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जी, लक्ष्मी अस्थिर निदानजी, परमार्थमां नवि वापर्यु जी, एकलां जावं ते जाणजी, (२).... (३) लक्ष्मी केरी लालचेजी, लूटयां में लोक अनेक रे, शासन पतिना चोपडे जी, लखाई गया त्यां लेख रे० (२).... (४) कर्या कर्म सहु अनुभवेजी, कोई न राखणहार रे, शांति जिनेश्वर आपथीजी, कोई दिन पामे पार रे० (२).... (५) विश्वसेन कुल दिपावीयुंजी, अचिरामात सुखकार रे, लाख वरसनुं आउखुंजी, मृगलंछन मनोहार रे० (२).... (६) भरणी नक्षत्रमा जनमीयाजी, मेघ राशी प्रमाण रे, गरुड निर्वाणी सेवा करे जी, शासनना रखवाळ रे० (२).... (७) 'विनय-विजय'नी विनंतीजी, स्वीकारो वारंवार रे, शरणुं ताहरु प्रभु मने जी, आ भव पार उतार रे० (२).... (८)
(13) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : मेरा जीवन......)
शांतिजिन एक मुज विनतिजी, सांभळो जगत आधार । साहिब हुं बहु भव भम्योजी, सेवतां पाप अढार.....शांति० (१) प्रथम हिंसामांही राचीयोजी, नाचीयो बोली मृषावाद, माचीयो लई धन पारकुं, हारीयो निज गुण स्वाद,..... शांति० (२) देव मानव तिर्यंच नाजी, मैथुन सेव्या घणी वार, नवविध परीग्रह मेळवीयोजी, क्रोध कीयो अपार,.....शांति० (३) मान माया लोभ वश पड्योजी, राग ने द्वेषपरिणाम, कलह अभ्याख्यान तिम सहीजी, पैशून्य दुरितर्नु ठाम,.....शांति० (४) रति अरति निंदा में करीजी, जेहथी होय नरकवास, कपट सहित जूठं भाखीयुंजी, वासीयुंचित मिथ्यात्व.....शांति० (५) पातिक स्थानक ए कह्याजी, तिम प्रभु आगममांही, तेह अशुद्ध परिणामथीजी, राखीए ग्रही मुज बांही.....शांति० (६) हुं परमात्मा जगगुरुजी, हितकर जग सुखदाय, हंसविजय कविराजनोजी, मोहन विजय गुण गाय.....शांति० (७) (14) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : चांदि जैसी सुरत तेरी)
शांति जिणंदप्रभु त्रिभुवन स्वामी, शिवगामी यशनामी, जेहने परम प्रभुता पामी, सिद्धि वधु सुखकारी, (२)...(१) चोसठ इन्द्र रह्या करजोडी, पाय नमे मान मोडी, अमरी भमरी परेमुखकमले, रासलीये हाथजोडी, (२)...(२) भावथी ताल विणा प्रभु पासे, धपमप मृदंग बजावे, ता ता थै थे नाटक करे निज, लळी लळी शीश नमावे, (२) हो (३) समता सुंदरीना