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सविस्तर सुणीने, सफल करो नर देहजी. ३ ओणिपरे पर्व पर्युषण पाळी. पाप सर्वे परिहरिओजी; संवत्सरी पडिक्कमणुं करतां, कल्याण कमळा वरीओजी; गोमुख जक्ष चक्केश्वरी देवी, श्री माणीभद्र अंबाईजी, शुभविजय कवि शिष्य अमरने, दिन दिन करजो वधाईजी. ४
(161) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पर्व पजुसण सर्व सजाई, मेलवीने आराधोजी, दान शील तप भावने भेली, सफल करो भव लाधोजी; तत्क्षण अह पर्वथी तरीये, भवजल जेह अगाधोजी, वीरने वांदि अधिक आणंदी, पूजी पूण्ये वाधोजी. १ ऋषभ नेमपास परमेसर, वीर जिणेसर केरांजी. पांच कल्याणक प्रेमे सुणीओ, वली आंतरा अनेराजी; वीशे जिनवरना जे वारि, टाले भवना फेराजी, अतित अनागत जिनने नमिये, वली विशेष भलेराजी. २ दशाश्रृत सिद्धांत मांहेथी, सूरिवर श्री भद्रबाहुजी, कल्पसूत्र उद्धारी संघने, करी उपगार ते साहुजी; जिनवर चरित्र ने श्री समाचारी, स्थिविरावली उमाहोजी, जाणी अहनी आण जे लहेशे, लेशे ते भव लाहोजी. ३ चउथ्थ छठ्ठ अठ्ठम अट्ठाइ दश पंदरने त्रीशजी, पीस्तालीश ने साठ पंचोत्तेर, ईत्यादिक सुजगीशजी; उपवास अता करी आराधे पर्व पजुसण प्रेमजी, शासन देवी विघन तसु वारे, उदय वाचक कहे अमजी.४
(162) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पामी पर्व पजुसण सार, सत्तरभेदी जिनपूजा उदार, करीओ हरख अपार; सद्गुरु पास धरी बहु प्यार, कल्पसूत्र सुणीजे सुखकार, आळस अंग उतार; धरमसारथीपद सुपना चार, सुपनपाठक आव्या दरबार, वीरजनम अधिकार; दिक्षाने निर्वाणविचार, षट् व्याख्यान अनुक्रमे धार, सुणतां होय भवपार. १ नमि सुव्रत मल्लिअर कंत, कुंथु शांति ने धर्म अनंत, विमल वासुपूज्य संत; श्री श्रेयांस शीतळ भगवंत, सुविधि चंद्र सुपार्थ भदंत, पद्म सुमति अरिहंत; अभिनंदन संभव गुणखाण, अजितनाथ पाम्या निरवाण, ओ वीश अंतर मान; पास नेमिसर जगदिशान, ऋषभचरित्र कर्वा प्रधान, सातमुं ओह वखाण. २ आठमे गणधर स्थविर गणीजे, नवमे बारसा समाचारी लीजे, नव वखाण सुणीजे; चैत्यपरिपाटी विधिशुं कीजे, यथाशक्तिले तप