________________
147
चउधर्म स्थान. २ श्री जैनधर्मनुं शासन सार, मुनिचंद्रसूरी श्रुतोदधि पार, त्रिभुवन जन हितकार, चउद पूरवमा नवपद धार, श्रीपाल मयणा माटे उद्धार, आराधक जयकार, आसो चैत्र सुदी सातमथी, पुनम लगे आंबिल - तपथी, रहो शुद्ध जापना जपथी, स्नात्रपूजाने अष्टप्रकारी, दिन दिन भावना चढते अपारी, जस महिमा अपरंपारी. ३ प्रतिक्रमण करी शुद्ध भावे, दोय टंक पडिलेहण थावे, त्रिकाल देव वंदावे, गुण प्रमाणे खमासमणां देवो, स्वस्तिक फल नैवेद्यने ढोवो, नित नित प्रभु मुख जोवो; अकेक पदनी वीस जपमाला, गुरुगम विधिये करो विशाला, पर्वोमां शाश्वत वहाला, श्री विमलेश्वर सानिध्यकारी, चक्केसरीमा विघ्न विदारी, आत्मशक्ति जयकारी. ४
(180) श्री नवकार मंत्रनी स्तुति समरो भवियण श्री नवकार, महिमा जेहनो अगम अपार, कहेता नावे पार, चौद पुरवनो एह छे सार, गणि पट्टिका एह उदार, जपता जय जयकार अडसठ अक्षर एहना जाणो, संपदा आठथी जे परमाणो, नवपद शाश्वत ठाणो, हृदयकमलमां अक्षर स्थापी, उज्वल ध्यान करे अणलापी, थाये जग जस व्यापी.... १ मारग देशक श्री अरिहंत, अविनाशी श्री भगवंत, आचारज त्रीजे गुणवंत, विनयशील थीर सूत्र सज्झाय, चोथे पद नमूं श्री उवज्झाय, सहाय करे मुनीराय, बार आठ ने वळी छत्रीशसार, पचवीश सत्तावीश गुणधार, अष्टोत्तर शत निरधार, उज्चल अरूण पीत नील वखाणो, श्यामवर्ण क्रमे ए जाणो, सवि जिनवर सुप्रमाणो...२ श्वेत सुगंधी पुष्प लहीए, शुचि श्रद्धालुं एकभोजी थईए,, नात्र महोत्सव करीए, पांच हजार मंत्र दिन प्रति गणीए, वीश दिवसे एक लाखने, जपीए, तीर्थंकर पद वरीए, पंच मंगल महानिशीथे कहीए, महाश्रुतस्कंधउपमा सुणीए, तन मन अधिक विलसीए, वळी भील भीलडीनो अधीकार, आगम मांहि छे सुखकार, ते सांभळजो नरनार,... ३ काष्टमां बळतो नाग अनाथ, नवकार श्रवणे थयो सनाथ, धरणीधर थीर थाय, पुरीसादाणी पारसनाथ, तस सेवक पद्मावती साथ, साधक गहन प्रमाण, अट्ठोत्तरने एक हजार, प्रत्येक अक्षरमां निरधार, विधा विलसे श्रीकार, इह परभव आपदा कापे, वळी भवोभव संपदा आपे, अजरामर पद स्थापे... ४