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प्रभु भोगी, त्रण रन मुज आपो, दिन-दयाळ कृपा करी तारक, जन्म-मरण दुःख कापो, (२) हो (४) निर्मोही पण जगजन मोहे, देशना भवि पडिबोहे अकल अगम्य अचिंत्य तुज महिमा, योगीधर नवि जोय हो, (५) शांतिजिनेश्वर शान्ति अनुपम मोहन कहे मुज आपोजी शांतिजिनेश्वर बाह्य ग्रही मुने, सेवक रूपे स्थापो, (२) हो (६) (15) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग-सासरीये केम जाशो हो)
अचिरानंदन वंदना जिणंदजी, भवोभवफंद निकंदना रे आराधो आनंदमां जिणंदजी, मपडो माया फंदमां रे हुं तो प्रभु पूजवा निसर्यो जिणंदजी, मने घरनो घंघो विसर्यो रे, मुखडुं जोवा ताहरूं जिणंदजी, व्हाला मोही रयुं मन माहीं, (१) तारु रूप दीर्छ जे वारनुं जिणंदजी, मने विसर्यु पुर संसार- रे, (२) तारी मूर्ति दीठी जे घडी जिणंदजी, मारी आंख हैयानी उघडी, (२) मने तुजशु लागी मोहनी जिणंदजी, मने नगमे संगत केहनी रे, मने घडीघडी तुं सांभळे जिणंदजी, वळी विसर्यो नवी विसरे० (३) रूडी अणियाली तुज आंखडी जिणंदजी, ते तो जाणे कमलनी पांखडीरे (२) मस्तक मुगट सोहामणो जिणंदजी, मने जोवानो अलजो घणो रे जिणंदजी, कांइ काने कुंडल सरीखा रे, हार हैये अति सोहतो जिणंदजी, ते तो भविजनना मन मोहतो रे, (५) पचरंगी आंगी बनी जिणंदजी, कांई शोभा शी कहुं तेहनी रे, (२) कुलपगर अति फूटडो जिणंदजी, तारा वयण अमीरस घुटडा रे, (६) दीपमाला धूप आरति जिणंदजी, दुःख दोहग दुरे वारती रे, (२) ता ता थै थै तानमां जिणंदजी, तने सुरनर गावे गानमारे, (७) जो तुम सेवक करीने लेखवो जिणंदजी, तो सुनजर करी देखवो, (२) उदय रत्न कहे आजथी जिणंदथी, मारां काज सर्यां जिनराजथी, (८)
(16) श्री शान्ति जिन स्तवन देखत नयन सोहाय प्रभुजी, (२) अजब मूर्ति अचिराजी को नंदन, चंदन चर्चित काय, प्रभुजी० (१) कंचन कांति पराजित सुरगिरि, दीठो नावे दाय, प्रभुजी० (२) पंचमचक्री षोड्शमोजिन टाळे सोळ कषाय प्रभुजी० (३) सोळ शणगार सजी सुरबाला, रास रमे चितलाय प्रभुजी० (४) खीमाविजय जिन चरणोनी सेवा, करता पाप पलाय प्रभुजी० (५)