे, पंचागी, मते शुद्धवाणी रे; नयगम भंग प्रमाण विचारने, दाखता जिनवर आणे रे चोथे० ।।६।। संघ सकळ हित कारिआ, रत्नाधिक मुनि
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हितकार रे; पण व्यवहार प्ररुपतां, कहे, दश समाचारी आचार रे चोथे० ।१७।। इंद्रिय पंचथी विषय विकारने, वारंता गुण गेहरे, श्री जिनशासन धर्म धुरा, निर वहता शुचि देह रे चोथे० ॥८॥ पचवीश पचवीश गुणतणी, जे भाखी प्रवचन माहे रे मुक्ता फल सुकता परे दीपे जस अंग उच्छाहे रे चोथे० ॥६।। जस दीपे अति उच्छाहें, अधिक गुणे जीवथी अकतान रे, तेहवा वाचक- उपमान कडूं, जेहथी शुभ ध्यान रे चोथे० ॥१०॥ (78) साधु पदनी सज्झाय (राग : चार दिवसनां चांदरडा पर)
ते मुनिने करूं वंदन भावे, जे षटकाय व्रत राखे रे इंद्रिय पण दमे विषय पणाथी, वळी शांत सुधारस चाखे रे ते मु० ॥१॥ लोभ तणा निग्रहने करता, वली पडिलेहणादिक किरिया रे. निराशंस यतनाओ बहु दीपे, वळी करण शुद्धि गुणदरिया रे ते मुनि ॥२॥ अहनिश संजम योगशुं युक्ता, दुर्धर परिसह सहता रे. मन वच-काय कुशळता जोगे, वरतावे गुण अनुसरता रे मुनि० ॥३॥ छंडे निजतनुं धरमने कामे, वळी उपसर्गादिक आवे रे, सत्तावीश गुणे करी सोहे, सूत्राचारने भावे रे ते मुनि० ।।४।। ज्ञान दर्शन चारित्र तणा जे त्रिकरण जोग आचार रे, अंगे धरे निस्पृहता शुद्धि, ओ सत्तावीश गुण सार रे ते मुनि० ॥५॥ अरिहंत भक्ति सदा उपदिशे, वाचक सूरिना सहाइ रे, मुनि विण सर्व क्रिया नवि सुझे, तीर्थ सकल सुखदाइ रे ते मुनि० ॥६।। पद पांचमे इणिपेरे ध्यावो, पंचमी गतिने साधो रे, सुखी करजो शासन नायक, ज्ञान विमल गुण वाधे रे ते मुनि० ॥७।।
(79) नवपदनी सज्झाय श्री मुनिचंद्र मुनिश्वर वंदीओं, गुणवंता गणधार सुज्ञानी, देशना सरस सुधारस वरसता, जिम पुष्कर जळधार. सु० श्री० (१) अतिशय ज्ञानि पर उपकारीया, संयम शुद्ध आचार, सु० श्रीपाळ भणी जाप आपीयो, करी सिद्धचक्र उद्धार, सु० श्री० (२) आंबिल तपविधि शीखी आराधयो, पडिक्कमणा दोय वारसु० अरिहंतादिक पद अकओकनु, गणणुं दोय हजार, सु० श्री० (३) पडिलेहण दोय टंकनी आदरे, जिनपूजा त्रणकाळ. सु० ब्रह्मचारी वळी भोय संथारीये, वचन न आळ पंपाळ सु० श्री० (४) मन
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अकाग्र करी आंबेल करे, आसो चैत्र मास सु० शुदि सातमथी नवदिन कीजीओ, पूनमे ओच्छव खास सु० श्री० (५) ओम नव ओळी अकाशी आंबिले, पूरी पूरण हर्ष. सु० उजमणुं पण उद्यमथी करे, साडा चारे रे वर्ष सु० श्री० (६) अ आराधनथी सुख संपदा, जगमांकीर्ति थाय सु० रोग उपद्रव नासे अहथी, आपदा दूर पलाय सु० श्री० (७) संपदा वाधे अति सोहामणी, आणा होय अखंड सु० मंत्र मंत्र तंत्र करी सोहतो, महिमा जास प्रचंड सु० श्री० (८) चक्रेश्वरी जेहनी सेवा करे, विमलेश्वर वळी देव, सु० मन अभिलाषा पूरे सवि तेहनि, जे करे नवपद सेव सु० श्री० (६) श्री श्रीपाळे अणी परे आराधिओ, दूर गयो तस रोग सु० राज रुद्धि दिन दिन प्रत्ये वाधतो, मनवांछित लह्यो भोग सु० श्री० (१०) अनुक्रमे नवमे भव सिद्धि वर्या, सिद्धचक्र सुपसाय सु० ओणी परे जे नित्य नित्य आराधशे, जसवाद गवाय सु० श्री० (११) संसारिक सुख विलसी अनुक्रमे, करी कर्मनो अंत सु० घाती अघाती क्षय करी भोगवो, शाश्वत सुख अनंत सु० श्री० (१२) ओम उत्तम गुरु वयणा सुणी करी, पावन हुआ बहु जीव सु० पद्म विजय कहे अ सुरतरु समो, आपे सुख सदैव सु० श्री० (१३)
तस
( 80 ) श्री श्रीपाल राजानी सज्झाय
सरसती माता मया करो, आपो वचन विलास रे मयणा सुंदरी सती गाइशुं, आणी हैडै भावो रे.... ( 9 ) नवपद महिमा सांभळो, मनमां धरी उल्लासो रे, मयणा सुंदरी श्रीपाल ने, फलीयो धरम उदारो रे.... (२) मालवदेश मांहे वली, उजेणी नयणी जाणो रे, राज करे तिहां राजीयो पृथ्वीपाल नरिंद रे नव... (३) राय तणी मन मोहनी, घरणी अनोपम दोय रे, तास कुखे सुता अवतरी, सुर सुंदरी मयणा जोड रे. नव० (४) सुर सुंदरी पंडित कने, शास्त्र भणी मिथ्यातो रे, मयणा सुंदरी सिद्धांतनो, अरथ लीधो सुविचारो रे. नव० (५) राय कहे पुत्री प्रत्ये, हुं तुठो तुम जेहो रे, वंछित वर मांगो तदा, आपुं अनोपम तेह रे. नव० (६) सुर सुंदरी वर मांगीयो, परणावी शुभ ठामो रे, मयणा सुंदरी वयणा कहे, कर्म करे ते होवे रे. नव० (७) कर्मे तुमारे आवीयो, वर वरो बेटी जेह रे, तात आदेशे करग्रही, वरीयो कुष्टितेह रे. नव० ( ८ ) आयंबील नो तप आदरी, कोढ अढार
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निकालो रे, सदगुरु आज्ञा शिर धरी, हुओ राय श्रीपालो रे. नव० (६) देश देशान्तर भमी करी, आयो ते वर चंगे रे, नव राणी परण्यो भली, राज्य पाम्यो मन रंग रे. नव० (१०) तप पसाय सुख संपदा, प्रत्यक्ष स्वर्गे पहोंच्यो रे, उपसर्ग सवि दुरे टल्या, पाम्या सुख अनंतो रे. नव० (११) तपगच्छ दिनकर उगीयो, श्री विजयसेन सूरिंदो रे, तास शिष्य विमल ओम विनवे, सती नामे आणं दोरे, नवपद महिमा सांभळो० (१२)
(दिवालि कल्प स्तवननी अपूर्ण बीजी-त्रीजी ढाल) (ढाल बीजी) हवे निय आय अंतिमसमे, जाणिय श्री जिनराय रे; नयरी अपापाए आवीया, राय समाजने ठाय रे; हस्ति पालग राये दीठला, आ वियडा आंगण बार रे; नयन कमल दोय विकसीआ, हरसीला हइडा मझार रे॥१३॥ भले भले प्रभुजी पधारीया, नयन पावन कीधां रे; जनम सफल आज अम तणो, अम्ह घर पाउलां दीधा रे; राय राणी जिन प्रणमीया, मोटे मोतीयडे वधावी रे; जिन सनमुख कर जोडीय, बेठला आगले आवी रे॥१४॥ धन अवतार अमारडो, धन दिन आजुनो जेहो रे; सुरतरु आंगणे मोरीयो, मोतियडे वूठलो मेहो रे, आ श्युं अमारडे एवडो, पुरव पुन्यनो नेहो रे; हैडलो हेजे हरसिओ, जो जिन मलिओ संजोगो रे ।।१५।। अति आदर अवधारिए, चरम चोमासु रहीया रे; राय राणी सुरनर सवे, हियडला मांहे गहगहिया रे; अमृतथी अति मीठडी, सांभली देशना जिननी रे; पाप संताप परो थयो, शाता थई तन मननी रे॥१६॥ इंद्र आवे आवे चंद्रमां, आवे नरनारीना वृंदरे; त्रण प्रदक्षिणादेइ करी, नाटिक नव नवे छंदो रे; जिनमुख वयणनी गोठडी, तिहां होये अति घणी मीठी रे; ते नर तेहज वरणवे, जीणे निज नयणले दीठी रे ॥१७॥ इम आणंदे अतिक्रम्या, श्रावण भादरवो आसो रे, कार्तिक कोडीलो अनुक्रमे, आवीयडो कार्तिक मासो रे; पाखी पर्व पन्होतो, पोहतलुं पुन्य प्रवाहि रे, राय अढार तिहां मिल्यां, पोसह लेवां उछांहि रे॥१८॥ त्रिभोवन जन सवि तिहां मिल्यां, श्री जिनवंदन कामो रे; सहेज संकिरण तिहां थयो, तिल पडवा नहि ठामो रे; गोयम स्वामी समोवडी, स्वामी सुधर्मा तिहां बेठा रे; धन धन ते जिणे आपणे, लोयणे जिनवर दिठा रे॥१६॥ पूरण पुन्यना औषध, पौषध व्रत
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वेगे लीधा रे; कार्तिक काली चउदशे, जिन मुखे पच्चखाण किधारे; राय अढार प्रमुख घणे, जिनपगे वांदणा दिधारे; जिन वचनामृत तिहां घणे, भवियणे घट घट पीधां रे ।।२०।।
(ढाल त्रीजी) श्री जगदीश दयाल दुःख दूरे करे रे, कृपा कोडि तुज जोडी; जगमां रे जगमां रे कहीए केहने वीरजी रे०।२१।। जगजनने कुण देशे एवी देशना रे, जाणी निज निरंवाण; नवरस रे नवरस रे सोल पहोर दिये देशना रे०॥२२॥ प्रबल पुन्य फल संशुचक सोहामणां रे अज्झयणां पण पन्न, कहीयां रे कहीयां रे, महिया सुख सांभलि होए रे॥२३॥ प्रबल पाप फल अज्झयणा तिम तेटलां रे, अण पुंछ्या छत्रीस; सुणतां रे सुणतां रे भणतां सवि सुख संपजे रे पुण्यपालराजा तिहा धर्म कथांतरे रे कहो प्रभु प्रत्यक्षदेव, मुजने रे मुजने रे सुपन अर्थ सवी साचलो रे०॥२४॥ गज वानर खीर द्रुम वायस सिंह घडो रे, कमल बीज इम आठ; देखी रे देखी रे सुपन समय मुझ मन हुओ रे०॥२६।। उखर बीज कमल अस्थानके सिंहगें रे, जीव रहित शरीर; सोवन रे सोवन रे कुंभ मलीन ए शुं घटे रे०।२७।। वीर भणे भूपाल सुणो मन थीर करी रे सुमिण अर्थ सुविचार; हैडे रे हैडे रे धरज्यो धर्म धुरंधरु रे०॥२८॥
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