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तपीजे. आश्रव पंच तजीजे; भावे मुनिवरने वंदिजे, संवच्छरी पडिक्कमj कीजे, संध सकल खामीजे; आगमवयण सुधारस पीजे, शुभकरणी सवि अनुमोदिजे, नरभव सफल करीजे. ३ मणिमां चितामणी सार, पर्वतमां जिम मेरु उदार, तरुमां जिम सहकार; तीर्थंकर जिम देवमां सार, गुणगणमां समकित श्रीकार, मंत्र मांही नवकार; मतमां जिम जिनमत मनोहार, पर्वपजुसणमां तेम विचार, सकल पर्व शिणगार; पारणे स्वामिभक्ति प्रकार, माणेक विजय विघन अपहार, देवी सिद्धाई जयकार. ४
(163) श्री पर्युषणनी स्तुतिः एक पनोति पद्मिणि पभणे, सुणीकंता सुविचारोजी, परव पर्युषण एजो आव्या, कीजे करणी सारोजी, प्रेमे पनोता पूजा रचावो, परिमल पुन्य संभारोजी, प्रथम जिनेश्वर पूजी प्रणमी, दुर्गतिना दुःख वारोजी, १ छठ्ठ अठ्ठम पांचने अठ्ठाई, दशम दुवालस वारोजी, पासखमणने सोलह सारा, मासखमण मनोहारजी, इणिपरे दुःसह बहुतप तपीए, सेवा सुगुरुनी कीजेजी, जिन चोवीशीए चंदन चरची, नरभव लाहो लीजे जी, २ अंगे उलट अति घणां आणी, आतमना आधारोजी, कल्पसूत्र सवि नगीनो, सुणतां भवनो पारोजी, ते आपणे घेर पधरावो, धवल मंगल गवरावोजी, सात क्षेत्रे बहु धन खरची, जीव अमारी पलावोजी, ३. ओढण आर्छ छायल छाजे, पहिरण नव अंग फालीजी, सुगति चाले चंपक वरणी, संघ सयल रखवालीजी, तपीयां साहुनी समृद्धि करजो, सा चकेश्वरी देवीजी, विबुध विवेक विजय पद सेवी, पद्म कहे प्रणमेवीजी, ४
___ (164) श्री पर्युषणनी स्तुतिः पर्वोमां पर्युषण राजा, तीर्थमां सिद्धगिरि राजेजी, सुरनरमां जेम इंद्रने चक्री, तरूगुण सुरतरू छाजेजी, आ उपमांथी अधिक छे गुणधर, पर्व अपूर्व ताजोजी, आंगीने पूजा वीर प्रभुनी, रचीये शुभ मन भाजोजी, १ ऋषभ प्रभुने श्री वर्धमान, तीर्थ जीवना स्वभावोजी, सरलजड ने वक्रजड ते, त्रण दृष्टांत ने भावोजी, बावीस जिनपति वारे, चेतन, बुद्धिवंत सद्भावोजी, जन्मकृतारथ कारण तिरथ, स्थावर जंगमध्यावोजी, २ कल्पसूत्रमा त्रण