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यंत्र, सेवो भवियण अकांत. ३ जे सेव्यो मयणा श्रीपाल, उंबर रोग गयो तत्काल, पाम्या मंगळमाळ, श्रीपालतणी परे जे आराधे, तस घरे दिन दिन दोलतवाधे, अंते शिवसुख साधे; विमलेश्वर जक्ष सेवा. सारे, आपद कष्ट सवि दूर निवारे, दोलत लक्ष्मी वधारे, मेघविजय कविरायनो शिष्य, हइडे भाव धरी जगीश, विनयविजय निशदिश. ४
(178) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः ____ वीर जिनेसर भवनदिणेसर, जगदिसर जयकारीजी, श्रेणिक नरपति, आगल जंपे, सिद्धचक्र तप सारीजीः समकित दृष्टि, त्रिकरण शुद्धे, जे भवियण आराधेजी, श्री श्रीपाल, नरिंदपरे तस, मंगल कमला वाधेजी. १ अरिहंत विचें, सिद्धसूरि पाठक, साहु चिहुं दिशि सोहेजी; दंसण नाण, चरण तप विदिशें, अह नव पद मन मोहेजी; आठ पांखडी, ह्यदयांबुज रोपी, लोपी रागने रीशजी, ॐ ह्री पद ओक ओकनी गणीये, नवकारवाली वीशजी. २ आसो चैत्र शुदिसातमथी, मांडी शुभ मंडाणजी; नव निधिदायक नव नव आंबिल, ओम अकाशी प्रमाणजी; देव वंदन पडिक्कमणुं पूजा, स्नात्र महोत्सव चंगजी, अह विधि सघलो जिहां उपदेश्यो, प्रणमुं अंग उपांगजी. ३ तप पूरे उजमणुं कीजे, लीजे नरभव लाहोजी, जिनगृहपडिमा साहम्मिवत्सल, साधु भक्ति उत्साहजी; विमलेसर चक्केसरी देवी, सान्निध्यकारी राजेजी, श्री गुरु खिमाविजय सुपसाये, मुनि जिन महिमा छाजेजी. ४
(179) श्री सिद्धचक्र स्तुतिः सिद्धचक्र यंत्रेश्वर सारो, मंत्र शिरोमणि जगदाधारो. प्रत्यक्ष चमकारो; अनुपमाणे अतिशयवंतो, गुणसमुद्रनो कोण लहे अंतो, त्रिभुवन महिमावंतो; मननी आधि तननी व्याधि, दूर करे भवनी उपाधि, पामे वंछित साधी, शांत दशा ने अकाग्रचित्ते, सकल कार्य करे शुभ रीते, पाप कर्मने जीते. १ देवतत्त्वमां दोय प्रसिद्धा, बार गुणो ने आठ समृद्धा, अरिहंतने प्रभु सिद्धा, सूरि पाठकने जे जग साधु, अढी द्वीपमां वळी आराधुं, त्रण इष्ट गुरु साधु; छत्रीश पचीश ने सत्तावीशी, सर्वोत्तम धर्मी गुणमणीशी, प्रणमो परमेष्ठी अधीशी, दर्शन सडसठ ज्ञान अकावन, चारित्र सीत्तेर पचास पावन, तपगुण