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घेर्यो, धर्मराजाने प्रभुजी, व्हारे अहीं भेजो । (४)... जेवो मोटानो महिमा मोटो, आशरो मोटो, सेवक रत्न विजय मांगे शिवसुखदेजो । (५)... जेवो०
__(13) श्री सहस्रकुट जिन प्रतिमानुं स्तवन
सहस्त्रकुट जिन प्रतिमां वंदिये, मन धरी अधिक जगीश विवेकी सुंदर मूरती हती सोहामणी, एक सहसने चोवीश वि०॥१॥ अतीत अनागतने वर्तमाननी, त्रण चोवीशी सार हो विवेकी, बहोतेर जिन एक एक क्षेत्रमें, प्रणमी जे वारोवार वि०॥२॥ पांच भरत वळी ऐरावत पांचशे, सरखी रीत समाज वि०, दश क्षेत्रे थई थाए सातशे, वीश अधिक जिनराज वि०॥३॥ पांच विदेह जिनवर साठसो, उत्कृष्ट एहिज टेव विवेकी, जिन समाज जिन प्रतिमा ओळखी, भक्ति कीजे हो सेव वि०॥४॥ पंच कल्याणक जिन चोवीस तणा, वीसासो तेहीज थाय वि० ते कल्याणक विधिशुं साचवी, लाभ अनंत कहाय वि०॥५॥ पंच विदेह हमणां विचरंता, वीश अछे अरिहंत वि० शाश्वत जिन ऋषभानन आदि चार अनादी अनंत वि०॥६॥ एक सहस जिन चोवीश तणा, प्रतिमां एकण ठाम विवेकी, पूजा करी जन्म सफळ होवे, सीजे हो वांछित काम वि०॥७॥ तीन लाख अढाईद्विपमां, केवल नाणी पहाय वि० कल्याणक करी इहां प्रभु सामटा, लाभे गुणमणी खाण वि०॥८॥ सहस्त्रकुट सिद्धाचल उपरे, तीमहीज धरणी कहाय वि० तेथी अद्भूत एछे स्थापना, पाटण नगर मोझार वि०।६।। तीर्थ सकल वली तीर्थंकरूं सहु, एणे पूजो ते पूजाय वि० एक जिह्वाथी महिमां एहनो, किण भाते हो कहेवाय वि०।१०।। श्रीमाली कुल दीपक जेतशी, शेठ सुगुण भंडार वि० तस सुत शेठ शिरोमणी तेजशी, पाटण नगरमें दातार वि०||११॥ तेणेए बिंब भराव्या भावशुं, सहस अधिक चोविश वि० किधी प्रतिष्ठा पुनमगच्छधरू, भाव प्रभ सूरीश वि०।१२।। सहस जिनेसर विधिशुं पुजशे, द्रव्यभाव शुचि होय वि० इहभव परभव सुखी होवे, लहेस्ये नवनिधि सोय वि०॥१३॥ जिनवर भक्ति करे मनरंगशुं, भविजननी एछे रीत वि० दीपचंद्र सम श्री जिनराजजी देवचंद्रनी ए प्रित विवेकी,....॥१४॥