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नाटक पेखत, पण नहि हर्ष आणंद; हो जिनवर! तु मुज प्राण आधार, जगजनने हितकार०...हो०. ॥१॥ दानवीर तपवीर जिनेश्वर करमरिपुहतवीर; ते कारणे अभिधान तुमारुं, युद्धवीर गंभीर०...हो०. ॥२॥ तुं सिद्धारथ सिद्धारथसुत, नहि सुत मात अबीह; हरिलंछन गतलंछन साहिब, चउमुख धर्म निरिह०...हो०. ॥३॥ संघ चतुर्विघ थापना कीधी, चउगई पंथ विहाय; पंचम नाणे पंचम गतिओ, वीर जिणंद सधाय०...हो०. ॥४॥ सोल प्रहर प्रभु देशना वरसी, फरसी विभु गुणठाण; बंधन छेदन गति परिणामे, चरम समय निर्वाण...हो०. ॥५॥ स्वाति नक्षत्रे शिवपद पाम्यां; दिवाली दिन तेह; वीर! वीर! गौतम वीतरागी, त्रुट्यो बंधन स्नेह०...हो०. ॥६॥ खीमाविजय जश शुभ लहीओ, वीर कहे वीरध्यान; करतां सौख्य महोदय पामे, लीला लहेर वितान०...हो जिनवर तु मुज प्राण आधार...॥७॥
(58) दिवालीनां स्तवनो आवी आवी हो राज, पून्य थकी दिवाली-धवल मंगल जिनमंदीर दीपे, पूजा कीजे रसाली; अह पर्वनो महीमा निसुणो, आगमपाठ निहाली...आवी०. ॥१॥ अह दीवाली केरे दिवस, ध्यान शुक्ल संभारी; छ? तणुं अणशण आराधी, कठीण करममल टाळी०...आवी०. ॥२॥ सोल प्रहरनी देशना दीधी, ह्रदय करी उजमाली; श्री जिनवर जिनेसर मुगति, पहोत्या पातक गाली०...आवी०. ॥३॥ तत खीण अष्टापद नृप विरचे, द्रव्य थकी दिपमाली; प्रभाते श्री गौतम पाम्या, केवलज्ञान विशाली०...आवी०. ॥४॥ इंद्रादिक मली ओच्छव कीधो, विरची वर कमलाली; ते माटे श्री वीर जिणंदनो, नाम जपो जपमाली०...आवी०. ॥५॥ गौतम गणधरनो पण जुगते, ध्यान धरो मद गाली; छ8 करीने बार सहस जप, कीजे निज मन वाली०...आवी०. ॥६॥ श्री जिन भक्ति तथा गुरु सेवा, करतां सद्गति भालि; जिन कहे दीपोत्सव आराध्ये, नितु नितु मंगलमाली०...आवी०. ॥७॥
(59) दीवाली पर्वतुं स्तवन ढाल-८ (ढा. १) (राग :--समरजीव ओक नवकार) श्री श्रमण संघ तिलकोपमं गौतम, सुगति प्रणिपत्य पादारविंदं इंद्रभूति प्रभवम हंसो मोचकं, कृत